प्रातः पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अश्वशाला के पीछे बनी कुटीर में से बाहर आते ही नृत्यशाला की तैयारियों को ध्यान से देखा और फिर नदी में स्नान संध्या कर मंदिर गए।
आज राज सभा सुनी पड़ी थी और कुछ वृद्ध सभासद छोड़ वहां केवल राजकुमारी शुभदा और उनकी माता थी। नगर के द्वार खुलते ही संदेशवाहकोंको नीचे भेजा गया था परंतु युद्ध की कोई वार्ता कल सुबह से पहले आना संभव नहीं था।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की सलाह से राजकुमारी शुभदा ने कुछ नित्य के कार्य पूर्ण किए और सारे प्रतीक्षा करते बैठ गए।
दोपहर के भोजन के १ प्रहर बाद कुछ सेवक दौड़ते हुए राज सभा में आए। उनके चेहरे से उड़े रंग वार्ता की दिशा बता रहे थे पर राजकुमारी शुभदा ने फिर भी शांति से बात पूछी।
सेवक, “राजकुमारी शुभदा, राजा उग्रवीर के ध्वज के साथ दूत आए हैं।”
राजकुमारी शुभदा, “उन्हें आदरपूर्वक राज सभा में ले आओ।”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गरुड़वीर से, “तुम जानते हो कि तुम्हें क्या करना है।”
गरुड़वीर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के पैर छू कर चला गया और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अपने आसन पर बैठ गए।
राजदूत राज सभा में आया तो उसने राजकुमारी शुभदा को अभिवादन किए बगैर अपनी बात कहने लगा।
राजदूत, “आप लोगों ने संदेशवाहकोंको नीचे भेजा होगा। पर राजा उग्रवीर ने आपको अपनी दया का परिचय देते हुए स्वयं वार्ता भेजी है। सबसे पहले राजा उग्रवीर ने नया संधि प्रस्ताव भेजा है। यह नगर केवल वृद्ध और एक सौ रक्षा पथक के साथ सेना से युद्ध नहीं कर सकता। आप सब को बंदी दास बनाकर खदानों में तब तक काम करना होगा जब तक खदाने रिक्त नहीं हो जाती। राजकुमारी शुभदा ने राजा उग्रवीर की रखैल बनने का दुर्लभ अवसर खो दिया है पर उन्होंने एक रात्रि का विवाह किया है इसलिए उन्हें एक विशेष पद दिया जाएगा। राजकुमारी शुभदा राजा उग्रवीर के संपूर्ण सेना की एक रात्रि की शय्या दासी बनेगी। राजकुमारी शुभदा को अपने जीवन की रक्षा हेतु चिंता की जरूरत नहीं क्योंकि सेना हर रात्रि 50 सैनिकों का पथक बना के आएगी। तो राजकुमारी शुभदा अगले चार महीने व्यस्त रहेंगी। आप के राजा अपने निजी सुरक्षा पथक के साथ भस्म हो चुके हैं। आपका मूर्ख सेनापति अति मूर्खता का प्रमाण देते हुए मर गया। बाकी सैनिकों ने कुछ बुद्धि का प्रमाण देते हुए समर्पण कर दिया।”
रानी और राजकुमारी यह वार्ता सुन शोक में डूब गई। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने सेविकाओं को बुलाकर उन्हें आराम करने दूसरे कक्ष में भेज दिया। कुछ वृद्ध सभासद राजा उग्रवीर से प्रतिशोध हेतु दूतों का शिरच्छेद करना चाहते थे।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हाथ जोड़कर नम्रता से, “आदरणीय राजदूत, जैसे आप देख चुके हैं रानी और राजकुमारी शुभदा अत्यंत व्यथित हो गई है। उन्हें आपके प्रस्ताव पर विचार करने का समय दें। साथ ही, हमें अपने संदेशवाहकों से आपकी लाई वार्ता को सत्यापित करना होगा अन्यथा कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता।”
राजदूत की युद्ध से सीखी आंखें चमक गई जब उसे और उसके पथक को राज अतिथिगृह में कल सुबह तक रुकने का आग्रह किया गया।
राजदूत सभा से बाहरे निकला तो गरुड़वीर उनका आदर आतिथ्य करते हुए, “आपको पर्वतों से ऊपर आते हुए कोई कष्ट तो नहीं हुआ? सरल मार्ग विशेष लोगों के लिए ही है। जैसे जब राजा खड़गराज या अन्य राजा आना जाना चाहते हो तो उसे इस्तमाल किया जाता है।”
राजदूत मुस्कुराकर, “तुम हो गरुड़वीर जिसने राजा उग्रवीर को वह मार्ग दिखाया। सत्य बताओ, राजा उग्रवीर की सेना का संदेश आते ही तुम वहां से क्यों भागे? या तो तुम गुप्तचर हो या देशद्रोही। दोनों परिस्थिति में तुम विश्वास के पात्र नहीं हो।”
गरुड़वीर, “सत्यवचन युवराज, किंतु यदि यह देशद्रोही आपके काम आए तो आप को कोई समस्या?”
