Ajju Landwalia
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अध्याय - 103
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"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"
कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?
अब आगे....
चंद्रकांत और उसके बेटे के ससुराल वाले पहले ही आ गए थे जिसके चलते काफी रोना धोना हुआ था उसके घर में। रघुवीर की ससुराल वाले तो आपे से बाहर भी हो गए थे जिसके चलते हंगामा होने वाला था मगर गांव वालों ने फ़ौरन ही सब सम्भाल लिया था।
हम सब जब वहां पहुंचे तो देखा कि गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग लोग पहले से ही चंद्रकांत के घर में मौजूद थे। रघुवीर का साला और उसका ससुर बाहर ही एक तरफ गुमसुम से बैठे थे जबकि उनके साथ आई औरतें और लड़कियां घर के अंदर थीं। बहरहाल, पिता जी के साथ जब महेंद्र सिंह आदि लोगों का काफ़िला पहुंचा तो घर के बाहर ही सबके बैठने की व्यवस्था कर दी गई। आसमान में घने बादल छाए हुए थे जिसके चलते धूप नहीं थी और ठंडी हवाएं चल रहीं थी।
सब लोग बैठे हुए थे जबकि चंद्रकांत चेहरे पर अजीब सी सख़्ती धारण किए घर के बाहर दोनों तरफ बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर बैठा था। वातावरण में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। आगे की कार्यवाही अथवा पूछताछ के लिए महेंद्र सिंह ने औपचारिक रूप से सभी लोगों के सामने वार्तालाप शुरू किया और फिर मुद्दे की बात के लिए चंद्रकांत को अपने थोड़ा पास बुला लिया।
"हम उम्मीद करते हैं कि अब तुम्हारा दिलो दिमाग़ पहले से थोड़ा शांत और बेहतर हो गया होगा।" महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत की तरफ देखते हुए कहा____"अतः अब हम ये उम्मीद करते हैं कि हम जो कुछ भी तुमसे पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब दोगे।"
कुछ घंटे लोगों के बीच रहने के चलते कदाचित चंद्रकांत की मनोदसा में थोड़ा परिवर्तन आ गया था। इस लिए महेंद्र सिंह की बात सुन कर उसने ख़ामोशी से ही हां में सिर हिला दिया था।
"बहुत बढ़िया।" महेंद्र सिंह ने कहा___"हमारा सबसे पहला सवाल ये है कि वो कौन था जिसने तुम्हें ये बताया कि तुम्हारे बेटे की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी?"
"कल रात की बात है।" चंद्रकांत ने सपाट लहजे से कहा____"शायद उस वक्त रात के बारह बजे रहे होंगे। मैं पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकला था। पेशाब कर के वापस घर के अंदर जाने ही लगा था कि तभी अजीब सी आहट हुई जिसके चलते मैं रुक गया। पहले मुझे लगा कि शायद ये मेरा वहम है इस लिए ध्यान न दे कर मैंने फिर से अपने क़दम आगे बढ़ाए मगर तभी आहट फिर से हुई। इस बार की आहट से मैं समझ गया कि इसके पहले मुझे कोई वहम नहीं हुआ था। ख़ैर मैं ये देखने के लिए इधर उधर निगाह डालने लगा कि रात के इस वक्त आख़िर किस चीज़ से आहट हो रही है? मुझे याद आया कि ऐसी ही एक रात मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी। मुझे एकदम से लगा जैसे उस वक्त भी वो हत्यारा मेरे आस पास मौजूद है। अंधेरा था इस लिए स्पष्ट कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन जल्दी ही मेरी निगाह नीम अंधेरे में एक जगह खड़े एक साए पर पड़ गई।"
"साए पर??" महेंद्र सिंह पूछे बगैर न रह सके थे____"किसका साया था वो?"
"एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति का जिसके बारे में इसके पहले दादा ठाकुर ज़िक्र कर चुके थे।" चंद्रकांत ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"हां ठाकुर साहब, वो कोई और नहीं बल्कि वही सफ़ेदपोश व्यक्ति था जिसके बारे में आपने मुझसे और गौरी शंकर जी से पूछा था।"
चंद्रकांत की ये बात सुन कर पिता जी के साथ साथ बाकी सब लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। हैरत में डूबा चेहरा लिए सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। इधर मेरा भी वही हाल था। मैं भी सोच में पड़ गया था कि साला अब ये क्या चक्कर है? इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और अब इस तरह से उसका पता चल रहा था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि चंद्रकांत के इस मामले में सफ़ेदपोश कहां से और कैसे आ गया?
"ये तुम क्या कह रहे हो चंद्रकांत?" पिता जी पूछने से खुद को रोक न सके____"पिछली रात तुमने जिस साए को देखा क्या वो सच में सफ़ेदपोश था? कहीं तुम्हें कोई वहम तो नहीं हुआ था?"
"वहम का सवाल ही नहीं उठता ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने पूरी मजबूती से कहा____"क्योंकि मैंने उसे बहुत क़रीब से और अपनी आंखों से देखा था। इतना ही नहीं काफी देर तक मेरी उससे बातें भी हुईं थी। वो वही था जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद लिबास था।"
"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" पिता जी बरबस ही कह उठे____"इतने समय से हम उस सफ़ेदपोश को तलाश कर रहे हैं किंतु उसका कहीं कोई सुराग़ नहीं मिल सका और तुम कह रहे हो कि तुमने उसे देखा है? उससे बातें भी की हैं?"
"यही सच है ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"उसी ने मुझे बताया कि मेरे बेटे का हत्यारा मेरी अपनी ही बहू थी।"
"और उसके कहने से तुमने मान लिया?" महेंद्र सिंह ने हैरत से उसे देखा____"बड़े आश्चर्य की बात है कि तुमने एक ऐसे व्यक्ति की बात मान ली जो जाने कब से खुद को सबसे छुपाए फिर रहा है। इतना ही नहीं जो ठाकुर साहब के बेटे वैभव की जान का दुश्मन भी बना हुआ है। हमें बिल्कुल भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा कि तुमने ऐसे व्यक्ति के कहने पर अपनी बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान लिया और फिर बदले की भावना के चलते उसे मार भी डाला।"
"बिल्कुल, हमारा भी यही कहना है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि तुमने उस सफ़ेदपोश के कहने बस से ही अपनी बहू को हत्यारिन नहीं मान लिया होगा। यकीनन उसने तुम्हें कोई ऐसी वजह भी बताई होगी जिसके बाद तुम्हें अपनी बहू के हत्यारिन होने पर यकीन आ गया होगा। हम सब भी ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हें ऐसा क्या बताया था?"
"मैं हर बात किसी को बताना ज़रूरी नहीं समझता।" चंद्रकांत ने सख़्ती से जबड़े भींच कर कहा____"ये मेरा पारिवारिक और बेहद निजी मामला है।"
"जब किसी औरत को बेरहमी से मार डाला जाए तो मामला पारिवारिक अथवा निजी नहीं रह जाता चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने कठोर भाव से कहा____"तुमने अपनी बहू को बेरहमी से मार डाला है, इस लिए अब तुम्हें बताना ही होगा कि इसके पीछे की असल वजह क्या है? परिवार का मामला चाहे जैसा भी हो लेकिन किसी की हत्या कर देने का हक़ किसी को भी नहीं है। तुमने अपनी बहू की हत्या की है और इस अपराध के लिए तुम्हें सज़ा भी मिलेगी।"
