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Romance पर्वतपुर का पंडित

Lefty69

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सुहागरात्रि का चित्रण अत्यंत प्रचण्ड रहा भाई!

सुकुमारी शुभदा और ज्ञानदीप शास्त्री का मेल हुआ था - जैसा हम सभी पाठकों ने सही क़यास लगाया था!
प्रतीत तो यही हो रहा है कि ज्ञानदीप और शुभदा को किसी न किसी स्तर पर एक दूसरे से प्रेम है।
ऐसे में अगर क्रूर राजा उग्रवीर, राजा खड़गसेन को परास्त कर के इस राज्य और राजकुमारी शुभदा को हस्तगत कर लेता है, तो यह ज्ञानदीप की निजी पराजय होगी।
ऐसे में उसके स्वयं के मन में उग्रवीर की विजय की सम्भावना (और उसके बाद उसके स्वागत की तैयारी) - यह थोड़ा समझ से परे रहा।

उग्रवीर की सेना वहीं कहीं होगी - और छुप कर वार करने वाली होगी। ऐसी भयंकर intelligence failure कैसे हो गई?
इतनी बड़ी सेना बिना किसी चिन्ह के गायब हो जाए, तो धिक्कार है सेनापति अचलसेन के कौशल पर।

इस युद्ध को जीतने के लिए ज्ञानदीप की कोई भूमिका तो होनी ही चाहिए!

अतिसुन्दर लेखन मित्र! वाह वाह!
I hope new update will clear the air on What is Pandit's plan.

Question is how can poor Princess Shubhada survive in this treacherous condition?
Who will save her?
Bodyguard Angad?
100 bodyguards against a veteran army of 5000 and traitors in the Royal Council?
 
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Lefty69

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Welcome king1969
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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Shaandar update
 
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Lefty69

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Welcome bigbolls5
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Lefty69

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राजकुमारी शुभदा ना अचेत थी और ना ही विलाप में मग्न। उन्हें पिता की मृत्यु का शोक था परंतु प्राथमिकता थी नगर और राज्य की सुरक्षा। अपने पति के साथ बिताई एक रात्रि के घर में वह सूर्यास्त के पश्चात लौट आई थी।


सोचते हुए एक प्रहर बीत गया जब किसी ने गृह के दरवाजे की घंटी बजाई। अंगद के होते हुए आज की रात यह साहस केवल एक व्यक्ति कर सकती थी,
“दीप…”


राजकुमारी शुभदा ने शांत मुद्रा कर प्रवेश करने का आदेश दिया और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हाथ जोड़ कर अंदर आ गए।


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आप हमारे विश्वस्त हो। हमें कोई मार्ग बताएं।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजनंदनी, इस परिस्थिति में युद्ध संभव नहीं है। मैंने यही सलाह राजा खड़गराज को भी दी थी।”


राजकुमारी शुभदा, “उनका प्रस्ताव याद है? वह मुझे किसी वैश्या से भी निम्न स्तर की बनाकर रखेंगे। यदि मैं उन चार महीनों में मर गई तो भाग्यशाली रहूंगी क्योंकि उन चार महीनों के बाद आत्मघात के अलावा मेरे पास कोई पर्याय नहीं होगा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी शुभदा, मेरे पास एक योजना है। खतरनाक है पर केवल एक ही योजना है। आप राजा उग्रवीर ने भेजा प्रस्ताव स्वीकार करें पर इस शर्त पर कि आप अपने पिता और पति की अंतिम क्रिया करने के बाद स्वयं को उनके आधीन करेंगी। इस से हमें समय मिलता है। मैं अपनी नृत्यशाला समेत कल सुबह नगर से पलायन करने का आभास निर्माण कर अपनी योजना कार्यान्वित करूंगा।”


राजकुमारी शुभदा टूट कर रोने लगी और उसने किसी को भी सोचने तक का अवसर दिए बगैर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को आलिंगन दिया और अपना सारा दुख अश्रु मार्ग से बाहर निकाल दिया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अपनी मजबूत बाहों में पकड़कर दबाया और राजकुमारी शुभदा को आराम मिला। राजकुमारी शुभदा ने अनजाने में पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की पीठ पर हाथ घुमाया और उसे वहां नाखूनों के भरते घाव महसूस हुए।


राजकुमारी शुभदा स्तब्ध हो कर, “दीप…?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गलती से, “हां, शुभा?”


