- 22,995
- 61,644
- 259
फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६
वापस -घर
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
वापस -घर
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
Last edited:
Click anywhere to continue browsing...
वाह कोमल मैम वाहअस्मा, जुबेदा
![]()
गुड्डी की बाइक पांच मिनट से भी कम टाइम में अस्मा के घर के सामने रुकी, जहाँ लग रहा था, गली खतम हो रही है बस वहीँ एक शार्प मोड़ था और गुड्डी ने बिना स्पीड कम किये, बाइक मोड़ी और सीधे घर के सहन में।
बाइक रुकी और झटके से हम लोग उतरे और उसके साथ ही दरवाजा खुला।
पुराना घर था, कम से कम चार पांच पीढ़ी तो उसमे रह ही चुकी होंगी, बाहर के छोटी सी चारदीवारी, एक गेट जिसमे कोई गेट नहीं था, पक्का सहन, उसके बाद चौड़ा सा बरामदा, और उसमे एक तखत रखा था। बगल में कोई छोटा सा कमरा था जो लगता है बरसों से नहीं खुला था।
दरवाजा पहले की तरह दो पल्ले वाला, ऊँची सी चौखट, और लकड़ी का बहुत मोटा दरवाजा,
' दी जल्दी अंदर," वो गुड्डी का हाथ खींचता बोला, और साथ में मैं और गुंजा भी , और अंदर घुसते ही न सिर्फ उसने वो मोटा दरवाजा बंद कर दिया, बल्कि उसके पीछे एक लोहे की बड़ी सी रॉड थी, खूब मोटी सी, उसे भी लगा लिया और ऊपर नीचे दोनों ओर सिटकनी भी लगा दी।
नीचे एकदम सन्नाटा था, लग रहा था घर में कोई है ही नहीं। दो तीन कमरे, रसोई, नीचे थे और एक बड़ा सा आँगन, और उसके पार एक और बरामदा,।
बिना हम लोगो को पूछे वो बोला,
" सब लोग ऊपर हैं, गोल कमरे में, वहीँ चलिए। "
और दरवाजे के पीछे कुछ बड़ी बड़ी मजे खींच के लगाना लगा और मैं भी उसके साथ, पहले मेजें, फिर कुर्सियां
गुड्डी गुंजा को लेकर सीढ़ी से सीधे कमरे में और पीछे पीछे मैं भी, अस्मा और नूर भाभी को तो मैं सुबह गली में देख ही चुका लेकिन एक बड़ी उम्र की महिला थीं, अस्मा की माँ होंगी, बस उन्होंने कस के गुड्डी को अँकवार में बाँध लिया जैसे न जाने कितने दिन बाद बेटी घर आयी हो.
अस्मा, गुड्डी की सहेली, जो स्कूल में उससे एक साल सीनियर थी, १२वें में , गुंजा का हाथ कस के पकड़ के खड़ी थी जैसे उसे पूरा अहसास हो की गुंजा कहाँ कहाँ से गुजर के आ रही है।
बिना बोले बहुत कुछ कहा जा रहा था, लेकिन माहौल को हल्का किया अस्मा की भाभी, नूर भाभी ने, मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं, " क्यों क्या सोच रहे हैं , आप से कोई गले नहीं लग रहा है, मैं हूँ न " और वो मेरी ओर लपकी, और मैं पीछे की ओर दुबक गया। वो और अस्मा जोर से खिलखिलाने लगीं।
अस्मा की माँ और नूर भाभी की सास ने सवालिया निगाह से उनकी ओर देखा है जैसे पूछ रही हों, कौन है ये और नूर भाभी चालू हो गयीं, गुड्डी की ओर इशारा कर के,
" आप के दामाद और मेरे ननदोई हैं "
और अब वो भी खिलखिलाई, और अपनी बेटी को हड़काया, " अरे पहली बार घर आये हैं, तू भी न, जाके कुछ ला, अरे तूने सिवइयां बनायी थीं न , जा " और मुझसे बोलीं " बेटा बैठो, अरे ये सब न "
अस्मा सीढ़ी से नीचे धड़ धड़ चली गयी, जैसे लग रहा था सब सामान्य हो, लेकिन कमरा बता रहा था की कुछ भी सामान्य नहीं है।
