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Incest ससुर ने ऑटो में जबरदस्ती मुठ मरवाई

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insotter

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अगले दिन दोपहर को हम घर में बैठे थे, बाबूजी और बेटा टीवी देख रहे थे. मेरा मन उनके पास बैठने का बिलकुल नहीं था, क्योंकि बाबूजी मुझे बड़े अजीब ढंग से देखते थे और मेरे शरीर पर ही ध्यान रखते थे. मुझे यह सब ठीक नहीं लगता था. इसलिए मैं अपने कमरे में ही बैठी कुछ काम कर रही थी. थोड़ी देर बाद पता नहीं मुझे क्या हुआ कि मन कर रहा था कि मैं किसी बहाने से जा कर बाबूजी के पास बैठ जाऊँ, आखिर थी तो मैं एक औरत ही, कहीं ना कहीं मुझे भी अच्छा लगता था कि एक मर्द मेरे ऊपर इस तरह लट्टू है.
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कहीं दिल में था कि बाबूजी मुझे किसी बहाने से छेड़ें और वो मुझे अंदर ही अंदर अच्छा लगता था. पर अब मैं बैठी तो अपने कमरे में थी, तो किस मुंह से खुद जा कर उनके पास बैठ जाओं. मन बाबूजी के पास जाने का हो रहा था. जब वो मुझे देखते हुए अपना मोटा सा लण्ड मसलते थे तो एक अजीब सी एहसास होता था.
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तभी गली में एक आइसक्रीम वाले की आवाज आई. मेरा बेटा तो आइसक्रीम का बहुत शौकीन है. मैं भी आइसक्रीम तो खुश होकर खाती हूँ. बाबूजी को भी यह पता है. आइसक्रीमवाले की आवाज सुन कर शायद मेरे बेटे ने बाबूजी से आइसक्रीम खाने के लिए कहा. बाबूजी को भी मुझे बुलाने का बहाना मिल गया. उन्होंने मुझे जोर से आवाज दी

"सुषमा! बहुरानी आओ आइसक्रीम वाला आया है, रोहित (मेरा बेटा) भी आइसक्रीम लेने लगा है. तुम भी आओ और आइसक्रीम लेलो."
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मुझे आइसक्रीम से ज्यादा ख़ुशी बाबूजी की आवाज से हुई. मैं उठ कर बहार आ गयी.

बाबूजी ने सब के लिए आइसक्रीम ली. बेटे ने कुल्फी ली और जा कर टीवी के आगे बैठ कर टीवी देखने और कुल्फी खाने लगा.

मैंने आइसक्रीम का डिब्बा लिया.

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बाबूजी ने मुझे कहा

"बहुरानी! यह तुम ने क्या ले लिया. मैं तो तुम्हे एक बड़ी सी चॉकोबार खिलाना चाहता हूँ. यह आइसक्रीम तो मुझे पसंद है."

चॉकोबार कहते हुए बाबूजी मेरी आंखो में आंखे डाल कर एक हाथ से अपना लौड़ा सहलाने लगे. उनका लौड़ा तो मुझे देख कर ही खड़ा होने लग गया था.
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मैं समज गहि कि बाबूजी किस चॉकोबार को मुझे खिलाने की बात कर रहे थे. मैं शर्मा गयी और कुछ नहीं बोली. बाबूजी कहाँ चुप रहने वाले थे वो फिर मुझे छेड़ते हुए बोलने लगे

"सुषमा! मैं तो तुम्हे बड़ा सा चॉकोबार चूसने को देना चाहता हूँ. औरतों को कुल्फी या आइसक्रीम की बजाए चॉकोबार ज्यादा अच्छा लगता है. तुम्हारी सास को भी मैं रोज चॉकोबार ही चूसने को देता था और वो रोज बड़े मजे से चॉकोबार लेती थी. एक दिन भी वो इसके बिना नहीं रहती थी. तुम्हारी सास तो जब तक पूरी चॉकोबार को मुंह में पूरा अंदर ले कर न चूस ले उसे तो नींद ही नहीं आती थी. तुम यह आइसक्रीम छोडो और एक बार चॉकोबार चूस कर देखो."
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उनकी आँखों की शरारत और एक हाथ से लण्ड सहलाने से यह तो साफ़ था कि बाबूजी मुझे अपनी चोकोबार चुसवाना चाहते हैं. बाबूजी की दो अर्थी बातों से मुझे भी कुछ कुछ अच्छा लगने लगा था. साला बुड्ढा जरा सा मौका मिलते ही दो अर्थी बातें शुरू कर देता है और उसका लण्ड भी देखो कैसे एकदम से अकड़ जाता है. मेरे शराबी पति का लौड़ा तो कितनी देर लगा कर खड़ा होता था.
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पर मैं बाबूजी की बातों का क्या जवाब देती. पर थोड़ा शरारत करते और मजा लेते मैं बोली

"बाबूजी! आपका बेटा (मेरा पति) तो मुझे कभी चॉकोबार नहीं देता. कभीकभार मुझे चॉकोबार चूसने को देते हैं पर छोटी सी चॉकोबार 2 मिनट में ही मुंह में पिघल जाती है. बिलकुल मजा नहीं आता. सासुमां को क्या आइसक्रीम पसंद नहीं थी?, जो आप उसे चॉकोबार देते थे?"
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अब मैं भी उनकी दो अर्थी बातों में आनंद ले रही थी, मेरी आँखों में जो शरारत की एक चमक थी उस से बाबूजी समज गए कि मैं मजे ले रही हूँ और नाराज नहीं हूँ. उधर मेरा बेटा तो अपनी कुल्फी और टीवी में ही मस्त था. तो वो भी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले

"अरे बेटी! तुम्हारी सास को तो चॉकोबार ही अच्छी लगती थी. और मैं भी उसे छोटी सी नहीं बल्कि बढ़िया और कम से कम 8 इंच बड़ी और ४ इंच मोटी बड़ी सी चॉकोबार चूसने को देता था.

