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फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६
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बहोत ही शानदार अपडेट. आनंद बाबू को कुछ गलियों के रास्ते याद आ रहे थे. वो मज़जीद की मीनार देख के समझ गए. कैसे वहां देवर भाभी का कामुख बातूनी मज़ाक चल रहा था. लेकिन अचानक हमला हो ही गया. क्या काबिले तारीफ बचाव किया है. हाथगोले और एसिड वाले गिब्बारो से. अब नया ठिकाना नई साली अस्मा के वहां.हमला
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गली जितनी संकरी थी, उतनी ही लम्बी और सबसे बड़ी बात की अगल बगल से कोई गली उसमे नहीं आ कर मिल रही थी। तंग होने के साथ मोड़ , घुमाव् भी बहुत थे और आगे क्या होगा, कुछ दिख नहीं रहा था, दोनों ओर दुतल्ले, तिनतल्ले के मकान इसलिए धूप भी एकदम नहीं आ रही थी, लेकिन अचानक हम प्राची सिनेमा के पास नयी सड़क पर पहुंच गए,
मैं सड़क से बचना चाहता था, देखे जाने, पहचाने जाने के डर के साथ भीड़ का बड़ा झुण्ड भी आ सकता था।
लेकिन इस सड़क पर भी सन्नाटा था हाँ दूर पुलिस की एक नीली ट्रक दिख रही थी और कभी के बंद प्राची सिनेमा पर रायट गियर में पी ए सी के जवानों का एक दस्ता मौजूद था। ठेले वाले लगता है जल्दी जल्दी में अपने ठेले छोड़ कर गए थे, कुछ में चेन लगी थी, कुछ बस ऐसी ही किसी खम्भे के सहारे छोड़ दिए गए थे।
और प्राची के बगल से ही एक पतली गली में गुड्डी ने बाइक मोड़ ली, और उस गली में कुछ चढ़ाई सी भी थी, ईंटे जगह जगह उखड़े थे पर खड़बड़ खड़बड़ करते गुड्डी की बाइक एक दूसरी गली में, जो थोड़ी ज्यादा चौड़ी थी, दोनों ओर बड़े मकान थे ज्यादातर पुराने कम से कम सत्तर अस्सी साल के कुछ और भी ज्यादा, और कुछ नए भी।
मुझे लगा, कुछ जाना पहचाना लग रहा है, फिर मेरी चमकी, ...सटी हुयी पीछे की गली में एक मस्जिद के गुंबद और मीनारे दिखी, और मेरी यादों की परत खुल गयी।
गुड्डी की सहेली, बल्कि सहेलियों और उस से ज्यादा भाभियों का मोहल्ला, और सब गुड्डी से भी दो हाथ आगे, थोड़ी देर पहले ही तो गुड्डी मुझे घिर्राती हुयी पैदल अपना २० किलो का बोझ मेरे पीठ पर लादे, ले आयी थी इसी रास्ते से,
लेकिन एकदम फरक लग रहा था, उस समय फागुन एकदम पसरा लग रहा था, पूरे शहर की हर गली की तरह, यहाँ भी बच्चे पानी भरी प्लास्टिक की पिचकारी लेकर पिच पिच कर रहे थे, एकदम से मुझे याद आया,
साइड में दो लोग, सफ़ेद कुर्ते पाजामे में, शायद मस्जिद से नमाज पढ़ के आ रहे थे, और सफ़ेद कपडे देख कर तो रंग छोड़ने वालों को और जोश आ जाता है तो बच्चों ने उन पे भी,
एक जो थोड़े बड़े थे उस बच्चे को चिढ़ाया,
" अरे मियां, क्या पानी लेकर पिच्च पिच्च, अपनी अम्मी से कह दो थोड़ा रंग वंग भी दिलवा दें, खाली पानी में क्या मजा "
इशारा बच्चे के बहाने अंदर की ओर था और जवाब अंदर से सूद के साथ आया, गुझिया छनने की छनन मनन और चूड़ियों की तेज खनक के साथ
" राजू अपने चच्चू से कह दो दिलवा दें न रंग। का करेंगे सब पैसा बचा के, अब तो कोई बहिनियों नहीं बची है जिसके लिए जहेज का इंतजाम कर रहे हों "
अब बाहर से चच्चू की आवाज अंदर गयी,
