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Erotica फागुन के दिन चार

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komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६

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komaalrani

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भाग ३५ -हवा में दंगा

४,६६,७८०

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सब लोग चुप खड़े थे, कुछ डरे सहमे, कुछ के समझ में नहीं आ रहा था क्या बोलें।



गुंजा को जैसे काठ मार गया था, लग रहा था एक बार फिर उसने मौत देख ली है, आँखे एकदम खुली, भावशून्य, चेहरा पथराया, और गुंजा की हालत देखकर मेरी हालत भी कम खराब नहीं थी। मैं समझ रहा था, अबकी खतरा बहुत बड़ा है, किधर से आएगा, पता नहीं और जिस तरह से डीबी ने बोला था, कहीं न कहीं उस तूफ़ान के केंद्र में गुंजा थी, और अगले आधे घंटे, जबतक गुंजा घर नहीं पहुँच जाती,.... बहुत भारी पड़ने वाले थे।

दोनों सेल्स गर्ल भी डरी सहमी एक दूसरे को देख रही थीं,



गुड्डी एकदम दरवाजे पर खड़ी हम सब को देख रही थी, पर चुप्पी तोड़ी महक ने और वो सेल्स गर्लस से बोली,

" बस घबड़ा मत, मैं हूँ न। कुछ होगा तो तुम दोनों आज मेरे घर चल चलना,... लेकिन उसके पहले, बस ज़रा पांच मिनट

और महक ने दोनों आफिसब्वॉयज को आवाज दी और उन्हें काम पकड़ा दिया, एक से बोली,

" तू जरा नीचे बेसमेंट से देख ले, वो बगल वाली सड़क पर, थोड़ी दूर जा के कैसा हालचाल है, कोई भीड़ वीड़ तो नहीं है "

और दूसरे से बोला, बाहर के सारे शटर बंद कर दो, डबल लॉक भी कर दो और अंदर की दुकानों के भी अलग अलग शटर गिरा दो। सब लाइट बंद कर दो और मेन स्विच से भी बंद कर दो, कैमरे चेक कर लेना। और उन दोनों के जाते ही, उसने अपनी दोनों सेल्स गर्ल्स को बड़ी सी तंजौर पेंटिंग की ओर इशारा किया,


मेरी समझ में नहीं आरहा था, की ऐसी हालत में जब एक एक मिनट कीमती है ये तंजौर पेंटिंग, लेकिन उसके हटते ही मुझे खेल साफ़ हो गया

उसके नीचे कई खानो में कुछ गिनतियाँ लिखी थीं जैसे दुकानों पे शुभ लाभ इत्यादि के लिए करते हैं लेकिन वो कोई कोड थे और उसी का कुछ दूना तिगुना कर के, महक ने अपनी पांचो उँगलियाँ लगायीं और दीवाल हल्की सी सरकी और उस पेंटिंग इतनी ही बड़ी लेकिन खूब गहरी एक सेफ नजर आयी।

दोनों सेल्स गर्ल अबतक काम में जुट गयीं थीं, महंगे आई फोन, आई पेड, इम्पोर्टेड परफ्यूम और भी चीजें निकाल के एक बैग मेन दाल रही थी और तबतक दीवाल में लगी दूसरी सेफ खोल के उसमे रखे पैसे भी निकाल के एक दूसरे बैग में महक ने डाल लिए और वो दोनों बैग उस बड़ी सी सेफ में,


अब तक मैं समझ गया था खेल, सबसे बड़ी बात यह थी की वह सेफ फायर प्रूफ और बॉम्ब प्रूफ थी, तो लूटने वाले दूकान लूटने के बाद अकसर आग लगा देते हैं तो उस आग में भी वह सेफ बची रहती और उसके अंदर रखा सामान भी। सेफ बंद कर के फिर से पेंटिंग वहां लगाने के बाद हम लोग कुछ और बात करते की दोनों लड़के आ गए और पता चला की माल के पीछे वाली सड़क, जो सड़क क्या एक चौड़ी सी गली है, वो अभी भी थोड़ी सेफ है, दो चार दुकाने खुली हैं लेकिन वो लोग भी बंद कर रहे थें और सब लोग यही कह रहे हैं की दंगा कभी भी हो सकता है , कुछ कहना है की शुरू हो गया है, हाँ इधर नहीं होगा। पर सड़क पर एकदम सन्नाटा है।

मेन रोड की हालत हम लोग पहले दी देख चुके थे, एकदम अघोषित कर्फ्यू जैसा, सिर्फ पुलिस की गाड़ियां दिख रही थीं।

"चल तू दोनों अब पीछे वाली गली से निकल जा, अभी तो कोई बात नहीं है " महक ने सेल्स गर्ल्स से बोला



" हाँ, मैं तो पांच मिनट मे घर पहुँच जाउंगी और कुछ होगा तो ये भी वही रुक जायेगी और बाद में चली जायेगी, गली गली हो के " और वो दोनों निकल दी,



" डीबी का फोन आया था "

मैं गुड्डी से बोला, फिर मुझे लगा महक और गुंजा को तो नहीं मालूम होगा तो साफ़ साफ़ बताया, " एस एस पी साहेब का फोन आया था, की हम लोग तुरंत निकल जाएँ और कार से नहीं, क्योंकि सड़क पर प्रॉब्लम हो सकती है "



पुलिस थाने से तो हम लोग महक की कार से आये थे और होटल से पुलिस थाने तक, पुलिस की गाडी से और पुलिस की गाडी डीबी ने साफ़ मना कर दी थी तो कैसे ?

पर गुड्डी थी न वो झट से बोली, तो बाइक से चलते हैं, गली गली में आसान भी होगा, ट्रिपलिंग कर लेंगे।

पर हम तीन थे और ये कोई एक्टिवा वाला मामला नहीं था, लेकिन महक और गुड्डी ने मिल के रास्ता साफ़ कर दिया। गुड्डी और गुंजा की देखा देखी अब महक भी हड़काने लगी थी,

" अरे जीजू, चुम्मन से लड़ना नहीं है, ...न पढाई और न कम्पटीशन पास करना है, बनारस में चुपचाप बनारस की लड़कियों की बात मान लिया करिये, फायदे में रहेंगे। "

और हम तीनो, एक पतली सी सीढ़ी से बेसमेंट में उतर गए, और सीढ़ी का रास्ता भी महक ने बंद कर दिया। बेसमेंट में पूरा अँधेरा था और मेन स्विच बंद हो गयी थी, लेकिन मोबाइल की लाइट में महक ने एक बाइक पर का कवर उतारा और मेरी चीख निकलते निकलते रह गयी।



रॉयल इन्फिल्ड हंटर ३५० टॉप



और वो भी एकदम बढ़िया कंडीशन में, एकदम चमक रही थी और महक ने मेरे बिना पूछे, बता दिया, " प्रीति दी की है "



प्रीति, यानी महक की बड़ी बहन, जिसके चक्कर में चुम्मन पड़ा था, और जिसके मना करने पर एसिड फेंकने की कोशिश की थी, वो तो गुड्डी ने उसे खींच लिया और वो बच गयी, बस पैर पर जरा सा पड़ा, तो वही ये बाइक चलाती थी लेकिन अब प्रीति ने बनारस छोड़ दिया था तो उसकी बाइक यहाँ बेसमंट में खड़ी थी।



और गुड्डी के बाइक ज्ञान का रहस्य भी पता चला, रीत के चक्कर में,

रीत का कोई ब्वाय फ्रेंड था, आई एम् ए ( इंडियन मिलेट्री एकदमै ) में , उसी के पास एक जबरदस्त बाइक थी, तो जब वो आता तो उसी बाइक पे रीत उस के पीछे चिपकी, लेकिन उस ने रीत को भी सिखा दिया तो अब रीत गुड्डी को पीछे बैठा के पूरा बनारस नापती, और रीत से गुड्डी ने भी थोड़ा बहुत, लेकिन अब जब गुड्डी ने एक नई ट्रिक सीख ली थी, जब वो बाइक लेके आता, तो बस रीत को वो समझा देती, " दी, जरा एक घंटा " और दोनों कबूतरों के गुटरगूं में एक घंटा कब दो घंटा हो जाता पता नहीं चलता और गुड्डी बाइक ले के गली गली, और एक दो बार गुंजा को भी पीछे बैठा के,...

