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Incest ससुर ने ऑटो में जबरदस्ती मुठ मरवाई

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rajeev13

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ससुर-बहु किचन में मस्ती करते हुए!

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insotter

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सुबह उठ कर मैंने खाना बनाया और फिर खाना खाने के बाद बाबूजी अपने कमरे में चले गए और मैं अपने कमरे में चली गई।

मुझे नींद नहीं आ रही थी मैं करीब 11 बजे बाथरूम में गई तो देखा बाबूजी के कमरे में से हलकी रोशनी आ रही थी। मैंने चाबी वाले छेद से देखा तो बाबूजी बिस्तर पर नंगे बैठे थे और अपने लंड को सहला रहे थे।
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मैं समझ गयी कि बाबूजी को माँ की याद आ रही है। बाबूजी अपने लंड को अपने हाथों से ऊपर नीचे कर रहे थे।

मुझे बाबूजी पे बहुत तरस आ रहा था कि कैसे वो अपने लंड को खुद ऊपर कर रहे थे मेरा मन कर रहा था कि मैं भाग के जाऊं और उसके लंड को मुंह में ले कर चूसने लगू लेकिन मेरी तो टांग ही हिल नहीं पा रही थी.

फिर मैंने देखा कि बाबूजी के लंड ने पानी छोड़ दिया है और वो बिस्तर से नीचे उतरने लगे तो मैं जल्दी से अपने कमरे में आ गई।
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सारा दिन मैंने बेड पर करवटे बदलते हुए निकाल दीया, बस ये सोचते हुए कि क्या मुझे मेरे बाबूजी का लंड मिल सकता है?

लेकिन कैसे ये ही समज मैं नहीं आ रहा था।

मैं चाहती थी कि किसी तरह मैं अपने बाबूजी को पटा लूं और उनसे चुदाई करवाऊं लेकिन कोई प्लान नहीं बना रहा था।

सुबह उठते ही मैंने सोच की मैं बाबूजी और खुद के लिए चाय बना लूं और खुद भी पेशाब कर लूं। चाय पीने के बाद मैं सफाई करने लगी.

मैं सोच रही थी की मुझे बाबूजी को सेड्यूस करने के लिए खुद ही पहल करनी पड़ेगी. तो जब मैं बाबूजी के कमरे में सफाई करने के लिए गई तो मैंने ढीली सी नाइटी पहन ली थी। और तब मैंने जान बुझ कर अपनी ब्रा भी निकाल दी.

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वो नाइटी मेरे घुटनो तक ही आ रही थी, पहले तो मैंने सोचा कि अपनी पैंटी भी निकाल देती हूँ. पर फिर सोचा के अभी तो शुरुआत ही है, तो अभी एकदम इतना नहीं करुँगी. तो पैंटी पहने ही मैं बाबूजी के कमरे में सफाई करने चली गयी.
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तब मेरे स्तन बहुत बड़े थे और मेरे काम करने से हिल रहे थे और बहुत अच्छे से मसले जा सकते थे। खुले गले वाली नाइटी की वजह से जब मैं झुकती थी तो उसका गला बड़ा होने की वजह से मेरे स्तन साफ नजर आ जाते थे। ऊपर से मैंने अपनी ब्रा भी नहीं पहनी थी.
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बाबूजी बिस्तर पर बैठे हुए थे उन्होंने पायजामा और बनियान पहननी हुई थी। मैं जान बुज कर बाबूजी की तरफ मुंह करके झुक रही थी ताकी बाबूजी मेरे स्तन एक बार देख लें लेकिन वो तो टीवी देखें मैं मस्त था इसके लिए मैंने झुके झुके ही बिना बाबूजी की तरफ देखे कहा कि बाबूजी आज क्या खाना चाहते हैं?
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मैंने चोर नजर से देखा कि इस बार पहली बार बाबूजी ने मेरी तरफ देखा और उनकी नजर मेरे स्तनों पर चली गई, जो की निप्पल तक नाइटी के खुले गले से दिखाई पड़ रहे थे. बाबूजी ने पहली बार आज मेरे मम्मे इतने पास से देखे थे तो वो बार बार चोर नजर से मेरे नंगे स्तनों को निहारने लगे।

मैं सीधी हुई तो देखा कि वो पैजामे में अपने तने हुए लंड को दबाने की कोशिश कर रहे थे। मैं समझ गई कि मेरे स्तन देख कर उबका लंड अकडने लगा है। मैं फिर से झुक कर उन्हें अपने स्तन दिखाने लगी और पोछा लगाने लगी।
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थोड़ी देर इसी तरह मैं बाबूजी के सामने खड़ी खड़ी झाड़ू लगाती रही और झुक कर काम करते हुए बाबूजी को अपने मम्मे दिखाती रही.

