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Non-Erotic नहीं हूँ मैं बेवफा!

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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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Doston,

30 March 2023 ko Sangeeta ki mata ji ka swrgvaas ho gya! Tab se le kar abhi tak Sangeeta bahut pareshaan hai isiliye filhaal kuch samay tak wo is forum se door rahegi.
ईश्वर माताजी की आत्मा को शांति प्रदान करे और मेरी छोटी बहन संगीता को इस दुख की घड़ी में मजबूत होकर छोटे भाई-बहनों को संभालने की शक्ति प्रदान करे.....
समय पर सभी को जाना होता है..... अब माता-पिता की जिम्मेदारियाँ संगीता पर आ गयी हैं, सबसे बड़े होने के नाते, मुझे विश्वास है कि वो छोटे बहनों का उचित मार्गदर्शन करेंगी

ॐ शांति:
 

Kala Nag

Mr. X
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भाग 4
जैसे तैसे अम्मा और बप्पा मान गए थे.............मगर जानकी इस बात से बहुत नाखुश थी!!!! मेरी अपनी सगी बहन..........मेरे स्कूल जाने के नाम से चिढ गई थी!!!!!



जानकी को पढ़ाई का ज़रा भी शौक नहीं था...........उसे तो बस दिन भर सोनी के साथ खेलना पसंद था| जब उसे पता चला की मैं पढ़ने स्कूल जा रही हूँ तो वो मुझसे उखड़ गई.................उस बुद्धू को लग रहा था की मेरे बाद उसे भी स्कूल भेजा जाएगा!!! इस बात को ले कर जानकी ने मुझसे बहुत झगड़ा किया की कैसे मेरे स्कूल जाने से उसे भी जबरदस्ती स्कूल भेजा जाएगा.................इतने अनजान बच्चों के साथ वो कैसे खुद को डालेगी इसकी चिंता कर के उसकी जान सूख रही थी!!!



उधर मैं भी बुद्धू थी जो उसे पढ़ाई का महत्व समझा रही थी............ जबकि असल बात कुछ और ही थी| मेरे अम्बाला जाने से अब सारा काम धाम अम्मा जानकी को कहतीं...........जिससे बेचारी सोनी के साथ खेल नहीं पाती| इसी बात का गुस्सा जानकी मुझ पर निकाल रही थी.............और मैं इस बात से अनजान उसे प्यार से समझा रही थी|



अम्मा को मेरा पढ़ने जाना बिलकुल रास नहीं आ रहा था...........तभी तो उन्होंने भी जानकी की तरह मुझे छोटी छोटी बातों पर झिड़कना शुरू कर दिया| अम्बाला जा कर मुझे खुद को कैसे संभालना है........अपनी मौसी को तंग नहीं करना है..........मामी मामा के घर भी जाना है.........आदि बातें डांट डांट कर सिखाई जा रही थीं| मैं सबकी डांट और झिड़कियां सुन रही थी तो बस इसलिए की कम से कम मुझे पढ़ने को तो मिल रहा है!!!!





आखिर वो दिन आ ही गया.............. जब मुझे अम्बाला जाना था| मैं सबसे पहले अपनी अम्मा के पास पहुंची और उनके पॉंव छू कर आशीर्वाद माँगा.................मगर मेरी अम्मा मुझे आशीर्वाद देने के बजाए मुझे हिदायतें देने लगीं की मुझे मौसी के पास कैसे रहना है| फिर मैं पहुंची चरण काका के पास.............उन्हीं के कारन तो मुझे पढ़ने को मिल रहा था| काका ने मेरे सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया और बोले "खूब मन लगाए के पढयो मुन्नी.............ख़ुशी ख़ुशी जाओ और जब छुट्टी होइ तब गहरे आयो|" माँ के मुक़ाबले चरण काका ने मुझे बड़े प्यार से आशीर्वाद दिया था...............जिस कारन मैं बहुत खुश थी|



फिर मैं पहुंची जानकी और सोनी के पास............जानकी मुझसे बहुत गुस्सा थी इसलिए बजाए मुझे कोई शुभेछा देने के...........वो तो मुझे गुस्से से घूरने लगी!!! "अम्मा बप्पा का ख्याल रखयो...........और तनिक भी मस्ती बाजी ना किहो नाहीं तो लडे जाबो!" एक बड़ी बहन होते हुए मैं तो बस अपनी छोटी बहन को थोड़ी हिम्मत दे रही थी..............मगर मेरी बात सुन जानकी मुँह टेढ़ा करते हुए बोली "हुंह!!!!!!"



