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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
अध्याय - 104
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"


अब आगे....


हवेली के अंदर आया तो देखा मां और भाभी निर्मला काकी के पास बैठी बातें कर रहीं थी। उनकी बातों का मुद्दा वही था जो आज चंद्रकांत के यहां घटित हुआ था। मेनका चाची नहीं थीं वहां पर। मेरे मन में ख़याल उभरा कि चलो कुछ देर चाची के पास बैठा जाए। वैसे भी उनके दोनों बेटे इस हवेली से ही नहीं बल्कि इस देश से ही बाहर थे। मैं ये सब सोच कर जैसे ही चाची के कमरे की तरफ बढ़ा तो मेरी नज़र रसोई से बाहर निकलती कुसुम पर पड़ गई। उसके हाथ में ट्रे था जिसमें चाय के कप रखे हुए थे।

"अरे! भैया आप आ गए?" मुझे देखते ही कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"बिल्कुल सही समय पर आए हैं आप? लीजिए आप भी चाय पी लीजिए।"

"वाह! क्या बात है।" मैंने खुशी से मुस्कुराते हुए कहा____"बहन हो तो मेरी लाडली कुसुम जैसी जिसे हर वक्त अपने इस भाई का ही ख़याल रहता है। ला दे, मुझे सच में इस वक्त चाय की ही ज़रूरत थी।"

मेरी बात सुन कर कुसुम मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और ट्रे लिए हाथों को मेरी तरफ बढ़ा दिया जिससे मैंने एक कप उठा लिया। मां, भाभी और निर्मला काकी भी हमारी बातें सुन कर मुस्कुरा उठीं थी। मुझे चाय देने के बाद कुसुम ने उन्हें भी दिया और फिर वो ट्रे ले कर अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगी तो मैंने उसे रोक लिया।

"अरे! तू बैठ कर चाय पी।" मैंने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा____"और ये ट्रे मुझे दे। मैं अपनी प्यारी चाची से मिलने ही जा रहा हूं। आज अपने हाथों से उन्हें चाय भी से दूंगा।"

मेरी बात सुन कर कुसुम ने पहले तो हैरानी से मेरी तरफ देखा और फिर खुशी से ट्रे मुझे पकड़ा दिया। मैं जानता था कि मेरे इस कार्य से बाकी सब भी हैरान हुए थे क्योंकि आज से पहले ऐसे काम मैंने कभी नहीं किए थे। जब मैं अपना कप उस ट्रे में रख कर ट्रे को ले कर जाने लगा तो मां ने पीछे से कहा____"कुसुम ज़रा आंगन में जा कर देख, सूरज कौन सी दिशा में डूबने वाला है आज?"

मां की ये बात सुन कर सब हंसने लगे। इधर मैं भी मुस्कुरा उठा था। ख़ैर कुछ ही देर में मैं ट्रे लिए चाची के कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच गया। दरवाज़ा हल्का खुला हुआ था लेकिन मैंने रुक कर बाहर से ही उन्हें आवाज़ लगाई तो अगले ही पल उनकी आवाज़ आई कि आ जाओ। मैं कमरे में दाखिल हुआ तो देखा चाची पलंग पर बैठने के बाद अपनी साड़ी सम्हालने में लगीं थी। मैंने जब उनके क़रीब पहुंच कर ट्रे को उनकी तरफ बढ़ाया तो वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगीं।

"क्या चाची आप भी मुझे ऐसे देखने लगीं?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं जानता हूं कि ऐसा काम मैंने कभी नहीं किया है लेकिन इसका मतलब ये थोड़ी ना है कि आगे भी कभी नहीं कर सकता।"

"अरे! मैं तो चाहती हूं कि मेरा बेटा हर रोज़ ऐसे ऐसे काम करे जिससे इस खानदान का नाम रोशन हो।" मेनका चाची ने ट्रे से अपना कप उठाते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"लेकिन जाने क्यों मुझे कुछ और ही समझ आ रहा है।"

"मैं कुछ समझा नहीं चाची।" मैं पलंग पर ही उनके बगल से बैठते हुए बोला____"आपको क्या समझ आ रहा है?"

"यही कि अभी से ऐसे काम करने का अभ्यास करने का सोच लिया है तुमने।" चाची ने अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा____"अब तो सबको पता है कि अगले साल तुम्हारा ब्याह होगा और इस हवेली में मेरी एक नई बहू आ जाएगी। सुना है आज कल के पति लोग अपनी बीवी की सेवा करने लगे हैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं चाची?" मैं उनकी बातों का मतलब समझते ही झेंप गया___"आप मेरे बारे में ऐसा सोचती हैं? आप तो जानती हैं कि आपका ये बेटा जोरू का गुलाम बनने वालों में से नहीं है।"

"अब ये तो अगले साल ही पता चलेगा वैभव बेटा।" चाची ने चाय का एक घूंघ पीने के बाद कहा____"प्रेम संबंध वाले ब्याह में ऐसा ही तो होता है। काश! हमारे ज़माने में भी ऐसा होता।"

"क्या बात करती हैं चाची।" मैंने इस बार चाची को छेड़ते हुए कहा____"चाचा जी के साथ आपका संबंध किसी प्रेमी प्रेमिका से कम थोड़े ना था। मैंने भी देखा था कि चाचा जी आपकी कितनी जी हुजूरी करते थे।"

"तो क्या उन्हें नहीं करना चाहिए था?" चाची ने हल्के से मुस्कुरा कहा____"हालाकि ज़्यादा कहां सुनते थे मेरी।"

"अरे! बिल्कुल करनी चाहिए थी उन्हें।" मैंने हाथ झटकते हुए कहा____"मेरी इतनी प्यारी और सुंदर चाची की जी हुजूरी करने से उनकी शान ही बढ़नी थी।"

"बस बस इतनी बातें मत बनाओ अब।" चाची ने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"और ये बताओ कि आज इतने दिनों बाद अपनी चाची से मिलने का ख़याल कैसे आया तुम्हें?"

"काम के चलते आज कल मुझे किसी से भी मिलने का समय नहीं मिल पाता।" मैंने खाली हो गए कप को ट्रे में रखते हुए कहा____"वरना मैं तो हर पल अपनी प्यारी सी चाची के पास ही बैठा रहूं। वैसे, आप इस वक्त लेटी क्यों थीं? आपकी तबीयत तो ठीक है ना चाची?"

"मेरी तबीयत ठीक है बेटा।" चाची ने कहा____"बस थोड़ा सिर दर्द कर रहा था इस लिए दीदी के पास से उठ कर यहां चली आई थी।"

"तो आपने सिर दर्द की कोई दवा ली या नहीं?" मैंने फिक्रमंदी से पूछा____"अगर ज़्यादा ही सिर दर्द हो रहा हो तो मुझे बताइए मैं वैद्य जी को ले आता हूं।"

"नहीं बेटा इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" चाची ने कहा____"असल में कल मैंने सिर के बाल धोए थे तो शायद उसी की वजह से शरद गरम हो गया है मुझे। दीदी ने दवा दी थी मुझे। उससे काफी राहत मिली है मुझे।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने राहत की सांस लेते हुए कहा____"अच्छा अब आप आराम कीजिए। मुझे भी अब खेतों की तरफ जाना है।"

"ठीक है बेटा।" चाची ने कहा____"सम्हल कर जाना और बच बचा के काम करना। जब से तुम अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने लगे हो तब से हम सब बहुत खुश हैं। ईश्वर करे अब से हमेशा ऐसा ही हो और तुम अपने कार्य से सबको खुश रखो।"

"कोशिश तो यही है चाची।" मैंने कहा____"और जब तक आप सबका आशीर्वाद मेरे साथ है तब तक सब अच्छा ही होगा। अच्छा अब आप आराम कीजिए। मैं निकलता हूं....।"

कहने के साथ ही मैं ट्रे ले कर चाची के कमरे से बाहर आ गया। ट्रे कुसुम को पकड़ा कर मैं हवेली से बाहर निकल गया। कुछ ही देर में मैं अपनी मोटर साइकिल से खेतों की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। चंद्रकांत के घर के पास पहुंचा तो देखा अभी भी वहां पर काफी लोग मौजूद थे किंतु मैं रुका नहीं बल्कि सीधा निकल गया। चंद्रकांत का अपनी ही बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान कर उसकी हत्या करना मेरे लिए जैसे पहेली सा बन गया था। वहीं दूसरी तरफ मैं ये भी सोच रहा था कि वो कौन होगा जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था? मेरे मन में ख़याल उभरा कि अगर मैंने वो हरकत न की होती तो सबके साथ साथ मुझे भी इस मामले की सच्चाई पता चल गई होती। ख़ैर अभी भले ही मुझे पता नहीं है लेकिन बाद में तो मैं पता कर ही लूंगा। यही सोच कर मैंने मोटर साईकिल की रफ़्तार तेज़ कर दी।

✮✮✮✮

शाम को वापस जब हवेली पहुंचा तो मैं ये सोच कर थोड़ा डरा हुआ था कि कहीं पिता जी आज मुझ पर गुस्सा न करें। चंद्रकांत के घर में आज मैंने सबके सामने उसका गिरेबान पकड़ कर उसको उल्टा सीधा बोला था जिसके चलते पिता जी बेहद नाराज़ हुए थे मुझसे। उस समय तो उन्होंने मुझे ज़्यादा कुछ नहीं कहा था किंतु मैं जानता था कि हवेली में उनसे सामना होने पर निश्चित ही मुझे उनकी तगड़ी डांट सुनने को मिलेगी। ख़ैर इसी संदर्भ में कई तरह की बातें सोचते हुए मैं हवेली के अंदर पहुंच गया। बैठक में नए मुंशी के साथ पिता जी बैठे चाय पी रहे थे। मैं चुपचाप अंदर की तरफ निकल गया। हालाकि मैंने ये सोचा था कि पिता जी की जैसे ही मुझ पर नज़र पड़ेगी तो वो मुझे आवाज़ दे कर बुला लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बहरहाल, मैं जानता था कि ये कुछ देर के लिए ही राहत वाली बात थी।

गुसलखाने में हाथ मुंह धो कर तथा अपने कमरे में दूसरे साफ़ कपड़े पहन कर मैं नीचे आ कर मां के पास बैठ गया। मैंने देखा मां और चाची के पास इस वक्त निर्मला काकी नहीं थी। भाभी, कुसुम और निर्मला की बेटी कजरी भी नहीं दिख रही थी। इधर जैसे ही मैं मां और चाची के पास आ के बैठा तो चाची ने कुसुम को ये कहते हुए आवाज़ दीं कि अपने प्यारे भैया के लिए चाय ले आ। जल्दी ही रसोई से कुसुम की आवाज़ आई।

"आज दोपहर में तू ऐसा क्या कर के आया था चंद्रकांत के घर से?" कुसुम जब मुझे चाय दे कर चली गई तो सहसा मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"जिसके चलते हंगामा मच गया था वहां?"

"अरे! ऐसी कोई बात नहीं हुई थी मां।" मैं पहले तो मन ही मन चौंका फिर लापरवाही से बोला____"पर आपको ये किसने बताया?"

"तेरे पिता जी ने।" मां ने मुझे सख़्त नज़रों से घूरते हुए कहा____"बोल रहे थे समझा देना उसे। मुझे तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। मेरे पूछने पर ही उन्होंने तेरी सारी करतूतें बताई थी। आख़िर क्यों ऐसे ऊटपटांग काम करता है तू?"

"मैं मानता हूं मां कि मुझे चंद्रकांत से उस लहजे में बात नहीं करनी चाहिए थी और ना ही उसको गाली देना चाहिए था।" मैंने कहा____"लेकिन उसे भी तो सोचना चाहिए था कि सबके सामने मेरे पिता जी पर उंगली नहीं करना चाहिए था उसे। आपको पता है, उस आदमी को आज भी अपनी ग़लतियों का एहसास नहीं है और हर बात पर हर बार पिता जी पर तंज कसता है। काफी दिनों से बर्दास्त कर रहा था मैं उसे। जब उसने अति ही कर दी तो मेरा भी सब्र टूट गया।"

"हां ठीक है लेकिन तू उसको साधारण तरीके से भी तो समझा सकता था।" मां ने कहा____"इस तरह सरे आम उसको गाली दे कर जलील करने की क्या ज़रूरत थी तुझे?"