मैंने बाबूजी की तरफ नहीं देखा ताकि बाबूजी को लगे की मुझे अपने दिखाई दे रहे मम्मों का कुछ भी पता नहीं है, और वो इसी तरह चोर नजरों से मेरी छातिओं को देखते रहे. बाबूजी का लण्ड खड़ा हो गया था और वो उसे दबा दबा कर पजामे में सेट कर रहे थे. में चोर नजरों से बाबूजी की हालत देख रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी पर प्रगट में में ऐसा दिखावा कर रही थी की जैसे मुझे कुछ भी पता नहीं है.
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खैर थोड़ी देर में कमरे की सफाई हो गयी तो मैं पानी ले कर पोंछा लगाने लगी.

मैं बैठ कर पोंछा लगा रही थी तो अब बाबूजी को मेरे मुम्मे दिखाई नहीं दे रहे थे.

मैंने बाबूजी की तरफ चोर नजरों से देखा कि बाबूजी मेरी नाइटी के गले से मेरे मुम्मों को देखने की कोशिश कर रहे थे पर मुम्मे दिखाई न देने से उन के चेहरे पर निराशा दिखाई दे रही थी. वो परेशां से लग रहे थे।

मैं मन ही मन मुस्कुरा दी कि बाबूजी अपनी बहु के मम्मे देखने के लिए कितने उतावले हो रहे हैं और फिर मैं बैठ कर पोंछा लगाते हुए अपने घुटने अपनी छाती के नीचे रख लिए जिस से मेरे मुम्मे दब जाने के कारण ऊपर को उभर गए और बाबूजी को अब मेरे मुम्मे ठीक से दिखाई दे रहे थे.
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बाबूजी के चेहरे पर अब मुझे एक संतुष्टि का भाव दिखाई दे रहा था. वो टीवी देखने का नाटक करते करते मेरे मुम्मे ही देख रहे थे.

मुझे लग रहा था की मेरा तीर सही निशाने पर लग रहा है,

फिर मैंने कुछ सोचा और कमरे में सोफे के साइड में रखे एक छोटे टेबल के नीचे पोंछा लगाने का नाटक करना शुरू किया. अब मेरी पीठ बाबूजी की तरफ थी. मैंने बुड़बुड़ाना शुरू किया की सोफे के नीचे बिलकुल भी साफ़ नहीं है और बहुत मिट्टी पड़ी है, यह बोल कर मैंने झुक कर सोफे के नीचे दूर तक पोंछा लगाने का नाटक करने लगी,

मेरे ऐसे करने से मैंने अपना पिछवाड़ा (गांड ) ऊपर उठा लिया ताकि मैं दूर अंदर तक पोंछा लगा सकूँ.
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मेरे ऐसा करने से मेरी नाइटी मेरी कमर तक ऊपर उठ गयी. बाबूजी की जन्नत ही हो गयी. अब बाबूजी को मेरी जाँघे दिखाई दे रही थी,

चाहे मेरी पीठ बाबूजी की ओर थी पर टीवी स्क्रीन में मुझे बाबूजी का अक्स दिखाई दे रहा था. बाबूजी को मालूम नहीं था की मैं बाबूजी की हरकतें देख सकती थी,

उन्हें तो लगा की उनकी ओर मेरी पीठ है तो वे अब टीवी से नजर हटा कर सीधे मेरे चूतड़ ही देख रहे थे.
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मैंने झूकते हुए आगे दूर तक पोंछा लगाने का नाटक करते हुए अपनी चूतड़ और ऊपर उठा दी.

अब तो जैसे बाबूजी का कलेजा ही मुंह को आने वाला हो गया.

अब बाबूजी को मेरी पैंटी और उस में कसी हुई मेरी गांड बिलकुल साफ़ दिखाई दे रही थी,

बाबूजी का लौड़ा अब स्टील की रॉड बन चूका था और बाबूजी उसे बेशर्मों की तरह मसल रहे थे. उन्हें मेरे द्वारा देखे जाने का कोई डर जो नहीं था क्योंकि मेरी तो उनकी तरफ पीठ थी. हालाँकि मैं टीवी के शीशे में उनकी सारी हरकतें देख रही थी,
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अब बाबूजी अपने लण्ड को तेज तेज मसल रहे थे.