बाइक कौन चलाएगा, अब इस का सवाल ही नहीं उठता था, गुड्डी को गलियों का पूरा जाल मालूम था और अब हम तीनो बाइक पे , महक ने हेलमेट का भी इंतजाम कर दिया था,

बेसमेंट का एक रास्ता पतली गली में खुलता था जो आगे चल कर एक चौड़ी गली कहें, या पतली सड़क उस से जुड़ जाता था, जब तक हम लोग वहां तक नहीं पहुँच गए, महक देखती रही।



उस ने अपने ड्राइवर को फोन कर दिया था की हम लोगो का सामान लेकर सीधे गुंजा के घर,
 
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सड़क पर सन्नाटा

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मैं पीछे से गुंजा को कस के पकडे था, लेकिन बाज की तरह मेरी निगाहें चारो ओर घूम रही थीं,


खतरा कहीं से भी आ सकता था, लेकिन सब से ज्यादा डर मुझे सन्नाटे से लग रहा था, मॉल के पिछवाड़े से निकली उस पतली गली में तो अभी जिंदगी कहीं कहीं टहलकदमी करती दिख रही थी, कूड़े के ढेर के आस पास मुंह मारती एक दो गायें, बगल से आकर मिलती गलियों से झांकते एक दो बच्चे, कहीं कहीं लग रहा था चाय की टपरी बस अभी बंद हुयी थी, पर जैसे ही हम लोग सड़क पर आये,

बस मैं दहल गया।

एकदम सन्नाटा, बनारस की सड़कों पर तो आधी रात को भी इतना सन्नाटा नहीं रहता, और तिझरिया को, सड़क एकदम जनशून्य, दुकनों के शटर बंद, पटरी पर भी जैसे ठेले वालों ने जल्दी जल्दी अपनी दुकाने समेट कर घर की राह ली हो, सड़क के अगले मोड तक सड़क एकदम साफ़ दिख रही थी, हाँ मोड़ पर जरूर दो चार पुलिस वाले, डंडा धारी, अपनी चिरपरिचित वीतरागी मुद्रा में बैठे थे, हाँ, उनमे से एक कभी कभी गलियों की ओर देख ले रहा था, पर थोड़ी देर आगे ही मैंने बायीं ओर ध्यान से देखा तो एक बंद दूकान के सामने पी ए सी के पांच छह जवानो का दस्ता रायट गियर में बैठा था।

दिन में इतने तरह की आवाजें सुनाई देती थीं,... रिक्शे टेम्पो वालों की, ठेले पर सामान बेचने वाले, भीड़ की अपनी कचर मचर, स्कुल से छूट कर घर जाती लड़कियों की बातें....उन्हें घर पहुंचाते आँखे सेंकते लड़को के कमेंट्स, छज्जे पर से झाकंती औरतें और फागुन अपनी चरम सीमा पर था तो कुछ नहीं बच्चे अपनी प्लास्टिक की पिचकारियों से पानी ही पचर पचर फेंकते

कभी नीरवता ही आशंका को,... कभी भी हो सकने वाली अनहोनी की आहट को, जन्म देती है,... और इस समय वह सन्नाटा चीख रहा था,


छुप जाओ, घर में घुस जाओ, पहले जान बचाओ

मैं उस सन्नाटे को सूंघ सकता था, हवा में बारूद की घुली गंध की तरह दंगे की महक को पहचान रहा था, और जो कुछ भी मैंने डीबी की बातें सुनी थीं, टीवी पर देखा था, और अभी सड़क पर, गलियों में देख रहा था, समझ रहा था, बस यह साफ़ था की बारूद का ढेर जगह जगह रख दिया गया है, बस एक चिंगारी की देर है,

और जो डर मैंने पहली बार डीबी की आवाज में सुना था, ' जल्दी निकल जाओ, गुंजा को लेकर, बस पन्दरह बीस मिनट में घर पहुंच आओ "

साफ़ था उनकी टाइम लाइन में भी आनेवाला खतरा घंटों में नहीं अब मिनटों में था और अगर वो उन्होंने रोक लिया तो शायद तूफ़ान रुक जाए नहीं तो सब तूफ़ान में तिनके की तरह उड़ जाएगा, और कहीं न कहीं उस आने वाले तूफ़ान के केंद्र में गुंजा थी।

मेरी आँखे चारो ओर देख रही थीं, कान भी आँख बन गए थे, पर दिमाग अलग चल रहा था।

मैं चूल से चूल भिड़ा रहा था, कौन है जो,...

और, एक नहीं अनेक लोग नजर आ रहे थे जो परछाई में थे। राजनीतिक, आर्थिक, माफिया और भी न जाने कितने चेहरे धुंध में छिपे थे, और जो डीबी ने डिप्टी होम मिनिस्टर के बारे में बताया था, चीफ मिनिस्टर से जिस तरह डीबी की बात हुयी थी, साफ़ लग रहा था,


माइनॉरिटी गवर्मेंट थी, लॉ और आर्डर के नाम पर कुछ दिन पहले आयी थी, और एक एक एक एम् एल ए की कीमत थी।

और डिप्टी होम मिनिस्टर की पकड़ एक बड़े जाति समूह के साथ साथ दस बारह एम् एल ए पर तो प्रत्यक्ष थी और धीरे धीरे जो भी अंसतुष्ट होता, जिसके कहने पर थानेदार, कलेकटर की पोस्टिंग नहीं होती, वो भी उन्ही के साथ चिपक रहा था। केंद्र और संगठन भी बड़े तगड़े मुख्यमंत्री के पक्ष में नहीं था तो वो डिप्टी के लिए कवच सा था। और उन्हें हटाना चीफ मिनिस्टर के लिए सम्भव नहीं था, पर उन्होंने कुछ पोस्टिंग ट्रांसफर अपने हाथ में लेकर लगाम पकड़ रखी थी।

डिप्टी होम मिनिस्टर, थे पूर्वांचल के ही और पुरानी सरकार वाले दल से छलांग लगा के इधर आये थे, और वहां भी राजनीतिक दबंग थे। होम मिनिस्टर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थे, ईमानदार थे, और सबसे बढ़ कर चीफ मिनस्टर के वफादार थे, लेकिन सब जानते थे की वो पोस्ट आफिस की तरह ही काम करते थे।

अगर दंगा हुआ तो, एक बड़ा तयशुदा प्रोटोकॉल था, एस एस पी और एक दो और अधिकारी सस्पेंड होते थे और उसके बाद वो कब कहाँ पोस्ट होंगे उसका कोई ठिकाना नहीं था। और डीबी को हटाना बहुत लोग चाहते थे, जिनमे डिप्टी होम मिनिस्टर भी थे।

लेकिन निशाने पर सिर्फ डीबी नहीं होते, होम मिनिस्टर और अगर कहीं दंगा लम्बा चल गया तो चीफ मिनिस्टर भी आ सकते थे।

माफिया दमन की डीबी की नीति से माफिया वाले तो नाखुश थे ही बहुत से हर पार्टी के नेता भी दुखी थे। और माफिया ख़तम कभी होता नहीं , वो बस सरक लेता है, नए कपडे पहन लेता है बहुत हुआ तो कुछ दिन के लिए दुबक लेता है। और यहाँ भी बहुत लोग बगल के राज्यों में चले गए थे, कुछ ने फुल टाइम ठीकेदारी शुरू कर दी थी, लेकिन उनके लड़के, मसल मैन, फ़ॉलोअर्स तो थे ही और एक फोन पर इकठ्ठा हो जातेतो राजनीती के साथ माफिया और मसल्स मैन की भी कमी नहीं थी।

और बाकी पहलु भी थे, एक तो बिल्डर, गुड्डी के साथ पैदल आते मैंने देखा था की कितने मकान गिर रहे थे, कुछ खाली पड़े थे , नया कंस्ट्रशन हो रहा था तो हर दंगे के बाद शहर की सोशल डेमोग्राफी बदल जाती है और लोग किसी भी दाम पर दंगा ग्रस्त मोहल्लो से बाहर निकलना चाहते हैं।

तो बारूद का ढेर तैयार था, उसमें चिंगारी लगाने वाले तैयार थे और उसके बाद जो दावानल धधक धधक कर जलाता उसमें हाल सेंकने वाले भी तैयार थे, और सवाल था सिर्फ चिंगारी का जो उस भूस के ढेर को जला देती,



और ये चिंगारी थी गुंजा।



मेरे कानो में सी एम् की बात गूँज रही थी, जब वो डीबी से बात कर रहे थे, उन्होंने सिर्फ एक इंस्ट्रस्क्शन दिया, ' लड़कियों को जल्द से जल्द सुरक्षित उनके घर पहुंचाओ '।

जो भी मेरा थोड़ा बहुत अनुभव था, मै यह समझ गया था की नब्ज पर पकड़ पॉलिटिशियन की ही होती है, वह दूर से आने वाले तूफ़ान को किसी भी नौकरशाह से पहले देख लेता है। हाँ यह बात अलग है की वह आपदा में अवसर ढूंढते हैं और कबाड़ से भी जुगाड़ लगा लेते हैं।


और जब मै शाजिया को छोड़ने घर गया था तो एक पुलिस की गाडी ने महक के अंकल की खड़ी गाडी को देख कर बोला था की आप लोग जल्दी से गाडी हटा लीजिये और उसमें दो स्कूल यूनिफार्म में लड़कियां भी दिखी होंगी, और महक के अंकल को बहुत लोग जानते थे तो ये पता ही चल गया होगा की महक बस अपने घर पहुँच रही है, और