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तुम्हारी सास मजे ले ले कर चूसती थी, वो तो पूरी चॉकोबार को मुंह में ले लेती थी, इतनी मोटी चॉकोबार चूसने के लिए उसे पूरा मुंह खोलना पड़ता था. वो कम से कम 20 मिनट तक जोर जोर से चूसती थी तब कहीं चॉकोबार उसके मुंह में पिघल कर रस छोड़ती थी."
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बाबूजी ने अपने लौड़े का साइज इशारे से बता दिया था. मेरे पति का लंड तो मुश्किल से 5 इंच का था और इतना मोटा भी नहीं था. मुझे बाबूजी के अपने लण्ड को सहलाने से इतना तो आईडिया था कि उनका लौड़ा मेरे पति से बड़ा है पर उनका साइज इतना बड़ा है तो मैं तो हैरान ही हो गयी, और मेरे मुंह से अपने आप निकल गया
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"बाबूजी इतना बड़ा? हे राम. सासुमा कैसे मुंह में ले पाती होंगी इतनी बड़ी चॉकोबार? और 20 मिनट तक चूसती थी, उन्हें तो बहुत मजा आता होगा. आप झूठ बोल रहे हैं."

मेरे थोड़ा खुलने से बाबूजी भी खुश हो गए और बोले

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"लो. मैं कोई तुमसे झूठ थोड़े ही बोलूंगा. तुम जब चाहो तब मैं तुम्हे भी चॉकोबार चुसवा दूंगा. तुम एक बार हाँ तो करो. तुम्हारी सास को चॉकोबार बहुत अच्छा लगती थी, तुम्हे भी बहुत पसंद आएगी. जब तुम्हारी सास चॉकोबार चूसती थी तो मैं आइसक्रीम चाटता था."
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मैं भी अब थोड़ा खुल कर बोलने लगी थी, मैंने कहा

"आप को आइसक्रीम पसंद है? बाबूजी?"
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बाबूजी मेरी आँखों में आँखें डालते और उसी तरह अपने लण्ड को खुजलाते बोले

"हाँ बहुरानी ! मैं तो आइसक्रीम चाटता था. कई बार पहले तुम्हारी सास चॉकोबार चूसती और फिर मैं आइसक्रीम चाटता था और कई बार हम इकठे ही करते यानि उधर जब वो चॉकोबार चूसती तो इधर मैं आइसक्रीम चाट ता था.

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मैं तो सदा आइसक्रीम में पूरी जीभ घुसा कर चाटता था. आइसक्रीम चाटने का तो मजा ही तब है जब पूरी जीभ आइसक्रीम के अंदर डाल दी हो और खूब अच्छी तरह से चाट चाट कर खाया जाए. अक्सर मेरा मुंह नाक और होंठ आइसक्रीम के रस से भर जाते थे,
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पर मैं अच्छी तरह से ही आइसक्रीम चाट ता था. मेरे गीले मुंह को देख कर तुम्हारी सास हंसती थी पर उसे भी मेरा आइसक्रीम चाटना बहुत पसंद था. मैं तो तब तक आइसक्रीम चाटता रहता था, जब तक सारी आइसक्रीम ख़तम न हो जाये. तुम्हारा पति भी तो ऐसे ही आइसक्रीम खाता होगा ना ?"
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बात चीत बहुत मादक और सेक्सी हो गयी थी, मेरी चूत से पानी चू रहा था. लगता था मेरा पानी चूत से बाहर बह कर मेरी टांगों पर आ रहा था. मन कर रहा था कि अपनी चूत जोर से खुजला लू और उसमे ऊँगली डाल लूँ पर सामने ससुर जी खड़े थे.
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हम दोनों ही कोई बच्चे तो थे नहीं तो दोनों को क्लियर था कि किस चॉकोबार और किस आइसक्रीम की बात हो रही है. अब सरेआम उन्होंने मुझसे मेरी चूत की चटवाई का पूछ लिया तो मैं भी अपना दुःख उन्हें बतलाते हुए बोली
"बाबूजी! क्या बताऊँ आपके बेटे को तो आइसक्रीम चाटना बिलकुल भी पसंद नहीं है. जैसे आप बता रहे हैं उन्होंने तो कभी भी इस तरह आइसक्रीम नहीं खाई."
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बाबूजी गुस्सा दिखाते बोले

"पागल है साला. आइसक्रीम चाटना तो उसका फर्ज बनता है, उसकी जगह मैं होता तो रोज तुम्हे चॉकोबार चूसने को देता और रोज जी भर के आइसक्रीम चाटता। कोई बात नहीं तुम चाहो तो मैं तुम्हारी यह कमी पूरी कर दूंगा."

बाबूजी ने अब खुले रूप से मुझे लण्ड चूसने और अपनी चूत चटवाने का इशारा कर दिया था.
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मुझे बहुत शर्म आ रही थी, मैं बोलती तो बोलती भी क्या?

