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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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159
अध्याय - 103
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"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?



अब आगे....


चंद्रकांत और उसके बेटे के ससुराल वाले पहले ही आ गए थे जिसके चलते काफी रोना धोना हुआ था उसके घर में। रघुवीर की ससुराल वाले तो आपे से बाहर भी हो ग‌ए थे जिसके चलते हंगामा होने वाला था मगर गांव वालों ने फ़ौरन ही सब सम्भाल लिया था।

हम सब जब वहां पहुंचे तो देखा कि गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग लोग पहले से ही चंद्रकांत के घर में मौजूद थे। रघुवीर का साला और उसका ससुर बाहर ही एक तरफ गुमसुम से बैठे थे जबकि उनके साथ आई औरतें और लड़कियां घर के अंदर थीं। बहरहाल, पिता जी के साथ जब महेंद्र सिंह आदि लोगों का काफ़िला पहुंचा तो घर के बाहर ही सबके बैठने की व्यवस्था कर दी गई। आसमान में घने बादल छाए हुए थे जिसके चलते धूप नहीं थी और ठंडी हवाएं चल रहीं थी।

सब लोग बैठे हुए थे जबकि चंद्रकांत चेहरे पर अजीब सी सख़्ती धारण किए घर के बाहर दोनों तरफ बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर बैठा था। वातावरण में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। आगे की कार्यवाही अथवा पूछताछ के लिए महेंद्र सिंह ने औपचारिक रूप से सभी लोगों के सामने वार्तालाप शुरू किया और फिर मुद्दे की बात के लिए चंद्रकांत को अपने थोड़ा पास बुला लिया।

"हम उम्मीद करते हैं कि अब तुम्हारा दिलो दिमाग़ पहले से थोड़ा शांत और बेहतर हो गया होगा।" महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत की तरफ देखते हुए कहा____"अतः अब हम ये उम्मीद करते हैं कि हम जो कुछ भी तुमसे पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब दोगे।"

कुछ घंटे लोगों के बीच रहने के चलते कदाचित चंद्रकांत की मनोदसा में थोड़ा परिवर्तन आ गया था। इस लिए महेंद्र सिंह की बात सुन कर उसने ख़ामोशी से ही हां में सिर हिला दिया था।

"बहुत बढ़िया।" महेंद्र सिंह ने कहा___"हमारा सबसे पहला सवाल ये है कि वो कौन था जिसने तुम्हें ये बताया कि तुम्हारे बेटे की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी?"

"कल रात की बात है।" चंद्रकांत ने सपाट लहजे से कहा____"शायद उस वक्त रात के बारह बजे रहे होंगे। मैं पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकला था। पेशाब कर के वापस घर के अंदर जाने ही लगा था कि तभी अजीब सी आहट हुई जिसके चलते मैं रुक गया। पहले मुझे लगा कि शायद ये मेरा वहम है इस लिए ध्यान न दे कर मैंने फिर से अपने क़दम आगे बढ़ाए मगर तभी आहट फिर से हुई। इस बार की आहट से मैं समझ गया कि इसके पहले मुझे कोई वहम नहीं हुआ था। ख़ैर मैं ये देखने के लिए इधर उधर निगाह डालने लगा कि रात के इस वक्त आख़िर किस चीज़ से आहट हो रही है? मुझे याद आया कि ऐसी ही एक रात मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी। मुझे एकदम से लगा जैसे उस वक्त भी वो हत्यारा मेरे आस पास मौजूद है। अंधेरा था इस लिए स्पष्ट कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन जल्दी ही मेरी निगाह नीम अंधेरे में एक जगह खड़े एक साए पर पड़ गई।"

"साए पर??" महेंद्र सिंह पूछे बगैर न रह सके थे____"किसका साया था वो?"

"एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति का जिसके बारे में इसके पहले दादा ठाकुर ज़िक्र कर चुके थे।" चंद्रकांत ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"हां ठाकुर साहब, वो कोई और नहीं बल्कि वही सफ़ेदपोश व्यक्ति था जिसके बारे में आपने मुझसे और गौरी शंकर जी से पूछा था।"

चंद्रकांत की ये बात सुन कर पिता जी के साथ साथ बाकी सब लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। हैरत में डूबा चेहरा लिए सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। इधर मेरा भी वही हाल था। मैं भी सोच में पड़ गया था कि साला अब ये क्या चक्कर है? इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और अब इस तरह से उसका पता चल रहा था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि चंद्रकांत के इस मामले में सफ़ेदपोश कहां से और कैसे आ गया?

"ये तुम क्या कह रहे हो चंद्रकांत?" पिता जी पूछने से खुद को रोक न सके____"पिछली रात तुमने जिस साए को देखा क्या वो सच में सफ़ेदपोश था? कहीं तुम्हें कोई वहम तो नहीं हुआ था?"

"वहम का सवाल ही नहीं उठता ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने पूरी मजबूती से कहा____"क्योंकि मैंने उसे बहुत क़रीब से और अपनी आंखों से देखा था। इतना ही नहीं काफी देर तक मेरी उससे बातें भी हुईं थी। वो वही था जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद लिबास था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" पिता जी बरबस ही कह उठे____"इतने समय से हम उस सफ़ेदपोश को तलाश कर रहे हैं किंतु उसका कहीं कोई सुराग़ नहीं मिल सका और तुम कह रहे हो कि तुमने उसे देखा है? उससे बातें भी की हैं?"

"यही सच है ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"उसी ने मुझे बताया कि मेरे बेटे का हत्यारा मेरी अपनी ही बहू थी।"

"और उसके कहने से तुमने मान लिया?" महेंद्र सिंह ने हैरत से उसे देखा____"बड़े आश्चर्य की बात है कि तुमने एक ऐसे व्यक्ति की बात मान ली जो जाने कब से खुद को सबसे छुपाए फिर रहा है। इतना ही नहीं जो ठाकुर साहब के बेटे वैभव की जान का दुश्मन भी बना हुआ है। हमें बिल्कुल भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा कि तुमने ऐसे व्यक्ति के कहने पर अपनी बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान लिया और फिर बदले की भावना के चलते उसे मार भी डाला।"

"बिल्कुल, हमारा भी यही कहना है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि तुमने उस सफ़ेदपोश के कहने बस से ही अपनी बहू को हत्यारिन नहीं मान लिया होगा। यकीनन उसने तुम्हें कोई ऐसी वजह भी बताई होगी जिसके बाद तुम्हें अपनी बहू के हत्यारिन होने पर यकीन आ गया होगा। हम सब भी ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हें ऐसा क्या बताया था?"

"मैं हर बात किसी को बताना ज़रूरी नहीं समझता।" चंद्रकांत ने सख़्ती से जबड़े भींच कर कहा____"ये मेरा पारिवारिक और बेहद निजी मामला है।"

"जब किसी औरत को बेरहमी से मार डाला जाए तो मामला पारिवारिक अथवा निजी नहीं रह जाता चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने कठोर भाव से कहा____"तुमने अपनी बहू को बेरहमी से मार डाला है, इस लिए अब तुम्हें बताना ही होगा कि इसके पीछे की असल वजह क्या है? परिवार का मामला चाहे जैसा भी हो लेकिन किसी की हत्या कर देने का हक़ किसी को भी नहीं है। तुमने अपनी बहू की हत्या की है और इस अपराध के लिए तुम्हें सज़ा भी मिलेगी।"

"हां तो दे दीजिए मुझे सज़ा।" चंद्रकांत पागलों की तरह चीख पड़ा____"चढ़ा दीजिए मुझे सूली पर। मेरे मर जाने से कम से कम दादा ठाकुर के कलेजे को शांति तो मिल जाएगी।"

"मादरचोद, क्या बोला तूने?" चंद्रकांत की बात से मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं गुस्से में आग बबूला हो कर पलक झपकते ही उसके क़रीब पहुंच गया।

इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता मैंने उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया और फिर गुर्राते हुए कहा____"तू कौन सा दूध का धुला है जो हर बात में तू मेरे बाप पर उंगली कर के तंज़ कसने लगता है? तेरी सच्चाई ये है कि तू एक नामर्द है और तेरा बेटा तुझसे भी बड़ा नामर्द था। तेरे घर की औरतें तेरे सामने दूसरे मर्दों के साथ अपनी हवस मिटाती थीं और तुम दोनों बाप बेटे अपने उबलते खून को पानी से ठंडा करते थे।"

"ये क्या हिमाकत है??" पिता जी गुस्से से दहाड़ उठे।

उनके साथ साथ बाकी सब भी उछल कर खड़े हो गए थे। महेंद्र सिंह का छोटा भाई ज्ञानेंद्र सिंह लपक कर मेरे पास आया और मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचने लगा मगर मैंने झटक दिया उसे। इस वक्त बड़ा तेज़ गुस्सा आया हुआ था मुझे। मेरे झटक देने पर ज्ञानेंद्र झोंक में पीछे जा कर गिरते गिरते बचा। इधर चंद्रकांत चेहरे पर दहशत के भाव लिए चिल्लाने लगा था। ज्ञानेंद्र सम्हल कर फिर से मुझे छुड़ाने के लिए मेरे क़रीब आया और इस बार वो मुझे पूरी ताक़त से खींच कर चंद्रकांत से दूर ले गया।

"तुम दोनो बाप बेटे जैसा हिजड़ा इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगा।" मैं गुस्से चीखते हुए बोला____"साले नामर्द, अपनी औरतों को तो बस में कर नहीं सका और मर्द बनता है बेटीचोद।"

"तुम्हें इस हिमाकत की सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाएगी।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए बेहद गुस्से में कहा____"इसी वक्त चले जाओ यहां से वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"बेशक सज़ा दे दीजिएगा पिता जी।" मैंने गुस्से से भभकते हुए खुद को एक झटके में ज्ञानेंद्र से छुड़ाया, फिर बोला____"लेकिन इस मादरचोद ने अगर दुबारा फिर से किसी बात पर आपकी तरफ उंगली उठाई तो इसकी ज़ुबान हलक से निकाल कर इसके हाथ में दे दूंगा।"

शोर शराबा सुन कर घर के अंदर से औरतें भाग कर बाहर आ गईं थी। बाहर मौजूद लोग भी तितर बितर हो कर दूर हट गए थे। सभी के चेहरों पर ख़ौफ के भाव उभर आए थे। उधर चंद्रकांत सहम कर घर के बाहर दोनों तरफ बनी पट्टी पर बैठ गया था। जूड़ी के मरीज़ की तरह थर थर कांपे जा रहा था वो।

"हमने कहा चले जाओ यहां से।" पिता जी इस बार गुस्से में दहाड़ ही उठे। पिता जी का गुस्सा देख महेंद्र सिंह ने अपने भाई को इशारा किया तो वो मुझे ले कर अपनी जीप की तरफ बढ़ चला।

"मुझे तुमसे ऐसी बेहूदा हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वैभव।" रास्ते में ज्ञानेंद्र सिंह ने गंभीरता से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"सबके सामने तुम्हें ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था और ना ही उसे गालियां देनी चाहिए थी।"

"और उसे सबके सामने मेरे पिता पर तंज कसना चाहिए था, है ना?" मैंने तीखे भाव से ज्ञानेंद्र की तरफ देखा।

"तुम उस व्यक्ति के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो।" ज्ञानेंद्र ने कहा____"पिछले कुछ समय में यहां जो कुछ हुआ है उससे हम सब भी इतना समझ चुके हैं कि कौन कैसा है। एक बात हमेशा याद रखो कि कीचड़ में अगर पत्थर मारोगे तो वो कीचड़ उल्टा तुम्हें ही गंदा करेगा, जबकि उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। चंद्रकांत की दशा कीचड़ जैसी ही है।"

"मैं काफी समय से उसको बर्दास्त करता आ रहा था चाचू।" मैंने खीझते हुए कहा____"लेकिन आज सबके सामने जब उसने फिर से पिता जी पर तंज कसा तो मैं बर्दास्त नहीं कर सका। एक तो मादरचोद ने खुद अपनी ही बहू को मार डाला और ऊपर से अभी भी खुद को साधू महात्मा दर्शाने की कोशिश कर रहा है।"

"मूर्ख लोग ऐसे ही होते हैं वैभव।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"समझदार लोग मूर्खों की बातों पर ध्यान नहीं देते। जैसे तुम्हारे पिता जी उसकी बातों को सुन कर धैर्य धारण किए रहते हैं वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए था।"

अब तक मेरा गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो गया था इस लिए ज्ञानेंद्र सिंह की बातें अब मेरे ज़हन में आसानी से घुस रहीं थी। मुझे एहसास होने लगा था कि वाकई में मुझसे ग़लती हो गई है। मुझे सबके सामने इस तरह का तमाशा नहीं करना चाहिए था।

"मैंने सुना है कि तुम पहले से अब काफी बदल गए हो।" ज्ञानेंद्र सिंह ने मुझे ख़ामोश देखा तो इस बार बड़ी शालीनता से कहा____"और एक अच्छे इंसान की तरह अपनी हर ज़िम्मेदारियां निभा रहे हो। एक वक्त था जब हम लोग दादा ठाकुर के सामने तुम्हारा ज़िक्र करते थे तो अक्सर उनका चेहरा मायूस हो जाया करता था किंतु पिछले कुछ समय से हमने यही देखा है कि तुम्हारा ज़िक्र होने पर उनके चेहरे पर खुशी और गर्व के भाव आ जाते हैं। अगर एक पिता अपने बेटे के लिए खुशी और गर्व महसूस करने लगे तो इसका मतलब ये होता है कि उन्हें दुनिया की हर खुशी मिल चुकी है। यानि अब उन्हें किसी चीज़ की हसरत नहीं है। ख़ैर, मैं रिश्ते में तुम्हारा चाचू हूं लेकिन तुम मुझे अपना दोस्त भी मान सकते हो। एक दोस्त के नाते मैं तुमसे यही कहूंगा कि इतना कुछ होने के बाद अब तुम ही दादा ठाकुर की एक मात्र उम्मीद हो। तुम भले ही उनके बेटे हो लेकिन तुमसे कहीं ज़्यादा उनके बारे में हम जानते हैं। हमने बचपन से दादा ठाकुर को लोगों की खुशी के लिए संघर्ष करते देखा है। मेरे भैया हमेशा मुझसे कहा करते हैं कि मैं दादा ठाकुर की तरह बनूं और हमेशा उनके नक्शे क़दम पर चलूं। ज़ाहिर है मेरे भैया भी समझते हैं कि दादा ठाकुर कितने महान इंसान हैं। हम सब उनके नक्शे क़दम पर चलने की कोशिश भले ही करते हैं लेकिन उनके जैसा बनना बिल्कुल भी आसान नहीं है। फिर भी इतना तो कर ही सकते हैं कि हमारे आचरण से किसी का अहित न हो बल्कि सबका भला ही हो।"

"मैं समझ गया चाचू कि आप क्या कहना चाहते हैं।" मैंने अधीरता से कहा____"यकीन कीजिए मैं भी अब ऐसा ही इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे एहसास है कि मैंने इसके पहले बहुत ग़लत कर्म किए थे जिसके चलते मेरे खानदान का नाम ख़राब हुआ और पिता जी को हमेशा मेरी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। अब सब कुछ भुला कर यही कोशिश कर रहा हूं कि मुझसे ग़लती से भी कोई ग़लत काम न हो।"

"बहुत बढ़िया।" ज्ञानेंद्र सिंह ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"और हां अपने गुस्से पर भी लगाम लगाए रखा करो। तुम्हारा गुस्सा दूर दूर तक मशहूर है। लोग तुम्हारे गुस्से से बहुत डरते हैं। इस लिए इस पर लगाम लगा के रखो।"

"कोशिश कर रहा हूं चाचू।" मैंने झेंपते हुए कहा____"मैंने काफी समय से किसी पर गुस्सा नहीं किया और ना ही किसी को बुरा भला कहा है। आज भी मैं गुस्सा ना होता अगर चंद्रकांत मेरे पिता जी पर तंज न कसता।"

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"देखो, हम हवेली पहुंच गए हैं। तुम जाओ आराम करो, मैं अब वापस जाऊंगा।"

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास जीप रुकी तो मैं उतर गया। ज्ञानेंद्र सिंह ने जीप को वापस मोड़ा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे पता है कि तुम हर जगह मशहूर हो लेकिन फिर भी एक नई पहचान के लिए लोगों से मिलना मिलाना बेहद ज़रूरी होता है। कभी समय निकाल कर आओ हमारे यहां।"

"बिल्कुल चाचू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ज़रूर आऊंगा। आख़िर अब आप मेरे चाचू के साथ साथ दोस्त भी तो बन गए हैं।"

मेरी बात सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह हल्के से हंसा और फिर जीप को आगे बढ़ा कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ पैदल चल पड़ा। ज्ञानेंद्र सिंह मुझे एक अच्छा इंसान प्रतीत हुआ था। वो विवाहित था किन्तु उम्र ज़्यादा नहीं हुई थी उसकी। शरीर काफी फिट था जिसके चलते उसकी उमर का पता नहीं चलता था। ख़ैर उसके बारे में सोचते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली के अंदर दाखिल हो गया।

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मेरी वजह से जो हंगामा हुआ था उसे जल्द ही सम्हाल लिया गया था और अब सब कुछ ठीक था। पिता जी के चेहरे पर अभी भी नाराज़गी दिख रही थी। ज़ाहिर है मेरी वजह से उन्हें एक बार फिर से शर्मिंदगी हुई थी। किसी को भी मुझसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी। ख़ैर जो होना था वो हो चुका था। महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत को फिर से अपने सामने बुला लिया था। इस वक्त वो अजीब सा चेहरा लिए खड़ा था।

"ठाकुर साहब को बचपन से जानते हुए भी तुम इनके बारे में ऐसे ख़याल रखते हो जोकि हैरत की बात है।" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारा जो भी मामला था उसे तुम दूसरे तरीके से भी बहुत अच्छी तरह सुलझा सकते थे। दूसरी बात ये भी है कि ग़लती सिर्फ ठाकुर साहब के बेटे की ही बस नहीं थी बल्कि तुम्हारे घर की औरतों की भी थी। तुमने अपने घर की औरतों को कुछ नहीं कहा और ना ही उनके ग़लत कर्मों के लिए उन्हें धिक्कारा। इसके बदले तुमने वो किया जो किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए था। अगर तुम्हें पता चल ही गया था कि तुम्हारे घर के मामले में वैभव भी शामिल है तो तुम्हें सीधा ठाकुर साहब से इस बारे में बात करनी चाहिए थी। इसके बाद भी अगर कोई हल न निकलता तो तुम्हारा ऐसा क़दम उठाना जायज़ कहलाता लेकिन नहीं, तुमने वो किया जिसके चलते ना जाने कितने लोगों की जानें चली गईं।"

चंद्रकांत अपराध बोझ से सिर झुकाए खड़ा रहा। उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था। चौगान में बैठे लोग सांसें रोके महेंद्र सिंह की बातें सुन रहे थे और साथ ही समझने की कोशिश कर रहे थे कि किसकी कहां ग़लती रही है?

"ख़ैर जो हो गया उसे तो अब लौटाया नहीं जा सकता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"लेकिन ये जो तुमने किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती। किंतु उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हारी बहू के बारे में ऐसा क्या बताया था जिससे तुमने ये मान लिया कि तुम्हारी बहू ने ही रघुवीर की हत्या की है?"

