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फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६
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Great going Komal ji. Bahut hi badhiya chal rahi hai story.अस्मा, जुबेदा
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गुड्डी की बाइक पांच मिनट से भी कम टाइम में अस्मा के घर के सामने रुकी, जहाँ लग रहा था, गली खतम हो रही है बस वहीँ एक शार्प मोड़ था और गुड्डी ने बिना स्पीड कम किये, बाइक मोड़ी और सीधे घर के सहन में।
बाइक रुकी और झटके से हम लोग उतरे और उसके साथ ही दरवाजा खुला।
पुराना घर था, कम से कम चार पांच पीढ़ी तो उसमे रह ही चुकी होंगी, बाहर के छोटी सी चारदीवारी, एक गेट जिसमे कोई गेट नहीं था, पक्का सहन, उसके बाद चौड़ा सा बरामदा, और उसमे एक तखत रखा था। बगल में कोई छोटा सा कमरा था जो लगता है बरसों से नहीं खुला था।
दरवाजा पहले की तरह दो पल्ले वाला, ऊँची सी चौखट, और लकड़ी का बहुत मोटा दरवाजा,
' दी जल्दी अंदर," वो गुड्डी का हाथ खींचता बोला, और साथ में मैं और गुंजा भी , और अंदर घुसते ही न सिर्फ उसने वो मोटा दरवाजा बंद कर दिया, बल्कि उसके पीछे एक लोहे की बड़ी सी रॉड थी, खूब मोटी सी, उसे भी लगा लिया और ऊपर नीचे दोनों ओर सिटकनी भी लगा दी।
नीचे एकदम सन्नाटा था, लग रहा था घर में कोई है ही नहीं। दो तीन कमरे, रसोई, नीचे थे और एक बड़ा सा आँगन, और उसके पार एक और बरामदा,।
बिना हम लोगो को पूछे वो बोला,
" सब लोग ऊपर हैं, गोल कमरे में, वहीँ चलिए। "
और दरवाजे के पीछे कुछ बड़ी बड़ी मजे खींच के लगाना लगा और मैं भी उसके साथ, पहले मेजें, फिर कुर्सियां
गुड्डी गुंजा को लेकर सीढ़ी से सीधे कमरे में और पीछे पीछे मैं भी, अस्मा और नूर भाभी को तो मैं सुबह गली में देख ही चुका लेकिन एक बड़ी उम्र की महिला थीं, अस्मा की माँ होंगी, बस उन्होंने कस के गुड्डी को अँकवार में बाँध लिया जैसे न जाने कितने दिन बाद बेटी घर आयी हो.
अस्मा, गुड्डी की सहेली, जो स्कूल में उससे एक साल सीनियर थी, १२वें में , गुंजा का हाथ कस के पकड़ के खड़ी थी जैसे उसे पूरा अहसास हो की गुंजा कहाँ कहाँ से गुजर के आ रही है।
बिना बोले बहुत कुछ कहा जा रहा था, लेकिन माहौल को हल्का किया अस्मा की भाभी, नूर भाभी ने, मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं, " क्यों क्या सोच रहे हैं , आप से कोई गले नहीं लग रहा है, मैं हूँ न " और वो मेरी ओर लपकी, और मैं पीछे की ओर दुबक गया। वो और अस्मा जोर से खिलखिलाने लगीं।
अस्मा की माँ और नूर भाभी की सास ने सवालिया निगाह से उनकी ओर देखा है जैसे पूछ रही हों, कौन है ये और नूर भाभी चालू हो गयीं, गुड्डी की ओर इशारा कर के,
" आप के दामाद और मेरे ननदोई हैं "
और अब वो भी खिलखिलाई, और अपनी बेटी को हड़काया, " अरे पहली बार घर आये हैं, तू भी न, जाके कुछ ला, अरे तूने सिवइयां बनायी थीं न , जा " और मुझसे बोलीं " बेटा बैठो, अरे ये सब न "
अस्मा सीढ़ी से नीचे धड़ धड़ चली गयी, जैसे लग रहा था सब सामान्य हो, लेकिन कमरा बता रहा था की कुछ भी सामान्य नहीं है।
सारी खिड़कियां बंद थीं, और उन पर मोटे मोटे परदे टंगे थे, जिससे अंदर की कोई आवाज बाहर न जाए।
सब लोग बहुत हलकी आवाज में बोल रहे थे, करीब करीब फुसफुसा कर, यहाँ तक की जब असमा नीचे गयी तो उसने उस कमरे का दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर दिया।
तभी एक लड़की आयी, गुड्डी की ही उम्र की, ( गुंजा ने बताया की वो अस्मा की चाचा की बेटी है, जुबेदा. पास के स्कूल में पढ़ती है , ११वें में )। बिना रुके वो बोलने लगी,
" छत पर से आ रही हूँ, बहुत गड़बड़ है। प्राची सिनेमा के पास छत से साफ़ दिख रहा था, १५ बीस लोग हैं , और पता नहीं कहा से बड़े बड़े पांच छह टायर ला के उसमें आग लगा दिए हैं और लाठी डंडा लिए हैं, जोर जोर से हल्ला कर रहे हैं।"
उधर से तो हम लोग भी आये थे और वहां पुलिस की एक टुकड़ी थी, मेरे समझ में नहीं आया। मैंने पूछ लिया " पुलिस नहीं हैं वहां "
" है, थोड़ी बहुत, लेकिन वो लोग कुछ किये नहीं, खुद ही गली में घुस गए और वो सब टायर के बाद एकाध ठेला वेला था उसे भी जला रहे हैं " वो घबड़ाहट भरी आवाज में बोली।
और मैं सिहर गया, दंगे की क्लासिक ट्रिक्स। टायर, देर तक जलता है, जल्दी बुझता नहीं और पुलिस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का रास्ता रोकने के काम में आता है। दूसरे पुलिस की बड़ी ट्रक और फायर ब्रिगेड गली में घुस भी नहीं सकते। और दंगाइयों को अपना काम करने का टाइम मिल जाता है। बोतलों में पेट्रोल बॉम्ब, हथगोले, ....और उस के जवाब में छतों से पत्थर,
और जो मैं सोच रहा था उस का जवाब भी जुबेदा ने दे दिया, " और वो जो चार लोग सैयद चचा के घर के ऊपर से, उन को भी लोग दौड़ाये थे लेकिन सब बच के भाग गए।
और मेरी सांस में सांस आयी , मुझे यही डर था की वो जब होली के हुरियारे बन कर तेज़ाब फेंके थे या बाद वाले, अगर कही पकडे गए , पीटे गए तो नैरेटिव ये बनेगा की फैलाने मोहल्ले में कुछ लड़कों ने होली का रंग फेंक दिया और इतना गुस्सा कीमोहल्ले वालों ने जरा जरा सा बच्चों को पकड़ कर पीट दिया
उसके बाद तो,
पर अगर माहौल और खराब हो गया, तो हम लोग निकल कैसे पाएंगे, लेकिन तब तक छत से वो लड़का, जिसने हमारे लिए दरवाजा खोला था
मुस्कराता हुआ आया और बोला, मजा आ गया मैं अभी देख के आ रहा हूँ छत से।
सब लोगों के कान उसकी ओर
" अरे एक ट्रक आयी पता नहीं कौन से पुलिस वाले थे, काही रंग के, "
जीशान की बात काटते मैं बोला, " आर ऍफ़ ( रैपिड ऐक्शन फ़ोर्स ) रही होगी "
" हाँ हाँ वही " मुस्करा के वो बोला, और जोड़ा, साथ में फायर ब्रिगेड वाले, एक दो नहीं चार ट्रक थीं और बजाय टायर की आग बुझाने के दंगे वाले पे ही पानी छोड़ दिए, वो पीछे मुड़े हटने की कोशिश की, गली में घुसने की तो वो काही वाले पहले से तैयार थे, क्या डंडे से सुताई की और वो जिधर जाते थे दो चार मिल जाते थे,वही आर ए ऍफ़ वाले और मार डंडे मार डंडे खुद उन सबो ने टायर हटाए और उन की ट्रक में बैठ गए। एक ट्रक में भर के सब को कहीं ले गए हैं। और वो फ़ोर्स वाले अब सब गलियों के सामने खड़े हैं। और उन का कोई अफसर है, दूकान वालों से बोल रहा है खोलने के लिए। "
मैंने भी चैन की सांस ली, लेकिन मुझे लगा की अभी तो आगे हम लोगों को और भी रास्ता तय करना है। अभी तो लग रहा है बाजी डीबी की ओर शिफ्ट हो गयी, लेकिन अगर कहीं गुंजा को कुछ हो गया तो नैरेटिव बदलते देर नहीं लगेगी, और हम लोगों को पांच दस मिनट में घर पहुंचना जरूरी है, लेकिन रास्ते में कोई और खतरा, "
तब तक अस्मा सेवइयां ले कर आ गयी और बोली, " अपने हाथ से खिला देती हूँ, आज तो आप सब को जल्दी है अगर टाइम मिलता तो बताती , "
गुंजा जो अब तक चुप थी चालू हो गयी, " सच में आपकी सहेली को भी जल्दी है, मुझे छोड़के दोनों लोगो को आजमग़ढ जाना है इसलिए और जल्दी है "
और जोर का घूंसा गुड्डी का गुंजा की पीठ पे पड़ा और वो चीख के बोली, " सच बोलने की सजा, " फिर नूर भाभी से बोली
" लेकिन भाभी, होली के बाद ये आएंगे और पूरे पांच दिन रहेंगे रंग पंचमी में, फिर आज का उधार चुकता कर लीजियेगा "
" ये तो तूने अच्छी खबर सुनाई " हंस के बोली पर जुबेदा अभी भी थोड़ा सीरियस थी और वो मुझसे बोली,
" लेकिन आप उस बाइक से तो जा नहीं सकते, जिस से आये हैं "
और मेरी चमकी, बात उसकी एकदम सही थी, कहीं से बाइक का नंबर दुष्टों को पता चल गया था और मेरी चमकी। सिद्द्की
नहीं गलती उनकी नहीं होगी, बस
दालमंडी में जब बाइक रुकी थी तब मैंने सिद्द्की को फोन कर के बाइक के डिटेल बताये थे और उसने पुलिस की वांस को हम लोगो की सिक्योरिटी के लिए बोला होगा, तभी कई जगह पुलिस की वान दिख रही थीं लेकिन उसी में से किसी ने लीक भी कर दिया होगा और अब जब दो बार हमला हो चुका है तो साफ़ है की बाइक अच्छी तरह पहचानी जा चुकी है, पर जाएंगे कैसे
और रास्ता भी जुबेदा ने निकाला, अस्मा और जीशान से उसने थोड़ी खुश्फुस की
और तय हुआ की हम सब पीछे से निकले, पैदल, पास में ही एक मकान खंडहर सा है, उस में से हो के बगल की गली में घुस सकते हैं , जीशान अपनी बाइक के साथ वहां मिलेगा और हम लोग उसी से
और वही हुआ,
गुड्डी का ये रास्ता जाना पहचाना था और थोड़ी देर में जब हम गुड्डी के मोहल्ले की गली में घुसी तो चैन की साँस ली
बाद में पता चला की जो बाइक हम लोगो ने अपनी अस्मा के घर के सामने छोड़ी थी, उस पर जीशान, जुबेदा और अस्मा गली से निकले, जिससे अगर कोई दूर से देख रहा हो तो उसे शक न हो और हम लोगो को बच निकलने का पूरा टाइम मिल जाए। वो लोग जहाँ गली ख़तम होती है, वहां तक आये।
