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Romance पर्वतपुर का पंडित

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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* पुराने जमाने में जब लड़की का मासिक धर्म शुरू हो जाता तब उसे वयस्क मान कर उसकी शादी करा दी जाती।

पूर्ण रूप से सहमत।
आधुनिक संवेदनशीलता के आधार पर प्राचीन प्रणालियों का मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए।

परंतु खास कर राज घरानों में बेटियों को भी बेटों जैसे ही पढ़ाया जाता और उन्हें भी गुरु से शिक्षा मिलती तो ऐसी राजकुमारी का विवाह या तो तय कर के देरी से कराया जाता या फिर सोलह वर्ष की उम्र में स्वयंवर कराया जाता।

Forum और आज के नियमों को समझ कर मुख पात्र का विवाह देरी से कराया जाता है, उसके १८ वर्ष पूर्ण होने पर।

मुख्य पात्रों को पहली बार दिखाते हुए नाम bold में किया गया है पर आगे वह समान आकार में रहेंगे।

If anyone can help me generate AI pictures to add to the story, I will be glad and give credit for them at the end of each post.

आप लिखें। हम आपका उत्साहवर्धन करते रहेंगे 😊
 

Lefty69

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अतीव सुंदर प्रस्तुति! वाह मित्र - ऐसी भाषा में लेखन करते हुए किसी को पहली बार देखा इस फोरम पर। वाह 👌
कथानक रोचक प्रतीत होता है। आशा है कि पाठक सतही बातों से ऊपर उठ कर कथा की गहराई को पढ़ और समझ सकेंगे। आप लिखें - कम से कम हम आपका साथ देंगे 😊
प्रिय वाचक, आपका आभारी हूं प्रोत्साहन के लिए।

कृपया अपने विचार या सुझाव देकर मेरा धैर्य बढ़ाएं।
 
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सेनापति अचलसेन अकड़कर चलते हुए जब राज सभा पहुंचे तब सभा शुरू हुए १ घटिका बीत चुकी थी। सेनापति अचलसेन को देख सारे चुप हो गए और वह राजा खड़गराज को प्रणाम कर अपने आसन पर बैठ गए।

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “सेनापति अचलसेन, क्या आप इतने आवश्यक सभा में विलंब से आने की क्षमा नहीं मांगेंगे? मैं आप को स्मरण करा दूं कि राजा उग्रवीर ने युद्ध की चुनौती दी है।”
सेनापति अचलसेन, “यदि मैं विलंब से आया हूं तो क्षमा तू ने मांगनी चाहिए सूतपुत्र! आपके ही पेय के कारण मुझे प्रातः जाग नहीं आई और मैं अपनी कसरत करने अखाड़े में नहीं जा पाया।”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री दांत भींचते हुए, “उस पेय को आप के समक्ष मैंने भी पिया था। किंतु मैं आज प्रातः से अपने सारे विधि कर मंदिर गया था जहां आपका राजकुमारी शुभदा के संग आना अपेक्षित था।”

सेनापति अचलसेन गर्व से फूलते हुए, “कल रात्रि मैंने राजकुमारी शुभदा को वह कसरत कराई की वह आज दोपहर से पहले राज सभा में सम्मिलित होने को तैयार नहीं है। और हां, शय्या पर बिछी सफेद रेशम की चादर अगर चाहते हो तो उसे मैं दान करने को तैयार हूं क्योंकि उस पर एक रोटी जितना बड़ा रक्त का दाग जो बन गया है!”


