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फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६
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गुंजा
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लेकिन उसके दस पंद्रह मिनट पहले, इंजेक्शन के बाद का असर था शायद,थोड़ी तन्द्रा, खुमारी सी और मैं अधलेटा पहले जुमहाने लगा फिर सो जैसा गया। और मुझे सोता देख कर, महक, सेल्स गर्ल्स, गुंजा सब दबे पाँव बाहर खिसक ली, रह रह कर पक्षियों के कलरव की तरह उनकी चहचाहट दरवाजे से छन छन कर हलकी सी आ रही थी, कुछ देर बाद मेरी आँख खुली, अब तबियत एकदम फ्रेश लग रही थी, थकान,दर्द सब गायब हो गया था। लग रहा था इंजेक्शनों का असर हो चुका था। किसी तरह उस मसाज टेबल से मैं नीचे उतरा, अंगड़ाई ली, उँगलियाँ चटकाईं और दरवाजे की ओर देखने लगा।
उन भयावह यादो से अब मैं अपने को आजाद कर रहा था
बस दरवाजा खुल गया।
गुंजा,
एक पल के लिए वहीँ खड़े खड़े मुस्करायी, फिर पैरो से पीछे की ओर मार के दरवाजा बंद किया, और लगभग दौड़ती हुयी, सीधे मेरी अँकवार में
और सुबकने लगी, बस बिना कुछ बोले,
आंसू उसके गालों को गीला करते मेरे कंधे पर गिर रहे थे, और मैंने भी कस के उसे भींच लिया। हलके हलके उसकी पीठ सहलाता रहा, अपने होने का अहसास दिलाते, मेरे उँगलियाँ उसके फूल जैसी देह पर फिसल रही थीं और जितनी जोर से मैं भींच रहा था उससे ज्यादा जोर से वो चिपकी थी।
न उसके आंसू थम रहे थे, न मैंने उन्हें रोकने की कोई कोशिश की।
जिस हादसे से वो गुजरी थी, जहाँ बचने का जरा भी चांस नहीं था, खिड़की रोशनदान उमीदों के एकदम बंद थे, कोई एक छोटी से किरण भी नहीं आ रही थी, वहां से बस बच कर निकली थी, मौत जैसे सहला कर निकल जाए, जो लड़की अभी ढंग से कैशोर्य में भी न हो उसे ये सब देखना पड़े
लेकिन मैं सोच रहा था, अबतक बहुत कोशिश कर के सायास गुंजा ने अपने डर को दबोच कर पिंजड़े में कर के रखा था, लेकिन जरूरी था यह की यह सब एक बार बाहर निकल जाए, अब तक छेड़खानी कर के, सहेलियों के साथ हलकी फुल्की बातें कर के, जैसे यह न दिखाना चाहती हो की उसे कुछ हुआ भी है, पर अब,
और सुबकना अब हिचकियों में बदल गया था , और धीरे धीरे उन्होंने शब्दों की शक्ल ली
" जीजू, अगर तुम न आते, सच में " और फिर हिचकियाँ
मैं सिर्फ उसकी पीठ थपथपा रहा था,
" जीजू अगर तुम न आते सच, बस दो चार मिनट की देरी भी हर होती, "
और अब मैं काँप गया। वो मंजर मेरे सामने फिर से नाचने लगा और जो बात इन लड़कियों ने बताई थी की कैसे शाजिया का फोन छिना, महक के सीने के ऊपर टॉप पर अपना चाक़ू लगा के धमकया और चलने के पहले बोला, बस पांच मिनट और , ये पुलिस वाले बहुत चालाक बन रहे हैं न बस पांच मिनट और उसके बाद तुम तीनो ऊपर, धड़ाम
" कैसे नहीं आता मैं, होली के बाद फिर होली कैसे खेलता "
एक पल के लिए वो मुस्करायी, लेकिन फिर डर के बादलों ने चांदनी की मुश्के कस दी। फिर वह उन पलों में वापस हो गयी लेकिन हल्की सी मुस्कराहट उसके चेहरे पर खेलने लगी, मेरे गाल पर एक ऊँगली फिराकर बोली,
' लेकिन एक बार तू आ गया न तो बस मुझे लग गया, अब तो मेरा कुछ नहीं हो सकता, मैंने हाथ दबा के शाजिया और महक को भी अश्योर किया और जो आपने इशारा किया तो बस मैंने पहले शाजिया को और फिर महक को,
धुप छाँह का खेल चल रहा था, एक बार फिर से गुंजा उदास हो गयी। कुछ देर बाद खुद ही बोली, " आप के साथ होली अधूरी छोड़ के मैं जो आयी तो बहुत अफ़सोस हो रहा था और फिर अचानक ये डर लगने लगा की तुझ से दुबारा मिलूंगी की नहीं जैसे कोई अपशकुन की आहत आ रही हो "
मैं सिर्फ उसके बाल सहला रहा था और धीरे धीरे उसके कान में बोल रहा था अच्छा वो सब छोडो लेकिन जब चुम्मन आया और चाक़ू निकाला तब डर
नहीं लगा।
इतनी देर बाद वो खिलखिलाई, एकदम नहीं, तुम तो आ ही गए थे, अब सब जिम्मेदारी तेरी थी।