" आदाब भाभी "
" तसलीम " के साथ अंदर की खिलखिलाती आवाज ने चिढ़ाया भी बुलाया भी
" सब काम बाहर बाहर से कर लोगे, या अंदर भी आओगे, गरम गरम गुजिया निकाल रही हूँ। "
" नहीं नहीं भाभी, आप रंग डाल देंगी " बाहर से घबड़ाया जवाब गया।
" देखो भाभी हूँ, मेरा हक़ है, वो अंदर आओगे तो पता चलेगा, देखो, डलवाने से डरने से कोई बचता थोड़े ही है। "
हंसी के साथ दावतनामा आया,
लेकिन न वो हंसी, न गुझिया की महक न पिच पिच करते बच्चे कुछ भी नहीं दिख रहे थे, एकदम सन्नाटा, जिसनेअपनी गुंजलिका में जैसे पूरे शहर को जकड़ रखा था, यहाँ भी, लोग तो दिख नहीं रहे थे, बंद मकानों के दरवाजों पर डर की स्याही पुती थी।
मुझे याद आया यही जगह थी
जहाँ गुड्डी तो बच के निकल गयी थी मुझे उस ने सीधे छत के नीचे, और ऊपर से एक बाल्टी गाढ़ा रंग, मोहल्ले से कोई ननद सूखे बच के निकल जाए और होली पास में हो,
बाद में गुड्डी ने बताया की शबाना भाभी थीं, फरजान भाई की, अस्मा के चचाज़ात भाई थे उन्ही की, चार साल पहले शादी हुयी थी, और होली में क्या वैसे भी सब ननदे उनसे पनाह मांगती थी, हालचाल बाद में पूछती थीं, नाडा पहले खोलती थीं।
अस्मा, गुड्डी की सहेली गुड्डी से एक साल सीनियर, श्वेता के क्लास में, गुड्डी के स्कूल में, वो और उसकी नूर भाभी भी मिली थीं
पूरे मोहल्ले में गुड्डी की दर्जनों भाभियाँ हो गयी थी, उसकी सहेलियों के चलते.
रास्ते में ही आज उसकी सहेली आस्मा और उनकी भाभी नूर मिली थी और चंदा भाभी से भी दो हाथ आगे थी,
एक लड़की गुड्डी की ही उम्र की, शलवार कुर्ते में और उस के साथ एक कोई औरत, संध्या भाभी की उम्र की रही होंगीं, वो दुप्पटे को हिजाब की तरह सर पर लपेटे,
वो लड़की पहले गुड्डी को देखकर मुस्करायी, फिर साथ वाली औरत को इशारा किया, वो तो हम दोनों को देख कर लहालोट और गुड्डी से बिन बोले मेरी ओर देख के इशारा किया,
अब गुड्डी की कस के मुस्कराने की बारी थी और उन दोनों को दिखा के मुझसे एकदम चिपक गयी और गुड्डी का हाथ मेरे कंधे पे, मुझे भी अपनी ओर पकड़ के खींच लिया, एकदम चिपका लिया उन दोनों को दिखाते,
मान गया मैं बनारस को, वो जो दुपट्टे वाली थीं,
पहले तो गुड्डी की ओर तर्जनी और मंझली ऊँगली को जोड़ के चूत का सिंबल बना के इशारा किया,
और फिर मेरी ओर देख के अंगूठे और तर्जनी को मिला के गोल छेद और उसमे ऊँगली डाल के आगे पीछे, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल,
और अब मैं भी मुस्करा पड़ा,
और गिरते गिरते बचा, जो बिल्डिंग पीछे हम छोड़ आये थे, जो गिर रही थी, उसके ईंटे सड़क पे यहाँ तक बिखरे पड़े थे, उसी से ठोकर लगी, वो तो गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ रखा था,
वो दोनों, लड़की और साथ में औरत तब तक एक घर में घुस गए थे और गुड्डी ने मेरे बिना पूछे सब मामला साफ़ कर दिया।
गुड्डी की एक सहेली है गली में, एकदम शुरू में जहाँ मकान टूट रहा था उससे भी बहुत पहले, एकदम शुरू में।
तो बस उस की जो सहेलियां वो गुड्डी की भी, वो जो लड़की थी उसका नाम अस्मा है, गुड्डी से एक साल सीनियर, इंटर में पढ़ती है।
तो सहेलियों के साथ इस मोहल्ले में १५ -२० भाभियाँ, और उनमे से आठ दस तो गुड्डी के शलवार का नाडा खोलने के चक्कर में पड़ी रहती थीं, सब बोलती,
