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Thriller ✧ Double Game ✧(Completed)

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
Supreme
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क्योंकि अपने कहानी समाप्त करने की बात की।
Wo to ek din har kahani ka end hota hai madam, aapko to pata hai ye. Lekin agar aapki ichha nahi hai ki ye kahani samaapt ho to kahiye ise yahi par rok du aur private area me dalwa du,,,,:lol1:
इसके बाद वैभव की कहानी दोबारा से शुरू करिए। नहीं तो अगली बार से दो दो एंग्री का रिएक्शन एक साथ आएगा।😬😬
Pathako ka reaction dekh kar lagta nahi hai ki ab wo kabhi shuru hogi. Yaani wo bhi raj rani aur kayakalp ki tarah private section me hi araam farmaati rahengi. Waise achha hi hai ki isi bahane main is sabse free rahuga. Kabhi man karega to koi short story likh kar post kar diya karuga,,,, :D

Khair is story ko end karne ke baad aapki kahani par waapsi karuga. Busy schedule ke chalte samay nahi mil pa raha kisi cheez ke liye,,,,:verysad:
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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Baaki jo hai use dekhne ke liye aap aur kamdev bhaiya hain to. Ye alag baat hai ki wo like maar ke nikal lenge,,,,:dazed:

Kamdev bhaiya dusro se sawal puchhte hain aur khud dusro ke sawaal ka jawaab dete nahi banta unse,,,:lol:
Har sawal ka jawab usi sawal me chhupa hota hai jab me jawab nahi deta to uske liye apko dimag chalana padta hai aur jab me sawal karta hu tab bhi uska jawab dhoondhne ke liye apko dimag chalana padta hai
.....
I think .... Ab ap samajh gaye honge ki apke intelligent hone mein mera kitna bada hath hai
:approve: :D
Aur mein apko pasand karta hu isiliye like ka button dabakar nikal jata hu B-)
 

Nevil singh

Well-Known Member
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Shukriya Nevil bhai,,,,:hug:
Itne sundar shabdo ka prayog kaise kar lete hain bhai, maine aapke bade wale reviews bhi dekhte hain. Socha karta hu itni khubsurti se review dene wala insaan review na de kar chhota sa comment kyo kar ke chala jata hai?? Khair ye to apni marzi wali baat hai. Ek baar fir se shukriya,,,,:dost:
Shukriya bhai ji
Jab sharur ho halka halka
To kuchchh udgaar patakat ho jaate hai bhai

Per jayadatar bewafa woqt hi saath na deta

Aur bahut saari kathao ka rash peene ki parvriti bhaveren ki bhranti bharaman karta rahta hun ik katha se dushri katha per

Sahitye rash utam rash jab piya to
To phir kishi nashe ki jarurat hi na rahi
 

Nevil singh

Well-Known Member
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Chapter - 01
[ Plan & Murder ]
-----------------------------------

Update - 05
____________________






दो तीन दिन से मैं हर रोज़ निशांत के मोबाइल से रूपा को मैसेजेस कर रहा था और रूपा उन मैसेजेस से बेहद परेशान सी नज़र आ रही थी। शुरू शुरू में उसने सोचा कि शायद किसी ने ग़लती से उसे मैसेज कर दिया होगा लेकिन जब हर रोज़ उसे उसी नंबर से मैसेजेस आने लगे तो वो एकदम से परेशान हो ग‌ई। उसे डर लगने लगा कि कहीं उसके मोबाइल के ऐसे मैसेजेस ग़लती से मेरी नज़र में न आ जाएं। आख़िर साढ़े चार सालों बाद उसकी तपस्या पूरी हुई थी और उसके पति ने उसे पत्नी के रूप में उसे अपनाया था। इतना ही नहीं बल्कि अब उसे इतना प्यार भी कर रहा था। वो अपने पति और उसके प्यार से बेहद खुश रहने लगी थी। उसने साढ़े चार सालों का अपना सारा दुःख दर्द भुला दिया था लेकिन दो तीन दिन से आ रहे ऐसे मैसेजेस ने उसे गंभीर चिंता में डाल दिया था। हालांकि ऐसी सिचुएशन में उसे करना तो ये चाहिए था कि वो इस बात को फ़ौरन ही मुझे बता देती लेकिन उसने मुझे नहीं बताया। इसकी वजह शायद ये थी कि वो नहीं चाहती थी कि उसके और मेरे बीच इस तरह की कोई बात आए जिससे मेरे मन में एक पल के लिए भी ये ख़याल उभर आए कि कहीं मेरी बीवी का किसी से चक्कर तो नहीं है?

अपनी समझ में रूपा जो कर रही थी वो ठीक कर रही थी लेकिन इसके बावजूद उसके मन में ये ख़याल भी उभर आते थे कि किसी दिन इस सबकी वजह से उस पर कोई भारी मुसीबत न आ जाए। वो उन मैसेजेस से बेहद परेशान हो चुकी थी। मेरे सामने वो खुश रहने का दिखावा करती लेकिन अकेले में वो उन मैसेजेस के बारे में ही सोच कर अंदर ही अंदर परेशान रहती। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो इस गंभीर समस्या से कैसे छुटकारा पाए? इधर मैं भी मैसेजेस में उसे ऐसी ऐसी बातें लिख कर भेजता था जैसे वो मेरी माशूका हो। माशूका समझ कर मैं उसे वैसे ही मैसेजेस भेज रहा था जैसे आज कल के ठरकी नव जवान भेजते हैं।

ऐसे ही दो तीन दिन गुज़र गए। मैं जब घर पर रूपा के सामने होता तो ऐसा ज़ाहिर करता जैसे मुझे कुछ पता ही नहीं है। वो ख़ुद भी ऐसा दिखावा कर रही थी जैसे उसे किसी बात की परेशानी नहीं है। मैं तो जानता ही था सब कुछ क्योंकि सब कुछ करने वाला मैं ही था। मैं चाहता था कि रूपा मेरे मैसेजेस का कोई न कोई जवाब ज़रूर दे और मेरी ये चाहत तीसरे दिन पूरी हुई। यानि दो दिनों तक रूपा मेरे ऐसे मैसेजेस को सिर्फ देखती ही रही थी और मैसेजेस पढ़ कर उन्हें डिलीट कर देती थी ताकि ग़लती से भी मेरी नज़र में न आएं।

तीसरे दिन मैं ऑफिस में था और वहीं से निशांत के मोबाइल से उसे मैसेजेस भेज रहा था। अपने मैसेजेस में मैं अब ऐसी बातें लिखने लगा था कि रूपा के लिए उनका जवाब देना मज़बूरी बन जानी थी। ख़ैर तीसरे दिन रूपा ने जवाब में लिखा कि तुम कौन हो और क्यों इस तरह के घटिया मैसेजेस भेजते हो मुझे? रूपा का जवाब के रूप में ऐसा सवाल देख कर मैं मुस्कुराया और उसे मैसेज में बोला कि वो मेरी जानेमन है और मैं उससे प्यार करता हूं और साथ ही मैं चाहता हूं कि वो मेरा प्यार एक्सेप्ट कर के मेरे पास आए, ताकि हम दोनों के जिस्म एक हो जाएं।

रूपा मेरा मैसेज पढ़ कर यकीनन बुरी तरह चौंकी रही होगी लेकिन जवाब में उसने यही लिखा कि अगर उसने मुझे फिर से इसी तरह मैसेजे किए तो इस बार वो पुलिस के पास जा कर मेरी शिक़ायत कर देगी। मुझे रूपा के इस रिप्लाई पर थोड़ा झटका तो ज़रूर लगा था लेकिन मैं जानता था कि वो मुझे सिर्फ खोखली धमकी दे रही थी जबकि सच तो ये है कि ऐसा करने की उसमें हिम्मत ही नहीं हो सकती थी। मैंने भी उसकी हिम्मत को और भी ज़्यादा तोड़ने के इरादे से उसके जवाब में ये लिख कर भेजा कि अगर उसने मेरा कहा नहीं माना तो मैं उसके पति के पास उसकी ऐसी तस्वीर भेज दूंगा जिसमें वो पूरी तरह नंगी है। मेरा ये मैसेज पढ़ कर रूपा का जल्दी ही जवाब आया कि तुम झूठ बोल रहे हो, भला तुम्हारे पास मेरी ऐसी तस्वीर कहां से आ जाएगी। मैंने उसे बताया कि मैं उसके बारे में सब जानता हूं। मैंने उसे बताया कि उसका नाम रूपा है और उसके पति का नाम विशेष त्रिपाठी है।

रूपा मेरा ये मैसेज पढ़ कर यकीनन बुरी तरह चौंकी होगी। मैंने उसे कहा कि अगर उसने इसी वक़्त अपनी एक नंगी फोटो नहीं भेजी तो मैं उसके पति विशेष के पास उसकी वो नंगी फोटो भेज दूंगा। अपनी बात को साबित करने के लिए मैंने उसकी उस फोटो को एडिट कर के भेज दिया जो उस दिन मैंने होटल के कमरे में खींची थी। मैंने उसकी फोटो को एडिट कर दिया था ताकि उसके बैकग्राउंड से उसे पता न चल सके कि उसकी ऐसी फोटो कहां पर खींची गई होगी। ख़ैर अपनी फोटो देख कर यकीनन रूपा के होश उड़ गए रहे होंगे। काफी देर तक उसका कोई जवाब नहीं आया।

अचानक ही जब मेरे अपने मोबाइल पर उसका फ़ोन काल आ गया तो मैं एकदम से बौखला ही गया। मैं समझ गया कि वो इस सबके बाद बहुत बुरी तरह से घबरा गई है और अब शायद उसने सोच लिया था कि वो इस बारे में अपने पति को सब कुछ बता देगी। मैंने सोचा कि उससे बात कर लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि उसके ज़हन में ये ख़याल उभर आए कि कहीं उसका पति ही तो नहीं ये सब कर रहा है? बात भी सही थी क्योंकि वो सोच सकती थी कि इसके पहले उसका पति साढ़े चार सालों तक उसे त्यागे हुए था।

मैंने फ़ोन उठाया और इस तरह प्यार से उससे हेलो किया जैसे मुझे किसी बात का कुछ पता ही न हो। ज़ाहिर है इस वक़्त मैं उससे ये कैसे ज़ाहिर कर सकता था कि मैं ही वो शख़्स हूं जो उसे पिछले तीन दिनों से ऐसे मैसेजेस के द्वारा परेशान कर के रखा हुआ है? मैंने फ़ोन उठाया तो उसने हड़बड़ाए हुए लहजे में कहा कि उसे मुझको एक बहुत ही ज़रूरी बात बतानी है इस लिए मैं जितना जल्दी हो सके घर आ जाऊं। उसकी ये बात सुन कर मैंने उससे कहा कि इस वक़्त मैं नहीं आ सकता जान क्योंकि ऑफिस में मैं बहुत ही ज़रूरी काम में ब्यस्त हूं। शाम को जब मैं ऑफिस से घर आऊंगा तो हम दोनों बाहर ही किसी अच्छे रेस्टुरेंट में डिनर करेंगे। ये कह कर मैंने फ़ोन कट कर दिया। इस बीच मैं निशांत के मोबाइल से उसको ये मैसेज भेज चुका था कि अब तो तुम्हें यकीन हो गया न मेरी जान। चलो अब जल्दी से इसी तरह की अपनी एक फोटो भेजो और अगर नहीं भेजा तो इसी वक़्त मैं उसकी यही फोटो उसके पति के मोबाइल में भेज दूंगा। उसके बाद क्या होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं है।

रूपा बहुत ही बड़े संकट में खुद को घिरा हुआ महसूस कर रही थी, ये मैं अच्छी तरह समझ सकता था। उसकी आँखों के सामने यकीनन अँधेरा सा छा गया रहा होगा। वो अपने बनाने वाले को याद करते हुए उनसे बार बार यही पूछ रही होगी कि मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है कि तू मुझे इस तरह की सज़ा दे रहा है? वो ऊपर वाले से ये भी कहती रही होगी कि बड़ी मुश्किलों से तो मेरी ज़िन्दगी में खुशियों ने आ कर दस्तक दी है तो अब तुझसे मेरी ये खुशियां भी नहीं देखी जा रहीं?