मैं जानकी का गुस्सा जानती थी इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा और सोनी को आखरी बार गोदी लेने को हतः आगे बढ़ाये.............पर जानकी बहुत गुस्से में थी इसलिए उसने फट से सोनी को गोदी में उठा लिया और बोली "कउनो जर्रूरत नाहीं आपन प्यार दिखाए की..............अतना ही प्यार आवत रहा तो काहे जात हो??? तोहका आपन पढ़ाई बहुत भावत है...........जाए का आपन पढ़ाई करो!!!!" ये कहते हुए वो सोनी को गोदी में लिए हुए भुनभुनाते हुए अंदर चली गई|



अपनी छोटी बहन के इस तिरस्कार को ही उसका प्यार समझ मैं बप्पा के साथ अम्बाला आ गई| मेरी मौसी का घर और मां का घर आस पास था इसलिए सभी ने मेरा ध्यान रखने की जिम्मेदारी ली| जब बप्पा चलने को हुए तो मैं बहुत उदास हो गई थी..............आज पहलीबार मैं अपने घर से इतना दूर आई थी और मेरे बप्पा मुझे यहाँ छोड़ कर जा रहे थे इसलिए मैं रो पड़ी| मुझे रोता हुआ देख बप्पा ने मेरे सर पर हाथ रखा और अपनी कड़क आवाज़ में बोले "रोवा नाहीं जात है........तू हियाँ आपन पढ़ाई करे खतिर आयो है..........पूर श्रद्धा से पढ़ाई करो!!!! जब तोहार स्कूल का छुट्टी होइ तब हम आबे अउर तोहका लेइ जाब|" बप्पा के कहे ये वो शब्द हैं जो आज उनके न रहने पर भी मुझे याद हैं..........स्वभाव से बप्पा बहुत सख्त थे पर उनका प्यार उनके सख्त शब्दों में ही छुपा होता था|





मेरे मौसा मौसी............मामा मामी बड़े अच्छे थे............ऊपर से दोनों घर आस पास थे ..............तो मैं कभी मौसी के घर रहती तो कभी मामा जी के घर| वहां मेरी दो बहने थीं.............एक मौसेरी बहन..........और एक ममेरी बहन| मेरी मौसेरी बहन मुझसे ४ साल बड़ी थी और मेरी ममेरी बहन मुझसे दो साल बड़ी थी| दोनों मेरा बहुत ध्यान रखती थीं और शाम को मुझे अम्बाला घुमाती थीं| मैंने अपनी दोनों बहनों से स्कूल के बारे में पूछना शुरू किया……. उन्होंने मुझे बताया की हमारा स्कूल एक सरकारी स्कूल है जो सुबह ७ बजे से १ बजे तक होता है..........उसके बाद १ से ६ लडकों का स्कूल होता है| स्कूल में मुझे एक ड्रेस पहननी होगी जो की मेरी ममेरी बहन की पुरानी ड्रेस थी.........उस ड्रेस को मामी जी ने सिल कर मेरे नाप का बना दिया था| फिर मुझे मिलीं मेरी ममेरी बहन की पुरानी किताबें............अपनी किताबें देख कर मैं बहुत खुश हुई| एक बच्चे के लिए उसकी पहली स्कूल ड्रेस..........उसकी किताबें कितना मायने रखती हैं ये ख़ुशी आप सभी जानते ही होंगें| आप सब खुश नसीब हैं की आपको नए कपड़े और नई और कोरी किताबें पढ़ने को मिलीं...................मेरे लिए तो मेरी बहन की पुरानी किताबें............उसकी पुरानी ड्रेस ही सब कुछ थी| मैं खुद को बहुत भायग्यशाली समझ रही थी की मुझे ये खुशियां मिलीं| मगर ये सारी खुशियां...........चिंता में जल्द ही बदल गईं............जब मेरा स्कूल का पहला दिन आया!





स्कूल का पहला दिन था इसलिए मैं नहा धो कर...........सर पर अच्छे से तेल चुपड़ कर..........बालों में रिबन बाँध कर............अपनी स्कूल ड्रेस पहन कर तैयार हो गई| तभी मेरी मौसी जी ने मुझे एक प्लास्टिक का बक्सा दिया और बोलीं की आधी छुट्टी में मुझे ये खाना है| अब हमारे गॉंव में स्कूल में आधी छुट्टी नहीं होती थी................बच्चे दोपहर १ बजे तक घर लौटते थे और खाना खाते थे| मुझे भी यही लगा था की मैं घर आ कर खाना खाउंगी..............पर जब मौसी ने मुझे ये प्लास्टिक बक्सा दिया तो मैं सोच में पड़ गई|



"मौसी.........हम गहरे आये के खाये लेब.........ई......." इसके आगे मैं कुछ बोलती उससे पहले ही मौसी बोलीं "नाहीं नाहीं मुन्नी!!! पढाई म मन लगाए खतिर पेट भरा हुए का चाहि! भूखे पेट पढ़ाई नाहीं होत है!" मौसी की बातें सुन कर मैं हैरान थी................ गॉंव में सुबह बच्चे कुल्ला कर चाय पीते थे...........फिर भूख लगी तो बासी खाते थे और फिर स्कूल जाते थे| दोपहर १ बजे सीधा खाना खाया जाता था..........पर यहाँ तो मौसी ने मुझे ताज़ा ताज़ा खाना बना कर डिब्बे में पैक कर के दिया था!!!! क्या शहर के माँ बाप अपने बच्चों को .............गाँव के माँ बाप से ज्यादा ज्यादा प्यार करते हैं?????