राजदूत, “तुम्हें कैसे पता की मैं राजा उग्रवीर का बेटा हूं?”
गरुड़वीर, “अपने जीवन को दांव पर लगाते हुए मैं केवल सही व्यक्ति से बात करूंगा। पहले राजा उग्रवीर और अब आप युवराज।”
युवराज, “क्यों?”
गरुड़वीर, “हर राज्य में कुछ लोग होते हैं जो राज्य से असंतुष्ट हैं। मैं योद्धा बनना चाहता था परंतु मेरी दुबली कद काठी के कारण मुझे एक सभासद बना दिया गया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को केवल उनके जन्म के कारण रोज प्रताड़ित किया जाता है।”
युवराज, “तो इस खेल के लेखक पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हैं! वह ब्राह्मण जो जन्म से शूद्र है पर भाषा से ब्राह्मण। क्यों?”
गरुड़वीर, “क्यों ना आप आज रात्रि भोजन पश्चात अश्वशाला देखने जाएं?”
रात्रि के प्रथम प्रहर बाद युवराज अश्वशाला में अश्व देखने लगे तो एक आधिकारिक आवाज ने उन्हें अपनी ओर खींचा।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अपने उमदा अश्व को स्वच्छ करते हुए, “पवन तुम एक अत्यंत उत्तम अश्व हो। परंतु इस राज्य में तेज अश्व नहीं केवल सफेद अश्व को प्रेम मिलता है। इसी वजह से तुम अपने निम्नस्तर के चालक को गिरा देते हो।”
युवराज, “पर यदि पवन को ऐसा चालक मिले जो उसे रंग के परे देख उसे दौड़ने दे तो?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “तो पवन स्वेच्छा से उसका दास होगा। यदि कोई इसे प्रतिदिन एक चक्कर के बजाय उसकी मर्जी से दौड़ने दे तो यह दौड़ते हुए मर जाएगा पर अपने चालक का काम पूर्ण करेगा और मृत्यु के लिए आभारी होगा।”
युवराज, “जब सैन्य गया तब नृत्यशाला नहीं गई पर अब नृत्यशाला का सारा सामान समेटा हुआ है। क्या हुआ?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “हारा हुआ राजा नृत्य नहीं देखेगा। शायद नृत्यशाला को नए राज्य की आवश्यकता है।”
युवराज हिम्मत जुटकर, “राजा उग्रवीर की राज सभा मिले तो?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “तो मैं राजकुमारी शुभदा को आपके प्रस्ताव को मानने के लिए प्रवृत्त कर सकता हूं।”
युवराज चौंककर, “पूरे सैन्य की शय्या दासी बनने के लिए भी?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “यदि आप उन्हें उनके पति और पिता का देह देने का वचन दें तो… स्त्री भावनाविवश होती है!”
युवराज, “यदि अपने पति का मृतदेह पाने के बाद राजकुमारी शुभदा मना कर दे तो?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजा उग्रवीर तो अपना सैन्य वैसे भी ले आएंगे। प्रश्न यह है कि उन्हें क्या मिलेगा? एक किला जिसके अंदर के सौ सिपाही और नागरिक मृत्यु तक लड़ते हुए आपकी सेना को क्षति पहुंचाएं या एक विलाप करती राजकुमारी जो आपकी उपस्थिति में अपने पति की चिता को अग्नि दे कर आपकी दासी बन जाए।”
युवराज, “आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “मैंने राजकुमारी शुभदा से प्रेम किया परंतु केवल जन्म के कारण मुझे स्वयंवर से निष्कासित किया गया। मैंने राजा खड़गराज, सेनापति अचलसेन और राजकुमारी शुभदा से अपना प्रतिशोध ले लिया है पर अब मुझे अपनी नृत्यशाला को यहां से सुरक्षित ले जाने के लिए आप के मार्गों को आवश्यकता है। वैसे मेरी घुटन तो आप भी समझ सकते हो। आपके समेत राजा उग्रवीर के तीन पुत्र युद्धभुमि से बाहर आ गए हैं परंतु राजा उग्रवीर अपना उत्तराधिकारी घोषित करने को तैयार नहीं। हर वर्ष के साथ आप के दो और भ्राता इस सूची में आएंगे। भला कौन वृद्ध होने के बाद राजा बनना चाहेगा? वह भी कोई और चुनौती के बाद!”
युवराज ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के साथ सौदा पक्का किया और अपने राजा बनने का सपना देखते हुए राज अतिथि गृह पहुंच गए।