तो बची गुंजा।

और जिस तरह से निकलने के पहले हम लोग सीढ़ी पर फंस गए थे, बाहर से किसी ने ताला बंद कर दिया था, फिर बिना डीबी के इंस्ट्रक्शन के कुछ लोगों ने फायरिंग शुरू कर दी थी, मुझे लग रहा था की पुलिस में कुछ लोग निचले लेवल पर है जो इन्फो लिक करते हैं

और गुंजा के घर न पहुँचने की बात पता था, और इसलिए डीबी ने साफ़ बोला था, तुम लोग निकलो, जल्दी घर पहुंचो। उन को भी डर था की कही गुंजा के साथ कुछ हादसा हो और उस का इस्तेमाल दंगा भड़काने के लिए किया जाए , और उस के साथ गले में पटका लटकाये जो आदमी आग लगा रहा था, भड़का रहा था, कौन है जो हमारी लड़कियों के साथ, कौन है जो हमारे त्यौहार पर,

तो अगर कहीं गुंजा पर हमला हुआ, ....घायल लड़की, ...स्कूल की यूनिफार्म, ....और मै सोच भी नहीं सकता था की क्या क्या कर सकते हैं, वो गुंजा के साथ, बस एक बार उनके हाथ आ जाये,



और अबकी शुक्ला के गुंडों की तरह दो तीन लोग नहीं होते न ही चुम्मन की तरह कोई अकेला होता और वो भीड़ तैयार होकर आती

मैंने एक बार फिर से कस के गुंजा को दबोच लिया था, लेकिन तभी कही दूर से किसी और गली से, हो हो की आवाज सुनाई पड़ी


पर गुड्डी थी न हमारी सारथी, उसने हंटर को तेजी से मोड़ा, और एक एकदम पतली सी गली में बाइक घुसा दी। मुझे लग रहा था यह गली आगे बंद होगी, सामने दीवाल साफ़ दिख रही थी पर दीवाल के ठीक पहले एक शार्प टर्न और हम लोग दूसरी गली में, कुछ दूर पर ही एक सड़क थी वहां पुलिस की एक वान खड़ी थी, मैंने चैन की सांस ली, पर गुड्डी ने उस सड़क को पार कर दायीं ओर दूसरी गली में, फिर एक चौड़ी गली कहें या पतली सड़क, सीधे वहीँ,

और तेजी से ब्रेक लगा दिए ।



सामने एक वृषभ महोदय बैठे थे।
 
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komaalrani

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दालमंडी
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खच्चाक, जोर का ब्रेक लगा और रॉयल एनफील्ड हंटर ३५० वृषभ देव से बस कुछ इंचो पहले रुकी।

लेकिन न बनारस वाली गुड्डी को फर्क पड़ा न वृषभ देव को, बल्कि गुड्डी ने मुड़ कर गुंजासे कुछ कहा और उस का पूरा डर खिलखिलाहट और मुस्कराहट में घुल गया, और उसने भी गुड्डी के कान में कुछ कहा।


अब गुड्डी के खिलखिलाने की बारी थी और गुंजा को चढाती उकसाती वो सारंग नयनी बोली,

" तू ही बोल न , चिपक के तो तुझसे बैठे हैं "

" अरे जल काहें रही हैं, एक बार आजमगढ़ पहुँच जाइये, रात भर चिपकी रहिएगा, " गुंजा कौन कम थी, आखिर वो भी तो उसी चु दे बालिका विद्यालय की छात्रा थी, जिसकी गुड्डी थी। लेकिन मेरे कुछ बोलने के पहले पलट के वो मुझसे बोली,

" जीजू प्रणाम करिये, आपके आदरणीय " और आगे की बात दोनों किशोरियों की खिखिलाहट में खो गयी। आज गुंजा खुल के मेरे साथ थी और गुड्डी को छेड़ते बोली,



" मेरे जीजू कौन कम हैं, और जो भी हो, फायदा तो आप ही को होगा न , कल सबेरे फोन कर के पूछूँगी "

गुड्डी ने मुड़ के कस के एक हाथ लगाया, बीरबहूटी की तरह लजा गयी, गाल लाल हो गए और वृषभ देव के बगल से निकाल के थोड़ा आगे बढ़ा के बाइक रोक दी, पैर लगा के और चारो ओर देखने लगी।

और मैं भी, और मैं गुड्डी की ट्रिक समझ गया था।

मेरे मन जो दंगों का डर था, आग के दावानल बन जाने का भय था वह इंगेज़्क्षसह हो रहा था और गुंजा जो वैसे ही डरी सहमी थी और घबड़ा रही थी। ऊपर से थोड़ी देर पहले जो हो हल्ला सुनाई पड़ा, बस लग रहा था हमले से बचाना मुश्किल था। लेकिन अब जहँ हम थे वहां पहले तो वो हल्ला नहीं सुनाई दे रहा था, दूसरे माहौल भी थोड़ा सामान्य सा था।



एक दो बार मैंने देखा तो मुस्कराये बिना नहीं रह पाया, दाल मंडी,

, कल रात हम लोग होली की शॉपिंग में गुड्डी के साथ गुजरे तो थे यहाँ से,

कल रात तो ये बाजार पटा पड़ा था, मुझे क्या सबको मालूम था की नीचे दुकानें हैं लेकिन असली दुकाने ऊपर सजती हैं, कोठों पर, कहीं कहीं क्या अभी भी बहुत से कोठों से तबले, सारंगी और घुंघरुओं की आवाज सुनाई पड़ती है, शादी ब्याह में मुजरे के लिए दालमंडी की रंडिया मशहूर हैं लेकिन साथ साथ देह व्यवसाय की भी दुकाने, और बगल की पतली गलियों में तो वही खुल के, और भंडुए खुल के सड़क पे सौदा करते हैं

बाकी शहर की तरह आज यहाँ भी सन्नाटा था, लेकिन उस तरह खौफनाक नहीं।

दुकाने तो सब की सब बंद थीं, सड़क पर भी हमारी बाइक और वृषभ देव के अलावा कोई नहीं था, लेकिन छज्जे से अभी भी कुछ रंगी पुती औरतें झाँक रही थी, ग्राहकों के चक्कर में नहीं, कुछ तो उत्सुकतावश और कुछ बस बोर हो के, लग रहा था दंगे के आनेवाले दावानल का डर लगता था बस छू के बगल की किसी गली से निकल गया था, और गुड्डी ने मुझे खींचना शुरू किया,

:" तेरे जीजू को दिखाने ले आयी हूँ, देख ले ठीक से अपनी बहिनिया का अड्डा, बनारस से जाने से पहले, आखिर आजमगढ़ जा के का बताएंगे उसको "

लेकिन गुंजा बजाय खुश होने के मार गुस्से से फूल गयी, " लेकिन दी आपने तो बोला था की जीजू उसे हमारे भाइयों के लिए लाएंगे अउ रॉकी के लिए, पर ये क्या उससे भी कमाने के चक्कर में पड़ गए "

" अरे बुद्धू, "गुंजा के नरम नरम गाल सहलाते गुड्डी बोली,
" तेरी बात एक बार तो मैं सोच लूँ टालने को लेकिन तेरे जीजू की हिम्मत है नहीं है तेरी बात टालने की, आज पिछवाड़ा बच गया है, लौट के आएंगे तो थोड़ी बचेगा। पहले तो हम सब के भाई, मोहल्ले के, रिश्ते के दूर के नजदीक के, और रॉकी, वो कौन भाई से कम है, अरे निकलने के पहले उसको नमस्ते कर के आये हैं तेरे जीजू, उनका जीजा लगेगा न , लेकिन दो चार दिन के बाद डबल ड्यूटी, रात में यहाँ और दिन में मोहल्ला औरंगाबाद गुलजार करेंगी। दिन में यहाँ वैसे भी सन्नाटा रहता है और रात में पांच छह तो उतार ही लेंगी वो, "

गुड्डी का बयान जारी था, लेकिन गुंजा और खौराई थी,

" अरे नहीं दी स्साली छिनार, पांच छह क्यों, आठ घंटे की भी डुयटी मानिये तो आधे घंटे में एक मानिये तो १६, चलिए १६ नहीं तो कम से काम बारह तो चढ़वायेगी ही, फिर कितने तो पिछवाड़े वाले छेद के भी, आखिर मेरे जीजू का हजार रूपये रात का तो हिस्सा बनाना चाहिए वरना हम सालियों की शॉपिंग कैसे होगी " गुंजा मुझे देखती बोली।

