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Thriller ✧ Double Game ✧(Completed)

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
Supreme
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दूसरे अध्याय का चौथा भाग

बहुत ही बेहतरीन महोदय,

कभी कभी इंसान खुद को बहुत चालाक समझ लेता है और सामने वाले को मूर्ख और बेवकूफ़, जिसके कारण वो एक दिन बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ जाता है। लेकिन यहां तो विशेष अति आत्मविश्वास का शिकार था। उसे लग रहा था कि उसने जो साजिश रची है वो बेतोड़ है उसका तोड़ किसी के पास नहीं है। उसने रूपा को गांव की साधारण लड़की समझा, उसे ये कभी नहीं लगा कि अपने शयनकक्ष में एक बहुत ही राज़ की बात लिखने से वो कभी भी रूपा द्वारा पकड़ा जा सकता है।।

रूपा के ऊपर क्या बीती विशेष की साजिश के बारे में जानकर ये तो उसके द्वारा की गई प्रतिक्रिया से ही समझ मे आता है। जिस इंसान को रूपा ने अपने मन मंदिर का देवता बनाया था वो वास्तव में उसके काबिल नहीं था। रूपा ने जो किया बिल्कुल ठीक किया। ऐसे इंसान की यही सज़ा है। लेकिन अब देखना ये है कि रूपा ने विशेष की साजिश को कैसे नाकाम करते हुए उसको उसके किए की सज़ा दी।।

Shukriya mahi madam is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
 
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अभी तक रूपा उन यादों को ही अपने मां को बता रही है जिसमें उसे विशेष की असलियत पता चली थी । मुझे लगा इस अपडेट में मालूम हो जायेगा कि किस तरह उसने दोनों कमीनों की राम नाम सत्य कर दी । शायद नेक्स्ट अपडेट में मालूम पड़ जाए !

रूपा ने अपनी नग्न तस्वीरें जानबूझ कर भेजी थी क्योंकि उसे पता चल गया था कि वो अजनबी और कोई नहीं बल्कि उसका पति ही था । खैर जो भी हो किसी भी विवाहिता लड़की के लिए यह बेहद ही मानसिक उत्पीड़न के समान हो सकता था । रूपा की मानसिकता को बखूबी समझा जा सकता है । बहुत ही कठीन घड़ी थी उसके लिए । ऐसे में या तो युवतियां सुसाइड कर लेती है या सामने वाले को जान से मार देती है । या आजीवन घुट घुट कर जीने के लिए मजबूर हो जाती है ।

बहुत बढ़िया अपडेट था शुभम भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
Shukriya sanju bhaiya ji is khubsurat sameeksha ke liye,,,:hug:
 
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Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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Waiting Bhai
 
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दुःख तो लगता ही है शुभम भाई ! इतनी मेहनत से और अपना कीमती समय निकाल कर कुछ लिखें और कोई प्रतिक्रिया ही नहीं हो तो बहुत ही दुख लगता है ।
लेकिन हमें पता है आप की काबिलियत और लेखनी पर । आप के पीछे हम हमेशा खड़े रहेंगे । क्योंकि आप डिजर्व करते हो ।
Shukriya bhaiya ji, khair thodi hi der me is story ke aakhiri updates post kar duga, padh kar bataaiyega ki meri koshish kaha tak kamyaab rahi,,,,:D
 
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Chapter - 02
[ Reality & Punishment ]
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Update - 12
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दूसरे दिन सब कुछ वैसा ही शुरू हुआ जैसा कि हमेशा ही होता था। न विशेष जी ने अपने चेहरे से कुछ ज़ाहिर किया और ना ही मैंने। वो अपने मंसूबों की तरफ बढ़ रहे थे और मैं ये सोच रही थी कि जिस इंसान के दिल में मेरे प्रति ज़रा सा भी दया या प्रेम भाव नहीं है उस इंसान को उसकी करनी की सज़ा कैसे दूं? अपने पति को सज़ा देने का तो मैंने पूरी तरह फ़ैसला कर लिया था। इसके लिए अब मैं किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहती थी लेकिन मेरे सामने सबसे बड़ा सवाल ये था कि मैं उस इंसान को सज़ा दूं तो दूं कैसे? मुझे अपने जीवन का अब कोई मोह नहीं रह गया था। मैं चाहती तो उसी रात सोते में चाक़ू से उसका गाला घोंट कर उसको जान से मार देती लेकिन मेरे मन में ख़याल उभरा था कि ऐसे आदमी को भी उसी तरीके से मारा जाए जिस तरीके से इसने मुझे अपनी ज़िन्दगी से दूर करने का मंसूबा बनाया था।

