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Thanks a lot bhaiNice update
Thanks for the comment
Thanks for the commentsहाय ये जानलेवा शबाब
Thanks a lot bhaiBahut majedar update he vakharia Bhai,
Madan aur Ramesh milkar koi khichdi paka rahe he...........
Kavita ko sheela garm karke chood gayi...............shayad usko vo rasik ke lund ke taiyyar kar rahi he...........
Renuka ke ghar pahuch kar hi pata chalega ki aakhirkar madan aur ramesh ka plan kya he.......
Keep rocking Bro
Thanks a lot bhaiबहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
शीला के मदन ने रुखी के दुध से भरे बडे बडे बबले चुस कर और शीला की मौजुदगी में रुखी का भरपूर चोदन कर के तृप्त कर दिया
राजेश और मदन के बीच कुछ अलग ही खिचडी पक रही हैं और उसका पता ना तो शीला को हैं और ना ही रेणुका को
लगता है ये शीला कविता के लिये चुदाई की ट्रेनर बन गयी पर उसने अपने पती को अपने काबू में कैसे रखा जाता हैं ये भी समझा दिया
रेणुका के घर शीला और उसके बीच क्या होता है देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Wah Bhai Wahपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
रसिक पर हमले का जूठा आरोप लगाने के बाद से, शीला और उसके बीच संबंध काफी बिगड़ चुके थे.. शीला के लाख माफी मांगने पर भी रसिक का गुस्सा कम नहीं हो रहा था.. पर अब शीला ने रसिक को मनाने का मन बना लिया था.. सुबह रसिक के आने पर शीला ने ढेरों मिन्नते कर रसिक को मना लिया और फिर शुरू हुआ.. वही पुराना शीला-रसिक का रसीला खेल.. खूँटे जैसे तगड़े लंड और गदराई शीला के बीच का जबरदस्त द्वन्द..
शीला के घर के ड्रॉइंगरूम में चल रही इस धुआंधार चुदाई के दौरान, मदन बेडरूम से बाहर निकलकर आया.. रसिक तो नहीं पर शीला ने उसे देख लिया और मदन चुपचाप बेडरूम में चला गया..
एक धमाकेदार संभोग के बाद, शीला सोफ़े पर नंगे बदन ढेर होकर पड़ी थी और रसिक उसे उसी अवस्था में छोड़कर निकल गया.. चरमसीमा के अप्रतिम आनंद से होश खो बैठी शीला के दोनों छेद और शरीर, रसिक के पुष्ट वीर्य से सने हुए थे.. इसी बीच मदन बाहर आकर शीला को इस अवस्था में देखता है.. अपनी पत्नी को किसी और संग चुदाई के बाद देखने में उसे अजीब सी उत्तेजना होने लगी.. शीला के तृप्त चुदे हुए, वीर्य सने भोसड़े को सूंघकर वह उत्तेजित हो उठा और उसने शीला की गीली पिच पर अपनी बेटिंग शुरू कर दी..
अब आगे..
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शाम का समय हो रहा था.. पीयूष के आलीशान बंगले के खिड़की और दरवाजे बंद थे..
उसके बेडरूम से सिसकियों की आवाज़ें आ रही थी.. उसमें से एक आवाज तो कविता की थी यह जाहीर सी बात थी.. पीयूष उस वक्त अपनी ऑफिस में था.. तो कौन था वह दूसरा व्यक्ति???
कमरे में अंधेरा था.. बेडरूम के नरम बिस्तर पर कविता अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक चढ़ाकर तकिये पर लेटी हुई थी.. उसकी आँखें बंद थी और वह अपने हाथों से तकिये की नरम रुई को.. उत्तेजना के मारे नोच रही थी..
ब्लाउज उसने अभी भी पहन रखा था पर उसकी साड़ी का पल्लू बिखरा पड़ा था.. घुटने से मोड़कर दोनों टांगों को फैलाएं हुए वह लेटी थी.. उसकी दोनों टांगों के बीच एक इंसानी आकृति अपना चेहरा कविता की चूत पर दबाए हुए थी.. और वही था कविता की निरंतर सिसकियों का कारण..!!!
कविता की गीली पुच्ची में अपनी जीभ डालकर.. अंदर के लाल अमरुदी हिस्से को रगड़ रगड़कर चाटने के बाद जब वह चेहरा ऊपर उठा तब कविता ने बड़े ही स्नेह के साथ उसके बालों को सहलाया
"दीदी, अब मेरी बारी" कहते हुए अब फाल्गुनी कविता के बगल में लेट गई.. और कमर उठाकर अपनी जीन्स और पेन्टी उतारने लगी..
पीयूष के संग समस्यात्मक वैवाहिक जीवन से झूझ रही कविता.. अपने जिस्म को आग को बुझाने के लिए फाल्गुनी का सहारा ले रही थी.. जब से उसे फाल्गुनी और अपने पिता सुबोधकांत के बीच के संबंधों के बारे में पता चला था तब से उन दोनों के बीच बचीकूची शर्म का पर्दा हट गया था.. शुरुआत के समय में वह फाल्गुनी से नफरत करती थी जब उसे फाल्गुनी और पापा के नाजायज ताल्लुकात के बारे में पता चला.. पर समय रहते उस नफरत की तीव्रता कम होती चली.. गुस्सा उतारने के बाद, गहराई से सोचने पर उसे प्रतीत हुआ था की फाल्गुनी उसके पापा के हाथों शिकार ही बनी थी.. उसके बाद दोनों के बीच दूरियाँ कम होती गई.. बाद में यह भी पता चला की मौसम और फाल्गुनी के बीच भी सजातीय यौन संबंध थे.. जब तरुण अस्पताल में भर्ती था.. तब कविता, मौसम और फाल्गुनी अपने जिस्मों की गर्मी सांझा भी कर चुकी थी
पीयूष के बेरुखी भरे बर्ताव से कविता काफी दुखी थी.. न उसके पास कभी समय था.. और न ही कविता के प्रति वह पहला वाला झुकाव..!! अन्य जरूरतों को कविता परिवार और दोस्तों के संग पूरा कर लेती थी.. पर जिस्म की अनबुझी प्यास से वह दिन रात तपती रहती थी.. रसिक के साथ हुए धमाकेदार संभोग का सुरूर कुछ दिनों तक तो रहा.. पर फिर उसका शरीर फिर से भोग मांगने लगा..
कविता का न कोई ऐसा पुरुष संपर्क था और न ही उसमे ऐसी हिम्मत थी की वह विवाहेतर संबंध के बारे में सोच सकें.. अब तक उसे जो भी मिल पाया था, वह सब शीला भाभी की बदौलत ही था.. फिर वो पिंटू हो या रसिक..!! लेकिन शीला तो अपने शहर रहती थी.. वो वहाँ बैठे बैठे उसकी कैसे मदद कर पाती..!!!
ऐसे में ही उसे फाल्गुनी याद आई..!! इससे पहले भी वह दोनों तीन बार लेस्बियन संबंधों का आनंद ले चुकी थी..!! वैसे फाल्गुनी के लिए सेक्स की कोई कमी नहीं थी.. राजेश से संपर्क होने के बाद उसका काम-जीवन खुशनुमा सा था.. फिर भी वह कविता दीदी के बुलाने पर उन्हें मना नहीं कर पा रही थी.. वासना के कारण नहीं पर सहानुभूति के चलते वह शायद कविता से यह संबंध जारी रख रही थी
अपनी उत्तेजना से उभरते हुए कविता ने एक स्नेहभरी नजर, बगल में लेटी फाल्गुनी की तरफ डाली.. वह उठी और फाल्गुनी के स्तनों को हल्के से दबाकर उसकी टांगों के बीच अपने सिर को डालकर बेड पर लेट गई.. जैसे ही फाल्गुनी ने अपनी जांघें और खोली, उसकी गुलाब की पंखुड़ियों जैसे चूत के होंठ फैल गए.. चूत की दरार पर हल्की सी नमी दिख रही थी.. जो स्वाभाविक तौर पर उनके संसर्ग के कारण ही उत्पन्न हुई थी..