"लातों वाले भूत साधारण भाषा में कही गई बातें नहीं समझते मां।" मैंने कहा____"उनको ऐसी ही भाषा समझ आती है और वो भी फ़ौरन। बाकी एक बात आप भी जान लीजिए कि अगर कोई भी मेरे माता पिता अथवा इस हवेली के किसी भी सदस्य के बारे में इस तरह का तंज कसेगा तो उसके साथ मैं इससे भी ज़्यादा बुरा सुलूक करूंगा। हां, जहां मैं ग़लत हूं तो उसके लिए खुशी से सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं।"

"वैभव ने बिल्कुल ठीक किया है दीदी।" मेनका चाची ने मां से कहा____"उस नीच और नमकहराम इंसान के साथ यही सुलूक करना चाहिए था। अपने घर की औरतों पर तो बस न चला उसका और दूसरों पर खीचड़ उछालता फिरता है। उसने हमारे घर के लोगों की हत्या कर के हमें दुख दिया है तो उसके दुष्कर्मों की सज़ा उसे भी मिल गई। ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं। एक ही बेटा था ना उसके? देख लीजिए उसकी ही बीवी ने मार डाला अपने मरद को और चंद्रकांत का वंश ही नाश कर दिया। इसी को कहते हैं जैसी करनी वैसी भरनी।"

"ये आप क्या कह रही हैं चाची?" मैं हैरत से आंखें फाड़ कर एकदम से बोल पड़ा____"चंद्रकांत के बेटे की रजनी ने हत्या की थी?"

"मुझे भी दीदी से ही पता चला है वैभव।" चाची ने कहा____"और दीदी को जेठ जी से।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" मैं एकदम से स्तब्ध रह गया था, फिर बोला____"लेकिन रजनी ने ऐसा क्यों किया होगा? अपने ही पति की हत्या कैसे कर दी होगी उसने?"

"तेरे पिता जी बता रहे थे कि रजनी का किसी गैर मर्द से संबंध था।" मां ने कहा____"और वो उस गैर मर्द के साथ भाग जाना चाहती थी लेकिन दुर्भाग्य से उसके पति ने पकड़ लिया। रघुवीर और उस दूसरे व्यक्ति के बीच हाथा पाई होने लगी थी। रजनी इस सबसे डर गई थी। उसे लगा कहीं इस सबके चलते लोगों को पता न चल जाए और वो बदनाम न हो जाए। जब उसे कुछ न सूझा तो उसने कुल्हाड़ी से अपने पति को मार डाला। उसे लगा था कि ऐसा कर के वो यहां से भाग कर अपने आशिक के साथ हमेशा के लिए चली जाएगी मगर ऐसा नहीं हुआ। उसके आशिक ने जब देखा कि रजनी ने अपने ही पति को मार डाला है तो वो डर के मारे भाग गया। अपने आशिक को इस तरह भाग जाते देख रजनी को मानो लकवा ही मार गया था। जिसके भरोसे उसने अपने ही पति को मार डाला उसी ने उसे धोखा दे दिया। रजनी ने सोचा अब ऐसे में क्या करे वो? फिर उसके दिमाग में रूपचंद्र का ख़याल आया। उसके एक दिन पहले शाम को रूपचंद्र ने उसका रास्ता रोका था ना इस लिए रजनी ने रघुवीर की हत्या में उसे ही फंसा देने का सोच लिया। उसके बाद दूसरे दिन ऐसा ही हुआ।"

"ये तो गज़ब ही हो गया।" मैं आश्चर्यचकित हो कर बोल पड़ा____"मैं सोच भी नहीं सकता था कि रजनी ऐसा भी कर सकती है लेकिन ये कैसे पता चला कि रजनी ने ही रघुवीर की हत्या की थी? क्या चंद्रकांत ने खुद इस बात का पता लगा लिया था?"

"नहीं, ये सब बातें चंद्रकांत को किसी ने बताई थी।" मां ने कहा।
"क...किसने?" मैंने चकित भाव से पूछा____"इतनी बड़ी बात भला किसने बताई चंद्रकांत को?"

"सफ़ेदपोश ने।" मां ने ये कहा तो मैं बुरी तरह उछल पड़ा, मेरे हलक से अटकते हुए अल्फाज़ निकले____"स...स..फे..द...पोश ने????"

"हां।" मां ने बड़े आराम से कहा____"पंचायत में सबके सामने चंद्रकांत ने सबको यही बताया।"

सच तो ये था कि मैं चाय पीना भूल गया था। हलाकि कप में बस थोड़ी सी ही चाय रह गई थी लेकिन मां ने बातें ही ऐसी बताई थीं कि उसके बाद बाकी की चाय पीने का ख़याल ही नहीं आया था मुझे। मेरे ज़हन में सफ़ेदपोश ही उछल कूद मचाने लगा था। अगर मां की बातें सच थीं तो ये वाकई में बड़ी ही हैरतंगेज बात थी लेकिन जाने क्यों मुझे ऐसा भी महसूस हो रहा था कि इसमें अभी बहुत कुछ बाकी है। मैं समझ गया कि सारी वास्तविकता पिता जी से ही पता चलेगी। ये सोच कर मैंने फ़ौरन ही कप को एक तरफ रखा और एक झटके से उठ कर बाहर बैठक की तरफ बढ़ गया।

✮✮✮✮

"यकीन नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है।" बैठक में पिता जी की सारी बातें सुनने के बाद मैंने बेयकीनी से कहा____"मुझे तो ऐसा लगता है कि चंद्रकांत कोई बहुत गहरा षडयंत्र रच रहा है। हम सबसे बदला लेने के लिए वो इस हद तक गिर गया कि अपनी ही बहू को मार डाला।"

"नहीं तुम ग़लत समझ रहे हो।" पिता जी ने फ़ौरन ही इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"माना कि चंद्रकांत के अंदर हम सबके प्रति नफ़रत है और वो हमारा बहुत कुछ अहित चाहता है लेकिन इसके लिए वो अपने ही बेटे अथवा बहू की हत्या नहीं कर सकता। वो कोई छोटा सा अबोध बालक नहीं है जिसे इतना भी ज्ञान नहीं है कि ऐसे में उसका खुद का कितना बड़ा नुकसान हो जाएगा। हमारा ख़याल है कि उसकी बातों में कहीं न कहीं सच्चाई ज़रूर है।"

"किस बात की सच्चाई?" मैंने न समझने वाले भाव से पूछा____"क्या आप उसकी बातों पर यकीन कर के ये मान रहे हैं कि सफ़ेदपोश ने ही उसे सब कुछ बताया और उसी के चलते उसने अपनी बहू को मार डाला?"

"बिल्कुल।" पिता जी ने मजबूत लहजे में कहा____"अपने बेटे की हत्या हो जाने से वो ऐसी मानसिकता में पहुंच गया था कि वो हर वक्त अपने बेटे के हत्यारे के बारे में ही सोचता रहा होगा और जब सफ़ेदपोश ने उसे हत्यारे का नाम व हत्या करने का कारण बताया तो उसने अपने बेटे की हत्या का बदला ले लिया। सफ़ेदपोश ने उसको रजनी की हत्यारिन होने की जो कहानी बताई उस पर उसने इस लिए भी विश्वास कर लिया क्योंकि वो खुद अपनी बहू के चरित्र के बारे में पहले से अच्छी तरह जानता था। उसे पता था कि उसकी बहू ही नहीं बल्कि उसकी खुद ही पत्नी भी चरित्रहीन थीं। कहने का मतलब ये कि सफ़ेदपोश की बातों पर यकीन न करने की उसके पास कोई भी वजह नहीं थी और इसी लिए उसने अपनी बहू की हत्या करने में वक्त बर्बाद नहीं किया।"

"हो सकता है कि ऐसा ही हो पिता जी।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन इसके बावजूद इस मामले में मुझे कुछ और भी ऐसा महसूस हो रहा है जो फिलहाल अभी समझ में नहीं आ रहा। वैसे सोचने वाली बात है कि इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और जब उसका पता चला तो ऐसे मामले के चलते। मुझे समझ नहीं आ रहा कि सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे का नाम बता कर किस मकसद से उपकार किया है? जबकि आप भी जानते हैं कि वो सिर्फ मेरी जान लेने पर आमादा था। एक बात और, उस समय पंचायत में आप चंद्रकांत और गौरी शंकर दोनों से ही ये पूछ रहे थे कि सफ़ेदपोश से उन दोनों का कोई संबंध है या नहीं अथवा वो सफ़ेदपोश को जानते हैं या नहीं....उस समय दोनों ने ही सफ़ेदपोश के बारे में अपनी अनभिज्ञता ही ज़ाहिर की थी। इस मामले के बाद हम ये भी नहीं कह सकते कि चंद्रकांत पहले से ही सफ़ेदपोश के बारे में जानता रहा होगा अथवा वो उससे मिला हुआ रहा होगा। क्योंकि अगर वो मिला हुआ होता तो ना तो उसके बेटे की हत्या हुई होती और ना ही उसे अपनी बहू की हत्या करनी पड़ती। ऐसे में सवाल उठता है कि चंद्रकांत के बेटे की हत्या के बाद सफ़ेदपोश का इस तरह से सामने आना आख़िर क्या साबित करता है?"

"तुम्हारी तरह हमारे भी ज़हन में इस तरह के विचार उभर चुके हैं।" पिता जी ने सहसा गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन इस बारे में हम अपनी पुख़्ता राय कल ही बनाएंगे। ऐसा इस लिए क्योंकि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा था और अपने वादे के अनुसार चंद्रकांत को उसके कहे अनुसार कोई काम करना है। अब देखना ये है कि आज रात सफ़ेदपोश चंद्रकांत से मिलने आता है या नहीं। उसके आने अथवा न आने से ही हम किसी ठोस नतीजे पर पहुंचेंगे।"

"किस तरह के नतीजे की बात कर रहे हैं आप?" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा।

"तुम्हारे इस सवाल का जवाब अभी नहीं कल देंगे हम।" पिता जी ने निर्णायक भाव से कहा____"फिलहाल तुम जा सकते हो...और हां, आज जो तुमने चंद्रकांत के घर में उसके साथ हरकत की थी वैसी हरकत तुम्हारे द्वारा अब दुबारा न हो। अब तुम बच्चे नहीं रहे, बड़े हो गए हो इस लिए विवेक के साथ साथ सहनशीलता भी रखना सीखो।"

पिता जी की बात सुन कर मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और फिर उठ कर बैठक से बाहर आ गया। रात का भोजन करने में अभी काफी समय था इस लिए मैं अपने कमरे में आराम करने का सोचा।

सीढ़ियों से ऊपर आया तो देखा रागिनी भाभी अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर के मेरी तरफ ही आ रहीं थी। बिजली नहीं थी किंतु लालटेन का धीमा प्रकाश था जिसमें उनका चेहरा साफ नज़र आया मुझे।

"क्या बात है।" मुझ पर नज़र पड़ते ही भाभी ने मुझे छेड़ा____"आज कल बड़ी तेज़ रफ़्तार में रहते हो देवर जी। आख़िर किस बात की इतनी जल्दी है? वैसे अगला साल आने में तो अभी बहुत समय बाकी है।"

"क्या भाभी आप तो जब देखो तभी मुझे छेड़ने लग जाती हैं।" मैंने हौले से झेंप कर कहा।

"अब तुमने मुझे छेड़ने की खुली छूट दे दी है तो उसका फ़ायदा तो उठाऊंगी ही मैं।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम्हें अगर कोई एतराज़ है तो बोल दो, नहीं छेडूंगी मैं।"

"मुझे कोई एतराज़ नहीं है।" मैंने कहा____"बल्कि मुझे भी अच्छा लगता है कि इसी बहाने आपको खुशी तो मिलती है।"

"हम्म्म।" भाभी ने कहा____"अच्छा तुम अपनी अनुराधा से मिले या नहीं?"

