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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयापिछले अपडेट में आपने पढ़ा की.. अपनी बेतहाशा हवस को शांत करने के लिए शीला आखिरकार रसिक के खेत पर जाने के लिए रात को निकलती है.. वहाँ पहुँचने पर, सुमसान वातावरण और अकेली शीला का फायदा उठाते हुए अनजान शख्सों ने उस पर जबरदस्ती कर दी.. शायद यह वही लोग थे जो शीला ने तब देखे थे जब वो कविता को लेकर रसिक के खेत पर गई थी..
एक सप्ताह बाद, शीला ने राजेश को फोन किया और दोनों होटल के कमरे में मिले.. जहां शीला ने फाल्गुनी के बारे में रहस्य-स्फोट किया और राजेश को चोंका दिया.. एक संतोषकारक संभोग के साथ अध्याय का समापन हुआ
अब आगे...
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देखते ही देखते एक महीने का वक्त बीत गया.. पीयूष और मदन अमरीका से वापिस लौट आयें
उनके आने के दूसरे ही दिन, शीला पर कविता का फोन आया
शीला: "ओहो कविता.. आज सुबह सुबह कैसे याद किया?"
कविता: "आपको तो मैं रोज याद करती हूँ.. फोन आज किया है"
शीला: "बता क्या बात है?"
कविता: "मैंने यह कहने के लिए फोन किया है की मैंने आपका काम कर दिया"
शीला ने आश्चर्य से पूछा "कौनसा काम?"
कविता: "पिंटू की नौकरी पीयूष की ऑफिस मे लगाने वाली जो बात कही थी आपने.. मैं पीयूष के आने का इंतज़ार ही कर रही थी.. कल रात ही बात कर ली मैंने"
शीला: "वाह..!! तो क्या कहा पीयूष ने?"
कविता: "पीयूष तो उत्साहित है पिंटू को लेकर.. अब अमरीका वाला काम आ जाने से उसे वैसे भी किसी अच्छे भरोसेमंद आदमी की जरूरत है.. पर पीयूष को एक ही डर है.. कहीं राजेश सर को ऐसा ना लगे की वो उनके आदमियों को तोड़ रहा है"
शीला: "मैं राजेश से बात कर लूँगी.. ऐसा कुछ नहीं होगा"
कविता: "फिर तो आपका काम हो गया समझो"
शीला ने आभारवश होते हुए कहा "थेंक यू कविता.. बहोत बड़ा बोझ हल्का कर दिया तूने"
कविता: "भाभी, आपका काम हो और मैं न करूँ ऐसा कभी हो सकता है..!!"
शीला: "हाँ यार.. संजय का टेंशन दिन-रात लगा रहता है मुझे.. एक बार इन दोनों का शहर बदल जाए फिर मेरे दिल को तसल्ली होगी"
कविता ने हँसते हुए कहा "और आपकी लाइन भी क्लियर हो जाएगी"
शीला हंस पड़ी और बोली "हाँ.. वो भी है"
कविता: "तो आप राजेश सर से बात कर लीजिए.. मैं रखती हूँ फोन"
शीला: "ओके कविता"
कविता के फोन रखते ही शीला ने सीधे राजेश को फोन लगाया
राजेश: "हाँ भाभीजी, बोलिए.. आज मिलना है क्या?"
शीला ने हँसकर कहा "मदन लौट आया है राजेश.. मिल तो फिर भी सकते है.. और वो भी उसके साथ.. पर अभी किसी और काम से मैंने तुम्हें फोन किया है"
राजेश: "बताइए भाभी, क्या सेवा करूँ??"
शीला ने विस्तार से बताया.. संजय के खतरे के चलते पिंटू का शहर छोड़ना कितना जरूरी था और उसके लिए उसका नौकरी बदलना भी
राजेश: "भाभी, आपकी बात मैं समझ रहा हूँ.. पर अभी इतना वर्कलोड है की मैं पिंटू को अभी नहीं छोड़ सकता"
शीला: "राजेश, पिंटू की जान से बढ़कर तुम्हारा काम नहीं हो सकता.. संजय का कुछ ठिकाना नहीं है.. पता नहीं कब फिर से झपट पड़े..!! और यह भी सोच की एक बार वैशाली और पिंटू यहाँ से शिफ्ट हो गए तो हम सब अपनी पुरानी ज़िंदगी फिर से शुरू कर सकते है"
राजेश सोच में पड़ गया और काफी देर तक कुछ बोला नहीं
शीला: "देख राजेश, क्या तुम नहीं चाहते की तुम दोबारा बिना किसी रोकटोक के मेरे घर आ सको और हम दोनों फिर से पूरी रात मजे से गुजारे?"
राजेश: "ठीक है भाभी.. अगर पिंटू की भी इच्छा हो तो मैं उसे रोकूँगा नहीं"
शीला: "शुक्रिया राजेश.. अभी मुझे पिंटू और वैशाली से भी बात करनी है"
राजेश: "ठीक है भाभी"
राजेश ने फोन रख दिया.. पिंटू जैसे होनहार कर्मचारी को छोड़ने का उसका मूड नहीं था.. पर बात उसकी सुरक्षा की थी.. और उनके जाने से वह फिर से पूर्ववत होकर अपनी रंगीन ज़िंदगी में लौट भी सकते थे
शीला फोन रखकर सोफ़े पर बैठी सोच रही थी.. तभी मदन बाथरूम से नहाकर बाहर आया
मदन: "किससे बात कर रही थी सुबह सुबह?"
शीला ने सोफ़े से उठते हुए कहा "लंबी बात है.. तू नाश्ता करने बैठ जा.. मैं सब बताती हूँ"
मदन डाइनिंग टेबल पर बैठकर बेसब्री से शीला के आने का इंतज़ार करने लगा
शीला थोड़ी ही देर मे चाय और नाश्ता लेकर आई और मदन के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई
दोनों नाश्ते करने लगे..
मदन: "अब बताओगी भी की क्या बात है..!!!"
शीला ने विस्तारपूर्वक सारी बात मदन को बताई
सुनकर मदन भी सोच में पड़ गया
मदन: "क्या तुमने पिंटू और वैशाली से इस बारे में बात की है क्या?"
शीला: "अब तक नहीं की है.. पहले कविता के द्वारा पीयूष से बात की.. और फिर राजेश से.. दोनों मान गए है इसलिए अब पिंटू से बात करूंगी"
मदन: "लगता है की पिंटू मान जाएगा?"
शीला: "उसे मानना ही होगा.. ऐसे जोखिम के साथ कब तक जीते रहेंगे? और वहाँ उसे तरक्की भी मिलेगी.. सैलरी भी बढ़ जाएगी.. पिंटू का घर भी है उस शहर में.. सब से बेस्ट होगा"
मदन: "सही कह रही हो तुम"
शीला: "मैंने आज शाम को वैशाली और पिंटू को खाने पर बुलाया है.. तब बात करेंगे"
मदन: "ठीक है"
उस रात जब वैशाली और पिंटू, शीला के घर खाना खाने आए तब शीला ने विस्तार पूर्वक दोनों को सब कुछ बताया
पिंटू काफी देर तक खामोश रहा.. जैसे कुछ सोच रहा हो..!! व्यग्र मन से और बड़ी ही उत्कंठा के साथ शीला उसके सामने देख रही थी
पिंटू: "मुझे सोचने के थोड़ा वक्त चाहिए मम्मी जी"
शीला: "इसमे सोचने वाली कोई बात ही नहीं है.. एक तो तुम्हारी तरक्की हो जाएगी, तनख्वाह भी बढ़ेगी.. दूसरा, तुम्हारा वहाँ खुद का घर है.. तो रहने का इंतेजाम करने की कोई झंझट नहीं.. तुम्हारे माता-पिता भी कितना खुश होंगे.. तीसरा, संजय से भी छुटकारा मिल जाएगा"
पिंटू ने जवाब नहीं दिया.. हालांकि जो बातें शीला ने बताई वह शत प्रतिशत सच थी और काफी आकर्षक भी.. लेकिन पता नहीं उसके दिमाग में क्या चल रहा था..!!
शीला ने पिंटू का हाथ पकड़ा और उसे ड्रॉइंग रूम के बाहर, बरामदे में ले गई.. मदन और वैशाली सोफ़े पर ही बैठे रहे
शीला ने पिंटू से अब अकेले में कहा "देख बेटा.. शादी से पहले जो कुछ भी हुआ राजेश और वैशाली के बीच, उसके बाद तुम्हारे और राजेश के संबंधों में जो तनाव आया है, उसके बारे में मैं जानती हूँ.. और वो वाजिब भी है..!! ऐसे असुविधाजनक माहोल में काम करने से तो बेहतर होगा की तुम इस मौके को स्वीकार लो.. इसी में सबकी भलाई है" पिंटू को मनाने में कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती थी शीला
पिंटू: "आप सही कह रही हो मम्मी जी, यह प्रस्ताव सभी मायनों में मेरे लिए अच्छा ही है"
शीला: "तो फिर इतना सोच क्यों रहे हो..!! तुम्हारी हाँ हो तो मैं आज ही कविता से कहती हूँ की पीयूष तुम्हारे साथ इस बारे में बात करें..!! वैसे कविता ने पीयूष से बात कर ली है इसलिए सिर्फ तुम्हारे हाँ कहने की ही देरी है"
पिंटू: "पर मम्मी जी, फिलहाल ऑफिस में जो काम का बोझ है मेरे ऊपर, मुझे नहीं लगता की राजेश सर इतनी आसानी से जाने देंगे मुझे"
शीला: "तुम एक बार बात करके तो देखो.. मेरा मन कह रहा है की राजेश मना नहीं करेगा.. कई बार हम पूर्व-धारणा और अनुमान लगाकर बिना वजह ही तनाव में जीते रहते है.. और कोशिश ही नहीं करते..!!! एक बार बात करके तो देखो..!! हो सकता है की वो खुशी खुशी मान जाएँ" शीला ने यह बात पिंटू को नहीं बताई की उसकी राजेश से इस बारे में बात हो चुकी है.. पिंटू के मन के शक को वो बढ़ावा देना नहीं चाहती थी
पिंटू ने आखिर शीला के सामने हथियार डाल दिए "ठीक है मम्मी जी, आप कविता से बात कीजिए.. पीयूष से मैं बात कर लूँगा.. फिर जो तय होता है उस हिसाब से मैं आगे राजेश सर से बात करूंगा"
सुनते ही शीला बहोत खुश हो गई, उसने कहा "तुमने बिल्कुल सही फैसला लिया है.. यही सब के हित में होगा"
पिंटू ने असमंजस से शीला के सामने देखते हुए कहा "सब के हित में मतलब?"
शीला: "अरे.. मतलब तुम्हारे और वैशाली के लिए.. और हमारे लिए भी.. तुम लोग आराम और चैन से खुशी खुशी रहोगे तो हमारे दिल को भी तसल्ली होगी"
पिंटू मान गया..!!!
वैशाली और पिंटू के जाने के बाद, शीला ने तुरंत कविता से फोन पर बात की और इस बारे में बताया.. साथ ही उसे पीयूष से जल्द से जल्द इस बारे में बात करने को कहा
फोन रखने के बाद, शीला ने गहरी सांस ली.. जैसे दिमाग से एक बहोत बड़ा बोझ उतर गया हो
मदन शीला के पास आकर खड़ा हुआ.. और उसका हाथ पकड़कर सोफ़े से खड़ा किया.. शीला ने उसकी आँखों में शरारत देखी और इशारा समझ गई.. मदन के पीछे चलते चलते वो बेडरूम मे आई और बिस्तर पर फैल गई..
गदराए बदन वाली शीला का रसीला बदन देखकर मदन बावरा हो गया.. एक महीने से उसे सेक्स नहीं मिला था.. और अब वो शीला को बड़े ही आराम से भोगना चाहता था..
