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Non-Erotic नहीं हूँ मैं बेवफा!

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Congratulations for your story Sangita madam.

मनु भाई की कहानी के कुछ अपडेट पढ़ा था मैने लेकिन पता नही क्या हुआ कि बीच रास्ते मे पढ़ना छूट गया ।
कभी समय निकाल कर जरूर उनकी पुरी कहानी पढ़ूंगा।

कुछ रिव्यू और कमेन्ट देखकर यह समझ आ ही गया था कि उनकी कहानी उनके ही जीवन मे घटित कुछ घटनाओं पर आधारित था। और आप की कहानी भी शायद उन्ही घटनाक्रम से सम्बंधित है।

कहानी मे और रिव्यू के दरम्यान कुछ आरोप प्रत्यारोप का भी दौर चला था। किसी के निष्ठा पर सवाल उठाए गए तो कोई अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए प्रयत्नशील रहा।

एक पुरानी कहावत है - " आंखो से देखा हुआ और कानो से सुना हुआ भी कभी-कभार पूर्ण सत्य नही होता "

एक दरिद्र किसान , जो किसी महाजन या किसी बैंक का कर्जदार है और वो इस कर्ज से लाख कोशिश कर के भी कर्ज मुक्त नही हो पाता , महाजन और बैंक के लिए उसकी छवि बेईमान की ही बनेगी।

व्यापार मे उधार खरीदना और उधार बेचना एक आम चीज है। व्यापार का यह एक पार्ट ही है। एक छोटा व्यापारी जो किसी कारणवश महाजन का उधार चुकाने मे बिल्कुल ही असमर्थ हो जाए , हो सकता है कि उसका बिजनेस चौपट हो गया हो , हो सकता है किसी बिमारी की वजह से उसका धन दौलत जमीन सबकुछ समाप्त हो गया हो , हो सकता है धन का इस्तेमाल अपनी बहन बेटी की शादी-ब्याह मे कर दिया हो या किसी और कारणवश वो सबकुछ खो चुका हो.....लेकिन फिर भी कर्जदार तो महाजन का रहा न ! महाजन को सिर्फ अपने दिए गए उधार और कर्ज से मतलब होता है। उसे व्यापारी के पर्सनल प्राब्लम से क्या सरोकार !
महाजन की नजर मे व्यापारी चोर और बेईमान ही तो कहलाएगा।
जबकि व्यापारी की गलती ही नही थी। वो तकदीर के खेल का शिकार हुआ। कहने का तात्पर्य , व्यापारी और महाजन दोनो अपनी अपनी जगह सही थे।

कोई जरूरी नही है कि हर वो व्यक्ति बेईमान है जो कर्ज चुका ही नही सकता।
हालात और वक्त कब बदल जाए , कोई नही जानता।


इस कहानी की शुरुआत बहुत ही खूबसूरत तरीके से की है आपने संगीता जी।
ग्रामीण परिवेश , बचपन का दौर , बाल सुलभ आचरण , भोजपुरी के खूबसूरत संवाद सबकुछ बहुत ही बेहतरीन लिखा है।
फिलहाल कहानी का समयकाल अस्सी के दशक के शुरुआत का है। पृष्टभूमि शायद उतर प्रदेश या बिहार का होना चाहिए।
मेरा सम्बन्ध बिहार और उत्तर प्रदेश दोनो जगहों से है। उस समय गांव का माहौल अच्छी शिक्षा के लिए कोई खास नही था। खेल - कूद , लड़ाई - झगड़ा , किसी नुक्कड पर लोगो की राजनीतिक चर्चा प्रायः रोज का काम हुआ करता था।
संगत बहुत मुश्किल से अच्छा मिल पाता था।
शायद इसी वजह से प्रताप भैया ने अपनी मर्यादा लांघ दी।
पिता और बड़े भाई पर हाथ उठा देना किसी भी एंगल से मान्य नही है , भले ही गलती पिता भाई की ही क्यों न हो।