उधर फ़ोन कट होने के कुछ देर बाद ही रूपा का मैसेज आ गया। उसने लिखा था कि मेरे साथ ऐसा जुलम मत करो। आख़िर मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा जो तुम मेरे साथ ऐसा कर रहे हो? रूपा के इस मैसेज पर भला मेरा दिल कैसे पसीज सकता था? मैंने उसे आख़िरी वार्निंग देते हुए लिख कर भेजा कि मैं दो मिनट तक इंतज़ार करुंगा। अगर दो मिनट में उसने अपनी नंगी फोटो नहीं भेजी तो मैं उसकी नंगी तस्वीर उसके पति विशेष को भेज दूंगा।

निशांत के रूप में मैंने रूपा को लास्ट वार्निंग का ऐसा मैसेज भेज तो दिया था लेकिन मैं ये सोच कर अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा भी उठा था कि कहीं ऐसा न हो कि मेरी इस धमकी से डर कर रूपा कोई ऐसा वैसा क़दम न उठा ले जो मेरी सारी मेहनत और मेरे सारे मंसूबों पर पानी फेर दे। यानि वो इस सबसे बुरी तरह घबरा कर आत्म हत्या करने का भी सोच सकती थी जो कि यकीनन अच्छा नहीं हो सकता था।

मैं अपने ऑफिस में साँसें रोके उसके मैसेज के आने का इंतज़ार कर रहा था। एक एक पल मेरे लिए सदियों जैसा भारी लग रहा था और साथ ही इस बात का डर भी मेरी जान लिए जा रहा था कि रूपा कहीं सच में न आत्म हत्या करने का सोच ले। मैं मन ही मन ऊपर वाले को याद कर रहा था कि रूपा ऐसा कुछ न सोचे। एक मिनट में ही मेरी बुरी हालत हो गई थी और आगे और भी बुरी हालत हो जाती अगर दो मिनट के अंदर ही रूपा का मैसेज न आ गया होता।

रूपा ने अपनी नंगी तस्वीर भेज दी थी किन्तु तस्वीर में उसका चेहरा नहीं दिख रहा था बल्कि उसकी गर्दन से नीचे का सारा जिस्म बेपर्दा दिख रहा था। मैं समझ सकता था कि इतना कुछ करने के लिए भी उसने बहुत हिम्मत दिखाई है। अभी मैं उसकी उस भयानक फोटो को देख ही रहा था कि तभी उसका एक मैसेज आया। उसने लिखा था कि मैंने ये फोटो बड़ी हिम्मत कर के तुम्हें भेजी है। मेरा दिल मेरी आत्मा तो चीख चीख कर कह रही थी कि मैं ऐसा न करूं, बल्कि ऐसी बदनामी से बचने के लिए मैं अपने जीवन को ही समाप्त कर लूं लेकिन मैंने ऐसा इस लिए नहीं किया क्योंकि वर्षों बाद मुझे अपने पति का प्यार और उनका साथ मिला है। मैं हर सूरत में बस यही चाहती हूं कि मुझे इसी तरह मेरे पति का प्यार मिलता रहे। मेरी तुमसे यही विनती है कि अब इसके बाद मुझे ना तो कोई मैसेज करना और ना ही मुझसे किसी बात की डिमांड करना वरना मेरे पास फिर एक ही चारा बचेगा कि मैं अपनी जान दे दूं।

रूपा के इस मैसेज ने मुझे अंदर तक हिला दिया था। मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात थी कि उसने आत्म हत्या नहीं कर ली थी। ख़ैर उसकी भावनाओं से तो मुझे वैसे भी कोई लेना देना नहीं था लेकिन उसके मैसेज की आख़िरी बात पढ़ कर मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा कि अगर ये सच में खुद ही आत्म हत्या कर ले तो ये भी शायद बुरा नहीं होगा। मैंने इस बारे में गहराई से सोचा लेकिन फिर एहसास हुआ कि नहीं अगर उसने आत्म हत्या कर ली तो इससे उसकी मौत में कहीं न कहीं मैं भी फंस सकता हूं।

मैंने रूपा को जवाब में लिखा की ठीक है अब से ऐसी डिमांड नहीं करुंगा लेकिन मैं चाहता हूं कि हम दोनों एक दोस्त की तरह कभी कभी एक दूसरे से बात कर लिया करें। रूपा ने इसके लिए साफ़ मना कर दिया। उसके बाद ना तो मैंने उसे कोई मैसेज किया और ना ही उसने कुछ लिख कर भेजा।

शाम को जब मैं घर पहुंचा तो रूपा मुझे देखते ही मुझसे किसी बेल लता की तरह लिपट गई। दिन भर से रोक रखे अपने गुबार को उसने अपने अंदर से निकाल दिया। उसकी हालत देख कर मैंने बुरी तरह हैरान होने का दिखावा किया और अंजान बनते हुए उससे पूछा कि वो रो क्यों रही है? आख़िर बात क्या है? ऐसे न जाने कितने ही सवाल मैंने उससे एक ही सांस में पूछ डाले। जवाब में उसने सिर्फ इतना ही कहा कि उसे मेरी बहुत ही ज़्यादा याद आ रही थी। मैं समझ गया कि मामला ठीक होने के बाद उसने यही फैसला लिया था कि उस मामले के निपट जाने के बाद अब उसका ज़िक्र क्यों अपने पति करे? वो नहीं चाहती थी कि उसका पति इस तरह की किसी भी बातों को उसके बारे में सुने। वो चाहती थी कि उसका पति सिर्फ यही समझे कि उसकी बीवी के मन में उसके अलावा कोई दूसरा ख़्वाब में भी नहीं आ सकता।

रात में डिनर करने के बाद हम दोनों अपने कमरे में आ ग‌ए। आज रूपा के चेहरे में सच मुच की ख़ुशी थी। मैं समझ सकता था कि जिस बात ने उसे इतने दिनों से परेशान कर रखा था उस बात के निपट जाने से अब वो थोड़ा चिंता मुक्त हो गई है। इधर मैंने भी सोचा कि चलो आज इस कुरूप औरत के साथ आख़िरी बार सो लिया जाए क्योंकि इसके बाद तो इससे हमेशा के लिए ही छुटकारा मिल जाएगा।

मैंने जैसा सोचा था बिल्कुल वैसा ही हुआ था। मेरा जो प्लान था उसके हिसाब से मेरा काम हो चुका था और अब प्लान के आख़िरी पड़ाव पर काम करने के लिए मैंने आगे बढ़ने का सोचा। शाम को ऑफिस से चलते समय मैं निशांत से मिला था और उसको बोला था कि उसके काम के लिए मैंने एक दूसरा शानदार तरीका सोचा है। निशांत मेरी बात सुन कर बुरी तरह चौंक पड़ा था।

"अब ये दूसरा तरीका क्यों भाई?" उसने हैरानी से पूछा था____"पहले वाले तरीके का क्या हुआ?"
"असल में बात ये है सर कि उस समय मेरे दिमाग़ में उसके लिए फिल्मों जैसा ही ख़याल आया था।" मैंने गंभीरता दिखाते हुए कहा____"और उस वक़्त मुझे वही तरीका जंचा था। उसके बाद मैं उस तरीके पर काम भी करने लगा था लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि अपनी ही बीवी को इस तरह ब्लैकमेल करना सही नहीं है।"

"हां बात तो तुम्हारी ठीक है विशेष।" निशांत ने सिर हिलाते हुए कहा था____"और सच कहूं तो मैं खुद भी तुम्हारे ऐसे तरीके से उस दिन हैरान हुआ था। ख़ैर तो अब नया तरीका कौन सा है तुम्हारा? वैसे कहीं ऐसा तो नहीं है कि तुम मुझे गोली दे रहे हो? देखो, अगर ऐसा है तो तुम सोच भी नहीं सकते कि इसके लिए तुम्हें कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।"

"अरे! नहीं नहीं सर।" मैंने इस तरह कहा था जैसे मैं उससे डर गया होऊं____"ऐसी कोई बात नहीं है। मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता।"
"तो साफ़ साफ़ बताओ कि क्या सोचा है इस बारे में तुमने?" निशांत के चेहरे पर नाराज़गी थी।

निशांत के पूछने पर मैंने उसे बताया कि मेरा दूसरा तरीका क्या है। यानि मैं अपनी बीवी से कहूंगा कि मेरे एक दोस्त ने कल हम दोनों को लेट नाईट डिनर पर बुलाया है। मेरी बीवी क्योंकि मेरी कोई बात टालने का सोच ही नहीं सकती इस लिए कल वो मेरे साथ ज़रूर उसके यहाँ लेट नाईट डिनर पर आएगी। उसके बाद मैं उसे डिनर के दौरान बियर वग़ैरा पीने को कहूंगा। पहले तो वो ना नुकुर करेगी लेकिन जब मैं उसे ख़ुशी ख़ुशी प्यार से पीने को कहूंगा तो वो इंकार नहीं कर पाएगी। थोड़ा थोड़ा कर के हम उसे इतनी तो बियर पिला ही देंगे कि उसे नशा चढ़ जाए। बस उसके बाद नशे में जब उसे किसी बात का होश नहीं रहेगा तो फिर उसके साथ कुछ भी किया जा सकता है।

निशांत मेरी ये बातें सुन कर मुझे इस तरह देखने लगा था जैसे मैंने कोई ऐसी बात कह दी हो जिसकी उसने कभी कल्पना भी न की थी। मैंने निशांत को विश्वास दिलाया कि कल रात उसकी मुराद ज़रूर पूरी हो जाएगी। निशांत मेरी बात सुन कर खुशी से फूला नहीं समा रहा था। उसने तो आज रात ही डिनर वाला प्रोग्राम बना लेने पर ज़ोर दिया था लेकिन मैंने उसे कहा कि मैं अपनी बीवी को कल की रात ही उसके फ्लैट पर ले कर आऊंगा। मेरी बात सुन कर उसने कहा था कि चलो कल रात को ही सही।

निशांत के बारे में मैं जानता था कि वो हमेशा की तरह कल रात भी अपने फ्लैट में उस वक़्त शराब के नशे में ज़रूर होगा क्योंकि फ्लैट पर आने के बाद वो बिना पिए नहीं रहता था और क्योंकि उसकी समझ में मेरी बीवी उस रात उसे भोगने के लिए मिलने वाली है इस लिए वो इस ख़ुशी में कुछ ज़्यादा ही नशे में होगा।


✧✧✧
Nice update bhai
 
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Wo to ek din har kahani ka end hota hai madam, aapko to pata hai ye. Lekin agar aapki ichha nahi hai ki ye kahani samaapt ho to kahiye ise yahi par rok du aur private area me dalwa du,,,,:lol1:

Pathako ka reaction dekh kar lagta nahi hai ki ab wo kabhi shuru hogi. Yaani wo bhi raj rani aur kayakalp ki tarah private section me hi araam farmaati rahengi. Waise achha hi hai ki isi bahane main is sabse free rahuga. Kabhi man karega to koi short story likh kar post kar diya karuga,,,, :D

Khair is story ko end karne ke baad aapki kahani par waapsi karuga. Busy schedule ke chalte samay nahi mil pa raha kisi cheez ke liye,,,,:verysad:
दुःख तो लगता ही है शुभम भाई ! इतनी मेहनत से और अपना कीमती समय निकाल कर कुछ लिखें और कोई प्रतिक्रिया ही नहीं हो तो बहुत ही दुख लगता है ।
लेकिन हमें पता है आप की काबिलियत और लेखनी पर । आप के पीछे हम हमेशा खड़े रहेंगे । क्योंकि आप डिजर्व करते हो ।
 

Nevil singh

Well-Known Member
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173
Chapter - 01
[ Plan & Murder ]
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Update - 06
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मैंने बड़ी सफाई से निशांत सोलंकी को शीशे में उतार लिया था। मैंने उसे ज़रा भी इस बात की भनक नहीं लगने दी थी कि असल में मैं करना क्या चाहता था। उसका मोबाइल अभी भी मेरे पास ही था। शाम को मेरी बातें सुनने के बाद वो इतना खुश हो गया था कि उसे अपना मोबाइल वापस मुझसे मांगने का ख़याल ही नहीं आया था और यही तो मैं चाहता था कि उसका मोबाइल मेरे पास ही रहे क्योंकि आने वाले वक़्त में उसका ये मोबाइल और उसके मोबाइल की लोकेशन रूपा को उसके हत्या के केस में फंसाने के लिए अहम भूमिका अदा करती।