मदन ने शीला का ब्लाउज खोल कर उतार दिया अंदर की ब्रा भी उतर गयी.. अब शीला के मटके जैसे बड़े बड़े स्तन मदन के सामने आ गये.. वह विराट चर्बी से भारे मांसल स्तन.. शीला के शरीर पर दोनों तरफ ढल गए.. एक पल के लिए मदन अपनी पत्नी के उन स्तनों का वैभव देखने में खो सा गया.. शीला भी अब उत्तेजना के कारण कांप रही थी.. मदन ने शीला् को बेड पर लिटा दिया.. मदन के हाथ शीला के स्तनों का मर्दन करने लग गये.. इस कारण से शीला के उरोज और तन गये और कठोर हो गये.. स्तनों के निप्पल फुल कर लंबें हो गये.. मदन ने उन निप्पलों को अपने होंठों के बीच ले लिया..
शीला के मुँह से हल्की सी कराह निकल रही थी.. मदन का हाथ शीला की गूँदाज कमर पर से होते हुये पेटीकोट के ऊपर से शीला की जाँघों के मध्य में पहुँच गया.. कपड़े के ऊपर से ही शीला की चूत को सहला दिया.. फिर हाथ को पेटीकोट के अंदर डाल कर पेंटी के ऊपर से चूत को सहलाना शुरु कर दिया.. शीला का भोसड़ा गीला हो चुका था.. मदन ने अपनी उंगली उसकी चूत में डाल कर अंदर बाहर करनी शुरु कर दी..
मदन ने आज शीला का जी-स्पॉट ढूंढ निकाला.. चूत के अंदर उंगली डालकर ऊपर के हिस्से पर बना गद्दीनुमा हिस्सा.. इतना संवेदनशील होता है की उंगली के सहलाते ही स्त्री झड़ जाएँ.. मदन हल्के हल्के उसे उंगली से सहलाने लग गया.. कुछ देर बाद उत्तेजना के वश हो कर शीला् ने मदन के होंठों को अपने दांतों में दबा लिया.. शीला के दांत मदन के होंठों को काटने लग गये.. शीला अब पूर्णतः उत्तेजित हो चुकी थी और अब उसका भोसड़ा भोग मांग रहा था..
मदन ने झुक कर शीला के पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे खिसकाया और उस के बाद पेंटी को भी नीचे उतार दिया.. शीला् ने हाथ से दोनों को पैरों से निकाल दिया.. मदन ने अपना पायजामा और ब्रीफ उतार कर रख दी.. अब वह दोनों नंगें हो कर एक-दूसरे से चिपक गये.. मदन के पाँव शीला की कमर पर कस गये.. मदन के हाथ शीला के बड़े बड़े कुल्हों को दबा रहे थे..
कुल्हों के बीच की गहराई में वह उंगली फेरने लगा.. इस हरकत से शीला चिहुंक गयी.. मदन शीला की जाँघों को सहला कर शीला की जाँघों के बीच आ गया और अपने लंड को शीला की चूत पर रगड़ने लग गया.. मदन का लंड भी पुरी तरह से तन कर कठोर हो गया था..
एक महीने की भूख के बाद, मदन से अब रुका नहीं जा रहा था इस लिये लंड को चूत के मुँह पर लगा कर उसने जोर लगाया तो लंड शीला की चूत में समा गया.. अब दोनों के शरीरों के मध्य में कोई जगह नहीं बची.. कुछ देर रुकने के बाद मदन ने लंड को बाहर निकाला और फिर से अंदर डाल दिया.. इस बार शीला के पाँव उसकी कमर पर कस गये..
मदन अब धीरे-धीरे धक्कें लगाने लगा.. कुछ देर बाद शीला भी अपने कुल्हें उठा कर मदन का साथ देने लग गयी.. दोनों एक साथ दौडने लग गये.. पहले धीरे और उसके बाद दोनों की गति बढ़ गयी.. दोनों ही सेक्स के भुखे थे इस लिये दोनों एक-दूसरे में समाने का पुरा प्रयास कर रहे थे.. दोनों के शरीर की गति लगातार चलती रही.. काफी देर तक ऊपर रहने के बाद मदन शीला के उपर से उठ कर शीला की बगल में लेट गया.. वो थक सा गया था..
अब शीला उठ कर मदन के उपर आ गयी और उसने अपने हाथ से सहारा दे कर मदन का लंड अपनी चूत में डाल लिया और उसके कुल्हें मदन की जाँघों पर टक्कर मारने लग गये.. शीला के प्रहारों में बहुत ताकत थी और मदन की जाँघों का जोड़ उस की ताकत को झेल रहा था.. मदन ने अपने दोनों हाथों से शीला के कुल्हें थाम लिये.. दोनों काम की अग्नि में जल रहे थे और इस से छुटकारा चाहते थे.. कुछ देर बाद मदन के लंड पर उछलने के बाद, शीला भी थक गई और बिस्तर पर लेट गई..
अब मदन बेड पर बैठ गया और शीला को खींचकर अपनी गोद में बिठा लिया.. शीला मदन के लंड पर सवार हो गई और अपने कुल्हें उठा कर लंड को अंदर बाहर करने लगी.. मदन शीला के उरोजों का रस पीने लगा.. काफी देर तक उस आसन में रहे लेकिन चरम की अवस्था से दूर थे.. मदन ने शीला को धीरे से पीछे की तरफ झुका कर बेड पर लिटा दिया और उसके उपर आ गया.. मदन की धक्के लगाने की गति बहुत बढ़ गई.. चुदाई करते करते हमें काफी देर हो गयी थी..
कुछ ही देर बाद मदन के लंड के मुँह पर गर्म वीर्य के कारण आग सी लग गयी और उसकी आँखें मुंद गयी.. थका हुआ मदन शीला के ऊपर लेट गया.. मदन का स्खलन बहुत जोर से हुआ था.. शीला के पैर उसकी कमर पर कस गये यह बता रहा था कि वह भी स्खलित हो गई थी.. हम दोनों एक-दूसरे के बगल में लेट गये.. दोनों की सांसें बहुत जोर-जोर से चल रही थी..
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वक्त बड़ी तेजी से गुजर रहा था.. पिंटू ने पीयूष की ऑफिस जॉइन कर ली थी.. उतना ही नहीं.. पीयूष ने वैशाली को भी जॉब ऑफर कर दी.. जिसका वैशाली ने खुशी खुशी स्वीकार कर लिया.. पिंटू के माता पिता ने भी वैशाली को इजाजत दे दी.. पिंटू और वैशाली एक ही ऑफिस मे काम करेंगे.. और पीयूष से पुरानी पहचान होने के कारण, वह दोनों भी आश्वस्त थे..
वैशाली के वहाँ शिफ्ट हो जाने से कविता भी बहोत खुश थी.. उसे अपनी पुरानी सहेली वापिस मिल गई थी.. पिंटू के आने से पीयूष का काफी सारा बोझ हल्का हो गया.. अमरीका के ऑर्डर की ज्यादातर जिम्मेदारी उसने पिंटू को दे दी थी.. नया काम सीखने में पिंटू को ज्यादा देर नहीं लगी.. पीयूष के साथ काम करने का उसे पहले भी तजुर्बा था.. वैशाली और पिंटू बड़े ही आराम से पीयूष की ऑफिस में सेट हो गए थे
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दोपहर का समय था.. द्रश्य है शीला और मदन के बेडरूम का..
मदन बेडरूम की एक कुर्सी पर.. नंगे बदन बैठा हुआ है.. उसके एक हाथ में व्हिस्की का ग्लास है और दूसरे हाथ से वह अपना लंड हिला रहा है.. उसकी नजर बिस्तर की तरफ थी..
पसीने से तरबतर नग्न शीला.. बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई थी.. उसके बड़े बड़े मटके जैसे स्तन आगे पीछे हो रहे थे.. विराट गुंबज जैसे उसके कूल्हे थिरक रहे थे.. और उन कूल्हों के बीच की दरार में लंड फँसाकर.. राजेश ऐसे धनाधन शॉट मार रहा था.. जैसे १ ओवर में ३६ रन बनाने हो..!!!
गुदा-मैथुन से अभ्यस्त शीला.. अपने पृष्ठ भाग के छेदन का अप्रतिम आनंद ले रही थी.. उसके दोनों नितंबों पर अपनी हथेलियाँ जमाकर.. राजेश उस तंग छिद्र में अपना लंड आगे पीछे करने का मज़ा ले रहा था.. उसने झुककर शीला के दोनों स्तनों को पकड़ना चाहा.. पर एक ही हाथ में आया.. उस एक स्तन की चर्बी को हथेली में दबाकर उसने अपना लंड.. सिरे से लेकर जड़ तक शीला की गांड में अंदर तक घुसेड़ दिया..
ककॉल्ड संबंध..
यह विषय संवेदनशील और व्यक्तिगत प्रकृति का है, और इसे समझने के लिए गहन मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और नैतिक पहलुओं पर विचार करना आवश्यक है.. ककॉल्ड फ़ैंटेसी या वास्तविकता एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक पति को अपनी पत्नी को किसी अन्य पुरुष के साथ यौन संबंध बनाते हुए देखने या इसकी कल्पना करने से यौन सुख मिलता है.. यह एक प्रकार की यौन प्राथमिकता या फ़ैंटेसी हो सकती है, लेकिन इसमें कई जटिलताएं और जोखिम भी शामिल हैं..
ककॉल्ड फ़ैंटेसी अक्सर मनोवैज्ञानिक कारकों से जुड़ी होती है, जैसे कि दूसरे पुरुष के प्रति ईर्ष्या और आकर्षण का मिश्रण, या अपनी पत्नी को किसी और के साथ देखकर उत्तेजित होना.. कुछ पुरुषों को यह अनुभव अपनी पत्नी की यौन इच्छाओं को पूरा करने और उन्हें खुश रखने के तरीके के रूप में देखते हैं..
इस प्रथा में अक्सर सत्ता और अधीनता का तत्व शामिल होता है.. पति को यह अनुभव हो सकता है कि वह अपनी पत्नी को किसी और के साथ साझा करके उसकी इच्छाओं को प्राथमिकता दे रहा है, जो उसे एक अलग तरह की संतुष्टि प्रदान करता है.. यह प्रथा यौन रूढ़ियों और सामाजिक मानदंडों को चुनौती दे सकती है.. यह जोड़ों को यह एहसास दिला सकती है कि यौन संबंधों में कोई नियम या सीमाएं नहीं होती हैं, बशर्ते दोनों पार्टनर्स सहमत हों.. यह उन्हें अपने यौन जीवन को अपने तरीके से जीने की स्वतंत्रता दे सकता है..
ककॉल्ड प्रथा यौन जीवन में नई ऊर्जा और रोमांच ला सकती है.. यह एक तरह की यौन विविधता प्रदान करती है, जो कुछ जोड़ों के लिए उनके रूटीन यौन जीवन को और अधिक रोचक बना सकती है.. पति को अपनी पत्नी को किसी और के साथ देखकर एक अलग तरह की उत्तेजना महसूस हो सकती है, जो उनके यौन अनुभव को बढ़ा सकती है.. यह एक तरह से पत्नी की यौन स्वतंत्रता और खुशी को समर्थन देने का तरीका हो सकता है.. पति को यह अनुभव हो सकता है कि वह अपनी पत्नी को खुश रखने और उसकी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम है.. दोनों पार्टनर्स को एक-दूसरे के प्रति ईमानदार और खुला होने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है.. इससे रिश्ते में पारदर्शिता और विश्वास बढ़ सकता है..
कुछ जोड़ों के लिए, यह प्रथा उनके रिश्ते में नई ऊर्जा और जुड़ाव ला सकती है.. यह एक साझा अनुभव हो सकता है जो दोनों पार्टनर्स को एक-दूसरे के करीब लाता है.. यदि दोनों पार्टनर्स इस प्रथा को सहमति और उत्साह के साथ अपनाते हैं, तो यह उनके बीच के बंधन को मजबूत कर सकता है.. ककॉल्ड प्रथा से दोनों पार्टनर्स को यौन संतुष्टि मिल सकती है.. पति को अपनी पत्नी को किसी और के साथ देखकर एक अलग तरह की उत्तेजना महसूस हो सकती है, जबकि पत्नी को भी एक नए यौन अनुभव का आनंद मिल सकता है.. यह दोनों के लिए एक तृप्तिदायक अनुभव हो सकता है..