दोनों स्तब्ध हो कर वैसेही रुक गए मानो समय रुक गया हो।


राजकुमारी शुभदा पीछे होकर चिल्लाई, “अंगद!!… अंगद!!… अंगद!!…”


अंगद तीन सैनिकों समेत अंदर आ गया।


राजकुमारी शुभदा गुस्से से, “इस विश्वासघाती को बंदी बना लो! इसे कल सुबह तक नगर की द्वार पर लटकाकर मेरे लाल चाबुक से फटकारते रहो। सुबह की पहली किरण के साथ इसका मुंह काला कर इसे गधे पर उल्टा बिठाकर इसकी दो कौड़ी की नृत्यशाला के साथ नगर से निष्कासित कर दो!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजकुमारी शुभदा के पैरों में गिर कर, “क्षमा राजनंदिनी!! क्षमा!! इतना कठोर दंड ना दें!! कुछ तो छूट दें!! जो हुआ उस पर मेरा भी नियंत्रण नहीं था!!”


राजकुमारी राजा की तरह गंभीर खड़ी होते हुए, “छूट? ऐसी उद्दंडता के बाद छूट मांगते हो? यदि तुमने किए हुए पाप को धोने लायक कुछ कार्य करो तो ही मुझे अपना मुख दिखाना वरना आत्मघात कर लो, यह मेरी राज आज्ञा है!!”


नगर मार्ग में से पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को घसीटते हुए ले जाया गया जब अर्धरात्रि को भी पूरे नगर ने इसे देखा। चाबुक की गूंज और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की चीखों ने पूर्ण रात्रि नगर को जगाए रखा। प्रातः जब पंडित ज्ञानदीप शास्त्री स्नान के लिए जाते तब सबके सामने उनके मुंह पर गोबर और कालिक पोत दी गई। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को राख से नहलाया गया और गधे पर उल्टा बिठाकर नगर से घुमाया गया। नृत्यशाला के लोगों को वाद्य बजाते हुए इस विभत्स शोभा यात्रा का भाग बनकर निष्कासित होना पड़ा।


सुबह की पहली किरण के साथ जब यह शोभा यात्रा नगर के बाहर गई तब एक बुझा बुझा संदेशवाहक राज सभा की ओर बढ़ा।



संदेशवाहक संजय सर झुकाकर राज सभा में पहुंचा तो वहां राजा उग्रवीर के दूत को खड़ा देख कांप उठा।


राजकुमारी शुभदा, “संजय, हमें युद्ध का परिणाम पता है। फिर भी आप अपना कार्य पूर्ण कीजिए।”


संजय बताने लगा कि राज मार्ग से उतरते हुए राजा खड़गराज और सेनापति अचलसेन में अनबन शुरू हो गई क्योंकि सेनापति अचलसेन युद्ध की व्यूह रचना के बारे में सोचने के बजाय पंडित ज्ञानदीप शास्त्री और उनके नजदीक रहती स्त्रियों के बारे में, यानी राजकुमारी शुभदा के चरित्र पर लांछन लगाए जा रहे थे। राजा खड़गराज ने एकांत में सेनापति अचलसेन को पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की योजना पर सोचने को कहा क्योंकि वह योजना बेहतर लग रही थी। पूरी योजना नहीं तो कम से कम कुछ अंश तो उपयोग में लिया जा सकता है।


सेनापति अचलसेन ने अपने ससुर को विश्वास दिलाया कि राजा उग्रवीर की पूर्ण सेना आने से पहले राजा उग्रवीर का शीश राजा खड़गराज के कदमों में होगा। राजा खड़गराज सेनापति अचलसेन से खुले तौर पर विरोध नहीं कर पाए।


पर्वतपुर राज्य का सबसे दूर का गांव उग्रवीर के राज्य से सटा हुआ था। शाम के बाद गांव में पहुंचने से उस खाली गांव में सेनापति अचलसेन की योजना अनुसार किले बनाना शुरू हुआ पर राजा उग्रवीर के पूर्ण सैन्य ने चारों तरफ से हमला किया।


सेनापति अचलसेन राजा उग्रवीर को मारने के लिए इतना आतुर थे कि उसने राजा उग्रवीर की छुपे स्वरूप से बढ़ती सेना को लांघ कर खुद को राजा उग्रवीर के घेराव में लाया था।