विशेष जी ऑफिस चले गए थे। मैं जानती थी कि आज शाम जब वो आएंगे तो मुझसे कहेंगे कि उनके एक दोस्त ने हम दोनों को अपने यहाँ डिनर पर बुलाया है। उनके ऐसा कहने पर एक अच्छी पत्नी होने का सबूत देते हुए मुझे उनके साथ जाना ही पड़ेगा। उनका यही तो प्लान था और मैं भी उनके प्लान के अनुसार ही चलना चाहती थी। ख़ैर बड़ी मुश्किल से दिन गुज़रा और शाम हुई। जैसे जैसे वक़्त क़रीब आ रहा था मेरी धड़कनें कभी तेज़ होने लगतीं तो कभी थम सी जाती थीं।

शाम को विशेष जी ऑफिस से आए तो मैंने देखा था कि वो बड़ा खुश लग रहे थे। ज़ाहिर है कि वो ख़ुशी इसी बात की थी कि सब कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा उन्होंने प्लान बनाया था। आते ही उन्होंने पहले तो मुझे ख़ुशी से अपने गले लगाया और फिर मुझसे कहा कि जल्दी से तैयार हो जाओ जान क्योंकि हम दोनों को मेरे एक दोस्त ने अपने यहाँ डिनर पर बुलाया है। उनकी बात सुन कर मैंने स्वाभाविक रूप से कुछ सवाल किए और अपने रंग रूप की बात कर के उनसे ये भी कहा कि मुझे अपने साथ ले जाने से उनका दोस्त क्या सोचेगा उनके बारे में? मेरी इस बात पर उन्होंने कहा कि उन्हें किसी के कुछ भी सोचने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता जान क्योंकि अब तुम मेरी जान हो और मेरे लिए सबसे ख़ास हो। मैं भला कैसे उनके प्लान को ख़राब कर सकती थी इस लिए मैंने ख़ुशी से उन्हें हाँ कह दिया था।

घर से क़रीब साढ़े आठ बजे हम दोनों निकले थे। विशेष जी के कहने पर मैंने शलवार शूट पहन रखा था और उसके साथ मेरे हाथ में मेरा एक छोटा सा पर्श था। सड़क पर आ कर मैंने विशेष जी से पूछा कि हम उनके दोस्त के यहाँ तक क्या किसी टैक्सी या ऑटो में जाएंगे तो उन्होंने कहा कि उनके दोस्त का घर ज़्यादा दूर नहीं है इस लिए हम दोनों पैदल ही चलते हैं। कम से कम इसी बहाने थोड़ा टहलना भी हो जाएगा। उनकी बात सुन कर मुझे थोड़ा अटपटा सा तो लगा पर फिर मुझे ये ख़याल आया कि हो सकता है कि वो किसी ऑटो या टैक्सी से इस लिए न जाना चाहते होंगे ताकि बाद में कोई ऑटो या टैक्सी वाला सबूत या गवाह न बन जाए पुलिस के लिए। मुझे अपना ये ख़याल पूरी तरह ठीक लगा, और इस ख़याल के साथ ही मैंने ये सोचा कि मेरे पति ने काफी कुछ सोच कर प्लान बनाया हुआ था। अगर मैंने उनकी डायरी न पढ़ी होती तो यकीनन मैं इस सबके बारे में कल्पना भी नहीं कर सकती थी।