और जब सीढ़ी पर गोली चल रही थी, मैंने फिर पूछा
" एकदम नहीं यार तेरे रहते क्या डरना और जब शाजिया और महक नहीं डर रही थीं ,तेरी टांग खींच रही थीं तो मैं क्यों डरती, " हँसते हुए वो हसंनि बोली
शैतान का नाम लो, बल्कि शैतान की मौसी का नाम लो और वो हाजिर, उसी तरह झटाक से दरवाजा खोल के महक घुसी और साथ में एक सेल्स गर्ल
महक ने हम दोनों को चिपके देखा तो छेड़ा, अभी तक सिर्फ चुम्मा चाटी, चिपका चिपकी चल रही है या कुछ हुआ भी, और सेल्सगर्ल से बोली,
" यार जरा एक बड़ी शीशी वैसलीन की ले आना, नहीं, बल्कि के वाई जेली की एक ट्यूब उठा लाओ। "
" अरे नहीं दी, आर्गेनिक का ज़माना है, थूक से बढ़िया कुछ नहीं, जब हम लोग सुई के पतले छेद में लुजलुज लुजलुज धागा घुसेड़ सकते हैं तो इनका तो एकदम कड़ा तना है, " सीधे मेरे बल्ज को घूरती हुयी वो वो दुष्ट बोली। पर जवाब मेरी ओर से गुंजा ने दिया,
" कमीनी तेरे चक्कर में तो, जरा दो मिनट कोई चैन से चुम्मा चाटी तो कर नहीं सकता आगे की रील कैसे चलेगी। और अब जब होगा तो तेरे सामने होगा, होली के बाद जब जीजू आएंगे और तेरा शाजिया का भी नंबर लगेगा, जीजू लेते नहीं है चीथड़े चीथड़े कर देते हैं, चार दिन चल नहीं पाओगी। स्साली "
" अरे तो क्या डर है, मेरे तेरे यार ने पन्दरह दिन की छुट्टी तो करवा दी है न " हँसते हुए महक बोली।
लेकिन तबतक धड़ाक से दरवाजा खुला और हांफती घबड़ायी दूसरी सेल्स गर्ल अंदर आयी और इशारे से पहली वाली को अपने पास बुलाया , कान में कुछ फुसफुसाया और अपने फोन में कोई मेसेज दिखाया,
और वो सेल्सगर्ल भी एकदम सहम गयी, जैसे उसने भूत देख लिया हो। बस उसके मुंह से मुश्किल से यही निकला
" तो, अब "
कुछ पल पहले जो खुल के मजाक कर रही थी, छेड़ रही थी, खिलखिला रही थी, अब एकदम जड़। जैसे उसके गोरे चिकने चेहरे पर किसी ने कालिक पोत दी हो। और तब तक उस लड़की के फोन पर भी मेसेज आया उसके घर से, और उसे पढ़ते ही उसके पैर जैसे पानी के बने हो एकदम ढीले पड़ गए, सांस फूलने लगी और उसने फोन सीधे मेरे हाथ में पकड़ा दिया,
' तुरंत घर चली आओ । महौल खराब हो रहा है, बहुत ज्यादा टेंशन है, हर जगह पुलिस है, लोग कह रहे हैं कई जगह दंगा हो गया है, बस कर्फ्यू लगने वाला है, टीवी चैनल वाले दिखा रहे हैं। कुछ भी हो सकता है, हम सब के बगल वाला मोहल्ला तो तुम जानती हो कैसेलोग है, उधर से मत आना, बस . उस लड़की का मुंह सूख गया था, कुछ उसके समझ में नहीं आ रहा था, कभी महक को देखती, कभी दूसरी सेल्स गर्ल, लेकिन कनखियों से मेरी निगाह गुंजा पर पड़ी
और वह जड़ हो गयी थी, एकदम संज्ञा शून्य। उसने मेरे हाथ को पकड़ रखा था लेकिन अब उसे छोड़ दिया था, जैसे उम्मीद ने उसका साथ छोड़ दिया हो। बस सूनी आँखों से छत को देख रही थी, जैसे बस नियति का इन्तजार करना था, लेकिन बाकी लोग उसकी इस हालत से नावाकिफ थे. उस लड़की का मुंह सूख गया था, कुछ उसके समझ में नहीं आ रहा था, कभी महक को देखती, कभी दूसरी सेल्स गर्ल, लेकिन कनखियों से मेरी निगाह गुंजा पर पड़ी
और मैं समझ रहा था उसकी हालत को, कितनी मुश्किल से वो हादसे वापस आयी थी, धीरे धीरे सामन्य हो रही थी, लेकिन एक बार फिर वही लौट गयी थी।
और फिर किसी ने टीवी खोल दिया।
वहां तो एकदम आग लग हुयी थी, एक ऐंकर चीख रखी, ' पुलिस लड़कियों के नाम क्यों नहीं बताती , प्रेस के सामने उन लड़कियों को पेश करने में क्या डर है, क्या वह बता देंगी उनके साथ क्या हैवानियत हुयी। जागो, जागो कौन है हमारी होली को बर्बाद कर रहा है, मालूम आप सब को है, हर बार हमारे धार्मिक स्थल त्यौहारों पर ही हमला क्यों होता है '
नीचे रनर चल रहा था, पूरी शहर में तनाव, कई जगह दुकाने फूंकी गयी, पूरे शहर में पुलिस की गस्त जाती, अघोषित कर्फ्यू थोड़ी देर में नदेसर में एसटीएफ की प्रेस कांफ्रेस
