• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

vakharia

Supreme
5,854
17,038
174
पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..

पीयूष की नजरंदाजी से तंग आकर, कविता ने फाल्गुनी का सहारा लेने का फैसला किया.. कविता के साथ एक संतृप्त संभोग के बाद दोनों बातें कर रहे थे जिस दौरान फाल्गुनी ने कविता को बताया की राजेश ने उसे अपनी ऑफिस में नौकरी दे दी है और अब वो जल्द ही शिफ्ट होने वाली है.. कविता ने अपना पुराना घर, जो की शीला के पड़ोस में था, उसे फाल्गुनी को रहने के लिए दे दिया..

अपनी केबिन की ओर जा रहे पीयूष की नजर झुककर खड़ी वैशाली की ओर गया.. झुकने के कारण, वैशाली का जीन्स थोड़ा नीचे उतर गया था और उसके नितंब उभरकर बाहर नजर आ रहे थे.. जिसे देख पीयूष एक पल के लिए वहीं थम गया.. यह देखते ही पीयूष के मन में सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गई जो उसने वैशाली के संग बिताई थी

अब आगे..
_________________________________________________________________________________________________


पीले रंग की सिफॉन साड़ी, हाई-हील सेंडल और कमर पर लटकते हुए पर्स के साथ सड़क पर चल रही कविता का जलवा ही अनोखा था.. गुजर रहे कई राहदारियों की नजर उसकी सुंदरता को निहार रही थी.. पिछले कुछ सालों में, कविता के पहनावे और जीवन स्तर में काफी सारे बदलाव आए थे.. डिजाइनर साड़ियाँ, लेटेस्ट फेशन के सेंडल्स और ब्रांडेड पर्स उसकी धनवान जीवनशैली का प्रमाण दे रहे थे


kav

वैसे तो कविता बिना अपनी गाड़ी के, कहीं जाती नहीं थी.. पर आज उसे जहां जाना था वह जगह उसके घर से चलकर जाने की दूरी पर ही थी..

रात का अंधेरा अपना शिकंजा कसे जा रहा था.. स्ट्रीट लाइट की मद्धम रोशनी में चलते हुए आखिर कविता पहुँच गई.. अपने घर.. मायके वाले घर.. अपने पिता स्व. सुबोधकांत के घर..!!!

कविता ने बिना कोई आवाज किए.. कंपाउंड का दरवाजा खोला.. गार्डन से गुजरते हुए वह धीरे धीरे बंगले की तरफ गई.. घर का मुख्य दरवाजा बंद था और उसे खोलने या खुलवाने का इरादा भी नहीं था कविता का.. घर के बगल में बने कार-गराज के पास से घर के पीछे जाने का पतला सा रास्ता पड़ता था.. वहीं से गुजरकर कविता घर के ठीक पीछे पहुँच गई.. जहां उसके मम्मी-पापा के बेडरूम की खिड़की पड़ती थी और किचन भी..!!

घर के चारों तरफ घूमकर मुआयना करने पर उसे कहीं कोई गतिविधि नजर नहीं आई.. जो शंका पैदा करने वाला था.. कविता ने पहले किचन की खिड़की से झाँकने की कोशिश की पर अंदर अंधेरा था और किसी के होने का कोई अंदेशा भी नहीं था

वह अब धीरे धीरे आगे चलकर बेडरूम की खिड़की की तरफ आई.. कांच से बनी स्लाइडिंग खिड़की बंद थी..और अंदर से पर्दा भी डाला हुआ था.. अंदर रोशनी जल रही थी..!! एयर-टाइट कांच की खिड़की से कोई आवाज बाहर से अंदर नहीं आ सकती थी.. ध्यान से देखने पर कविता को परदे और खिड़की के बीच एक छोटा सा अवकाश नजर आया.. कविता अपने घुटने मोड़कर मुश्किल से नीचे की तरफ झुकी और अंदर देखने की कोशिश करने लगी..!!

अंदर का द्रश्य देखकर उसे चक्कर आने लगे..!!

सरल और धार्मिक प्रकृति वाली उसकी माँ.. रमिला.. बेड पर नंगे बदन घोड़ी बनी हुई थी.. और उनका गोरा चिट्टा नेपाली नौकर, जो इक्कीस साल का एक लड़का था, वह अपनी चड्डी नीचे कर, लंड घुसाकर पीछे से धक्के लगा रहा था....!!!!!!!

rami

कविता की आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया..!!!! उसे अपना संतुलन बनाए रखने में भी कठिनाई हो रही थी..!! अपनी माँ के बूढ़े बदन को नंगा देखना ही कविता के लिए एक बड़ा सदमा था.. ऊपर से उन्हें इस अवस्था में देखकर शॉक हो गई कविता..!!!

संतान, चाहे वे कितने भी बड़े और वयस्क क्यों न बन जाएं, अपने माता-पिता को एक बहुत ऊंचे नैतिक स्तर पर रखते हैं.. उन्हें अपने माता-पिता की पवित्रता पर गहरा अटूट विश्वास होता हैं और उन्हें सबसे अधिक नैतिक और आदर्श मानते हैं.. जब उन्हें अपने माता-पिता में से किसी एक के बेवफाई या अवैध संबंधों के बारे में पता चलता है, तो यह उनके लिए एक बहुत बड़ा झटका होता है.. वे इस तथ्य को स्वीकार ही नहीं कर पाते कि उनके माता-पिता में से कोई भी ऐसे अनैतिक संबंधों में शामिल हो सकता है.. यह उनके लिए एक ऐसी कठिन सच्चाई होती है, जिसे समझना और स्वीकार करना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होता..

मौसम की शादी के बाद, कविता ने ही उस नेपाली नौकर को, अपनी माँ की देखभाल करने और खाना बनाने के लिए नियुक्त किया था.. तब उसे जरा सा भी अंदेशा नहीं था की बड़ी पवित्र सी दिखने वाली उसकी सीधी माँ, उस नौकर से ऐसे सेवाएं लेगी..!!!

हालांकि रमिलाबहन उम्र दराज थी.. उनकी बढ़ती उम्र की निशानियाँ केवल उनके चेहरे और हाथ पैर की झुर्रियों में ही नजर आ रही थी.. बाकी के बदन में अब भी कसाव था..!! उनके ढले हुए स्तन, उस नौकर के हर धक्के के साथ, आगे पीछे झूल रहे थे.. कविता कुछ देर तक ध्यान से देखती रही.. यह सुनिश्चित करने के लिए की कहीं उसकी मम्मी से साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं हो रही..!!

swa

लेकिन यह साफ प्रतीत हो रहा था की जो कुछ भी उसकी नज़रों के सामने था वह रमिलाबहन की मर्जी से ही हो रहा था.. और यह भी की वह उसे बड़ी आनंदित होकर इस संभोग में शामिल हो रही थी

अब रमिलाबहन के बूढ़े घुटने इस परिश्रम से थोड़े थक से गए थे.. अब वह अपने पीठ के बल बिस्तर पर लेट गई और टांगें फैलाकर उन्हों खुद ही उस नेपाली लड़के की गुलाबी नुन्नी को पकड़कर अपने पुराने भोसड़े में डाल दिया.. लड़का अब हौले हौले धक लगाने लगा और रमिलाबहन आँखें बंद कर अपनी चूचियाँ दबाती रही..!! वह लड़का पेलते हुए झुककर रमिलाबहन की चूचियाँ चूस रहा था.. रमिलाबहन ने अपनी दोनों टांगें उस लड़के की कमर के इर्दगिर्द लपेट रखी थी

ent

उस जवान नौकर की धक्के लगाने की गति में निरंतर बढ़ोतरी हो रही थी.. और साथ ही साथ रमिलाबहन की सिसकियाँ भी बढ़ती जा रही थी.. आगे पीछे हो रही उस लड़के की गांड पर कविता की नजरें टिकी हुई थी.. लयबद्ध ताल से अंदर बाहर करते हुए अचानक उस लड़के के कूल्हें संकुचित होने लगे.. अंतिम तीन चार धक्के लगाकर वह रमिलाबहन की छातियों पर गिर गया.. बड़े ही स्नेह से रमिलाबहन उस लड़के के सिर को सहला रही थी.. उनके चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कान थी..

im

शर्म से आँखें झुक गई कविता की..!! उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की उसकी मम्मी ऐसा कुछ करने के लिए सक्षम होगी..!! उसकी अवधारणा तो यह थी की मम्मी ने काफी समय पहले ही यह सारी क्रियाओं से निवृत्ति ले ली थी.. और इसी कारणवश उसके पापा बाहर मुंह मारते थे..!! यदि उसकी माँ इतनी कामातुर थी तो फिर पापा को खुश क्यों नहीं रख पाती थी?? क्यों सुबोधकांत को अन्य स्त्रियों के साथ संबंध बनाने पड़ते थे??