बहुत खुबसूरत अपडेट संगीता जी।
आउटस्टैंडिंग।
 
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Awesome update, एक बालिका जिसने अपने जीवन मे पहले पड़ाव में जवान होते भाई को ऐसे गुमराह होते, बाप भाई के बीच अनबन, जो भाई स्नेह से सभी बहनों को रखता था धीरे- धीरे बहनों से घर से दूर होना, इन सब का एक बालिका के अंतमन पर क्या असर हुआ होगा ये हम समझ सकते है, फिर उसी अबोध उम्र में छोटी बहनों की जिम्मेवारी छोटे कंधों पर आ पड़ी,
बड़े भाई का ऐसे बाप पर हाथ उठा कर गलत आचरण के कारण घर छोड़कर चले जाना, बाल मन मे एक डर का जन्म हुआ शायद यही डर अभी तक आपके मन मे समाया हुआ है
बचपन की ये यादें आज भी जहन में ताज़ा हैं...............मेरे भाईसाहब को अपने किये पर कितना पछतावा था इसका जिक्र मैं आगे चल कर करुँगी........................ रेखा जी................आपके दिल से :thankyou: देना चाहती हूँ :hug: ................आप वो पहली हैं जिसने सबसे पहले कमेंट किया................. बाकी मेरे भाईसाहब kamdev99008 जी ने अभी तक कमेंट नहीं किया :verysad: पता नहीं कौन सी बीरबल की खिचड़ी बना रहे हैं :girlmad:
 
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Awesome update
भाई साहब ने गुस्से में अपनी मर्यादा लांघ दी जो उनको हरगिश नही करना चाहिए था आपके मन में भाई साहब के प्रति जहर उनके प्यार की वजह से घुल गया क्योंकि आपको को सबसे ज्यादा प्यार भाई साहब से ही मिला था तो अबोध उम्र में किसी के प्रति गुस्सा किसी से डर हमारे मन में जल्दी ही बैठ जाता है और वही डर आपके मन में बैठा है
भाईसाहब का ये गुस्सा मेरे भीतर भी है..............गुस्से में मैं क्या क्या करती हूँ ये भी आप आगे देखेंगे
 
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Bhut bdiya update bhouji :love2:
Vese likhne me to aap bhi kam nhi ho kuch :D

Bhaishab ka character gajab h 🙂

Vese bhaisahab gussa hi kar lete lekin unko hath na uthana chaiye tha :nope:

images
सिचुएशन के हिसाब से तूने मीम को बिठाने की अच्छी कोशिश की है................... :consoling: ............................मैंने जो भी लिखना सीखा है वो तेरे गुरु जी Rockstar_Rocky जी से सीखा है 🙏
 
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Congratulations for your story Sangita madam.

मनु भाई की कहानी के कुछ अपडेट पढ़ा था मैने लेकिन पता नही क्या हुआ कि बीच रास्ते मे पढ़ना छूट गया ।
कभी समय निकाल कर जरूर उनकी पुरी कहानी पढ़ूंगा।

कुछ रिव्यू और कमेन्ट देखकर यह समझ आ ही गया था कि उनकी कहानी उनके ही जीवन मे घटित कुछ घटनाओं पर आधारित था। और आप की कहानी भी शायद उन्ही घटनाक्रम से सम्बंधित है।

कहानी मे और रिव्यू के दरम्यान कुछ आरोप प्रत्यारोप का भी दौर चला था। किसी के निष्ठा पर सवाल उठाए गए तो कोई अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए प्रयत्नशील रहा।

एक पुरानी कहावत है - " आंखो से देखा हुआ और कानो से सुना हुआ भी कभी-कभार पूर्ण सत्य नही होता "

एक दरिद्र किसान , जो किसी महाजन या किसी बैंक का कर्जदार है और वो इस कर्ज से लाख कोशिश कर के भी कर्ज मुक्त नही हो पाता , महाजन और बैंक के लिए उसकी छवि बेईमान की ही बनेगी।