हालांकि, यह प्रथा हर किसी के बस की बात नहीं है..!!
यदि यह प्रथा वास्तविक जीवन में अपनाई जाती है, तो इससे भावनात्मक जोखिम भी उत्पन्न हो सकते हैं.. पति को ईर्ष्या, असुरक्षा, या अपनी पत्नी के प्रति भावनात्मक दूरी महसूस हो सकती है.. इसके अलावा, पत्नी को भी इस स्थिति में असहजता या दबाव महसूस हो सकता है..
ऐसे संबंधों में सम्मिलित होने के लिए दोनों पार्टनर्स के बीच खुला और ईमानदार संचार आवश्यक है.. दोनों को इस प्रथा के बारे में सहमत होना चाहिए और किसी भी तरह का दबाव नहीं होना चाहिए..
शीला की गांड में धक्के लगाते हुए अब राजेश हांफ रहा था.. उसने मदन को इशारा करते हुए.. शीला के गुंबजों के बीच.. धक्के लगाने के लिए आमंत्रित किया.. ताकि वह थोड़ी देर विश्राम कर.. फिर से जुड़ सकें..
व्हिस्की के ग्लास से घूंट भरते हुए हस्तमैथुन कर रहे मदन ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.. वह उत्तेजित तो था पर शायद संभोग में समाविष्ट होने के लिए या तो तैयार नहीं था या फिर उसे रुचि नहीं थी..
पर राजेश से अब और धक्के लगाना मुमकिन नहीं था.. उसने अपना लंड, शीला की गांड से "पुचुक" की आवाज करते हुए बाहर निकाला.. और हांफते हुए तकिये पर सिर रखकर लेट गया..
अचानक पीछे से धक्के लगने बंद होने की वजह सुनिश्चित करने के लिए, शीला ने आश्चर्य से पीछे देखा.. और राजेश को लेटकर हांफते हुए देखा.. वह उसकी स्थिति समझ गई.. और बिस्तर पर खड़ी होकर मुड़ गई.. वह अब राजेश के दोनों पैरों के आसपास पैर जमाकर खड़ी हुई थी और राजेश के सामने देख रही थी.. पसीने की धाराएँ उसके शरीर पर बूंदों की रेखाएं बना रही थी.. शीला ने मदन की ओर हाथ से इशारा करते हुए व्हिस्की का ग्लास मांगा.. मदन ने तुरंत उसे वो ग्लास थमा दिया..
करीब ३० मि.ली. जितनी, पानी मिश्रित शराब.. वह एक घूंट में पी गई.. ग्लास मदन को वापिस दिया.. और अपने मुंह से लार निकालकर.. भोसड़े की दरार को लसलसित करने लगी.. घुटने मोड़कर.. कमर झुकाते हुए वह नीचे की तरफ आई.. राजेश का लंड जो कमरे की सीलिंग को तांक रहा था.. उसे अपनी हथेली में लेकर.. अपने गरम भोस की और निर्देशित करते हुए.. उसके सुपाड़े को दोनों होंठों के बीच रखकर.. अपना वज़न डालने लगी.. एक ही पल में वह लंड उसकी यौन गुफा में ओझल हो गया..
शीला अब ऊपर नीचे होते हुए धक्के लगाने लगी.. हर धक्के के साथ उसके नितंब.. राजेश की जांघों पर थप-थप की आवाज कर रहे थे.. हर धक्के के साथ.. शीला के अलमस्त उरोज हवा में उछल रहे थे.. उत्तेजना से उसकी निप्पल तनकर लंबी हो गई थी..
अपनी दोनों जांघों पर हाथ रखकर.. शरीर को संतुलित रखते हुए.. शीला तालबद्ध ऊपर नीचे हो रही थी.. नीचे लेटा हुआ राजेश.. शीला के इस अद्भुत रूप को हतप्रभ होकर देख रहा था
एक उत्तेजित स्त्री, जो संभोग के क्षणों में पूरी तरह से लीन होती है, उसका सौंदर्य अद्वितीय और मनमोहक होता है.. उसकी आँखों में चमक, होंठों पर मुस्कान, और शरीर का हर एक अंग जैसे जीवंत हो उठता है.. उसकी सांसों की तेज़ गति, कोमल मुद्राएं, और उसकी आवाज़ में छुपी वह मधुरता, जो उसके आनंद को व्यक्त करती है, वह दृश्य अवर्णनीय होता है.. उसकी उत्तेजना और भावनाओं की गहराई उसे और भी आकर्षक बना देती है, जैसे वह प्रेम के हर पल को जी रही हो.. यह सौंदर्य न केवल बाहरी होता है, बल्कि आत्मा तक से प्रकट होता है, जो उसे एक अद्भुत और अविस्मरणीय अनुभव बनाता है.. यह सौंदर्य प्रेम के सबसे गहरे और सुंदर क्षणों को दर्शाता है, जो हमेशा याद रह जाती है..
दोनों हथेलियों से अपने बालों को सहलाते हुए शीला आँखें बंद कर उछलते हुए आनंद के महासागर में गोते लगा रही थी.. लेटा हुआ राजेश, अपने अंगूठे को उसकी अंगूर जैसी क्लिटोरिस को रगड़ रहा था.. उसके दो कारण थे.. एक यह की शीला अमूमन क्लिटोरिस रगड़ने पर जल्दी स्खलित हो जाती थी.. और दूसरा यह की शीला ने राजेश की सम्पूर्ण ऊर्जा निचोड़ ली थी.. राजेश अब इस संभोग को खत्म करना चाहता था.. पर बिना शीला के चरमोत्कर्ष पर पहुंचे यह मुमकिन नहीं था..!!
शीला अब अपनी धुंडियों को मसलते हुए अनाब-शनाब बकने लगी.. हवस का सुरूर उसके सर चढ़कर बोल रहा था.. वह इतने तेजी से उछलकूद रही थी की राजेश को डर था उसकी जंघा की हड्डी टूट न जाए..!! शेरनी की तरह गुर्राते हुए शीला ने अंतिम कुछ धक्के लगाएं.. और राजेश का अंगूठा हटाकर.. खुद अपनी हथेली से भगोष्ठ को रगड़ने लगी..
उसका शरीर कांपने लगा.. राजेश के लंड पर शीला के योनि-जल का विपुल मात्रा में अभिषेक हुआ.. शीला की सांसें धमन की तरह तेज चल रही थी.. वह अपने स्तनों के भारी बोझ को राजेश की छाती पर डालते हुए.. उसके गालों पर गाल रखकर लेट गई..
अगर उसकी धड़कनों का अनुभव न हो रहा होता.. तो राजेश को ऐसा ही लगता की शीला ने प्राण ही त्याग दिए..!!! लाश की तरह कुछ मिनटों तक पड़ी रही शीला.. राजेश को अब शीला के भारी भरकम शरीर का काफी वज़न लग रहा था.. उसने थोड़ा जोर लगाया और शीला के शरीर को अपने शरीर से धकेलते हुए बगल में बिस्तर पर गिरा दिया.. शीला का शरीर उतरते ही राजेश ने चैन की सांस ली..
उसने मदन की ओर देखा.. राजेश का यह हाल देखकर वो बैठा मुस्कुरा रहा था..
राजेश: "यार मेरे लिए भी एक पेग बना.. थक गया मैं तो.. तेरी बीवी ने मेरी जान ही निकाल दी आज"
मदन हंसने लगा "शीला को झेलना हर किसी के बस की बात नहीं है राजेश"
राजेश ने कहा "तू यार ज्ञान मत दे.. पेग बना"
मदन: "बोतल बाहर ड्रॉइंग रूम मे पड़ी है"
राजेश: "चल हम दोनों बाहर बैठते है.. शीला भाभी को आराम करने दे"
दोनों बाहर के कमरे में आए.. टेबल पर पड़ी व्हिस्की की बोतल से छोटा सा पेग बनाकर.. थोड़ा पानी डालकर.. राजेश सोफ़े पर धम्म से बैठ गया.. मदन भी उसके बगल में बैठकर अपने ग्लास से चुसकियाँ लगा रहा था
राजेश ने अपने कपाल से पसीना पोंछते हुए कहा "यार मदन.. तू क्यों नहीं आया बिस्तर पर?"
मदन: "यार, आज सुबह ही दो बार जबरदस्त शॉट लगा लिए थे.."
राजेश: "कसम से.. मज़ा आ गया.. शीला भाभी तो आग है आग..!!"
मदन ने कोई प्रतिक्रिया न दी और ग्लास से व्हिस्की पीता रहा..
राजेश ने मदन की ओर देखकर कहा "चुप क्यों है? कुछ बोलता क्यों नहीं??"
मदन: "क्या कहूँ?? तुझे तो मज़ा आ रहा है शीला के साथ.. पर मेरा क्या?"
राजेश कुछ समझा नहीं, उसने कहा "मतलब?"
मदन ने गुस्से से कहा "तुझे तो नई चूत मिल जाती है शीला के रूप में.. पर मेरे लिए तो वही पुराना खाना..!! जब से रेणुका प्रेग्नन्ट हो गई है.. मेरा तो सब कुछ बंद ही हो गया है"
राजेश: "वो दूधवाले की बीवी नहीं आती अब?"
मदन: "कहाँ..!! वो तो गायब ही हो गई है.. पता नहीं उसे क्या हो गया"
राजेश: "थोड़े पैसे दे दे उसको यार"
मदन: "देने के लिए हाथ भी तो आनी चाहिए"
राजेश: "हम्म..!!"
मदन: "यार, मेरे लिए कुछ जुगाड़ कर.. वरना ये अदला बदली वाला खेल ही बंद कर दूंगा"
राजेश सोच में पड़ गया.. वह जानता था की यह नोबत कभी न कभी तो आने ही वाली थी.. और उसका तोड़ भी उसके पास था.. वो शीला के गदराए बदन को ऐसे ही छोड़ने वाला नहीं था
राजेश ने कहा: "जुगाड़ तो है"
मदन की आँखें चमक उठी, वह बोला "अच्छा..!!! तो पहले क्यों नहीं बताया?? कौन है वो?"
राजेश: "यार इतना आसान नहीं है.. उसे मनाना भी पड़ेगा.. पर मुझे लगता है ज्यादा दिक्कत नहीं होगी"
मदन ने उत्सुकता से कहा "पर है कौन वो?"
राजेश ने थोड़ी देर रुककर कहा "फाल्गुनी.."
मदन को जैसे अपने सुने पर विश्वास नहीं हो रहा था.. उसने अचंभित भाव से कहा "फाल्गुनी..,.!!!"
राजेश: "हाँ तूने सही सुना"
मदन: "वो लड़की जो मौसम की सहेली है??" मदन को अब भी यकीन नहीं हो रहा था..
राजेश: "हाँ मदन.. वही फाल्गुनी"
मदन कुछ पल के लिए तो कुछ बोल ही नहीं पाया.. फिर जब उसकी वाचा वापिस लौटी तब उसने कहा
मदन: "पर यार वो तो अभी बच्ची है"
राजेश ने मदन के सामने देखकर हँसते हुए कहा "एक बार उसका बिस्तर गरम करके देख.. अच्छी अच्छी औरतों को भुला देगी"
मदन: "क्या बात कर रहा है यार..!! तूने ली है क्या उसकी?"
राजेश: "कई बार.. तभी तो तुझे बता रहा हूँ"
मदन ने चकित होते हुए पूछा "पर यार, उसका सेटिंग तूने क्या कैसे?"
राजेश ने मुसकुराते हुए कहा "लंबी कहानी है.. पूरे एक साल तक फील्डिंग कर मैंने उसे सेट किया है"
मदन: "गजब है यार तू तो"
राजेश हँसता रहा और कोई जवाब नहीं दिया
मदन: "बता तो सही.. आखिर तूने उस मछली को जाल में फँसाया कैसे?"