"कहां मिला भाभी।" मैंने एकदम से ठंडी आह भरते हुए कहा____"आप तो जानती हैं मुझ किसान आदमी के पास समय ही नहीं है किसी से मिलने मिलाने का।"

"अच्छा, किसान आदमी?" भाभी ने एकदम से आंखें फैला कर कहा____"तभी एक किसान की लड़की से प्रेम कर बैठे हो। वाह! क्या जोड़ी बनाई है तुमने...मानना पड़ेगा।"

साला, ये तो उल्टा हो गया। अपनी समझ में मैंने भाभी को छेड़ा था लेकिन उल्टा उन्होंने ऐसी बात कह दी कि मैं पलक झपकते ही निरुत्तर हो गया और गड़बड़ा भी गया। फ़ौरन कुछ कहते ना बना मुझसे। उधर भाभी मेरी हालत देख खिलखिला कर हंसने लगीं।

"माना कि तुम हर जगह मशहूर होगे।" भाभी ने सहसा बड़े गर्व से मुस्कुराते हुए कहा____"मगर ये मत भूलो कि मैं भी कम नहीं हूं। तुम्हारी भाभी हूं मैं और इस हवेली की बहू हूं।"

"बिल्कुल हैं भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"आपको ये बताने की ज़रूरत नहीं है। दूसरी बात, मेरी नज़र में भी आपकी अहमियत बहुत ख़ास है और आपका मुकाम बहुत ऊंचा है।"

मेरी ये बात सुन कर भाभी इस बार कुछ बोलीं नहीं बल्कि एकटक मेरी तरफ देखने लगीं। उनकी आंखों में मेरे लिए स्नेह दिखा। सहसा वो आगे बढ़ीं और उसी स्नेह के साथ मेरे दाएं गाल को मुस्कुराते हुए हल्के से सहलाया।

"तुम्हारा मुकाम भी मेरी नज़र में बहुत ऊंचा है वैभव।" फिर उन्होंने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"और मेरी ख़्वाहिश है कि मेरा देवर एक अच्छे इंसान के रूप में हर किसी के दिल पर राज करे।"

"आपके आशीर्वाद से ऐसा ज़रूर होगा भाभी।" मैंने कहा____"मुझे यकीन है कि आपके रहते मैं कभी दुबारा ग़लत रास्ते पर नहीं जा सकूंगा।"

"ऐसा तो तुम मेरा दिल रखने के लिए कह रहे हो।" भाभी ने सहसा शरारत से मुस्कुराते हुए कहा____"वरना क्या मैं जानती नहीं हूं कि सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा तुम्हें किसके द्वारा मिली है, हां?"

"बेशक उसने मेरे चरित्र को बदला भाभी और मुझे शिद्दत से एहसास हुआ कि अब तक मैने जो भी किया था वो ग़लत था।" मैंने कहा____"लेकिन सही रास्ते पर चलने के लिए अगर आपने शुरुआत से ही बार बार मुझे ज़ोर नहीं दिया होता तो यकीन मानिए आज मैं इस तरह इस सफ़र पर नहीं चल रहा होता। ये सब आपके ही ज़ोर देने और मार्गदर्शन से हो सका है। तभी तो मैं ये कहता हूं कि आपका मुकाम बहुत ऊंचा है।"

"चलो अब ये बातें मत बनाओ तुम।" भाभी ने मुझे घूरते हुए कहा____"मेरी होने वाली देवरानी के उपकारों को नज़रंदाज़ करोगे तो मार खाओगे मुझसे। अच्छा अब जाओ आराम करो। कुछ देर में खाना बन जाएगा तो खा पी लेना और हां कल अपनी अनुराधा से भी मिल लेना। बेचारी अपने दिल की बातें तुमसे कहने के लिए तड़प रही है।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" मैं एकदम से मुस्कुरा उठा, बोला____"अगर आप इतना ही ज़ोर दे रहीं हैं तो मिल लूंगा उससे।"

"अच्छा, जैसे अभी मैं न कहती तो तुम उससे मिलते ही नहीं, बड़े आए मिल लूंगा उससे कहने वाले।" भाभी ने पुनः घूरते हुए कहा____"एक और बात, थोड़ा सभ्य इंसानों जैसा व्यवहार करना उससे। अभी बहुत नादान और नासमझ है वो। ज़्यादा सताना नहीं उसे वरना तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा, सोच लेना।"

"अब ये क्या बात हुई?" मैंने हैरानी से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"आप मेरी तरफ हैं या उसकी तरफ?"

"फिलहाल तो मैं तुम दोनों की ही तरफ हूं।" भाभी ने कहा____"क्योंकि तुम्हें भी पता है कि मेरे बिना तुम दोनों की नैया पार नहीं लगेगी। इस लिए ज़्यादा उड़ने की कोशिश मत करना। अब जाओ तुम, मैं भी नीचे जा रही हूं।"

कहने के साथ ही भाभी मेरी कोई बात सुने बिना ही सीढ़ियों पर उतरती चली गईं। उनके जाने के बाद मैं भी उनकी बातों के बारे में सोचते हुए और मुस्कुराते हुए अपने कमरे की तरफ चला गया।


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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
Nice update

Nice update bro, Chandrakant se jab milkar safed nakabposh ja raha tha uska picha koi log kar rahe the.
safed nakabposh ne picha karne Wale par goli bhi chahiye aur uss revolver ki aavaj Kai log suna hai per safed nakabposh jangal me bhaagne me kamiyab hogaya.
Kya iss kand ki dada thakur, mahender singh yah ghav waalon ko nahi pata.

Waah bhai update bahot mast tha. Interesting move huaa hain kahani ka. Maja aayga bahot please update jaldi dena dost 👌👌👌👌👍👍👍👍👍👌👌👌

जैसा बोला था, सफेदपोश चंद्रकांत की मनोदशा का फायदा उठा गया। लेकिन उसे रजनी को मार कर मिला क्या आखिर?

खैर देखते हैं कि रात को सफेदपोश आएगा या नही?

Bahut khoob bhai

वैसे रजनी पर उसके हसबैंड रघुवीर के कत्ल का शक मुझे भी था लेकिन जब तक कोई ठोस सबूत न मिले तब तक वो बेकसूर ही मानी जाएगी।
मुंशी जी ने अपने कारनामों से फिर से इस गांव के लोगों को बता दिया कि वो अव्वल नम्बर के बेवकूफ , जाहिल और बेगैरत इंसान है । अपनी नामर्दी तो पहले ही साबित कर थी इन्होने।
वगैर पुख्ता सबूत के , सिर्फ एक व्यक्ति के कहने मात्र से , कौन ऐसी हरकत करता है ! अकल के कोढू , दिमाग से पैदल , आंख - कान का बिल्कुल कच्चा आदमी है यह।

सिर्फ एक शर्त पर इन्हे बख्श दिया जा सकता है कि रजनी ने अपनी मृत्यु से पहले अपने गुनाह की स्वीकृति की हो ।
उसने मुंशी से सबकुछ सत्य कहा हो कि वो किसी के प्रेम मे पागल होकर घर से भागना चाहती थी और रघुवीर के बीच मे आ जाने पर उसने उसके गर्दन पर कुल्हाड़ी चला दी थी।
मुंशी जी से यह पूछताछ दादा ठाकुर को अवश्य करना चाहिए और यह भी पूछना चाहिए कि रजनी के प्रेमी का नाम क्या था ?
अगर रजनी ने अपने गुनाह स्वीकार किए होंगे तब मुंशी का उत्तेजित होना बिल्कुल जायज था । और अगर सिर्फ सफेदपोश के कहने पर वगैर पूछताछ किए रजनी की हत्या कर दी होगी तब यह सरासर गलत काम होगा।

बहुत खुबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।

Gazab ki update he TheBlackBlood Shubham Bhai,

Safedposh ne badi chalaki se chanderkant ko apna mohra banakar rajni ki hatya karwa di..............lekin rajni ki hatya se use kya fayda hoga????

Vaibhav ko apne gusse par kabu karna sikhna padega.............aaj jis tarah se usne chanderkant ki gardan pakdi...........mujhe to purana vaibhav wapis aata hua laga

Agle update ki pratiksha rahegi bhai

वाह उस्ताद वाह क्या खुबसुरत और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
दादा ठाकुर और सुगंधादेवी के बीच में जो वार्तालाप हो रहा है वो बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण हैं जो आगे जा कर कहानी की रुपरेखा तय करेगी साथ ही साथ कुलगुरू का कथन भी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं खैर देखते हैं आगे क्या होता है

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया

Safedposh ne rajni ke bare me munsi ko jo bataya wo sahi tha ye galat ye to kahani me aage pata chalega.munsi ne apni bahu ko marne ke baad khud ko is katal se bachaya kuin nhi kuin khud hi kabul kar liya ki usne hi apni bahu ko mara hai jabki abhi bhi uske dil me dhakur family ke liye nafrat hai aur wo abhi bhi badla lena chahta hai ...dekhte Hain aage kya kya raz khulte hain kahani me

Superb se bhi upper update luvd it to gud brother

बहुत ही सुंदर लाजवाब और मनभावन अपडेट है भाई मजा आ गया
ये साला सफेदपोश फिर से प्रगट हो गया और उसके फैलाये जाल में मुंशी चंद्रकांत में फस गया
ये सफेदपोश ने चंद्रकांत को कौनसा नाम बताया रघुवीर के कातिल का और ये सफेदपोश ने किसको गोली मारी देखते हैं आगे

बहुत ही जबरदस्त और धमाकेदार अपडेट है भाई मजा आ गया
आखिर सफेदपोश ने बडी ही शातिरतासे चंद्रकांत के हाथों अपनी बहु रजनी का बडी ही बेरहमी से उसकी हत्या करवा दी खैर देखते हैं आगे क्या होता है

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया

romanchak update .ye to ek aur naya kaand saamne aa gaya ki munshi ne apne bahu ko maut ke ghat utar diya wo bhi kisi anjan shaks ke kehne par ki rajni ne hi raghuveer ka khoon kiya hai ..
waise baat to sahi kahi thakur sahab ne ki us farishte ne kuch to aisa sabut diya hoga jisse chandrakant ko yakeen ho gaya ki rajni ne hi maara hai raghuveer ko .

aur ek shocking khabar ki rajni ka affair chal raha tha ,aur wo apne aashiq ke saath bhagne wali thi par tabhi raghuveer ne dekh liya ,aur hathapai karne laga aashiq ke saath .
rajni ne maar to diya pati ko par uska aashiq bhag nikla ,rajni ko dilasa dena bhi sahi nahi samjha
..agar safedposh ne batayi baate sach hai to yahi soch aayegi dimag me .
apne baap par tanj kasne ko gussa aa gaya vaibhab ko par sabke saamne tamasha bhi bana diya .
gyanendr ne sahi kaha ki usko apne gusse par kabu karna chahiye .

Wo sab to thik h yaar but raat me goli chali safedposh ne ek aadmi ko goli bhi mara.....Kai logo ne uska pichha bhi kiya ....

Magar update me iska jikr nahi aaya
Jisko goli lagi uska pata nahi chala
Kisi ne dada thakur ko kuch bataya hi nahi.

Bohot badiya update

Amazing update

Lazwaab update

Shandar update

सफेद नकाबपोश ने मुंशी की मनोदशा का फायदा उठाकर उसकी बहु रजनी को मरवा दिया चंद्रकांत ने ठाकुर साहब को सफेद नकाबपोश के बारे में बता दिया है और ये भी बताया कि ये सब उसने ही बताया है मुंशी की बातो की सच्चाई जानने के लिए रजनी के आशिक का पता लगाना चाहिए हो सकता है वह भी सफेद नकाबपोश का ही मोहरा हों अब से पहले तो मुंशी को अपने किए पर पछतावा नहीं हुआ था लेकिन अब हो गया है क्या ये नाटक है या सच है
अब देखते हैं क्या रात को सफेद नकाबपोश मुंशी से मिलने आता है या नहीं???
New update posted... :declare:
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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Chandrakant ne itni aasani se bata Diya safed posh ke bare isme to locha lag raha h shayad safedposh aaj raat apne jagah pe kisi aur ka na bhej de...
 

Sanju@

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अध्याय - 104
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"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"


अब आगे....