कई सारे सवालों से कविता का दिमाग चकरा रहा था.. वह और देर तक उस द्रश्य का सामना नहीं कर पाई..!!

वह चलकर घर के आगे की तरफ पहुंची.. और गुस्से से डोरबेल बजाने लगी..!! उसे पता था की कुछ देर तक तो दरवाजा खुलने की कोई संभावना नहीं थी.. अपने पाप की निशानियाँ छुपाने में.. और अपनी निर्लज्जता को वस्त्रों के पीछे ढंकने में.. वक्त तो लगेगा ही मम्मी को..!! क्रोध के कारण थरथर कांप रही थी कविता..!! उसका बस चलता तो वह दरवाजा तोड़कर अंदर घुस जाती..

दरवाजा अब भी नहीं खुला पर कविता ने डोरबेल बजाना जारी ही रखा..!! करीब पाँच मिनट बाद कविता को दरवाजे के पीछे हड़बड़ाहट और कदमों की आहट सुनाई दी.. उसने डोरबेल बजाना बंद किया..

रमिलाबहन ने दरवाजा खोला और कविता को खड़ा देख चोंक सी गई.. थोड़े रोष के साथ उन्हों ने कहा "पागल हो गई है क्या कविता?? बेल बजाए जा रही थी..!! आजकल के बच्चों में सब्र नाम की कोई चीज ही नहीं है..!!"

कविता ने अपनी माँ को एक और धकेला और घर के अंदर घुस गई.. अचंभित हो गई रमिलाबहन..!!! न कोई बात की कविता ने.. न ही उसकी बात सुनने रुकी.. और ऐसे कौन भला धक्का देता है अपनी बूढ़ी माँ को..!!!

कविता ने ड्रॉइंग रूम मे चारों और देखा.. फिर बेडरूम में घुसी और बाहर निकली.. आखिर जब किचन में गई तब उसे वो मिला जो वह ढूंढ रही थी.. कनपट्टी से खींचकर वह उस नेपाली नौकर को बाहर ले आई.. और उसके गाल पर खींचकर दो करारे थप्पड़ रसीद कर दिए..!!!

वह नौकर बेचारा रो पड़ा.. और हाथ जोड़े खड़ा हो गया..!! उसे इतना तो समझ में आ गया की उसके और रमिलाबहन के संबंधों के बारे में किसी तरह कविता को पता चल चुका था

कविता: "अभी के अभी पुलिस को बुलाती हूँ.. और उन्हें सौंप देती हूँ.. फिर देख तेरा क्या हाल करते है वो लोग"

पुलिस का नाम सुनते ही वह बेचारा लड़का, रोते रोते कविता के पैरों में गिर गया और गिड़गिड़ाने लगा "ऐसा मत कीजिए मैडम.. मैं तो सब कुछ मालकिन के कहने पर ही कर रहा था.. वही मुझे पटाकर यह सब करवा रही है.. मेरी कोई गलती नहीं है मैडम, मुझे माफ कर दीजिए.. आप कहें तो मैं बिना पगार लिए यहाँ से चला जाऊंगा पर पुलिस को मत बुलाइए" वह लड़का कविता के पैर पकड़कर सुबकते हुए रोता ही रहा

कविता अब अपनी मम्मी की तरफ मुड़ी.. क्रोध भरी लाल आँखों से उसने रमिलाबहन की और देखा.. रमिलाबहन ने अपनी नजरें झुका ली.. अपने पैरों को उस नौकर से छुड़ाकर वह शेरनी की तरह अपनी माँ की और आई

गुस्से से दहाड़ते हुए कविता बोली "मम्मी, ये सब क्या है? मैंने आज जो देखा, उस पर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा! आप...!!!! आप हमारे नौकर के साथ... यह सब कर रही थी..!!! ये कैसे हो सकता है? आप को इतनी सी भी शर्म नहीं आई इस उम्र में यह सब करते हुए??? आप तो हमेशा से इतनी सीधी-सादी रही हैं..!! मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप इतनी गिरी हुई हरकत कर सकती हो..!!!"

रमिला बहन पहले तो चुप रही.. कुछ न बोली.. फिर शांत और दृढ़ आवाज़ में उन्हों ने कहा "कविता, बैठो.. मैं समझती हूँ कि तुम्हारे लिए ये सब देखना आसान नहीं है.. लेकिन तुम मेरी बात एक बार सुन लो"

आँखों में आंसुओं के साथ कविता ने उनकी बात आधी ही काटते हुए कहा "मम्मी, आपको ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? आप तो हमेशा से ऐसी चीज़ों से दूर रही हैं.. पापा के साथ तो आपको इन सब चीज़ों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, तो अब ये सब क्यों?"

गहरी सांस लेते हुए रमिला बहन ने कहा "कविता, तुम्हें क्या लगता है, मुझे तुम्हारे पापा के गुलछर्रों के बारे में पता नहीं है..!! मुझे सब पता था.. यहाँ तक कि मैंने ही तुम्हारे पिता को छूट दी हुई थी.. तुम्हें क्या लगता है, उससे मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता था? तुम्हारे पिता के साथ कुछ न करने का कारण यह नहीं था मैंने अपने कर्तव्यों से सन्यास ले लिया था..!!! नहीं बेटा, ऐसा नहीं था.. तुम्हारे पिता एक विकृत मानसिकता के व्यक्ति थे.. उनकी यौन इच्छाएं इतनी अजीब और अत्यधिक थीं कि मैं उनके साथ तालमेल नहीं बैठा पाती थी.. वो सब मेरे लिए असहनीय था.. मैं उनके साथ उस तरह से नहीं जुड़ सकती थी, जैसा वो चाहते थे.. मैं उनकी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती थी, और इसलिए उन्होंने दूसरी औरतों का सहारा लिया.. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी जरूरतों को महसूस नहीं करती.. मेरी भी अपनी इच्छाएं हैं..!!!"

हैरान हो गई कविता..!! उसे हल्का सा भी अंदाजा नहीं था की उसके पिता के नाजायज संबंधों के बारे में उसकी माँ को पता होगा.. अरे, उन्हों ने ही पापा को यह छूट दे रखी थी..!!!

कविता: "लेकिन मम्मी, आप तो हमेशा से इतनी धार्मिक और सीधी-साधी रही हैं.. आपने तो हमें हमेशा नैतिकता और सच्चाई का पाठ पढ़ाया है.. फिर आप खुद ही ऐसा पाप कैसे कर सकती हैं?!"

