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Thriller ✧ Double Game ✧(Completed)

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
Supreme
79,786
117,820
354
दूसरे अध्याय का चौथा भाग।

बहुत ही बेहतरीन कहानी महोदय,

जीवन मे सुख दुःख तो लगा ही रहता है लेकिन रूपा की ज़िंदगी मे सुख के क्षण बहुत कम ही लिखे थे। रूपा ने एक पत्नी होने के नाते वो सब कुछ किया जो एक अच्छी और संस्कारी पत्नी को करना चाहिए, लेकिन अपने रूप के कारण वो कभी भी अपने पति का दिल नहीं जीत पाई। उसके जीवन मे थोड़ी बहुत जो नाममात्र की खुशियां आई थी वो बस विशेष की एक खतरनाक चाल का हिस्सा थी।

वो कहते हैं न कि इंसान चाहे कितना भी चालाक और शातिर हो, लेकिन सामने वाले को कभी भी कमजोर या बेवकूफ नहीं समझना चाहिए। विशेष ने प्लान बहुत अच्छा बनाया, लेकिन उसने रूपा को कम आंकने की गलती की। तीन रात विशेष को जागकर कुछ लिखते और उसे ताले के अंदर रखते देखकर रूपा के मन मे विशेष को लेकर शक बैठ गया और वो एक रात मक पाकर विशेष के लिखे गए कारनामें को पढ़ने की तैयारी कर ली है।।
Shukriya mahi madam is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
Oversmart bahut tha vishesh,,,,:dazed:
 

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
Supreme
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354
डायरी लिखना " आ बैल मुझे मार " वाली बात हो गई विशेष के लिए । रात के वक्त बीवी की मौजूदगी में ही वह डायरी लिखता रहा । क्या उसे ऐसा नहीं लगा कि उसकी पत्नी कभी भी उठ सकती है और उसे डायरी लिखते हुए देख सकती है ? और यदि देख लिया तो वो पढ़ने की कोशिश कर सकती है ? और अगर पढ़ लिया तो उसके सारे राज खुल सकते हैं ?
एकाध दिन की बात हो तो सावधानी बरती जा सकती है लेकिन यदि रोज का ही काम हो तो पकड़े जाने का चांसेज हो सकता है । कुलीग को मारने और उसके कत्ल में अपनी बीवी को फंसाने का अच्छा स्कीम बनाया था उसने लेकिन डायरी वाले मामले में बेवकुफी कर दी ।

खैर , रूपा को डायरी से सब कुछ पता चल ही गया होगा । पर देखना है उसने उन दोनों का कतल कैसे किया !

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट शुभम भाई ।
Kabhi kabhi bahut zyada hoshiyaari khud ka hi beda gark kar deti hai. Vishesh ne kabhi ye jaanne samajhne ki koshish hi nahi ki ke rupa zaheni taur par kaisi hai.? Usne to bas uski kuroopta ko dekha aur usse muh fer liya tha. Uski apni soch thi ki uske jaisi kuroop aurat akal se bhi kuroop ya moorkh hogi,,,,:dazed:

Khair shukriya bade bhaiya ji is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
 
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TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
Supreme
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Chapter - 02
[ Reality & Punishment ]
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Update - 11
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बाथरूम के अंदर अभी मैं उस किताब को खोलने ही वाली थी कि तभी बाहर से कुछ अजीब सी आवाज़ सुनाई दी मुझे। उस आवाज़ को सुन कर मेरा रोम रोम कांप गया। दिल की धड़कनें एकदम से थम गई सी महसूस हुईं मुझे। फिर एकदम से मन में ख़याल उभरा कि अगर ये आवाज़ विशेष जी के द्वारा पैदा हुई होगी तब तो ज़रूर वो जाग गए होंगे। संभव है कि मेरी तरह उनकी भी पेशाब लगने की वजह से नींद खुल गई हो। ये सब सोचते ही एकदम से मैं बुरी तरह घबरा गई। पकड़े जाने का डर मुझ पर इस क़दर हावी हो गया कि लगा मुझे वहीं पर चक्कर आ जाएगा। किसी तरह मैंने ख़ुद को सम्हाला और मोबाइल की टार्च को बुझा कर बहुत ही धीमें से बाथरूम का दरवाज़ा खोला।