कविता ने कुछ देर तक उसकी प्यारी मुनिया को देखती रही.. फिर उसने योनि के उस मांसल पिंड को सहलाया.. अपनी उंगलियों से चूत की परतों को फैलाकर अपने अधर करीब ले गई.. चूत की मीठी गंध सूंघते हुए कविता के होंठ खुले और उसकी जीभ बाहर निकलकर फाल्गुनी के गुनगुने छेद में घुस गई.. फाल्गुनी कराह उठी..!! उसके कूल्हें बिस्तर से एक इंच ऊपर उठ गए..
कुछ महिलाएं समलैंगिक संबंधों में अधिक सहज और सुरक्षित महसूस करती हैं.. उन्हें लगता है कि एक स्त्री के साथ रिश्ता बनाने में उन्हें अधिक गर्मजोशी, कोमलता और समझ मिलती है.. महिलाएं अक्सर एक-दूसरे की भावनाओं को बेहतर ढंग से समझती हैं और एक-दूसरे के साथ अधिक संवेदनशीलता से पेश आती हैं.. वे एक-दूसरे के साथ खुलकर बात कर सकती हैं और अपनी समस्याओं को साझा कर सकती हैं, जिससे उन्हें मानसिक रूप से मजबूती मिलती है.. चूंकि ऐसे संबंधों से गर्भधारण होने का कोई खतरा नहीं होता इसलिए यह संबंध सुरक्षित भी होते है औ कोई मानसिक दबाव भी नहीं होता
विषमलैंगिक संबंधों में अक्सर पारंपरिक भूमिकाओं और अपेक्षाओं का दबाव होता है, जैसे कि घर संभालने, बच्चे पैदा करने आदि.. समलैंगिक संबंधों में यह दबाव नहीं होता, जिससे महिलाएं अपने रिश्ते को अपनी शर्तों पर जी सकती हैं.. यही कारण है कि कुछ महिलाएं समलैंगिक संबंधों को अधिक पसंद करती हैं..
हालांकि ऐसे कुछ संबंध तब भी विकसित होते है जब स्त्री को संभोग साथी के रूप में कोई पुरुष उपलब्ध न हो.. जैसा की कविता के मामले में था
जैसे जैसे कविता की जीभ फाल्गुनी के यौनांग में अंदर बाहर होती रही.. वैसे वैसे फाल्गुनी की उत्तेजना का स्तर बढ़ता गया.. उसने अपनी दोनों टांगों को कविता के कंधों पर डाल दिया.. और अपना टॉप ऊपर उठाकर स्तनों को उजागर करते हुए मसलने लगी..
चूत चाटते हुए कविता की आँखें, अपने स्तनों को मसल रही.. निप्पलों को मरोड़ रही फाल्गुनी पर स्थिर थी.. चाटते हुए कविता को एक पल के लिए यह विचार आया.. की यह वही चूत थी जिसे उसके पिता भी कभी चाटते थे.. और इसमें अपना लिंग घुसाकर चोदते भी थे.. अनगिनत बार उन्हों ने अपना वीर्य स्खलन इस सुराख में किया होगा.. एक पल के लिए उसे घिन सी आने लगी.. वह फाल्गुनी की जांघों के मध्य से उठ खड़ी होना चाहती थी.. पर कविता के इन विचारों से अनजान फाल्गुनी, अपनी आँखें बंद कर कविता को ऐसे दबोचे हुए थी की वह चाहकर भी उठ खड़ी नहीं हो सकी..
अपनी क्लीट को रगड़ते हुए जब फाल्गुनी कांपते हुए झड़ी और शांत हुई, तब उसके पैरों के बीच से कविता का छुटकारा हुआ.. कविता उठी और फाल्गुनी के बगल में लेट गई..
काफी देर तक दोनों शांत ही पड़ी रही..कविता करवट बदलकर लेटी हुई थी तभी फाल्गुनी ने उसकी बाहों के नीचे से हाथ डालकर कविता की चूचियों को पकड़कर हौले हौले दबाना शुरू कर दिया.. कविता के चेहरे पर मुस्कान आ गई..!!
फाल्गुनी: "आप से कुछ कहना था दीदी"
कविता: "हाँ बोल न..!!"
फाल्गुनी: "मुझे नौकरी मिल गई है..!!"
कविता ने आँखें खोली और फाल्गुनी की तरफ खुश होकर देखते हुए बोली "अरे वाह..!! क्या बात है,.!! कहाँ मिली यह जॉब?"
फाल्गुनी: "राजेश अंकल की कंपनी में ही.. मौसम की शादी पर जब मिले थे तब मैंने उन्हे अपना रिज्यूम दिया था.. उनके इंडस्ट्री में कई कॉन्टेक्टस है इसलिए..!! तो कुछ दिनों पहले उन्हों ने ही मुझे जॉब ऑफर कर दी अपनी ऑफिस में"
कविता: "यह तो बड़ी अच्छी बात है..!! पर वहाँ तू रहेगी कहाँ?"
फाल्गुनी: "फिलहाल कुछ तय नहीं किया पर राजेश अंकल ने कहा की वह कुछ इंतेजाम करेंगे"
कुछ सोचकर कविता ने कहा "ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.. हमारा पुराना घर खाली ही तो पड़ा है.. पहले वैशाली और पिंटू वहाँ रहते थे पर अब तो वो लोग भी यहाँ आ गए.. तू वहीं रहना.. शीला भाभी और मदन भैया भी पड़ोस में है तो तुझे कुछ दिक्कत भी नहीं होगी"
फाल्गुनी ने हिचकते हुए कहा "मगर.. दीदी..!!!"
कविता: "मगर-वगर कुछ नहीं.. मैंने कह दिया ना.. अब तू वहीं पर रहेगी.. जब तक तेरा जी चाहे"
फाल्गुनी: "एक बार पीयूष जीजू को भी पूछ लेते"
पीयूष का नाम सुनते ही मुंह बिगाड़ते हुए कविता ने कहा "कोई जरूरत नहीं है उससे पूछने की.. वह घर मेरा भी तो है..!! और वैसे भी, तेरे वहाँ रहने के लिए पीयूष थोड़े ही मना करेगा..!! ऐसा है तो मैं एक बार बात कर उसे बता दूँगी.. ठीक है..!!"
फाल्गुनी के पास मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था, उसने कहा "ठीक है दीदी"
यह संवाद उठकर खत्म होते ही फाल्गुनी खड़ी होकर कपड़े पहनने लगी..
कविता: "अरे, इतनी जल्दी क्या है..!! बैठ थोड़ी देर.. मैं कॉफी बनाकर लाती हूँ"
फाल्गुनी: "नहीं दीदी.. मुझे शॉपिंग करने जाना है.. कज़िन की शादी है.. मुंबई जाना है.. सोचा आज सारी शॉपिंग निपटा लूँ"
कविता: "ठीक है.. जाते वक्त दरवाजा बंद करते हुए जाना.. मैं कुछ देर तक यहीं लेटी हूँ.. थोड़ा आराम करने के बाद उठूँगी"
फाल्गुनी ने अपनी जीन्स की चेईन बंद करते हुए कहा "ओके दीदी"
उसके जाने के बाद, कविता अपने सर पर हाथ रखे लेटी रही.. पीयूष के अलावा भी एक अन्य समस्या उठ खड़ी हुई थी.. जो उसके ध्यान में आई थी.. जो काफी चौंकाने वाली भी थी.. पर बिना कुछ तफतीश के, कविता किसी नतीजे पर पहुंचना नहीं चाहती थी..!!
