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Incest ससुर ने ऑटो में जबरदस्ती मुठ मरवाई

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बस इसी तरह छेड़खानी में टाइम निकल रहा था. मैं कोई वासना की मारी औरत तो नहीं थी जो चुदवाने को मरी जा रही होऊं पर बाबूजी से छेड़छाड़ करने में मुझे भी मजा आ रहा था. कि किस तरह मेरे ससुर मुझे पटाने में लगे हुए हैं. एक औरत होने के नाते उनकी हरकतों से मेरे मन में भी कुछ कुछ हो रहा था. ना चाहते हुए भी मैं बाबूजी से खुद भी कुछ छेड़छाड़ करने लगी थी,
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वैसे भी मेरे पति को गए कई दिन हो गए थे. और मुझे भी सेक्स की जरूरत तो महसूस हो ही रही थी.

फिर शाम को बाबूजी सोफे पर बैठे थे और वो सोफा किचन के दरवाजे के बिल्कुल सामने ही थे। और मैं रसोई में खाना बना रही थी, मुझे पता था कि बाबूजी सामने हैं, तो मैं जान बुज कर अपनी गांड मटका रही थी। मुझे मालूम ही था कि बाबूजी का ध्यान टीवी पर कम और किचन में काम करती उन की सूंदर जवान बहु पर ज्यादा होगा. इसलिए उन को छेड़ने के लिए मैं भी अपनी गांड को मटका रही
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आज मैंने एक टाइट सी सलवार कमीज को पहना हुआ था. उस के नीचे मैंने जानबूज कर ब्रा नहीं पहनी थी. हाँ नीचे पैंटी जरूर पहन ली थी,

(आखिर पूरा नंगा होना भी ठीक नहीं था.)

मैं चाहती तो पूरे मन से नहीं थी पर इस सब से मुझे पूरा यकीन हो रहा था की बाबूजी ने अगर अपना पटाने का काम इसी तरह मुझ पर चालू रखा तो जल्दी ही बाबूजी मेरी नंगी चूत में अपना नंगा लण्ड घुसेड़ कर चोद रहे होंगे,

आज मैंने जान बूज कर ब्रा नहीं पहनी थी ताकि बाबूजी को मेरी हिलती हुई चूचीआं ठीक से दिखाई देती रहे। और मेरी पेंडुलम की तरह हिलती हुई छाती बाबूजी को ठीक से दिखाई दे जाये और बाबूजी भी मेरे ३६ इंच के मुम्मों के खूब प्यार से दर्शन कर रहे थे.
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मैं काम करते समय जान भूज कर बाबूजी की तरफ कम ही देखती थी ताकि बाबूजी को यह लगे की उनकी बहु का ध्यान तो काम पर ही है और वो प्यार से और बिना किसी डर के अपनी बहु की जवानी का चक्षु चोदन कर सकें. बाबूजी भी मेरे द्वारा दिए गए इस मौके का भरपूर लाभ उठा रहे थे और मेरी जवानी के मजे लूट रहे थे.

तो अभी भी बाबूजी सोफे पर बैठे थे और टीवी देखने का नाटक कर रहे थे पर असल में वो मेरी हिलती हुई चुचीऑ देख रहे थे और मैं भी जान भुज कर उन्हें जरूरत से ज्यादा हिला रही थी। ताकि बाबूजी को पूरा मजा आये.
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घर में हम तीन बच्चा, ससुर बहु ही तो थे और मेरा बेटा तो टीवी में ही मग्न था तो मैं और बाबूजी दोनों बिना किसी डर से लगे हुए थे.

मैंने पहले तो सोचा की दाल चावल बना लेती हूँ पर फिर सोचा की यदि आटा की रोटी बनाऊ तो आटा गूंधने के बहाने से बाबूजी को अपने हिलते मम्मे दिखा सकूंगी, तो मैंने आटा गूँधना शुरू कर दिया और बहाने से ज्यादा हिलना शुरु कर दिया.

अब मेरी छाती जोर जोर से इधर उधर हिल रही थी और बिना ब्रा होने के कारण बाबूजी को पूरा मजा दे रही थीं. और बाबूजी भी मौके का भरपूर लाभ उठाते हुए अपनी बहु की जवानी का रसास्वादन कर रहे थे.

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मुझे भी इस तरह खाना बनाने में खूब मजा आ रहा था.

बाबूजी का भी लौड़ा लोहे की तरह खड़ा हो चुका था जिसे वो अपनी लुंगी में हाथ डाल कर मसल रहे थे।

(हाँ जी आज बाबूजी ने अपना मनपसंद पजामा न पहन कर लुंगी पहनी थी, क्योंकि लुंगी में लौड़े को चुपके से अंदर हाथ डाल कर वो सहला सकते थे और किसी को पता भी नहीं लगता। )
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आज दिन में दूध पिलाने वाले बातचीत के बाद बाबूजी का होंसला भी बहुत बढ़ गया था. उन्हें मालूम हो गया था की उनकी बहु भी शायद अब इस सेक्स के खेल में पूरी तरह से शामिल ही और चुदवाने को तैयार है,

बाबूजी मुझे चोदना चाहते थे और मैं आधे मन से चुदवाने को तैयार थी ही, बस देर थी तो हमारे सामाजिक बंधनो के टूट जाने की, और मुझे लग रहा था की इस में भी अब ज्यादा देर नहीं है, खैर

काफी देर तक तो बाबूजी मेरी हिलती चूचियां देखते रहे और लुंगी के अंदर हाथ डाल कर अपना लौड़ा सहलाते रहे. पर कितनी देर ऐसा कर सकते थे.

आखिर बाबूजी के सबर का बंद टूट ही गया और वो उठ कर मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए, इतने पास थे कि मुझे उनकी साँसे अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थी, मैं एक बार तो डर ही गयी पर चुप रही कि देखते हैं कि बाबूजी क्या करते हैं और कितनी हिम्मत तक जा सकते हैं,

मैंने कुछ नहीं कहा और बाबूजी बोले कि आज मेरी बहुरानी क्या बना रही है।
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तो मैंने कहा कि दाल रोटी जो कि मेरे बाबूजी के पसंदीदा हैं।

तो वो खुश हो गए कि वाह मेरी पसंदीदा चीज़ बन रही है।
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तो मैने कहा कि हां जी. अब बाबूजी को भी लगा कि मैं उनसे बात करने में झिझक नहीं रही और उनके इतना पास खड़े होने से भी नाराज नहीं हूँ तो उन्होंने भी थोड़ा होंसला किया और मेरी पीठ के पास खिसक आये. और मुझे फिर भी कोई इतराज करते न देख कर उन्होंने धीरे से अपना अकड़ा हुआ लौड़ा मेरी पीठ से सटा दिया. उनके लण्ड का गर्म गर्म एहसास अपनी पीठ पर करते ही मेरी तो जैसे सांस ही रुक गयी. पर मैंने भी पूरी हिम्मत करी और उसी तरह खड़ी खड़ी आता गूंधती रही,

बाबूजी ने जब अपने लंड का थोड़ा सा दबाव मेरी पीठ पर डाला लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा तो उनकी हिम्मत और बढ़ गई और उन्होंने अपने लौड़े का पूरा दबाब मेरी गांड पर डाल दिया.
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बाबूजी का लण्ड लोहे की तरह सख्त हो चूका था. और बाबूजी ने थोड़ा हिल कर लौड़े को चूतड़ों से अब मेरी गांड की दरार में घुसा दिया और एक धक्का दे कर लौड़े को गांड की दरार में फंसा दिया.
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अब घर में हम दोनों ससुर बहु ही तो थे, तो इतनी भी क्या जल्दी थी, कोई आने वाला तो था नहीं, तो मैंने सोचा की थोड़ा छेड़खानी चलने देती हूँ.

तो मैंने थोड़े गुस्से से कहा कि बाबूजी आप क्या कर रहे हैं तो उन्होंने डर कर एक दम से अपनी कमर पीछे कर ली और लौड़ा मेरी गांड में से निकल गया.
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तो मैं डर गई कि कहीं वो चले ही ना जाएं, इसके लिए मैंने अपनी गांड को थोड़ा पीछे कर दिया ताकि उनको ये एहसास हो सके कि ये मेरा नकली गुस्सा है।

बाबूजी समझ गए और उन्होंने अपने लंड का दबाव फिर से और बड़ा दिया मेरी गांड पर,
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मुझे तो मजा आ रहा था और मैं तो खुद तैयार थी मजे करने को बस नखरे दिखा रही थी।

फिर जब मैंने कुछ नहीं कहा उन्हें तो बाबूजी मेरे से चिपक गए और अपने हाथ मेरी कमर के चारों ओर डाल कर मुझे पकड़ लिया.