बाबूजी टीवी देखते हुए सोफे पर लेट गए। वो ऐसे शो कर रहे थे जैसे बैठे बैठे वे थक गए हो और आराम से लेट कर टीवी देख सकें, पर असल में वो लेट इसलिए गए थे ताकि और नीचे से अच्छी तरह अपनी प्यारी बेटी की गांड देख सकें. मैं कुछ देर इसी तरह अपनी कमर उठा कर पोंछा लगाती रही।
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और बाबूजी अपना लण्ड तेज तेज सहलाते रहे.

जल्दी ही बाबूजी के हाथ के रफ़्तार तेज हो गयी। मैं समझ सकती थी की बाबूजी का स्खलन नजदीक ही है.

बाबूजी भी भगवन से शायद प्रार्थना कर रहे थे की मैं थोड़ी देर और काम करती रहूं, ताकि यह न हो की मेरे अचानक उठ जाने से उनकी पोल ही खुल जाये. या उन्हें मुठ मारना बीच में ही छोड़ना पड़े।

भगवान ने तो पता नहीं उनकी प्रार्थना सुनी या नहीं पर मैंने जरूर सुन ली,और उसी पोज में गांड ऊपर उठाये ही पोंछा लगाती रही।

जल्दी ही बाबूजी के साँसे तेज चलने लगी और उनके अपने लण्ड को मसलने की स्पीड भी बढ़ गयी.

बाबूजी के मुँह से एक जोर की आह निकली (जो मैंने सुन तो ली पर टीवी की आवाज़ में न सुनने का नाटक किया) और बाबूजी ने जोर से अपना लौड़ा पजामे के ऊपर से ही कस के पकड़ लिया और बाबूजी तेज तेज साँसे लेते हुए झड़ने लगे. उन्होंने डर के मेरी तरफ देखा की कहीं मुझे पता तो नहीं लग गया पर मैं अनजान होने का नाटक करते हुए पोंछा ही लगाती रही,
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धीरे धीरे बाबूजी का वीर्यपात ख़तम हो गया। मैंने टीवी के शीशे में देखा की बाबूजी के पजामे का आगे का सारा हिस्सा उनके लण्ड रस से भीग कर गीला हो गया था. उसे छुपाने के लिए बाबूजी ने एक तकिया उठा कर अपनी कमर में रख लिया और अपने गीले पजामे को छुपा लिया.

मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी, मुझे लग रहा था की मेरी मन की इच्छा पूरी हो सकती है और मुझे घर में ही एक दमदार और मोटा लण्ड चुदाई के लिए मिल सकता है,

आज का मिशन पूरा करने के बाद मैं काम ख़तम होने का नाटक करते हुए उठी और किचन की ओर चल दी,

बाबूजी झट से उठ कर बाथरूम में घुस गए, मैं समझ गयी की अपने गंदे हो चुके पजामे को बदलने गए है, पर मैं उसी तरह अनजान बनी रही,

मैं भी भाग कर अपने कमरे में चली गयी क्योंकि इतना कुछ हो जाने से मेरी भी चूत गीली हो गयी थी। उसमे खूब पानी आ गया था , मैंने जाते ही फटाफट अपनी पैंटी उतर कर तुरंत अपनी दो उँगलियाँ अपनी चूत में घुसा ली और तेज तेज अंदर बाहर करना शुरू किया.
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मैं इतनी उत्तेजित हो चुकी थी की आधे मिनट में ही मैं झड़ गयी।

मेरा इतना पानी निकला कि मैं बता नहीं सकती। काफी देर बाद मेरा शरीर थोड़ा कायम हुआ तो मैं उठ कर बाहर आयी.
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बाबूजी उसी तरह सोफे पर बैठे टीवी देखने का नाटक कर रहे थे. मैंने भी ऐसे दिखावा किया कि कुछ भी नहीं हुआ हो.