निशांत सोलंकी जिस जगह रहता था वहां पर न‌ई न‌ई इमारतें बन रहीं थी। सब एक ही तरह की इमारतें थी। निशांत वाली इमारत भी न‌ई ही थी किन्तु इसका काम आधा हो चुका था। तीन फ्लोर में से एक फ्लोर उसका था और बाकी के फ्लोर अभी खाली पड़े थे। इस तरफ का पूरा एरिया मुख्य सड़क से दाईं तरफ मुड़ने के बाद थोड़ा अंदर की तरफ पड़ता था। हालांकि मुख्य सड़क से यहाँ की इमारतें साफ़ दिखाई पड़ती थीं। सड़क के दूसरी तरफ भी वैसी ही इमारतें थी जिनमें कई इमारतों पर लोगों की रिहाइश हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि विशेष जी का दोस्त ऐसी जगह पर क्यों रहता होगा? एक पल के लिए तो मेरे ज़हन में ये ख़याल भी आ गया था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि विशेष जी इस सुनसान एरिया में मुझे जान से मारने ही ले आए हों और उन्होंने अपना पहले वाला प्लान रद्द कर दिया हो? ख़ैर मेरे पूछने पर विशेष जी ने बताया कि निशांत सोलंकी कंपनी के काम के अलावा भी कुछ ऐसे काम करता है जिनमें उसकी अच्छी कमाई होती थी। इस जगह पर रहने की यही वजह है। विशेष जी ने मुझे निशांत की असलियत खुल कर नहीं बताई थी, जबकि मैं उनकी डायरी के द्वारा जान चुकी थी कि निशांत एक औरतबाज़ आदमी था और उसके लिए ऐसी जगह पर रहना बिलकुल ठीक ही था क्योंकि यहाँ रह कर वो अपने तरीके से कुछ भी कर सकता था।

विशेष जी अपनी डायरी में साफ़ लिख चुके थे कि वो निशांत के साथ दोहरा खेल खेल रहे थे। यानि एक तरफ तो वो उससे कह चुके थे कि वो अपनी बीवी को डिनर का बहाना करके उसके फ्लैट पर ले आएंगे और फिर बियर पिला कर उसको नशे में चूर कर देंगे। जब वो नशे में चूर हो जाएगी तो उसके साथ फिर कुछ भी किया जा सकता है। निशांत सोलंकी भी यही समझ रहा था लेकिन विशेष जी का असल मकसद तो कुछ और ही था। क्योंकि वो भी जानते थे कि निशांत जब मुझ कुरूप औरत को देखेगा तो ज़ाहिर है कि वो कितना भी औरतबाज़ हो लेकिन मेरे साथ कुछ भी करने का नहीं सोचेगा। यही सब सोच कर विशेष जी ने अपने असल मकसद को अंजाम देने के लिए कुछ और ही सोचा होगा। डायरी में उन्होंने ये नहीं लिखा था कि वो निशांत की हत्या कैसे करेंगे और कैसे उसकी हत्या में मुझे फंसाएँगे? शायद वो ये सब तब लिखने वाले थे जब वो सब कुछ करने के बाद निशांत की हत्या में मुझे फंसा देते। वो हत्या कैसे करेंगे और कैसे उस हत्या में मुझे फसाएँगे अगर इसके बारे में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा होता तो मुझे भी समझने में आसानी हो जाती कि मुझे इसके आगे क्या करना चाहिए था अपने बचाव के लिए या उन्हें सज़ा देने के लिए। ख़ैर मन में तो हज़ारों तरह के ख़याल उभर रहे थे लेकिन मैं विशेष जी के अगले क़दम का इंतज़ार कर रही थी।

मैं और विशेष जी सीढ़ियों के द्वारा निशांत के फ्लैट की तरफ बढ़ चले। मैं उनके चेहरे को कनखियों से देख लेती थी और उस वक़्त मुझे उनके चेहरे पर सोचो के हल्के भाव और हल्का पसीना उभरा हुआ महसूस हो रहा था। मैं समझ सकती थी कि कहने और करने में बहुत फ़र्क होता है। अब तक उन्होंने जो कुछ किया था वो भले ही उनके लिए आसान रहा था लेकिन किसी की हत्या करना आसान काम नहीं हो सकता था। उन्होंने कोट पहना हुआ था और अपनी कोट की जेब में ही उन्होंने वो चाक़ू छुपा रखा था जिसे वो किचन से उठा कर लाए थे और ये मैंने खुद अपनी आँखों से देखा था। ख़ैर फ्लैट के दरवाज़े पर पहुंच कर विशेष जी रुके और मुझसे बोले कि निशांत को शराब पीने की आदत है इस लिए पहले वो अंदर जाएंगे और अंदर जा कर देखेंगे कि निशांत इस वक़्त किस कंडीशन में है? अगर वो नशे में हुआ तो वो मुझे अंदर नहीं ले जाएंगे क्योंकि उनके अनुसार निशांत नशे में बहुत गन्दी गन्दी बातें करता है और वो नहीं चाहते कि मेरी मौजूदगी में वो कोई गन्दी बातें करे।