पर आज उसने तय किया था.. की वह जानकर ही रहेगी की आखिर क्या बात थी..!! यदि जो उसने सुना था और उससे जो भी प्रतीत हो रहा था, अगर सच निकला तो यह कविता के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब बन सकता था
कविता ने उठकर कपड़े पहने और बाथरूम में जाकर अपने बाल ठीक किए.. एक कप कॉफी पीने के बाद वह इस बात की तह तक जाने के इरादे से घर के बाहर निकली
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पीयूष को आज ऑफिस पहुँचने में थोड़ी देर हो गई.. घर से निकलकर वह बेंक गया था.. जहां पर कुछ काम निपटाने में उसे अधिक वक्त लग गया.. वह जब ऑफिस पहुंचा तब सारे कर्मचारी अपने अपने काम में व्यस्त थे.. उसके आने की किसी को खबर तक नहीं लगी..
पीयूष अपनी केबिन की ओर जाने लगा.. उसकी केबिन के बिल्कुल सामने ही वैशाली का टेबल था.. वहाँ से गुजरते वक्त पीयूष ने देखा की.. हाथ लगने की वजह से वैशाली के टेबल पर पड़ा पेन-स्टेंड नीचे गिर गया था.. और अंदर रखी तीन-चार पेन.. पेंसिल और मार्कर नीचे गिरकर बिखर गए थे..
वैशाली अपने घुटने मोड़कर उकड़ूँ होकर बैठी हुई थी.. टेबल के नीचे तक चली गई पेन-पेंसिल को अपना हाथ डालकर निकालने की कोशिश कर रही थी.. उसने डीप-नेक टॉप पहना हुआ था जो केवल कमर तक लंबा था.. नीचे टाइट जीन्स पहना था.. झुकने के वजह से उसका टॉप थोड़ा सा ऊपर हो गया था और उसका जीन्स नीचे उतर गया था.. उसकी लाल रंग की पेन्टी की हल्की सी पट्टी द्रश्यमान थी.. और उसकी मांसल गदराई गांड की दरार का ऊपरी हिस्सा भी नजर आ रहा था
वैशाली के स्तन और कूल्हें बेहद मांसल और गोलाईदार थे.. टाइट जीन्स बड़ी मुश्किल से उन चूतड़ों को संभाले हुए था.. पर झुकने की वजह से अब वो भी नहीं हो पा रहा था.. पीयूष वहीं थम गया.. वैशाली की पीठ उसके तरफ थी.. वह अब भी अंदर तक चली गई पेन को हाथ टटोलकर ढूंढ रही थी..
उसकी भरी भरी गांड की सेक्सी दरार को देखकर पीयूष का मन किया की वो वहीं अपना लंड निकालकर उसमें घुसा दे..!!! पीयूष को वह पुराना समय याद आ गया.. जब उसने वैशाली को उस बन रहे मकान में.. रेत के ढेर पर रगड़ रगड़कर चोदा था.. उसके बेडरूम की खिड़की पर चढ़कर, जाली से लंड डालकर चुसवाया था..!! उस वक्त भी वैशाली के नंगे बदन को देखकर वह पागल हो गया था.. अब तो वह और गदरा गई थी.. पीयूष ने तो वैशाली की माँ को भी नंगा देखा था.. और अब वह अनुमान लगा सकता था की आगे जाकर वैशाली के जिस्म का जादू और नशीला होता जाएगा..!! एक बार फिर से मन कर गया पीयूष का.. की उसे अभी केबिन में ले जाएँ और टेबल पर ही नंगी करके चोद दे..!!!
"अरे पीयूष, तुम कब आए??" वैशाली की आवाज सुनते ही पीयूष की विचार शृंखला टूटी.. वह संभल गया..
वैशाली अब खड़ी हो गई थी.. और अपना टॉप ठीक कर रही थी.. झुकने के परिश्रम की वजह से उसके स्तन, ब्रा के अंदर अस्तव्यस्त हो गए थे.. पीयूष के सामने ही वह टॉप के अंदर हाथ डालकर ब्रा को ठीक करने लगी..
पीयूष को ज्ञात हुआ की वह मूर्खों की तरह वैशाली को तांक रहा था और इस बात से वैशाली भी वाकिफ थी
"ओह हाँ.. मैं.. मैं अभी आया..तुम कुछ ढूंढ रही थी?" पीयूष ने बोखलाते हुई कहा
"कुछ नहीं.. वो तो पेन नीचे गिर गई थी वही ढूंढ रही थी" वैशाली ने अपनी कातिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा
आगे क्या कहें, यह समझ नहीं आ रहा था पीयूष को..!! वह नजरें झुकाए वैशाली के करीब से गुज़रता हुआ अपनी केबिन में चला गया.. वैशाली के शरीर पर लगे मादक परफ्यूम की गंध ने उसे झकझोर कर रख दिया.. एक शैतानी मुस्कान के साथ वैशाली उसे जाते हुए देखती रही..!!
केबिन के अंदर पहुंचकर उसने राजेश को फोन किया.. अमरीका वाला एक्सपोर्ट ऑर्डर अपने दूसरे चरण में पहुँच रहा था..!! अब उसे मदन और राजेश की बेहद जरूरत थी.. एक अच्छी बात यह थी की पिंटू के आ जाने से पीयूष का काफी कार्यभार कम हुआ था.. पिंटू अपने काम में बहुत काबिल था और पीयूष का पुराना दोस्त भी था.. यहाँ तक की वह पिंटू को अपने बजाए अमरीका भेजने की सोच रहा था और उसकी तैयारी भी कर चुका था
Jabardas Update....रेणुका: "मुझसे तो अब रहा ही नहीं जाता शीला.. आधी रात न हो चुकी होती तो में तब के तब यहाँ तेरे पास आ जाती.. कितना सहती रहूँ? हफ्ते बाद लौटूँगा कहकर वो तो निकल पड़े.. पर पूरा हफ्ता मैं कैसे निकालूँ?? कितनी तकलीफ होती है हम बीवियों को.. मर्दों को इसका अंदाजा तक नहीं है"
रेणुका के शब्दों में अपने दर्द की झलक नजर आई अनुमौसी को.. शीला अब सही मौके के इंतज़ार में थी.. पर वो हर कदम फूँक फूँक कर रखना चाहती थी.. ताकि कोई गड़बड़ न हो.. अपने मन में वो सेक्स की शतरंज बिछा रही थी..
अनुमौसी: "अरे शीला.. आज रसिक नहीं आया दूध देने.. तेरे घर आया था क्या?"
तभी शीला को ये एहसास हुआ की आज रसिक नजर ही नहीं आया..
तभी दरवाजे की घंटी बजी..
"कौन होगा?? मैं देखती हूँ.. " कहते हुए शीला ने उठकर दरवाजा खोला.. इस आशा में की रसिक होगा.. पर रसिक के बदले उसकी पत्नी रूखी थी..
शीला: "रूखी तू यहाँ? तेरा मरद कहाँ मर गया है आज?? आठ बज गए पर दूध का कोई ठिकाना ही नहीं.. " रूखी के मदमस्त चुचे देखते हुए शीला ने कहा
रूखी बिंदास दूध लेकर बरामदे में बैठ गई.. उसे ये पता नहीं था की अंदर दो औरतें बैठी हुई थी..
रूखी: "सुनिए तो सही भाभी.. मैं सब जगह दूध देकर आखिर में आपके घर आई हूँ.. ताकि दो घंटे बैठ सकूँ.. और हाँ भाभी.. जीवा अभी आता ही होगा थोड़ी देर में.. "
शीला: "क्यों रसिक.. मतलब की तेरा पति.. घर पर नहीं है क्या??"
रूखी: "वो मेरे सास ससुर को लेकर दूसरे शहर गया है दो दिन के लिए.. इसलिए कल रात को मैंने जीवा को अपने घर बुला लिया था.. पूरी रात सोने नहीं दिया कमीने ने मुझे.. "
रेणुका और अनुमौसी ये सारी बातें सुन रही थी.. पर शीला को इसकी कोई परवाह न थी.. उसने अपनी बातें जारी रखी..