राजेश ने एक गहरी सांस ली और सुबोधकांत के एक्सीडेंट के बाद हाथ में आए उनके मोबाइल फोन के बारे में बताया
राजेश: "जब अस्पताल में तू चाय लेने गया था तब मैंने उनका पूरा मोबाइल छान मारा.. उसमे मुझे सुबोधकांत और फाल्गुनी के बीच की सारी सेक्सी चेट के बारे में पता चला.. अंदर अनगिनत सेक्स विडिओ भी थे दोनों के.. मैंने वह सब मेरे मोबाइल में ट्रैन्स्फर कर दिया और फिर सुबोधकांत के मोबाइल से डिलीट कर दिया"
लटके हुए जबड़े के साथ मदन राजेश की बात सुनता रहा
राजेश: "फिर काफी समय गुजर जाने के बाद मैंने फाल्गुनी से बात की और यह भी बताया की मुझे उसके और सुबोधकांत के संबंधों के बारे में सब कुछ पता है और उनके फ़ोटो विडिओ भी है मेरे पास.. बस फिर बातों का सिलसिला चलता रहा.. सुबोधकांत के जाने के बाद वो भी बिना चुदे तड़प रही थी.. फिर उसकी टांगें खोलने में ज्यादा देर नहीं लगी"
मदन: "वो सब तो मैं समझ गया.. पर वो उस शहर में.. और तू यहाँ.. तुम दोनों का मिलना होता कैसे था?"
राजेश: "जब तू और पीयूष अमरीका गए तब मैंने रेणुका से यह बहाना बनाया की पीयूष अपनी ऑफिस की जिम्मेदारी मुझे सौंप कर गया है.. और इसलिए हफ्ते में दो-तीन दिन मुझे उसकी ऑफिस जाना पड़ेगा.. बस फिर क्या था..!! मैं वहाँ पहुँच जाता था और फिर हम दोनों रात रात भर मजे करते थे"
मदन: "तुम लोग मिलते कहाँ थे? होटल में?"
राजेश: "अब उस शहर में होटल के नाम से ही डर लगता है मुझे..!!! याद है न वो सेक्स पार्टी वाली रात जब पुलिस की रेड पड़ी थी..!! असल में सुबोधकांत का एक निजी फार्महाउस है.. उनकी मृत्यु से पहले वह दोनों वही गुलछर्रे उड़ाते थे.. वहीं मिलते है.. मेरे खयाल से उस फार्महाउस के बारे में किसी और को पता भी नहीं है"
मदन: "सही है यार.. बड़ा ऊंचा दांव मारा है तूने..!! पर यार.. तेरे साथ तो उसने पहले डर के चलते और फिर मज़ा आने पर संबंध बनाए.. मेरे लिए वो राजी होगी?"
राजेश ने एक लंबी सांस लेकर कहा "देख.. मैं उससे बात करूंगा.. उसकी मर्जी होगी तो ही हम इस बात को आगे बढ़ाएंगे.. पर मुझे लगता है की वो मान जाएगी"
मदन खुश होकर बोला "तब तो मज़ा आ जाएगा यार..!! तू जल्द से जल्द उससे बात कर और अगर वह मान जाएँ तो मिलन तय कर"
राजेश: "उतावला मत हो यार.. मैं आज ही बात करता हूँ.. और अगर उसने हाँ कहा तो हम एक दो दिन में ही वहाँ जाएंगे"
तभी कमरे में शीला की एंट्री हुई
शीला: "कहाँ जाने की बात हो रही है?" शीला अब भी नंग-धड़ंग ही थी.. उसकी गदराई जांघों पर राजेश के सूखे हुए वीर्य के निशान थे.. बड़े बड़े स्तन उसके चलने की वजह से यहाँ वहाँ झूल रहे थे.. वह आकर, राजेश और मदन के बीच बैठ गई
अब शीला को क्या जवाब दे, यह सोचकर मदन असमंजस होकर राजेश की ओर देख रहा था
राजेश: "भाभी, आपका मर्द जिद पकड़ कर बैठा है.. की मुझे भी कोई चूत दिलाओ" हँसते हुए उसने कहा
शीला मदन की तरफ मुड़ी और अपने भोसड़े की ओर इशारा करते हुए कहा "क्यों? इससे दिल नहीं भरता तेरा??"
मदन सहम गया.. और बोला "यार शीला.. ऐसी बात नहीं है.. पर जब राजेश को तुझे चोदते हुए देखता हूँ तब मेरा भी मन करता है किसी नए जिस्म से खेलने के लिए.. रेणुका तो अब मिलने से रही.. मेरे लिए भी कुछ जुगाड़ तो होना चाहिए न"
शीला ने मुस्कुराकर राजेश की ओर देखा और कहा "तो तुम अब दलाल बनकर मेरे पति के लिए चूत का जुगाड़ भी करने लगे??"
राजेश: "कैसी बात करती हो भाभी..!! मैंने मदन को फाल्गुनी के बारे में बताया.. मैं उससे बात करूंगा.. और अगर वो मान गई.. तो हम दोनों जाएंगे उसके पास.. उससे मिलने"
शीला: "सिर्फ तुम दोनों ही क्यों..!! मैं भी साथ चलूँगी"
राजेश: "ठीक है, आप भी साथ चलना..और एक बात.. अगर सब सेट हो गया तो हमें बार बार आने जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.."
शीला: "वो क्यूँ?"
राजेश: "मैंने तय किया है की मैं फाल्गुनी को अपनी ऑफिस में नौकरी दे दूंगा.. वो यहीं शिफ्ट हो जाएगी.. फिर आने जाने का चक्कर ही खत्म"
मदन: "वाह.. तू तो बड़ा ही मंजा हुआ खिलाड़ी निकला राजेश"
राजेश बगल में बैठी शीला के मदमस्त स्तनों को हथेली में भरकर मसलने लगा.. और इस बार मदन ने भी दूसरी और से शीला के बबले दबाना शुरू कर दिया.. बीच में किसी रानी की तरह बैठी शीला.. दोनों के लंड पकड़कर हौले हौले हिलाने लगी
अगला मजेदार अपडेट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
Thanks bhaiKhatarnaak update ahle update dhamakedaar hone wlaa hai
Waiting...
khattnak update hai
Agle update lgta hai
Ghar par vaishali aur hotel me uske maa baap ki chudai hone wali hai
Waiting for next update
बहुत हीशानदार लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गयाप्रिय पाठक मित्रों..
नमस्कार,
जैसा कि सभी को फोरम एडमिन्स की सूचना से ज्ञात होगा, हाल ही में सर्वर में आई तकनीकी समस्या के कारण 27/05/25 से 31/05/25 के बीच की गई सभी पोस्ट्स और अपडेट्स डिलीट हो गई। दुर्भाग्यवश, इसी अवधि में मैंने अपनी कहानी का एक नया अपडेट साझा किया था, जो अब डाटा रिकवरी के दौरान खो गया है।
इसलिए, मैं अपनी कहानी का वही अपडेट पुनः पोस्ट कर रहा हूँ, ताकि पाठकों को किसी भी महत्वपूर्ण हिस्से की कमी न महसूस हो। आशा है कि आप सभी इसे फिर से पढ़ेंगे और अपनी प्रतिक्रियाएँ साझा करेंगे।
आप सभी की समझदारी और समर्थन के लिए धन्यवाद।
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पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
पीयूष और मदन अमरीका से लौट आए.. कविता ने शीला को यह खुशखबरी दी की उसने पीयूष को पिंटू की नौकरी के लिए मना लिया है.. शीला ने तुरंत राजेश को इस बारे में जानकारी दी.. पहले तो राजेश पिंटू को छोड़ने के लिए हिचकिचा रहा था पर शीला के मनाने पर मान गया.. शीला ने पिंटू को भी इस बात के लिए मना लिया..
इस नए बदलाव से खुश शीला, मदन के साथ जबरदस्त संभोग कर अपनी विजय का खुशी मनाती है..
कुछ दिनों बाद.. अपने बेडरूम में, शीला और राजेश की घनघोर चुदाई देख रहे मदन को अब यह सब नीरस लग रहा था.. वह राजेश को अपने लिए कुछ नया बंदोबस्त करने को कहता है.. राजेश उसे फाल्गुनी के बारे में बताता है.. और वादा करता है की वह जल्द ही फाल्गुनी को मना लेगा..
राजेश फाल्गुनी से मदन के बारे में बताता है.. फाल्गुनी पहले तो यह सुनकर ही हिल जाती है.. पर राजेश के मनाने के बाद उसके विचार भी परिवर्तित होने लगते है..
अब आगे..
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पीयूष अपनी केबिन में बैठे हुए कंप्यूटर पर उलझा हुआ था.. पास में पड़ी कॉफी ठंडी हो चुकी थी.. कपाल पर बनी शिकन साफ बता रही थी की पीयूष काफी टेंशन में था..
तभी उसकी केबिन में वैशाली की एंट्री हुई.. कुछ पल के लिए तो पीयूष को उसके आने की भनक ही नहीं लगी.. इतना घुसा हुआ था वह अपने काम में
वैशाली ने अपने मंजुल स्वर में कहा "पीयूष सर"
पीयूष ने कंप्यूटर स्क्रीन से अपनी आँख फेरी और वैशाली की तरफ देखा.. टाइट टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहनी वैशाली का मांसल बदन दिखते ही पीयूष का सारा टेंशन गायब हो गया
उसने मुस्कुराकर वैशाली को कहा "वैशाली, कितनी बार कहा है मैंने तुम्हें.. सर कहकर मत बुलाया करो.. बड़ा अटपटा सा लगता है मुझे.. आखिर हम बचपन के दोस्त है..!!"
वैशाली ने एक स्माइल दी और पीयूष की सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली "पर हो तो मेरे बॉस.. अब बॉस को सर कहकर नहीं बुलाऊँगी तो क्या कहूँगी..!!"
पीयूष: "जैसे हमेशा से बुलाती थी.. सिर्फ मेरे नाम से.. प्लीज तुम मुझे सर मत कहा करो.. रीक्वेस्ट है मेरी"
वैशाली: "ओके पीयूष.. यह वर्मा टेक्सटाइल्स वाला लेटर मैंने तैयार कर दिया है.. तुम्हारे दस्तखत चाहिए" कहते हुए वैशाली खड़ी हो गई और फ़ाइल से वह कागज निकालकर पीयूष के सामने रखा.. झुकने के कारण.. उसके दोनों मांसल स्तनों के बीच की दरार साफ नजर आ रही थी.. पीयूष की नजर वहीं चिपक गई.. वैशाली के स्तन थे ही ऐसे.. वैसे तो वो वैशाली को कई बार नंगे बदन देख चुका था.. भोग चुका था.. पर उस बात को काफी साल बीत चुके थे..
पीयूष की नजर कहाँ थी वो वैशाली के ध्यान में आ गया.. वो मुस्कुराई और पीयूष को पेन थमाते हुए साइन करने का इशारा किया.. पीयूष तुरंत सचेत हो गया और उसने अपनी नजरें फेर ली.. और दस्तखत करके कागज वैशाली को वापिस दिया.. वैशाली मुड़ी और अपने कूल्हें मटकाती हुई केबिन से बाहर जाने लगी.. टाइट जीन्स के अंदर मटक रही उसकी मस्त गांड को पीयूष अंत तक देखता रहा..
सकी तंद्रा का भंग तब हुआ जब पीयूष का मोबाइल बजा.. स्क्रीन पर कविता का नाम था..
पीयूष ने फोन उठाया
पीयूष: "हाँ बोल कविता"
कविता: "क्या कर रहे हो पीयूष?"
पीयूष: "यह कैसा सवाल है यार? ऑफिस हूँ तो जाहीर सी बात है की काम कर रहा हूँ"
कविता: "यार.. तुम छोटी छोटी बातों में भड़क क्यों जाते हो?"
पीयूष: "कहाँ भड़क रहा हूँ यार.. !!! बता, फोन क्यों किया था?"