दुसरे चैनल पे बनारस लोकल नेटवर्क आ रहा था और वहां और भी आग में घी नहीं प्रेट्रोल डाला जाला जा रहा था। पीछे पुराने बम्ब कांडो की
फ़ाइल पिक्चर दिखाई जा रही थी और कुछ किसी और शहर के दंगो की, और उसी बैकग्राउंड में एक टीका वीका लगाए जो किसी मंच के अध्य्क्ष थे, प्रकट हुए। हर वैलेंटाइन को उनका मंच प्रकट हो जाता था, लड़के लड़कियों को पकड़ने के लिए
" जो कहते हैं आतंकी का कोई धरम नहीं होता, झूठ बोलते हैं, गद्दार है, लाशो की राजनीति करते हैं। और आज भी आतंकी का धर्म था वो तो एसटीएफ के लोगों ने जान पर खेल कर लड़कियों को बचा लिया, लेकिन हमारा भी धर्म है, आज हमें सिखा देना है, की हमने चुडिया नहीं पहन रखी हैं अगर हम अपने पर उतर आएं तो उनकी ऐसी की तैसी कर देंगे। आज समय घर में बैठने का नहीं है, क्या आप चाहते हैं की आपके बहन बेटियों की इजजत बचे तो बाहर निकलिए, वो दस हैं तो हम हजार है, '
और तभी मेरा फोन घनघनाया, डीबी का फोन था,
" तुरंत निकलो, और हाँ कार वार से नहीं, सड़क पे मुश्किल हो सकती है। "
मैं फोन लेकर कमरे के कोने में आ गया था, पहली बार डीबी घबड़ाये लग रहे थे, लग रहा था, वो भी बहुत टेंशन में हैं, लेकिन उन्होंने प्रॉब्लम का हल भी बताया, " गुड्डी से कहना, और हाँ पुलिस से अबकी कोई हेल्प नहीं मिलेगी, हाँ बहुत होगा तो सिद्दीकी के टच में रहना और मुझे इसी फोन पे '
मुझे लग रहा था की पुलिस की कोई गाडी, हमें गुंजा के घर पहुंचा देगी लेकिन वो भी नहीं, और एक बात और बोल के डीबी ने फोन काट दिया
" पन्दरह बीस मिनट के अंदर पहुँच जाओ और गुंजा का बहुत ध्यान रखना "
और उसी समय गुड्डी भी कमरे में दाखिल हुयी, एकदम बद हवास, ' हम लोगो को तुरंत निकलना होगा, हालत बहुत तेजी से खराब हो रही है
अचानक से इस तरह माहोल ख़राब होने का कारन क्या?? DB ने तुरंत निकल जाने को कहा. वो भी पुलिस की गाड़ी से नहीं. मगर गुड्डी तो गुड्डी है. मोटरसाइकिल. अमेज़िंग. ऑपरेशन गुंजा बचाओ अब भी जारी है.भाग ३५ -हवा में दंगा
४,६६,७८०
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सब लोग चुप खड़े थे, कुछ डरे सहमे, कुछ के समझ में नहीं आ रहा था क्या बोलें।
गुंजा को जैसे काठ मार गया था, लग रहा था एक बार फिर उसने मौत देख ली है, आँखे एकदम खुली, भावशून्य, चेहरा पथराया, और गुंजा की हालत देखकर मेरी हालत भी कम खराब नहीं थी। मैं समझ रहा था, अबकी खतरा बहुत बड़ा है, किधर से आएगा, पता नहीं और जिस तरह से डीबी ने बोला था, कहीं न कहीं उस तूफ़ान के केंद्र में गुंजा थी, और अगले आधे घंटे, जबतक गुंजा घर नहीं पहुँच जाती,.... बहुत भारी पड़ने वाले थे।
दोनों सेल्स गर्ल भी डरी सहमी एक दूसरे को देख रही थीं,
गुड्डी एकदम दरवाजे पर खड़ी हम सब को देख रही थी, पर चुप्पी तोड़ी महक ने और वो सेल्स गर्लस से बोली,
" बस घबड़ा मत, मैं हूँ न। कुछ होगा तो तुम दोनों आज मेरे घर चल चलना,... लेकिन उसके पहले, बस ज़रा पांच मिनट
और महक ने दोनों आफिसब्वॉयज को आवाज दी और उन्हें काम पकड़ा दिया, एक से बोली,
" तू जरा नीचे बेसमेंट से देख ले, वो बगल वाली सड़क पर, थोड़ी दूर जा के कैसा हालचाल है, कोई भीड़ वीड़ तो नहीं है "
और दूसरे से बोला, बाहर के सारे शटर बंद कर दो, डबल लॉक भी कर दो और अंदर की दुकानों के भी अलग अलग शटर गिरा दो। सब लाइट बंद कर दो और मेन स्विच से भी बंद कर दो, कैमरे चेक कर लेना। और उन दोनों के जाते ही, उसने अपनी दोनों सेल्स गर्ल्स को बड़ी सी तंजौर पेंटिंग की ओर इशारा किया,
मेरी समझ में नहीं आरहा था, की ऐसी हालत में जब एक एक मिनट कीमती है ये तंजौर पेंटिंग, लेकिन उसके हटते ही मुझे खेल साफ़ हो गया
उसके नीचे कई खानो में कुछ गिनतियाँ लिखी थीं जैसे दुकानों पे शुभ लाभ इत्यादि के लिए करते हैं लेकिन वो कोई कोड थे और उसी का कुछ दूना तिगुना कर के, महक ने अपनी पांचो उँगलियाँ लगायीं और दीवाल हल्की सी सरकी और उस पेंटिंग इतनी ही बड़ी लेकिन खूब गहरी एक सेफ नजर आयी।