शीला: "रात को तूने निपट लिया है ना.. फिर उसे यहाँ क्यों बुलाया??" रूखी के स्तनों पर हाथ फेरते हुए उसने कहा
रूखी: "भाभी.. मैं मिल बांटकर खाने में मानती हूँ.. मुझे सबसे पहले आपकी याद आई.. आपका दुख मुझसे देखा नहीं जाता.. मैंने जीवा को यहाँ आने के लिए कहा.. तो उसने मुझे ही यहाँ भेज दिया और कहा की वो नौ बजे आएगा"
जीवा का नाम सुनते ही शीला के भोसड़े में.. ऐसी सुरसुरी होने लगा.. जैसे मिर्ची-बम जलाने पर उसकी मुछ जलकर आवाज करती है.. रूखी ने शीला को अपनी बाहों में लेकर दबा दिया.. दोनों के माउंट एवरेस्ट जैसे उत्तुंग स्तनों आपस में भीड़ गए.. शीला ने रूखी की विशाल मांसल पीठ पर हाथ फेरते हुए उसके होंठों को चूम लिया.. और रूखी के मुंह में अपनी जीभ डालकर जीवहा-चोदन करने लगी.. रूखी शीला के उत्तेजक स्पर्श से मदमस्त होने लगी..
दो मिनट के इस सॉफ्ट रोमांस के बाद शीला ने रूखी को मुक्त कर दिया.. और फिर घर में हाजिर दोनों औरतों के बारे में रूखी को सबकुछ बता दिया.. पहले तो रूखी थोड़ी सी हिचकिचा रही थी.. पर शीला ने उसे मना ही लिया
शीला रूखी को अंदर ड्रॉइंगरूम में ले आई.. अनुमौसी को देखकर रूखी थोड़ी डर गई पर शीला ने रूखी की पहचान रेणुका से करवाते हुए.. रूखी के पल्लू को खींचकर हटा दिया.. और उसके बड़े बड़े दूध भरे स्तनों को उजागर कर दिया..
"मौसी, इसका ढाई महीने का बच्चा है.. डिलीवरी के बाद देखो इसका रूप कैसे खिल गया है!!" शीला ने कहा
ब्लाउस के अंदर मुश्किल से दबाए हुए उन दूध भरे स्तनों को अनुमौसी और रेणुका स्तब्ध होकर देखते ही रहे.. और ब्लाउस की दोनों नोक पर सूखे हुए दूध के निशान देखकर.. दोनों की सिसकियाँ निकल गई..
सबसे पहले अनुमौसी खड़ी हुई.. रूखी के एक स्तन को अपने हाथ में पकड़कर बोली "रूखी, कैसा है बच्चा तेरा? ठीक तो है ना?? तू दूध तो ठीक से पिलाती है ना उसे? कितना दूध आता है तेरा? ज्यादा ही आता होगा.. इसलिए इतने भारी भारी है तेरे.. मेरी कविता को तकलीफ होगी जब उसे बच्चा होगा तब.. इतने छोटे छोटे है उसके"
रूखी के दूध भरे स्तन को पकड़कर अनुमौसी ने अपनी इच्छा जाहीर कर दी थी.. पर अभी भी वो खुलकर कुछ बोल नहीं रही थी इसलिए शीला और रेणुका द्विधा में थे.. शीला से अब और रहा न गया..
शीला: "मौसी, रूखी के बबले आपके जीतने ही बड़े है.. है ना!!" शीला ने बेझिझक अनुमौसी के अनुभवी स्तनों को पकड़ लिया..
अनुमौसी: "अरे मरी बेशरम.. क्या कर रही है तू??"
शीला: "सीधी बात है मौसी.. या तो आप हम सब के साथ जुड़ जाइए.. या फिर यहाँ से चले जाइए.. हम सब यहाँ एक ही मंजिल के लिए इकठठे हुए है.. मैं और रेणुका तो बिना पति के तड़प रहे है इसलिए ये सब करना पड़ रहा है.. अभी ये रूखी का दोस्त जीवा यहाँ आएगा.. और हम सब बारी बारी से उसके साथ करेंगे.. आपको भी करवाना हो तो हमें कोई दिक्कत नहीं है.. पर अगर ये सब आपको नहीं पसंद तो प्लीज आप जा सकते हैं.. हमें हमारी ज़िंदगी जीने के लिए छोड़ दीजिए.." बड़े ही सख्त शब्दों में शीला ने अनुमौसी की क्लास ले ली.. इस दौरान शीला का हाथ अनुमौसी के ब्लाउस के अंदर उनकी गेंदों को मसल रहा था..
अनुमौसी स्तब्ध होकर शीला को सुनती रही.. शीला का इशारा मिलते ही रेणुका ने आकर अनुमौसी के दूसरे स्तन को पकड़ लिया और मौसी का हाथ पकड़कर बड़े ही कामुक अंदाज में बोली "मौसी, मेरे भी दबाइए ना!!"
इस दोहरे आक्रमण ने अनुमौसी को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.. उन्होंने भी रेणुका के स्तन दबाने शुरू कर दिए.. और साथ ही साथ एक हाथ शीला के मस्त खरबूजों पर रख दिया.. इसी के साथ अनुमौसी भी हवस बुझाओ अभियान में आधिकारिक तौर पर जुड़ गई..
शीला ने खुश होकर अनुमौसी को अपनी बाहों में भर लिया.. रेणुका मौसी की साड़ी खींचकर उतारने लगी.. मौसी की आँखें शर्म से बंद हो गई.. रूखी अब हौले से मौसी के करीब आई और अपना ब्लाउस उतार कर फेंक दिया.. इन चारों औरतों में केवल रूखी ही कमर के ऊपर से नंगी खड़ी थी.. उसके दो मटकियों जैसे बड़े स्तन देखकर तीनों की आँखें फटी की फटी रह गई..
रूखी ने मौसी के घाघरे के नाड़ा खींच निकाला.. और मौसी को नीचे से नंगा कर दिया.. शर्म से पानी पानी हो रही अनुमौसी अब कुछ विरोध नहीं कर सकी क्योंकी उन्होंने खुद ही सहमति दी थी। शीला और रेणुका ने रूखी का एक एक स्तन आपस में बाँट लिया और निप्पल चूसने लगी.. चूसते हुए उन्होंने रूखी का घाघरा उतारकर उसे पूरा नंगा कर दिया.. पूरा कमरा सिसकियों से गूंज रहा था..
तभी डोरबेल बजने की आवाज आई.. शीला ने तीनों को चुपके से बेडरूम में घुस जाने को कहा.. अपने कपड़े ठीक किए और दरवाजे के की-होल में से बाहर देखने लगी.. एक हाथ से ब्लाउस के हुक बंद करते हुए उसने देखा तो बाहर जीवा और रघु खड़े थे.. शीला ने तुरंत दरवाजा खोल दिया और दोनों को अंदर खींचकर तुरंत बंद कर दिया। जीवा और रघु दोनों को बारी बारी बाहों में लेकर शीला ने उन्हे चूमते हुए उनके लंड दबा लिए..
"कहाँ मर गए थे तुम दोनों?? कितना याद करती थी मैं तुम्हें?" जीवा और रघु शीला के स्तनों को ऊपर से मसल रहे थे
जीवा: "अरे भाभी.. आपको तो रोज याद करते हुए मैं लंड हिलाता हूँ.. हम इंतज़ार में थी की आप कब बुलाती हो.. पर आपने तो कभी कॉल ही नहीं किया.. इसलिए फिर मैंने रूखी से बोलकर यहाँ आपके घर मिलने का तय किया"
"चलो कोई बात नही.. आज पूरा दिन आराम से यहीं रहना है तुम दोनों को.. और मेरी सहेलियों को भी चोदना है.. बहुत गरम हो रही है सब की सब.. मेरी तरह.. तुम दोनों आज बेझिझक मजे करो यहाँ.. और हाँ.. उन सहेलियों में.. एक अनुमौसी नाम की बूढ़ी रांड भी है.. उसे बहुत खुजली है लोडा लेने की.. आज उसके बूढ़े भोसड़े की धज्जियां उड़ा देनी है.. समझे.. !!!"