"हां तो दे दीजिए मुझे सज़ा।" चंद्रकांत पागलों की तरह चीख पड़ा____"चढ़ा दीजिए मुझे सूली पर। मेरे मर जाने से कम से कम दादा ठाकुर के कलेजे को शांति तो मिल जाएगी।"
"मादरचोद, क्या बोला तूने?" चंद्रकांत की बात से मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं गुस्से में आग बबूला हो कर पलक झपकते ही उसके क़रीब पहुंच गया।
इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता मैंने उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया और फिर गुर्राते हुए कहा____"तू कौन सा दूध का धुला है जो हर बात में तू मेरे बाप पर उंगली कर के तंज़ कसने लगता है? तेरी सच्चाई ये है कि तू एक नामर्द है और तेरा बेटा तुझसे भी बड़ा नामर्द था। तेरे घर की औरतें तेरे सामने दूसरे मर्दों के साथ अपनी हवस मिटाती थीं और तुम दोनों बाप बेटे अपने उबलते खून को पानी से ठंडा करते थे।"
"ये क्या हिमाकत है??" पिता जी गुस्से से दहाड़ उठे।
उनके साथ साथ बाकी सब भी उछल कर खड़े हो गए थे। महेंद्र सिंह का छोटा भाई ज्ञानेंद्र सिंह लपक कर मेरे पास आया और मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचने लगा मगर मैंने झटक दिया उसे। इस वक्त बड़ा तेज़ गुस्सा आया हुआ था मुझे। मेरे झटक देने पर ज्ञानेंद्र झोंक में पीछे जा कर गिरते गिरते बचा। इधर चंद्रकांत चेहरे पर दहशत के भाव लिए चिल्लाने लगा था। ज्ञानेंद्र सम्हल कर फिर से मुझे छुड़ाने के लिए मेरे क़रीब आया और इस बार वो मुझे पूरी ताक़त से खींच कर चंद्रकांत से दूर ले गया।
"तुम दोनो बाप बेटे जैसा हिजड़ा इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगा।" मैं गुस्से चीखते हुए बोला____"साले नामर्द, अपनी औरतों को तो बस में कर नहीं सका और मर्द बनता है बेटीचोद।"
"तुम्हें इस हिमाकत की सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाएगी।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए बेहद गुस्से में कहा____"इसी वक्त चले जाओ यहां से वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा।"
"बेशक सज़ा दे दीजिएगा पिता जी।" मैंने गुस्से से भभकते हुए खुद को एक झटके में ज्ञानेंद्र से छुड़ाया, फिर बोला____"लेकिन इस मादरचोद ने अगर दुबारा फिर से किसी बात पर आपकी तरफ उंगली उठाई तो इसकी ज़ुबान हलक से निकाल कर इसके हाथ में दे दूंगा।"
शोर शराबा सुन कर घर के अंदर से औरतें भाग कर बाहर आ गईं थी। बाहर मौजूद लोग भी तितर बितर हो कर दूर हट गए थे। सभी के चेहरों पर ख़ौफ के भाव उभर आए थे। उधर चंद्रकांत सहम कर घर के बाहर दोनों तरफ बनी पट्टी पर बैठ गया था। जूड़ी के मरीज़ की तरह थर थर कांपे जा रहा था वो।
"हमने कहा चले जाओ यहां से।" पिता जी इस बार गुस्से में दहाड़ ही उठे। पिता जी का गुस्सा देख महेंद्र सिंह ने अपने भाई को इशारा किया तो वो मुझे ले कर अपनी जीप की तरफ बढ़ चला।
"मुझे तुमसे ऐसी बेहूदा हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वैभव।" रास्ते में ज्ञानेंद्र सिंह ने गंभीरता से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"सबके सामने तुम्हें ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था और ना ही उसे गालियां देनी चाहिए थी।"
"और उसे सबके सामने मेरे पिता पर तंज कसना चाहिए था, है ना?" मैंने तीखे भाव से ज्ञानेंद्र की तरफ देखा।