मैं मन ही मन इस सवाल का जवाब सोच रही थी की तभी मेरी मौसेरी बहन मुस्कुराते हुए बोली; "संगीता इसे डिब्बा नहीं लंच बॉक्स कहते हैं.........और स्कूल में सभी बच्चे घर से लंच बॉक्स ले कर आते हैं|" 'लंच....बॉक्स...' ये नाम मुझे भा गया था और मेरे चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई थी| अपना लंच बॉक्स ले कर मैं स्कूल के लिए जाने ही वाली थी की मेरी मौसी जी ने मुझे रोका..........मुझे लगा उन्हें कोई काम बताना होगा मगर मौसी ने गर्मागर्म परांठे की थाली उठा कर मुझे दी और बोलीं; " अरे खाली पेट स्कूल जैहो??? चलो पाहिले दोनों बहिन नास्ता खाओ|"



मुझे अम्बाला आये बस एक दिन हुआ था और मुझे मौसी के घर के नियम कानून के बारे में ज़रा भी नहीं पता था| मैंने आज पहलीबार सुबह इतना स्वाद नास्ता किया...............गरमा गर्म आलू के परांठे........साथ में आम का अचार!!!!! स्कूल जाने की इससे स्वादिष्ट शुरआत तो हो ही नहीं सकती थी!!!!
चलो आप अंबाला आ गई
ठीक है
यह आपकी बचपन पृष्टभूमि है जहाँ आपकी व्यक्तित्व और चरित्र का भीति प्रस्तुत हो रही है
अपने प्रेम परिणय के लिए यह पृष्टभूमि कितनी आवश्यक है यह तो आगे चलकर मालुम होगा
खैर अब आगे चलते हैं
 

Kala Nag

Mr. X
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भाग 5

स्वाद स्वाद नास्ता कर अपना स्कूल का झोला..............जो की एक खाकी रंग का कपड़े का थैला था.............उसे अपने काँधे पर टाँगे मैं अपनी दोनों बहनों के साथ स्कूल पहुंची............ तो देखती क्या हूँ की ये स्कूल तो मेरे गॉंव के स्कूल के मुक़ाबले बहुत बड़ा है!!!!!!!!!! गॉंव के स्कूल में बस दो कमरे होते थे और पढ़ाई बाहर खुले में होती थी...............जबकि यहाँ तो पक्के कमरे बने थे...............जिन पर एक कच्ची छत बनी थी| गॉंव में मुश्किल से १० से १२ बच्चे जाते थे...............मगर यहाँ तो ऐसा लगता था की जैसे सारा शहर ही पढ़ने आता हो!!! स्कूल के गेट से अंदर घुसते ही मुझे ढेर सारी लडकियां स्कूल की यूनिफार्म पहने दिखीं.............कोई खेल रहा था......कोई दौड़ रहा था.........तो कोई झुण्ड बना कर बातें कर रहा था|



मेरा स्कूल मेरी कल्पना से बहुत बड़ा था और अब मुझे घबराहट होने लगी थी............कहाँ तो मुझे लगा था की ये छोटा स्कूल होगा.........और कहाँ ये इतना बड़ा निकला?????????





मेरी दोनों बहनों ने मुझे मेरी क्लास के बाहर छोड़ा और फिर अपनी अपनी क्लास में चली गईं......... और तब मुझे पता चला की मेरा दाखिला पहली क्लास में कराया गया है!!!!!!!!! मुझे उम्मीद थी की मुझे पहले कच्ची में बैठना होगा......फिर पक्की में.............और फिर पहली क्लास में..........मगर यहाँ तो मेरा दाखिला सीधा पहली कक्षा में हुआ था!!!!!!!!!



अपना झोला हाथ में लिए......डरते डरते ........मैं अपनी क्लास में घुसी| क्लास में एक दरी बिछी हुई थी जिस पर सभी बच्चे बैठते थे.............दिवार पर ब्लैकबोर्ड बनाया हुआ था| जब मैं भीतर घुसी तो मैंने देखा की सभी लडकियां दरी पर बैठी एक दूसरे से बतुआ रही हैं...........अब मुझे समझ नहीं आया की मैं कहाँ बैठूं इसलिए मैं खड़ी हो कर सोचने लगी|



तभी सभी बच्चों ने अपने बीच एक नई लड़की को देखा तो सभी मुझे घूरने लगे............ सबको यूँ मुझे घूरते देख मैं घबरा गई और सोच में पड़ गई की क्या कहूं???? तभी एक लड़की जो की सबसे आगे बैठी थी उसने अपनी बगल में बैठी लड़की को धक्का दे कर दूर धकेला और मुझे अपने साथ बैठने का इशारा किया| ये लड़की थी मेरे जीवन की पहली दोस्त............. “संजना”...... संजना ने अपना नाम बताया तो मैंने भी उसे अपना नाम बताया "संगीता"!!! मेरा नाम सुन संजना ने फौरन मुझसे हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया...........मुझे लगा की शहर के बच्चे ऐसे ही दोस्ती करते होंगें इसलिए मैंने भी झट से उससे हाथ मिला लिया|