Updated-Blog-Image-Size-4-4124895
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने गुस्से से लाल होकर, “आर्य, आप केवल अपनी धर्मपत्नी ही नहीं इस राज्य की राजकुमारी का घोर अपमान कर रहे हैं! इस तरह की बातें तो सभ्य पुरुष किसी देह बिक्री करतीं स्त्री के बारे में भी न करे।”

राजा खड़गराज आहत होकर भी शांति प्रस्थापित करते हुए, “सेनापति अचलसेन, स्त्री लज्जा को पौरुष अहंकार के नीचे दबाना पुरूषार्थ नहीं। अभी हमें राजा उग्रवीर ने युद्ध की व्यूह रचना करनी होगी। सभा में किसी को कोई योजना बतानी है?”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजन, कृपया मेरी पूरी योजना सुन लें। राजा उग्रवीर ५७ वर्ष के हैं, गुप्तचरों के अनुसार उनके पास वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए १ पत्नी है और ३७ पुत्र वीरगति प्राप्त करके भी निश्चिंत हैं क्योंकि न केवल उनके ५२ पुत्र शेष हैं पर ३ पुत्र २० वर्ष का अपना सैन्य काल पूर्ण कर चुके हैं। तो उन्हें हमारे राज्य की लावण्यवती राजकुमारी से अधिक आकर्षक कुछ और है जिसके लिए वह गत ४ वर्ष से विवाह प्रस्ताव भेज रहे थे।”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सभा को संबोधित करते हुए, “तो वह क्या चीज है जो राजा उग्रवीर को पर्वतपुर खींच लाई? एक राज्य जिसने अपने आधे जन समाज को युद्धग्नि में झोंक रखा हो उसे किस बात की जरूरत है?”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजा खड़गराज की आंखों में देखते हुए, “धन! उसे हमारे राज्य में बनता सुवर्ण और नीलमणि से बनता धन चाहिए।”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सभा से पूछकर, “तो मेरी योजना क्या है? पर्वतों के नीचे रास्तों पर बने हमारे ४ गांव खतरे में हैं इसलिए उन्हें तुरंत खाली किया जाए। हमें दूत भेजकर राजा उग्रवीर को मनाना पड़ेगा कि राजकुमारी शुभदा का सेनापति अचलसेन से प्रेम था और प्रतियोगिता एक छल था उनके प्रेम को मान्यता दिलाने हेतु। कौटिल्य ने कहा है कि युद्ध समान ताकतों के बीच होता है। यदि आपका शत्रु आप से ज्यादा बलशाली हो उसे किसी भी तरीके से युद्ध से परावृत्त किया जाए।”

सेनापति अचलसेन, “क्या तुम बिना लड़े हार स्वीकार करने को कह रहे हो?”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गंभीरता से, “यदि हम मात्र एक सहस्त्र सैनिकों के साथ पांच सहस्त्र सैनिकों से युद्ध करेंगे तो पराभव निश्चित है। पर अगर हम चार गांव की भूमि भेंट में देते हुए सुवर्ण और नीलमणि के उत्पन्न से हिस्सा दें तो हमें राजा उग्रवीर के विरुद्ध सेना जुटाने का समय मिलेगा।”

सेनापति अचलसेन, “राजा खड़गराज, अब आप समझ गए होंगे कि आचार्य से लोगों ने अपना वर्ण बदलना क्यों बंद किया। यह व्यक्ति अब अपने दोनों वर्ण के स्वभाव दिखा रहा है। शूद्र हीन स्वभाव के होते हैं और किसी भी बलशाली का स्वामित्व सहज स्वीकार कर लेते हैं। वहीं ब्राह्मण स्वयं को बौद्धिक विशेषता का प्रमाण दिखाते हैं परंतु युद्ध के सामने भागना ही उनका स्वभाव है। राज्य को राजा चलाता है क्योंकि वह क्षत्रिय है जो दासत्व या पलायन से अधिक अपने शौर्य का प्रमाण देने में विश्वास करता है।”

सेनापति अचलसेन, “भले उनकी सेना हमारी सेना से पांच गुना ज्यादा है पर वह धन के लिए युद्ध कर रहे हैं जब की हम अनी भूमि की स्वतंत्रता के लिए युद्ध करने जा रहे हैं। अगर वह हमसे दस गुना भी हुए तो भी हम उन्हें अउवश्य परास्त करेंगे।”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजा खड़गराज से, “राजन, यह अविचार त्याग दें। राजा उग्रवीर की सेना इतनी बलशाली है क्योंकि वहां का प्रत्येक सैनिक अपने जीवन हेतु लड़ रहा है।”,