बिना कोई आवाज़ किए जब मैं कमरे में आई तो देखा कमरे में पहले की तरह ही अँधेरा था। कुछ देर अपनी जगह पर रुक कर मैंने किसी भी तरह की आवाज़ को सुनने की कोशिश की लेकिन ऐसी कोई आवाज़ मेरे कानों में न सुनाई दी जिससे मैं ये अंदाज़ा लगा सकूं कि वो आवाज़ विशेष जी के द्वारा पैदा हुई थी या किसी चूहे की वजह से। अब क्योंकि मेरे अंदर पकड़े जाने का डर भर गया था इस लिए मैंने इस वक़्त फिर से बाथरूम में जा कर उस किताब को देखना बिलकुल भी सही नहीं समझा। मैंने चुप चाप उस किताब को वैसे ही उस बैग में रख दिया जैसे निकाला था और फिर बैग को बेड के नीचे वैसे ही रख कर बेड पर आहिस्ता से लेट गई। मेरा दिल अभी भी मारे घबराहट के बुरी तरह धड़क रहा था। ज़हन में ख़याल उभरा कि बाल बाल बच गई आज।

अगले दो तीन दिन ऐसे ही गुज़र गए और मैंने भी उस किताब को देखने का ख़याल ज़हन से निकाल दिया था। असल में मैं विशेष जी के प्यार की वजह से मिल रही ख़ुशी को फीका नहीं करना चाहती थी।

उस दिन रविवार था और विशेष जी ने शनिवार की शाम को ही मुझे बता दिया था कि रविवार को वो मुझे बाहर घुमाने ले जाएंगे लेकिन इस बार वो बाहर ही किसी अच्छे से होटल में रुक कर मेरे साथ प्यार से भरी रात गुज़ारेंगे। विशेष जी की इस बात से मैं बेहद खुश हो गई थी। ख़ैर अगले दिन रविवार को मैं विशेष जी के साथ घूमने निकल पड़ी थी। सबसे पहले उन्होंने मुझे सिनेमा में ले जा कर फिल्म दिखाई और उसके बाद चिड़ियाघर घुमाने ले गए। इसी सब में काफी वक़्त गुज़र गया था और मैं थक भी गई थी इस लिए विशेष जी के साथ मैं होटल में पहुंच ग‌ई। वहां खा पी कर मैं बेड पर लेटते ही सो गई थी।

शाम को हम दोनों उठे और थोड़ा बाहर घूमने के बाद रात का खाना खाया। उसके बाद होटल के अपने कमरे में आ गए। रात अपनी ही थी इस लिए मेरे मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे जिनकी वजह से मैं मन ही मन खुश हो रही थी। विशेष जी के प्यार की अब आदत सी पड़ गई थी मुझे और मैं चाहती थी कि मैं उनके उस प्यार में ही डूबी रहूं। ख़ैर विशेष जी ने मुझे भरपूर प्यार किया। मैं एकदम से तृप्त और निढाल हो गई थी। काफी देर बाद जब विशेष जी ने मुझे पुकारा तो मैं उठी और जैसे ही मैंने खुद के नंगेपन को देखा तो शर्म से दोहरी हो गई। मेरे सारे कपड़े बेड से दूर फर्श पर पड़े हुए थे।

दूसरे दिन हम दोनों सुबह सुबह ही घर आ गए थे। विशेष जी तो अपने ऑफिस चले गए थे लेकिन मैं सारा दिन अपनी बदली हुई ज़िन्दगी के बारे में जाने क्या क्या सोचती रही थी। उस रात भी विशेष जी ने मुझे प्यार किया था और उसके बाद हम दोनों सो गए थे। इत्तेफ़ाक़ से फिर मेरी नींद पेशाब लगने की वजह से ही टूट गई। मैंने आँखें खोल कर इधर उधर देखा तो मैं ये देख कर चौंकी थी कि आज फिर विशेष जी टेबल लैंप को जला कर उस किताब में कुछ लिख रहे थे। ये देखते ही मेरे ज़हन में फिर से वो ख़याल उभर आए जिनके बारे में मैं भूल गई थी। मन में एक बार फिर से ये जानने की उत्सुकता भर गई कि आख़िर उस किताब में विशेष जी ऐसा क्या लिखते हैं? मैंने अपने ज़हन पर ज़ोर डाला तो मुझे याद आया कि मैंने उन्हें दिन में किसी दिन भी उस किताब में लिखते नहीं देखा था बल्कि उन्हें कुछ कागज़ों पर सिर खपाते हुए और लिखते हुए ही देखा था।