दुख भरी आवाज़ में रमिला बहन ने कहा "कविता, धार्मिक और सीधी-साधी होने का मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी शारीरिक ज़रूरतों को महसूस नहीं करती.. समाज हमें ये सिखाता है कि एक विधवा औरत को अपने आप को सिर्फ़ धर्म और समाज की मर्यादाओं तक सीमित रखना चाहिए.. लेकिन क्या समाज कभी ये सोचता है कि एक विधवा औरत के मन में भी इच्छाएं हो सकती हैं? उसे भी प्यार और साथ की ज़रूरत हो सकती है?"

अपनी माँ के इस दर्द को महसूस कर पा रही थी कविता.. हालांकि वह अब भी बेहद क्रोधित थी, वह उनकी मनोदशा को कुछ कुछ समझ पा रही थी..!! वह खुद भी तो यही कर रही थी.. पहले पिंटू के साथ और अब रसिक के साथ..!! बस इसलिए की वह उम्र में बड़ी थी.. यह कोई वजह तो थी नहीं की उनकी इच्छाएं न होती हो.. और कविता खुद ऐसी स्थिति में नहीं थी की अपनी माँ को नैतिकता का आईना दिखा सकें..!! अतृप्त शारीरिक इच्छाओं का भार वह भी तो ढो रही थी

थोड़ा सा नरम होते हुए कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब आसान नहीं रहा होगा.. लेकिन फिर भी, ये सब करना... ये गलत नहीं है?"

सुबकते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, गलत और सही का फैसला करना आसान नहीं होता.. मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी समाज की उम्मीदों पर खरी उतरने में लगा दी.. परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए बूढ़ी हो गई.. लेकिन आज मैंने ये फैसला अपनी खुशी के लिए किया.. मैं भी एक इंसान हूँ, कविता.. मेरी भी इच्छाएं हैं, मेरी भी ज़रूरतें हैं.. और अगर समाज मुझे ये सब करने की इजाज़त नहीं देता तो कोई बात नहीं.. मैंने ये फैसला खुद के लिए ले लिया..!!! एक औरत होने के नाते मेरी इच्छाओं को तृप्त करने के लिए यह किया.. मैंने किसी को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाया है.. सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरा किया है.. तुम्हारे पापा के साथ मेरा रिश्ता टूट चुका था, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैंने खुद को मरा हुआ समझ लिया था..!!!"

थोड़ी देर सोचकर फिर कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब कितना मुश्किल रहा होगा.. मैं समझने की कोशिश कर रही हूँ, लेकिन ये सब इतना अचानक... इतना हैरान करने वाला है.. मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ, लेकिन मुझे समय चाहिए इस बात से सहमत होने के लिए..!!"

कविता के गालों पर हाथ फेरते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, ज़िंदगी में कुछ चीज़ें सही या गलत नहीं होतीं.. वह सिर्फ़ होती हैं.. मैंने अपनी खुशी के लिए ये कदम उठाया है, और मैं इसके लिए शर्मिंदा नहीं हूँ.. मैं बस इतना ही चाहती हूँ कि तुम मुझे समझो..!! मैंने हमेशा तुम्हारी और मौसम की परवरिश में अपनी खुशियों को पीछे छोड़ दिया.. लेकिन अब जब तुम लोग बड़े हो चुके हो, तो मैंने अपनी जिंदगी को थोड़ा अपने हिसाब से जीने की कोशिश ही तो की है..!! कोई जुर्म तो नहीं किया..!!"

रमिलाबहन की बातों से कविता पिघल गई थी.. इसलिए नहीं की वह उसकी माँ थी.. पर इसलिए की वह एक औरत थी..!! और एक स्त्री होने के नाते अगर वह दूसरी स्त्री के मन की विडंबनाओं को नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा!!! कुछ देर पहले का उसका क्रोध अब सहानुभूति में बदलने लगा

वह अपनी मम्मी के करीब आई और उन्हें गले लगाते हुए बोली

कविता: "मम्मी, मैं आपको समझती हूँ.. शायद मुझे वक़्त लगेगा, लेकिन मैं आपके फैसले का सम्मान करती हूँ.. आप मेरी माँ हो, और मैं आपसे बहोत प्यार करती हूँ.. बस इतना ही कहूँगी, की आप जो कुछ भी करो बहोत संभलकर करना"


रमिला बहन अपने आँसू पोछते हुए कविता का सिर सहलाती रही और कुछ न बोली

अगला मजेदार अपडेट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
 
Last edited:

vakharia

Supreme
5,854
17,038
174
Story updated

Napster Ajju Landwalia Rajizexy Smith_15 krish1152 Rocky9i crucer97 Gauravv liverpool244 urc4me SKYESH sunoanuj Sanjay dham normal_boy Raja1239 CuriousOne sab ka pyra Raj dulara 8cool9 Dharmendra Kumar Patel surekha1986 CHAVDAKARUNA Delta101 rahul 23 SONU69@INDORE randibaaz chora Rahul Chauhan DEVIL MAXIMUM Pras3232 Baadshahkhan1111 pussylover1 Ek number Pk8566 Premkumar65 Baribrar Raja thakur Iron Man DINNA Rajpoot MS Hardwrick22 Raj3465 Rohitjony Dirty_mind Nikunjbaba brij1728 Rajesh Sarhadi ROB177A Tri2010 rhyme_boy Sanju@ Sauravb Bittoo raghw249 Coolraj839 Jassybabra rtnalkumar avi345 kamdev99008 SANJU ( V. R. ) Neha tyagi Rishiii Aeron Boy Bhatakta Rahi 1234 kasi_babu Sutradhar dangerlund Arjun125 Radha Shama nb836868 Monster Dick Rajgoa anitarani Jlodhi35 Mukesh singh Pradeep paswan अंजुम Loveforyou Neelamptjoshi sandy1684 Royal boy034 mastmast123 Rajsingh Kahal Mr. Unique Vikas@170 DB Singh trick1w Vincenzo rahulg123 Lord haram SKY is black Ayhina Pooja Vaishnav moms_bachha@Kamini sucksena Jay1990 rkv66 Hot&sexyboy Ben Tennyson Jay1990 sunitasbs 111ramjain Rocky9i krish1152 U.and.me archana sexy vishali robby1611 Amisha2 Tiger 786 Sing is king 42 Tri2010 ellysperry macssm Ragini Ragini Karim Saheb rrpr Ayesha952 sameer26.shah26 rahuliscool smash001 rajeev13 kingkhankar arushi_dayal rangeeladesi Mastmalang 695 Rumana001 sushilk satya18 Rowdy Pandu1990 small babe CHETANSONI sonukm Bulbul_Rani shameless26 Lover ❤️ NehaRani9 Random2022 officer Rashmi Hector_789 komaalrani ra123hul romani roy Big monster6565 Danny69 Victor963 welneo Raj Rasiya Vic_789
 

pussylover1

Milf lover.
1,436
2,025
143
पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..

पीयूष की नजरंदाजी से तंग आकर, कविता ने फाल्गुनी का सहारा लेने का फैसला किया.. कविता के साथ एक संतृप्त संभोग के बाद दोनों बातें कर रहे थे जिस दौरान फाल्गुनी ने कविता को बताया की राजेश ने उसे अपनी ऑफिस में नौकरी दे दी है और अब वो जल्द ही शिफ्ट होने वाली है.. कविता ने अपना पुराना घर, जो की शीला के पड़ोस में था, उसे फाल्गुनी को रहने के लिए दे दिया..