राजा उग्रवीर के स्तब्ध सेनानी चुपके से सब देखते रहे और संपूर्ण वार्ता राजा उग्रवीर को बताई। राजा उग्रवीर को खदान के लिए युवा पुरुषों की आवश्यकता थी तो उसने अग्निबाण चलाकर राजा खड़गराज जिस कुटिया में थे उसे जला दिया। राजा खड़गराज पर हमला होता देख सेनापति अचलसेन उनकी रक्षा हेतु तलवार लेकर आगे बढ़ा।
अग्निबाण चलाती सेना पर तलवार लेकर दौड़ जाने से एक ही उत्पन्न होना था। सेनापति अचलसेन आठ अग्निबाण से भेद दिए गए। राजा खड़गराज ने अपने निजी सुरक्षा पथक के साथ बाहर दौड़ लगाने का नारा दिया पर सुरक्षा पथक के बाहर जाते ही जलती कुटीर को अंदर से बंद करते हुए आत्मदाह कर लिया। उनके इस बलिदान से उनके अधिकतर पथक के प्राण बच गए।


संजय, “राजकुमारी शुभदा, राजा खड़गराज और सेनापति अचलसेन समेत हमारे ४७ वीर स्वर्ग सिधार गए हैं। बाकी सैन्य को बंधक बनाकर रखा गया है। उनके प्राणों की रक्षा अब आप के हाथों में है।”


राजकुमारी शुभदा युवराज से, “राजदूत, क्या आप हम से चर्चा कर संधि करने का अधिकार रखते हैं?”


युवराज, “अवश्य श्रीमती शुभदा।”


राजकुमारी शुभदा सिंहासन से उठकर गुस्से से, “राजदूत! आज सुबह आप ने देखा होगा कि उद्दंड व्यक्ति का कैसे उपाय होता है। हम अब भी इस राज्य की राजनंदिनी हैं। जिस दिन आपके राजा उग्रवीर इस राज्य को विलीन कर हमें और हमारे नागरिकोंको दास बना लें तब यह उद्दंडता दिखाना।”


युवराज स्वयं ४२ वर्ष के थे पर राजकुमारी शुभदा की ललकार सुन उसने मन ही मन अपने आप को राजकुमारी शुभदा को लूटते प्रथम पथक और उसके बाद के हर पथक में शामिल कर लिया। वह इस आग को धीरे धीरे बुझते देखना चाहता था।


युवराज, “क्षमा राजनंदिनी शुभदा। राजकुमारी शुभदा मैं राजा उग्रवीर की ओर से कुछ संधि प्रस्ताव को बदलने का अधिकार रखता हूं पर उनके कुछ प्रस्ताव आप को पूर्णतः मान्य करने होंगे।”


राजकुमारी शुभदा ने राजदूत से कई घंटों की चर्चा के बाद संधि प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगाई। संधि की एक प्रत लेकर राजदूत लौट गया तो एक प्रत को नगर के नागरिकों को सुनाया गया।


नगर में घोषणा करते व्यक्ति और नागरिकों की आंखों में से आंसू बह रहे थे क्योंकि संधि के अनुसार कल सुबह राजा उग्रवीर अपने सैन्य के बाद साथ पर्वतपुर आएंगे। वह राजकुमारी शुभदा को राजा खड़गराज की अस्थियां और सेनापति अचलसेन का पार्थिव शरीर देकर नगर पर अपना अधिकार स्थापित करेंगें।


सेनापति अचलसेन का दाहसंस्कार पूर्ण होते ही अगले दिन राजा उग्रवीर राजकुमारी शुभदा को राज सभा में विवस्त्र कर दासी की तरह उपभोग कर पर्वतपुर पर अपना अधिपत्य सिद्ध करेंगे।
इस लज्जासपद सभा में नगर के सभी नागरिकों को उपस्थिति रहना पड़ेगा। इस सभा के पश्चात ५० सैनिकों का पथक नग्न राजकुमारी शुभदा को नगर के बाहर राजा उग्रवीर के सैन्य शिविर में ले जाएंगे।


राजकुमारी शुभदा के इस त्याग के कारण नागरिकों को अगले सूर्योदय तक नगर और राज्य त्याग देने की सुविधा है। जो नागरिक नगर या राज्य में रहेंगे उन्हें राजा उग्रवीर का दासत्व स्वीकार कर रहना होगा।


दोपहर तक नागरिकों में वार्ता फैलने लगी की अंगद और बाकी सुरक्षा पथक तेल, पुराना कपड़ा और गंधक एकत्र कर राजकुमारी शुभदा के प्रस्थान के बाद आत्मदाह करने वाले हैं। नागरिकों ने अपने प्रियजनों को समेटा और मन ही मन राजकुमारी शुभदा को नमन कर अपने बच्चों को २ दिन बाद राज्य से पलायन करने का आदेश दिया।


