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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Sanju@

Well-Known Member
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अध्याय - 102
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सफ़ेदपोश ने झट से रिवॉल्वर को अपने सफ़ेद लबादे में ठूंसा और फिर वो वापस पलटा ही था कि तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कई सारे लोग बगीचे में दाखिल हो गए हैं क्योंकि ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों पर ढेर सारी आवाज़ें आने लगीं थी। ये महसूस करते ही सफ़ेदपोश तेज़ी से आगे की तरफ भागता चला गया और फिर अचानक ही अंधेरे में इस तरह ग़ायब हो गया जैसे उसका यहां कहीं कोई वजूद ही न हो।


अब आगे....


अगली सुबह मेरे कमरे का दरवाज़ा किसी ने ज़ोर ज़ोर से बजाया तो मेरी आंख झट से खुल गई और मैं एकदम से उछल कर उठ बैठा। दरवाज़ा बजने के साथ ही कोई आवाज़ भी दे रहा था मुझे। जैसे ही मेरा ज़हन सक्रिय हुआ तो मैं आवाज़ देने वाले को पहचान गया। वो कुसुम की आवाज़ थी। सुबह सुबह उसके द्वारा इस तरह दरवाज़ा बजाए जाने से और पुकारने से मैं एकदम से हड़बड़ा गया और साथ ही किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा भी गया। मैं बिजली की सी तेज़ी से पलंग से नीचे कूदा। लुंगी मेरे बदन से अलग हो गई थी इस लिए फ़ौरन ही उसे पलंग से उठा कर लपेटा और फिर तेज़ी से दरवाज़े के पास पहुंच कर दरवाज़ा खोला।

"क्या हुआ?" बाहर कुसुम के साथ कजरी को खड़े देख मैंने अपनी बहन से पूछा____"इतनी ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा क्यों पीट रही थी तू?"

"गज़ब हो गया भैया।" कुसुम ने बौखलाए हुए अंदाज़ में कहा____"पूरे गांव में हंगामा मचा हुआ है। ताऊ जी हमारे न‌ए मुंशी जी के साथ वहीं गए हुए हैं।"

"ये क्या कह रही है तू?" मैं उसके मुख से हंगामे की बात सुन कर चौंक पड़ा____"आख़िर कैसा हंगामा मचा हुआ है गांव में?"

"अभी कुछ देर पहले ताऊ जी को हवेली के एक दरबान ने बताया कि हमारे पहले वाले मुंशी ने अपनी बहू को जान से मार डाला है।" कुसुम मानो एक ही सांस में बताती चली गई____"सुबह जब उसकी बीवी और बेटी को इस बात का पता चला तो उन दोनों की चीखें निकल गईं। उसके बाद उनकी चीखें रोने धोने में बदल गईं। आवाज़ें घर से बाहर निकलीं तो धीरे धीरे गांव के लोग चंद्रकांत के घर की तरफ दौड़ पड़े।"

कुसुम जाने क्या क्या बोले जा रही थी और इधर मेरा ज़हन जैसे एकदम कुंद सा पड़ गया था। कुसुम ने मुझे हिलाया तो मैं चौंका। मेरे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि चंद्रकांत ने अपनी ही बहू की जान ले ली...मगर क्यों?

मैंने कुसुम को जाने को कहा और वापस कमरे में आ कर अपने कपड़े पहनने लगा। जल्दी ही तैयार हो कर मैं नीचे की तरफ भागा। मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि चंद्रकांत ने इतना बड़ा कांड कर दिया है। नीचे आया तो देखा मां, चाची, भाभी, निर्मला काकी आदि सब एक जगह बैठी बातें कर रहीं थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही सब चुप हो गईं। मैं सबसे पहले गुसलखाने में गया और हाथ मुंह धो कर तथा मोटर साइकिल की चाभी ले कर बाहर निकल गया। कुछ ही देर में मैं अपनी मोटर साइकिल से चंद्रकांत के घर के पास पहुंच गया।

चंद्रकांत के घर के बाहर गांव के लोगों का हुजूम लगा था। वातावरण में औरतों के रोने धोने और चिल्लाने की आवाज़ें गूंज रहीं थी। भीड़ को चीरते हुए मैं जल्द ही चंद्रकांत के घर की चौगान में पहुंच गया जहां पर अपने नए मुंशी के साथ पिता जी और उधर गौरी शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के साथ खड़े दिखे। मैंने देखा घर के बाहर चंद्रकांत की बीवी और उसकी बेटी गला फाड़ फाड़ कर रोए जा रही थी और चंद्रकांत को जाने क्या क्या बोले जा रहीं थी। दोनों मां बेटी के कपड़े अस्त व्यस्त नज़र आ रहे थे। गांव की कुछ औरतें उन्हें सम्हालने में लगी हुईं थी। चंद्रकांत एक कोने में अपने हाथ में एक पुरानी सी तलवार लिए बैठा था। तलवार पूरी तरह खून से नहाई हुई थी। उसके चेहरे पर बड़ी ही सख़्ती के भाव मौजूद थे।

तभी चीख पुकार से गूंजते वातावरण में किसी वाहन की मध्यम आवाज़ आई तो भीड़ में खड़े लोग एक तरफ हटते चले गए। हम सबने पलट कर देखा। सड़क पर दो जीपें आ कर खड़ी हो गईं थी। आगे की जीप से ठाकुर महेंद्र सिंह उतरे, उनके साथ उनका छोटा भाई ज्ञानेंद्र और बाकी अन्य लोग। महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई के साथ आगे बढ़ते हुए जल्द ही पिता जी के पास पहुंच गए।

"ये सब क्या है ठाकुर साहब?" इधर उधर निगाह घुमाते हुए महेंद्र सिंह ने पिता जी से पूछा____"कैसे हुआ ये सब?"

"हम भी अभी कुछ देर पहले ही यहां पहुंचे हैं मित्र।" पिता जी ने गंभीर भाव से कहा___"यहां का दृश्य देख कर हमने चंद्रकांत से इस सबके बारे में पूछा तो इसने बड़े ही अजीब तरीके से गला फाड़ कर बताया कि अपने हाथों से इसने अपने बेटे के हत्यारे को जान से मार डाला है।"

"य...ये क्या कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह बुरी तरह चौंके____"चंद्रकांत ने अपने बेटे के हत्यारे को जान से मार डाला है? कौन था इसके बेटे का हत्यारा?"

"इसकी ख़ुद की बहू रजनी।" पिता जी ने कहा____"हमारे पूछने कर तो इसने यही बताया है, बाकी सारी बातें आप खुद ही पूछ लीजिए इससे। हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा कि इसकी बहू अपने ही पति की हत्यारिन हो सकती है और इसने उसको अपने हाथों से जान से मार डाला।"

पिता जी की बातें सुन कर महेंद्र सिंह फ़ौरन कुछ बोल ना सके। उनके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे इस सबको वो हजम करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। हैरत के भाव लिए वो चंद्रकांत की तरफ बढ़े। चंद्रकांत पहले की ही भांति अपने हाथ में खून से सनी तलवार लिए बैठा था।

"ये सब क्या है चंद्रकांत?" महेंद्र सिंह ने उसके क़रीब पहुंचते ही सख़्त भाव से उससे पूछा____"तुमने अपने हाथों से अपनी ही बहू को जान से मार डाला?"

"हां ठाकुर साहब मैंने मार डाला उसे।" चंद्रकांत ने अजीब भाव से कहा____"उसने मेरे बेटे की हत्या की थी इस लिए रात को मैंने उसे अपनी इसी तलवार से काट कर मार डाला।"

"क...क्या???" महेंद्र सिंह आश्चर्य से चीख़ ही पड़े____"तुम्हें ये कैसे पता चला कि तुम्हारी बहू ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है? आख़िर इतना बड़ा क़दम उठाने का साहस कैसे किया तुमने?"

"साहस.... हा हा हा...।" चंद्रकांत पागलों की तरह हंसा फिर अजीब भाव से बोला____"आप साहस की बात करते हैं ठाकुर साहब....अरे! जिस इंसान को पता चल जाए कि उसके इकलौते बेटे की हत्या करने वाली उसकी अपनी ही बहू है तो साहस के साथ साथ खून भी खौल उठता है। दिलो दिमाग़ में नफ़रत और गुस्से का भयंकर सैलाब आ जाता है। उस वक्त इंसान सारी दुनिया को आग लगा देने का साहस कर सकता है ठाकुर साहब। ये तो कुछ भी नहीं था मेरे लिए।"

"होश में रह कर बात करो चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह गुस्से से गुर्राए____"तुम ये कैसे कह सकते हो कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी? आख़िर तुम्हें इस बात का पता कैसे चला?"

"आपने मेरे बेटे के हत्यारे का पता लगाने का मुझे आश्वासन दिया था ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने कहा____"मगर इतने दिन गुज़र जाने के बाद भी आप मेरे बेटे के हत्यारे का पता नहीं लगा सके और मैं हर रोज़ हर पल अपने बेटे की मौत के ग़म में झुलसता रहा। शायद मेरा ये दुख ऊपर वाले से देखा नहीं गया। तभी तो उसने एक ऐसे फ़रिश्ते को मेरे पास भेज दिया जिसने एक पल में मुझे मेरे बेटे के हत्यारे का पता ही नहीं बल्कि उसका नाम ही बता दिया।"

"क...क्या मतलब??" चंद्रकांत की इस बात को सुन कर महेंद्र सिंह के साथ साथ पिता जी और हम सब भी बुरी तरह चकरा गए। उधर महेंद्र सिंह ने पूछा____"किस फ़रिश्ते की बात कर रहे हो तुम और क्या बताया उसने तुम्हें?"

"नहीं....हर्गिज़ नहीं।" चंद्रकांत ने सख़्ती से अपने जबड़े भींच लिए, बोला____"मैं किसी को भी उस नेक फ़रिश्ते के बारे में नहीं बताऊंगा। उसने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। उसने मेरे बेटे के हत्यारे के बारे में बता कर मुझे अपने अंदर की आग को ठंडा करने का अनोखा मौका दिया है।"

महेंद्र सिंह ही नहीं बल्कि वहां मौजूद लगभग हर कोई चंद्रकांत की बातें सुन कर आश्चर्यचकित रह गया था। ज़हन में बस एक ही ख़्याल उभरा कि शायद चंद्रकांत पागल हो गया है। जाने कैसी अजीब बातें कर रहा था वो। दूसरी तरफ उसकी बीवी और बेटी सिर पटक पटक कर रोए जा रहीं थी। वातावरण में एक अजीब सी सनसनी फैली हुई थी।

"हमारा ख़याल है कि इस वक्त चंद्रकांत की मानसिक अवस्था बिल्कुल भी ठीक नहीं है मित्र।" पिता जी ने महेंद्र सिंह के क़रीब आ कर गंभीरता से कहा____"इस लिए इस वक्त इससे कुछ भी पूछने का कोई फ़ायदा नहीं है। जब इसका दिमाग़ थोड़ा शांत हो जाएगा तभी इससे इस सबके बारे में पूछताछ करना उचित होगा।"

"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"इस वक्त ये सचमुच बहुत ही अजीब बातें कर रहा है और इसका बर्ताव भी कुछ ठीक नहीं लग रहा है। ख़ैर, आपका क्या विचार है अब? हमारा मतलब है कि चंद्रकांत ने अपनी बहू की हत्या कर दी है और ये बहुत बड़ा अपराध है। अतः इस अपराध के लिए क्या आप इसे सज़ा देने का सुझाव देना चाहेंगे?"

"जब तक इस मामले के बारे में ठीक से कुछ पता नहीं चलता।" पिता जी ने कहा____"तब तक इस बारे में किसी भी तरह का फ़ैसला लेना सही नहीं होगा। हमारा सुझाव यही है कि कुछ समय के लिए चंद्रकांत को उसके इस अपराध के लिए सज़ा देने का ख़याल सोचना ही नहीं चाहिए। किन्तु हां, तब तक हमें ये जानने और समझने का प्रयास ज़रूर करना चाहिए कि चंद्रकांत को आख़िर ये किसने बताया कि उसके बेटे का हत्यारा खुद उसकी ही बहू है?"

"बड़ी हैरत की बात है कि चंद्रकांत ने इतना बड़ा और संगीन क़दम उठा लिया।" महेंद्र सिंह ने कहा____"उसे देख कर यही लगता है कि जैसे उस पर पागलपन सवार है। इतना ही नहीं ऐसा भी प्रतीत होता है जैसे उसे इस बात की बेहद खुशी है कि उसने अपने बेटे के हत्यारे को जान से मार कर अपने बेटे की हत्या का बदला ले लिया है।"

"उसके इकलौते बेटे की हत्या हुई थी मित्र।" पिता जी ने कहा____"उसके बेटे को भी अभी कोई औलाद नहीं हुई थी। ज़ाहिर है रघुवीर की मौत के बाद चंद्रकांत की वंशबेल भी आगे नहीं बढ़ सकती है। ये ऐसी बातें हैं जिन्हें सोच सोच कर कोई भी इंसान चंद्रकांत जैसी मानसिकता में पहुंच सकता है। ख़ैर, चंद्रकांत के अनुसार उसे किसी फ़रिश्ते ने उसके बेटे के हत्यारे के बारे में बताया कि हत्यारा खुद उसकी ही बहू है। अब सवाल ये उठता है कि अगर ये सच है तो फिर चंद्रकांत की बहू ने अपने ही पति की हत्या किस वजह से की होगी? हालाकि हमें तो कहीं से भी ये नहीं लगता कि रजनी ने ऐसा किया होगा लेकिन मौजूदा परिस्थिति में उसकी मौत के बाद इस सवाल का उठना जायज़ ही है। चंद्रकांत ने भी तो अपनी बहू की जान लेने से पहले उससे ये पूछा होगा कि उसने अपने पति की हत्या क्यों की थी?"

"ये ऐसा मामला है ठाकुर साहब जिसने हमें एकदम से अवाक सा कर दिया है।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"हमें लगता है कि किसी ने भी ऐसा होने की कल्पना नहीं की रही होगी। ख़ैर ऊपर वाले की लीला वही जाने किंतु इस मामले में एक दो नहीं बल्कि ढेर सारे सवाल खड़े हो गए हैं। हम लोग चंद्रकांत की ऐसी मानसिकता के लिए उसे समय देने का सुझाव दे रहे थे जबकि ऐसा प्रतीत होता है कि ख़ुद हम लोगों को भी समय चाहिए। कमबख़्त ज़हन ने काम ही करना बंद कर दिया है।"

"सबका यही हाल है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हमें लगता है कि इस बारे में ठंडे दिमाग़ से ही कुछ सोचा जा सकेगा। फिलहाल हमें ये सोचना है कि इस वक्त क्या करना चाहिए?"

"अभी तो चंद्रकांत की बहू के मृत शरीर को शमशान में ले जा कर उसका अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए।" महेंद्र सिंह ने कहा____"ज़ाहिर है उसका अंतिम संस्कार अब चंद्रकांत ही करेगा। लाश जब तक यहां रहेगी तब तक घर की औरतों का रोना धोना लगा ही रहेगा। इस लिए बेहतर यही है कि लाश को यहां से शमशान भेजने की व्यवस्था की जाए।"

पिता जी भी महेंद्र सिंह की इस बात से सहमत थे इस लिए भीड़ में खड़े गांव वालों को बताया गया कि अभी फिलहाल अंतिम संस्कार की क्रिया की जाएगी, उसके बाद ही इस मामले में कोई फ़ैसला किया जाएगा। पिता जी के कहने पर गांव के कुछ लोग और कुछ औरतें चंद्रकांत के घर के अंदर गए। कुछ ही देर में लकड़ी की खाट पर रजनी की लाश को लिए कुछ लोग बाहर आ गए। महेंद्र सिंह के साथ पिता जी ने भी आगे बढ़ कर रजनी की लाश का मुआयना किया। उनके पीछे गौरी शंकर भी था। इधर मैं और रूपचन्द्र भी रजनी की लाश को देखने की उत्सुकता से आगे बढ़ चले थे।

रजनी की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर एकदम से रूह थर्रा ग‌ई। बड़ी ही वीभत्स नज़र आ रही थी वो। चंद्रकांत ने वाकई में उसकी बड़ी बेरहमी से हत्या की थी। रजनी के पेट और सीने में बड़े गहरे ज़ख्म थे जहां से खून बहा था। उसके हाथों पर भी तलवार के गहरे चीरे लगे हुए थे और फिर सबसे भयानक था उसके गले का दृश्य। आधे से ज़्यादा गला कटा हुआ था। दूर से ही उसकी गर्दन एक तरफ को लुढ़की हुई नज़र आ रही थी। चेहरे पर दर्द और दहशत के भाव थे।

रजनी की भयानक लाश देख कर उबकाई सी आने लगी थी। रूपचंद्र जल्दी ही पीछे हट गया था। इधर गांव के लोग लाश को देखने के लिए मानों पागल हुए जा रहे थे किंतु हमारे आदमियों की वजह से कोई चंद्रकांत की चौगान के अंदर नहीं आ पा रहा था। कुछ देर बाद पिता जी और महेंद्र सिंह लाश से दूर हो गए। महेंद्र सिंह ने उन लोगों को इशारे से लाश को शमशान ले जाने को कह दिया।

क़रीब एक घंटे बाद शमशान में चंद्रकांत अपनी बहू की चिता को आग दे रहा था। पहले तो वो इसके लिए मान ही नहीं रहा था किंतु जब महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से समझाया तो उसे ये सब करना ही पड़ा। रजनी के मायके वाले भी आ ग‌ए थे जो रजनी की इस तरह हुई मौत से दहाड़ें मार कर रोए थे।

इधर चंद्रकान्त के चेहरे पर आश्चर्यजनक रूप से कोई दुख के भाव नहीं थे, बल्कि उसका चेहरा पत्थर की तरह सख़्त ही नज़र आ रहा था। सारा गांव चंद्रकांत के खेतों पर मौजूद था। चंद्रकांत की बीवी प्रभा और बेटी कोमल ढेर सारी औरतों से घिरी बैठी थीं। दोनों के चेहरे दुख और संताप से डूबे हुए थे।

रजनी का दाह संस्कार कर दिया गया। लोग धीरे धीरे वहां से जाने लगे। बाकी की क्रियाओं के लिए चंद्रकांत के कुछ चाहने वाले उसके साथ थे। महेंद्र सिंह के कहने पर पिता जी ने अपने कुछ आदमियों को गुप्त रूप से चंद्रकांत और उसके घर पर नज़र रखने के लिए लगा दिया था।

✮✮✮✮

पिता जी के आग्रह पर महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ हवेली आ गए थे। रूपचंद्र तो अपने घर चला गया था किंतु गौरी शंकर पिता जी के पीछे पीछे हमारी हवेली ही आ गया था। रजनी के अंतिम संस्कार के बाद जब हम सब हवेली पहुंचे थे तो लगभग दोपहर हो गई थी। अतः पिता जी के आदेश पर सबके लिए भोजन की जल्द ही व्यवस्था की गई। भोजन बनने के बाद सब लोगों ने साथ में ही भोजन किया और फिर सब बैठक में आ गए।

"क्या लगता है ठाकुर साहब आपको?" बैठक में एक कुर्सी पर बैठे महेंद्र सिंह ने पिता जी से मुखातिब हो कर कहा____"चंद्रकांत जिसे फ़रिश्ता बता रहा था वो कौन हो सकता है? इतना ही नहीं उसे कैसे पता था कि चंद्रकांत के बेटे का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि उसकी बहू ही है?"

"इस बारे में तो बेहतर तरीके से चंद्रकांत ही बता सकता है मित्र।" पिता जी ने कहा____"मगर हम तो यही कहेंगे कि इस मामले में कोई न कोई भारी लोचा ज़रूर है।"

"कैसा लोचा?" महेंद्र सिंह के साथ साथ सभी के चेहरों पर चौंकने के भाव उभर आए, जबकि महेंद्र सिंह ने आगे कहा____"बात कुछ समझ नहीं आई आपकी?"

"पक्के तौर पर तो हम भी कुछ कह नहीं सकते मित्र।" पिता जी ने कहा____"किंतु जाने क्यों हमें ऐसा आभास हो रहा है कि चंद्रकांत ने कदाचित बहुत बड़ी ग़लतफहमी के चलते अपनी बहू को मार डाला है।"

"यानि आप ये कहना चाहते हैं कि चंद्रकांत जिसे अपना फ़रिश्ता बता रहा था उसने उसको ग़लत जानकारी दी?" महेंद्र सिंह ने हैरत से देखते हुए कहा____"और चंद्रकांत क्योंकि अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाने के लिए पगलाया हुआ था इस लिए उसने उसके द्वारा पता चलते ही बिना कुछ सोचे समझे अपनी बहू को मार डाला?"

"बिल्कुल, हमें यही आभास हो रहा है।" पिता जी ने मजबूती से सिर हिलाते हुए कहा____"और अगर ये सच है तो यकीन मानिए किसी अज्ञात व्यक्ति ने बहुत ही ज़बरदस्त तरीके से चंद्रकांत के हाथों उसकी अपनी ही बहू की हत्या करवा दी है। आश्चर्य की बात ये भी कि चंद्रकांत को इस बात का लेश मात्र भी एहसास नहीं हो सका।"

"आख़िर किसने ऐसा गज़बनाक कांड चंद्रकांत के हाथों करवाया हो सकता है?" गौरी शंकर सवाल करने से खुद को रोक न सका____"और भला चंद्रकांत के अंदर ये कैसा पागलपन सवार था कि उसने एक अज्ञात व्यक्ति के कहने पर ये मान लिया कि उसकी बहू ने अपने ही पति की हत्या की है?"

"बात में काफी दम है।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"यकीनन ये हैरतअंगेज बात है। जिसने भी चंद्रकांत के हाथों ये सब करवाया है वो कोई मामूली इंसान नहीं हो सकता।"

"बात तो ठीक है आपकी।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इस वक्त हम सब इस मामले में सिर्फ अपने अपने कयास ही लगा रहे हैं। सच का पता तो चंद्रकांत से पूछताछ करने पर ही चलेगा। हो सकता है कि जिस बात को हम सब हजम नहीं कर पा रहे हैं वास्तव में वही सच हों।"

"क्या आप ये कहना चाहते हैं कि चंद्रकांत के बेटे की हत्या उसकी बहू ने ही की रही होगी?" महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"और जब चंद्रकांत को किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा इसका पता चला तो उसने गुस्से में आ बबूला हो कर अपनी बहू को मार डाला?"

"बेशक ऐसा भी हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"हमारे मामले के बाद आपको भी इस बात का पता हो ही गया है कि चंद्रकांत की बीवी और उसकी बहू का चरित्र कैसा था। बेशक उनके साथ हमारे बेटे का नाम जुड़ा था लेकिन सोचने वाली बात है कि ऐसी चरित्र की औरतों का संबंध क्या सिर्फ एक दो ही मर्दों तक सीमित रहा होगा?"

"आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पूछा।

"हम सिर्फ चरित्र के आधार पर किसी चीज़ की संभावना पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे हैं।" पिता जी ने संतुलित भाव से कहा____"हो सकता है कि रघुवीर की बीवी का कोई ऐसा राज़ रहा हो जिसका रघुवीर के सामने फ़ाश हो जाने का रजनी को डर रहा हो। या फिर ऐसा हो सकता है कि किसी ऐसे व्यक्ति ने रजनी को अपने ही पति की हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया जो रघुवीर का दुश्मन था। उस व्यक्ति को रजनी के नाजायज़ संबंधों का पता रहा होगा जिसके आधार पर उसने रजनी को अपने ही पति की हत्या कर देने पर मजबूर कर दिया होगा।"

"पता नहीं क्या सही है और क्या झूठ।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"पिछले कुछ महीनों में हमने इस गांव में जो कुछ देखा और सुना है उससे हम वाकई में चकित रह गए हैं। इससे पहले हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि आपके इस गांव में तथा आपके राज में ये सब देखने सुनने को मिलेगा। उस मामले से अभी पूरी तरह निपट भी नहीं पाए थे कि अब ये कांड हो गया यहां। समझ में नहीं आ रहा कि आख़िर ये सब कब बंद होगा?"

"इस धरती में जब तक लोग रहेंगे तब तक कुछ न कुछ होता ही रहेगा मित्र।" पिता जी ने कहा____"ख़ैर, हमारा ख़याल है कि अब हमें चंद्रकांत के यहां चलना चाहिए। ये जानना बहुत ही ज़रूरी है कि चंद्रकांत जिसे अपना फ़रिश्ता कह रहा था वो कौन है और उसने चंद्रकांत से ये क्यों कहा कि उसके बेटे की हत्या करने वाला कोई और नहीं बल्कि उसकी ही बहू है? एक बात और, हमें पूरा यकीन है कि इतनी बड़ी बात को चंद्रकांत ने इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर लिया होगा। यकीनन अज्ञात व्यक्ति ने उसे कुछ ऐसा बताया रहा होगा जिसके चलते चंद्रकांत ने ये मान लिया होगा कि हां उसकी बहू ने ही उसके बेटे की हत्या की है।"

"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?




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कहानी में एक नया मोड़ आ गया है जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था सफेद नकाबपोश बहुत ही शातिर निकला उसने मुंशी को अपने खेल का मोहरा बना दिया और अपना काम करने के लिए विवश कर ही दिया क्या गेम खेला है पहले बेटे को फिर बहु को मरवा दिया ।साला मुंशी बदले की आग में अंधा हो रहा है लेकिन ये अभी तक पता नहीं चला कि उसने क्या क्या खो दिया अब उसका जीना धिक्कार है अभी तक किसी के जहां में नकाबपोश का ख्याल नही आया है देखते हैं आगे क्या करते हैं
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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117,553
354
अध्याय - 103
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"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?



अब आगे....


चंद्रकांत और उसके बेटे के ससुराल वाले पहले ही आ गए थे जिसके चलते काफी रोना धोना हुआ था उसके घर में। रघुवीर की ससुराल वाले तो आपे से बाहर भी हो ग‌ए थे जिसके चलते हंगामा होने वाला था मगर गांव वालों ने फ़ौरन ही सब सम्भाल लिया था।

हम सब जब वहां पहुंचे तो देखा कि गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग लोग पहले से ही चंद्रकांत के घर में मौजूद थे। रघुवीर का साला और उसका ससुर बाहर ही एक तरफ गुमसुम से बैठे थे जबकि उनके साथ आई औरतें और लड़कियां घर के अंदर थीं। बहरहाल, पिता जी के साथ जब महेंद्र सिंह आदि लोगों का काफ़िला पहुंचा तो घर के बाहर ही सबके बैठने की व्यवस्था कर दी गई। आसमान में घने बादल छाए हुए थे जिसके चलते धूप नहीं थी और ठंडी हवाएं चल रहीं थी।

सब लोग बैठे हुए थे जबकि चंद्रकांत चेहरे पर अजीब सी सख़्ती धारण किए घर के बाहर दोनों तरफ बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर बैठा था। वातावरण में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। आगे की कार्यवाही अथवा पूछताछ के लिए महेंद्र सिंह ने औपचारिक रूप से सभी लोगों के सामने वार्तालाप शुरू किया और फिर मुद्दे की बात के लिए चंद्रकांत को अपने थोड़ा पास बुला लिया।

"हम उम्मीद करते हैं कि अब तुम्हारा दिलो दिमाग़ पहले से थोड़ा शांत और बेहतर हो गया होगा।" महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत की तरफ देखते हुए कहा____"अतः अब हम ये उम्मीद करते हैं कि हम जो कुछ भी तुमसे पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब दोगे।"

कुछ घंटे लोगों के बीच रहने के चलते कदाचित चंद्रकांत की मनोदसा में थोड़ा परिवर्तन आ गया था। इस लिए महेंद्र सिंह की बात सुन कर उसने ख़ामोशी से ही हां में सिर हिला दिया था।

"बहुत बढ़िया।" महेंद्र सिंह ने कहा___"हमारा सबसे पहला सवाल ये है कि वो कौन था जिसने तुम्हें ये बताया कि तुम्हारे बेटे की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी?"

"कल रात की बात है।" चंद्रकांत ने सपाट लहजे से कहा____"शायद उस वक्त रात के बारह बजे रहे होंगे। मैं पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकला था। पेशाब कर के वापस घर के अंदर जाने ही लगा था कि तभी अजीब सी आहट हुई जिसके चलते मैं रुक गया। पहले मुझे लगा कि शायद ये मेरा वहम है इस लिए ध्यान न दे कर मैंने फिर से अपने क़दम आगे बढ़ाए मगर तभी आहट फिर से हुई। इस बार की आहट से मैं समझ गया कि इसके पहले मुझे कोई वहम नहीं हुआ था। ख़ैर मैं ये देखने के लिए इधर उधर निगाह डालने लगा कि रात के इस वक्त आख़िर किस चीज़ से आहट हो रही है? मुझे याद आया कि ऐसी ही एक रात मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी। मुझे एकदम से लगा जैसे उस वक्त भी वो हत्यारा मेरे आस पास मौजूद है। अंधेरा था इस लिए स्पष्ट कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन जल्दी ही मेरी निगाह नीम अंधेरे में एक जगह खड़े एक साए पर पड़ गई।"

"साए पर??" महेंद्र सिंह पूछे बगैर न रह सके थे____"किसका साया था वो?"

"एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति का जिसके बारे में इसके पहले दादा ठाकुर ज़िक्र कर चुके थे।" चंद्रकांत ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"हां ठाकुर साहब, वो कोई और नहीं बल्कि वही सफ़ेदपोश व्यक्ति था जिसके बारे में आपने मुझसे और गौरी शंकर जी से पूछा था।"

चंद्रकांत की ये बात सुन कर पिता जी के साथ साथ बाकी सब लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। हैरत में डूबा चेहरा लिए सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। इधर मेरा भी वही हाल था। मैं भी सोच में पड़ गया था कि साला अब ये क्या चक्कर है? इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और अब इस तरह से उसका पता चल रहा था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि चंद्रकांत के इस मामले में सफ़ेदपोश कहां से और कैसे आ गया?

"ये तुम क्या कह रहे हो चंद्रकांत?" पिता जी पूछने से खुद को रोक न सके____"पिछली रात तुमने जिस साए को देखा क्या वो सच में सफ़ेदपोश था? कहीं तुम्हें कोई वहम तो नहीं हुआ था?"

"वहम का सवाल ही नहीं उठता ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने पूरी मजबूती से कहा____"क्योंकि मैंने उसे बहुत क़रीब से और अपनी आंखों से देखा था। इतना ही नहीं काफी देर तक मेरी उससे बातें भी हुईं थी। वो वही था जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद लिबास था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" पिता जी बरबस ही कह उठे____"इतने समय से हम उस सफ़ेदपोश को तलाश कर रहे हैं किंतु उसका कहीं कोई सुराग़ नहीं मिल सका और तुम कह रहे हो कि तुमने उसे देखा है? उससे बातें भी की हैं?"

"यही सच है ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"उसी ने मुझे बताया कि मेरे बेटे का हत्यारा मेरी अपनी ही बहू थी।"

"और उसके कहने से तुमने मान लिया?" महेंद्र सिंह ने हैरत से उसे देखा____"बड़े आश्चर्य की बात है कि तुमने एक ऐसे व्यक्ति की बात मान ली जो जाने कब से खुद को सबसे छुपाए फिर रहा है। इतना ही नहीं जो ठाकुर साहब के बेटे वैभव की जान का दुश्मन भी बना हुआ है। हमें बिल्कुल भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा कि तुमने ऐसे व्यक्ति के कहने पर अपनी बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान लिया और फिर बदले की भावना के चलते उसे मार भी डाला।"

"बिल्कुल, हमारा भी यही कहना है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि तुमने उस सफ़ेदपोश के कहने बस से ही अपनी बहू को हत्यारिन नहीं मान लिया होगा। यकीनन उसने तुम्हें कोई ऐसी वजह भी बताई होगी जिसके बाद तुम्हें अपनी बहू के हत्यारिन होने पर यकीन आ गया होगा। हम सब भी ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हें ऐसा क्या बताया था?"

"मैं हर बात किसी को बताना ज़रूरी नहीं समझता।" चंद्रकांत ने सख़्ती से जबड़े भींच कर कहा____"ये मेरा पारिवारिक और बेहद निजी मामला है।"

"जब किसी औरत को बेरहमी से मार डाला जाए तो मामला पारिवारिक अथवा निजी नहीं रह जाता चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने कठोर भाव से कहा____"तुमने अपनी बहू को बेरहमी से मार डाला है, इस लिए अब तुम्हें बताना ही होगा कि इसके पीछे की असल वजह क्या है? परिवार का मामला चाहे जैसा भी हो लेकिन किसी की हत्या कर देने का हक़ किसी को भी नहीं है। तुमने अपनी बहू की हत्या की है और इस अपराध के लिए तुम्हें सज़ा भी मिलेगी।"

"हां तो दे दीजिए मुझे सज़ा।" चंद्रकांत पागलों की तरह चीख पड़ा____"चढ़ा दीजिए मुझे सूली पर। मेरे मर जाने से कम से कम दादा ठाकुर के कलेजे को शांति तो मिल जाएगी।"

"मादरचोद, क्या बोला तूने?" चंद्रकांत की बात से मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं गुस्से में आग बबूला हो कर पलक झपकते ही उसके क़रीब पहुंच गया।

इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता मैंने उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया और फिर गुर्राते हुए कहा____"तू कौन सा दूध का धुला है जो हर बात में तू मेरे बाप पर उंगली कर के तंज़ कसने लगता है? तेरी सच्चाई ये है कि तू एक नामर्द है और तेरा बेटा तुझसे भी बड़ा नामर्द था। तेरे घर की औरतें तेरे सामने दूसरे मर्दों के साथ अपनी हवस मिटाती थीं और तुम दोनों बाप बेटे अपने उबलते खून को पानी से ठंडा करते थे।"

"ये क्या हिमाकत है??" पिता जी गुस्से से दहाड़ उठे।

उनके साथ साथ बाकी सब भी उछल कर खड़े हो गए थे। महेंद्र सिंह का छोटा भाई ज्ञानेंद्र सिंह लपक कर मेरे पास आया और मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचने लगा मगर मैंने झटक दिया उसे। इस वक्त बड़ा तेज़ गुस्सा आया हुआ था मुझे। मेरे झटक देने पर ज्ञानेंद्र झोंक में पीछे जा कर गिरते गिरते बचा। इधर चंद्रकांत चेहरे पर दहशत के भाव लिए चिल्लाने लगा था। ज्ञानेंद्र सम्हल कर फिर से मुझे छुड़ाने के लिए मेरे क़रीब आया और इस बार वो मुझे पूरी ताक़त से खींच कर चंद्रकांत से दूर ले गया।

"तुम दोनो बाप बेटे जैसा हिजड़ा इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगा।" मैं गुस्से चीखते हुए बोला____"साले नामर्द, अपनी औरतों को तो बस में कर नहीं सका और मर्द बनता है बेटीचोद।"

"तुम्हें इस हिमाकत की सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाएगी।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए बेहद गुस्से में कहा____"इसी वक्त चले जाओ यहां से वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"बेशक सज़ा दे दीजिएगा पिता जी।" मैंने गुस्से से भभकते हुए खुद को एक झटके में ज्ञानेंद्र से छुड़ाया, फिर बोला____"लेकिन इस मादरचोद ने अगर दुबारा फिर से किसी बात पर आपकी तरफ उंगली उठाई तो इसकी ज़ुबान हलक से निकाल कर इसके हाथ में दे दूंगा।"

शोर शराबा सुन कर घर के अंदर से औरतें भाग कर बाहर आ गईं थी। बाहर मौजूद लोग भी तितर बितर हो कर दूर हट गए थे। सभी के चेहरों पर ख़ौफ के भाव उभर आए थे। उधर चंद्रकांत सहम कर घर के बाहर दोनों तरफ बनी पट्टी पर बैठ गया था। जूड़ी के मरीज़ की तरह थर थर कांपे जा रहा था वो।

"हमने कहा चले जाओ यहां से।" पिता जी इस बार गुस्से में दहाड़ ही उठे। पिता जी का गुस्सा देख महेंद्र सिंह ने अपने भाई को इशारा किया तो वो मुझे ले कर अपनी जीप की तरफ बढ़ चला।

"मुझे तुमसे ऐसी बेहूदा हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वैभव।" रास्ते में ज्ञानेंद्र सिंह ने गंभीरता से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"सबके सामने तुम्हें ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था और ना ही उसे गालियां देनी चाहिए थी।"

"और उसे सबके सामने मेरे पिता पर तंज कसना चाहिए था, है ना?" मैंने तीखे भाव से ज्ञानेंद्र की तरफ देखा।

"तुम उस व्यक्ति के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो।" ज्ञानेंद्र ने कहा____"पिछले कुछ समय में यहां जो कुछ हुआ है उससे हम सब भी इतना समझ चुके हैं कि कौन कैसा है। एक बात हमेशा याद रखो कि कीचड़ में अगर पत्थर मारोगे तो वो कीचड़ उल्टा तुम्हें ही गंदा करेगा, जबकि उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। चंद्रकांत की दशा कीचड़ जैसी ही है।"

"मैं काफी समय से उसको बर्दास्त करता आ रहा था चाचू।" मैंने खीझते हुए कहा____"लेकिन आज सबके सामने जब उसने फिर से पिता जी पर तंज कसा तो मैं बर्दास्त नहीं कर सका। एक तो मादरचोद ने खुद अपनी ही बहू को मार डाला और ऊपर से अभी भी खुद को साधू महात्मा दर्शाने की कोशिश कर रहा है।"

"मूर्ख लोग ऐसे ही होते हैं वैभव।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"समझदार लोग मूर्खों की बातों पर ध्यान नहीं देते। जैसे तुम्हारे पिता जी उसकी बातों को सुन कर धैर्य धारण किए रहते हैं वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए था।"

अब तक मेरा गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो गया था इस लिए ज्ञानेंद्र सिंह की बातें अब मेरे ज़हन में आसानी से घुस रहीं थी। मुझे एहसास होने लगा था कि वाकई में मुझसे ग़लती हो गई है। मुझे सबके सामने इस तरह का तमाशा नहीं करना चाहिए था।

"मैंने सुना है कि तुम पहले से अब काफी बदल गए हो।" ज्ञानेंद्र सिंह ने मुझे ख़ामोश देखा तो इस बार बड़ी शालीनता से कहा____"और एक अच्छे इंसान की तरह अपनी हर ज़िम्मेदारियां निभा रहे हो। एक वक्त था जब हम लोग दादा ठाकुर के सामने तुम्हारा ज़िक्र करते थे तो अक्सर उनका चेहरा मायूस हो जाया करता था किंतु पिछले कुछ समय से हमने यही देखा है कि तुम्हारा ज़िक्र होने पर उनके चेहरे पर खुशी और गर्व के भाव आ जाते हैं। अगर एक पिता अपने बेटे के लिए खुशी और गर्व महसूस करने लगे तो इसका मतलब ये होता है कि उन्हें दुनिया की हर खुशी मिल चुकी है। यानि अब उन्हें किसी चीज़ की हसरत नहीं है। ख़ैर, मैं रिश्ते में तुम्हारा चाचू हूं लेकिन तुम मुझे अपना दोस्त भी मान सकते हो। एक दोस्त के नाते मैं तुमसे यही कहूंगा कि इतना कुछ होने के बाद अब तुम ही दादा ठाकुर की एक मात्र उम्मीद हो। तुम भले ही उनके बेटे हो लेकिन तुमसे कहीं ज़्यादा उनके बारे में हम जानते हैं। हमने बचपन से दादा ठाकुर को लोगों की खुशी के लिए संघर्ष करते देखा है। मेरे भैया हमेशा मुझसे कहा करते हैं कि मैं दादा ठाकुर की तरह बनूं और हमेशा उनके नक्शे क़दम पर चलूं। ज़ाहिर है मेरे भैया भी समझते हैं कि दादा ठाकुर कितने महान इंसान हैं। हम सब उनके नक्शे क़दम पर चलने की कोशिश भले ही करते हैं लेकिन उनके जैसा बनना बिल्कुल भी आसान नहीं है। फिर भी इतना तो कर ही सकते हैं कि हमारे आचरण से किसी का अहित न हो बल्कि सबका भला ही हो।"

"मैं समझ गया चाचू कि आप क्या कहना चाहते हैं।" मैंने अधीरता से कहा____"यकीन कीजिए मैं भी अब ऐसा ही इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे एहसास है कि मैंने इसके पहले बहुत ग़लत कर्म किए थे जिसके चलते मेरे खानदान का नाम ख़राब हुआ और पिता जी को हमेशा मेरी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। अब सब कुछ भुला कर यही कोशिश कर रहा हूं कि मुझसे ग़लती से भी कोई ग़लत काम न हो।"

"बहुत बढ़िया।" ज्ञानेंद्र सिंह ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"और हां अपने गुस्से पर भी लगाम लगाए रखा करो। तुम्हारा गुस्सा दूर दूर तक मशहूर है। लोग तुम्हारे गुस्से से बहुत डरते हैं। इस लिए इस पर लगाम लगा के रखो।"

"कोशिश कर रहा हूं चाचू।" मैंने झेंपते हुए कहा____"मैंने काफी समय से किसी पर गुस्सा नहीं किया और ना ही किसी को बुरा भला कहा है। आज भी मैं गुस्सा ना होता अगर चंद्रकांत मेरे पिता जी पर तंज न कसता।"

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"देखो, हम हवेली पहुंच गए हैं। तुम जाओ आराम करो, मैं अब वापस जाऊंगा।"

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास जीप रुकी तो मैं उतर गया। ज्ञानेंद्र सिंह ने जीप को वापस मोड़ा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे पता है कि तुम हर जगह मशहूर हो लेकिन फिर भी एक नई पहचान के लिए लोगों से मिलना मिलाना बेहद ज़रूरी होता है। कभी समय निकाल कर आओ हमारे यहां।"

"बिल्कुल चाचू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ज़रूर आऊंगा। आख़िर अब आप मेरे चाचू के साथ साथ दोस्त भी तो बन गए हैं।"

मेरी बात सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह हल्के से हंसा और फिर जीप को आगे बढ़ा कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ पैदल चल पड़ा। ज्ञानेंद्र सिंह मुझे एक अच्छा इंसान प्रतीत हुआ था। वो विवाहित था किन्तु उम्र ज़्यादा नहीं हुई थी उसकी। शरीर काफी फिट था जिसके चलते उसकी उमर का पता नहीं चलता था। ख़ैर उसके बारे में सोचते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली के अंदर दाखिल हो गया।

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मेरी वजह से जो हंगामा हुआ था उसे जल्द ही सम्हाल लिया गया था और अब सब कुछ ठीक था। पिता जी के चेहरे पर अभी भी नाराज़गी दिख रही थी। ज़ाहिर है मेरी वजह से उन्हें एक बार फिर से शर्मिंदगी हुई थी। किसी को भी मुझसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी। ख़ैर जो होना था वो हो चुका था। महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत को फिर से अपने सामने बुला लिया था। इस वक्त वो अजीब सा चेहरा लिए खड़ा था।

"ठाकुर साहब को बचपन से जानते हुए भी तुम इनके बारे में ऐसे ख़याल रखते हो जोकि हैरत की बात है।" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारा जो भी मामला था उसे तुम दूसरे तरीके से भी बहुत अच्छी तरह सुलझा सकते थे। दूसरी बात ये भी है कि ग़लती सिर्फ ठाकुर साहब के बेटे की ही बस नहीं थी बल्कि तुम्हारे घर की औरतों की भी थी। तुमने अपने घर की औरतों को कुछ नहीं कहा और ना ही उनके ग़लत कर्मों के लिए उन्हें धिक्कारा। इसके बदले तुमने वो किया जो किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए था। अगर तुम्हें पता चल ही गया था कि तुम्हारे घर के मामले में वैभव भी शामिल है तो तुम्हें सीधा ठाकुर साहब से इस बारे में बात करनी चाहिए थी। इसके बाद भी अगर कोई हल न निकलता तो तुम्हारा ऐसा क़दम उठाना जायज़ कहलाता लेकिन नहीं, तुमने वो किया जिसके चलते ना जाने कितने लोगों की जानें चली गईं।"

चंद्रकांत अपराध बोझ से सिर झुकाए खड़ा रहा। उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था। चौगान में बैठे लोग सांसें रोके महेंद्र सिंह की बातें सुन रहे थे और साथ ही समझने की कोशिश कर रहे थे कि किसकी कहां ग़लती रही है?

"ख़ैर जो हो गया उसे तो अब लौटाया नहीं जा सकता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"लेकिन ये जो तुमने किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती। किंतु उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हारी बहू के बारे में ऐसा क्या बताया था जिससे तुमने ये मान लिया कि तुम्हारी बहू ने ही रघुवीर की हत्या की है?"