बस चुप चाप मुस्कुराती खड़ी रही और बाबूजी के हाथ से चॉकोबार पकड़ कर अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी और अपने हाथ की आइसक्रीम का डिब्बा उन्हें दे दिया. बाबूजी ने जब मुझे चॉकोबार चूसते देखा तो उनके चेहरे पर ख़ुशी की चमक आ गयी. वो समझ गए की इशारे से उनकी बहु ने उनकी चॉकोबार (लौड़ा) चूसने की हामी भर ली है,
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बाबूजी ने भी तुरंत आइसक्रीम का डिब्बा खोला और अपनी पूरी जीभ उसमे घुसेड़ दी और जीभ को आइसक्रीम में घुमा घुमा कर चाटने लगे. आइसक्रीम चाटते हुए उनकी आँखें मेरे चेहरे पर ही टिकीं थी, मानो वो मुझे समझा रहे हो कि इस तरह वो मेरी चूत में पूरी जीभ डाल कर उसे चाटना चाहते हैं.
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शर्म से मेरा मुंह लाल हो गया था. मुझ से अब बाबूजी के सामने खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. मैं चुपचाप चॉकोबार चूसती हुई और बाबूजी को देख कर मुस्कुराती हुई अपने कमरे की ओर भाग गयी और दौड़ कर कमरे में चली गयी और अंदर जा कर कमरा बंद कर लिया..
मेरा सारा बदन कामुकता से कांप रहा था. मेरी सांस धौकनी जैसे चल रही थी, काफी देर बैठ कर मैंने अपने आप को संयत किया और लेट गयी.

सारी रात मुझे बाबूजी के ही सपने आते रहे.
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बहुत ही उत्तेजना से भरी अपडेट थी मित्र इसी तरह धीरे धीरे मिलन होने देना कोई जल्दी नहीं है। Slow and steady movement
 

Premkumar65

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दोस्तों में सुषमा एक शादीशुदा औरत हूँ और मेरी उम्र 37 साल है और में मेरे पति के साथ सूरत में रहती हूँ.
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हमारे परिवार में मेरा एक दस साल का मेरा बच्चा है और मेरे ससुरजी और हम दोनों है. मेरे पति की उम्र लगभग 40 साल और मेरे ससुर जी की उम्र लगभग 62 साल होगी.
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मेरे पति को शराब पीने की काफी आदत हो गयी है, पहले तो वे शराब नहीं पीते थे पर गलत संगत के कारण उन्होंने काफी शराब पीनी शुरू कर दी है.

आज से करीब 12 साल पहले में शादी करके मेरे पति के घर आई तो में बहुत खुश थी और मेरे पति भी मुझे हमेशा बहुत खुश रखते थे और मेरे सास, ससुर भी मेरा बहुत ध्यान रखते थे, वो मुझे हमेशा अपनी बेटी की तरह रखते थे. मेरे और मेरे पति की सेक्स लाइफ भी काफी अच्छी थी, मुझे चुदवाने का बहुत शौक है और मेरे पति मुझे रोज ही चोदते थे. उनका स्टैमिना भी काफी था. पर अब शराब के कारण उनसे कुछ नहीं हो पाता. वो दो मिनट में ही झड़ जाते है. उनके लौड़े में अब सख्ती भी नहीं रही. शराब ने उनकी शक्ति ख़तम कर दी है.

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पर मेरी तो सेक्स की इच्छा और भी बढ़ गयी है. पर अब मेरी उम्र भी काफी है और मैं कुछ कर भी नहीं सकती तो बस अपनी ऊँगली या खीरे मूली से ही अपना काम चला रही हूँ.

मेरे ससुर बहुत अच्छे हैं. वो पहले फौज में थे, इसलिए उनका शरीर बहुत पहलवानों जैसा तकड़ा है. वो आज भी रोज कसरत करते हैं. और उन्हें कोई गलत आदत भी नहीं है तो वो अपनी उम्र से कहीं कम लगते है. पर वो बहुत शरीफ थे और मुझे अपनी बेटी की तरह ही रखते थे. लेकिन यह बात तब बिगड़ी जब मेरी सास का देहांत हो गया और दो साल पहले से मेरे ससुरजी की नज़र मुझ पर बिगड़ी.

वो अपनी नौकरी के बाद की जिंदगी जी रहे थे, इसलिए वो पूरा दिन घर पर ही रहते थे और अब वो बार बार मुझे अपनी वासना की नज़र से देखते रहते है. कई बार छत पर सुखाने रखे कपड़ो में से वो मेरी ब्रा और पेंटी से खेलते है

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और वो मुझे चोरी छिपे देखते है. मैंने कई बार सोचा कि अपने पति को वो सभी बातें बता दूँ कि मेरे ससुर क्या कर रहे है? लेकिन ऐसा करने से मेरा मन नहीं माना, क्योंकि इससे बाप बेटे में झगड़ा हो जाता इसलिए में चुप ही रही. वैसे भी मेरे पति को रात में जब वे घर आते हैं तो नशे के कारण कुछ पता ही नहीं चलता।

फिर कुछ दिन वैसे ही निकल गये और दिन समय निकालने के साथ साथ मेरे ससुर की हिम्मत भी अब पहले से ज्यादा बढ़ने लगी थी. अब वो मुझे चाय बनाने के लिए कहते और जब में रसोई में चाय बना रही होती तब वो मेरी मदद करने के बहाने से आ जाते और वो मुझे कोई ना कोई बहाना बनाकर छूने लगते. दोस्तों मुझे उनकी इन हरकतों पर बड़ा गुस्सा आता था, लेकिन उन्होंने तो एक बार बिल्कुल ही हद कर दी और मेरे साथ वो सब किया जिसकी मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी. एक दिन की बात है मेरे पति सुबह अपनी नौकरी पर चले गये और वो मेरे लड़के को भी अपने साथ उसके स्कूल छोड़ने के लिए लेकर चले गये.