मैं डबल प्लान पर काम कर रहा था। एक तो अपने असली प्लान के लिए निशांत को जाल में फांस कर उसे रूपा का प्रेमी साबित करना चाहता था और दूसरे प्लान में निशांत की समझ में मैं उसके लिए अपनी बीवी को तैयार कर रहा था। वो सोच भी नहीं सकता था कि इतने दिनों तक उसका मोबाइल अपने पास रख कर मैं असल में क्या गुल खिला रहा था। वैसे, अगर मेरी बीवी रूपा सुन्दर होती तो मेरे लिए खुद उसे ब्लैकमेल करने की ज़रूरत ही नहीं होती क्योंकि तब मेरा काम सिर्फ इतना ही होता कि मैं उस दिन निशांत को अपने पर्श में किसी और की नहीं बल्कि अपनी बीवी की ही तस्वीर दिखा देता। उसके बाद निशांत वही करने का सोचता जो कि वो बाकी जूनियर्स की बीवियों के साथ कर चुका था लेकिन मेरे केस में ऐसा नहीं हो सकता था। इस लिए मुझे इतना कुछ करना पड़ा।

सबसे पहले मैंने अपनी बीवी और निशांत के सम्बन्धों को साबित करने के लिए निशांत से उसका मोबाइल ले कर वो खेल रचा और जब मेरा वो खेल फिट हो गया तो मैंने निशांत से बहाना बना कर ये कह दिया कि मुझे अब एहसास हो रहा है कि मुझे अपनी ही बीवी को इस तरह ब्लैकमेल नहीं करना चाहिए बल्कि उसको उसके पास लाने के लिए एक आसान सा तरीका भी है जो अब मेरे ज़हन में आया है। निशांत को भले ही मेरे इन क्रिया कलापों में किसी खेल की गंध न महसूस हुई हो या वो इसमें ऐसा वैसा कुछ भी न सोच सका हो लेकिन मेरी आत्मा और ऊपर वाला तो सब जानता ही है ना कि मैंने ऐसा क्यों किया था?

अपनी कुरूप बीवी से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का मेरे ज़हन में बस यही एक तरीका आया था और फिर मैंने देर न करते हुए इस खेल को रचना शुरू कर दिया था। मेरा मंसूबा यही था कि निशांत जैसे बलि के बकरे की इस तरह से हत्या की जाए कि उसकी हत्या का इल्ज़ाम मेरी बीवी रूपा पर आ जाए। वो भी कुछ इस तरह से कि उसे अदालत में फ़ांसी की या फिर उम्र क़ैद की सज़ा हो जाए।

असल में तो निशांत की हत्या मैं ही करुंगा लेकिन इस तरीके से करुंगा कि पुलिस या कानून निशांत के हत्यारे के रूप में रूपा को ही गिरफ़्तार करे। पुलिस के हाथ रूपा के खिलाफ़ ऐसे ऐसे सबूत लग जाएं कि अदालत में बड़ी आसानी से ये साबित हो जाए कि रूपा ने निशांत की हत्या इस लिए की क्योंकि निशांत से उसके नाजायज़ संबंध तो थे ही लेकिन वो उसे दूसरे मर्दों के साथ संबंध बनाने के लिए ब्लैकमेल भी कर रहा था।

निशांत के फ्लैट में ही निशांत की हत्या को अंजाम देना था और वहीं पर रूपा के खिलाफ़ निशांत की हत्या के सबूत भी प्राप्त करवाने थे। ऐसा तभी संभव था जब रूपा निशांत के फ्लैट पर जाए और जिस चाकू से निशांत की हत्या हो उस चाकू पर रूपा के फिंगर प्रिंट्स पाए जाएं। अब सवाल ये था कि रूपा निशांत के फ्लैट पर जाती कैसे और वहां पर उसके खिलाफ़ ऐसे सबूत पाए कैसे जाते? इसके लिए भी मैंने एक तरीका सोच रखा था।

मैंने निशांत को जो दूसरा तरीका बताया था उसमें भी डबल गेम वाला ही चक्कर था। मैंने निशांत को ये बताया था कि मैं अपनी बीवी को उसके पास ये कह कर लाऊंगा कि मेरे एक दोस्त ने हम दोनों को अपने घर डिनर पर बुलाया है। उसके बाद जब रूपा मेरे साथ निशांत के फ्लैट पर डिनर के लिए आएगी तो डिनर के दौरान निशांत हम दोनों को ही बियर पीने को कहेगा। मैं भी रूपा से बड़े प्यार से कहूंगा कि शहर में थोड़ा बहुत इसका भी आनंद लेना चाहिए। रूपा मेरे कहने पर थोड़ी ना नुकुर के बाद बियर पिएगी ही। मैं उसे थोड़ा और पीने को कहूंगा और वो इंकार नहीं कर सकेगी। इस सबसे होगा ये कि उस पर बियर का नशा चढ़ जाएगा। उसके बाद निशांत उसके साथ जो चाहे कर लेगा।

मैंने निशांत को यही तरीका समझाया था। निशांत मेरे इस तरीके से खुश हो गया था। वैसे भी उसे तो मेरी बीवी को भोगने से ही मतलब होना था। वो इसी बात से बेहद खुश होगा कि उसके एक और जूनियर की बीवी उसको भोगने के लिए मिल गई है। अब भला उसे क्या पता कि ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं था क्योंकि असल में तो ये मेरे प्लान का एक हिस्सा था ताकि निशांत को यही लगे कि मैं प्रमोशन के लिए ही ये सब कर रहा हूं। जब की सच्चाई ये है कि मैं तो रूपा को उसके फ्लैट पर किसी और ही मकसद से ले जाने वाला था और वो मकसद यही था कि मैं उसकी हत्या कर के उस हत्या का इल्ज़ाम अपनी बीवी के सिर रख दूं।

रूपा जैसी कुरूप औरत से हमेशा के लिए मेरा पीछा छूट जाएगा। वो कुरूप औरत मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पनौती बन गई थी जिसकी वजह से मेरी ज़िन्दगी का हर पल मेरे लिए अज़ाबों से भरा हुआ लगता था।

कल के दिन की रात मेरे लिए बेहद ही ख़ास और बेहद ही चुनौती भरी होनी है और इसका मुझे अच्छी तरह एहसास भी है। अगली रात दो लोगों की ज़िन्दिगियों का फ़ैसला होना है। एक की ज़िन्दगी की आख़िरी रात होनी है और एक की ज़िन्दगी का मनहूस साया हमेशा के लिए मेरी ज़िन्दगी से हट जाएगा।

रात में रूपा के सो जाने के बाद मैं चुपके से उठा और अपने सूटकेस से अपनी पर्सनल डायरी निकाली। मेरे इस सूटकेस की चाभी हमेशा मेरे पास मेरे जनेऊ में ही रहती थी। ब्राह्मण हूं इस लिए जनेऊ धारण करता हूं और उसी जनेऊ में सूटकेस की चाभी बाँध के रखता हूं। ख़ैर डायरी निकाल कर मैंने उसमें आज की अपनी दिनचर्या के बारे में लिखा और उस बारे में भी लिखा जो मैंने कल के लिए सोचा था। ये डायरी मेरी ज़िन्दगी की खुली किताब की तरह थी जिसमें मेरी ज़िन्दगी का हर राज़ लिखा हुआ था। ये डायरी हमेशा मेरे साथ मेरे मरते दम तक रहेगी। रूपा को इस डायरी के बारे में कुछ पता नहीं है क्योंकि मैं हमेशा उसके सो जाने के बाद ही रात में अपने अफ़साने लिखता था।

डायरी को वापस सूटकेस में रख कर मैंने उसे अच्छी तरह लॉक कर दिया और फिर बेड पर आ कर रूपा के बगल से लेट गया। अपनी पलकों में कल के ख़्वाब सजाए मैं गहरी नींद में सो गया था।


✧✧✧

अदालत में डिफेंस लॉयर के चुप होते ही गहरा सन्नाटा छा गया था। उसके हाथ में एक डायरी थी जिसे वो न जाने कितनी ही देर से ऊँची आवाज़ में पढ़ कर जज साहब के साथ साथ सभी को सुना रहा था। अदालत कक्ष में बैठा हर शख़्स डिफेंस लॉयर के द्वारा डायरी में लिखी विशेष त्रिपाठी की इस कहानी को सुन कर आश्चर्य चकित था। इधर मुजरिम के कटघरे में रूपा खड़ी थी जो खुद भी अपने पति की इस राम कहानी को सुन कर चकित थी। दर्शक दीर्घा में कुछ ऐसे लोग भी बैठे हुए थे जो उसके पति विशेष त्रिपाठी के साथ कंपनी में काम करते थे। दूसरी तरफ की बेंच में रूपा के पिता चक्रधर पाण्डेय और उसका भाई अभिलाष पाण्डेय बैठा हुआ था।

बात आज से तीन दिन पहले की है। उस वक़्त सुबह के ग्यारह बज रहे थे जब अचानक ही घर के बाहर वाले दरवाज़े को ज़ोर ज़ोर से खटखटाया गया था। रूपा को लगा था कि शायद उसका पति होगा इस लिए उसने भागते हुए जा कर दरवाज़ा खोला था और दरवाज़े के बाहर जब उसने चार पुलिस वालों के साथ दो महिला पुलिस को भी देखा तो वो एकदम से हैरान रह गई थी। उसे समझ में नहीं आया था कि उसके दरवाज़े के बाहर पुलिस वाले किस लिए मौजूद हैं? ख़ैर अभी वो ये सोच ही रही थी कि तभी उन पुलिस वालों में से एक पुलिस वाले ने रूपा से जो कहा उसे सुन कर रूपा के पैरों के नीचे से ज़मीन ही ग़ायब हो गई थी।

"मिसेस रूपा, आपको आपके पति और निशांत सोलंकी की हत्या के जुर्म में गिरफ़्तार किया जाता है।" पुलिस के इंस्पेक्टर ने जब सपाट लहजे में ये कहा था तो रूपा को ऐसा लगा था जैसे उसके पैरों के नीचे से धरती ही सरक गई हो। उससे कुछ बोलते न बन पड़ा था जबकि इंस्पेक्टर के इशारे पर एक महिला पुलिस आगे बढ़ी थी और उसने रूपा के हाथों में हथकड़ी लगा दी थी।

उसके बाद उसे पुलिस जीप में बैठा कर पुलिस थाने ले जाया गया था। रूपा उन सभी पुलिस वालों से बार बार कह रही थी कि उसे इस तरह क्यों पकड़ कर ले जा रहे हैं? उसने किसी की हत्या नहीं की है बल्कि वो तो ख़ुद ही सुबह से इस बात से चिंतित और परेशान थी कि उसका पति जाने कहां चला गया है।

पुलिस थाने में पुलिस ने जब रूपा को साफ़ शब्दों में बताया कि उसने क्या किया है तब रूपा ये जान कर फूट फूट कर रोने लगी थी कि जिस पति के लिए वो सुबह से परेशान थी उसकी हत्या हो गई है और इतना ही नहीं उसकी हत्या के जुर्म में पुलिस ने उसको ही गिरफ़्तार कर लिया है। थाने में महिला पुलिस ने जब उसके साथ शख़्ती दिखाते हुए ये पूछा कि उसने अपने पति की हत्या क्यों की है तो उसने रो रो के उस महिला पुलिस से कहा था कि उसने किसी की हत्या नहीं की है बल्कि उसे तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं था।

महिला पुलिस को रूपा ने बताया कि सुबह जब वो सो कर उठी थी तो उसका पति कमरे में नहीं था। पहले उसने यही सोचा था कि शायद वो सुबह जल्दी उठ गया होगा और अब बाथरूम में फ्रेश हो रहा होगा लेकिन जब काफी देर हो जाने के बाद भी उसका पति बाथरूम से बाहर न निकला था तो उसने उसे आवाज़ दी थी लेकिन उसकी आवाज़ पर भी जब बाथरूम से कोई आवाज़ न आई थी तो उसने बाथरूम में जा कर देखा। वो ये देख कर हैरान हुई थी कि बाथरूम में उसका पति है ही नहीं। उसके बाद उसने अपने पति को फ्लैट में हर जगह ढूंढ़ा लेकिन वो उसे कहीं न मिला था। फिर उसने अपने पति को फ़ोन लगाया तो पता चला कि उसके पति का फ़ोन कमरे में ही रखा हुआ है। इस सबसे वो बेहद चिंतित हो उठी थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसका पति इस तरह से कहां जा सकता है?