सारी खिड़कियां बंद थीं, और उन पर मोटे मोटे परदे टंगे थे, जिससे अंदर की कोई आवाज बाहर न जाए।
सब लोग बहुत हलकी आवाज में बोल रहे थे, करीब करीब फुसफुसा कर, यहाँ तक की जब असमा नीचे गयी तो उसने उस कमरे का दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर दिया।
तभी एक लड़की आयी, गुड्डी की ही उम्र की, ( गुंजा ने बताया की वो अस्मा की चाचा की बेटी है, जुबेदा. पास के स्कूल में पढ़ती है , ११वें में )। बिना रुके वो बोलने लगी,
" छत पर से आ रही हूँ, बहुत गड़बड़ है। प्राची सिनेमा के पास छत से साफ़ दिख रहा था, १५ बीस लोग हैं , और पता नहीं कहा से बड़े बड़े पांच छह टायर ला के उसमें आग लगा दिए हैं और लाठी डंडा लिए हैं, जोर जोर से हल्ला कर रहे हैं।"
उधर से तो हम लोग भी आये थे और वहां पुलिस की एक टुकड़ी थी, मेरे समझ में नहीं आया। मैंने पूछ लिया " पुलिस नहीं हैं वहां "
" है, थोड़ी बहुत, लेकिन वो लोग कुछ किये नहीं, खुद ही गली में घुस गए और वो सब टायर के बाद एकाध ठेला वेला था उसे भी जला रहे हैं " वो घबड़ाहट भरी आवाज में बोली।
और मैं सिहर गया, दंगे की क्लासिक ट्रिक्स। टायर, देर तक जलता है, जल्दी बुझता नहीं और पुलिस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का रास्ता रोकने के काम में आता है। दूसरे पुलिस की बड़ी ट्रक और फायर ब्रिगेड गली में घुस भी नहीं सकते। और दंगाइयों को अपना काम करने का टाइम मिल जाता है। बोतलों में पेट्रोल बॉम्ब, हथगोले, ....और उस के जवाब में छतों से पत्थर,
और जो मैं सोच रहा था उस का जवाब भी जुबेदा ने दे दिया, " और वो जो चार लोग सैयद चचा के घर के ऊपर से, उन को भी लोग दौड़ाये थे लेकिन सब बच के भाग गए।
और मेरी सांस में सांस आयी , मुझे यही डर था की वो जब होली के हुरियारे बन कर तेज़ाब फेंके थे या बाद वाले, अगर कही पकडे गए , पीटे गए तो नैरेटिव ये बनेगा की फैलाने मोहल्ले में कुछ लड़कों ने होली का रंग फेंक दिया और इतना गुस्सा कीमोहल्ले वालों ने जरा जरा सा बच्चों को पकड़ कर पीट दिया
उसके बाद तो,
पर अगर माहौल और खराब हो गया, तो हम लोग निकल कैसे पाएंगे, लेकिन तब तक छत से वो लड़का, जिसने हमारे लिए दरवाजा खोला था
मुस्कराता हुआ आया और बोला, मजा आ गया मैं अभी देख के आ रहा हूँ छत से।
सब लोगों के कान उसकी ओर
" अरे एक ट्रक आयी पता नहीं कौन से पुलिस वाले थे, काही रंग के, "
जीशान की बात काटते मैं बोला, " आर ऍफ़ ( रैपिड ऐक्शन फ़ोर्स ) रही होगी "
" हाँ हाँ वही " मुस्करा के वो बोला, और जोड़ा, साथ में फायर ब्रिगेड वाले, एक दो नहीं चार ट्रक थीं और बजाय टायर की आग बुझाने के दंगे वाले पे ही पानी छोड़ दिए, वो पीछे मुड़े हटने की कोशिश की, गली में घुसने की तो वो काही वाले पहले से तैयार थे, क्या डंडे से सुताई की और वो जिधर जाते थे दो चार मिल जाते थे,वही आर ए ऍफ़ वाले और मार डंडे मार डंडे खुद उन सबो ने टायर हटाए और उन की ट्रक में बैठ गए। एक ट्रक में भर के सब को कहीं ले गए हैं। और वो फ़ोर्स वाले अब सब गलियों के सामने खड़े हैं। और उन का कोई अफसर है, दूकान वालों से बोल रहा है खोलने के लिए। "