विशेष जी की बातें सुन कर पता नहीं क्यों मेरे ज़हन में बिजली की तरह ये ख़याल उभरा कि वो ख़ुद पहले जाने की बात इसी लिए कर रहे हैं तांकि वो अकेले अंदर जाएं और निशांत की उस चाक़ू से हत्या कर दें। उसके बाद वो मुझे अंदर बुलाएँगे और जब मैं अंदर जाऊंगी तो वो चुपके से बाहर निकल कर दरवाज़े को या तो बाहर से बंद कर देंगे या फिर यहाँ से भाग जाएंगे। उसके बाद ज़ाहिर है कि हत्या का इल्ज़ाम मेरे ऊपर ही आएगा। इसके लिए संभव है कि वो पुलिस को इस हत्या की सुचना दे दें। इस ख़याल के आते ही मैं अंदर ही अंदर बुरी तरह कांप गई थी। दिल ज़ोरों से धड़कनें लगा था। फिर एकदम से मेरे ज़हन में ख़याल आया कि क्यों न उनके जाने के बाद मैं भी चुपके से अंदर जाऊं और देखूं कि वो क्या करते हैं?

मैंने विशेष जी की बातें सुन कर हाँ में सिर हिलाया तो वो दरवाज़ा खोल कर अंदर दाखिल हो गए। मैं ये देख कर थोड़ा चौंक गई थी कि दरवाज़ा पहले से ही खुला हुआ था। इसका मतलब उन्होंने निशांत से पहले ही बोल दिया रहा होगा कि वो दरवाज़ा खुला ही रखें। वैसे भी निशांत के अलावा इस इमारत में कोई रहता तो था नहीं। ख़ैर विशेष जी अंदर दाखिल हुए और दरवाज़े को ऐसे ही भिड़ा कर अंदर की तरफ चले गए। उनके ज़हन में दूर दूर तक ये बात नहीं थी कि मैं उनकी असलियत के बारे में सब जानती हूं और उनके पीछे अंदर भी आ सकती हूं। उनके जाते ही मैं भी अंदर दाखिल हो ग‌ई।

अंदर एक मध्यम साइज़ का ड्राइंग रूम था जहां पर कुछ सोफे रखे हुए थे। उसके बगल से एक कमरा था। दूसरी तरफ एक और कमरा था जो कि उस वक़्त बंद था। ड्राइंग रूम में बाएं तरफ थोड़ी दूरी पर एक और छोटा सा हॉल था जहां पर एक आयताकार टेबल थी और उसके चारो तरफ कुर्सियां रखी हुईं थी। बाहर वाले दरवाज़े से अंदर आने के बाद क़रीब चार फिट चौड़ी गैलरी पड़ती थी जिसकी लम्बाई मुश्किल से दस मीटर रही होगी। यानि अगर बाहर से कोई दबे पाँव अंदर आए तो अंदर वाले को न तो दिखेगा और ना ही उसे पता चल सकेगा।

उस गैलरी से चल कर जब मैं अंदर की तरफ दबे पाँव आई तो मेरे कानों में बहुत ही धीमी आवाज़ सुनाई पड़ी जो कि निशांत की थी। वो विशेष जी से कह रहा था कि वो अकेला क्यों आया है, बल्कि भाभी जी को साथ में क्यों नहीं ले आया? उसके सवाल पर विशेष जी ने उसे बताया कि वो मुझे ले कर ही आए हैं और मैं इस वक़्त बाहर ही हूं। मैंने थोड़ा सा उस तरफ झाँक कर देखा तो मेरी नज़र टेबल के पास ही खड़े विशेष जी पर पड़ी। उनका एक हाथ कोट की जेब में था और वो कुर्सी पर बैठे निशांत को ही देख कर बातें कर रहे थे। मेरी तरफ निशांत की पीठ थी जबकि विशेष जी मुझे बगल से दिख रहे थे। मेरा दिल बड़े ज़ोरों से धड़क रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसे वक़्त में मुझे क्या करना चाहिए? मैं अच्छी तरह जानती थी कि विशेष जी अपने उस सीनियर की हत्या करने वाले थे और फिर उसकी हत्या में मुझे फंसा देने वाले थे।