फिर शुरू हुई हम दोनों सहेलियों की बातें...........संजना मेरे बारे में सब पूछ रही थी और मैं खुले मन से उसे अपने और अपने परिवार के बारे में सब बता रही थी| चूँकि मेरी बातों के अंदाज़ में गॉंव का गंवार पना झलकता था इसलिए मेरी बातें सुन कुछ बच्चे मुझ पर हंस रहे थे....................पहले तो मुझे लगा की शायद गॉंव की बातें मज़ाकिया होंगी..........लेकिन फिर जल्दी ही मुझे समझ आने लगा की ये सब मुझ पर हंस रहे हैं इसलिए मैं घबरा कर चुप हो गई|

तब संजना ने गुस्से से हंसने वाले बच्चों की राज़ की बातें मुझे बताई और मुझे फिर से हंसा दिया.............. किसी बच्चे की नाक बहते हुए उसकी कमीज में गिर गई थी..............तो किसी की मम्मी उसे सबके सामने डांटती थी...........किसी को कपड़े पहनने का सहूर नहीं था तो किसी के पढ़ाई में अंडा आता था!!!



आखिर मास्टर जी क्लास में आये और सब ने क्लास में खड़े हो कर प्रार्थना गाई..........मेरे लिए ये प्रार्थना नई थी इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा.......पर अगले दिन से मैं भी बाकि बच्चों के साथ प्रार्थना गाने लगी थी| प्रार्थना के बाद मास्टर जी ने मेरा नाम अपने रजिस्टर में चढ़ाया और पढ़ाना शुरू किया.....................समस्या ये थी की मैं तो आज पहलीबार स्कूल आई थी और ये पढ़ाई मेरे सर के ऊपर से जा रही थी!!!! अब अगर कुछ पूछती तो डांट पड़ती इसलिए मैं बाकी बच्चों की तरह पढ़ने का नाटक करने लगी..........
यह जीवन हमने भी जी हुई है
मतलब पूरी तरह से आपकी जैसी नहीं पर कुछ कुछ इतना ही
जब आधी छुट्टी हुई तो मैंने संगीता से अपनी समस्या साझा की..........मेरी बात सुन संजना ने कहा की वो मेरी पढ़ाई में मदद करेगी|
यहाँ पर संजना की जगह आपने संगीता लिख दिया है
आधी छुट्टी हो गई थी इसलिए सभी बच्चे अपना अपना टिफ़िन बॉक्स खोल कर बैठे खाना खा रहे थे..........मैंने गौर किया तो पाया की ज्यादा बच्चे ब्रेड खा रहे थे.........कुछ घर से लाये फल खा रहे थे..........और कुछ जो पैसे लाये थे वो समोसे.........ब्रेडपकोडे आदि खा रहे थे| अब मेरे टिफ़िन में थी भिंडी की सब्जी और रोटी.......... और मुझे आ रही थी सरम..........एक तो सुबह पहले ही बच्चे मुझ पर हंस रहे थे......इसलिए मुझे डर था की कहीं सभी मेरे भिंडी की सब्जी रोटी खाने पर मज़ाक न उड़ाएं इसलिए मैं अपना टिफ़िन खोलने से घबरा रही थी…………पर संजना हो रही थी उतावली...........उसे अपने टिफ़िन से ज्यादा दूसरों के टिफ़िन में से खाने में मज़ा आता था| उसने मुझसे मेरा टिफ़िन छीन लिया............. भिंडी और रोटी देख वो ऐसे खुश हुई मानो उसे कारूँ का खजाना मिल गया हो!!!!!



एक बार में आधी सब्जी और एक रोटी उसने निकाली और उसका रोल बना कर खाने लगी!!!!!!! मैं आज पहलीबार किसी को यूँ रोटी गोल कर खाते हुए देख रही थी इसलिए मैं हैरान थी..........मुझे यूँ खुद को ताकते देख संजना बोली "फटाफट खा ले वरना मैं सब खा जाउंगी!!!!" ये कहते हुए संजना खिलखिला कर हंसने लगी| मैं संजना का ये बचपना देख खुश भी थी और हैरान थी.........हैरान इसलिए क्योंकि ऐसा मज़ाक मैं अपनी दोनों बहनों के साथ किया करती थी|
हा हा हा
बचपन में मुझे भी रोटी सब्जी ही टिफिन में अच्छी लगती थी और आज भी लगती है
यह ब्रेड वगैरह मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती
क्या संजना मुझे अपनी बहन मानने लगी है???? वो भी इतनी जल्दी????

मन में उठे इस ख्याल को सोच सोच कर मैं मुस्कुरा रही थी...........मेरे लिए ये ऐसा था मानो मुझे इस नई दुनिया में चलने के लिए कोई सहारा मिल गया हो!!!



पहले दिन जब मैं स्कूल से वापस आई तो मैंने सबसे मौसी को आज के दिन के बारे में बताया..........रात होने तक कभी मौसा जी....कभी मामी जी...कभी मामा जी.........सभी को मैं अपने पहले दिन के बारे में ख़ुशी ख़ुशी बता रही थी| चूँकि मैं सबसे छोटी थी इसलिए ये मेरा बालपन देख कर सभी को बहुत मज़ा आ रहा था............और सभी बड़े गौर से मेरी बातें सुन रहे थे| मैं इतनी खुश थी की मैंने किसी को ये बताया ही नहीं की मुझे पहले कच्ची और फिर पाकी में पढ़ना चाहिए था न की सीधा पहली कक्षा में!!!!!!!