राजा खड़गराज, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आपकी योजना अनूठी है परंतु सेनापति अचलसेन को युद्ध का अनुभव है और उनके परदादा ने अतिकुशल युद्ध नीति का निर्माण किया था। हमें सेनापति अचलसेन को इस युद्ध की कमान सौंपनी होगी।”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अपने घुटनों पर बैठ कर, “राजन, किमान नीचे के चार गांव को स्थलांतरित कर अपने सैन्य को पर्वतों में छुपकर युद्ध करने का आदेश दें! हर व्यक्ति हर नागरिक जो युद्ध में मारा जाए वह हमारे राज्य को होती क्षति है।”

राजा खड़गराज, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, युद्ध योजना और सैनिकों को नियोजित करना सेनापति अचलसेन का कार्यक्षेत्र है पर हां, हम अभी नीचे के चार गांव को युद्ध काल के लिए स्थलंतरित करने का आदेश देते हैं।”

तभी राज सभा के द्वार से कुछ उद्विग्न आवाजें आई और एक सुंदर युवक को सिपाही अंदर लाए।

सैनिक, “स्वामी, यह लड़का नृत्यशाला की मुद्रा दिखा कर राज सभा में प्रवेश करता पकड़ा गया।”

सेनापति अचलसेन, “गरुड़वीर! मेरा छोटा भाई होकर भी तू नृत्यशाला में क्या कर रहा है? फेंक दे उस मुद्रा को और मेरे समीप आ। हमें युद्ध में अपना बल दिखाने का सुवर्ण अवसर मिल रहा है।”

गरुड़वीर राजा खड़गराज के सामने भूमि पर लेट कर, “कल पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के स्वयंवर से निष्कासित करने के बाद उन्होंने मुझे राजा उग्रवीर का अतिथि सत्कार करने का कार्य दिया। मैंने राजा उग्रवीर के सुरक्षा पथक को पर्वतों से उतरने का सरल मार्ग बता कर उनका विश्वास जीता। जब वह पर्वतों से नीचे पहुंचे तब उन्होंने नीचे गांव के बाहर अपनी छावनी लगाई। कल रात्रि उन्हें संदेश आया कि उनकी पूर्ण सेना दो दिन के अंतर पर थी। यह खबर मिलते ही मैं आप को यह बताने आया।”

सेनापति अचलसेन, “राजा उग्रवीर की सेना कल शाम तक पहुंचेगी पर राजा उग्रवीर अपना पड़ाव आज सुबह हिला चुके होंगे। हमें अपनी पूर्ण सेना के साथ अभी कूच कर नीचे के गांवों को सुरक्षित करना होगा। हम गांवों को खाली कर उन्हें युद्ध में किल्ले की तरह इस्तमाल कर बड़ी सेना को सहज परास्त कर सकते हैं।”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के सारे तर्कों को तिनके की तरह उड़ाते हुए सेनापति अचलसेन अपनी पूर्ण सेना को तैयार करने चले गए। राजा खड़गराज चिंतित थे पर उन्होंने अपने चेहरे पर से आत्मविश्वास हटने नहीं दिया।।

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजन, नगर रक्षा हेतु कुछ सैन्य छोड़ दीजिए जो योग्य समय पर पीछे से सहायता प्रदान कर पाए।”

राजा खड़गराज, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, हमें आप के सारे तर्क और सारी योजनाएं अत्यंत योग्य लगे। परंतु एक क्षात्र कुल उत्पन्न सेनापति का अनुभव एक सूतपुत्र ब्राह्मण की योजना से सदैव बेहतर माना जाएगा। हमें क्षमा करें पर हम जानते हैं कि आप मल्लयुद्ध में सेनापति अचलसेन को हरा सकते थे इसी वजह से हमने आपको स्वयंवर से निष्कासित किया। हमें जामाता के रूप में एक योग्य योद्धा की आवश्यकता है न किसी नाचते पंडित की।”