शाम को युवराज ने राजा उग्रवीर के साथ पर्वतपुर की ओर कूच किया तब अपने पिता पर अपनी क्रूरता की छाप लगाते हुए,
“पिताश्री, आप चिंतित न हो। एक बार राजकुमारी शुभदा हमारे सैनिकों के नीचे दब जाए तो हम पलायन करते नागरिकोंको भी दास बना लेंगे। पर्वतपुर में अब हमारा विरोध करने की क्षमता किसी में भी नहीं।”
 

sunoanuj

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प्रातः पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अश्वशाला के पीछे बनी कुटीर में से बाहर आते ही नृत्यशाला की तैयारियों को ध्यान से देखा और फिर नदी में स्नान संध्या कर मंदिर गए।


आज राज सभा सुनी पड़ी थी और कुछ वृद्ध सभासद छोड़ वहां केवल राजकुमारी शुभदा और उनकी माता थी। नगर के द्वार खुलते ही संदेशवाहकोंको नीचे भेजा गया था परंतु युद्ध की कोई वार्ता कल सुबह से पहले आना संभव नहीं था।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की सलाह से राजकुमारी शुभदा ने कुछ नित्य के कार्य पूर्ण किए और सारे प्रतीक्षा करते बैठ गए।
दोपहर के भोजन के १ प्रहर बाद कुछ सेवक दौड़ते हुए राज सभा में आए। उनके चेहरे से उड़े रंग वार्ता की दिशा बता रहे थे पर राजकुमारी शुभदा ने फिर भी शांति से बात पूछी।


सेवक, “राजकुमारी शुभदा, राजा उग्रवीर के ध्वज के साथ दूत आए हैं।”


राजकुमारी शुभदा, “उन्हें आदरपूर्वक राज सभा में ले आओ।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गरुड़वीर से, “तुम जानते हो कि तुम्हें क्या करना है।”


गरुड़वीर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के पैर छू कर चला गया और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अपने आसन पर बैठ गए।


राजदूत राज सभा में आया तो उसने राजकुमारी शुभदा को अभिवादन किए बगैर अपनी बात कहने लगा।


राजदूत, “आप लोगों ने संदेशवाहकोंको नीचे भेजा होगा। पर राजा उग्रवीर ने आपको अपनी दया का परिचय देते हुए स्वयं वार्ता भेजी है। सबसे पहले राजा उग्रवीर ने नया संधि प्रस्ताव भेजा है। यह नगर केवल वृद्ध और एक सौ रक्षा पथक के साथ सेना से युद्ध नहीं कर सकता। आप सब को बंदी दास बनाकर खदानों में तब तक काम करना होगा जब तक खदाने रिक्त नहीं हो जाती। राजकुमारी शुभदा ने राजा उग्रवीर की रखैल बनने का दुर्लभ अवसर खो दिया है पर उन्होंने एक रात्रि का विवाह किया है इसलिए उन्हें एक विशेष पद दिया जाएगा। राजकुमारी शुभदा राजा उग्रवीर के संपूर्ण सेना की एक रात्रि की शय्या दासी बनेगी। राजकुमारी शुभदा को अपने जीवन की रक्षा हेतु चिंता की जरूरत नहीं क्योंकि सेना हर रात्रि 50 सैनिकों का पथक बना के आएगी। तो राजकुमारी शुभदा अगले चार महीने व्यस्त रहेंगी। आप के राजा अपने निजी सुरक्षा पथक के साथ भस्म हो चुके हैं। आपका मूर्ख सेनापति अति मूर्खता का प्रमाण देते हुए मर गया। बाकी सैनिकों ने कुछ बुद्धि का प्रमाण देते हुए समर्पण कर दिया।”


रानी और राजकुमारी यह वार्ता सुन शोक में डूब गई। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने सेविकाओं को बुलाकर उन्हें आराम करने दूसरे कक्ष में भेज दिया। कुछ वृद्ध सभासद राजा उग्रवीर से प्रतिशोध हेतु दूतों का शिरच्छेद करना चाहते थे।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हाथ जोड़कर नम्रता से, “आदरणीय राजदूत, जैसे आप देख चुके हैं रानी और राजकुमारी शुभदा अत्यंत व्यथित हो गई है। उन्हें आपके प्रस्ताव पर विचार करने का समय दें। साथ ही, हमें अपने संदेशवाहकों से आपकी लाई वार्ता को सत्यापित करना होगा अन्यथा कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता।”