धीरे धीरे मेरी और संजना की दोस्ती गहरी होती जा रही थी........... मुझे हिंदी और अंग्रेजी की वर्णमाला आती थी............इसलिए धीरे धीरे संजना ने मुझे शब्द लिखना और बोलना सीखाया............गणित मुझे नहीं आती थी इसलिए संजना मुझे गणित पढ़ाती थी..........मैं मेहनतकश थी इसलिए जल्दी ही मैं पढ़ाई में संजना के बराबर आ गई| पूरी क्लास में हम दोनों सहेलियों का दबदबा बन गया था..........मास्टर जी जब भी कोई सवाल पूछते तो हम दोनों सहेलियों का हाथ एक साथ हवा में उठता|



जब परीक्षाएं आईं तो मैं घबराई हुई थी............क्योंकि ये मेरे जीवन की पहली परीक्षा थी| वहीं संजना जोश से भरी हुई थी..........उसे परीक्षाएं बहुत पसंद थीं| मुझे घबराते देख उसने मुझे हिम्मत दी..........पहली की परीक्षा बहुत आसान थी........मास्टर जी सभी बच्चों को बारी बारी बुलाते और उनसे ब्लैकबोर्ड पर जवाब लिखने को कहते .......और मैं बुद्धू बेकार ही डर रही थी! उन दिनों रिजल्ट आदि जैसा कुछ नहीं होता था...........छोटी क्लास में बच्चों को फ़ैल नहीं किया जाता था..........इसलिए मेरी परीक्षा और परिणाम एक ही दिन मिल गया| मैंने अपने पास होने की खबर घर आ कर सुनाई तो सभी बहुत खुश हुए और उस दिन ख़ुशी को मनाने के लिए मामा जी समोसे ले कर आये!!!
वाव आप पढ़ाई में अच्छी थीं यह इतिहास तो मनु भैया ने कह दिया था
खैर अब आगे बढ़ते हैं
 

Kala Nag

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भाग ६

साल में जब गर्मियों की छुट्टियां होती थीं........या परीक्षाएं खत्म होने के बाद जब छुट्टी होती तो मैं अपने घर जाती| मेरे घर आने पर अम्मा को ख़ुशी होती थी परन्तु वो अपनी ये ख़ुशी हमेशा छुपाती थीं| सोनी मेरे घर आने से बहुत खुश होती थी और आ कर मुझसे लिपट जाती......मैं हमेशा गॉंव आते समय जानकी और सोनी के लिए २ दूध वाली टॉफ़ी लाती थी| दोनों को ये टॉफी बहुत पसंद थी.........मगर जहाँ एक तरफ सोनी मुझे गाल पर पप्पी दे कर इस टॉफी को लाने का शुक्रिया अदा करती थी वहीँ दूसरी तरफ जानकी टॉफी तो फट से खा लेती पर मुझे कुछ न कहती|



छुट्टियों के समय में जब मैं गॉंव आती तो संजना मुझे चिट्ठी लिखती थी.......
हाँ यह मेरे बचपन में भी हुआ करता था
अपने गाँव से दोस्तों को चिट्ठियां लिखा करता था
जब वो चिठ्ठी घर आती और डाकिया दादा चिट्ठी ले कर घर आते और मेरा नाम पुकारते तो मुझे बहुत ख़ुशी होती!!!! पहले पहल तो अम्मा बप्पा को हैरानी होती की भला उनके नाम के बजाए मेरे नाम की चिठ्ठी क्यों आई पर जब मैं उन्हें संजना की लिखी हुई चिठ्ठी पढ़ कर सुनाती............जिसमें वो मेरे अम्मा बप्पा के लिए आदर सहित 'चरण स्पर्श' लिखती थी.............तो मेरे अम्मा बप्पा के चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती| अम्मा बप्पा के अलावा सोनी और जानकी के लिए भी संजना प्यार भेजती थी...........जिसे सोनी तो ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लेती थी मगर जानकी चुप ही रहती| मुझे लगता था की शायद जानकी को संजना से जलन है इसलिए मैंने जानकी से प्यार से घुलने मिलने की कोशिश की..........उसे अम्बाला के बारे में सब बताने लगी........तथा अपने साथ अम्बाला चलने को प्रेरित करने लगी...........पर कुछ फायदा नहीं हुआ!!!!!!!!! "तू हीं जाओ........हमका कौनो जर्रूरत नाहीं कहूं जाए की!!!!!" ये कह जानकी मुँह बिदकते हुए चली जाती|