"तुम उस व्यक्ति के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो।" ज्ञानेंद्र ने कहा____"पिछले कुछ समय में यहां जो कुछ हुआ है उससे हम सब भी इतना समझ चुके हैं कि कौन कैसा है। एक बात हमेशा याद रखो कि कीचड़ में अगर पत्थर मारोगे तो वो कीचड़ उल्टा तुम्हें ही गंदा करेगा, जबकि उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। चंद्रकांत की दशा कीचड़ जैसी ही है।"
"मैं काफी समय से उसको बर्दास्त करता आ रहा था चाचू।" मैंने खीझते हुए कहा____"लेकिन आज सबके सामने जब उसने फिर से पिता जी पर तंज कसा तो मैं बर्दास्त नहीं कर सका। एक तो मादरचोद ने खुद अपनी ही बहू को मार डाला और ऊपर से अभी भी खुद को साधू महात्मा दर्शाने की कोशिश कर रहा है।"
"मूर्ख लोग ऐसे ही होते हैं वैभव।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"समझदार लोग मूर्खों की बातों पर ध्यान नहीं देते। जैसे तुम्हारे पिता जी उसकी बातों को सुन कर धैर्य धारण किए रहते हैं वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए था।"
अब तक मेरा गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो गया था इस लिए ज्ञानेंद्र सिंह की बातें अब मेरे ज़हन में आसानी से घुस रहीं थी। मुझे एहसास होने लगा था कि वाकई में मुझसे ग़लती हो गई है। मुझे सबके सामने इस तरह का तमाशा नहीं करना चाहिए था।
"मैंने सुना है कि तुम पहले से अब काफी बदल गए हो।" ज्ञानेंद्र सिंह ने मुझे ख़ामोश देखा तो इस बार बड़ी शालीनता से कहा____"और एक अच्छे इंसान की तरह अपनी हर ज़िम्मेदारियां निभा रहे हो। एक वक्त था जब हम लोग दादा ठाकुर के सामने तुम्हारा ज़िक्र करते थे तो अक्सर उनका चेहरा मायूस हो जाया करता था किंतु पिछले कुछ समय से हमने यही देखा है कि तुम्हारा ज़िक्र होने पर उनके चेहरे पर खुशी और गर्व के भाव आ जाते हैं। अगर एक पिता अपने बेटे के लिए खुशी और गर्व महसूस करने लगे तो इसका मतलब ये होता है कि उन्हें दुनिया की हर खुशी मिल चुकी है। यानि अब उन्हें किसी चीज़ की हसरत नहीं है। ख़ैर, मैं रिश्ते में तुम्हारा चाचू हूं लेकिन तुम मुझे अपना दोस्त भी मान सकते हो। एक दोस्त के नाते मैं तुमसे यही कहूंगा कि इतना कुछ होने के बाद अब तुम ही दादा ठाकुर की एक मात्र उम्मीद हो। तुम भले ही उनके बेटे हो लेकिन तुमसे कहीं ज़्यादा उनके बारे में हम जानते हैं। हमने बचपन से दादा ठाकुर को लोगों की खुशी के लिए संघर्ष करते देखा है। मेरे भैया हमेशा मुझसे कहा करते हैं कि मैं दादा ठाकुर की तरह बनूं और हमेशा उनके नक्शे क़दम पर चलूं। ज़ाहिर है मेरे भैया भी समझते हैं कि दादा ठाकुर कितने महान इंसान हैं। हम सब उनके नक्शे क़दम पर चलने की कोशिश भले ही करते हैं लेकिन उनके जैसा बनना बिल्कुल भी आसान नहीं है। फिर भी इतना तो कर ही सकते हैं कि हमारे आचरण से किसी का अहित न हो बल्कि सबका भला ही हो।"
"मैं समझ गया चाचू कि आप क्या कहना चाहते हैं।" मैंने अधीरता से कहा____"यकीन कीजिए मैं भी अब ऐसा ही इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे एहसास है कि मैंने इसके पहले बहुत ग़लत कर्म किए थे जिसके चलते मेरे खानदान का नाम ख़राब हुआ और पिता जी को हमेशा मेरी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। अब सब कुछ भुला कर यही कोशिश कर रहा हूं कि मुझसे ग़लती से भी कोई ग़लत काम न हो।"
"बहुत बढ़िया।" ज्ञानेंद्र सिंह ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"और हां अपने गुस्से पर भी लगाम लगाए रखा करो। तुम्हारा गुस्सा दूर दूर तक मशहूर है। लोग तुम्हारे गुस्से से बहुत डरते हैं। इस लिए इस पर लगाम लगा के रखो।"