"उसने मुझे बताया था कि मेरी बहू रजनी ने हाल ही में एक नए व्यक्ति से संबंध बना लिया था।" चंद्रकांत ने जबड़े भींच कर कहा____"वो व्यक्ति रजनी को हमेशा के लिए अपनी बना कर ले जाना चाहता था। रजनी भी इसके लिए तैयार थी। उस रात रजनी अपने उस नए आशिक़ के साथ भाग ही रही थी। उसने जब देखा कि मेरा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ है तो वो चुपके से अपना ज़रूरी समान ले कर घर से बाहर निकल आई थी। घर के बाहर उसका आशिक़ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। रजनी को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि ऐन वक्त पर मेरा बेटा उसके पीछे पीछे आ जाएगा। असल में मेरे बेटे को रात में पेशाब करने के लिए दो तीन बार बाहर जाना पड़ता था। उस रात भी वो पेशाब करने के लिए ही बाहर निकला था। कमरे में रजनी को न देख कर वो चौंका ज़रूर था किंतु उसने यही सोचा था कि शायद रजनी भी उसकी तरह बाहर लघुशंका करने गई होगी। ख़ैर जब मेरा बेटा बाहर आया तो उसने देखा कि उसकी बीवी अंधेरे में किसी के पास खड़ी थी और धीमी आवाज़ में बातें कर रही थी। रघुवीर फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा तो वो दोनों मेरे बेटे को देख कर बुरी तरह डर गए। इधर मेरा बेटा भी अपनी बीवी को रात के उस वक्त किसी गैर मर्द के साथ देख कर उछल पड़ा था। उसे समझने में देर न लगी कि रजनी अंधेरे में अपने आशिक़ के साथ क्या कर रही थी। मेरे बेटे को इतना गुस्सा आया कि उसने पहले तो रजनी को ज़ोर का धक्का दे कर दूर धकेला और फिर उसके आशिक़ को मारने लगा। रजनी इस सबसे बहुत ज़्यादा घबरा गई। उसे लगा कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए और लोगों को पता न चल जाए। उधर मेरा बेटा उसके आशिक़ की धुनाई करने में लगा हुआ था। रजनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? तभी उसकी नज़र वहीं कुछ ही दूरी पर पड़ी कुल्हाड़ी पर पड़ी। उसने झट से उस कुल्हाड़ी को उठा लिया और रघुवीर के क़रीब आ कर उसे धमकाया कि वो उसके आशिक़ को छोड़ दे वरना वो उस कुल्हाड़ी से उसका खून कर देगी। रघुवीर को लगा था कि रजनी सिर्फ उसे धमका रही है इस लिए उसने उसे गंदी गाली दे कर फिर से धक्का दे दिया और उसके आशिक़ को मारने लगा। अब तक इस सबके चलते थोड़ा शोर होने लगा था जिससे रजनी और भी ज़्यादा घबरा उठी थी। वो क्योंकि अपने आशिक़ के साथ नई दुनिया बसा लेना चाहती थी इस लिए उसने समय न ख़राब करते हुए आगे बढ़ कर मेरे बेटे पर उस कुल्हाड़ी से वार कर दिया। कुल्हाड़ी का वार सीधा रघुवीर की गर्दन पर लग गया। ऐसा इत्तेफ़ाक से ही हुआ था। रजनी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। रघुवीर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया और दर्द से तड़पने लगा। कुछ ही देर में उसका जिस्म एकदम से शांत पड़ गया। मेरा बेटा मर चुका था। जब रजनी और उसके आशिक़ को इस बात का आभास हुआ तो दोनों ही सन्न रह गए। रजनी का आशिक़ मेरे बेटे के इस तरह मर जाने से इतना डर गया कि वो वहां से फ़ौरन ही भाग गया। इधर रजनी की भी हालत ख़राब हो गई थी। उसने अपने जाते हुए आशिक़ को पुकारना चाहा मगर किसी के सुन लेने के डर से वो उसे पुकार ना सकी किंतु इतना उसे ज़रूर समझ आ गया था कि उसके आशिक़ ने उसे ऐसे वक्त पर धोखा दे दिया है। रजनी से वो हो गया था जिसे उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। काफी देर तक वो मेरे बेटे की लाश के पास बैठी रोती रही। फिर जैसे ही उसे हालात की गंभीरता का एहसास हुआ तो वो सोचने लगी कि अब वो क्या करे? वो जानती थी कि उससे बहुत बड़ा कांड हो गया है और जब इस बात का पता घर वालों को चलेगा तो वो कोई जवाब नहीं दे पाएगी। उसने आनन फानन में खून से सनी उस कुल्हाड़ी को फेंका और फिर अपना हुलिया ठीक कर के घर के अंदर आ गई। अपने कमरे में आ कर वो सोचने लगी कि इस गंभीर मुसीबत से बचने के लिए वो क्या करे? सारी रात उसने सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे अपने धोखेबाज आशिक़ पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से उसने इतना बड़ा क़दम उठाया था। तभी उसे रूपचंद्र का ख़याल आया। रूपचंद्र ने उसे पिछली शाम रास्ते में रोका था और उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती की थी जिसके जवाब में रजनी ने उसे खरी खोटी सुनाई थी। रजनी ने जब इस बारे में सोचा तो उसे अपने बचाव के लिए तरीका सूझ गया। सुबह जब हम सबको इस बात का पता चला तो हम सब रोने धोने लगे। रजनी भी हमारी तरह रोने धोने लगी थी। कुछ देर बाद उसने रोते हुए वही सब कहना शुरू कर दिया जो रात में उसने सोचा था। उसकी बात सुन कर मैं भी उसके फेर में आ गया था और फिर आगे क्या हुआ ये सब आप जानते ही हैं।"

इतना सब कुछ बताने के बाद चंद्रकांत चुप हुआ तो वातावरण में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी के साथ साथ महेंद्र सिंह और बाकी सब भी चकित भाव से उसकी तरफ देखे जा रहे थे।

"तो उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें ये सब बताया था जिसके बाद तुम्हें भी यकीन हो गया कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी बहू ने ही की है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर वाकई में ये सच है तो ये बड़े ही आश्चर्य की बात है कि अब तक हम में से किसी को इस बारे में पता तक नहीं चल सका। वैसे तुमने उस सफ़ेदपोश से पूछा नहीं कि उसे ये सब बातें कैसे पता थीं? आख़िर इतनी गहरी राज़ की बातें उसे कैसे पता चलीं? तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सफ़ेदपोश ने अपनी आंखों देखा हाल ही बताया था तुम्हें। अगर यही सच है तो सवाल उठता है कि उसने इस सबको रोका क्यों नहीं? क्यों अपनी आंखों के सामने तुम्हारे बेटे की हत्या हो जाने दी?"

चंद्रकांत, महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर बड़े अजीब भाव से देखने लगा उन्हें। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते हुए नज़र आने लगे थे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो बड़ी तेज़ी से कुछ सोचने समझने की कोशिश कर रहा हो।

"उस सफ़ेदपोश से और क्या बातें हुईं थी तुम्हारी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए चंद्रकांत से पूछा____"हमारा मतलब है कि उस सफ़ेदपोश ने तुम्हारे बेटे के हत्यारे के बारे में तुम्हें बताया तो बदले में क्या उसने तुमसे कुछ नहीं चाहा?"

"चाहा है।" चंद्रकांत बड़ी अजीब दुविधा लिए बोला____"कल रात उसने कहा था कि बदले में मुझे भी वही करना होगा जो वो करने को कहेगा मुझसे।"

"अच्छा।" महेंद्र सिंह ने कहा____"और क्या कहा था उसने?"

"यही कि आज रात वो किसी भी वक्त मुझसे मिलने आ सकता है।" चंद्रकांत ने कहा____"शायद अब वो मुझे कोई काम सौंपेगा जिसे मुझे करना होगा। उसने मुझे धमकी भी दी थी कि अगर मैं अपने वादे से मुकर गया तो ये मेरे और मेरे परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा।"

"बहुत खूब।" महेंद्र सिंह बोल पड़े____"फिर तो तुम्हें उसके लिए तैयार रहना चाहिए, है ना?"

चंद्रकांत अजीब सा मुंह बनाए खड़ा रह गया। उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी द्वंद से जूझ रहा है।

"ठाकुर साहब क्या लगता है आपको?" महेंद्र सिंह सहसा दादा ठाकुर से मुखातिब हुए____"क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो हम सोच रहे हैं?"

"हमें तो लगता है कि वो सफ़ेदपोश चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हौलनाक खेल खेल गया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"उसने चंद्रकांत को ऐसी कहानी सुनाई जिसे सच मान कर चंद्रकांत ने अपने हाथों अपनी ही बहू को बेटे की हत्यारिन मान कर मार डाला।"

"बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमें भी यही लगता है। सफ़ेदपोश को चंद्रकांत की मनोदशा का भली भांति एहसास था जिसका उसने फ़ायदा उठाया और फिर उसने वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।"

"सोचने वाली बात है कि रघुवीर की हत्या हुए इतने दिन गुज़र गए हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और अभी तक उस सफ़ेदपोश का कहीं अता पता नहीं था। अगर उसे चंद्रकांत से इतनी ही हमदर्दी थी तो उसने पहले ही चंद्रकांत के पास आ कर उसे ये क्यों नहीं बताया था कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है? इतने दिनों तक किस बात का इंतज़ार कर रहा था वो? ख़ैर ये तो थी एक बात, दूसरी सोचने वाली बात ये है कि ये सब बताने के पीछे सफ़ेदपोश का मकसद क्या था? क्या ये कि अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जान कर चंद्रकांत उसकी जान ही ले ले? अगर यही सच है तो फिर उसे चंद्रकांत का हमदर्द नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपनी बहू की हत्या करने के बाद चंद्रकांत को कोई पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला बल्कि सख़्त से सख़्त सज़ा ही मिलेगी।"

"सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"चंद्रकांत ने जो किया है उसके लिए तो इसे यकीनन सज़ा ही मिलेगी लेकिन अभी ये भी देखना है कि आगे क्या होता है? हमारा मतलब है कि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा है तो देखते हैं ऐसा होता है कि नहीं।"

चंद्रकांत सारी बातें सुन रहा था और अब उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी रो देगा। बड़ी मुश्किल से खुद को रोके हुए था वो। चौगान में बैठे बाकी लोग सतब्ध से बैठे बातें सुन रहे थे।

"अगर आज रात वो सफ़ेदपोश सचमुच चंद्रकांत से मिलने आएगा तो यही समझा जाएगा कि उसकी बातों में अथवा ये कहें कि उसकी कहानी में कहीं न कहीं सच्चाई थी।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और अगर वो नहीं आया तो स्पष्ट हो जाएगा कि वो चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हैरतंगेज खेल खेल गया है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"आगे की कार्यवाही कल की जाएगी चंद्रकांत। आज रात हम भी ये देखना चाहते हैं कि तुम्हारा वो हमदर्द सफ़ेदपोश अपनी कसौटी पर कितना खरा उतरता है।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर अभी खड़े ही हुए थे कि तभी चंद्रकांत आर्तनाद सा करता हुआ उनके पैरों में लोट गया। ये देख उनके साथ साथ बाकी उपस्थित लोग भी चौंक पड़े। उधर चंद्रकांत रोते बिलखते हुए कहता चला गया____"मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो रहा है कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है।"

"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"



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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Interesting update tha bhai. Next update ka intajaar rahegaa dost 👍👍👍👌👌👌👌👌👍👍👍👍👍👍👍👌👌👌👌👌👌

बहुत शातिर है ये सफेदपोश, उसने न सिर्फ रघुवीर को मारा, बल्कि चंद्रकांत के हाथों रजनी की भी हत्या करवा दी। बेशक रजनी ने तो हत्या नही की है रघुवीर की, लेकिन सफेदपोश ने चंद्रकांत को पक्का अपने काम के बहाने रजनी को मरने को कहा होगा, ताकि उसे यकीन हो जाय कि चंद्रकांत उसके काम आएगा आगे।

बेहतरीन अपडेट्स भाई।

और जैसा SANJU ( V. R. ) भाई जी ने कहा, मुझे भी यकीन है कि सफेदपोश कोई महिला ही है।

Interesting update

सफेद नकाबपोश निश्चित रूप से बहुत ही ताकतवर और तेज व्यक्ति है, वरना दादा ठाकुर जैसा आदमी भी उसे पकड़ पाने में असफल हो जाए संभव ही नहीं है,
सबसे जरूरी चीज है उद्देश्य, यदि ये पता चल जाए कि सफेद नकाबपोश का उद्देश्य क्या है ये सब करने के पीछे तो बहुत हद तक साफ हो जाएगा की ये व्यक्ति कौन है।

शानदार अपडेट भाई, अगले अपडेट की प्रतीक्षा में ❣️

N

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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
वैभव को कजरी को समझा देना चाहिए था कि उसके दिल में उसके लिए कुछ भी नहीं है वैभव अब एक अच्छा इंसान बन रहा है कजरी अपनी हरकतों से वापिस उसे वही पुराना वाला वैभव बनाने की कोशिश कर रही है देखते हैं वैभव क्या करता है
सफेद नकाबपोश ने एक बार फिर से अपने जाल में मुंशी को फंसा कर अपनी चाल चल दी है मुझे लगता है उसने जरूर ठाकुर परिवार और साहूकारों के किसी सदस्य का नाम लिया है जाते जाते किसी को मार भी दिया है देखते हैं आगे क्या होता है

Kya sach me munsi ne apni bahu ka katal kiya? ..kya wajah hogi jo munsi ki bahu ne apne pati ko mara tha ?..aur nakabposh ne kisi goli mari thi?? ...bahot sanspens hai re baba kahani me ...maza ayega

एक नया मोड़

एक नया ट्विस्ट, Nice

कहानी में एक नया मोड़ आ गया है जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था सफेद नकाबपोश बहुत ही शातिर निकला उसने मुंशी को अपने खेल का मोहरा बना दिया और अपना काम करने के लिए विवश कर ही दिया क्या गेम खेला है पहले बेटे को फिर बहु को मरवा दिया ।साला मुंशी बदले की आग में अंधा हो रहा है लेकिन ये अभी तक पता नहीं चला कि उसने क्या क्या खो दिया अब उसका जीना धिक्कार है अभी तक किसी के जहां में नकाबपोश का ख्याल नही आया है देखते हैं आगे क्या करते हैं
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
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अध्याय - 103
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"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?



अब आगे....


चंद्रकांत और उसके बेटे के ससुराल वाले पहले ही आ गए थे जिसके चलते काफी रोना धोना हुआ था उसके घर में। रघुवीर की ससुराल वाले तो आपे से बाहर भी हो ग‌ए थे जिसके चलते हंगामा होने वाला था मगर गांव वालों ने फ़ौरन ही सब सम्भाल लिया था।

हम सब जब वहां पहुंचे तो देखा कि गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग लोग पहले से ही चंद्रकांत के घर में मौजूद थे। रघुवीर का साला और उसका ससुर बाहर ही एक तरफ गुमसुम से बैठे थे जबकि उनके साथ आई औरतें और लड़कियां घर के अंदर थीं। बहरहाल, पिता जी के साथ जब महेंद्र सिंह आदि लोगों का काफ़िला पहुंचा तो घर के बाहर ही सबके बैठने की व्यवस्था कर दी गई। आसमान में घने बादल छाए हुए थे जिसके चलते धूप नहीं थी और ठंडी हवाएं चल रहीं थी।

सब लोग बैठे हुए थे जबकि चंद्रकांत चेहरे पर अजीब सी सख़्ती धारण किए घर के बाहर दोनों तरफ बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर बैठा था। वातावरण में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। आगे की कार्यवाही अथवा पूछताछ के लिए महेंद्र सिंह ने औपचारिक रूप से सभी लोगों के सामने वार्तालाप शुरू किया और फिर मुद्दे की बात के लिए चंद्रकांत को अपने थोड़ा पास बुला लिया।

"हम उम्मीद करते हैं कि अब तुम्हारा दिलो दिमाग़ पहले से थोड़ा शांत और बेहतर हो गया होगा।" महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत की तरफ देखते हुए कहा____"अतः अब हम ये उम्मीद करते हैं कि हम जो कुछ भी तुमसे पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब दोगे।"

कुछ घंटे लोगों के बीच रहने के चलते कदाचित चंद्रकांत की मनोदसा में थोड़ा परिवर्तन आ गया था। इस लिए महेंद्र सिंह की बात सुन कर उसने ख़ामोशी से ही हां में सिर हिला दिया था।

"बहुत बढ़िया।" महेंद्र सिंह ने कहा___"हमारा सबसे पहला सवाल ये है कि वो कौन था जिसने तुम्हें ये बताया कि तुम्हारे बेटे की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी?"

"कल रात की बात है।" चंद्रकांत ने सपाट लहजे से कहा____"शायद उस वक्त रात के बारह बजे रहे होंगे। मैं पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकला था। पेशाब कर के वापस घर के अंदर जाने ही लगा था कि तभी अजीब सी आहट हुई जिसके चलते मैं रुक गया। पहले मुझे लगा कि शायद ये मेरा वहम है इस लिए ध्यान न दे कर मैंने फिर से अपने क़दम आगे बढ़ाए मगर तभी आहट फिर से हुई। इस बार की आहट से मैं समझ गया कि इसके पहले मुझे कोई वहम नहीं हुआ था। ख़ैर मैं ये देखने के लिए इधर उधर निगाह डालने लगा कि रात के इस वक्त आख़िर किस चीज़ से आहट हो रही है? मुझे याद आया कि ऐसी ही एक रात मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी। मुझे एकदम से लगा जैसे उस वक्त भी वो हत्यारा मेरे आस पास मौजूद है। अंधेरा था इस लिए स्पष्ट कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन जल्दी ही मेरी निगाह नीम अंधेरे में एक जगह खड़े एक साए पर पड़ गई।"

"साए पर??" महेंद्र सिंह पूछे बगैर न रह सके थे____"किसका साया था वो?"

"एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति का जिसके बारे में इसके पहले दादा ठाकुर ज़िक्र कर चुके थे।" चंद्रकांत ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"हां ठाकुर साहब, वो कोई और नहीं बल्कि वही सफ़ेदपोश व्यक्ति था जिसके बारे में आपने मुझसे और गौरी शंकर जी से पूछा था।"

चंद्रकांत की ये बात सुन कर पिता जी के साथ साथ बाकी सब लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। हैरत में डूबा चेहरा लिए सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। इधर मेरा भी वही हाल था। मैं भी सोच में पड़ गया था कि साला अब ये क्या चक्कर है? इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और अब इस तरह से उसका पता चल रहा था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि चंद्रकांत के इस मामले में सफ़ेदपोश कहां से और कैसे आ गया?

"ये तुम क्या कह रहे हो चंद्रकांत?" पिता जी पूछने से खुद को रोक न सके____"पिछली रात तुमने जिस साए को देखा क्या वो सच में सफ़ेदपोश था? कहीं तुम्हें कोई वहम तो नहीं हुआ था?"

"वहम का सवाल ही नहीं उठता ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने पूरी मजबूती से कहा____"क्योंकि मैंने उसे बहुत क़रीब से और अपनी आंखों से देखा था। इतना ही नहीं काफी देर तक मेरी उससे बातें भी हुईं थी। वो वही था जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद लिबास था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" पिता जी बरबस ही कह उठे____"इतने समय से हम उस सफ़ेदपोश को तलाश कर रहे हैं किंतु उसका कहीं कोई सुराग़ नहीं मिल सका और तुम कह रहे हो कि तुमने उसे देखा है? उससे बातें भी की हैं?"

"यही सच है ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"उसी ने मुझे बताया कि मेरे बेटे का हत्यारा मेरी अपनी ही बहू थी।"

"और उसके कहने से तुमने मान लिया?" महेंद्र सिंह ने हैरत से उसे देखा____"बड़े आश्चर्य की बात है कि तुमने एक ऐसे व्यक्ति की बात मान ली जो जाने कब से खुद को सबसे छुपाए फिर रहा है। इतना ही नहीं जो ठाकुर साहब के बेटे वैभव की जान का दुश्मन भी बना हुआ है। हमें बिल्कुल भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा कि तुमने ऐसे व्यक्ति के कहने पर अपनी बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान लिया और फिर बदले की भावना के चलते उसे मार भी डाला।"

"बिल्कुल, हमारा भी यही कहना है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि तुमने उस सफ़ेदपोश के कहने बस से ही अपनी बहू को हत्यारिन नहीं मान लिया होगा। यकीनन उसने तुम्हें कोई ऐसी वजह भी बताई होगी जिसके बाद तुम्हें अपनी बहू के हत्यारिन होने पर यकीन आ गया होगा। हम सब भी ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हें ऐसा क्या बताया था?"