मैंने भी चैन की सांस ली, लेकिन मुझे लगा की अभी तो आगे हम लोगों को और भी रास्ता तय करना है। अभी तो लग रहा है बाजी डीबी की ओर शिफ्ट हो गयी, लेकिन अगर कहीं गुंजा को कुछ हो गया तो नैरेटिव बदलते देर नहीं लगेगी, और हम लोगों को पांच दस मिनट में घर पहुंचना जरूरी है, लेकिन रास्ते में कोई और खतरा, "
तब तक अस्मा सेवइयां ले कर आ गयी और बोली, " अपने हाथ से खिला देती हूँ, आज तो आप सब को जल्दी है अगर टाइम मिलता तो बताती , "
गुंजा जो अब तक चुप थी चालू हो गयी, " सच में आपकी सहेली को भी जल्दी है, मुझे छोड़के दोनों लोगो को आजमग़ढ जाना है इसलिए और जल्दी है "
और जोर का घूंसा गुड्डी का गुंजा की पीठ पे पड़ा और वो चीख के बोली, " सच बोलने की सजा, " फिर नूर भाभी से बोली
" लेकिन भाभी, होली के बाद ये आएंगे और पूरे पांच दिन रहेंगे रंग पंचमी में, फिर आज का उधार चुकता कर लीजियेगा "
" ये तो तूने अच्छी खबर सुनाई " हंस के बोली पर जुबेदा अभी भी थोड़ा सीरियस थी और वो मुझसे बोली,
" लेकिन आप उस बाइक से तो जा नहीं सकते, जिस से आये हैं "
और मेरी चमकी, बात उसकी एकदम सही थी, कहीं से बाइक का नंबर दुष्टों को पता चल गया था और मेरी चमकी। सिद्द्की
नहीं गलती उनकी नहीं होगी, बस
दालमंडी में जब बाइक रुकी थी तब मैंने सिद्द्की को फोन कर के बाइक के डिटेल बताये थे और उसने पुलिस की वांस को हम लोगो की सिक्योरिटी के लिए बोला होगा, तभी कई जगह पुलिस की वान दिख रही थीं लेकिन उसी में से किसी ने लीक भी कर दिया होगा और अब जब दो बार हमला हो चुका है तो साफ़ है की बाइक अच्छी तरह पहचानी जा चुकी है, पर जाएंगे कैसे
और रास्ता भी जुबेदा ने निकाला, अस्मा और जीशान से उसने थोड़ी खुश्फुस की
और तय हुआ की हम सब पीछे से निकले, पैदल, पास में ही एक मकान खंडहर सा है, उस में से हो के बगल की गली में घुस सकते हैं , जीशान अपनी बाइक के साथ वहां मिलेगा और हम लोग उसी से
और वही हुआ,
गुड्डी का ये रास्ता जाना पहचाना था और थोड़ी देर में जब हम गुड्डी के मोहल्ले की गली में घुसी तो चैन की साँस ली
बाद में पता चला की जो बाइक हम लोगो ने अपनी अस्मा के घर के सामने छोड़ी थी, उस पर जीशान, जुबेदा और अस्मा गली से निकले, जिससे अगर कोई दूर से देख रहा हो तो उसे शक न हो और हम लोगो को बच निकलने का पूरा टाइम मिल जाए। वो लोग जहाँ गली ख़तम होती है, वहां तक आये।
थोड़ा लग रहा था टेंशन कम हो रहा था, सड़क की दुकाने तो बंद थीं, लेकिन गुड्डी की गली के मोड़ पर की कुछ दुकाने खुलने लगी थीं, दो चार लाग पान की दूकान पर नजर आ रहे थे, घरों के बाहर निकल कर बात कर रहे थे, और हम अपनी गली में आ गए थे तो हम तीनो ने हेलमेट का वाइजर खोल दिया था।
चंदा भाभी नीचे घर के बाहर ही खड़ी थीं।
Thanks so much for the first comment and for regularly supporting the storyWah maza aa gaya padh ke ek dum kahani maar dhaad or action se bhapur hoti ja rahi hai.or lagta hai do nayi nanad bhojai ko bhogne ka number bhi lag jaiga..
Lagawab maza aa gaya.
Chhutki ki holi ka intejar rahega