राजदूत की युद्ध से सीखी आंखें चमक गई जब उसे और उसके पथक को राज अतिथिगृह में कल सुबह तक रुकने का आग्रह किया गया।


राजदूत सभा से बाहरे निकला तो गरुड़वीर उनका आदर आतिथ्य करते हुए, “आपको पर्वतों से ऊपर आते हुए कोई कष्ट तो नहीं हुआ? सरल मार्ग विशेष लोगों के लिए ही है। जैसे जब राजा खड़गराज या अन्य राजा आना जाना चाहते हो तो उसे इस्तमाल किया जाता है।”


राजदूत मुस्कुराकर, “तुम हो गरुड़वीर जिसने राजा उग्रवीर को वह मार्ग दिखाया। सत्य बताओ, राजा उग्रवीर की सेना का संदेश आते ही तुम वहां से क्यों भागे? या तो तुम गुप्तचर हो या देशद्रोही। दोनों परिस्थिति में तुम विश्वास के पात्र नहीं हो।”


गरुड़वीर, “सत्यवचन युवराज, किंतु यदि यह देशद्रोही आपके काम आए तो आप को कोई समस्या?”


राजदूत, “तुम्हें कैसे पता की मैं राजा उग्रवीर का बेटा हूं?”


गरुड़वीर, “अपने जीवन को दांव पर लगाते हुए मैं केवल सही व्यक्ति से बात करूंगा। पहले राजा उग्रवीर और अब आप युवराज।”


युवराज, “क्यों?”


गरुड़वीर, “हर राज्य में कुछ लोग होते हैं जो राज्य से असंतुष्ट हैं। मैं योद्धा बनना चाहता था परंतु मेरी दुबली कद काठी के कारण मुझे एक सभासद बना दिया गया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को केवल उनके जन्म के कारण रोज प्रताड़ित किया जाता है।”


युवराज, “तो इस खेल के लेखक पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हैं! वह ब्राह्मण जो जन्म से शूद्र है पर भाषा से ब्राह्मण। क्यों?”


गरुड़वीर, “क्यों ना आप आज रात्रि भोजन पश्चात अश्वशाला देखने जाएं?”


रात्रि के प्रथम प्रहर बाद युवराज अश्वशाला में अश्व देखने लगे तो एक आधिकारिक आवाज ने उन्हें अपनी ओर खींचा।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अपने उमदा अश्व को स्वच्छ करते हुए, “पवन तुम एक अत्यंत उत्तम अश्व हो। परंतु इस राज्य में तेज अश्व नहीं केवल सफेद अश्व को प्रेम मिलता है। इसी वजह से तुम अपने निम्नस्तर के चालक को गिरा देते हो।”


युवराज, “पर यदि पवन को ऐसा चालक मिले जो उसे रंग के परे देख उसे दौड़ने दे तो?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “तो पवन स्वेच्छा से उसका दास होगा। यदि कोई इसे प्रतिदिन एक चक्कर के बजाय उसकी मर्जी से दौड़ने दे तो यह दौड़ते हुए मर जाएगा पर अपने चालक का काम पूर्ण करेगा और मृत्यु के लिए आभारी होगा।”


युवराज, “जब सैन्य गया तब नृत्यशाला नहीं गई पर अब नृत्यशाला का सारा सामान समेटा हुआ है। क्या हुआ?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “हारा हुआ राजा नृत्य नहीं देखेगा। शायद नृत्यशाला को नए राज्य की आवश्यकता है।”


युवराज हिम्मत जुटकर, “राजा उग्रवीर की राज सभा मिले तो?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “तो मैं राजकुमारी शुभदा को आपके प्रस्ताव को मानने के लिए प्रवृत्त कर सकता हूं।”


युवराज चौंककर, “पूरे सैन्य की शय्या दासी बनने के लिए भी?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “यदि आप उन्हें उनके पति और पिता का देह देने का वचन दें तो… स्त्री भावनाविवश होती है!”