लेकिन मैं समझ रहा था गुड्डी का असली खेल,

उस हो हल्ले के बाद एक पल के लिए वो भी सहम गयी थी और खतरे को आंक रही थीं , वह साथ में चारो ओर से आने वाली गलियों को देख रही थी। दूसरे मुझे भी लग रहा था की कोई सोच भी नहीं सकता था की हम लोग यहाँ पहुँच गए होंगे, और दूबे भाभी की कोई परिचित महिला भी यहाँ रहती थीं तो कुछ देर के लिए यह जगह अभय दान देने वाले लग सकती थी,

बगल की पतली गली के पहले मकान में ही एक औरत, एक आदमी को धक्के दे के निकाल रही थी,

" हो तो गया स्साले, अब जाओ "

" अरे सांझ तक रुकने दो, इस हालत में कहाँ जाएँ " वो गिड़गिड़ा रहा था।

" स्साले अपनी बहिनिया की बुरिया में जाओ, उसके भोंसडे में जाओ, लेकिन यहाँ से जाओ, थोड़ी देर में गहकी का टाइम हो जाएगा "

ये कह के उसने दरवाजा बंद कर लिया, और वो आदमी शराब के नशे में धुत्त, पास में ही एक बंद पान की दुकान के नीचे लेट गया।



और गुड्डी को जैसे इशारा मिल गया हो, बस उस पतली सी गली की ओर उसने हंटर को एक झटके में मोड़ दिया, जोर का झटका जोर से लगा और गुंजा मुझ पे चिल्लाई

" जीजू कस के पकड़िए न "

" अरे उस का मतलब है सही जगह पकड़ो "


और मैंने सही जगह पकड़ लिया।



हंटर उस पतली सी, संकरी गली में, जहाँ हम हाथ बढ़ा लें तो अगल बगल के घर छू ले, से हो कर जा रही थी,डर धीरे धीरे पिघल रहा था।
 
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हमला
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गली जितनी संकरी थी, उतनी ही लम्बी और सबसे बड़ी बात की अगल बगल से कोई गली उसमे नहीं आ कर मिल रही थी। तंग होने के साथ मोड़ , घुमाव् भी बहुत थे और आगे क्या होगा, कुछ दिख नहीं रहा था, दोनों ओर दुतल्ले, तिनतल्ले के मकान इसलिए धूप भी एकदम नहीं आ रही थी, लेकिन अचानक हम प्राची सिनेमा के पास नयी सड़क पर पहुंच गए,


मैं सड़क से बचना चाहता था, देखे जाने, पहचाने जाने के डर के साथ भीड़ का बड़ा झुण्ड भी आ सकता था।

लेकिन इस सड़क पर भी सन्नाटा था हाँ दूर पुलिस की एक नीली ट्रक दिख रही थी और कभी के बंद प्राची सिनेमा पर रायट गियर में पी ए सी के जवानों का एक दस्ता मौजूद था। ठेले वाले लगता है जल्दी जल्दी में अपने ठेले छोड़ कर गए थे, कुछ में चेन लगी थी, कुछ बस ऐसी ही किसी खम्भे के सहारे छोड़ दिए गए थे।

और प्राची के बगल से ही एक पतली गली में गुड्डी ने बाइक मोड़ ली, और उस गली में कुछ चढ़ाई सी भी थी, ईंटे जगह जगह उखड़े थे पर खड़बड़ खड़बड़ करते गुड्डी की बाइक एक दूसरी गली में, जो थोड़ी ज्यादा चौड़ी थी, दोनों ओर बड़े मकान थे ज्यादातर पुराने कम से कम सत्तर अस्सी साल के कुछ और भी ज्यादा, और कुछ नए भी।


मुझे लगा, कुछ जाना पहचाना लग रहा है, फिर मेरी चमकी, ...सटी हुयी पीछे की गली में एक मस्जिद के गुंबद और मीनारे दिखी, और मेरी यादों की परत खुल गयी।

गुड्डी की सहेली, बल्कि सहेलियों और उस से ज्यादा भाभियों का मोहल्ला, और सब गुड्डी से भी दो हाथ आगे, थोड़ी देर पहले ही तो गुड्डी मुझे घिर्राती हुयी पैदल अपना २० किलो का बोझ मेरे पीठ पर लादे, ले आयी थी इसी रास्ते से,

लेकिन एकदम फरक लग रहा था, उस समय फागुन एकदम पसरा लग रहा था, पूरे शहर की हर गली की तरह, यहाँ भी बच्चे पानी भरी प्लास्टिक की पिचकारी लेकर पिच पिच कर रहे थे, एकदम से मुझे याद आया,

साइड में दो लोग, सफ़ेद कुर्ते पाजामे में, शायद मस्जिद से नमाज पढ़ के आ रहे थे, और सफ़ेद कपडे देख कर तो रंग छोड़ने वालों को और जोश आ जाता है तो बच्चों ने उन पे भी,

एक जो थोड़े बड़े थे उस बच्चे को चिढ़ाया,



" अरे मियां, क्या पानी लेकर पिच्च पिच्च, अपनी अम्मी से कह दो थोड़ा रंग वंग भी दिलवा दें, खाली पानी में क्या मजा "

इशारा बच्चे के बहाने अंदर की ओर था और जवाब अंदर से सूद के साथ आया, गुझिया छनने की छनन मनन और चूड़ियों की तेज खनक के साथ

" राजू अपने चच्चू से कह दो दिलवा दें न रंग। का करेंगे सब पैसा बचा के, अब तो कोई बहिनियों नहीं बची है जिसके लिए जहेज का इंतजाम कर रहे हों "

अब बाहर से चच्चू की आवाज अंदर गयी,

" आदाब भाभी "

" तसलीम " के साथ अंदर की खिलखिलाती आवाज ने चिढ़ाया भी बुलाया भी
" सब काम बाहर बाहर से कर लोगे, या अंदर भी आओगे, गरम गरम गुजिया निकाल रही हूँ। "

" नहीं नहीं भाभी, आप रंग डाल देंगी " बाहर से घबड़ाया जवाब गया।

" देखो भाभी हूँ, मेरा हक़ है, वो अंदर आओगे तो पता चलेगा, देखो, डलवाने से डरने से कोई बचता थोड़े ही है। "

हंसी के साथ दावतनामा आया,



लेकिन न वो हंसी, न गुझिया की महक न पिच पिच करते बच्चे कुछ भी नहीं दिख रहे थे, एकदम सन्नाटा, जिसनेअपनी गुंजलिका में जैसे पूरे शहर को जकड़ रखा था, यहाँ भी, लोग तो दिख नहीं रहे थे, बंद मकानों के दरवाजों पर डर की स्याही पुती थी।

मुझे याद आया यही जगह थी

जहाँ गुड्डी तो बच के निकल गयी थी मुझे उस ने सीधे छत के नीचे, और ऊपर से एक बाल्टी गाढ़ा रंग, मोहल्ले से कोई ननद सूखे बच के निकल जाए और होली पास में हो,

बाद में गुड्डी ने बताया की शबाना भाभी थीं, फरजान भाई की, अस्मा के चचाज़ात भाई थे उन्ही की, चार साल पहले शादी हुयी थी, और होली में क्या वैसे भी सब ननदे उनसे पनाह मांगती थी, हालचाल बाद में पूछती थीं, नाडा पहले खोलती थीं।

अस्मा, गुड्डी की सहेली गुड्डी से एक साल सीनियर, श्वेता के क्लास में, गुड्डी के स्कूल में, वो और उसकी नूर भाभी भी मिली थीं

पूरे मोहल्ले में गुड्डी की दर्जनों भाभियाँ हो गयी थी, उसकी सहेलियों के चलते.