"उसने मुझे बताया था कि मेरी बहू रजनी ने हाल ही में एक नए व्यक्ति से संबंध बना लिया था।" चंद्रकांत ने जबड़े भींच कर कहा____"वो व्यक्ति रजनी को हमेशा के लिए अपनी बना कर ले जाना चाहता था। रजनी भी इसके लिए तैयार थी। उस रात रजनी अपने उस नए आशिक़ के साथ भाग ही रही थी। उसने जब देखा कि मेरा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ है तो वो चुपके से अपना ज़रूरी समान ले कर घर से बाहर निकल आई थी। घर के बाहर उसका आशिक़ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। रजनी को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि ऐन वक्त पर मेरा बेटा उसके पीछे पीछे आ जाएगा। असल में मेरे बेटे को रात में पेशाब करने के लिए दो तीन बार बाहर जाना पड़ता था। उस रात भी वो पेशाब करने के लिए ही बाहर निकला था। कमरे में रजनी को न देख कर वो चौंका ज़रूर था किंतु उसने यही सोचा था कि शायद रजनी भी उसकी तरह बाहर लघुशंका करने गई होगी। ख़ैर जब मेरा बेटा बाहर आया तो उसने देखा कि उसकी बीवी अंधेरे में किसी के पास खड़ी थी और धीमी आवाज़ में बातें कर रही थी। रघुवीर फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा तो वो दोनों मेरे बेटे को देख कर बुरी तरह डर गए। इधर मेरा बेटा भी अपनी बीवी को रात के उस वक्त किसी गैर मर्द के साथ देख कर उछल पड़ा था। उसे समझने में देर न लगी कि रजनी अंधेरे में अपने आशिक़ के साथ क्या कर रही थी। मेरे बेटे को इतना गुस्सा आया कि उसने पहले तो रजनी को ज़ोर का धक्का दे कर दूर धकेला और फिर उसके आशिक़ को मारने लगा। रजनी इस सबसे बहुत ज़्यादा घबरा गई। उसे लगा कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए और लोगों को पता न चल जाए। उधर मेरा बेटा उसके आशिक़ की धुनाई करने में लगा हुआ था। रजनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? तभी उसकी नज़र वहीं कुछ ही दूरी पर पड़ी कुल्हाड़ी पर पड़ी। उसने झट से उस कुल्हाड़ी को उठा लिया और रघुवीर के क़रीब आ कर उसे धमकाया कि वो उसके आशिक़ को छोड़ दे वरना वो उस कुल्हाड़ी से उसका खून कर देगी। रघुवीर को लगा था कि रजनी सिर्फ उसे धमका रही है इस लिए उसने उसे गंदी गाली दे कर फिर से धक्का दे दिया और उसके आशिक़ को मारने लगा। अब तक इस सबके चलते थोड़ा शोर होने लगा था जिससे रजनी और भी ज़्यादा घबरा उठी थी। वो क्योंकि अपने आशिक़ के साथ नई दुनिया बसा लेना चाहती थी इस लिए उसने समय न ख़राब करते हुए आगे बढ़ कर मेरे बेटे पर उस कुल्हाड़ी से वार कर दिया। कुल्हाड़ी का वार सीधा रघुवीर की गर्दन पर लग गया। ऐसा इत्तेफ़ाक से ही हुआ था। रजनी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। रघुवीर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया और दर्द से तड़पने लगा। कुछ ही देर में उसका जिस्म एकदम से शांत पड़ गया। मेरा बेटा मर चुका था। जब रजनी और उसके आशिक़ को इस बात का आभास हुआ तो दोनों ही सन्न रह गए। रजनी का आशिक़ मेरे बेटे के इस तरह मर जाने से इतना डर गया कि वो वहां से फ़ौरन ही भाग गया। इधर रजनी की भी हालत ख़राब हो गई थी। उसने अपने जाते हुए आशिक़ को पुकारना चाहा मगर किसी के सुन लेने के डर से वो उसे पुकार ना सकी किंतु इतना उसे ज़रूर समझ आ गया था कि उसके आशिक़ ने उसे ऐसे वक्त पर धोखा दे दिया है। रजनी से वो हो गया था जिसे उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। काफी देर तक वो मेरे बेटे की लाश के पास बैठी रोती रही। फिर जैसे ही उसे हालात की गंभीरता का एहसास हुआ तो वो सोचने लगी कि अब वो क्या करे? वो जानती थी कि उससे बहुत बड़ा कांड हो गया है और जब इस बात का पता घर वालों को चलेगा तो वो कोई जवाब नहीं दे पाएगी। उसने आनन फानन में खून से सनी उस कुल्हाड़ी को फेंका और फिर अपना हुलिया ठीक कर के घर के अंदर आ गई। अपने कमरे में आ कर वो सोचने लगी कि इस गंभीर मुसीबत से बचने के लिए वो क्या करे? सारी रात उसने सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे अपने धोखेबाज आशिक़ पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से उसने इतना बड़ा क़दम उठाया था। तभी उसे रूपचंद्र का ख़याल आया। रूपचंद्र ने उसे पिछली शाम रास्ते में रोका था और उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती की थी जिसके जवाब में रजनी ने उसे खरी खोटी सुनाई थी। रजनी ने जब इस बारे में सोचा तो उसे अपने बचाव के लिए तरीका सूझ गया। सुबह जब हम सबको इस बात का पता चला तो हम सब रोने धोने लगे। रजनी भी हमारी तरह रोने धोने लगी थी। कुछ देर बाद उसने रोते हुए वही सब कहना शुरू कर दिया जो रात में उसने सोचा था। उसकी बात सुन कर मैं भी उसके फेर में आ गया था और फिर आगे क्या हुआ ये सब आप जानते ही हैं।"

इतना सब कुछ बताने के बाद चंद्रकांत चुप हुआ तो वातावरण में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी के साथ साथ महेंद्र सिंह और बाकी सब भी चकित भाव से उसकी तरफ देखे जा रहे थे।

"तो उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें ये सब बताया था जिसके बाद तुम्हें भी यकीन हो गया कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी बहू ने ही की है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर वाकई में ये सच है तो ये बड़े ही आश्चर्य की बात है कि अब तक हम में से किसी को इस बारे में पता तक नहीं चल सका। वैसे तुमने उस सफ़ेदपोश से पूछा नहीं कि उसे ये सब बातें कैसे पता थीं? आख़िर इतनी गहरी राज़ की बातें उसे कैसे पता चलीं? तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सफ़ेदपोश ने अपनी आंखों देखा हाल ही बताया था तुम्हें। अगर यही सच है तो सवाल उठता है कि उसने इस सबको रोका क्यों नहीं? क्यों अपनी आंखों के सामने तुम्हारे बेटे की हत्या हो जाने दी?"

चंद्रकांत, महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर बड़े अजीब भाव से देखने लगा उन्हें। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते हुए नज़र आने लगे थे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो बड़ी तेज़ी से कुछ सोचने समझने की कोशिश कर रहा हो।

"उस सफ़ेदपोश से और क्या बातें हुईं थी तुम्हारी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए चंद्रकांत से पूछा____"हमारा मतलब है कि उस सफ़ेदपोश ने तुम्हारे बेटे के हत्यारे के बारे में तुम्हें बताया तो बदले में क्या उसने तुमसे कुछ नहीं चाहा?"

"चाहा है।" चंद्रकांत बड़ी अजीब दुविधा लिए बोला____"कल रात उसने कहा था कि बदले में मुझे भी वही करना होगा जो वो करने को कहेगा मुझसे।"

"अच्छा।" महेंद्र सिंह ने कहा____"और क्या कहा था उसने?"

"यही कि आज रात वो किसी भी वक्त मुझसे मिलने आ सकता है।" चंद्रकांत ने कहा____"शायद अब वो मुझे कोई काम सौंपेगा जिसे मुझे करना होगा। उसने मुझे धमकी भी दी थी कि अगर मैं अपने वादे से मुकर गया तो ये मेरे और मेरे परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा।"

"बहुत खूब।" महेंद्र सिंह बोल पड़े____"फिर तो तुम्हें उसके लिए तैयार रहना चाहिए, है ना?"

चंद्रकांत अजीब सा मुंह बनाए खड़ा रह गया। उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी द्वंद से जूझ रहा है।

"ठाकुर साहब क्या लगता है आपको?" महेंद्र सिंह सहसा दादा ठाकुर से मुखातिब हुए____"क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो हम सोच रहे हैं?"

"हमें तो लगता है कि वो सफ़ेदपोश चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हौलनाक खेल खेल गया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"उसने चंद्रकांत को ऐसी कहानी सुनाई जिसे सच मान कर चंद्रकांत ने अपने हाथों अपनी ही बहू को बेटे की हत्यारिन मान कर मार डाला।"

"बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमें भी यही लगता है। सफ़ेदपोश को चंद्रकांत की मनोदशा का भली भांति एहसास था जिसका उसने फ़ायदा उठाया और फिर उसने वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।"

"सोचने वाली बात है कि रघुवीर की हत्या हुए इतने दिन गुज़र गए हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और अभी तक उस सफ़ेदपोश का कहीं अता पता नहीं था। अगर उसे चंद्रकांत से इतनी ही हमदर्दी थी तो उसने पहले ही चंद्रकांत के पास आ कर उसे ये क्यों नहीं बताया था कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है? इतने दिनों तक किस बात का इंतज़ार कर रहा था वो? ख़ैर ये तो थी एक बात, दूसरी सोचने वाली बात ये है कि ये सब बताने के पीछे सफ़ेदपोश का मकसद क्या था? क्या ये कि अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जान कर चंद्रकांत उसकी जान ही ले ले? अगर यही सच है तो फिर उसे चंद्रकांत का हमदर्द नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपनी बहू की हत्या करने के बाद चंद्रकांत को कोई पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला बल्कि सख़्त से सख़्त सज़ा ही मिलेगी।"

"सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"चंद्रकांत ने जो किया है उसके लिए तो इसे यकीनन सज़ा ही मिलेगी लेकिन अभी ये भी देखना है कि आगे क्या होता है? हमारा मतलब है कि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा है तो देखते हैं ऐसा होता है कि नहीं।"

चंद्रकांत सारी बातें सुन रहा था और अब उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी रो देगा। बड़ी मुश्किल से खुद को रोके हुए था वो। चौगान में बैठे बाकी लोग सतब्ध से बैठे बातें सुन रहे थे।

"अगर आज रात वो सफ़ेदपोश सचमुच चंद्रकांत से मिलने आएगा तो यही समझा जाएगा कि उसकी बातों में अथवा ये कहें कि उसकी कहानी में कहीं न कहीं सच्चाई थी।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और अगर वो नहीं आया तो स्पष्ट हो जाएगा कि वो चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हैरतंगेज खेल खेल गया है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"आगे की कार्यवाही कल की जाएगी चंद्रकांत। आज रात हम भी ये देखना चाहते हैं कि तुम्हारा वो हमदर्द सफ़ेदपोश अपनी कसौटी पर कितना खरा उतरता है।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर अभी खड़े ही हुए थे कि तभी चंद्रकांत आर्तनाद सा करता हुआ उनके पैरों में लोट गया। ये देख उनके साथ साथ बाकी उपस्थित लोग भी चौंक पड़े। उधर चंद्रकांत रोते बिलखते हुए कहता चला गया____"मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो रहा है कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है।"

"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"




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Gazab ki update he TheBlackBlood Shubham Bhai,

Safedposh ne badi chalaki se chanderkant ko apna mohra banakar rajni ki hatya karwa di..............lekin rajni ki hatya se use kya fayda hoga????

Vaibhav ko apne gusse par kabu karna sikhna padega.............aaj jis tarah se usne chanderkant ki gardan pakdi...........mujhe to purana vaibhav wapis aata hua laga

Agle update ki pratiksha rahegi bhai
 

Napster

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अध्याय - 99
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मैंने भाभी और काकी की नज़र बचा कर अनुराधा की तरफ देखा। जैसे ही हम दोनों की नज़रें मिलीं तो वो एकदम से शर्मा गई और अपनी नज़रें झुका ली। मैं उसकी यूं छुईमुई हो गई दशा को देख कर मुस्कुरा उठा और फिर ये सोच कर भाभी के पीछे चल पड़ा कि किसी दिन अकेले में तसल्ली से अपनी अनुराधा से मुलाक़ात करूंगा। कुछ ही देर में मैं भाभी को जीप में बैठाए वापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा था।


अब आगे....



"ये क्या कह रहे हैं आप?" कमरे में पलंग पर दादा ठाकुर के सामने बैठी सुगंधा देवी हैरत से बोल पड़ीं____"हमारा बेटा एक ऐसे मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता है जिसकी कुछ महीने पहले उसके ही भाई ने हत्या कर दी थी?"

"हमारे आदमियों के द्वारा हमें उसकी ख़बर मिलती रहती थी।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने ख़्वाब में भी ये कल्पना नहीं की थी कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम भी करने लगेगा। आज गौरी शंकर से ही हमें ये सब बातें पता चली हैं।"

"अगर ये वाकई में सच है तो फिर ये काफी गंभीर बात हो गई है हमारे लिए।" सुगंधा देवी ने कहा____"हमें तो यकीन ही नहीं होता कि हमारा बेटा किसी लड़की से प्रेम कर सकता है। उसके बारे में तो अब तक हमने यही सुना था कि वो भी अपने दादा की तरह अय्याशियां करता है। ख़ैर, तो अब इस बारे में क्या सोचा है आपने और गौरी शंकर ने क्या कहा इस बारे में?"

दादा ठाकुर ने संक्षेप में सारी बातें बता दी जिसे सुन कर सुगंधा देवी ने कहा____"ठीक ही तो कह रहा था वो। भला कौन ऐसा बाप अथवा चाचा होगा जो ये जानते हुए भी अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे से करने का सोचेगा कि वो किसी दूसरी लड़की से प्रेम करता है? उसका वो सब कहना पूरी तरह जायज़ है।"

"हां, और हम भी यही मानते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने उसे वचन दिया है कि अगले साल हम उसकी भतीजी को अपनी बहू बना कर हवेली ले आएंगे। उस लड़की ने अपने प्रेम के चलते क्या कुछ नहीं किया है वैभव के लिए। हमें उसके त्याग और बलिदान का बखूबी एहसास है इस लिए हम ये हर्गिज़ नहीं चाहेंगे कि उस मासूम और नेकदिल लड़की के साथ किसी भी तरह का कोई अन्याय हो।"

"तो फिर क्या करेंगे आप?" सुगंधा देवी की धड़कनें सहसा एक अंजाने भय की वजह से तेज़ हो गईं थी, बोलीं____"देखिए कोई ऐसा क़दम मत उठाइएगा जिसके चलते हालात बेहद नाज़ुक हो जाएं। बड़ी मुश्किल से हम सब उस सदमे से उबरे हैं इस लिए ऐसा कुछ भी मत कीजिएगा, हम आपके सामने हाथ जोड़ते हैं।"

सुगंधा देवी की बातें सुन कर दादा ठाकुर कुछ बोले नहीं किंतु किसी सोच में डूबे हुए ज़रूर नज़र आए। ये देख सुगंधा देवी की धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। उनके अंदर एकदम से घबराहट भर गई थी।

"क...क्या सोच रहे हैं आप?" फिर उन्होंने दादा ठाकुर को देखते हुए बेचैन भाव से पूछा____"कोई कठोर क़दम उठाने के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं ना आप? देखिए हम आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हैं कि ऐसा.....।"

"हम ऐसा कुछ भी नहीं सोच रहे हैं सुगंधा।" दादा ठाकुर ने उनकी बात को काट कर कहा____"बल्कि हम तो कुछ और ही सोचने लगे हैं।"

"क्या सोचने लगे हैं आप?" सुगंधा देवी ने मन ही मन राहत की सांस ली किंतु उत्सुकता के चलते पूछा_____"हमें भी तो बताइए कि आख़िर क्या चल रहा है आपके दिमाग़ में?"

"आपको याद है कुछ दिनों पहले हम कुल गुरु से मिलने गए थे?" दादा ठाकुर ने सुगंधा देवी की तरफ देखा।

"हां हां हमें अच्छी तरह याद है।" सुगंधा देवी ने झट से सिर हिलाते हुए कहा____"किंतु आपने हमारे पूछने पर भी हमें कुछ नहीं बताया था। आख़िर बात क्या है? अचानक से कुल गुरु से मिलने वाली बात का ज़िक्र क्यों करने लगे आप?"

"हम सबके साथ जो कुछ भी हुआ है उसके चलते हम सबकी दशा बेहद ही ख़राब हो गई थी।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"सच कहें तो अपने छोटे भाई और बेटे की मौत के बाद हमें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे खुद को सम्हालें और अपने साथ साथ बाकी सबको भी। रातों को नींद नहीं आती थी। ऐसे ही एक रात हमें कुल गुरु का ख़याल आया। हमें एहसास हुआ कि ऐसी परिस्थिति में कुल गुरु ही हमें कोई रास्ता दिखा सकते हैं। उसके बाद हम अगली सुबह उनसे मिलने चले गए। गुरु जी के आश्रम में जब हम उनसे मिले और उन्हें सब कुछ बताया तो उन्हें भी बहुत तकलीफ़ हुई। जब वो अपने सभी शिष्यों से फारिग हुए तो वो हमें अपने निजी कक्ष में ले गए। वहां पर उन्होंने हमें बताया कि हमारे खानदान में ऐसा होना पहले से ही निर्धारित था।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी खुद को बोलने से रोक न सकीं।

"हमने भी उनसे यही कहा था।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि शुरू में हमारे बड़े बेटे पर संकट था किंतु उसे बचाया जाना भी निर्धारित था, ये अलग बात है कि उस समय ऐसे हालात थे कि वो चाह कर भी कुछ न बता सके थे। बाद में जब उन्हें पता चला था कि हमने अपने बेटे को बचा लिया है तो उन्हें इस बात से खुशी हुई थी।"

"अगर उन्हें इतना ही कुछ पता था तो उन्होंने जगताप और हमारे बेटे की हत्या होने से रोकने के बारे में क्यों नहीं बताया था?" सुगंधा देवी ने सहसा नाराज़गी वाले भाव से कहा____"क्या इसके लिए भी वो कुछ करने में असमर्थ थे?"

"असमर्थ नहीं थे लेकिन उस समय वो अपने आश्रम में थे ही नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"नियति के खेल बड़े ही अजीब होते हैं सुगंधा। होनी को कोई नहीं टाल सकता, खुद विधि का विधान बनाने वाला विधाता भी नहीं। उस समय कुल गुरु अपने कुछ शिष्यों के साथ अपने गुरु भाई से मिलने चले गए थे। उनके गुरु भाई अपना पार्थिव शरीर त्याग कर समाधि लेने वाले थे। अतः उनकी अंतिम घड़ी में वो उनसे मिलने गए थे। यही वजह थी कि वो यहां के हालातों से पूरी तरह बेख़बर थे। नियति का खेल ऐसे ही चलता है। होनी जब होती है तो वो सबसे पहले ऐसा चक्रव्यूह रच देती है कि कोई भी इंसान उसके चक्रव्यूह को भेद कर उसके मार्ग में अवरोध पैदा नहीं कर सकता। यही हमारे साथ हुआ है।"

"तो आप कुल गुरु से यही सब जानने गए थे?" सुगंधा देवी ने पूछा____"या कोई और भी वजह थी उनसे मिलने की?"

"जैसा कि हमने आपको बताया कि जिस तरह के हालातों में हम सब थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"उससे निकलने का हमें कुल गुरु ही कोई रास्ता दिखा सकते थे। अतः जब हम उनसे अपनी हालत के बारे में बताया तो उन्होंने हमें तरह तरह की दार्शनिक बातों के द्वारा समझाया जिसके चलते यकीनन हमें बड़ी राहत महसूस हुई। उसके बाद जब हमने उनसे ये पूछा कि क्या अब आगे भी ऐसा कोई संकट हम सबके जीवन में आएगा तो उन्होंने हमें कुछ ऐसी बातें बताई जिन्हें सुन कर हम अवाक् रह गए थे।"

"ऐसा क्या बताया था उन्होंने आपसे?" सुगंधा देवी के माथे पर शिकन उभर आई।

"उन्होंने बताया कि इस तरह का संकट तो फिलहाल अब नहीं आएगा लेकिन आगे चल कर एक ऐसा समय भी आएगा जिसके चलते हम काफी विचलित हो सकते हैं।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और अगर हमने विचलित हो कर कोई कठोर क़दम उठाया तो उसके नतीजे हम में से किसी के लिए भी ठीक नहीं होंगे।"

"आप क्या कह रहे हैं हमें कुछ समझ नहीं आ रहा।" सुगंधा देवी ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"कृपया साफ साफ बताइए कि आख़िर कुल गुरु ने किस बारे में आपसे ये सब कहा था?"

"हमारे बेटे वैभव के बारे में।" दादा ठाकुर ने स्पष्ट भाव से कहा_____"गुरु जी ने स्पष्ट रूप से हमें बताया था कि हमारे बेटे वैभव के जीवन में दो ऐसी औरतों का योग है जो आने वाले समय में उसकी पत्नियां बनेंगी।"

"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी आश्चर्य से आंखें फैला कर बोलीं____"ऐसा कैसे हो सकता है भला?"

"ऐसा कैसे हो सकता है नहीं बल्कि ऐसा होने लगा है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"वर्तमान में ऐसा ही तो हो रहा है। जहां एक तरफ हमने अपने बेटे का ब्याह हरि शंकर की बेटी रूपा से तय किया है तो वहीं दूसरी तरफ हमें पता चलता है कि हमारा बेटा किसी दूसरी लड़की से प्रेम भी करता है। ज़ाहिर है कि जब वो उस लड़की से प्रेम करता है तो उसने उसको अपनी जीवन संगिनी बनाने के बारे में भी सोच रखा होगा। अब अगर हमने उसके प्रेम संबंध को मंजूरी दे कर उस लड़की से उसका ब्याह न किया तो यकीनन हमारा बेटा हमारे इस कार्य से नाखुश हो जाएगा और संभव है कि वो कोई ऐसा रास्ता अख़्तियार कर ले जिसके बारे में हम अभी सोच भी नहीं सकते।"

"ये तो सच में बड़ी गंभीर बात हो गई है।" सुगंधा देवी ने चकित भाव से कहा____"यानि कुल गुरु का कहना सच हो रहा है।"

"अगर गौरी शंकर की बातें सच हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और हमारा बेटा वाकई में मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो यकीनन गुरु जी का कहना सच हो रहा है।"

"तो फिर अब आप क्या करेंगे?" सुगंधा देवी ने संदिग्ध भाव से दादा ठाकुर को देखते हुए पूछा____"क्या आप हमारे बेटे के प्रेम को मंजूरी दे कर गुरु जी की बात मानेंगे या फिर कोई कठोर क़दम उठाएंगे?"

"आपके क्या विचार हैं इस बारे में?" दादा ठाकुर ने जवाब देने की जगह उल्टा सवाल करते हुए पूछा____"क्या आपको अपने बेटे के जीवन में उसकी दो दो पत्नियां होने पर कोई एतराज़ है या फिर आप ऐसा खुशी खुशी मंज़ूर कर लेंगी?"

"अगर आप वाकई में हमारे विचारों के आधार पर ही फ़ैसला लेना चाहते हैं।" सुगंधा देवी ने संतुलित लहजे से कहा____"तो हमारे विचार यही हैं कि हमारा बेटा जो करना चाहता है उसे आप करने दें। अगर उसके भाग्य में दो दो पत्नियां ही लिखी हैं तो यही सही। हम तो बस यही चाहते हैं कि इस हवेली में रहने वालों के जीवन में अब कभी कोई दुख या संकट न आए बल्कि हर कोई खुशी से जिए। आपने हरि शंकर की बेटी से वैभव का रिश्ता तय कर दिया है तो बेशक उसका ब्याह उससे कीजिए लेकिन अगर हमारा बेटा मुरारी की बेटी से भी ब्याह करना चाहेगा तो आप उसकी भी खुशी खुशी मंजूरी दे दीजिएगा।"

"अगर आप भी यही चाहती हैं तो ठीक है फिर।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"सच कहें तो हम भी सबको खुश ही देखना चाहते हैं। मुरारी की बेटी से हमारे बेटे की ब्याह के बारे में लोग क्या सोचेंगे इससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। हम सिर्फ ये चाहते हैं कि उस लड़की के प्रेम में पड़ कर हमारा बेटा रूपा के साथ किसी तरह का अन्याय अथवा पक्षपात न करे। हमें अक्सर वो रात याद आती है जब वो लड़की अपनी भाभी के साथ हमसे मिलने आई थी और हमें ये बताया था कि हमारे बेटे को कुछ लोग अगली सुबह जान से मारने के लिए चंदनपुर जाने वाले हैं। उस समय हमें उसकी वो बातें सुन कर थोड़ा अजीब तो ज़रूर लगा था लेकिन ये नहीं समझ पाए थे कि आख़िर उस लड़की को रात के वक्त हवेली आ कर हमें वो सब बताने की क्या ज़रूरत थी? आज जबकि हम सब कुछ जानते हैं तो यही सोचते हैं कि ऐसा उसने सिर्फ अपने प्रेम के चलते ही किया था। प्रेम करने वाला भला ये कैसे चाह सकता है कि कोई उसके चाहने वाले को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा दे?"