और मेरी गर्दन पर चुंबन करने लगे। मुझे परम आनंद आ रहा था।

मैंने उनसे कहा कि आआह्ह्ह... बाबूजी लगता है आपको सासु माँ की बहुत याद आ रही है तो वो बोले कि तुम्हें कैसे पता तो मैंने कहा कि तभी आप मुझे तंग कर रहे हो तो वो बोले कि नहीं मुझे तो मेरी बहु तुमपे प्यार आ रहा है
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मैं:- हाँ मैं जानती हूँ यह आपका प्यार। आप अपनी बहु को कितना प्यार करते हैं मुझे मालूम है,

पाप:- अरे बहुरानी ऐसा क्यों बोलती हो. मैं तो तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. तुम्हे थोड़े ही न भूल सकता हूँ. तू तो मुझे बहुत प्यारी है,

कहते हुए बाबूजी ने मुझे कन्धों से पकड़ लिया और मेरी गर्दन पर चूमने लगे.

मुझे बहुत आनंद आ रहा था.

बाबूजी - हाय

मैं- बाबूजी क्या हुआ?

(अस्ल में मैंने अपने चूतड़ थोड़ा पीछे को धकेल दिए थे तो बाबूजी का लण्ड मेरी गांड में और अंदर घुस गया तो बाबूजी के मुंह से आनद से आह निकल गयी थी,)
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बाबूजी - अच्छा खाना में आज क्या बना रही हो?

मैं - रोटी दाल सब्जी दही आदि

बाबूजी - किस चीज़ की सब्जी??

मैं - बैगन की। आप को पसंद है??

बाबूजी - हाँ. क्या तुम्हे बैंगन पसंद हैं?

मैं - हाँ मुझे तो बहुत अच्छे लगते हैं.

बाबूजी - बैगन बहुत पसंद है और इसके इलावा और क्या क्या पसंद है?

मैं - बाबूजी मुझे खीरा भी पसंद है,
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बाबूजी - कैसा बैगन और खीरा पसंद है? बैंगन लम्बा चाहिए या मोटे वाला गोल?

मैं - बाबूजी खीरा तो मुझे लगभग ७-८ इंच लम्बा और लगभग ३-४ इंच मोटा पसंद है, पर मुझे गोल वाला बैंगन पसंद नहीं। बैंगन भी मुझे लम्बा ही चाहिए. ज्यादा मोटा और गोल बैंगन मुझे सूट नहीं करता.

बाबूजी - बैंगन अधिकतम कितने साइज़ तक ले लेती हो?

मैं -आप क्या बात कर रहे हो, क्या मतलब की मैं ले लेती हूँ. सब्जी बना के खा लेती हूँ बस।
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(बाबूजी ने दो अर्थी बात करी थी, ले लेती का मतलब चूत में लेना भी हो सकता था और बाजार से ले लेना भी, पर यह बात करते हुए बाबूजी शरारत से मुस्कुरा रहे थे तो उनका मतलब साफ़ ही था. मैं भी अब इस दो अर्थी बात में मजा ले रही थी,)

बाबूजी - बताओ ना प्लीज

मैं - नहीं

बाबूजी - मत बताओ जाओ

मैं - नाराज़ मत होइए।

बाबूजी - तो बताओ

मैं - बड़ी साइज़ का बैंगन और खीरा मुझे पसंद है,

बाबूजी - कितना

मैं - 7 इंच तक लम्बा चल जाता है,

बाबूजी - और मोटा?
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मैं-3 इंच, इस से छोटा हो तो मजा नहीं आता.

बाबूजी :- मजा नहीं आता क्या मतलब?

मैं :- (शरारत से मुस्कुराती हुई) मतलब सब्ज़ी अच्छी नहीं बनती, आप क्या समझ रहे हैं?

बाबूजी:- अच्छा तुम्हे सब्जी सूखी पसंद है या गीली?

मैं:- मुझे तो दोनों तरह की ठीक लगती है, आपको कैसी सब्जी पसंद है?

बाबूजी:- मुझे तो रसे वाली और गीली गीली ही चीज पसंद है (अब वो सब्जी ना बोल कर चीज बोल रहे थे जो दो अर्थी शब्द था). जब तक चीज गीली न हो जाये मुझे मजा नहीं आता. कई बार तो मैं सूखी होने पर उसे अपने मुंह से चूस कर गीली कर देता हूँ. गीली को तो चाट चाट कर खाने का मजा ही अलग है, तुम्हारा क्या ख्याल है बहु?
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(बाबूजी अब खुल कर दो अर्थी बातें कर रहे थे और उनका लौड़ा भी कसता जा रहा था जिसे वो बार बार मेरी चूतड़ों में घुसाने की कोशिश कर रहे थे.)

मैं :- चलो छोडो बाबूजी अब मुझे खाना बनाने दो.

बाबूजी को तो मजा आ रहा था वो चले कैसे जाते तो बात को चालू रखते हुए वो बोले

बाबूजी - (बात को घुमाते हुए) तुम्हारा पसंदीदा फल क्या है

मैं - केला और गन्ना और आपका बाबूजी ?
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बाबूजी - आम और तरबूज़

मैं:- मन कर रहा है क्या?

बाबूजी - आम खाने का मन कर रहा है, यदि खाने को न मिले तो चूसने में भी मुझे बड़ा मजा आता है.
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मैं- अभी कहा आम मिलेगा बाबूजी

बाबूजी - आम चूसने को न सही देखने को मिल जाए तो भी चलेगा

(यह कहते हुए उनकी नजरें मेरे मोटे मोटे मम्मों पर थी, जो ब्रा न पहनी होने के कारण उन्हें बहुत अच्छे से दिखाई दे रहे थे)

मैं - वैसे आपको कैसा आम पसंद है

बाबूजी - बड़े-बड़े आम पसंद है
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मैं- कचे या पक्के

बाबूजी - आंम तो जितना बड़ा हो उतना चूसने में मज़ा आता है??

मैं - बड़े साइज़ के आम या तरबूज़ संभाल लोगे बाबूजी ??

बाबूजी - मौका दो फिर पता लगेगा कि कैसे निचोड़ के रस पिता हूं आमों का. तुम्हे कैसे फल पसंद है सुषमा?

अब मैं भी बहुत गर्म हो चुकी थी. तो मैंने फिर बात थोड़ा घुमा दी.

मैं - मुझे बड़ा या मोटा केला बहुत पसंद है और बड़ा या मोटा गन्ना जिसका रस पूरा भरा हो.
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बाबूजी :-सुषमा ! मेरा केला खाना चाहोगी,

(मैं एकदम हैरान हो गयी कि यह तो बाबूजी ने सीधा ही लण्ड खाने को बोल दिया. तो मैंने उनकी तरफ देखा हैरानी से )

बाबूजी :- मेरा मतलब है मैं यदि बाजार से केला ले आऊं तो तुम खाना चाहोगी आज रात को?

मैं:- बाबूजी आप मुझे केला दो तो सही, में तो केला खाने को बहुत उत्सुक हूँ.
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इस तरह मैंने बाबूजी को साफ़ साफ़ इशारा दे दिया की मैं उनसे चुदने को तैयार हूँ. अब मैं औरत जात आखिर इस से ज्यादा और कितना खुल कर बोल सकती थी,

बाबूजी का लौड़ा मेरे यह कहते ही एकदम झटका मरने लगा.

मुझे लगा की कहीं अभी बाबूजी मुझे किचन में ही न चोद दें.

मैंने बात को घुमाते हुए फिर नाटक किया और बाबूजी को बोली।

"बाबूजी मेरे पेट पर खुजली हो रही है, मेरे हाथों में आटा लगा हुआ है, मैं अपनी पेट को खुजला नहीं सकती, आप प्लीज मेरे पेट पर थोड़ा खुजला दीजिये."
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बाबूजी ने अपने हाथ मेरे कन्धों से उतार कर मेरी कमीज के अंदर आगे की तरफ से डाले और मेरे नंगे पेट पर रखे.

बाबूजी के गर्म गर्म हाथ अपने नंगे पेट पर महसूस करते ही मेरी काम अग्नि और भड़क उठी,

बाबूजी धीरे धीरे मेरे पेट को सेहला रहे थे.

हम दोनों को अच्छा लग रहा था. मैंने बाबूजी को शरमाते हुए से कहा

"बाबूजी खुजली थोड़ा ऊपर हो रही है, थोड़ा ऊपर कीजिये "
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बाबूजी ने अपने हाथ थोड़ा ऊपर तक किये. अब उनके हाथ मेरी चूचियों से बस एक आध इंच ही दूर थे.