हवेली के अंदर आया तो देखा मां और भाभी निर्मला काकी के पास बैठी बातें कर रहीं थी। उनकी बातों का मुद्दा वही था जो आज चंद्रकांत के यहां घटित हुआ था। मेनका चाची नहीं थीं वहां पर। मेरे मन में ख़याल उभरा कि चलो कुछ देर चाची के पास बैठा जाए। वैसे भी उनके दोनों बेटे इस हवेली से ही नहीं बल्कि इस देश से ही बाहर थे। मैं ये सब सोच कर जैसे ही चाची के कमरे की तरफ बढ़ा तो मेरी नज़र रसोई से बाहर निकलती कुसुम पर पड़ गई। उसके हाथ में ट्रे था जिसमें चाय के कप रखे हुए थे।

"अरे! भैया आप आ गए?" मुझे देखते ही कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"बिल्कुल सही समय पर आए हैं आप? लीजिए आप भी चाय पी लीजिए।"

"वाह! क्या बात है।" मैंने खुशी से मुस्कुराते हुए कहा____"बहन हो तो मेरी लाडली कुसुम जैसी जिसे हर वक्त अपने इस भाई का ही ख़याल रहता है। ला दे, मुझे सच में इस वक्त चाय की ही ज़रूरत थी।"

मेरी बात सुन कर कुसुम मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और ट्रे लिए हाथों को मेरी तरफ बढ़ा दिया जिससे मैंने एक कप उठा लिया। मां, भाभी और निर्मला काकी भी हमारी बातें सुन कर मुस्कुरा उठीं थी। मुझे चाय देने के बाद कुसुम ने उन्हें भी दिया और फिर वो ट्रे ले कर अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगी तो मैंने उसे रोक लिया।

"अरे! तू बैठ कर चाय पी।" मैंने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा____"और ये ट्रे मुझे दे। मैं अपनी प्यारी चाची से मिलने ही जा रहा हूं। आज अपने हाथों से उन्हें चाय भी से दूंगा।"

मेरी बात सुन कर कुसुम ने पहले तो हैरानी से मेरी तरफ देखा और फिर खुशी से ट्रे मुझे पकड़ा दिया। मैं जानता था कि मेरे इस कार्य से बाकी सब भी हैरान हुए थे क्योंकि आज से पहले ऐसे काम मैंने कभी नहीं किए थे। जब मैं अपना कप उस ट्रे में रख कर ट्रे को ले कर जाने लगा तो मां ने पीछे से कहा____"कुसुम ज़रा आंगन में जा कर देख, सूरज कौन सी दिशा में डूबने वाला है आज?"

मां की ये बात सुन कर सब हंसने लगे। इधर मैं भी मुस्कुरा उठा था। ख़ैर कुछ ही देर में मैं ट्रे लिए चाची के कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच गया। दरवाज़ा हल्का खुला हुआ था लेकिन मैंने रुक कर बाहर से ही उन्हें आवाज़ लगाई तो अगले ही पल उनकी आवाज़ आई कि आ जाओ। मैं कमरे में दाखिल हुआ तो देखा चाची पलंग पर बैठने के बाद अपनी साड़ी सम्हालने में लगीं थी। मैंने जब उनके क़रीब पहुंच कर ट्रे को उनकी तरफ बढ़ाया तो वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगीं।

"क्या चाची आप भी मुझे ऐसे देखने लगीं?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं जानता हूं कि ऐसा काम मैंने कभी नहीं किया है लेकिन इसका मतलब ये थोड़ी ना है कि आगे भी कभी नहीं कर सकता।"

"अरे! मैं तो चाहती हूं कि मेरा बेटा हर रोज़ ऐसे ऐसे काम करे जिससे इस खानदान का नाम रोशन हो।" मेनका चाची ने ट्रे से अपना कप उठाते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"लेकिन जाने क्यों मुझे कुछ और ही समझ आ रहा है।"

"मैं कुछ समझा नहीं चाची।" मैं पलंग पर ही उनके बगल से बैठते हुए बोला____"आपको क्या समझ आ रहा है?"

"यही कि अभी से ऐसे काम करने का अभ्यास करने का सोच लिया है तुमने।" चाची ने अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा____"अब तो सबको पता है कि अगले साल तुम्हारा ब्याह होगा और इस हवेली में मेरी एक नई बहू आ जाएगी। सुना है आज कल के पति लोग अपनी बीवी की सेवा करने लगे हैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं चाची?" मैं उनकी बातों का मतलब समझते ही झेंप गया___"आप मेरे बारे में ऐसा सोचती हैं? आप तो जानती हैं कि आपका ये बेटा जोरू का गुलाम बनने वालों में से नहीं है।"

"अब ये तो अगले साल ही पता चलेगा वैभव बेटा।" चाची ने चाय का एक घूंघ पीने के बाद कहा____"प्रेम संबंध वाले ब्याह में ऐसा ही तो होता है। काश! हमारे ज़माने में भी ऐसा होता।"

"क्या बात करती हैं चाची।" मैंने इस बार चाची को छेड़ते हुए कहा____"चाचा जी के साथ आपका संबंध किसी प्रेमी प्रेमिका से कम थोड़े ना था। मैंने भी देखा था कि चाचा जी आपकी कितनी जी हुजूरी करते थे।"

"तो क्या उन्हें नहीं करना चाहिए था?" चाची ने हल्के से मुस्कुरा कहा____"हालाकि ज़्यादा कहां सुनते थे मेरी।"

"अरे! बिल्कुल करनी चाहिए थी उन्हें।" मैंने हाथ झटकते हुए कहा____"मेरी इतनी प्यारी और सुंदर चाची की जी हुजूरी करने से उनकी शान ही बढ़नी थी।"

"बस बस इतनी बातें मत बनाओ अब।" चाची ने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"और ये बताओ कि आज इतने दिनों बाद अपनी चाची से मिलने का ख़याल कैसे आया तुम्हें?"

"काम के चलते आज कल मुझे किसी से भी मिलने का समय नहीं मिल पाता।" मैंने खाली हो गए कप को ट्रे में रखते हुए कहा____"वरना मैं तो हर पल अपनी प्यारी सी चाची के पास ही बैठा रहूं। वैसे, आप इस वक्त लेटी क्यों थीं? आपकी तबीयत तो ठीक है ना चाची?"

"मेरी तबीयत ठीक है बेटा।" चाची ने कहा____"बस थोड़ा सिर दर्द कर रहा था इस लिए दीदी के पास से उठ कर यहां चली आई थी।"

"तो आपने सिर दर्द की कोई दवा ली या नहीं?" मैंने फिक्रमंदी से पूछा____"अगर ज़्यादा ही सिर दर्द हो रहा हो तो मुझे बताइए मैं वैद्य जी को ले आता हूं।"

"नहीं बेटा इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" चाची ने कहा____"असल में कल मैंने सिर के बाल धोए थे तो शायद उसी की वजह से शरद गरम हो गया है मुझे। दीदी ने दवा दी थी मुझे। उससे काफी राहत मिली है मुझे।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने राहत की सांस लेते हुए कहा____"अच्छा अब आप आराम कीजिए। मुझे भी अब खेतों की तरफ जाना है।"

"ठीक है बेटा।" चाची ने कहा____"सम्हल कर जाना और बच बचा के काम करना। जब से तुम अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने लगे हो तब से हम सब बहुत खुश हैं। ईश्वर करे अब से हमेशा ऐसा ही हो और तुम अपने कार्य से सबको खुश रखो।"

"कोशिश तो यही है चाची।" मैंने कहा____"और जब तक आप सबका आशीर्वाद मेरे साथ है तब तक सब अच्छा ही होगा। अच्छा अब आप आराम कीजिए। मैं निकलता हूं....।"

कहने के साथ ही मैं ट्रे ले कर चाची के कमरे से बाहर आ गया। ट्रे कुसुम को पकड़ा कर मैं हवेली से बाहर निकल गया। कुछ ही देर में मैं अपनी मोटर साइकिल से खेतों की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। चंद्रकांत के घर के पास पहुंचा तो देखा अभी भी वहां पर काफी लोग मौजूद थे किंतु मैं रुका नहीं बल्कि सीधा निकल गया। चंद्रकांत का अपनी ही बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान कर उसकी हत्या करना मेरे लिए जैसे पहेली सा बन गया था। वहीं दूसरी तरफ मैं ये भी सोच रहा था कि वो कौन होगा जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था? मेरे मन में ख़याल उभरा कि अगर मैंने वो हरकत न की होती तो सबके साथ साथ मुझे भी इस मामले की सच्चाई पता चल गई होती। ख़ैर अभी भले ही मुझे पता नहीं है लेकिन बाद में तो मैं पता कर ही लूंगा। यही सोच कर मैंने मोटर साईकिल की रफ़्तार तेज़ कर दी।

✮✮✮✮

शाम को वापस जब हवेली पहुंचा तो मैं ये सोच कर थोड़ा डरा हुआ था कि कहीं पिता जी आज मुझ पर गुस्सा न करें। चंद्रकांत के घर में आज मैंने सबके सामने उसका गिरेबान पकड़ कर उसको उल्टा सीधा बोला था जिसके चलते पिता जी बेहद नाराज़ हुए थे मुझसे। उस समय तो उन्होंने मुझे ज़्यादा कुछ नहीं कहा था किंतु मैं जानता था कि हवेली में उनसे सामना होने पर निश्चित ही मुझे उनकी तगड़ी डांट सुनने को मिलेगी। ख़ैर इसी संदर्भ में कई तरह की बातें सोचते हुए मैं हवेली के अंदर पहुंच गया। बैठक में नए मुंशी के साथ पिता जी बैठे चाय पी रहे थे। मैं चुपचाप अंदर की तरफ निकल गया। हालाकि मैंने ये सोचा था कि पिता जी की जैसे ही मुझ पर नज़र पड़ेगी तो वो मुझे आवाज़ दे कर बुला लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बहरहाल, मैं जानता था कि ये कुछ देर के लिए ही राहत वाली बात थी।

गुसलखाने में हाथ मुंह धो कर तथा अपने कमरे में दूसरे साफ़ कपड़े पहन कर मैं नीचे आ कर मां के पास बैठ गया। मैंने देखा मां और चाची के पास इस वक्त निर्मला काकी नहीं थी। भाभी, कुसुम और निर्मला की बेटी कजरी भी नहीं दिख रही थी। इधर जैसे ही मैं मां और चाची के पास आ के बैठा तो चाची ने कुसुम को ये कहते हुए आवाज़ दीं कि अपने प्यारे भैया के लिए चाय ले आ। जल्दी ही रसोई से कुसुम की आवाज़ आई।

"आज दोपहर में तू ऐसा क्या कर के आया था चंद्रकांत के घर से?" कुसुम जब मुझे चाय दे कर चली गई तो सहसा मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"जिसके चलते हंगामा मच गया था वहां?"

"अरे! ऐसी कोई बात नहीं हुई थी मां।" मैं पहले तो मन ही मन चौंका फिर लापरवाही से बोला____"पर आपको ये किसने बताया?"

"तेरे पिता जी ने।" मां ने मुझे सख़्त नज़रों से घूरते हुए कहा____"बोल रहे थे समझा देना उसे। मुझे तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। मेरे पूछने पर ही उन्होंने तेरी सारी करतूतें बताई थी। आख़िर क्यों ऐसे ऊटपटांग काम करता है तू?"

"मैं मानता हूं मां कि मुझे चंद्रकांत से उस लहजे में बात नहीं करनी चाहिए थी और ना ही उसको गाली देना चाहिए था।" मैंने कहा____"लेकिन उसे भी तो सोचना चाहिए था कि सबके सामने मेरे पिता जी पर उंगली नहीं करना चाहिए था उसे। आपको पता है, उस आदमी को आज भी अपनी ग़लतियों का एहसास नहीं है और हर बात पर हर बार पिता जी पर तंज कसता है। काफी दिनों से बर्दास्त कर रहा था मैं उसे। जब उसने अति ही कर दी तो मेरा भी सब्र टूट गया।"

"हां ठीक है लेकिन तू उसको साधारण तरीके से भी तो समझा सकता था।" मां ने कहा____"इस तरह सरे आम उसको गाली दे कर जलील करने की क्या ज़रूरत थी तुझे?"