"सही कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"सच में वो लड़की हमारे बेटे से बहुत प्रेम करती है। हमें आश्चर्य होता है कि इतना प्रेम करने वाली लड़की से हमारे बेटे को प्रेम कैसे न हुआ और हुआ भी तो ऐसी लड़की से जो एक मामूली से किसान की बेटी है। आख़िर उस लड़की में उसने ऐसा क्या देखा होगा जिसके चलते वो उसे प्रेम करने लगा?"

"इस बारे में हमें क्योंकि कोई जानकारी नहीं है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम यही कह सकते कि उसने उसमें ऐसा क्या देखा होगा? जबकि गहराई से सोचें तो हमें एहसास होगा कि उस लड़की में कोई तो ऐसी बात यकीनन रही होगी जिसके चलते वैभव जैसे लड़के को उससे प्रेम हो गया? उसके जैसे चरित्र वाला लड़का अगर किसी लड़की से प्रेम कर बैठा है तो ये कोई मामूली बात नहीं है ठकुराईन। हमें पूरा यकीन है कि उस लड़की में कोई तो ख़ास बात ज़रूर होगी।"

"ख़ैर ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि उसमें कौन सी ख़ास बात है।" सुगंधा देवी ने जैसे पहलू बदला_____"किंतु अब ये सोचने का विषय है कि गौरी शंकर इस सबके बाद क्या चाहता है?"

"इस संसार में किसी के चाहने से कहां कुछ होता है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा_____"हर इंसान को समझौता ही करना पड़ता है और फिर उस समझौते के साथ जीवन जीना पड़ता है। गौरी शंकर को अपनी भतीजी के प्रेम के साथ साथ हमारे बेटे के प्रेम को भी गहराई से समझना होगा। उसे समझना होगा कि पत्नी के रूप में उसकी भतीजी हमारे बेटे के साथ तभी खुश रह पाएगी जब उसकी तरह हमारे बेटे को भी उसका प्रेम मिल जाए। बाकी ऊपर वाले ने किसी के लिए क्या सोच रखा है ये तो वही जानता है।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन सबकी खुशियों के बीच आप एक शख़्स की खुशियों को भूल रहे हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"आप हमारी बहू को भूल रहे हैं ठाकुर साहब। उस अभागन की खुशियों को भूल रहे हैं जिसका ईश्वर ने जीवन भर दुख में डूबे रहने का ही नसीब बना दिया है। क्या उसे देख कर आपके कलेजे में शूल नहीं चुभते?"

"चुभते हैं सुगंधा और बहुत ज़ोरों से चुभते हैं।" दादा ठाकुर ने संजीदा भाव से कहा____"जब भी उसे विधवा के लिबास में किसी मुरझाए हुए फूल की तरह देखते हैं तो बड़ी तकलीफ़ होती है हमें। हमारा बस चले तो पलक झपकते ही दुनिया भर की खुशियां उसके दामन में भर दें लेकिन क्या करें? कुछ भी तो हमारे हाथ में नहीं है।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"क्या कुल गुरु से आपने हमारी बहू के बारे में कुछ नहीं पूछा?"

"क्या आप ऐसा सोच सकती हैं कि हम उनसे अपनी बहू के बारे में पूछना भूल सकते थे?" दादा ठाकुर ने कहा____"नहीं सुगंधा, वो हमारी बहू ही नहीं बल्कि हमारी बेटी भी है। हमारी शान है, हमारा गुरूर है वो। कुल गुरु से हमने उसके बारे में भी पूछा था। जवाब में उन्होंने जो कुछ हमसे कहा उससे हम स्तब्ध रह गए थे।"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने एकाएक व्याकुल भाव भाव से पूछा____"ऐसा क्या कहा था गुरु जी ने आपसे?"

"पहले तो उन्होंने हमसे बहुत ही सरल शब्दों में पूछा था कि क्या हम चाहते हैं कि हमारी बहू हमेशा खुश रहे और हमेशा हमारे साथ ही रहे?" दादा ठाकुर ने कहा_____"जवाब में जब हमने हां कहा तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें।"

"क...क्या????" सुगंधा देवी उछल ही पड़ीं। फिर किसी तरह खुद को सम्हाल कर बोलीं____"य..ये क्या कह रहे हैं आप?"

"आपकी तरह हम भी उनकी बात सुन कर उछल पड़े थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमने भी उनसे यही कहा था कि ये क्या कह रहे हैं वो? जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी बहू सुहागन के रूप में तभी तो हमेशा हमारे साथ रह सकती है जब हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें। अन्यथा अगर हम उसे फिर से सुहागन बनाने का सोच कर किसी दूसरे से उसका ब्याह करेंगे तो ऐसे में वो भला कैसे हमारे साथ हमारी बहू के रूप में रह सकती है?"

"हां ये तो सच कहा था उन्होंने।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस छोड़ते हुए सिर हिलाया____"वाकई में सुहागन के रूप में हमारी बहू हमारे पास तभी तो रह सकती है जब उसका ब्याह हमारे ही बेटे से हो। बड़ी अजीब बात है, ऐसा तो हमने सोचा ही नहीं था।"

"हमने भी कहां सोचा था सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"गुरु जी की बातों से ही हमारे अकल के पर्दे छंटे थे। काफी देर तक हम उनके सामने किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में बैठे रह गए थे। फिर जब किसी तरह हमारी हालत सामान्य हुई तो हमने गुरु जी से पूछा कि क्या ऐसा संभव है तो उन्होंने कहा बिल्कुल संभव है लेकिन इसके लिए हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा।"

"हमारा तो ये सब सुन के सिर ही चकराने लगा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने अपना माथा सहलाते हुए कहा____"तो क्या इसी लिए गुरु जी ने कहा था कि हमारे बेटे के जीवन में दो औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी?"

"हां शायद इसी लिए।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"उस दिन से हम अक्सर इस बारे में सोचते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या वास्तव में हमें ऐसा करना चाहिए या नहीं?"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने हैरत से देखते हुए कहा____"क्या आप भाग्य बदल देने का सोच रहे हैं?"

"सीधी सी बात है ठकुराईन कि अगर हम अपनी बहू को एक सुहागन के रूप में हमेशा खुश देखना चाहते हैं तो हमें उसके लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"रागिनी जैसी बहू अथवा बेटी हमें शायद ही कहीं मिले इस लिए अगर हम चाहते हैं कि ऐसी बहू हमेशा इस हवेली की शान ही बनी रहे तो हमें किसी तरह से उसका ब्याह वैभव से करवाना ही होगा।"

"लेकिन क्या ऐसा संभव है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से देखा____"हमारा मतलब है कि क्या हमारी बहू अपने देवर से ब्याह करने के लिए राज़ी होगी? वो तो वैभव को अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती है और हमारा बेटा भी तो उसकी बहुत इज्ज़त करता है। माना कि वो बुरे चरित्र का लड़का रहा है लेकिन हमें पूरा यकीन है कि उसने भूल कर भी अपनी भाभी के बारे में कभी ग़लत ख़याल अपने मन में नहीं लाया होगा। दूसरी बात, आप ही ने बताया कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो ऐसे में वो कैसे अपनी भाभी से ब्याह करने वाली बात को मंजूरी देगा? नहीं नहीं, हमें नहीं लगता कि ऐसा संभव होगा? एक पल के लिए मान लेते हैं कि हमारा बेटा इसके लिए राज़ी भी हो जाएगा लेकिन रागिनी...?? नहीं, वो कभी ऐसा करने के लिए राज़ी नहीं होगी। वैसे भी, गुरु जी ने दो ही औरतों को पत्नी के रूप में उसके जीवन में आने की बात कही थी तो वो दो औरतें वही हैं, यानि रूपा और मुरारी की वो लड़की।"

"आपने तो बिना कोशिश किए ही फ़ैसला कर लिया कि वो राज़ी नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने कहा____"जबकि आपको बहाने से ही सही लेकिन उसके मन की टोह लेनी चाहिए और रही गुरु जी की कही ये बात कि दो ही औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी तो ये ज़रूरी नहीं है। हमारा मतलब है कि रागिनी बहू का ब्याह वैभव से कर देने के बात भी तो उन्होंने कुछ सोच कर ही कही होगी।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन बहू के मन की टोह लेने की बात क्यों कह रहे हैं आप? क्या आपको उसके चरित्र पर संदेह है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से कहा____"जबकि हमें तो अपनी बहू के चरित्र पर हद से ज़्यादा भरोसा है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारी बहू उत्तम चरित्र वाली महिला है।"

"आप भी हद करती हैं ठकुराईन।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"आपने ये कैसे सोच लिया कि हमें अपनी बहू के चरित्र पर संदेह है? एक बात आप जान लीजिए कि अगर कोई गर्म तवे पर बैठ कर भी कहेगा कि हमारी बहू का चरित्र निम्न दर्जे का है तो हम उस पर यकीन नहीं करेंगे। बल्कि ऐसा कहने वाले को फ़ौरन ही मौत के घाट उतार देंगे। टोह लेने से हमारा मतलब सिर्फ यही था कि उसके मन में अपने देवर के प्रति अगर छोटे भाई वाली ही भावना है तो वो कितनी प्रबल है? हालाकि एक सच ये भी है कि किसी को छोटा भाई मान लेने से वो सचमुच का छोटा भाई नहीं बन जाता। वैभव सबसे पहले उसका देवर है और देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ऐसी बात नहीं है जो न्यायोचित अथवा तर्कसंगत न हो।"

"हम मान लेते हैं कि आपकी बातें अपनी जगह सही हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"लेकिन ये तो आप भी समझते ही होंगे कि हमारे बेटे वैभव से रागिनी बहू का ब्याह होना अथवा करवाना लगभग नामुमकिन बात है। एक तो रागिनी खुद इसके लिए राज़ी नहीं होगी दूसरे उसके अपने माता पिता भी इस रिश्ते के लिए मंजूरी नहीं दे सकते हैं।"

"हां, हम समझते हैं कि ऐसा होना आसान नहीं है।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर सिर हिलाया____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि अगर हमें अपनी बहू का जीवन खुशियों से भरा हुआ देखना है तो उसके लिए ऐसा करना ही बेहतर होगा। ऐसा होना नामुमकिन ज़रूर है लेकिन हमें किसी भी तरह से अब इसे मुमकिन बनाना होगा। वैभव के जीवन में दो की जगह अगर तीन तीन पत्नियां हो जाएंगी तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा।"

"हमारे मन में एक और विचार उभर रहा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा____"हम ये जो कुछ अपनी बहू के लिए करना चाहते हैं उसमें यकीनन हमें उसकी खुशियों का ही ख़याल है किंतु ये भी सच है कि इसमें हमारा भी तो अपना स्वार्थ है।"

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" दादा ठाकुर के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"इसमें भला हमारा क्या स्वार्थ है?"

"इतना तो आप भी समझते हैं न कि रागिनी बहू हम सबकी नज़र में एक बहुत ही गुणवान स्त्री है जिसके चलते हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं।" सुगंधा देवी ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"अब क्योंकि वो विधवा हो चुकी है इस लिए हम उसकी खुशियों के लिए फिर से उसका ब्याह कर देना चाहते हैं।"

"आख़िर आपके कहने का मतलब क्या है ठकुराईन?" दादा ठाकुर न चाहते हुए भी बीच में बोल पड़े____"हम उसे खुश देखना चाहते हैं तभी तो फिर से उसका ब्याह का करवा देना चाहते हैं।"

"बिल्कुल, लेकिन उसका ब्याह अपने बेटे से ही क्यों करवा देना चाहते हैं हम?" सुगंधा देवी ने जैसे तर्क़ किया____"क्या इसका एक मतलब ये नहीं है कि ऐसा हम अपने स्वार्थ के चलते ही करना चाहते हैं? ऐसा भी तो हो सकता है कि जब वो दुबारा अपने ब्याह होने की बात सुने तो उसके मन में कहीं और किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने की चाहत पैदा हो जाए। क्या ज़रूरी है कि वो फिर से उसी घर में बहू बन कर रहने की बात सोचे जिस घर में उसके पहले पति की ढेर सारी यादें मौजूद हों और इतना ही नहीं जिसे भरी जवानी में विधवा हो जाने का दुख सहन करना पड़ गया हो?"

सुगंधा देवी की ऐसी बातें सुन कर दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। स्तब्ध से वो अपनी धर्म पत्नी के चेहरे की तरफ देखते रह गए। चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।

"क्या हुआ? क्या सोचने लगे आप?" दादा ठाकुर को ख़ामोश देख सुगंधा देवी ने कहा____"क्या हमने कुछ ग़लत कहा आपसे?"

"नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने जल्दी ही खुद को सम्हाला____"आपके जो कुछ भी कहा है वो बिल्कुल सच कहा है और आपकी बातें तर्कसंगत भी हैं। हमने तो इस तरीके से सोचा ही नहीं था। हमें खुशी के साथ साथ हैरानी भी हो रही है कि आपने इस तरीके से सोचा और हमारे सामने अपनी बात रखी। वाकई में ये भी सोचने वाली बात है कि अगर हमारी बहू को इस बारे में पता चला तो उसके मन में कहीं दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से भी विवाह करने का ख़याल आ सकता है।"

"और अगर ऐसा हुआ।" सुगंधा देवी ने कहा____"तो सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आप ऐसा होने देंगे?"

"क्यों नहीं होने देंगे हम?" दादा ठाकुर ने झट से कहा____"हम अपनी बहू को खुश देखना चाहते हैं इस लिए अगर उसे दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह करने से ही खुशी प्राप्त होगी तो हम यकीनन उसकी खुशी के लिए उसे ऐसा करने देंगे। हां, इस बात का हमें दुख ज़रूर होगा कि हमने अपनी इतनी संस्कारवान सुशील और अच्छे चरित्र वाली बहू को खो दिया। वैसे हमें पूरा यकीन है कि हमारी बहू हमसे रिश्ता तोड़ कर कहीं नहीं जाएगी। वो भी तो समझती ही होगी कि हम सब उसे कितना स्नेह करते हैं और हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं। क्या इतना जल्दी वो हमारा प्यार और स्नेह भुला कर हमें छोड़ कर चली जाएगी?"

"सही कह रहे हैं आप।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ली____"हमें भी इस बात का भरोसा है कि हमारी बहू हमारे प्रेम और स्नेह को ठुकरा कर कहीं नहीं जाएगी। ख़ैर छोड़िए इन बातों को। सब कुछ समय पर छोड़ दीजिए और ऊपर वाले से दुआ कीजिए कि सब कुछ अच्छा ही हो।"

सुगंधा देवी की इस बात पर दादा ठाकुर ने सिर हिलाया और फिर उन्होंने पलंग पर पूरी तरह लेट कर अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ पलों तक उनके चेहरे की तरफ देखते रहने के बाद सुगंधा देवी भी पलंग के एक छोर पर लेट गईं। दोनों ने ही अपनी अपनी आंखें बंद कर ली थीं किंतु ज़हन में विचारों का मंथन चालू था।




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वाह उस्ताद वाह क्या खुबसुरत और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
दादा ठाकुर और सुगंधादेवी के बीच में जो वार्तालाप हो रहा है वो बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण हैं जो आगे जा कर कहानी की रुपरेखा तय करेगी साथ ही साथ कुलगुरू का कथन भी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

Napster

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अध्याय - 100
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मैं और भाभी जीप में बैठे आगे बढ़े चले जा रहे थे। मैं धीमी गति से ही जीप चला रहा था। जब से भाभी जीप में बैठीं थी तब से वो ख़ामोश थीं और ख़यालों में खोई हुई थीं। मैं बार बार उनकी तरफ देख रहा था। वो कभी हौले से मुस्कुरा देती थीं तो कभी फिर कुछ सोचने लगती थीं। इधर मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैं उनसे जानना चाहता था कि आख़िर उन्होंने अनुराधा से क्या बातें की थीं?

"आख़िर कुछ तो बताइए भाभी।" जब मुझसे बिल्कुल ही न रहा गया तो मजबूर हो कर मैंने उनसे पूछा____"मैं काफी देर से देख रहा हूं कि आप जाने क्या सोच सोच कर बस मुस्कुराए जा रही हैं। मुझे भी तो कुछ बताइए। मैं जानना चाहता हूं कि आपने अनुराधा से क्या बातें की अकेले में?"

"आय हाय! देखो तो सबर ही नहीं हो रहा जनाब से।" भाभी ने एकदम से मुस्कुराते हुए मुझे छेड़ा____"वैसे क्या जानना चाहते हो तुम?"

"वही जो आपने अकेले में उससे बातें की हैं।" मैं उनके छेड़ने पर पहले तो झेंप गया था फिर मुस्कुराते हुए पूछा____"आख़िर कुछ तो बताइए। अकेले में ऐसी क्या बातें की हैं आपने?"

"अगर मैं ये कहूं कि वो सब बातें तुम्हें बताने लायक नहीं हैं तो?" भाभी ने मुस्कुराते हुए तिरछी नज़र से मुझे देखा____"तुम्हें तो पता ही होगा कि हम औरतों के बीच भी बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जिन्हें मर्दों को नहीं बताई जा सकतीं।"

"ये बहुत ग़लत बात है भाभी।" मैंने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"आपको मुझे छेड़ना ही है तो बाद में छेड़ लीजिएगा लेकिन अभी बताइए ना कि आपने उससे क्या बातें की हैं? आपको अंदाज़ा भी नहीं है कि उतनी देर से सोच सोच कर मेरी क्या हालत हुई जा रही है?"

मेरी ये बात सुनते ही भाभी एकदम से खिलखिला कर हंसने लगीं। हंसने से उनके सच्चे मोतियों जैसे दांत चमकने लगे और उनकी मधुर आवाज़ फिज़ा में मीठा संगीत सा बजाने लगी। उन्हें हंसता देख मुझे बहुत अच्छा लगा। यही तो चाहता था मैं कि वो अपने सारे दुख दर्द भूल कर बस हंसती मुस्कुराती रहें।

"अच्छा एक काम करो।" फिर उन्होंने अपनी हंसी को रोकते हुए किंतु मुस्कुराते हुए ही कहा____"तुम अपनी अनुराधा से ही पूछ लेना कि हमारी आपस में क्या बातें हुईं थी?"

"बहुत ज़ालिम हैं आप, सच में।" मैंने फिर से बुरा सा मुंह बना कर कहा____"आज तक किसी लड़की अथवा औरत में इतनी हिम्मत नहीं हुई थी कि वो मुझे आपके जैसे इस तरह सताने का सोचे भी।"

"तुम ये भूल रहे हो वैभव कि मैं कौन हूं?" भाभी ने कहा____"आज तक तुम्हारे जीवन में जो भी लड़कियां अथवा औरतें आईं थी वो सब ग़ैर थीं और निम्न दर्जे की सोच रखने वाली थीं जबकि मैं तुम्हारी भाभी हूं। दादा ठाकुर की बहू हूं मैं। क्या तुम मेरी तुलना उन ग़ैर लड़कियों से कर रहे हो?"

"नहीं नहीं भाभी।" मैंने हड़बड़ा कर झट से कहा____"मैं आपकी तुलना किसी से भी करने के बारे में सोच तक नहीं सकता। मैंने तो ऐसा सिर्फ मज़ाक में कहा था वरना आप भी जानती हैं कि आपके प्रति मेरे मन में कितनी इज्ज़त है।"

"हां जानती हूं मैं।" भाभी ने सहसा गंभीर हो कर कहा____"और मुझे खुशी है कि तुम मेरे प्रति ऐसे भाव रखते हो। मुझे पता है कि तुम मेरे होठों पर मुस्कुराहट लाने के लिए नए नए तरीके अपनाते हो। सच कहूं तो मुझे तुम्हारा ऐसा करना अच्छा भी लगता है। मुझे गर्व महसूस होता है कि तुम्हारे जैसा लड़का मेरा देवर ही नहीं बल्कि मेरा छोटा भाई भी है। मेरे लिए सबसे ज़्यादा खुशी की बात ये है कि तुम खुद को बदल कर एक अच्छा इंसान बनने की राह पर चल रहे हो। तुम हमेशा एक अच्छे इंसान बने रहो यही मेरी तमन्ना है और इसी से मुझे खुशी महसूस होगी।"

"फ़िक्र मत कीजिए भाभी।" मैंने कहा____"मैं हमेशा आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा और आपकी खुशी का ख़याल रखूंगा।"

"और अनुराधा तथा रूपा की खुशी का ख़याल कौन रखेगा?" भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझे फिर से छेड़ा_____"मत भूलो कि अगले साल दो दो बीवियों के बीच फंस जाने वाले हो तुम। फिर मैं भी देखूंगी कि दोनों की खुशियों का कितना ख़याल रख पाते हो तुम।"

"अरे! इसमें कौन सी बड़ी बात है भाभी।" मैंने बड़े गर्व से कहा____"इस मामले में तो मुझे बहुत लंबा तज़ुर्बा है। दोनों को एक साथ खुश रखने की क्षमता है मुझमें।"

"ज़्यादा उड़ो मत।" भाभी ने मुझे घूरते हुए कहा____"जिस दिन बीवियों के बीच हमेशा के लिए फंस जाओगे न तब समझ आएगा कि बाहर की औरतों को और अपनी बीवियों को खुश रखने में कितना फ़र्क होता है।"

"आप तो बेवजह ही डरा रही हैं मुझे।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"ये मत भूलिए कि आपके सामने ठाकुर वैभव सिंह बैठे हैं।"

"अच्छा जी ऐसा है क्या?" भाभी ने आंखें फैला कर मेरी तरफ देखा____"फिर तो अनुराधा से ब्याह करने के लिए तुम्हें अपनी इस भाभी की मदद की कोई ज़रूरत ही नहीं हो सकती, है ना?"