बाबूजी भी मेरी कमीज में देख सकते थे की मेरी चूचियों खूब हिल रही है और मैंने ब्रा नहीं पहनी,

तो बाबूजी अपना हाथ और ऊपर करने में थोड़ा झिझक रहे थे.

अब बात इतनी दूर तक आ गयी थी, तो यह तो मेरे लिए सुनहरी मौका था. मैंने सोच लिया कि जो होगा देखा जायेगा. छेड़खानी का मजा तो ले ही लेना चाहिए.

मैंने बाबूजी को फिर कहा

"अरे बाबूजी और ऊपर खुजली है,"

बाबूजी ने ज्यों ही अपने हाथ ऊपर को किये तो मेरी नंगी चूचियों बाबूजी के हाथ से टकरा गयी.
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चूचियों को बाबूजी का हाथ लगते ही मैं एकदम उछल पड़ी और मेरे उछलते ही मेरी दोनों नंगी चूचियों सीधे बाबूजी की हथेलियों में आ गयी, और बाबूजी ने भी एकदम अपनेआप अपने हाथ कस लिए.

अब मेरी दोनों चूचियों बाबूजी के हाथ में थी, बाबूजी ने भी मौके का फ़ायदा उठाते हुए, मेरी चूचियों को अपनी मुठी में भर लिया।
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एकदम से बाबूजी के हाथ में मेरे मम्मे आ गए तो अपने आप बाबूजी के हाथों ने मेरी मम्मों को सहला दिया. और खुदबखुद बाबूजी की उंगलिया मेरे मुम्मों के निप्पल पर आ गयी, इस से तो बाबूजी भी थोड़ा घबरा गए, क्योंकि उन्होंने जानबूझ कर तो मेरी चूचियां पकड़ी नहीं थी, वो तो मैंने ही उछल कर उनके हाथ में दे दी थी, वैसे भी उनमे अभी इतनी हिम्मत नहीं थी की सीधे ही अपनी बहु के मम्मे पकड़ लेते.
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(वास्तव में जब से मैंने बाबूजी को छेड़ना चालू किया था, तो यह पहली बार था की बाबूजी के हाथ में मेरी नंगी चूचियां थी, आज पहली बार बाबूजी ने मेरी नंगी छतिया दिन के उजाले मैं और हम दोनों के पूरे होशोहवास में पड़की थी,)

बाबूजी मेरे मम्मे छोड़ने ही वाले थे की मैंने एक सेक्सी सी आह भरी आवाज़ निकाली.
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बाबूजी को थोड़ा सा होंसला हुआ, की मैं नाराज़ नहीं हूँ.

तो बाबूजी ने भी हिम्मत करते हुए अपने हाथ पीछे नहीं किये और अपने हाथों में ही मेरी छातियों को पकडे रखा.

डर के कारण बाबूजी छातिओं को सेहला या दबा तो नहीं रहे थे पर बस उन पर हाथ रखे रहे.

मैंने बिना हिले जुले बाबूजी को कहा

"बाबूजी आपने मेरे पेट पर खुजली करनी थी पर आप ने तो मेरी नंगी छातियां ही पकड़ ली "
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यह कहते भी मैंने अपनी छातियाँ उनके हाथों में ही रहने दी. अब तक बाबूजी का भी होंसला पूरा बढ़ चूका था.

वो भी समझ गए थे कि चाहे यह घटना जानबूझ कर हुई हो या अनजाने में पर उनकी बहु नाराज़ तो बिलकुल नहीं है,

तो बाबूजी ने मेरी चूचियां धीरे धीरे सेहलनि और अपनी हथेली से दबानी शुरू कर दी,

मैंने भी कोई इतराज जैसा न किया और चुपचाप खड़ी बाबूजी से पहली बार नंगी चूचियां दबवाने का मजा लेती रही,

बाबूजी बातचीत को जारी रखते हुए बोले

"बहुरानी ! मैंने तुम्हारी छाती नहीं पकड़ी यह तो तुम्हारे उछलने से मेरे हाथों में आ गयी, और यह क्या है की तुम ब्रा नहीं पहनती हो?"
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बाबूजी को सब पता था कि मैंने ब्रा नहीं पहनी हुई है पर वो तो सिर्फ बातचीत का जरिया था.

मैं उसी तरह चुपचाप खड़ी रही और बाबूजी मेरी चूचियां धीरे धीरे सहलाते और हौले हौले मसलते रहे.

मुझे अपने बाबूजी से अपनी चूचियां मसलवाने में इतना आनंद आ रहा था की मेरी तो जैसे आनंद से आँखें ही बंद हो गयी,

अब बाबूजी ने भी होंसला करके अपनी उँगलियाँ मेरे निप्पलों के इर्द गिर्द कस ली और अपने अंगूठों और ऊँगली की मदद से मेरे निप्पलों को मसलना शुरू कर दिया.

मेरे मुंह से अपने आप आह आह की आवाज़ निकल गयी पर न तो मैंने अपनी चूचियां को छुड़ाने की कोई चेष्टा की और न ही बाबूजी ने मेरी चूचियां को छोड़ा।
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कहीं बाबूजी चूचियाँ मसलना छोड़ न दें तो मैंने बात को जारी रखते हुए कहा.

"बाबूजी गर्मी बहुत है. इसलिए मैं ब्रा नहीं पहनती.

बाबूजी कुछ बोले इतने में लाइट चली गयी. लाइट जाने से टीवी बंद हो गया और मेरे बेटे की आवाज़ आयी.

"मम्मी टीवी बंद हो गया."

वो उठ कर किचन में आने लगा। बाबूजी ने चरण एकदम से अपने हाथ मेरी कमीज से बाहर निकाल लिए.

आज जिंदगी में पहली बार मैंने अपने बेटे को मन ही मन गाली दी, शायद बाबूजी ने भी मन में कितनी गालियां मेरे बेटे को और बिजली विभाग को दी होंगी.

बेटा भी किचन में आ गया तो बाबूजी फ्रिज खोल कर पानी पीने का नाटक करने लगे. और फिर बाहर चले गए.

उन के चेहरे पर भरपूर मायूसी साफ़ दिखाई दे रही थी, जैसे किसी बिल्ली के आगे से मलाई से भरा हुआ कटोरा उठा लिया गया हो.

मैं भी मायूस थी, पर थोड़ी मन में तस्सल्ली भी थी, कि बात कहीं हाथ से बाहर ही न निकल जाती. और इस छेड़छाड़ का अंत न जाने कहाँ होता.

तो मैं भी एक ठंडी सांस ले कर किचन का अपना काम करने लगी.
Super Hot 🔥 and Amazing Update Bhai

Well-done 👍

Sasur Bahu ka Romance aur erotic andaaz awesome hai
 

Premkumar65

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ऐसे ही कुछ टाइम निकल गया. फिर शाम को हमने खाना खाया और बाबूजी टीवी देखने बैठ गए.
मेरा बेटा भी साथ में बैठ गया. बाबूजी ने मुझे पुकारा
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"सुषमा! आओ तुम भी हमारे पास बैठ कर टीवी देख लो. बड़ा अच्छा सीरियल आ रहा है."

मेरे बेटे ने भी आने को कहा पर मैं तो जानती थी कि यदि मैं बाबूजी के पास बैठ गयी तो बाबूजी शर्तिया कुछ ना कुछ शरारत करेंगे ही, मेरे पति बाहर थे और मेरे ससुर मेरे लिए लण्ड अकड़ाये घूम रहे थे. मैं तो बस किसी तरह वक़्त निकाल रही थी इसलिए मैंने मना कर दिया. और कहा

"बाबूजी! मुझे तो नींद आ रही है, आप ही टीवी देखिये. मैं तो सोने जा रही हूँ. मैं क्या आपको दूध दे दूं."

असल में बाबूजी रात में सोने से पहले दूध पीते थे.

बाबू जी ने तुरंत बात पकड़ ली , उनके होठों पर मुस्कान थे और शायद वो मैं मेरे उनको इस तरह पूछने पर खुश थे।

वो बोले -"हाँ बहु मैं तो कब से तुम्हारा दूध पीने को तैयार हूँ. मेरा बहुत मन है दूध पीने का."
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यह कहते हुए वे कमीनगी से मुस्कुरा रहे थे, अपने हाथ से अपना लौड़ा जो न जाने कब से मेरे लिए ही अकड़ कर खड़ा था को मसल रहे थे और उनकी नजरें मेरी छातियों पर ही थी. मैं समझ गयी की ससुर किस दूध को पीने की बात कर रहे हैं.