रघु: "अरे भाभी.. बुढ़िया को क्यों बुलाया.. कोई कडक जवान माल हो तो बताओ.. बुढ़िया के ढीले भोसड़े में भला क्या मज़ा आएगा??"
शीला: "अबे भोसडी के.. जितना कहा गया है उतना कर.. ज्यादा ज्ञान मत चोद.. समझा.. वरना गांड पर लात मारकर घर के बाहर फेंक दूँगी.. और सुन.. आज के दिन अगर तेरा लंड मुरझाया.. तो समझ लेना.. तेरी मर्दानगी की नीलामी करवा दूँगी.. " कहते हुए शीला ने दोनों की चैन खोलकर उनके लंड बाहर निकाले.. बाम्बू की तरह सख्त डंडे शीला को सलामी देने लगे..
दो दो तगड़े लंड देखते ही शीला के तो मजे हो गई.. वह घुटनों के बाल बैठी गई और एक के बाद एक दोनों लंड को प्यार से चूसने लगी.. अपनी लार से लसलसित कर दोनों लंड को ऐसे लाचार कर दिया जैसे महीने के आखिरी दिनों में तनख्वाह की प्रतीक्षा करता कर्मचारी लाचार होता है। उन दोनों ने शीला को मादरजात नंगा कर दिया और उसके बबले दबाने लगे.. कामातुर शीला खड़ी हो गई.. जीवा और रघु के लंड को हाथों से पकड़कर खींचते हुए बेडरूम तक ले गई.. दो अनजान नंगे मर्दों को देखकर.. अनुमौसी को फिरसे शर्म का अटैक आ गया..
रेणुका जीवा के मजबूत और विशाल लंड को ललचाई नज़रों से देख रही थी.. वाह.. क्या लंड है यार!! मेरे पति के लंड से तीन गुना लंबा और मोटा है.. इतना बड़ा मेरी चुत के अंदर कैसे जाएगा भला.. !!
रूखी के स्तनों को सहलाते हुए मौसी ने अपनी चुत पर भी हाथ फेरना शुरू कर दिया था.. शीला जब बाहर के कमरे में जीवा और रघु के लंड की चुसाई करते हुए तैयार कर रही थी.. उस दौरान बेडरूम में रेणुका और रूखी ने अनुमौसी को चूम चाटकर बेहद गरम कर दिया था। रेणुका ने मौसी की झांटों भरी भोस पर जीभ फेरते हुए मौसी की वासना को तीव्रता से भड़का दिया था..
जीवा अनुमौसी के पास गया और उनको कंधों से पकड़कर नीचे बिठाया.. अपना मुसलदार लंड मौसी के मुंह के आगे झुलाने लगा.. इतना विकराल लंड देखकर अनुमौसी को एक पल के लिए चक्कर सा आ गया.. रूखी ने रघु का लंड मुठ्ठी में भर लिया.. और उसका लाल सुपाड़ा रेणुका ने मुंह में ले लिया.. रूखी के स्तनों से दूध टपकने लगा था.. जीवा ने जबरदस्ती अनुमौसी का मुंह खुलवाया और अपना लंड अंदर घुसाने लगा.. मौसी भी पूर्ण तरीके से उत्तेजित हो चुकी थी.. और समझ भी गई थी की अगर वो शरमाती रही तो उनका ही भोसड़ा भूखा रह जाएगा.. भाड़ में जाएँ सारी शर्म.. इधर भोस में आग लगी हो तब काहे की शर्म!!
अनुमौसी ने जीवा के लंड का अपने मुंह में स्वागत किया और लगातार २० मिनट तक चूसती ही रही.. इतना रसीला लंड उन्होंने पूरी ज़िंदगी में नहीं देखा था.. बहोत भूखी थी बेचारी.. जीवा को तो मज़ा ही आ गया.. तभी रघु भी वहाँ आ गया और अनुमौसी के गाल पर अपना लंड थपथपाने लगा.. उफ्फ़.. एक साथ दो दो लंड सामने आ जाने से मौसी ने अपनी गांड उचक कर जांघों को भींच दिया.. जीवा का लंड मुंह से बाहर निकाला.. और बोली "उफ्फ़ शीला.. अब कुछ कर मेरा.. नीचे आग लग गई है.. रहा नहीं जाता.. उईई माँ.. ऐसे लंड मैंने जीवन में पहली बार देखे है.. हाय... आह्ह!! ऊपर वाला भला करे तेरा शीला.. के तूने मुझे आज.. " आगे के शब्द निकले ही नहीं मौसी के मुंह से
शीला ने पास पड़ा प्लास्टिक का झाड़ू उठाया और उसका हेंडल पीछे से अनुमौसी की भोस में घुसेड़ दिया..
"ऊहह माँ.. क्या डाल दिया तूने अंदर.. घोड़े के लंड जितना मोटा है ये तो.. पर अच्छा लग रहा है.. कुछ तो गया अंदर.. उस कमीने चिमनलाल के तीली जैसे लंड के मुकाबले लाख गुना अच्छा है.. आहह.. डाल जोर से शीला.. और जोर से आहह.. आह्ह.. आहह.. " रेणुका की चुत में तीन उँगलियाँ डालकर अंदर बाहर करते हुए, अनुमौसी अपने भोसड़े में घुसे झाड़ू का पूरा आनंद लेने लगी.. रेणुका भी इस अंगुली-चोदन से मस्त हो गई.. और जीवा के आँड मुठ्ठी में पकड़कर दबाते हुए झुकी.. और अनुमौसी के दाने को चूम लिया.. "आह्ह रेणुका.. मज़ा आ गया.. ऐसा मज़ा तो ५० वर्ष के जीवन में पहली बार आया.. ओहहह!!"
जीवा ने अनुमौसी को बिस्तर पर सुला दिया.. उनके भोसड़े से झाड़ू निकाला.. उनके दोनों पैर अपने कंधों पर ले लिए.. और उनके ढीले भोसड़े के सुराख पर अपना तगड़ा लंड का सुपाड़ा रखकर एक जबरदस्त धक्का दिया.. मौसी का पूरा भोसड़ा एक ही पल में जीवा के लंड से भर गया.. जैसे बोतल के छेद में ढक्कन घुसेड़कर बंद कर दिया हो.. मौसी की बूढ़ी चुत ने पहली बार इतना बड़ा आकार अपने अंदर महसूस किया था..
"ओ माँ.. शीला.. इसे बोल की बाहर निकाल दे.. बाप रे.. मुझे नहीं करवाना है.. छोड़ दो मुझे.. हाय मर गई मैं तो.. मेरा दिमाग खराब हो गया था जो मैं इधर आई.. छोड़ दे मुझे हरामी.. " पर जीवा कहाँ सुनने वाला था.. !! अनुमौसी की उसने एक ना सुनी.. और तेज गति से लंड के धक्के लगाने लगा..