सुबह के सात बजे थे और में नहाने के लिए बाथरूम में जा ही रही थी. मैंने मेरी ब्रा, पेंटी और टावल को बाथरूम में खूंटी पर लगा दिए थे. अब में अंदर जाकर अपने एक एक करके कपड़ो को उतारने लगी और में पूरी नंगी होकर बस नीचे बैठने ही वाली थी

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कि तब मेरे ससुर ने मुझे एक ज़ोर से आवाज़ लगाई काँची, क्योंकि घर में मुझे प्यार से सब लोग सुषमा की जगह काँची कहते है, काँची जल्दी आओ उनकी ज़ोर की आवाज़ से में डर गयी और डर के मारे हड़बड़ाती हुई सोचने लगी कि कुछ अशुभ ना हुआ हो तो अच्छा है.

मैंने फटाफट अंदर रखी हुई मेरी मेक्सी पहनी और बाहर आई. मैंने उस समय सिर्फ़ मेक्सी पहनी हुई थी और मैंने अंदर ब्रा या पेंटी नहीं पहनी थी. मेरे पूरे बदन पर सिर्फ़ एक मेक्सी थी और वो भी बहुत पतली थी कि उसके आरपार बड़ी आसानी से देख जाए. अब मैंने बाथरूम से बाहर निकलकर देखा तो वो मुझे कहीं नजर नहीं आए. फिर मैंने बाहर जाकर देखा कि वो गार्डन में गिरे पड़े थे.

मैं उनके पास दौड़ती चली गयी और अब में उनको उठाने की कोशिश करने लगी थी कि तभी मैंने महसूस किया कि वो मेरी मेक्सी से दिखाई देने वाले मेरे बूब्स और निप्पल को देख रहे थे और में उस वजह से बहुत शरमा गयी. फिर जैसे तैसे मैंने उनको जल्दी से उठाया और उठते समय उन्होंने अपना एक हाथ मेरी गांड पर रख दिया और तब उनको छूकर महसूस हो गया था कि मैंने अंदर पेंटी भी नहीं पहनी है.
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अब मैंने उनसे पूछा कि बाबूजी क्या हुआ, आप कैसे नीचे गिर गये? तब वो बोले कि बहुरानी मेरा अचानक से पैर फिसल गया और में नीचे गिर गया, माफ़ करना बहुरानी मुझे तुम्हे इस हालत में यहाँ नहीं बुलाना चाहिए था.

मैंने उनसे कहा कि बाबूजी कोई बात नहीं है, अब आप आराम कीजिए में अभी नहाकर आती हूँ, वो मुझसे कहने लगे कि बहुरानी मैं पूरा कीचड़ में हो गया हूँ इसलिए तुम बाद में नहा लेना पहले तुम मुझे स्नान कर लेने दो. दोस्तों उनकी वो बात सुनकर में पहले तो बड़ी सोच में पड़ गयी, लेकिन फिर मुझे लगा कि वो मेरे बाबूजी जैसे ही है इसलिए मैंने उनसे कहा कि हाँ ठीक है बाबूजी आप पहले जाकर स्नान कर लो और उनके बाथरूम में घुसने के बाद थोड़ी ही देर में वो बाहर निकल गये.

अब उनके बाहर निकलने के बाद में मेक्सी में अपने गुप्तांग जो छुप नहीं रहे थे, में उनको छुपाने की कोशिश करते हुए नहाने के लिए अंदर चली गयी और फिर में अपनी धुन में और सोच में ही नहाने में लगी और जब नहाने के बाद मैंने टावल को लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया तो मुझे ज़ोर का झटका लगा, क्योंकि वहां पर रखा हुआ टावल नहीं था.
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तभी मेरे मन में शक हुआ कि यह जरुर मेरे ससुरजी की कोई नयी चाल है. फिर मैंने सोचा कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि वो तो जल्दी में नहाने आए थे तो हो सकता है कि ग़लती से वो मेरा टावल अपने साथ ले गए होंगे. फिर मैंने जैसे तैसे करके अपने बदन को साफ किया और फिर में अपनी पेंटी को हाथ में लेकर पहनने ही जा रही थी कि मुझे कुछ गीला सा लगा. क्योंकि मैंने वो पैंटी पहन ली थी तो वो गीला मेरी चूत पर भी लग गया.
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मैंने वापस पेंटी को उतारकर देखा तो अंदर पेंटी के भाग पर कुछ चिपचिपा सा लगा हुआ था. में तुरंत समझ गयी कि मेरे ससुरजी ने मेरी पेंटी पर मुठ मारकर अपना वीर्य निकाल दिया है और वो मेरी चूत पर भी थोड़ा थोड़ा सा लग गया था. मेरी चूत पर लगा हुआ अपने ससुर का वीर्य मुझे बहुत अजीब लग रहा था. मुझे गुस्सा भी बहुत आ रहा था और अजीब सा अनुभव भी हो रहा था. यह पहली बार था कि मेरी चूत पर मेरे पति के इलावा किसी गैर मर्द का वीर्य लगा था. मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उस पेंटी को उतारकर कचरे के डब्बे में फेंक दिया और अब मैंने अपनी ब्रा को देखा तो उन्होंने उसमे भी अपने वीर्य का पानी छोड़ा हुआ था और अब मुझे इतना गुस्सा आ रहा था कि मेरा मन कर रहा था कि में उनका खून कर डालूं इसलिए मैंने गुस्से में आकर अपनी ब्रा को भी कचरे के डब्बे में फेंक दिया था और अब मैंने वापस उनके वीर्य वाली मेरी चूत को साफ किया और मैंने दूसरी बार नहाना शुरू किया.
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उसके बाद अब में सोच रही थी कि में बाहर जाऊँ तो कैसे? क्योंकि ना तो अब मेरे पास टावल था और ना ही ब्रा, पेंटी मुझे इस बात पर बड़ा गुस्सा आ रहा था और अब थोड़ा सा पछतावा भी हो रहा था कि मैंने क्यों जल्दबाज़ी में अपनी ब्रा और पेंटी को उतारकर कचरे में फेंक दिया? तभी मुझे ना चाहते हुए भी अपने ससुरजी को आवाज़ लगानी पड़ी.