थोड़ा लग रहा था टेंशन कम हो रहा था, सड़क की दुकाने तो बंद थीं, लेकिन गुड्डी की गली के मोड़ पर की कुछ दुकाने खुलने लगी थीं, दो चार लाग पान की दूकान पर नजर आ रहे थे, घरों के बाहर निकल कर बात कर रहे थे, और हम अपनी गली में आ गए थे तो हम तीनो ने हेलमेट का वाइजर खोल दिया था।
चंदा भाभी नीचे घर के बाहर ही खड़ी थीं।
मंजरा तो अभी भी समझ के बहार है. लगता है डी बी साहब मामला अभी भी सेंटर तक नहीं जाना चाहते है. और cm साहब तो लड़कियों का मामला ही दबा रहे है. आगे देखते है.डीबी और चीफ मिनिस्टर
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और तभी डीबी कमरे में आ गए, उनके चेहरे पे भयानक टेंशन था, एकदम परेशान लग रहे थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने गुड्डी के साथ तीनों लड़कियों को देखा, एकदम से टेंशन कम हो गया, चेहरे पर ख़ुशी आ गयी, और मैं कुछ बोलता उसके पहले ही उन्होंने हाथ के इशारे से चुप रहने का इशारा किया। एक खिड़की उन्होंने देखा थोड़ी सी खुली थी और एक दरवाजा जिधर से वो आये थे, वो आधा खुला रह गया था,
उन्होंने मुझे इशारा किया, लेकिन मैं कुछ समझता, कुछ कर पाता, गुड्डी ने पहले तो खिड़की बंद कर दी, फिर उस पर पर्दा खींच दिया और गुंजा और उसकी सहेलियों को इशारा किया तो वो भी एकदम दीवार के सहारे, एकदम इस तरह की वो किसी ओर से नहीं दिखतीं,
मैंने दरवाजा बंद कर दिया और डीबी ने अपनी जेब से फोन निकाल लिया, और कोई नंबर लगाया,
एक बार फिर से वो टेन्स लग रहे थे। लेकिन निगाह उनकी एकदम गुड्डी के अगल बगल खड़ी गुंजा और उसकी दोनों सहेलियों पर घूम रही थी ,
लगता है फोन लग गया, लेकिन फोन स्पीकर पर था, डीबी बोले, " सर का मेसेज था बात करने के लिए "
" हाँ, बस लगाता हूँ, आप लाइन पर रहिएगा " उधर से आवाज आयी और डीबी ने इशारे से मुझे एकदम चुप रहने को कहा, वो लड़कियां भी हल्की सी टेन्स, गुड्डी के आसपास
और उधर से आवाज जो आयी, एकदम रिलैक्स, कम्फर्टेबल और जिसको मैं सपने में भी पहचान सकता था, कितनी बार तो टीवी पर सुन चूका था, चीफ मिनिस्टर खुद थे, पहला सवाल उन्होंने डीबी से एक शब्द में किया, और उस शब्द में भी चिंता झलक रही थी
" लड़कियां, "
" सर, मिल गयीं हैं, एकदम सेफ हैं, तीनो ही सेफ और सिक्योर हैं, " डीबी की निगाह गुंजा और उसकी दोनों सहेलियों पर चिपकी थी
" मिडिया, वीडिया या कोई " उधर से सी एम् का दूसरा सवाल आया,
" नहीं सर, मिडिया, को कुछ पता नहीं है, वो एकदम सेफ हैं " डीबी ने जवाब दिया और फिर अपनी परेशनी बताई,
" वो एस टीएफ, वाले "
लेकिन सीएम ने उनकी बात काट दी और हलके से खिलखिलाये,
" अरे तुम्हे कब से फोटो खिंचवाने का शौक हो गया, थोड़ा लाइम लाइट में रहने दो उनको और उसी बहाने से छोटे साहब भी, तुम एक काम करो, एक बड़ी जबरदस्त सी उनकी प्रेस कांफ्रेंस करवा दो, मिडिया वालों को लगा दो, आधे पौन घण्टे में, और आधे घंटे तक तो चलेगी ही, तो बस शाम को वो सब लखनऊ आ जायेगे, नेशनल चैनेल्स के टाक टाइम तक, "
लेकिन मैंने अंदाज लगा लिया था की डीबी की परेशानी क्या थी, वो चुम्मन और रजऊ का पोजेशन चाहते थे, उनसे पूछताछ के लिए। रजऊ से तो कुछ खास नहीं पता चलता लेकिन चुम्मन से शायद कुछ और काम की बात निकल पाती, दूसरे आज कल जो रेपुटेशन थी, कहीं एनकाउंटर में वो दोनों निपट गए तो फिर सब मामला दबा रह जाएगा,
डीबी ने यही बात साफ़ करने की कोशिश की लेकिन इतना अंदाजा तो था सीएम को भी बिना बताये, डीबी को उन्होंने रोक दिया और बोले,
" चिंता मत करो, थोड़ा दो दिन उन लोगों को फोटो वोटो खिंचवा लेने दो, तुम्हारे पास दो दिन में दोनों पहुँच जाएंगे, अगर सेंट्रल एजेंसी वाले नहीं कूदे तो, और हाँ गाडी पलटेगी भी नहीं ये मैं बोल देता हूँ , और कुछ, "
डीबी ने जैसे पहले से सोच रखा हो क्या क्या हेल्प मांगनी है, तुरंत बोले, " कुछ लोग जमालो टाइप, आंच सेंकने की कोशिश में हैं और कुछ मीडिया वाले भी "
एक बार फिर सीएम ने बात काट दी और बोले,
" लोकल वालों को तुम सम्हाल ही लोगे, बाकी मैं डायरेक्टर इंफॉरमशन को बोल देता हैं, वो जानता है किसकी पूँछ कहा दबती है, और मैं यहां पार्टी में भी लगाता हूँ कुछ लोगों को, लेकिन तुम जानते हो यहाँ भी हर तरह के लोग हैं, और, फ़ोर्स की ज्यादा जरूरत तो नहीं, मैं एड़ीजी साहेब को बोल दूँ , कुछ और पी ए सी, "
लेकिन अबकी बात काटने की बारी डीबी की थी,
" नहीं नहीं पी ए सी की जरूरत नहीं है , यहाँ रामनगर वाली बारहवीं वाहनी है न, उसे बुला लिया था , हाँ दो बटालियन आर ए ऍफ़, एक बार आप होम सेक्रेट्ररी से बोल दीजियेगा, सेंटर से बात कर लेंगे "
" ठीक है लेकिन बस तुम एक बात पर ध्यान दो, वो तीनो लड़कियां, बहुत ट्रॉमेटाइज्ड होंगी, तो जल्दी से जल्दी अपने घर पहुँच जाए, मिडिया से तो दूर रखना ही और कोई एजेंसी वाले, पूछताछ के नाम पे तो साफ़ मना कर देना नाम बताने से, बल्कि तुम्हे भी नाम जानने की जरूरोर्ट नहीं है, उन्हें जल्द से जल्द घर रवाना कर दो, घर वाले परेशान होंगे, ये काम अच्छा हो गया, बाकी सब तो राज काज है चलता रहता है "
और डीबी ने भी जयहिंद कह के फोन जेब में रख लिया और एक बार फिर से गुंजा और उसकी सहेलियों की ओर देखा, फिर गुड्डी की ओर जैसे सब क्रेडिट गुड्डी की ही है, और वो कुछ बोलते उसके पहले बगल वाले कमरे से आवाज आयी,
सर एक मिनट,
और डीबी ने इशारे से मुझे बुलाया और साथ में मैं भी उसी दरवाजे से कंट्रोल रूम में, जहाँ अभी भी काफी पुलिस के और सिवल आफिसर्स बैठे थे,
मैंने उस दरवाजे को बंद कर दिया जो उस कमरे में खुलता था जहाँ गुंजा, शाजिया और महक थीं।
हर किसी को नाम का टेंशन है. तार कहा से कहा जुड़ेंगे कुछ नहीं पता. चम्बान और दूसरा भी जिन्दा ही बरामद है. वो जब मुँह खोलेगा तब. पर कौन समर्थक है और कौन काम बिगड़ने वाला यह बाद मे ही पता चलेगा. इन सब मे लड़कियों की छुट्टिया बढ़वा ली.निज़ाम, टेंशन और परेशानियां,
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मैं बस खड़ा देख रहा था, एक साथ इतने लोग बात कर रहे थे, इतने फोन बज रहे थे और डीबी एकदम आर्केस्ट्रा के कंडकटर की तरह,
मुझे तो लगा की अब सभी लोग रिलैक्स होंगे,
गुंजा, शाजिया और महक बच गयीं,
दोनों दुष्ट पकडे भी गए और एस टी ऍफ़ वाले उन्हें बोरे में बंद करके ले भी गए,
अब तो सब लोग रिलैक्स होंगे, एक दूसरे की तारीफ़ कर रहे होंगे, और समोसे खा रहे होंगे, लेकिन यहाँ तो टेंशन ही टेंशन अभी तक था, और अब उन लड़कियों को लोगो ने भुला भी दिया था, कुछ अलग तरह की प्रॉब्लम्स चल रही थीं, और अब मुझे लगा पुलिस प्रशासन सिर्फ चोर सिपाही का खेल ही नहीं होता और एक आई पी एस अफसर को सिर्फ सिंघम नहीं होना होता।
एक तरह से मेरी भी असली ट्रेनिंग हो रही थी।
किसी ने एक फोन पकड़ा दिया, डीबी को, सांसद महोदय का फोन है, वही चू दे विद्यालय के बारे में, और डीबी ने स्पीकर फोन ऑन कर के बात शुरू कर दी,
" नमस्कार सर कैसे हैं आप,"
" मैं तो बढ़िया हूँ और टीवी देख रहा हूँ, बड़ी कुशलता से आप ने उन दुष्टों को पकड़ा और लड़कियों को बचाया, आपकी तो मैं हमेशा ताइर्फ करता हूँ, सीएम साहेब से मैंने कहा भी की बनारस के लिए असली कप्तान तो अब आया है , बस एक छोटी सी रिक्वेस्ट है, वो लड़कयों वाला स्कूल, अब बेचारे मैनेजेमेंट की कोई गलती तो है नहीं, लेकिन उन का फोन आया था, सुना है आप लोग स्कूल बंद करा रहे हैं , बेचारी लड़कयों का क्या होगा । उनके मालिक आप से मिलना चाहिते हैं , बाहर वेट कर रहे हैं , आप जो भी करेंगे ठीक ही होगा। अब वो हमारी पार्टी के सपोर्टर भी हैं, बस अब आप देख लीजियेगा "
यह कह के फोन उन्होंने रख दिया और डीबी ने किसी से बोला, " वो पी डबलू डी के एक्स इन साहेब आये होंगे जरा उनको और स्कूल वाले होंगे उनको "
और मुझे समझ में आयी बात। बॉम्ब से स्कूल में डैमेज हुआ है तो उसकी स्ट्रेंथ, स्ट्रक्चलरल ताकत चेक करनी होगी और जो भी रिपयेर करना हो उसके लिए वो इंजिनियर साहेब आये हैं, वो स्कूल वालों को गाइड करेंगे
और एडमिनिस्ट्रेशन ने स्कूल बंद करने का कोई हुकुम दे दिया होगा, लेकिन मान गया मैं डीबी साहेब को,
एकदम शहद, और जो स्कूल के मालिक थे, कोई झुनझुनवाला, नाम बताया था उन्होंने पूरा, और डीबी के साथ मुझे भी नमस्कार किया लेकिन डीबी ने पहले तो उन्हें कुर्सी ऑफर की और बहुत बधाई दी,
" आप लोग तो बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, आते जाते मैं देखता था आपके स्कूल के, कन्या शिक्षा के मामले में इतनी बड़ी आपने पहल की, और पढ़ाई वढ़ाई तो ये कान्वेंट वाले भी करवा देते हैं, रो पीट के, लेकिन आपके चू दे कन्या विद्यालय में शुद्ध भारतीय संस्कार जो दिए जाते हैं वो कहाँ मिलेंगे, और कितनी बहादुर हैं आपकी लड़कियां, और कितनी संस्कारी, "