कविता: "सोच रही थी आज शाम उस नई रेस्टोरेंट में डिनर के लिए चलें? मेक्सिकन खाना खाए हुए अरसा हो गया.. और फिर मूवी देखने चलेंगे"
पीयूष: 'कविता.. तुझे पता तो है.. मेरे पास सांस लेने की फुरसत नहीं है अभी..!!"
कविता: "तो मैं भी अभी जाने के लिए कहाँ कह रही हूँ? रात को जाना है.. तुम्हारे ऑफिस से लौटने के बाद"
पीयूष: "आज पोसीबल नहीं है"
कविता: "तो कल चलें?"
पीयूष: "कल रात को मेरी टीम्स-मीटिंग है उस अमरीकन क्लायंट के साथ..!!"
कविता परेशान होकर बोली "तो कब चलेंगे?? तुम ही बताओ"
पीयूष: "यह मैं कैसे बताऊँ? मुझे भी पता नहीं होता की कब कौनसा काम आ जाएँ"
कविता: "तो तुम मेरे लिए वक्त कब निकालोगे? मैं क्या रोज तुम्हारा इंतज़ार ही करती रहूँ?? पूरा दिन घर पर बैठे ऊब जाती हूँ मैं.. न कहीं आना जाना और ना किसी से मिलना.. बदतर हो गई है मेरी ज़िंदगी"
पीयूष: "तो यह सब मैं किस लिए कर रहा हूँ?? तुम्हारे लिए ही ना..!! ये ऐशों-आराम की ज़िंदगी.. ये अमीरियत ऐसे ही नहीं मिलती"
कविता: "तुम शायद भूल रहे हो की यह बिजनेस पहले पापा भी चलाते थे.. उन्हे तो कभी दिक्कत नहीं हुई फेमिली के लिए वक्त निकालने में"
तभी पीयूष की केबिन में दो कर्मचारी आए जिन्हे पीयूष ने मीटिंग के लिए बुलाया था.. उनकी मौजूदगी में वह कविता के साथ ज्यादा बहस करना नहीं चाहता था..
पीयूष: "यार तुम्हें जो मर्जी आए करो.. पर मुझे बख्श दो.. सोफ़े पर पैर फैलाकर बैठने जितनी आसान नहीं है मेरी ज़िंदगी..ढेर सारे काम है मुझे" कहकर पीयूष ने फोन काट दिया और अपने काम में मशरूफ़ हो गया
इस तरफ, पीयूष के इस बेरूखे जवाब से कविता की आँखों में आँसू आ गए.. पीयूष के संग एक अच्छा समय बिताएं बड़ा लंबा अरसा हो गया था.. वह तो सोच रही थी की डिनर और मूवी के प्रस्ताव से पीयूष खुशी से उछल पड़ेगा और आज की रात बड़ी ही अच्छी गुजरेगी.. कविता के न मन को चैन था और न ही उसके शरीर को संतुष्टि..!!
कविता का दिमाग खराब हो रहा था.. इससे पहले की वो कुछ उल्टा सीधा कर बैठती.. अपने आप को शांत करने के लिए वह बाथरूम में स्नान करने के इरादे से घुस गई.. उस आलीशान गुसलखाने की दीवार पर आदमकद के आईने जड़े हुए थे.. ताकि नहा रहा व्यक्ति अपने नग्न शरीर के हर कोने को बखूबी देख सकें.. शुरुआती समय में कविता ने पीयूष के साथ कई बार यहीं पर शॉवर-सेक्स का आनंद लिया था.. आइनों की वजह से ऐसा प्रतीत होता जैसे उनके आसपास कई नंगे स्त्री-पुरुष उनके साथ ही संभोग कर रहे हो..
एक के बाद एक कविता ने अपने सारे वस्त्र उतार दिए.. कमर से अपनी छोटी सी सफेद पेन्टी उतारते ही वह सम्पूर्ण नग्न हो गई.. आईने में अपने सेक्सी बदन को देखकर वह सोच रही थी की ऐसी कौन सी कमी थी उसमें जो पीयूष को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहा था..!! सुंदर गौरवर्ण चेहरा.. तीखे नयन-नक्श.. सुराहीदार गर्दन.. पहले के मुकाबले थोड़े बड़े हो चुके टाइट स्तन.. पतली कमर.. क्लीन शेव चूत.. सुंदर जांघें.. कुल मिलाकर ऐसा शरीर था जिसे पाने के लिए मर्दों की लाइन लग जाएँ.. पर यह बदन जिसे समर्पित होकर संभोगरत होना चाहता था, उसके पास तो समय ही नहीं था..!!
कविता ने शॉवर ऑन किया.. ठंडे पानी की फव्वारे ने पहले तो उसके जिस्म को हल्का सा झकझोर दिया.. फिर वह शीतल धाराएँ.. कविता के त्रस्त मन को धीरे धीरे शांत करने लगी.. पूरे बदन पर शॉवर-जेल लगाकर.. लूफा से रगड़ते हुए अपने समग्र शरीर को झाग से आच्छादित करने लगी.. जांघों को रगड़ते हुए जब वह लूफा उसकी चूत तक पहुंचा.. तब कविता का जिस्म सिहर उठा.. वह काफी देर तक हल्के हल्के उस फाइबर के जालीदार गुच्छे को अपने यौनांग पर घिसती रही.. उसका चेहरा ऊपर की ओर उठा हुआ था और आँखें बंद थी.. पानी का अभिषेक निरंतर उसके चेहरे पर पड़ रहा था.. दूसरी हथेली से वह अपने नुकीले निप्पल वाले स्तन के अग्र भाग को चिकोटी में भरकर मसलने लगी.. रगड़न से उसकी प्यास तृप्त होने के बजाय और भड़क गई..
कविता ने शॉवर बंद किया.. उसकी नजरें पूरे बाथरूम में यहाँ वहाँ ढूँढने लगी.. चूत में घुसेड़ने लायक उपयुक्त साधन तलाश रही थी वो.. और कुछ तो नजर नहीं आया तब उसकी नजर टूथब्रश पर पड़ी.. ब्रश को हाथ में लेकर उसके पीछे वाला हिस्सा.. उसने अपनी संकरी सी चूत के अंदर डाल दिया.. और धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगी..
इस क्रिया में उसे इतना मज़ा आ रहा था की उत्तेजना के मारे पैर डगमगाने लगे.. इससे पहले की वह अपना संतुलन खो बैठती.. वह अपने स्तनों को दीवार पर रगड़ते हुए, जिस्म का सारा भार डालकर, पानी भरे बाथटब में लेट गई और बेतहाशा अपनी चूत के छेद में उस टूथब्रश को अंदर बाहर करने लगी..
ब्रश के अंदर बाहर होने की गति अत्यंत तेज हो गई.. और कविता एक हल्की कराह के साथ झड़ गई.. क्लाइमैक्स इतना जबरदस्त था की उसकी आँखों के सामने एक पल के लिए अंधेरा छा गया.. थककर वह बाथटब पर सिर टिकाकर लेटी रही.. कितनी देर तक वह उसी अवस्था में पड़ी रही उसका उसे भी पता नहीं चला
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पिंटू: "यार, इतनी आवाज मत करो.. कोई सुन लेगा"
बिस्तर पर वैशाली का नंगा मांसल जिस्म फैला हुआ था.. उसके दोनों भारी स्तन, छाती के दोनों तरफ झूल रहे थे.. वैशाली के स्तनों का परिघ इतना विशाल था की पिंटू की दो हथेलियाँ भी एक स्तन को ठीक से ढँक नहीं पाती थी.. उसके बादामी रंग के ऐरोला पर उभरी हुई निप्पलें, उत्तेजना के कारण तनकर सख्त हो चुकी थी.. घुटनों से मुड़ी हुई टांगें फैलाकर, वैशाली अपनी गीली चूत खोलकर लेटी हुई थी.. उसकी गुलाबी चूत की चिपचिपी परतें खुली हुई थी.. अंदर पिंटू अपना लंड घुसाकर धक्के लगा रहा था
पीयूष की ऑफिस में शिफ्ट होने के बाद, पिंटू अपने माता पिता के साथ ही रहता था.. हालांकि उनका अलग से कमरा था पर फिर भी चुदाई के दौरान वैशाली इतनी जोर जोर से सिसकियाँ लेती थी की पिंटू को डर लगता था की उसकी आवाज कमरे से बाहर न चली जाएँ..
हर मध्यम वर्ग के परिवार में रहते पति-पत्नी की समस्या..!! मध्यम वर्गीय परिवारों के जीवन में छोटे घर एक सामान्य सच्चाई है.. इन घरों में सीमित जगह होने के कारण परिवार के सभी सदस्यों को एक-दूसरे के करीब रहना पड़ता है.. नवविवाहित जोड़ों को भले ही एक अलग बेडरूम मिल जाता है, लेकिन उनके मन में हमेशा यह डर बना रहता है कि संभोग के दौरान उनकी आवाज़ें, कराहने या अन्य शारीरिक ध्वनियाँ परिवार के अन्य सदस्यों तक पहुँच सकती हैं.. यह चिंता उनके निजी जीवन में असहजता और तनाव का कारण बनती है..
इस स्थिति का सामना करने के लिए जोड़े अक्सर कुछ उपाय अपनाते हैं.. उदाहरण के तौर पर, वे संभोग के दौरान संगीत चलाकर या टीवी की आवाज़ बढ़ाकर उनकी संभोग से उत्पन्न होती ध्वनियों को दबाने की कोशिश करते हैं.. कुछ जोड़े इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे ऐसा समय चुनें जब घर के अन्य सदस्य सो रहे हों या घर पर न हों.. हालाँकि, ये उपाय अस्थायी समाधान होते हैं और इस समस्या का मूल कारण, यानी छोटे घर और निजी जगह की कमी, बना रहता है..
इस तरह की चिंता न केवल जोड़े के शारीरिक संबंधों को प्रभावित करती है, बल्कि उनके मानसिक सुकून को भी कम करती है.. वे हमेशा इस डर में जीते हैं कि उनकी निजता भंग हो सकती है, जिससे उनके रिश्ते में तनाव पैदा हो सकता है.. इस समस्या का समाधान करने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों का संवेदनशील होना भी जरूरी है.. उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नवविवाहित जोड़े को अपने निजी जीवन के लिए पर्याप्त जगह और स्वतंत्रता मिले..
वैशाली, अपनी माँ शीला की तरह, संभोग के दौरान, बिल्कुल भी चुप नहीं रह सकती थी.. अपनी उत्तेजना को वो भिन्न भिन्न आवाजों से व्यक्त करने की आदि थी.. चुपचाप संभोग करना उसे ऐसे ही लगता था जैसे प्लास्टिक की पन्नी में डालकर रसगुल्ले को बाहर से चूसना.. क्रिया तो हो जाती है पर मज़ा नहीं आता..!! उत्तेजित होने पर वह बेहद सिसकती और उसकी कराहें काफी ऊंची रहती थी..
पिंटू के लाख मना करने पर भी वैशाली अपने आप को रोक नहीं पाती थी और जोर जोर से "आह-आह" की आवाज़ें निकाल रही थी.. आखिर पिंटू ने उसके मुंह पर अपनी हथेली रख दी और जोर जोर से धक्के लगाने लगा.. उसका ध्यान अब संभोग पर कम और वैशाली की आवाज को रोकने पर ज्यादा था.. इसी तनाव के बीच वैशाली ने महसूस किया की पिंटू का लंड उसकी चूत के अंदर धीरे धीरे सिकुड़ रहा था.. वह आश्चर्य से पिंटू की आँखों में आँखें डालकर देख रही थी.. जैसे पूछ रही हो की आखिर उसका लंड, चुदाई के बीच ही ढीला क्यों पड़ रहा था..!!
कुछ ही देर के बाद लंड इस हद तक पिचक गया की वैशाली की गरम चूत से बाहर निकल गया.. हारकर पिंटू उसकी बगल में लेट गया.. और अपने लंड को हिलाकर जगाने की कोशिश करने लगा.. जब काफी देर तक हिलाने पर भी लंड ने सख्त होने के कोई संकेत नहीं दिए.. तब वैशाली उठी और उसने पिंटू का लंड अपने मुंह में ले लिया.. पाँच मिनट तक चूसने के बावजूद लंड ने कोई हरकत नहीं दिखाई.. वैशाली का जबड़ा दुखने लगा और वह थककर वापिस बिस्तर पर लेट गई..!!!!