मेरे मन में एक बार फिर से इस सबके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ गई थी इस लिए मैंने फैसला किया कि विशेष जी के सो जाने के बाद आज मैं फिर से उस किताब को उनके बैग से निकाल कर देखूंगी। मैं जानती थी कि इस काम में ख़तरा तो था लेकिन अपने मन की शान्ति और तसल्ली के लिए मुझे ये ख़तरा मोल लेना जैसे मंजूर हो गया था।

मैंने काफी देर तक इंतज़ार किया और आख़िर मेरा इंतज़ार ख़त्म हुआ। विशेष जी ने उस किताब को बंद कर के बैग में रखा और उसमें ताला लगाया। उसके बाद उस बैग को बड़ी सावधानी से ला कर बेड के नीचे रख दिया। इधर मैं पलकों की झिरी से उन्हें ही देख रही थी। विशेष जी बेड पर आए और दूसरी तरफ करवट ले कर लेट ग‌ए। काफी देर बाद जब मैंने महसूस किया कि विशेष जी गहरी नींद में पहुंच गए हैं और उनके हल्के हल्के खर्राटे सुनाई देने लगे हैं तो मैं आहिस्ता से उठी और फिर से उसी तरह मैंने उस बैग से उनकी वो किताब निकाली जैसे उस दिन निकाला था। उसके बाद किताब ले कर मैं सीधा बाथरूम में घुस गई।

मेरे अंदर डर और घबराहट समाई हुई तो थी लेकिन इसके बावजूद मैं अब उस किताब के रहस्य को जानना चाहती थी। मैंने मोबाइल की टार्च जला कर मोबाइल को एक जगह रख दिया। मोबाइल वाली टार्च से इतनी तो रौशनी हो ही गई थी कि मैं उस किताब में लिखी बातें आराम से पढ़ सकती। मैंने किताब के मोटे से कवर को खोला तो मेरी नज़र दाएं तरफ सफ़ेद मोटे पन्ने पर लिखे शब्दों पर पड़ी। मोठे शब्दों में लिखा था____'पर्सनल डायरी।'

मेरे बाबू जी ने मुझे इतना पढ़ाया लिखाया तो था ही कि मैं पर्सनल डायरी का मतलब समझ सकूं। ख़ैर इतना तो मैं समझ गई थी कि वो किताब विशेष जी की पर्सनल डायरी थी और मैं ये भी समझती थी कि पर्सनल डायरी में कोई भी इंसान वही लिखता है जो वो अपने जीते जी किसी भी दूसरे को नहीं पढ़ने दे सकता। मुझे पता था कि किसी की ब्यक्तिगत चीज़ को बिना उसकी इजाज़त के हाथ भी नहीं लगाना चाहिए लेकिन उस वक़्त मैं उसे हाथ भी लगा रही थी और पढ़ने का इरादा भी रखे हुए थी। मैं ये जानने के लिए मजबूर हो चुकी थी कि विशेष जी ने आख़िर उस किताब में लिखा क्या होगा?

ऊपर वाले को याद कर के मैंने उस किताब के पन्ने को पलटना शुरू किया तो जल्द ही मुझे एक पन्ने पर बहुत कुछ लिखा नज़र आया जिसे मैंने पढ़ना शुरू कर दिया। उसमें शुरू से यही लिखा था कि_____'हीन भावना कभी कभी ऐसा भी रूप ले लेती है जिसका अंजाम ख़तरनाक भी हो सकता है......।'

शुरु में तो मुझे कुछ समझ न आया लेकिन जैसे जैसे मैं आगे पढ़ती गई वैसे वैसे मेरा दिलो दिमाग़ एक अजीब ही एहसास में डूबता चला गया। मैं किताब में लिखी बातों को पढ़ने में इतना खो गई कि मुझे किसी दूसरी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। विशेष जी ने उस किताब में जो कुछ लिखा था उसने मेरे होश गुम कर दिए थे। मेरे ज़हन ने तो जैसे काम करना ही बंद कर दिया था। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि विशेष जी मेरे बारे में ऐसी सोच रखते थे और इस तरह से मुझे अपनी ज़िन्दगी से दूर कर देना चाहते थे।