व्यापार मे उधार खरीदना और उधार बेचना एक आम चीज है। व्यापार का यह एक पार्ट ही है। एक छोटा व्यापारी जो किसी कारणवश महाजन का उधार चुकाने मे बिल्कुल ही असमर्थ हो जाए , हो सकता है कि उसका बिजनेस चौपट हो गया हो , हो सकता है किसी बिमारी की वजह से उसका धन दौलत जमीन सबकुछ समाप्त हो गया हो , हो सकता है धन का इस्तेमाल अपनी बहन बेटी की शादी-ब्याह मे कर दिया हो या किसी और कारणवश वो सबकुछ खो चुका हो.....लेकिन फिर भी कर्जदार तो महाजन का रहा न ! महाजन को सिर्फ अपने दिए गए उधार और कर्ज से मतलब होता है। उसे व्यापारी के पर्सनल प्राब्लम से क्या सरोकार !
महाजन की नजर मे व्यापारी चोर और बेईमान ही तो कहलाएगा।
जबकि व्यापारी की गलती ही नही थी। वो तकदीर के खेल का शिकार हुआ। कहने का तात्पर्य , व्यापारी और महाजन दोनो अपनी अपनी जगह सही थे।

कोई जरूरी नही है कि हर वो व्यक्ति बेईमान है जो कर्ज चुका ही नही सकता।
हालात और वक्त कब बदल जाए , कोई नही जानता।


इस कहानी की शुरुआत बहुत ही खूबसूरत तरीके से की है आपने संगीता जी।
ग्रामीण परिवेश , बचपन का दौर , बाल सुलभ आचरण , भोजपुरी के खूबसूरत संवाद सबकुछ बहुत ही बेहतरीन लिखा है।
फिलहाल कहानी का समयकाल अस्सी के दशक के शुरुआत का है। पृष्टभूमि शायद उतर प्रदेश या बिहार का होना चाहिए।
मेरा सम्बन्ध बिहार और उत्तर प्रदेश दोनो जगहों से है। उस समय गांव का माहौल अच्छी शिक्षा के लिए कोई खास नही था। खेल - कूद , लड़ाई - झगड़ा , किसी नुक्कड पर लोगो की राजनीतिक चर्चा प्रायः रोज का काम हुआ करता था।
संगत बहुत मुश्किल से अच्छा मिल पाता था।
शायद इसी वजह से प्रताप भैया ने अपनी मर्यादा लांघ दी।
पिता और बड़े भाई पर हाथ उठा देना किसी भी एंगल से मान्य नही है , भले ही गलती पिता भाई की ही क्यों न हो।

बहुत खुबसूरत अपडेट संगीता जी।
आउटस्टैंडिंग।
आप ही के कमेंट का इंतज़ार था मुझे................आपने वादा किया था की अगर मैं कहानी लिखूंगी तो आप अवश्य पढ़ेंगे...........आपने अपना वादा पूरा किया उसके लिए :thankyou: आपने अपने कमेंट में जो उदाहरण दे कर बात को समझाया है उसे पढ़कर अच्छा लगा.............इस दुनिया में अभी भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो पूरी बात जाने बिना किसी को जज नहीं करते.................शायद तभी ये दुनिया चल रही है ..............................आपने पुछा था की मेरा गॉंव बिहार या उत्तर प्रदेश में है तो मैं बता दूँ की मैं अयोध्या वासी हूँ..............यानी हमारा गॉंव आयोध्य के नज़दीक है................बोली भासा भोजपुरी और अवधि का मेल है इसलिए हम लोग भोजपुरी अच्छे से समझते हैं परन्तु उसे पूरी तरह नहीं बोलते.............. मेरी इस कहानी में डायलाग कम हैं क्योंकि मुझे डायलाग ठीक से लिखना नहीं आता..........मैं बातें आगे पीछे लिख देती हूँ इसलिए............... खैर.................अब आप आ गए हैं तो आप से और Rekha rani जी से लगातार रिव्यु की उम्मीद रखूंगी................. kamdev99008 भाईसाहब के ऊपर कोई दबाव नहीं...............उन खिलाफ मैं उनकी छोटी भांजी को भड़का रही हूँ :evillaugh:
 
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