मुझे अंदर से अजीब सी अनुभूति हो रही थी. कहाँ मेरा पति था जो मुझे चोद भी नहीं पाता था अच्छी तरह और मुझ में कोई इंटरस्ट भी नहीं लेता था सिर्फ शराब में मस्त था. और यहाँ मेरे ससुर थे जिन का लण्ड मुझे देख कर ही खड़ा हो जाता था.
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पर वो मेरे ससुर थे , मेरे पिता समान, मुझे उन की ऐसी हरकतें बहुत अजीब और गलत लगती थी. पर मैं करती तो करती भी क्या?

मैं बात को घुमाती हुई बोली

"बाबूजी मुझे सोने जाना है, दूध गर्म करके ला दूँ?"

बाबूजी फिर मेरी चूँचियों को देखते हुए बोले,

"बहुरानी! अगर दूध ताजा हो तो गर्म करने की जरूरत ही नहीं होती, ताजा दूध ठंडा नहीं होता, उसे तो ऐसे ही पीने में मजा आता है. और मैं तो इस तरह दूध पीता हूँ की मुझसे ज्यादा तो दूध पिलाने वाले को अच्छा लगता है."
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बाबजुजी बात को बिलकुल ही साफ़ बोल रहे थे, हम दोनों ही जानते थे कि ताजा दूध तो मेरे मम्मों से ही मिल सकता है.

बाबूजी की सेक्सी बातें सुन कर मेरा भी मन खराब होने लगा. पर वो मेरे ससुर थे. अभी भी वो एक हाथ से अपने लौड़े को ही मसल रहे थे जैसे कोई खुजली कर रहे हों. बिलकुल बेशर्मों की तरह अपना लण्ड सेहला रहे थे मेरे सामने और उनकी आँखें मेरे मम्मों पर ही थी,
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मैं बात को घुमाते और अपनी जुबान में थोड़ा गुस्सा लाते बोली।

"बाबूजी! आप क्या बात कर रही हैं. इस समय ताजा दूध कहाँ से आएगा. दूध वाला तो सुबह ही दूध लाता है."

बाबूजी बोले

"बहुरानी! तुमने दूध पूछा तो मुझे लगा कि तुम मुझे ताजा दूध पिलाने की सोच रही हो.

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वैसे तुम जैसा चाहो वैसा दूध पीला दो. ताजा या बासी।"
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मैंने शुक्र किया की बाबूजी ने अभी कोई गलत बात नहीं बोली. इसलिए फिर पूछा

"बाबूजी आप गिलास में दूध लेंगे या कप में?"

अब यही पूछना मेरे लिए समस्या हो गयी. बाबूजी ने फिर बात को पकड़ लिया और शरारत से बोले

"सुषमा! तुम्हारी मर्जी है. जैसे तुम चाहो दूध पिला दो. मैं तो डायरेक्ट दूध वाले बर्तन पर मुंह लगा कर भी दूध पी लूँगा. तुम्हे भी अच्छा लगेगा कि कोई बर्तन भी धोना नहीं पड़ेगा, और मैं जितना दूध होगा दूध वाले बर्तन से सारा ही दूध चूस कर पी लूँगा. क्या ख्याल है."
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यह सब बातें करते हुए बाबूजी अपना लौड़ा पूरी बेशर्मी से मसल रहे थे. उनकी दुध चूस कर पीने वाली दो अर्थी बातों का मैं क्या जवाब देती.

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इधर मेरा बेटा जो टीवी देख रहा था, अब वो तो बच्चा था, उसको क्या मालूम उसकी माँ और दादा के बीच यह क्या बात हो रही है. हमारी बातों से उसका प्रोग्राम खराब हो रहा था तो बीच में बोला

"मम्मी! क्या शोर मचा रखा है. दूध दादाजी ने पीना है उनकी मर्जी. जैसे वो दूध पीना चाहते हैं पीला दो. आप दादाजी को किचन में ही ले जाओ और वहीँ पर उनको दूध पीला देना ,यहाँ मुझे टीवी देखने दो."

यह सुन कर बाबूजी की आँखों में चमक आ गयी, उनके लण्ड ने एक जोर का झटका मारा जो मुझे उनकी धोती में से भी साफ़ दिखाई दिया. वो मुस्कुराते हुए बोले

"बहुरानी! अब तो तुम्हारे बेटे ने भी इजाजत दे दी है. तो चलें किचन में, वहीँ चल कर मैं अच्छे से ताजा दूध पी लूँगा. तुम्हे भी जरूर अच्छा लगेगा."
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अब मैं क्या बोलती. बस ग़ुस्से से चुपचाप किचन में चली गयी और गिलास में दूध ला कर उनको दे दिया. बाबूजी कुछ बोलना चाहते थे पर मेरे चेहरे पास गुस्सा देख कर चुप ही रहे कि कहीं बात ही ना बिगड़ जाये.

मैं उन्हें दूध दे कर अपने कमरे में आ गयी. और कपडे बदलने लगी.

बड़ा अजीब सा लग रहा था. मैं आखिर थी तो एक औरत ही, जब भी कोई औरत देखती है कि कोई मर्द उस पर इस तरह लट्टू हो रहा है, तो चाहे वो जवान लड़की हो चाहे बूढी औरत, मन में तो उसे अच्छा लगता ही है, मैं भी अब 12 साल की ब्याहता औरत और 10 साल के बचे की माँ, एक अधेड़ औरत थी, पर मन में एक अजीब सी ख़ुशी थी कि आज भी मैं इतनी सुन्दर और आकर्षक हूँ कि मेरा अपना ससुर ही मुझ पर फ़िदा है और मुझे चोदने को कितना उत्सुक है.
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मैंने बदलने के लिए अपने कपडे उतारे तो मैंने देखा कि मेरी चूचियों पर निप्पल कस गए थे और टाइट हो गए थे.

अपने आप ही मेरा हाथ अपनी चूत पर चला गया तो मैंने पाया कि मेरी चूत पूरी गीली हो गयी थी, मुझे बड़ा अजीब लगा कि मैं चाहे अपने ससुर से कोई गलत सम्बन्ध नहीं बनाना चाहती पर फिर भी उनकी दो अर्थी बातों से ही मेरी चूत में पानी आ गया है,
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मैं बिस्तर पर लेट गयी और आज पहली बार अपने पति की जगह, अपने ससुर के बारे में सोचते कि वो कितने दमदार होंगे, या उनका लौड़ा कितना बड़ा होगा, यह सब सोचते सोचते ही मुझे ना जाने कब नींद आ गयी.

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Ahhhh very very sexy update.
 

Premkumar65

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अगले दिन दोपहर को हम घर में बैठे थे, बाबूजी और बेटा टीवी देख रहे थे. मेरा मन उनके पास बैठने का बिलकुल नहीं था, क्योंकि बाबूजी मुझे बड़े अजीब ढंग से देखते थे और मेरे शरीर पर ही ध्यान रखते थे. मुझे यह सब ठीक नहीं लगता था. इसलिए मैं अपने कमरे में ही बैठी कुछ काम कर रही थी. थोड़ी देर बाद पता नहीं मुझे क्या हुआ कि मन कर रहा था कि मैं किसी बहाने से जा कर बाबूजी के पास बैठ जाऊँ, आखिर थी तो मैं एक औरत ही, कहीं ना कहीं मुझे भी अच्छा लगता था कि एक मर्द मेरे ऊपर इस तरह लट्टू है.
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कहीं दिल में था कि बाबूजी मुझे किसी बहाने से छेड़ें और वो मुझे अंदर ही अंदर अच्छा लगता था. पर अब मैं बैठी तो अपने कमरे में थी, तो किस मुंह से खुद जा कर उनके पास बैठ जाओं. मन बाबूजी के पास जाने का हो रहा था. जब वो मुझे देखते हुए अपना मोटा सा लण्ड मसलते थे तो एक अजीब सी एहसास होता था.
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तभी गली में एक आइसक्रीम वाले की आवाज आई. मेरा बेटा तो आइसक्रीम का बहुत शौकीन है. मैं भी आइसक्रीम तो खुश होकर खाती हूँ. बाबूजी को भी यह पता है. आइसक्रीमवाले की आवाज सुन कर शायद मेरे बेटे ने बाबूजी से आइसक्रीम खाने के लिए कहा. बाबूजी को भी मुझे बुलाने का बहाना मिल गया. उन्होंने मुझे जोर से आवाज दी

"सुषमा! बहुरानी आओ आइसक्रीम वाला आया है, रोहित (मेरा बेटा) भी आइसक्रीम लेने लगा है. तुम भी आओ और आइसक्रीम लेलो."
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मुझे आइसक्रीम से ज्यादा ख़ुशी बाबूजी की आवाज से हुई. मैं उठ कर बहार आ गयी.