"य...ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैं बुरी तरह हड़बड़ा गया, बोला____"आपकी मदद के बिना तो मेरी नैया पार ही नहीं हो सकती। कृपया ऐसी बातें न करें जिससे मेरी धड़कनें ही रुक जाएं।"

मेरी बात सुन कर भाभी एक बार फिर से खिलखिला कर हंस पड़ीं। इधर मैं अपना मुंह लटकाए रह गया। मेरी सारी अकड़ छू मंतर हो गई थी। उन्होंने मेरी कमज़ोर नस पर वार जो कर दिया था। ख़ैर मैं विषय को बदलने की गरज से उनसे फिर ये पूछने लगा कि उनकी अनुराधा से क्या बातें हुईं हैं लेकिन भाभी ने कुछ नहीं बताया मुझे। बस यही कहा कि मैं अगर इतना ही जानने के लिए उत्सुक हूं तो अनुराधा से ही पूछूं। भाभी मेरी हालत का पूरा लुत्फ़ उठा रहीं थी और ये बात मैं बखूबी समझता था। ख़ैर मुझे उनके न बताने से ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ रहा था, अलबत्ता इस बात की खुशी थी कि इस सफ़र में भाभी खुश थीं। ऐसी ही नोक झोंक भरी बातें करते हुए हम हवेली पहुंच गए।

✮✮✮✮

रूपचंद्र को अपने कमरे में दाखिल होता देख रूपा पहले तो चौंकी फिर सम्हल कर बैठ गई। आज काफी समय बाद उसके बड़े भाई ने उसके कमरे में क़दम रखा था। दोनों की उमर में सिर्फ डेढ़ साल का अंतर था। हालाकि दोनों को देखने से यही लगता था जैसे दोनों ही जुड़वा हों। एक वक्त था जब दोनों भाई बहन का आपस में बड़ा ही प्रेम और लगाव था।

बचपन से ही दोनों एक साथ खेल कूद कर बड़े हुए थे। बढ़ती उम्र के साथ जैसे जैसे दोनों में समझदारी आती गई वैसे वैसे दोनों एक दूसरे का छोटा बड़ा होने के नाते आदर और सम्मान करने लगे थे। रूपा वैसे भी एक लड़की थी इस लिए उसे अपनी मर्यादा में ही रहने की नसीहतें मिलती रहती थीं किंतु रूपचंद्र के मन में हमेशा से ही अपनी छोटी बहन रूपा के लिए विशेष लगाव और स्नेह था। फिर जब रूपचंद्र को अपनी बहन रूपा का वैभव के साथ बने संबंध का पता चला तो वो रूपा से बहुत नाराज़ हुआ। एक झटके में अपनी बहन से उसका बचपन का लगाव और स्नेह जाने कहां गायब हो गया और उसकी जगह नाराज़गी के साथ साथ गुस्सा भी भरता चला गया। उसे लगता था कि उसकी बहन ने वैभव के साथ ऐसा संबंध बना कर बहुत ही नीच और गिरा हुआ कार्य किया है और साथ ही खानदान की इज्ज़त को दाग़दार किया है। उसने ये समझने की कभी कोशिश ही नहीं की थी कि उसकी बहन ने अगर ऐसा किया था तो सिर्फ अपने प्रेम को साबित करने के चलते किया था।

आज मुद्दतों बाद रूपचंद्र को अपने कमरे में दाखिल होते देख रूपा चौंकी तो थी ही किंतु एक अपराध बोझ के चलते उसने अपना सिर भी झुका लिया था। ये अलग बात है कि अपने भाई के प्रति उसके मन में भी नाराज़गी और गुस्सा विद्यमान था। उधर रूपचंद्र कमरे में दाखिल हुआ और फिर अपनी बहन की तरफ ध्यान से देखने लगा। उसने देखा रूपा उसकी तरफ देखने से कतरा रही थी। ये देख उसके दिल में एक हूक सी उठी जिसके चलते कुछ पल के लिए उसके चेहरे पर वेदना के चिन्ह उभरते नज़र आए। उसने ख़ामोशी से पलट कर दरवाज़े को अंदर से कुंडी लगा कर बंद किया और फिर उसी ख़ामोशी के साथ पलंग के एक कोने में सिमटी बैठी रूपा की तरफ बढ़ चला। जल्दी ही वो उसके क़रीब पहुंच गया। कुछ पलों तक वो रूपा को निहारता रहा और फिर आहिस्ता से पलंग के किनारे बैठ गया।

"मैं जानता हूं कि तू अपने इस भाई से बहुत नाराज़ है।" फिर उसने अधीरता से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"और नाराज़ होना भी चाहिए। मैंने कभी भी तुझे समझने की कोशिश नहीं की बल्कि ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि मैंने तुझे समझने के बारे में सोचा तक नहीं। तुझे कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आज मुद्दतों बाद मुझे खुद ही ये एहसास हो रहा है कि मैंने अपनी उस बहन को कभी नहीं समझा जिसे कभी मैं बहुत प्रेम करता था और जो कभी मेरी धड़कन हुआ करती थी। मैंने हमेशा वैभव के साथ तेरे संबंध को ग़लत नज़रिए से सोचा और तेरे बारे में तरह तरह की ग़लत धारणाएं बनाता रहा। शायद यही वजह थी कि मेरे अंदर तेरे लिए नाराज़गी और गुस्सा हमेशा ही कायम रहा। जबकि मुझे समझना चाहिए था और सबसे बड़ी बात तुझ पर भरोसा करना चाहिए था। मुझे समझना चाहिए था कि जब किसी इंसान को किसी से प्रेम हो जाता है तो वो उसके लिए पूरी तरह समर्पित हो जाता है। वो अपना सब कुछ अपने प्रेम में न्यौछावर कर देता है, क्योंकि उसकी नज़र में उसका अपने आप पर कोई अधिकार ही नहीं रह जाता है। काश! इतनी सी बात मैं पहले ही समझ गया होता तो मैं तेरे बारे में कभी ग़लत न सोचता और ना ही तुझसे नाराज़ रहता। मुझे माफ़ कर दे मेरी बहन। मैं तेरा गुनहगार हूं। कई दिनों से तेरे पास आ कर तुझसे माफ़ी मांगना चाहता था मगर शर्मिंदगी के चलते हिम्मत ही नहीं होती थी। आज बहुत हिम्मत जुटा कर तेरे पास आया हूं। मैं जानता हूं कि मेरी मासूम बहन का दिल बहुत बड़ा है और वो अपने इस नासमझ भाई को झट से माफ़ कर देगी।"

"भ...भैया!!" रूपचंद्र की बात ख़त्म हुई ही थी कि रूपा एकदम से रोते हुए किसी बिजली की तरह आई और रूपचंद्र के गले से लिपट गई। उसकी आंखों से मोटे मोटे आंसुओं की धारा बहने लगी थी। रूपचंद्र खुद भी अपनी आंखें छलक पड़ने से रोक न सका। उसने रूपा को अपने सीने से इस तरह छुपका लिया जैसे कोई मां अपने छोटे से बच्चे को अपने सीने से छुपका लेती है।

"आह! आज मुद्दतों बाद तुझे अपने सीने से लगा कर तेरे इस भाई को बड़ा ही सुकून मिल रहा है रूपा।" रूपचंद्र ने रुंधे गले से कहा____"इतने समय से मेरा जलता हुआ हृदय एकदम से ठंडा पड़ गया सा महसूस हो रहा है।"

"मैं भी ऐसा ही महसूस कर रही हूं भैया।" रूपा ने सिसकते हुए कहा____"आप नहीं समझ सकते कि आज आपके इस तरह मुझे अपने सीने से लगा लेने से मेरी आत्मा पर से कितना बड़ा बोझ हट गया है। ऐसा लगता है जैसे मेरे अस्तित्व का फिर से एक नया जन्म हो गया है।"

"कुछ मत कह पगली।" रूपचंद्र ने बड़े स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा____"देर से ही सही मगर अब मैं तेरी भावनाओं को बखूबी समझ रहा हूं। मुझे एहसास हो गया है कि तूने अब तक किस अजीयत के साथ अपने दिन रात गुज़ारे हैं लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। तेरा ये भाई तुझे वचन देता है कि अब से तुझे कोई दुख नहीं सहना पड़ेगा। तेरे रास्ते की हर रुकावट को मैं दूर करूंगा और हर पल तेरे लिए दुआ करूंगा कि तू हमेशा खुश रहे। तुझे वो मिले जिसकी तूने ख़्वाईश की है।"

"ओह! भैया।" रूपा अपने भाई की बातें सुन कर और भी ज़्यादा ज़ोरों से उससे छुपक गई। उसकी आंखें फिर से मोटे मोटे आंसू बहाने लगीं।

रूपचंद्र ने उसे खुद से अलग किया और अपने हाथों से उसके आंसू पोंछने लगा। रोने की वजह से रूपा का खूबसूरत चेहरा बुरी तरह मलिन पड़ गया था। रूपचंद्र की आंखें भी भींगी हुईं थी जिन्हें उसने साफ करने की ज़रूरत नहीं समझी बल्कि जब रूपा ने देखा तो उसने ही अपने हाथों से उसकी भींगी आंखों को पोंछा। बंद कमरे में भाई बहन के इस अनोखे प्यार और स्नेह का एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था इस वक्त।

"मुझसे वादा कर कि अब से तू आंसू नहीं बहाएगी।" रूपचंद्र ने रूपा की तरफ देखते हुए कहा____"तुझे जिस किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तू मुझसे कहेगी। यूं समझ ले कि अब से तेरा ये भाई तेरी खुशी के लिए कुछ भी कर जाएगा।"

"आपने इतना कह दिया मेरे लिए यही बहुत है भैया।" रूपा ने अधीरता से कहा____"मुझे अपने सबसे ज़्यादा प्यार करने वाले भैया वापस मिल गए। मेरे लिए यही सबसे बड़ी खुशी की बात है।"

"तूने मुझे माफ़ तो कर दिया है ना?" रूपचंद्र ने उसकी आंखों में देखा।

"आपने ऐसा कुछ किया ही नहीं है जिसके लिए आपको मुझसे माफ़ी मांगनी पड़े।" रूपा ने बड़ी मासूमियत से कहा____"मेरा ख़याल है कि आपने वही किया है जो हर भाई उन हालातों में करता या सोचता।"

"नहीं रूपा।" रूपचंद्र ने सहसा खेद भरे भाव से कहा____"कम से कम तेरे बारे में मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए था। मैं तुझे बचपन से जानता था। हम दोनों एक साथ खेल कूद कर बड़े हुए थे। मुझे अच्छी तरह पता है कि मेरी बहन के मन में भूल से भी कभी कोई ग़लत ख़याल नहीं आ सकता था। खोट तो मेरे मन में था मेरी बहना। मन तो मेरा ही मैला हो गया था जिसकी वजह से मैंने अपनी सबसे चहेती बहन के बारे में ग़लत सोचा और इतना ही नहीं जब तुझे सबसे ज़्यादा मेरी ज़रूरत थी तब मैं तेरे साथ न हो कर तेरे खिलाफ़ हो गया था।"

"भूल जाइए भैया।" रूपा ने बड़े स्नेह से रूपचंद्र का दायां गाल सहला कर कहा____"इस दुनिया में सबसे ग़लतियां होती हैं। अगर आपसे हुई हैं तो मुझसे भी तो हुई हैं। मैंने भी तो अपने खानदान और अपने परिवार की मान मर्यादा का ख़याल नहीं रखा था।"

"छोड़ ये सब बातें।" रूपचंद्र ने कहा____"मैं सब कुछ भूल जाना चाहता हूं। तू भी उस बुरे वक्त को भूल जा। अब तो बस खुशियां मनाने की बारी है। अरे! तेरी सबसे बड़ी ख़्वाईश पूरी होने वाली है। अगले साल हमेशा के लिए तुझे वो शख़्स मिल जाएगा जिसे तूने बेहद प्रेम किया है। चल अब इसी बात पर मुस्कुरा के तो दिखा दे मुझे।"

रूपचंद्र की ये शरारत भरी बात सुन कर रूपा एकदम से शर्मा गई और उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर मुस्कान उभर आई। लेकिन अगले ही पल उसकी वो मुस्कान गायब हो गई और उसके चेहरे पर उदासी के बादल मंडराते नज़र आए। रूपचंद्र ने भी इस बात पर गौर किया।

"क्या हुआ?" फिर उसने फिक्रमंद हो कर उससे पूछा____"अचानक तेरे चेहरे पर ये उदासी क्यों छा गई है? बता मुझे, आख़िर तेरी इस उदासी की वजह क्या है?"

"कुछ नहीं भैया।" रूपा ने बात को टालने की गरज से कहा____"कोई ख़ास बात नहीं है।"

"तुझे बचपन से जानता हूं मैं।" रूपचंद्र ने कहा____"तेरी हर आदत से परिचित हूं मैं। इस लिए यकीन के साथ कह सकता हूं कि तेरी इस उदासी की वजह कोई मामूली बात नहीं है। तू मुझे बता सकती है रूपा। अपने इस भाई पर भरोसा रख, मैं तेरी हर परेशानी को दूर करने के लिए अपनी जान तक लगा दूंगा।"

"नहीं नहीं भैया।" रूपा ने घबरा कर झट से अपनी हथेली रूपचंद्र के मुख पर रख दी____"ऐसा कभी दुबारा मत कहिएगा। इस परिवार में अब सिर्फ आप ही तो बचे हैं, अगर आपको भी कुछ हो गया तो हम सब जीते जी मर जाएंगे। रही बात मेरी उदासी की तो आप चिंता मत कीजिए और यकीन कीजिए ये बस मामूली बात ही है। वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।"

"अगर तू कहती है तो मान लेता हूं।" रूपचंद्र ने गहरी सांस ली, फिर सहसा मुस्कुराते हुए बोला____"अच्छा ये बता मेरे होने वाले जीजा श्री से मिलने का मन तो नहीं कर रहा न तेरा? देख अगर ऐसा है तो तू मुझे बेझिझक बता सकती है। मेरे रहते जीजा जी की तरफ जाने वाले तेरे रास्ते पर कोई रुकावट नहीं आएगी।"

"धत्त।" रूपा बुरी तरह शर्म से सिमट गई। उसे अपने भाई से ऐसी बात की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी, बोली____"ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?"

"अरे! इसमें ग़लत बात क्या है भला?" रूपचंद्र ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा____"मैं तो अपनी प्यारी बहन की खुशी वाली बात ही कर रहा हूं। एक भाई होने के नाते ये मेरा फर्ज़ है कि मैं अपनी बहन की हर खुशी का ख़याल भी रखूं और उसे खुश भी रखूं। अब क्योंकि मुझे पता है कि आज के समय में अगर मेरी बहन की मुलाक़ात उसके होने वाले पतिदेव से हो जाए तो उसे कितनी बड़ी खुशी मिल जाएगी इसी लिए तो तुझसे वैसा कहा मैंने।"

"बहुत ख़राब हैं आप।" रूपा बुरी तरह शर्मा तो रही ही थी किंतु वो बौखला भी गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपने भाई की बातों का वो क्या जवाब दे। हालाकि एक सच ये भी था कि अपने भाई से अपने होने वाले पतिदेव से मिलने की बात सुन कर उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं थी और साथ ही उसके मन का मयूर नाचने लगा था।

"हद है भई।" रूपचंद्र ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा अब। ठीक है फिर, अगर तू यही चाहती है तो यही सही। वैसे आज मैंने अपने होने वाले जीजा श्री से भी मिलने का सोचा हुआ था। सोचा था अपनी बहन की खुशी का ख़याल करते हुए उनसे तेरे मिलने का कोई बढ़िया सा जुगाड़ भी कर दूंगा मगर अब जब तेरी ही इच्छा नहीं है तो मैं उन्हें मना कर दूंगा।"

"न...न...नहीं तो।" रूपा बुरी तरह हड़बड़ा गई। बुरी तरह हकलाते हुए बोल पड़ी____"म..मेरा मतलब है कि......नहीं...आप....जाइए मुझे आपसे कोई बात ही नहीं करना।"

रूपा लाज के चलते खुल कर जब कुछ बोल ना पाई तो अंत में बुरा सा मुंह बना कर रूपचंद्र से रूठ गई। ये देख रूपचंद्र ठहाका लगा कर हंसने लगा। पूरे कमरे में उसकी हंसी गूंजने लगी। इधर उसे यूं हंसता देख रूपा ने और भी ज़्यादा मुंह बना लिया।

"अरे! अब क्या हुआ तुझे?" रूपचंद्र ने फौरन ही अपनी हंसी रोकते हुए उससे पूछा____"इस तरह मुंह क्यों बना लिया तूने?"

"मुझे आपसे कोई बात ही नहीं करना।" रूपा ने पूर्व की भांति ही रूठे हुए लहजे से कहा____"आप बहुत ख़राब हैं।"

"अरे! भला मैंने ऐसा क्या कर दिया?" रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं तो तेरी भलाई की बात ही कर रहा था। अब जब तुझे ही मंज़ूर नहीं है तो मैं क्या करूं भला?"

"सब कुछ जानते समझते हुए भी आप मुझसे ऐसी बात कर रहे हैं।" रूपा ने अपनी आंखें बंद कर के मानों एक ही सांस में कहा____"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि आपको हर चीज़ का बखूबी एहसास है, फिर ये क्या है?"

"अरे! तो इसमें शर्माने वाली कौन सी बात है?" रूपचंद्र ने उसी मुस्कान के साथ कहा____"तुझे अगर जीजा श्री से मिलना ही है तो साफ साफ कह दे ना। मैं ख़ुद तुझे उन महापुरुष के पास ले जाऊंगा।"

"सच में बहुत ख़राब हैं आप।" रूपा का चेहरा लाजवश फिर से लाल सुर्ख पड़ गया, नज़रें झुकाए बोली____"आप ये क्यों नहीं समझते कि एक बहन अपने बड़े भाई से इस तरह की कोई बात नहीं कह सकती।"

"हां जानता हूं पागल।" रूपचंद्र ने कहा___"मैं तो बस तुझे छेड़ रहा था। तुझे इन सब बातों के लिए मुझसे शर्माने की कोई ज़रूरत नहीं है। तू मुझसे बेझिझक हो कर कुछ भी कह सकती है। मैं तो बस ये चाहता हूं कि मेरी बहन हर तरह से खुश रहे। और हां, मैं जानता हूं कि तू वैभव से मिलना चाहती है। उससे ढेर सारी बातें करना चाहती है। इसी लिए तो तुझसे कहा था मैंने कि मैं तेरी मुलाक़ात करवा दूंगा उससे।"

रूपचंद्र की बातें सुन कर रूपा बोली तो कुछ नहीं लेकिन खुशी के मारे उसके गले ज़रूर लग गई। रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए उसकी पीठ सहलाई और फिर उसे खुद से अलग कर के कहा____"फ़िक्र मत कर, जल्दी ही मैं तेरी ये इच्छा पूरी करूंगा। अब चल मुस्कुरा दे....।"

रूपा के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई और साथ ही उसके होठों पर मुस्कान भी उभर आई। ये देख रूपचंद्र ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर पलंग से नीचे उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। जैसे ही वो दरवाज़ा खोल कर बाहर गया तो रूपा झट से पलंग पर से उतर कर दरवाज़े के पास पहुंची। दरवाजे को उसने फ़ौरन ही बंद किया और फिर तेज़ी से पलंग पर आ कर पीठ के बल लेट गई। छत के कुंडे पर झूलते पंखे पर निगाहें जमाए वो जाने क्या क्या सोचते हुए मुस्कुराने लगी।

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 

12bara

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Safedposh ne rajni ke bare me munsi ko jo bataya wo sahi tha ye galat ye to kahani me aage pata chalega.munsi ne apni bahu ko marne ke baad khud ko is katal se bachaya kuin nhi kuin khud hi kabul kar liya ki usne hi apni bahu ko mara hai jabki abhi bhi uske dil me dhakur family ke liye nafrat hai aur wo abhi bhi badla lena chahta hai ...dekhte Hain aage kya kya raz khulte hain kahani me
 

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अध्याय - 101
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रूपा के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई और साथ ही उसके होठों पर मुस्कान भी उभर आई। ये देख रूपचंद्र ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर पलंग से नीचे उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। जैसे ही वो दरवाज़ा खोल कर बाहर गया तो रूपा झट से पलंग पर से उतर कर दरवाज़े के पास पहुंची। दरवाजे को उसने फ़ौरन ही बंद किया और फिर तेज़ी से पलंग पर आ कर पीठ के बल लेट गई। छत के कुंडे पर झूलते पंखे पर निगाहें जमाए वो जाने क्या क्या सोचते हुए मुस्कुराने लगी।


अब आगे....