रूपा ने महिला पुलिस को बताया कि जब सुबह के दस बज जाने पर भी उसका पति वापस घर नहीं आया तो उसके मन में तरह तरह की आशंकाए जन्म लेने लगीं थी। वो इस शहर में किसी को जानती भी नहीं थी जिससे वो अपने पति के बारे में पता कर सके। हर गुज़रता हुआ पल उसकी हालत को और भी ज़्यादा ख़राब करता जा रहा था। उसके मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे जिससे अब उसे रोना आने लगा था। फिर उसे एकदम से अपने माता पिता का ख़याल आया तो उसने अपने बाबू जी को फ़ोन लगा कर उन्हें सब कुछ बताया। उसकी बातें सुन कर उसके बाबू जी ने उसे दिलासा दिया था कि वो चिंता न करे उसका पति किसी ज़रूरी काम से कहीं गया होगा। अपने बाबू जी के दिलासा देने पर उसने किसी तरह खुद को शांत किया था और अपने पति के आने का फिर से इंतज़ार करने लगी थी। उसके कुछ समय बाद अचानक से किसी ने जब दरवाज़ा खटखटाया तो उसने दरवाज़ा खोला था। दरवाज़े के बाहर पुलिस को देख कर वो हैरान रह ग‌‌ई थी।

रूपा की बातें सुन कर महिला पुलिस ने उसकी सारी बातें पुलिस के इंस्पेक्टर को बताई थी। उधर विशेष के साथ निशांत सोलंकी की भी हत्या हुई थी। इस लिए पुलिस ने जल्द ही उससे सम्बंधित लोगों से सम्बन्ध स्थापित करके हत्या की जांच पड़ताल शुरू कर दी थी। हालांकि रूपा को भी पुलिस ने सिर्फ इस आधार पर गिरफ़्तार किया था क्योंकि घटना स्थल पर जो मोबाइल फ़ोन मिले थे उनमें से एक मोबाइल पर रूपा की गन्दी तस्वीरें मिली थीं। पुलिस ने जब आगे की जांच पड़ताल की तो पता चला कि मरने वालों में से एक रूपा का पति था और दूसरा निशांत सोलंकी। दोनों में एक चीज़ कॉमन थी कि दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे। पुलिस ने जब कंपनी में उनके बारे में पता किया तो कंपनी के कुछ लोगों ने पुलिस को ऐसी बातें बताई जिससे पुलिस को हत्या करने का मामला समझ में आया था। उसके बाद पुलिस फ़ौरन ही विशेष के घर पहुंची और रूपा को गिरफ़्तार कर लिया।

थाने में रूपा से बड़ी लम्बी पूछतांछ चली थी लेकिन रूपा ने पुलिस से बार बार यही कहा था कि उसे इस सबके बारे में कुछ भी पता नहीं है। उसके बाद जब पुलिस ने रूपा से ये कहा कि निशांत सोलंकी से उसका क्या सम्बन्ध था तो उसने कहा कि उसे उसके बारे में कुछ नहीं पता लेकिन हाँ कुछ दिन पहले कोई अंजान आदमी उसे गंदे गंदे मैसेजेस करते हुए परेशान ज़रूर कर रहा था और वो उसे धमकी भी दे रहा था कि अगर उसने उसका कहा नहीं माना तो वो उसकी गन्दी तस्वीरें उसके पति को भेज देगा।

उधर कम्पनी के कुछ लोगों ने पुलिस को बताया था कि निशांत और विशेष का कुछ समय से काफी मेल जोल था। उन्होंने निशांत के बारे में भी बताया कि वो कैसा ब्यक्ति था। पुलिस को ये तो समझ आया कि मामला ब्लैकमेलिंग का है लेकिन उसे ये समझ में नहीं आया था कि अगर निशांत ब्लैकमेलर था तो विशेष को इसके बारे में कैसे पता चला और वो उसके फ्लैट में उसके साथ ही कैसे मरा हुआ मिला? पुलिस को रूपा पर शक तो था लेकिन वो ये भी सोच रही थी कि एक औरत दो दो आदमियों को कैसे एक साथ मार सकती है और वो भी दो अलग अलग हथियारों से?

निशांत के घर वालों को पुलिस ने सूचित कर दिया था और इधर रूपा के घर वालों को भी पुलिस ने सूचित कर दिया था। दोनों पक्षों के लोग आ चुके थे और मामला अदालत तक भी पहुंच चुका था। शुरुआत में तो पब्लिक प्रासीक्यूटर ने बड़ी लम्बी लम्बी दलीलें दी थी और रूपा को हत्यारिन साबित करने की भी पूरी कोशिश की थी लेकिन हर बार बात यहाँ पर अटक जाती थी कि कोई भी हत्यारा दो आदमियों को एक ही समय पर दो अलग अलग हथियारों से क्यों मारेगा? डिफेंस लॉयर के पास भी कई सारे ऐसे सवाल थे जिनके जवाब पब्लिक प्रासीक्यूटर के पास नहीं थे।

इधर पुलिस को इस केस से सम्बंधित एक ऐसा सुराग़ मिला जिसने अदालत में इस केस को पूरी तरह साफ़ कर दिया था और वो सुराग़ था विशेष की डायरी। तलाशी में वो डायरी पुलिस को विशेष के सूटकेस से मिली थी। डायरी मिलने के बाद और उसे पढ़ने के बाद सारा मामला तो समझ में आ गया लेकिन हर आदमी ये जान कर चकित भी रह गया था कि ये सब खुद मरने वाले का सोचा समझा एक प्लान था। असल मामला तो ये था कि रूपा का पति खुद ही निशांत की हत्या के जुर्म में अपनी बीवी को फंसाना चाहता था और अपनी बीवी से हमेशा के लिए छुटकारा पा लेना चाहता था लेकिन दुर्भाग्य से उसका ये मंसूबा पूरा नहीं हुआ।

"योर ऑनर!" उधर छा गए गहन सन्नाटे को भेदते हुए डिफेंस लॉयर ने जज की तरफ देखते हुए ऊँची आवाज़ में कहा____"मेरी मुवक्किल मिसेस रूपा त्रिपाठी के पति विशेष त्रिपाठी की इस डायरी ने इस केस को पूरी तरह से साफ़ कर दिया है। इनके पति ने इस डायरी में अपनी करतूतों का सारा काला चिट्ठा लिखा हुआ था। शुक्र हैं कि तलाशी में ये पुलिस के हाथ लगी जिससे हमें असलियत का पता चल गया। इस डायरी में लिखा हुआ एक एक शब्द खुद इस बात की गवाही देता है कि असल में माजरा क्या था। मिसेस रूपा जी के पति ने अपनी पत्नी को कभी दिल से अपनाया ही नहीं था। वो मज़बूरी में अपनी पत्नी को अपने साथ शहर तो ले आए थे लेकिन हर पल वो अंदर ही अंदर इस बात से कुढ़ते रहे कि ऊपर वाले ने ऐसी बदसूरत औरत को उनकी पत्नी क्यों बनाया? जब वो किसी भी हाल में ये सब सहन नहीं कर सके तो उन्होंने सोच लिया कि वो अपनी ज़िन्दगी से ऐसी औरत को दूर कर देंगे जिसे वो देखना भी पसंद नहीं करते। इसके लिए उन्होंने एक ऐसा प्लान बनाया जिसके बारे में दूसरा कोई सोच भी नहीं सकता था।"

"माना कि इनके पति ने इन्हें अपनी ज़िन्दगी से दूर करने का ऐसा प्लान बनाया था योर ऑनर।" पब्लिक प्रासीक्यूटर ने डिफेंस लॉयर की बात को बीच में ही काटते हुए कहा____"लेकिन वो अपने प्लान में सफल कहां हुए? बल्कि वो तो ख़ुद उस आदमी के साथ ही उस फ्लैट में मरे हुए पाए गए जिस निशांत नाम के आदमी की हत्या के जुर्म वो अपनी पत्नी को फंसाना चाहते थे। मैं अब भी यही कहूंगा योर ऑनर कि मुजरिम के कटघरे में खड़ी इस औरत ने ही अपने पति के साथ साथ उस आदमी की भी हत्या की है। इन्हें पता चल गया था कि इनका पति इन्हें अपनी ज़िन्दगी से दूर करने के लिए किस तरह का षड़यंत्र रच रहा है। इन्हें अपने पति से ऐसे किसी षड़यंत्र की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ये तो यही समझती थीं कि इनकी साढ़े चार सालों की तपस्या पूरी हो गई है और ऊपर वाले की दया से इनके पति ने इन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है लेकिन, लेकिन योर ऑनर जब इन्हें ये पता चला कि इनके पति इनके लिए क्या मंसूबा बनाए हुए हैं तब इन्हें अपने पति पर भयंकर गुस्सा आया और फिर इन्होंने अपने पति के साथ साथ निशांत सोलंकी की भी इस तरह से हत्या की कि पुलिस या कानून को यही लगे कि एक पति को जब ये पता चला कि निशांत नाम का आदमी उसकी बीवी को ब्लैकमेल कर रहा है तो वो उसे धमकाने के लिए उसके फ्लैट पर जा पहुंचा। फ्लैट पर दोनों के बीच कहा सुनी हुई और बात इस हद तक बिगड़ गई कि एक ने दूसरे को चाकू मारा तो दूसरे ने पहले को गोली मार दी। कहने का मतलब ये कि दोनों ने एक दूसरे को ही जान से मार डाला।"

"वाह! क्या बात है।" डिफेंस लॉयर एकदम से ताली बजाते हुए बोल पड़ा____"कहानी तो आपने वाकई में बहुत अच्छी गढ़ी है प्रासीक्यूटर साहब लेकिन ये तो आप भी जानते हैं न कि अदालत में किसी भी चीज़ को साबित करने के लिए सबूत और गवाह की ज़रूरत पड़ती है। बिना किसी सबूत के अदालत किसी भी मन गढंत कहानी को सच नहीं मानती।" कहने के साथ ही डिफेंस लॉयर जज साहब की तरफ मुड़ा और फिर बोला____"योर ऑनर! प्रासीक्यूटर साहब के पास अपनी बात को साबित करने के लिए ना तो कोई सबूत है और ना ही कोई गवाह है, जबकि मैं अदालत के समक्ष ये साबित कर चुका हूं कि मेरी मुवक्किल का किसी की भी हत्या से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है। मैं अदालत से गुज़ारिश करता हूं कि मेरी मुवक्किल को हत्या के संगीन आरोपों से मुक्त कर के उन्हें बाइज्ज़त बरी किया जाए...दैट्स आल योर ऑनर।"

डिफेंस लॉयर के इस कथन पर एक बार फिर से अदालत कक्ष में कुछ पलों के लिए गहरा सन्नाटा छा गया। न्याय की कुर्सी पर बैठे जज ने गहरी सांस लेते हुए अदालत कक्ष में बैठे हर शख़्स की तरफ बारी बारी से देखा।

ये सच था कि पब्लिक प्रासीक्यूटर के पास अपनी बात को साबित करने के लिए कोई भी ठोस सबूत नहीं थे जिसके चलते उसकी दलील जज साहब के समक्ष महज एक मन गढंत कहानी ही लगनी थी। इधर रूपा के खिलाफ़ भी पुलिस को ऐसा कोई सबूत नहीं मिला था जिससे उसे अपने पति के साथ साथ निशांत सोलंकी की भी हत्या का दोषी माना जाए। ख़ैर डिफेंस लॉयर के कथन के बाद जज ने भी यही माना कि निशांत सोलंकी को विशेष त्रिपाठी की असलियत पता चल गई रही होगी जिससे दोनों की आपस में कहा सुनी हुई और बात इस हद तक बढ़ गई होगी कि दोनों ने एक दूसरे को जान से मारने का प्रयास किया और इस प्रयास में दोनों की ही जान चली गई। घटना स्थल से क्योंकि रूपा के खिलाफ़ कोई भी ऐसा सबूत नहीं मिला था जिससे ये कहा जा सके कि रूपा निशांत के फ्लैट पर मौजूद थी। इस लिए जज साहब ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए उसे बाइज्ज़त बरी कर दिया। विषेश त्रिपाठी की डायरी ने केस में अपनी भूमिका निभाते हुए रूपा त्रिपाठी को बाइज्ज़्त बरी करवा दिया था।