बाबूजी ने सब के लिए आइसक्रीम ली. बेटे ने कुल्फी ली और जा कर टीवी के आगे बैठ कर टीवी देखने और कुल्फी खाने लगा.

मैंने आइसक्रीम का डिब्बा लिया.

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बाबूजी ने मुझे कहा

"बहुरानी! यह तुम ने क्या ले लिया. मैं तो तुम्हे एक बड़ी सी चॉकोबार खिलाना चाहता हूँ. यह आइसक्रीम तो मुझे पसंद है."

चॉकोबार कहते हुए बाबूजी मेरी आंखो में आंखे डाल कर एक हाथ से अपना लौड़ा सहलाने लगे. उनका लौड़ा तो मुझे देख कर ही खड़ा होने लग गया था.
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मैं समज गहि कि बाबूजी किस चॉकोबार को मुझे खिलाने की बात कर रहे थे. मैं शर्मा गयी और कुछ नहीं बोली. बाबूजी कहाँ चुप रहने वाले थे वो फिर मुझे छेड़ते हुए बोलने लगे

"सुषमा! मैं तो तुम्हे बड़ा सा चॉकोबार चूसने को देना चाहता हूँ. औरतों को कुल्फी या आइसक्रीम की बजाए चॉकोबार ज्यादा अच्छा लगता है. तुम्हारी सास को भी मैं रोज चॉकोबार ही चूसने को देता था और वो रोज बड़े मजे से चॉकोबार लेती थी. एक दिन भी वो इसके बिना नहीं रहती थी. तुम्हारी सास तो जब तक पूरी चॉकोबार को मुंह में पूरा अंदर ले कर न चूस ले उसे तो नींद ही नहीं आती थी. तुम यह आइसक्रीम छोडो और एक बार चॉकोबार चूस कर देखो."
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उनकी आँखों की शरारत और एक हाथ से लण्ड सहलाने से यह तो साफ़ था कि बाबूजी मुझे अपनी चोकोबार चुसवाना चाहते हैं. बाबूजी की दो अर्थी बातों से मुझे भी कुछ कुछ अच्छा लगने लगा था. साला बुड्ढा जरा सा मौका मिलते ही दो अर्थी बातें शुरू कर देता है और उसका लण्ड भी देखो कैसे एकदम से अकड़ जाता है. मेरे शराबी पति का लौड़ा तो कितनी देर लगा कर खड़ा होता था.
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पर मैं बाबूजी की बातों का क्या जवाब देती. पर थोड़ा शरारत करते और मजा लेते मैं बोली

"बाबूजी! आपका बेटा (मेरा पति) तो मुझे कभी चॉकोबार नहीं देता. कभीकभार मुझे चॉकोबार चूसने को देते हैं पर छोटी सी चॉकोबार 2 मिनट में ही मुंह में पिघल जाती है. बिलकुल मजा नहीं आता. सासुमां को क्या आइसक्रीम पसंद नहीं थी?, जो आप उसे चॉकोबार देते थे?"
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अब मैं भी उनकी दो अर्थी बातों में आनंद ले रही थी, मेरी आँखों में जो शरारत की एक चमक थी उस से बाबूजी समज गए कि मैं मजे ले रही हूँ और नाराज नहीं हूँ. उधर मेरा बेटा तो अपनी कुल्फी और टीवी में ही मस्त था. तो वो भी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले

"अरे बेटी! तुम्हारी सास को तो चॉकोबार ही अच्छी लगती थी. और मैं भी उसे छोटी सी नहीं बल्कि बढ़िया और कम से कम 8 इंच बड़ी और ४ इंच मोटी बड़ी सी चॉकोबार चूसने को देता था.

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तुम्हारी सास मजे ले ले कर चूसती थी, वो तो पूरी चॉकोबार को मुंह में ले लेती थी, इतनी मोटी चॉकोबार चूसने के लिए उसे पूरा मुंह खोलना पड़ता था. वो कम से कम 20 मिनट तक जोर जोर से चूसती थी तब कहीं चॉकोबार उसके मुंह में पिघल कर रस छोड़ती थी."
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बाबूजी ने अपने लौड़े का साइज इशारे से बता दिया था. मेरे पति का लंड तो मुश्किल से 5 इंच का था और इतना मोटा भी नहीं था. मुझे बाबूजी के अपने लण्ड को सहलाने से इतना तो आईडिया था कि उनका लौड़ा मेरे पति से बड़ा है पर उनका साइज इतना बड़ा है तो मैं तो हैरान ही हो गयी, और मेरे मुंह से अपने आप निकल गया
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"बाबूजी इतना बड़ा? हे राम. सासुमा कैसे मुंह में ले पाती होंगी इतनी बड़ी चॉकोबार? और 20 मिनट तक चूसती थी, उन्हें तो बहुत मजा आता होगा. आप झूठ बोल रहे हैं."

मेरे थोड़ा खुलने से बाबूजी भी खुश हो गए और बोले

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"लो. मैं कोई तुमसे झूठ थोड़े ही बोलूंगा. तुम जब चाहो तब मैं तुम्हे भी चॉकोबार चुसवा दूंगा. तुम एक बार हाँ तो करो. तुम्हारी सास को चॉकोबार बहुत अच्छा लगती थी, तुम्हे भी बहुत पसंद आएगी. जब तुम्हारी सास चॉकोबार चूसती थी तो मैं आइसक्रीम चाटता था."
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मैं भी अब थोड़ा खुल कर बोलने लगी थी, मैंने कहा

"आप को आइसक्रीम पसंद है? बाबूजी?"
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बाबूजी मेरी आँखों में आँखें डालते और उसी तरह अपने लण्ड को खुजलाते बोले

"हाँ बहुरानी ! मैं तो आइसक्रीम चाटता था. कई बार पहले तुम्हारी सास चॉकोबार चूसती और फिर मैं आइसक्रीम चाटता था और कई बार हम इकठे ही करते यानि उधर जब वो चॉकोबार चूसती तो इधर मैं आइसक्रीम चाट ता था.

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मैं तो सदा आइसक्रीम में पूरी जीभ घुसा कर चाटता था. आइसक्रीम चाटने का तो मजा ही तब है जब पूरी जीभ आइसक्रीम के अंदर डाल दी हो और खूब अच्छी तरह से चाट चाट कर खाया जाए. अक्सर मेरा मुंह नाक और होंठ आइसक्रीम के रस से भर जाते थे,
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पर मैं अच्छी तरह से ही आइसक्रीम चाट ता था. मेरे गीले मुंह को देख कर तुम्हारी सास हंसती थी पर उसे भी मेरा आइसक्रीम चाटना बहुत पसंद था. मैं तो तब तक आइसक्रीम चाटता रहता था, जब तक सारी आइसक्रीम ख़तम न हो जाये. तुम्हारा पति भी तो ऐसे ही आइसक्रीम खाता होगा ना ?"
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बात चीत बहुत मादक और सेक्सी हो गयी थी, मेरी चूत से पानी चू रहा था. लगता था मेरा पानी चूत से बाहर बह कर मेरी टांगों पर आ रहा था. मन कर रहा था कि अपनी चूत जोर से खुजला लू और उसमे ऊँगली डाल लूँ पर सामने ससुर जी खड़े थे.
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हम दोनों ही कोई बच्चे तो थे नहीं तो दोनों को क्लियर था कि किस चॉकोबार और किस आइसक्रीम की बात हो रही है. अब सरेआम उन्होंने मुझसे मेरी चूत की चटवाई का पूछ लिया तो मैं भी अपना दुःख उन्हें बतलाते हुए बोली
"बाबूजी! क्या बताऊँ आपके बेटे को तो आइसक्रीम चाटना बिलकुल भी पसंद नहीं है. जैसे आप बता रहे हैं उन्होंने तो कभी भी इस तरह आइसक्रीम नहीं खाई."
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बाबूजी गुस्सा दिखाते बोले

"पागल है साला. आइसक्रीम चाटना तो उसका फर्ज बनता है, उसकी जगह मैं होता तो रोज तुम्हे चॉकोबार चूसने को देता और रोज जी भर के आइसक्रीम चाटता। कोई बात नहीं तुम चाहो तो मैं तुम्हारी यह कमी पूरी कर दूंगा."