अपनी केबिन की ओर जा रहे पीयूष की नजर झुककर खड़ी वैशाली की ओर गया.. झुकने के कारण, वैशाली का जीन्स थोड़ा नीचे उतर गया था और उसके नितंब उभरकर बाहर नजर आ रहे थे.. जिसे देख पीयूष एक पल के लिए वहीं थम गया.. यह देखते ही पीयूष के मन में सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गई जो उसने वैशाली के संग बिताई थी

अब आगे..
_________________________________________________________________________________________________


पीले रंग की सिफॉन साड़ी, हाई-हील सेंडल और कमर पर लटकते हुए पर्स के साथ सड़क पर चल रही कविता का जलवा ही अनोखा था.. गुजर रहे कई राहदारियों की नजर उसकी सुंदरता को निहार रही थी.. पिछले कुछ सालों में, कविता के पहनावे और जीवन स्तर में काफी सारे बदलाव आए थे.. डिजाइनर साड़ियाँ, लेटेस्ट फेशन के सेंडल्स और ब्रांडेड पर्स उसकी धनवान जीवनशैली का प्रमाण दे रहे थे


kav

वैसे तो कविता बिना अपनी गाड़ी के, कहीं जाती नहीं थी.. पर आज उसे जहां जाना था वह जगह उसके घर से चलकर जाने की दूरी पर ही थी..

रात का अंधेरा अपना शिकंजा कसे जा रहा था.. स्ट्रीट लाइट की मद्धम रोशनी में चलते हुए आखिर कविता पहुँच गई.. अपने घर.. मायके वाले घर.. अपने पिता स्व. सुबोधकांत के घर..!!!

कविता ने बिना कोई आवाज किए.. कंपाउंड का दरवाजा खोला.. गार्डन से गुजरते हुए वह धीरे धीरे बंगले की तरफ गई.. घर का मुख्य दरवाजा बंद था और उसे खोलने या खुलवाने का इरादा भी नहीं था कविता का.. घर के बगल में बने कार-गराज के पास से घर के पीछे जाने का पतला सा रास्ता पड़ता था.. वहीं से गुजरकर कविता घर के ठीक पीछे पहुँच गई.. जहां उसके मम्मी-पापा के बेडरूम की खिड़की पड़ती थी और किचन भी..!!

घर के चारों तरफ घूमकर मुआयना करने पर उसे कहीं कोई गतिविधि नजर नहीं आई.. जो शंका पैदा करने वाला था.. कविता ने पहले किचन की खिड़की से झाँकने की कोशिश की पर अंदर अंधेरा था और किसी के होने का कोई अंदेशा भी नहीं था

वह अब धीरे धीरे आगे चलकर बेडरूम की खिड़की की तरफ आई.. कांच से बनी स्लाइडिंग खिड़की बंद थी..और अंदर से पर्दा भी डाला हुआ था.. अंदर रोशनी जल रही थी..!! एयर-टाइट कांच की खिड़की से कोई आवाज बाहर से अंदर नहीं आ सकती थी.. ध्यान से देखने पर कविता को परदे और खिड़की के बीच एक छोटा सा अवकाश नजर आया.. कविता अपने घुटने मोड़कर मुश्किल से नीचे की तरफ झुकी और अंदर देखने की कोशिश करने लगी..!!

अंदर का द्रश्य देखकर उसे चक्कर आने लगे..!!

सरल और धार्मिक प्रकृति वाली उसकी माँ.. रमिला.. बेड पर नंगे बदन घोड़ी बनी हुई थी.. और उनका गोरा चिट्टा नेपाली नौकर, जो इक्कीस साल का एक लड़का था, वह अपनी चड्डी नीचे कर, लंड घुसाकर पीछे से धक्के लगा रहा था....!!!!!!!

rami

कविता की आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया..!!!! उसे अपना संतुलन बनाए रखने में भी कठिनाई हो रही थी..!! अपनी माँ के बूढ़े बदन को नंगा देखना ही कविता के लिए एक बड़ा सदमा था.. ऊपर से उन्हें इस अवस्था में देखकर शॉक हो गई कविता..!!!

संतान, चाहे वे कितने भी बड़े और वयस्क क्यों न बन जाएं, अपने माता-पिता को एक बहुत ऊंचे नैतिक स्तर पर रखते हैं.. उन्हें अपने माता-पिता की पवित्रता पर गहरा अटूट विश्वास होता हैं और उन्हें सबसे अधिक नैतिक और आदर्श मानते हैं.. जब उन्हें अपने माता-पिता में से किसी एक के बेवफाई या अवैध संबंधों के बारे में पता चलता है, तो यह उनके लिए एक बहुत बड़ा झटका होता है.. वे इस तथ्य को स्वीकार ही नहीं कर पाते कि उनके माता-पिता में से कोई भी ऐसे अनैतिक संबंधों में शामिल हो सकता है.. यह उनके लिए एक ऐसी कठिन सच्चाई होती है, जिसे समझना और स्वीकार करना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होता..

मौसम की शादी के बाद, कविता ने ही उस नेपाली नौकर को, अपनी माँ की देखभाल करने और खाना बनाने के लिए नियुक्त किया था.. तब उसे जरा सा भी अंदेशा नहीं था की बड़ी पवित्र सी दिखने वाली उसकी सीधी माँ, उस नौकर से ऐसे सेवाएं लेगी..!!!

हालांकि रमिलाबहन उम्र दराज थी.. उनकी बढ़ती उम्र की निशानियाँ केवल उनके चेहरे और हाथ पैर की झुर्रियों में ही नजर आ रही थी.. बाकी के बदन में अब भी कसाव था..!! उनके ढले हुए स्तन, उस नौकर के हर धक्के के साथ, आगे पीछे झूल रहे थे.. कविता कुछ देर तक ध्यान से देखती रही.. यह सुनिश्चित करने के लिए की कहीं उसकी मम्मी से साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं हो रही..!!

swa

लेकिन यह साफ प्रतीत हो रहा था की जो कुछ भी उसकी नज़रों के सामने था वह रमिलाबहन की मर्जी से ही हो रहा था.. और यह भी की वह उसे बड़ी आनंदित होकर इस संभोग में शामिल हो रही थी

अब रमिलाबहन के बूढ़े घुटने इस परिश्रम से थोड़े थक से गए थे.. अब वह अपने पीठ के बल बिस्तर पर लेट गई और टांगें फैलाकर उन्हों खुद ही उस नेपाली लड़के की गुलाबी नुन्नी को पकड़कर अपने पुराने भोसड़े में डाल दिया.. लड़का अब हौले हौले धक लगाने लगा और रमिलाबहन आँखें बंद कर अपनी चूचियाँ दबाती रही..!! वह लड़का पेलते हुए झुककर रमिलाबहन की चूचियाँ चूस रहा था.. रमिलाबहन ने अपनी दोनों टांगें उस लड़के की कमर के इर्दगिर्द लपेट रखी थी

ent

उस जवान नौकर की धक्के लगाने की गति में निरंतर बढ़ोतरी हो रही थी.. और साथ ही साथ रमिलाबहन की सिसकियाँ भी बढ़ती जा रही थी.. आगे पीछे हो रही उस लड़के की गांड पर कविता की नजरें टिकी हुई थी.. लयबद्ध ताल से अंदर बाहर करते हुए अचानक उस लड़के के कूल्हें संकुचित होने लगे.. अंतिम तीन चार धक्के लगाकर वह रमिलाबहन की छातियों पर गिर गया.. बड़े ही स्नेह से रमिलाबहन उस लड़के के सिर को सहला रही थी.. उनके चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कान थी..

im

शर्म से आँखें झुक गई कविता की..!! उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की उसकी मम्मी ऐसा कुछ करने के लिए सक्षम होगी..!! उसकी अवधारणा तो यह थी की मम्मी ने काफी समय पहले ही यह सारी क्रियाओं से निवृत्ति ले ली थी.. और इसी कारणवश उसके पापा बाहर मुंह मारते थे..!! यदि उसकी माँ इतनी कामातुर थी तो फिर पापा को खुश क्यों नहीं रख पाती थी?? क्यों सुबोधकांत को अन्य स्त्रियों के साथ संबंध बनाने पड़ते थे??