मैं सुन रहा था, मुस्करा रहा था, मन ही मन और कुढ़ भी रहा था, चार नमूने तो मैं देख चुका था, एक अकेली काफी है किसी लड़के की ऐसी की तैसी करने के लिए, स्साले चुम्मन की मति मारी गयी थी,
लेकिन वो स्कूल वाले, वो भी कम नहीं थे, डीबी के आगे झुके जा रहे थे, और बीच बीच में मेरी ओर भी देखते की मैं शायद डीबी का ख़ास होऊं और उनकी हेल्प कर दूँ,
" हुजूर की कृपा है, हुक्मरानों की तो कृपादृष्टि हरदम से रही है, बस एक बात कहनी है आप से "
" अरे आप हुकुम दें, आप अपनी प्रिंसिपल या किसी टीचर को भेज देते, आप ने खुद जहमत फ़रमाई, और देखिये बेचारे एक्जीक्यूटिव इंजिनियर साहेब खुद आपका नक्शा और ये सब ले के पहले से खड़े हैं , ये आप से अभी या जब आप को फुर्सत हो तो डिटेल में बात कर लेंगे,
असल में बॉम्ब जो फूटा है, था तगड़ा, तो हर कमरे की जांच पड़ताल होगी, अब स्कूल आपने शुरू कर दिया तो कहीं कोई दीवाल, कमरा गिर पड़े, बेचारी लड़कियों को चोट लग जाए तो आपकी भी बदनामी और प्रशासन की भी, है न तो और आप आये हैं तो एम् पी साहेब का भी फोन आया था, आपकी बड़ी तारीफ़ कर रहे थे, तो बस पन्दरह दिन, और चलिए हम अपनी ओर से स्कूल नहीं बंद करेंगे आप खुद होली की छुट्टी, कब तक है ये होली की छुट्टी,
" पांच दिन की, बस आज से बंद हो गया है " स्कूल मालिक साहेब बोले,
" अरे मैंने सुना है की बनारस में तो रंगपंचमी भी जबरदस्त होती है, पांच दिन होली के बाद तक तो, फिर रंग खेलने के बाद आराम करना, कपडे धुलने के लिए भी तो, बस ऐसा करिये आप की होली की छुट्टी दस दिन बढ़ा के पन्दरह दिन कर दीजिये, सिंपल और आप के यहां तो अभी बोर्ड का सेंटर भी नहीं है, सिर्फ नौ और ग्यारह वालियों की बात है तो बस, एक थोड़ी लम्बी छुट्टी कर दीजिये और उसी बीच, ऊपर वाले जो कमरे डैमेज हुए हैं उन्हें रिपयेर कर देंगे, इंजीनयर साहेब आपको समझा देंगे,
वो कुछ बोलते उसके पहले इंजिनियर साहेब चढ़ गए,
" देखिये मैं प्लान लाया हूँ, सैंक्शन प्लान और आप के बनाये इलाके में बहुत फरक है और ये जो चाय की पान की दुकाने और बाकी सब आस पास है वो भी तो स्कूल की जमीन पर ही है, "
अब मालिक साहेब थोड़ा नरम पड़े, लेकिन डीबी मामला जल्दी ख़तम करना चाहते थे, यहाँ पर और भी बहुत से तमाशे चल रहे थे
डीबी ने अब इंजिनियर साहेब का ईगो मसाज किया, " अरे साहेब आप टेक्नीकल एक्सपर्ट है, आप समझा दीजिये, बस एक बार असेसमेंट कर लीजिये, कोई आपका जानने वाला कांट्रेक्टर है उसे लगा दीजियेगा, पंद्रह दिन में जो ज्यादा गड़बड़ हो उसे ठीक करा देंगे, बाकी ऊपर वाला पार्ट बंद कर देंगे, आखिर दसवीं और बारहवीं का क्लास तो अभी लगेगा नहीं और जो आपका मास्टर प्लान होगा तो गर्मी की छुटियों में, और इस बार गर्मी की छुट्टी थोड़ी लम्बी कर दीजियेगा और क्या। "
फिर वो मालिक साहेब से बोले, " बस, हम कोई नोटिस नहीं देंगे, बस आप थोड़ा होली की लम्बी छुट्टी, और बाकी काम गरमी की छूती में और एक बार आपके ये सब काम हो गए न तो मैं शिक्षा अधिकारी से कहूंगा, अगले साल से आपके स्कूल में हाईस्कूल और इंटर के बोर्ड का डेंटर बल्कि होम सेंटर, क्यों लड़कियां दूसरे स्कूल में जाएँ और फिर कोतवाली के इतना पास भी है तो पुलिस की भी रिकमेंडेशन रहेगी, एकदम ट्रांग बस अभी आप चलिए और आगे से बस आप फोन घुमा दीजियेगा, मैं आपने परसनल नंबर आपको दे दे रहा हूँ और एक बार आपका स्कूल खुलेगा तो मैं खुद आऊंगा, लड़कियों और टीचर्स को बधाई देने।
मैं देख रहा था उन्होंने कैसे निपटाया, एम् पी भी खुश, स्कूल वाले भी इम्प्रेस और सबसे ज्यादा मेरी सालियाँ खुश होंगी, स्कूल की छुट्टी बढ़ने से और अगले साल से होम एक्जाम से, गूंजा और उसकी सहेलियां दसवें में होंगी।
होम एग्जाम मतलब, नकल की सस्ती, टिकाऊ और विश्वासप्रद सुविधा,
लेकिन चार लोग डीबी से बात करने के लिए बेताब थे, पहले ने एसटीएफ के बारे में बताया,
" सर वो एसटीएफ वाले नदेसर कोठी में, सर्किट हाउस में हैं और उनका प्लेन शाम ६ बजे के लिए क्लियर है तो करीब तीन चार घण्टे रहेंगे '
और डीबी की निगाह एक यंग लड़के की तरह आफिसर की ओर घूमी,
"सेन यार ये झंझटिया काम तेरे ही बस का है। इन एस टी ऍफ़ वालों की एक जबरदस्त प्रेस कांफ्रेंस करवा दो तो हम सब यहाँ मिडिया मुक्त होकर चैन से समोसे खाएं।"
बाद में पता चला की सेन मुझसे दो साल सीनियर, आई ए एस, पहली पोस्टिंग थी, बनारस में सिटी मजिस्ट्रेट, प्रेसिडेंसी कालेज के पढ़े
सेन ने फिर एक साथ फोन घुमाना और दो चार लोगों से बात करना शुरू किया, और डीबी ने किसी को बोला, सुनो वो सीओ, वीआईपी को बोलै देना, जरा रेडिसन वालों को बोल देंगे, उनका खाना बढ़िया है, सर्किट हाउस में खाने का इंतजाम के साथ प्रेस कांफ्रेंस के बाद चाय वाय का जुगाड़ भी बढ़िया कर देंगे
और एक किसी दरोगा को बोला, " सुनो, ये बाहर जितने मिडिया वाले हैं इनको नदेसर कोठी की ओर हाँक दो, कोई इधर नजर न आये और जो लोकल चैनल वाले मालिक लोग हैं उनको भी खबर कर दो, की वाहियात सवाल नहीं पूछेंगे, कववरेज बढ़िया हो।
लेकिन काम कम नहीं हो रहा था।
' बैरकेडिंग हटा दें "
" स्कूल के आस पास से अभी नहीं, दो बैरिकेड १०० और २५० मीटर पर "
" एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड का क्या करना है "
" पुलिस का डिप्लायमेंट, ये पी ए सी रामनगर से आयी थी, वापस करना है, और रैपिड ऐक्शन फ़ोर्स "
" नहीं नहीं वापस नहीं करना है, कामंडेण्ट साहेब से बात कराओ और आर ए ऍफ़ वाले भी, सिद्दीकी एक रफ प्लान बना के दिखाओ "
कई काम एक साथ चल रह थे लेकिन मेरी निगाहें टीवी पर लगी थीं, एक लोकल चैनल लगा था, जो बार बार चीख रहा था
' क्या हुआ लड़कियों के साथ, कौन है जो हमारी होली में आग लगा रहा है। पुलिस ने अभी तक लड़कियों को मिडिया के सामने क्यों नहीं पेश किया। कुछ तो है, दाल में काला है या पूरी दाल काली है। "
दूसरा चैनल भी अब आग में घी नहीं पेट्रोल डाल रहा था, एक आतंकवादी क्या मदनपुरा का है ? " क्या इन्ही बस्तियों में आतंकवादी पालते हैं हमे ही जवाब देना होगा कौन है आपके पड़ोस में जो आपके त्यौहार को बर्बाद कर रहा है।
और थोड़ी देर में कुछ और चैनल पे भी गरमी बढ़ रही थी, फिर पहले वाले के नीचे एक रनर आने लगा, मदनपुरा में टेंसन, शहर में तबाव
दूसरे वाले चैनल ने और चरस बोया, पूरे शहर में तनाव, अफवाहों का बाजार गर्म, अगर इस घटना के बारे में किसी को भी खबर मिले हमें तुरंत बताएं डीबी की भी निगाह इसी बीच टीवी चॅनेल पर पड़ी, और वो किसी से बोले, " जरा एल आई यू ( लोकल इंटेलिजेंस )वाले इंस्पेकटर साहेब को बुलाओ। और उन के आते ही डीबी कुछ पूछ पाते, उस ने खुद बोला, " थोड़ा थोड़ा टेंशन बढ़ रहा है मदनपुरा, सोनारपुरा, कबीरचौरा इलाके में कुछ ज्यादा प्रेशर है "
सीओ अरिमर्दन सिंह बोले, " सर इंटरनेट बंद करवा दें "
" अभी नहीं " डीबी बोले " और टेंशन बढ़ेगा, और फिर धुंआ देखकर ये तो पता चलेगा की आग कहाँ लग रही है कौन लगा रहा है, ज़रा सायबर सिक्योरटी वालों से बात कराओ "
और उन को डीबी ने कुछ इंस्ट्रक्शन दिए, फिर सिद्द्की को बुला के कुछ स्पेशल कमांडो का डिप्लायमेंट, फायर ब्रिगेड का और एम्बुलेंस का और फिर उस यंग आई ए इस अफसर को बुलाया,
" यार सेन, अब तेरी अक्ल के इम्तहान का टाइम है, ज़रा ये पीस कमेटी वालों से बात करना "
" उनकी मीटिंग बुलानी है क्या " सेन ने पूछा।
" नहीं नहीं मीटिंग से ही लोगो को लगेगा टेंशन है , बस सबको अश्योर करो और पता करो जो भी रयूमर हो सही , गलत सीधे तुझे फोन करें वो लोग, जरा पोटेंशियल ट्रबल स्पॉट का अंदाजा रहे " डीबी ने समझाया,
" करता हूँ, लेकिन ये स्साले चैनल वाले न " सेन ने टीवी देखते हुए बोला,
" करता हूँ इसका भी इलाज, यार जरा डायरेक्टर इन्फॉर्मेशन को फोन लगाना " अपना मोबाइल उन्होंने किसी को दिया और डायरेक्टर इन्फॉम्रेशन के फोन पर आते ही मोबायल लेकर वो कमरे के दूसरे कोने में जहाँ वो दरवाजा था जिधर गुड्डी, गुंजा महक और शाजिया थीं उधर आ गए।
" ये जरा चैनल वालों का कुछ करो " डीबी ने बोला
" कौन कौन ज्यादा उछल रहे हैं, लोकल को तो आप टैकल कर ही लेंगे बाकी को मैं देखता हूँ यहाँ से लेकिन उन्हें कुछ और मसाले वाली खबर देनी होगी न " उधर से डायरेक्टर इन्फो फोन पर थे।
डीबी ने कुछ नाम बताये, और सजेस्ट किया की एसटीएफ की प्रेस कांफ्रेंस को कवर कर सकते हैं अच्छे से, फिर असली परेशानी बताई,
" ये बनारस लोकल नेटवर्क वाला, इसका तो बंदा लखनऊ में बैठता है ये जयादा आग लगा रहा है "