पर दिल ही दिल में मैं बाबूजी की स्थिति पर मुस्कुरा रही थी.
Nice update bro 👍 👍
 

Ting ting

Ting Ting
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कमरे से आ कर मैं आँखे बंद करके लेटी हुई थी कि तभी मुझे किसी के दरवाज़े के पास आने की आहट हुई, मैंने डरते हुए कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. पर बाहर तो कोई नहीं था, मुझे लगा शायद मेरा ही भ्र्म होगा और निश्चिंत होकर मैं बाथरूम की तरफ़ बढ़ी. मुझे लगा कि जैसे आवाज मेरे ससुर के कमरे से आ रही थी, बाबूजी के कमरे के साथ उनका अटैच बाथरूम भी तो था. मेरे कदम जैसे जैसे उस की तरफ़ बढ़ने लगे तो मुझे भी किसी की मादक सिसकियाँ सुनाई देने लगी, चौकन्ना होकर मैं उस आवाज़ की तरफ़ धीरे धीरे चलने लगी.
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ससुरजी को आसानी रहे इस लिए बाथरूम उनके कमरे के बिलकुल बग़ल में बनाया गया था, बाथरूम निकलती उन सिसकियों को सुनके मैं चौंक गयी. पहले तो मुझे लगा की शायद ससुरजी बाथरूम में फिसलकर गिर पड़े है इसीलिए उनकी कराहने की आवाजें आ रही है. पर जैसे ही मैंने दरवाज़ा हलके से खोलते हुए अंदर झाँका तो मेरे कदम लड़खड़ाने लगे, डर के मारे पसीने छूटने लगे. मेरे ससुर पुरे नंगे खड़े होकर अपना लंड हाथ में लेकर जोर जोर से मसल रहे थे, उस लंड का भयंकर रूप देख कर तो मेरी गांड चौड़ी हो गयी. चूत में भी पानी आ गया।
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जैसे तैसे मैंने अपने आपको संभाला और छुपके से उनके उस लिंग को देखने लगी, पर जैसे ही मैं संभली मेरे कानों पर पड़ी उस आवाज़ ने मेरे अंदर एक अजीब सा डर और गुदगुदी होने लगी. मेरे ससुर आज अपने बहु का नाम लेकर, उसको अपने यादों में लिए अपना लंड मसल रहे थे, मेरे बारे में ससुरजी की ये वासना सोचकर ही मुझे मदहोशी होने लगी.
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"सुषमा! आआह्ह्ह्हह्ह आआ उफ्फफ्फ्फ़ मेरी जानननननन ले ले मेरा लौड़ा , एक बार तो ले कर देख इसे, क्या मस्त चुत है तेरी, एक बार मेरे नीचे आ जा बस फिर तो फाड़ दूंगा तेरी चुत।" बाबूजी इस जैसी गन्दी बातें बोल बोल कर अपने लौड़े को जोर जोर से सड़का मार रहे थे.
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मेरे ससुरजी का लौड़ा मेरे पति से काफी ज्यादा लम्बा और मोटा था, मेरे पति का लण्ड तो उनके मुकाबले किसी बच्चे की नुन्नी जैसा था। काले रंग में लिपटा वो मांस का टुकड़ा देख के मेरी चुदी-चुदाई चुत भी पिघलने लगी. कुछ ही देर में बाबूजी का समय समाप्तः हुवा और एक जोर की आह की आवाज के साथ उनका ढेर सारा गाढ़ी मलाई रूपी वीर्य फ़र्श पर उछल उछल कर गिरने लगा.
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इस उम्र में भारी मात्रा में निकलता हुवा वीर्य देखकर मेरे दिल में उनके लंड ने घर बना लिया, लग रहा कि अभी जाऊं और सारा वीर्य चाट लूँ. ससुरजी के माथे पर पसीना छा रहा था, उसकी साँसे भी जोर जोर से चल रही थी वीर्य की आखिरी बूंद अब भी सूपड़े से निकल रही थी. उनका फुला हुवा लौड़ा एक इंच भी कमज़ोर नहीं हुवा ये देख के मुझे अंदाजा हो चूका था की आदमी पूरा मर्द है. किसी भी औरत की पूरी तस्सली करवा देंगे बाबूजी। फिर वो औरत चाहे उनकी बहु यानि कि मैं ही क्यों ना होऊं.
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मेरी चूत में बाबूजी की यह हरकत देख कर आग लग गयी. पर मेरे पति तो गए हुए थे तो उस आग को भुजाने का कोई सहारा भी तो नहीं था मेरे पास.