मैंने कहा कि बाबूजी आप मेरा टावल ग़लती से लेकर चले गये है, ज़रा आप मुझे दे दीजिए, लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से मुझे कोई भी जवाब नहीं दिया और वो कुछ मिनट के बाद बोले

"हाँ बहुरानी तुम मुझे माफ़ करना में जल्दबाज़ी में अपना टावल ले जाना भूल गया था, इसलिए में तुम्हारा टावल ले आया, ठहरो में तुम्हे दूसरा टावल दे रहा हूँ."

अब मुझे उनके ऊपर इतना गुस्सा आ रहा था, लेकिन में भला कर भी क्या सकती थी? उन्होंने मुझे आवाज़ लगाकर कहा कि यह लो बहुरानी . अब मैंने बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खोलकर हाथ बाहर निकाल दिया और उन्होंने मेरे हाथ को छूते हुए मुझे टावल दे दिया. अब मैंने वो टावल देखा तो मुझे और भी ज़्यादा गुस्सा आया, क्योंकि उन्होंने जो टावल दिया था वो एकदम छोटे आकार का था और उसमें दो जगह छोटे छोटे छेद भी थे. तो में तुरंत समझ गयी कि आज यह बूढ़ा मुझे छोड़ने वाला नहीं है. फिर मैंने उस टावल से अपना शरीर साफ किया और अपने बूब्स से उस टावल को लपेट लिया.
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अब मैंने देखा कि वो टावल छोटा होने की वजह से वो मेरी चूत को ठीक तरह से नहीं ढक पा रहा था और इसलिए मैंने ना चाहते हुए भी उस टावल को थोड़ा ऊपर से नीचे किया, जिसकी वजह से अब टावल मेरे निप्पल से मतलब कि मेरे आधे बूब्स दिख रहे थे और वो दो छोटे छोटे छेद मेरे कूल्हों पर थे जिसकी वजह से मेरी गांड का गोरा रंग साफ दिख रहा था.
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में जल्दी से बाहर आई और अपने कमरे में चली गयी और मैंने दरवाज़ा बंद कर लिया. दोस्तों मेरे बाथरूम से बाहर निकलने और रूम में जाने के बीच तक मेरे ससुर ने मेरे गोरे जिस्म के भरपूर दर्शन कर लिए थे और तब मेरी नजर उसके पाजामे पर गई. मैंने देखा कि उसका लंड तन गया था जो उसके पाजामे से साफ नजर आ रहा था. काफी बड़ा उभार था उनके पाजामे में. लगता है साले बुढऊ का लौड़ा भी काफी बड़ा है.
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Woww very very sexy story. Going to be fun to read it.
 

Premkumar65

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पूरा दिन मुझे बस ऐसे ही लगता रहा कि जैसे मेरी चूत पर मेरे ससुर का वीर्य लगा हुआ हो. बहुत ही अजीब सा अनुभव हो रहा था. हालाँकि मैंने अपनी चूत को साफ़ कर लिया था, पर फिर भी न जाने क्यों बार बार मेरा हाथ अपनी चूत पर ही जा रहा था.
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बाबूजी पर गुस्सा भी आ रहा था. रात को जब मेरे पति घर आए तो उस समय मैंने उन्हे वो सभी बातें बताने के बारे में बहुत बार सोचा, लेकिन मेरे पति शराब के नशे में थे, तो मैंने सोचा कि यदि मैंने पति को यह सब कह दिया तो बाप बेटे में झगड़ा हो जायेगा और पति शराब के नशे में कुछ मारपीट न कर बैठें तो मैं उनको वो कह नहीं सकी और मुझे रोना आ गया. फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या हुआ? मैंने उनको तब भी कुछ नहीं बताया और सुबह हम जब उठे तब मैंने देखा कि मेरे पति तैयार हो रहे थे और मैंने उनसे पूछा कि आप कहाँ जा रहे हो? तब वो बोले कि ऑफिस के काम से में तीन दिनों के लिए दिल्ली जा रहा हूँ और उनके मुहं से यह बात सुनकर मेरे ऊपर जैसे आसमान गिर गया और मैंने बड़े गुस्से से कहा कि आप मुझे अभी बता रहे हो?
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उन्होंने मुझसे कहा कि डार्लिंग तुम कल रात को रोने लगी थी और मुझे इसलिए तुम्हे ज्यादा परेशान नहीं करना था इसलिए मैंने तुम्हे कल रात को नहीं बताया. अब में उनसे जिद करने लगी कि मुझे भी आपके साथ आना है आप मुझे भी अपने साथ ले चलो. तो वो मेरे ऊपर गुस्सा हो गये और बोले कि क्या बच्चो जैसे कर रही हो? घर में बाबूजी हैं और हमारा बीटा भी तो है. उनके खाने पीने का क्या होगा?
अब मैं उन्हें क्या बताती कि दिक्कत तो बाबूजी से ही है. उनका ही तो खतरा है. पर मैं चुप रही. बोलती तो बोलती भी तो क्या? पति तो कुछ जानते ही ना थे. उन्होंने मुझे सुबह सुबह एक बार अपनी बाहों में ले लिया और मुझे नंगा करके किस करने लगे,