"मैं हर बात किसी को बताना ज़रूरी नहीं समझता।" चंद्रकांत ने सख़्ती से जबड़े भींच कर कहा____"ये मेरा पारिवारिक और बेहद निजी मामला है।"

"जब किसी औरत को बेरहमी से मार डाला जाए तो मामला पारिवारिक अथवा निजी नहीं रह जाता चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने कठोर भाव से कहा____"तुमने अपनी बहू को बेरहमी से मार डाला है, इस लिए अब तुम्हें बताना ही होगा कि इसके पीछे की असल वजह क्या है? परिवार का मामला चाहे जैसा भी हो लेकिन किसी की हत्या कर देने का हक़ किसी को भी नहीं है। तुमने अपनी बहू की हत्या की है और इस अपराध के लिए तुम्हें सज़ा भी मिलेगी।"

"हां तो दे दीजिए मुझे सज़ा।" चंद्रकांत पागलों की तरह चीख पड़ा____"चढ़ा दीजिए मुझे सूली पर। मेरे मर जाने से कम से कम दादा ठाकुर के कलेजे को शांति तो मिल जाएगी।"

"मादरचोद, क्या बोला तूने?" चंद्रकांत की बात से मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं गुस्से में आग बबूला हो कर पलक झपकते ही उसके क़रीब पहुंच गया।

इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता मैंने उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया और फिर गुर्राते हुए कहा____"तू कौन सा दूध का धुला है जो हर बात में तू मेरे बाप पर उंगली कर के तंज़ कसने लगता है? तेरी सच्चाई ये है कि तू एक नामर्द है और तेरा बेटा तुझसे भी बड़ा नामर्द था। तेरे घर की औरतें तेरे सामने दूसरे मर्दों के साथ अपनी हवस मिटाती थीं और तुम दोनों बाप बेटे अपने उबलते खून को पानी से ठंडा करते थे।"

"ये क्या हिमाकत है??" पिता जी गुस्से से दहाड़ उठे।

उनके साथ साथ बाकी सब भी उछल कर खड़े हो गए थे। महेंद्र सिंह का छोटा भाई ज्ञानेंद्र सिंह लपक कर मेरे पास आया और मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचने लगा मगर मैंने झटक दिया उसे। इस वक्त बड़ा तेज़ गुस्सा आया हुआ था मुझे। मेरे झटक देने पर ज्ञानेंद्र झोंक में पीछे जा कर गिरते गिरते बचा। इधर चंद्रकांत चेहरे पर दहशत के भाव लिए चिल्लाने लगा था। ज्ञानेंद्र सम्हल कर फिर से मुझे छुड़ाने के लिए मेरे क़रीब आया और इस बार वो मुझे पूरी ताक़त से खींच कर चंद्रकांत से दूर ले गया।

"तुम दोनो बाप बेटे जैसा हिजड़ा इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगा।" मैं गुस्से चीखते हुए बोला____"साले नामर्द, अपनी औरतों को तो बस में कर नहीं सका और मर्द बनता है बेटीचोद।"

"तुम्हें इस हिमाकत की सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाएगी।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए बेहद गुस्से में कहा____"इसी वक्त चले जाओ यहां से वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"बेशक सज़ा दे दीजिएगा पिता जी।" मैंने गुस्से से भभकते हुए खुद को एक झटके में ज्ञानेंद्र से छुड़ाया, फिर बोला____"लेकिन इस मादरचोद ने अगर दुबारा फिर से किसी बात पर आपकी तरफ उंगली उठाई तो इसकी ज़ुबान हलक से निकाल कर इसके हाथ में दे दूंगा।"

शोर शराबा सुन कर घर के अंदर से औरतें भाग कर बाहर आ गईं थी। बाहर मौजूद लोग भी तितर बितर हो कर दूर हट गए थे। सभी के चेहरों पर ख़ौफ के भाव उभर आए थे। उधर चंद्रकांत सहम कर घर के बाहर दोनों तरफ बनी पट्टी पर बैठ गया था। जूड़ी के मरीज़ की तरह थर थर कांपे जा रहा था वो।

"हमने कहा चले जाओ यहां से।" पिता जी इस बार गुस्से में दहाड़ ही उठे। पिता जी का गुस्सा देख महेंद्र सिंह ने अपने भाई को इशारा किया तो वो मुझे ले कर अपनी जीप की तरफ बढ़ चला।

"मुझे तुमसे ऐसी बेहूदा हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वैभव।" रास्ते में ज्ञानेंद्र सिंह ने गंभीरता से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"सबके सामने तुम्हें ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था और ना ही उसे गालियां देनी चाहिए थी।"

"और उसे सबके सामने मेरे पिता पर तंज कसना चाहिए था, है ना?" मैंने तीखे भाव से ज्ञानेंद्र की तरफ देखा।

"तुम उस व्यक्ति के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो।" ज्ञानेंद्र ने कहा____"पिछले कुछ समय में यहां जो कुछ हुआ है उससे हम सब भी इतना समझ चुके हैं कि कौन कैसा है। एक बात हमेशा याद रखो कि कीचड़ में अगर पत्थर मारोगे तो वो कीचड़ उल्टा तुम्हें ही गंदा करेगा, जबकि उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। चंद्रकांत की दशा कीचड़ जैसी ही है।"

"मैं काफी समय से उसको बर्दास्त करता आ रहा था चाचू।" मैंने खीझते हुए कहा____"लेकिन आज सबके सामने जब उसने फिर से पिता जी पर तंज कसा तो मैं बर्दास्त नहीं कर सका। एक तो मादरचोद ने खुद अपनी ही बहू को मार डाला और ऊपर से अभी भी खुद को साधू महात्मा दर्शाने की कोशिश कर रहा है।"

"मूर्ख लोग ऐसे ही होते हैं वैभव।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"समझदार लोग मूर्खों की बातों पर ध्यान नहीं देते। जैसे तुम्हारे पिता जी उसकी बातों को सुन कर धैर्य धारण किए रहते हैं वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए था।"

अब तक मेरा गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो गया था इस लिए ज्ञानेंद्र सिंह की बातें अब मेरे ज़हन में आसानी से घुस रहीं थी। मुझे एहसास होने लगा था कि वाकई में मुझसे ग़लती हो गई है। मुझे सबके सामने इस तरह का तमाशा नहीं करना चाहिए था।

"मैंने सुना है कि तुम पहले से अब काफी बदल गए हो।" ज्ञानेंद्र सिंह ने मुझे ख़ामोश देखा तो इस बार बड़ी शालीनता से कहा____"और एक अच्छे इंसान की तरह अपनी हर ज़िम्मेदारियां निभा रहे हो। एक वक्त था जब हम लोग दादा ठाकुर के सामने तुम्हारा ज़िक्र करते थे तो अक्सर उनका चेहरा मायूस हो जाया करता था किंतु पिछले कुछ समय से हमने यही देखा है कि तुम्हारा ज़िक्र होने पर उनके चेहरे पर खुशी और गर्व के भाव आ जाते हैं। अगर एक पिता अपने बेटे के लिए खुशी और गर्व महसूस करने लगे तो इसका मतलब ये होता है कि उन्हें दुनिया की हर खुशी मिल चुकी है। यानि अब उन्हें किसी चीज़ की हसरत नहीं है। ख़ैर, मैं रिश्ते में तुम्हारा चाचू हूं लेकिन तुम मुझे अपना दोस्त भी मान सकते हो। एक दोस्त के नाते मैं तुमसे यही कहूंगा कि इतना कुछ होने के बाद अब तुम ही दादा ठाकुर की एक मात्र उम्मीद हो। तुम भले ही उनके बेटे हो लेकिन तुमसे कहीं ज़्यादा उनके बारे में हम जानते हैं। हमने बचपन से दादा ठाकुर को लोगों की खुशी के लिए संघर्ष करते देखा है। मेरे भैया हमेशा मुझसे कहा करते हैं कि मैं दादा ठाकुर की तरह बनूं और हमेशा उनके नक्शे क़दम पर चलूं। ज़ाहिर है मेरे भैया भी समझते हैं कि दादा ठाकुर कितने महान इंसान हैं। हम सब उनके नक्शे क़दम पर चलने की कोशिश भले ही करते हैं लेकिन उनके जैसा बनना बिल्कुल भी आसान नहीं है। फिर भी इतना तो कर ही सकते हैं कि हमारे आचरण से किसी का अहित न हो बल्कि सबका भला ही हो।"

"मैं समझ गया चाचू कि आप क्या कहना चाहते हैं।" मैंने अधीरता से कहा____"यकीन कीजिए मैं भी अब ऐसा ही इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे एहसास है कि मैंने इसके पहले बहुत ग़लत कर्म किए थे जिसके चलते मेरे खानदान का नाम ख़राब हुआ और पिता जी को हमेशा मेरी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। अब सब कुछ भुला कर यही कोशिश कर रहा हूं कि मुझसे ग़लती से भी कोई ग़लत काम न हो।"

"बहुत बढ़िया।" ज्ञानेंद्र सिंह ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"और हां अपने गुस्से पर भी लगाम लगाए रखा करो। तुम्हारा गुस्सा दूर दूर तक मशहूर है। लोग तुम्हारे गुस्से से बहुत डरते हैं। इस लिए इस पर लगाम लगा के रखो।"

"कोशिश कर रहा हूं चाचू।" मैंने झेंपते हुए कहा____"मैंने काफी समय से किसी पर गुस्सा नहीं किया और ना ही किसी को बुरा भला कहा है। आज भी मैं गुस्सा ना होता अगर चंद्रकांत मेरे पिता जी पर तंज न कसता।"

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"देखो, हम हवेली पहुंच गए हैं। तुम जाओ आराम करो, मैं अब वापस जाऊंगा।"

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास जीप रुकी तो मैं उतर गया। ज्ञानेंद्र सिंह ने जीप को वापस मोड़ा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे पता है कि तुम हर जगह मशहूर हो लेकिन फिर भी एक नई पहचान के लिए लोगों से मिलना मिलाना बेहद ज़रूरी होता है। कभी समय निकाल कर आओ हमारे यहां।"

"बिल्कुल चाचू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ज़रूर आऊंगा। आख़िर अब आप मेरे चाचू के साथ साथ दोस्त भी तो बन गए हैं।"

मेरी बात सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह हल्के से हंसा और फिर जीप को आगे बढ़ा कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ पैदल चल पड़ा। ज्ञानेंद्र सिंह मुझे एक अच्छा इंसान प्रतीत हुआ था। वो विवाहित था किन्तु उम्र ज़्यादा नहीं हुई थी उसकी। शरीर काफी फिट था जिसके चलते उसकी उमर का पता नहीं चलता था। ख़ैर उसके बारे में सोचते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली के अंदर दाखिल हो गया।

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मेरी वजह से जो हंगामा हुआ था उसे जल्द ही सम्हाल लिया गया था और अब सब कुछ ठीक था। पिता जी के चेहरे पर अभी भी नाराज़गी दिख रही थी। ज़ाहिर है मेरी वजह से उन्हें एक बार फिर से शर्मिंदगी हुई थी। किसी को भी मुझसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी। ख़ैर जो होना था वो हो चुका था। महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत को फिर से अपने सामने बुला लिया था। इस वक्त वो अजीब सा चेहरा लिए खड़ा था।

"ठाकुर साहब को बचपन से जानते हुए भी तुम इनके बारे में ऐसे ख़याल रखते हो जोकि हैरत की बात है।" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारा जो भी मामला था उसे तुम दूसरे तरीके से भी बहुत अच्छी तरह सुलझा सकते थे। दूसरी बात ये भी है कि ग़लती सिर्फ ठाकुर साहब के बेटे की ही बस नहीं थी बल्कि तुम्हारे घर की औरतों की भी थी। तुमने अपने घर की औरतों को कुछ नहीं कहा और ना ही उनके ग़लत कर्मों के लिए उन्हें धिक्कारा। इसके बदले तुमने वो किया जो किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए था। अगर तुम्हें पता चल ही गया था कि तुम्हारे घर के मामले में वैभव भी शामिल है तो तुम्हें सीधा ठाकुर साहब से इस बारे में बात करनी चाहिए थी। इसके बाद भी अगर कोई हल न निकलता तो तुम्हारा ऐसा क़दम उठाना जायज़ कहलाता लेकिन नहीं, तुमने वो किया जिसके चलते ना जाने कितने लोगों की जानें चली गईं।"

चंद्रकांत अपराध बोझ से सिर झुकाए खड़ा रहा। उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था। चौगान में बैठे लोग सांसें रोके महेंद्र सिंह की बातें सुन रहे थे और साथ ही समझने की कोशिश कर रहे थे कि किसकी कहां ग़लती रही है?

"ख़ैर जो हो गया उसे तो अब लौटाया नहीं जा सकता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"लेकिन ये जो तुमने किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती। किंतु उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हारी बहू के बारे में ऐसा क्या बताया था जिससे तुमने ये मान लिया कि तुम्हारी बहू ने ही रघुवीर की हत्या की है?"

"उसने मुझे बताया था कि मेरी बहू रजनी ने हाल ही में एक नए व्यक्ति से संबंध बना लिया था।" चंद्रकांत ने जबड़े भींच कर कहा____"वो व्यक्ति रजनी को हमेशा के लिए अपनी बना कर ले जाना चाहता था। रजनी भी इसके लिए तैयार थी। उस रात रजनी अपने उस नए आशिक़ के साथ भाग ही रही थी। उसने जब देखा कि मेरा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ है तो वो चुपके से अपना ज़रूरी समान ले कर घर से बाहर निकल आई थी। घर के बाहर उसका आशिक़ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। रजनी को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि ऐन वक्त पर मेरा बेटा उसके पीछे पीछे आ जाएगा। असल में मेरे बेटे को रात में पेशाब करने के लिए दो तीन बार बाहर जाना पड़ता था। उस रात भी वो पेशाब करने के लिए ही बाहर निकला था। कमरे में रजनी को न देख कर वो चौंका ज़रूर था किंतु उसने यही सोचा था कि शायद रजनी भी उसकी तरह बाहर लघुशंका करने गई होगी। ख़ैर जब मेरा बेटा बाहर आया तो उसने देखा कि उसकी बीवी अंधेरे में किसी के पास खड़ी थी और धीमी आवाज़ में बातें कर रही थी। रघुवीर फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा तो वो दोनों मेरे बेटे को देख कर बुरी तरह डर गए। इधर मेरा बेटा भी अपनी बीवी को रात के उस वक्त किसी गैर मर्द के साथ देख कर उछल पड़ा था। उसे समझने में देर न लगी कि रजनी अंधेरे में अपने आशिक़ के साथ क्या कर रही थी। मेरे बेटे को इतना गुस्सा आया कि उसने पहले तो रजनी को ज़ोर का धक्का दे कर दूर धकेला और फिर उसके आशिक़ को मारने लगा। रजनी इस सबसे बहुत ज़्यादा घबरा गई। उसे लगा कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए और लोगों को पता न चल जाए। उधर मेरा बेटा उसके आशिक़ की धुनाई करने में लगा हुआ था। रजनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? तभी उसकी नज़र वहीं कुछ ही दूरी पर पड़ी कुल्हाड़ी पर पड़ी। उसने झट से उस कुल्हाड़ी को उठा लिया और रघुवीर के क़रीब आ कर उसे धमकाया कि वो उसके आशिक़ को छोड़ दे वरना वो उस कुल्हाड़ी से उसका खून कर देगी। रघुवीर को लगा था कि रजनी सिर्फ उसे धमका रही है इस लिए उसने उसे गंदी गाली दे कर फिर से धक्का दे दिया और उसके आशिक़ को मारने लगा। अब तक इस सबके चलते थोड़ा शोर होने लगा था जिससे रजनी और भी ज़्यादा घबरा उठी थी। वो क्योंकि अपने आशिक़ के साथ नई दुनिया बसा लेना चाहती थी इस लिए उसने समय न ख़राब करते हुए आगे बढ़ कर मेरे बेटे पर उस कुल्हाड़ी से वार कर दिया। कुल्हाड़ी का वार सीधा रघुवीर की गर्दन पर लग गया। ऐसा इत्तेफ़ाक से ही हुआ था। रजनी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। रघुवीर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया और दर्द से तड़पने लगा। कुछ ही देर में उसका जिस्म एकदम से शांत पड़ गया। मेरा बेटा मर चुका था। जब रजनी और उसके आशिक़ को इस बात का आभास हुआ तो दोनों ही सन्न रह गए। रजनी का आशिक़ मेरे बेटे के इस तरह मर जाने से इतना डर गया कि वो वहां से फ़ौरन ही भाग गया। इधर रजनी की भी हालत ख़राब हो गई थी। उसने अपने जाते हुए आशिक़ को पुकारना चाहा मगर किसी के सुन लेने के डर से वो उसे पुकार ना सकी किंतु इतना उसे ज़रूर समझ आ गया था कि उसके आशिक़ ने उसे ऐसे वक्त पर धोखा दे दिया है। रजनी से वो हो गया था जिसे उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। काफी देर तक वो मेरे बेटे की लाश के पास बैठी रोती रही। फिर जैसे ही उसे हालात की गंभीरता का एहसास हुआ तो वो सोचने लगी कि अब वो क्या करे? वो जानती थी कि उससे बहुत बड़ा कांड हो गया है और जब इस बात का पता घर वालों को चलेगा तो वो कोई जवाब नहीं दे पाएगी। उसने आनन फानन में खून से सनी उस कुल्हाड़ी को फेंका और फिर अपना हुलिया ठीक कर के घर के अंदर आ गई। अपने कमरे में आ कर वो सोचने लगी कि इस गंभीर मुसीबत से बचने के लिए वो क्या करे? सारी रात उसने सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे अपने धोखेबाज आशिक़ पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से उसने इतना बड़ा क़दम उठाया था। तभी उसे रूपचंद्र का ख़याल आया। रूपचंद्र ने उसे पिछली शाम रास्ते में रोका था और उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती की थी जिसके जवाब में रजनी ने उसे खरी खोटी सुनाई थी। रजनी ने जब इस बारे में सोचा तो उसे अपने बचाव के लिए तरीका सूझ गया। सुबह जब हम सबको इस बात का पता चला तो हम सब रोने धोने लगे। रजनी भी हमारी तरह रोने धोने लगी थी। कुछ देर बाद उसने रोते हुए वही सब कहना शुरू कर दिया जो रात में उसने सोचा था। उसकी बात सुन कर मैं भी उसके फेर में आ गया था और फिर आगे क्या हुआ ये सब आप जानते ही हैं।"

इतना सब कुछ बताने के बाद चंद्रकांत चुप हुआ तो वातावरण में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी के साथ साथ महेंद्र सिंह और बाकी सब भी चकित भाव से उसकी तरफ देखे जा रहे थे।

"तो उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें ये सब बताया था जिसके बाद तुम्हें भी यकीन हो गया कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी बहू ने ही की है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर वाकई में ये सच है तो ये बड़े ही आश्चर्य की बात है कि अब तक हम में से किसी को इस बारे में पता तक नहीं चल सका। वैसे तुमने उस सफ़ेदपोश से पूछा नहीं कि उसे ये सब बातें कैसे पता थीं? आख़िर इतनी गहरी राज़ की बातें उसे कैसे पता चलीं? तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सफ़ेदपोश ने अपनी आंखों देखा हाल ही बताया था तुम्हें। अगर यही सच है तो सवाल उठता है कि उसने इस सबको रोका क्यों नहीं? क्यों अपनी आंखों के सामने तुम्हारे बेटे की हत्या हो जाने दी?"

चंद्रकांत, महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर बड़े अजीब भाव से देखने लगा उन्हें। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते हुए नज़र आने लगे थे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो बड़ी तेज़ी से कुछ सोचने समझने की कोशिश कर रहा हो।

"उस सफ़ेदपोश से और क्या बातें हुईं थी तुम्हारी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए चंद्रकांत से पूछा____"हमारा मतलब है कि उस सफ़ेदपोश ने तुम्हारे बेटे के हत्यारे के बारे में तुम्हें बताया तो बदले में क्या उसने तुमसे कुछ नहीं चाहा?"

"चाहा है।" चंद्रकांत बड़ी अजीब दुविधा लिए बोला____"कल रात उसने कहा था कि बदले में मुझे भी वही करना होगा जो वो करने को कहेगा मुझसे।"

"अच्छा।" महेंद्र सिंह ने कहा____"और क्या कहा था उसने?"

"यही कि आज रात वो किसी भी वक्त मुझसे मिलने आ सकता है।" चंद्रकांत ने कहा____"शायद अब वो मुझे कोई काम सौंपेगा जिसे मुझे करना होगा। उसने मुझे धमकी भी दी थी कि अगर मैं अपने वादे से मुकर गया तो ये मेरे और मेरे परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा।"

"बहुत खूब।" महेंद्र सिंह बोल पड़े____"फिर तो तुम्हें उसके लिए तैयार रहना चाहिए, है ना?"

चंद्रकांत अजीब सा मुंह बनाए खड़ा रह गया। उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी द्वंद से जूझ रहा है।

"ठाकुर साहब क्या लगता है आपको?" महेंद्र सिंह सहसा दादा ठाकुर से मुखातिब हुए____"क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो हम सोच रहे हैं?"

"हमें तो लगता है कि वो सफ़ेदपोश चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हौलनाक खेल खेल गया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"उसने चंद्रकांत को ऐसी कहानी सुनाई जिसे सच मान कर चंद्रकांत ने अपने हाथों अपनी ही बहू को बेटे की हत्यारिन मान कर मार डाला।"

"बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमें भी यही लगता है। सफ़ेदपोश को चंद्रकांत की मनोदशा का भली भांति एहसास था जिसका उसने फ़ायदा उठाया और फिर उसने वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।"

"सोचने वाली बात है कि रघुवीर की हत्या हुए इतने दिन गुज़र गए हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और अभी तक उस सफ़ेदपोश का कहीं अता पता नहीं था। अगर उसे चंद्रकांत से इतनी ही हमदर्दी थी तो उसने पहले ही चंद्रकांत के पास आ कर उसे ये क्यों नहीं बताया था कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है? इतने दिनों तक किस बात का इंतज़ार कर रहा था वो? ख़ैर ये तो थी एक बात, दूसरी सोचने वाली बात ये है कि ये सब बताने के पीछे सफ़ेदपोश का मकसद क्या था? क्या ये कि अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जान कर चंद्रकांत उसकी जान ही ले ले? अगर यही सच है तो फिर उसे चंद्रकांत का हमदर्द नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपनी बहू की हत्या करने के बाद चंद्रकांत को कोई पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला बल्कि सख़्त से सख़्त सज़ा ही मिलेगी।"

"सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"चंद्रकांत ने जो किया है उसके लिए तो इसे यकीनन सज़ा ही मिलेगी लेकिन अभी ये भी देखना है कि आगे क्या होता है? हमारा मतलब है कि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा है तो देखते हैं ऐसा होता है कि नहीं।"

चंद्रकांत सारी बातें सुन रहा था और अब उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी रो देगा। बड़ी मुश्किल से खुद को रोके हुए था वो। चौगान में बैठे बाकी लोग सतब्ध से बैठे बातें सुन रहे थे।

"अगर आज रात वो सफ़ेदपोश सचमुच चंद्रकांत से मिलने आएगा तो यही समझा जाएगा कि उसकी बातों में अथवा ये कहें कि उसकी कहानी में कहीं न कहीं सच्चाई थी।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और अगर वो नहीं आया तो स्पष्ट हो जाएगा कि वो चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हैरतंगेज खेल खेल गया है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"आगे की कार्यवाही कल की जाएगी चंद्रकांत। आज रात हम भी ये देखना चाहते हैं कि तुम्हारा वो हमदर्द सफ़ेदपोश अपनी कसौटी पर कितना खरा उतरता है।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर अभी खड़े ही हुए थे कि तभी चंद्रकांत आर्तनाद सा करता हुआ उनके पैरों में लोट गया। ये देख उनके साथ साथ बाकी उपस्थित लोग भी चौंक पड़े। उधर चंद्रकांत रोते बिलखते हुए कहता चला गया____"मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो रहा है कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है।"

"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"



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Bhupinder Singh

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"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?



अब आगे....


चंद्रकांत और उसके बेटे के ससुराल वाले पहले ही आ गए थे जिसके चलते काफी रोना धोना हुआ था उसके घर में। रघुवीर की ससुराल वाले तो आपे से बाहर भी हो ग‌ए थे जिसके चलते हंगामा होने वाला था मगर गांव वालों ने फ़ौरन ही सब सम्भाल लिया था।

हम सब जब वहां पहुंचे तो देखा कि गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग लोग पहले से ही चंद्रकांत के घर में मौजूद थे। रघुवीर का साला और उसका ससुर बाहर ही एक तरफ गुमसुम से बैठे थे जबकि उनके साथ आई औरतें और लड़कियां घर के अंदर थीं। बहरहाल, पिता जी के साथ जब महेंद्र सिंह आदि लोगों का काफ़िला पहुंचा तो घर के बाहर ही सबके बैठने की व्यवस्था कर दी गई। आसमान में घने बादल छाए हुए थे जिसके चलते धूप नहीं थी और ठंडी हवाएं चल रहीं थी।

सब लोग बैठे हुए थे जबकि चंद्रकांत चेहरे पर अजीब सी सख़्ती धारण किए घर के बाहर दोनों तरफ बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर बैठा था। वातावरण में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। आगे की कार्यवाही अथवा पूछताछ के लिए महेंद्र सिंह ने औपचारिक रूप से सभी लोगों के सामने वार्तालाप शुरू किया और फिर मुद्दे की बात के लिए चंद्रकांत को अपने थोड़ा पास बुला लिया।

"हम उम्मीद करते हैं कि अब तुम्हारा दिलो दिमाग़ पहले से थोड़ा शांत और बेहतर हो गया होगा।" महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत की तरफ देखते हुए कहा____"अतः अब हम ये उम्मीद करते हैं कि हम जो कुछ भी तुमसे पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब दोगे।"

कुछ घंटे लोगों के बीच रहने के चलते कदाचित चंद्रकांत की मनोदसा में थोड़ा परिवर्तन आ गया था। इस लिए महेंद्र सिंह की बात सुन कर उसने ख़ामोशी से ही हां में सिर हिला दिया था।

"बहुत बढ़िया।" महेंद्र सिंह ने कहा___"हमारा सबसे पहला सवाल ये है कि वो कौन था जिसने तुम्हें ये बताया कि तुम्हारे बेटे की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी?"