हवेली पहुंचे तो पता चला पिता जी अपने नए मुंशी के साथ कहीं गए हुए हैं। इधर मां भाभी से पूछने लगीं कि उन्हें खेतों में घूमने पर कैसा लगा? जवाब में भाभी ने बड़ी ही सफाई से झूठ बोल कर जो कुछ उन्हें बताया उसे सुन कर मैं खुद भी मन ही मन चकित रह गया। अगर मां मुझसे पूछतीं तो यकीनन मुझसे जवाब देते ना बनता क्योंकि मैं भाभी को ले कर खेत गया ही नहीं था। ख़ैर मां के साथ साथ बाकी सब भी भाभी का खिला हुआ चेहरा देख कर खुश हो गए थे। मां ने भाभी को अपने कमरे में जा कर आराम करने को कहा तो वो चली गईं। मैं भी उनके पीछे चल पड़ा क्योंकि मुझे भी अपने कमरे में आराम करना था।

दूसरी तरफ आ कर जब मैं भाभी के पीछे पीछे सीढियां चढ़ने लगा तो भाभी ने सहसा पलट कर मुझसे कहा____"आज तुम्हारी वजह से मुझे मां जी से झूठ बोलना पड़ा। इस बात से मुझे बहुत बुरा महसूस हो रहा है।"

"आपको मां से झूठ बोलने की ज़रूरत ही नहीं थी।" मैंने अधीरता से कहा____"आप मां से सब कुछ सच सच बता देतीं। मां को तो वैसे भी एक दिन इस सच्चाई का पता चलना ही है कि मैं एक मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता हूं।"

"वो तो ठीक है लेकिन सच का पता सही वक्त पर चले तभी बेहतर परिणाम निकलते हैं।" भाभी ने कहा____"यही सोच कर मैंने मां जी से इस बारे में कुछ नहीं बताया। ख़ैर छोड़ो, जाओ तुम भी आराम करो अब।"

भाभी कहने के साथ ही वापस सीढियां चढ़ने लगीं। जल्दी ही हम दोनों ऊपर आ कर अपने अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। सच कहूं तो आज मैं बड़ा खुश था। सिर्फ इस लिए ही नहीं कि मैंने भाभी को अनुराधा से मिलवाया था बल्कि इस लिए भी कि उन्हें अनुराधा का और मेरा रिश्ता मंज़ूर था और वो इस रिश्ते को अंजाम तक पहुंचाने में मेरा साथ देने को बोल चुकीं थी।

अपने कमरे में आ कर मैंने अपने कपड़े उतारे और फिर लुंगी लपेट कर पलंग पर लेट गया। ऊपर मैंने बनियान पहन रखा था। पलंग पर लेट कर मैं आंखें बंद किए आज घटित हुई बातों के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मेरे बेहद ही नज़दीक कोई खड़ा है। मैंने फ़ौरन ही अपनी आंखें खोल दी। नज़र पलंग के दाईं तरफ बिल्कुल मेरे चेहरे के क़रीब खड़ी नए मुंशी की बेटी कजरी पर पड़ी। वो मेरे चेहरे को बड़े ही गौर से देखने में लगी हुई थी और फिर जैसे ही उसने मुझे पट्ट से आंखें खोलते देखा तो बुरी तरह हड़बड़ा गई और साथ ही दो क़दम पीछे हट गई। उसके चेहरे पर कुछ पलों के लिए घबराहट के भाव उभरे थे किंतु जल्दी ही उसने खुद को सम्हाल कर अपने होठों पर मुस्कान सजा ली थी।

"ये क्या हरकत है?" मैं क्योंकि उसकी हरकतों और आदतों से आजिज़ आ गया था इस लिए फ़ौरन ही उठ कर थोड़ा सख़्त भाव से बोल पड़ा____"चोरी छुपे मेरे कमरे में आने का क्या मतलब है?"

"ज...जी?? ह...हमारा मतलब है कि ये आप क्या कह रहे हैं कुंवर जी?" कजरी हड़बड़ाते हुए बोली____"हम तो आपको ये कहने के लिए आपके कमरे में आए थे कि खाना खा लीजिए। नीचे सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"

"उसके लिए तुम मुझे दरवाज़े से ही आवाज़ दे कर उठा सकती थी।" मैंने पहले की तरह ही सख़्त भाव से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"चोरी छुपे इस तरह मेरे बिस्तर के इतने क़रीब आ कर क्यों खड़ी थी तुम?"

"अ...आप सो रहे थे न।" कजरी ने अपनी हालत को सम्हालते हुए कहा____"इस लिए हम सोच में पड़ गए थे कि आपको आवाज़ दे कर उठाएं या ना उठाएं? हमने सुना है कि सोते में अगर आपको कोई उठा देता है तो आप नाराज़ हो जाते हैं।"

मैं अच्छी तरह जानता था कि कजरी बहाने बना रही थी। वो खुद को निर्दोष साबित करने पर लगी हुई थी किंतु उसे सबक सिखाने का ये सही वक्त नहीं था इस लिए मैंने भी ज़्यादा उससे बात करना ठीक नहीं समझा। उसे जाने का बोल कर मैं वापस लेट गया। कजरी के जाने के बाद मैं कुछ देर तक उसके बारे में सोचता रहा और फिर उठ कर अपने कपड़े पहनने लगा। कुछ ही देर में मैं नीचे आ कर सबके साथ खाना खाने लगा। कजरी की वजह से मेरा मूड थोड़ा ख़राब हो गया था। मैं अच्छी तरह समझ गया था कि वो मुझसे क्या चाहती थी किंतु उसे इस बात का इल्म ही नहीं था कि वो किस आग से खेलने की तमन्ना कर बैठी थी।

गुज़रे हुए वक्त में मैं यकीनन एक बुरा इंसान था और लोग मुझे अय्याशियों के लिए जानते थे लेकिन आज के वक्त में मैं एक अच्छा इंसान बनने की राह पर था। मैंने अनुराधा को ही नहीं बल्कि अपनी भाभी को भी वचन दिया था कि अब से मैं एक अच्छा इंसान ही बनूंगा। कजरी की हरकतें उसके निम्न दर्जे के चरित्र का प्रमाण दे रहीं थी और ये मेरे लिए सहन करना ज़रा भी मुमकिन नहीं था। मैंने मन ही मन फ़ैसला किया कि उसके बारे में जल्द से जल्द कुछ करना ही होगा। बहरहाल खाना खाने के बाद मैंने अपने कमरे में लगभग एक घंटा आराम किया और फिर मोटर साइकिल ले कर खेतों की तरफ चला गया।

शाम तक मैं खेतों पर ही रहा। भुवन से मैं अक्सर राय परामर्श लेता रहता था और साथ ही पुराने मजदूरों से भी जिसके चलते मैं काफी कुछ सीख गया था और काफी कुछ समझने भी लगा था। इतने समय में मुझे ये समझ आया कि खेती बाड़ी के अलावा भी ज़मीनों पर कोई ऐसी चीज़ उगाई जाए जिससे कम समय में फसल तैयार हो और उसके द्वारा अच्छी खासी आय भी प्राप्त हो सके। ऐसा करने से मजदूरों को भी खाली नहीं बैठना पड़ेगा, क्योंकि खाली बैठने से उनका भी नुकसान होता था। आख़िर उन्हें तो उतनी ही आय प्राप्त होती थी जितने दिन वो मेहनत करते थे। यही सोच कर मैंने ये सब करने का सोचा था। भुवन के साथ साथ कुछ मजदूर लोग भी मेरी इस सोच से सहमत थे और खुश भी हुए थे। अतः मैंने ऐसा ही करने का सोच लिया और अगले ही दिन से कुछ मजदूरों को हमारी कुछ खाली पड़ी ज़मीन को अच्छे से तैयार करने का हुकुम दे दिया। मजदूर लोग दोगुने जोश के साथ काम करने के लिए तैयार हो गए थे। शाम को मैं वापस हवेली आ गया। आज काफी थक गया था अतः खाना खा कर और फिर अपने कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया।

✮✮✮✮

उस वक्त रात के लगभग बारह बज रहे थे। आज आसमान साफ तो था किन्तु क्षितिज पर से चांद नदारद था। अनगिनत तारे ही अपनी टिमटिमाहट से धरती को रोशन करने की नाकाम कोशिशों में लगे थे। पूरा गांव सन्नाटे के आधीन था। घरों के अंदर लोग गहरी नींद में सोए हुए थे। बिजली हमेशा की तरह गुल थी इस लिए घरों की किसी भी खिड़की में रोशनी नज़र नहीं आ रही थी। पूरे गांव में गहन तो नहीं किंतु नीम अंधेरा ज़रूर विद्यमान था।

इसी नीम अंधेरे में सहसा चंद्रकांत के घर का दरवाज़ा खुला। अंदर छाए गहन अंधेरे से निकल कर बाहर नीम अंधेरे में किसी साए की तरह जो व्यक्ति नज़र आया वो चंद्रकांत था। नीम अंधेरे में उसके जिस्म पर मौजूद सफ़ेद कमीज धुंधली सी नज़र आई, अलबत्ता नीचे शायद उसने लुंगी लपेट रखी थी।

दरवाज़े से बाहर आ कर वो एकदम से ठिठक कर इधर उधर देखने लगा और फिर घर के बाएं तरफ चल पड़ा। कुछ ही पलों में वो उस जगह पहुंचा जहां पर कुछ दिन पहले उसने अपने बेटे रघुवीर की खून से लथपथ लाश पड़ी देखी थी। घर के तीन तरफ लकड़ी की बल्लियों द्वारा उसने क़रीब चार फुट ऊंची बाउंड्री बनवा रखी थी। बाएं तरफ उसी लकड़ी की बाउंड्री के क़रीब पहुंच कर वो रुक गया। कुछ पलों तक उसने नीम अंधेरे में इधर उधर देखा और फिर दोनों हाथों से अपनी लुंगी को जांघों तक उठा कर वो उसी जगह पर बैठता चला गया। कुछ ही पलों में ख़ामोश वातावरण में उसके पेशाब करने की मध्यम आवाज़ गूंजने लगी।

चंद्रकांत पेशाब करने के बाद उठा और अपनी लुंगी को जांघों से नीचे गिरा कर अपनी नंगी टांगों को ढंक लिया। चंद्रकांत को इस जगह पर आते ही अपने बेटे की याद आ जाती थी जिसके चलते वो बेहद दुखी हो जाया करता था। इस वक्त भी उसे अपने बेटे की याद आई तो वो दुखी हो गया। कुछ पलों तक दुखी अवस्था में जाने क्या सोचते हुए वो खड़ा रहा और फिर गहरी सांस ले कर वापस घर के दरवाज़े की तरफ भारी क़दमों से चल पड़ा।

अभी वो कुछ ही क़दम चला था कि सहसा गहन सन्नाटे में उसे किसी आहट का आभास हुआ जिसके चलते वो एकदम से अपनी जगह पर रुक गया। उसकी पहले से ही बढ़ी हुई धड़कनें अंजाने भय की वजह से एकदम से रुक गईं सी प्रतीत हुईं। हालाकि जल्दी ही उसने खुद को सम्हाल कर होश में ले आया। उसके कान किसी हिरण के जैसे किसी भी आहट को सुनने के लिए मानों खड़े हो गए थे। उसने महसूस किया कि अगले कुछ ही पलों में उसकी धड़कनें किसी हथौड़े की तरह उसकी पसलियों पर चोंट करने लगीं हैं।

जब कुछ देर तक उसे किसी आहट का आभास न हुआ तो वो इसे अपना वहम समझ कर हौले से आगे बढ़ चला। हालाकि उसके दोनों कान अब भी किसी भी प्रकार की आहट को सुनने के लिए मानों पूरी तरह तैयार थे। अभी वो अपने घर के दरवाज़े के बस थोड़ा ही क़रीब पहुंचा था कि सहसा फिर से आहट हुई और इस बार उसने आहट को साफ सुना। आहट उसके पीछे से आई थी। पलक झपकते ही इस एहसास के चलते उसके तिरपन कांप गए कि इस गहन सन्नाटे और अंधेरे में उसके क़रीब ही कहीं कोई मौजूद है।

बिजली की तरह ज़हन में उसे अपने बेटे के हत्यारे का ख़याल कौंध गया जिसके चलते उसके पूरे जिस्म में मौत की सिहरन सी दौड़ गई। कुछ पलों तक तो उसे समझ में ही न आया कि क्या करे किंतु तभी इस एहसास ने उसके जबड़े सख़्त कर दिए कि उसके बेटे का हत्यारा उसके आस पास ही मौजूद है। ये उसके लिए बहुत ही अच्छा मौका है अपने बेटे के हत्यारे से बदला लेने का। वो भी उस हरामजादे को वैसी ही मौत देगा जैसे उसने उसके बेटे को दी थी, बल्कि उससे भी ज़्यादा बद्तर मौत देगा वो उसे।

अगले कुछ ही पलों में बदले की भावना के चलते चंद्रकांत के अंदर आक्रोश, गुस्सा और नफ़रत ने अपना प्रबल रूप धारण कर लिया। अगले ही पल वो एक झटके से पलटा और उस दिशा की तरफ मुट्ठियां भींचे देखने लगा जिस तरफ से उसे आहट सुनाई दी थी। उससे कुछ ही क़दम की दूरी पर लकड़ी की बाउंड्री थी जो उसे धुंधली सी नज़र आ रही थी। चंद्रकांत बेख़ौफ हो कर तेज़ी से आगे बढ़ चला। बाउंड्री के क़रीब पहुंच कर वो रुका और आंखें फाड़ फाड़ कर देखने लगा किंतु एक तो उमर का तकाज़ा दूसरे नीम अंधेरा जिसके चलते उसे कोई नज़र न आया। चंद्रकांत सख़्त भाव लिए और मुट्ठियां भींचे चारो तरफ देखने लगा। सहसा तभी एक जगह पर उसकी निगाह ठहर गई। बाउंड्री के बीच लकड़ी के दरवाज़े के बगल में उसे कोई आकृति खड़ी हुई नज़र आई। उसने आंखें सिकोड़ कर उस आकृति को पहचानने की कोशिश की किंतु पहचान न सका।

चंद्रकांत बेख़ौफ हो कर एक झटके में उस आकृति की तरफ बढ़ चला। बदले की प्रबल भावना में डूबे चंद्रकांत को ये तक ख़याल नहीं रहा था कि इस वक्त वो निहत्था है और अगर सच में यहां पर उसके बेटे का हत्यारा मौजूद है तो वो निहत्था कैसे उसका सामना कर सकेगा? ख़ैर जल्दी ही वो उस आकृति के क़रीब पहुंच गया। क़रीब पहुंचने पर उसे नीम अंधेरे में साफ दिखा कि वो आकृति असल में किसी इंसानी साए की थी।

एक ऐसे साए की जिसके जिस्म का कोई भी अंग नज़र नहीं आ रहा था बल्कि उसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था। सिर से ले कर पांव तक वो सफ़ेद लिबास में खुद को छुपाए हुए था। उसके दोनों हाथ चंद्रकांत को नज़र ना आए। शायद उसने उन्हें अपने पीछे छुपा रखा था। उस सफ़ेद लिबास में छुपे साए को देख चंद्रकांत पलक झपकते ही बुत बन गया। समूचे जिस्म में डर की वजह से मौत की सिहरन दौड़ गई।

सहसा उसके ज़हन में एक ज़ोरदार धमाका सा हुआ। बिजली की तरह उसके ज़हन में पंचायत के दिन दादा ठाकुर द्वारा पूछी गई बात गूंज उठी। दादा ठाकुर ने उससे ही नहीं बल्कि गौरी शंकर से भी पूछा था कि क्या वो किसी सफ़ेदपोश को जानते हैं अथवा क्या उनका संबंध सफ़ेदपोश से है? उस दिन दादा ठाकुर के इन सवालों का जवाब ना गौरी शंकर के पास था और ना ही खुद उसके पास। दोनों ने सफ़ेदपोश के बारे में अपनी अनभिज्ञता ही ज़ाहिर की थी।

'तो क्या यही है वो सफ़ेदपोश?' गहन सोचों में डूब गए चंद्रकांत के ज़हन में ये सवाल उभरा____'क्या यही वो सफ़ेदपोश है जिसने दादा ठाकुर के अनुसार उनके बेटे वैभव को कई बार जान से मारने की कोशिश की थी?'

चंद्रकांत आश्चर्यजनक रूप से ख़ामोश हो गया था और जाने क्या क्या सोचे जा रहा था। उसे ये तक ख़याल नहीं रह गया था कि कुछ देर पहले वो किस तरह की भावना में डूबा हुआ उस आकृति की तरफ बढ़ा था। अचानक चंद्रकांत के मन में ख़याल उभरा कि क्या इस सफ़ेदपोश ने मेरे बेटे की हत्या की होगी? अगर हां तो क्यों? अगले ही पल उसने सोचा____'किन्तु इससे तो मेरी अथवा मेरे बेटे की कोई दुश्मनी ही नहीं थी। फिर भला ये क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा? बल्कि इसकी दुश्मनी तो दादा ठाकुर के बेटे वैभव से है। यकीनन वैभव ने इसकी भी बहन बेटी अथवा बीवी के साथ बलात्कार कर के इसके ऊपर अत्याचार किया होगा। तभी तो इसने कई बार वैभव को जान से मार देना चाहा था। वो तो उस हरामजादे की किस्मत ही अच्छी थी जो वो हर बार इससे बच गया था मगर कब तक बचेगा आख़िर?'

"लगता है मुझे अपने इतने क़रीब देख कर तू किसी और ही दुनिया में पहुंच गया है।" तभी सहसा सन्नाटे में सामने मौजूद सफ़ेदपोश की अजीब सी किन्तु धीमी आवाज़ गूंजी जिससे चंद्रकांत पलक झपकते ही सोचों के भंवर से बाहर आ गया। उसने हड़बड़ा कर सफ़ेदपोश की तरफ देखा।

"क...क...कौन हो तुम???" चंद्रकांत उसको पहचानते हुए भी मारे हड़बड़ाहट के पूछ बैठा____"और यहां किस लिए आए हो?"

"इस गांव की बड़ी बड़ी हस्तियां मुझे सफ़ेदपोश के नाम से जानती हैं।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"और हां तू भी जानता है मुझे। मेरे सामने अंजान बनने की तेरी ये कोशिश बेकार है चंद्रकांत। रही बात मेरे यहां आने की तो ये समझ ले कि मौत नाम की बला कभी भी कहीं भी आ जा सकती है।"

सफ़ेदपोश की आवाज़ में और उसकी बातों में जाने ऐसा क्या था कि सुन कर चंद्रकांत के समूचे जिस्म में सर्द लहर दौड़ गई। उसने अपनी टांगें कांपती हुई महसूस की। चेहरा पलक झपकते ही पसीना छोड़ने लगा। उसके हलक से कोई आवाज़ न निकल सकी। सूख गए गले को उसने ज़बरदस्ती तर करने की कोशिश की और फिर पलक झपकते ही ख़राब हो गई अपनी हालत को काबू करने की कोशिश में लग गया।

"ल...लेकिन यहां क्यों आए हो तुम?" फिर उसने बड़ी मुश्किल से सफ़ेदपोश से पूछा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि सफ़ेदपोश उसके घर के बाहर क्यों आ गया था और अगर उससे ही मिलने आया था तो आख़िर वो क्या चाहता था उससे?

"लगता है अपने बेटे की मौत का ग़म बड़ा जल्दी भूल गया है तू।" सफ़ेदपोश ने ठंडे स्वर में कहा____"क्या तेरी रगों में दौड़ता हुआ लहू सच में पानी हो गया है चंद्रकांत?"

"न...नहीं तो।" चंद्रकांत अजीब भाव से बोल पड़ा____"कुछ भी नहीं भूला हूं मैं। अपने बेटे के हत्यारे को पाताल से भी खोज निकालूंगा और अपने बेटे की हत्या करने की उसे अपने हाथों से सज़ा दूंगा।"

"बहुत खूब।" सफ़ेदपोश अपनी अजीब सी आवाज़ में कह उठा____"बदला लेने के लिए सीने में कुछ ऐसी ही आग होनी चाहिए। वैसे क्या लगता है तुझे, तू या कोई भी तेरे बेटे के हत्यारे का पता लगा सकेगा?"

"क...क्या मतलब??" चंद्रकांत बुरी तरह चकरा गया, फिर जल्दी ही सम्हल कर बोला____"ऐसा क्यों कह रहे हो तुम?"

"वो इस लिए क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तू क्या किसी के बाप के फ़रिश्ते भी उस शख़्स का पता नहीं लगा सकते जिसने तेरे बेटे की हत्या की है।" सफ़ेदपोश ने बड़े अजीब भाव से किंतु अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"लेकिन मैं....मैं अच्छी तरह जानता हूं उसे। इसी वक्त तुझे बता सकता हूं कि तेरे बेटे का हत्यारा कौन है?"

"क....क्या????" चंद्रकांत बुरी तरह उछल पड़ा____"म...मेरा मतलब है कि क्या तुम सच कह रहे हो? क्या सच में तुम इसी वक्त मेरे बेटे के हत्यारे के बारे में बता सकते हो?"

"बेशक।" सफ़ेदपोश ने कहा____"मैं सब कुछ बता सकता हूं क्योंकि मैं फरिश्तों से भी ऊपर की चीज़ हूं। जो कोई नहीं कर सकता वो मैं कर सकता हूं।"

चंद्रकांत किसी बेजान पुतले की तरह आश्चर्य से आंखें फाड़े सफ़ेदपोश की धुंधली सी आकृति को देखता रह गया। सहसा उसके ज़हन में विस्फोट सा हुआ तो जैसे उसे होश आया। उसने अपने ज़हन को झटक कर सफ़ेदपोश की तरफ देखा। लकड़ी की बाउंड्री के उस पार वो सफ़ेद किंतु धुंधली सी आकृति के रूप ने नज़र आ रहा था। चंद्रकांत को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो सचमुच फ़रिश्तों से ऊपर की ही चीज़ है।

"म...मुझे बताओ।" चंद्रकांत एकदम से व्याकुल और पगलाए हुए अंदाज़ में बोल पड़ा____"मुझे जल्दी से बताओ कि वो हत्यारा कौन है जिसने मेरे इकलौते बेटे की हत्या कर के मेरे वंश का नाश कर दिया है? भगवान के लिए जल्दी से उस हत्यारे का नाम बता दो मुझे। मैं तुम्हारे पांव पड़ता हूं। बस एक बार उसका नाम बता दो, बदले में तुम मुझसे जो मांगोगे मैं बिना सोचे समझे तुम्हें दे दूंगा।"

"बदले में क्या कर सकता है तू मेरे लिए?" सामने खड़े सफ़ेदपोश ने कुछ पलों तक सोचने के बाद सर्द लहजे में उससे पूछा।

"जो भी तुम कहोगे...मैं करूंगा।" चंद्रकांत ने झट से कहा____"बस तुम मुझे मेरे बेटे के हत्यारे का नाम बता दो।"

"जिस तरह तू अपने बेटे के हत्यारे का नाम जानने के लिए मरा जा रहा है, सोच रहा हूं पहले तुझे उस हत्यारे का नाम ही बता दूं।" सफ़ेदपोश ने अजीब भाव से कहा____"लेकिन ये भी सोचता हूं कि अगर मैंने तुझे उसका नाम बता दिया और बाद में तू मेरे लिए कुछ भी करने से मुकर गया तो...??"