अपनी कुरूपता का मुझे भी हमेशा से दुःख था और उसके लिए जब लोग मेरा उपहास उड़ाते थे तो मन करता था कि उस दर्द को पी लेने से तो अच्छा है कि खुद ख़ुशी कर लूं लेकिन अपने माँ बाबू जी का प्यार देख कर हमेशा खुद को समझा लेती थी। अपने जीवन से और बुरे लोगों से भले ही मुझे नफ़रत थी लेकिन इस सबके बावजूद मेरे दिल के किसी कोने में ये हसरत मौजूद थी कि अपने जीवन में कम से कम एक बार तो खुश हो लूं। कम से कम एक बार तो मुझे भी पता चल जाए कि आख़िर ख़ुशी चीज़ क्या होती है? ख़ैर उसके बाद संजोग से जब ख़ुशी मिली तो लगा जैसे अब मुझे सब कुछ मिल गया है। अपने पति का साथ और उनका प्यार मिल गया था मुझे। उस ख़ुशी में मैं जैसे बावली ही हो गई थी। भला मैं ये कल्पना कैसे कर सकती थी कि जिन ख़ुशियों के चलते मैं अपने दुःख दर्द भूल चुकी थी और बावली हो गई थी वो खुशियां मुझे इस दुनियां में चंद दिनों का मेहमान बनाने के लिए मिल रहीं थी।

किताब में जितना कुछ विशेष जी ने लिखा था वो सब मैंने पढ़ लिया था और सच तो ये है कि उस सबको पढ़ने के बाद दिल तो ये कह रहा था कि ऐसे इंसान को सोते में ही उसका गला घोंट कर मार दूं लेकिन फिर मैंने किसी तरह अपने अंदर उमड़ते उन जज़्बातों को रोका। उस किताब में लिखी दास्तान को पढ़ने के बाद जैसे सब कुछ शून्य सा हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे अब इस दुनियां में कुछ है ही नहीं और अगर कुछ है भी तो वो है___हर इंसान से नफ़रत और घृणा। अगर मेरे बस में होता तो मैं इस दुनियां से पूरी मानव जाती को ही समाप्त कर देती।

अपने आपको बड़ी मुश्किल से मैंने सम्हाला और चुप चाप कमरे में आ कर उस किताब को उसी तरह बैग में रख दिया जैसे उसमें से निकाला था। बेड पर एक तरफ सोए पड़े विशेष जी पर जब मेरी नज़र पड़ी तो सहसा मेरे अंदर एक तूफ़ान सा उठ खड़ा हुआ। मन किया कि उसी वक़्त उस इंसान को जगाऊं और उसका गिरेहबान पकड़ कर उससे पूछूं कि अगर उसे मुझसे इतनी ही नफ़रत थी तो मुझे ऐसी खुशियां क्यों दी थी? वो मुझसे एक बार कह देता कि मैं उसकी ज़िन्दगी से हमेशा के दूर हो जाऊं तो मैं ख़ुशी ख़ुशी उसकी ज़िन्दगी से दूर हो जाती। इसके पहले साढ़े चार सालों तक उससे दूर ही तो थी और उसके बिना जी ही तो रही थी तो बाकी सारी ज़िन्दगी भी उसके बिना ही जी लेती। कम से कम ये सब तो देखना न पड़ता और ना ही इस सबके दुःख में मेरा दिल बुरी तरह से दुःख जाता।

मन में गुस्सा और नफ़रत तो हद से ज़्यादा भर गई थी लेकिन उस वक़्त मैंने विशेष जी को जगा कर उनसे कुछ भी नहीं कहा था। मैं तो बस बेड पर लेटी उस सबके बारे में सोच सोच कर आंसू बहा रही थी। पता नहीं कब उसी हालत में मेरी आँख लग गई थी।

सुबह आँख खुली तो ज़हन में रात की सारी बातें उभर आईं जिसकी वजह से दिल में बड़ा तेज़ दर्द हुआ। मेरे मन में ख़याल उभरा कि मुझे अपने चेहरे से ऐसा ज़ाहिर नहीं होने देना चाहिए कि मुझे विशेष जी की असलियत पता चल गई है। आख़िर अब मैं भी तो देखूं कि वो बेगैरत इंसान मुझे अपनी ज़िन्दगी से दूर करने के लिए आगे और क्या क्या करता है? ये सोच कर मैंने खुद को सम्हाला और बाथरूम में घुस गई।