दोनों सेल्स गर्ल अबतक काम में जुट गयीं थीं, महंगे आई फोन, आई पेड, इम्पोर्टेड परफ्यूम और भी चीजें निकाल के एक बैग मेन दाल रही थी और तबतक दीवाल में लगी दूसरी सेफ खोल के उसमे रखे पैसे भी निकाल के एक दूसरे बैग में महक ने डाल लिए और वो दोनों बैग उस बड़ी सी सेफ में,
अब तक मैं समझ गया था खेल, सबसे बड़ी बात यह थी की वह सेफ फायर प्रूफ और बॉम्ब प्रूफ थी, तो लूटने वाले दूकान लूटने के बाद अकसर आग लगा देते हैं तो उस आग में भी वह सेफ बची रहती और उसके अंदर रखा सामान भी। सेफ बंद कर के फिर से पेंटिंग वहां लगाने के बाद हम लोग कुछ और बात करते की दोनों लड़के आ गए और पता चला की माल के पीछे वाली सड़क, जो सड़क क्या एक चौड़ी सी गली है, वो अभी भी थोड़ी सेफ है, दो चार दुकाने खुली हैं लेकिन वो लोग भी बंद कर रहे थें और सब लोग यही कह रहे हैं की दंगा कभी भी हो सकता है , कुछ कहना है की शुरू हो गया है, हाँ इधर नहीं होगा। पर सड़क पर एकदम सन्नाटा है।
मेन रोड की हालत हम लोग पहले दी देख चुके थे, एकदम अघोषित कर्फ्यू जैसा, सिर्फ पुलिस की गाड़ियां दिख रही थीं।
"चल तू दोनों अब पीछे वाली गली से निकल जा, अभी तो कोई बात नहीं है " महक ने सेल्स गर्ल्स से बोला
" हाँ, मैं तो पांच मिनट मे घर पहुँच जाउंगी और कुछ होगा तो ये भी वही रुक जायेगी और बाद में चली जायेगी, गली गली हो के " और वो दोनों निकल दी,
" डीबी का फोन आया था "
मैं गुड्डी से बोला, फिर मुझे लगा महक और गुंजा को तो नहीं मालूम होगा तो साफ़ साफ़ बताया, " एस एस पी साहेब का फोन आया था, की हम लोग तुरंत निकल जाएँ और कार से नहीं, क्योंकि सड़क पर प्रॉब्लम हो सकती है "
पुलिस थाने से तो हम लोग महक की कार से आये थे और होटल से पुलिस थाने तक, पुलिस की गाडी से और पुलिस की गाडी डीबी ने साफ़ मना कर दी थी तो कैसे ?
पर गुड्डी थी न वो झट से बोली, तो बाइक से चलते हैं, गली गली में आसान भी होगा, ट्रिपलिंग कर लेंगे।
पर हम तीन थे और ये कोई एक्टिवा वाला मामला नहीं था, लेकिन महक और गुड्डी ने मिल के रास्ता साफ़ कर दिया। गुड्डी और गुंजा की देखा देखी अब महक भी हड़काने लगी थी,
" अरे जीजू, चुम्मन से लड़ना नहीं है, ...न पढाई और न कम्पटीशन पास करना है, बनारस में चुपचाप बनारस की लड़कियों की बात मान लिया करिये, फायदे में रहेंगे। "
और हम तीनो, एक पतली सी सीढ़ी से बेसमेंट में उतर गए, और सीढ़ी का रास्ता भी महक ने बंद कर दिया। बेसमेंट में पूरा अँधेरा था और मेन स्विच बंद हो गयी थी, लेकिन मोबाइल की लाइट में महक ने एक बाइक पर का कवर उतारा और मेरी चीख निकलते निकलते रह गयी।
रॉयल इन्फिल्ड हंटर ३५० टॉप
और वो भी एकदम बढ़िया कंडीशन में, एकदम चमक रही थी और महक ने मेरे बिना पूछे, बता दिया, " प्रीति दी की है "
प्रीति, यानी महक की बड़ी बहन, जिसके चक्कर में चुम्मन पड़ा था, और जिसके मना करने पर एसिड फेंकने की कोशिश की थी, वो तो गुड्डी ने उसे खींच लिया और वो बच गयी, बस पैर पर जरा सा पड़ा, तो वही ये बाइक चलाती थी लेकिन अब प्रीति ने बनारस छोड़ दिया था तो उसकी बाइक यहाँ बेसमंट में खड़ी थी।
और गुड्डी के बाइक ज्ञान का रहस्य भी पता चला, रीत के चक्कर में,
रीत का कोई ब्वाय फ्रेंड था, आई एम् ए ( इंडियन मिलेट्री एकदमै ) में , उसी के पास एक जबरदस्त बाइक थी, तो जब वो आता तो उसी बाइक पे रीत उस के पीछे चिपकी, लेकिन उस ने रीत को भी सिखा दिया तो अब रीत गुड्डी को पीछे बैठा के पूरा बनारस नापती, और रीत से गुड्डी ने भी थोड़ा बहुत, लेकिन अब जब गुड्डी ने एक नई ट्रिक सीख ली थी, जब वो बाइक लेके आता, तो बस रीत को वो समझा देती, " दी, जरा एक घंटा " और दोनों कबूतरों के गुटरगूं में एक घंटा कब दो घंटा हो जाता पता नहीं चलता और गुड्डी बाइक ले के गली गली, और एक दो बार गुंजा को भी पीछे बैठा के,...