संभोग के दौरान कभी-कभी पुरुषों को इरेक्शन खोने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.. यह स्थिति कई कारणों से हो सकती है, जैसे कि तनाव, चिंता, शारीरिक थकान, मानसिक दबाव, या शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ.. कई बार अत्यधिक शराब या नशीले पदार्थों के सेवन से भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है.. इसके अलावा, रिश्ते में तनाव या भावनात्मक दूरी भी इसका एक प्रमुख कारण हो सकती है..
जब ऐसा होता है, तो पुरुष अक्सर शर्मिंदगी या असुरक्षा महसूस करते हैं, जो उनकी समस्या को और बढ़ा सकता है.. यह जरूरी है कि इस स्थिति को समझा जाए और इसे एक सामान्य समस्या के रूप में लिया जाए.. साथी का सहयोग और समर्थन इस स्थिति को संभालने में बहुत महत्वपूर्ण होता है.. खुलकर बातचीत करने और एक-दूसरे की भावनाओं को समझने से इस समस्या को कम किया जा सकता है..
बेहद उदास मन से पिंटू मुंह लटकाए तकिये पर लेटा रहा.. वैशाली उसके करीब आई और उसके कंधे पर सर रखकर बोली
वैशाली: "टेंशन मत ले यार.. होता है ऐसा कई बार"
पिंटू: "वैशाली, तुम्हारी आवाज को रोकने के चक्कर में मेरा ध्यान भटक गया.. तुम आवाज बंद क्यों नहीं रख सकती?? हर बार मुझे यही डर लगा रहता है की कहीं मम्मी पापा सुन न ले"
वैशाली: "यार, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ.. मुझसे नहीं होता तो मैं क्या करूँ?? और मम्मी पापा एकाद बाद सुन भी लेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा..!! हम कानूनन पति-पत्नी है और हर कोई जानता है की शादी-शुदा जोड़ों के बेडरूम में इस वक्त क्या हो रहा होगा..!!"
पिंटू भड़क गया और बोला "कैसी बात कर रही हो तुम? मम्मी-पापा सुन लेंगे तो क्या अच्छा लगेगा?"
वैशाली को भी गुस्सा आ गया.. वह बोली "तो क्या करूँ मैं?? करते वक्त मुंह पर पट्टी बांध लूँ?"
पिंटू: "जान, मैंने ऐसा कब कहा..!!! बस थोड़ी सी आवाज नीची रखने की कोशिश करो"
वैशाली: "मैं कोशिश तो कर रही हूँ न.. पर पता नहीं, एक बार एक्साइट होने के बाद मुझसे कंट्रोल ही नहीं होता"
पिंटू: "सीखना पड़ेगा तुम्हें.. पहले की बात और थी.. तब हम अलग घर में रहते थे इसलिए ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी.. अब हम साथ रहते है तो हमें संभलना पड़ेगा"
वैशाली: "तो हम यहाँ भी तो अलग घर लेकर रह ही सकते है"
पिंटू परेशान होकर बोला "और फिर मम्मी पापा से क्या कहूँ..!!! एक ही शहर में हम अलग रहेंगे..!! और वो भी इतनी छोटी सी बात के लिए..!!"
हतप्रभ हो गई वैशाली.. पिंटू की इस असंवेदनशीलता पर उसे बेहद गुस्सा आ रहा था
वैशाली: "तुम्हारे लिए यह छोटी बात होगी.. क्या पति होने के नाते यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं है की तुम मुझे खुश रखो?"
पिंटू: "तो कौनसी कमी छोड़ी है मैंने तुम्हें खुश रखने की..!! हर संभव कोशिश करता हूँ.. और फिर भी अगर तुम खुश नहीं हो तो मैं कुछ नहीं कर सकता"
उलटी दिशा में करवट लेकर पिंटू सो गया.. कुछ ही मिनटों में उसके खर्राटे सुनाई देने लगे.. हताश होकर वस्त्र-विहीन अवस्था में वैशाली लंबी लंबी सांसें लेने लगी.. उसकी चूत का तवा बेहद गरम था और वो चरमसुख के लिए तड़प रही थी.. उसे तृप्त करने की जिम्मेदारी जिसकी थी वह तो सो चुका था.. इसलिए वैशाली ने मामला अपने हाथों में लेने का निश्चय किया..
चिपचिपे रस से चू रही उसकी चूत के ऊपर दाने को वह रगड़ने लगी.. और दूसरे हाथ की एक उंगली चूत के अंदर बाहर करने लगी.. उसका चेहरा उत्तेजनावश लाल लाल हो रहा था.. वह बड़ी ही क्रूरता से अपनी क्लिटोरिस को घिसे जा रही थी.. अब उसने चूत में एक के बदले दो उँगलियाँ पेल दी थी.. और वह सिसक भी रही थी.. आवाज बाहर जाने की उसे बिल्कुल भी परवाह नहीं थी.. वह तो बस अपने चरमोत्कर्ष की ओर अग्रेसर होकर प्यास बुझाने की जद्दोजहत कर रही थी..
उसकी निप्पलें अपनी अवहेलना बर्दाश्त नहीं कर पाई.. दोनों स्तन ऐसे मचल रहे थे जैसे मसले जाने के लिए बेकरार हो.. अपनी चूत से उँगलियाँ निकालकर वैशाली अपने चरबीदार गोल गोल स्तनों को मसलना शुरू कर दिया.. उसकी दूसरी हथेली उसके भागोष्ठ को समझाने में मशरूफ़ थी..
उसका पूरा शरीर कांप रहा था.. कमर को मोड़ते हुए उसने अपने शरीर के निचले हिस्से को बिस्तर से उठा रखा था.. वह अपनी मंजिल के बेहद करीब थी.. उसकी चूत की मांसपेशियाँ संकुचित होकर द्रवित होने के लीये बेसब्र हो रही थी.. स्खलन बस कुछ ही दूर था की तभी..!!
उनके बेडरूम के दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. सुनते ही वैशाली ने अपनी शारीरिक गतिविधियों को रोक दिया.. फिर से वो कान लगाकर सुनने लगी.. कहीं उसे भ्रम तो नहीं हुआ..!!
जब दूसरी बार दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तब वैशाली फट से बिस्तर से उठी.. अपने नंगे बदन पर गाउन डाल दिया.. और चद्दर उठाकर पिंटू के बदन को ढँक दिया..
अपने बालों को ठीक करते हुए उसने दरवाजा खोला तो सामने उसकी सास खड़ी थी
वैशाली: "क्या हुआ मम्मी जी?"
पिंटू की मम्मी: "पापा को बुखार चढ़ा है.. जरा पिंटू के ड्रॉअर से क्रोसिन देना"
मन ही मन गुस्से से गुर्रा रही वैशाली ने दवाई निकाल कर दी.. और उसकी सास के जाने के बाद जोर से पटक कर दरवाजा बंद किया.. किनारे पर पहुंचकर उसकी कश्ती डूब गई.. वह स्खलित होते होते रह गई..!! अब उसमें उतनी ऊर्जा नहीं बची थी की फिर से अपने शरीर को उत्तेजित करें.. उसने लाइट बंद की और गाउन पहने बिस्तर पर जाकर लेट गई.. काफी देर तक करवटें बदलते रहने के बाद बड़ी ही मुश्किल से उसकी आँख लग पाई
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"यह आप क्या कह रहे है अंकल? मदन अंकल के साथ कैसे कर सकती हूँ मैं?"
राजेश ने फाल्गुनी को फोन करके अपना प्रस्ताव रखा.. जाहीर सी बात थी की फाल्गुनी के लिए यह काफी चौंकाने वाला था
राजेश: "मेरे साथ तो कभी तुम्हें ऐसा महसूस नहीं हुआ"
फाल्गुनी: 'आपकी बात और है"
राजेश: "कैसे??"
फाल्गुनी: (गंभीर होकर) "मैंने आपके साथ वो सब कुछ किया, लेकिन अब मैं सिर्फ आपके साथ ही रहना चाहती हूँ.. किसी और मर्द के साथ करना मुझे बड़ा अटपटा सा लगेगा.."
राजेश: (शांत भाव से) "फाल्गुनी, मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूँ, लेकिन यह जो तुम महसूस कर रही हो, यह सिर्फ एक भावना ही है.. शारीरिक संबंध बनाना एक बड़ी ही सामान्य बात है.. जैसे हम अन्य शारीरिक जरूरतों को पूरा करते है.. पूरी ज़िंदगी हम एक ही प्रकार का खाना तो नहीं खाते..!! हररोज कुछ नया ट्राय करते है.. यह भी बिल्कुल वैसा ही है.. सुबोधकांत से संबंध के बाद अगर तुमने मेरे साथ ऐसा किया है, तो दूसरे के साथ भी क्यों नहीं? इसमें गलत क्या है?"
फाल्गुनी: (थोड़ा असहज होकर) "मैं नहीं जानती, अंकल.. मैंने आपके साथ जो किया, वह मेरे लिए खास था.. मैं इसे किसी और के साथ यह साझा नहीं करना चाहती.."
राजेश: (समझाने की कोशिश करते हुए) "देखो, फाल्गुनी, हमारे शरीर की इच्छाएँ और भावनाएँ अलग-अलग होती हैं। अगर तुमने मेरे साथ यह अनुभव किया है, तो यह तुम्हारे लिए नया नहीं है। दूसरे के साथ भी ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है.. यह तुम्हारी स्वतंत्रता है और मैं तुम्हारे इच्छा विरुद्ध कुछ भी नहीं करूंगा"
फाल्गुनी: (उलझन में) "पर मैं ऐसा महसूस नहीं करती.. मैं सिर्फ आपके साथ ही ऐसा करना चाहती हूँ.."
राजेश: (थोड़ा ठंडे स्वर में) "फाल्गुनी, यह तुम्हारी सोच है.. लेकिन याद रखो, अगर तुम एक बार किसी के साथ ऐसा कर सकती हो, तो दूसरे के साथ भी कर सकती हो.. इसमें कोई बुराई नहीं है..और तुम्हें इसे लेकर कोई डर या शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए.. जरा सोचो.. उन अनगिनत संभावनाओ के बारे में.. हमारे सेक्स में एक अलग ही रंग जुड़ जाएगा.. एक नए तरीके का मज़ा आएगा.. बहुत ही दिलचस्प अनुभव होता है.. अनुभव से कह रहा हूँ.. और मैं तुम्हें केवल एक बार ट्राय करने के लिए कह रहा हूँ.. अगर उसके बाद तुम न चाहो तो मैं कभी इस बात के लिए तुम्हें आग्रह नहीं करूंगा"
फाल्गुनी: (चुपचाप) "शायद आप सही हो, लेकिन मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ.. मुझे थोड़ा वक्त चाहिए, अंकल..!!"
राजेश: (मुस्कुराते हुए) "ठीक है, फाल्गुनी। मैं तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करता हूँ.. यह तुम्हारी जिंदगी है, और तुम्हें जो सही लगे, वही करो बस खुद को किसी बंधन में मत बाँधो.. हाँ एक बात जरूर कहूँगा.. अगर तुम राजी हो जाती हो तो यह अनुभव हमेशा के लिए यादगार बन जाएगा"
फाल्गुनी: (मुस्कुराते हुए) "शुक्रिया, अंकल.. मैं आपको बताती हूँ"
राजेश: "मैं कल फोन करूंगा.. और हाँ, तुम अपने मम्मी पापा से बात कर लो.. जल्द ही मेरी ऑफिस जॉइन करनी है तुम्हें.. और यहाँ शिफ्ट भी तो होना है"
फाल्गुनी: "पर मैं रहूँगी कहाँ?"
राजेश: "सब इंतेजाम कर दूंगा..तुम बस मेरी बात के बारे में सोचो और कल बताओ"
फाल्गुनी: "ठीक है अंकल.. लव यू.."