रास्ते में ही आज उसकी सहेली आस्मा और उनकी भाभी नूर मिली थी और चंदा भाभी से भी दो हाथ आगे थी,

एक लड़की गुड्डी की ही उम्र की, शलवार कुर्ते में और उस के साथ एक कोई औरत, संध्या भाभी की उम्र की रही होंगीं, वो दुप्पटे को हिजाब की तरह सर पर लपेटे,
वो लड़की पहले गुड्डी को देखकर मुस्करायी, फिर साथ वाली औरत को इशारा किया, वो तो हम दोनों को देख कर लहालोट और गुड्डी से बिन बोले मेरी ओर देख के इशारा किया,
अब गुड्डी की कस के मुस्कराने की बारी थी और उन दोनों को दिखा के मुझसे एकदम चिपक गयी और गुड्डी का हाथ मेरे कंधे पे, मुझे भी अपनी ओर पकड़ के खींच लिया, एकदम चिपका लिया उन दोनों को दिखाते,

मान गया मैं बनारस को, वो जो दुपट्टे वाली थीं,

पहले तो गुड्डी की ओर तर्जनी और मंझली ऊँगली को जोड़ के चूत का सिंबल बना के इशारा किया,

और फिर मेरी ओर देख के अंगूठे और तर्जनी को मिला के गोल छेद और उसमे ऊँगली डाल के आगे पीछे, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल,

और अब मैं भी मुस्करा पड़ा,

और गिरते गिरते बचा, जो बिल्डिंग पीछे हम छोड़ आये थे, जो गिर रही थी, उसके ईंटे सड़क पे यहाँ तक बिखरे पड़े थे, उसी से ठोकर लगी, वो तो गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ रखा था,

वो दोनों, लड़की और साथ में औरत तब तक एक घर में घुस गए थे और गुड्डी ने मेरे बिना पूछे सब मामला साफ़ कर दिया।

गुड्डी की एक सहेली है गली में, एकदम शुरू में जहाँ मकान टूट रहा था उससे भी बहुत पहले, एकदम शुरू में।

तो बस उस की जो सहेलियां वो गुड्डी की भी, वो जो लड़की थी उसका नाम अस्मा है, गुड्डी से एक साल सीनियर, इंटर में पढ़ती है।

तो सहेलियों के साथ इस मोहल्ले में १५ -२० भाभियाँ, और उनमे से आठ दस तो गुड्डी के शलवार का नाडा खोलने के चक्कर में पड़ी रहती थीं, सब बोलती,



"कैसी लड़की हो इंटर में पहुँच गयी और अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया, "

अस्मा की भाभी नूर जो साथ में थीं वो तो सबसे ज्यादा, अंत में गुड्डी की सहेली ने साफ़ साफ़ बता दिया, इसका कोई है, इसलिए किसी और से तो

नूर भाभी ने हड़काया और बोलीं

"फिर तो मेरी ननद एकदम, अरे बियाह तक इन्तजार करोगी क्या, शुरू कर दो गपगप, गपगप, और वो भी स्साला एकदम बुरबक है, अइसन माल अभी तक छोड़ के रखा है"

आगे की बात मैं बिन बोले समझ गया, अस्मा ने जब अपनी भाभी को इशारा किया गुड्डी की ओर तो नूर ने मेरी ओर इशारा करके बिन बोले यही पूछा



" यही है क्या "

और गुड्डी ने मुझसे चिपक के, मेरे कंधे पे हाथ रख के, मुझे अपनी ओर खींच के, एकदम से इशारे में हामी भर दी

और वो ऊँगली जोड़ के चूत और चुदाई का इशारा, और हलके साथ में गुड्डी को दिखा के गपगप बोलना, मेरे लिए ही थी,

लेकिन मेरे ख्यालों का सिलिसला टूटा, गली के दूसरे कोने पर एक बड़ा सा मकान टूट रहा था, गुड्डी ने बताया था, सैय्यद चाचा का है, बचपन में कई बार आयी थी, दूबे भाभी के साथ, वो बनारस छोड़ के गए नहीं, पुरखों की कब्र यहाँ है, कौन दिया बाती करेगा, लेकिन बच्चे सब इधर उधर, अब वो रहे नहीं तो किसी बिल्डर ने ले लिया है,

और इस तरह के कई मकान थे गली में और उन टूटते मकानों के ईंटे पूरी गली में बिखरे पड़े थे, मैं खुद दो बार गिरते हुए बचा था,

लेकिन अभी सब साफ़, ....ईंटे कौन कहे पत्थर का टुकड़ा तक नहीं बचा, और मैं डर से कांप गया। मैं समझ गया ये पत्थर कहाँ पहुँच गए, अगल बगल के मकान की छतो पर,....

दंगे का डर, होने वाली अनहोनी की आशंका और जवाब के बदले जवाब, फिर जवाब और उसे बढ़ाती अफवाहें, मिडिया और सोशल मिडिया, और आग सेंकते लोग।

मैंने कनखियों से देखा छतो पर लोग थे लेकिन बैठे हुए या अधलेटे, जो गली से मुश्किल से दिखते थे, लेकिन गुड्डी ने तभी अपने हेलमेट के वाइजर को थोड़ा सा हटाया, और उसका चेहरा दिख गया होगा, और अब छत पर एक दो लोग खड़े भी हो गए, कुछ खिड़कियां भी खुलने लगी , गली के लड़की की सहेली, गली की ही लड़की होती है

और गुड्डी से ज्यादा मैं आस्वश्त हो गया, कम से कम इस गली में तो कोई खतरा नहीं हो सकता, न आगे से पीछे से

लेकिन खतरा तभी आता है, जब हम सोचते हैं खतरा नहीं आएगा।



और वही हुआ।

हमला हुआ और जबरदस्त हुआ।



मुझे ये तो लग रहा था की अगर कुछ हुआ तो बगल से आकर मिलने वाली गलियों से होगा, और पहली गली जो पड़ी, गुड्डी ने घर से बाजार जाते समय जो बताया था,बंगाली टोले की ओर जा रही थी।

कुछ नहीं हुआ,
दूसरी गली, पतली सी छोटी सी थी और थोड़ी दूर पे ही मुड़ जाती थी, वो घाट की ओर जाती थी, वहां भी सन्नाटा था।

गुड्डी ने एक बार से हेलमेट का वाइजर गिरा लिया था और सम्हाल के बाइक चला रही थी

तीसरी गली, एकदम अँधेरी सी, संकरी, दूर से दिखी भी नहीं, लेकिन पास आते ही मैंने देखा चार लोग, एकदम दीवाल से चिपके, जैसे होली के हुरियारे हों और फंस गए हो, रंग और पेण्ट से चेहरा एकदम पुता, मुश्किल से आँखे दिख रही थी, कपड़ों पर भी काही नीला रंग,

मेरी जोर से चमकी, सेकंड का सौंवा भाग भी नहीं लगा होगा,

' बचो, झुको " मैं हलके से चीखा,

गुड्डी ने एक साथ ब्रेक भी मारा और झुक के आलमोस्ट बाइक पे चिपक गयी, उस से चिपकी गुंजा भी दुहरी हो गयी।

मैंने पीछे से गुंजा को छाप लिया जैसे एस पी जी ( स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप ) वाले करते हैं, लगे कुछ तो उन्हें लगे, प्रोटेक्टी को कुछ न हो

गुंजा की पूरी देह मेरी देह से दबी थी, सर मैं जानता था हेलमेट से प्रोटेक्टेड है, इसलिए निशाना बॉडी पे ही होगा।

और जैसे साथ साथ, होली में जैसे रंग से भरा गुब्बारा फेंकते हैं, वैसे ही एक गुब्बारा भरा हुआ, लेकिन गुड्डी के ब्रेक लगाने का और हम सब के झुकने का नतीजा हुआ की बाइक के आगे से सरसराता हुआ वो गली के दूसरी ओर एक खम्भा था, उससे लग कर फूटा और मैंने कनखियों से देखा

बुदबुद बुदबुद, जैसे कुछ बुलबुले फूटे और लोहा हल्का हलका पिघलने लगा,

कोई बहुत तेज ऐसिड था, दो चार बूँद भी अगर पड़ जाती,

पर जैसे उन्हें अंदाज था की पहला निशाना फेल हो सकता है, लगभग उसी समय दूसरा गुब्बारा नीचे की ओर,

पर तब तक गुड्डी ने बाइक की स्पीड एक साथ बढ़ा दी, १० से सीधे १०० और वो हम लोगो के बाइक के पीछे गली के पार एक मकान के बरामदे में गिरा और वहां भी एसिड ने फर्श को पिघलाना शुरू कर दिया

" आँख बंद " मैंने गुंजा से बोला।

दो गुब्बारे पीछे से भी चले, लेकिन तब तक हम लोग आगे निकल आये थे और वो एकदम बाइक के अगल बगल गिरे,

पर तब तक उस गली से कुछ लोग निकलने लगे, और वो चारो उसी गली से बाहर सड़क की ओर निकल भागे ।

पर मैं और गुड्डी दोनों जानते थे, खतरा अभी टला नहीं है। फिर गली खड़ंजे की थी और कहीं कहीं ईंटे निकले थे तो बाइक की स्पीड फिर कम करनी पड़ी और झुके झुके देखना और बाइक चलाना दोनों मुश्किल था।


थोड़ी देर में हमला दुबारा हुआ, पता नहीं वही थे या कुछ उनके साथी, लेकिन अबकी एक आधे गिरे हुए घर से,

मैंने बताया था न गली के मोड़ पे ही एकदम शुरू में एक सैय्यद चाचा का घर था जो टूट रहा था, बस उसी के छत पर से कुछ लोग छुपे थे

लेकिन कहते हैं न बचाने वाला मारने वाले से ज्यादा बड़ा होता है, हम लोगो को अबकी वार्निंग मिल गयी, वरना उन्हें ऊंचाई का और छुपने का अडवांटेज था

सामने वाली छत से कोई गुड्डी की सहेली की भाभी होंगी, ...चिल्लाई

" बचना "