"लातों वाले भूत साधारण भाषा में कही गई बातें नहीं समझते मां।" मैंने कहा____"उनको ऐसी ही भाषा समझ आती है और वो भी फ़ौरन। बाकी एक बात आप भी जान लीजिए कि अगर कोई भी मेरे माता पिता अथवा इस हवेली के किसी भी सदस्य के बारे में इस तरह का तंज कसेगा तो उसके साथ मैं इससे भी ज़्यादा बुरा सुलूक करूंगा। हां, जहां मैं ग़लत हूं तो उसके लिए खुशी से सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं।"

"वैभव ने बिल्कुल ठीक किया है दीदी।" मेनका चाची ने मां से कहा____"उस नीच और नमकहराम इंसान के साथ यही सुलूक करना चाहिए था। अपने घर की औरतों पर तो बस न चला उसका और दूसरों पर खीचड़ उछालता फिरता है। उसने हमारे घर के लोगों की हत्या कर के हमें दुख दिया है तो उसके दुष्कर्मों की सज़ा उसे भी मिल गई। ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं। एक ही बेटा था ना उसके? देख लीजिए उसकी ही बीवी ने मार डाला अपने मरद को और चंद्रकांत का वंश ही नाश कर दिया। इसी को कहते हैं जैसी करनी वैसी भरनी।"

"ये आप क्या कह रही हैं चाची?" मैं हैरत से आंखें फाड़ कर एकदम से बोल पड़ा____"चंद्रकांत के बेटे की रजनी ने हत्या की थी?"

"मुझे भी दीदी से ही पता चला है वैभव।" चाची ने कहा____"और दीदी को जेठ जी से।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" मैं एकदम से स्तब्ध रह गया था, फिर बोला____"लेकिन रजनी ने ऐसा क्यों किया होगा? अपने ही पति की हत्या कैसे कर दी होगी उसने?"

"तेरे पिता जी बता रहे थे कि रजनी का किसी गैर मर्द से संबंध था।" मां ने कहा____"और वो उस गैर मर्द के साथ भाग जाना चाहती थी लेकिन दुर्भाग्य से उसके पति ने पकड़ लिया। रघुवीर और उस दूसरे व्यक्ति के बीच हाथा पाई होने लगी थी। रजनी इस सबसे डर गई थी। उसे लगा कहीं इस सबके चलते लोगों को पता न चल जाए और वो बदनाम न हो जाए। जब उसे कुछ न सूझा तो उसने कुल्हाड़ी से अपने पति को मार डाला। उसे लगा था कि ऐसा कर के वो यहां से भाग कर अपने आशिक के साथ हमेशा के लिए चली जाएगी मगर ऐसा नहीं हुआ। उसके आशिक ने जब देखा कि रजनी ने अपने ही पति को मार डाला है तो वो डर के मारे भाग गया। अपने आशिक को इस तरह भाग जाते देख रजनी को मानो लकवा ही मार गया था। जिसके भरोसे उसने अपने ही पति को मार डाला उसी ने उसे धोखा दे दिया। रजनी ने सोचा अब ऐसे में क्या करे वो? फिर उसके दिमाग में रूपचंद्र का ख़याल आया। उसके एक दिन पहले शाम को रूपचंद्र ने उसका रास्ता रोका था ना इस लिए रजनी ने रघुवीर की हत्या में उसे ही फंसा देने का सोच लिया। उसके बाद दूसरे दिन ऐसा ही हुआ।"

"ये तो गज़ब ही हो गया।" मैं आश्चर्यचकित हो कर बोल पड़ा____"मैं सोच भी नहीं सकता था कि रजनी ऐसा भी कर सकती है लेकिन ये कैसे पता चला कि रजनी ने ही रघुवीर की हत्या की थी? क्या चंद्रकांत ने खुद इस बात का पता लगा लिया था?"

"नहीं, ये सब बातें चंद्रकांत को किसी ने बताई थी।" मां ने कहा।
"क...किसने?" मैंने चकित भाव से पूछा____"इतनी बड़ी बात भला किसने बताई चंद्रकांत को?"

"सफ़ेदपोश ने।" मां ने ये कहा तो मैं बुरी तरह उछल पड़ा, मेरे हलक से अटकते हुए अल्फाज़ निकले____"स...स..फे..द...पोश ने????"

"हां।" मां ने बड़े आराम से कहा____"पंचायत में सबके सामने चंद्रकांत ने सबको यही बताया।"

सच तो ये था कि मैं चाय पीना भूल गया था। हलाकि कप में बस थोड़ी सी ही चाय रह गई थी लेकिन मां ने बातें ही ऐसी बताई थीं कि उसके बाद बाकी की चाय पीने का ख़याल ही नहीं आया था मुझे। मेरे ज़हन में सफ़ेदपोश ही उछल कूद मचाने लगा था। अगर मां की बातें सच थीं तो ये वाकई में बड़ी ही हैरतंगेज बात थी लेकिन जाने क्यों मुझे ऐसा भी महसूस हो रहा था कि इसमें अभी बहुत कुछ बाकी है। मैं समझ गया कि सारी वास्तविकता पिता जी से ही पता चलेगी। ये सोच कर मैंने फ़ौरन ही कप को एक तरफ रखा और एक झटके से उठ कर बाहर बैठक की तरफ बढ़ गया।

✮✮✮✮

"यकीन नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है।" बैठक में पिता जी की सारी बातें सुनने के बाद मैंने बेयकीनी से कहा____"मुझे तो ऐसा लगता है कि चंद्रकांत कोई बहुत गहरा षडयंत्र रच रहा है। हम सबसे बदला लेने के लिए वो इस हद तक गिर गया कि अपनी ही बहू को मार डाला।"

"नहीं तुम ग़लत समझ रहे हो।" पिता जी ने फ़ौरन ही इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"माना कि चंद्रकांत के अंदर हम सबके प्रति नफ़रत है और वो हमारा बहुत कुछ अहित चाहता है लेकिन इसके लिए वो अपने ही बेटे अथवा बहू की हत्या नहीं कर सकता। वो कोई छोटा सा अबोध बालक नहीं है जिसे इतना भी ज्ञान नहीं है कि ऐसे में उसका खुद का कितना बड़ा नुकसान हो जाएगा। हमारा ख़याल है कि उसकी बातों में कहीं न कहीं सच्चाई ज़रूर है।"

"किस बात की सच्चाई?" मैंने न समझने वाले भाव से पूछा____"क्या आप उसकी बातों पर यकीन कर के ये मान रहे हैं कि सफ़ेदपोश ने ही उसे सब कुछ बताया और उसी के चलते उसने अपनी बहू को मार डाला?"

"बिल्कुल।" पिता जी ने मजबूत लहजे में कहा____"अपने बेटे की हत्या हो जाने से वो ऐसी मानसिकता में पहुंच गया था कि वो हर वक्त अपने बेटे के हत्यारे के बारे में ही सोचता रहा होगा और जब सफ़ेदपोश ने उसे हत्यारे का नाम व हत्या करने का कारण बताया तो उसने अपने बेटे की हत्या का बदला ले लिया। सफ़ेदपोश ने उसको रजनी की हत्यारिन होने की जो कहानी बताई उस पर उसने इस लिए भी विश्वास कर लिया क्योंकि वो खुद अपनी बहू के चरित्र के बारे में पहले से अच्छी तरह जानता था। उसे पता था कि उसकी बहू ही नहीं बल्कि उसकी खुद ही पत्नी भी चरित्रहीन थीं। कहने का मतलब ये कि सफ़ेदपोश की बातों पर यकीन न करने की उसके पास कोई भी वजह नहीं थी और इसी लिए उसने अपनी बहू की हत्या करने में वक्त बर्बाद नहीं किया।"

"हो सकता है कि ऐसा ही हो पिता जी।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन इसके बावजूद इस मामले में मुझे कुछ और भी ऐसा महसूस हो रहा है जो फिलहाल अभी समझ में नहीं आ रहा। वैसे सोचने वाली बात है कि इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और जब उसका पता चला तो ऐसे मामले के चलते। मुझे समझ नहीं आ रहा कि सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे का नाम बता कर किस मकसद से उपकार किया है? जबकि आप भी जानते हैं कि वो सिर्फ मेरी जान लेने पर आमादा था। एक बात और, उस समय पंचायत में आप चंद्रकांत और गौरी शंकर दोनों से ही ये पूछ रहे थे कि सफ़ेदपोश से उन दोनों का कोई संबंध है या नहीं अथवा वो सफ़ेदपोश को जानते हैं या नहीं....उस समय दोनों ने ही सफ़ेदपोश के बारे में अपनी अनभिज्ञता ही ज़ाहिर की थी। इस मामले के बाद हम ये भी नहीं कह सकते कि चंद्रकांत पहले से ही सफ़ेदपोश के बारे में जानता रहा होगा अथवा वो उससे मिला हुआ रहा होगा। क्योंकि अगर वो मिला हुआ होता तो ना तो उसके बेटे की हत्या हुई होती और ना ही उसे अपनी बहू की हत्या करनी पड़ती। ऐसे में सवाल उठता है कि चंद्रकांत के बेटे की हत्या के बाद सफ़ेदपोश का इस तरह से सामने आना आख़िर क्या साबित करता है?"

"तुम्हारी तरह हमारे भी ज़हन में इस तरह के विचार उभर चुके हैं।" पिता जी ने सहसा गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन इस बारे में हम अपनी पुख़्ता राय कल ही बनाएंगे। ऐसा इस लिए क्योंकि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा था और अपने वादे के अनुसार चंद्रकांत को उसके कहे अनुसार कोई काम करना है। अब देखना ये है कि आज रात सफ़ेदपोश चंद्रकांत से मिलने आता है या नहीं। उसके आने अथवा न आने से ही हम किसी ठोस नतीजे पर पहुंचेंगे।"

"किस तरह के नतीजे की बात कर रहे हैं आप?" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा।

"तुम्हारे इस सवाल का जवाब अभी नहीं कल देंगे हम।" पिता जी ने निर्णायक भाव से कहा____"फिलहाल तुम जा सकते हो...और हां, आज जो तुमने चंद्रकांत के घर में उसके साथ हरकत की थी वैसी हरकत तुम्हारे द्वारा अब दुबारा न हो। अब तुम बच्चे नहीं रहे, बड़े हो गए हो इस लिए विवेक के साथ साथ सहनशीलता भी रखना सीखो।"

पिता जी की बात सुन कर मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और फिर उठ कर बैठक से बाहर आ गया। रात का भोजन करने में अभी काफी समय था इस लिए मैं अपने कमरे में आराम करने का सोचा।

सीढ़ियों से ऊपर आया तो देखा रागिनी भाभी अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर के मेरी तरफ ही आ रहीं थी। बिजली नहीं थी किंतु लालटेन का धीमा प्रकाश था जिसमें उनका चेहरा साफ नज़र आया मुझे।

"क्या बात है।" मुझ पर नज़र पड़ते ही भाभी ने मुझे छेड़ा____"आज कल बड़ी तेज़ रफ़्तार में रहते हो देवर जी। आख़िर किस बात की इतनी जल्दी है? वैसे अगला साल आने में तो अभी बहुत समय बाकी है।"

"क्या भाभी आप तो जब देखो तभी मुझे छेड़ने लग जाती हैं।" मैंने हौले से झेंप कर कहा।

"अब तुमने मुझे छेड़ने की खुली छूट दे दी है तो उसका फ़ायदा तो उठाऊंगी ही मैं।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम्हें अगर कोई एतराज़ है तो बोल दो, नहीं छेडूंगी मैं।"

"मुझे कोई एतराज़ नहीं है।" मैंने कहा____"बल्कि मुझे भी अच्छा लगता है कि इसी बहाने आपको खुशी तो मिलती है।"

"हम्म्म।" भाभी ने कहा____"अच्छा तुम अपनी अनुराधा से मिले या नहीं?"