" आपको तो मालूम है वो छोटे साहेब की रखैल का है, हाँ ऊपर से जो देखता है वो लखनऊ में है लेकिन वो भी छोटे साहेब का ख़ास है ' उधर से आवाज आयी
अबतक मैं समझ गया था, छोटे साहेब मतलब डिप्टी होम मिनिस्टर, १०-१२ एम् एल ए उनके ख़ास है इसलिए ये पोस्ट उन्हें मिल गयी पर होम मिनिस्टर से उनकी नहीं पटती और होम मीनिस्टर चीफ मिनिस्टर के नजदीक है, तो ये छोटे साहेब दोनों की जड़ खोदने में लगे रहते हैं। पर केंद्र में भी थोड़ी बहुत उनकी पूछ है और संगठन में इसलिए,
" अरे तो उन्ही का कवरेज करवा दे न यार, एस टिफ वाला उनका ख़ास है, फिर उनका भी स्टेटमेंट थोड़ा फोकस शिफ्ट हो : डीबी ने रास्ता बताया।
" आइड्या तो सही है और उनका जो नंबर दो है जो न्यूज देखता है उसको बोलता हूँ और आप उसको एकाध एक्सक्लूसिव शाम तक दे दीजियेगा, खुश रहेगा " कहकर उधर से फोन कट गया और डीबी मेरे साथ फिर उस कमरे में और अबकी दरवाजा उन्होंने खुद बंद कर दिया
गुड्डी भी मेरे पास आ के खड़ी हो गयी थी, डीबी बोले
" अब तुम सब यहाँ से जल्द से जल्द निकल जाओ और ऐसे की किसी को खबर न हो और पुलिस को तो एकदम नहीं। "फिर लड़कियों को देखकर बोले, " और किसी से कुछ बोलना भी नहीं "
इस बार कुछ नया मिला. दामाद तो दशवा ग्रह होता है. अमेज़िंग.महक के अंकल,
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लेकिन सवाल था की हम सब पांचो निकले कैसे, पुलिस को पता नहीं चलना था तो जिस पुलिस की गाडी से मैं और गुड्डी आये थे, उसका तो सवाल ही नहीं था। और डीबी की बात सही थी, मिडिया वाले उन तीनो लड़कियों को सूंघ रहे थे, तो कोई पुलिस वाला ही बता दे, फिर कहीं कोई एस टी ऍफ़ वाला ही सुरागरसी कर रहा हो तो पूछताछ के नाम पर, और मेरा रोल तो एकदम ही अनऑफिशियल था और न मैं चाहता था न डीबी की ये बात कहीं बाहर निकले।
तो बस हम लोगों का दबे पांव चुपके से निकल जाना ही ठीक था, और मैं देख चुका था की बाहर टेंशन बढ़ ही रहा है।
मेरी और गुड्डी की घंटी साथ-साथ बजी। महक के अंकल-
मैंने डीबी से धीरे से कहा की महक के अंकल हैं, बाहर, उनके साथ निकल जाएंगे,
" उनसे कहना की गाड़ी अपनी पीछे लगा दें, और तुम लोग पीछे वाले रस्ते से निकल जाओ, जल्दी। चपरासी से बोल देना वो उन्हें बता देगा, की गाड़ी कहाँ लगानी है, और हाँ ये दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लेना, " और वो वापस कंट्रोल रूम में।
वो बिचारे कितने परेशान हो रहे होंगे। जब हम लोग दोपहर को कोतवाली में आये थे तो वो बाहर बैठे थे और अभी भी जब हम लोग अंदर घुसे तो मैंने देखा की एक पुलिस वाले से वो कुछ पूछ रहे थे।
हम दोनों एक साथ बोल पड़े- “महक तुम्हारे अंकल, यहां दोपहर से इंतेजार कर रहे हैं…”“कहां?” वो उछल पड़ी और बाहर जाने के लिये बेचैन हो उठी।
मैंने बोला- “तुम बैठो। मैं ढूँढ़कर लाता हूँ…” और बाहर निकला।
वहीं दरवाजे के पास वो चपरासी था जो हम लोगों के लिये चाय समोसे ले आया था। मैंने उसी को बोला, उन्हें बुलाने के लिये चपरासी को जो बात डीबी ने बोली थी वही मैंने भी समझा दी, उनसे बोलने के लिए की गाड़ी पीछे वाले दरवाजे के पास लगा दें और वो अंकल को ले आये।
और बाथरूम चला गया हाथ मुँह धोने।
जब मैं निकला तो महक और उसके अंकल, दोनों ने एक दूसरे को बांहों में पकड़ रखा था और बिना बोले दोनों की आँखों में आँसू थे।
उन्होंने पूछा- “तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं? ये कपड़े पे खरोंच…” उनकी आखों ने कुर्ते पे चाकू के निशान को देख लिया था।
“ये?” मुश्कुराकर महक बोली- “कुछ नहीं भागते निकलते समय खरोंच लग गई थी…”
महक के अंकल बोले- “ये तो बहुत अच्छा हुआ। टाइम पे कमांडो ऐक्शन हो गया। मुझे मालूम था की जैसे कमांडो आयेंगे ये भाग जायेंगे। कोई चैनेल कह रहा था की दोनों पकड़े भी गये…”
उस समय टीवी पे आ भी रहा था, ब्रेकिंग न्यूज- “कमांडो ऐक्शन में तीनों लड़कियां छुड़ायी गई। तीनों सुरक्षित, मेडिकल जांच जारी। फिर टीवी पे तेजी से बाहर निकलते अम्बुलेन्स की फोटो। दूसरे चैनेल पे गृह राज्य मन्त्री बयान दे रहे थे की टाईमली एस॰टी॰एफ॰ के ऐक्शन से लड़कियों को बचा लिया गया है। एक और चैनेल पे एस॰टी॰एफ॰ के प्रवक्ता लखनऊ में बोल रहे थे की होस्टेज को छुड़ा लिया गया। स्थानीय पुलिस ने भी बहुत सहयोग दिया…”
सब लोगों की आँखें टीवी पे लगी थी।
अचानक महक के अंकल की आँखें मुझ पे पडीं, और उन्होंने पूछा- “ये कौन है?”
“ये?” महक मेरे पास आकर खड़ी हो गई और मेरी कमर में हाथ डालकर बोली- “वो जो चैनेल वाले बोल रहे हैं ना वही। कमांडो। पुलिस सब कुछ…”
गुन्जा भी मेरे पास खड़ी हो गई- “ये मेरे जीजू हैं…”
महक ने मेरी कमर पे हाथ का दबाव बढ़ाते हुये कहा- “झूठ। थे, अब मेरे हैं…”
महक के अंकल को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
फिर तीनों लड़कियां एक साथ चालू हो गईं। मेरी वीर गाथा। साथ में थोड़ी नमक मिर्च। पांच मिनट में बिना कामर्सियल ब्रेक के लगातार सुनाकर ही वो रुकीं।
महक के अंकल को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने अब सीधे मुझसे पूछा-
“आप अकेले थे? आप कमांडो में है?”
मैंने दोनों सवालों का जवाब एक साथ एक शब्द में दिया- “नहीं…” और मैंने बताया- “ गुड्डी का और डी॰बी॰ का बहुत योगदान है…”
मेरी बात खतम होने के पहले ही वो बोले- “आप उन्हें जानते हैं?”
अबकी गुड्डी ने जवाब दिया- “हाँ इनके बहुत ही क्लोज फ्रेन्ड हैं, हास्टेल के जमाने से…”
“मेरी समझ में नहीं आ रहा है मैं आपसे क्या कहूँ। मैं आपको इसके बदले में कुछ दे भी नहीं सकता, धन्यवाद भी नहीं। मेरे लड़का लड़की कुछ भी नहीं, जो भी है बस ये है और अगर इसे कुछ। कुछ भी हो जाता तो वो मेरा आखिरी दिन होता…”
महक के अंकल मेरे पास आकर बोल रहे थे। उनका हाथ मेरे कंधे पे था और अबकी बार आँसू का एक कतरा बाहर निकल आया था। गनीमत था लड़कियों ने, चुम्मन ने उनसे जो कुछ कहा था वो सब पूरा सेन्सर कर दिया था और सिर्फ बचने वाली कहानी सुनायी थी।
मैं- “देखिये आप मुझसे बुजुर्ग हैं। लेकिन मैं एक बात बोलूं। इसे कुछ नहीं होगा। जिसपर आप जैसे बुजुर्गों का साया है, और मुझे जितना मैं सोच सकता था। उससे बहुत ज्यादा इस काम में मिल गया है…”
महक के अंकल मुश्कुराने लगे और बोले- “अरे क्या मिला, जरा हमें भी तो बताओ?”
मैं- “दो नई सालियां। और फिर जब महक मेरी साली हो गई तो मैं तो आपका दामाद तो वैसे ही हो गया। कहते हैं जामाता दसवां ग्रह। तो फिर तो मैं लगातार लेता रहूंगा। एक बार में थोड़े ही छोड़ूंगा। क्यों महक?”
महक के गाल थोड़े से लाल हो गये, मेरे द्विअर्थी डायलाग का मतलब समझ कर। मुश्कुरा कर वो बोली- “हाँ एकदम…”
गुड्डी और गुंजा से मैंने कहा- “चलें? वैसे भी बहुत देर हो गई है इसे घर ड्राप करके फिर सामान पिकअप करना है और बस पकड़नी है…”
अंकल बोले- “आप। तुम जाओगे कैसे?”
मैं- “क्यों रिक्शा कर लेंगें हम। पास में ही जाना है, नई सड़क के पास। गुंजा को छोड़कर हम चले जायेंगे। और अब तो रिक्शा चलने लगा होगा…”
“तुम ना कैसे दामाद हो? अरे मेरे साथ चलो…” और तब उनकी निगाह मेरे शर्ट पे पड़ी, और वो बोले- “अरे इतना खून। शर्ट तो बदल लेते…”
मैं बोला- “नही। वो तो मैं होटल में ही चेंज कर पाऊँगा। चलेगा तब तक…”
हम लोग गाड़ी में बैठ गये। गुड्डी आगे बैठ गई, पीछे हम चारों।
लेकिन मुझे उनकी बात में दम लगा, खून में लथपथ ये शर्ट देखकर है मैं भले कुछ नहीं कहता लेकिन चंदा भाभी की हालत खराब हो जाती और बात उनसे गुड्डी की मम्मी और मेरी भाभी तक पहुँच जाती, इसलिए शर्ट चेंज कर लेना ही ठीक था, लेकिन अब यहाँ से जाकर फिर शर्ट चेंज कर के गुंजा के यहाँ, औरंगाबाद आना, तो अच्छा तो यही था की यही शर्ट ले लूँ, पर मैं कहना नहीं चाहता था।
मेरी नगाह बीच बीच में सड़क पर भी दौड़ रही थी और देख कर लग रहा था की कुछ गड़बड़ होने वाला है, जब मैं गुड्डी के साथ शॉपिंग कर रहा था तो यहाँ कंधे छिलते थे, बस धककम धुक्का, और अभी सन्नाटा पसरा पड़ा था, गली के बाहर बस कहीं कहीं दो चार लोग खड़े दिखते, लेकिन वो भी सशंकित, बार बार इधर उधर देखते, और कोई पुलिस की गाडी दिखते ही गली में दुबक जाते , सड़क पर ट्रैफिक न के बराबर।
महक बोली- “ऐसा कीजिये माल चलते हैं। वहां इनके लिये एक शर्ट ले लेते हैं। वर्ना हर चौराहे पे पुलिस वालों को ये जवाब देते फिरेंगे। और कहीं पकड़ लिये गये। तो रात थाने में गुजरेगी…”
गुड्डी बोली- “एकदम सही कहा तुमने। इसके पहले भी ये आज थाने जाते-जाते बचे हैं…”
ड्राइव करते हुए आगे से महक के अंकल ने पूछा- “उन लोगों के पास तो हथियार रहे होंगे?”
गुंजा और महक साथ-साथ पीछे से बोली- “दो बड़े-बड़े चाकू, एक रिवाल्वर और एक बाम्ब…”
उन्होंने फिर पूछा- “और तुम्हारे पास?”