बाबूजी ने अब खुले रूप से मुझे लण्ड चूसने और अपनी चूत चटवाने का इशारा कर दिया था.
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मुझे बहुत शर्म आ रही थी, मैं बोलती तो बोलती भी क्या?

बस चुप चाप मुस्कुराती खड़ी रही और बाबूजी के हाथ से चॉकोबार पकड़ कर अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी और अपने हाथ की आइसक्रीम का डिब्बा उन्हें दे दिया. बाबूजी ने जब मुझे चॉकोबार चूसते देखा तो उनके चेहरे पर ख़ुशी की चमक आ गयी. वो समझ गए की इशारे से उनकी बहु ने उनकी चॉकोबार (लौड़ा) चूसने की हामी भर ली है,
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बाबूजी ने भी तुरंत आइसक्रीम का डिब्बा खोला और अपनी पूरी जीभ उसमे घुसेड़ दी और जीभ को आइसक्रीम में घुमा घुमा कर चाटने लगे. आइसक्रीम चाटते हुए उनकी आँखें मेरे चेहरे पर ही टिकीं थी, मानो वो मुझे समझा रहे हो कि इस तरह वो मेरी चूत में पूरी जीभ डाल कर उसे चाटना चाहते हैं.
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शर्म से मेरा मुंह लाल हो गया था. मुझ से अब बाबूजी के सामने खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. मैं चुपचाप चॉकोबार चूसती हुई और बाबूजी को देख कर मुस्कुराती हुई अपने कमरे की ओर भाग गयी और दौड़ कर कमरे में चली गयी और अंदर जा कर कमरा बंद कर लिया..
मेरा सारा बदन कामुकता से कांप रहा था. मेरी सांस धौकनी जैसे चल रही थी, काफी देर बैठ कर मैंने अपने आप को संयत किया और लेट गयी.

सारी रात मुझे बाबूजी के ही सपने आते रहे.
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Wowww kya mast conversation hai Bahu sur sasur me. Mazaaa aa gaya.
 

Premkumar65

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बस इसी तरह छेड़खानी में टाइम निकल रहा था. मैं कोई वासना की मारी औरत तो नहीं थी जो चुदवाने को मरी जा रही होऊं पर बाबूजी से छेड़छाड़ करने में मुझे भी मजा आ रहा था. कि किस तरह मेरे ससुर मुझे पटाने में लगे हुए हैं. एक औरत होने के नाते उनकी हरकतों से मेरे मन में भी कुछ कुछ हो रहा था. ना चाहते हुए भी मैं बाबूजी से खुद भी कुछ छेड़छाड़ करने लगी थी,
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वैसे भी मेरे पति को गए कई दिन हो गए थे. और मुझे भी सेक्स की जरूरत तो महसूस हो ही रही थी.

फिर शाम को बाबूजी सोफे पर बैठे थे और वो सोफा किचन के दरवाजे के बिल्कुल सामने ही थे। और मैं रसोई में खाना बना रही थी, मुझे पता था कि बाबूजी सामने हैं, तो मैं जान बुज कर अपनी गांड मटका रही थी। मुझे मालूम ही था कि बाबूजी का ध्यान टीवी पर कम और किचन में काम करती उन की सूंदर जवान बहु पर ज्यादा होगा. इसलिए उन को छेड़ने के लिए मैं भी अपनी गांड को मटका रही
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आज मैंने एक टाइट सी सलवार कमीज को पहना हुआ था. उस के नीचे मैंने जानबूज कर ब्रा नहीं पहनी थी. हाँ नीचे पैंटी जरूर पहन ली थी,

(आखिर पूरा नंगा होना भी ठीक नहीं था.)

मैं चाहती तो पूरे मन से नहीं थी पर इस सब से मुझे पूरा यकीन हो रहा था की बाबूजी ने अगर अपना पटाने का काम इसी तरह मुझ पर चालू रखा तो जल्दी ही बाबूजी मेरी नंगी चूत में अपना नंगा लण्ड घुसेड़ कर चोद रहे होंगे,

आज मैंने जान बूज कर ब्रा नहीं पहनी थी ताकि बाबूजी को मेरी हिलती हुई चूचीआं ठीक से दिखाई देती रहे। और मेरी पेंडुलम की तरह हिलती हुई छाती बाबूजी को ठीक से दिखाई दे जाये और बाबूजी भी मेरे ३६ इंच के मुम्मों के खूब प्यार से दर्शन कर रहे थे.
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मैं काम करते समय जान भूज कर बाबूजी की तरफ कम ही देखती थी ताकि बाबूजी को यह लगे की उनकी बहु का ध्यान तो काम पर ही है और वो प्यार से और बिना किसी डर के अपनी बहु की जवानी का चक्षु चोदन कर सकें. बाबूजी भी मेरे द्वारा दिए गए इस मौके का भरपूर लाभ उठा रहे थे और मेरी जवानी के मजे लूट रहे थे.

तो अभी भी बाबूजी सोफे पर बैठे थे और टीवी देखने का नाटक कर रहे थे पर असल में वो मेरी हिलती हुई चुचीऑ देख रहे थे और मैं भी जान भुज कर उन्हें जरूरत से ज्यादा हिला रही थी। ताकि बाबूजी को पूरा मजा आये.
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घर में हम तीन बच्चा, ससुर बहु ही तो थे और मेरा बेटा तो टीवी में ही मग्न था तो मैं और बाबूजी दोनों बिना किसी डर से लगे हुए थे.

मैंने पहले तो सोचा की दाल चावल बना लेती हूँ पर फिर सोचा की यदि आटा की रोटी बनाऊ तो आटा गूंधने के बहाने से बाबूजी को अपने हिलते मम्मे दिखा सकूंगी, तो मैंने आटा गूँधना शुरू कर दिया और बहाने से ज्यादा हिलना शुरु कर दिया.

अब मेरी छाती जोर जोर से इधर उधर हिल रही थी और बिना ब्रा होने के कारण बाबूजी को पूरा मजा दे रही थीं. और बाबूजी भी मौके का भरपूर लाभ उठाते हुए अपनी बहु की जवानी का रसास्वादन कर रहे थे.

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मुझे भी इस तरह खाना बनाने में खूब मजा आ रहा था.

बाबूजी का भी लौड़ा लोहे की तरह खड़ा हो चुका था जिसे वो अपनी लुंगी में हाथ डाल कर मसल रहे थे।

(हाँ जी आज बाबूजी ने अपना मनपसंद पजामा न पहन कर लुंगी पहनी थी, क्योंकि लुंगी में लौड़े को चुपके से अंदर हाथ डाल कर वो सहला सकते थे और किसी को पता भी नहीं लगता। )
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आज दिन में दूध पिलाने वाले बातचीत के बाद बाबूजी का होंसला भी बहुत बढ़ गया था. उन्हें मालूम हो गया था की उनकी बहु भी शायद अब इस सेक्स के खेल में पूरी तरह से शामिल ही और चुदवाने को तैयार है,

बाबूजी मुझे चोदना चाहते थे और मैं आधे मन से चुदवाने को तैयार थी ही, बस देर थी तो हमारे सामाजिक बंधनो के टूट जाने की, और मुझे लग रहा था की इस में भी अब ज्यादा देर नहीं है, खैर

काफी देर तक तो बाबूजी मेरी हिलती चूचियां देखते रहे और लुंगी के अंदर हाथ डाल कर अपना लौड़ा सहलाते रहे. पर कितनी देर ऐसा कर सकते थे.

आखिर बाबूजी के सबर का बंद टूट ही गया और वो उठ कर मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए, इतने पास थे कि मुझे उनकी साँसे अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थी, मैं एक बार तो डर ही गयी पर चुप रही कि देखते हैं कि बाबूजी क्या करते हैं और कितनी हिम्मत तक जा सकते हैं,

मैंने कुछ नहीं कहा और बाबूजी बोले कि आज मेरी बहुरानी क्या बना रही है।
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तो मैंने कहा कि दाल रोटी जो कि मेरे बाबूजी के पसंदीदा हैं।

तो वो खुश हो गए कि वाह मेरी पसंदीदा चीज़ बन रही है।
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तो मैने कहा कि हां जी. अब बाबूजी को भी लगा कि मैं उनसे बात करने में झिझक नहीं रही और उनके इतना पास खड़े होने से भी नाराज नहीं हूँ तो उन्होंने भी थोड़ा होंसला किया और मेरी पीठ के पास खिसक आये. और मुझे फिर भी कोई इतराज करते न देख कर उन्होंने धीरे से अपना अकड़ा हुआ लौड़ा मेरी पीठ से सटा दिया. उनके लण्ड का गर्म गर्म एहसास अपनी पीठ पर करते ही मेरी तो जैसे सांस ही रुक गयी. पर मैंने भी पूरी हिम्मत करी और उसी तरह खड़ी खड़ी आता गूंधती रही,

बाबूजी ने जब अपने लंड का थोड़ा सा दबाव मेरी पीठ पर डाला लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा तो उनकी हिम्मत और बढ़ गई और उन्होंने अपने लौड़े का पूरा दबाब मेरी गांड पर डाल दिया.
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बाबूजी का लण्ड लोहे की तरह सख्त हो चूका था. और बाबूजी ने थोड़ा हिल कर लौड़े को चूतड़ों से अब मेरी गांड की दरार में घुसा दिया और एक धक्का दे कर लौड़े को गांड की दरार में फंसा दिया.
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अब घर में हम दोनों ससुर बहु ही तो थे, तो इतनी भी क्या जल्दी थी, कोई आने वाला तो था नहीं, तो मैंने सोचा की थोड़ा छेड़खानी चलने देती हूँ.