युवराज, “यदि अपने पति का मृतदेह पाने के बाद राजकुमारी शुभदा मना कर दे तो?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजा उग्रवीर तो अपना सैन्य वैसे भी ले आएंगे। प्रश्न यह है कि उन्हें क्या मिलेगा? एक किला जिसके अंदर के सौ सिपाही और नागरिक मृत्यु तक लड़ते हुए आपकी सेना को क्षति पहुंचाएं या एक विलाप करती राजकुमारी जो आपकी उपस्थिति में अपने पति की चिता को अग्नि दे कर आपकी दासी बन जाए।”


युवराज, “आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “मैंने राजकुमारी शुभदा से प्रेम किया परंतु केवल जन्म के कारण मुझे स्वयंवर से निष्कासित किया गया। मैंने राजा खड़गराज, सेनापति अचलसेन और राजकुमारी शुभदा से अपना प्रतिशोध ले लिया है पर अब मुझे अपनी नृत्यशाला को यहां से सुरक्षित ले जाने के लिए आप के मार्गों को आवश्यकता है। वैसे मेरी घुटन तो आप भी समझ सकते हो। आपके समेत राजा उग्रवीर के तीन पुत्र युद्धभुमि से बाहर आ गए हैं परंतु राजा उग्रवीर अपना उत्तराधिकारी घोषित करने को तैयार नहीं। हर वर्ष के साथ आप के दो और भ्राता इस सूची में आएंगे। भला कौन वृद्ध होने के बाद राजा बनना चाहेगा? वह भी कोई और चुनौती के बाद!”


युवराज ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के साथ सौदा पक्का किया और अपने राजा बनने का सपना देखते हुए राज अतिथि गृह पहुंच गए।
बहुत ही शानदार प्रस्तुति!
 

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राजकुमारी शुभदा ना अचेत थी और ना ही विलाप में मग्न। उन्हें पिता की मृत्यु का शोक था परंतु प्राथमिकता थी नगर और राज्य की सुरक्षा। अपने पति के साथ बिताई एक रात्रि के घर में वह सूर्यास्त के पश्चात लौट आई थी।


सोचते हुए एक प्रहर बीत गया जब किसी ने गृह के दरवाजे की घंटी बजाई। अंगद के होते हुए आज की रात यह साहस केवल एक व्यक्ति कर सकती थी,
“दीप…”



राजकुमारी शुभदा ने शांत मुद्रा कर प्रवेश करने का आदेश दिया और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हाथ जोड़ कर अंदर आ गए।


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आप हमारे विश्वस्त हो। हमें कोई मार्ग बताएं।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजनंदनी, इस परिस्थिति में युद्ध संभव नहीं है। मैंने यही सलाह राजा खड़गराज को भी दी थी।”


राजकुमारी शुभदा, “उनका प्रस्ताव याद है? वह मुझे किसी वैश्या से भी निम्न स्तर की बनाकर रखेंगे। यदि मैं उन चार महीनों में मर गई तो भाग्यशाली रहूंगी क्योंकि उन चार महीनों के बाद आत्मघात के अलावा मेरे पास कोई पर्याय नहीं होगा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी शुभदा, मेरे पास एक योजना है। खतरनाक है पर केवल एक ही योजना है। आप राजा उग्रवीर ने भेजा प्रस्ताव स्वीकार करें पर इस शर्त पर कि आप अपने पिता और पति की अंतिम क्रिया करने के बाद स्वयं को उनके आधीन करेंगी। इस से हमें समय मिलता है। मैं अपनी नृत्यशाला समेत कल सुबह नगर से पलायन करने का आभास निर्माण कर अपनी योजना कार्यान्वित करूंगा।”


राजकुमारी शुभदा टूट कर रोने लगी और उसने किसी को भी सोचने तक का अवसर दिए बगैर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को आलिंगन दिया और अपना सारा दुख अश्रु मार्ग से बाहर निकाल दिया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अपनी मजबूत बाहों में पकड़कर दबाया और राजकुमारी शुभदा को आराम मिला। राजकुमारी शुभदा ने अनजाने में पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की पीठ पर हाथ घुमाया और उसे वहां नाखूनों के भरते घाव महसूस हुए।


राजकुमारी शुभदा स्तब्ध हो कर, “दीप…?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गलती से, “हां, शुभा?”


दोनों स्तब्ध हो कर वैसेही रुक गए मानो समय रुक गया हो।


राजकुमारी शुभदा पीछे होकर चिल्लाई, “अंगद!!… अंगद!!… अंगद!!…”


अंगद तीन सैनिकों समेत अंदर आ गया।


राजकुमारी शुभदा गुस्से से, “इस विश्वासघाती को बंदी बना लो! इसे कल सुबह तक नगर की द्वार पर लटकाकर मेरे लाल चाबुक से फटकारते रहो। सुबह की पहली किरण के साथ इसका मुंह काला कर इसे गधे पर उल्टा बिठाकर इसकी दो कौड़ी की नृत्यशाला के साथ नगर से निष्कासित कर दो!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजकुमारी शुभदा के पैरों में गिर कर, “क्षमा राजनंदिनी!! क्षमा!! इतना कठोर दंड ना दें!! कुछ तो छूट दें!! जो हुआ उस पर मेरा भी नियंत्रण नहीं था!!”