"कहां मिला भाभी।" मैंने एकदम से ठंडी आह भरते हुए कहा____"आप तो जानती हैं मुझ किसान आदमी के पास समय ही नहीं है किसी से मिलने मिलाने का।"

"अच्छा, किसान आदमी?" भाभी ने एकदम से आंखें फैला कर कहा____"तभी एक किसान की लड़की से प्रेम कर बैठे हो। वाह! क्या जोड़ी बनाई है तुमने...मानना पड़ेगा।"

साला, ये तो उल्टा हो गया। अपनी समझ में मैंने भाभी को छेड़ा था लेकिन उल्टा उन्होंने ऐसी बात कह दी कि मैं पलक झपकते ही निरुत्तर हो गया और गड़बड़ा भी गया। फ़ौरन कुछ कहते ना बना मुझसे। उधर भाभी मेरी हालत देख खिलखिला कर हंसने लगीं।

"माना कि तुम हर जगह मशहूर होगे।" भाभी ने सहसा बड़े गर्व से मुस्कुराते हुए कहा____"मगर ये मत भूलो कि मैं भी कम नहीं हूं। तुम्हारी भाभी हूं मैं और इस हवेली की बहू हूं।"

"बिल्कुल हैं भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"आपको ये बताने की ज़रूरत नहीं है। दूसरी बात, मेरी नज़र में भी आपकी अहमियत बहुत ख़ास है और आपका मुकाम बहुत ऊंचा है।"

मेरी ये बात सुन कर भाभी इस बार कुछ बोलीं नहीं बल्कि एकटक मेरी तरफ देखने लगीं। उनकी आंखों में मेरे लिए स्नेह दिखा। सहसा वो आगे बढ़ीं और उसी स्नेह के साथ मेरे दाएं गाल को मुस्कुराते हुए हल्के से सहलाया।

"तुम्हारा मुकाम भी मेरी नज़र में बहुत ऊंचा है वैभव।" फिर उन्होंने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"और मेरी ख़्वाहिश है कि मेरा देवर एक अच्छे इंसान के रूप में हर किसी के दिल पर राज करे।"

"आपके आशीर्वाद से ऐसा ज़रूर होगा भाभी।" मैंने कहा____"मुझे यकीन है कि आपके रहते मैं कभी दुबारा ग़लत रास्ते पर नहीं जा सकूंगा।"

"ऐसा तो तुम मेरा दिल रखने के लिए कह रहे हो।" भाभी ने सहसा शरारत से मुस्कुराते हुए कहा____"वरना क्या मैं जानती नहीं हूं कि सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा तुम्हें किसके द्वारा मिली है, हां?"

"बेशक उसने मेरे चरित्र को बदला भाभी और मुझे शिद्दत से एहसास हुआ कि अब तक मैने जो भी किया था वो ग़लत था।" मैंने कहा____"लेकिन सही रास्ते पर चलने के लिए अगर आपने शुरुआत से ही बार बार मुझे ज़ोर नहीं दिया होता तो यकीन मानिए आज मैं इस तरह इस सफ़र पर नहीं चल रहा होता। ये सब आपके ही ज़ोर देने और मार्गदर्शन से हो सका है। तभी तो मैं ये कहता हूं कि आपका मुकाम बहुत ऊंचा है।"

"चलो अब ये बातें मत बनाओ तुम।" भाभी ने मुझे घूरते हुए कहा____"मेरी होने वाली देवरानी के उपकारों को नज़रंदाज़ करोगे तो मार खाओगे मुझसे। अच्छा अब जाओ आराम करो। कुछ देर में खाना बन जाएगा तो खा पी लेना और हां कल अपनी अनुराधा से भी मिल लेना। बेचारी अपने दिल की बातें तुमसे कहने के लिए तड़प रही है।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" मैं एकदम से मुस्कुरा उठा, बोला____"अगर आप इतना ही ज़ोर दे रहीं हैं तो मिल लूंगा उससे।"

"अच्छा, जैसे अभी मैं न कहती तो तुम उससे मिलते ही नहीं, बड़े आए मिल लूंगा उससे कहने वाले।" भाभी ने पुनः घूरते हुए कहा____"एक और बात, थोड़ा सभ्य इंसानों जैसा व्यवहार करना उससे। अभी बहुत नादान और नासमझ है वो। ज़्यादा सताना नहीं उसे वरना तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा, सोच लेना।"

"अब ये क्या बात हुई?" मैंने हैरानी से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"आप मेरी तरफ हैं या उसकी तरफ?"

"फिलहाल तो मैं तुम दोनों की ही तरफ हूं।" भाभी ने कहा____"क्योंकि तुम्हें भी पता है कि मेरे बिना तुम दोनों की नैया पार नहीं लगेगी। इस लिए ज़्यादा उड़ने की कोशिश मत करना। अब जाओ तुम, मैं भी नीचे जा रही हूं।"

कहने के साथ ही भाभी मेरी कोई बात सुने बिना ही सीढ़ियों पर उतरती चली गईं। उनके जाने के बाद मैं भी उनकी बातों के बारे में सोचते हुए और मुस्कुराते हुए अपने कमरे की तरफ चला गया।



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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है भाभी और वैभव के बीच हुई चटपटी बातें बहुत ही मजेदार थी अब तो हवेली में हर कोई वैभव के मजे ले रहा है पहले केवल भाभी ही थी लेकिन अब तो चाचा और मां भी वैभव के मजे ले रही है खैर वैभव को भी पता चल गया है कि मुंशी ने रजनी को क्यूं और किस कारण से मारा है और उसने सफेद नकाबपोश के बारे मे भी बताया अब सोचने वाली बात ये है कि सफेद नकाबपोश का अगला कदम क्या होगा शायद उसे अब इस बात की खबर तो हो गई की ठाकुर को उसके आने के बारे में पता चल गया है तो वह कुछ तो खेल खेलने वाला है
 
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lovely update .menka chachi ko chai kya lekar gaya vaibhav ,chachi ne to usko bhavishy hi bata diya ki kahi wo joru ka gulam banne ki practice to nahi kar raha 🤣🤣.. maa ne bhi maje le liye vaibhav ko chhedkar ki suraj kis disha me dubne wala hai aaj .
vaibhav ko maa se sab baate pata chali jo chandrkant ne batayi thi thakur sahab ko .

vaibhav ka sochna bhi sahi hai ki jo dikh raha hai waisa hai nahi shayad ,itne din nakabposh gayab tha aur achanak munshi ko sach batane aa gaya ki uske bete ko bahu ne maara hai .koi gehra shadyantra hai jo abhi kisi ki samajh me nahi aa raha .
 

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अध्याय - 104
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"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"


अब आगे....


हवेली के अंदर आया तो देखा मां और भाभी निर्मला काकी के पास बैठी बातें कर रहीं थी। उनकी बातों का मुद्दा वही था जो आज चंद्रकांत के यहां घटित हुआ था। मेनका चाची नहीं थीं वहां पर। मेरे मन में ख़याल उभरा कि चलो कुछ देर चाची के पास बैठा जाए। वैसे भी उनके दोनों बेटे इस हवेली से ही नहीं बल्कि इस देश से ही बाहर थे। मैं ये सब सोच कर जैसे ही चाची के कमरे की तरफ बढ़ा तो मेरी नज़र रसोई से बाहर निकलती कुसुम पर पड़ गई। उसके हाथ में ट्रे था जिसमें चाय के कप रखे हुए थे।

"अरे! भैया आप आ गए?" मुझे देखते ही कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"बिल्कुल सही समय पर आए हैं आप? लीजिए आप भी चाय पी लीजिए।"

"वाह! क्या बात है।" मैंने खुशी से मुस्कुराते हुए कहा____"बहन हो तो मेरी लाडली कुसुम जैसी जिसे हर वक्त अपने इस भाई का ही ख़याल रहता है। ला दे, मुझे सच में इस वक्त चाय की ही ज़रूरत थी।"

मेरी बात सुन कर कुसुम मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और ट्रे लिए हाथों को मेरी तरफ बढ़ा दिया जिससे मैंने एक कप उठा लिया। मां, भाभी और निर्मला काकी भी हमारी बातें सुन कर मुस्कुरा उठीं थी। मुझे चाय देने के बाद कुसुम ने उन्हें भी दिया और फिर वो ट्रे ले कर अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगी तो मैंने उसे रोक लिया।

"अरे! तू बैठ कर चाय पी।" मैंने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा____"और ये ट्रे मुझे दे। मैं अपनी प्यारी चाची से मिलने ही जा रहा हूं। आज अपने हाथों से उन्हें चाय भी से दूंगा।"

मेरी बात सुन कर कुसुम ने पहले तो हैरानी से मेरी तरफ देखा और फिर खुशी से ट्रे मुझे पकड़ा दिया। मैं जानता था कि मेरे इस कार्य से बाकी सब भी हैरान हुए थे क्योंकि आज से पहले ऐसे काम मैंने कभी नहीं किए थे। जब मैं अपना कप उस ट्रे में रख कर ट्रे को ले कर जाने लगा तो मां ने पीछे से कहा____"कुसुम ज़रा आंगन में जा कर देख, सूरज कौन सी दिशा में डूबने वाला है आज?"

मां की ये बात सुन कर सब हंसने लगे। इधर मैं भी मुस्कुरा उठा था। ख़ैर कुछ ही देर में मैं ट्रे लिए चाची के कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच गया। दरवाज़ा हल्का खुला हुआ था लेकिन मैंने रुक कर बाहर से ही उन्हें आवाज़ लगाई तो अगले ही पल उनकी आवाज़ आई कि आ जाओ। मैं कमरे में दाखिल हुआ तो देखा चाची पलंग पर बैठने के बाद अपनी साड़ी सम्हालने में लगीं थी। मैंने जब उनके क़रीब पहुंच कर ट्रे को उनकी तरफ बढ़ाया तो वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगीं।

"क्या चाची आप भी मुझे ऐसे देखने लगीं?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं जानता हूं कि ऐसा काम मैंने कभी नहीं किया है लेकिन इसका मतलब ये थोड़ी ना है कि आगे भी कभी नहीं कर सकता।"

"अरे! मैं तो चाहती हूं कि मेरा बेटा हर रोज़ ऐसे ऐसे काम करे जिससे इस खानदान का नाम रोशन हो।" मेनका चाची ने ट्रे से अपना कप उठाते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"लेकिन जाने क्यों मुझे कुछ और ही समझ आ रहा है।"

"मैं कुछ समझा नहीं चाची।" मैं पलंग पर ही उनके बगल से बैठते हुए बोला____"आपको क्या समझ आ रहा है?"

"यही कि अभी से ऐसे काम करने का अभ्यास करने का सोच लिया है तुमने।" चाची ने अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा____"अब तो सबको पता है कि अगले साल तुम्हारा ब्याह होगा और इस हवेली में मेरी एक नई बहू आ जाएगी। सुना है आज कल के पति लोग अपनी बीवी की सेवा करने लगे हैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं चाची?" मैं उनकी बातों का मतलब समझते ही झेंप गया___"आप मेरे बारे में ऐसा सोचती हैं? आप तो जानती हैं कि आपका ये बेटा जोरू का गुलाम बनने वालों में से नहीं है।"

"अब ये तो अगले साल ही पता चलेगा वैभव बेटा।" चाची ने चाय का एक घूंघ पीने के बाद कहा____"प्रेम संबंध वाले ब्याह में ऐसा ही तो होता है। काश! हमारे ज़माने में भी ऐसा होता।"

"क्या बात करती हैं चाची।" मैंने इस बार चाची को छेड़ते हुए कहा____"चाचा जी के साथ आपका संबंध किसी प्रेमी प्रेमिका से कम थोड़े ना था। मैंने भी देखा था कि चाचा जी आपकी कितनी जी हुजूरी करते थे।"

"तो क्या उन्हें नहीं करना चाहिए था?" चाची ने हल्के से मुस्कुरा कहा____"हालाकि ज़्यादा कहां सुनते थे मेरी।"

"अरे! बिल्कुल करनी चाहिए थी उन्हें।" मैंने हाथ झटकते हुए कहा____"मेरी इतनी प्यारी और सुंदर चाची की जी हुजूरी करने से उनकी शान ही बढ़नी थी।"

"बस बस इतनी बातें मत बनाओ अब।" चाची ने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"और ये बताओ कि आज इतने दिनों बाद अपनी चाची से मिलने का ख़याल कैसे आया तुम्हें?"