राजेश: "लव यू टू..!!"
राजेश ने फोन रख दिया.. फाल्गुनी के सुर से उसे लग रहा था की लगभग वो मान ही जाएगी.. इस बारे में वह मदन को अभी बताना नहीं चाहता था.. फाल्गुनी की हाँ आने के बाद ही इस बारे में बात करना चाहता था ताकि मदन का दिल न टूट जाए
फोन रखकर फाल्गुनी गहरी सोच में पड़ गई..
यह क्या हो रहा है मेरे साथ? मैं खुद को कहाँ ले आई हूँ? पहले वो... उनके साथ यह रिश्ता, जो शायद गलत था, पर मैंने मान लिया.. उनकी बातों में आकर, उनके वादों में खोकर.. पर अब... अब वो और भी आगे जाना चाहते है.. मदन अंकल के साथ..!! वो चाहते है कि मैं मदन अंकल को भी हमारे बीच में जगह दूँ.. यह कैसे हो सकता है? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती.. पर अब... अब मैं खुद से सवाल कर रही हूँ.. क्यों नहीं? क्यों नहीं कोशिश करूँ? शायद यह एक नया अनुभव होगा, कुछ ऐसा, जो मैंने कभी महसूस नहीं किया.. पर क्या यह सही है? क्या मैं सच में यह चाहती हूँ? या फिर मैं सिर्फ उन्हें खुश करने के लिए, उनके लिए खुद को झोंक रही हूँ?
शायद... शायद यह वाकई में एक नई शुरुआत हो सकती है.. जिंदगी में कुछ अलग करने का मौका.. क्यों हमेशा वही पुराने ढर्रे पर चलते रहें? क्यों नहीं कुछ नया, कुछ रोमांचक करें? (खुद को समझाते हुए) हाँ, यह सही है.. मैं यह कर सकती हूँ.. मैं इसे एक अनुभव की तरह लूँगी.. शायद यह मुझे और मजबूत बनाएगा.. शायद यह मुझे और बेहतर जीवन जीने का और उसका आनंद उठाने का मौका देगा..
पर... पर क्या यह सच में मैं हूँ? क्या यह वही लड़की है जो मैं बनना चाहती हूँ? क्या मैं सिर्फ उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए खुद को बदल रही हूँ? मैं क्यों इतनी कमजोर हो गई हूँ? क्यों मैं खुद को यह सब करने के लिए मजबूर कर रही हूँ?
नहीं.. मुझे ऐसा तो नहीं लगता..!! राजेश अंकल ने सिर्फ मेरी राय जानने के कोशिश की है.. कोई दबाव तो नहीं डाला.. अंतिम निर्णय मुझ पर ही तो छोड़ा है.. हाँ, मैं यह कर सकती हूँ.. मैं यह करूँगी.. यह एक नया रोमांच होगा, एक नया अध्याय.. मैं इसके लिए खुद को तैयार करूंगी..
मैं इसे एक चुनौती की तरह लूँगी.. और अब... अब मैं उत्सुक हूँ..!! मैं जानना चाहती हूँ कि यह अनुभव कैसा होगा..!! यह कैसा महसूस होगा..!! मैं इसके लिए तैयार हूँ और उत्साहित भी..!!
क्योंकि जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है, और मैं इसे पूरी तरह जीना चाहती हूँ..!! बिना किसी डर के, बिना किसी पछतावे के..!! यह मेरा फैसला है, और मैं इसके लिए तैयार हूँ..!!
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Welcome dear jiThanks for the comment
Thanks bhaiGazab ki update he vakharia Bhai,
Sheela to sach me ek bahut badi raand ki tarah behave kar rahi he........
Anjan aadmi se raste chalte chudwa liya
Ab hotel to pahuch gayi dono.......ab dekhna entry kaise milegi dono ko.......
Keep posting Bro
वखारिया जी बहुत बढ़िया अपडेट...अचानक से रोमिला के जीवन का कड़वा लेकिन एक सच्चा पहलू उजागर कर अपने एक औरत के मन की व्यथा का बखान बहुत बढ़िया किया है। इस पुरुष प्रधान समाज में मर्द को सब कुछ माफ है लेकिन वही काम अगर कोई औरत करे तो उसके चरित्र पर उंगली उठती है। संस्कारी होने का मतलब ये नहीं कि वो अपनी भावनाओं को दबा दे...अपनी इच्छा को कफन में लपेट कर कहीं दफन कर दे....उसे भी जीने का हक है और जीवन के सभी सुखों को भोगने का अधिकार है.पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
पीयूष की नजरंदाजी से तंग आकर, कविता ने फाल्गुनी का सहारा लेने का फैसला किया.. कविता के साथ एक संतृप्त संभोग के बाद दोनों बातें कर रहे थे जिस दौरान फाल्गुनी ने कविता को बताया की राजेश ने उसे अपनी ऑफिस में नौकरी दे दी है और अब वो जल्द ही शिफ्ट होने वाली है.. कविता ने अपना पुराना घर, जो की शीला के पड़ोस में था, उसे फाल्गुनी को रहने के लिए दे दिया..
अपनी केबिन की ओर जा रहे पीयूष की नजर झुककर खड़ी वैशाली की ओर गया.. झुकने के कारण, वैशाली का जीन्स थोड़ा नीचे उतर गया था और उसके नितंब उभरकर बाहर नजर आ रहे थे.. जिसे देख पीयूष एक पल के लिए वहीं थम गया.. यह देखते ही पीयूष के मन में सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गई जो उसने वैशाली के संग बिताई थी
अब आगे..
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पीले रंग की सिफॉन साड़ी, हाई-हील सेंडल और कमर पर लटकते हुए पर्स के साथ सड़क पर चल रही कविता का जलवा ही अनोखा था.. गुजर रहे कई राहदारियों की नजर उसकी सुंदरता को निहार रही थी.. पिछले कुछ सालों में, कविता के पहनावे और जीवन स्तर में काफी सारे बदलाव आए थे.. डिजाइनर साड़ियाँ, लेटेस्ट फेशन के सेंडल्स और ब्रांडेड पर्स उसकी धनवान जीवनशैली का प्रमाण दे रहे थे
वैसे तो कविता बिना अपनी गाड़ी के, कहीं जाती नहीं थी.. पर आज उसे जहां जाना था वह जगह उसके घर से चलकर जाने की दूरी पर ही थी..
रात का अंधेरा अपना शिकंजा कसे जा रहा था.. स्ट्रीट लाइट की मद्धम रोशनी में चलते हुए आखिर कविता पहुँच गई.. अपने घर.. मायके वाले घर.. अपने पिता स्व. सुबोधकांत के घर..!!!
कविता ने बिना कोई आवाज किए.. कंपाउंड का दरवाजा खोला.. गार्डन से गुजरते हुए वह धीरे धीरे बंगले की तरफ गई.. घर का मुख्य दरवाजा बंद था और उसे खोलने या खुलवाने का इरादा भी नहीं था कविता का.. घर के बगल में बने कार-गराज के पास से घर के पीछे जाने का पतला सा रास्ता पड़ता था.. वहीं से गुजरकर कविता घर के ठीक पीछे पहुँच गई.. जहां उसके मम्मी-पापा के बेडरूम की खिड़की पड़ती थी और किचन भी..!!
घर के चारों तरफ घूमकर मुआयना करने पर उसे कहीं कोई गतिविधि नजर नहीं आई.. जो शंका पैदा करने वाला था.. कविता ने पहले किचन की खिड़की से झाँकने की कोशिश की पर अंदर अंधेरा था और किसी के होने का कोई अंदेशा भी नहीं था
वह अब धीरे धीरे आगे चलकर बेडरूम की खिड़की की तरफ आई.. कांच से बनी स्लाइडिंग खिड़की बंद थी..और अंदर से पर्दा भी डाला हुआ था.. अंदर रोशनी जल रही थी..!! एयर-टाइट कांच की खिड़की से कोई आवाज बाहर से अंदर नहीं आ सकती थी.. ध्यान से देखने पर कविता को परदे और खिड़की के बीच एक छोटा सा अवकाश नजर आया.. कविता अपने घुटने मोड़कर मुश्किल से नीचे की तरफ झुकी और अंदर देखने की कोशिश करने लगी..!!
अंदर का द्रश्य देखकर उसे चक्कर आने लगे..!!
सरल और धार्मिक प्रकृति वाली उसकी माँ.. रमिला.. बेड पर नंगे बदन घोड़ी बनी हुई थी.. और उनका गोरा चिट्टा नेपाली नौकर, जो इक्कीस साल का एक लड़का था, वह अपनी चड्डी नीचे कर, लंड घुसाकर पीछे से धक्के लगा रहा था....!!!!!!!
कविता की आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया..!!!! उसे अपना संतुलन बनाए रखने में भी कठिनाई हो रही थी..!! अपनी माँ के बूढ़े बदन को नंगा देखना ही कविता के लिए एक बड़ा सदमा था.. ऊपर से उन्हें इस अवस्था में देखकर शॉक हो गई कविता..!!!
संतान, चाहे वे कितने भी बड़े और वयस्क क्यों न बन जाएं, अपने माता-पिता को एक बहुत ऊंचे नैतिक स्तर पर रखते हैं.. उन्हें अपने माता-पिता की पवित्रता पर गहरा अटूट विश्वास होता हैं और उन्हें सबसे अधिक नैतिक और आदर्श मानते हैं.. जब उन्हें अपने माता-पिता में से किसी एक के बेवफाई या अवैध संबंधों के बारे में पता चलता है, तो यह उनके लिए एक बहुत बड़ा झटका होता है.. वे इस तथ्य को स्वीकार ही नहीं कर पाते कि उनके माता-पिता में से कोई भी ऐसे अनैतिक संबंधों में शामिल हो सकता है.. यह उनके लिए एक ऐसी कठिन सच्चाई होती है, जिसे समझना और स्वीकार करना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होता..
मौसम की शादी के बाद, कविता ने ही उस नेपाली नौकर को, अपनी माँ की देखभाल करने और खाना बनाने के लिए नियुक्त किया था.. तब उसे जरा सा भी अंदेशा नहीं था की बड़ी पवित्र सी दिखने वाली उसकी सीधी माँ, उस नौकर से ऐसे सेवाएं लेगी..!!!
हालांकि रमिलाबहन उम्र दराज थी.. उनकी बढ़ती उम्र की निशानियाँ केवल उनके चेहरे और हाथ पैर की झुर्रियों में ही नजर आ रही थी.. बाकी के बदन में अब भी कसाव था..!! उनके ढले हुए स्तन, उस नौकर के हर धक्के के साथ, आगे पीछे झूल रहे थे.. कविता कुछ देर तक ध्यान से देखती रही.. यह सुनिश्चित करने के लिए की कहीं उसकी मम्मी से साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं हो रही..!!
लेकिन यह साफ प्रतीत हो रहा था की जो कुछ भी उसकी नज़रों के सामने था वह रमिलाबहन की मर्जी से ही हो रहा था.. और यह भी की वह उसे बड़ी आनंदित होकर इस संभोग में शामिल हो रही थी
अब रमिलाबहन के बूढ़े घुटने इस परिश्रम से थोड़े थक से गए थे.. अब वह अपने पीठ के बल बिस्तर पर लेट गई और टांगें फैलाकर उन्हों खुद ही उस नेपाली लड़के की गुलाबी नुन्नी को पकड़कर अपने पुराने भोसड़े में डाल दिया.. लड़का अब हौले हौले धक लगाने लगा और रमिलाबहन आँखें बंद कर अपनी चूचियाँ दबाती रही..!! वह लड़का पेलते हुए झुककर रमिलाबहन की चूचियाँ चूस रहा था.. रमिलाबहन ने अपनी दोनों टांगें उस लड़के की कमर के इर्दगिर्द लपेट रखी थी
उस जवान नौकर की धक्के लगाने की गति में निरंतर बढ़ोतरी हो रही थी.. और साथ ही साथ रमिलाबहन की सिसकियाँ भी बढ़ती जा रही थी.. आगे पीछे हो रही उस लड़के की गांड पर कविता की नजरें टिकी हुई थी.. लयबद्ध ताल से अंदर बाहर करते हुए अचानक उस लड़के के कूल्हें संकुचित होने लगे.. अंतिम तीन चार धक्के लगाकर वह रमिलाबहन की छातियों पर गिर गया.. बड़े ही स्नेह से रमिलाबहन उस लड़के के सिर को सहला रही थी.. उनके चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कान थी..