राजकुमारी राजा की तरह गंभीर खड़ी होते हुए, “छूट? ऐसी उद्दंडता के बाद छूट मांगते हो? यदि तुमने किए हुए पाप को धोने लायक कुछ कार्य करो तो ही मुझे अपना मुख दिखाना वरना आत्मघात कर लो, यह मेरी राज आज्ञा है!!”


नगर मार्ग में से पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को घसीटते हुए ले जाया गया जब अर्धरात्रि को भी पूरे नगर ने इसे देखा। चाबुक की गूंज और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की चीखों ने पूर्ण रात्रि नगर को जगाए रखा। प्रातः जब पंडित ज्ञानदीप शास्त्री स्नान के लिए जाते तब सबके सामने उनके मुंह पर गोबर और कालिक पोत दी गई। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को राख से नहलाया गया और गधे पर उल्टा बिठाकर नगर से घुमाया गया। नृत्यशाला के लोगों को वाद्य बजाते हुए इस विभत्स शोभा यात्रा का भाग बनकर निष्कासित होना पड़ा।


सुबह की पहली किरण के साथ जब यह शोभा यात्रा नगर के बाहर गई तब एक बुझा बुझा संदेशवाहक राज सभा की ओर बढ़ा।



संदेशवाहक संजय सर झुकाकर राज सभा में पहुंचा तो वहां राजा उग्रवीर के दूत को खड़ा देख कांप उठा।


राजकुमारी शुभदा, “संजय, हमें युद्ध का परिणाम पता है। फिर भी आप अपना कार्य पूर्ण कीजिए।”


संजय बताने लगा कि राज मार्ग से उतरते हुए राजा खड़गराज और सेनापति अचलसेन में अनबन शुरू हो गई क्योंकि सेनापति अचलसेन युद्ध की व्यूह रचना के बारे में सोचने के बजाय पंडित ज्ञानदीप शास्त्री और उनके नजदीक रहती स्त्रियों के बारे में, यानी राजकुमारी शुभदा के चरित्र पर लांछन लगाए जा रहे थे। राजा खड़गराज ने एकांत में सेनापति अचलसेन को पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की योजना पर सोचने को कहा क्योंकि वह योजना बेहतर लग रही थी। पूरी योजना नहीं तो कम से कम कुछ अंश तो उपयोग में लिया जा सकता है।


सेनापति अचलसेन ने अपने ससुर को विश्वास दिलाया कि राजा उग्रवीर की पूर्ण सेना आने से पहले राजा उग्रवीर का शीश राजा खड़गराज के कदमों में होगा। राजा खड़गराज सेनापति अचलसेन से खुले तौर पर विरोध नहीं कर पाए।


पर्वतपुर राज्य का सबसे दूर का गांव उग्रवीर के राज्य से सटा हुआ था। शाम के बाद गांव में पहुंचने से उस खाली गांव में सेनापति अचलसेन की योजना अनुसार किले बनाना शुरू हुआ पर राजा उग्रवीर के पूर्ण सैन्य ने चारों तरफ से हमला किया।


सेनापति अचलसेन राजा उग्रवीर को मारने के लिए इतना आतुर थे कि उसने राजा उग्रवीर की छुपे स्वरूप से बढ़ती सेना को लांघ कर खुद को राजा उग्रवीर के घेराव में लाया था।


राजा उग्रवीर के स्तब्ध सेनानी चुपके से सब देखते रहे और संपूर्ण वार्ता राजा उग्रवीर को बताई। राजा उग्रवीर को खदान के लिए युवा पुरुषों की आवश्यकता थी तो उसने अग्निबाण चलाकर राजा खड़गराज जिस कुटिया में थे उसे जला दिया। राजा खड़गराज पर हमला होता देख सेनापति अचलसेन उनकी रक्षा हेतु तलवार लेकर आगे बढ़ा।
अग्निबाण चलाती सेना पर तलवार लेकर दौड़ जाने से एक ही उत्पन्न होना था। सेनापति अचलसेन आठ अग्निबाण से भेद दिए गए। राजा खड़गराज ने अपने निजी सुरक्षा पथक के साथ बाहर दौड़ लगाने का नारा दिया पर सुरक्षा पथक के बाहर जाते ही जलती कुटीर को अंदर से बंद करते हुए आत्मदाह कर लिया। उनके इस बलिदान से उनके अधिकतर पथक के प्राण बच गए।



संजय, “राजकुमारी शुभदा, राजा खड़गराज और सेनापति अचलसेन समेत हमारे ४७ वीर स्वर्ग सिधार गए हैं। बाकी सैन्य को बंधक बनाकर रखा गया है। उनके प्राणों की रक्षा अब आप के हाथों में है।”


राजकुमारी शुभदा युवराज से, “राजदूत, क्या आप हम से चर्चा कर संधि करने का अधिकार रखते हैं?”