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लेकिन मेरा नसीब ही फूटा हुआ था. जैसे ही उन्होंने मेरी पेंटी निकाली तो वो मुझसे बोले कि तुम अपनी चूत तो साफ रखा करो, तुम्हे पता है कि मुझे बालों वाली चूत को चोदना अच्छा नहीं लगता.
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फिर मैंने उनसे कहा कि आज आप बार ऐसे ही कर लो में अगली बार से साफ रखूँगी, उन्होंने कहा कि नहीं और फिर उन्होंने अपना लंड मेरे मुहं में दे दिया और वो मेरे मुहं को धक्के देकर चोदने लगे. उनका लौड़ा तो पूरा टाइट खड़ा होता भी नहीं था आजकल।
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कुछ देर बाद उनका सारा वीर्य मेरे मुहं में भर गया. फिर मैंने फटाफट अपने कपड़े पहन लिए और उन्हे छोड़ने के लिए में बस स्टेंड तक उनके साथ चली गयी, दोस्तों मैं कुछ देर बाद वापस आ गई और अब मैं और मेरे ससुरजी घर में एकदम अकेले थे. मुझे उनसे बहुत डर लग रहा था. कि यह ठरकी बुड्ढा कहीं मेरी जबरदस्ती चुदाई ही न कर दे. पर मैं कर भी क्या सकती थी,
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फिर में वापस नहाने चली गयी और मैंने पहले से ही देख लिया था कि मेरी ब्रा, पेंटी और टावल सब बराबर है या नहीं है और नहाने के बाद मैंने खाना पकाया और उसके बाद दोपहर के समय मैंने मेरे ससुरजी ने साथ में खाना खाया.
मैंने उनको कहा कि बाबूजी में अब सोने जा रही हूँ तो उन्होंने कहा कि हाँ ठीक है बहुरानी . दोस्तों रात को ज़्यादा रोने की वजह से मुझे नींद ठीक तरह से नहीं आई थी इसलिए दोपहर को कुछ देर लेटते ही मेरी आँख लग गई और मेरा लड़का स्कूल से आकर बाहर खेलने चला गया था.

तभी थोड़ी देर के बाद मुझे मेरे रूम के दरवाज़े पर किसी के खटखटाने की आवाज़ आई जिसको सुनकर में उठी और मैंने अपने आपको देखा तो गहरी नींद में मेरी साड़ी कमर तक आ गई थी और मेरी पेंटी दिख रही थी मेरी साड़ी का पल्लू नीचे फिसल गया था. और मेरे मुम्मे भी छोटे से ब्लाउज में से बाहर निकल रहे थे.

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बाबूजी के लिए तो पूरी जन्नत ही थी शायद. बाबूजी कमरे के दरवाजे को खटकटा तो रहे थे, पर दरवाजा अंदर से कुण्डी लगा हुआ नहीं था, तो उन्हें बाहर से ही मेरी जवानी के दर्शन हो रहे थे. बाबूजी भी ना जाने कब से खड़े मेरे अंगों और शरीर का नजारा कर रहे थे.
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मैंने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए और अपने कमरे का दरवाज़ा खोला तो देखा कि बाहर दरवाजे पर ससुरजी खड़े हुए थे और मैंने कहा कि आप तो उन्होंने मुझे चाय देते हुए कहा कि बहुरानी तुम आज कुछ ज़्यादा ही देर सोई हुई थी.
फिर मैंने सोचा कि आज में ही अपने आप चाय बना लूँ तो मैंने चाय बनाकर मैं पी चुका हूँ और यह तुम्हारे लिए है और मैंने चिंटू को भी दूध पिला दिया है. अब में मन ही मन में सोचने लगी कि क्या यह वही मेरे ससुर है जो पिछले दिन अपने लंड का पानी मेरी पेंटी पर डाल गये थे

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और आज मेरे लिए चाय बनाकर लाए है और मैंने सोचा कि आदमी कितना जल्दी रंग बदल लेता है?
अब मैंने वो चाय पीकर खत्म कि और में अपने काम में लग गयी,
Good going. Sasur ji apna jaa bichha rahe hain.
 