सहसा मेरी नज़र बाएं तरफ पड़ी। उस तरफ एक कमरा था, जबकि दूसरा कमरा उस तरफ था जहां पर वो लोग मौजूद थे। मुझे समझ में तो कुछ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं और क्या न करूं लेकिन मैं यूं ही उस कमरे की तरफ बड़ी सावधानी से खिसक चली थी। कुछ ही पलों में मैं उस कमरे में थी। कमरे में आई तो देखा बड़े से कमरे में एक तरफ बेड बिछा हुआ था और एक तरफ एक आलमारी रखी हुई थी। आलमारी के बगल से एक टेबल था जिसमें कई सारे खंधे थे। कमरे में पूरी तरह प्रकाश फैला हुआ था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उस कमरे में आख़िर मैं आई किस लिए थी, जबकि मैं ये अच्छी तरह जानती थी कि दूसरी तरफ मेरा पति निशांत सोलंकी की हत्या कर के मुझे फंसा देने वाला था।

उस वक़्त पता नहीं मेरे ज़हन में क्या आया था कि मैं टेबल के पास गई और एक एक कर के सभी खंधों को खोल कर देखने लगी। मैं खुद नहीं जानती थी कि मैं उस वक़्त उन खंधों में क्या खोज रही थी, लेकिन उस वक़्त मेरे हड़बड़ाए हुए ज़हन में जो आ रहा था मैं वही करती जा रही थी। इतनी सावधानी ज़रूर बरत रही थी कि कोई आवाज़ न हो क्योंकि आवाज़ होने से मेरे लिए ही ख़तरा हो जाना था। टेबल में दाएं से बाएं और ऊपर से नीचे तीन तीन करके खंधे थे। दाएं तरफ के सभी खंधे खोल कर देखने के बाद जैसे ही मैंने बीच वाली लाइन के ऊपर वाले खंधे को खोला तो मैं एकदम से जाम सी हो गई। मेरी नज़र उस खंधे में रखे पिस्तौल को देख कर ठहर गई थी और मेरी सारी हरकतों को जैसे एक ही पल में ब्रेक सा लग गया था।

पिस्तौल देख कर कुछ देर तक तो मैं भौचक्की सी खड़ी ही रह गई थी, फिर जैसे ज़हन सक्रिय हुआ तो एकदम से मेरे दिमाग़ में ख़याल आया कि इस पिस्तौल से मैं अपने पति को सज़ा दे सकती हूं। ख़याल अच्छा भी था और बेहद ख़तरनाक भी। मेरा दिल ज़ोरों से धड़के जा रहा था लेकिन मेरे अंदर डर और घबराहट जैसी बात नहीं आई थी। ऐसा शायद इस लिए कि अब मुझे न तो अपने जीवन की परवाह थी और ना ही किसी और के। दिलो दिमाग़ में तो बस एक ही हसरत रह गई थी कि उस इंसान को ख़त्म कर दूं जिसने प्यार के नाम पर मेरे जज़्बातों से खेला था और जिसके लिए मैंने इतना कुछ किया था। उसके दिल में मेरे प्रति ज़रा सा भी कहीं कोई एहसास नहीं था। अरे! एहसास को छोड़ो, उसने तो मुझ पर ज़रा सा तरस भी नहीं खाया था।

पिस्तौल को देख कर और ये सब सोच सोच कर मेरे अंदर के जज़्बात एक बार फिर से बुरी तरह मचल उठे थे। मैंने टेबल के उस खंधे से पिस्तौल को हाथ में लिया। ठंडी पिस्तौल हाथ में आते ही मेरे जिस्म का रोयां रोयां एक अजीब से एहसास से कंपकंपा गया। मैंने आँखें बंद कर के दो तीन बार गहरी गहरी साँसें ली और चुपके से कमरे के दरवाज़े की तरफ चल पड़ी।