युवराज, “अवश्य श्रीमती शुभदा।”


राजकुमारी शुभदा सिंहासन से उठकर गुस्से से, “राजदूत! आज सुबह आप ने देखा होगा कि उद्दंड व्यक्ति का कैसे उपाय होता है। हम अब भी इस राज्य की राजनंदिनी हैं। जिस दिन आपके राजा उग्रवीर इस राज्य को विलीन कर हमें और हमारे नागरिकोंको दास बना लें तब यह उद्दंडता दिखाना।”


युवराज स्वयं ४२ वर्ष के थे पर राजकुमारी शुभदा की ललकार सुन उसने मन ही मन अपने आप को राजकुमारी शुभदा को लूटते प्रथम पथक और उसके बाद के हर पथक में शामिल कर लिया। वह इस आग को धीरे धीरे बुझते देखना चाहता था।


युवराज, “क्षमा राजनंदिनी शुभदा। राजकुमारी शुभदा मैं राजा उग्रवीर की ओर से कुछ संधि प्रस्ताव को बदलने का अधिकार रखता हूं पर उनके कुछ प्रस्ताव आप को पूर्णतः मान्य करने होंगे।”


राजकुमारी शुभदा ने राजदूत से कई घंटों की चर्चा के बाद संधि प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगाई। संधि की एक प्रत लेकर राजदूत लौट गया तो एक प्रत को नगर के नागरिकों को सुनाया गया।


नगर में घोषणा करते व्यक्ति और नागरिकों की आंखों में से आंसू बह रहे थे क्योंकि संधि के अनुसार कल सुबह राजा उग्रवीर अपने सैन्य के बाद साथ पर्वतपुर आएंगे। वह राजकुमारी शुभदा को राजा खड़गराज की अस्थियां और सेनापति अचलसेन का पार्थिव शरीर देकर नगर पर अपना अधिकार स्थापित करेंगें।


सेनापति अचलसेन का दाहसंस्कार पूर्ण होते ही अगले दिन राजा उग्रवीर राजकुमारी शुभदा को राज सभा में विवस्त्र कर दासी की तरह उपभोग कर पर्वतपुर पर अपना अधिपत्य सिद्ध करेंगे।
इस लज्जासपद सभा में नगर के सभी नागरिकों को उपस्थिति रहना पड़ेगा। इस सभा के पश्चात ५० सैनिकों का पथक नग्न राजकुमारी शुभदा को नगर के बाहर राजा उग्रवीर के सैन्य शिविर में ले जाएंगे।



राजकुमारी शुभदा के इस त्याग के कारण नागरिकों को अगले सूर्योदय तक नगर और राज्य त्याग देने की सुविधा है। जो नागरिक नगर या राज्य में रहेंगे उन्हें राजा उग्रवीर का दासत्व स्वीकार कर रहना होगा।


दोपहर तक नागरिकों में वार्ता फैलने लगी की अंगद और बाकी सुरक्षा पथक तेल, पुराना कपड़ा और गंधक एकत्र कर राजकुमारी शुभदा के प्रस्थान के बाद आत्मदाह करने वाले हैं। नागरिकों ने अपने प्रियजनों को समेटा और मन ही मन राजकुमारी शुभदा को नमन कर अपने बच्चों को २ दिन बाद राज्य से पलायन करने का आदेश दिया।


शाम को युवराज ने राजा उग्रवीर के साथ पर्वतपुर की ओर कूच किया तब अपने पिता पर अपनी क्रूरता की छाप लगाते हुए,
“पिताश्री, आप चिंतित न हो। एक बार राजकुमारी शुभदा हमारे सैनिकों के नीचे दब जाए तो हम पलायन करते नागरिकोंको भी दास बना लेंगे। पर्वतपुर में अब हमारा विरोध करने की क्षमता किसी में भी नहीं।”

बहुत ही शानदार अपडेट दिया है !
 

Lefty69

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