कई सारे सवालों से कविता का दिमाग चकरा रहा था.. वह और देर तक उस द्रश्य का सामना नहीं कर पाई..!!

वह चलकर घर के आगे की तरफ पहुंची.. और गुस्से से डोरबेल बजाने लगी..!! उसे पता था की कुछ देर तक तो दरवाजा खुलने की कोई संभावना नहीं थी.. अपने पाप की निशानियाँ छुपाने में.. और अपनी निर्लज्जता को वस्त्रों के पीछे ढंकने में.. वक्त तो लगेगा ही मम्मी को..!! क्रोध के कारण थरथर कांप रही थी कविता..!! उसका बस चलता तो वह दरवाजा तोड़कर अंदर घुस जाती..

दरवाजा अब भी नहीं खुला पर कविता ने डोरबेल बजाना जारी ही रखा..!! करीब पाँच मिनट बाद कविता को दरवाजे के पीछे हड़बड़ाहट और कदमों की आहट सुनाई दी.. उसने डोरबेल बजाना बंद किया..

रमिलाबहन ने दरवाजा खोला और कविता को खड़ा देख चोंक सी गई.. थोड़े रोष के साथ उन्हों ने कहा "पागल हो गई है क्या कविता?? बेल बजाए जा रही थी..!! आजकल के बच्चों में सब्र नाम की कोई चीज ही नहीं है..!!"

कविता ने अपनी माँ को एक और धकेला और घर के अंदर घुस गई.. अचंभित हो गई रमिलाबहन..!!! न कोई बात की कविता ने.. न ही उसकी बात सुनने रुकी.. और ऐसे कौन भला धक्का देता है अपनी बूढ़ी माँ को..!!!

कविता ने ड्रॉइंग रूम मे चारों और देखा.. फिर बेडरूम में घुसी और बाहर निकली.. आखिर जब किचन में गई तब उसे वो मिला जो वह ढूंढ रही थी.. कनपट्टी से खींचकर वह उस नेपाली नौकर को बाहर ले आई.. और उसके गाल पर खींचकर दो करारे थप्पड़ रसीद कर दिए..!!!

वह नौकर बेचारा रो पड़ा.. और हाथ जोड़े खड़ा हो गया..!! उसे इतना तो समझ में आ गया की उसके और रमिलाबहन के संबंधों के बारे में किसी तरह कविता को पता चल चुका था

कविता: "अभी के अभी पुलिस को बुलाती हूँ.. और उन्हें सौंप देती हूँ.. फिर देख तेरा क्या हाल करते है वो लोग"

पुलिस का नाम सुनते ही वह बेचारा लड़का, रोते रोते कविता के पैरों में गिर गया और गिड़गिड़ाने लगा "ऐसा मत कीजिए मैडम.. मैं तो सब कुछ मालकिन के कहने पर ही कर रहा था.. वही मुझे पटाकर यह सब करवा रही है.. मेरी कोई गलती नहीं है मैडम, मुझे माफ कर दीजिए.. आप कहें तो मैं बिना पगार लिए यहाँ से चला जाऊंगा पर पुलिस को मत बुलाइए" वह लड़का कविता के पैर पकड़कर सुबकते हुए रोता ही रहा

कविता अब अपनी मम्मी की तरफ मुड़ी.. क्रोध भरी लाल आँखों से उसने रमिलाबहन की और देखा.. रमिलाबहन ने अपनी नजरें झुका ली.. अपने पैरों को उस नौकर से छुड़ाकर वह शेरनी की तरह अपनी माँ की और आई

गुस्से से दहाड़ते हुए कविता बोली "मम्मी, ये सब क्या है? मैंने आज जो देखा, उस पर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा! आप...!!!! आप हमारे नौकर के साथ... यह सब कर रही थी..!!! ये कैसे हो सकता है? आप को इतनी सी भी शर्म नहीं आई इस उम्र में यह सब करते हुए??? आप तो हमेशा से इतनी सीधी-सादी रही हैं..!! मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप इतनी गिरी हुई हरकत कर सकती हो..!!!"

रमिला बहन पहले तो चुप रही.. कुछ न बोली.. फिर शांत और दृढ़ आवाज़ में उन्हों ने कहा "कविता, बैठो.. मैं समझती हूँ कि तुम्हारे लिए ये सब देखना आसान नहीं है.. लेकिन तुम मेरी बात एक बार सुन लो"

आँखों में आंसुओं के साथ कविता ने उनकी बात आधी ही काटते हुए कहा "मम्मी, आपको ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? आप तो हमेशा से ऐसी चीज़ों से दूर रही हैं.. पापा के साथ तो आपको इन सब चीज़ों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, तो अब ये सब क्यों?"

गहरी सांस लेते हुए रमिला बहन ने कहा "कविता, तुम्हें क्या लगता है, मुझे तुम्हारे पापा के गुलछर्रों के बारे में पता नहीं है..!! मुझे सब पता था.. यहाँ तक कि मैंने ही तुम्हारे पिता को छूट दी हुई थी.. तुम्हें क्या लगता है, उससे मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता था? तुम्हारे पिता के साथ कुछ न करने का कारण यह नहीं था मैंने अपने कर्तव्यों से सन्यास ले लिया था..!!! नहीं बेटा, ऐसा नहीं था.. तुम्हारे पिता एक विकृत मानसिकता के व्यक्ति थे.. उनकी यौन इच्छाएं इतनी अजीब और अत्यधिक थीं कि मैं उनके साथ तालमेल नहीं बैठा पाती थी.. वो सब मेरे लिए असहनीय था.. मैं उनके साथ उस तरह से नहीं जुड़ सकती थी, जैसा वो चाहते थे.. मैं उनकी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती थी, और इसलिए उन्होंने दूसरी औरतों का सहारा लिया.. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी जरूरतों को महसूस नहीं करती.. मेरी भी अपनी इच्छाएं हैं..!!!"

हैरान हो गई कविता..!! उसे हल्का सा भी अंदाजा नहीं था की उसके पिता के नाजायज संबंधों के बारे में उसकी माँ को पता होगा.. अरे, उन्हों ने ही पापा को यह छूट दे रखी थी..!!!

कविता: "लेकिन मम्मी, आप तो हमेशा से इतनी धार्मिक और सीधी-साधी रही हैं.. आपने तो हमें हमेशा नैतिकता और सच्चाई का पाठ पढ़ाया है.. फिर आप खुद ही ऐसा पाप कैसे कर सकती हैं?!"

दुख भरी आवाज़ में रमिला बहन ने कहा "कविता, धार्मिक और सीधी-साधी होने का मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी शारीरिक ज़रूरतों को महसूस नहीं करती.. समाज हमें ये सिखाता है कि एक विधवा औरत को अपने आप को सिर्फ़ धर्म और समाज की मर्यादाओं तक सीमित रखना चाहिए.. लेकिन क्या समाज कभी ये सोचता है कि एक विधवा औरत के मन में भी इच्छाएं हो सकती हैं? उसे भी प्यार और साथ की ज़रूरत हो सकती है?"

अपनी माँ के इस दर्द को महसूस कर पा रही थी कविता.. हालांकि वह अब भी बेहद क्रोधित थी, वह उनकी मनोदशा को कुछ कुछ समझ पा रही थी..!! वह खुद भी तो यही कर रही थी.. पहले पिंटू के साथ और अब रसिक के साथ..!! बस इसलिए की वह उम्र में बड़ी थी.. यह कोई वजह तो थी नहीं की उनकी इच्छाएं न होती हो.. और कविता खुद ऐसी स्थिति में नहीं थी की अपनी माँ को नैतिकता का आईना दिखा सकें..!! अतृप्त शारीरिक इच्छाओं का भार वह भी तो ढो रही थी

थोड़ा सा नरम होते हुए कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब आसान नहीं रहा होगा.. लेकिन फिर भी, ये सब करना... ये गलत नहीं है?"