✧✧✧



End of chapter - 01
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Chapter - 02
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Update - 07
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अदालत से बरी हो जाने के बाद रूपा अपने पिता और भाई के साथ वापस कमरे में आ गई थी। उसके चेहरे पर दुःख और तक़लीफ के भाव थे। उसके पिता और भाई पुलिस द्वारा सूचित करने पर फ़ौरन ही दूसरे दिन अपनी बेटी रूपा के पास पुलिस थाने आ गए थे। सारा मामला जानने समझने के बाद उन्हें भी बेहद दुःख हुआ था लेकिन अदालत में उस वक़्त वो दोनों भी बुरी तरह आश्चर्य चकित रह गए थे जब डिफेंस लॉयर ने विशेष त्रिपाठी की डायरी पढ़ कर पूरी अदालत को सुनाई थी। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनके दामाद ने अपनी पत्नी को अपनी ज़िन्दगी से दूर करने के लिए इतना ख़तरनाक मंसूबा बनाया हुआ था। वो तो यही सोच कर बेहद खुश थे कि उनके दामाद ने वर्षों बाद उनकी बेटी को अपनी पत्नी के रूप में अपना लिया था और अब उसे जी जान से प्यार भी करने लगा था। वो तो ये सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी बेटी को अपनाना और उसे इतना प्यार देना उसका महज एक दिखावा था।

ख़ैर बुरे काम का बुरा नतीजा ही निकलता है। जो दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है वो खुद ही अपने खोदे हुए गड्ढे पर गिर जाता है। यही उनके दामाद के साथ हुआ था लेकिन इतना कुछ होने के बाद उनके ज़हन में बार बार कुछ ऐसे सवाल उभर रहे थे कि क्या सच में उनके दामाद की मौत निशांत सोलंकी नाम के उस आदमी के साथ हुए आपसी झगड़े से हुई थी या उन दोनों की मौत की वजह कोई दूसरी थी? यानि क्या सच यही है कि उनका दामाद अपने प्लान के अनुसार जब निशांत के घर उसकी हत्या करने गया तो वहां कुछ ऐसे हालात बन गए कि दोनों में कहा सुनी होने लगी और फिर बात इतनी बिगड़ गई कि दोनों एक दूसरे को जान से मार देने पर उतारू हो गए? एक दूसरे को जान से मार देने की कोशिश में वो दोनों सच में ही अपनी अपनी जान से हाथ धो बैठे?

ऐसे न जाने कितने ही सवाल रूपा के पिता चक्रधर पाण्डेय के ज़हन में गूंजने लगते थे लेकिन उन्हें अपने किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिलता था। ख़ैर पोस्ट मोर्टेम के बाद उनके दामाद की डेड बॉडी उन्हें मिल गई थी इस लिए वो एम्बुलेंस में अपने दामाद की डेड बॉडी ले कर गांव चले गए थे जबकि अपने बेटे अभिलाष को उन्होंने अपनी बेटी को ट्रेन से ले आने के लिए कह दिया था।

सब गांव पहुंच चुके थे। विशेष की मौत की ख़बर एक दो लोगों को हुई तो उनके द्वारा ये ख़बर जंगल की आग तरह पूरे गांव में फ़ैल गई। लोगों ने अपनी सोच के अनुसार इस बात को मिर्च मसाला लगा कर एक दूसरे से कहना शुरू कर दिया। विशेष के परिवार में बाकी और तो कोई नहीं था, लेकिन उसकी ननिहाल वाले ज़रूर थे इस लिए उन तक ख़बर भेजवा दी गई थी। दूसरे दिन विशेष के ननिहाल वालों की सहमति से उसका दाह संस्कार कर दिया गया। रूपा जो पहले ही विधवा हो गई थी वो अब गांव आने के बाद गांव के नियमानुसार विधवा के लिबाश में आ चुकी थी। हर वक़्त उसकी आँखों में वीरानी सी छाई रहती थी। चेहरा पत्थर की तरह शख़्त रहता था। उसकी इस हालत को देख कर उसकी माँ रेणुका बेहद चिंतित और परेशान थी। वो जानती थी कि उसकी बेटी को ऊपर वाले ने जो दुःख दिया है वो अब कभी मिटने वाला नहीं है लेकिन जीवन में इस दुःख को ले कर बैठे भी तो नहीं रहा जा सकता था।

रूपा के पिता अपनी बेटी को अब अपने घर ही ले आए थे। वैसे भी अब उसकी ससुराल में ऐसा कोई नहीं बचा था जिसके सहारे उसे वहां पर छोड़ दिया जाता इस लिए चक्रधर जी उसे अपने घर ही ले आए थे और उसकी जिम्मेदारी भी अपने ऊपर ले ली थी। अपनी बेटी के लिए वो भी दुखी थे लेकिन जीवन-मरण और सुख-दुःख तो सब ऊपर वाले के हाथ में था जिस पर उनका कोई ज़ोर नहीं चल सकता था। ख़ैर ऐसे ही कुछ दिन गुज़र गए। रूपा की ज़िन्दगी में ख़ामोशी छा गई थी और वैसी ही ख़ामोशी उसने अपने होठों पर भी सजा ली थी। उसकी माँ रेणुका उसे बहुत समझाती थी लेकिन उसके समझाने का जैसे उस पर कोई असर ही नहीं होता था। सबके सामने तो वो बस ख़ामोश ही रहती लेकिन अकेले कमरे में वो सिसक सिसक कर रोती थी।

एक दिन उसकी माँ ने अपनी क़सम दे कर उससे पूछ ही लिया कि आख़िर अब ऐसी कौन सी बात है जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही है? इतना तो वो भी समझती थी कि जो दुःख उनकी बेटी को ऊपर वाले ने दिया है वो अब किसी के भी मिटाए नहीं मिटेगा लेकिन फिर भी इंसान किसी न किसी तरह खुद को समझा कर तसल्ली देता ही है ताकि जीवन में आगे बढ़ सके। अपनी माँ की क़सम से मजबूर हो कर रूपा को अपनी ख़ामोशी तोड़नी ही पड़ी।

"अदालत में न्याय की कुर्सी पर बैठे हुए जज ने मुझे निर्दोष मानते हुए भले ही बाइज्ज़त बरी कर दिया है मां।" रूपा ने गंभीर भाव से कहा____"लेकिन ऊपर बैठा हम सबको बनाने वाला हर किसी की सच्चाई को भली-भांति जानता है। उससे किसी का कुछ भी छुपा हुआ नहीं है।"

"तू कहना क्या चाहती है बेटी?" रेणुका ने ना समझने वाले भाव से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"आख़िर किस सच्चाई को जानने की बात कर रही है तू?"

"तुम्हें पता है मां।" कहते हुए रूपा की आँखों में आंसू भर आए, आवाज़ जैसे कांप गई, बोली____"अपने पति और तुम्हारे दामाद की हत्या मैंने की है, लेकिन अदालत में कोई ये साबित नहीं कर पाया कि मैंने ही अपने पति की हत्या की है, बल्कि साबित ये हुआ कि उन हत्याओं में मेरा कोई हाथ नहीं था। मेरे वकील ने अदालत में मुझे निर्दोष साबित कर दिया और न्याय की कुर्सी पर बैठे हुए जज को मुझे बाइज्ज़त बरी का देना पड़ा।"

"ये...ये तू क्या कह रही है रूपा???" रेणुका को जैसे ज़बरदस्त झटका लगा था। आश्चर्य और अविश्वास से उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं थी।

"यही सच है मां।" कहने के साथ ही रूपा के चेहरे पर पत्थर जैसी कठोरता उभर आई, बोली____"ऊपर वाले का हर फ़ैसला मुझे मंजूर था लेकिन उस बेगैरत इंसान का वो फैसला मुझे हर्गिज़ मंजूर नहीं था जो उसने मेरे लिए किया था। मैंने उसको उसके किए की सज़ा दे कर अच्छा ही किया मां। यकीन मानो मुझे अपने किए पर ज़रा भी अफ़सोस नहीं है। साढ़े चार सालों से उसके सहारे के बिना ये ज़िन्दगी जी ही तो रही थी, अब बाकी की सारी ज़िन्दगी भी उसके सहारे के बिना ही जी लूंगी तो भला क्या फ़र्क पड़ जाएगा?"

"पता नहीं ये क्या अनाप शनाप बोले जा रही है तू??" रेणुका की बुद्धि ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया था, बोली____"मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा? आख़िर ये सब क्या है और तूने दामाद जी की हत्या क्यों की? आख़िर ऐसा उन्होंने क्या कर दिया था तेरे साथ? मुझे सब कुछ अच्छे से बता रूपा। मेरा दिल बहुत बुरी तरह घबराने लगा है।"

अपनी माँ रेणुका की ये बातें सुन कर रूपा कुछ देर तक जाने क्या सोचती रही और फिर जब उसकी माँ ने एक बार फिर उससे वही सब पूछा तो उसने उनकी तरफ देखते हुए एक गहरी सांस ली। रेणुका अपनी बेटी के साथ कमरे में रखी चारपाई पर ही बैठी हुई थी और वो इस वक़्त अपने चेहरे पर अजीब से भाव लिए रूपा को ही देखे जा रही थी। उधर सामने की दीवार को देखते हुए रूपा ने सब कुछ इस तरह से बताना शुरू कर दिया जैसे सामने की उस दीवार पर उसका गुज़रा हुआ कल एकदम से किसी चलचित्र की मानिन्द उसे दिखने लगा हो।

✧✧✧

ऊपर वाला जब मनुष्य की रचना कर के इस धरती पर भेजता है तो हर मनुष्य जन्म के समय एक जैसा ही होता है। हालांकि उनका रंग रूप ज़रूर भिन्न होता है, यानी कोई गोरा रंग ले कर पैदा होता तो कोई सांवला रंग ले कर, लेकिन दोनों रंग रूप के प्राणी में एक ही चीज़ सामान होती है कि वो जन्म के समय अबोध होता है। उसे दुनियां संसार की किसी भी अच्छाई या बुराई का ज्ञान नहीं होता। उसके बाद धीरे धीरे वो बड़ा होता है और माता पिता के साथ साथ बाकी लोगों के भी सहयोग से उसमें बुद्धि का विकास होने लगता है। कहते हैं कि अगर किसी बालक को उसके जन्म से ही अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा मिली होती है तो वो आगे चल कर एक अच्छा इंसान ही बनता है और फिर अपने अच्छे आचरण और अपने अच्छे कर्मों के द्वारा वो अपने माता पिता, कुल-खानदान के साथ साथ दूसरों को भी सुख की अनुभूति कराता है। अपने जीवन के अब तक के सफ़र में मैंने अक्सर ये सोचा है कि क्या लोगों की ये बातें वास्तव में सच होती हैं? यानि क्या सच में ऐसा कोई इंसान जिसे जन्म से ही अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा मिली होती है वो आगे चल कर एक अच्छा इंसान ही बनता है? मेरा ख़याल है कि ऐसा बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं होता। ये सच है कि एक अच्छे माता पिता की यही कोशिश रहती है कि वो अपने बालक को अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा दे कर उसे एक अच्छा इंसान बनाए और वो ऐसा करते भी हैं लेकिन अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा मिलने के बावजूद वो बालक एक दिन ऐसा इंसान भी बन जाता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती। यानि अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा वाला इंसान एक दिन बुरी सोच वाला बन जाता है और उस बुरी सोच के साथ वो बुरा कर्म करने लगता है।

ऊपर वाले ने मुझे अगर ऐसा रंग रूप दिया था तो इसमें मेरा क्या दोष था? क्या किसी ऐसे इंसान का इस धरती पर पैदा होना गुनाह है जिसका रंग रूप काला हो और दिखने में वो भद्दा नज़र आता हो? बचपन से ले कर जवानी तक मैं खुद भी अपने ऐसे रंग रूप के लिए ऊपर वाले को दोष दे कर उससे शिकायतें करती थी क्योंकि बचपन से मैंने अपने लिए लोगों के मुख से ऐसी बातें सुनी थी जिससे मेरा दिल दुखता था और अकेले में मैं रोया करती थी। कभी कभी दिल का दर्द जब हद से ज़्यादा बढ़ जाता था तो ज़हन में बस एक ही ख़याल आता था कि ऐसे जीवन को एक पल में समाप्त कर दूं लेकिन हमेशा ये सोच कर रुक जाती थी कि क्या हुआ अगर बाहर के लोग मुझे कुरूपा कहते हैं? मेरे अपने माता पिता और भाई तो मुझे बेहद प्यार करते हैं न। मेरे माता पिता ने तो कभी मेरे रंग रूप के लिए मुझे ताना नहीं मारा। यानि मेरे माता पिता और भाई के प्यार और स्नेह ने मुझे अपने जीवन को कभी समाप्त नहीं करने दिया।