तो मैंने थोड़े गुस्से से कहा कि बाबूजी आप क्या कर रहे हैं तो उन्होंने डर कर एक दम से अपनी कमर पीछे कर ली और लौड़ा मेरी गांड में से निकल गया.
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तो मैं डर गई कि कहीं वो चले ही ना जाएं, इसके लिए मैंने अपनी गांड को थोड़ा पीछे कर दिया ताकि उनको ये एहसास हो सके कि ये मेरा नकली गुस्सा है।

बाबूजी समझ गए और उन्होंने अपने लंड का दबाव फिर से और बड़ा दिया मेरी गांड पर,
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मुझे तो मजा आ रहा था और मैं तो खुद तैयार थी मजे करने को बस नखरे दिखा रही थी।

फिर जब मैंने कुछ नहीं कहा उन्हें तो बाबूजी मेरे से चिपक गए और अपने हाथ मेरी कमर के चारों ओर डाल कर मुझे पकड़ लिया.

और मेरी गर्दन पर चुंबन करने लगे। मुझे परम आनंद आ रहा था।

मैंने उनसे कहा कि आआह्ह्ह... बाबूजी लगता है आपको सासु माँ की बहुत याद आ रही है तो वो बोले कि तुम्हें कैसे पता तो मैंने कहा कि तभी आप मुझे तंग कर रहे हो तो वो बोले कि नहीं मुझे तो मेरी बहु तुमपे प्यार आ रहा है
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मैं:- हाँ मैं जानती हूँ यह आपका प्यार। आप अपनी बहु को कितना प्यार करते हैं मुझे मालूम है,

पाप:- अरे बहुरानी ऐसा क्यों बोलती हो. मैं तो तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. तुम्हे थोड़े ही न भूल सकता हूँ. तू तो मुझे बहुत प्यारी है,

कहते हुए बाबूजी ने मुझे कन्धों से पकड़ लिया और मेरी गर्दन पर चूमने लगे.

मुझे बहुत आनंद आ रहा था.

बाबूजी - हाय

मैं- बाबूजी क्या हुआ?

(अस्ल में मैंने अपने चूतड़ थोड़ा पीछे को धकेल दिए थे तो बाबूजी का लण्ड मेरी गांड में और अंदर घुस गया तो बाबूजी के मुंह से आनद से आह निकल गयी थी,)
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बाबूजी - अच्छा खाना में आज क्या बना रही हो?

मैं - रोटी दाल सब्जी दही आदि

बाबूजी - किस चीज़ की सब्जी??

मैं - बैगन की। आप को पसंद है??

बाबूजी - हाँ. क्या तुम्हे बैंगन पसंद हैं?

मैं - हाँ मुझे तो बहुत अच्छे लगते हैं.

बाबूजी - बैगन बहुत पसंद है और इसके इलावा और क्या क्या पसंद है?

मैं - बाबूजी मुझे खीरा भी पसंद है,
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बाबूजी - कैसा बैगन और खीरा पसंद है? बैंगन लम्बा चाहिए या मोटे वाला गोल?

मैं - बाबूजी खीरा तो मुझे लगभग ७-८ इंच लम्बा और लगभग ३-४ इंच मोटा पसंद है, पर मुझे गोल वाला बैंगन पसंद नहीं। बैंगन भी मुझे लम्बा ही चाहिए. ज्यादा मोटा और गोल बैंगन मुझे सूट नहीं करता.

बाबूजी - बैंगन अधिकतम कितने साइज़ तक ले लेती हो?

मैं -आप क्या बात कर रहे हो, क्या मतलब की मैं ले लेती हूँ. सब्जी बना के खा लेती हूँ बस।
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(बाबूजी ने दो अर्थी बात करी थी, ले लेती का मतलब चूत में लेना भी हो सकता था और बाजार से ले लेना भी, पर यह बात करते हुए बाबूजी शरारत से मुस्कुरा रहे थे तो उनका मतलब साफ़ ही था. मैं भी अब इस दो अर्थी बात में मजा ले रही थी,)

बाबूजी - बताओ ना प्लीज

मैं - नहीं

बाबूजी - मत बताओ जाओ

मैं - नाराज़ मत होइए।

बाबूजी - तो बताओ

मैं - बड़ी साइज़ का बैंगन और खीरा मुझे पसंद है,

बाबूजी - कितना

मैं - 7 इंच तक लम्बा चल जाता है,

बाबूजी - और मोटा?
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मैं-3 इंच, इस से छोटा हो तो मजा नहीं आता.

बाबूजी :- मजा नहीं आता क्या मतलब?

मैं :- (शरारत से मुस्कुराती हुई) मतलब सब्ज़ी अच्छी नहीं बनती, आप क्या समझ रहे हैं?

बाबूजी:- अच्छा तुम्हे सब्जी सूखी पसंद है या गीली?

मैं:- मुझे तो दोनों तरह की ठीक लगती है, आपको कैसी सब्जी पसंद है?

बाबूजी:- मुझे तो रसे वाली और गीली गीली ही चीज पसंद है (अब वो सब्जी ना बोल कर चीज बोल रहे थे जो दो अर्थी शब्द था). जब तक चीज गीली न हो जाये मुझे मजा नहीं आता. कई बार तो मैं सूखी होने पर उसे अपने मुंह से चूस कर गीली कर देता हूँ. गीली को तो चाट चाट कर खाने का मजा ही अलग है, तुम्हारा क्या ख्याल है बहु?
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(बाबूजी अब खुल कर दो अर्थी बातें कर रहे थे और उनका लौड़ा भी कसता जा रहा था जिसे वो बार बार मेरी चूतड़ों में घुसाने की कोशिश कर रहे थे.)

मैं :- चलो छोडो बाबूजी अब मुझे खाना बनाने दो.

बाबूजी को तो मजा आ रहा था वो चले कैसे जाते तो बात को चालू रखते हुए वो बोले

बाबूजी - (बात को घुमाते हुए) तुम्हारा पसंदीदा फल क्या है

मैं - केला और गन्ना और आपका बाबूजी ?
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बाबूजी - आम और तरबूज़

मैं:- मन कर रहा है क्या?

बाबूजी - आम खाने का मन कर रहा है, यदि खाने को न मिले तो चूसने में भी मुझे बड़ा मजा आता है.
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मैं- अभी कहा आम मिलेगा बाबूजी

बाबूजी - आम चूसने को न सही देखने को मिल जाए तो भी चलेगा

(यह कहते हुए उनकी नजरें मेरे मोटे मोटे मम्मों पर थी, जो ब्रा न पहनी होने के कारण उन्हें बहुत अच्छे से दिखाई दे रहे थे)

मैं - वैसे आपको कैसा आम पसंद है

बाबूजी - बड़े-बड़े आम पसंद है
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मैं- कचे या पक्के

बाबूजी - आंम तो जितना बड़ा हो उतना चूसने में मज़ा आता है??

मैं - बड़े साइज़ के आम या तरबूज़ संभाल लोगे बाबूजी ??

बाबूजी - मौका दो फिर पता लगेगा कि कैसे निचोड़ के रस पिता हूं आमों का. तुम्हे कैसे फल पसंद है सुषमा?

अब मैं भी बहुत गर्म हो चुकी थी. तो मैंने फिर बात थोड़ा घुमा दी.

मैं - मुझे बड़ा या मोटा केला बहुत पसंद है और बड़ा या मोटा गन्ना जिसका रस पूरा भरा हो.
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बाबूजी :-सुषमा ! मेरा केला खाना चाहोगी,

(मैं एकदम हैरान हो गयी कि यह तो बाबूजी ने सीधा ही लण्ड खाने को बोल दिया. तो मैंने उनकी तरफ देखा हैरानी से )

बाबूजी :- मेरा मतलब है मैं यदि बाजार से केला ले आऊं तो तुम खाना चाहोगी आज रात को?