अबकी जवाब गुड्डी ने दिया- “मेरी चिमटी, मेरे बाल का काँटा, चूड़ियां और पायल…”
चारों खिलखिलाने लगी।
गुड्डी फिर मुँह फुलाकर बोली- “हाँ और सब उन्होंने गुमा दिया…”
अंकल बोले- “अरे मत उदास हो सब तुम्हें हम दिलवा देंगे…” वो भी अब लड़कियों के ही स्प्रिट में आ गए थे।
मैंने पीछे से सही जवाब देने की कोशिश की- “मेरा असली हथियार था। मेरी सालियां, और आप बुजुर्गों का आशीर्वाद…”
अंकल बोले- “मक्खन बहुत जबर्दस्त लगाते हो तुम…”
और पीछे से, समवेत स्वर साथ-साथ मेरे कमेंट पे उभरा- “डायलाग डायलाग…”
“डर नहीं लगा तुम्हें?” अंकल ने पूछा।
“बहुत लगा। अगर इन्हें कुछ भी हो जाता, एक खरोंच भी लग जाती तो गुड्डी बहुत मारती मुझे और। भूखा रखती सो अलग…” मैंने मुँह बनाकर बोला।
अंकल ने शायद नहीं समझा लेकिन सारी लड़कियां ‘भूखा रखने’ की बात समझ गईं और मेरे और गुड्डी की ओर देखकर मुश्कुराने लगी।
थोड़ी देर में हम मॉल में पहुँच गए, पर हाँ उसके थोड़ी देर पहले रस्ते में हम लोगो ने शाज़िया को ड्राप कर दिया,
शाजिया का घर एक गली में था, गली में ज्यादा अंदर नहीं, बस दो चार घर छोड़ के और जैसे बनारस की गलियों का उसूल है, जितनी पतली गली, उतना ही बड़ा मकान, तो शाज़िया का भी घर बहुत बड़ा था, शाज़िया जैसे ही कार से उतरी, और मेरे बिना पूछे बोली,
" मैं चली जाउंगी, देखिये मम्मी खड़ी वेट भी कर रही हैं, गली के ज्यादा अंदर नहीं जाना है "
पर अगली सीट से गुड्डी गरजी, " हे अकेली लड़की जायेगी, छोड़ के आओ गली के अंदर तक'
शाज़िया ने मुड़ के मेरी ओर देखा, हलके से मुस्करायी, होंठ उसके मना कर रहे थे, पर बड़ी बड़ी आँखे दावत दे रही थीं, और मैं कार का दरवाजा खोल के उसके साथ, और उसका हाथ पकड़ के,
" अब जाइये आप, मम्मी देख रही हैं, सामने तो खड़ी हैं " वो बोली,
मुश्किल से सौ कदम दूर, कुछ मामलों में तो शाज़िया की बड़ी बहन लग रही थी और ऊपर की मंजिल गुड्डी की मम्मी के टक्कर की, शाज़िया को देख के जोर से मुस्करायीं,
कभी नीम नीम कभी शहद शहद
थोड़ी देर पहले जो लड़की मुझे कार में इस तरह से छेड़ रही थी, मैं बीच में था पिछली सीट पर, एक ओर महक, एक ओर शाज़िया. तीनों एक से एक शातिर दुष्ट, दर्जा नौ वाली, टीनेजर्स, जबतक मैं कुछ समझता, थोड़ा सरको, थोड़ा सरको ( और वैसे भी तीन की सीट पर पीछे हम चार थे ), गूंजा ने शाज़िया को मेरी ओर ठेला और महक ने मुझे धकेला, बस, शाज़िया ने जैसे सहारे के लिए मुझे पकड़ा और आधे से ज्यादा मेरी गोद में, लेकिन बदमाशी उसकी भी कम नहीं थी, जिस तरह उसके नितम्ब मुझे दबा रहे थे, बदमाश उंगलिया और शरारती आंखे, ऊपर से महक बोली, ' पकड़ लीजिये न गिर जायेगी बेचारी ' और खुद मेरा हाथ पकड़ कर शाज़िया के,
और वही शाज़िया, अभी, , मम्मी के पास जाने से पहले , पल भर ठिठकी, मुड़ी एक बार उसने मुझे भर आँखों से देखा, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे उसकी डबडबा आयीं, मुझे देखती रही वो लड़की और अचानक बाँहों में भींच लिया। एक दो स्वाती की बूंदे ढलक गयीं, बाकी उसकी आँखे पी गयीं। जैसे बोल नहीं निकल पा रहे थे, फिर बड़ी मुश्किल से हिचकी लेते बोली,
" अगर आप नहीं आते, पांच मिनट, बस पांच मिनट, वो, वो बोल कर गया था, 'बस पांच मिनट, उसके बाद धूम,धड़ाम, धड़ाका, ,जिसको भी याद करना हो कर लो, बस पांच मिनट बचे हैं तुम तीनो के पास, मैंने तो एकदम उम्मीद खो दी थी, फिर से मम्मी को देखने की, पर आप, और और, सीढ़ी पर भी, एक गोली तो एकदम बगल से गुजरी, बहुत डर लग रहा था, "
मैंने भी उसे भींच रखा था और सोच रहा था जब मैंने पहली बार देखा था, गुंजा के बगल में बेंच पर, डर के मारे एकदम सफ़ेद, कस के दोनों हाथों से बेंच दबोच रखी थी, लेकिन एक बार शाज़िया ने फिर मुझे भींचा, एक मुस्कान होंठों पर चिपकायी, मुझे देखते हुए बच्चों की तरह तेजी से अपनी मम्मी की बांहो में
" कौन हैं ये " मम्मी ने उसकी मेरी ओर इशारा करके पूछा और शाज़िया अब फिर वही शरारती बच्ची हो गयी, मम्मी को छेड़ती बोली
" आपके दामाद " फिर मामले को साफ़ करके हलके से बोली
" अपनी गुड्डी दी के, अरे वही, और हम लोगों के जीजू "
जबतक उनकी मम्मी कुछ बोलतीं, कार में से गुड्डी ने इशारा किया मैं जल्दी आ जाऊं। कोई पुलिस की गाडी आ गयी थी और महक के अंकल से वहां से जल्दी जाने के लिए कह रही थी, थोड़ी देर में हम सब मॉल में पहुँच गए।
ला ज़वाब कही मॉल तो महक का ही तो नहीं. माझा आ गया. कुछ इरोटिक शारारत होने वाली है लगता है.भाग - ३४ मॉल में माल, - महक
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माल सिगरा के पास ही था, और महक के अंकल का ही था।
उसमें उनके भी चार-पांच स्टोर्स भी थे। लेकिन पूरे शहर में अभी भी अघोषित कर्फ्यू का माहौल था। सड़क पे इक्की दुक्की गाड़ियां दिख रही थी। सिर्फ पुलिस की गाड़ियां, पीएसी की ट्रक नजर आ रही थी। जगह-जगह चेक पोस्ट, नाकाबन्दी लगी हुई थी। हमारी गाड़ी भी दो-तीन बार रोकी गई। एक भी रिक्शा नहीं दिख रहा था।
माल में उतरते समय ये तय हुआ की जब तक मैं शर्ट लूंगा, गाड़ी लेकर रेस्टहाउस से हमारा सामान कलेक्ट करके आ जायेगी और वहां से हम सीधे गुन्जा के यहाँ…
अंकल ने ये भी बोल दिया था- “तुम बस वस के चक्कर में ना पड़ो क्योंकी इस माहौल में उसका भी ठिकाना नहीं है। मेरी गाड़ी तुझे घर तक,आजमगढ़ ड्राप कर आयेगी…”
माल में भी आधी से ज्यादा दुकानें बन्द थी।
अंकल ने पहले से कपड़े वाली दुकान और एक-दो स्टोर्स को बोल दिया था। एक छोटा सी मेडिसिन शाप भी उनमें थी। पहली शाप एक मोबाइल की थी मैं उसमें घुस गया। उसमें एक ब्लैक बेरी का भी कियोस्क था। मेरी तो बांछे खिल गईं। मैंने दो ब्लैक बेरी पसंद कर लिये।
महक मेरे साथ ही लिफाफे पे टिकट की तरह चिपकी थी। वो बोली-
“रुकिये मैं बताती हूँ…” और उसने सेल्समैन को क्या बोला की वो दो नये जस्ट रिलीज हुये टैबलेट और दो आई पैड ले आया और महक ने उसको भी पैक करा दिया।
मैं नहीं नहीं करता रह गया- “बड़ा महंगा है। जरूरत नहीं है। इत्यादी इत्यादी…”
कौन सुनने वाला था। मैंने अपना कार्ड निकालकर सेल्समैन को दे दिया, पेमेंट के लिये।
अब तो डबल पेस अटैक चालू हो गया। महक के अंकल एकदम से नाराज हो गये-
“दामाद कहते हो और पैसा देने की कोशिश करते हो और खासकर इस दुकान में…”
मैंने दुकान का नाम पहली बार देखा, महक के नाम पे था।
महक तो और ज्यादा पूरी ज्वालामुखी-
“नहीं नहीं आपको बहुत शौक है ना पेमेंट का। वो तो करना पड़ेगा। लेकिन पहले शापिंग पूरी तो कर लीजिये मैं खुद एक-एक पैसे का हिसाब लूंगी…” और कार्ड और पैकेट दोनों सेल्समैन के हाथ से उसने ले लिया।
अंकल बोले- “महक जरा तुम इनका ख्याल रखना मैं घर चलता हूँ…” मकान उनका माल से सटा ही था।
महक- “चिन्ता ना करिये मैं इनका बहुत अच्छे से ख्याल रखूंगी…”
गुन्जा खड़े-खड़े मुश्कुरा रही थी।
मैं समझ गया था की ये महक भी उसी मिट्टी की बनी है जिसकी गुंजा, गुड्डी और रीत बनी हैं, मस्त बिन्दास और बनारस के रस में घुली।
वाह आनंद बाबू. तुमसे ज्यादा कौन नसीब वाला होगा. अब तो सालिया भी बढ़ गई है. और महक और गुंजा तो दोनों फुल शारारत के मूड मे भी है. तुम्हे नंगा करने पर तुली है. उसे भी दिखा दो.महक की मस्ती
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जैसे ही अंकल आँख से ओझल हुये, महक बोली- “अब बनायेगें तुम्हारी सैंडविच हम दोनों मिलकर। क्यों गुन्जा?”
गुंजा- “एकदम, तब पता चलेगा की बनारसी सालियों से पाला पड़ा है…”
बनारसी सालियों का तो मैं सुबह से ही झेल,… सारी,…रस ले रहा था। गुड्डी और रीत, फिर गुड्डी और गुन्जा और अब गुन्जा और महक।
चुम्मन, शुक्ला ऐसे बनारसी गुंडों को तो मैं निबटा सकता था पर। बनारसी सालियों से तो हार मानने में ही भलायी थी।
स्टोर बंद सा ही था।
लेकिन ढेर सारे सेक्शन, ज्यादातर स्टाफ घर चले गये थे, सिर्फ दो-चार सेल्सगर्ल बची थी, और वो भी जिस तरह से महक उनसे बात कर रही थी, उसकी सहेलियां ज्यादा लग रही थी। जिस जगह मुझे गुन्जा और महक ने बैठा दिया वहां लिंगरी सेक्शन, कास्मेटिक्स था। मेरी समझ में नहीं आया की मुझे वहां क्यों बैठाया है? तभी मेरी निगाह बगल में एक छोटे से फार्मेसी सेक्शन पर गई।
महक वहीं खड़ी थी और काउंटर गर्ल से पूछने लगी- “डाक्टर कब आयेंगी?”
उसने जवाब दिया- “बस घर से निकल चुकी हैं, 5-10 मिनट में पहुँच रही होंगी…”
मैं बोला- “डाक्टर क्यों? मैं एकदम ठीक हूँ। देखो अब खून भी बन्द है…”
महक- “नहीं नहीं, मैं अपने लिये बुला रही हूँ, मेरे हाथ में बड़ा सा घाव हो गया है, खून से मेरी आधी शर्ट भीग गई है। इसलिये। अब तुम मेरे हवाले हो ज्यादा बोलोगे तो मुँह बंद कराने के मुझे कई तरीके आते हैं…”
पास खड़ी सेल्सगर्ल्स मुश्कुरा रही थी। एक ने बोला भी- “हम हेल्प करें?”
गुंजा बोली- “अभी तो हम दोनों ही काफी हैं, हाँ जरूरत पड़ेगी तो क्यों नहीं?”
गुंजा की बदमाशी मैं समझ रहा था, गुड्डी, महक के अंकल के साथ उनके घर चली गयी थी, जरा आंटी से मिल आऊं। लेकिन असली मतलब मैं समझ रहा था, एक तो उन्हें रिअश्योर करना, दूसरे अगल बगल की हाल चाल पता करना। अंदाज तो उसको भी लग गया था की शहर के हाल चाल ठीक नहीं हैं और हर पल और खराब हो रहे हैं।
शाजिया रस्ते में अपने घर उतर गयी थी, तो बचीं गुंजा और महक। दोनों एक से एक शैतान और बचपन से बाँट के खाने वाली, एक आइसक्रीम का कोन भी हो तो दोनों मिल के साथ साथ चाटती थीं, एक बाएं से एक दाएं से। और गुंजा अब महक को खुल के मौका दे रही थी, मेरी रगड़ाई करने का, और जितना मैं झिझकता, हिचकता उतना उन दोनों दुष्टों को और मजा मिलता।
महक ने सीधे मुद्दे पे आते हुए कहा- “चलो कपड़े उतारो…”
मैं हक्का-बक्का रह गया।
इतनी लड़कियों के सामने,…. अकेले में तो चलो। जब साली बन ही गई है तो देख लेने दो।
गुड्डी ने देख लिया, रीत ने देख लिया, गुंजा ने देख लिया तो ये महक भी,
लेकिन मेरी बात वैसे ही रह गई जब महक ने साफ कर दिया- “बात सिर्फ शर्ट उतारने के लिए है, और वो भी दो वजह से एक तो नई शर्ट नापनी है दूसरे अगर डाक्टरनी साहिबा को चोट देखनी है तो शर्ट उतारनी पड़ेगी ना…हाँ और कुछ उतारने का मन हो तो वो भी उतार दीजिये, हम लोग एकदम मना नहीं करेंगे, " बड़ी बड़ी आँखों को नचाती वो दर्जा नौ वाली पंजाबी कुड़ी बोली।”
गुंजा ने बोला- “यार महक बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन जिसके हाथ में इतनी चोट हो वो कैसे अपने हाथ से कुछ भी कर पायेगा?”