"कल रात की बात है।" चंद्रकांत ने सपाट लहजे से कहा____"शायद उस वक्त रात के बारह बजे रहे होंगे। मैं पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकला था। पेशाब कर के वापस घर के अंदर जाने ही लगा था कि तभी अजीब सी आहट हुई जिसके चलते मैं रुक गया। पहले मुझे लगा कि शायद ये मेरा वहम है इस लिए ध्यान न दे कर मैंने फिर से अपने क़दम आगे बढ़ाए मगर तभी आहट फिर से हुई। इस बार की आहट से मैं समझ गया कि इसके पहले मुझे कोई वहम नहीं हुआ था। ख़ैर मैं ये देखने के लिए इधर उधर निगाह डालने लगा कि रात के इस वक्त आख़िर किस चीज़ से आहट हो रही है? मुझे याद आया कि ऐसी ही एक रात मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी। मुझे एकदम से लगा जैसे उस वक्त भी वो हत्यारा मेरे आस पास मौजूद है। अंधेरा था इस लिए स्पष्ट कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन जल्दी ही मेरी निगाह नीम अंधेरे में एक जगह खड़े एक साए पर पड़ गई।"

"साए पर??" महेंद्र सिंह पूछे बगैर न रह सके थे____"किसका साया था वो?"

"एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति का जिसके बारे में इसके पहले दादा ठाकुर ज़िक्र कर चुके थे।" चंद्रकांत ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"हां ठाकुर साहब, वो कोई और नहीं बल्कि वही सफ़ेदपोश व्यक्ति था जिसके बारे में आपने मुझसे और गौरी शंकर जी से पूछा था।"

चंद्रकांत की ये बात सुन कर पिता जी के साथ साथ बाकी सब लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। हैरत में डूबा चेहरा लिए सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। इधर मेरा भी वही हाल था। मैं भी सोच में पड़ गया था कि साला अब ये क्या चक्कर है? इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और अब इस तरह से उसका पता चल रहा था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि चंद्रकांत के इस मामले में सफ़ेदपोश कहां से और कैसे आ गया?

"ये तुम क्या कह रहे हो चंद्रकांत?" पिता जी पूछने से खुद को रोक न सके____"पिछली रात तुमने जिस साए को देखा क्या वो सच में सफ़ेदपोश था? कहीं तुम्हें कोई वहम तो नहीं हुआ था?"

"वहम का सवाल ही नहीं उठता ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने पूरी मजबूती से कहा____"क्योंकि मैंने उसे बहुत क़रीब से और अपनी आंखों से देखा था। इतना ही नहीं काफी देर तक मेरी उससे बातें भी हुईं थी। वो वही था जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद लिबास था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" पिता जी बरबस ही कह उठे____"इतने समय से हम उस सफ़ेदपोश को तलाश कर रहे हैं किंतु उसका कहीं कोई सुराग़ नहीं मिल सका और तुम कह रहे हो कि तुमने उसे देखा है? उससे बातें भी की हैं?"

"यही सच है ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"उसी ने मुझे बताया कि मेरे बेटे का हत्यारा मेरी अपनी ही बहू थी।"

"और उसके कहने से तुमने मान लिया?" महेंद्र सिंह ने हैरत से उसे देखा____"बड़े आश्चर्य की बात है कि तुमने एक ऐसे व्यक्ति की बात मान ली जो जाने कब से खुद को सबसे छुपाए फिर रहा है। इतना ही नहीं जो ठाकुर साहब के बेटे वैभव की जान का दुश्मन भी बना हुआ है। हमें बिल्कुल भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा कि तुमने ऐसे व्यक्ति के कहने पर अपनी बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान लिया और फिर बदले की भावना के चलते उसे मार भी डाला।"

"बिल्कुल, हमारा भी यही कहना है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि तुमने उस सफ़ेदपोश के कहने बस से ही अपनी बहू को हत्यारिन नहीं मान लिया होगा। यकीनन उसने तुम्हें कोई ऐसी वजह भी बताई होगी जिसके बाद तुम्हें अपनी बहू के हत्यारिन होने पर यकीन आ गया होगा। हम सब भी ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हें ऐसा क्या बताया था?"

"मैं हर बात किसी को बताना ज़रूरी नहीं समझता।" चंद्रकांत ने सख़्ती से जबड़े भींच कर कहा____"ये मेरा पारिवारिक और बेहद निजी मामला है।"

"जब किसी औरत को बेरहमी से मार डाला जाए तो मामला पारिवारिक अथवा निजी नहीं रह जाता चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने कठोर भाव से कहा____"तुमने अपनी बहू को बेरहमी से मार डाला है, इस लिए अब तुम्हें बताना ही होगा कि इसके पीछे की असल वजह क्या है? परिवार का मामला चाहे जैसा भी हो लेकिन किसी की हत्या कर देने का हक़ किसी को भी नहीं है। तुमने अपनी बहू की हत्या की है और इस अपराध के लिए तुम्हें सज़ा भी मिलेगी।"

"हां तो दे दीजिए मुझे सज़ा।" चंद्रकांत पागलों की तरह चीख पड़ा____"चढ़ा दीजिए मुझे सूली पर। मेरे मर जाने से कम से कम दादा ठाकुर के कलेजे को शांति तो मिल जाएगी।"

"मादरचोद, क्या बोला तूने?" चंद्रकांत की बात से मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं गुस्से में आग बबूला हो कर पलक झपकते ही उसके क़रीब पहुंच गया।

इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता मैंने उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया और फिर गुर्राते हुए कहा____"तू कौन सा दूध का धुला है जो हर बात में तू मेरे बाप पर उंगली कर के तंज़ कसने लगता है? तेरी सच्चाई ये है कि तू एक नामर्द है और तेरा बेटा तुझसे भी बड़ा नामर्द था। तेरे घर की औरतें तेरे सामने दूसरे मर्दों के साथ अपनी हवस मिटाती थीं और तुम दोनों बाप बेटे अपने उबलते खून को पानी से ठंडा करते थे।"

"ये क्या हिमाकत है??" पिता जी गुस्से से दहाड़ उठे।

उनके साथ साथ बाकी सब भी उछल कर खड़े हो गए थे। महेंद्र सिंह का छोटा भाई ज्ञानेंद्र सिंह लपक कर मेरे पास आया और मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचने लगा मगर मैंने झटक दिया उसे। इस वक्त बड़ा तेज़ गुस्सा आया हुआ था मुझे। मेरे झटक देने पर ज्ञानेंद्र झोंक में पीछे जा कर गिरते गिरते बचा। इधर चंद्रकांत चेहरे पर दहशत के भाव लिए चिल्लाने लगा था। ज्ञानेंद्र सम्हल कर फिर से मुझे छुड़ाने के लिए मेरे क़रीब आया और इस बार वो मुझे पूरी ताक़त से खींच कर चंद्रकांत से दूर ले गया।

"तुम दोनो बाप बेटे जैसा हिजड़ा इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगा।" मैं गुस्से चीखते हुए बोला____"साले नामर्द, अपनी औरतों को तो बस में कर नहीं सका और मर्द बनता है बेटीचोद।"

"तुम्हें इस हिमाकत की सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाएगी।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए बेहद गुस्से में कहा____"इसी वक्त चले जाओ यहां से वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"बेशक सज़ा दे दीजिएगा पिता जी।" मैंने गुस्से से भभकते हुए खुद को एक झटके में ज्ञानेंद्र से छुड़ाया, फिर बोला____"लेकिन इस मादरचोद ने अगर दुबारा फिर से किसी बात पर आपकी तरफ उंगली उठाई तो इसकी ज़ुबान हलक से निकाल कर इसके हाथ में दे दूंगा।"

शोर शराबा सुन कर घर के अंदर से औरतें भाग कर बाहर आ गईं थी। बाहर मौजूद लोग भी तितर बितर हो कर दूर हट गए थे। सभी के चेहरों पर ख़ौफ के भाव उभर आए थे। उधर चंद्रकांत सहम कर घर के बाहर दोनों तरफ बनी पट्टी पर बैठ गया था। जूड़ी के मरीज़ की तरह थर थर कांपे जा रहा था वो।

"हमने कहा चले जाओ यहां से।" पिता जी इस बार गुस्से में दहाड़ ही उठे। पिता जी का गुस्सा देख महेंद्र सिंह ने अपने भाई को इशारा किया तो वो मुझे ले कर अपनी जीप की तरफ बढ़ चला।

"मुझे तुमसे ऐसी बेहूदा हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वैभव।" रास्ते में ज्ञानेंद्र सिंह ने गंभीरता से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"सबके सामने तुम्हें ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था और ना ही उसे गालियां देनी चाहिए थी।"

"और उसे सबके सामने मेरे पिता पर तंज कसना चाहिए था, है ना?" मैंने तीखे भाव से ज्ञानेंद्र की तरफ देखा।

"तुम उस व्यक्ति के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो।" ज्ञानेंद्र ने कहा____"पिछले कुछ समय में यहां जो कुछ हुआ है उससे हम सब भी इतना समझ चुके हैं कि कौन कैसा है। एक बात हमेशा याद रखो कि कीचड़ में अगर पत्थर मारोगे तो वो कीचड़ उल्टा तुम्हें ही गंदा करेगा, जबकि उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। चंद्रकांत की दशा कीचड़ जैसी ही है।"

"मैं काफी समय से उसको बर्दास्त करता आ रहा था चाचू।" मैंने खीझते हुए कहा____"लेकिन आज सबके सामने जब उसने फिर से पिता जी पर तंज कसा तो मैं बर्दास्त नहीं कर सका। एक तो मादरचोद ने खुद अपनी ही बहू को मार डाला और ऊपर से अभी भी खुद को साधू महात्मा दर्शाने की कोशिश कर रहा है।"

"मूर्ख लोग ऐसे ही होते हैं वैभव।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"समझदार लोग मूर्खों की बातों पर ध्यान नहीं देते। जैसे तुम्हारे पिता जी उसकी बातों को सुन कर धैर्य धारण किए रहते हैं वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए था।"

अब तक मेरा गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो गया था इस लिए ज्ञानेंद्र सिंह की बातें अब मेरे ज़हन में आसानी से घुस रहीं थी। मुझे एहसास होने लगा था कि वाकई में मुझसे ग़लती हो गई है। मुझे सबके सामने इस तरह का तमाशा नहीं करना चाहिए था।

"मैंने सुना है कि तुम पहले से अब काफी बदल गए हो।" ज्ञानेंद्र सिंह ने मुझे ख़ामोश देखा तो इस बार बड़ी शालीनता से कहा____"और एक अच्छे इंसान की तरह अपनी हर ज़िम्मेदारियां निभा रहे हो। एक वक्त था जब हम लोग दादा ठाकुर के सामने तुम्हारा ज़िक्र करते थे तो अक्सर उनका चेहरा मायूस हो जाया करता था किंतु पिछले कुछ समय से हमने यही देखा है कि तुम्हारा ज़िक्र होने पर उनके चेहरे पर खुशी और गर्व के भाव आ जाते हैं। अगर एक पिता अपने बेटे के लिए खुशी और गर्व महसूस करने लगे तो इसका मतलब ये होता है कि उन्हें दुनिया की हर खुशी मिल चुकी है। यानि अब उन्हें किसी चीज़ की हसरत नहीं है। ख़ैर, मैं रिश्ते में तुम्हारा चाचू हूं लेकिन तुम मुझे अपना दोस्त भी मान सकते हो। एक दोस्त के नाते मैं तुमसे यही कहूंगा कि इतना कुछ होने के बाद अब तुम ही दादा ठाकुर की एक मात्र उम्मीद हो। तुम भले ही उनके बेटे हो लेकिन तुमसे कहीं ज़्यादा उनके बारे में हम जानते हैं। हमने बचपन से दादा ठाकुर को लोगों की खुशी के लिए संघर्ष करते देखा है। मेरे भैया हमेशा मुझसे कहा करते हैं कि मैं दादा ठाकुर की तरह बनूं और हमेशा उनके नक्शे क़दम पर चलूं। ज़ाहिर है मेरे भैया भी समझते हैं कि दादा ठाकुर कितने महान इंसान हैं। हम सब उनके नक्शे क़दम पर चलने की कोशिश भले ही करते हैं लेकिन उनके जैसा बनना बिल्कुल भी आसान नहीं है। फिर भी इतना तो कर ही सकते हैं कि हमारे आचरण से किसी का अहित न हो बल्कि सबका भला ही हो।"

"मैं समझ गया चाचू कि आप क्या कहना चाहते हैं।" मैंने अधीरता से कहा____"यकीन कीजिए मैं भी अब ऐसा ही इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे एहसास है कि मैंने इसके पहले बहुत ग़लत कर्म किए थे जिसके चलते मेरे खानदान का नाम ख़राब हुआ और पिता जी को हमेशा मेरी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। अब सब कुछ भुला कर यही कोशिश कर रहा हूं कि मुझसे ग़लती से भी कोई ग़लत काम न हो।"

"बहुत बढ़िया।" ज्ञानेंद्र सिंह ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"और हां अपने गुस्से पर भी लगाम लगाए रखा करो। तुम्हारा गुस्सा दूर दूर तक मशहूर है। लोग तुम्हारे गुस्से से बहुत डरते हैं। इस लिए इस पर लगाम लगा के रखो।"

"कोशिश कर रहा हूं चाचू।" मैंने झेंपते हुए कहा____"मैंने काफी समय से किसी पर गुस्सा नहीं किया और ना ही किसी को बुरा भला कहा है। आज भी मैं गुस्सा ना होता अगर चंद्रकांत मेरे पिता जी पर तंज न कसता।"

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"देखो, हम हवेली पहुंच गए हैं। तुम जाओ आराम करो, मैं अब वापस जाऊंगा।"

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास जीप रुकी तो मैं उतर गया। ज्ञानेंद्र सिंह ने जीप को वापस मोड़ा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे पता है कि तुम हर जगह मशहूर हो लेकिन फिर भी एक नई पहचान के लिए लोगों से मिलना मिलाना बेहद ज़रूरी होता है। कभी समय निकाल कर आओ हमारे यहां।"

"बिल्कुल चाचू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ज़रूर आऊंगा। आख़िर अब आप मेरे चाचू के साथ साथ दोस्त भी तो बन गए हैं।"

मेरी बात सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह हल्के से हंसा और फिर जीप को आगे बढ़ा कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ पैदल चल पड़ा। ज्ञानेंद्र सिंह मुझे एक अच्छा इंसान प्रतीत हुआ था। वो विवाहित था किन्तु उम्र ज़्यादा नहीं हुई थी उसकी। शरीर काफी फिट था जिसके चलते उसकी उमर का पता नहीं चलता था। ख़ैर उसके बारे में सोचते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली के अंदर दाखिल हो गया।

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मेरी वजह से जो हंगामा हुआ था उसे जल्द ही सम्हाल लिया गया था और अब सब कुछ ठीक था। पिता जी के चेहरे पर अभी भी नाराज़गी दिख रही थी। ज़ाहिर है मेरी वजह से उन्हें एक बार फिर से शर्मिंदगी हुई थी। किसी को भी मुझसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी। ख़ैर जो होना था वो हो चुका था। महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत को फिर से अपने सामने बुला लिया था। इस वक्त वो अजीब सा चेहरा लिए खड़ा था।

"ठाकुर साहब को बचपन से जानते हुए भी तुम इनके बारे में ऐसे ख़याल रखते हो जोकि हैरत की बात है।" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारा जो भी मामला था उसे तुम दूसरे तरीके से भी बहुत अच्छी तरह सुलझा सकते थे। दूसरी बात ये भी है कि ग़लती सिर्फ ठाकुर साहब के बेटे की ही बस नहीं थी बल्कि तुम्हारे घर की औरतों की भी थी। तुमने अपने घर की औरतों को कुछ नहीं कहा और ना ही उनके ग़लत कर्मों के लिए उन्हें धिक्कारा। इसके बदले तुमने वो किया जो किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए था। अगर तुम्हें पता चल ही गया था कि तुम्हारे घर के मामले में वैभव भी शामिल है तो तुम्हें सीधा ठाकुर साहब से इस बारे में बात करनी चाहिए थी। इसके बाद भी अगर कोई हल न निकलता तो तुम्हारा ऐसा क़दम उठाना जायज़ कहलाता लेकिन नहीं, तुमने वो किया जिसके चलते ना जाने कितने लोगों की जानें चली गईं।"

चंद्रकांत अपराध बोझ से सिर झुकाए खड़ा रहा। उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था। चौगान में बैठे लोग सांसें रोके महेंद्र सिंह की बातें सुन रहे थे और साथ ही समझने की कोशिश कर रहे थे कि किसकी कहां ग़लती रही है?

"ख़ैर जो हो गया उसे तो अब लौटाया नहीं जा सकता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"लेकिन ये जो तुमने किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती। किंतु उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हारी बहू के बारे में ऐसा क्या बताया था जिससे तुमने ये मान लिया कि तुम्हारी बहू ने ही रघुवीर की हत्या की है?"

"उसने मुझे बताया था कि मेरी बहू रजनी ने हाल ही में एक नए व्यक्ति से संबंध बना लिया था।" चंद्रकांत ने जबड़े भींच कर कहा____"वो व्यक्ति रजनी को हमेशा के लिए अपनी बना कर ले जाना चाहता था। रजनी भी इसके लिए तैयार थी। उस रात रजनी अपने उस नए आशिक़ के साथ भाग ही रही थी। उसने जब देखा कि मेरा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ है तो वो चुपके से अपना ज़रूरी समान ले कर घर से बाहर निकल आई थी। घर के बाहर उसका आशिक़ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। रजनी को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि ऐन वक्त पर मेरा बेटा उसके पीछे पीछे आ जाएगा। असल में मेरे बेटे को रात में पेशाब करने के लिए दो तीन बार बाहर जाना पड़ता था। उस रात भी वो पेशाब करने के लिए ही बाहर निकला था। कमरे में रजनी को न देख कर वो चौंका ज़रूर था किंतु उसने यही सोचा था कि शायद रजनी भी उसकी तरह बाहर लघुशंका करने गई होगी। ख़ैर जब मेरा बेटा बाहर आया तो उसने देखा कि उसकी बीवी अंधेरे में किसी के पास खड़ी थी और धीमी आवाज़ में बातें कर रही थी। रघुवीर फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा तो वो दोनों मेरे बेटे को देख कर बुरी तरह डर गए। इधर मेरा बेटा भी अपनी बीवी को रात के उस वक्त किसी गैर मर्द के साथ देख कर उछल पड़ा था। उसे समझने में देर न लगी कि रजनी अंधेरे में अपने आशिक़ के साथ क्या कर रही थी। मेरे बेटे को इतना गुस्सा आया कि उसने पहले तो रजनी को ज़ोर का धक्का दे कर दूर धकेला और फिर उसके आशिक़ को मारने लगा। रजनी इस सबसे बहुत ज़्यादा घबरा गई। उसे लगा कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए और लोगों को पता न चल जाए। उधर मेरा बेटा उसके आशिक़ की धुनाई करने में लगा हुआ था। रजनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? तभी उसकी नज़र वहीं कुछ ही दूरी पर पड़ी कुल्हाड़ी पर पड़ी। उसने झट से उस कुल्हाड़ी को उठा लिया और रघुवीर के क़रीब आ कर उसे धमकाया कि वो उसके आशिक़ को छोड़ दे वरना वो उस कुल्हाड़ी से उसका खून कर देगी। रघुवीर को लगा था कि रजनी सिर्फ उसे धमका रही है इस लिए उसने उसे गंदी गाली दे कर फिर से धक्का दे दिया और उसके आशिक़ को मारने लगा। अब तक इस सबके चलते थोड़ा शोर होने लगा था जिससे रजनी और भी ज़्यादा घबरा उठी थी। वो क्योंकि अपने आशिक़ के साथ नई दुनिया बसा लेना चाहती थी इस लिए उसने समय न ख़राब करते हुए आगे बढ़ कर मेरे बेटे पर उस कुल्हाड़ी से वार कर दिया। कुल्हाड़ी का वार सीधा रघुवीर की गर्दन पर लग गया। ऐसा इत्तेफ़ाक से ही हुआ था। रजनी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। रघुवीर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया और दर्द से तड़पने लगा। कुछ ही देर में उसका जिस्म एकदम से शांत पड़ गया। मेरा बेटा मर चुका था। जब रजनी और उसके आशिक़ को इस बात का आभास हुआ तो दोनों ही सन्न रह गए। रजनी का आशिक़ मेरे बेटे के इस तरह मर जाने से इतना डर गया कि वो वहां से फ़ौरन ही भाग गया। इधर रजनी की भी हालत ख़राब हो गई थी। उसने अपने जाते हुए आशिक़ को पुकारना चाहा मगर किसी के सुन लेने के डर से वो उसे पुकार ना सकी किंतु इतना उसे ज़रूर समझ आ गया था कि उसके आशिक़ ने उसे ऐसे वक्त पर धोखा दे दिया है। रजनी से वो हो गया था जिसे उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। काफी देर तक वो मेरे बेटे की लाश के पास बैठी रोती रही। फिर जैसे ही उसे हालात की गंभीरता का एहसास हुआ तो वो सोचने लगी कि अब वो क्या करे? वो जानती थी कि उससे बहुत बड़ा कांड हो गया है और जब इस बात का पता घर वालों को चलेगा तो वो कोई जवाब नहीं दे पाएगी। उसने आनन फानन में खून से सनी उस कुल्हाड़ी को फेंका और फिर अपना हुलिया ठीक कर के घर के अंदर आ गई। अपने कमरे में आ कर वो सोचने लगी कि इस गंभीर मुसीबत से बचने के लिए वो क्या करे? सारी रात उसने सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे अपने धोखेबाज आशिक़ पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से उसने इतना बड़ा क़दम उठाया था। तभी उसे रूपचंद्र का ख़याल आया। रूपचंद्र ने उसे पिछली शाम रास्ते में रोका था और उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती की थी जिसके जवाब में रजनी ने उसे खरी खोटी सुनाई थी। रजनी ने जब इस बारे में सोचा तो उसे अपने बचाव के लिए तरीका सूझ गया। सुबह जब हम सबको इस बात का पता चला तो हम सब रोने धोने लगे। रजनी भी हमारी तरह रोने धोने लगी थी। कुछ देर बाद उसने रोते हुए वही सब कहना शुरू कर दिया जो रात में उसने सोचा था। उसकी बात सुन कर मैं भी उसके फेर में आ गया था और फिर आगे क्या हुआ ये सब आप जानते ही हैं।"

इतना सब कुछ बताने के बाद चंद्रकांत चुप हुआ तो वातावरण में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी के साथ साथ महेंद्र सिंह और बाकी सब भी चकित भाव से उसकी तरफ देखे जा रहे थे।

"तो उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें ये सब बताया था जिसके बाद तुम्हें भी यकीन हो गया कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी बहू ने ही की है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर वाकई में ये सच है तो ये बड़े ही आश्चर्य की बात है कि अब तक हम में से किसी को इस बारे में पता तक नहीं चल सका। वैसे तुमने उस सफ़ेदपोश से पूछा नहीं कि उसे ये सब बातें कैसे पता थीं? आख़िर इतनी गहरी राज़ की बातें उसे कैसे पता चलीं? तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सफ़ेदपोश ने अपनी आंखों देखा हाल ही बताया था तुम्हें। अगर यही सच है तो सवाल उठता है कि उसने इस सबको रोका क्यों नहीं? क्यों अपनी आंखों के सामने तुम्हारे बेटे की हत्या हो जाने दी?"