राज सभा युद्ध तैयारियों के लिए बर्खास्त कर दी गई और नृत्यशाला छोड़ सारे पुरुष युद्ध तैयारी के लिए निकल गए।
राजकुमारी शुभदा ने सुनी पड़ी राज सभा देखी और उसका दिल बैठ गया। राज महल में अपनी माता से संपूर्ण वार्ता जानकर वह भागते हुए युद्धसभा में पहुंची।

राजकुमारी शुभदा अपने पिता से, “पिताश्री, हमारी बात सुनें! हमने न केवल शास्त्र, युद्धशास्त्र बल्कि युद्ध इतिहास का भी अभ्यास किया है। एक किल्ले में छुपा सैन्य शत्रु से दस गुना असरदार होता है परंतु गांव के छोटे मिट्टी के घर किल्ले नहीं मृत्यु के फंदे हैं। पंडित ज्ञानदीप…”

सेनापति अचलसेन ने राजकुमारी शुभदा को गले लगाया और उसे आगे बोलने से रोका।

सेनापति अचलसेन, “प्रिए आप राजनंदिनी हो पर युद्धसभा में एक स्त्री का आगमन अनुचित माना जाता है। वैसे भी आप के पिता राजा खड़गराज को युद्ध का काफी बड़ा अनुभव है। आप इस विषय में बोलकर उनका अपमान कर रही हो। (फुसफुसाते हुए) उस कायर पंडित का मेरे सामने कभी नाम तक नहीं लेना। आप का राज्याभिषेक होते ही मैं राजा बन जाऊंगा फिर आप हमारे बच्चों को संभालना और हमारे आहार पर ध्यान देना। राज्य को राजा की आवश्यकता होती है न किसी रोती चंचल राजकुमारी की!”

राजकुमारी शुभदा सेनापति अचलसेन के बदले रूप को देख कर सुन्न रह गई और एक सेविका उसे रानी के कक्ष में ले आई।
शाम होने तक सैन्य कूच करने को तैयार था और महिलाओं ने अपने पिता, पति, भ्राता तथा रक्षक को नगर द्वार से बाहर जाते हुए देखा। सेनापति अचलसेन ने गर्व से पीछे मुड़कर अपनी पत्नी राजकुमारी शुभदा को देखा और उसका चेहरा क्रोधित हो गया। राजकुमारी शुभदा के ठीक दो पग पीछे किसी ताकतवर आभा की तरह था पंडित ज्ञानदीप शास्त्री।
सेनापति अचलसेन ने अपने आप से, “राजा बनते ही मैं इस पंडित को जंगली हाथियों के झुंड से मरवा दूंगा।”
 

Lefty69

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avsji thank you for your prompt response
 
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Welcome back my old reader sunoanuj
 
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सेनापति अचलसेन अकड़कर चलते हुए जब राज सभा पहुंचे तब सभा शुरू हुए १ घटिका बीत चुकी थी। सेनापति अचलसेन को देख सारे चुप हो गए और वह राजा खड़गराज को प्रणाम कर अपने आसन पर बैठ गए।

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “सेनापति अचलसेन, क्या आप इतने आवश्यक सभा में विलंब से आने की क्षमा नहीं मांगेंगे? मैं आप को स्मरण करा दूं कि राजा उग्रवीर ने युद्ध की चुनौती दी है।”
सेनापति अचलसेन, “यदि मैं विलंब से आया हूं तो क्षमा तू ने मांगनी चाहिए सूतपुत्र! आपके ही पेय के कारण मुझे प्रातः जाग नहीं आई और मैं अपनी कसरत करने अखाड़े में नहीं जा पाया।”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री दांत भींचते हुए, “उस पेय को आप के समक्ष मैंने भी पिया था। किंतु मैं आज प्रातः से अपने सारे विधि कर मंदिर गया था जहां आपका राजकुमारी शुभदा के संग आना अपेक्षित था।”


सेनापति अचलसेन गर्व से फूलते हुए, “कल रात्रि मैंने राजकुमारी शुभदा को वह कसरत कराई की वह आज दोपहर से पहले राज सभा में सम्मिलित होने को तैयार नहीं है। और हां, शय्या पर बिछी सफेद रेशम की चादर अगर चाहते हो तो उसे मैं दान करने को तैयार हूं क्योंकि उस पर एक रोटी जितना बड़ा रक्त का दाग जो बन गया है!”