"कैसी लड़की हो इंटर में पहुँच गयी और अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया, "
अस्मा की भाभी नूर जो साथ में थीं वो तो सबसे ज्यादा, अंत में गुड्डी की सहेली ने साफ़ साफ़ बता दिया, इसका कोई है, इसलिए किसी और से तो
नूर भाभी ने हड़काया और बोलीं
"फिर तो मेरी ननद एकदम, अरे बियाह तक इन्तजार करोगी क्या, शुरू कर दो गपगप, गपगप, और वो भी स्साला एकदम बुरबक है, अइसन माल अभी तक छोड़ के रखा है"
आगे की बात मैं बिन बोले समझ गया, अस्मा ने जब अपनी भाभी को इशारा किया गुड्डी की ओर तो नूर ने मेरी ओर इशारा करके बिन बोले यही पूछा
" यही है क्या "
और गुड्डी ने मुझसे चिपक के, मेरे कंधे पे हाथ रख के, मुझे अपनी ओर खींच के, एकदम से इशारे में हामी भर दी
और वो ऊँगली जोड़ के चूत और चुदाई का इशारा, और हलके साथ में गुड्डी को दिखा के गपगप बोलना, मेरे लिए ही थी,
लेकिन मेरे ख्यालों का सिलिसला टूटा, गली के दूसरे कोने पर एक बड़ा सा मकान टूट रहा था, गुड्डी ने बताया था, सैय्यद चाचा का है, बचपन में कई बार आयी थी, दूबे भाभी के साथ, वो बनारस छोड़ के गए नहीं, पुरखों की कब्र यहाँ है, कौन दिया बाती करेगा, लेकिन बच्चे सब इधर उधर, अब वो रहे नहीं तो किसी बिल्डर ने ले लिया है,
और इस तरह के कई मकान थे गली में और उन टूटते मकानों के ईंटे पूरी गली में बिखरे पड़े थे, मैं खुद दो बार गिरते हुए बचा था,
लेकिन अभी सब साफ़, ....ईंटे कौन कहे पत्थर का टुकड़ा तक नहीं बचा, और मैं डर से कांप गया। मैं समझ गया ये पत्थर कहाँ पहुँच गए, अगल बगल के मकान की छतो पर,....
दंगे का डर, होने वाली अनहोनी की आशंका और जवाब के बदले जवाब, फिर जवाब और उसे बढ़ाती अफवाहें, मिडिया और सोशल मिडिया, और आग सेंकते लोग।
मैंने कनखियों से देखा छतो पर लोग थे लेकिन बैठे हुए या अधलेटे, जो गली से मुश्किल से दिखते थे, लेकिन गुड्डी ने तभी अपने हेलमेट के वाइजर को थोड़ा सा हटाया, और उसका चेहरा दिख गया होगा, और अब छत पर एक दो लोग खड़े भी हो गए, कुछ खिड़कियां भी खुलने लगी , गली के लड़की की सहेली, गली की ही लड़की होती है
और गुड्डी से ज्यादा मैं आस्वश्त हो गया, कम से कम इस गली में तो कोई खतरा नहीं हो सकता, न आगे से पीछे से
लेकिन खतरा तभी आता है, जब हम सोचते हैं खतरा नहीं आएगा।
और वही हुआ।
हमला हुआ और जबरदस्त हुआ।
मुझे ये तो लग रहा था की अगर कुछ हुआ तो बगल से आकर मिलने वाली गलियों से होगा, और पहली गली जो पड़ी, गुड्डी ने घर से बाजार जाते समय जो बताया था,बंगाली टोले की ओर जा रही थी।
कुछ नहीं हुआ,
दूसरी गली, पतली सी छोटी सी थी और थोड़ी दूर पे ही मुड़ जाती थी, वो घाट की ओर जाती थी, वहां भी सन्नाटा था।
गुड्डी ने एक बार से हेलमेट का वाइजर गिरा लिया था और सम्हाल के बाइक चला रही थी
तीसरी गली, एकदम अँधेरी सी, संकरी, दूर से दिखी भी नहीं, लेकिन पास आते ही मैंने देखा चार लोग, एकदम दीवाल से चिपके, जैसे होली के हुरियारे हों और फंस गए हो, रंग और पेण्ट से चेहरा एकदम पुता, मुश्किल से आँखे दिख रही थी, कपड़ों पर भी काही नीला रंग,