दुनियां में ऐसा कौन है जिसके दिल में किसी तरह की कोई ख़्वाहिश नहीं होती? हर किसी की तरह मेरे भी दिल में ख़्वाहिशें थीं। मेरे भी दिल में अरमान थे और हर लड़की की तरह मैं भी सपने देखती थी। मुझे अच्छी तरह इस बात का एहसास था कि मेरा रंग रूप ऐसा है कि कोई भी सुन्दर लड़का मुझसे शादी करने का सोचेगा भी नहीं लेकिन इसके बावजूद मैं ऐसे ही लड़के के सपने देखती थी, क्योंकि इस पर मेरा कोई ज़ोर नहीं था।

विशेष जी के पिता और मेरे बाबू जी एक दूसरे को सालों से जानते थे। मेरे बाबू जी को भले ही अपनी बेटी इतनी प्यारी थी लेकिन इस यथार्थ सच्चाई का तो उन्हें भी एहसास था कि उनकी बेटी रंग रूप में ऐसी नहीं है जैसे कि हर लड़के को चाह होती है। जब मैं ब्याह के लायक हो गई तो उन्हें मेरे ब्याह की फ़िक्र होने लगी। उन्होंने अपनी तरफ से हर संभव कोशिश की कि कहीं पर मेरा रिश्ता तय हो जाए लेकिन इसे मेरा दुर्भाग्य कहें या कुदरत का षड़यंत्र कि कहीं पर भी मेरा रिश्ता तय नहीं हो पाया। मेरे बाबू जी इस बात से अंदर ही अंदर भले ही चिंतित और परेशान रहने लगे थे लेकिन मेरे सामने कभी वो अपने चेहरे पर चिंता के भाव नहीं लाते थे। शायद वो नहीं चाहते थे कि उनका उतरा हुआ चेहरा देख कर मुझे किसी तरह की तक़लीफ हो। इधर मैं भी इन बातों से अब अंदर ही अंदर दुखी रहने लगी थी। मुझे अपना ब्याह न होने का दुःख नहीं था क्योंकि अपना ब्याह होने की तो मैंने पहले ही उम्मीद छोड़ दी थी, बल्कि मुझे दुःख तो इस बात का था कि मेरी वजह से मुझे इतना प्यार करने वाले मेरे बाबू जी कितना चिंतित और परेशान रहने लगे हैं। जहां एक तरफ मेरी किस्मत मुझे दुःख दे रही थी तो वहीं दूसरी तरफ मेरे माता पिता और मेरा छोटा भाई मुझे छोटी सी बच्ची समझ कर प्यार से समझाते रहते थे और मैं सिर्फ उनके लिए अपना दुःख दर्द और अपने आंसू पी कर मुस्कुरा उठती थी।

एक दिन मेरे बाबू जी घर आए तो वो बड़ा खुश दिख रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि रूपा बिटिया का रिश्ता एक जगह तय हो गया है। मैं रसोई में शाम के लिए खाना बना रही थी और बाबू जी आँगन में चारपाई पर बैठे माँ से ख़ुशी ख़ुशी सारी बातें बता रहे थे। मैंने सुना कि पास के गांव में कोई सोभनाथ त्रिपाठी हैं जिनके बेटे विशेष से मेरा रिश्ता तय हो गया है। बाबू जी की बातें सुन कर मेरे अंदर किसी भी तरह के एहसास जागृत नहीं हुए थे। होते भी कैसे? मैं तो अब ऐसी मानसिकता में पहुंच चुकी थी जहां पर किसी बात से मुझे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था। माँ के पूछने पर ही बाबू जी से मैंने सुना कि उनका होने वाला दामाद काफी पढ़ा लिखा है और आज कल शहर में किसी नौकरी के लिए चक्कर लगाता रहता है। घर दुवार ज़मीन जायदाद सब ठीक ठाक है और समाज में उनकी अच्छी खासी इज्ज़त भी है। पहले तो माँ को बाबू जी की बातों पर यकीन ही नहीं हो रहा था लेकिन जब बाबू जी ने उन्हें बताया कि अगले महीने की उन्नीस तारीख़ को मेरा ब्याह तय हो गया है तो माँ को यकीन करना ही पड़ा। उसके बाद ब्याह की तैयारियां शुरू हो गईं थी।

देर से ही सही लेकिन अब इस ब्याह के तय हो जाने की बात से मेरे दिल की भी धड़कनें एक अलग ही एहसास के तहत धड़कने लगीं थी। मेरे अंदर के अरमान जो अंदर ही कहीं मर खप से गए थे वो एक बार फिर से अंगड़ाईया लेने लगे थे। मुरझाए हुए चेहरे पर जब खुशियों की बहार के झोंके का स्पर्श हुआ तो जैसे वो एकदम से खिल उठा। हर गुज़रते दिन के साथ मन में तरह तरह की बातें और तरह की कल्पनाएं उभरने लगीं थी। हर रोज़ रात में चारपाई पर लेटी मैं अपने होने वाले पति के बारे में न जाने कैसे कैसे सपने बुनने लगी थी और ये ख़्वाहिश जगाने लगी थी कि जब उनसे मेरा मिलन होगा तब क्या होगा? फिर एकदम से ये ख़याल मुझे बुरी तरह हिला कर रख देता कि क्या मेरे माता पिता और भाई की तरह वो भी मुझे प्यार और स्नेह देंगे? कहीं ऐसा तो नहीं हो जाएगा कि ग़ैरों की तरह वो भी मुझे देख कर मुझसे मुँह फेर लें? इन्हीं ख़यालों में सारी रात जागते हुए गुज़र जाती थी। घर में भले ही ख़ुशी का माहौल छाया हुआ था लेकिन मेरे मन में अब ये ख़याल कुछ ज़्यादा ही घर करने लगा था कि मेरा होने वाला पति कहीं मुझे देख कर मुझे अपनाने से इंकार न कर दे। ये ख़याल मेरे दिलो दिमाग़ से जा ही नहीं रहा था, जिसकी वजह से कुछ दिन पहले जिस एहसास से मेरा चेहरा खिल उठा था वो फिर से किसी बेचारगी का शिकार होने लगा था। मंदिर में जा कर घंटों पूजा करती और सबसे यही विनती करती कि चाहे भले ही मेरा होने वाला पति मुझे प्यार न करे लेकिन मुझे देखने के बाद वो मुझसे मुँह न फेरे, बल्कि अपने दिल में मेरे लिए थोड़ी सी जगह बना कर मुझे अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाए रखे।


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Chapter - 02
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Update - 08
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उस दिन एक तरफ मैं इस बात से खुश थी कि आज मेरा ब्याह होने वाला है तो वहीं दूसरी तरफ अब ये सोच सोच कर मुझे घबराहट सी होने लगी थी कि उस वक़्त क्या होगा जब सुहागरात को मेरा पति मेरा चेहरा देखेगा? अगर मुझे ये पता चल जाता कि दुनियां के किसी कोने में कोई ऐसा प्राणी मौजूद है जो एक पल में किसी को भी सुन्दर बना सकता है तो मैं एक पल की भी देरी किए बिना उस प्राणी के पास पहुंच जाने के लिए दौड़ लगा देती लेकिन, ये तो ऐसी बात थी जिसके बारे में सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी। सच तो ये है कि कुदरत एक बार जिसको जैसा बना के धरती पर भेज देती है वो मरते दम तक वैसा ही रहता है। हालांकि उम्र के साथ उसका जिस्म बूढ़ा होने लगता है लेकिन उसके रंग रूप में कोई बदलाव नहीं आता।

मैंने अक्सर सुना था कि जब किसी का ब्याह होता है तो लड़का लड़की के घर वाले एक दूसरे के घर जा कर लड़का या लड़की को देखते हैं और ये भी सुना था कि आज कल लड़का लड़की खुद भी एक दूसरे को ब्यक्तिगत तौर पर देखते हैं। ये बातें मेरे लिए डर जैसी बन चुकीं थी। हालांकि मेरे बाबू जी ने जहां मेरा रिश्ता तय किया था उन्होंने लड़की देखने या लड़का दिखाने से मना कर दिया था। विशेष के पिता जी को हर तरह से रिश्ता मंजूर था। मैं नहीं जानती थी कि उनका और मेरे बाबू जी के बीच क्या क़रार हुआ था और ना ही मैं ये जानती थी कि विशेष को इस ब्याह के बारे में पहले से उनके पिता जी ने नहीं बताया था। ख़ैर ब्याह हुआ और बड़े ही धूम धाम से हुआ। दुनियां में जो मुझे सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह करते थे उनसे विदा लेते वक़्त मैं दहाड़ें मार मार कर रोई थी। शायद इस एहसास ने मुझे और भी ज़्यादा रुलाया था कि अब शायद कोई भी मुझे मेरे माता पिता और भाई जितना प्यार नहीं देगा। कुदरत ने अगर मुझे सुन्दर रंग रूप से नवाजा होता तो संभव था कि आने वाले समय में मेरा पति मुझे इतना प्यार भी देता कि वो मुझे अपनी पलकों पर बैठा कर रख लेता लेकिन इस रंग रूप का उस पर कैसा असर होगा इसका मुझे बखूबी अंदाज़ा था।

अपने दिलो दिमाग़ में ख़ुशी से ज़्यादा डर घबराहट और दुविधा जैसे भावों को लिए मैं अपने ससुराल आ गई थी। हर पल ऊपर वाले से बस यही दुआ कर रही थी कि वो मुझे ऐसा पल न दिखाए जो मुझे और मेरी ज़िन्दगी को उस एक पल में ही बद से बदतर बना दे। बड़ी मुश्किल से दिन गुज़रा और फिर रात हुई। आने वाला हर एक पल जैसे मुझे डर और घबराहट को एक नए रूप में पेश करने का आभास करा रहा था। एक लड़की के दिलो दिमाग़ में उस वक़्त जो खुशियां, जो उमंग और जो सपने होते हैं वो न जाने कहां गायब हो गए थे? बल्कि उन सबकी जगह पर सिर्फ एक ही चीज़ ने अपना कब्ज़ा सा जमा लिया था और वो एक चीज़ थी____'डर और घबराहट।'

कमरे में सुहाग सेज पर अपने पति के इंतज़ार में बैठी मैं मन ही मन ऊपर वाले को याद कर रही थी। उस वक़्त डर और घबराहट की वजह से मुझे ये तक ख़याल आ गया था कि मैं उस जगह से भाग कर अपने माता पिता के पास पहुंच जाऊं। क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि आने वाला वक़्त मुझे एक ऐसा दुःख दे दे जो उस वक़्त मेरे लिए असहनीय हो जाए। अब तक इतना कुछ मैंने सह लिया था कि उस हालत में अगर ऐसा वैसा कुछ हो जाता तो मैं बस एक ही ख़्वाहिश रखती कि ये धरती फट जाए और मैं उसमे समां जाऊं। मैं सोचने समझने की हालत में ही नहीं रह गई थी। अगर उस हालत में होती तो मैं ये ज़रूर सोच कर खुद को तसल्ली देती कि दुनियां में अच्छे इंसान भी पाए जाते हैं रूपा जो किसी के रंग रूप से नहीं बल्कि उसकी आत्मा की सुंदरता से प्यार करते हैं और तुझे तो पूरा यकीन है कि तेरी आत्मा बहुत सुन्दर है और तेरे अंदर कोई भी बुराई नहीं है।

उस रात जब विशेष जी कमरे में आए और जब मैंने उनके आने की आहट सुनी तो मेरा समूचा वजूद कांप गया। दिल की धड़कनें ये सोच कर बुरी तरह से धाड़ धाड़ कर के कनपटियों पर बजने लगीं कि अब क्या होगा? अगर उन्होंने मेरा चेहरा देख कर मुझे कुछ उल्टा सीधा कह दिया तो कैसे सहन कर पाऊंगी मैं? औरत लाख कुरूप सही लेकिन किसी के द्वारा अपने ही सामने वो अपनी बुराई या अपना अपमान सहन नहीं कर सकती। ख़ास कर उस वक़्त तो बिल्कुल भी नहीं जिस वक़्त उसकी और उसकी ज़िन्दगी की अहमियत बदल जानी वाली हो। मेरी जगह अगर कोई सुन्दर लड़की होती तो उस वक़्त उसका चेहरा ख़ुशी और उमंगों से भरा हुआ होता और उसके होठों पर शर्मो हया की मुस्कान खिली हुई होती लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं था। मैं तो अपने बनाने वाले से बस यही फ़रियाद कर रही थी कि चाहे कुछ भी कर लेना लेकिन मेरी आत्मा को दुखी मत होने देना।