बाइक कौन चलाएगा, अब इस का सवाल ही नहीं उठता था, गुड्डी को गलियों का पूरा जाल मालूम था और अब हम तीनो बाइक पे , महक ने हेलमेट का भी इंतजाम कर दिया था,
बेसमेंट का एक रास्ता पतली गली में खुलता था जो आगे चल कर एक चौड़ी गली कहें, या पतली सड़क उस से जुड़ जाता था, जब तक हम लोग वहां तक नहीं पहुँच गए, महक देखती रही।
उस ने अपने ड्राइवर को फोन कर दिया था की हम लोगो का सामान लेकर सीधे गुंजा के घर,
क्या माहोल तैयार किया है आपने. मान गए komalji. दंगा शहर मे फेल चूका है. जगह जगह दंगाई अलग अलग रूप मे है. CM साहब चाहते है की लड़किया सलामत घर पहोच जाए. क्यों की सनार्थन से जुटी सरकार को गिराने का प्लान है. जिसमे माफिया भी शामिल है. और ऐसे मे गुंजा पर भी हमला हो सकता है. अमेज़िंग अपडेट.सड़क पर सन्नाटा
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मैं पीछे से गुंजा को कस के पकडे था, लेकिन बाज की तरह मेरी निगाहें चारो ओर घूम रही थीं,
खतरा कहीं से भी आ सकता था, लेकिन सब से ज्यादा डर मुझे सन्नाटे से लग रहा था, मॉल के पिछवाड़े से निकली उस पतली गली में तो अभी जिंदगी कहीं कहीं टहलकदमी करती दिख रही थी, कूड़े के ढेर के आस पास मुंह मारती एक दो गायें, बगल से आकर मिलती गलियों से झांकते एक दो बच्चे, कहीं कहीं लग रहा था चाय की टपरी बस अभी बंद हुयी थी, पर जैसे ही हम लोग सड़क पर आये,
बस मैं दहल गया।
एकदम सन्नाटा, बनारस की सड़कों पर तो आधी रात को भी इतना सन्नाटा नहीं रहता, और तिझरिया को, सड़क एकदम जनशून्य, दुकनों के शटर बंद, पटरी पर भी जैसे ठेले वालों ने जल्दी जल्दी अपनी दुकाने समेट कर घर की राह ली हो, सड़क के अगले मोड तक सड़क एकदम साफ़ दिख रही थी, हाँ मोड़ पर जरूर दो चार पुलिस वाले, डंडा धारी, अपनी चिरपरिचित वीतरागी मुद्रा में बैठे थे, हाँ, उनमे से एक कभी कभी गलियों की ओर देख ले रहा था, पर थोड़ी देर आगे ही मैंने बायीं ओर ध्यान से देखा तो एक बंद दूकान के सामने पी ए सी के पांच छह जवानो का दस्ता रायट गियर में बैठा था।
दिन में इतने तरह की आवाजें सुनाई देती थीं,... रिक्शे टेम्पो वालों की, ठेले पर सामान बेचने वाले, भीड़ की अपनी कचर मचर, स्कुल से छूट कर घर जाती लड़कियों की बातें....उन्हें घर पहुंचाते आँखे सेंकते लड़को के कमेंट्स, छज्जे पर से झाकंती औरतें और फागुन अपनी चरम सीमा पर था तो कुछ नहीं बच्चे अपनी प्लास्टिक की पिचकारियों से पानी ही पचर पचर फेंकते
कभी नीरवता ही आशंका को,... कभी भी हो सकने वाली अनहोनी की आहट को, जन्म देती है,... और इस समय वह सन्नाटा चीख रहा था,
छुप जाओ, घर में घुस जाओ, पहले जान बचाओ
मैं उस सन्नाटे को सूंघ सकता था, हवा में बारूद की घुली गंध की तरह दंगे की महक को पहचान रहा था, और जो कुछ भी मैंने डीबी की बातें सुनी थीं, टीवी पर देखा था, और अभी सड़क पर, गलियों में देख रहा था, समझ रहा था, बस यह साफ़ था की बारूद का ढेर जगह जगह रख दिया गया है, बस एक चिंगारी की देर है,
और जो डर मैंने पहली बार डीबी की आवाज में सुना था, ' जल्दी निकल जाओ, गुंजा को लेकर, बस पन्दरह बीस मिनट में घर पहुंच आओ "
साफ़ था उनकी टाइम लाइन में भी आनेवाला खतरा घंटों में नहीं अब मिनटों में था और अगर वो उन्होंने रोक लिया तो शायद तूफ़ान रुक जाए नहीं तो सब तूफ़ान में तिनके की तरह उड़ जाएगा, और कहीं न कहीं उस आने वाले तूफ़ान के केंद्र में गुंजा थी।
मेरी आँखे चारो ओर देख रही थीं, कान भी आँख बन गए थे, पर दिमाग अलग चल रहा था।
मैं चूल से चूल भिड़ा रहा था, कौन है जो,...