"कोशिश कर रहा हूं चाचू।" मैंने झेंपते हुए कहा____"मैंने काफी समय से किसी पर गुस्सा नहीं किया और ना ही किसी को बुरा भला कहा है। आज भी मैं गुस्सा ना होता अगर चंद्रकांत मेरे पिता जी पर तंज न कसता।"
"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"देखो, हम हवेली पहुंच गए हैं। तुम जाओ आराम करो, मैं अब वापस जाऊंगा।"
हवेली के हाथी दरवाज़े के पास जीप रुकी तो मैं उतर गया। ज्ञानेंद्र सिंह ने जीप को वापस मोड़ा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे पता है कि तुम हर जगह मशहूर हो लेकिन फिर भी एक नई पहचान के लिए लोगों से मिलना मिलाना बेहद ज़रूरी होता है। कभी समय निकाल कर आओ हमारे यहां।"
"बिल्कुल चाचू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ज़रूर आऊंगा। आख़िर अब आप मेरे चाचू के साथ साथ दोस्त भी तो बन गए हैं।"
मेरी बात सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह हल्के से हंसा और फिर जीप को आगे बढ़ा कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ पैदल चल पड़ा। ज्ञानेंद्र सिंह मुझे एक अच्छा इंसान प्रतीत हुआ था। वो विवाहित था किन्तु उम्र ज़्यादा नहीं हुई थी उसकी। शरीर काफी फिट था जिसके चलते उसकी उमर का पता नहीं चलता था। ख़ैर उसके बारे में सोचते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली के अंदर दाखिल हो गया।
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मेरी वजह से जो हंगामा हुआ था उसे जल्द ही सम्हाल लिया गया था और अब सब कुछ ठीक था। पिता जी के चेहरे पर अभी भी नाराज़गी दिख रही थी। ज़ाहिर है मेरी वजह से उन्हें एक बार फिर से शर्मिंदगी हुई थी। किसी को भी मुझसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी। ख़ैर जो होना था वो हो चुका था। महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत को फिर से अपने सामने बुला लिया था। इस वक्त वो अजीब सा चेहरा लिए खड़ा था।
"ठाकुर साहब को बचपन से जानते हुए भी तुम इनके बारे में ऐसे ख़याल रखते हो जोकि हैरत की बात है।" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारा जो भी मामला था उसे तुम दूसरे तरीके से भी बहुत अच्छी तरह सुलझा सकते थे। दूसरी बात ये भी है कि ग़लती सिर्फ ठाकुर साहब के बेटे की ही बस नहीं थी बल्कि तुम्हारे घर की औरतों की भी थी। तुमने अपने घर की औरतों को कुछ नहीं कहा और ना ही उनके ग़लत कर्मों के लिए उन्हें धिक्कारा। इसके बदले तुमने वो किया जो किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए था। अगर तुम्हें पता चल ही गया था कि तुम्हारे घर के मामले में वैभव भी शामिल है तो तुम्हें सीधा ठाकुर साहब से इस बारे में बात करनी चाहिए थी। इसके बाद भी अगर कोई हल न निकलता तो तुम्हारा ऐसा क़दम उठाना जायज़ कहलाता लेकिन नहीं, तुमने वो किया जिसके चलते ना जाने कितने लोगों की जानें चली गईं।"
चंद्रकांत अपराध बोझ से सिर झुकाए खड़ा रहा। उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था। चौगान में बैठे लोग सांसें रोके महेंद्र सिंह की बातें सुन रहे थे और साथ ही समझने की कोशिश कर रहे थे कि किसकी कहां ग़लती रही है?
"ख़ैर जो हो गया उसे तो अब लौटाया नहीं जा सकता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"लेकिन ये जो तुमने किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती। किंतु उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हारी बहू के बारे में ऐसा क्या बताया था जिससे तुमने ये मान लिया कि तुम्हारी बहू ने ही रघुवीर की हत्या की है?"