सुबकते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, गलत और सही का फैसला करना आसान नहीं होता.. मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी समाज की उम्मीदों पर खरी उतरने में लगा दी.. परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए बूढ़ी हो गई.. लेकिन आज मैंने ये फैसला अपनी खुशी के लिए किया.. मैं भी एक इंसान हूँ, कविता.. मेरी भी इच्छाएं हैं, मेरी भी ज़रूरतें हैं.. और अगर समाज मुझे ये सब करने की इजाज़त नहीं देता तो कोई बात नहीं.. मैंने ये फैसला खुद के लिए ले लिया..!!! एक औरत होने के नाते मेरी इच्छाओं को तृप्त करने के लिए यह किया.. मैंने किसी को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाया है.. सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरा किया है.. तुम्हारे पापा के साथ मेरा रिश्ता टूट चुका था, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैंने खुद को मरा हुआ समझ लिया था..!!!"

थोड़ी देर सोचकर फिर कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब कितना मुश्किल रहा होगा.. मैं समझने की कोशिश कर रही हूँ, लेकिन ये सब इतना अचानक... इतना हैरान करने वाला है.. मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ, लेकिन मुझे समय चाहिए इस बात से सहमत होने के लिए..!!"

कविता के गालों पर हाथ फेरते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, ज़िंदगी में कुछ चीज़ें सही या गलत नहीं होतीं.. वह सिर्फ़ होती हैं.. मैंने अपनी खुशी के लिए ये कदम उठाया है, और मैं इसके लिए शर्मिंदा नहीं हूँ.. मैं बस इतना ही चाहती हूँ कि तुम मुझे समझो..!! मैंने हमेशा तुम्हारी और मौसम की परवरिश में अपनी खुशियों को पीछे छोड़ दिया.. लेकिन अब जब तुम लोग बड़े हो चुके हो, तो मैंने अपनी जिंदगी को थोड़ा अपने हिसाब से जीने की कोशिश ही तो की है..!! कोई जुर्म तो नहीं किया..!!"

रमिलाबहन की बातों से कविता पिघल गई थी.. इसलिए नहीं की वह उसकी माँ थी.. पर इसलिए की वह एक औरत थी..!! और एक स्त्री होने के नाते अगर वह दूसरी स्त्री के मन की विडंबनाओं को नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा!!! कुछ देर पहले का उसका क्रोध अब सहानुभूति में बदलने लगा

वह अपनी मम्मी के करीब आई और उन्हें गले लगाते हुए बोली

कविता: "मम्मी, मैं आपको समझती हूँ.. शायद मुझे वक़्त लगेगा, लेकिन मैं आपके फैसले का सम्मान करती हूँ.. आप मेरी माँ हो, और मैं आपसे बहोत प्यार करती हूँ.. बस इतना ही कहूँगी, की आप जो कुछ भी करो बहोत संभलकर करना"


रमिला बहन अपने आँसू पोछते हुए कविता का सिर सहलाती रही और कुछ न बोली
Ek aur dhamaka nice update
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,893
15,012
159
पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..

पीयूष की नजरंदाजी से तंग आकर, कविता ने फाल्गुनी का सहारा लेने का फैसला किया.. कविता के साथ एक संतृप्त संभोग के बाद दोनों बातें कर रहे थे जिस दौरान फाल्गुनी ने कविता को बताया की राजेश ने उसे अपनी ऑफिस में नौकरी दे दी है और अब वो जल्द ही शिफ्ट होने वाली है.. कविता ने अपना पुराना घर, जो की शीला के पड़ोस में था, उसे फाल्गुनी को रहने के लिए दे दिया..

अपनी केबिन की ओर जा रहे पीयूष की नजर झुककर खड़ी वैशाली की ओर गया.. झुकने के कारण, वैशाली का जीन्स थोड़ा नीचे उतर गया था और उसके नितंब उभरकर बाहर नजर आ रहे थे.. जिसे देख पीयूष एक पल के लिए वहीं थम गया.. यह देखते ही पीयूष के मन में सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गई जो उसने वैशाली के संग बिताई थी

अब आगे..
_________________________________________________________________________________________________


पीले रंग की सिफॉन साड़ी, हाई-हील सेंडल और कमर पर लटकते हुए पर्स के साथ सड़क पर चल रही कविता का जलवा ही अनोखा था.. गुजर रहे कई राहदारियों की नजर उसकी सुंदरता को निहार रही थी.. पिछले कुछ सालों में, कविता के पहनावे और जीवन स्तर में काफी सारे बदलाव आए थे.. डिजाइनर साड़ियाँ, लेटेस्ट फेशन के सेंडल्स और ब्रांडेड पर्स उसकी धनवान जीवनशैली का प्रमाण दे रहे थे


kav

वैसे तो कविता बिना अपनी गाड़ी के, कहीं जाती नहीं थी.. पर आज उसे जहां जाना था वह जगह उसके घर से चलकर जाने की दूरी पर ही थी..

रात का अंधेरा अपना शिकंजा कसे जा रहा था.. स्ट्रीट लाइट की मद्धम रोशनी में चलते हुए आखिर कविता पहुँच गई.. अपने घर.. मायके वाले घर.. अपने पिता स्व. सुबोधकांत के घर..!!!

कविता ने बिना कोई आवाज किए.. कंपाउंड का दरवाजा खोला.. गार्डन से गुजरते हुए वह धीरे धीरे बंगले की तरफ गई.. घर का मुख्य दरवाजा बंद था और उसे खोलने या खुलवाने का इरादा भी नहीं था कविता का.. घर के बगल में बने कार-गराज के पास से घर के पीछे जाने का पतला सा रास्ता पड़ता था.. वहीं से गुजरकर कविता घर के ठीक पीछे पहुँच गई.. जहां उसके मम्मी-पापा के बेडरूम की खिड़की पड़ती थी और किचन भी..!!

घर के चारों तरफ घूमकर मुआयना करने पर उसे कहीं कोई गतिविधि नजर नहीं आई.. जो शंका पैदा करने वाला था.. कविता ने पहले किचन की खिड़की से झाँकने की कोशिश की पर अंदर अंधेरा था और किसी के होने का कोई अंदेशा भी नहीं था

वह अब धीरे धीरे आगे चलकर बेडरूम की खिड़की की तरफ आई.. कांच से बनी स्लाइडिंग खिड़की बंद थी..और अंदर से पर्दा भी डाला हुआ था.. अंदर रोशनी जल रही थी..!! एयर-टाइट कांच की खिड़की से कोई आवाज बाहर से अंदर नहीं आ सकती थी.. ध्यान से देखने पर कविता को परदे और खिड़की के बीच एक छोटा सा अवकाश नजर आया.. कविता अपने घुटने मोड़कर मुश्किल से नीचे की तरफ झुकी और अंदर देखने की कोशिश करने लगी..!!

अंदर का द्रश्य देखकर उसे चक्कर आने लगे..!!

सरल और धार्मिक प्रकृति वाली उसकी माँ.. रमिला.. बेड पर नंगे बदन घोड़ी बनी हुई थी.. और उनका गोरा चिट्टा नेपाली नौकर, जो इक्कीस साल का एक लड़का था, वह अपनी चड्डी नीचे कर, लंड घुसाकर पीछे से धक्के लगा रहा था....!!!!!!!

rami

कविता की आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया..!!!! उसे अपना संतुलन बनाए रखने में भी कठिनाई हो रही थी..!! अपनी माँ के बूढ़े बदन को नंगा देखना ही कविता के लिए एक बड़ा सदमा था.. ऊपर से उन्हें इस अवस्था में देखकर शॉक हो गई कविता..!!!