“अरे हम हैं ना?” दो सेल्सगर्ल्स बोली और एक झटके में आकर शर्ट उतार दी।
एक बोली- “हे बनियान में भी तो खून लगा है…”
महक बोली- “तो उसको भी उतार दो ना…” और वो भी उतर गई और मैं अब पूरी तरह टापलेश।
अब वहां मैं, महक, गुंजा और तीन सेल्सगर्ल्स।
और महक की निगाहें मेरी बॉडी को निहार रही थीं, सहला रही थी,। नहीं नहीं, कोई जिम टोंड बॉडी नहीं थी और मैं कभी मसल्स बिल्डिंग के लिए काम करता भी नहीं था, लेकिन अन आर्म्ड कॉम्बैट और मार्शल आर्ट्स के लिए बॉडी फिट तो होनी चाहिए, और ४० इंच के चेस्ट पर ३२ इंच की कमर, सारी मसल्स टोंड, बाइसेप्स, क्वाड्रिसेप्स, और अगर कोई जवानी की दहलीज पर खड़ी युtग टीनेजर इस तरह से देखे तो असर तो होगा ही , और मैं सोच रहा था की वो क्या सोच रही होगी,
ये चौड़ी छाती अगर उसके छोटे छोटे गोल गोल कड़े कड़े जोबनों को दबाएगी, रगडेगी, कुचलेगी और मुझे याद आ गया जब सीढ़ी पर गोलियां चल रही थी, मैंने पीछे से महक को कस कर पकड़ रखा था और महक ने खुद मेरा हाथ खींच कर अपनी कच्ची अमिया पर रखा कर हलके से दबा दिया था, और वो सोच के ही जंगबहादुर पैंट में बगावत कर रहे थे। और देखने ललचाने का काम सिर्फ एक ही थोड़े कर सकता था, मेरी निगाहें भी महक के उभारों पर चिपक गयी थीं, स्कूल का टाइट टॉप, उस पंजाबी कुड़ी के उभारों को छिपा कम रहा था, दिखा ज्यादा रहा था और उस दुष्ट ने अपने टॉप के ऊपर के दो बटन भी खोल दिए थे, बेल्ट टाइट कर ली, जिससे दोनों गोलाइयाँ छलक के बाहर आ रही थी, खूब गोरी गोरी मस्त, किसी का भी मन मचल जाता मसलने के लिए,
लेकिन टॉप पर एक खरोच पर मेरी निगाह पड़ी और मुझे याद आया, गुंजा ने जो बोला था,
चुम्मन ने अपने चाक़ू की नोक से उसके टॉप को दबाया और धमकाया और टॉप में हल्का सा छेद हो गया था, चाक़ू की नोक सीधे वहीं और सोच के ही मैं सिहर गया। किस हादसे से अभी थोड़ी देर पहले गुजरी है ये लड़की
और गुंजा और महक की निगाह मेरे हाथ पर बंधे दुपट्टे पर पड़ी,, खून से लाल था लेकिन उसके नीचे का खुला घाव साफ़ दिख रखा था काम से कम ६ इंच लम्बा था और गहरा भी काफी था, खून बंद होने से घाव साफ़ दिख रहा था।
महक काँप गयी और उसने कस के मेरे हाथ को पकड़ लिया। कैसे सीढ़ी पर हम लोग खड़े थे और इस लड़की ने खून से लथपथ मेरी शरत को देख कर मोड कर तुरंत अपने दुपट्टे को फाड़ कर वहां पट्टी बाँधी थी।
चुम्मन से इन लड़कियों को बचाने के चक्कर में, भाग दौड़ में, फिर पुलिस कंट्रोल रूम में जो टेंशन चल रहा था और उन सब से बढ़ कर तीन तीन मस्त दर्जा नौ वाली शोख शरारती छोरियों के साथ में, मैं भी भूल चूका था, घाव को भी, चुम्मन के उस दस इंच के रामपुरिया चाक़ू को भी। लेकिन घाव को देखकर एकबार फिर से वो पल जिन्दा हो गए,
और मुझसे ज्यादा हदस गयी, गुंजा। पहली बार उसे अंदाजा लगा कितना गहरा घाव था और कैसे बस बाल बाल बची वो। चुम्मन के चाक़ू निकालते ही मुझे लग गया उसका टारगेट गुंजा ही है, बचो, फर्श पर चिल्ला कर मैंने उसे छाप लिया और बिजली की तेजी से गुंजा को लिए दिए फर्श पर। न सिर्फ मेरी देह ने ऊपर से गुंजा को ढक रखा था बल्कि मेरी बाँहों ने उसे नीचे से भी दबोच रखा था, और चाक़ू मेरी बांह में,
जो मैं सोच रहा था, वही गुंजा सोच रही थी, अगर मैं उसके ऊपर नहीं आता तो वो तेज धार वाला चाक़ू सीधे, गुंजा की पीठ से घुसते सीने की ओर, दिल, फेफड़े में अंदर तक पैबस्त होता।
और चाक़ू लगने के बाद, तेजी से खून निकलने के बाद भी मैंने गुंजा पर पकड़ ढीली नहीं की, बल्कि मौका देखकर चुम्मन पर काउंटर टैक
एक पल के लिए माहौल फिर से सीरियस हो गया था, लेकिन सही फैसला लिया, तीनों सेल्सगर्ल में जो सबसे सीनियर थी, स्टोर इंचार्च भी उसने महक को इशारा किया और महक मुस्कराते हुए बोली
“गुंजा यार तुम इसके साथ जाकर शर्ट चेक करो जरा, मैं अभी आती हूँ, डाक्टर भाभी को फोन करके…” गुंजा और दोनों सेल्सगर्ल चली गयीं, पर जाते हुए गुंजा ने कस के महक के पिछवाड़े शरारत से एक हल्का सा थप्पड़ मारा, जैसे इशारा कर रही हो
' चल यार मैंने मैदान साफ़ कर दिया, अब ले ले मजा "
हम सब उस हादसे के पलों से निकलना चाहते थे।
गुंजा ने निकलते हुए मेरी ओर शरारत से देखा, और दरवाजे को बंद कर दिया।
महक मेरे पीछे आकर खड़ी हो गई, लगभग मुझसे सटी हुई। उसकी गरम गरम साँसें मेरी गर्दन पे छू रही थी। उसने एक उंगली से मेरी गर्दन पे छुआ, तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
महक एक सेल्सगर्ल से- “हे तू जरा जा और डाक्टर भाभी जैसे ही आयें, सीधे यहां ले आना…”
अब महक और वो सेल्सगर्ल बची जो शायद स्टोर इंचार्ज थी। उसकी उम्र 26-27 साल की रही होगी। बाकी सेल्सगर्ल्स 18-20 साल की रही होंगी।
उफ्फ्फ सच मे चुम्बन से पार पाना आसान था. महक से नहीं. अभी तो क्या क्या उतरवएगी. आनंद बाबू देख लो. किस पेमेंट की बात हो रही थी. तुम्हे तो अब पता चला. अनेजिंग अपडेट.महक -अमीषा डबल का मीठा
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सेल्सगर्ल के बाहर निकलते ही महक ने मुझे अपनी बांहों में जकड़ लिया।
उसके किशोर उभार मेरी पीठ में रगड़ खा रहे थे, और वो उन्हें हल्के-हल्के दबा रही थी, रगड़ रही थी। उसकी जांघें भी अब मेरे नितम्बों को पीछे से दबा रही थी। और अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सीने पे थे, उसकी लम्बी उंगलियां, बड़े-बड़े नाखून मेरे टिट्स के आस पास टहल रहे थे, और अचानक महक ने मेरे मेल टिट्स को अपने एक लम्बे नाखून से खरोंच दिया, और साथ ही उसके होंठ मेरे गर्दन पे एक हल्की सी किस और वहां से मेरे इयर लोबस पे। एक सहलाती हुई चुम्मी।
अगर सामने वो स्टोर इंचार्ज ना खड़ी होती तो मैं मुड़कर महक को बता देता, चोट मेरे बाएं हाथ में लगी थी। बाकी अंग तो ठीक ही थे।
अमीषा उस स्टोर इंचार्ज का नाम था, और फिगर उसकी अमीषा पटेल से एक-दो नंबर बड़ी ही रही होगी, तभी शायद वो लिंगरी सेक्शन की इंचार्ज थी।
महक बोली- “अमीषा, जरा देख बेल्ट कुछ ज्यादा टाईट सी नहीं लग रही है…”
“हाँ…” वो झुक के बोली और मेरे बकल ढीले कर दिए।
क्या जबर्दस्त परफ्यूम लगाया था उस अमीषा ने, और जब झुकी तो खुलकर पूरा क्लीवेज, दोनों गोरी-गोरी गोलाइयां। मेरी तो हालत खराब। और उसी समय महक ने कसकर मेरे सीने को दबोच लिया और हल्के से दबाने लगी। मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा था।
उधर उठते-उठते अमीषा ने मेरे पैंट के बल्ज को हल्के से, ….बल्की खुलकर दबा दिया और जब वो मुड़ी तो उसके लम्बे खुले लहराते बाल मेरे सीने पे छू गए। उसके नितम्ब 36+ रहे होंगे और दरार पूरी तरह दिख रही थी इतनी टाईट ड्रेस थी।
महक की जीभ की नोक अब मेरे कान के छेद में और हाथ सीधे बल्ज पे। उसने सहलाया नहीं बल्की खुलकर दबा दिया। ‘वो’ आलमोस्ट 90° डिग्री हो रहा था-
“मैंने बोला था ना की बिल दूंगी मैं। पूरी तरह। तो अभी तो बस शुरूआत है। पूरा बिल, सर्विस टैक्स एक्स्ट्रा…”
वो मेरे कान में फुसफुसा रही थी, और उसका एक हाथ मेरे बल्ज पे टिका था।
मैं समझ गया था। की वो किस ‘बिल’ की बात कर रही थी।
पता नहीं महक ने इशारा किया या अमीषा ने खुद पहल की, पीछे से महक लता की तरह चिपटी थी तो आगे से अमीषा चिपक गयी और उसकी बाहों ने महक को पकड़ कर और कस के मेरी देह पर दबोच दिया, और अमीषा एकदम खुल कर खेली खायी लगती थी और महक की राजदार भी, महक को उकसाती चिढ़ाती बोली,
" सारे बिल दे देना, कोई बचा के मत रखना "
मेरे मुंह से घिसा पिटा डायलॉग निकलते निकलते रह गया, मैं छेद छेद में भेद नहीं करता, लेकिन जवाब महक ने ही दिया,
" एकदम नहीं, घुसते ही ये चिल्ला रहे थे, बिल लाओ, बिल लाओ, अब देखती हूँ अगर ये बिना बिल लिए गए न तो इनकी, " और यह कह के अपने बस आ रहे छोटे छोटे २८ साइज के जोबन पीठ पर रगड़ दिए, लेकिन जुगलबंदी के लिए अमीषा थी न , ३४ सी साइज वाली और दोनों ओर से जोबन की चक्की चल रही थी।
जंगबहादुर की हालत खराब थी, कभी तने बल्ज के ऊपर से महक की बिच्छी की तरह डंक मारती उंगलिया तो कभी अमीषा अपने दोनों जाँघों के बीच से ही उसे रगड़ने की कोशिश करती
" और क्या पहले तो कपडे उतरवा लेंगे इनके, शर्ट और बनियान तो उतर ही गयी, पेंट की भी बेल्ट खुल गयी है तो बस उसे भी उतरा लेती हूँ " अमीषा ने चिढ़ाया और सच में मेरी ज़िप खोलने के लिए हाथ लगा दिया
अब कुछ ज्यादा हो रहा था, मैंने नहीं नहीं किया, लेकिन ढीली पेंट के पिछवाड़े अमीषा ने हाथ डाल ही दिया और नितम्बो को दबोचते बोली
" लड़कियां नहीं नहीं करती हैं तो सुनते हो तुम लोग,….. तो हम लोग क्यों सुने, क्यों महक "
" एकदम, "खिलखिला के महक बोली।
चुम्मन से पार पाना तब भी आसान था लेकिन गुंजा की इस सहेली से निबटना बहुत टेढ़ा था, लेकिन बचाया गुंजा ने ही,
तब तक गुंजा की आवाज दूर से आई- “मैंने शर्ट्स देख ली हैं। तू भी एक बार चेक कर ले…”
महक हँसकर बोली- “आती हूँ मेरी नानी…” और मुझे पुश करके सीट पे बैठा दिया।