स्कूल में मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही थी...............मेरी पढ़ने की चाह ने मुझे पढ़ाई में सबसे आगे रखा था| क्लास में सबसे पढ़ाकू मैं ही थी..........और मेरे बाद दूसरा स्थान था संजना का| तीसरी क्लस्स में मैंने पत्र लिखना सीखा...........मास्टर जी ने हमें अलग अलग विषय के पत्र लिखने सिखाये........उन्हीं में से एक था फीस माफ़ी के लिए पत्र| मेरी फीस मौसा जी या मामा जी दिया करते थे..........इसलिए मुझे नहीं पता था की मेरी कितनी फीस है..........मैंने कई बार पुछा मगर मेरे सवाल पर मौसा जी या मामा जी गुसा हो जाते थे...........तब मेरी मौसी जी मुझे समझातीं की मुझे पढ़ाई में ध्यान लगाना चाहिए............न की पैसों के बारे में सोचना चाहिए| मौसी माँ का ही रूप होती है ये मुझे तब पता चला था|



जब से मैं अम्बाला आई थी तभी से मैं घर के छोटे मोटे कामों में मौसी और मामी जी की मदद करती थी..........फिर चाहे घर में झाड़ू पोछा करना हो..........बर्तन धोने हों.........या कपडे धोने हों| मेरी मौसी और मामी जी को कभी मुझे कोई काम कहने की जर्रूरत नहीं पड़ती थी........बल्कि वो तो मुझे काम करने से रोकती थीं और पढ़ाई करने को कहतीं थीं........मगर मैं जिद्द कर के उनकी मदद करती थी| मेरी दोनों बहने...........यानी मेरी ममेरी बहन और मौसेरी बहन घर के कोई काम नहीं करती थीं........इसलिए मौसी जी और मामी जी हमेशा उन्हें मेरा उदहारण दे कर ताना मारती रहतीं थीं|



हाँ तो कहाँ थीं मैं............हाँ.......सॉरी.......पुरानी बातें याद करते हुए मैं यहाँ वहां निकल जाती हूँ……………. तो स्कूल में मैंने प्रधानाचार्या जी को पत्र लिखना सीख लिया था...........इसलिए एक दिन हिम्मत कर के मैंने अपनी फीस माफ़ी के लिए अपनी प्रधानाचार्या जी को पत्र लिख दिया| पत्र पढ़ कर मेरी प्रधानाचार्या जी ने मुझे अपने पास बुलाया............डरी सहमी सी मैं उनके पास पहुंची...........उस समय मैं मन ही मन खुद को कोस रही थी की मैंने क्यों ही पत्र लिखा???? क्या जर्रूरत थी ये फ़ालतू का पंगा लेने की????



लेकिन मैं बेकार ही घबरा रही थी..........क्योंकि प्रधानचर्या जी ने मुझसे बस मेरे माता पिता के बारे में पुछा| मैंने उन्हें सब सच बताया तो मेरी बात सुन प्रधानाचार्या जी ने मेरी पीठ थपथपाई और मेरी पूरे साल की फीस माफ़ कर दी| मैंने ये खबर घर आ कर दी तो मेरी मौसी जी ने मुझे अपने गले लगा लिया और मेरे माथे को चूमते हुए बोलीं "हमार मुन्नी बहुत होसियार है........हम तोहरे से कछु नाहीं कहीं फिर भी तू सब जान जावत हो|" उस दिन मुझे पता चल की मौसा जी के सर पर कितना कर्ज़ा था और वो कितने जतन से मुझे और मेरी मौसेरी बहन को पढ़ा रहे थे|



मौसी ने मेरी फीस माफ़ी की बात को सबसे छुपाया और मौसा जी से ये कहा की क्योंकि मैं पढ़ाई में अव्वल आती हूँ इसलिए स्कूल वालों ने मेरी पूरे साल की फीस माफ़ कर दी है| मौसा जी इस खबर से बहुत खुश हुए और उन्होंने बप्पा को चिठ्ठी लिख कर ये खबर दी............. मुझे नहीं पता की ये खबर पढ़कर पिताजी ने किया प्रतिक्रिया दी थी..............पर चरण काका कहते हैं की ये खबर पढ़ कर पिताजी के चेहरे पर मेरे लिए गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई थी!!!!





खैर.........अम्बाला में पढ़ते हुए मैं अपनी जिम्मेदारियां उठाने लग गई थी| संजना और मेरी दोस्ती बहुत गहरी हो गई थी.............एक दिन वो मुझे अपने घर ले गई..........उसका घर बहुत बड़ा था......मुझे हैरानी हुई ये जानकार की संजना का अपना अलग कमरा था!!!!! उसके पापा सरकारी नौकरी करते थे..........साथ ही उनकी अपनी एक दूकान भी थी| उसके मम्मी पापा ने बड़े प्यार से मुझसे बात की.........मेरे कपड़े बड़े साधारण से थे...........जो बताते थे की मैं एक गरीब घर से हूँ......... लेकिन फिर भी उन्होंने मुझसे कोई भेदभाव नहीं किया| उन्होंने मुझे बिलकुल अपनी बेटी की तरह लाड किया..........और खिला पिला कर घर भेजा| जितने हंसमुख संजना के मम्मी पापा थे...........मेरे अम्मा बप्पा उनके मुक़ाबले थोड़े साधारण थे!!! तब मुझे लगता था की शायद वो लोग बहुत अमीर हैं इसलिए ऐसे हैं...........अब हम सब थे गरीब.......इसलिए शायद...............
ओ यह एक टीस बन कर आपके दिल में बस गई
संजना ने कई बार कहा की मैं उसके साथ अम्बाला घूमने निकलूं मगर मैं जानती थी की बाहर आना जाना मतलब पैसे खर्चा होना और मैं अपने मौसा मौसी या मामा मम्मी से पैसे माँगना नहीं चाहती थी इसलिए मैं पढ़ाई का बहाना बना कर कहीं भी आने जाने से मना कर देती|