"उसने मुझे बताया था कि मेरी बहू रजनी ने हाल ही में एक नए व्यक्ति से संबंध बना लिया था।" चंद्रकांत ने जबड़े भींच कर कहा____"वो व्यक्ति रजनी को हमेशा के लिए अपनी बना कर ले जाना चाहता था। रजनी भी इसके लिए तैयार थी। उस रात रजनी अपने उस नए आशिक़ के साथ भाग ही रही थी। उसने जब देखा कि मेरा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ है तो वो चुपके से अपना ज़रूरी समान ले कर घर से बाहर निकल आई थी। घर के बाहर उसका आशिक़ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। रजनी को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि ऐन वक्त पर मेरा बेटा उसके पीछे पीछे आ जाएगा। असल में मेरे बेटे को रात में पेशाब करने के लिए दो तीन बार बाहर जाना पड़ता था। उस रात भी वो पेशाब करने के लिए ही बाहर निकला था। कमरे में रजनी को न देख कर वो चौंका ज़रूर था किंतु उसने यही सोचा था कि शायद रजनी भी उसकी तरह बाहर लघुशंका करने गई होगी। ख़ैर जब मेरा बेटा बाहर आया तो उसने देखा कि उसकी बीवी अंधेरे में किसी के पास खड़ी थी और धीमी आवाज़ में बातें कर रही थी। रघुवीर फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा तो वो दोनों मेरे बेटे को देख कर बुरी तरह डर गए। इधर मेरा बेटा भी अपनी बीवी को रात के उस वक्त किसी गैर मर्द के साथ देख कर उछल पड़ा था। उसे समझने में देर न लगी कि रजनी अंधेरे में अपने आशिक़ के साथ क्या कर रही थी। मेरे बेटे को इतना गुस्सा आया कि उसने पहले तो रजनी को ज़ोर का धक्का दे कर दूर धकेला और फिर उसके आशिक़ को मारने लगा। रजनी इस सबसे बहुत ज़्यादा घबरा गई। उसे लगा कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए और लोगों को पता न चल जाए। उधर मेरा बेटा उसके आशिक़ की धुनाई करने में लगा हुआ था। रजनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? तभी उसकी नज़र वहीं कुछ ही दूरी पर पड़ी कुल्हाड़ी पर पड़ी। उसने झट से उस कुल्हाड़ी को उठा लिया और रघुवीर के क़रीब आ कर उसे धमकाया कि वो उसके आशिक़ को छोड़ दे वरना वो उस कुल्हाड़ी से उसका खून कर देगी। रघुवीर को लगा था कि रजनी सिर्फ उसे धमका रही है इस लिए उसने उसे गंदी गाली दे कर फिर से धक्का दे दिया और उसके आशिक़ को मारने लगा। अब तक इस सबके चलते थोड़ा शोर होने लगा था जिससे रजनी और भी ज़्यादा घबरा उठी थी। वो क्योंकि अपने आशिक़ के साथ नई दुनिया बसा लेना चाहती थी इस लिए उसने समय न ख़राब करते हुए आगे बढ़ कर मेरे बेटे पर उस कुल्हाड़ी से वार कर दिया। कुल्हाड़ी का वार सीधा रघुवीर की गर्दन पर लग गया। ऐसा इत्तेफ़ाक से ही हुआ था। रजनी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। रघुवीर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया और दर्द से तड़पने लगा। कुछ ही देर में उसका जिस्म एकदम से शांत पड़ गया। मेरा बेटा मर चुका था। जब रजनी और उसके आशिक़ को इस बात का आभास हुआ तो दोनों ही सन्न रह गए। रजनी का आशिक़ मेरे बेटे के इस तरह मर जाने से इतना डर गया कि वो वहां से फ़ौरन ही भाग गया। इधर रजनी की भी हालत ख़राब हो गई थी। उसने अपने जाते हुए आशिक़ को पुकारना चाहा मगर किसी के सुन लेने के डर से वो उसे पुकार ना सकी किंतु इतना उसे ज़रूर समझ आ गया था कि उसके आशिक़ ने उसे ऐसे वक्त पर धोखा दे दिया है। रजनी से वो हो गया था जिसे उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। काफी देर तक वो मेरे बेटे की लाश के पास बैठी रोती रही। फिर जैसे ही उसे हालात की गंभीरता का एहसास हुआ तो वो सोचने लगी कि अब वो क्या करे? वो जानती थी कि उससे बहुत बड़ा कांड हो गया है और जब इस बात का पता घर वालों को चलेगा तो वो कोई जवाब नहीं दे पाएगी। उसने आनन फानन में खून से सनी उस कुल्हाड़ी को फेंका और फिर अपना हुलिया ठीक कर के घर के अंदर आ गई। अपने कमरे में आ कर वो सोचने लगी कि इस गंभीर मुसीबत से बचने के लिए वो क्या करे? सारी रात उसने सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे अपने धोखेबाज आशिक़ पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से उसने इतना बड़ा क़दम उठाया था। तभी उसे रूपचंद्र का ख़याल आया। रूपचंद्र ने उसे पिछली शाम रास्ते में रोका था और उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती की थी जिसके जवाब में रजनी ने उसे खरी खोटी सुनाई थी। रजनी ने जब इस बारे में सोचा तो उसे अपने बचाव के लिए तरीका सूझ गया। सुबह जब हम सबको इस बात का पता चला तो हम सब रोने धोने लगे। रजनी भी हमारी तरह रोने धोने लगी थी। कुछ देर बाद उसने रोते हुए वही सब कहना शुरू कर दिया जो रात में उसने सोचा था। उसकी बात सुन कर मैं भी उसके फेर में आ गया था और फिर आगे क्या हुआ ये सब आप जानते ही हैं।"
इतना सब कुछ बताने के बाद चंद्रकांत चुप हुआ तो वातावरण में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी के साथ साथ महेंद्र सिंह और बाकी सब भी चकित भाव से उसकी तरफ देखे जा रहे थे।
"तो उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें ये सब बताया था जिसके बाद तुम्हें भी यकीन हो गया कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी बहू ने ही की है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर वाकई में ये सच है तो ये बड़े ही आश्चर्य की बात है कि अब तक हम में से किसी को इस बारे में पता तक नहीं चल सका। वैसे तुमने उस सफ़ेदपोश से पूछा नहीं कि उसे ये सब बातें कैसे पता थीं? आख़िर इतनी गहरी राज़ की बातें उसे कैसे पता चलीं? तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सफ़ेदपोश ने अपनी आंखों देखा हाल ही बताया था तुम्हें। अगर यही सच है तो सवाल उठता है कि उसने इस सबको रोका क्यों नहीं? क्यों अपनी आंखों के सामने तुम्हारे बेटे की हत्या हो जाने दी?"
चंद्रकांत, महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर बड़े अजीब भाव से देखने लगा उन्हें। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते हुए नज़र आने लगे थे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो बड़ी तेज़ी से कुछ सोचने समझने की कोशिश कर रहा हो।
"उस सफ़ेदपोश से और क्या बातें हुईं थी तुम्हारी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए चंद्रकांत से पूछा____"हमारा मतलब है कि उस सफ़ेदपोश ने तुम्हारे बेटे के हत्यारे के बारे में तुम्हें बताया तो बदले में क्या उसने तुमसे कुछ नहीं चाहा?"
"चाहा है।" चंद्रकांत बड़ी अजीब दुविधा लिए बोला____"कल रात उसने कहा था कि बदले में मुझे भी वही करना होगा जो वो करने को कहेगा मुझसे।"
"अच्छा।" महेंद्र सिंह ने कहा____"और क्या कहा था उसने?"
"यही कि आज रात वो किसी भी वक्त मुझसे मिलने आ सकता है।" चंद्रकांत ने कहा____"शायद अब वो मुझे कोई काम सौंपेगा जिसे मुझे करना होगा। उसने मुझे धमकी भी दी थी कि अगर मैं अपने वादे से मुकर गया तो ये मेरे और मेरे परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा।"
"बहुत खूब।" महेंद्र सिंह बोल पड़े____"फिर तो तुम्हें उसके लिए तैयार रहना चाहिए, है ना?"