शर्म से आँखें झुक गई कविता की..!! उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की उसकी मम्मी ऐसा कुछ करने के लिए सक्षम होगी..!! उसकी अवधारणा तो यह थी की मम्मी ने काफी समय पहले ही यह सारी क्रियाओं से निवृत्ति ले ली थी.. और इसी कारणवश उसके पापा बाहर मुंह मारते थे..!! यदि उसकी माँ इतनी कामातुर थी तो फिर पापा को खुश क्यों नहीं रख पाती थी?? क्यों सुबोधकांत को अन्य स्त्रियों के साथ संबंध बनाने पड़ते थे??
कई सारे सवालों से कविता का दिमाग चकरा रहा था.. वह और देर तक उस द्रश्य का सामना नहीं कर पाई..!!
वह चलकर घर के आगे की तरफ पहुंची.. और गुस्से से डोरबेल बजाने लगी..!! उसे पता था की कुछ देर तक तो दरवाजा खुलने की कोई संभावना नहीं थी.. अपने पाप की निशानियाँ छुपाने में.. और अपनी निर्लज्जता को वस्त्रों के पीछे ढंकने में.. वक्त तो लगेगा ही मम्मी को..!! क्रोध के कारण थरथर कांप रही थी कविता..!! उसका बस चलता तो वह दरवाजा तोड़कर अंदर घुस जाती..
दरवाजा अब भी नहीं खुला पर कविता ने डोरबेल बजाना जारी ही रखा..!! करीब पाँच मिनट बाद कविता को दरवाजे के पीछे हड़बड़ाहट और कदमों की आहट सुनाई दी.. उसने डोरबेल बजाना बंद किया..
रमिलाबहन ने दरवाजा खोला और कविता को खड़ा देख चोंक सी गई.. थोड़े रोष के साथ उन्हों ने कहा "पागल हो गई है क्या कविता?? बेल बजाए जा रही थी..!! आजकल के बच्चों में सब्र नाम की कोई चीज ही नहीं है..!!"
कविता ने अपनी माँ को एक और धकेला और घर के अंदर घुस गई.. अचंभित हो गई रमिलाबहन..!!! न कोई बात की कविता ने.. न ही उसकी बात सुनने रुकी.. और ऐसे कौन भला धक्का देता है अपनी बूढ़ी माँ को..!!!
कविता ने ड्रॉइंग रूम मे चारों और देखा.. फिर बेडरूम में घुसी और बाहर निकली.. आखिर जब किचन में गई तब उसे वो मिला जो वह ढूंढ रही थी.. कनपट्टी से खींचकर वह उस नेपाली नौकर को बाहर ले आई.. और उसके गाल पर खींचकर दो करारे थप्पड़ रसीद कर दिए..!!!
वह नौकर बेचारा रो पड़ा.. और हाथ जोड़े खड़ा हो गया..!! उसे इतना तो समझ में आ गया की उसके और रमिलाबहन के संबंधों के बारे में किसी तरह कविता को पता चल चुका था
कविता: "अभी के अभी पुलिस को बुलाती हूँ.. और उन्हें सौंप देती हूँ.. फिर देख तेरा क्या हाल करते है वो लोग"
पुलिस का नाम सुनते ही वह बेचारा लड़का, रोते रोते कविता के पैरों में गिर गया और गिड़गिड़ाने लगा "ऐसा मत कीजिए मैडम.. मैं तो सब कुछ मालकिन के कहने पर ही कर रहा था.. वही मुझे पटाकर यह सब करवा रही है.. मेरी कोई गलती नहीं है मैडम, मुझे माफ कर दीजिए.. आप कहें तो मैं बिना पगार लिए यहाँ से चला जाऊंगा पर पुलिस को मत बुलाइए" वह लड़का कविता के पैर पकड़कर सुबकते हुए रोता ही रहा
कविता अब अपनी मम्मी की तरफ मुड़ी.. क्रोध भरी लाल आँखों से उसने रमिलाबहन की और देखा.. रमिलाबहन ने अपनी नजरें झुका ली.. अपने पैरों को उस नौकर से छुड़ाकर वह शेरनी की तरह अपनी माँ की और आई
गुस्से से दहाड़ते हुए कविता बोली "मम्मी, ये सब क्या है? मैंने आज जो देखा, उस पर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा! आप...!!!! आप हमारे नौकर के साथ... यह सब कर रही थी..!!! ये कैसे हो सकता है? आप को इतनी सी भी शर्म नहीं आई इस उम्र में यह सब करते हुए??? आप तो हमेशा से इतनी सीधी-सादी रही हैं..!! मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप इतनी गिरी हुई हरकत कर सकती हो..!!!"
रमिला बहन पहले तो चुप रही.. कुछ न बोली.. फिर शांत और दृढ़ आवाज़ में उन्हों ने कहा "कविता, बैठो.. मैं समझती हूँ कि तुम्हारे लिए ये सब देखना आसान नहीं है.. लेकिन तुम मेरी बात एक बार सुन लो"
आँखों में आंसुओं के साथ कविता ने उनकी बात आधी ही काटते हुए कहा "मम्मी, आपको ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? आप तो हमेशा से ऐसी चीज़ों से दूर रही हैं.. पापा के साथ तो आपको इन सब चीज़ों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, तो अब ये सब क्यों?"
गहरी सांस लेते हुए रमिला बहन ने कहा "कविता, तुम्हें क्या लगता है, मुझे तुम्हारे पापा के गुलछर्रों के बारे में पता नहीं है..!! मुझे सब पता था.. यहाँ तक कि मैंने ही तुम्हारे पिता को छूट दी हुई थी.. तुम्हें क्या लगता है, उससे मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता था? तुम्हारे पिता के साथ कुछ न करने का कारण यह नहीं था मैंने अपने कर्तव्यों से सन्यास ले लिया था..!!! नहीं बेटा, ऐसा नहीं था.. तुम्हारे पिता एक विकृत मानसिकता के व्यक्ति थे.. उनकी यौन इच्छाएं इतनी अजीब और अत्यधिक थीं कि मैं उनके साथ तालमेल नहीं बैठा पाती थी.. वो सब मेरे लिए असहनीय था.. मैं उनके साथ उस तरह से नहीं जुड़ सकती थी, जैसा वो चाहते थे.. मैं उनकी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती थी, और इसलिए उन्होंने दूसरी औरतों का सहारा लिया.. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी जरूरतों को महसूस नहीं करती.. मेरी भी अपनी इच्छाएं हैं..!!!"
हैरान हो गई कविता..!! उसे हल्का सा भी अंदाजा नहीं था की उसके पिता के नाजायज संबंधों के बारे में उसकी माँ को पता होगा.. अरे, उन्हों ने ही पापा को यह छूट दे रखी थी..!!!
कविता: "लेकिन मम्मी, आप तो हमेशा से इतनी धार्मिक और सीधी-साधी रही हैं.. आपने तो हमें हमेशा नैतिकता और सच्चाई का पाठ पढ़ाया है.. फिर आप खुद ही ऐसा पाप कैसे कर सकती हैं?!"
दुख भरी आवाज़ में रमिला बहन ने कहा "कविता, धार्मिक और सीधी-साधी होने का मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी शारीरिक ज़रूरतों को महसूस नहीं करती.. समाज हमें ये सिखाता है कि एक विधवा औरत को अपने आप को सिर्फ़ धर्म और समाज की मर्यादाओं तक सीमित रखना चाहिए.. लेकिन क्या समाज कभी ये सोचता है कि एक विधवा औरत के मन में भी इच्छाएं हो सकती हैं? उसे भी प्यार और साथ की ज़रूरत हो सकती है?"
अपनी माँ के इस दर्द को महसूस कर पा रही थी कविता.. हालांकि वह अब भी बेहद क्रोधित थी, वह उनकी मनोदशा को कुछ कुछ समझ पा रही थी..!! वह खुद भी तो यही कर रही थी.. पहले पिंटू के साथ और अब रसिक के साथ..!! बस इसलिए की वह उम्र में बड़ी थी.. यह कोई वजह तो थी नहीं की उनकी इच्छाएं न होती हो.. और कविता खुद ऐसी स्थिति में नहीं थी की अपनी माँ को नैतिकता का आईना दिखा सकें..!! अतृप्त शारीरिक इच्छाओं का भार वह भी तो ढो रही थी
थोड़ा सा नरम होते हुए कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब आसान नहीं रहा होगा.. लेकिन फिर भी, ये सब करना... ये गलत नहीं है?"
सुबकते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, गलत और सही का फैसला करना आसान नहीं होता.. मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी समाज की उम्मीदों पर खरी उतरने में लगा दी.. परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए बूढ़ी हो गई.. लेकिन आज मैंने ये फैसला अपनी खुशी के लिए किया.. मैं भी एक इंसान हूँ, कविता.. मेरी भी इच्छाएं हैं, मेरी भी ज़रूरतें हैं.. और अगर समाज मुझे ये सब करने की इजाज़त नहीं देता तो कोई बात नहीं.. मैंने ये फैसला खुद के लिए ले लिया..!!! एक औरत होने के नाते मेरी इच्छाओं को तृप्त करने के लिए यह किया.. मैंने किसी को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाया है.. सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरा किया है.. तुम्हारे पापा के साथ मेरा रिश्ता टूट चुका था, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैंने खुद को मरा हुआ समझ लिया था..!!!"
थोड़ी देर सोचकर फिर कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब कितना मुश्किल रहा होगा.. मैं समझने की कोशिश कर रही हूँ, लेकिन ये सब इतना अचानक... इतना हैरान करने वाला है.. मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ, लेकिन मुझे समय चाहिए इस बात से सहमत होने के लिए..!!"
कविता के गालों पर हाथ फेरते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, ज़िंदगी में कुछ चीज़ें सही या गलत नहीं होतीं.. वह सिर्फ़ होती हैं.. मैंने अपनी खुशी के लिए ये कदम उठाया है, और मैं इसके लिए शर्मिंदा नहीं हूँ.. मैं बस इतना ही चाहती हूँ कि तुम मुझे समझो..!! मैंने हमेशा तुम्हारी और मौसम की परवरिश में अपनी खुशियों को पीछे छोड़ दिया.. लेकिन अब जब तुम लोग बड़े हो चुके हो, तो मैंने अपनी जिंदगी को थोड़ा अपने हिसाब से जीने की कोशिश ही तो की है..!! कोई जुर्म तो नहीं किया..!!"
रमिलाबहन की बातों से कविता पिघल गई थी.. इसलिए नहीं की वह उसकी माँ थी.. पर इसलिए की वह एक औरत थी..!! और एक स्त्री होने के नाते अगर वह दूसरी स्त्री के मन की विडंबनाओं को नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा!!! कुछ देर पहले का उसका क्रोध अब सहानुभूति में बदलने लगा
वह अपनी मम्मी के करीब आई और उन्हें गले लगाते हुए बोली
कविता: "मम्मी, मैं आपको समझती हूँ.. शायद मुझे वक़्त लगेगा, लेकिन मैं आपके फैसले का सम्मान करती हूँ.. आप मेरी माँ हो, और मैं आपसे बहोत प्यार करती हूँ.. बस इतना ही कहूँगी, की आप जो कुछ भी करो बहोत संभलकर करना"
रमिला बहन अपने आँसू पोछते हुए कविता का सिर सहलाती रही और कुछ न बोली
Thanks bhaiSuperb update.
Sheela aur Renuka ne kamal ka daring dikhaya. Ab aage hotel me jabardast dhamal bachega.
Updateduffffffffffffffffffffffffffffffffff majaa aaa gayaa
Update Pls