क्या कोई शार्ट लेग का फील्डर कैच करेगा, मैंने दांयां हाथ बढाकर कैच किया, और उसी तरफ उछाल दिया, जिधर से आया था।

पता नहीं कोई देसी बम था या फिर एसिड का गुब्बारा, दूसरा जब तक आये तबतक एक बार फिर गुड्डी ने स्पीड भी बढ़ाई और बाइक को मोड़ा भी और वो बेअसर रहा।

लेकिन तबतक अगल बगल के मकानों से कुछ लोग निकल आये और टूटे मकान के छत पर छिपे लोग धड़ धड़ उतर कर पीछे किसी गली में,

लग रहा था, गली आगे से बंद है, लेकिन मुझे याद आया यहाँ एक शार्प टर्न था, और गुड्डी मुड़ी और तेजी से ब्रेक लगाते हुए, गुंजा से बोली,



अस्मा के यहाँ चलते हैं।
 
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komaalrani

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अस्मा, जुबेदा
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गुड्डी की बाइक पांच मिनट से भी कम टाइम में अस्मा के घर के सामने रुकी, जहाँ लग रहा था, गली खतम हो रही है बस वहीँ एक शार्प मोड़ था और गुड्डी ने बिना स्पीड कम किये, बाइक मोड़ी और सीधे घर के सहन में।

बाइक रुकी और झटके से हम लोग उतरे और उसके साथ ही दरवाजा खुला।

पुराना घर था, कम से कम चार पांच पीढ़ी तो उसमे रह ही चुकी होंगी, बाहर के छोटी सी चारदीवारी, एक गेट जिसमे कोई गेट नहीं था, पक्का सहन, उसके बाद चौड़ा सा बरामदा, और उसमे एक तखत रखा था। बगल में कोई छोटा सा कमरा था जो लगता है बरसों से नहीं खुला था।


दरवाजा पहले की तरह दो पल्ले वाला, ऊँची सी चौखट, और लकड़ी का बहुत मोटा दरवाजा,


' दी जल्दी अंदर," वो गुड्डी का हाथ खींचता बोला, और साथ में मैं और गुंजा भी , और अंदर घुसते ही न सिर्फ उसने वो मोटा दरवाजा बंद कर दिया, बल्कि उसके पीछे एक लोहे की बड़ी सी रॉड थी, खूब मोटी सी, उसे भी लगा लिया और ऊपर नीचे दोनों ओर सिटकनी भी लगा दी।

नीचे एकदम सन्नाटा था, लग रहा था घर में कोई है ही नहीं। दो तीन कमरे, रसोई, नीचे थे और एक बड़ा सा आँगन, और उसके पार एक और बरामदा,।

बिना हम लोगो को पूछे वो बोला,

" सब लोग ऊपर हैं, गोल कमरे में, वहीँ चलिए। "

और दरवाजे के पीछे कुछ बड़ी बड़ी मजे खींच के लगाना लगा और मैं भी उसके साथ, पहले मेजें, फिर कुर्सियां

गुड्डी गुंजा को लेकर सीढ़ी से सीधे कमरे में और पीछे पीछे मैं भी, अस्मा और नूर भाभी को तो मैं सुबह गली में देख ही चुका लेकिन एक बड़ी उम्र की महिला थीं, अस्मा की माँ होंगी, बस उन्होंने कस के गुड्डी को अँकवार में बाँध लिया जैसे न जाने कितने दिन बाद बेटी घर आयी हो.

अस्मा, गुड्डी की सहेली, जो स्कूल में उससे एक साल सीनियर थी, १२वें में , गुंजा का हाथ कस के पकड़ के खड़ी थी जैसे उसे पूरा अहसास हो की गुंजा कहाँ कहाँ से गुजर के आ रही है।


बिना बोले बहुत कुछ कहा जा रहा था, लेकिन माहौल को हल्का किया अस्मा की भाभी, नूर भाभी ने, मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं, " क्यों क्या सोच रहे हैं , आप से कोई गले नहीं लग रहा है, मैं हूँ न " और वो मेरी ओर लपकी, और मैं पीछे की ओर दुबक गया। वो और अस्मा जोर से खिलखिलाने लगीं।

अस्मा की माँ और नूर भाभी की सास ने सवालिया निगाह से उनकी ओर देखा है जैसे पूछ रही हों, कौन है ये और नूर भाभी चालू हो गयीं, गुड्डी की ओर इशारा कर के,

" आप के दामाद और मेरे ननदोई हैं "

और अब वो भी खिलखिलाई, और अपनी बेटी को हड़काया, " अरे पहली बार घर आये हैं, तू भी न, जाके कुछ ला, अरे तूने सिवइयां बनायी थीं न , जा " और मुझसे बोलीं " बेटा बैठो, अरे ये सब न "

अस्मा सीढ़ी से नीचे धड़ धड़ चली गयी, जैसे लग रहा था सब सामान्य हो, लेकिन कमरा बता रहा था की कुछ भी सामान्य नहीं है।

सारी खिड़कियां बंद थीं, और उन पर मोटे मोटे परदे टंगे थे, जिससे अंदर की कोई आवाज बाहर न जाए।


सब लोग बहुत हलकी आवाज में बोल रहे थे, करीब करीब फुसफुसा कर, यहाँ तक की जब असमा नीचे गयी तो उसने उस कमरे का दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर दिया।

तभी एक लड़की आयी, गुड्डी की ही उम्र की, ( गुंजा ने बताया की वो अस्मा की चाचा की बेटी है, जुबेदा. पास के स्कूल में पढ़ती है , ११वें में )। बिना रुके वो बोलने लगी,

" छत पर से आ रही हूँ, बहुत गड़बड़ है। प्राची सिनेमा के पास छत से साफ़ दिख रहा था, १५ बीस लोग हैं , और पता नहीं कहा से बड़े बड़े पांच छह टायर ला के उसमें आग लगा दिए हैं और लाठी डंडा लिए हैं, जोर जोर से हल्ला कर रहे हैं।"

उधर से तो हम लोग भी आये थे और वहां पुलिस की एक टुकड़ी थी, मेरे समझ में नहीं आया। मैंने पूछ लिया " पुलिस नहीं हैं वहां "

" है, थोड़ी बहुत, लेकिन वो लोग कुछ किये नहीं, खुद ही गली में घुस गए और वो सब टायर के बाद एकाध ठेला वेला था उसे भी जला रहे हैं " वो घबड़ाहट भरी आवाज में बोली।

और मैं सिहर गया, दंगे की क्लासिक ट्रिक्स। टायर, देर तक जलता है, जल्दी बुझता नहीं और पुलिस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का रास्ता रोकने के काम में आता है। दूसरे पुलिस की बड़ी ट्रक और फायर ब्रिगेड गली में घुस भी नहीं सकते। और दंगाइयों को अपना काम करने का टाइम मिल जाता है। बोतलों में पेट्रोल बॉम्ब, हथगोले, ....और उस के जवाब में छतों से पत्थर,



और जो मैं सोच रहा था उस का जवाब भी जुबेदा ने दे दिया, " और वो जो चार लोग सैयद चचा के घर के ऊपर से, उन को भी लोग दौड़ाये थे लेकिन सब बच के भाग गए।

और मेरी सांस में सांस आयी , मुझे यही डर था की वो जब होली के हुरियारे बन कर तेज़ाब फेंके थे या बाद वाले, अगर कही पकडे गए , पीटे गए तो नैरेटिव ये बनेगा की फैलाने मोहल्ले में कुछ लड़कों ने होली का रंग फेंक दिया और इतना गुस्सा कीमोहल्ले वालों ने जरा जरा सा बच्चों को पकड़ कर पीट दिया

उसके बाद तो,



पर अगर माहौल और खराब हो गया, तो हम लोग निकल कैसे पाएंगे, लेकिन तब तक छत से वो लड़का, जिसने हमारे लिए दरवाजा खोला था

मुस्कराता हुआ आया और बोला, मजा आ गया मैं अभी देख के आ रहा हूँ छत से।


सब लोगों के कान उसकी ओर

" अरे एक ट्रक आयी पता नहीं कौन से पुलिस वाले थे, काही रंग के, "

जीशान की बात काटते मैं बोला, " आर ऍफ़ ( रैपिड ऐक्शन फ़ोर्स ) रही होगी "

" हाँ हाँ वही " मुस्करा के वो बोला, और जोड़ा, साथ में फायर ब्रिगेड वाले, एक दो नहीं चार ट्रक थीं और बजाय टायर की आग बुझाने के दंगे वाले पे ही पानी छोड़ दिए, वो पीछे मुड़े हटने की कोशिश की, गली में घुसने की तो वो काही वाले पहले से तैयार थे, क्या डंडे से सुताई की और वो जिधर जाते थे दो चार मिल जाते थे,वही आर ए ऍफ़ वाले और मार डंडे मार डंडे खुद उन सबो ने टायर हटाए और उन की ट्रक में बैठ गए। एक ट्रक में भर के सब को कहीं ले गए हैं। और वो फ़ोर्स वाले अब सब गलियों के सामने खड़े हैं। और उन का कोई अफसर है, दूकान वालों से बोल रहा है खोलने के लिए। "