बिलकुल पसंद नापसंद से क्या फरक पड़ता है. यकीन ना हो तो JKG पढ़ लो. और बेहोशी की हलात मे कोनसा साइज पता कर लिया तुम्हारी साली ने.अमीषा
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अब मैं सीट पे और सामने अमीषा स्टूल पे अपने नेल फाइल करती हुई, मुश्कुराते हुए वो बोली- “आपकी मसल्स बहुत स्ट्रांग हैं…”
मैं भी अब फ्लर्ट करने के मूड में था, मैंने मुश्कुराकर बोला- “हाँ, सारी की सारी…”
अमीषा भी उसी अंदाज में बोल रही थी- “अब जो दिखती है मैं तो उसी के बारे में बोल सकती हूँ। हाँ जो नहीं दिखती। …” वो लगातार मेरे बल्ज को घूरे जा रही थी और जिस तरह से वो पैर पे पैर रखकर बैठी थी उसकी हाई हील्स 7-8 इंच ही दूर रही होंगी ‘उन मसल्स’ से- “खैर, अंदाज तो लगा ही सकती हूँ की वो भी स्ट्रांग होंगी…”
“आपका अंदाज और गलत…” मैंने बहुत हल्के से अपने बल्ज को उचकाते हुए कहा।
मुश्कुराकर अमीषा ने जवाब दिया की उसने सिगनल समझ लिया है। फिर वो बोली- “इनर वियर के अलावा मैं स्पा की भी इंचार्ज हूँ। मैं और वो लड़की जो बाहर गई मेरी हेल्पर है। मेनिक्योर, पेडिक्योर और ओनली फोर गर्ल्स बाडी मसाज। वी हैव सोना, जाकुजी। और मैं स्वीडिश मसाज, तांत्रिक मसाज, थाई मसाज शियात्शु। मैंने दो साल बैंगकाक के एक सैलून में काम किया है। एक साल फुकेत में। लेकिन यहाँ पे ओनली फार गर्ल्स। हाँ यू आर एक्सेप्शन…”
अमीषा उठकर खड़ी हो गई। एक प्लेट में उसने दो बड़ी कैंडल्स जलायीं। लैवेंडर की महक हवा मैंने तैर रही थी। फिर एक छोटी सी बोतल से दो बूँद तेल निकालकर अपनी उंगली के टिप्स पे लगाया और मेरे पीछे खड़ी हो गई। कैंडल के साथ उसने कोई म्यूजिक भी आन कर दिया था, रेलैक्सिंग। और वो मेरे पीछे थी। मैं चाहकर भी मना नहीं कर पाया।
अमीषा की उंगलियां मेरे कन्धों पे। पहले उसने सिर्फ उंगली की टिप से दबाया फिर जोर-जोर से। थोड़े ही देर में मेरे कंधे पे उसके दोनों हाथ थे। वो कस-कसकर मस्साज कर रही थी। दोपहर को दुकान में जो मार-पीट, फिर स्कूल में, सारा दर्द सारी एक थकान साथ उभर आई थी, जो मैंने इतनी देर से बर्दास्त किया था। मेरी पूरी देह दर्द से डूब गई। पोर-पोर। एक-एक मसल्स।
लेकिन एक-दो मिनट के बाद जब उसने हथेली से कंधे के नीचे मेरी पीठ और एकदम चूतड़ तक अपने हाथ से सहलाना, दबाना शुरू किया। तो लगाने लगा जैसे उसकी उंगलियां मेरा सारा दर्द, सारी थकान पी जा रही हों।
रीत की सहेली की दूकान में, जब छोटा चेतन और उसके तिलंगों से मुकाबला हुआ, ज्यादा तो नहीं पड़ी मुझे लेकिन तभी भी दो चार हाथ, और उसमे एक दो निशाने पर लग गए थे, चेहरा तो मैंने बचा लिया था, पर पीठ पर, पैरों पर, और एक दो बार गिरते गिरते भी मेज से टकराया और गुंजा को दबोच कर बचाने के चक्कर में सीधे धड़ाम से फर्श पर, अन आर्म्ड कम्बैट में तो सबसे पहले गिरना ही सिखाते हैं और हर तरह के फर्श पर, इसलिए इतनी नहीं लगी लेकिन जो भी अंदरूनी चोट थी और उससे बढ़कर थकान अब सब अमीषा की उँगलियों से घुल रही थी।
मेरी आँखें बंद होने लगी मेरा सारा शरीर शिथिल पड़ने लगा, और मैं सो गया या तंद्रा में चला गया पता नहीं। मेरी आँख खुली महक और गुंजा के शोर से, मुझे लगा घंटों बाद सोकर उठा हूँ।
लेकिन घड़ी देखा तो सिर्फ 6:00 मिनट हुए थे। मेरी सारी थकान, दर्द मसल्स में तनाव सब गायब था, एकदम फ्रेश।
गुंजा और महक एक शर्ट लाने गई थी लेकिन जैसे पूरी दुकान उठा लायी थी और जब मैंने ध्यान से देखा तो बस मेरे मन में यही आया- “दुष्ट, बदमाश…” लगता है गुड्डी ने इन सबसे शेयर कर रखा था की मुझे पिंक या फ्लोरल प्रिंट नहीं पसंद है। मैंने गुड्डी से एक बार कह दिया था की ये सब तो लड़कियों वाले रंग हैं। छोरियां पहनती हैं, और शर्ट टी-शर्ट कई तो स्लीवलेश थी। आलमोस्ट ट्रांसपरेंट।
महक ने पीछे से मेरे कंधे से मेजर किया और गुंजा से आँख नचाकर बोली- “साइज तो सही है। लगता है तुमने अच्छी तरह से नापा है…”
“एकदम…” गुंजा टी-शर्ट नापते हुए बोली- “मेरे जीजू हैं, नाप के तो देखना ही पड़ेगा…”
महक तुरंत उछल गई- “थे। अब मेरे हैं…”
किसी तरह मौका निकालकर मैं बोला- “अरे यार थोड़ी सोबर व्हाईट या ब्लू। और फिर इतनी ज्यादा…”
महक मेरे ऊपर चढ़ गई- “आपसे पूछा किसी ने आपकी पसंद? हमें मालूम है आपकी पसंद। लेकिन आपकी पसंद नापसंद से क्या फर्क पड़ता है? चलिए पहनिए इसे…”
तब तक जिस सेल्सगर्ल को उसने बाहर लगा रखा था उसका मेसेज आया- “डाक्टर साहेब आ रही हैं…”
मैं भी थोड़ा ठीक होकर बैठ गया।
गुंजा भी मुझसे दूर हट गई।
लो आनंद बाबू अब तक तो नईकी साली से पार नहीं पड़ रही थी. अब तो आ गई डाक्टरनी. और यह लो रिस्ता भी जुड़ गया. जब महक नांदिया है उसकी तो तुम्हारी तो सहलाज़ वाला रिस्ता हुआ. और रिस्ता हुआ तो मज़ाक भी होगा. ठूस दिया ना इंगेशन. हो गई शांति. वैसे माझा तो तुम्हे भी आएगा.डाक्टर
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वो किसी ओर से डाक्टर नहीं लग रही थी।
लाईट ब्लू साड़ी, एकदम कसी हुई, सारे उभार और कटाव दिखाती हुई हल्की ट्रांसपेरेंट, नूडल स्ट्रैप ब्लाउज़, डीप लो-कट, एकदम चिपका स्लीवलेश, पीछे से भी बैकलेश, सिर्फ एक पतली सी स्ट्रिंग। और पल्लू भी इस तरह की एक उभार पूरा खुला। नीचे भी साड़ी नाभि-दर्शना, गहरी नाभी, चिकना गोरा पेट, बहुत पतली कमर और साड़ी किसी तरह कुल्हे से टिकी, चूतड़ बड़े-बड़े। और जिस तरह से मैं उन्हें देख रहा था उसी तरह वो भी मुझे नीचे से ऊपर। मेरी एक-एक मसल्स।
फिर मैं और चौंक गया, जिस तरह से वो महक से मिली।
महक ने जोर से उन्हें हाय भाभी बोला और जवाब में उन्होंने महक को गले लगा लिया। और सिर्फ गले ही नहीं लगा लिया जिस तरह से वो दबा रही थी उसे और महक भी रिस्पांस दे रही थी। मेरी तो देखकर।
उन्होंने महक के कान में पूछा- “हे कहाँ गायब हो गई थी तू?”
महक- “भाभी वो लम्बी कहानी है। पहले आप इनसे मिलो…” उनसे अपने को छुड़ाती महक बोली- “इन्हीं के लिए आपको फोन किया था…”
जब तक गुंजा मुँह खोलती, महक बोल चुकी थी- “ये मेरे जीजू हैं…”
वो बोली- “अरे वाह। तब तो ये मेरे नंदोई हुए और सलहज का हक तो साली से भी पहले होता है…” और मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया।
जब मैंने उठने की कोशिश की तो उन्होंने दूसरे हाथ से मेरे कंधे को दबाकर बैठा दिया। इसके दो असर हुए, एक तो जब उनका हाथ मेरे कंधे पे था तो उनका पल्लू और बाल मेरे गाल पे छू गए। और दूसरा जब वो झुकीं तो मेरी निगाह उनकी गोरी गुदाज गोलाइयों पे पड़ गई, बल्की सच बोलूं तो चिपक गई। क्या कटाव क्या उभार। पूरा क्लीवेज दिख रहा था। और उसका असर जो होना था हुआ। ‘वो’ लगभग 90° डिग्री होकर सलामी देने लगा।
जैसे किसी भी मर्द की निगाह महिलाओं के सीधे ब्लाउज़ पे। मेरा मतलब चूचियों पे पड़ती है, उसी तरह लड़कियों की निगाह भी बल्ज पे भले ही वो हटा लें। और उनकी निगाह भी वहीं एक पल के लिए।
फिर वो बोली- “मैं डाक्टर दिया शर्मा…”
मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो उन्होंने चुप करा दिया और महक से बोली- “हे तेरे जीजू। इन्हें कहीं लिटा सकते हैं, मेरा मतलब एक्जामिन करने के लिए…”
पास खड़ी अमीषा बोली- “स्पा में मसाज टेबल है…”
डाक्टर दिया बोली- “तो चलो…” और मैं स्पा में मसाज टेबल पे लिटा दिया गया।
अमीषा, गुंजा और महक डाक्टर के साथ खड़ी थी।
और जब उन्होंने महक की लगाई दुपट्टे की पट्टी खोली तो मेरा दिल धक से रह गया। बगल के शीशे से साफ दिख रहा था और मेरे साथ सबको। दो इंच गहरा और साढ़े तीन इंच लंबा घाव था, खून अभी भी रिस रहा था। अगर चाकू थोड़ा सा और अन्दर गया होता तो हड्डी पे भी घाव हो गया होता।
अब मेरी समझ में महक की हरकत आई। वो लड़की है बहुत समझदार। अगर इस घाव के साथ मैं किसी हास्पिटल में जाता तो फिर तमाम सवाल, चाकू का घाव था। पहले पुलिस रिपोर्ट फिर कहाँ लगा? और अगर मैं डी॰बी॰ की सहायता फिर लेता। इससे ज्यादा आसान महक का तरीका था यहाँ बिना किसी शोरगुल के डाक्टर साहेब देख रही थी। डाक्टर ने एक टार्च मेरी आँख में डाली, उंगलियों को मुड़वाया, घाव के आस पास का स्किन थोड़े ध्यान से देखा।
तब तक महक चालू थी- “भाभी ने अभी बी॰एच॰यू॰ से एम॰एस॰ पूरा किया है, और डिप्लोमा…”
तब तक डाक्टर दिया ने आँख तरेरी और महक चुप होकर मुश्कुराने लगी।
डाक्टर दिया बोली- “घाव बहुत बड़ा है। स्टिच करना पड़ेगा, लेकिन मैं एनेस्थेसिया नहीं लायी हूँ। थोड़ा दर्द होगा। या फिर किसी प्राइवेट नर्सिंग होम में, आधे घंटे में अगर नहीं किया तो इन्फेक्शन सेट कर सकता है। फिर मुश्किल हो जायेगी…”
मैं बोला- “अरे आप स्टिच कर दीजिये ना। कहाँ नर्सिंग होम के चक्कर मैं लगाऊंगा…” मुझे भी घर जाने की जल्दी थी- “और हाँ अगर बेहाश ही करना है तो ये सब है ना यहाँ। एक बार मुश्कुरायेंगी तो मैं बेहोश जाऊँगा…”
सब एक साथ 1-2-3 बोल-कर मुश्कुरायी
लेकिन मैं बेहोश नहीं हुआ। जिसने लिखा था की मर्द को दर्द नहीं होता एक बार स्टिच करा के देखे। 6 बड़े-बड़े टाँके लगे।
गुंजा ने पूछा- “टाँके कटवाने के लिए?”