जैसे मैं संजना के घर आया जाया करती थी...........वैसे ही संजना मेरे घर आया जाया करती थी.......एक अंतर् हम दोनों में था वो था की मैं डरी सहमी रहती थी और उसके घर में मैं बस एक जगह बैठती थी..........जबकि संजना जब हमारे घर आती तो वो बिना डरे कहीं भी घुस जाती थी!!!! फिर चाहे मैं रसोई में ही चाय क्यों न बना रही हूँ......वो रसोई में घुस आती और मेरे साथ खड़े हो कर गप्पें लगा कर बात करने लगती| एक दिन हमारे स्कूल की छुट्टी थी..........हमें बनाना था साइंस का एक चार्ट (चार्ट पेपर)........लेकिन संजना को करनी थी मस्ती इसलिए वो सीधे मेरे घर आ गई बर्गर बन ले कर!!!!!! मैंने तब बर्गर नहीं खाया था............तो मैं इस गोल गोल ब्रेड को देख कर हैरान थी.........तभी संजना ने चौधरी बनते हुए कहा की वो मुझे बर्गर बनाना सिखाएगी|



फुदकते हुए संजना पहुंची मौसी जी के पास और बोली "आंटी मैं और संगीता यहाँ बर्गर बना सकते हैं?" पता नहीं कैसे मौसी जी मान गईं और मुस्कुराते हुए बोलीं "ठीक है बेटा!!!" उसके बाद शुरू हुआ हम दोनों सहेलियों का रसोई बनाना............दोनों ने मिलकर ४ बर्गर बनाये........चूँकि घर पर मैं, मेरी मौसी जी, मेरी मौसेरी बहन और संजना थे तो हम चारों ने मज़े से बर्गर खाया| मौसी जी ने कभी बर्गर नहीं खाया था.........पर आज उन्होंने संजना के ज़ोर देने पर खा लिया और खूब तारीफ भी की|
थोड़ा कन्फ्यूजन है
मतलब यह बर्गर क्या बला है आपको बचपन से मालुम था.....???
एक दिन गॉंव से खबर आई की मेरा एक छोटा भाई.........यानी अनिल पैदा हो गया है| अपने छोटे भाई को देखने की मेरी लालसा चरम पर थी.............मैंने जब ये खबर संजना को दी तो वो भी बहुत खुश हुई!!!! संजना का कोई भाई नहीं था इसलिए मैंने उससे कहा की मेरी तरह वो भी अनिल को राखी बांधेगी.........ये सुनकर संजना बहुत खुश हुई और अगले दिन मुझे अपने हाथों से बनाई हुई एक राखी ला कर देते हुए बोली की जब मैं घर जाऊं तो अनिल को उसकी तरफ से बाँध दूँ| छुट्टियों में जब मैं घर पहुंची तो मुझे अनिल को पहलीबार देखने का मौका मिला..........झूठ नहीं कहूँगी........लेकिन जैसे ही मैंने अनिल को पहलीबार गोदी में लिया तो मुझे खुद माँ बनने वाला एहसास हुआ!!!!! जैसे एक माँ अपने बच्चों के लिए रक्षात्मक होती है.........वैसे ही मैं अनिल को ले कर एकदम सचेत हो गई थी| जब भी सोनी फुदकती हुई अनिल को छेड़ने आती तो मैं उसे भगा देती..........जानकी और मेरे बीच अब अनिल को प्यार करने के लिए लड़ाई होने लगी थी| संजना ने जो राखी मुझे अनिल को बाँधने को दी थी.........उसे अनिल की छोटी सी कलाई में देख जानकी चिढ जाती और राखी नोचने आ जाती............पर मैं बड़ी बहन होते हुए चप्पल मारने के डर से भगा देती| जब तक मैं गॉंव में रहती तब तक अनिल बस मेरे पास रहता............और अगर जानकी या सोनी उसे लेने आते तो मैं उन्हें बड़ी बहन होने का डर दिखा कर भगा देती!



अनिल था गॉंव में और मैं थी अम्बाला में..........मगर फिर भी राखी पर संजना गॉंव अनिल के लिए राखी भेजती थी|





मैं नौवीं कक्षा में थी.........और हम दोनों सहेलियां अब बड़ी हो गई थीं| मेरा संजना के घर आना जाना बहुत साधारण सा था..........एक दिन मैं उसके घर पहुंची तो उसकी मम्मी घर से निकल रहीं थीं| उन्होंने मुझे बताया की वो थोड़ी देर में आएँगी.......और मैं घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लूँ| मैंने दरवाजा बंद किया और संजना को आवाज़ लगाते हुए ढूंढने लगी............ढूंढते ढूंढते मैं छत पर पहुंची और वहां मैंने देखा की संजना के लड़के साथ टंकी के पीछे बैठी हुई किस कर रही है!!!! वो दोनों सिर्फ किस ही नहीं बल्कि थोड़ा आपत्तिजनक स्थति में भी थे...........ये नज़ारा देख कर मुझे पता नहीं क्या हुआ...........मैं अचानक घबरा गई.........और डरके मारे चिलाते हुए घर भाग आई!!!
ओ तेरी
मुझे तब न तो सेक्स के बारे में कोई जानकारी थी और न ही मैंने कभी किसी को किस करते हुए देखा था...................ऊपर से उस लड़के के हाथ संजना के जिस्म के ऊपर थे.........ये सब मेरे लिए नया और घिनोना था.........एक आदमी एक औरत के शरीर को ऐसे छू सकता है इसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.......यही कारन था की मैं इतना घबराई हुई थी!!!!!!!
ह्म्म्म्म ऐसा भी होता है
आप यकीन ना करोगे
हम कालेज तक आते आते यह दुर्लभ ज्ञान प्राप्त हुआ
स्कुल में ऐसे विषयों में हम अज्ञान ही रहे
अगले दिन जब मैं स्कूल पहुंची तो संजना स्कूल के गेट पर मेरा ही इंतज़ार कर रहे थी.....मुझे देखते ही उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर बाथरूम के पास ले गई और मेरे आगे हाथ जोड़कर रोने लगी!!! "संगीता.......प्लीज ये बात किसी को मत बताना.......वरना मेरी बहुत बदनामी होगी!!!" संजना बिलख बिलख कर रो रही थी और मुझसे पानी सहेली के आंसूं बर्दाश्त नहीं हो रहे थे| मैंने संजना के आंसूं पोछे और उससे बोली की मैं ये बात किसी को नहीं बताउंगी लेकिन उसे आज के बाद ये घिनोना काम कभी नहीं करना है| अगर उसने फिर ऐसी गलती की तो मैं उसे चप्पल से दौड़ा दौड़ा कर मरूंगी!!!!
हम्म यह भी एक दौर था
 

king cobra

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writer abhi sadme se bahar noi aawa ishiliye intzaar karo sab log ummid hai jald wapsi hogi
 

Agasthya

𝕿𝖍𝖊 𝕯𝖊𝖛𝖎𝖑 𝖄𝖔𝖚 𝕯𝖔𝖓’𝖙 𝕶𝖓𝖔𝖜..
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).


"Chance to win cash prize up to Rs 8000"
Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words ke bich honi chahiye (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Cash Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 15th February ko open ho chuka matlab aap apni story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 5th March 2024 tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.



Story se related koi doubt hai to iske liye is thread ka use kare — Chit Chat Thread

Kisi bhi story par apna review post karne ke liye is thread ka use kare — Review Thread

Rules check karne ke liye is thread ko dekho — Rules & Queries Thread

Apni story post karne ke liye is thread ka use kare — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 4000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees + Award + 1000 Likes
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बचपन की ये यादें आज भी जहन में ताज़ा हैं...............मेरे भाईसाहब को अपने किये पर कितना पछतावा था इसका जिक्र मैं आगे चल कर करुँगी........................ रेखा जी................आपके दिल से :thankyou: देना चाहती हूँ :hug: ................आप वो पहली हैं जिसने सबसे पहले कमेंट किया................. बाकी मेरे भाईसाहब kamdev99008 जी ने अभी तक कमेंट नहीं किया :verysad: पता नहीं कौन सी बीरबल की खिचड़ी बना रहे हैं :girlmad:
Sayad hum kataar me sabke ant me khade hai bhabhi ji, aapki story pahle bhi dekhi thi par padhi nahi, ha manu bhai wali kaafi pahle padh chuka hi, abhi bhi 2 update padhne ke baad coments kar raha hu , sorry :D Waise dono updates badhiya the, and aapka prem bana rahe isi dua ke sth aage padhta hu
 
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Raj_sharma

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मेरा नाम संगीता ही है..................एक अनोखा बंधन हमारे लेखक Rockstar_Rocky जी की है जिसमें उन्होंने अपने नज़रिये से सब लिखा................एक समय था जब मैंने अपना नजरिया भी लिखा था जिसे लेखक जी ने बहुत ही प्यारे ढंग से दुबारा लिखा.......................मैं उनका मुक़ाबला तो नहीं कर सकती.................बस कोशिश कर रही हूँ की आप सभी को अपने हिस्से की बातें बता सकूं...........ऐसी बातें जो लेखक जी ने नहीं लिखीं.................वैसे ये कहानी सिर्फ मेरी नहीं होने वाली..............इसमें लेखक जी का भी जिक्र होगा
Ek anokha bandhan me jo pyar aur chemistry dikhi aap dono ki wo wakai dil ko chuu lene wali thi, use padhe to kafi saal ho gaye, per yaad ab bhi taaza hai,
 
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