संतान, चाहे वे कितने भी बड़े और वयस्क क्यों न बन जाएं, अपने माता-पिता को एक बहुत ऊंचे नैतिक स्तर पर रखते हैं.. उन्हें अपने माता-पिता की पवित्रता पर गहरा अटूट विश्वास होता हैं और उन्हें सबसे अधिक नैतिक और आदर्श मानते हैं.. जब उन्हें अपने माता-पिता में से किसी एक के बेवफाई या अवैध संबंधों के बारे में पता चलता है, तो यह उनके लिए एक बहुत बड़ा झटका होता है.. वे इस तथ्य को स्वीकार ही नहीं कर पाते कि उनके माता-पिता में से कोई भी ऐसे अनैतिक संबंधों में शामिल हो सकता है.. यह उनके लिए एक ऐसी कठिन सच्चाई होती है, जिसे समझना और स्वीकार करना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होता..

मौसम की शादी के बाद, कविता ने ही उस नेपाली नौकर को, अपनी माँ की देखभाल करने और खाना बनाने के लिए नियुक्त किया था.. तब उसे जरा सा भी अंदेशा नहीं था की बड़ी पवित्र सी दिखने वाली उसकी सीधी माँ, उस नौकर से ऐसे सेवाएं लेगी..!!!

हालांकि रमिलाबहन उम्र दराज थी.. उनकी बढ़ती उम्र की निशानियाँ केवल उनके चेहरे और हाथ पैर की झुर्रियों में ही नजर आ रही थी.. बाकी के बदन में अब भी कसाव था..!! उनके ढले हुए स्तन, उस नौकर के हर धक्के के साथ, आगे पीछे झूल रहे थे.. कविता कुछ देर तक ध्यान से देखती रही.. यह सुनिश्चित करने के लिए की कहीं उसकी मम्मी से साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं हो रही..!!

swa

लेकिन यह साफ प्रतीत हो रहा था की जो कुछ भी उसकी नज़रों के सामने था वह रमिलाबहन की मर्जी से ही हो रहा था.. और यह भी की वह उसे बड़ी आनंदित होकर इस संभोग में शामिल हो रही थी

अब रमिलाबहन के बूढ़े घुटने इस परिश्रम से थोड़े थक से गए थे.. अब वह अपने पीठ के बल बिस्तर पर लेट गई और टांगें फैलाकर उन्हों खुद ही उस नेपाली लड़के की गुलाबी नुन्नी को पकड़कर अपने पुराने भोसड़े में डाल दिया.. लड़का अब हौले हौले धक लगाने लगा और रमिलाबहन आँखें बंद कर अपनी चूचियाँ दबाती रही..!! वह लड़का पेलते हुए झुककर रमिलाबहन की चूचियाँ चूस रहा था.. रमिलाबहन ने अपनी दोनों टांगें उस लड़के की कमर के इर्दगिर्द लपेट रखी थी

ent

उस जवान नौकर की धक्के लगाने की गति में निरंतर बढ़ोतरी हो रही थी.. और साथ ही साथ रमिलाबहन की सिसकियाँ भी बढ़ती जा रही थी.. आगे पीछे हो रही उस लड़के की गांड पर कविता की नजरें टिकी हुई थी.. लयबद्ध ताल से अंदर बाहर करते हुए अचानक उस लड़के के कूल्हें संकुचित होने लगे.. अंतिम तीन चार धक्के लगाकर वह रमिलाबहन की छातियों पर गिर गया.. बड़े ही स्नेह से रमिलाबहन उस लड़के के सिर को सहला रही थी.. उनके चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कान थी..

im

शर्म से आँखें झुक गई कविता की..!! उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की उसकी मम्मी ऐसा कुछ करने के लिए सक्षम होगी..!! उसकी अवधारणा तो यह थी की मम्मी ने काफी समय पहले ही यह सारी क्रियाओं से निवृत्ति ले ली थी.. और इसी कारणवश उसके पापा बाहर मुंह मारते थे..!! यदि उसकी माँ इतनी कामातुर थी तो फिर पापा को खुश क्यों नहीं रख पाती थी?? क्यों सुबोधकांत को अन्य स्त्रियों के साथ संबंध बनाने पड़ते थे??

कई सारे सवालों से कविता का दिमाग चकरा रहा था.. वह और देर तक उस द्रश्य का सामना नहीं कर पाई..!!

वह चलकर घर के आगे की तरफ पहुंची.. और गुस्से से डोरबेल बजाने लगी..!! उसे पता था की कुछ देर तक तो दरवाजा खुलने की कोई संभावना नहीं थी.. अपने पाप की निशानियाँ छुपाने में.. और अपनी निर्लज्जता को वस्त्रों के पीछे ढंकने में.. वक्त तो लगेगा ही मम्मी को..!! क्रोध के कारण थरथर कांप रही थी कविता..!! उसका बस चलता तो वह दरवाजा तोड़कर अंदर घुस जाती..

दरवाजा अब भी नहीं खुला पर कविता ने डोरबेल बजाना जारी ही रखा..!! करीब पाँच मिनट बाद कविता को दरवाजे के पीछे हड़बड़ाहट और कदमों की आहट सुनाई दी.. उसने डोरबेल बजाना बंद किया..

रमिलाबहन ने दरवाजा खोला और कविता को खड़ा देख चोंक सी गई.. थोड़े रोष के साथ उन्हों ने कहा "पागल हो गई है क्या कविता?? बेल बजाए जा रही थी..!! आजकल के बच्चों में सब्र नाम की कोई चीज ही नहीं है..!!"

कविता ने अपनी माँ को एक और धकेला और घर के अंदर घुस गई.. अचंभित हो गई रमिलाबहन..!!! न कोई बात की कविता ने.. न ही उसकी बात सुनने रुकी.. और ऐसे कौन भला धक्का देता है अपनी बूढ़ी माँ को..!!!

कविता ने ड्रॉइंग रूम मे चारों और देखा.. फिर बेडरूम में घुसी और बाहर निकली.. आखिर जब किचन में गई तब उसे वो मिला जो वह ढूंढ रही थी.. कनपट्टी से खींचकर वह उस नेपाली नौकर को बाहर ले आई.. और उसके गाल पर खींचकर दो करारे थप्पड़ रसीद कर दिए..!!!

वह नौकर बेचारा रो पड़ा.. और हाथ जोड़े खड़ा हो गया..!! उसे इतना तो समझ में आ गया की उसके और रमिलाबहन के संबंधों के बारे में किसी तरह कविता को पता चल चुका था

कविता: "अभी के अभी पुलिस को बुलाती हूँ.. और उन्हें सौंप देती हूँ.. फिर देख तेरा क्या हाल करते है वो लोग"

पुलिस का नाम सुनते ही वह बेचारा लड़का, रोते रोते कविता के पैरों में गिर गया और गिड़गिड़ाने लगा "ऐसा मत कीजिए मैडम.. मैं तो सब कुछ मालकिन के कहने पर ही कर रहा था.. वही मुझे पटाकर यह सब करवा रही है.. मेरी कोई गलती नहीं है मैडम, मुझे माफ कर दीजिए.. आप कहें तो मैं बिना पगार लिए यहाँ से चला जाऊंगा पर पुलिस को मत बुलाइए" वह लड़का कविता के पैर पकड़कर सुबकते हुए रोता ही रहा

कविता अब अपनी मम्मी की तरफ मुड़ी.. क्रोध भरी लाल आँखों से उसने रमिलाबहन की और देखा.. रमिलाबहन ने अपनी नजरें झुका ली.. अपने पैरों को उस नौकर से छुड़ाकर वह शेरनी की तरह अपनी माँ की और आई

गुस्से से दहाड़ते हुए कविता बोली "मम्मी, ये सब क्या है? मैंने आज जो देखा, उस पर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा! आप...!!!! आप हमारे नौकर के साथ... यह सब कर रही थी..!!! ये कैसे हो सकता है? आप को इतनी सी भी शर्म नहीं आई इस उम्र में यह सब करते हुए??? आप तो हमेशा से इतनी सीधी-सादी रही हैं..!! मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप इतनी गिरी हुई हरकत कर सकती हो..!!!"