दूसरी तरफ रघु रेणुका को घोड़ी बनाकर पीछे से शॉट लगा रहा था.. रेणुका ऐसे ही मजबूत लंड को तरस रही थी.. रघु के लंड से चौड़ी हो चुकी उसकी चुत के खुशी का कोई ठिकाना न था.. उसके मस्त बोबले, लंड के धक्कों के साथ, लयबद्ध तरीके से हवा में झूल रहे थे.. इस दौरान शीला और रूखी 69 पोज़िशन में एक दूसरे की चुत चाट रहे थे.. दूसरी तरफ जीवा अनुमौसी की घमासान चुदाई करते हुए उनके लटके हुए स्तनों को आटे की तरह गूँद रहा था.. अद्भुत काम महोत्सव चल रहा था शीला के बेडरूम में.. रूखी के विशाल स्तनों से दूध की धराएं शीला के पेट पर टपक रही थी.. वही दूध शीला की चुत की फांक से गुजरकर बिस्तर पर पड रही थी
अपने यार जीवा द्वारा की जा रही जबरदस्त चुदाई को देखकर रूखी खुश हो गई.. जीवा के देसी विकराल लंड की ताकत पर ये शहरी औरतें आफ़रीन हो गई थी.. कुतिया बनकर रघु से चुदवा रही रेणुका को देखकर.. जीवा से चुद रही मौसी और गरम हो रही थी.. रेणुका की गीली पुच्ची में रघु का लंड ऐसे अंदर बाहर हो रहा था जैसे ऑइल लगे इंजन में पिस्टन आसानी से अंदर बाहर होता है.. इतना अवर्णनीय आनंद रेणुका ने पहली बार महसूस किया था.. उसका भोसड़ा तृप्त होता जा रहा था.. जीवा मौसी के भोसड़े में इतनी तेजी से अंदर बाहर कर रहा था की लगता था कभी चिंगारियाँ निकालने लगेगी..
शीला के मुंह से अपनी चुत झड़वाकर रूखी खड़ी हो गई.. और रघु से घोड़ी बनकर चुद रही रेणुका के मुंह में बारी बारी से दोनों निप्पल देकर.. अपना दूध मुफ़्त में पिलाने लगी.. और अपने स्तनों का भार हल्का करने लगी.. शीला अपनी क्लीनशेव चुत को रूखी के पुरातत्व खाते के किसी अपेक्षित अवशेष जैसी.. काले झांटों से भरपूर भोसड़े पर रगड़ने लगी.. दोनों की क्लिटोरिस एक दूसरे से रगड़ खाते हुए जबरदस्त आनंद दे रही थी.. साथ ही साथ शीला अपने अंगूठे से रूखी की क्लिटोरिस को घिस रही थी..
शीला की गुलाबी निप्पल को मुंह में लेकर काटते हुए रूखी ने अपनी असह्य उत्तेजना की घोषणा कर दी.. पूर्ण उत्तेजित स्त्री को देखना.. अपने आप में एक बड़ा अवसर है.. अनुमौसी ने पहली बार दो स्त्रियों को इस तरह संभोगरत देखा था.. अब तक वो यही सोचती थी की चुत की आग या तो लंड से बुझती है या फिर मूठ लगाने से.. !! दो स्त्री आपस में भी अपनी आग बुझा सकती है इसका उन्हे पता ही नहीं था.. सालों से एक ही भजन आलाप रही अनुमौसी को आज एक नया राग मिल गया..
मौसी दो बार झड़ चुकी थी.. उनकी विनती पर जीवा ने अपना लंड बाहर निकाला.. वो अबतक झड़ा नहीं था.. चुदकर तृप्त हो चुकी मौसी ने शर्म त्याग कर रूखी के नंगे स्तन को पकड़कर दबाया.. रूखी ने मौसी के हाथ को और जोर से अपने स्तन के साथ रगड़कर उनका दूसरा हाथ अपनी चुत पर रखवा दिया.. रूखी का "अत्यंत ज्वलनशील" भोसड़ा.. चुत की गंध वाला प्रवाही छोड़ने लगा था.. अनुमौसी की चुत ठंडी हो चुकी थी.. वो गरम सांसें छोड़ते हुए अपना भूतकाल याद कर रही थी.. इतने लंबे वैवाहिक जीवन में, चिमनलाल ने कभी उन्हे ऐसे तृप्त नहीं किया था.. चिमनलाल से वो इस कदर परेशान थी की मन ही मन नफरत करने लगी थी.. तंग आ गई थी..
जीवा और रघु ने अब रेणुका को रिमांड पर ले रखा था.. नए बॉलर को जिस तरह निशाने पे रखकर बल्लेबाज छक्के लगाता है.. उसी तरह जीवा और रघु ने रेणुका को इतनी बेरहमी से चोदा की रेणुका पस्त हो गई.. मदमस्त हो गई.. जीवा के प्रत्येक धक्के से रेणुका सातवे आसमान पर उड़ने लगती थी.. उसके गोरे गोरे बोब्बे को अपने खुरदरे मर्दाना हाथों से रघु मसल रहा था.. उस दौरान जीवा अपने गन्ने जैसे लंड से रेणुका की चुत का भोसड़ा बना रहा था.. शीला और रूखी, जीव और रघु के दमदार लंड को बड़े ही अहोभाव से देख रही थी.. वह दोनों एक दूसरे के आलिंगन में लिपटकर अपनी चुत खुजा रही थी..
जीवा के दमदार धक्कों से रेणुका अनगिनत बार स्खलित हो गई थी.. जितनी बार वो स्खलित होती तब वह अपनी कमर को बिस्तर से एक फुट ऊपर उठा लेती.. और तभी जीवा रेणुका की कमर को मजबूती से पकड़कर बिस्तर पर फिर से पटक देता और चोदना जारी रखता.. अपनी मर्दानगी का पूर्ण प्रदर्शन करते हुए.. जीवा अपने अजगर जैसे लंड को रेणुका की चुत में अंदर बाहर करते ही जा रहा था.. रेणुका की चुत और जीवा का लंड ऐसे उलझ गए थे जैसे प्रकृति ने उनका निर्माण एक दूसरे के लिए ही किया हो.. रेणुका की कराहें और सिसकियाँ पूरे कमरे में गूंज रही थी.. मदमस्त होकर रेणुका जीवन के सबसे बेहतरीन आनंद को महसूस कर रही थी.. उसकी हरेक सिसक कामुकता से भरपूर थी..
रेणुका: "ओह्ह जीवा.. मर गई मैं तो.. मज़ा आ गया.. लगा धक्के.. आह्ह उहहह.. ऊई माँ.. ओह्ह शीला.. आज तो मैं धन्य हो गई.. यार.. कितने सालों से मैं ऐसा ही कुछ ढूंढ रही थी.. जबरदस्त है तेरा लंड जीवा.. अंदर तक ठोकर मार रहा है.. उहह उहह.. "
रघु के लंड को लोलिपोप की तरह चूस रही थी मौसी.. शीला और रूखी अपने बलबूते पर ही दो-तीन बार झड़ चुकी थी.. चुद रही रेणुका खुद ही अपने स्तनों को ऐसे मरोड़ रही थी जैसे उन्हे जिस्म से अलग कर देना चाहती हो.. जीवा "पच्च पच्च" की आवाज के साथ कातिल धक्के लगाता जा रहा था.. रेणुका फिर से किनारे पर पहुँचने वाली थी.. अब तो उससे स्खलन भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. अपने हाथ फैलाकर उसने जीवा के कंधों को पकड़कर अपनी ओर खींच लिया और उसे चूमने लगी.. रेणुका के होंठ चूसते हुए जीवा ने अपनी मजबूत बाहों में भरकर रेणुका को बिस्तर से उठा लिया.. चुत को लंड में घुसाये रखा
जीवा का ये बाहुबली प्रदर्शन देखकर.. रूखी, अनुमौसी और शीला की आह्ह निकल गई..