"नहीं नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा।" चंद्रकांत ने हड़बड़ाते हुए झट से कहा____"मैं अपने मरे हुए बेटे की क़सम खा कर कहता हूं कि बाद में मैं किसी भी बात से नहीं मुकरूंगा। बल्कि वही करूंगा जो करने को तुम कहोगे।"

"ऐसा पहली बार ही हो रहा है कि मैं किसी से अपना काम करवाने से पहले सामने वाले पर भरोसा कर के खुद उसका भला करने जा रहा हूं।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब आवाज़ में कहा____"मैं अभी इसी वक्त तुझे तेरे बेटे के हत्यारे का नाम बताए देता हूं किंतु एक बात तू अच्छी तरह समझ ले। अगर बाद में तू अपने वादे से मुकर कर मेरा कोई काम नहीं किया तो ये तेरे और तेरे परिवार के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा।"

"म...मेरा यकीन करो।" चंद्रकांत ने पूरी दृढ़ता से कहा____"मैं सच में वही करूंगा जो तुम कहोगे। अपने मरे हुए बेटे की क़सम खा चुका हूं मैं। क्या इतने पर भी तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है?"

"यकीन हो गया है तुझ पर तभी तो तुझसे अपना काम करवाने से पहले मैंने तेरा भला करने का सोच लिया है।" सफ़ेदपोश ने कहा____"लेकिन तुझे आगाह इस लिए किया है कि अगर तू बाद में अपने वादे से मुकर गया तो फिर अपने और अपने परिवार के बुरे अंजाम का ज़िम्मेदार तू ख़ुद ही होगा।"

कहने के साथ ही सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को अपना कान उसके क़रीब लाने को कहा तो चंद्रकांत पहले तो चौंका, फिर अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आगे बढ़ा। उसने अपना एक कान सफ़ेदपोश की तरफ बढ़ाया तो सफ़ेदपोश आगे बढ़ कर उसके कान में काफी देर तक जाने क्या कहता रहा।

"उम्मीद है कि अब तू उस हत्यारे से अपने बेटे की हत्या का बदला ले कर अपने दिल की आग को ठंडा कर लेगा।" सफ़ेदपोश ने उसके कान से सफ़ेद नक़ाब में छुपा अपना मुंह हटा कर कहा____"और हां, तेरे पास समय बिल्कुल ही कम है। मैं कल रात किसी भी वक्त यहां पर आ सकता हूं और फिर तुझे अपना काम करने का हुकुम दे सकता हूं। अपना वादा तोड़ कर मेरा काम न करने की सूरत में क्या होगा इस बात को भूलना मत।"

कहने के साथ ही सफ़ेदपोश ने इधर उधर अपनी निगाह घुमाई और फिर पलट कर हवा के झोंके की तरह कुछ ही पलों में अंधेरे में ग़ायब हो गया। उसके ग़ायब होते ही चंद्रकांत को जैसे होश आया। अगले कुछ ही पलों में उसके अंदर एक ऐसी आग सुलग उठी जिससे उसके जबड़े कस गए और मुट्ठियां भिंच गईं। दिलो दिमाग़ में मचल उठी आंधी को लिए वो पलटा और घर के दरवाज़े की तरफ बढ़ता चला गया।

✮✮✮✮

सफ़ेदपोश अंधेरे में भी तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला जा रहा था। कुछ ही दूरी पर आसमान से थोड़ा नीचे धुंधली सी आकृति के रूप में उसे पेड़ पौधे दिखने लगे थे। उसकी रफ़्तार और भी तेज़ हो गई। ज़ाहिर है वो अपनी मंजिल पर पहुंचने में देर नहीं करना चाहता था। ज़मीन पर तेज़ तेज़ पड़ते उसके क़दमों से ख़ामोश वातावरण में अजीब सी आवाज़ें पैदा हो रहीं थी। कुछ ही देर में उसे धुंधले नज़र आने वाले पेड़ पौधे थोड़ा स्पष्ट से नज़र आने लगे। तेज़ चलने की वजह से उसकी सांसें भारी हो गईं थी।

अभी वो उन पेड़ पौधों से थोड़ा इधर ही था कि तभी वो चौंका और साथ ही ठिठक भी गया। अपनी एड़ी पर फिरकिनी की मानिंद घूम कर उसने एक तरफ निगाह डाली तो नीम अंधेरे में उसे हिलते डुलते कुछ साए नज़र आए। ये देख वो फ़ौरन ही वापस घूमा और लगभग दौड़ते हुए उन पेड़ पौधों की तरफ भाग चला। उसने भागते हुए ही पलट कर देखा कि हिलते डुलते नज़र आने वाले वो साए भी बड़ी तेज़ी से उसकी तरफ दौड़ लगा चुके थे। सफ़ेदपोश जल्द ही पेड़ पौधों के पास पहुंच गया। यहां कई सारे पेड़ पौधे थे। ऐसा लगता था जैसे ये कोई बगीचा था। सफ़ेदपोश तेज़ी से ढेर सारे पेड़ पौधों के बीच घुसता चला गया। यहां की ज़मीन पर शायद पेड़ों के सूखे पत्ते मौजूद थे जिसकी वजह से सफ़ेदपोश द्वारा तेज़ तेज़ चलने से फर्र फर्र की आवाज़ें पैदा होने लगीं थी जो फिज़ा में छाए सन्नाटे में अजीब सा भय पैदा करने लगीं थी।

सफ़ेदपोश बगीचे के अंदर अभी कुछ ही दूर चला था कि तभी एक तरफ से कोई ज़ोर से चिल्लाया। कदाचित सूखे पत्तों से पैदा होने वाली आवाज़ों को सुन कर ही कोई चिल्लाया था और बोला था____"कौन है उधर?"

इस आवाज़ को सुन कर सफ़ेदपोश बुरी तरह हड़बड़ा गया। यकीनन वो घबरा भी गया होगा किंतु वो रुका नहीं बल्कि और भी तेज़ी से आगे की तरफ भागने लगा। तभी फिर से कोई ज़ोर से चिल्लाते हुए पुकारा। सफ़ेदपोश ने महसूस किया कि पुकारने वाला उसके पीछे ही भागता हुआ आने लगा है तो वो झटके से रुक गया। अपने एक हाथ को उसने सफ़ेद लबादे में कहीं घुसाया। कुछ ही पलों में उसका वो हाथ उसके लबादे से बाहर आ गया। अपनी जगह पर खड़े खड़े ही वो आहिस्ता से पलटा और अपने उस हाथ को हवा में उठा दिया। अगले ही पल ख़ामोश वातावरण में धांय की बड़ी तेज़ आवाज़ गूंज उठी। ऐसा लगा जैसे सन्नाटे में कोई धमाका हो गया हो। सफ़ेदपोश के हाथ में शायद रिवॉल्वर था जिससे उसने गोली चलाई थी। गोली चलते ही किसी की ज़ोरदार चीख़ फिज़ा में गूंज उठी और साथ ही सूखे पत्तों पर किसी के भरभरा कर गिरने की आवाज़ भी हुई।

सफ़ेदपोश ने झट से रिवॉल्वर को अपने सफ़ेद लबादे में ठूंसा और फिर वो वापस पलटा ही था कि तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कई सारे लोग बगीचे में दाखिल हो गए हैं क्योंकि ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों पर ढेर सारी आवाज़ें आने लगीं थी। ये महसूस करते ही सफ़ेदपोश तेज़ी से आगे की तरफ भागता चला गया और फिर अचानक ही अंधेरे में इस तरह ग़ायब हो गया जैसे उसका यहां कहीं कोई वजूद ही न हो।





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बहुत ही सुंदर लाजवाब और मनभावन अपडेट है भाई मजा आ गया
ये साला सफेदपोश फिर से प्रगट हो गया और उसके फैलाये जाल में मुंशी चंद्रकांत में फस गया
ये सफेदपोश ने चंद्रकांत को कौनसा नाम बताया रघुवीर के कातिल का और ये सफेदपोश ने किसको गोली मारी देखते हैं आगे
 

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सफ़ेदपोश ने झट से रिवॉल्वर को अपने सफ़ेद लबादे में ठूंसा और फिर वो वापस पलटा ही था कि तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कई सारे लोग बगीचे में दाखिल हो गए हैं क्योंकि ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों पर ढेर सारी आवाज़ें आने लगीं थी। ये महसूस करते ही सफ़ेदपोश तेज़ी से आगे की तरफ भागता चला गया और फिर अचानक ही अंधेरे में इस तरह ग़ायब हो गया जैसे उसका यहां कहीं कोई वजूद ही न हो।


अब आगे....


अगली सुबह मेरे कमरे का दरवाज़ा किसी ने ज़ोर ज़ोर से बजाया तो मेरी आंख झट से खुल गई और मैं एकदम से उछल कर उठ बैठा। दरवाज़ा बजने के साथ ही कोई आवाज़ भी दे रहा था मुझे। जैसे ही मेरा ज़हन सक्रिय हुआ तो मैं आवाज़ देने वाले को पहचान गया। वो कुसुम की आवाज़ थी। सुबह सुबह उसके द्वारा इस तरह दरवाज़ा बजाए जाने से और पुकारने से मैं एकदम से हड़बड़ा गया और साथ ही किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा भी गया। मैं बिजली की सी तेज़ी से पलंग से नीचे कूदा। लुंगी मेरे बदन से अलग हो गई थी इस लिए फ़ौरन ही उसे पलंग से उठा कर लपेटा और फिर तेज़ी से दरवाज़े के पास पहुंच कर दरवाज़ा खोला।

"क्या हुआ?" बाहर कुसुम के साथ कजरी को खड़े देख मैंने अपनी बहन से पूछा____"इतनी ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा क्यों पीट रही थी तू?"

"गज़ब हो गया भैया।" कुसुम ने बौखलाए हुए अंदाज़ में कहा____"पूरे गांव में हंगामा मचा हुआ है। ताऊ जी हमारे न‌ए मुंशी जी के साथ वहीं गए हुए हैं।"

"ये क्या कह रही है तू?" मैं उसके मुख से हंगामे की बात सुन कर चौंक पड़ा____"आख़िर कैसा हंगामा मचा हुआ है गांव में?"

"अभी कुछ देर पहले ताऊ जी को हवेली के एक दरबान ने बताया कि हमारे पहले वाले मुंशी ने अपनी बहू को जान से मार डाला है।" कुसुम मानो एक ही सांस में बताती चली गई____"सुबह जब उसकी बीवी और बेटी को इस बात का पता चला तो उन दोनों की चीखें निकल गईं। उसके बाद उनकी चीखें रोने धोने में बदल गईं। आवाज़ें घर से बाहर निकलीं तो धीरे धीरे गांव के लोग चंद्रकांत के घर की तरफ दौड़ पड़े।"

कुसुम जाने क्या क्या बोले जा रही थी और इधर मेरा ज़हन जैसे एकदम कुंद सा पड़ गया था। कुसुम ने मुझे हिलाया तो मैं चौंका। मेरे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि चंद्रकांत ने अपनी ही बहू की जान ले ली...मगर क्यों?

मैंने कुसुम को जाने को कहा और वापस कमरे में आ कर अपने कपड़े पहनने लगा। जल्दी ही तैयार हो कर मैं नीचे की तरफ भागा। मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि चंद्रकांत ने इतना बड़ा कांड कर दिया है। नीचे आया तो देखा मां, चाची, भाभी, निर्मला काकी आदि सब एक जगह बैठी बातें कर रहीं थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही सब चुप हो गईं। मैं सबसे पहले गुसलखाने में गया और हाथ मुंह धो कर तथा मोटर साइकिल की चाभी ले कर बाहर निकल गया। कुछ ही देर में मैं अपनी मोटर साइकिल से चंद्रकांत के घर के पास पहुंच गया।

चंद्रकांत के घर के बाहर गांव के लोगों का हुजूम लगा था। वातावरण में औरतों के रोने धोने और चिल्लाने की आवाज़ें गूंज रहीं थी। भीड़ को चीरते हुए मैं जल्द ही चंद्रकांत के घर की चौगान में पहुंच गया जहां पर अपने नए मुंशी के साथ पिता जी और उधर गौरी शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के साथ खड़े दिखे। मैंने देखा घर के बाहर चंद्रकांत की बीवी और उसकी बेटी गला फाड़ फाड़ कर रोए जा रही थी और चंद्रकांत को जाने क्या क्या बोले जा रहीं थी। दोनों मां बेटी के कपड़े अस्त व्यस्त नज़र आ रहे थे। गांव की कुछ औरतें उन्हें सम्हालने में लगी हुईं थी। चंद्रकांत एक कोने में अपने हाथ में एक पुरानी सी तलवार लिए बैठा था। तलवार पूरी तरह खून से नहाई हुई थी। उसके चेहरे पर बड़ी ही सख़्ती के भाव मौजूद थे।

तभी चीख पुकार से गूंजते वातावरण में किसी वाहन की मध्यम आवाज़ आई तो भीड़ में खड़े लोग एक तरफ हटते चले गए। हम सबने पलट कर देखा। सड़क पर दो जीपें आ कर खड़ी हो गईं थी। आगे की जीप से ठाकुर महेंद्र सिंह उतरे, उनके साथ उनका छोटा भाई ज्ञानेंद्र और बाकी अन्य लोग। महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई के साथ आगे बढ़ते हुए जल्द ही पिता जी के पास पहुंच गए।

"ये सब क्या है ठाकुर साहब?" इधर उधर निगाह घुमाते हुए महेंद्र सिंह ने पिता जी से पूछा____"कैसे हुआ ये सब?"

"हम भी अभी कुछ देर पहले ही यहां पहुंचे हैं मित्र।" पिता जी ने गंभीर भाव से कहा___"यहां का दृश्य देख कर हमने चंद्रकांत से इस सबके बारे में पूछा तो इसने बड़े ही अजीब तरीके से गला फाड़ कर बताया कि अपने हाथों से इसने अपने बेटे के हत्यारे को जान से मार डाला है।"

"य...ये क्या कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह बुरी तरह चौंके____"चंद्रकांत ने अपने बेटे के हत्यारे को जान से मार डाला है? कौन था इसके बेटे का हत्यारा?"

"इसकी ख़ुद की बहू रजनी।" पिता जी ने कहा____"हमारे पूछने कर तो इसने यही बताया है, बाकी सारी बातें आप खुद ही पूछ लीजिए इससे। हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा कि इसकी बहू अपने ही पति की हत्यारिन हो सकती है और इसने उसको अपने हाथों से जान से मार डाला।"

पिता जी की बातें सुन कर महेंद्र सिंह फ़ौरन कुछ बोल ना सके। उनके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे इस सबको वो हजम करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। हैरत के भाव लिए वो चंद्रकांत की तरफ बढ़े। चंद्रकांत पहले की ही भांति अपने हाथ में खून से सनी तलवार लिए बैठा था।

"ये सब क्या है चंद्रकांत?" महेंद्र सिंह ने उसके क़रीब पहुंचते ही सख़्त भाव से उससे पूछा____"तुमने अपने हाथों से अपनी ही बहू को जान से मार डाला?"

"हां ठाकुर साहब मैंने मार डाला उसे।" चंद्रकांत ने अजीब भाव से कहा____"उसने मेरे बेटे की हत्या की थी इस लिए रात को मैंने उसे अपनी इसी तलवार से काट कर मार डाला।"

"क...क्या???" महेंद्र सिंह आश्चर्य से चीख़ ही पड़े____"तुम्हें ये कैसे पता चला कि तुम्हारी बहू ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है? आख़िर इतना बड़ा क़दम उठाने का साहस कैसे किया तुमने?"

"साहस.... हा हा हा...।" चंद्रकांत पागलों की तरह हंसा फिर अजीब भाव से बोला____"आप साहस की बात करते हैं ठाकुर साहब....अरे! जिस इंसान को पता चल जाए कि उसके इकलौते बेटे की हत्या करने वाली उसकी अपनी ही बहू है तो साहस के साथ साथ खून भी खौल उठता है। दिलो दिमाग़ में नफ़रत और गुस्से का भयंकर सैलाब आ जाता है। उस वक्त इंसान सारी दुनिया को आग लगा देने का साहस कर सकता है ठाकुर साहब। ये तो कुछ भी नहीं था मेरे लिए।"

"होश में रह कर बात करो चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह गुस्से से गुर्राए____"तुम ये कैसे कह सकते हो कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी? आख़िर तुम्हें इस बात का पता कैसे चला?"

"आपने मेरे बेटे के हत्यारे का पता लगाने का मुझे आश्वासन दिया था ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने कहा____"मगर इतने दिन गुज़र जाने के बाद भी आप मेरे बेटे के हत्यारे का पता नहीं लगा सके और मैं हर रोज़ हर पल अपने बेटे की मौत के ग़म में झुलसता रहा। शायद मेरा ये दुख ऊपर वाले से देखा नहीं गया। तभी तो उसने एक ऐसे फ़रिश्ते को मेरे पास भेज दिया जिसने एक पल में मुझे मेरे बेटे के हत्यारे का पता ही नहीं बल्कि उसका नाम ही बता दिया।"

"क...क्या मतलब??" चंद्रकांत की इस बात को सुन कर महेंद्र सिंह के साथ साथ पिता जी और हम सब भी बुरी तरह चकरा गए। उधर महेंद्र सिंह ने पूछा____"किस फ़रिश्ते की बात कर रहे हो तुम और क्या बताया उसने तुम्हें?"

"नहीं....हर्गिज़ नहीं।" चंद्रकांत ने सख़्ती से अपने जबड़े भींच लिए, बोला____"मैं किसी को भी उस नेक फ़रिश्ते के बारे में नहीं बताऊंगा। उसने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। उसने मेरे बेटे के हत्यारे के बारे में बता कर मुझे अपने अंदर की आग को ठंडा करने का अनोखा मौका दिया है।"

महेंद्र सिंह ही नहीं बल्कि वहां मौजूद लगभग हर कोई चंद्रकांत की बातें सुन कर आश्चर्यचकित रह गया था। ज़हन में बस एक ही ख़्याल उभरा कि शायद चंद्रकांत पागल हो गया है। जाने कैसी अजीब बातें कर रहा था वो। दूसरी तरफ उसकी बीवी और बेटी सिर पटक पटक कर रोए जा रहीं थी। वातावरण में एक अजीब सी सनसनी फैली हुई थी।

"हमारा ख़याल है कि इस वक्त चंद्रकांत की मानसिक अवस्था बिल्कुल भी ठीक नहीं है मित्र।" पिता जी ने महेंद्र सिंह के क़रीब आ कर गंभीरता से कहा____"इस लिए इस वक्त इससे कुछ भी पूछने का कोई फ़ायदा नहीं है। जब इसका दिमाग़ थोड़ा शांत हो जाएगा तभी इससे इस सबके बारे में पूछताछ करना उचित होगा।"

"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"इस वक्त ये सचमुच बहुत ही अजीब बातें कर रहा है और इसका बर्ताव भी कुछ ठीक नहीं लग रहा है। ख़ैर, आपका क्या विचार है अब? हमारा मतलब है कि चंद्रकांत ने अपनी बहू की हत्या कर दी है और ये बहुत बड़ा अपराध है। अतः इस अपराध के लिए क्या आप इसे सज़ा देने का सुझाव देना चाहेंगे?"

"जब तक इस मामले के बारे में ठीक से कुछ पता नहीं चलता।" पिता जी ने कहा____"तब तक इस बारे में किसी भी तरह का फ़ैसला लेना सही नहीं होगा। हमारा सुझाव यही है कि कुछ समय के लिए चंद्रकांत को उसके इस अपराध के लिए सज़ा देने का ख़याल सोचना ही नहीं चाहिए। किन्तु हां, तब तक हमें ये जानने और समझने का प्रयास ज़रूर करना चाहिए कि चंद्रकांत को आख़िर ये किसने बताया कि उसके बेटे का हत्यारा खुद उसकी ही बहू है?"

"बड़ी हैरत की बात है कि चंद्रकांत ने इतना बड़ा और संगीन क़दम उठा लिया।" महेंद्र सिंह ने कहा____"उसे देख कर यही लगता है कि जैसे उस पर पागलपन सवार है। इतना ही नहीं ऐसा भी प्रतीत होता है जैसे उसे इस बात की बेहद खुशी है कि उसने अपने बेटे के हत्यारे को जान से मार कर अपने बेटे की हत्या का बदला ले लिया है।"

"उसके इकलौते बेटे की हत्या हुई थी मित्र।" पिता जी ने कहा____"उसके बेटे को भी अभी कोई औलाद नहीं हुई थी। ज़ाहिर है रघुवीर की मौत के बाद चंद्रकांत की वंशबेल भी आगे नहीं बढ़ सकती है। ये ऐसी बातें हैं जिन्हें सोच सोच कर कोई भी इंसान चंद्रकांत जैसी मानसिकता में पहुंच सकता है। ख़ैर, चंद्रकांत के अनुसार उसे किसी फ़रिश्ते ने उसके बेटे के हत्यारे के बारे में बताया कि हत्यारा खुद उसकी ही बहू है। अब सवाल ये उठता है कि अगर ये सच है तो फिर चंद्रकांत की बहू ने अपने ही पति की हत्या किस वजह से की होगी? हालाकि हमें तो कहीं से भी ये नहीं लगता कि रजनी ने ऐसा किया होगा लेकिन मौजूदा परिस्थिति में उसकी मौत के बाद इस सवाल का उठना जायज़ ही है। चंद्रकांत ने भी तो अपनी बहू की जान लेने से पहले उससे ये पूछा होगा कि उसने अपने पति की हत्या क्यों की थी?"