रमिला बहन पहले तो चुप रही.. कुछ न बोली.. फिर शांत और दृढ़ आवाज़ में उन्हों ने कहा "कविता, बैठो.. मैं समझती हूँ कि तुम्हारे लिए ये सब देखना आसान नहीं है.. लेकिन तुम मेरी बात एक बार सुन लो"

आँखों में आंसुओं के साथ कविता ने उनकी बात आधी ही काटते हुए कहा "मम्मी, आपको ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? आप तो हमेशा से ऐसी चीज़ों से दूर रही हैं.. पापा के साथ तो आपको इन सब चीज़ों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, तो अब ये सब क्यों?"

गहरी सांस लेते हुए रमिला बहन ने कहा "कविता, तुम्हें क्या लगता है, मुझे तुम्हारे पापा के गुलछर्रों के बारे में पता नहीं है..!! मुझे सब पता था.. यहाँ तक कि मैंने ही तुम्हारे पिता को छूट दी हुई थी.. तुम्हें क्या लगता है, उससे मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता था? तुम्हारे पिता के साथ कुछ न करने का कारण यह नहीं था मैंने अपने कर्तव्यों से सन्यास ले लिया था..!!! नहीं बेटा, ऐसा नहीं था.. तुम्हारे पिता एक विकृत मानसिकता के व्यक्ति थे.. उनकी यौन इच्छाएं इतनी अजीब और अत्यधिक थीं कि मैं उनके साथ तालमेल नहीं बैठा पाती थी.. वो सब मेरे लिए असहनीय था.. मैं उनके साथ उस तरह से नहीं जुड़ सकती थी, जैसा वो चाहते थे.. मैं उनकी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती थी, और इसलिए उन्होंने दूसरी औरतों का सहारा लिया.. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी जरूरतों को महसूस नहीं करती.. मेरी भी अपनी इच्छाएं हैं..!!!"

हैरान हो गई कविता..!! उसे हल्का सा भी अंदाजा नहीं था की उसके पिता के नाजायज संबंधों के बारे में उसकी माँ को पता होगा.. अरे, उन्हों ने ही पापा को यह छूट दे रखी थी..!!!

कविता: "लेकिन मम्मी, आप तो हमेशा से इतनी धार्मिक और सीधी-साधी रही हैं.. आपने तो हमें हमेशा नैतिकता और सच्चाई का पाठ पढ़ाया है.. फिर आप खुद ही ऐसा पाप कैसे कर सकती हैं?!"

दुख भरी आवाज़ में रमिला बहन ने कहा "कविता, धार्मिक और सीधी-साधी होने का मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी शारीरिक ज़रूरतों को महसूस नहीं करती.. समाज हमें ये सिखाता है कि एक विधवा औरत को अपने आप को सिर्फ़ धर्म और समाज की मर्यादाओं तक सीमित रखना चाहिए.. लेकिन क्या समाज कभी ये सोचता है कि एक विधवा औरत के मन में भी इच्छाएं हो सकती हैं? उसे भी प्यार और साथ की ज़रूरत हो सकती है?"

अपनी माँ के इस दर्द को महसूस कर पा रही थी कविता.. हालांकि वह अब भी बेहद क्रोधित थी, वह उनकी मनोदशा को कुछ कुछ समझ पा रही थी..!! वह खुद भी तो यही कर रही थी.. पहले पिंटू के साथ और अब रसिक के साथ..!! बस इसलिए की वह उम्र में बड़ी थी.. यह कोई वजह तो थी नहीं की उनकी इच्छाएं न होती हो.. और कविता खुद ऐसी स्थिति में नहीं थी की अपनी माँ को नैतिकता का आईना दिखा सकें..!! अतृप्त शारीरिक इच्छाओं का भार वह भी तो ढो रही थी

थोड़ा सा नरम होते हुए कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब आसान नहीं रहा होगा.. लेकिन फिर भी, ये सब करना... ये गलत नहीं है?"

सुबकते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, गलत और सही का फैसला करना आसान नहीं होता.. मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी समाज की उम्मीदों पर खरी उतरने में लगा दी.. परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए बूढ़ी हो गई.. लेकिन आज मैंने ये फैसला अपनी खुशी के लिए किया.. मैं भी एक इंसान हूँ, कविता.. मेरी भी इच्छाएं हैं, मेरी भी ज़रूरतें हैं.. और अगर समाज मुझे ये सब करने की इजाज़त नहीं देता तो कोई बात नहीं.. मैंने ये फैसला खुद के लिए ले लिया..!!! एक औरत होने के नाते मेरी इच्छाओं को तृप्त करने के लिए यह किया.. मैंने किसी को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाया है.. सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरा किया है.. तुम्हारे पापा के साथ मेरा रिश्ता टूट चुका था, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैंने खुद को मरा हुआ समझ लिया था..!!!"

थोड़ी देर सोचकर फिर कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब कितना मुश्किल रहा होगा.. मैं समझने की कोशिश कर रही हूँ, लेकिन ये सब इतना अचानक... इतना हैरान करने वाला है.. मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ, लेकिन मुझे समय चाहिए इस बात से सहमत होने के लिए..!!"

कविता के गालों पर हाथ फेरते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, ज़िंदगी में कुछ चीज़ें सही या गलत नहीं होतीं.. वह सिर्फ़ होती हैं.. मैंने अपनी खुशी के लिए ये कदम उठाया है, और मैं इसके लिए शर्मिंदा नहीं हूँ.. मैं बस इतना ही चाहती हूँ कि तुम मुझे समझो..!! मैंने हमेशा तुम्हारी और मौसम की परवरिश में अपनी खुशियों को पीछे छोड़ दिया.. लेकिन अब जब तुम लोग बड़े हो चुके हो, तो मैंने अपनी जिंदगी को थोड़ा अपने हिसाब से जीने की कोशिश ही तो की है..!! कोई जुर्म तो नहीं किया..!!"

रमिलाबहन की बातों से कविता पिघल गई थी.. इसलिए नहीं की वह उसकी माँ थी.. पर इसलिए की वह एक औरत थी..!! और एक स्त्री होने के नाते अगर वह दूसरी स्त्री के मन की विडंबनाओं को नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा!!! कुछ देर पहले का उसका क्रोध अब सहानुभूति में बदलने लगा

वह अपनी मम्मी के करीब आई और उन्हें गले लगाते हुए बोली

कविता: "मम्मी, मैं आपको समझती हूँ.. शायद मुझे वक़्त लगेगा, लेकिन मैं आपके फैसले का सम्मान करती हूँ.. आप मेरी माँ हो, और मैं आपसे बहोत प्यार करती हूँ.. बस इतना ही कहूँगी, की आप जो कुछ भी करो बहोत संभलकर करना"


रमिला बहन अपने आँसू पोछते हुए कविता का सिर सहलाती रही और कुछ न बोली

Bahut hi jabardast update he vakharia Bhai,

Ramila bhi aakhirkar ek aurat he, uski bhi sexual desires he...........

Kuch galat nahi kiya usne.............aur kavita bhi to yahi sab kar rahi he.............

Keep rocking Bro
 
Top