अनुमौसी: "बाप रे.. देख तो शीला.. इसने तो रेणुका को उठा लिया.. और खड़े खड़े नीचे से पेल रहा है.. इसका लंड तो जिसे मिल जाए उसका जीवन सार्थक बन जाएँ.. सांड जैसी ताकत है इसमें.. देखकर मुझे फिरसे नीचे खुली होने लगी है"
रेणुका ने अपने दोनों पैरों को जीवा की कमर के इर्दगिर्द लपेट लिया.. चौड़ी चुत में जीवा का लंड अंदर बाहर हो रहा था.. जीवा का आधा लंड अंदर और आधा बाहर था.. जीवा ने रेणुका के कूल्हों को मजबूती से पकड़कर संतुलन बनाए रखा था.. रेणुका की चुत इतनी फैल चुकी थी की हाथ की मुठ्ठी भी आसानी से अंदर चली जाएँ.. जीवा के हर धक्के के साथ रेणुका की चुत का रस जमीन पर टपक रहा था... रेणुका ने अपने दोनों हाथ जीवा की गर्दन पर लपेट लिए थे.. और जीवा के होंठ कामुक अंदाज में चूसते हुए नीचे लग रहे धक्कों का आनंद ले रही थी.. जीवा की छाती से दबकर उसके दोनों स्तनों बगल से झाँकने लगे थे.. जीवा के इस रौद्र स्वरूप को देखकर उत्तेजित हो चुकी शीला और रूखी ने अनुमौसी के भोसड़े पर हमला कर दिया..
रेणुका को उठाकर चोदते हुए जीवा पूरे कमरे में यहाँ वहाँ घूम रहा था.. इतना ही नहीं.. वो चलते चलते किचन में आया.. और मटके से लोटा भरकर पानी निकालकर पीने लगा.. ये सबकुछ वो रेणुका को चोदते हुए ही कर रहा था.. किचन के प्लेटफ़ॉर्म पर पड़ी सब्जियों की टोकरी से जीवा ने एक खीरा उठाया.. और उसे रेणुका की गांड के छेद पर रगड़ने लगा.. रेणुका के दोनों चूतड़ पूरे फैल चुके थे.. खीरा गांड के छेद पर रगड़ते हुए जीवा रेणुका को लेकर वापस बेडरूम में आ गया.. शीला, रूखी और मौसी.. इस रोमांचक फाइनल मेच को देख रहे थे.. जीवा जिस तरह से रेणुका को उठाकर चोद रहा था.. ये अनुमौसी को बेहद पसंद आ गया.. एक बार जीवा से इसी तरह चुदवाने का मन बना बैठी वो..
अनुमौसी खड़े खड़े एकटक जीवा-रेणुका की चुदाई देख रही थी.. तभी रघु चुपके से उनके पीछे गया..उनके चूतड़ फैलाये और अपनी जीभ उनके छेद पर फेर दी..
"उईई माँ.. " मौसी और कुछ नहीं बोली.. रघु ने उनकी गांड से लेकर चुत तक चाटना शुरू कर दिया.. अनुमौसी का शरीर इस चटाई से कांपने लगा था.. रघु आसानी से चाट सके इसलिए वो थोड़ा सा झुक गई.. इसी के साथ रघु की जीभ ने मौसी की गांड में एंट्री मार दी.. जीभ के कुरेदने से मौसी को खुजली होने लगी.. और उन्होंने अपनी तीन उँगलियाँ अपनी चुत में रगड़ना शुरू कर दिया..
"आह्ह.. ओह्ह.. हाँ रघु.. वही पर.. जरा दाईं तरफ.. हाँ वही.. उईई.. चाट मेरी.. आह्ह रघु.. " रघु उनके चूतड़ों को और फैलाकर जितना हो सकता था उतने अंदर अपनी जीभ घुसाता गया.. उत्तेजीत मौसी ने अपने शरीर को थोड़ा सा और झुकाया.. आज का दिन मौसी के लिए सबसे यादगार दिन बन रहा था..
रेणुका को अपने अलग अंदाज में उछाल उछालकर चोद रहे जीवा ने लंड की साइज़ का खीरा रेणुका की गांड के अंदर घुसाने की कोशिश की.. और बेरहमी से आधा खीरा अंदर घुसा दिया.. रेणुका को इतना दर्द हुआ की वो चिल्लाने लगी.. उसकी चीख को रोकने के लिए जीवा ने उसके होंठों पर अपने होंठ दबाकर उसे चुप करा दिया.. और इशारे से अपनी प्रेमीका रूखी को करीब बुलाया.. अपने स्तन और कूल्हें मटकाती हुई बड़ी ही मादक चाल से चलती रूखी जीवा के करीब आई और रेणुका तथा जीवा दोनों के कूल्हों को सहलाने लगी..
जीवा: "यार रूखी..तू इसकी गांड में उंगली करते हुए मेरे आँड चूस दे.. तेरी मदद के बगैर मेरा लंड झड़ने नहीं वाला.. " वो फिरसे रेणुका के होंठ चूसने लगा
अचानक अनुमौसी चीखने लगी "नहीं नहीं.. मर गई दर्द से मैं तो.. आहह शीला.. तू बोल ना इसे की मेरी गांड से निकाल ले.. मुझे पीछे नहीं करवाना.. बहोत दर्द होता है मुझे.. " सबकी नजर अनुमौसी की ओर गई.. रघु ने झुककर खड़ी मौसी की गांड में एक ही धक्के में अपना लंड घुसा दिया था.. मौसी को दिन में तारे नजर आने लगे.. रघु ने मौसी का जुड़ा खोल दिया और उनके लंबे बालों को खींचकर उन्हे पकड़ रखा था.. मौसी हिल भी नहीं पा रही थी.. रघु ने जोर से बालों के ऐसे खींचा की अनुमौसी की गर्दन ऊपर हो गई और उनकी चीख गले में ही अटक गई.. मौसी अब पूरी तरह से रघु की गिरफ्त में थी.. घोड़ी कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो.. लगाम खींचते ही काबू में आ ही जाती है.. अनुमौसी को पता चल गया था की रघु अपनी मनमानी करके ही रहेगा..
मौसी गिड़गिड़ाने लगी.. "रघु.. प्लीज.. निकाल दे बाहर.. दर्द से मरी जा रही हूँ.. हाथ जोड़ती हूँ तुझे.. आगे के छेद में जितना मर्जी डाल ले तू.. पर पीछे मत कर.. जलन हो रही है.. दया कर मुझ पर.. "
मौसी का ये हाल देखकर शीला उनके करीब आकार नीचे बैठ गई.. पहले उसने मौसी के होंठ चूम लिए.. और उनके लटक रहे नारियल जैसे स्तनों को दबाने लगी.. ग्लाइकोड़ींन पीने से जैसे खांसी बंद हो जाती है.. वैसे ही शीला की हरकतों से मौसी शांत हो गई.. शीला ने मौसी की ऐसी खास जगहों पर स्पर्श किया की मौसी सिहरने लगी.. रघु मौसी की गांड में लंड घुसेड़कर ठुमक रहा था.. धक्कों से मौसी की गांड चौड़ी हो गई थी.. अब उनका दर्द काम होने लगा..
मौसी: "शीला.. मेरी चूचियाँ भी चूस दे थोड़ी सी" शीला को मौसी के पिचके हुए स्तन चूसने का बिल्कुल मन नहीं था.. बिना रस के आम कौन चूसेगा भला!! फिर भी शीला ने उनकी निप्पलों को मुंह में लेकर "बच बच" की आवाज के साथ चूसना शुरू कर दिया..
रूखी अपने प्रेमी के खूंखार लंड से चुद रही रेणुका की भोस को बड़े ही गर्व से देख रही थी.. जीवा के आँड को चूसते हुए.. रसिक के लंड से मोटे खीरे को रेणुका की गांड में डालती जा रही थी.. रूखी को रेणुका की गांड मारने में बड़ा ही मज़ा आ रहा था.. उसने खीरे को एक बार अपनी चुत पर भी रगड़कर देख लिया.. बहोत मज़ा आया.. आज घर जाकर ये प्रयोग जरूर करूंगी.. रूखी ने शीला को अपने पास बुलाया.. और रेणुका की गांड से निकली हुई ककड़ी उसकी चुत में दे मारी..