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पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने गुस्से से लाल होकर, “आर्य, आप केवल अपनी धर्मपत्नी ही नहीं इस राज्य की राजकुमारी का घोर अपमान कर रहे हैं! इस तरह की बातें तो सभ्य पुरुष किसी देह बिक्री करतीं स्त्री के बारे में भी न करे।”

राजा खड़गराज आहत होकर भी शांति प्रस्थापित करते हुए, “सेनापति अचलसेन, स्त्री लज्जा को पौरुष अहंकार के नीचे दबाना पुरूषार्थ नहीं। अभी हमें राजा उग्रवीर ने युद्ध की व्यूह रचना करनी होगी। सभा में किसी को कोई योजना बतानी है?”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजन, कृपया मेरी पूरी योजना सुन लें। राजा उग्रवीर ५७ वर्ष के हैं, गुप्तचरों के अनुसार उनके पास वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए १ पत्नी है और ३७ पुत्र वीरगति प्राप्त करके भी निश्चिंत हैं क्योंकि न केवल उनके ५२ पुत्र शेष हैं पर ३ पुत्र २० वर्ष का अपना सैन्य काल पूर्ण कर चुके हैं। तो उन्हें हमारे राज्य की लावण्यवती राजकुमारी से अधिक आकर्षक कुछ और है जिसके लिए वह गत ४ वर्ष से विवाह प्रस्ताव भेज रहे थे।”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सभा को संबोधित करते हुए, “तो वह क्या चीज है जो राजा उग्रवीर को पर्वतपुर खींच लाई? एक राज्य जिसने अपने आधे जन समाज को युद्धग्नि में झोंक रखा हो उसे किस बात की जरूरत है?”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजा खड़गराज की आंखों में देखते हुए, “धन! उसे हमारे राज्य में बनता सुवर्ण और नीलमणि से बनता धन चाहिए।”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सभा से पूछकर, “तो मेरी योजना क्या है? पर्वतों के नीचे रास्तों पर बने हमारे ४ गांव खतरे में हैं इसलिए उन्हें तुरंत खाली किया जाए। हमें दूत भेजकर राजा उग्रवीर को मनाना पड़ेगा कि राजकुमारी शुभदा का सेनापति अचलसेन से प्रेम था और प्रतियोगिता एक छल था उनके प्रेम को मान्यता दिलाने हेतु। कौटिल्य ने कहा है कि युद्ध समान ताकतों के बीच होता है। यदि आपका शत्रु आप से ज्यादा बलशाली हो उसे किसी भी तरीके से युद्ध से परावृत्त किया जाए।”

सेनापति अचलसेन, “क्या तुम बिना लड़े हार स्वीकार करने को कह रहे हो?”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गंभीरता से, “यदि हम मात्र एक सहस्त्र सैनिकों के साथ पांच सहस्त्र सैनिकों से युद्ध करेंगे तो पराभव निश्चित है। पर अगर हम चार गांव की भूमि भेंट में देते हुए सुवर्ण और नीलमणि के उत्पन्न से हिस्सा दें तो हमें राजा उग्रवीर के विरुद्ध सेना जुटाने का समय मिलेगा।”

सेनापति अचलसेन, “राजा खड़गराज, अब आप समझ गए होंगे कि आचार्य से लोगों ने अपना वर्ण बदलना क्यों बंद किया। यह व्यक्ति अब अपने दोनों वर्ण के स्वभाव दिखा रहा है। शूद्र हीन स्वभाव के होते हैं और किसी भी बलशाली का स्वामित्व सहज स्वीकार कर लेते हैं। वहीं ब्राह्मण स्वयं को बौद्धिक विशेषता का प्रमाण दिखाते हैं परंतु युद्ध के सामने भागना ही उनका स्वभाव है। राज्य को राजा चलाता है क्योंकि वह क्षत्रिय है जो दासत्व या पलायन से अधिक अपने शौर्य का प्रमाण देने में विश्वास करता है।”