चंद्रकांत, महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर बड़े अजीब भाव से देखने लगा उन्हें। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते हुए नज़र आने लगे थे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो बड़ी तेज़ी से कुछ सोचने समझने की कोशिश कर रहा हो।

"उस सफ़ेदपोश से और क्या बातें हुईं थी तुम्हारी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए चंद्रकांत से पूछा____"हमारा मतलब है कि उस सफ़ेदपोश ने तुम्हारे बेटे के हत्यारे के बारे में तुम्हें बताया तो बदले में क्या उसने तुमसे कुछ नहीं चाहा?"

"चाहा है।" चंद्रकांत बड़ी अजीब दुविधा लिए बोला____"कल रात उसने कहा था कि बदले में मुझे भी वही करना होगा जो वो करने को कहेगा मुझसे।"

"अच्छा।" महेंद्र सिंह ने कहा____"और क्या कहा था उसने?"

"यही कि आज रात वो किसी भी वक्त मुझसे मिलने आ सकता है।" चंद्रकांत ने कहा____"शायद अब वो मुझे कोई काम सौंपेगा जिसे मुझे करना होगा। उसने मुझे धमकी भी दी थी कि अगर मैं अपने वादे से मुकर गया तो ये मेरे और मेरे परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा।"

"बहुत खूब।" महेंद्र सिंह बोल पड़े____"फिर तो तुम्हें उसके लिए तैयार रहना चाहिए, है ना?"

चंद्रकांत अजीब सा मुंह बनाए खड़ा रह गया। उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी द्वंद से जूझ रहा है।

"ठाकुर साहब क्या लगता है आपको?" महेंद्र सिंह सहसा दादा ठाकुर से मुखातिब हुए____"क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो हम सोच रहे हैं?"

"हमें तो लगता है कि वो सफ़ेदपोश चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हौलनाक खेल खेल गया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"उसने चंद्रकांत को ऐसी कहानी सुनाई जिसे सच मान कर चंद्रकांत ने अपने हाथों अपनी ही बहू को बेटे की हत्यारिन मान कर मार डाला।"

"बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमें भी यही लगता है। सफ़ेदपोश को चंद्रकांत की मनोदशा का भली भांति एहसास था जिसका उसने फ़ायदा उठाया और फिर उसने वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।"

"सोचने वाली बात है कि रघुवीर की हत्या हुए इतने दिन गुज़र गए हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और अभी तक उस सफ़ेदपोश का कहीं अता पता नहीं था। अगर उसे चंद्रकांत से इतनी ही हमदर्दी थी तो उसने पहले ही चंद्रकांत के पास आ कर उसे ये क्यों नहीं बताया था कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है? इतने दिनों तक किस बात का इंतज़ार कर रहा था वो? ख़ैर ये तो थी एक बात, दूसरी सोचने वाली बात ये है कि ये सब बताने के पीछे सफ़ेदपोश का मकसद क्या था? क्या ये कि अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जान कर चंद्रकांत उसकी जान ही ले ले? अगर यही सच है तो फिर उसे चंद्रकांत का हमदर्द नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपनी बहू की हत्या करने के बाद चंद्रकांत को कोई पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला बल्कि सख़्त से सख़्त सज़ा ही मिलेगी।"

"सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"चंद्रकांत ने जो किया है उसके लिए तो इसे यकीनन सज़ा ही मिलेगी लेकिन अभी ये भी देखना है कि आगे क्या होता है? हमारा मतलब है कि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा है तो देखते हैं ऐसा होता है कि नहीं।"

चंद्रकांत सारी बातें सुन रहा था और अब उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी रो देगा। बड़ी मुश्किल से खुद को रोके हुए था वो। चौगान में बैठे बाकी लोग सतब्ध से बैठे बातें सुन रहे थे।

"अगर आज रात वो सफ़ेदपोश सचमुच चंद्रकांत से मिलने आएगा तो यही समझा जाएगा कि उसकी बातों में अथवा ये कहें कि उसकी कहानी में कहीं न कहीं सच्चाई थी।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और अगर वो नहीं आया तो स्पष्ट हो जाएगा कि वो चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हैरतंगेज खेल खेल गया है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"आगे की कार्यवाही कल की जाएगी चंद्रकांत। आज रात हम भी ये देखना चाहते हैं कि तुम्हारा वो हमदर्द सफ़ेदपोश अपनी कसौटी पर कितना खरा उतरता है।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर अभी खड़े ही हुए थे कि तभी चंद्रकांत आर्तनाद सा करता हुआ उनके पैरों में लोट गया। ये देख उनके साथ साथ बाकी उपस्थित लोग भी चौंक पड़े। उधर चंद्रकांत रोते बिलखते हुए कहता चला गया____"मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो रहा है कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है।"

"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"




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Nice update
 

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अध्याय - 103
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"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?



अब आगे....


चंद्रकांत और उसके बेटे के ससुराल वाले पहले ही आ गए थे जिसके चलते काफी रोना धोना हुआ था उसके घर में। रघुवीर की ससुराल वाले तो आपे से बाहर भी हो ग‌ए थे जिसके चलते हंगामा होने वाला था मगर गांव वालों ने फ़ौरन ही सब सम्भाल लिया था।

हम सब जब वहां पहुंचे तो देखा कि गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग लोग पहले से ही चंद्रकांत के घर में मौजूद थे। रघुवीर का साला और उसका ससुर बाहर ही एक तरफ गुमसुम से बैठे थे जबकि उनके साथ आई औरतें और लड़कियां घर के अंदर थीं। बहरहाल, पिता जी के साथ जब महेंद्र सिंह आदि लोगों का काफ़िला पहुंचा तो घर के बाहर ही सबके बैठने की व्यवस्था कर दी गई। आसमान में घने बादल छाए हुए थे जिसके चलते धूप नहीं थी और ठंडी हवाएं चल रहीं थी।

सब लोग बैठे हुए थे जबकि चंद्रकांत चेहरे पर अजीब सी सख़्ती धारण किए घर के बाहर दोनों तरफ बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर बैठा था। वातावरण में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। आगे की कार्यवाही अथवा पूछताछ के लिए महेंद्र सिंह ने औपचारिक रूप से सभी लोगों के सामने वार्तालाप शुरू किया और फिर मुद्दे की बात के लिए चंद्रकांत को अपने थोड़ा पास बुला लिया।

"हम उम्मीद करते हैं कि अब तुम्हारा दिलो दिमाग़ पहले से थोड़ा शांत और बेहतर हो गया होगा।" महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत की तरफ देखते हुए कहा____"अतः अब हम ये उम्मीद करते हैं कि हम जो कुछ भी तुमसे पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब दोगे।"

कुछ घंटे लोगों के बीच रहने के चलते कदाचित चंद्रकांत की मनोदसा में थोड़ा परिवर्तन आ गया था। इस लिए महेंद्र सिंह की बात सुन कर उसने ख़ामोशी से ही हां में सिर हिला दिया था।

"बहुत बढ़िया।" महेंद्र सिंह ने कहा___"हमारा सबसे पहला सवाल ये है कि वो कौन था जिसने तुम्हें ये बताया कि तुम्हारे बेटे की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी?"

"कल रात की बात है।" चंद्रकांत ने सपाट लहजे से कहा____"शायद उस वक्त रात के बारह बजे रहे होंगे। मैं पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकला था। पेशाब कर के वापस घर के अंदर जाने ही लगा था कि तभी अजीब सी आहट हुई जिसके चलते मैं रुक गया। पहले मुझे लगा कि शायद ये मेरा वहम है इस लिए ध्यान न दे कर मैंने फिर से अपने क़दम आगे बढ़ाए मगर तभी आहट फिर से हुई। इस बार की आहट से मैं समझ गया कि इसके पहले मुझे कोई वहम नहीं हुआ था। ख़ैर मैं ये देखने के लिए इधर उधर निगाह डालने लगा कि रात के इस वक्त आख़िर किस चीज़ से आहट हो रही है? मुझे याद आया कि ऐसी ही एक रात मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी। मुझे एकदम से लगा जैसे उस वक्त भी वो हत्यारा मेरे आस पास मौजूद है। अंधेरा था इस लिए स्पष्ट कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन जल्दी ही मेरी निगाह नीम अंधेरे में एक जगह खड़े एक साए पर पड़ गई।"

"साए पर??" महेंद्र सिंह पूछे बगैर न रह सके थे____"किसका साया था वो?"

"एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति का जिसके बारे में इसके पहले दादा ठाकुर ज़िक्र कर चुके थे।" चंद्रकांत ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"हां ठाकुर साहब, वो कोई और नहीं बल्कि वही सफ़ेदपोश व्यक्ति था जिसके बारे में आपने मुझसे और गौरी शंकर जी से पूछा था।"

चंद्रकांत की ये बात सुन कर पिता जी के साथ साथ बाकी सब लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। हैरत में डूबा चेहरा लिए सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। इधर मेरा भी वही हाल था। मैं भी सोच में पड़ गया था कि साला अब ये क्या चक्कर है? इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और अब इस तरह से उसका पता चल रहा था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि चंद्रकांत के इस मामले में सफ़ेदपोश कहां से और कैसे आ गया?

"ये तुम क्या कह रहे हो चंद्रकांत?" पिता जी पूछने से खुद को रोक न सके____"पिछली रात तुमने जिस साए को देखा क्या वो सच में सफ़ेदपोश था? कहीं तुम्हें कोई वहम तो नहीं हुआ था?"

"वहम का सवाल ही नहीं उठता ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने पूरी मजबूती से कहा____"क्योंकि मैंने उसे बहुत क़रीब से और अपनी आंखों से देखा था। इतना ही नहीं काफी देर तक मेरी उससे बातें भी हुईं थी। वो वही था जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद लिबास था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" पिता जी बरबस ही कह उठे____"इतने समय से हम उस सफ़ेदपोश को तलाश कर रहे हैं किंतु उसका कहीं कोई सुराग़ नहीं मिल सका और तुम कह रहे हो कि तुमने उसे देखा है? उससे बातें भी की हैं?"

"यही सच है ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"उसी ने मुझे बताया कि मेरे बेटे का हत्यारा मेरी अपनी ही बहू थी।"

"और उसके कहने से तुमने मान लिया?" महेंद्र सिंह ने हैरत से उसे देखा____"बड़े आश्चर्य की बात है कि तुमने एक ऐसे व्यक्ति की बात मान ली जो जाने कब से खुद को सबसे छुपाए फिर रहा है। इतना ही नहीं जो ठाकुर साहब के बेटे वैभव की जान का दुश्मन भी बना हुआ है। हमें बिल्कुल भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा कि तुमने ऐसे व्यक्ति के कहने पर अपनी बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान लिया और फिर बदले की भावना के चलते उसे मार भी डाला।"

"बिल्कुल, हमारा भी यही कहना है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि तुमने उस सफ़ेदपोश के कहने बस से ही अपनी बहू को हत्यारिन नहीं मान लिया होगा। यकीनन उसने तुम्हें कोई ऐसी वजह भी बताई होगी जिसके बाद तुम्हें अपनी बहू के हत्यारिन होने पर यकीन आ गया होगा। हम सब भी ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हें ऐसा क्या बताया था?"

"मैं हर बात किसी को बताना ज़रूरी नहीं समझता।" चंद्रकांत ने सख़्ती से जबड़े भींच कर कहा____"ये मेरा पारिवारिक और बेहद निजी मामला है।"

"जब किसी औरत को बेरहमी से मार डाला जाए तो मामला पारिवारिक अथवा निजी नहीं रह जाता चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने कठोर भाव से कहा____"तुमने अपनी बहू को बेरहमी से मार डाला है, इस लिए अब तुम्हें बताना ही होगा कि इसके पीछे की असल वजह क्या है? परिवार का मामला चाहे जैसा भी हो लेकिन किसी की हत्या कर देने का हक़ किसी को भी नहीं है। तुमने अपनी बहू की हत्या की है और इस अपराध के लिए तुम्हें सज़ा भी मिलेगी।"

"हां तो दे दीजिए मुझे सज़ा।" चंद्रकांत पागलों की तरह चीख पड़ा____"चढ़ा दीजिए मुझे सूली पर। मेरे मर जाने से कम से कम दादा ठाकुर के कलेजे को शांति तो मिल जाएगी।"

"मादरचोद, क्या बोला तूने?" चंद्रकांत की बात से मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं गुस्से में आग बबूला हो कर पलक झपकते ही उसके क़रीब पहुंच गया।

इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता मैंने उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया और फिर गुर्राते हुए कहा____"तू कौन सा दूध का धुला है जो हर बात में तू मेरे बाप पर उंगली कर के तंज़ कसने लगता है? तेरी सच्चाई ये है कि तू एक नामर्द है और तेरा बेटा तुझसे भी बड़ा नामर्द था। तेरे घर की औरतें तेरे सामने दूसरे मर्दों के साथ अपनी हवस मिटाती थीं और तुम दोनों बाप बेटे अपने उबलते खून को पानी से ठंडा करते थे।"

"ये क्या हिमाकत है??" पिता जी गुस्से से दहाड़ उठे।

उनके साथ साथ बाकी सब भी उछल कर खड़े हो गए थे। महेंद्र सिंह का छोटा भाई ज्ञानेंद्र सिंह लपक कर मेरे पास आया और मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचने लगा मगर मैंने झटक दिया उसे। इस वक्त बड़ा तेज़ गुस्सा आया हुआ था मुझे। मेरे झटक देने पर ज्ञानेंद्र झोंक में पीछे जा कर गिरते गिरते बचा। इधर चंद्रकांत चेहरे पर दहशत के भाव लिए चिल्लाने लगा था। ज्ञानेंद्र सम्हल कर फिर से मुझे छुड़ाने के लिए मेरे क़रीब आया और इस बार वो मुझे पूरी ताक़त से खींच कर चंद्रकांत से दूर ले गया।

"तुम दोनो बाप बेटे जैसा हिजड़ा इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगा।" मैं गुस्से चीखते हुए बोला____"साले नामर्द, अपनी औरतों को तो बस में कर नहीं सका और मर्द बनता है बेटीचोद।"

"तुम्हें इस हिमाकत की सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाएगी।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए बेहद गुस्से में कहा____"इसी वक्त चले जाओ यहां से वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"बेशक सज़ा दे दीजिएगा पिता जी।" मैंने गुस्से से भभकते हुए खुद को एक झटके में ज्ञानेंद्र से छुड़ाया, फिर बोला____"लेकिन इस मादरचोद ने अगर दुबारा फिर से किसी बात पर आपकी तरफ उंगली उठाई तो इसकी ज़ुबान हलक से निकाल कर इसके हाथ में दे दूंगा।"

शोर शराबा सुन कर घर के अंदर से औरतें भाग कर बाहर आ गईं थी। बाहर मौजूद लोग भी तितर बितर हो कर दूर हट गए थे। सभी के चेहरों पर ख़ौफ के भाव उभर आए थे। उधर चंद्रकांत सहम कर घर के बाहर दोनों तरफ बनी पट्टी पर बैठ गया था। जूड़ी के मरीज़ की तरह थर थर कांपे जा रहा था वो।

"हमने कहा चले जाओ यहां से।" पिता जी इस बार गुस्से में दहाड़ ही उठे। पिता जी का गुस्सा देख महेंद्र सिंह ने अपने भाई को इशारा किया तो वो मुझे ले कर अपनी जीप की तरफ बढ़ चला।

"मुझे तुमसे ऐसी बेहूदा हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वैभव।" रास्ते में ज्ञानेंद्र सिंह ने गंभीरता से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"सबके सामने तुम्हें ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था और ना ही उसे गालियां देनी चाहिए थी।"

"और उसे सबके सामने मेरे पिता पर तंज कसना चाहिए था, है ना?" मैंने तीखे भाव से ज्ञानेंद्र की तरफ देखा।

"तुम उस व्यक्ति के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो।" ज्ञानेंद्र ने कहा____"पिछले कुछ समय में यहां जो कुछ हुआ है उससे हम सब भी इतना समझ चुके हैं कि कौन कैसा है। एक बात हमेशा याद रखो कि कीचड़ में अगर पत्थर मारोगे तो वो कीचड़ उल्टा तुम्हें ही गंदा करेगा, जबकि उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। चंद्रकांत की दशा कीचड़ जैसी ही है।"

"मैं काफी समय से उसको बर्दास्त करता आ रहा था चाचू।" मैंने खीझते हुए कहा____"लेकिन आज सबके सामने जब उसने फिर से पिता जी पर तंज कसा तो मैं बर्दास्त नहीं कर सका। एक तो मादरचोद ने खुद अपनी ही बहू को मार डाला और ऊपर से अभी भी खुद को साधू महात्मा दर्शाने की कोशिश कर रहा है।"

"मूर्ख लोग ऐसे ही होते हैं वैभव।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"समझदार लोग मूर्खों की बातों पर ध्यान नहीं देते। जैसे तुम्हारे पिता जी उसकी बातों को सुन कर धैर्य धारण किए रहते हैं वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए था।"

अब तक मेरा गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो गया था इस लिए ज्ञानेंद्र सिंह की बातें अब मेरे ज़हन में आसानी से घुस रहीं थी। मुझे एहसास होने लगा था कि वाकई में मुझसे ग़लती हो गई है। मुझे सबके सामने इस तरह का तमाशा नहीं करना चाहिए था।

"मैंने सुना है कि तुम पहले से अब काफी बदल गए हो।" ज्ञानेंद्र सिंह ने मुझे ख़ामोश देखा तो इस बार बड़ी शालीनता से कहा____"और एक अच्छे इंसान की तरह अपनी हर ज़िम्मेदारियां निभा रहे हो। एक वक्त था जब हम लोग दादा ठाकुर के सामने तुम्हारा ज़िक्र करते थे तो अक्सर उनका चेहरा मायूस हो जाया करता था किंतु पिछले कुछ समय से हमने यही देखा है कि तुम्हारा ज़िक्र होने पर उनके चेहरे पर खुशी और गर्व के भाव आ जाते हैं। अगर एक पिता अपने बेटे के लिए खुशी और गर्व महसूस करने लगे तो इसका मतलब ये होता है कि उन्हें दुनिया की हर खुशी मिल चुकी है। यानि अब उन्हें किसी चीज़ की हसरत नहीं है। ख़ैर, मैं रिश्ते में तुम्हारा चाचू हूं लेकिन तुम मुझे अपना दोस्त भी मान सकते हो। एक दोस्त के नाते मैं तुमसे यही कहूंगा कि इतना कुछ होने के बाद अब तुम ही दादा ठाकुर की एक मात्र उम्मीद हो। तुम भले ही उनके बेटे हो लेकिन तुमसे कहीं ज़्यादा उनके बारे में हम जानते हैं। हमने बचपन से दादा ठाकुर को लोगों की खुशी के लिए संघर्ष करते देखा है। मेरे भैया हमेशा मुझसे कहा करते हैं कि मैं दादा ठाकुर की तरह बनूं और हमेशा उनके नक्शे क़दम पर चलूं। ज़ाहिर है मेरे भैया भी समझते हैं कि दादा ठाकुर कितने महान इंसान हैं। हम सब उनके नक्शे क़दम पर चलने की कोशिश भले ही करते हैं लेकिन उनके जैसा बनना बिल्कुल भी आसान नहीं है। फिर भी इतना तो कर ही सकते हैं कि हमारे आचरण से किसी का अहित न हो बल्कि सबका भला ही हो।"

"मैं समझ गया चाचू कि आप क्या कहना चाहते हैं।" मैंने अधीरता से कहा____"यकीन कीजिए मैं भी अब ऐसा ही इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे एहसास है कि मैंने इसके पहले बहुत ग़लत कर्म किए थे जिसके चलते मेरे खानदान का नाम ख़राब हुआ और पिता जी को हमेशा मेरी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। अब सब कुछ भुला कर यही कोशिश कर रहा हूं कि मुझसे ग़लती से भी कोई ग़लत काम न हो।"

"बहुत बढ़िया।" ज्ञानेंद्र सिंह ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"और हां अपने गुस्से पर भी लगाम लगाए रखा करो। तुम्हारा गुस्सा दूर दूर तक मशहूर है। लोग तुम्हारे गुस्से से बहुत डरते हैं। इस लिए इस पर लगाम लगा के रखो।"

"कोशिश कर रहा हूं चाचू।" मैंने झेंपते हुए कहा____"मैंने काफी समय से किसी पर गुस्सा नहीं किया और ना ही किसी को बुरा भला कहा है। आज भी मैं गुस्सा ना होता अगर चंद्रकांत मेरे पिता जी पर तंज न कसता।"

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"देखो, हम हवेली पहुंच गए हैं। तुम जाओ आराम करो, मैं अब वापस जाऊंगा।"

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास जीप रुकी तो मैं उतर गया। ज्ञानेंद्र सिंह ने जीप को वापस मोड़ा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे पता है कि तुम हर जगह मशहूर हो लेकिन फिर भी एक नई पहचान के लिए लोगों से मिलना मिलाना बेहद ज़रूरी होता है। कभी समय निकाल कर आओ हमारे यहां।"

"बिल्कुल चाचू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ज़रूर आऊंगा। आख़िर अब आप मेरे चाचू के साथ साथ दोस्त भी तो बन गए हैं।"

मेरी बात सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह हल्के से हंसा और फिर जीप को आगे बढ़ा कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ पैदल चल पड़ा। ज्ञानेंद्र सिंह मुझे एक अच्छा इंसान प्रतीत हुआ था। वो विवाहित था किन्तु उम्र ज़्यादा नहीं हुई थी उसकी। शरीर काफी फिट था जिसके चलते उसकी उमर का पता नहीं चलता था। ख़ैर उसके बारे में सोचते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली के अंदर दाखिल हो गया।

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मेरी वजह से जो हंगामा हुआ था उसे जल्द ही सम्हाल लिया गया था और अब सब कुछ ठीक था। पिता जी के चेहरे पर अभी भी नाराज़गी दिख रही थी। ज़ाहिर है मेरी वजह से उन्हें एक बार फिर से शर्मिंदगी हुई थी। किसी को भी मुझसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी। ख़ैर जो होना था वो हो चुका था। महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत को फिर से अपने सामने बुला लिया था। इस वक्त वो अजीब सा चेहरा लिए खड़ा था।

"ठाकुर साहब को बचपन से जानते हुए भी तुम इनके बारे में ऐसे ख़याल रखते हो जोकि हैरत की बात है।" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारा जो भी मामला था उसे तुम दूसरे तरीके से भी बहुत अच्छी तरह सुलझा सकते थे। दूसरी बात ये भी है कि ग़लती सिर्फ ठाकुर साहब के बेटे की ही बस नहीं थी बल्कि तुम्हारे घर की औरतों की भी थी। तुमने अपने घर की औरतों को कुछ नहीं कहा और ना ही उनके ग़लत कर्मों के लिए उन्हें धिक्कारा। इसके बदले तुमने वो किया जो किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए था। अगर तुम्हें पता चल ही गया था कि तुम्हारे घर के मामले में वैभव भी शामिल है तो तुम्हें सीधा ठाकुर साहब से इस बारे में बात करनी चाहिए थी। इसके बाद भी अगर कोई हल न निकलता तो तुम्हारा ऐसा क़दम उठाना जायज़ कहलाता लेकिन नहीं, तुमने वो किया जिसके चलते ना जाने कितने लोगों की जानें चली गईं।"

चंद्रकांत अपराध बोझ से सिर झुकाए खड़ा रहा। उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था। चौगान में बैठे लोग सांसें रोके महेंद्र सिंह की बातें सुन रहे थे और साथ ही समझने की कोशिश कर रहे थे कि किसकी कहां ग़लती रही है?