सोच सोच कर मैं किचन में गयी, और सब्जी की टोकरी में मुझे एक खीरा दिखाई दे गया. मुझे लगा कि लण्ड नहीं तो चलो अपनी पतली सी ऊँगली से तो खीरा ही अच्छा है. तो उसी से मजे लेने के लिए मैं उसे लेकर अपने कमरे में आ गयी.
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मैं चुपचाप वहां से निकल पड़ी और फिर से कमरे में आकर ससुरजी के लौड़े को याद करते हुए साड़ी के ऊपर से ही अपनी चुत मसलने लगी. कुछ देर पहले मैं मेरे पतिदेव को याद कर रही थी पर अब मेरे सपनों में मेरे ससुरजी का नंगा लौड़ा नाच रहा था. ससुरजी का मर्दाना लौड़ा यद् करके मैं सोच रही ही की मैं खुद उनके लौड़े से चुद रही हूँ और इसी कामुकता के चलते मेरा पानी अबकी बार कुछ ही पलों में निकल कर बहने लगा. मेरा हाथ मेरे ही चुतरस से चिपचिपा हो गया पर इस बार मैंने वासनांध होकर मेरे चुतरस से भीगी उंगलिओं को चाटना चालू किया.
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मैं वासना में अंधी हो रही थी. मैंने मेरी साडी उतार के फेंक दी और एक छोटी सी नाइटी पहन ली, और अपनी पैंटी उतार के बेड के नीचे ही फेंक दी ब्रा तो मैंने आज पहनी ही नहीं थी जब मैंने बाबूजी को पोंछा लगाने के बहाने से मजा दिया था. ऐसा करने से मुझे अपनी चूत में खीरा करने में आसानी होती .
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सामने लगे आईने में मेरा गदराया हुवा बदन देख मुझे अपने आप पर गर्व सा महसूस होने लगा, किसी भी मर्द के लौड़े में आग लगाने की ताकत थी मेरे हुस्न में. सीने पे उभरे मेरे ३६ इंच के चूंचे थोड़ी चर्बी से गदराया हुवा पेट और उसके निचे मांसल जाँघे देख मैं अपना सीना सहालने लगी. पुराणी यादों को याद करते करते कब मेरा हाथ मेरा बदन मसलने लगा मुझे भी पता ना चला.
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बिस्तर पे अपना बदन डालते ही मेरी आँखे बंद हुई, जिस्म की चुदाई की माँग को बुझाने के लिए मेरी उँगलियाँ ना जाने कब मेरे चूत का बंधन पार करते हुए मेरे चुत को छूने लगी. एक हाथ से मैक्सी के ऊपर से ही चूँचियाँ मसलते हुए मैंने मेरी दो उँगलियाँ मेरे भोसड़े में घुसा दी और पुराने दिन याद करते हुए मज़ा लेने लगी.

फिर मैंने वो खीरा उठा लिया और अपनी चूत में डाल लिया। खीरा मेरे पति के लण्ड से तो बड़ा था पर बाबूजी से छोटा ही था. पर जो भी हो काम तो चलाना ही था. तो मैंने पूरा खीरा अंदर घुसेड़ लिया और अंदर बाहर करके मजा लेने लगी.
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इतने दिनों से जो आग दबा कर रखी थी आज वही आग फ़िरसे भड़क उठी थी. मेरे ससुर का वो मोटा तगड़ा लौड़ा और उनके चुदाई से हो सकने वाला मीठा दर्द सोचते हुए मेरी उँगलियाँ मेरे निगोड़ी चुत पर खीरे को जोर जोर से अंदर बाहर करने लगी.
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आअह्ह्ह्ह उफ्फफ्फ्फ़ बाबूजी जज्जजज माँआआआआ जैसे किलकरियाँ मेरे मुँह से निकलने लगी और बड़े दिनों से फड़फड़ाती मेरे चुत का पानी कुछ ही मिनिटों में बाहर फ़वारे की तरह उमड़ने लगा. कई दिनों बाद मेरे भोसड़ी का पानी निकलने के कारन मेरा हाथ और मेरा मैक्सी पूरा गिला हो चूका था.
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गीली चुत को प्यार से सहलाते हुए मेरी उखड़ी हुई सांसों को काबू करते हुए मैं ऐसे ही छत की तरफ देखते हुए लेटी रही. मुझे इतना निकलने से काफी कमजोरी महसूस हो रही थी, मैंने खीरे को बेड के साइड में टेबल पर रख दिया और चूत को सहलाते हुए लेट गयी,
 
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