मेरी जोर से चमकी, सेकंड का सौंवा भाग भी नहीं लगा होगा,
' बचो, झुको " मैं हलके से चीखा,
गुड्डी ने एक साथ ब्रेक भी मारा और झुक के आलमोस्ट बाइक पे चिपक गयी, उस से चिपकी गुंजा भी दुहरी हो गयी।
मैंने पीछे से गुंजा को छाप लिया जैसे एस पी जी ( स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप ) वाले करते हैं, लगे कुछ तो उन्हें लगे, प्रोटेक्टी को कुछ न हो
गुंजा की पूरी देह मेरी देह से दबी थी, सर मैं जानता था हेलमेट से प्रोटेक्टेड है, इसलिए निशाना बॉडी पे ही होगा।
और जैसे साथ साथ, होली में जैसे रंग से भरा गुब्बारा फेंकते हैं, वैसे ही एक गुब्बारा भरा हुआ, लेकिन गुड्डी के ब्रेक लगाने का और हम सब के झुकने का नतीजा हुआ की बाइक के आगे से सरसराता हुआ वो गली के दूसरी ओर एक खम्भा था, उससे लग कर फूटा और मैंने कनखियों से देखा
बुदबुद बुदबुद, जैसे कुछ बुलबुले फूटे और लोहा हल्का हलका पिघलने लगा,
कोई बहुत तेज ऐसिड था, दो चार बूँद भी अगर पड़ जाती,
पर जैसे उन्हें अंदाज था की पहला निशाना फेल हो सकता है, लगभग उसी समय दूसरा गुब्बारा नीचे की ओर,
पर तब तक गुड्डी ने बाइक की स्पीड एक साथ बढ़ा दी, १० से सीधे १०० और वो हम लोगो के बाइक के पीछे गली के पार एक मकान के बरामदे में गिरा और वहां भी एसिड ने फर्श को पिघलाना शुरू कर दिया
" आँख बंद " मैंने गुंजा से बोला।
दो गुब्बारे पीछे से भी चले, लेकिन तब तक हम लोग आगे निकल आये थे और वो एकदम बाइक के अगल बगल गिरे,
पर तब तक उस गली से कुछ लोग निकलने लगे, और वो चारो उसी गली से बाहर सड़क की ओर निकल भागे ।
पर मैं और गुड्डी दोनों जानते थे, खतरा अभी टला नहीं है। फिर गली खड़ंजे की थी और कहीं कहीं ईंटे निकले थे तो बाइक की स्पीड फिर कम करनी पड़ी और झुके झुके देखना और बाइक चलाना दोनों मुश्किल था।
थोड़ी देर में हमला दुबारा हुआ, पता नहीं वही थे या कुछ उनके साथी, लेकिन अबकी एक आधे गिरे हुए घर से,
मैंने बताया था न गली के मोड़ पे ही एकदम शुरू में एक सैय्यद चाचा का घर था जो टूट रहा था, बस उसी के छत पर से कुछ लोग छुपे थे
लेकिन कहते हैं न बचाने वाला मारने वाले से ज्यादा बड़ा होता है, हम लोगो को अबकी वार्निंग मिल गयी, वरना उन्हें ऊंचाई का और छुपने का अडवांटेज था
सामने वाली छत से कोई गुड्डी की सहेली की भाभी होंगी, ...चिल्लाई
" बचना "
क्या कोई शार्ट लेग का फील्डर कैच करेगा, मैंने दांयां हाथ बढाकर कैच किया, और उसी तरफ उछाल दिया, जिधर से आया था।
पता नहीं कोई देसी बम था या फिर एसिड का गुब्बारा, दूसरा जब तक आये तबतक एक बार फिर गुड्डी ने स्पीड भी बढ़ाई और बाइक को मोड़ा भी और वो बेअसर रहा।
लेकिन तबतक अगल बगल के मकानों से कुछ लोग निकल आये और टूटे मकान के छत पर छिपे लोग धड़ धड़ उतर कर पीछे किसी गली में,
लग रहा था, गली आगे से बंद है, लेकिन मुझे याद आया यहाँ एक शार्प टर्न था, और गुड्डी मुड़ी और तेजी से ब्रेक लगाते हुए, गुंजा से बोली,
अस्मा के यहाँ चलते हैं।
बिलकुल सही वक्त पर गुड्डी की सहेली काम आ गई. आते ही अस्मा की भाभी नूर से मज़ाक चालू हो गया. गजब अपडेट है. दंगाई आगे तो निकले और RAF ने वहां का मोर्चा संभाला. अब देखते है घर तक पहोचने मे और कितना वक्त लगेगा.अस्मा, जुबेदा