"ख़ैर जो हो गया उसे तो अब लौटाया नहीं जा सकता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"लेकिन ये जो तुमने किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती। किंतु उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हारी बहू के बारे में ऐसा क्या बताया था जिससे तुमने ये मान लिया कि तुम्हारी बहू ने ही रघुवीर की हत्या की है?"

"उसने मुझे बताया था कि मेरी बहू रजनी ने हाल ही में एक नए व्यक्ति से संबंध बना लिया था।" चंद्रकांत ने जबड़े भींच कर कहा____"वो व्यक्ति रजनी को हमेशा के लिए अपनी बना कर ले जाना चाहता था। रजनी भी इसके लिए तैयार थी। उस रात रजनी अपने उस नए आशिक़ के साथ भाग ही रही थी। उसने जब देखा कि मेरा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ है तो वो चुपके से अपना ज़रूरी समान ले कर घर से बाहर निकल आई थी। घर के बाहर उसका आशिक़ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। रजनी को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि ऐन वक्त पर मेरा बेटा उसके पीछे पीछे आ जाएगा। असल में मेरे बेटे को रात में पेशाब करने के लिए दो तीन बार बाहर जाना पड़ता था। उस रात भी वो पेशाब करने के लिए ही बाहर निकला था। कमरे में रजनी को न देख कर वो चौंका ज़रूर था किंतु उसने यही सोचा था कि शायद रजनी भी उसकी तरह बाहर लघुशंका करने गई होगी। ख़ैर जब मेरा बेटा बाहर आया तो उसने देखा कि उसकी बीवी अंधेरे में किसी के पास खड़ी थी और धीमी आवाज़ में बातें कर रही थी। रघुवीर फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा तो वो दोनों मेरे बेटे को देख कर बुरी तरह डर गए। इधर मेरा बेटा भी अपनी बीवी को रात के उस वक्त किसी गैर मर्द के साथ देख कर उछल पड़ा था। उसे समझने में देर न लगी कि रजनी अंधेरे में अपने आशिक़ के साथ क्या कर रही थी। मेरे बेटे को इतना गुस्सा आया कि उसने पहले तो रजनी को ज़ोर का धक्का दे कर दूर धकेला और फिर उसके आशिक़ को मारने लगा। रजनी इस सबसे बहुत ज़्यादा घबरा गई। उसे लगा कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए और लोगों को पता न चल जाए। उधर मेरा बेटा उसके आशिक़ की धुनाई करने में लगा हुआ था। रजनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? तभी उसकी नज़र वहीं कुछ ही दूरी पर पड़ी कुल्हाड़ी पर पड़ी। उसने झट से उस कुल्हाड़ी को उठा लिया और रघुवीर के क़रीब आ कर उसे धमकाया कि वो उसके आशिक़ को छोड़ दे वरना वो उस कुल्हाड़ी से उसका खून कर देगी। रघुवीर को लगा था कि रजनी सिर्फ उसे धमका रही है इस लिए उसने उसे गंदी गाली दे कर फिर से धक्का दे दिया और उसके आशिक़ को मारने लगा। अब तक इस सबके चलते थोड़ा शोर होने लगा था जिससे रजनी और भी ज़्यादा घबरा उठी थी। वो क्योंकि अपने आशिक़ के साथ नई दुनिया बसा लेना चाहती थी इस लिए उसने समय न ख़राब करते हुए आगे बढ़ कर मेरे बेटे पर उस कुल्हाड़ी से वार कर दिया। कुल्हाड़ी का वार सीधा रघुवीर की गर्दन पर लग गया। ऐसा इत्तेफ़ाक से ही हुआ था। रजनी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। रघुवीर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया और दर्द से तड़पने लगा। कुछ ही देर में उसका जिस्म एकदम से शांत पड़ गया। मेरा बेटा मर चुका था। जब रजनी और उसके आशिक़ को इस बात का आभास हुआ तो दोनों ही सन्न रह गए। रजनी का आशिक़ मेरे बेटे के इस तरह मर जाने से इतना डर गया कि वो वहां से फ़ौरन ही भाग गया। इधर रजनी की भी हालत ख़राब हो गई थी। उसने अपने जाते हुए आशिक़ को पुकारना चाहा मगर किसी के सुन लेने के डर से वो उसे पुकार ना सकी किंतु इतना उसे ज़रूर समझ आ गया था कि उसके आशिक़ ने उसे ऐसे वक्त पर धोखा दे दिया है। रजनी से वो हो गया था जिसे उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। काफी देर तक वो मेरे बेटे की लाश के पास बैठी रोती रही। फिर जैसे ही उसे हालात की गंभीरता का एहसास हुआ तो वो सोचने लगी कि अब वो क्या करे? वो जानती थी कि उससे बहुत बड़ा कांड हो गया है और जब इस बात का पता घर वालों को चलेगा तो वो कोई जवाब नहीं दे पाएगी। उसने आनन फानन में खून से सनी उस कुल्हाड़ी को फेंका और फिर अपना हुलिया ठीक कर के घर के अंदर आ गई। अपने कमरे में आ कर वो सोचने लगी कि इस गंभीर मुसीबत से बचने के लिए वो क्या करे? सारी रात उसने सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे अपने धोखेबाज आशिक़ पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से उसने इतना बड़ा क़दम उठाया था। तभी उसे रूपचंद्र का ख़याल आया। रूपचंद्र ने उसे पिछली शाम रास्ते में रोका था और उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती की थी जिसके जवाब में रजनी ने उसे खरी खोटी सुनाई थी। रजनी ने जब इस बारे में सोचा तो उसे अपने बचाव के लिए तरीका सूझ गया। सुबह जब हम सबको इस बात का पता चला तो हम सब रोने धोने लगे। रजनी भी हमारी तरह रोने धोने लगी थी। कुछ देर बाद उसने रोते हुए वही सब कहना शुरू कर दिया जो रात में उसने सोचा था। उसकी बात सुन कर मैं भी उसके फेर में आ गया था और फिर आगे क्या हुआ ये सब आप जानते ही हैं।"

इतना सब कुछ बताने के बाद चंद्रकांत चुप हुआ तो वातावरण में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी के साथ साथ महेंद्र सिंह और बाकी सब भी चकित भाव से उसकी तरफ देखे जा रहे थे।

"तो उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें ये सब बताया था जिसके बाद तुम्हें भी यकीन हो गया कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी बहू ने ही की है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर वाकई में ये सच है तो ये बड़े ही आश्चर्य की बात है कि अब तक हम में से किसी को इस बारे में पता तक नहीं चल सका। वैसे तुमने उस सफ़ेदपोश से पूछा नहीं कि उसे ये सब बातें कैसे पता थीं? आख़िर इतनी गहरी राज़ की बातें उसे कैसे पता चलीं? तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सफ़ेदपोश ने अपनी आंखों देखा हाल ही बताया था तुम्हें। अगर यही सच है तो सवाल उठता है कि उसने इस सबको रोका क्यों नहीं? क्यों अपनी आंखों के सामने तुम्हारे बेटे की हत्या हो जाने दी?"

चंद्रकांत, महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर बड़े अजीब भाव से देखने लगा उन्हें। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते हुए नज़र आने लगे थे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो बड़ी तेज़ी से कुछ सोचने समझने की कोशिश कर रहा हो।

"उस सफ़ेदपोश से और क्या बातें हुईं थी तुम्हारी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए चंद्रकांत से पूछा____"हमारा मतलब है कि उस सफ़ेदपोश ने तुम्हारे बेटे के हत्यारे के बारे में तुम्हें बताया तो बदले में क्या उसने तुमसे कुछ नहीं चाहा?"

"चाहा है।" चंद्रकांत बड़ी अजीब दुविधा लिए बोला____"कल रात उसने कहा था कि बदले में मुझे भी वही करना होगा जो वो करने को कहेगा मुझसे।"

"अच्छा।" महेंद्र सिंह ने कहा____"और क्या कहा था उसने?"

"यही कि आज रात वो किसी भी वक्त मुझसे मिलने आ सकता है।" चंद्रकांत ने कहा____"शायद अब वो मुझे कोई काम सौंपेगा जिसे मुझे करना होगा। उसने मुझे धमकी भी दी थी कि अगर मैं अपने वादे से मुकर गया तो ये मेरे और मेरे परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा।"

"बहुत खूब।" महेंद्र सिंह बोल पड़े____"फिर तो तुम्हें उसके लिए तैयार रहना चाहिए, है ना?"

चंद्रकांत अजीब सा मुंह बनाए खड़ा रह गया। उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी द्वंद से जूझ रहा है।

"ठाकुर साहब क्या लगता है आपको?" महेंद्र सिंह सहसा दादा ठाकुर से मुखातिब हुए____"क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो हम सोच रहे हैं?"

"हमें तो लगता है कि वो सफ़ेदपोश चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हौलनाक खेल खेल गया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"उसने चंद्रकांत को ऐसी कहानी सुनाई जिसे सच मान कर चंद्रकांत ने अपने हाथों अपनी ही बहू को बेटे की हत्यारिन मान कर मार डाला।"

"बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमें भी यही लगता है। सफ़ेदपोश को चंद्रकांत की मनोदशा का भली भांति एहसास था जिसका उसने फ़ायदा उठाया और फिर उसने वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।"

"सोचने वाली बात है कि रघुवीर की हत्या हुए इतने दिन गुज़र गए हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और अभी तक उस सफ़ेदपोश का कहीं अता पता नहीं था। अगर उसे चंद्रकांत से इतनी ही हमदर्दी थी तो उसने पहले ही चंद्रकांत के पास आ कर उसे ये क्यों नहीं बताया था कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है? इतने दिनों तक किस बात का इंतज़ार कर रहा था वो? ख़ैर ये तो थी एक बात, दूसरी सोचने वाली बात ये है कि ये सब बताने के पीछे सफ़ेदपोश का मकसद क्या था? क्या ये कि अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जान कर चंद्रकांत उसकी जान ही ले ले? अगर यही सच है तो फिर उसे चंद्रकांत का हमदर्द नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपनी बहू की हत्या करने के बाद चंद्रकांत को कोई पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला बल्कि सख़्त से सख़्त सज़ा ही मिलेगी।"

"सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"चंद्रकांत ने जो किया है उसके लिए तो इसे यकीनन सज़ा ही मिलेगी लेकिन अभी ये भी देखना है कि आगे क्या होता है? हमारा मतलब है कि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा है तो देखते हैं ऐसा होता है कि नहीं।"

चंद्रकांत सारी बातें सुन रहा था और अब उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी रो देगा। बड़ी मुश्किल से खुद को रोके हुए था वो। चौगान में बैठे बाकी लोग सतब्ध से बैठे बातें सुन रहे थे।

"अगर आज रात वो सफ़ेदपोश सचमुच चंद्रकांत से मिलने आएगा तो यही समझा जाएगा कि उसकी बातों में अथवा ये कहें कि उसकी कहानी में कहीं न कहीं सच्चाई थी।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और अगर वो नहीं आया तो स्पष्ट हो जाएगा कि वो चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हैरतंगेज खेल खेल गया है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"आगे की कार्यवाही कल की जाएगी चंद्रकांत। आज रात हम भी ये देखना चाहते हैं कि तुम्हारा वो हमदर्द सफ़ेदपोश अपनी कसौटी पर कितना खरा उतरता है।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर अभी खड़े ही हुए थे कि तभी चंद्रकांत आर्तनाद सा करता हुआ उनके पैरों में लोट गया। ये देख उनके साथ साथ बाकी उपस्थित लोग भी चौंक पड़े। उधर चंद्रकांत रोते बिलखते हुए कहता चला गया____"मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो रहा है कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है।"

"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"




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Nice update bro, Chandrakant se jab milkar safed nakabposh ja raha tha uska picha koi log kar rahe the.
safed nakabposh ne picha karne Wale par goli bhi chahiye aur uss revolver ki aavaj Kai log suna hai per safed nakabposh jangal me bhaagne me kamiyab hogaya.
Kya iss kand ki dada thakur, mahender singh yah ghav waalon ko nahi pata.
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अध्याय - 103
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"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?



अब आगे....


चंद्रकांत और उसके बेटे के ससुराल वाले पहले ही आ गए थे जिसके चलते काफी रोना धोना हुआ था उसके घर में। रघुवीर की ससुराल वाले तो आपे से बाहर भी हो ग‌ए थे जिसके चलते हंगामा होने वाला था मगर गांव वालों ने फ़ौरन ही सब सम्भाल लिया था।

हम सब जब वहां पहुंचे तो देखा कि गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग लोग पहले से ही चंद्रकांत के घर में मौजूद थे। रघुवीर का साला और उसका ससुर बाहर ही एक तरफ गुमसुम से बैठे थे जबकि उनके साथ आई औरतें और लड़कियां घर के अंदर थीं। बहरहाल, पिता जी के साथ जब महेंद्र सिंह आदि लोगों का काफ़िला पहुंचा तो घर के बाहर ही सबके बैठने की व्यवस्था कर दी गई। आसमान में घने बादल छाए हुए थे जिसके चलते धूप नहीं थी और ठंडी हवाएं चल रहीं थी।

सब लोग बैठे हुए थे जबकि चंद्रकांत चेहरे पर अजीब सी सख़्ती धारण किए घर के बाहर दोनों तरफ बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर बैठा था। वातावरण में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। आगे की कार्यवाही अथवा पूछताछ के लिए महेंद्र सिंह ने औपचारिक रूप से सभी लोगों के सामने वार्तालाप शुरू किया और फिर मुद्दे की बात के लिए चंद्रकांत को अपने थोड़ा पास बुला लिया।

"हम उम्मीद करते हैं कि अब तुम्हारा दिलो दिमाग़ पहले से थोड़ा शांत और बेहतर हो गया होगा।" महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत की तरफ देखते हुए कहा____"अतः अब हम ये उम्मीद करते हैं कि हम जो कुछ भी तुमसे पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब दोगे।"

कुछ घंटे लोगों के बीच रहने के चलते कदाचित चंद्रकांत की मनोदसा में थोड़ा परिवर्तन आ गया था। इस लिए महेंद्र सिंह की बात सुन कर उसने ख़ामोशी से ही हां में सिर हिला दिया था।

"बहुत बढ़िया।" महेंद्र सिंह ने कहा___"हमारा सबसे पहला सवाल ये है कि वो कौन था जिसने तुम्हें ये बताया कि तुम्हारे बेटे की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी?"

"कल रात की बात है।" चंद्रकांत ने सपाट लहजे से कहा____"शायद उस वक्त रात के बारह बजे रहे होंगे। मैं पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकला था। पेशाब कर के वापस घर के अंदर जाने ही लगा था कि तभी अजीब सी आहट हुई जिसके चलते मैं रुक गया। पहले मुझे लगा कि शायद ये मेरा वहम है इस लिए ध्यान न दे कर मैंने फिर से अपने क़दम आगे बढ़ाए मगर तभी आहट फिर से हुई। इस बार की आहट से मैं समझ गया कि इसके पहले मुझे कोई वहम नहीं हुआ था। ख़ैर मैं ये देखने के लिए इधर उधर निगाह डालने लगा कि रात के इस वक्त आख़िर किस चीज़ से आहट हो रही है? मुझे याद आया कि ऐसी ही एक रात मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी। मुझे एकदम से लगा जैसे उस वक्त भी वो हत्यारा मेरे आस पास मौजूद है। अंधेरा था इस लिए स्पष्ट कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन जल्दी ही मेरी निगाह नीम अंधेरे में एक जगह खड़े एक साए पर पड़ गई।"

"साए पर??" महेंद्र सिंह पूछे बगैर न रह सके थे____"किसका साया था वो?"

"एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति का जिसके बारे में इसके पहले दादा ठाकुर ज़िक्र कर चुके थे।" चंद्रकांत ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"हां ठाकुर साहब, वो कोई और नहीं बल्कि वही सफ़ेदपोश व्यक्ति था जिसके बारे में आपने मुझसे और गौरी शंकर जी से पूछा था।"

चंद्रकांत की ये बात सुन कर पिता जी के साथ साथ बाकी सब लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। हैरत में डूबा चेहरा लिए सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। इधर मेरा भी वही हाल था। मैं भी सोच में पड़ गया था कि साला अब ये क्या चक्कर है? इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और अब इस तरह से उसका पता चल रहा था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि चंद्रकांत के इस मामले में सफ़ेदपोश कहां से और कैसे आ गया?

"ये तुम क्या कह रहे हो चंद्रकांत?" पिता जी पूछने से खुद को रोक न सके____"पिछली रात तुमने जिस साए को देखा क्या वो सच में सफ़ेदपोश था? कहीं तुम्हें कोई वहम तो नहीं हुआ था?"

"वहम का सवाल ही नहीं उठता ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने पूरी मजबूती से कहा____"क्योंकि मैंने उसे बहुत क़रीब से और अपनी आंखों से देखा था। इतना ही नहीं काफी देर तक मेरी उससे बातें भी हुईं थी। वो वही था जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद लिबास था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" पिता जी बरबस ही कह उठे____"इतने समय से हम उस सफ़ेदपोश को तलाश कर रहे हैं किंतु उसका कहीं कोई सुराग़ नहीं मिल सका और तुम कह रहे हो कि तुमने उसे देखा है? उससे बातें भी की हैं?"

"यही सच है ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"उसी ने मुझे बताया कि मेरे बेटे का हत्यारा मेरी अपनी ही बहू थी।"

"और उसके कहने से तुमने मान लिया?" महेंद्र सिंह ने हैरत से उसे देखा____"बड़े आश्चर्य की बात है कि तुमने एक ऐसे व्यक्ति की बात मान ली जो जाने कब से खुद को सबसे छुपाए फिर रहा है। इतना ही नहीं जो ठाकुर साहब के बेटे वैभव की जान का दुश्मन भी बना हुआ है। हमें बिल्कुल भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा कि तुमने ऐसे व्यक्ति के कहने पर अपनी बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान लिया और फिर बदले की भावना के चलते उसे मार भी डाला।"

"बिल्कुल, हमारा भी यही कहना है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि तुमने उस सफ़ेदपोश के कहने बस से ही अपनी बहू को हत्यारिन नहीं मान लिया होगा। यकीनन उसने तुम्हें कोई ऐसी वजह भी बताई होगी जिसके बाद तुम्हें अपनी बहू के हत्यारिन होने पर यकीन आ गया होगा। हम सब भी ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हें ऐसा क्या बताया था?"