कमरे के दरवाज़े से झाँक कर मैंने उन दोनों की तरफ देखा तो इस बार चौंक ग‌ई थी मैं, क्योंकि इस बार विशेष जी के हाथ में चाक़ू था और उन्होंने उस चाक़ू वाले हाथ को अपने पीछे किया हुआ था। मैं समझ गई कि अब वो निशांत की हत्या करने का मन बना चुके हैं। इससे पहले कि वो गर्दन घुमा कर इस तरफ देखते मैं जल्दी से निकल कर गैलरी में आ कर छुप ग‌ई। मेरी धड़कनें बुरी तरह धड़कते हुए मेरी कनपटियों पर चोट कर रहीं थी। मैं अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को अभी काबू ही कर रही थी कि तभी किसी के आने की पदचाप मेरे कानों में पड़ी तो मैं थोड़ा और पीछे खिसक कर छुप ग‌ई। कुछ ही पलों में मैंने देखा विशेष जी चाकू वाला हाथ अपनी कोट में डाले उसी कमरे की तरफ बढ़ गए जिस कमरे से अभी मैं निकली थी। मुझे समझ न आया कि वो उस कमरे में क्यों गए थे? अभी मैं ये सोच ही रही थी कि तभी विशेष जी की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी। वो निशांत को आवाज़ दे कर कमरे में आने को कह रहे थे। उनके आवाज़ देने पर निशांत की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। वो बोल रहा था अब क्या है यार? अपनी बीवी को आख़िर कब मेरे पास ले कर आओगे तुम? मेरा सारा नशा उतर जाएगा तब ले कर आओगे क्या? निशांत की इस बात पर विशेष जी ने कहा कि मेरी बीवी तो आपके कमरे में ही है सर। असल में मैंने उसे सब कुछ साफ़ साफ़ बता दिया था। जब मैंने उससे ये कहा कि उस सबके बदले मेरा प्रमोशन हो जाएगा और उसके साथ साथ ज़्यादा सैलरी, नया फ़्लैट और एक कार भी मिल जाएगी आने जाने के लिए तो वो बेहद खुश हो गई थी। मैंने उसे समझाते हुए कहा था कि बस एक ही बार की तो बात है जान उसके बाद तो हमारी ज़िन्दगी ऐशो आराम वाली हो जाएगी। मेरी बात सुन कर वो भी ख़ुशी से इस सबके लिए राज़ी हो गई थी। विशेष जी की ये बातें सुन कर निशांत बोला कि तो तुमने अब तक मुझे धोखे में क्यों रखा हुआ था भाई? निशांत की इस बात पर विशेष जी ने उससे कहा कि वो उसे सर्प्राइज़ देना चाहते थे।

निशांत सोलंकी ख़ुशी से झूम उठा था इस लिए बिना कुछ सोचे समझे वो शराब के नशे में झूमते हुए फ़ौरन ही अपने कमरे की तरफ भागता हुआ आया था। इधर मेरी धड़कनें और भी बुरी तरह से ये सोच कर बढ़ गईं थी कि मेरा पति उसकी हत्या उसी के कमरे में ये सोच कर करना चाहता है ताकि बाद में सबको यही लगे कि मैं उसके कमरे में थी और वहीं पर मैंने उसकी हत्या की थी।

निशांत जैसे ही मेरी आँखों के सामने से गुज़रा तो मैं भी जल्दी से आगे बढ़ चली। हलांकि उस वक़्त मैं चाहती तो वहां से चुप चाप अपने फ़्लैट पर लौट जाती और निशांत की हत्या के बाद अगर उसकी हत्या का इल्ज़ाम मेरे ऊपर आता तो मैं पुलिस को साफ़ साफ़ बता देती कि असली हत्यारा मेरा पति ही है और इसका सबूत उसके बैग में मौजूद उसी की लिखी डायरी है। डायरी मिलने के बाद पुलिस को सब कुछ समझ में आ जाता और मेरे ऊपर कोई इल्ज़ाम नहीं लगता लेकिन मैं जान बूझ कर ऐसा नहीं करना चाहती थी। मैं उस जैसे इंसान का अपने हाथों से खून करना चाहती थी। उस बेगैरत इंसान को अपने हाथों से उसके किए की सज़ा देना चाहती थी। उसके लिए अगर मुझे अदालत में मौत की सज़ा भी सुना दी जाती तो मुझे कोई ग़म नहीं होता।