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गुड्डी की बाइक पांच मिनट से भी कम टाइम में अस्मा के घर के सामने रुकी, जहाँ लग रहा था, गली खतम हो रही है बस वहीँ एक शार्प मोड़ था और गुड्डी ने बिना स्पीड कम किये, बाइक मोड़ी और सीधे घर के सहन में।
बाइक रुकी और झटके से हम लोग उतरे और उसके साथ ही दरवाजा खुला।
पुराना घर था, कम से कम चार पांच पीढ़ी तो उसमे रह ही चुकी होंगी, बाहर के छोटी सी चारदीवारी, एक गेट जिसमे कोई गेट नहीं था, पक्का सहन, उसके बाद चौड़ा सा बरामदा, और उसमे एक तखत रखा था। बगल में कोई छोटा सा कमरा था जो लगता है बरसों से नहीं खुला था।
दरवाजा पहले की तरह दो पल्ले वाला, ऊँची सी चौखट, और लकड़ी का बहुत मोटा दरवाजा,
' दी जल्दी अंदर," वो गुड्डी का हाथ खींचता बोला, और साथ में मैं और गुंजा भी , और अंदर घुसते ही न सिर्फ उसने वो मोटा दरवाजा बंद कर दिया, बल्कि उसके पीछे एक लोहे की बड़ी सी रॉड थी, खूब मोटी सी, उसे भी लगा लिया और ऊपर नीचे दोनों ओर सिटकनी भी लगा दी।
नीचे एकदम सन्नाटा था, लग रहा था घर में कोई है ही नहीं। दो तीन कमरे, रसोई, नीचे थे और एक बड़ा सा आँगन, और उसके पार एक और बरामदा,।
बिना हम लोगो को पूछे वो बोला,
" सब लोग ऊपर हैं, गोल कमरे में, वहीँ चलिए। "
और दरवाजे के पीछे कुछ बड़ी बड़ी मजे खींच के लगाना लगा और मैं भी उसके साथ, पहले मेजें, फिर कुर्सियां
गुड्डी गुंजा को लेकर सीढ़ी से सीधे कमरे में और पीछे पीछे मैं भी, अस्मा और नूर भाभी को तो मैं सुबह गली में देख ही चुका लेकिन एक बड़ी उम्र की महिला थीं, अस्मा की माँ होंगी, बस उन्होंने कस के गुड्डी को अँकवार में बाँध लिया जैसे न जाने कितने दिन बाद बेटी घर आयी हो.
अस्मा, गुड्डी की सहेली, जो स्कूल में उससे एक साल सीनियर थी, १२वें में , गुंजा का हाथ कस के पकड़ के खड़ी थी जैसे उसे पूरा अहसास हो की गुंजा कहाँ कहाँ से गुजर के आ रही है।
बिना बोले बहुत कुछ कहा जा रहा था, लेकिन माहौल को हल्का किया अस्मा की भाभी, नूर भाभी ने, मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं, " क्यों क्या सोच रहे हैं , आप से कोई गले नहीं लग रहा है, मैं हूँ न " और वो मेरी ओर लपकी, और मैं पीछे की ओर दुबक गया। वो और अस्मा जोर से खिलखिलाने लगीं।
अस्मा की माँ और नूर भाभी की सास ने सवालिया निगाह से उनकी ओर देखा है जैसे पूछ रही हों, कौन है ये और नूर भाभी चालू हो गयीं, गुड्डी की ओर इशारा कर के,
" आप के दामाद और मेरे ननदोई हैं "
और अब वो भी खिलखिलाई, और अपनी बेटी को हड़काया, " अरे पहली बार घर आये हैं, तू भी न, जाके कुछ ला, अरे तूने सिवइयां बनायी थीं न , जा " और मुझसे बोलीं " बेटा बैठो, अरे ये सब न "
अस्मा सीढ़ी से नीचे धड़ धड़ चली गयी, जैसे लग रहा था सब सामान्य हो, लेकिन कमरा बता रहा था की कुछ भी सामान्य नहीं है।
सारी खिड़कियां बंद थीं, और उन पर मोटे मोटे परदे टंगे थे, जिससे अंदर की कोई आवाज बाहर न जाए।
सब लोग बहुत हलकी आवाज में बोल रहे थे, करीब करीब फुसफुसा कर, यहाँ तक की जब असमा नीचे गयी तो उसने उस कमरे का दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर दिया।