सुहाग सेज पर आँखें बंद किए मैं ऊपर वाले को याद करते हुए उससे फ़रियाद कर रही थी। मेरा घूंघट मेरे सीने तक ढलका हुआ था लेकिन सुर्ख और झीनी साड़ी से मेरा चेहरा साफ़ झलक रहा था। मैं बेड के बीचो बीच एकदम से सिकुड़ी हुई सी बैठी थी। मेरे अंदर की हालत ऐसी हो गई थी कि अगर कोई काटता तो मेरे जिस्म से ज़रा सा भी खून न निकलता।

एक ऐसी घड़ी आ गई थी जिसका हर लड़की को बड़ी शिद्दत से इंतज़ार होता है लेकिन मुझे नहीं था, बल्कि मैं तो यही चाहती थी कि ये घड़ी मेरी किस्मत की लकीरों से ही मिट जाए। ऐसा इस लिए क्योंकि मैं उस घड़ी के बाद उस हालत में खुद को नहीं पहुंचा देना चाहती थी जिस हालत में मुझे दुनियां का ऐसा दुःख प्राप्त हो जाए जो मेरी अंतरात्मा तक को झकझोर डाले।

विशेष जी कमरे में आए और फिर पलट कर उन्होंने दरवाज़ा बंद कर के अंदर से उसकी कुण्डी लगा दी। उनके आने की आहट को सुन कर ही मेरी हालत बिगड़ने लगी थी। उधर वो अपने होठों पर मुस्कान सजाए और मेरी तरफ देखते हुए बेड की तरफ बढ़ रहे थे। कुछ ही देर में वो बेड के क़रीब आ गए और बेड के किनारे पर ही बैठ ग‌ए। वो मेरे बेहद क़रीब बैठ गए थे लेकिन अपनी पलकें उठा कर उन्हें देख लेने की मुझ में ज़रा भी हिम्मत नहीं हुई थी। बल्कि ये सोच कर मेरे अंदर डर और घबराहट में और भी ज़्यादा इज़ाफ़ा हो गया था कि अब बस कुछ ही पलों में मुझे ऐसा झटका लगेगा जिसे मैं सहन नहीं कर पाऊंगी। मन ही मन एक बार फिर से अपने बनाने वाले को याद किया मैंने और उससे कहा कि मेरी विनती मेरी फ़रियाद को ठुकरा न देना। बस ये समझ लीजिए कि मेरी ज़िन्दगी और मौत आपके ही हाथों में है।

मैं ऊपर वाले को याद करते हुए उनसे ये सब कह ही रही थी कि तभी विशेष जी ने अपने हाथों को बढ़ा कर मेरा घूंघट पकड़ा और उसे बहुत ही आहिस्ता से उठाते हुए कुछ ही पलों में मेरा चेहरा बेपर्दा कर दिया। जैसे ही मेरा चेहरा बेपर्दा हुआ तो मुझे ऐसा लगा जैसे संसार की हर चीज़ अपनी जगह पर रुक गई हो। मुझे एकदम से महसूस हुआ जैसे मेरे दिल की धड़कनों ने धड़कना ही बंद कर दिया हो। मेरा चेहरा झुका हुआ था और मेरी आँखें बंद थीं। मेरे अंदर उस वक़्त अगर कुछ चल रहा था तो वो सिर्फ अपने बनाने वाले को याद करना और उनसे इस पल के लिए ऐसी दुआ करना जो मेरे आत्मा को छलनी छलनी होने से बचा ले।

मैं उस वक़्त एकदम से चौंकी जब मेरा घूंघट वापस अपनी जगह पर पहुंच गया और विशेष जी एक झटके में बेड से उठ कर खड़े हो ग‌ए। मेरी जान जैसे मेरे हलक में ही आ कर फंस गई थी। मैंने बहुत हिम्मत कर के अपना सिर उठाया और बड़ी मुश्किल से अपनी पलकों को खोल कर उनकी तरफ देखा। उनके चेहरे पर उभरे हुए भावों को देख कर मुझे समझने में ज़रा भी देरी नहीं हुई कि मुझे बनाने वाले ने मेरी फ़रियादों को ठुकरा दिया है। मुझे समझते देर नहीं लगी कि उसने मुझ पर ज़रा भी रहम नहीं किया और फिर अगले कुछ ही पलों में जैसे मेरे ऊपर ही नहीं बल्कि मेरी अन्तरात्मा में भी आसमानी बिजलियां गिरती चली गईं।

"नहीं नहीं, ये नहीं हो सकता।" चेहरे पर नफ़रत और घृणा के भाव लिए विशेष जी अजीब सी आवाज़ में कह उठे____"तुम मेरी बीवी नहीं हो सकती। ऐसे रंग रूप की औरत मेरी बीवी हो ही नहीं सकती। मेरे साथ इतना बड़ा धोखा नहीं हो सकता और ना ही मुझसे जुड़ी हुई कोई चीज़ ऐसी हो सकती है।"

कहने के साथ ही विशेष जी एक झटके से पलट कर कमरे के दरवाज़े की तरफ जाने ही लगे थे कि मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें रुक जाने के लिए जैसे विनती सी की और वो रुक भी गए लेकिन_____"अगर तुम मुझे किसी तरह की सफाई देने वाली हो या ये समझती हो कि मैं तुम्हें अपनी बीवी मान कर तुम्हारे साथ सुहागरात मनाऊंगा तो भूल जाओ। मैं अपने जीवन में तुम जैसी रंग रूप वाली बीवी को कुबूल ही नहीं कर सकता, तुम्हारे साथ जीवन में आगे बढ़ने की तो बात ही दूर है। मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो। तुम इस घर की बहू तो हो सकती हो लेकिन मेरी बीवी कभी नहीं हो सकती।"

आख़िर वही हो गया था जिसके बारे में सोच सोच कर मैं इतने समय से डरती आ रही थी। जिसकी मैंने इतनी इबादत की थी और जिस बनाने वाले से मैंने इतनी मिन्नतें की थी उसने मेरी इबादत और मेरी फ़रियाद का ये सिला दिया था। उस वक़्त मेरे अंदर दुःख तक़लीफ और गुस्से का ऐसा ज्वालामुखी फट पड़ा था कि मन किया कि सारी दुनियां को आग लगा दूं और फिर खुद भी उसी आग में कूद कर खुद ख़ुशी कर लूं। विशेष जी ने जो कुछ कहा था उन बातों का इतना दुःख नहीं हुआ था जितना अपने बनाने वाले के द्वारा अपनी फ़रियाद ठुकरा देने का हुआ था। लोगों ने तो बचपन से ले कर अब तक मुझे अपनी बातों से न जाने कितने ही दुःख दिए थे। इतना तो मैं भी समझ चुकी थी कि इंसान कभी भी दूसरे इंसान के बारे में अच्छा नहीं सोचता लेकिन बनाने वाला??? उसने मेरे बारे में अच्छा क्यों नहीं सोचा? उस वक़्त से मेरे लिए जैसे मेरा बनाने वाला मर गया।

विशेष जी के जाने के बाद कमरे में मैं अकेली ही रह गई थी। सारी रात रोते कलपते हुए गुज़र ग‌ई। ज़हन में बचपन से ले कर अब तक की सारी बातें, सारे दृश्य गूँज जाते और मैं उनके बारे में सोच कर फिर से बिलख बिलख कर रोने लगती। रह रह कर माँ बाबू जी का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम जाता और फिर मन करता कि भाग कर उनके पास पहुंच जाऊं और उनके सीने से लिपट खूब रोऊं। मेरे दुःख का कोई पारावार नहीं था। रह रह कर बस एक ही ख़याल आता कि फ़ांसी लगा कर खुद ख़ुशी कर लूं लेकिन हाय री मेरी किस्मत कि वो भी नहीं कर सकी। रात ऐसे ही रोते कलपते हुए गुज़र ग‌ई। मेरी ज़िन्दगी का सूरज जैसे हमेशा के लिए ही डूब चुका था, जिसकी न तो कोई सहर थी और ना ही कोई ख़ासियत।

रात पता नहीं कब मेरी आँख लग गई थी लेकिन इतना ज़रूर एहसास हुआ था कि मुझे सोए हुए ज़्यादा समय नहीं हुआ था क्योंकि मेरी आँखों से बहे हुए आंसू ठीक से सूखे नहीं थे। मैं उस वक़्त अचानक से हड़बड़ा कर उठ बैठी थी जब मेरे कानों में बाहर से माँ जी और विशेष जी के चिल्लाने की आवाज़ें पड़ीं थी। मस्तिष्क जैसे ही जागृत हुआ तो मुझे पिछली रात का सब कुछ याद आता चला गया और उस सब को याद करते ही मेरे चेहरे पर जैसे ज़माने भर का दुःख दर्द आ कर ठहर गया। कमरे के बाहर माँ बेटे ऊँची आवाज़ में चिल्ला चिल्ला कर जाने क्या क्या बोलते जा रहे थे। मुझ में ज़रा भी हिम्मत न हुई कि मैं बेड से उतर कर कमरे से बाहर जाऊं। समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब कौन सा मुँह ले कर उस इंसान के सामने जाऊं जिसको मेरी कुरूपता को देख कर पलक झपकते ही मुझसे नफ़रत हो गई थी।

कमरे के बाहर हो रही माँ बेटे के बीच की बातों ने मुझे अजीब ही स्थिति में ला दिया था। माँ जी अपने बेटे को डांटते हुए कह रहीं थी कि उन्हें अपने पिता जी पर गुस्सा करने की या उन्हें बातें सुनाने का कोई हक़ नहीं है, क्योंकि उन्होंने अपने बेटे साथ इतना भी ग़लत नहीं कर दिया है। माँ जी कहना था कि शादी ब्याह जीवन मरण सब ऊपर वाले के लिखे अनुसार ही होता है इस लिए जो हो गया है उसको ख़ुशी ख़ुशी अपना कर बहू के साथ अपने जीवन को आगे बढ़ाओ। बहू थोड़ी रंग रूप में सांवली ज़रूर है लेकिन उसमें उससे कहीं ज़्यादा गुण मौजूद हैं। माँ जी की इन बातों पर विशेष जी और भी ज़्यादा गुस्सा हो रहे थे। शायद पिता जी घर पर नहीं थे क्योंकि माँ जी के अनुसार विशेष जी इतना चिल्ला चिल्ला कर उनसे ऐसी बातें नहीं कर सकते थे। ख़ैर कुछ देर बाद शान्ति छा गई।

उस दिन जब पिता जी घर आए थे तो उन्होंने भी विशेष जी से यही कहा और उन्हें समझाया था कि विधि के विधान में यही होना लिखा था इस लिए अब इस पर इतना ज़्यादा नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं। पिता जी ने उन्हें धमकी देते हुए ये भी कहा था कि अगर उन्होंने मुझे अपनाने से इंकार किया तो वो उन्हें अपनी हर चीज़ से बेदखल कर देंगे। पिता जी की धमकी और उनके ख़ौफ की वजह से विशेष जी चुप तो हो गए थे लेकिन उन्होंने पिता जी की बात मान कर मुझसे सम्बन्ध रखना हर्गिज़ गवारा नहीं किया था। धीरे धीरे ऐसे ही दिन गुज़रने लगे। विशेष जी मुझसे कोई मतलब नहीं रखते थे और ना ही मेरी तरफ देखना पसंद करते थे। उनके इस रवैए से मैं दुखी तो थी लेकिन अपने मुख से कुछ कहने की मुझ में कोई हिम्मत नहीं होती थी। माँ जी और पिता जी हर रोज़ उन्हें डांटते धमकाते लेकिन वो चुप चाप सुनते और चले जाते थे।

शादी के बाद मैं बीस दिन ससुराल में रही थी उसके बाद मेरे बाबू जी मुझे लिवा ले गए थे। अपने माँ बाबू जी के घर आई तो मेरे अंदर जो इतने दिनों का गुबार भरा हुआ था वो फूट फूट कर आंसुओं के रास्ते निकलने लगा था। अपने माँ बाबू जी से लिपट कर मैं ऐसे रो रही थी कि चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी। पूछने पर मैंने उन्हें सारा हाल सुना दिया था। मेरी बातें सुन कर उन्हें भी बेहद दुःख हुआ लेकिन कदाचित मेरे माँ बाबू जी को पहले से ही ये एहसास था कि ऐसा ही कुछ होगा लेकिन इस पर भला उनका ज़ोर कैसे चल सकता था?