अनुमौसी की गांड फाड़ कर थक चुका रघु.. अपना लंड खींचकर.. रूखी की चुत पर टूट पड़ा.. मौसी बेचारी अपनी गांड बचाकर दूर भाग गई.. बड़ी मुश्किल से लँगड़ाते हुए चल आ रही थी मौसी... वो कपड़े पहनकर दूर बैठी ये चुदाई का भव्य खेल देखने लगी.. उनकी चुत और गांड दोनों ठंडे हो चुके थे.. और इस उत्सव से उन्होंने इस्तीफा देते हुए वी.आर.एस ले लिया था..
दर्शक बनकर बैठी मौसी.. बाकी बचे बल्लेबाजों के फटके देख रही थी.. उनकी सांस अब भी फुली हुई थी.. बेचारी मौसी!!! लेकिन शीला की मदद से उनके चुदाई जीवन को चार चाँद लग गए थे इसमें कोई दो राई नहीं थी..
रेणुका की हालत देखकर मौसी सोच रही थी.. "कितनी गर्मी है साली की चुत में!! इस जालिम जीवा के खूंखार लंड से चुद रही है फिर भी थकने का नाम नहीं ले रही.. वैसे रघु का लंड भी कुछ कम नहीं है" सभी प्रतिभागियों की क्षमता का पृथक्करण कर रही थी मौसी.. जीवा और रघु के लंड पर तो वो अब निबंध लिख सकती थी.. एक पल के लिए उन्हे ऐसा विचार आया की अगर जीवा और रघु को वियाग्रा की गोली खिला दी जाए और उनके लंड पर जापानी तेल की मालिश की जाएँ.. तो क्या होगा? बिना किसी मदद के भी उन्होंने मेरी गांड फाड़ दी.. अगर इन्हे गोली खिलाकर तेल लगाकर चुदवाएं तो ये दोनों माँ चोद देंगे मेरे भोसड़े की.. सीधा एम्बुलेंस से अस्पताल जाने की नोबत आ जाएँ.. गांड और चुत को टाँकें लगाकर सिलवाना पड़ जाएँ.."
रेणुका का काम तमाम हो गया.. आखिरी कुछ धक्कों ने तो उसे लगभग रुला दिया था.. रेणुका की चुत पर ऐसे भयानक प्रहार पहली बार हुए थे.. जीवा को ऐसी टाइट कडक चुत मिलने पर वो भी दोहरे जोर से धक्के लगा रहा था.. जब तक रेणुका उत्तेजित थी तब तक उसे मज़ा आ रहा था.. पर अब ५-६ बार स्खलित हो जाने के बाद उसे दर्द होने लगा था.. चुत भी जल रही थी.. पेट भर जाने के कोई जबरदस्ती खिलाएं और जो हाल होता है वही हाल रेणुका का हो रहा था.. जीवा के लंड के प्राहर अब उसे आनंद के बजाए पीड़ा दे रहे थे
"ओहह ओहह आह्ह मर गई.. बस बहोत हुआ जीवा.. मेरा हो गया.. अब निकाल ले बाहर.. बस अब ओर नहीं.. मेरे पेट में दर्द होने लगा है.. मैं झड़ चुकी हूँ.. धीरे धीरे.. ओ माँ.. स्टॉप ईट जीवा.. शीला.. इससे कहों के बाहर निकाले.. " रेणुका की हालत बद से बदतर होती जा रही थी.. जीवा किसी खूंखार जंगली जानवर की तरह रेणुका की सारी बातें अनसुनी कर बेरहमी से चोदता ही गया.. रेणुका का नंगा बदन चुदते चुदते पसीने से तरबतर हो गया था..
अनगिनत बार झड़ जाने के बाद भी रेणुका को जीवा ने नहीं छोड़ा.. अंत में उसे बिस्तर पर पटक दिया और अपना मूसल लंड बाहर खींच लिया.. खतरनाक धक्के खा खा कर रेणुका की हालत खराब हो गई.. थोड़ी देर आराम करने के बाद उसकी सांसें ठीक हुई.. वासना का तूफान शांत हो गया.. रेणुका अब चुपचाप मौसी के पास आकर बैठ गई.. अब रूखी-शीला और जीवा-रघु के बीच घमासान चल रहा था
शीला और रूखी की हवस तो मौसी और रेणुका के मुकाबले कई ज्यादा थी.. रघु शीला को उलटी लिटाकर उनकी चुत को धमाधम चोदते हुए पावन कर रहा था.. इस दौरान अनुमौसी चुपके से अपने घर चली गई..
शीला और रूखी की हवस को देखकर रेणुका स्तब्ध हो गई.. रूखी का देसी कसरती शरीर का सौन्दर्य उसे प्रभावित कर गया.. तो दूसरी तरफ शीला की गोरे खंबे जैसी जांघें.. पुष्ट पयोधर मदमस्त स्तन.. सपाट गोरी और दागरहित पीठ.. लचकदार कमर.. और मटके जैसे कूल्हें..
रेणुका ने नीचे हाथ फेरकर अपनी चुत के हालचाल चेक किए.. कहीं ज्यादा नुकसान तो नहीं हुआ ना!! जीवा ने तो आज हद ही कर दी.. ऐसे भी भला कोई चोदता है.. !! रूखी अब जीवा का काले सांप जैसा लंड चूस रही थी.. देखकर ही रेणुका के पसीने छूट गए.. बाप रे.. इतना बड़ा लिया था क्या मैंने !!!
शीला रघु के लंड से फूल स्पीड में चुद रही थी.. "आह्ह रघु.. बहोत मज़ा आ रहा है.. और जोर से.. शाबबास.. वाह मेरे राजा.. क्या ताकत है तेरी.. मस्त धक्के लगा रहा है.. ओह.. फाड़ दे मेरी चुत.. आहह आहह.. ओर जोर से ठोक.. उहह उहह.. और तेज.. जल्दी जल्दी.. हाँ हाँ.. वैसे ही.. आहह आह्ह.. मैं झड़नेवाली हूँ.. रुकना मत.. आह्हहह आह्ह आईईईईईई.. !!!!" शीला झड गई
शीला: "मेरा पानी निकल गया और तू अब तक नहीं झड़ा रघु??"
रघु: "भाभी.. आज गांड नहीं मारने दोगी क्या??" कहते हुए रघु ने शीला की गांड में उंगली डालकर हिलाया
शीला: "नहीं रघु.. आज नहीं.. आज तो भोस को ही तृप्त करना है.. गांड मरवाने का मूड नहीं है मेरा"
"रघु.. तुम मेरी गांड मार लो" जीवा का लंड चूसते हुए रूखी ने कहा
रघु शीला के शरीर से उतरकर रूखी के पास गया.. घोड़ी बनकर जीवा का लंड चूस रही रूखी के चूतड़ों को हाथ से चौड़ा किया.. रूखी के सुंदर अंजीर जैसे गांड के छेद पर अपना गरम सुपाड़ा रख दिया.. रूखी ने एक पल के लिए जीवा का लंड मुंह से निकालकर कहा "आहह.. कितना गरम है तेरा लंड रघु.. अंगारे जितना गरम लग रहा है पीछे.. थोड़ा सा थूक लगाकर डालना.. सुख मत पेल देना.. मैं जानती हूँ तेरी आदत.. गांड को देखकर ही गुर्राए सांड की तरह टूट पड़ता है तू.. मरवाने वाली के बारे में सोचता तक नहीं.." रूखी ने फिरसे जीवा का लंड मुंह में ले लिया..
एक ही दिन में शीला और रेणुका एकदम खास सहेलियाँ बन गई.. रात को दोनों ने ब्लू फिल्म की डीवीडी देखते हुए लेसबियन सेक्स का मज़ा लिया.. फिर एक ही बिस्तर पर नंगी होकर दोनों पड़ी रही.. एक दूसरे के अंगों से खेलते हुए देर तक बातें करती रही.. समाज की.. घर की.. पति की.. पड़ोसियों की.. बातें करते करते एक दूसरे की बाहों में कब सो गई दोनों को पता ही नहीं चला..
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