मैंने विशेष जी को ज़रा भी इस बात का शक नहीं होने दिया कि उनके मंसूबों के बारे में मुझे पता चल चुका है। मैं उनके सामने वैसा ही बर्ताव करती जैसा अब तक करती आई थी। मैं वैसे ही ख़ुशी में बावली बनी रही जैसे अब तक बनी हुई थी। अकेले में मैं ये सोच सोच कर दुखी होती कि आख़िर वो किस तरह इंसान है जिसके सीने में दिल तो है लेकिन उसमें किसी के लिए कोई जज़्बात नहीं हैं। कोई इंसान इतना कठोर कैसे हो सकता है कि किसी को अपने जीवन से हटाने के लिए इस हद तक गिर कर मंसूबा बना ले?

दूसरे दिन दोपहर को मैं कमरे में बेड पर लेटी हुई विशेष जी के बारे में ही सोच रही थी कि तभी मेरे मोबाइल पर मैसेज की रिंग बजी तो मैंने मोबाइल उठा कर मैसेज देखा। किसी अनजान नंबर से मैसेज आया हुआ था। मैंने उस मैसेज को खोल कर देखा तो बुरी तरह चौंक ग‌ई। भेजने वाले ने इस तरीके से मैसेज लिख कर भेजा था जैसे वो मेरा प्रेमी हो और मैं उसकी प्रेमिका। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया कि ये कौन है जिसने इस तरह का मैसेज भेजा है मुझे। कुछ देर बाद फिर से उसका मैसेज आया और फिर एक के बाद आता ही रह। मैं उन संदेशों को पढ़ कर स्वाभाविक रूप से परेशान हो ग‌ई। मैंने उस अनजान ब्यक्ति के मैसेजेस का कोई जवाब नहीं दिया था। कुछ देर तक मैं मन ही मन सोचती रही कि ऐसा कौन कर सकता है? मेरा मोबाइल नंबर मेरे पति के अलावा सिर्फ मेरे माँ बाबू जी और मेरे भाई के ही पास था तो फिर ये अंजान आदमी कौन है और इस तरह के सन्देश क्यों भेज रहा है मुझे? सहसा मेरे दिमाग की बत्ती जली। मुझे विशेष जी की डायरी में लिखी बातों का ख़याल आ गया। उसमें उन्होंने साफ़ लिखा था कि वो जिस कंपनी में काम करते हैं वहां पर निशांत सोलंकी नाम का कोई उनका सीनियर है जिसे वो अपने ऐसे ख़तरनाक प्लान में फ़साने का सोचे हुए हैं। उसी आदमी के साथ मेरे नाजायज़ सम्बन्ध बने हुए साबित करना चाहते थे।

मैं क्योंकि विशेष जी डायरी पढ़ चुकी थी इस लिए मैं समझ गई थी कि वो अंजान आदमी कोई और नहीं बल्कि मेरा पति ही है। अपनी समझ में वो निशांत सोलंकी बन कर मुझे ऐसे सन्देश भेज रहे थे। अपने प्लान के अनुसार वो अपना कार्य कर रहे थे इस लिए मैंने भी सोचा कि देखूं तो सही कि आख़िर वो ये सब किस तरह से करते हैं? मैंने भी सोच लिया कि मैं भी अब वैसा ही करुँगी जैसा वो चाहते हैं। दो दिन तक मैंने उनके संदेशों का कोई जवाब नहीं दिया था। आख़िर स्वाभाविक रूप से उन्हें ये तो लगना ही चाहिए था कि ऐसी परिस्थिति में मैं क्या करती? ख़ैर तीसरे दिन मैंने ये सोच कर जवाब दिया कि उन्हें यही लगे कि मैं उन संदेशों से बहुत परेशान हो गई हूं। जब मैंने जवाब दिया तो पहले तो वो मेरा प्रेमी बन कर मैसेज किए किन्तु फिर वो एकदम से मुझसे मेरी नंगी फोटो मांगने लगे और धमकी देते हुए कहा कि अगर मैंने अपनी नंगी फोटो उन्हें नहीं भेजी तो वो मेरी नंगी फोटो मेरे पति के पास भेज देंगे।