मैंने भी चैन की सांस ली, लेकिन मुझे लगा की अभी तो आगे हम लोगों को और भी रास्ता तय करना है। अभी तो लग रहा है बाजी डीबी की ओर शिफ्ट हो गयी, लेकिन अगर कहीं गुंजा को कुछ हो गया तो नैरेटिव बदलते देर नहीं लगेगी, और हम लोगों को पांच दस मिनट में घर पहुंचना जरूरी है, लेकिन रास्ते में कोई और खतरा, "

तब तक अस्मा सेवइयां ले कर आ गयी और बोली, " अपने हाथ से खिला देती हूँ, आज तो आप सब को जल्दी है अगर टाइम मिलता तो बताती , "

गुंजा जो अब तक चुप थी चालू हो गयी, " सच में आपकी सहेली को भी जल्दी है, मुझे छोड़के दोनों लोगो को आजमग़ढ जाना है इसलिए और जल्दी है "

और जोर का घूंसा गुड्डी का गुंजा की पीठ पे पड़ा और वो चीख के बोली, " सच बोलने की सजा, " फिर नूर भाभी से बोली

" लेकिन भाभी, होली के बाद ये आएंगे और पूरे पांच दिन रहेंगे रंग पंचमी में, फिर आज का उधार चुकता कर लीजियेगा "

" ये तो तूने अच्छी खबर सुनाई " हंस के बोली पर जुबेदा अभी भी थोड़ा सीरियस थी और वो मुझसे बोली,

" लेकिन आप उस बाइक से तो जा नहीं सकते, जिस से आये हैं "



और मेरी चमकी, बात उसकी एकदम सही थी, कहीं से बाइक का नंबर दुष्टों को पता चल गया था और मेरी चमकी। सिद्द्की



नहीं गलती उनकी नहीं होगी, बस

दालमंडी में जब बाइक रुकी थी तब मैंने सिद्द्की को फोन कर के बाइक के डिटेल बताये थे और उसने पुलिस की वांस को हम लोगो की सिक्योरिटी के लिए बोला होगा, तभी कई जगह पुलिस की वान दिख रही थीं लेकिन उसी में से किसी ने लीक भी कर दिया होगा और अब जब दो बार हमला हो चुका है तो साफ़ है की बाइक अच्छी तरह पहचानी जा चुकी है, पर जाएंगे कैसे



और रास्ता भी जुबेदा ने निकाला, अस्मा और जीशान से उसने थोड़ी खुश्फुस की



और तय हुआ की हम सब पीछे से निकले, पैदल, पास में ही एक मकान खंडहर सा है, उस में से हो के बगल की गली में घुस सकते हैं , जीशान अपनी बाइक के साथ वहां मिलेगा और हम लोग उसी से



और वही हुआ,

गुड्डी का ये रास्ता जाना पहचाना था और थोड़ी देर में जब हम गुड्डी के मोहल्ले की गली में घुसी तो चैन की साँस ली

बाद में पता चला की जो बाइक हम लोगो ने अपनी अस्मा के घर के सामने छोड़ी थी, उस पर जीशान, जुबेदा और अस्मा गली से निकले, जिससे अगर कोई दूर से देख रहा हो तो उसे शक न हो और हम लोगो को बच निकलने का पूरा टाइम मिल जाए। वो लोग जहाँ गली ख़तम होती है, वहां तक आये।



थोड़ा लग रहा था टेंशन कम हो रहा था, सड़क की दुकाने तो बंद थीं, लेकिन गुड्डी की गली के मोड़ पर की कुछ दुकाने खुलने लगी थीं, दो चार लाग पान की दूकान पर नजर आ रहे थे, घरों के बाहर निकल कर बात कर रहे थे, और हम अपनी गली में आ गए थे तो हम तीनो ने हेलमेट का वाइजर खोल दिया था।



चंदा भाभी नीचे घर के बाहर ही खड़ी थीं।
 
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komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३५ -हवा में दंगा पृष्ट४०९

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poonam kumar

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waiting for next, mai yay kahani puri padh chuka hun. but bahut din pahlay, bahut mast story hai, sex and thrill ka itna jabarjast mishran hai ke maza aajata hai. purani kahani may or ismay thoda alag lag raha hai jasay aaj ka updat, mybe ho sakta hai may gal hou. but keep it up.

best wishes to ypu komal rani, umeed hai agla update jald milay ga
 

Sutradhar

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अस्मा, जुबेदा
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गुड्डी की बाइक पांच मिनट से भी कम टाइम में अस्मा के घर के सामने रुकी, जहाँ लग रहा था, गली खतम हो रही है बस वहीँ एक शार्प मोड़ था और गुड्डी ने बिना स्पीड कम किये, बाइक मोड़ी और सीधे घर के सहन में।

बाइक रुकी और झटके से हम लोग उतरे और उसके साथ ही दरवाजा खुला।

पुराना घर था, कम से कम चार पांच पीढ़ी तो उसमे रह ही चुकी होंगी, बाहर के छोटी सी चारदीवारी, एक गेट जिसमे कोई गेट नहीं था, पक्का सहन, उसके बाद चौड़ा सा बरामदा, और उसमे एक तखत रखा था। बगल में कोई छोटा सा कमरा था जो लगता है बरसों से नहीं खुला था।


दरवाजा पहले की तरह दो पल्ले वाला, ऊँची सी चौखट, और लकड़ी का बहुत मोटा दरवाजा,


' दी जल्दी अंदर," वो गुड्डी का हाथ खींचता बोला, और साथ में मैं और गुंजा भी , और अंदर घुसते ही न सिर्फ उसने वो मोटा दरवाजा बंद कर दिया, बल्कि उसके पीछे एक लोहे की बड़ी सी रॉड थी, खूब मोटी सी, उसे भी लगा लिया और ऊपर नीचे दोनों ओर सिटकनी भी लगा दी।

नीचे एकदम सन्नाटा था, लग रहा था घर में कोई है ही नहीं। दो तीन कमरे, रसोई, नीचे थे और एक बड़ा सा आँगन, और उसके पार एक और बरामदा,।

बिना हम लोगो को पूछे वो बोला,

" सब लोग ऊपर हैं, गोल कमरे में, वहीँ चलिए। "

और दरवाजे के पीछे कुछ बड़ी बड़ी मजे खींच के लगाना लगा और मैं भी उसके साथ, पहले मेजें, फिर कुर्सियां

गुड्डी गुंजा को लेकर सीढ़ी से सीधे कमरे में और पीछे पीछे मैं भी, अस्मा और नूर भाभी को तो मैं सुबह गली में देख ही चुका लेकिन एक बड़ी उम्र की महिला थीं, अस्मा की माँ होंगी, बस उन्होंने कस के गुड्डी को अँकवार में बाँध लिया जैसे न जाने कितने दिन बाद बेटी घर आयी हो.


अस्मा, गुड्डी की सहेली, जो स्कूल में उससे एक साल सीनियर थी, १२वें में , गुंजा का हाथ कस के पकड़ के खड़ी थी जैसे उसे पूरा अहसास हो की गुंजा कहाँ कहाँ से गुजर के आ रही है।


बिना बोले बहुत कुछ कहा जा रहा था, लेकिन माहौल को हल्का किया अस्मा की भाभी, नूर भाभी ने, मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं, " क्यों क्या सोच रहे हैं , आप से कोई गले नहीं लग रहा है, मैं हूँ न " और वो मेरी ओर लपकी, और मैं पीछे की ओर दुबक गया। वो और अस्मा जोर से खिलखिलाने लगीं।

अस्मा की माँ और नूर भाभी की सास ने सवालिया निगाह से उनकी ओर देखा है जैसे पूछ रही हों, कौन है ये और नूर भाभी चालू हो गयीं, गुड्डी की ओर इशारा कर के,

" आप के दामाद और मेरे ननदोई हैं "

और अब वो भी खिलखिलाई, और अपनी बेटी को हड़काया, " अरे पहली बार घर आये हैं, तू भी न, जाके कुछ ला, अरे तूने सिवइयां बनायी थीं न , जा " और मुझसे बोलीं " बेटा बैठो, अरे ये सब न "

अस्मा सीढ़ी से नीचे धड़ धड़ चली गयी, जैसे लग रहा था सब सामान्य हो, लेकिन कमरा बता रहा था की कुछ भी सामान्य नहीं है।

सारी खिड़कियां बंद थीं, और उन पर मोटे मोटे परदे टंगे थे, जिससे अंदर की कोई आवाज बाहर न जाए।