"ये ऐसा मामला है ठाकुर साहब जिसने हमें एकदम से अवाक सा कर दिया है।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"हमें लगता है कि किसी ने भी ऐसा होने की कल्पना नहीं की रही होगी। ख़ैर ऊपर वाले की लीला वही जाने किंतु इस मामले में एक दो नहीं बल्कि ढेर सारे सवाल खड़े हो गए हैं। हम लोग चंद्रकांत की ऐसी मानसिकता के लिए उसे समय देने का सुझाव दे रहे थे जबकि ऐसा प्रतीत होता है कि ख़ुद हम लोगों को भी समय चाहिए। कमबख़्त ज़हन ने काम ही करना बंद कर दिया है।"

"सबका यही हाल है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हमें लगता है कि इस बारे में ठंडे दिमाग़ से ही कुछ सोचा जा सकेगा। फिलहाल हमें ये सोचना है कि इस वक्त क्या करना चाहिए?"

"अभी तो चंद्रकांत की बहू के मृत शरीर को शमशान में ले जा कर उसका अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए।" महेंद्र सिंह ने कहा____"ज़ाहिर है उसका अंतिम संस्कार अब चंद्रकांत ही करेगा। लाश जब तक यहां रहेगी तब तक घर की औरतों का रोना धोना लगा ही रहेगा। इस लिए बेहतर यही है कि लाश को यहां से शमशान भेजने की व्यवस्था की जाए।"

पिता जी भी महेंद्र सिंह की इस बात से सहमत थे इस लिए भीड़ में खड़े गांव वालों को बताया गया कि अभी फिलहाल अंतिम संस्कार की क्रिया की जाएगी, उसके बाद ही इस मामले में कोई फ़ैसला किया जाएगा। पिता जी के कहने पर गांव के कुछ लोग और कुछ औरतें चंद्रकांत के घर के अंदर गए। कुछ ही देर में लकड़ी की खाट पर रजनी की लाश को लिए कुछ लोग बाहर आ गए। महेंद्र सिंह के साथ पिता जी ने भी आगे बढ़ कर रजनी की लाश का मुआयना किया। उनके पीछे गौरी शंकर भी था। इधर मैं और रूपचन्द्र भी रजनी की लाश को देखने की उत्सुकता से आगे बढ़ चले थे।

रजनी की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर एकदम से रूह थर्रा ग‌ई। बड़ी ही वीभत्स नज़र आ रही थी वो। चंद्रकांत ने वाकई में उसकी बड़ी बेरहमी से हत्या की थी। रजनी के पेट और सीने में बड़े गहरे ज़ख्म थे जहां से खून बहा था। उसके हाथों पर भी तलवार के गहरे चीरे लगे हुए थे और फिर सबसे भयानक था उसके गले का दृश्य। आधे से ज़्यादा गला कटा हुआ था। दूर से ही उसकी गर्दन एक तरफ को लुढ़की हुई नज़र आ रही थी। चेहरे पर दर्द और दहशत के भाव थे।

रजनी की भयानक लाश देख कर उबकाई सी आने लगी थी। रूपचंद्र जल्दी ही पीछे हट गया था। इधर गांव के लोग लाश को देखने के लिए मानों पागल हुए जा रहे थे किंतु हमारे आदमियों की वजह से कोई चंद्रकांत की चौगान के अंदर नहीं आ पा रहा था। कुछ देर बाद पिता जी और महेंद्र सिंह लाश से दूर हो गए। महेंद्र सिंह ने उन लोगों को इशारे से लाश को शमशान ले जाने को कह दिया।

क़रीब एक घंटे बाद शमशान में चंद्रकांत अपनी बहू की चिता को आग दे रहा था। पहले तो वो इसके लिए मान ही नहीं रहा था किंतु जब महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से समझाया तो उसे ये सब करना ही पड़ा। रजनी के मायके वाले भी आ ग‌ए थे जो रजनी की इस तरह हुई मौत से दहाड़ें मार कर रोए थे।

इधर चंद्रकान्त के चेहरे पर आश्चर्यजनक रूप से कोई दुख के भाव नहीं थे, बल्कि उसका चेहरा पत्थर की तरह सख़्त ही नज़र आ रहा था। सारा गांव चंद्रकांत के खेतों पर मौजूद था। चंद्रकांत की बीवी प्रभा और बेटी कोमल ढेर सारी औरतों से घिरी बैठी थीं। दोनों के चेहरे दुख और संताप से डूबे हुए थे।

रजनी का दाह संस्कार कर दिया गया। लोग धीरे धीरे वहां से जाने लगे। बाकी की क्रियाओं के लिए चंद्रकांत के कुछ चाहने वाले उसके साथ थे। महेंद्र सिंह के कहने पर पिता जी ने अपने कुछ आदमियों को गुप्त रूप से चंद्रकांत और उसके घर पर नज़र रखने के लिए लगा दिया था।

✮✮✮✮

पिता जी के आग्रह पर महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ हवेली आ गए थे। रूपचंद्र तो अपने घर चला गया था किंतु गौरी शंकर पिता जी के पीछे पीछे हमारी हवेली ही आ गया था। रजनी के अंतिम संस्कार के बाद जब हम सब हवेली पहुंचे थे तो लगभग दोपहर हो गई थी। अतः पिता जी के आदेश पर सबके लिए भोजन की जल्द ही व्यवस्था की गई। भोजन बनने के बाद सब लोगों ने साथ में ही भोजन किया और फिर सब बैठक में आ गए।

"क्या लगता है ठाकुर साहब आपको?" बैठक में एक कुर्सी पर बैठे महेंद्र सिंह ने पिता जी से मुखातिब हो कर कहा____"चंद्रकांत जिसे फ़रिश्ता बता रहा था वो कौन हो सकता है? इतना ही नहीं उसे कैसे पता था कि चंद्रकांत के बेटे का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि उसकी बहू ही है?"

"इस बारे में तो बेहतर तरीके से चंद्रकांत ही बता सकता है मित्र।" पिता जी ने कहा____"मगर हम तो यही कहेंगे कि इस मामले में कोई न कोई भारी लोचा ज़रूर है।"

"कैसा लोचा?" महेंद्र सिंह के साथ साथ सभी के चेहरों पर चौंकने के भाव उभर आए, जबकि महेंद्र सिंह ने आगे कहा____"बात कुछ समझ नहीं आई आपकी?"

"पक्के तौर पर तो हम भी कुछ कह नहीं सकते मित्र।" पिता जी ने कहा____"किंतु जाने क्यों हमें ऐसा आभास हो रहा है कि चंद्रकांत ने कदाचित बहुत बड़ी ग़लतफहमी के चलते अपनी बहू को मार डाला है।"

"यानि आप ये कहना चाहते हैं कि चंद्रकांत जिसे अपना फ़रिश्ता बता रहा था उसने उसको ग़लत जानकारी दी?" महेंद्र सिंह ने हैरत से देखते हुए कहा____"और चंद्रकांत क्योंकि अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाने के लिए पगलाया हुआ था इस लिए उसने उसके द्वारा पता चलते ही बिना कुछ सोचे समझे अपनी बहू को मार डाला?"

"बिल्कुल, हमें यही आभास हो रहा है।" पिता जी ने मजबूती से सिर हिलाते हुए कहा____"और अगर ये सच है तो यकीन मानिए किसी अज्ञात व्यक्ति ने बहुत ही ज़बरदस्त तरीके से चंद्रकांत के हाथों उसकी अपनी ही बहू की हत्या करवा दी है। आश्चर्य की बात ये भी कि चंद्रकांत को इस बात का लेश मात्र भी एहसास नहीं हो सका।"

"आख़िर किसने ऐसा गज़बनाक कांड चंद्रकांत के हाथों करवाया हो सकता है?" गौरी शंकर सवाल करने से खुद को रोक न सका____"और भला चंद्रकांत के अंदर ये कैसा पागलपन सवार था कि उसने एक अज्ञात व्यक्ति के कहने पर ये मान लिया कि उसकी बहू ने अपने ही पति की हत्या की है?"

"बात में काफी दम है।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"यकीनन ये हैरतअंगेज बात है। जिसने भी चंद्रकांत के हाथों ये सब करवाया है वो कोई मामूली इंसान नहीं हो सकता।"

"बात तो ठीक है आपकी।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इस वक्त हम सब इस मामले में सिर्फ अपने अपने कयास ही लगा रहे हैं। सच का पता तो चंद्रकांत से पूछताछ करने पर ही चलेगा। हो सकता है कि जिस बात को हम सब हजम नहीं कर पा रहे हैं वास्तव में वही सच हों।"

"क्या आप ये कहना चाहते हैं कि चंद्रकांत के बेटे की हत्या उसकी बहू ने ही की रही होगी?" महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"और जब चंद्रकांत को किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा इसका पता चला तो उसने गुस्से में आ बबूला हो कर अपनी बहू को मार डाला?"

"बेशक ऐसा भी हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"हमारे मामले के बाद आपको भी इस बात का पता हो ही गया है कि चंद्रकांत की बीवी और उसकी बहू का चरित्र कैसा था। बेशक उनके साथ हमारे बेटे का नाम जुड़ा था लेकिन सोचने वाली बात है कि ऐसी चरित्र की औरतों का संबंध क्या सिर्फ एक दो ही मर्दों तक सीमित रहा होगा?"

"आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पूछा।

"हम सिर्फ चरित्र के आधार पर किसी चीज़ की संभावना पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे हैं।" पिता जी ने संतुलित भाव से कहा____"हो सकता है कि रघुवीर की बीवी का कोई ऐसा राज़ रहा हो जिसका रघुवीर के सामने फ़ाश हो जाने का रजनी को डर रहा हो। या फिर ऐसा हो सकता है कि किसी ऐसे व्यक्ति ने रजनी को अपने ही पति की हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया जो रघुवीर का दुश्मन था। उस व्यक्ति को रजनी के नाजायज़ संबंधों का पता रहा होगा जिसके आधार पर उसने रजनी को अपने ही पति की हत्या कर देने पर मजबूर कर दिया होगा।"

"पता नहीं क्या सही है और क्या झूठ।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"पिछले कुछ महीनों में हमने इस गांव में जो कुछ देखा और सुना है उससे हम वाकई में चकित रह गए हैं। इससे पहले हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि आपके इस गांव में तथा आपके राज में ये सब देखने सुनने को मिलेगा। उस मामले से अभी पूरी तरह निपट भी नहीं पाए थे कि अब ये कांड हो गया यहां। समझ में नहीं आ रहा कि आख़िर ये सब कब बंद होगा?"

"इस धरती में जब तक लोग रहेंगे तब तक कुछ न कुछ होता ही रहेगा मित्र।" पिता जी ने कहा____"ख़ैर, हमारा ख़याल है कि अब हमें चंद्रकांत के यहां चलना चाहिए। ये जानना बहुत ही ज़रूरी है कि चंद्रकांत जिसे अपना फ़रिश्ता कह रहा था वो कौन है और उसने चंद्रकांत से ये क्यों कहा कि उसके बेटे की हत्या करने वाला कोई और नहीं बल्कि उसकी ही बहू है? एक बात और, हमें पूरा यकीन है कि इतनी बड़ी बात को चंद्रकांत ने इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर लिया होगा। यकीनन अज्ञात व्यक्ति ने उसे कुछ ऐसा बताया रहा होगा जिसके चलते चंद्रकांत ने ये मान लिया होगा कि हां उसकी बहू ने ही उसके बेटे की हत्या की है।"

"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?




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बहुत ही जबरदस्त और धमाकेदार अपडेट है भाई मजा आ गया
आखिर सफेदपोश ने बडी ही शातिरतासे चंद्रकांत के हाथों अपनी बहु रजनी का बडी ही बेरहमी से उसकी हत्या करवा दी खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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अध्याय - 103
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"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?



अब आगे....


चंद्रकांत और उसके बेटे के ससुराल वाले पहले ही आ गए थे जिसके चलते काफी रोना धोना हुआ था उसके घर में। रघुवीर की ससुराल वाले तो आपे से बाहर भी हो ग‌ए थे जिसके चलते हंगामा होने वाला था मगर गांव वालों ने फ़ौरन ही सब सम्भाल लिया था।

हम सब जब वहां पहुंचे तो देखा कि गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग लोग पहले से ही चंद्रकांत के घर में मौजूद थे। रघुवीर का साला और उसका ससुर बाहर ही एक तरफ गुमसुम से बैठे थे जबकि उनके साथ आई औरतें और लड़कियां घर के अंदर थीं। बहरहाल, पिता जी के साथ जब महेंद्र सिंह आदि लोगों का काफ़िला पहुंचा तो घर के बाहर ही सबके बैठने की व्यवस्था कर दी गई। आसमान में घने बादल छाए हुए थे जिसके चलते धूप नहीं थी और ठंडी हवाएं चल रहीं थी।

सब लोग बैठे हुए थे जबकि चंद्रकांत चेहरे पर अजीब सी सख़्ती धारण किए घर के बाहर दोनों तरफ बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर बैठा था। वातावरण में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। आगे की कार्यवाही अथवा पूछताछ के लिए महेंद्र सिंह ने औपचारिक रूप से सभी लोगों के सामने वार्तालाप शुरू किया और फिर मुद्दे की बात के लिए चंद्रकांत को अपने थोड़ा पास बुला लिया।

"हम उम्मीद करते हैं कि अब तुम्हारा दिलो दिमाग़ पहले से थोड़ा शांत और बेहतर हो गया होगा।" महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत की तरफ देखते हुए कहा____"अतः अब हम ये उम्मीद करते हैं कि हम जो कुछ भी तुमसे पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब दोगे।"

कुछ घंटे लोगों के बीच रहने के चलते कदाचित चंद्रकांत की मनोदसा में थोड़ा परिवर्तन आ गया था। इस लिए महेंद्र सिंह की बात सुन कर उसने ख़ामोशी से ही हां में सिर हिला दिया था।

"बहुत बढ़िया।" महेंद्र सिंह ने कहा___"हमारा सबसे पहला सवाल ये है कि वो कौन था जिसने तुम्हें ये बताया कि तुम्हारे बेटे की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी?"

"कल रात की बात है।" चंद्रकांत ने सपाट लहजे से कहा____"शायद उस वक्त रात के बारह बजे रहे होंगे। मैं पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकला था। पेशाब कर के वापस घर के अंदर जाने ही लगा था कि तभी अजीब सी आहट हुई जिसके चलते मैं रुक गया। पहले मुझे लगा कि शायद ये मेरा वहम है इस लिए ध्यान न दे कर मैंने फिर से अपने क़दम आगे बढ़ाए मगर तभी आहट फिर से हुई। इस बार की आहट से मैं समझ गया कि इसके पहले मुझे कोई वहम नहीं हुआ था। ख़ैर मैं ये देखने के लिए इधर उधर निगाह डालने लगा कि रात के इस वक्त आख़िर किस चीज़ से आहट हो रही है? मुझे याद आया कि ऐसी ही एक रात मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी। मुझे एकदम से लगा जैसे उस वक्त भी वो हत्यारा मेरे आस पास मौजूद है। अंधेरा था इस लिए स्पष्ट कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन जल्दी ही मेरी निगाह नीम अंधेरे में एक जगह खड़े एक साए पर पड़ गई।"

"साए पर??" महेंद्र सिंह पूछे बगैर न रह सके थे____"किसका साया था वो?"

"एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति का जिसके बारे में इसके पहले दादा ठाकुर ज़िक्र कर चुके थे।" चंद्रकांत ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"हां ठाकुर साहब, वो कोई और नहीं बल्कि वही सफ़ेदपोश व्यक्ति था जिसके बारे में आपने मुझसे और गौरी शंकर जी से पूछा था।"

चंद्रकांत की ये बात सुन कर पिता जी के साथ साथ बाकी सब लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। हैरत में डूबा चेहरा लिए सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। इधर मेरा भी वही हाल था। मैं भी सोच में पड़ गया था कि साला अब ये क्या चक्कर है? इतने समय से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था और अब इस तरह से उसका पता चल रहा था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि चंद्रकांत के इस मामले में सफ़ेदपोश कहां से और कैसे आ गया?

"ये तुम क्या कह रहे हो चंद्रकांत?" पिता जी पूछने से खुद को रोक न सके____"पिछली रात तुमने जिस साए को देखा क्या वो सच में सफ़ेदपोश था? कहीं तुम्हें कोई वहम तो नहीं हुआ था?"

"वहम का सवाल ही नहीं उठता ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने पूरी मजबूती से कहा____"क्योंकि मैंने उसे बहुत क़रीब से और अपनी आंखों से देखा था। इतना ही नहीं काफी देर तक मेरी उससे बातें भी हुईं थी। वो वही था जिसके समूचे बदन पर सफ़ेद लिबास था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है ये।" पिता जी बरबस ही कह उठे____"इतने समय से हम उस सफ़ेदपोश को तलाश कर रहे हैं किंतु उसका कहीं कोई सुराग़ नहीं मिल सका और तुम कह रहे हो कि तुमने उसे देखा है? उससे बातें भी की हैं?"

"यही सच है ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"उसी ने मुझे बताया कि मेरे बेटे का हत्यारा मेरी अपनी ही बहू थी।"

"और उसके कहने से तुमने मान लिया?" महेंद्र सिंह ने हैरत से उसे देखा____"बड़े आश्चर्य की बात है कि तुमने एक ऐसे व्यक्ति की बात मान ली जो जाने कब से खुद को सबसे छुपाए फिर रहा है। इतना ही नहीं जो ठाकुर साहब के बेटे वैभव की जान का दुश्मन भी बना हुआ है। हमें बिल्कुल भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा कि तुमने ऐसे व्यक्ति के कहने पर अपनी बहू को अपने बेटे की हत्यारिन मान लिया और फिर बदले की भावना के चलते उसे मार भी डाला।"

"बिल्कुल, हमारा भी यही कहना है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि तुमने उस सफ़ेदपोश के कहने बस से ही अपनी बहू को हत्यारिन नहीं मान लिया होगा। यकीनन उसने तुम्हें कोई ऐसी वजह भी बताई होगी जिसके बाद तुम्हें अपनी बहू के हत्यारिन होने पर यकीन आ गया होगा। हम सब भी ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हें ऐसा क्या बताया था?"

"मैं हर बात किसी को बताना ज़रूरी नहीं समझता।" चंद्रकांत ने सख़्ती से जबड़े भींच कर कहा____"ये मेरा पारिवारिक और बेहद निजी मामला है।"

"जब किसी औरत को बेरहमी से मार डाला जाए तो मामला पारिवारिक अथवा निजी नहीं रह जाता चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने कठोर भाव से कहा____"तुमने अपनी बहू को बेरहमी से मार डाला है, इस लिए अब तुम्हें बताना ही होगा कि इसके पीछे की असल वजह क्या है? परिवार का मामला चाहे जैसा भी हो लेकिन किसी की हत्या कर देने का हक़ किसी को भी नहीं है। तुमने अपनी बहू की हत्या की है और इस अपराध के लिए तुम्हें सज़ा भी मिलेगी।"

"हां तो दे दीजिए मुझे सज़ा।" चंद्रकांत पागलों की तरह चीख पड़ा____"चढ़ा दीजिए मुझे सूली पर। मेरे मर जाने से कम से कम दादा ठाकुर के कलेजे को शांति तो मिल जाएगी।"

"मादरचोद, क्या बोला तूने?" चंद्रकांत की बात से मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं गुस्से में आग बबूला हो कर पलक झपकते ही उसके क़रीब पहुंच गया।

इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता मैंने उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया और फिर गुर्राते हुए कहा____"तू कौन सा दूध का धुला है जो हर बात में तू मेरे बाप पर उंगली कर के तंज़ कसने लगता है? तेरी सच्चाई ये है कि तू एक नामर्द है और तेरा बेटा तुझसे भी बड़ा नामर्द था। तेरे घर की औरतें तेरे सामने दूसरे मर्दों के साथ अपनी हवस मिटाती थीं और तुम दोनों बाप बेटे अपने उबलते खून को पानी से ठंडा करते थे।"

"ये क्या हिमाकत है??" पिता जी गुस्से से दहाड़ उठे।

उनके साथ साथ बाकी सब भी उछल कर खड़े हो गए थे। महेंद्र सिंह का छोटा भाई ज्ञानेंद्र सिंह लपक कर मेरे पास आया और मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचने लगा मगर मैंने झटक दिया उसे। इस वक्त बड़ा तेज़ गुस्सा आया हुआ था मुझे। मेरे झटक देने पर ज्ञानेंद्र झोंक में पीछे जा कर गिरते गिरते बचा। इधर चंद्रकांत चेहरे पर दहशत के भाव लिए चिल्लाने लगा था। ज्ञानेंद्र सम्हल कर फिर से मुझे छुड़ाने के लिए मेरे क़रीब आया और इस बार वो मुझे पूरी ताक़त से खींच कर चंद्रकांत से दूर ले गया।

"तुम दोनो बाप बेटे जैसा हिजड़ा इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगा।" मैं गुस्से चीखते हुए बोला____"साले नामर्द, अपनी औरतों को तो बस में कर नहीं सका और मर्द बनता है बेटीचोद।"

"तुम्हें इस हिमाकत की सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाएगी।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए बेहद गुस्से में कहा____"इसी वक्त चले जाओ यहां से वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"बेशक सज़ा दे दीजिएगा पिता जी।" मैंने गुस्से से भभकते हुए खुद को एक झटके में ज्ञानेंद्र से छुड़ाया, फिर बोला____"लेकिन इस मादरचोद ने अगर दुबारा फिर से किसी बात पर आपकी तरफ उंगली उठाई तो इसकी ज़ुबान हलक से निकाल कर इसके हाथ में दे दूंगा।"