जब तक ब्याह नहीं हुआ था तब तक तो ये सोच कर मैं किसी तरह खुद को दिलासा दे लेती थी कि चाहे लाख दुःख था मुझे लेकिन कम से कम अपने उन माँ बाबू जी के पास तो थी जो मुझे बेहद प्यार करते थे लेकिन अब तो ब्याह के बाद उनका साथ और उनका प्यार भी छूट गया था। जिसके साथ मुझे अपना पूरा जीवन गुज़ारना था उसने तो मुझे अपनी पत्नी मानने से ही इंकार कर दिया था, अपने साथ रखने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था। मेरे दुःख दर्द में जैसे एक ये दुःख भी शामिल हो गया था। ज़िन्दगी बोझ सी बन गई थी जिसे मैं ज़बरदस्ती ढो रही थी, सिर्फ अपने माँ बाबू जी और अपने भाई के प्यार को देख कर।

मेरे माँ बाबू जी को अच्छी तरह एहसास था कि जो दुःख दर्द मेरे ज़िन्दगी में शामिल थे उनकी वजह से हो सकता है कि किसी दिन मैं तंग आ कर खुद को ही ना ख़त्म कर लूं इस लिए वो हमेशा मेरे पास ही रहते थे और घंटों मुझे समझाते रहते थे। उनका कहना था कि बेटा हर किसी के जीवन में दुःख दर्द का वक़्त आता है लेकिन ये दुःख दर्द हमेशा के लिए नहीं रहता। एक दिन दुःख दर्द के दिन भी चले जाते हैं और फिर इंसान के जीवन में खुशियों वाला समय आ जाता है। आज भले ही मेरे जीवन में ऐसे दुःख और ऐसी तक़लीफें हैं लेकिन एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब मेरा पति मुझे अपनी पत्नी भी मान लेगा और मुझे अपना भी लेगा।

मां बाबू जी की इन बातों से मेरे अंदर फिर से एक उम्मीद की किरण जाग उठी थी। वक़्त ऐसे ही गुज़रता रहा। कुछ समय बाद मैं फिर से ससुराल आई लेकिन इस बार ससुराल में मुझे विशेष जी नज़र नहीं आए। माँ जी से पता चला कि वो शहर चले गए हैं और वहीं रह कर नौकरी करते हैं। इस बात से मुझे थोड़ी तक़लीफ तो हुई लेकिन क्या कर सकती थी? घर में रहते हुए माँ पिता जी की सेवा करती और एक ऐसी बहू बनने की कोशिश करने लगी थी जिसमें किसी भी तरह का दोष न हो। अक्सर सोचती थी कि शायद बनाने वाला मेरे इस सेवा कर्म से प्रसन्न हो कर मेरे दुखों को समाप्त करने के बारे में सोच ले।

अपने कर्म में मैं इतना खो गई थी कि मुझे खुद ही कभी ये एहसास न हुआ था कि मैं चलती फिरती एक ऐसी मशीन बन गई थी जो बिना कुछ बोले सिर्फ काम ही करती रहती थी। माँ जी और पिता जी जो भी कह देते मैं बिना कुछ कहे और बिना कुछ सोचे वो करने लगती थी। इस बीच न जाने कितनी ही बार मेरे मायके से मेरे बाबू जी और मेरा भाई मुझे लेने आए किन्तु मैं उनसे मिल तो लेती थी लेकिन उनके साथ अपने मायके नहीं जाती थी। मैंने जैसे प्रण कर लिया था कि अब यही मेरा घर है, यही मेरी दुनियां है और यहीं पर मेरा सुख दुःख है जिसे भोगते हुए एक दिन मुझे इस दुनियां से चले जाना है। सुबह पांच बजे से ले कर रात दस बजे तक मैं घर के कामों में लगी रहती और फिर बिस्तर पर एक ज़िंदा लाश की तरह लेट जाती। अगर कभी नींद ने आँखों पर रहम किया तो सो जाती वरना सारी रात ऐसे ही जागती रहती। ज़हन में सारी रात ऐसी ऐसी बातें चलती रहती थीं जिनका ना तो कोई मतलब होता था और ना ही उनसे कोई फ़र्क पड़ता था, किन्तु हां उन सबकी वजह से आंखों से आंसू ज़रूर छलक पड़ते थे। विशेष जी घर से एक बार शहर क्या गए वो तो सालों तक लौट कर घर ही नहीं आए लेकिन मेरे अंदर हमेशा उम्मीद बरक़रार रही।

दो साल ऐसे ही गुज़र गए। माँ जी और पिता जी मुझे अपनी बेटी की तरह चाहते थे। उन्हें भी मेरे दुखों का एहसास था लेकिन अपने बेटे पर उनका कोई ज़ोर नहीं रह गया था और ना ही मेरी किस्मत को बदल देने की उनमें क्षमता थी। इन दो सालों में हालात ऐसे हो गए थे कि अब वो भी मेरे लिए दुखी रहने लगे थे। गांव समाज में लोगों के बीच तरह तरह की बातें होने लगीं थी जिससे हम सबके जीवन में बुरा असर होने लगा था। विशेष जी को तो जैसे इन सब से कोई मतलब ही नहीं था। एक दिन इस सबकी वजह से तंग आ कर बाबू जी ने फ़ैसला किया कि अब वो अपने बेटे को शहर से वापस घर ले कर ही आएंगे और उन्हें इस बात के लिए मजबूर करेंगे कि वो मुझे अपनी पत्नी के रूप में अपना ले। बाबू जी गांव के ही अपने किसी जान पहचान वाले को ले कर शहर चले गए थे। आख़िर बड़ी मुश्किल से पता करते हुए वो विशेष जी के पास पहुंच ही गए और उन्हें ले कर घर आ गए थे।

विशेष जी दो साल बाद घर आए थे। उन्हें दूर से और छुप कर देख कर दिल को सुकून तो मिला था लेकिन उनसे कुछ कहने की मुझ में अब भी कोई हिम्मत नहीं थी और वैसे भी मैं खुद उनसे किसी बात की पहल कैसे कर सकती थी जिन्होंने खुद ही मुझे हर तरह से त्याग दिया था? उनके आने से घर में एक बार फिर से शोर शराबा होने लगा था। हर रोज़ पिता जी उनसे मुझे अपना लेने की बातें कहते, यहाँ तक कि उन्होंने ये भी कुबूल किया कि उनसे ये ग़लती हुई थी कि उन्होंने उनसे पूछ कर उनका रिश्ता तय नहीं किया था या धन के लालच में आ कर उन्होंने उनका ब्याह एक ऐसी लड़की से कर दिया था जो दिखने में सुन्दर नहीं थी। पिता जी की बातों से विशेष जी पर कोई असर नहीं पड़ा था। उन्होंने साफ़ कह दिया था कि उनका मुझसे कोई मतलब नहीं है। उनकी ये बातें किसी नस्तर की तरह मेरे दिल को चीर जाती थीं। मेरा रंग रूप जैसे मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ था जो मुझे एक पल की भी ख़ुशी नहीं दे सकता था।

अकेले में अक्सर सोचती थी कि एक बार विशेष जी से बात करूं और उनसे विनती करूं कि वो अपने जीवन में मेरे लिए थोड़ी सी जगह बना कर मुझे अपना लें लेकिन फिर ये ख़याल आ जाता कि अगर उन्होंने मुझे कुछ उल्टा सीधा कह दिया तो मैं कैसे सहन कर पाऊंगी? इससे अच्छा तो यही है कि मैं घुट घुट के ही इस दर्द रुपी ज़हर को पीते हुए पल पल मरती रहूं। ख़ैर विशेष जी घर में एक हप्ता रुके और फिर वो वापस शहर चले गए।

कभी कभी मेरे मन में ये ख़याल भी आ जाता था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने शहर में किसी सुन्दर लड़की से ब्याह कर लिया हो और हम में से किसी को इस बात का पता ही न हो। ये ख़याल मन में आता तो दिल में एक टीस सी उभरती लेकिन इस पर भी तो मेरा कोई ज़ोर नहीं था। मेरी किस्मत में तो जैसे दुःख दर्द में मरना ही लिख गया था।

दर्द और तक़लीफ क्या होती है? किसी के लिए तिल तिल कर मरना क्या होता है? सब कुछ होते हुए भी कुछ भी न होने का एहसास कैसा होता है? ख़ामोशी किसे कहते हैं? जलती हुई ख़्वाहिशें कैसी होती हैं? टूटती हुई उम्मीदें और झुलसते हुए अरमान कैसे होते हैं? जैसे इन सबका एक उदाहरण या ये कहें कि इन सबका जवाब बन गई थी मैं।

मैं चाहती तो एक झटके में विशेष जी को इस सबके लिए कानूनन सज़ा दिलवा सकती थी या उन्हें इस बात के लिए मजबूर कर सकती थी कि वो मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें लेकिन इस बारे में मैंने कभी सोचा ही नहीं। वैसे भी कानून का सहारा ले कर मैं अगर उनकी पत्नी बन भी जाती या वो मुझे स्वीकार भी कर लेते तो उससे होता क्या? उस सूरत में भी तो वो मेरे न होते। जिसके दिल में मेरे प्रति नफ़रत के सिवा कोई जज़्बात ही नहीं थे उसको किसी बात से मजबूर करने का मैं सोच भी कैसे सकती थी? मैं अभागन तो इतने पर भी खुश हो जाने को तैयार थी कि एक बार वो सपने में ही मुझे अपनी पत्नी स्वीकार कर लें लेकिन फूटी किस्मत कि ऐसे सपने भी मेरी पलकों को नसीब नहीं थे।

कहने को तो इस सबको चार साल गुज़र गए थे लेकिन इन चार सालों में न जाने कितनी ही बार मर मर कर ज़िंदा हो चुकी थी मैं। मेरे लिए आज भी वक़्त वही था जो पहले था। मेरे दुःख दर्द आज भी वही थे और वैसे ही थे जो हमेशा से ही थे लेकिन हाँ इतना फ़र्क ज़रूर आ गया था कि अब इन तक़लीफों को सहने की मुझमें क्षमता बढ़ गई थी। मैं एक ऐसी मनोदशा में पहुंच गई थी जिसके अंदर भभकता हुआ ग़ुबार किसी भयंकर ज्वालामुखी जैसा रूप ले चुका था और वो ग़ुबार बड़ी ही शिद्दत से फट पड़ने को बेक़रार था।


✧✧✧
Bahut achchhi update mitr
 
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Reactions: TheBlackBlood

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
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Har sawal ka jawab usi sawal me chhupa hota hai jab me jawab nahi deta to uske liye apko dimag chalana padta hai aur jab me sawal karta hu tab bhi uska jawab dhoondhne ke liye apko dimag chalana padta hai
.....
I think .... Ab ap samajh gaye honge ki apke intelligent hone mein mera kitna bada hath hai
:approve: :D

Aur mein apko pasand karta hu isiliye like ka button dabakar nikal jata hu B-)
Beshak bhiaya ji aur yakeen maaniye aapka ye ehsaan main to kabhi yaad nahi rakhuga lekin meri aane wali pushte.......na na...wo bhi yaad nahi rakhengi. Haan ne tooooo,,,,:beee:
 

TheBlackBlood

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Shukriya bhai ji
Jab sharur ho halka halka
To kuchchh udgaar patakat ho jaate hai bhai

Per jayadatar bewafa woqt hi saath na deta

Aur bahut saari kathao ka rash peene ki parvriti bhaveren ki bhranti bharaman karta rahta hun ik katha se dushri katha per

Sahitye rash utam rash jab piya to
To phir kishi nashe ki jarurat hi na rahi
Kya baat hai, ye baat to chaake jigar ho gayi nevil bhai,,,:love2:
 
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