और, एक नहीं अनेक लोग नजर आ रहे थे जो परछाई में थे। राजनीतिक, आर्थिक, माफिया और भी न जाने कितने चेहरे धुंध में छिपे थे, और जो डीबी ने डिप्टी होम मिनिस्टर के बारे में बताया था, चीफ मिनिस्टर से जिस तरह डीबी की बात हुयी थी, साफ़ लग रहा था,
माइनॉरिटी गवर्मेंट थी, लॉ और आर्डर के नाम पर कुछ दिन पहले आयी थी, और एक एक एक एम् एल ए की कीमत थी।
और डिप्टी होम मिनिस्टर की पकड़ एक बड़े जाति समूह के साथ साथ दस बारह एम् एल ए पर तो प्रत्यक्ष थी और धीरे धीरे जो भी अंसतुष्ट होता, जिसके कहने पर थानेदार, कलेकटर की पोस्टिंग नहीं होती, वो भी उन्ही के साथ चिपक रहा था। केंद्र और संगठन भी बड़े तगड़े मुख्यमंत्री के पक्ष में नहीं था तो वो डिप्टी के लिए कवच सा था। और उन्हें हटाना चीफ मिनिस्टर के लिए सम्भव नहीं था, पर उन्होंने कुछ पोस्टिंग ट्रांसफर अपने हाथ में लेकर लगाम पकड़ रखी थी।
डिप्टी होम मिनिस्टर, थे पूर्वांचल के ही और पुरानी सरकार वाले दल से छलांग लगा के इधर आये थे, और वहां भी राजनीतिक दबंग थे। होम मिनिस्टर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थे, ईमानदार थे, और सबसे बढ़ कर चीफ मिनस्टर के वफादार थे, लेकिन सब जानते थे की वो पोस्ट आफिस की तरह ही काम करते थे।
अगर दंगा हुआ तो, एक बड़ा तयशुदा प्रोटोकॉल था, एस एस पी और एक दो और अधिकारी सस्पेंड होते थे और उसके बाद वो कब कहाँ पोस्ट होंगे उसका कोई ठिकाना नहीं था। और डीबी को हटाना बहुत लोग चाहते थे, जिनमे डिप्टी होम मिनिस्टर भी थे।
लेकिन निशाने पर सिर्फ डीबी नहीं होते, होम मिनिस्टर और अगर कहीं दंगा लम्बा चल गया तो चीफ मिनिस्टर भी आ सकते थे।
माफिया दमन की डीबी की नीति से माफिया वाले तो नाखुश थे ही बहुत से हर पार्टी के नेता भी दुखी थे। और माफिया ख़तम कभी होता नहीं , वो बस सरक लेता है, नए कपडे पहन लेता है बहुत हुआ तो कुछ दिन के लिए दुबक लेता है। और यहाँ भी बहुत लोग बगल के राज्यों में चले गए थे, कुछ ने फुल टाइम ठीकेदारी शुरू कर दी थी, लेकिन उनके लड़के, मसल मैन, फ़ॉलोअर्स तो थे ही और एक फोन पर इकठ्ठा हो जातेतो राजनीती के साथ माफिया और मसल्स मैन की भी कमी नहीं थी।
और बाकी पहलु भी थे, एक तो बिल्डर, गुड्डी के साथ पैदल आते मैंने देखा था की कितने मकान गिर रहे थे, कुछ खाली पड़े थे , नया कंस्ट्रशन हो रहा था तो हर दंगे के बाद शहर की सोशल डेमोग्राफी बदल जाती है और लोग किसी भी दाम पर दंगा ग्रस्त मोहल्लो से बाहर निकलना चाहते हैं।
तो बारूद का ढेर तैयार था, उसमें चिंगारी लगाने वाले तैयार थे और उसके बाद जो दावानल धधक धधक कर जलाता उसमें हाल सेंकने वाले भी तैयार थे, और सवाल था सिर्फ चिंगारी का जो उस भूस के ढेर को जला देती,
और ये चिंगारी थी गुंजा।
मेरे कानो में सी एम् की बात गूँज रही थी, जब वो डीबी से बात कर रहे थे, उन्होंने सिर्फ एक इंस्ट्रस्क्शन दिया, ' लड़कियों को जल्द से जल्द सुरक्षित उनके घर पहुंचाओ '।
जो भी मेरा थोड़ा बहुत अनुभव था, मै यह समझ गया था की नब्ज पर पकड़ पॉलिटिशियन की ही होती है, वह दूर से आने वाले तूफ़ान को किसी भी नौकरशाह से पहले देख लेता है। हाँ यह बात अलग है की वह आपदा में अवसर ढूंढते हैं और कबाड़ से भी जुगाड़ लगा लेते हैं।
और जब मै शाजिया को छोड़ने घर गया था तो एक पुलिस की गाडी ने महक के अंकल की खड़ी गाडी को देख कर बोला था की आप लोग जल्दी से गाडी हटा लीजिये और उसमें दो स्कूल यूनिफार्म में लड़कियां भी दिखी होंगी, और महक के अंकल को बहुत लोग जानते थे तो ये पता ही चल गया होगा की महक बस अपने घर पहुँच रही है, और
तो बची गुंजा।
और जिस तरह से निकलने के पहले हम लोग सीढ़ी पर फंस गए थे, बाहर से किसी ने ताला बंद कर दिया था, फिर बिना डीबी के इंस्ट्रक्शन के कुछ लोगों ने फायरिंग शुरू कर दी थी, मुझे लग रहा था की पुलिस में कुछ लोग निचले लेवल पर है जो इन्फो लिक करते हैं
और गुंजा के घर न पहुँचने की बात पता था, और इसलिए डीबी ने साफ़ बोला था, तुम लोग निकलो, जल्दी घर पहुंचो। उन को भी डर था की कही गुंजा के साथ कुछ हादसा हो और उस का इस्तेमाल दंगा भड़काने के लिए किया जाए , और उस के साथ गले में पटका लटकाये जो आदमी आग लगा रहा था, भड़का रहा था, कौन है जो हमारी लड़कियों के साथ, कौन है जो हमारे त्यौहार पर,