शोर शराबा सुन कर घर के अंदर से औरतें भाग कर बाहर आ गईं थी। बाहर मौजूद लोग भी तितर बितर हो कर दूर हट गए थे। सभी के चेहरों पर ख़ौफ के भाव उभर आए थे। उधर चंद्रकांत सहम कर घर के बाहर दोनों तरफ बनी पट्टी पर बैठ गया था। जूड़ी के मरीज़ की तरह थर थर कांपे जा रहा था वो।

"हमने कहा चले जाओ यहां से।" पिता जी इस बार गुस्से में दहाड़ ही उठे। पिता जी का गुस्सा देख महेंद्र सिंह ने अपने भाई को इशारा किया तो वो मुझे ले कर अपनी जीप की तरफ बढ़ चला।

"मुझे तुमसे ऐसी बेहूदा हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वैभव।" रास्ते में ज्ञानेंद्र सिंह ने गंभीरता से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"सबके सामने तुम्हें ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था और ना ही उसे गालियां देनी चाहिए थी।"

"और उसे सबके सामने मेरे पिता पर तंज कसना चाहिए था, है ना?" मैंने तीखे भाव से ज्ञानेंद्र की तरफ देखा।

"तुम उस व्यक्ति के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो।" ज्ञानेंद्र ने कहा____"पिछले कुछ समय में यहां जो कुछ हुआ है उससे हम सब भी इतना समझ चुके हैं कि कौन कैसा है। एक बात हमेशा याद रखो कि कीचड़ में अगर पत्थर मारोगे तो वो कीचड़ उल्टा तुम्हें ही गंदा करेगा, जबकि उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। चंद्रकांत की दशा कीचड़ जैसी ही है।"

"मैं काफी समय से उसको बर्दास्त करता आ रहा था चाचू।" मैंने खीझते हुए कहा____"लेकिन आज सबके सामने जब उसने फिर से पिता जी पर तंज कसा तो मैं बर्दास्त नहीं कर सका। एक तो मादरचोद ने खुद अपनी ही बहू को मार डाला और ऊपर से अभी भी खुद को साधू महात्मा दर्शाने की कोशिश कर रहा है।"

"मूर्ख लोग ऐसे ही होते हैं वैभव।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"समझदार लोग मूर्खों की बातों पर ध्यान नहीं देते। जैसे तुम्हारे पिता जी उसकी बातों को सुन कर धैर्य धारण किए रहते हैं वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए था।"

अब तक मेरा गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो गया था इस लिए ज्ञानेंद्र सिंह की बातें अब मेरे ज़हन में आसानी से घुस रहीं थी। मुझे एहसास होने लगा था कि वाकई में मुझसे ग़लती हो गई है। मुझे सबके सामने इस तरह का तमाशा नहीं करना चाहिए था।

"मैंने सुना है कि तुम पहले से अब काफी बदल गए हो।" ज्ञानेंद्र सिंह ने मुझे ख़ामोश देखा तो इस बार बड़ी शालीनता से कहा____"और एक अच्छे इंसान की तरह अपनी हर ज़िम्मेदारियां निभा रहे हो। एक वक्त था जब हम लोग दादा ठाकुर के सामने तुम्हारा ज़िक्र करते थे तो अक्सर उनका चेहरा मायूस हो जाया करता था किंतु पिछले कुछ समय से हमने यही देखा है कि तुम्हारा ज़िक्र होने पर उनके चेहरे पर खुशी और गर्व के भाव आ जाते हैं। अगर एक पिता अपने बेटे के लिए खुशी और गर्व महसूस करने लगे तो इसका मतलब ये होता है कि उन्हें दुनिया की हर खुशी मिल चुकी है। यानि अब उन्हें किसी चीज़ की हसरत नहीं है। ख़ैर, मैं रिश्ते में तुम्हारा चाचू हूं लेकिन तुम मुझे अपना दोस्त भी मान सकते हो। एक दोस्त के नाते मैं तुमसे यही कहूंगा कि इतना कुछ होने के बाद अब तुम ही दादा ठाकुर की एक मात्र उम्मीद हो। तुम भले ही उनके बेटे हो लेकिन तुमसे कहीं ज़्यादा उनके बारे में हम जानते हैं। हमने बचपन से दादा ठाकुर को लोगों की खुशी के लिए संघर्ष करते देखा है। मेरे भैया हमेशा मुझसे कहा करते हैं कि मैं दादा ठाकुर की तरह बनूं और हमेशा उनके नक्शे क़दम पर चलूं। ज़ाहिर है मेरे भैया भी समझते हैं कि दादा ठाकुर कितने महान इंसान हैं। हम सब उनके नक्शे क़दम पर चलने की कोशिश भले ही करते हैं लेकिन उनके जैसा बनना बिल्कुल भी आसान नहीं है। फिर भी इतना तो कर ही सकते हैं कि हमारे आचरण से किसी का अहित न हो बल्कि सबका भला ही हो।"

"मैं समझ गया चाचू कि आप क्या कहना चाहते हैं।" मैंने अधीरता से कहा____"यकीन कीजिए मैं भी अब ऐसा ही इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे एहसास है कि मैंने इसके पहले बहुत ग़लत कर्म किए थे जिसके चलते मेरे खानदान का नाम ख़राब हुआ और पिता जी को हमेशा मेरी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। अब सब कुछ भुला कर यही कोशिश कर रहा हूं कि मुझसे ग़लती से भी कोई ग़लत काम न हो।"

"बहुत बढ़िया।" ज्ञानेंद्र सिंह ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"और हां अपने गुस्से पर भी लगाम लगाए रखा करो। तुम्हारा गुस्सा दूर दूर तक मशहूर है। लोग तुम्हारे गुस्से से बहुत डरते हैं। इस लिए इस पर लगाम लगा के रखो।"

"कोशिश कर रहा हूं चाचू।" मैंने झेंपते हुए कहा____"मैंने काफी समय से किसी पर गुस्सा नहीं किया और ना ही किसी को बुरा भला कहा है। आज भी मैं गुस्सा ना होता अगर चंद्रकांत मेरे पिता जी पर तंज न कसता।"

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"देखो, हम हवेली पहुंच गए हैं। तुम जाओ आराम करो, मैं अब वापस जाऊंगा।"

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास जीप रुकी तो मैं उतर गया। ज्ञानेंद्र सिंह ने जीप को वापस मोड़ा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे पता है कि तुम हर जगह मशहूर हो लेकिन फिर भी एक नई पहचान के लिए लोगों से मिलना मिलाना बेहद ज़रूरी होता है। कभी समय निकाल कर आओ हमारे यहां।"

"बिल्कुल चाचू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ज़रूर आऊंगा। आख़िर अब आप मेरे चाचू के साथ साथ दोस्त भी तो बन गए हैं।"

मेरी बात सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह हल्के से हंसा और फिर जीप को आगे बढ़ा कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ पैदल चल पड़ा। ज्ञानेंद्र सिंह मुझे एक अच्छा इंसान प्रतीत हुआ था। वो विवाहित था किन्तु उम्र ज़्यादा नहीं हुई थी उसकी। शरीर काफी फिट था जिसके चलते उसकी उमर का पता नहीं चलता था। ख़ैर उसके बारे में सोचते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली के अंदर दाखिल हो गया।

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मेरी वजह से जो हंगामा हुआ था उसे जल्द ही सम्हाल लिया गया था और अब सब कुछ ठीक था। पिता जी के चेहरे पर अभी भी नाराज़गी दिख रही थी। ज़ाहिर है मेरी वजह से उन्हें एक बार फिर से शर्मिंदगी हुई थी। किसी को भी मुझसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी। ख़ैर जो होना था वो हो चुका था। महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत को फिर से अपने सामने बुला लिया था। इस वक्त वो अजीब सा चेहरा लिए खड़ा था।

"ठाकुर साहब को बचपन से जानते हुए भी तुम इनके बारे में ऐसे ख़याल रखते हो जोकि हैरत की बात है।" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारा जो भी मामला था उसे तुम दूसरे तरीके से भी बहुत अच्छी तरह सुलझा सकते थे। दूसरी बात ये भी है कि ग़लती सिर्फ ठाकुर साहब के बेटे की ही बस नहीं थी बल्कि तुम्हारे घर की औरतों की भी थी। तुमने अपने घर की औरतों को कुछ नहीं कहा और ना ही उनके ग़लत कर्मों के लिए उन्हें धिक्कारा। इसके बदले तुमने वो किया जो किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए था। अगर तुम्हें पता चल ही गया था कि तुम्हारे घर के मामले में वैभव भी शामिल है तो तुम्हें सीधा ठाकुर साहब से इस बारे में बात करनी चाहिए थी। इसके बाद भी अगर कोई हल न निकलता तो तुम्हारा ऐसा क़दम उठाना जायज़ कहलाता लेकिन नहीं, तुमने वो किया जिसके चलते ना जाने कितने लोगों की जानें चली गईं।"

चंद्रकांत अपराध बोझ से सिर झुकाए खड़ा रहा। उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था। चौगान में बैठे लोग सांसें रोके महेंद्र सिंह की बातें सुन रहे थे और साथ ही समझने की कोशिश कर रहे थे कि किसकी कहां ग़लती रही है?

"ख़ैर जो हो गया उसे तो अब लौटाया नहीं जा सकता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"लेकिन ये जो तुमने किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती। किंतु उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश ने तुम्हारी बहू के बारे में ऐसा क्या बताया था जिससे तुमने ये मान लिया कि तुम्हारी बहू ने ही रघुवीर की हत्या की है?"

"उसने मुझे बताया था कि मेरी बहू रजनी ने हाल ही में एक नए व्यक्ति से संबंध बना लिया था।" चंद्रकांत ने जबड़े भींच कर कहा____"वो व्यक्ति रजनी को हमेशा के लिए अपनी बना कर ले जाना चाहता था। रजनी भी इसके लिए तैयार थी। उस रात रजनी अपने उस नए आशिक़ के साथ भाग ही रही थी। उसने जब देखा कि मेरा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ है तो वो चुपके से अपना ज़रूरी समान ले कर घर से बाहर निकल आई थी। घर के बाहर उसका आशिक़ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। रजनी को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि ऐन वक्त पर मेरा बेटा उसके पीछे पीछे आ जाएगा। असल में मेरे बेटे को रात में पेशाब करने के लिए दो तीन बार बाहर जाना पड़ता था। उस रात भी वो पेशाब करने के लिए ही बाहर निकला था। कमरे में रजनी को न देख कर वो चौंका ज़रूर था किंतु उसने यही सोचा था कि शायद रजनी भी उसकी तरह बाहर लघुशंका करने गई होगी। ख़ैर जब मेरा बेटा बाहर आया तो उसने देखा कि उसकी बीवी अंधेरे में किसी के पास खड़ी थी और धीमी आवाज़ में बातें कर रही थी। रघुवीर फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा तो वो दोनों मेरे बेटे को देख कर बुरी तरह डर गए। इधर मेरा बेटा भी अपनी बीवी को रात के उस वक्त किसी गैर मर्द के साथ देख कर उछल पड़ा था। उसे समझने में देर न लगी कि रजनी अंधेरे में अपने आशिक़ के साथ क्या कर रही थी। मेरे बेटे को इतना गुस्सा आया कि उसने पहले तो रजनी को ज़ोर का धक्का दे कर दूर धकेला और फिर उसके आशिक़ को मारने लगा। रजनी इस सबसे बहुत ज़्यादा घबरा गई। उसे लगा कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए और लोगों को पता न चल जाए। उधर मेरा बेटा उसके आशिक़ की धुनाई करने में लगा हुआ था। रजनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? तभी उसकी नज़र वहीं कुछ ही दूरी पर पड़ी कुल्हाड़ी पर पड़ी। उसने झट से उस कुल्हाड़ी को उठा लिया और रघुवीर के क़रीब आ कर उसे धमकाया कि वो उसके आशिक़ को छोड़ दे वरना वो उस कुल्हाड़ी से उसका खून कर देगी। रघुवीर को लगा था कि रजनी सिर्फ उसे धमका रही है इस लिए उसने उसे गंदी गाली दे कर फिर से धक्का दे दिया और उसके आशिक़ को मारने लगा। अब तक इस सबके चलते थोड़ा शोर होने लगा था जिससे रजनी और भी ज़्यादा घबरा उठी थी। वो क्योंकि अपने आशिक़ के साथ नई दुनिया बसा लेना चाहती थी इस लिए उसने समय न ख़राब करते हुए आगे बढ़ कर मेरे बेटे पर उस कुल्हाड़ी से वार कर दिया। कुल्हाड़ी का वार सीधा रघुवीर की गर्दन पर लग गया। ऐसा इत्तेफ़ाक से ही हुआ था। रजनी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। रघुवीर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया और दर्द से तड़पने लगा। कुछ ही देर में उसका जिस्म एकदम से शांत पड़ गया। मेरा बेटा मर चुका था। जब रजनी और उसके आशिक़ को इस बात का आभास हुआ तो दोनों ही सन्न रह गए। रजनी का आशिक़ मेरे बेटे के इस तरह मर जाने से इतना डर गया कि वो वहां से फ़ौरन ही भाग गया। इधर रजनी की भी हालत ख़राब हो गई थी। उसने अपने जाते हुए आशिक़ को पुकारना चाहा मगर किसी के सुन लेने के डर से वो उसे पुकार ना सकी किंतु इतना उसे ज़रूर समझ आ गया था कि उसके आशिक़ ने उसे ऐसे वक्त पर धोखा दे दिया है। रजनी से वो हो गया था जिसे उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। काफी देर तक वो मेरे बेटे की लाश के पास बैठी रोती रही। फिर जैसे ही उसे हालात की गंभीरता का एहसास हुआ तो वो सोचने लगी कि अब वो क्या करे? वो जानती थी कि उससे बहुत बड़ा कांड हो गया है और जब इस बात का पता घर वालों को चलेगा तो वो कोई जवाब नहीं दे पाएगी। उसने आनन फानन में खून से सनी उस कुल्हाड़ी को फेंका और फिर अपना हुलिया ठीक कर के घर के अंदर आ गई। अपने कमरे में आ कर वो सोचने लगी कि इस गंभीर मुसीबत से बचने के लिए वो क्या करे? सारी रात उसने सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे अपने धोखेबाज आशिक़ पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से उसने इतना बड़ा क़दम उठाया था। तभी उसे रूपचंद्र का ख़याल आया। रूपचंद्र ने उसे पिछली शाम रास्ते में रोका था और उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती की थी जिसके जवाब में रजनी ने उसे खरी खोटी सुनाई थी। रजनी ने जब इस बारे में सोचा तो उसे अपने बचाव के लिए तरीका सूझ गया। सुबह जब हम सबको इस बात का पता चला तो हम सब रोने धोने लगे। रजनी भी हमारी तरह रोने धोने लगी थी। कुछ देर बाद उसने रोते हुए वही सब कहना शुरू कर दिया जो रात में उसने सोचा था। उसकी बात सुन कर मैं भी उसके फेर में आ गया था और फिर आगे क्या हुआ ये सब आप जानते ही हैं।"

इतना सब कुछ बताने के बाद चंद्रकांत चुप हुआ तो वातावरण में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी के साथ साथ महेंद्र सिंह और बाकी सब भी चकित भाव से उसकी तरफ देखे जा रहे थे।

"तो उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें ये सब बताया था जिसके बाद तुम्हें भी यकीन हो गया कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी बहू ने ही की है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर वाकई में ये सच है तो ये बड़े ही आश्चर्य की बात है कि अब तक हम में से किसी को इस बारे में पता तक नहीं चल सका। वैसे तुमने उस सफ़ेदपोश से पूछा नहीं कि उसे ये सब बातें कैसे पता थीं? आख़िर इतनी गहरी राज़ की बातें उसे कैसे पता चलीं? तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सफ़ेदपोश ने अपनी आंखों देखा हाल ही बताया था तुम्हें। अगर यही सच है तो सवाल उठता है कि उसने इस सबको रोका क्यों नहीं? क्यों अपनी आंखों के सामने तुम्हारे बेटे की हत्या हो जाने दी?"

चंद्रकांत, महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर बड़े अजीब भाव से देखने लगा उन्हें। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते हुए नज़र आने लगे थे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो बड़ी तेज़ी से कुछ सोचने समझने की कोशिश कर रहा हो।

"उस सफ़ेदपोश से और क्या बातें हुईं थी तुम्हारी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए चंद्रकांत से पूछा____"हमारा मतलब है कि उस सफ़ेदपोश ने तुम्हारे बेटे के हत्यारे के बारे में तुम्हें बताया तो बदले में क्या उसने तुमसे कुछ नहीं चाहा?"

"चाहा है।" चंद्रकांत बड़ी अजीब दुविधा लिए बोला____"कल रात उसने कहा था कि बदले में मुझे भी वही करना होगा जो वो करने को कहेगा मुझसे।"

"अच्छा।" महेंद्र सिंह ने कहा____"और क्या कहा था उसने?"

"यही कि आज रात वो किसी भी वक्त मुझसे मिलने आ सकता है।" चंद्रकांत ने कहा____"शायद अब वो मुझे कोई काम सौंपेगा जिसे मुझे करना होगा। उसने मुझे धमकी भी दी थी कि अगर मैं अपने वादे से मुकर गया तो ये मेरे और मेरे परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा।"

"बहुत खूब।" महेंद्र सिंह बोल पड़े____"फिर तो तुम्हें उसके लिए तैयार रहना चाहिए, है ना?"

चंद्रकांत अजीब सा मुंह बनाए खड़ा रह गया। उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी द्वंद से जूझ रहा है।

"ठाकुर साहब क्या लगता है आपको?" महेंद्र सिंह सहसा दादा ठाकुर से मुखातिब हुए____"क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो हम सोच रहे हैं?"

"हमें तो लगता है कि वो सफ़ेदपोश चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हौलनाक खेल खेल गया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"उसने चंद्रकांत को ऐसी कहानी सुनाई जिसे सच मान कर चंद्रकांत ने अपने हाथों अपनी ही बहू को बेटे की हत्यारिन मान कर मार डाला।"

"बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमें भी यही लगता है। सफ़ेदपोश को चंद्रकांत की मनोदशा का भली भांति एहसास था जिसका उसने फ़ायदा उठाया और फिर उसने वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।"

"सोचने वाली बात है कि रघुवीर की हत्या हुए इतने दिन गुज़र गए हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और अभी तक उस सफ़ेदपोश का कहीं अता पता नहीं था। अगर उसे चंद्रकांत से इतनी ही हमदर्दी थी तो उसने पहले ही चंद्रकांत के पास आ कर उसे ये क्यों नहीं बताया था कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है? इतने दिनों तक किस बात का इंतज़ार कर रहा था वो? ख़ैर ये तो थी एक बात, दूसरी सोचने वाली बात ये है कि ये सब बताने के पीछे सफ़ेदपोश का मकसद क्या था? क्या ये कि अपने बेटे के हत्यारे के बारे में जान कर चंद्रकांत उसकी जान ही ले ले? अगर यही सच है तो फिर उसे चंद्रकांत का हमदर्द नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपनी बहू की हत्या करने के बाद चंद्रकांत को कोई पुरस्कार तो नहीं मिलने वाला बल्कि सख़्त से सख़्त सज़ा ही मिलेगी।"

"सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"चंद्रकांत ने जो किया है उसके लिए तो इसे यकीनन सज़ा ही मिलेगी लेकिन अभी ये भी देखना है कि आगे क्या होता है? हमारा मतलब है कि सफ़ेदपोश ने आज रात चंद्रकांत से मिलने को कहा है तो देखते हैं ऐसा होता है कि नहीं।"

चंद्रकांत सारी बातें सुन रहा था और अब उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी रो देगा। बड़ी मुश्किल से खुद को रोके हुए था वो। चौगान में बैठे बाकी लोग सतब्ध से बैठे बातें सुन रहे थे।

"अगर आज रात वो सफ़ेदपोश सचमुच चंद्रकांत से मिलने आएगा तो यही समझा जाएगा कि उसकी बातों में अथवा ये कहें कि उसकी कहानी में कहीं न कहीं सच्चाई थी।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और अगर वो नहीं आया तो स्पष्ट हो जाएगा कि वो चंद्रकांत के साथ बड़ा ही हैरतंगेज खेल खेल गया है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"आगे की कार्यवाही कल की जाएगी चंद्रकांत। आज रात हम भी ये देखना चाहते हैं कि तुम्हारा वो हमदर्द सफ़ेदपोश अपनी कसौटी पर कितना खरा उतरता है।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर अभी खड़े ही हुए थे कि तभी चंद्रकांत आर्तनाद सा करता हुआ उनके पैरों में लोट गया। ये देख उनके साथ साथ बाकी उपस्थित लोग भी चौंक पड़े। उधर चंद्रकांत रोते बिलखते हुए कहता चला गया____"मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो रहा है कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है।"

"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने पीछे हटते हुए कहा____"तुमने जो किया है वो किसी भी सूरत में माफ़ी के लायक नहीं है। ख़ैर आज की कार्यवाही तो फिलहाल यहीं पर स्थगित कर दी गई है किंतु कल यहीं पर पंचायत लगेगी और इस मामले का फ़ैसला होगा। तब तक तुम भी देखो और हम भी देखते हैं कि तुम्हारा हमदर्द आज रात तुम्हारे लिए क्या सौगात ले कर आता है।"




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

KEKIUS MAXIMUS

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romanchak update .ye to ek aur naya kaand saamne aa gaya ki munshi ne apne bahu ko maut ke ghat utar diya wo bhi kisi anjan shaks ke kehne par ki rajni ne hi raghuveer ka khoon kiya hai ..
waise baat to sahi kahi thakur sahab ne ki us farishte ne kuch to aisa sabut diya hoga jisse chandrakant ko yakeen ho gaya ki rajni ne hi maara hai raghuveer ko .
 
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