मैं अभी कमरे के थोड़ा ही पास पहुंची थी कि तभी मेरे कानों में एक अजीब सी चीख़ सुनाई पड़ी। ऐसा लगा जैसे किसी ने किसी का गला घोंट दिया हो। दरवाज़े पर जैसे ही मैं पहुंची तो मैंने देखा कि विशेष जी की पीठ मेरी तरफ थी और वो निशांत के पेट में चाक़ू का वार किए हुए थे। ये देख कर पहले तो मैं एकदम से घबरा ही गई थी लेकिन फिर जल्दी ही खुद को सम्हाला। एक बेक़सूर की हत्या कर के उस हत्या में वो इंसान मुझे फ़साने वाला था। मारे गुस्से के मेरा जिस्म कांपने लगा था। निशांत को चाकू मारने के बाद वो उसी की तरफ देखते हुए पीछे दरवाज़े की तरफ उल्टे क़दमों से खिसकने लगा था। मैंने पिस्तौल वाला हाथ ऊपर उठाया और उस पर गोली चला दी। दो बार तेज़ आवाज़ हुई और दो गोलियां विशेष नाम के उस इंसान की पीठ पर घुस गईं। उसके जिस्म से खून बहने लगा था। मेरा निशाना ठीक तो नहीं था लेकिन फिर भी गोलियां उसकी पीठ के अलग अलग हिस्से में ज़रूर जा लगीं थी।

दर्द से कराहते हुए विशेष पीछे की तरफ पलटा और मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी आँखें फ़ैल ग‌ईं। जैसे उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं उस वक़्त वहां हो सकती हूं और उसे इस तरह गोली मार सकती हूं। वो लड़खड़ाते क़दमों से मेरी तरफ बढ़ने लगा। ये देख कर मैं थोड़ा घबरा गई। हालांकि मेरी हवा तो पहले ही शंट हो चुकी थी और मेरे हाथ पाँव कांपने लगे थे। अभी वो दरवाज़े के पास ही पंहुचा था कि वो बुरी तरह लड़खड़ा कर वहीं पर गिर गया। पेट के बल ज़मीन पर गिरे हुए उसने अपना एक हाथ उठा कर मेरी तरफ देखा। कुछ कहने के लिए उसने कोशिश की लेकिन आवाज़ ठीक से नहीं निकल रही थी।

"तेरे जैसे नीच इंसान को अपने हाथों सज़ा दे कर मेरी रूह को बड़ा सुकून मिला है।" मैं उसकी तरफ देखते हुए सहसा गुर्राते हुए बोल उठी थी____"वास्तव में ख़ुशी क्या होती है ये अब जाना है मैंने। जो प्यार और जो खुशियां तूने मुझे दी थीं वो सब इस ख़ुशी के आगे फीकी पड़ ग‌ईं हैं। जानता है क्यों? क्योंकि जो प्यार और जो खुशियां तू मुझे दे रहा था उनमें दुनिया भर का फ़रेब शामिल था। ख़ैर अब तू मरने के बाद भी ये सोचता रहेगा कि आख़िर तेरे साथ ऐसा कैसे हो गया?"

मेरी बातें सुन कर उस बेगैरत इंसान ने कुछ कहने की कोशिश तो की लेकिन उसके होठों से साफ़ साफ़ कोई शब्द नहीं निकल सके और फिर कुछ ही पलों में उसने वहीं पर दम तोड़ दिया। उसके मर जाने के बाद मैंने कमरे के अंदर टेबल के पास गिरे निशांत सोलंकी की तरफ देखा। खून से लथपथ था वो लेकिन जान अभी भी बाकी थी उसमें। मैं हिम्मत कर के आगे बढ़ी तो उसने अपना हाथ मेरी तरफ उठा कर कुछ कहा लेकिन उसकी आवाज़ मेरे कानों में ठीक से नहीं पड़ी।

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