सब लोग बहुत हलकी आवाज में बोल रहे थे, करीब करीब फुसफुसा कर, यहाँ तक की जब असमा नीचे गयी तो उसने उस कमरे का दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर दिया।

तभी एक लड़की आयी, गुड्डी की ही उम्र की, ( गुंजा ने बताया की वो अस्मा की चाचा की बेटी है, जुबेदा. पास के स्कूल में पढ़ती है , ११वें में )। बिना रुके वो बोलने लगी,

" छत पर से आ रही हूँ, बहुत गड़बड़ है। प्राची सिनेमा के पास छत से साफ़ दिख रहा था, १५ बीस लोग हैं , और पता नहीं कहा से बड़े बड़े पांच छह टायर ला के उसमें आग लगा दिए हैं और लाठी डंडा लिए हैं, जोर जोर से हल्ला कर रहे हैं।"

उधर से तो हम लोग भी आये थे और वहां पुलिस की एक टुकड़ी थी, मेरे समझ में नहीं आया। मैंने पूछ लिया " पुलिस नहीं हैं वहां "

" है, थोड़ी बहुत, लेकिन वो लोग कुछ किये नहीं, खुद ही गली में घुस गए और वो सब टायर के बाद एकाध ठेला वेला था उसे भी जला रहे हैं " वो घबड़ाहट भरी आवाज में बोली।

और मैं सिहर गया, दंगे की क्लासिक ट्रिक्स। टायर, देर तक जलता है, जल्दी बुझता नहीं और पुलिस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का रास्ता रोकने के काम में आता है। दूसरे पुलिस की बड़ी ट्रक और फायर ब्रिगेड गली में घुस भी नहीं सकते। और दंगाइयों को अपना काम करने का टाइम मिल जाता है। बोतलों में पेट्रोल बॉम्ब, हथगोले, ....और उस के जवाब में छतों से पत्थर,



और जो मैं सोच रहा था उस का जवाब भी जुबेदा ने दे दिया, " और वो जो चार लोग सैयद चचा के घर के ऊपर से, उन को भी लोग दौड़ाये थे लेकिन सब बच के भाग गए।

और मेरी सांस में सांस आयी , मुझे यही डर था की वो जब होली के हुरियारे बन कर तेज़ाब फेंके थे या बाद वाले, अगर कही पकडे गए , पीटे गए तो नैरेटिव ये बनेगा की फैलाने मोहल्ले में कुछ लड़कों ने होली का रंग फेंक दिया और इतना गुस्सा कीमोहल्ले वालों ने जरा जरा सा बच्चों को पकड़ कर पीट दिया

उसके बाद तो,



पर अगर माहौल और खराब हो गया, तो हम लोग निकल कैसे पाएंगे, लेकिन तब तक छत से वो लड़का, जिसने हमारे लिए दरवाजा खोला था

मुस्कराता हुआ आया और बोला, मजा आ गया मैं अभी देख के आ रहा हूँ छत से।


सब लोगों के कान उसकी ओर

" अरे एक ट्रक आयी पता नहीं कौन से पुलिस वाले थे, काही रंग के, "

जीशान की बात काटते मैं बोला, " आर ऍफ़ ( रैपिड ऐक्शन फ़ोर्स ) रही होगी "

" हाँ हाँ वही " मुस्करा के वो बोला, और जोड़ा, साथ में फायर ब्रिगेड वाले, एक दो नहीं चार ट्रक थीं और बजाय टायर की आग बुझाने के दंगे वाले पे ही पानी छोड़ दिए, वो पीछे मुड़े हटने की कोशिश की, गली में घुसने की तो वो काही वाले पहले से तैयार थे, क्या डंडे से सुताई की और वो जिधर जाते थे दो चार मिल जाते थे,वही आर ए ऍफ़ वाले और मार डंडे मार डंडे खुद उन सबो ने टायर हटाए और उन की ट्रक में बैठ गए। एक ट्रक में भर के सब को कहीं ले गए हैं। और वो फ़ोर्स वाले अब सब गलियों के सामने खड़े हैं। और उन का कोई अफसर है, दूकान वालों से बोल रहा है खोलने के लिए। "



मैंने भी चैन की सांस ली, लेकिन मुझे लगा की अभी तो आगे हम लोगों को और भी रास्ता तय करना है। अभी तो लग रहा है बाजी डीबी की ओर शिफ्ट हो गयी, लेकिन अगर कहीं गुंजा को कुछ हो गया तो नैरेटिव बदलते देर नहीं लगेगी, और हम लोगों को पांच दस मिनट में घर पहुंचना जरूरी है, लेकिन रास्ते में कोई और खतरा, "

तब तक अस्मा सेवइयां ले कर आ गयी और बोली, " अपने हाथ से खिला देती हूँ, आज तो आप सब को जल्दी है अगर टाइम मिलता तो बताती , "

गुंजा जो अब तक चुप थी चालू हो गयी, " सच में आपकी सहेली को भी जल्दी है, मुझे छोड़के दोनों लोगो को आजमग़ढ जाना है इसलिए और जल्दी है "

और जोर का घूंसा गुड्डी का गुंजा की पीठ पे पड़ा और वो चीख के बोली, " सच बोलने की सजा, " फिर नूर भाभी से बोली

" लेकिन भाभी, होली के बाद ये आएंगे और पूरे पांच दिन रहेंगे रंग पंचमी में, फिर आज का उधार चुकता कर लीजियेगा "

" ये तो तूने अच्छी खबर सुनाई " हंस के बोली पर जुबेदा अभी भी थोड़ा सीरियस थी और वो मुझसे बोली,

" लेकिन आप उस बाइक से तो जा नहीं सकते, जिस से आये हैं "



और मेरी चमकी, बात उसकी एकदम सही थी, कहीं से बाइक का नंबर दुष्टों को पता चल गया था और मेरी चमकी। सिद्द्की



नहीं गलती उनकी नहीं होगी, बस

दालमंडी में जब बाइक रुकी थी तब मैंने सिद्द्की को फोन कर के बाइक के डिटेल बताये थे और उसने पुलिस की वांस को हम लोगो की सिक्योरिटी के लिए बोला होगा, तभी कई जगह पुलिस की वान दिख रही थीं लेकिन उसी में से किसी ने लीक भी कर दिया होगा और अब जब दो बार हमला हो चुका है तो साफ़ है की बाइक अच्छी तरह पहचानी जा चुकी है, पर जाएंगे कैसे



और रास्ता भी जुबेदा ने निकाला, अस्मा और जीशान से उसने थोड़ी खुश्फुस की



और तय हुआ की हम सब पीछे से निकले, पैदल, पास में ही एक मकान खंडहर सा है, उस में से हो के बगल की गली में घुस सकते हैं , जीशान अपनी बाइक के साथ वहां मिलेगा और हम लोग उसी से



और वही हुआ,

गुड्डी का ये रास्ता जाना पहचाना था और थोड़ी देर में जब हम गुड्डी के मोहल्ले की गली में घुसी तो चैन की साँस ली

बाद में पता चला की जो बाइक हम लोगो ने अपनी अस्मा के घर के सामने छोड़ी थी, उस पर जीशान, जुबेदा और अस्मा गली से निकले, जिससे अगर कोई दूर से देख रहा हो तो उसे शक न हो और हम लोगो को बच निकलने का पूरा टाइम मिल जाए। वो लोग जहाँ गली ख़तम होती है, वहां तक आये।



थोड़ा लग रहा था टेंशन कम हो रहा था, सड़क की दुकाने तो बंद थीं, लेकिन गुड्डी की गली के मोड़ पर की कुछ दुकाने खुलने लगी थीं, दो चार लाग पान की दूकान पर नजर आ रहे थे, घरों के बाहर निकल कर बात कर रहे थे, और हम अपनी गली में आ गए थे तो हम तीनो ने हेलमेट का वाइजर खोल दिया था।



चंदा भाभी नीचे घर के बाहर ही खड़ी थीं।
वाह कोमल मैम वाह

शानदार अपडेट। क्या बेहतरीन कशीदाकारी की है, धन्य हो।

लगता है कहानी में कोई जबरदस्त मोड़ आने वाला है क्योंकि ये क्षेपक पूर्ववर्ती कहानी में उपलब्ध नही था।

ये तो कहानी में किसी रोचक और लोमहर्षक घटना की पूर्वसूचना जैसा लग रहा है।

अब तो अगले अपडेट का और भी शिद्दत से इंतजार रहेगा।

सादर
 

komaalrani

Well-Known Member
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Wah maza aa gaya padh ke ek dum kahani maar dhaad or action se bhapur hoti ja rahi hai.or lagta hai do nayi nanad bhojai ko bhogne ka number bhi lag jaiga..
Lagawab maza aa gaya.



Chhutki ki holi ka intejar rahega
Thanks so much for the first comment and for regularly supporting the story
 
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