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दिन ऐसे ही निकल गया. मैं घर में काम कर रही थी और ससुर जी मुझ इधर उधर घूम रही अपनी बहु के गदराये शरीर को देख देख कर आँखें सेंक रहे थे.
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मैंने घर का काम करने के कारण मैक्सी पहन राखी थी, ताकि थोड़ा आरामदायक रहूँ पर उसका कपडा थोड़ा पतला था तो ससुर जी को मेरे शरीर के कटाव दिखाई दे रहे थे. मैंने सोचा की मैक्सी बदल कर मोटे कपडे की पहन लूँ पर एक तो गर्मी थी और पता नहीं क्यों एक मर्द की अपने शरीर पर घुमती नजरें मुझे भी कुछ कुछ रोमांच दे रही थी, अंदर ही अंदर कहीं मुझे भी अच्छा लग रहा था. शायद शराबी पति से अपनी सेक्स जरूरतें पूरी न हो पाने के कारण मेरी भी सेक्स भूख पूरी नहीं हो रही थी, या शायद हर औरत को अच्छा लगता ही है जब कोई मर्द उस पर आकर्षित होता है. अब चाहे वो थे मेरे अपने ही ससुर पर थे तो एक मर्द ही, और मर्द भी कैसे कि जैसे कोई पहलवान जवान हो. मेरे पति से कहीं कड़ियल गबरू और मजबूत. तो कहीं न कहीं मुझे इतना बुरा भी नहीं लग रहा था. काश वे मेरे ससुर की जगह कोई और मर्द होते तो मैं भी आगे बढ़ कर उन्हें अपना जिस्म दिखाती, पर खैर जो है सो है,
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वे वैसे तो ड्राइंग रूम में बैठे टीवी देखने का बहाना कर रहे थे, पर थोड़ी देर बाद किसी न किसी बहाने से वे किचन में मेरे पास आते और किसी बहाने से मुझे छूने की कोशिश करते.

हम दोनों ससुर बहु के बीच यह आँख मिचौली का खेल चल रहा था.

न चाहते हुए भी मैं अंदर कहीं आनंदित ही हो रही थी,
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थोड़ी देर में आसमान में बादल आ गए. ऐसा लगता था कि कहीं बारिश न आ जाये. जब बादल गरजे तो मुझे एकदम से ध्यान आया कि ऊपर छत पर कपडे सूखने डाले हुए है,

मैंने बाबूजी को आवाज दे कर कहा

"बाबूजी! बारिश आने वाली लगता है. ऊपर छत पर कपडे सूख रहे हैं. उन्हें ले आएं, कहीं भीग न जाएँ."
बाबूजी उठ कर छत पर चले गए. जब वे गए तो मुझे एकदम ध्यान आया कि ऊपर कपड़ों में मेरे ब्रा पैंटी भी सूख रहे हैं.
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हे भगवान, अब मैं क्या करू? बाबूजी तो पहले ही लौड़ा आकड़ाये घूम रहे हैं, अब उनको ही मैंने कपडे उतारने भेज दिया.

पर अब हो भी क्या सकता था. थोड़ी ही देर में बाबूजी कपडे उतार कर नीचे ले आये.

मैं तो सोच ही रही थी कि अब बाबूजी कुछ न कुछ शरारत तो करेंगे.

तभी बाबूजी कपडे लिए हुए मेरे पास किचन में आये, उनके हाथ में मेरी पैंटी थी. पैंटी भी लेस वाली और काफी सेक्सी डिज़ाइन की थी,
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बाबूजी ने उसे पकड़ा हुआ था और उनकी उँगलियाँ पैंटी में जहाँ मेरी चूत होती है उस स्थान पर मसल रही थी जैसे वे मेरी पैंटी नहीं बल्कि मेरी चूत को ही मसल रहे हों.

बाबूजी को पैंटी मसलते देख कर मेरे आँखें शर्म से झुक गयीं. वो मुझे पैंटी दिखाते हुए बोले

"सुषमा! लगता है अपने छत पर किसी पडोसी के भी कपडे गिर गए हैं. यह कपडे (अभी वो भी इतने खुले न थे तो पैंटी न बोल कर कपडे शब्द ही बोल रहे थे) किसके है?"

यह बोलते हुए उन्होंने मेरी पैंटी मेरी सामने कर दी.
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मैं तो शर्म से पानी पानी हो गयी. शर्माते हुए बोली

"मेरी ही हैं बाबूजी."

बाबूजी उसी तरह पैंटी को मसलते बोले

"अरे नहीं बहु. ध्यान से देखो। यह कच्छी तुम्हारी कैसे हो सकती है. यह तो बहुत छोटी सी है, तुम्हारे नाप कैसे आएगी? मुझे लगता है कि किसी पडोसी की होगी. ध्यान से देखो."
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मैं जानती थी कि बाबूजी मुझे छेड़ रहे हैं. वरना उन्हें क्या पता नहीं कि पडोसी की पैंटी उड़ कर हमारी तार पर कैसे आ जायेगी. पर मुझे भी मजा सा आ रहा था. घर में सिर्फ मेरा बेटा ही था और वो भी अपने कमरे में पढ़ रहा था.

मेरी आँखों में भी शरारत की चमक आ गयी तो ना चाहते हुए भी मैं मजा करते बोली
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"बाबूजी यह मेरी ही है. आप कमरे में रख दें."

ससुर जी भी बात को आगे बढ़ाते बोले

"नहीं बहु. देखो तो यह तो बहुत छोटी सी है. तुम्हारी कमर पर कैसे आ पायेगी यह?"

मैं बोली "तो आप क्या समझते हैं कि आपकी बहु इतनी मोटी है?"