चंद्रकांत अजीब सा मुंह बनाए खड़ा रह गया। उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी द्वंद से जूझ रहा है।
"ठाकुर साहब क्या लगता है आपको?" महेंद्र सिंह सहसा दादा ठाकुर से मुखातिब हुए____"क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो हम सोच रहे हैं?"
"हमें तो लगता है कि वो सफ़ेदपोश चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हौलनाक खेल खेल गया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"उसने चंद्रकांत को ऐसी कहानी सुनाई जिसे सच मान कर चंद्रकांत ने अपने हाथों अपनी ही बहू को बेटे की हत्यारिन मान कर मार डाला।"
"बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमें भी यही लगता है। सफ़ेदपोश को चंद्रकांत की मनोदशा का भली भांति एहसास था जिसका उसने फ़ायदा उठाया और फिर उसने वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।"
"सोचने वाली बात है कि रघुवीर की हत्या हुए इतने दिन गुज़र गए हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और अभी तक उस सफ़ेदपोश का कहीं अता पता नहीं था। अगर उसे चंद्रकांत से इतनी ही हमदर्दी थी तो उसने पहले ही चंद्रकांत के पास आ कर उसे ये क्यों नहीं बताया था कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है? इतने दिनों तक किस बात का इंतज़ार कर रहा था वो? ख़ैर ये तो थी एक बात, दूसरी सोचने वाली बात ये है कि ये सब बताने के पीछे सफ़ेदपोश का मकसद क्या था? क्या ये कि अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जान कर चंद्रकांत उसकी जान ही ले ले? अगर यही सच है तो फिर उसे चंद्रकांत का हमदर्द नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपनी बहू की हत्या करने के बाद चंद्रकांत को कोई पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला बल्कि सख़्त से सख़्त सज़ा ही मिलेगी।"
"सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"चंद्रकांत ने जो किया है उसके लिए तो इसे यकीनन सज़ा ही मिलेगी लेकिन अभी ये भी देखना है कि आगे क्या होता है? हमारा मतलब है कि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा है तो देखते हैं ऐसा होता है कि नहीं।"
चंद्रकांत सारी बातें सुन रहा था और अब उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी रो देगा। बड़ी मुश्किल से खुद को रोके हुए था वो। चौगान में बैठे बाकी लोग सतब्ध से बैठे बातें सुन रहे थे।
"अगर आज रात वो सफ़ेदपोश सचमुच चंद्रकांत से मिलने आएगा तो यही समझा जाएगा कि उसकी बातों में अथवा ये कहें कि उसकी कहानी में कहीं न कहीं सच्चाई थी।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और अगर वो नहीं आया तो स्पष्ट हो जाएगा कि वो चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हैरतंगेज खेल खेल गया है।"
कहने के साथ ही महेंद्र सिंह चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"आगे की कार्यवाही कल की जाएगी चंद्रकांत। आज रात हम भी ये देखना चाहते हैं कि तुम्हारा वो हमदर्द सफ़ेदपोश अपनी कसौटी पर कितना खरा उतरता है।"
"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर अभी खड़े ही हुए थे कि तभी चंद्रकांत आर्तनाद सा करता हुआ उनके पैरों में लोट गया। ये देख उनके साथ साथ बाकी उपस्थित लोग भी चौंक पड़े। उधर चंद्रकांत रोते बिलखते हुए कहता चला गया____"मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो रहा है कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है।"
"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"
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Gazab ki update he TheBlackBlood Shubham Bhai,
Safedposh ne badi chalaki se chanderkant ko apna mohra banakar rajni ki hatya karwa di..............lekin rajni ki hatya se use kya fayda hoga????
Vaibhav ko apne gusse par kabu karna sikhna padega.............aaj jis tarah se usne chanderkant ki gardan pakdi...........mujhe to purana vaibhav wapis aata hua laga
Agle update ki pratiksha rahegi bhai