उनकी डायरी के द्वारा मैं जान चुकी थी कि उस दिन उन्होंने चोरी से होटल के कमरे में मेरी फोटो खींच ली थी इस लिए मैं ये समझ गई थी कि वो उन्हीं फोटो को भेज देने की मुझे धमकी दे रहे थे लेकिन मैंने मैसेज में यही लिखा कि उनके पास मेरी फोटो कैसे हो सकती है? मेरे पूछने पर उन्होंने सबूत के तौर पर मेरी फोटो भेज दी जिसे देख कर यकीनन मेरे होश उड़ गए थे। मैं ये सोच कर हैरान भी हुई थी कि वो आदमी अपने फ़ायदे के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। ख़ैर फोटो देख कर मैंने वैसा ही बर्ताव किया जैसा कि उस परिस्थिति में किसी भी साधारण घरेलू पत्नी को करना चाहिए था। उसके बाद उनके अनुसार जब मैं मजबूर हो गई तो मैंने बेबस और लाचार बन कर उन्हें अपनी फोटो भेज दी। शर्म तो मुझे बहुत आई थी लेकिन खुद को तसल्ली भी दी कि आख़िर मेरी फोटो गई तो मेरे पति के पास ही है ना और वैसे भी मैं तो ये देखना चाहती थी कि वो अपने मंसूबों को परवान कैसे चढ़ाते हैं?

शाम को विशेष जी जब घर आए तो मैं उनके सीने से वैसे ही लिपट गई जैसे ऐसी परिस्थिति में कोई भी बेबस और दुखी बीवी करती। आख़िर विशेष जी को भी तो ये लगना चाहिए था ना कि सब कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा वो चाहते हैं या जैसा उन्होंने प्लान बनाया हुआ है। इतना तो मैं भी समझ गई थी कि वो मुझे बिल्कुल ही बेवकूफ और मूर्ख समझते थे। उन्हें लगता था कि मैं गांव देहात की एक मामूली सी लड़की हूं जिसके ज़हन में ऐसी बातें आ ही नहीं सकतीं थी और शायद यही वजह थी कि वो कमरे में मेरी मौजूदगी के बावजूद मेरे सो जाने के बाद उस किताब में वो सब लिखते थे। इंसान जब ख़ुद को कुछ ज़्यादा ही होशियार और चालाक समझने लगता है तो फिर वो बाकी सबको मूर्ख ही समझता है। यही हाल विशेष जी का था।

इन्सान को जब पता चल जाए कि उसका कोई अपना उसके लिए किस तरह का षड़यंत्र रच रहा है और उसे खुद से हमेशा के लिए दूर कर देने के लिए किस हद तक गिर जाने वाला है तो भला ऐसे में उस इंसान को चैन की नींद कैसे आ सकती है? मेरा भी यही हाल था। वैसे तो मैं विशेष जी के सामने वैसा ही बर्ताव और वैसी ही ख़ुशी में बावली हो जाने का दिखावा कर रही थी लेकिन मन में चौबीसों घंटे यही ख़याल रहता था कि अब वो आगे क्या और कैसे करने वाले हैं? उस रात भी उन्होंने मुझे एक अच्छे पति की तरह प्यार दे कर खुश कर दिया था। उसके बाद जैसा कि हमेशा होता था मैं प्यार की मदहोशी में ही सो गई थी। हालांकि सच तो ये था कि उस रात मैं सोइ नहीं थी बल्कि सो जाने का नाटक किया था मैंने। मेरे मन में कहीं न कहीं ये बात ज़रूर थी कि मेरे सो जाने के बाद विशेष जी फिर से उस किताब में आगे का अपना प्लान लिखेंगे।

जब विशेष जी को पूरी तरह यकीन हो गया कि मैं गहरी नींद में जा चुकी हूं तो वो चुपके से उठे और अपने काम में लग गए। बेड पर लेटी मैं पलकों की झिरी से देख रही थी कि वो क्या कर रहे थे। कमरे में अँधेरा था लेकिन बहुत ही हल्की हल्की ऐसी आवाज़ सुनाई दे रही थी जैसे बेड के नीचे से कोई किसी चीज़ को सरका रहा है। मैं जानती थी कि वो चीज़ उनका वो बैग ही था जिसमें उनकी पर्सनल डायरी थी।