"काम के चलते आज कल मुझे किसी से भी मिलने का समय नहीं मिल पाता।" मैंने खाली हो गए कप को ट्रे में रखते हुए कहा____"वरना मैं तो हर पल अपनी प्यारी सी चाची के पास ही बैठा रहूं। वैसे, आप इस वक्त लेटी क्यों थीं? आपकी तबीयत तो ठीक है ना चाची?"

"मेरी तबीयत ठीक है बेटा।" चाची ने कहा____"बस थोड़ा सिर दर्द कर रहा था इस लिए दीदी के पास से उठ कर यहां चली आई थी।"

"तो आपने सिर दर्द की कोई दवा ली या नहीं?" मैंने फिक्रमंदी से पूछा____"अगर ज़्यादा ही सिर दर्द हो रहा हो तो मुझे बताइए मैं वैद्य जी को ले आता हूं।"

"नहीं बेटा इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" चाची ने कहा____"असल में कल मैंने सिर के बाल धोए थे तो शायद उसी की वजह से शरद गरम हो गया है मुझे। दीदी ने दवा दी थी मुझे। उससे काफी राहत मिली है मुझे।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने राहत की सांस लेते हुए कहा____"अच्छा अब आप आराम कीजिए। मुझे भी अब खेतों की तरफ जाना है।"

"ठीक है बेटा।" चाची ने कहा____"सम्हल कर जाना और बच बचा के काम करना। जब से तुम अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने लगे हो तब से हम सब बहुत खुश हैं। ईश्वर करे अब से हमेशा ऐसा ही हो और तुम अपने कार्य से सबको खुश रखो।"

"कोशिश तो यही है चाची।" मैंने कहा____"और जब तक आप सबका आशीर्वाद मेरे साथ है तब तक सब अच्छा ही होगा। अच्छा अब आप आराम कीजिए। मैं निकलता हूं....।"

कहने के साथ ही मैं ट्रे ले कर चाची के कमरे से बाहर आ गया। ट्रे कुसुम को पकड़ा कर मैं हवेली से बाहर निकल गया। कुछ ही देर में मैं अपनी मोटर साइकिल से खेतों की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। चंद्रकांत के घर के पास पहुंचा तो देखा अभी भी वहां पर काफी लोग मौजूद थे किंतु मैं रुका नहीं बल्कि सीधा निकल गया। चंद्रकांत का अपनी ही बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान कर उसकी हत्या करना मेरे लिए जैसे पहेली सा बन गया था। वहीं दूसरी तरफ मैं ये भी सोच रहा था कि वो कौन होगा जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था? मेरे मन में ख़याल उभरा कि अगर मैंने वो हरकत न की होती तो सबके साथ साथ मुझे भी इस मामले की सच्चाई पता चल गई होती। ख़ैर अभी भले ही मुझे पता नहीं है लेकिन बाद में तो मैं पता कर ही लूंगा। यही सोच कर मैंने मोटर साईकिल की रफ़्तार तेज़ कर दी।

✮✮✮✮

शाम को वापस जब हवेली पहुंचा तो मैं ये सोच कर थोड़ा डरा हुआ था कि कहीं पिता जी आज मुझ पर गुस्सा न करें। चंद्रकांत के घर में आज मैंने सबके सामने उसका गिरेबान पकड़ कर उसको उल्टा सीधा बोला था जिसके चलते पिता जी बेहद नाराज़ हुए थे मुझसे। उस समय तो उन्होंने मुझे ज़्यादा कुछ नहीं कहा था किंतु मैं जानता था कि हवेली में उनसे सामना होने पर निश्चित ही मुझे उनकी तगड़ी डांट सुनने को मिलेगी। ख़ैर इसी संदर्भ में कई तरह की बातें सोचते हुए मैं हवेली के अंदर पहुंच गया। बैठक में नए मुंशी के साथ पिता जी बैठे चाय पी रहे थे। मैं चुपचाप अंदर की तरफ निकल गया। हालाकि मैंने ये सोचा था कि पिता जी की जैसे ही मुझ पर नज़र पड़ेगी तो वो मुझे आवाज़ दे कर बुला लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बहरहाल, मैं जानता था कि ये कुछ देर के लिए ही राहत वाली बात थी।

गुसलखाने में हाथ मुंह धो कर तथा अपने कमरे में दूसरे साफ़ कपड़े पहन कर मैं नीचे आ कर मां के पास बैठ गया। मैंने देखा मां और चाची के पास इस वक्त निर्मला काकी नहीं थी। भाभी, कुसुम और निर्मला की बेटी कजरी भी नहीं दिख रही थी। इधर जैसे ही मैं मां और चाची के पास आ के बैठा तो चाची ने कुसुम को ये कहते हुए आवाज़ दीं कि अपने प्यारे भैया के लिए चाय ले आ। जल्दी ही रसोई से कुसुम की आवाज़ आई।

"आज दोपहर में तू ऐसा क्या कर के आया था चंद्रकांत के घर से?" कुसुम जब मुझे चाय दे कर चली गई तो सहसा मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"जिसके चलते हंगामा मच गया था वहां?"

"अरे! ऐसी कोई बात नहीं हुई थी मां।" मैं पहले तो मन ही मन चौंका फिर लापरवाही से बोला____"पर आपको ये किसने बताया?"

"तेरे पिता जी ने।" मां ने मुझे सख़्त नज़रों से घूरते हुए कहा____"बोल रहे थे समझा देना उसे। मुझे तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। मेरे पूछने पर ही उन्होंने तेरी सारी करतूतें बताई थी। आख़िर क्यों ऐसे ऊटपटांग काम करता है तू?"

"मैं मानता हूं मां कि मुझे चंद्रकांत से उस लहजे में बात नहीं करनी चाहिए थी और ना ही उसको गाली देना चाहिए था।" मैंने कहा____"लेकिन उसे भी तो सोचना चाहिए था कि सबके सामने मेरे पिता जी पर उंगली नहीं करना चाहिए था उसे। आपको पता है, उस आदमी को आज भी अपनी ग़लतियों का एहसास नहीं है और हर बात पर हर बार पिता जी पर तंज कसता है। काफी दिनों से बर्दास्त कर रहा था मैं उसे। जब उसने अति ही कर दी तो मेरा भी सब्र टूट गया।"

"हां ठीक है लेकिन तू उसको साधारण तरीके से भी तो समझा सकता था।" मां ने कहा____"इस तरह सरे आम उसको गाली दे कर जलील करने की क्या ज़रूरत थी तुझे?"

"लातों वाले भूत साधारण भाषा में कही गई बातें नहीं समझते मां।" मैंने कहा____"उनको ऐसी ही भाषा समझ आती है और वो भी फ़ौरन। बाकी एक बात आप भी जान लीजिए कि अगर कोई भी मेरे माता पिता अथवा इस हवेली के किसी भी सदस्य के बारे में इस तरह का तंज कसेगा तो उसके साथ मैं इससे भी ज़्यादा बुरा सुलूक करूंगा। हां, जहां मैं ग़लत हूं तो उसके लिए खुशी से सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं।"

"वैभव ने बिल्कुल ठीक किया है दीदी।" मेनका चाची ने मां से कहा____"उस नीच और नमकहराम इंसान के साथ यही सुलूक करना चाहिए था। अपने घर की औरतों पर तो बस न चला उसका और दूसरों पर खीचड़ उछालता फिरता है। उसने हमारे घर के लोगों की हत्या कर के हमें दुख दिया है तो उसके दुष्कर्मों की सज़ा उसे भी मिल गई। ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं। एक ही बेटा था ना उसके? देख लीजिए उसकी ही बीवी ने मार डाला अपने मरद को और चंद्रकांत का वंश ही नाश कर दिया। इसी को कहते हैं जैसी करनी वैसी भरनी।"

"ये आप क्या कह रही हैं चाची?" मैं हैरत से आंखें फाड़ कर एकदम से बोल पड़ा____"चंद्रकांत के बेटे की रजनी ने हत्या की थी?"

"मुझे भी दीदी से ही पता चला है वैभव।" चाची ने कहा____"और दीदी को जेठ जी से।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" मैं एकदम से स्तब्ध रह गया था, फिर बोला____"लेकिन रजनी ने ऐसा क्यों किया होगा? अपने ही पति की हत्या कैसे कर दी होगी उसने?"

"तेरे पिता जी बता रहे थे कि रजनी का किसी गैर मर्द से संबंध था।" मां ने कहा____"और वो उस गैर मर्द के साथ भाग जाना चाहती थी लेकिन दुर्भाग्य से उसके पति ने पकड़ लिया। रघुवीर और उस दूसरे व्यक्ति के बीच हाथा पाई होने लगी थी। रजनी इस सबसे डर गई थी। उसे लगा कहीं इस सबके चलते लोगों को पता न चल जाए और वो बदनाम न हो जाए। जब उसे कुछ न सूझा तो उसने कुल्हाड़ी से अपने पति को मार डाला। उसे लगा था कि ऐसा कर के वो यहां से भाग कर अपने आशिक के साथ हमेशा के लिए चली जाएगी मगर ऐसा नहीं हुआ। उसके आशिक ने जब देखा कि रजनी ने अपने ही पति को मार डाला है तो वो डर के मारे भाग गया। अपने आशिक को इस तरह भाग जाते देख रजनी को मानो लकवा ही मार गया था। जिसके भरोसे उसने अपने ही पति को मार डाला उसी ने उसे धोखा दे दिया। रजनी ने सोचा अब ऐसे में क्या करे वो? फिर उसके दिमाग में रूपचंद्र का ख़याल आया। उसके एक दिन पहले शाम को रूपचंद्र ने उसका रास्ता रोका था ना इस लिए रजनी ने रघुवीर की हत्या में उसे ही फंसा देने का सोच लिया। उसके बाद दूसरे दिन ऐसा ही हुआ।"

"ये तो गज़ब ही हो गया।" मैं आश्चर्यचकित हो कर बोल पड़ा____"मैं सोच भी नहीं सकता था कि रजनी ऐसा भी कर सकती है लेकिन ये कैसे पता चला कि रजनी ने ही रघुवीर की हत्या की थी? क्या चंद्रकांत ने खुद इस बात का पता लगा लिया था?"

"नहीं, ये सब बातें चंद्रकांत को किसी ने बताई थी।" मां ने कहा।
"क...किसने?" मैंने चकित भाव से पूछा____"इतनी बड़ी बात भला किसने बताई चंद्रकांत को?"

"सफ़ेदपोश ने।" मां ने ये कहा तो मैं बुरी तरह उछल पड़ा, मेरे हलक से अटकते हुए अल्फाज़ निकले____"स...स..फे..द...पोश ने????"

"हां।" मां ने बड़े आराम से कहा____"पंचायत में सबके सामने चंद्रकांत ने सबको यही बताया।"

सच तो ये था कि मैं चाय पीना भूल गया था। हलाकि कप में बस थोड़ी सी ही चाय रह गई थी लेकिन मां ने बातें ही ऐसी बताई थीं कि उसके बाद बाकी की चाय पीने का ख़याल ही नहीं आया था मुझे। मेरे ज़हन में सफ़ेदपोश ही उछल कूद मचाने लगा था। अगर मां की बातें सच थीं तो ये वाकई में बड़ी ही हैरतंगेज बात थी लेकिन जाने क्यों मुझे ऐसा भी महसूस हो रहा था कि इसमें अभी बहुत कुछ बाकी है। मैं समझ गया कि सारी वास्तविकता पिता जी से ही पता चलेगी। ये सोच कर मैंने फ़ौरन ही कप को एक तरफ रखा और एक झटके से उठ कर बाहर बैठक की तरफ बढ़ गया।

✮✮✮✮

"यकीन नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है।" बैठक में पिता जी की सारी बातें सुनने के बाद मैंने बेयकीनी से कहा____"मुझे तो ऐसा लगता है कि चंद्रकांत कोई बहुत गहरा षडयंत्र रच रहा है। हम सबसे बदला लेने के लिए वो इस हद तक गिर गया कि अपनी ही बहू को मार डाला।"

"नहीं तुम ग़लत समझ रहे हो।" पिता जी ने फ़ौरन ही इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"माना कि चंद्रकांत के अंदर हम सबके प्रति नफ़रत है और वो हमारा बहुत कुछ अहित चाहता है लेकिन इसके लिए वो अपने ही बेटे अथवा बहू की हत्या नहीं कर सकता। वो कोई छोटा सा अबोध बालक नहीं है जिसे इतना भी ज्ञान नहीं है कि ऐसे में उसका खुद का कितना बड़ा नुकसान हो जाएगा। हमारा ख़याल है कि उसकी बातों में कहीं न कहीं सच्चाई ज़रूर है।"

"किस बात की सच्चाई?" मैंने न समझने वाले भाव से पूछा____"क्या आप उसकी बातों पर यकीन कर के ये मान रहे हैं कि सफ़ेदपोश ने ही उसे सब कुछ बताया और उसी के चलते उसने अपनी बहू को मार डाला?"