सेनापति अचलसेन, “भले उनकी सेना हमारी सेना से पांच गुना ज्यादा है पर वह धन के लिए युद्ध कर रहे हैं जब की हम अनी भूमि की स्वतंत्रता के लिए युद्ध करने जा रहे हैं। अगर वह हमसे दस गुना भी हुए तो भी हम उन्हें अउवश्य परास्त करेंगे।”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजा खड़गराज से, “राजन, यह अविचार त्याग दें। राजा उग्रवीर की सेना इतनी बलशाली है क्योंकि वहां का प्रत्येक सैनिक अपने जीवन हेतु लड़ रहा है।”,

राजा खड़गराज, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आपकी योजना अनूठी है परंतु सेनापति अचलसेन को युद्ध का अनुभव है और उनके परदादा ने अतिकुशल युद्ध नीति का निर्माण किया था। हमें सेनापति अचलसेन को इस युद्ध की कमान सौंपनी होगी।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अपने घुटनों पर बैठ कर, “राजन, किमान नीचे के चार गांव को स्थलांतरित कर अपने सैन्य को पर्वतों में छुपकर युद्ध करने का आदेश दें! हर व्यक्ति हर नागरिक जो युद्ध में मारा जाए वह हमारे राज्य को होती क्षति है।”

राजा खड़गराज, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, युद्ध योजना और सैनिकों को नियोजित करना सेनापति अचलसेन का कार्यक्षेत्र है पर हां, हम अभी नीचे के चार गांव को युद्ध काल के लिए स्थलंतरित करने का आदेश देते हैं।”

तभी राज सभा के द्वार से कुछ उद्विग्न आवाजें आई और एक सुंदर युवक को सिपाही अंदर लाए।

सैनिक, “स्वामी, यह लड़का नृत्यशाला की मुद्रा दिखा कर राज सभा में प्रवेश करता पकड़ा गया।”

सेनापति अचलसेन, “गरुड़वीर! मेरा छोटा भाई होकर भी तू नृत्यशाला में क्या कर रहा है? फेंक दे उस मुद्रा को और मेरे समीप आ। हमें युद्ध में अपना बल दिखाने का सुवर्ण अवसर मिल रहा है।”

गरुड़वीर राजा खड़गराज के सामने भूमि पर लेट कर, “कल पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के स्वयंवर से निष्कासित करने के बाद उन्होंने मुझे राजा उग्रवीर का अतिथि सत्कार करने का कार्य दिया। मैंने राजा उग्रवीर के सुरक्षा पथक को पर्वतों से उतरने का सरल मार्ग बता कर उनका विश्वास जीता। जब वह पर्वतों से नीचे पहुंचे तब उन्होंने नीचे गांव के बाहर अपनी छावनी लगाई। कल रात्रि उन्हें संदेश आया कि उनकी पूर्ण सेना दो दिन के अंतर पर थी। यह खबर मिलते ही मैं आप को यह बताने आया।”

सेनापति अचलसेन, “राजा उग्रवीर की सेना कल शाम तक पहुंचेगी पर राजा उग्रवीर अपना पड़ाव आज सुबह हिला चुके होंगे। हमें अपनी पूर्ण सेना के साथ अभी कूच कर नीचे के गांवों को सुरक्षित करना होगा। हम गांवों को खाली कर उन्हें युद्ध में किल्ले की तरह इस्तमाल कर बड़ी सेना को सहज परास्त कर सकते हैं।”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के सारे तर्कों को तिनके की तरह उड़ाते हुए सेनापति अचलसेन अपनी पूर्ण सेना को तैयार करने चले गए। राजा खड़गराज चिंतित थे पर उन्होंने अपने चेहरे पर से आत्मविश्वास हटने नहीं दिया।।