डाक्टर ने बोला- “नहीं नहीं, डिसाल्वेबल हैं। तीन दिन में अपने आप खतम हो जायेंगे। हाँ पांच-छ दिन में एक बार देखने से ठीक रहता, लेकिन ये तो आज जा रहे हैं। फिर?”
गुंजा झट से बोली- “हाँ लेकिन चार-पांच दिन के लिए। रंग पंचमी के पहले ये आ जायेंगे…”
“फिर क्या? फिर तो मैं थारो चेक अप कर लूँगी…” डाक्टर अब डाक्टर से सलहज वाले रंग में आने लगी थी।
मैंने कुछ पूछने की कोशिश की- “दवा। डाक्टर साहेब?”
उन्होंने बीच में बात काट दिया और महक से बोली- “हे यहाँ कोई डाक्टर वाक्टर है क्या?”
महक भी अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर चारों ओर देखते हुए बोली- “ना मुझे तो कहीं नहीं दिख रहा है…” और मेरी ओर आँख तरेर के बोली- “डाक्टर किसे कह रहे हो? ये मेरी प्यारी होने वाली भाभी हैं और आप मेरे जीजू तो…”
मैं बोला- “ओके डाक्टर भाभी…”
“सिर्फ भाभी…”
440 वोल्ट की मुश्कान के साथ जवाब मिला और डांट भी-
“अब चुप रहो। अभी इंजेक्शन लगेंगे और वो भी मोटे-मोटे। अमीषा इनकी पैंट नीचे करो और नीचे हाँ घुटने तक। ये इंजेक्शन तो चूतड़ में लगेंगे ना…”
अमीषा को तो जैसे इसी बात का इंतजार था। मैं पेट के बल लेटा था और जब उसने पैंट नीचे सरकाई तो उसके लम्बे नाखून, मेरे चूतड़ों के निचले भाग पे छू गए। जोर का झटका जोर से लगा।
लेकिन डाक्टर ऊप्स। भाभी को इससे संतोष नहीं हुआ। वो अमीषा से बोली-
“अरे यार तू तो ट्रेंड नर्स है। क्या इंजेक्शन चड्ढी के ऊपर से लगेगा, इसे भी तो सरकाओ नीचे…”
पता नहीं ये अमीषा की बदमाशी थी या महक और गुंजा की करतूत? चड्ढी भी घुटने तक पहुँच गई और अबकी अमीषा ने दोनों हाथ का इश्तेमाल किया। दो उंगलियां वहां भी छू गईं। क्या हालात हुई होगी कोई भी सोच सकता है।
गुंजा और महक ने स्कूल के बारे में बताना शुरू किया, बस चुम्मन का नाम और उससे जुड़ी बातें वो गोल कर गईं ये कहकर। की दो गुंडे थे। ये मैंने तीनों को और गुड्डी को भी अच्छी तरह समझा दिया था की उसका नाम किसी के सामने न लें।
“उयी…” मैं जोर से चिल्लाया।
अमीषा ने इंजेक्शन लगा दिया था। सारी की सारी। मुझे देखकर मुश्कुरा रही थीं।
अमीषा बोली- “अभी एक और लगाना है। ये तो टिटनेस वाला था अभी एंटी बायोटिक बाकी है…” वो आराम से धीरे-धीरे मेरे खुले नितम्बों पे इथर लगा रही थी।
डाक्टर कम भाभी बोली- “नहीं, उसकी तो आई॰वी॰ लगानी पड़ेगी। एक छोटी बोतल 10 मिनट में हो जायेगी। फिर इन्हें घर जाकर सिर्फ ओरल लेनी होंगी…”
महक मुश्कुराते हुए बोली- “भाभी। वो वाला इंजेक्सन लगा दीजिये ना तबियत हरी हो जायेगी, इनकी एकदम…”
“तू ना…” डाक्टर दिया ने उसे डपटा, फिर मेरे नितम्बों को हल्के से छुवा और छूते हुए उनकी लम्बी उंगलियां आगे भी टच कर गईं।
बड़ी मुश्किल से उसे मैंने 90° डिग्री होने से रोका।
मुश्कुराते हुए वो बोली- “हूँ रियेक्शन तो ठीक है। “चल तू बोल रही है तो लेकिन बहुत लाईट डोज…”
महक बोली- “नहीं भाभी। कम से कम मीडियम डोज…”
डाक्टर दिया बोली- “ओके चल तू भी क्या याद करेगी?”
महक ने मुश्कुराते हुए बोला- “भाभी मास्टर्स के बाद। ई॰डी॰ में डिप्लोमा करेंगी…”ई॰डी॰ मतलब एरेक्टाइल डिसफंक्शन। इतना तो मुझे भी मालूम था।
तुरंत महक के कान पकड़ लिए गए। मुश्कुराते हुए डाक्टर कम भाभी बोली- “ये बताना जरूरी था?”
महक बोली- “अरे आपके ननदोई हैं। इनसे क्या शर्म?” उसके कान अभी भी दिया के हाथ में थे।
दिया- “वैसे इन्हें कोई जरूरत नहीं पड़ने वाली है। लौटकर आयेंगे तो मैं जरूर डिटेल में चेक करूँगी
कान महक के उनके हाथ में थे लेकिन वो देख मुझे रही थी।
दिया- “रिटेलिन है?” अबकी वो अमीषा से बोली।
अमीषा ने मुश्कुराते हुए जवाब दिया- “हाँ एक वायल है…”
फिर दो-तीन और दवाएं डाक्टर दिया ने बोला और अमीषा ने कुछ देर में दवाओं का काकटेल तैयार कर दिया और एक इंजेक्सन और चूतड़ के निचले हिस्से में। पल भर में मुझे लगा की मेरा सारा दर्द गायब। मैं उठने लगा तो अमीषा ने फिर लिटा दिया, और मेरे कान में होंठ लगाकर बोली- “चुपचाप अच्छे बच्चे की तरह आँख बंद कर लो। बस दो मिनट तक और अच्छी-अच्छी बातें सोचो…” और उसने मेरी चड्ढी और पैंट ऊपर कर दिया।
गुंजा महक और डाक्टर दिया बाहर चली गई थी।
हाँ अमीषा ने पैंट ठीक करते-करते। मेरे अब लगभग तने जंगबहादुर को कसकर रगड़ दिया और अपने मोटे-मोटे नितम्ब मटकाती चल दी। जब मैंने आँखें बंद की तो बस वही, बड़े-बड़े कसे नितम्ब मेरी आँखों के सामने थे, और फिर डाक्टर भाभी की गोलाइयां। गोरी गुदाज, महक और फिर गुड्डी। दो मिनट में न जाने कहाँ की ताकत मेरे अंदर आ गई और आँखों के सामने बस।
“सो गए क्या?” महक की आवाज बाहर से आई और मैं उठकर बाहर निकला।
जहाँ हम पहले बैठे थे लिंगरी और कास्मेटिक्स के काउंटर के पास। वहीं सारे लोग थे। एक आई॰वी॰ स्टैंड अमीषा और डाक्टर भाभी मिलकर लगा रहे थे। उन लोगों ने मिलकर ड्रिप लगा दी। एक सेल्सगर्ल काफी, पेस्ट्री और साल्टेड काजू ले आई।
अमीषा ने मेरे पैर एक फूट बाथटब में डाल दिए थे, उसमें कुछ गुलाब की पंखुडियां पड़ी हुई थी और एक-दो साल्ट्स पड़े थे। नीचे मारबल राक्स थी जो मेरे तलुवे में हल्के-हल्के रगड़ रही थी। गुनगुने पानी में अमीषा ने लवेंडर तेल की कुछ बूंदें भी डाल दी थी जो बहुत रिलैक्सिंग थी। साथ में वो मेरे एंकल्स का मस्साज भी कर रही थी। ड्रिप खतम होने के पहले उसने मेरे पैर निकाल लिए और तौलिया से रगड़कर उसे एक्स्फोलियेट भी कर दिया। पूरी देह एकदम हल्की सी हो गई।
तभी मेरा फोन बजा। गुड्डी का फोन था वो बस दो मिनट में पहुँच रही थी।
मेरी ड्रिप निकालते हुए डाक्टर भाभी ने कहा- “बस अब तुम्हें किसी इंजेक्शन की जरूरत नहीं पड़ेगी। हाँ कुछ पिल्स मैं फार्मेसी पे निकलवा देती हूँ और एक-दो ड्रेसिंग। वो आप ले लीजियेगा…”
लो हो गई सालिया की मस्ती. और पेमेंट कर ही दिया. वाह आनंद बाबू नईकी साली का पूरा माझा ले रहे हो. और अब तो पीछे भी नहीं हटे.शोख शरारतें
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“बस अब तुम्हें किसी इंजेक्शन की जरूरत नहीं पड़ेगी। हाँ कुछ पिल्स मैं फार्मेसी पे निकलवा देती हूँ और एक-दो ड्रेसिंग। वो आप ले लीजियेगा…”
गुंजा ने कहा- “मैं समझ लेती हूँ…”
महक बोली- “ठीक है वैसे गुड्डी भी पहुँच ही रही हैं और वो इनके साथ जायेगी तो आप उनको समझा दीजियेगा तो और बेहतर रहेगा…”
डाक्टर भाभी बोली- “वो तो बेस्ट है उसे मैं ड्रेसिंग भी समझा दूंगी। एक-दो बार चेंज करना होगा बस…” और गुंजा के साथ फार्मसी की ओर चल दी।
“बिल अभी बाकी है…” महक ने आँख नचाकर कहा और उसमें काउंटर से एक बिल निकाल लिया।
“एकदम…” मैं बोला। मेरे मन में कुछ-कुछ हो रहा था। वो तो मुझे बाद में पता चला की जो दूसरा इंजेक्शन था उसमें युफोरिक और सटीम्युलेंट दवाओं का मिक्सचर था, जो स्लो रिलीज थी और उसका पूरा असर चार-पाँच घंटे में होने वाला था।
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महक ने एक डार्क कलर की लिपस्टिक निकालकर अपने होंठों पे अच्छी तरह लगा ली और फिर बिल पे पेमेंट की जगह अपने होंठों से किस कर लिया। वहां उसके होंठों के निशान पड़ गए थे। मेरी ओर बिल बढ़ाकर वो मुश्कुराकर बोली- “पेमेंट प्लीज…”
“श्योर…” मैं बोला और उसे बाहों में भरकर मेरे होंठ उसके होंठों पे चिपक गए। फिर उसके होंठों ने उसी गरम जोशी से जवाब दिया। मेरे होंठों को अपने आलिंगन में भरकर और उसकी जीभ मेरे मुँह में घुस गई। मेरे हाथ उसके स्कूल यूनिफार्म में कैद उन रूई के फाहे जैसे बादलों पे पड़ गए जिन्हें सीढ़ी पे गलती से मैंने छू दिया था। लेकिन अबकी ना मैंने हाथ हटाया ना सारी बोला बल्की हल्के से दबा दिया।
बगल के कमरे से गुड्डी की आवाजें आने लगी थी, तो महक मुझसे अलग हो गई।
मैंने बोला- “क्यों हो गया पेमेंट पूरा?”
उसने जोर से ना में सिर हिलाया और मुश्कुराकर बोली- “ये तो सिर्फ एडवांस था…”
तब तक गुंजा आ गई और बोली- “क्यों हो गया बिल पेमेंट। और महक के हाथ से वो लिपस्टिक लेकर मुझे दे दिया- “ले लीजिये याद रहेगा मेरी सहेली का बिल…”
गुंजा ने अमीषा से पूछा- “हे तुम्हारे पास स्ल्ट रेड है क्या?”
“एकदम…” वो बोली और उसने निकलकर दे दिया। गुंजा ने वो और तीन-चार शेड के लिपस्टिक ले लिए।
हम लोग बाहर निकले तो डाक्टर भाभी जा चुकी थी और गुड्डी काउंटर से दवाएं ले रही थी।