तो अगर कहीं गुंजा पर हमला हुआ, ....घायल लड़की, ...स्कूल की यूनिफार्म, ....और मै सोच भी नहीं सकता था की क्या क्या कर सकते हैं, वो गुंजा के साथ, बस एक बार उनके हाथ आ जाये,
और अबकी शुक्ला के गुंडों की तरह दो तीन लोग नहीं होते न ही चुम्मन की तरह कोई अकेला होता और वो भीड़ तैयार होकर आती
मैंने एक बार फिर से कस के गुंजा को दबोच लिया था, लेकिन तभी कही दूर से किसी और गली से, हो हो की आवाज सुनाई पड़ी
पर गुड्डी थी न हमारी सारथी, उसने हंटर को तेजी से मोड़ा, और एक एकदम पतली सी गली में बाइक घुसा दी। मुझे लग रहा था यह गली आगे बंद होगी, सामने दीवाल साफ़ दिख रही थी पर दीवाल के ठीक पहले एक शार्प टर्न और हम लोग दूसरी गली में, कुछ दूर पर ही एक सड़क थी वहां पुलिस की एक वान खड़ी थी, मैंने चैन की सांस ली, पर गुड्डी ने उस सड़क को पार कर दायीं ओर दूसरी गली में, फिर एक चौड़ी गली कहें या पतली सड़क, सीधे वहीँ,
और तेजी से ब्रेक लगा दिए ।
सामने एक वृषभ महोदय बैठे थे।
क्या मज़ेदार अपडेट है komalji. ऐसे डरावने वक्त मे भी तुम्हारी साली गुंजा और तुम्हारी गुड्डी फूल मज़ाक कर रही है. वृषभ देवता को प्रणाम करो और आगे बढ़ो. क्यों की आ गई है डालमंडी. जहा तुम्हारी बाहनिया का बुकिंग गुड्डी करवाने वाली है. आप का तो ऐसे मौके पर भी खिंचाई हो रहा है आनंद बाबू.दालमंडी
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खच्चाक, जोर का ब्रेक लगा और रॉयल एनफील्ड हंटर ३५० वृषभ देव से बस कुछ इंचो पहले रुकी।
लेकिन न बनारस वाली गुड्डी को फर्क पड़ा न वृषभ देव को, बल्कि गुड्डी ने मुड़ कर गुंजासे कुछ कहा और उस का पूरा डर खिलखिलाहट और मुस्कराहट में घुल गया, और उसने भी गुड्डी के कान में कुछ कहा।
अब गुड्डी के खिलखिलाने की बारी थी और गुंजा को चढाती उकसाती वो सारंग नयनी बोली,
" तू ही बोल न , चिपक के तो तुझसे बैठे हैं "
" अरे जल काहें रही हैं, एक बार आजमगढ़ पहुँच जाइये, रात भर चिपकी रहिएगा, " गुंजा कौन कम थी, आखिर वो भी तो उसी चु दे बालिका विद्यालय की छात्रा थी, जिसकी गुड्डी थी। लेकिन मेरे कुछ बोलने के पहले पलट के वो मुझसे बोली,
" जीजू प्रणाम करिये, आपके आदरणीय " और आगे की बात दोनों किशोरियों की खिखिलाहट में खो गयी। आज गुंजा खुल के मेरे साथ थी और गुड्डी को छेड़ते बोली,
" मेरे जीजू कौन कम हैं, और जो भी हो, फायदा तो आप ही को होगा न , कल सबेरे फोन कर के पूछूँगी "
गुड्डी ने मुड़ के कस के एक हाथ लगाया, बीरबहूटी की तरह लजा गयी, गाल लाल हो गए और वृषभ देव के बगल से निकाल के थोड़ा आगे बढ़ा के बाइक रोक दी, पैर लगा के और चारो ओर देखने लगी।
और मैं भी, और मैं गुड्डी की ट्रिक समझ गया था।
मेरे मन जो दंगों का डर था, आग के दावानल बन जाने का भय था वह इंगेज़्क्षसह हो रहा था और गुंजा जो वैसे ही डरी सहमी थी और घबड़ा रही थी। ऊपर से थोड़ी देर पहले जो हो हल्ला सुनाई पड़ा, बस लग रहा था हमले से बचाना मुश्किल था। लेकिन अब जहँ हम थे वहां पहले तो वो हल्ला नहीं सुनाई दे रहा था, दूसरे माहौल भी थोड़ा सामान्य सा था।
एक दो बार मैंने देखा तो मुस्कराये बिना नहीं रह पाया, दाल मंडी,
, कल रात हम लोग होली की शॉपिंग में गुड्डी के साथ गुजरे तो थे यहाँ से,
कल रात तो ये बाजार पटा पड़ा था, मुझे क्या सबको मालूम था की नीचे दुकानें हैं लेकिन असली दुकाने ऊपर सजती हैं, कोठों पर, कहीं कहीं क्या अभी भी बहुत से कोठों से तबले, सारंगी और घुंघरुओं की आवाज सुनाई पड़ती है, शादी ब्याह में मुजरे के लिए दालमंडी की रंडिया मशहूर हैं लेकिन साथ साथ देह व्यवसाय की भी दुकाने, और बगल की पतली गलियों में तो वही खुल के, और भंडुए खुल के सड़क पे सौदा करते हैं
बाकी शहर की तरह आज यहाँ भी सन्नाटा था, लेकिन उस तरह खौफनाक नहीं।
दुकाने तो सब की सब बंद थीं, सड़क पर भी हमारी बाइक और वृषभ देव के अलावा कोई नहीं था, लेकिन छज्जे से अभी भी कुछ रंगी पुती औरतें झाँक रही थी, ग्राहकों के चक्कर में नहीं, कुछ तो उत्सुकतावश और कुछ बस बोर हो के, लग रहा था दंगे के आनेवाले दावानल का डर लगता था बस छू के बगल की किसी गली से निकल गया था, और गुड्डी ने मुझे खींचना शुरू किया,
:" तेरे जीजू को दिखाने ले आयी हूँ, देख ले ठीक से अपनी बहिनिया का अड्डा, बनारस से जाने से पहले, आखिर आजमगढ़ जा के का बताएंगे उसको "