थोड़ी ही देर में मैंने देखा कि कमरे के एक कोने में टेबल लैंप जला और विशेष जी उस किताब को ले कर कुर्सी पर बैठ ग‌ए। मेरे दिल की धड़कनें ये सोच कर थोड़ा तेज़ हो गईं थी कि आज वो अपनी डायरी में अपने प्लान का आख़िरी हिस्सा लिखने वाले हैं। यानी वो लिखने वाले हैं कि किस तरह वो मुझे निशांत सोलंकी के फ्लैट पर ले जाएंगे और फिर वहां पर मेरे साथ क्या क्या होगा? उनकी डायरी में मैंने जहां तक पढ़ा था वहां तक यही लिखा था उन्होंने कि वो निशांत सोलंकी की हत्या के जुर्म में मुझे फंसा देना चाहते हैं लेकिन ऐसा वो करेंगे कैसे ये उन्होंने नहीं लिखा था। मेरे मन में भी यही जानने की उत्सुकता थी कि आख़िर वो ऐसा किस तरह से करेंगे कि मैं निशांत सोलंकी की हत्या के जुर्म में फंस जाऊं और फिर अदालत में मुझे फांसी की या उम्र क़ैद की सज़ा हो जाएगी?

वक़्त बड़ी मुश्किल से गुज़रा। विशेष जी ने उस किताब को बैग में रख कर ताला लगाया और बैग को बेड के नीचे बहुत ही आहिस्ता से सरका दिया। उसके बाद टेबल लैंप बुझा कर वो बेड पर आ कर लेट ग‌ए। इसके पहले जहां वो मेरे सो जाने का इंतज़ार कर रहे थे वहीं अब मैं उनके सो जाने का इंतज़ार करने लगी थी। आधे घंटे बाद मुझे उनकी तरफ से हल्के खर्राटों की आवाज़ सुनाई देने लगी तो मैं समझ गई कि मेरा पति अब घोड़े बेंच कर चैन की नींद सो चुका है। कुछ देर मैंने और परखा और फिर बहुत ही आहिस्ता से बेड से उतर कर उनके बैग से उसी तरह वो डायरी निकाली जैसे पहले दो बार निकाल चुकी थी। डायरी ले कर मैं सीधा बाथरूम में घुस गई।

बाथरूम में आ कर मैंने जल्दी से मोबाइल की टोर्च जलाई और उसकी रौशनी में उस डायरी को खोल कर उसी जगह से आगे पढ़ना शुरू किया जहां पर विशेष जी ने उस रात डायरी में आगे लिखा था। मैं साँसें रोके पढ़ती ही चली जा रही थी। मेरे चेहरे पर हैरत के साथ साथ दुःख तक़लीफ के भाव भी उभरते जा रहे थे।

डायरी में मैंने उनका लिखा हुआ बाकी सब कुछ तो पढ़ लिया लेकिन मुझे ये देख कर बहुत ज़्यादा दुःख हुआ कि कहीं पर भी उन्होंने ये नहीं लिखा था कि मेरे प्रति उनके दिल में ज़रा से भी जज़्बात थे। एक मैं थी कि उनका प्यार देख कर ख़ुशी से बावली हो गई थी और एक वो थे कि पत्थर के पत्थर ही बने रहे। दिलो दिमाग़ में आग सी सुलग उठी थी। एक ऐसा तूफ़ान उठ खड़ा हुआ था जो अब मेरे रोकने पर भी रुकने वाला नहीं था। जिसने मुझे ऐसा रंग रूप दिया था उसको याद कर के एक बार फिर उससे कहा कि मेरी इतनी इबादत करने के बावजूद तुमने मेरे पति के दिल में मेरे प्रति प्रेम के जज़्बात पैदा नहीं किए। मेरे जज़्बात जैसे बगावत करने पर उतारू हो गए थे। गुस्सा नफ़रत और घृणा इस क़दर भर गई थी कि अब बस यही लगने लगा था कि सब कुछ तहस नहस कर दूं।