मैं:- बाबूजी आप मुझे केला दो तो सही, में तो केला खाने को बहुत उत्सुक हूँ.
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इस तरह मैंने बाबूजी को साफ़ साफ़ इशारा दे दिया की मैं उनसे चुदने को तैयार हूँ. अब मैं औरत जात आखिर इस से ज्यादा और कितना खुल कर बोल सकती थी,

बाबूजी का लौड़ा मेरे यह कहते ही एकदम झटका मरने लगा.

मुझे लगा की कहीं अभी बाबूजी मुझे किचन में ही न चोद दें.

मैंने बात को घुमाते हुए फिर नाटक किया और बाबूजी को बोली।

"बाबूजी मेरे पेट पर खुजली हो रही है, मेरे हाथों में आटा लगा हुआ है, मैं अपनी पेट को खुजला नहीं सकती, आप प्लीज मेरे पेट पर थोड़ा खुजला दीजिये."
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बाबूजी ने अपने हाथ मेरे कन्धों से उतार कर मेरी कमीज के अंदर आगे की तरफ से डाले और मेरे नंगे पेट पर रखे.

बाबूजी के गर्म गर्म हाथ अपने नंगे पेट पर महसूस करते ही मेरी काम अग्नि और भड़क उठी,

बाबूजी धीरे धीरे मेरे पेट को सेहला रहे थे.

हम दोनों को अच्छा लग रहा था. मैंने बाबूजी को शरमाते हुए से कहा

"बाबूजी खुजली थोड़ा ऊपर हो रही है, थोड़ा ऊपर कीजिये "
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बाबूजी ने अपने हाथ थोड़ा ऊपर तक किये. अब उनके हाथ मेरी चूचियों से बस एक आध इंच ही दूर थे.

बाबूजी भी मेरी कमीज में देख सकते थे की मेरी चूचियों खूब हिल रही है और मैंने ब्रा नहीं पहनी,

तो बाबूजी अपना हाथ और ऊपर करने में थोड़ा झिझक रहे थे.

अब बात इतनी दूर तक आ गयी थी, तो यह तो मेरे लिए सुनहरी मौका था. मैंने सोच लिया कि जो होगा देखा जायेगा. छेड़खानी का मजा तो ले ही लेना चाहिए.

मैंने बाबूजी को फिर कहा

"अरे बाबूजी और ऊपर खुजली है,"

बाबूजी ने ज्यों ही अपने हाथ ऊपर को किये तो मेरी नंगी चूचियों बाबूजी के हाथ से टकरा गयी.
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चूचियों को बाबूजी का हाथ लगते ही मैं एकदम उछल पड़ी और मेरे उछलते ही मेरी दोनों नंगी चूचियों सीधे बाबूजी की हथेलियों में आ गयी, और बाबूजी ने भी एकदम अपनेआप अपने हाथ कस लिए.

अब मेरी दोनों चूचियों बाबूजी के हाथ में थी, बाबूजी ने भी मौके का फ़ायदा उठाते हुए, मेरी चूचियों को अपनी मुठी में भर लिया।
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एकदम से बाबूजी के हाथ में मेरे मम्मे आ गए तो अपने आप बाबूजी के हाथों ने मेरी मम्मों को सहला दिया. और खुदबखुद बाबूजी की उंगलिया मेरे मुम्मों के निप्पल पर आ गयी, इस से तो बाबूजी भी थोड़ा घबरा गए, क्योंकि उन्होंने जानबूझ कर तो मेरी चूचियां पकड़ी नहीं थी, वो तो मैंने ही उछल कर उनके हाथ में दे दी थी, वैसे भी उनमे अभी इतनी हिम्मत नहीं थी की सीधे ही अपनी बहु के मम्मे पकड़ लेते.
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(वास्तव में जब से मैंने बाबूजी को छेड़ना चालू किया था, तो यह पहली बार था की बाबूजी के हाथ में मेरी नंगी चूचियां थी, आज पहली बार बाबूजी ने मेरी नंगी छतिया दिन के उजाले मैं और हम दोनों के पूरे होशोहवास में पड़की थी,)

बाबूजी मेरे मम्मे छोड़ने ही वाले थे की मैंने एक सेक्सी सी आह भरी आवाज़ निकाली.
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बाबूजी को थोड़ा सा होंसला हुआ, की मैं नाराज़ नहीं हूँ.

तो बाबूजी ने भी हिम्मत करते हुए अपने हाथ पीछे नहीं किये और अपने हाथों में ही मेरी छातियों को पकडे रखा.

डर के कारण बाबूजी छातिओं को सेहला या दबा तो नहीं रहे थे पर बस उन पर हाथ रखे रहे.

मैंने बिना हिले जुले बाबूजी को कहा

"बाबूजी आपने मेरे पेट पर खुजली करनी थी पर आप ने तो मेरी नंगी छातियां ही पकड़ ली "
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यह कहते भी मैंने अपनी छातियाँ उनके हाथों में ही रहने दी. अब तक बाबूजी का भी होंसला पूरा बढ़ चूका था.

वो भी समझ गए थे कि चाहे यह घटना जानबूझ कर हुई हो या अनजाने में पर उनकी बहु नाराज़ तो बिलकुल नहीं है,

तो बाबूजी ने मेरी चूचियां धीरे धीरे सेहलनि और अपनी हथेली से दबानी शुरू कर दी,

मैंने भी कोई इतराज जैसा न किया और चुपचाप खड़ी बाबूजी से पहली बार नंगी चूचियां दबवाने का मजा लेती रही,

बाबूजी बातचीत को जारी रखते हुए बोले

"बहुरानी ! मैंने तुम्हारी छाती नहीं पकड़ी यह तो तुम्हारे उछलने से मेरे हाथों में आ गयी, और यह क्या है की तुम ब्रा नहीं पहनती हो?"
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बाबूजी को सब पता था कि मैंने ब्रा नहीं पहनी हुई है पर वो तो सिर्फ बातचीत का जरिया था.

मैं उसी तरह चुपचाप खड़ी रही और बाबूजी मेरी चूचियां धीरे धीरे सहलाते और हौले हौले मसलते रहे.

मुझे अपने बाबूजी से अपनी चूचियां मसलवाने में इतना आनंद आ रहा था की मेरी तो जैसे आनंद से आँखें ही बंद हो गयी,

अब बाबूजी ने भी होंसला करके अपनी उँगलियाँ मेरे निप्पलों के इर्द गिर्द कस ली और अपने अंगूठों और ऊँगली की मदद से मेरे निप्पलों को मसलना शुरू कर दिया.

मेरे मुंह से अपने आप आह आह की आवाज़ निकल गयी पर न तो मैंने अपनी चूचियां को छुड़ाने की कोई चेष्टा की और न ही बाबूजी ने मेरी चूचियां को छोड़ा।
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कहीं बाबूजी चूचियाँ मसलना छोड़ न दें तो मैंने बात को जारी रखते हुए कहा.

"बाबूजी गर्मी बहुत है. इसलिए मैं ब्रा नहीं पहनती.

बाबूजी कुछ बोले इतने में लाइट चली गयी. लाइट जाने से टीवी बंद हो गया और मेरे बेटे की आवाज़ आयी.

"मम्मी टीवी बंद हो गया."

वो उठ कर किचन में आने लगा। बाबूजी ने चरण एकदम से अपने हाथ मेरी कमीज से बाहर निकाल लिए.

आज जिंदगी में पहली बार मैंने अपने बेटे को मन ही मन गाली दी, शायद बाबूजी ने भी मन में कितनी गालियां मेरे बेटे को और बिजली विभाग को दी होंगी.

बेटा भी किचन में आ गया तो बाबूजी फ्रिज खोल कर पानी पीने का नाटक करने लगे. और फिर बाहर चले गए.

उन के चेहरे पर भरपूर मायूसी साफ़ दिखाई दे रही थी, जैसे किसी बिल्ली के आगे से मलाई से भरा हुआ कटोरा उठा लिया गया हो.

मैं भी मायूस थी, पर थोड़ी मन में तस्सल्ली भी थी, कि बात कहीं हाथ से बाहर ही न निकल जाती. और इस छेड़छाड़ का अंत न जाने कहाँ होता.

तो मैं भी एक ठंडी सांस ले कर किचन का अपना काम करने लगी.
Uffff very erotic writing. Lund ekdam akad gaya mera story padhte hue.
 

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