लेकिन गुंजा बजाय खुश होने के मार गुस्से से फूल गयी, " लेकिन दी आपने तो बोला था की जीजू उसे हमारे भाइयों के लिए लाएंगे अउ रॉकी के लिए, पर ये क्या उससे भी कमाने के चक्कर में पड़ गए "
" अरे बुद्धू, "गुंजा के नरम नरम गाल सहलाते गुड्डी बोली,
" तेरी बात एक बार तो मैं सोच लूँ टालने को लेकिन तेरे जीजू की हिम्मत है नहीं है तेरी बात टालने की, आज पिछवाड़ा बच गया है, लौट के आएंगे तो थोड़ी बचेगा। पहले तो हम सब के भाई, मोहल्ले के, रिश्ते के दूर के नजदीक के, और रॉकी, वो कौन भाई से कम है, अरे निकलने के पहले उसको नमस्ते कर के आये हैं तेरे जीजू, उनका जीजा लगेगा न , लेकिन दो चार दिन के बाद डबल ड्यूटी, रात में यहाँ और दिन में मोहल्ला औरंगाबाद गुलजार करेंगी। दिन में यहाँ वैसे भी सन्नाटा रहता है और रात में पांच छह तो उतार ही लेंगी वो, "
गुड्डी का बयान जारी था, लेकिन गुंजा और खौराई थी,
" अरे नहीं दी स्साली छिनार, पांच छह क्यों, आठ घंटे की भी डुयटी मानिये तो आधे घंटे में एक मानिये तो १६, चलिए १६ नहीं तो कम से काम बारह तो चढ़वायेगी ही, फिर कितने तो पिछवाड़े वाले छेद के भी, आखिर मेरे जीजू का हजार रूपये रात का तो हिस्सा बनाना चाहिए वरना हम सालियों की शॉपिंग कैसे होगी " गुंजा मुझे देखती बोली।
लेकिन मैं समझ रहा था गुड्डी का असली खेल,
उस हो हल्ले के बाद एक पल के लिए वो भी सहम गयी थी और खतरे को आंक रही थीं , वह साथ में चारो ओर से आने वाली गलियों को देख रही थी। दूसरे मुझे भी लग रहा था की कोई सोच भी नहीं सकता था की हम लोग यहाँ पहुँच गए होंगे, और दूबे भाभी की कोई परिचित महिला भी यहाँ रहती थीं तो कुछ देर के लिए यह जगह अभय दान देने वाले लग सकती थी,
बगल की पतली गली के पहले मकान में ही एक औरत, एक आदमी को धक्के दे के निकाल रही थी,
" हो तो गया स्साले, अब जाओ "
" अरे सांझ तक रुकने दो, इस हालत में कहाँ जाएँ " वो गिड़गिड़ा रहा था।
" स्साले अपनी बहिनिया की बुरिया में जाओ, उसके भोंसडे में जाओ, लेकिन यहाँ से जाओ, थोड़ी देर में गहकी का टाइम हो जाएगा "
ये कह के उसने दरवाजा बंद कर लिया, और वो आदमी शराब के नशे में धुत्त, पास में ही एक बंद पान की दुकान के नीचे लेट गया।
और गुड्डी को जैसे इशारा मिल गया हो, बस उस पतली सी गली की ओर उसने हंटर को एक झटके में मोड़ दिया, जोर का झटका जोर से लगा और गुंजा मुझ पे चिल्लाई
" जीजू कस के पकड़िए न "
" अरे उस का मतलब है सही जगह पकड़ो "
और मैंने सही जगह पकड़ लिया।
हंटर उस पतली सी, संकरी गली में, जहाँ हम हाथ बढ़ा लें तो अगल बगल के घर छू ले, से हो कर जा रही थी,डर धीरे धीरे पिघल रहा था।
क्या जबरदस्त इरोटिक रोमांचक और एक्शन से भरा कांड लिखा है. माफ करना. इतना मस्त लगा की देशीपन पर आ ही गई.
अरे आनंद बाबू. लड़किया ने पहले भी बहोत गुल खिलाए है. बहोत बंक मरे है. तुम उनकी फिकर मत करो. उन्हें रस्ता पता है.
अमेज़िंग एक्शन. पर उसके साथ रोमांचक पल भी. महक ने सुना नहीं क्या किया. दोस्ती मे नो सॉरी नो थैंक्स. और हाथ वापस वही रख दिया.
और गुंजा के जीजा तो तीनो के जीजा हुए ना.
अब देखते है कब तक आल क्लियर का msg आनंद बाबू दे पाते है. क्यों की वक्त बहोत कम भी है. बहार खड़ी स्काड कभी भी ऑपरेशन स्टार्ट कर सकती है.
आप के आने से ही कहानी में नयी रौनक आ जाती है, एक बार सर्वर की समस्या के आने के बाद से और फिर जो रोक थाम हो जाती है एंटी वायरस से, बहुत से पाठक भटक जाते हैं और फिर पोस्ट करने में भी हजार दिक्कत
लेकिन अब आप आ गयी हैं और आप ने आखिरी पोस्ट तक पढ़ भी लिया, पोस्ट दर पोस्ट कमेंट भी दे दिया है तो बस अब अगले हफ्ते से मेरी सभी स्टोरीज पर पोस्ट्स आने लगेंगे, एक बार फिर से धन्यवाद
एकदम सही कहा आपने, आंनद बाबू की झिझक अभी तक दूर नहीं हुयी है, गुंडों बदमाशों के आगे तो वो खूब जोश दिखलाते हैं, उनकी चूल चूल ढीली कर देते हैं लेकिन जब सामना बनारस की रस से भरी सालियों से हों तो सब हिम्मत गायब हो जाती है और दर्जा नौ वाली लड़कियां भी उनकी ऐसी की तैसी कर देती हैं, और फिर दर्जा नौ वाली के बस जस्ट आते हुए रुई के फाहे ऐसे उभार,
एकदम सही कहा आपने साली और गाली की तो तुक भी मिलती है
Bas agale hafte, ab thode thode readers aane lage hain aur comment bhi to main next part likh rhi hun, almost complete hain, next week men pakkanext update kab tek