तभी एक लड़की आयी, गुड्डी की ही उम्र की, ( गुंजा ने बताया की वो अस्मा की चाचा की बेटी है, जुबेदा. पास के स्कूल में पढ़ती है , ११वें में )। बिना रुके वो बोलने लगी,
" छत पर से आ रही हूँ, बहुत गड़बड़ है। प्राची सिनेमा के पास छत से साफ़ दिख रहा था, १५ बीस लोग हैं , और पता नहीं कहा से बड़े बड़े पांच छह टायर ला के उसमें आग लगा दिए हैं और लाठी डंडा लिए हैं, जोर जोर से हल्ला कर रहे हैं।"
उधर से तो हम लोग भी आये थे और वहां पुलिस की एक टुकड़ी थी, मेरे समझ में नहीं आया। मैंने पूछ लिया " पुलिस नहीं हैं वहां "
" है, थोड़ी बहुत, लेकिन वो लोग कुछ किये नहीं, खुद ही गली में घुस गए और वो सब टायर के बाद एकाध ठेला वेला था उसे भी जला रहे हैं " वो घबड़ाहट भरी आवाज में बोली।
और मैं सिहर गया, दंगे की क्लासिक ट्रिक्स। टायर, देर तक जलता है, जल्दी बुझता नहीं और पुलिस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का रास्ता रोकने के काम में आता है। दूसरे पुलिस की बड़ी ट्रक और फायर ब्रिगेड गली में घुस भी नहीं सकते। और दंगाइयों को अपना काम करने का टाइम मिल जाता है। बोतलों में पेट्रोल बॉम्ब, हथगोले, ....और उस के जवाब में छतों से पत्थर,
और जो मैं सोच रहा था उस का जवाब भी जुबेदा ने दे दिया, " और वो जो चार लोग सैयद चचा के घर के ऊपर से, उन को भी लोग दौड़ाये थे लेकिन सब बच के भाग गए।
और मेरी सांस में सांस आयी , मुझे यही डर था की वो जब होली के हुरियारे बन कर तेज़ाब फेंके थे या बाद वाले, अगर कही पकडे गए , पीटे गए तो नैरेटिव ये बनेगा की फैलाने मोहल्ले में कुछ लड़कों ने होली का रंग फेंक दिया और इतना गुस्सा कीमोहल्ले वालों ने जरा जरा सा बच्चों को पकड़ कर पीट दिया
उसके बाद तो,
पर अगर माहौल और खराब हो गया, तो हम लोग निकल कैसे पाएंगे, लेकिन तब तक छत से वो लड़का, जिसने हमारे लिए दरवाजा खोला था
मुस्कराता हुआ आया और बोला, मजा आ गया मैं अभी देख के आ रहा हूँ छत से।
सब लोगों के कान उसकी ओर
" अरे एक ट्रक आयी पता नहीं कौन से पुलिस वाले थे, काही रंग के, "
जीशान की बात काटते मैं बोला, " आर ऍफ़ ( रैपिड ऐक्शन फ़ोर्स ) रही होगी "
" हाँ हाँ वही " मुस्करा के वो बोला, और जोड़ा, साथ में फायर ब्रिगेड वाले, एक दो नहीं चार ट्रक थीं और बजाय टायर की आग बुझाने के दंगे वाले पे ही पानी छोड़ दिए, वो पीछे मुड़े हटने की कोशिश की, गली में घुसने की तो वो काही वाले पहले से तैयार थे, क्या डंडे से सुताई की और वो जिधर जाते थे दो चार मिल जाते थे,वही आर ए ऍफ़ वाले और मार डंडे मार डंडे खुद उन सबो ने टायर हटाए और उन की ट्रक में बैठ गए। एक ट्रक में भर के सब को कहीं ले गए हैं। और वो फ़ोर्स वाले अब सब गलियों के सामने खड़े हैं। और उन का कोई अफसर है, दूकान वालों से बोल रहा है खोलने के लिए। "
मैंने भी चैन की सांस ली, लेकिन मुझे लगा की अभी तो आगे हम लोगों को और भी रास्ता तय करना है। अभी तो लग रहा है बाजी डीबी की ओर शिफ्ट हो गयी, लेकिन अगर कहीं गुंजा को कुछ हो गया तो नैरेटिव बदलते देर नहीं लगेगी, और हम लोगों को पांच दस मिनट में घर पहुंचना जरूरी है, लेकिन रास्ते में कोई और खतरा, "