अपने पति की डायरी को चुप चाप बैग में डाल कर उसे बेड के नीचे रख दिया और फिर बेड पर आ कर लेट गई। ह्रदय जल रहा था, रूह विलाप कर रही थी और आँखों से गर्म नीर बह रहा था जो किसी तेज़ाब से कम नहीं था। ऐसी हालत में भला मुझे नींद कैसे आ सकती थी इस लिए सारी रात अपने और अपने जीवन के बारे में सोचती रही। आख़िर में मैंने एक ऐसा फैसला किया जिसके बारे में उसके पहले मैं खुद भी कभी कल्पना नहीं कर सकती थी। जिस इंसान के लिए मैंने अपना मायका तक त्याग दिया था और ये सोच कर साढ़े चार सालों से अपने सास ससुर की सेवा करती रही थी कि शायद एक दिन उस इंसान को मुझ में मेरी कुरूपता के अलावा भी कुछ दिख जाए और वो मुझे अपना ले, लेकिन वो इंसान तो हमेशा पत्थर दिल ही बना रहा। अगर वो उसी तरह सारी ज़िन्दगी भी पत्थर दिल बना रहता तो मुझे इतना दुःख न होता लेकिन उसने झूठे प्यार का दिखावा कर के मुझे छला और मेरे जज़्बातों के साथ खेला। इतना ही नहीं बल्कि किसी पराए इंसान के साथ मेरा सम्बन्ध जोड़ कर मेरे चरित्र पर कीचड़ उछालने का भी सोच लिया। क्या ऐसे इंसान को इस सबके बावजूद इस दुनियां में जीने का हक़ हो सकता था? मेरी नज़र में तो हर्गिज़ नहीं, बल्कि उसे तो उसी के खोदे हुए उस गढ्ढे में गिरा कर दफ़न कर देना चाहिए था जो गड्ढा वो मेरे लिए खोद चुका था।

डायरी के अनुसार अगले दिन की रात वो दो ज़िन्दिगियों का फ़ैसला करने वाला था और इसके लिए वो क्या करने वाला था ये मैं उसकी डायरी के द्वारा जान चुकी थी। इस लिए मैंने भी मन ही मन सोच लिया था कि अब मुझे क्या करना है।

✧✧✧
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
49,239
65,985
304
दूसरे अध्याय का चौथा भाग
बहुत ही बेहतरीन महोदय,
कभी कभी इंसान खुद को बहुत चालाक समझ लेता है और सामने वाले को मूर्ख और बेवकूफ़, जिसके कारण वो एक दिन बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ जाता है। लेकिन यहां तो विशेष अति आत्मविश्वास का शिकार था। उसे लग रहा था कि उसने जो साजिश रची है वो बेतोड़ है उसका तोड़ किसी के पास नहीं है। उसने रूपा को गांव की साधारण लड़की समझा, उसे ये कभी नहीं लगा कि अपने शयनकक्ष में एक बहुत ही राज़ की बात लिखने से वो कभी भी रूपा द्वारा पकड़ा जा सकता है।।
रूपा के ऊपर क्या बीती विशेष की साजिश के बारे में जानकर ये तो उसके द्वारा की गई प्रतिक्रिया से ही समझ मे आता है। जिस इंसान को रूपा ने अपने मन मंदिर का देवता बनाया था वो वास्तव में उसके काबिल नहीं था। रूपा ने जो किया बिल्कुल ठीक किया। ऐसे इंसान की यही सज़ा है। लेकिन अब देखना ये है कि रूपा ने विशेष की साजिश को कैसे नाकाम करते हुए उसको उसके किए की सज़ा दी।।
 
10,458
48,881
258
अभी तक रूपा उन यादों को ही अपने मां को बता रही है जिसमें उसे विशेष की असलियत पता चली थी । मुझे लगा इस अपडेट में मालूम हो जायेगा कि किस तरह उसने दोनों कमीनों की राम नाम सत्य कर दी । शायद नेक्स्ट अपडेट में मालूम पड़ जाए !

रूपा ने अपनी नग्न तस्वीरें जानबूझ कर भेजी थी क्योंकि उसे पता चल गया था कि वो अजनबी और कोई नहीं बल्कि उसका पति ही था । खैर जो भी हो किसी भी विवाहिता लड़की के लिए यह बेहद ही मानसिक उत्पीड़न के समान हो सकता था । रूपा की मानसिकता को बखूबी समझा जा सकता है । बहुत ही कठीन घड़ी थी उसके लिए । ऐसे में या तो युवतियां सुसाइड कर लेती है या सामने वाले को जान से मार देती है । या आजीवन घुट घुट कर जीने के लिए मजबूर हो जाती है ।

बहुत बढ़िया अपडेट था शुभम भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
 
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