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजन, नगर रक्षा हेतु कुछ सैन्य छोड़ दीजिए जो योग्य समय पर पीछे से सहायता प्रदान कर पाए।”


राजा खड़गराज, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, हमें आप के सारे तर्क और सारी योजनाएं अत्यंत योग्य लगे। परंतु एक क्षात्र कुल उत्पन्न सेनापति का अनुभव एक सूतपुत्र ब्राह्मण की योजना से सदैव बेहतर माना जाएगा। हमें क्षमा करें पर हम जानते हैं कि आप मल्लयुद्ध में सेनापति अचलसेन को हरा सकते थे इसी वजह से हमने आपको स्वयंवर से निष्कासित किया। हमें जामाता के रूप में एक योग्य योद्धा की आवश्यकता है न किसी नाचते पंडित की।”

राज सभा युद्ध तैयारियों के लिए बर्खास्त कर दी गई और नृत्यशाला छोड़ सारे पुरुष युद्ध तैयारी के लिए निकल गए।
राजकुमारी शुभदा ने सुनी पड़ी राज सभा देखी और उसका दिल बैठ गया। राज महल में अपनी माता से संपूर्ण वार्ता जानकर वह भागते हुए युद्धसभा में पहुंची।


राजकुमारी शुभदा अपने पिता से, “पिताश्री, हमारी बात सुनें! हमने न केवल शास्त्र, युद्धशास्त्र बल्कि युद्ध इतिहास का भी अभ्यास किया है। एक किल्ले में छुपा सैन्य शत्रु से दस गुना असरदार होता है परंतु गांव के छोटे मिट्टी के घर किल्ले नहीं मृत्यु के फंदे हैं। पंडित ज्ञानदीप…”

सेनापति अचलसेन ने राजकुमारी शुभदा को गले लगाया और उसे आगे बोलने से रोका।

सेनापति अचलसेन, “प्रिए आप राजनंदिनी हो पर युद्धसभा में एक स्त्री का आगमन अनुचित माना जाता है। वैसे भी आप के पिता राजा खड़गराज को युद्ध का काफी बड़ा अनुभव है। आप इस विषय में बोलकर उनका अपमान कर रही हो। (फुसफुसाते हुए) उस कायर पंडित का मेरे सामने कभी नाम तक नहीं लेना। आप का राज्याभिषेक होते ही मैं राजा बन जाऊंगा फिर आप हमारे बच्चों को संभालना और हमारे आहार पर ध्यान देना। राज्य को राजा की आवश्यकता होती है न किसी रोती चंचल राजकुमारी की!”

राजकुमारी शुभदा सेनापति अचलसेन के बदले रूप को देख कर सुन्न रह गई और एक सेविका उसे रानी के कक्ष में ले आई।
शाम होने तक सैन्य कूच करने को तैयार था और महिलाओं ने अपने पिता, पति, भ्राता तथा रक्षक को नगर द्वार से बाहर जाते हुए देखा। सेनापति अचलसेन ने गर्व से पीछे मुड़कर अपनी पत्नी राजकुमारी शुभदा को देखा और उसका चेहरा क्रोधित हो गया। राजकुमारी शुभदा के ठीक दो पग पीछे किसी ताकतवर आभा की तरह था पंडित ज्ञानदीप शास्त्री।
सेनापति अचलसेन ने अपने आप से, “राजा बनते ही मैं इस पंडित को जंगली हाथियों के झुंड से मरवा दूंगा।”
बहुत ही अद्भुत भाषा का प्रयोग किया है आपने! इतने दिनों बाद आज इस तरह की भाषा में कोई कहानी इस फोरम में आई है !

एक दम जादुई एहसास हो रहा है इसको पढ़ते हुए !

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

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बहुत ही अद्भुत भाषा का प्रयोग किया है आपने! इतने दिनों बाद आज इस तरह की भाषा में कोई कहानी इस फोरम में आई है !

एक दम जादुई एहसास हो रहा है इसको पढ़ते हुए !

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आभारी हूं आप के प्रोत्साहन के लिए
 
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