तब तक अस्मा सेवइयां ले कर आ गयी और बोली, " अपने हाथ से खिला देती हूँ, आज तो आप सब को जल्दी है अगर टाइम मिलता तो बताती , "
गुंजा जो अब तक चुप थी चालू हो गयी, " सच में आपकी सहेली को भी जल्दी है, मुझे छोड़के दोनों लोगो को आजमग़ढ जाना है इसलिए और जल्दी है "
और जोर का घूंसा गुड्डी का गुंजा की पीठ पे पड़ा और वो चीख के बोली, " सच बोलने की सजा, " फिर नूर भाभी से बोली
" लेकिन भाभी, होली के बाद ये आएंगे और पूरे पांच दिन रहेंगे रंग पंचमी में, फिर आज का उधार चुकता कर लीजियेगा "
" ये तो तूने अच्छी खबर सुनाई " हंस के बोली पर जुबेदा अभी भी थोड़ा सीरियस थी और वो मुझसे बोली,
" लेकिन आप उस बाइक से तो जा नहीं सकते, जिस से आये हैं "
और मेरी चमकी, बात उसकी एकदम सही थी, कहीं से बाइक का नंबर दुष्टों को पता चल गया था और मेरी चमकी। सिद्द्की
नहीं गलती उनकी नहीं होगी, बस
दालमंडी में जब बाइक रुकी थी तब मैंने सिद्द्की को फोन कर के बाइक के डिटेल बताये थे और उसने पुलिस की वांस को हम लोगो की सिक्योरिटी के लिए बोला होगा, तभी कई जगह पुलिस की वान दिख रही थीं लेकिन उसी में से किसी ने लीक भी कर दिया होगा और अब जब दो बार हमला हो चुका है तो साफ़ है की बाइक अच्छी तरह पहचानी जा चुकी है, पर जाएंगे कैसे
और रास्ता भी जुबेदा ने निकाला, अस्मा और जीशान से उसने थोड़ी खुश्फुस की
और तय हुआ की हम सब पीछे से निकले, पैदल, पास में ही एक मकान खंडहर सा है, उस में से हो के बगल की गली में घुस सकते हैं , जीशान अपनी बाइक के साथ वहां मिलेगा और हम लोग उसी से
और वही हुआ,
गुड्डी का ये रास्ता जाना पहचाना था और थोड़ी देर में जब हम गुड्डी के मोहल्ले की गली में घुसी तो चैन की साँस ली
बाद में पता चला की जो बाइक हम लोगो ने अपनी अस्मा के घर के सामने छोड़ी थी, उस पर जीशान, जुबेदा और अस्मा गली से निकले, जिससे अगर कोई दूर से देख रहा हो तो उसे शक न हो और हम लोगो को बच निकलने का पूरा टाइम मिल जाए। वो लोग जहाँ गली ख़तम होती है, वहां तक आये।
थोड़ा लग रहा था टेंशन कम हो रहा था, सड़क की दुकाने तो बंद थीं, लेकिन गुड्डी की गली के मोड़ पर की कुछ दुकाने खुलने लगी थीं, दो चार लाग पान की दूकान पर नजर आ रहे थे, घरों के बाहर निकल कर बात कर रहे थे, और हम अपनी गली में आ गए थे तो हम तीनो ने हेलमेट का वाइजर खोल दिया था।
चंदा भाभी नीचे घर के बाहर ही खड़ी थीं।
Thanks so much, next part soon,Great going Komal ji. Bahut hi badhiya chal rahi hai story.
आपने एकदम सही कहा, सालियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है लेकिन ये वो सालिया हैं जिनकी जान आनंद बाबू ने बचाई, वो और उनकी सहेलियां। तो उन्होंने बिल पेश कर दिया और लगता है की असली हिसाब किताब जब वो होली के बाद आएंगे तो होगा।
Sometimes...Slow and steady wins the race madam!!!Bas agale hafte, ab thode thode readers aane lage hain aur comment bhi to main next part likh rhi hun, almost complete hain, next week men pakka
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Thanks so much