"बिल्कुल।" पिता जी ने मजबूत लहजे में कहा____"अपने बेटे की हत्या हो जाने से वो ऐसी मानसिकता में पहुंच गया था कि वो हर वक्त अपने बेटे के हत्यारे के बारे में ही सोचता रहा होगा और जब सफ़ेदपोश ने उसे हत्यारे का नाम व हत्या करने का कारण बताया तो उसने अपने बेटे की हत्या का बदला ले लिया। सफ़ेदपोश ने उसको रजनी की हत्यारिन होने की जो कहानी बताई उस पर उसने इस लिए भी विश्वास कर लिया क्योंकि वो खुद अपनी बहू के चरित्र के बारे में पहले से अच्छी तरह जानता था। उसे पता था कि उसकी बहू ही नहीं बल्कि उसकी खुद ही पत्नी भी चरित्रहीन थीं। कहने का मतलब ये कि सफ़ेदपोश की बातों पर यकीन न करने की उसके पास कोई भी वजह नहीं थी और इसी लिए उसने अपनी बहू की हत्या करने में वक्त बर्बाद नहीं किया।"

"हो सकता है कि ऐसा ही हो पिता जी।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन इसके बावजूद इस मामले में मुझे कुछ और भी ऐसा महसूस हो रहा है जो फिलहाल अभी समझ में नहीं आ रहा। वैसे सोचने वाली बात है कि इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और जब उसका पता चला तो ऐसे मामले के चलते। मुझे समझ नहीं आ रहा कि सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे का नाम बता कर किस मकसद से उपकार किया है? जबकि आप भी जानते हैं कि वो सिर्फ मेरी जान लेने पर आमादा था। एक बात और, उस समय पंचायत में आप चंद्रकांत और गौरी शंकर दोनों से ही ये पूछ रहे थे कि सफ़ेदपोश से उन दोनों का कोई संबंध है या नहीं अथवा वो सफ़ेदपोश को जानते हैं या नहीं....उस समय दोनों ने ही सफ़ेदपोश के बारे में अपनी अनभिज्ञता ही ज़ाहिर की थी। इस मामले के बाद हम ये भी नहीं कह सकते कि चंद्रकांत पहले से ही सफ़ेदपोश के बारे में जानता रहा होगा अथवा वो उससे मिला हुआ रहा होगा। क्योंकि अगर वो मिला हुआ होता तो ना तो उसके बेटे की हत्या हुई होती और ना ही उसे अपनी बहू की हत्या करनी पड़ती। ऐसे में सवाल उठता है कि चंद्रकांत के बेटे की हत्या के बाद सफ़ेदपोश का इस तरह से सामने आना आख़िर क्या साबित करता है?"

"तुम्हारी तरह हमारे भी ज़हन में इस तरह के विचार उभर चुके हैं।" पिता जी ने सहसा गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन इस बारे में हम अपनी पुख़्ता राय कल ही बनाएंगे। ऐसा इस लिए क्योंकि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा था और अपने वादे के अनुसार चंद्रकांत को उसके कहे अनुसार कोई काम करना है। अब देखना ये है कि आज रात सफ़ेदपोश चंद्रकांत से मिलने आता है या नहीं। उसके आने अथवा न आने से ही हम किसी ठोस नतीजे पर पहुंचेंगे।"

"किस तरह के नतीजे की बात कर रहे हैं आप?" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा।

"तुम्हारे इस सवाल का जवाब अभी नहीं कल देंगे हम।" पिता जी ने निर्णायक भाव से कहा____"फिलहाल तुम जा सकते हो...और हां, आज जो तुमने चंद्रकांत के घर में उसके साथ हरकत की थी वैसी हरकत तुम्हारे द्वारा अब दुबारा न हो। अब तुम बच्चे नहीं रहे, बड़े हो गए हो इस लिए विवेक के साथ साथ सहनशीलता भी रखना सीखो।"

पिता जी की बात सुन कर मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और फिर उठ कर बैठक से बाहर आ गया। रात का भोजन करने में अभी काफी समय था इस लिए मैं अपने कमरे में आराम करने का सोचा।

सीढ़ियों से ऊपर आया तो देखा रागिनी भाभी अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर के मेरी तरफ ही आ रहीं थी। बिजली नहीं थी किंतु लालटेन का धीमा प्रकाश था जिसमें उनका चेहरा साफ नज़र आया मुझे।

"क्या बात है।" मुझ पर नज़र पड़ते ही भाभी ने मुझे छेड़ा____"आज कल बड़ी तेज़ रफ़्तार में रहते हो देवर जी। आख़िर किस बात की इतनी जल्दी है? वैसे अगला साल आने में तो अभी बहुत समय बाकी है।"

"क्या भाभी आप तो जब देखो तभी मुझे छेड़ने लग जाती हैं।" मैंने हौले से झेंप कर कहा।

"अब तुमने मुझे छेड़ने की खुली छूट दे दी है तो उसका फ़ायदा तो उठाऊंगी ही मैं।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम्हें अगर कोई एतराज़ है तो बोल दो, नहीं छेडूंगी मैं।"

"मुझे कोई एतराज़ नहीं है।" मैंने कहा____"बल्कि मुझे भी अच्छा लगता है कि इसी बहाने आपको खुशी तो मिलती है।"

"हम्म्म।" भाभी ने कहा____"अच्छा तुम अपनी अनुराधा से मिले या नहीं?"

"कहां मिला भाभी।" मैंने एकदम से ठंडी आह भरते हुए कहा____"आप तो जानती हैं मुझ किसान आदमी के पास समय ही नहीं है किसी से मिलने मिलाने का।"

"अच्छा, किसान आदमी?" भाभी ने एकदम से आंखें फैला कर कहा____"तभी एक किसान की लड़की से प्रेम कर बैठे हो। वाह! क्या जोड़ी बनाई है तुमने...मानना पड़ेगा।"

साला, ये तो उल्टा हो गया। अपनी समझ में मैंने भाभी को छेड़ा था लेकिन उल्टा उन्होंने ऐसी बात कह दी कि मैं पलक झपकते ही निरुत्तर हो गया और गड़बड़ा भी गया। फ़ौरन कुछ कहते ना बना मुझसे। उधर भाभी मेरी हालत देख खिलखिला कर हंसने लगीं।

"माना कि तुम हर जगह मशहूर होगे।" भाभी ने सहसा बड़े गर्व से मुस्कुराते हुए कहा____"मगर ये मत भूलो कि मैं भी कम नहीं हूं। तुम्हारी भाभी हूं मैं और इस हवेली की बहू हूं।"

"बिल्कुल हैं भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"आपको ये बताने की ज़रूरत नहीं है। दूसरी बात, मेरी नज़र में भी आपकी अहमियत बहुत ख़ास है और आपका मुकाम बहुत ऊंचा है।"

मेरी ये बात सुन कर भाभी इस बार कुछ बोलीं नहीं बल्कि एकटक मेरी तरफ देखने लगीं। उनकी आंखों में मेरे लिए स्नेह दिखा। सहसा वो आगे बढ़ीं और उसी स्नेह के साथ मेरे दाएं गाल को मुस्कुराते हुए हल्के से सहलाया।

"तुम्हारा मुकाम भी मेरी नज़र में बहुत ऊंचा है वैभव।" फिर उन्होंने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"और मेरी ख़्वाहिश है कि मेरा देवर एक अच्छे इंसान के रूप में हर किसी के दिल पर राज करे।"

"आपके आशीर्वाद से ऐसा ज़रूर होगा भाभी।" मैंने कहा____"मुझे यकीन है कि आपके रहते मैं कभी दुबारा ग़लत रास्ते पर नहीं जा सकूंगा।"

"ऐसा तो तुम मेरा दिल रखने के लिए कह रहे हो।" भाभी ने सहसा शरारत से मुस्कुराते हुए कहा____"वरना क्या मैं जानती नहीं हूं कि सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा तुम्हें किसके द्वारा मिली है, हां?"

"बेशक उसने मेरे चरित्र को बदला भाभी और मुझे शिद्दत से एहसास हुआ कि अब तक मैने जो भी किया था वो ग़लत था।" मैंने कहा____"लेकिन सही रास्ते पर चलने के लिए अगर आपने शुरुआत से ही बार बार मुझे ज़ोर नहीं दिया होता तो यकीन मानिए आज मैं इस तरह इस सफ़र पर नहीं चल रहा होता। ये सब आपके ही ज़ोर देने और मार्गदर्शन से हो सका है। तभी तो मैं ये कहता हूं कि आपका मुकाम बहुत ऊंचा है।"

"चलो अब ये बातें मत बनाओ तुम।" भाभी ने मुझे घूरते हुए कहा____"मेरी होने वाली देवरानी के उपकारों को नज़रंदाज़ करोगे तो मार खाओगे मुझसे। अच्छा अब जाओ आराम करो। कुछ देर में खाना बन जाएगा तो खा पी लेना और हां कल अपनी अनुराधा से भी मिल लेना। बेचारी अपने दिल की बातें तुमसे कहने के लिए तड़प रही है।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" मैं एकदम से मुस्कुरा उठा, बोला____"अगर आप इतना ही ज़ोर दे रहीं हैं तो मिल लूंगा उससे।"

"अच्छा, जैसे अभी मैं न कहती तो तुम उससे मिलते ही नहीं, बड़े आए मिल लूंगा उससे कहने वाले।" भाभी ने पुनः घूरते हुए कहा____"एक और बात, थोड़ा सभ्य इंसानों जैसा व्यवहार करना उससे। अभी बहुत नादान और नासमझ है वो। ज़्यादा सताना नहीं उसे वरना तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा, सोच लेना।"

"अब ये क्या बात हुई?" मैंने हैरानी से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"आप मेरी तरफ हैं या उसकी तरफ?"

"फिलहाल तो मैं तुम दोनों की ही तरफ हूं।" भाभी ने कहा____"क्योंकि तुम्हें भी पता है कि मेरे बिना तुम दोनों की नैया पार नहीं लगेगी। इस लिए ज़्यादा उड़ने की कोशिश मत करना। अब जाओ तुम, मैं भी नीचे जा रही हूं।"

कहने के साथ ही भाभी मेरी कोई बात सुने बिना ही सीढ़ियों पर उतरती चली गईं। उनके जाने के बाद मैं भी उनकी बातों के बारे में सोचते हुए और मुस्कुराते हुए अपने कमरे की तरफ चला गया।



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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनभावन अपडेट है भाई मजा आ गया
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Ye story mere mobile ke notepad me complete ho chuki hai. Socha tha daily do do update dooga magar aisa ghatiya response dekh kar man hi nahi karta update dene ka....Okay to fir kabhi time mila to waapas aaunga....tab tak ke liye alvida :ciao:
 

Akxnx

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Ye story mere mobile ke notepad me complete ho chuki hai. Socha tha daily do do update dooga magar aisa ghatiya response dekh kar man hi nahi karta update dene ka....Okay to fir kabhi time mila to waapas aaunga....tab tak ke liye alvida :ciao:
Response isiliye kam aa rhe hai qki bahuto ko pta v nahi hoga ki story dubara suru ho gyi hai
Mujhe khud pta nahi tha Aaj hi dikha to saare updates padh daale
 
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