बाबूजी मेरे चूतड़ों को ध्यान से देखते हुए बोले
"बहुरानी तुम मोटी तो बिलकुल नहीं हो. तुम्हारे शरीर पर तो कहीं भी फ़ालतू मांस नहीं है. तुम बहुत सूंदर हो. पर लगता तो नहीं की यह पैंटी तुम्हारी टांगों (वो चाह कर भी जांघें या चूतड़ शब्द नहीं बोल पाए) पर चढ़ भी पायेगी. यह तो तुम्हे 10% भी ढक नहीं पाती होगी. इतनी छोटी पैंटी पहनने का क्या फायदा, जब कुछ छुपा ही नहीं पाती होगी यह.कम से कम कपडा जिस काम के लिए हो उसे तो ढक पाए तो ही उसके पहनने का कोई फायदा है. मुझे तो लगता है की इतनी छोटी कच्छी (अब पहली बार उन्होंने कच्छी शब्द बोल ही दिया) तुम्हारा कुछ भी छुपा पाती होगी. "
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ससुर जी का लौड़ा तन गया था और लोहे की तरह सख्त हो गया था. बाबूजी बार बार अपने लौड़े को हाथ से सेट कर रहे थे.

अब पता नहीं उनका लण्ड अकड़ गया था इसलिए उसे ठीक कर रहे थे या फिर मुझे अपना बड़ा सा लण्ड दिखा रहे थे.
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जो भी हो मैं भी तिरछी नजर से उनके लौड़े को देख रही थी और मेरी चूत में भी पानी आने लग गया था और वो भी बहुत गीली हो गयी थी,

मन तो मेरा भी कर रहा था कि मैं अपनी चूत में ऊँगली कर लूँ या कम से कम मैं अपनी चूत को मैक्सी के कपडे के ऊपर से हे रगड़ कर साफ़ कर लू पर ससुर जी पास ही खड़े थे तो कुछ नहीं कर सकती थी,
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अब बातचीत काफी सेक्सी हो चली थी. पैंटी से कच्छी जैसे शब्द और कुछ भी छुपा पाने जैसे शब्द से मैंने सोचा कि बात कहीं हद से आगे न बढ़ जाये तो बाबूजी को बोली.

"बाबूजी! यह कपडे मेरे ही हैं , आप इन्हे कमरे में रख दें. मुझे काम करना है. आप टीवी देखिये जा कर."

बाबूजी समझ गए कि मैं अभी शर्मा रही हूँ, तो उन्होंने भी बात को आगे ना बढ़ाते हुए फिर से एक बार मेरे चूतड़ों की तरफ देखा ।
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अभी मैं सोच ही रही थी की बात ख़त्म हुई, कि बाबूजी ने कपड़ों के ढेर में से मेरी ब्रा निकाली और उसी तरह उसके मुम्मे डालने वाले कप में उँगलियाँ मसलते हुए बोले

"सुषमा बेटी! दिल तो नहीं मानता पर चलो मान लेते हैं कि वो कच्छी तुम्हारी ही है, किसी तरह तुम खींच खाँच कर उसे अपनी टांगो से ऊपर चढ़ा भी लेती होगी और जो थोड़ा बहुत वो ढक सकती है, ढक लेती होगी. पर अब यह मत कह देना की यह ब्रा भी तुम्हारी ही है. यह तो इतनी छोटी लग रही है कि तुम्हारे नाप आ ही नहीं सकती. यह तो जरूर किसी पड़ोसी के उड़ कर आ गए होंगी "
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यह बोलते हुए ससुर जी शरारत से मुस्कुरा रहे थे और उनकी आँखों में चमक थी. उनकी नजरें मेरे बड़े बड़े मम्मों पर थी. और में शर्म से जमीन में गढ़ी जा रही थी.

मैं बोलती तो बोलती भी क्या. पर जवाब तो देना ही था. तो बोली

"नहीं बाबूजी यह ब्रा भी मेरी ही है. किसी और की नहीं. आप प्लीज इसे रख दीजिये."

बाबूजी फिर मेरे आगे ब्रा को लहराते बोले
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"पर बहु. यह ब्रा तो मेरे हिसाब से तुम्हारे नाप से बहुत छोटी है. तुम ध्यान से देखो तुम्हारी ही है क्या?"

यानि अब बाबूजी नजरों से मेरा "नाप" चेक कर रहे थे. और जो कह रहे थे उसका मतलब था कि मेरे मम्मे मोटे और बड़े हैं.
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मैं क्या बोलती. मुंह नीचे किये बोली

"बाबूजी! आप भी क्या बात ले कर बैठ गए. मैंने बोल तो दिया कि मेरे हैं सारे कपडे. आप इन्हे रख दीजिये और मुझे काम करने दें."
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शायद बाबूजी को लगा की बात कुछ ज्यादा खिंच रही है और मैं नाराज न हो जॉन और बात बनने की बजाए बिगड़ न जाये तो बाहर की तरफ चल पड़े , पर चलते चलते बोले

"क्या अजीब हैं आजकल की लड़कियां भी (अब मैं 12 साल पुरानी शादीशुदा औरत थी लड़की थोड़े ही थी) न जाने कैसे इतने छोटे कपडे पहन लेती हैं कि दोनों कप को मिला कर मुश्किल से एक अंदर आ सके."

सीधा मतलब था कि मेरे मम्मे बड़े थे. मैं चुप ही रही. मैं समज रही थी, कि कुछ बोला तो बाबूजी फिर कुछ और कह देंगे.
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बाबूजी ने भी मुझे चुप देखा तो चले गए.

मैंने भी चैन की सांस ली. यह पहली बार था कि बाबूजी ने जब मुझे छेड़ा तो मैंने भी उन्हें आगे से शरारत भरा ही उत्तर दिया था.

बाबूजी भी खुश लग रहे थे. उन्हें लग रहा था कि अब उनकी बहु भी रिस्पॉन्स दे रही है.

वो जा कर ड्राइंग रूम में टीवी के आगे बैठ गए.
Ufff very sexy conversation.
 
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