"मैं हर बात किसी को बताना ज़रूरी नहीं समझता।" चंद्रकांत ने सख़्ती से जबड़े भींच कर कहा____"ये मेरा पारिवारिक और बेहद निजी मामला है।"

"जब किसी औरत को बेरहमी से मार डाला जाए तो मामला पारिवारिक अथवा निजी नहीं रह जाता चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने कठोर भाव से कहा____"तुमने अपनी बहू को बेरहमी से मार डाला है, इस लिए अब तुम्हें बताना ही होगा कि इसके पीछे की असल वजह क्या है? परिवार का मामला चाहे जैसा भी हो लेकिन किसी की हत्या कर देने का हक़ किसी को भी नहीं है। तुमने अपनी बहू की हत्या की है और इस अपराध के लिए तुम्हें सज़ा भी मिलेगी।"

"हां तो दे दीजिए मुझे सज़ा।" चंद्रकांत पागलों की तरह चीख पड़ा____"चढ़ा दीजिए मुझे सूली पर। मेरे मर जाने से कम से कम दादा ठाकुर के कलेजे को शांति तो मिल जाएगी।"

"मादरचोद, क्या बोला तूने?" चंद्रकांत की बात से मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं गुस्से में आग बबूला हो कर पलक झपकते ही उसके क़रीब पहुंच गया।

इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता मैंने उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया और फिर गुर्राते हुए कहा____"तू कौन सा दूध का धुला है जो हर बात में तू मेरे बाप पर उंगली कर के तंज़ कसने लगता है? तेरी सच्चाई ये है कि तू एक नामर्द है और तेरा बेटा तुझसे भी बड़ा नामर्द था। तेरे घर की औरतें तेरे सामने दूसरे मर्दों के साथ अपनी हवस मिटाती थीं और तुम दोनों बाप बेटे अपने उबलते खून को पानी से ठंडा करते थे।"

"ये क्या हिमाकत है??" पिता जी गुस्से से दहाड़ उठे।

उनके साथ साथ बाकी सब भी उछल कर खड़े हो गए थे। महेंद्र सिंह का छोटा भाई ज्ञानेंद्र सिंह लपक कर मेरे पास आया और मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचने लगा मगर मैंने झटक दिया उसे। इस वक्त बड़ा तेज़ गुस्सा आया हुआ था मुझे। मेरे झटक देने पर ज्ञानेंद्र झोंक में पीछे जा कर गिरते गिरते बचा। इधर चंद्रकांत चेहरे पर दहशत के भाव लिए चिल्लाने लगा था। ज्ञानेंद्र सम्हल कर फिर से मुझे छुड़ाने के लिए मेरे क़रीब आया और इस बार वो मुझे पूरी ताक़त से खींच कर चंद्रकांत से दूर ले गया।

"तुम दोनो बाप बेटे जैसा हिजड़ा इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगा।" मैं गुस्से चीखते हुए बोला____"साले नामर्द, अपनी औरतों को तो बस में कर नहीं सका और मर्द बनता है बेटीचोद।"

"तुम्हें इस हिमाकत की सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाएगी।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए बेहद गुस्से में कहा____"इसी वक्त चले जाओ यहां से वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"बेशक सज़ा दे दीजिएगा पिता जी।" मैंने गुस्से से भभकते हुए खुद को एक झटके में ज्ञानेंद्र से छुड़ाया, फिर बोला____"लेकिन इस मादरचोद ने अगर दुबारा फिर से किसी बात पर आपकी तरफ उंगली उठाई तो इसकी ज़ुबान हलक से निकाल कर इसके हाथ में दे दूंगा।"

शोर शराबा सुन कर घर के अंदर से औरतें भाग कर बाहर आ गईं थी। बाहर मौजूद लोग भी तितर बितर हो कर दूर हट गए थे। सभी के चेहरों पर ख़ौफ के भाव उभर आए थे। उधर चंद्रकांत सहम कर घर के बाहर दोनों तरफ बनी पट्टी पर बैठ गया था। जूड़ी के मरीज़ की तरह थर थर कांपे जा रहा था वो।

"हमने कहा चले जाओ यहां से।" पिता जी इस बार गुस्से में दहाड़ ही उठे। पिता जी का गुस्सा देख महेंद्र सिंह ने अपने भाई को इशारा किया तो वो मुझे ले कर अपनी जीप की तरफ बढ़ चला।

"मुझे तुमसे ऐसी बेहूदा हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वैभव।" रास्ते में ज्ञानेंद्र सिंह ने गंभीरता से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"सबके सामने तुम्हें ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था और ना ही उसे गालियां देनी चाहिए थी।"

"और उसे सबके सामने मेरे पिता पर तंज कसना चाहिए था, है ना?" मैंने तीखे भाव से ज्ञानेंद्र की तरफ देखा।

"तुम उस व्यक्ति के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो।" ज्ञानेंद्र ने कहा____"पिछले कुछ समय में यहां जो कुछ हुआ है उससे हम सब भी इतना समझ चुके हैं कि कौन कैसा है। एक बात हमेशा याद रखो कि कीचड़ में अगर पत्थर मारोगे तो वो कीचड़ उल्टा तुम्हें ही गंदा करेगा, जबकि उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। चंद्रकांत की दशा कीचड़ जैसी ही है।"

"मैं काफी समय से उसको बर्दास्त करता आ रहा था चाचू।" मैंने खीझते हुए कहा____"लेकिन आज सबके सामने जब उसने फिर से पिता जी पर तंज कसा तो मैं बर्दास्त नहीं कर सका। एक तो मादरचोद ने खुद अपनी ही बहू को मार डाला और ऊपर से अभी भी खुद को साधू महात्मा दर्शाने की कोशिश कर रहा है।"

"मूर्ख लोग ऐसे ही होते हैं वैभव।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"समझदार लोग मूर्खों की बातों पर ध्यान नहीं देते। जैसे तुम्हारे पिता जी उसकी बातों को सुन कर धैर्य धारण किए रहते हैं वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए था।"

अब तक मेरा गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो गया था इस लिए ज्ञानेंद्र सिंह की बातें अब मेरे ज़हन में आसानी से घुस रहीं थी। मुझे एहसास होने लगा था कि वाकई में मुझसे ग़लती हो गई है। मुझे सबके सामने इस तरह का तमाशा नहीं करना चाहिए था।

"मैंने सुना है कि तुम पहले से अब काफी बदल गए हो।" ज्ञानेंद्र सिंह ने मुझे ख़ामोश देखा तो इस बार बड़ी शालीनता से कहा____"और एक अच्छे इंसान की तरह अपनी हर ज़िम्मेदारियां निभा रहे हो। एक वक्त था जब हम लोग दादा ठाकुर के सामने तुम्हारा ज़िक्र करते थे तो अक्सर उनका चेहरा मायूस हो जाया करता था किंतु पिछले कुछ समय से हमने यही देखा है कि तुम्हारा ज़िक्र होने पर उनके चेहरे पर खुशी और गर्व के भाव आ जाते हैं। अगर एक पिता अपने बेटे के लिए खुशी और गर्व महसूस करने लगे तो इसका मतलब ये होता है कि उन्हें दुनिया की हर खुशी मिल चुकी है। यानि अब उन्हें किसी चीज़ की हसरत नहीं है। ख़ैर, मैं रिश्ते में तुम्हारा चाचू हूं लेकिन तुम मुझे अपना दोस्त भी मान सकते हो। एक दोस्त के नाते मैं तुमसे यही कहूंगा कि इतना कुछ होने के बाद अब तुम ही दादा ठाकुर की एक मात्र उम्मीद हो। तुम भले ही उनके बेटे हो लेकिन तुमसे कहीं ज़्यादा उनके बारे में हम जानते हैं। हमने बचपन से दादा ठाकुर को लोगों की खुशी के लिए संघर्ष करते देखा है। मेरे भैया हमेशा मुझसे कहा करते हैं कि मैं दादा ठाकुर की तरह बनूं और हमेशा उनके नक्शे क़दम पर चलूं। ज़ाहिर है मेरे भैया भी समझते हैं कि दादा ठाकुर कितने महान इंसान हैं। हम सब उनके नक्शे क़दम पर चलने की कोशिश भले ही करते हैं लेकिन उनके जैसा बनना बिल्कुल भी आसान नहीं है। फिर भी इतना तो कर ही सकते हैं कि हमारे आचरण से किसी का अहित न हो बल्कि सबका भला ही हो।"

"मैं समझ गया चाचू कि आप क्या कहना चाहते हैं।" मैंने अधीरता से कहा____"यकीन कीजिए मैं भी अब ऐसा ही इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे एहसास है कि मैंने इसके पहले बहुत ग़लत कर्म किए थे जिसके चलते मेरे खानदान का नाम ख़राब हुआ और पिता जी को हमेशा मेरी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। अब सब कुछ भुला कर यही कोशिश कर रहा हूं कि मुझसे ग़लती से भी कोई ग़लत काम न हो।"

"बहुत बढ़िया।" ज्ञानेंद्र सिंह ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"और हां अपने गुस्से पर भी लगाम लगाए रखा करो। तुम्हारा गुस्सा दूर दूर तक मशहूर है। लोग तुम्हारे गुस्से से बहुत डरते हैं। इस लिए इस पर लगाम लगा के रखो।"

"कोशिश कर रहा हूं चाचू।" मैंने झेंपते हुए कहा____"मैंने काफी समय से किसी पर गुस्सा नहीं किया और ना ही किसी को बुरा भला कहा है। आज भी मैं गुस्सा ना होता अगर चंद्रकांत मेरे पिता जी पर तंज न कसता।"

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"देखो, हम हवेली पहुंच गए हैं। तुम जाओ आराम करो, मैं अब वापस जाऊंगा।"

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास जीप रुकी तो मैं उतर गया। ज्ञानेंद्र सिंह ने जीप को वापस मोड़ा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे पता है कि तुम हर जगह मशहूर हो लेकिन फिर भी एक नई पहचान के लिए लोगों से मिलना मिलाना बेहद ज़रूरी होता है। कभी समय निकाल कर आओ हमारे यहां।"

"बिल्कुल चाचू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ज़रूर आऊंगा। आख़िर अब आप मेरे चाचू के साथ साथ दोस्त भी तो बन गए हैं।"

मेरी बात सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह हल्के से हंसा और फिर जीप को आगे बढ़ा कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ पैदल चल पड़ा। ज्ञानेंद्र सिंह मुझे एक अच्छा इंसान प्रतीत हुआ था। वो विवाहित था किन्तु उम्र ज़्यादा नहीं हुई थी उसकी। शरीर काफी फिट था जिसके चलते उसकी उमर का पता नहीं चलता था। ख़ैर उसके बारे में सोचते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली के अंदर दाखिल हो गया।

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मेरी वजह से जो हंगामा हुआ था उसे जल्द ही सम्हाल लिया गया था और अब सब कुछ ठीक था। पिता जी के चेहरे पर अभी भी नाराज़गी दिख रही थी। ज़ाहिर है मेरी वजह से उन्हें एक बार फिर से शर्मिंदगी हुई थी। किसी को भी मुझसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी। ख़ैर जो होना था वो हो चुका था। महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत को फिर से अपने सामने बुला लिया था। इस वक्त वो अजीब सा चेहरा लिए खड़ा था।

"ठाकुर साहब को बचपन से जानते हुए भी तुम इनके बारे में ऐसे ख़याल रखते हो जोकि हैरत की बात है।" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारा जो भी मामला था उसे तुम दूसरे तरीके से भी बहुत अच्छी तरह सुलझा सकते थे। दूसरी बात ये भी है कि ग़लती सिर्फ ठाकुर साहब के बेटे की ही बस नहीं थी बल्कि तुम्हारे घर की औरतों की भी थी। तुमने अपने घर की औरतों को कुछ नहीं कहा और ना ही उनके ग़लत कर्मों के लिए उन्हें धिक्कारा। इसके बदले तुमने वो किया जो किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए था। अगर तुम्हें पता चल ही गया था कि तुम्हारे घर के मामले में वैभव भी शामिल है तो तुम्हें सीधा ठाकुर साहब से इस बारे में बात करनी चाहिए थी। इसके बाद भी अगर कोई हल न निकलता तो तुम्हारा ऐसा क़दम उठाना जायज़ कहलाता लेकिन नहीं, तुमने वो किया जिसके चलते ना जाने कितने लोगों की जानें चली गईं।"

चंद्रकांत अपराध बोझ से सिर झुकाए खड़ा रहा। उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था। चौगान में बैठे लोग सांसें रोके महेंद्र सिंह की बातें सुन रहे थे और साथ ही समझने की कोशिश कर रहे थे कि किसकी कहां ग़लती रही है?

"ख़ैर जो हो गया उसे तो अब लौटाया नहीं जा सकता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"लेकिन ये जो तुमने किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती। किंतु उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हारी बहू के बारे में ऐसा क्या बताया था जिससे तुमने ये मान लिया कि तुम्हारी बहू ने ही रघुवीर की हत्या की है?"

"उसने मुझे बताया था कि मेरी बहू रजनी ने हाल ही में एक नए व्यक्ति से संबंध बना लिया था।" चंद्रकांत ने जबड़े भींच कर कहा____"वो व्यक्ति रजनी को हमेशा के लिए अपनी बना कर ले जाना चाहता था। रजनी भी इसके लिए तैयार थी। उस रात रजनी अपने उस नए आशिक़ के साथ भाग ही रही थी। उसने जब देखा कि मेरा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ है तो वो चुपके से अपना ज़रूरी समान ले कर घर से बाहर निकल आई थी। घर के बाहर उसका आशिक़ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। रजनी को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि ऐन वक्त पर मेरा बेटा उसके पीछे पीछे आ जाएगा। असल में मेरे बेटे को रात में पेशाब करने के लिए दो तीन बार बाहर जाना पड़ता था। उस रात भी वो पेशाब करने के लिए ही बाहर निकला था। कमरे में रजनी को न देख कर वो चौंका ज़रूर था किंतु उसने यही सोचा था कि शायद रजनी भी उसकी तरह बाहर लघुशंका करने गई होगी। ख़ैर जब मेरा बेटा बाहर आया तो उसने देखा कि उसकी बीवी अंधेरे में किसी के पास खड़ी थी और धीमी आवाज़ में बातें कर रही थी। रघुवीर फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा तो वो दोनों मेरे बेटे को देख कर बुरी तरह डर गए। इधर मेरा बेटा भी अपनी बीवी को रात के उस वक्त किसी गैर मर्द के साथ देख कर उछल पड़ा था। उसे समझने में देर न लगी कि रजनी अंधेरे में अपने आशिक़ के साथ क्या कर रही थी। मेरे बेटे को इतना गुस्सा आया कि उसने पहले तो रजनी को ज़ोर का धक्का दे कर दूर धकेला और फिर उसके आशिक़ को मारने लगा। रजनी इस सबसे बहुत ज़्यादा घबरा गई। उसे लगा कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए और लोगों को पता न चल जाए। उधर मेरा बेटा उसके आशिक़ की धुनाई करने में लगा हुआ था। रजनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? तभी उसकी नज़र वहीं कुछ ही दूरी पर पड़ी कुल्हाड़ी पर पड़ी। उसने झट से उस कुल्हाड़ी को उठा लिया और रघुवीर के क़रीब आ कर उसे धमकाया कि वो उसके आशिक़ को छोड़ दे वरना वो उस कुल्हाड़ी से उसका खून कर देगी। रघुवीर को लगा था कि रजनी सिर्फ उसे धमका रही है इस लिए उसने उसे गंदी गाली दे कर फिर से धक्का दे दिया और उसके आशिक़ को मारने लगा। अब तक इस सबके चलते थोड़ा शोर होने लगा था जिससे रजनी और भी ज़्यादा घबरा उठी थी। वो क्योंकि अपने आशिक़ के साथ नई दुनिया बसा लेना चाहती थी इस लिए उसने समय न ख़राब करते हुए आगे बढ़ कर मेरे बेटे पर उस कुल्हाड़ी से वार कर दिया। कुल्हाड़ी का वार सीधा रघुवीर की गर्दन पर लग गया। ऐसा इत्तेफ़ाक से ही हुआ था। रजनी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। रघुवीर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया और दर्द से तड़पने लगा। कुछ ही देर में उसका जिस्म एकदम से शांत पड़ गया। मेरा बेटा मर चुका था। जब रजनी और उसके आशिक़ को इस बात का आभास हुआ तो दोनों ही सन्न रह गए। रजनी का आशिक़ मेरे बेटे के इस तरह मर जाने से इतना डर गया कि वो वहां से फ़ौरन ही भाग गया। इधर रजनी की भी हालत ख़राब हो गई थी। उसने अपने जाते हुए आशिक़ को पुकारना चाहा मगर किसी के सुन लेने के डर से वो उसे पुकार ना सकी किंतु इतना उसे ज़रूर समझ आ गया था कि उसके आशिक़ ने उसे ऐसे वक्त पर धोखा दे दिया है। रजनी से वो हो गया था जिसे उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। काफी देर तक वो मेरे बेटे की लाश के पास बैठी रोती रही। फिर जैसे ही उसे हालात की गंभीरता का एहसास हुआ तो वो सोचने लगी कि अब वो क्या करे? वो जानती थी कि उससे बहुत बड़ा कांड हो गया है और जब इस बात का पता घर वालों को चलेगा तो वो कोई जवाब नहीं दे पाएगी। उसने आनन फानन में खून से सनी उस कुल्हाड़ी को फेंका और फिर अपना हुलिया ठीक कर के घर के अंदर आ गई। अपने कमरे में आ कर वो सोचने लगी कि इस गंभीर मुसीबत से बचने के लिए वो क्या करे? सारी रात उसने सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे अपने धोखेबाज आशिक़ पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से उसने इतना बड़ा क़दम उठाया था। तभी उसे रूपचंद्र का ख़याल आया। रूपचंद्र ने उसे पिछली शाम रास्ते में रोका था और उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती की थी जिसके जवाब में रजनी ने उसे खरी खोटी सुनाई थी। रजनी ने जब इस बारे में सोचा तो उसे अपने बचाव के लिए तरीका सूझ गया। सुबह जब हम सबको इस बात का पता चला तो हम सब रोने धोने लगे। रजनी भी हमारी तरह रोने धोने लगी थी। कुछ देर बाद उसने रोते हुए वही सब कहना शुरू कर दिया जो रात में उसने सोचा था। उसकी बात सुन कर मैं भी उसके फेर में आ गया था और फिर आगे क्या हुआ ये सब आप जानते ही हैं।"

इतना सब कुछ बताने के बाद चंद्रकांत चुप हुआ तो वातावरण में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी के साथ साथ महेंद्र सिंह और बाकी सब भी चकित भाव से उसकी तरफ देखे जा रहे थे।

"तो उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें ये सब बताया था जिसके बाद तुम्हें भी यकीन हो गया कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी बहू ने ही की है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर वाकई में ये सच है तो ये बड़े ही आश्चर्य की बात है कि अब तक हम में से किसी को इस बारे में पता तक नहीं चल सका। वैसे तुमने उस सफ़ेदपोश से पूछा नहीं कि उसे ये सब बातें कैसे पता थीं? आख़िर इतनी गहरी राज़ की बातें उसे कैसे पता चलीं? तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सफ़ेदपोश ने अपनी आंखों देखा हाल ही बताया था तुम्हें। अगर यही सच है तो सवाल उठता है कि उसने इस सबको रोका क्यों नहीं? क्यों अपनी आंखों के सामने तुम्हारे बेटे की हत्या हो जाने दी?"

चंद्रकांत, महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर बड़े अजीब भाव से देखने लगा उन्हें। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते हुए नज़र आने लगे थे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो बड़ी तेज़ी से कुछ सोचने समझने की कोशिश कर रहा हो।

"उस सफ़ेदपोश से और क्या बातें हुईं थी तुम्हारी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए चंद्रकांत से पूछा____"हमारा मतलब है कि उस सफ़ेदपोश ने तुम्हारे बेटे के हत्यारे के बारे में तुम्हें बताया तो बदले में क्या उसने तुमसे कुछ नहीं चाहा?"

"चाहा है।" चंद्रकांत बड़ी अजीब दुविधा लिए बोला____"कल रात उसने कहा था कि बदले में मुझे भी वही करना होगा जो वो करने को कहेगा मुझसे।"

"अच्छा।" महेंद्र सिंह ने कहा____"और क्या कहा था उसने?"

"यही कि आज रात वो किसी भी वक्त मुझसे मिलने आ सकता है।" चंद्रकांत ने कहा____"शायद अब वो मुझे कोई काम सौंपेगा जिसे मुझे करना होगा। उसने मुझे धमकी भी दी थी कि अगर मैं अपने वादे से मुकर गया तो ये मेरे और मेरे परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा।"

"बहुत खूब।" महेंद्र सिंह बोल पड़े____"फिर तो तुम्हें उसके लिए तैयार रहना चाहिए, है ना?"

चंद्रकांत अजीब सा मुंह बनाए खड़ा रह गया। उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी द्वंद से जूझ रहा है।

"ठाकुर साहब क्या लगता है आपको?" महेंद्र सिंह सहसा दादा ठाकुर से मुखातिब हुए____"क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो हम सोच रहे हैं?"

"हमें तो लगता है कि वो सफ़ेदपोश चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हौलनाक खेल खेल गया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"उसने चंद्रकांत को ऐसी कहानी सुनाई जिसे सच मान कर चंद्रकांत ने अपने हाथों अपनी ही बहू को बेटे की हत्यारिन मान कर मार डाला।"

"बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमें भी यही लगता है। सफ़ेदपोश को चंद्रकांत की मनोदशा का भली भांति एहसास था जिसका उसने फ़ायदा उठाया और फिर उसने वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।"

"सोचने वाली बात है कि रघुवीर की हत्या हुए इतने दिन गुज़र गए हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और अभी तक उस सफ़ेदपोश का कहीं अता पता नहीं था। अगर उसे चंद्रकांत से इतनी ही हमदर्दी थी तो उसने पहले ही चंद्रकांत के पास आ कर उसे ये क्यों नहीं बताया था कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है? इतने दिनों तक किस बात का इंतज़ार कर रहा था वो? ख़ैर ये तो थी एक बात, दूसरी सोचने वाली बात ये है कि ये सब बताने के पीछे सफ़ेदपोश का मकसद क्या था? क्या ये कि अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जान कर चंद्रकांत उसकी जान ही ले ले? अगर यही सच है तो फिर उसे चंद्रकांत का हमदर्द नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपनी बहू की हत्या करने के बाद चंद्रकांत को कोई पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला बल्कि सख़्त से सख़्त सज़ा ही मिलेगी।"

"सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"चंद्रकांत ने जो किया है उसके लिए तो इसे यकीनन सज़ा ही मिलेगी लेकिन अभी ये भी देखना है कि आगे क्या होता है? हमारा मतलब है कि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा है तो देखते हैं ऐसा होता है कि नहीं।"

चंद्रकांत सारी बातें सुन रहा था और अब उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी रो देगा। बड़ी मुश्किल से खुद को रोके हुए था वो। चौगान में बैठे बाकी लोग सतब्ध से बैठे बातें सुन रहे थे।

"अगर आज रात वो सफ़ेदपोश सचमुच चंद्रकांत से मिलने आएगा तो यही समझा जाएगा कि उसकी बातों में अथवा ये कहें कि उसकी कहानी में कहीं न कहीं सच्चाई थी।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और अगर वो नहीं आया तो स्पष्ट हो जाएगा कि वो चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हैरतंगेज खेल खेल गया है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"आगे की कार्यवाही कल की जाएगी चंद्रकांत। आज रात हम भी ये देखना चाहते हैं कि तुम्हारा वो हमदर्द सफ़ेदपोश अपनी कसौटी पर कितना खरा उतरता है।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर अभी खड़े ही हुए थे कि तभी चंद्रकांत आर्तनाद सा करता हुआ उनके पैरों में लोट गया। ये देख उनके साथ साथ बाकी उपस्थित लोग भी चौंक पड़े। उधर चंद्रकांत रोते बिलखते हुए कहता चला गया____"मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो रहा है कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है।"

"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"




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जैसा बोला था, सफेदपोश चंद्रकांत की मनोदशा का फायदा उठा गया। लेकिन उसे रजनी को मार कर मिला क्या आखिर?

खैर देखते हैं कि रात को सफेदपोश आएगा या नही?
 
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वैसे रजनी पर उसके हसबैंड रघुवीर के कत्ल का शक मुझे भी था लेकिन जब तक कोई ठोस सबूत न मिले तब तक वो बेकसूर ही मानी जाएगी।
मुंशी जी ने अपने कारनामों से फिर से इस गांव के लोगों को बता दिया कि वो अव्वल नम्बर के बेवकूफ , जाहिल और बेगैरत इंसान है । अपनी नामर्दी तो पहले ही साबित कर थी इन्होने।
वगैर पुख्ता सबूत के , सिर्फ एक व्यक्ति के कहने मात्र से , कौन ऐसी हरकत करता है ! अकल के कोढू , दिमाग से पैदल , आंख - कान का बिल्कुल कच्चा आदमी है यह।

सिर्फ एक शर्त पर इन्हे बख्श दिया जा सकता है कि रजनी ने अपनी मृत्यु से पहले अपने गुनाह की स्वीकृति की हो ।
उसने मुंशी से सबकुछ सत्य कहा हो कि वो किसी के प्रेम मे पागल होकर घर से भागना चाहती थी और रघुवीर के बीच मे आ जाने पर उसने उसके गर्दन पर कुल्हाड़ी चला दी थी।
मुंशी जी से यह पूछताछ दादा ठाकुर को अवश्य करना चाहिए और यह भी पूछना चाहिए कि रजनी के प्रेमी का नाम क्या था ?
अगर रजनी ने अपने गुनाह स्वीकार किए होंगे तब मुंशी का उत्तेजित होना बिल्कुल जायज था । और अगर सिर्फ सफेदपोश के कहने पर वगैर पूछताछ किए रजनी की हत्या कर दी होगी तब यह सरासर गलत काम होगा।

बहुत खुबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 
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