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नरेश(मुस्कुरा कर)- मैं तो तुम्हारे पिताजी को भी जानता हु रमण...मैं तुमदोनो को शुरू से सारी बात बताता हु तब शायद तुम्हे पूरी बात समझ मैं आये और ये भी समझ मैं आये की इस वक़्त ये दुनिया कितने बड़े खतरे मैं जिसे हमें रोकना है......
नरेश- राघव, रमण तुम्हारे दादाजी महंत शिवदासजी मेरे और मेरे भाई के गुरु थे, हमारे माता पिता मेरे छोटे भाई के जन्म के के बाद एक दुर्घटना मैं मारे गए थे हम दोनों भाई काफी छोटे थे हमारे रिश्तेदारों का हमारे प्रति व्यवहार अच्छा नहीं था इसीलिए मैं एक दिन हिम्मत करके अपने रिश्तेदारों के पास से भाग तो निकला लेकिन अब आगे क्या करू मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ऐसे मैं एक दिन भटकते हुए हमें गुरूजी ने देखा, तुम्हारे दादाजी एक नेक दिल इंसान थे और काफी विद्वान थे, राजनगर और बाकि आसपास के शहरों मैं उनका नाम चलता था, उन्होंने हम दोनों भाइयो को आसरा दिया, वो उस समय पुराने शिवमंदिर मैं रहते थे और हम दोनों भाई भी उन्ही के साथ रहते थे, मेरे छोटे भाई महेश की पढने मैं काफी रूचि थी और इसीके चलते गुरूजी ने अपनी पहचान से हम दोनों भाइयो का दाखिला स्कूल मैं करवाया था, हम अपनी पढाई के साथ साथ गुरूजी के अनुष्ठानो मैं हाथ भी बताया करते थे, गुरूजी के पास इंसान का दिमाग पढ़ सकने की अदभुत शक्ति थी और ये बात हम दोनों भाई जानते थे, धीरे धीरे समय बीता मैंने बस जरुरत जितनी पढाई की लेकिन मेरा छोटा भाई महेश उसके सपने काफी बड़े थे उसे अध्यात्म मैं विज्ञान और विज्ञान मैं अध्यात्म की झलक मिलती थी उसका कहना था की अगर विज्ञान को अध्यात्म का साथ मिल जाये तो इस दुनिया मैं ऐसे चमत्कार होंगे जो किसी ने सोचे नहीं होंगे, गुरूजी उसके मन की बात जानते थे उन्होंने उसे आगे बढ़ने से कभी नहीं रोका और महेश ने अपनी बुद्धि के बल पर काफी बडी जगह नौकरी पायी और विदेश चला गया उसके कुछ सालो बाद हमें तुम मिले राघव तुम्हे मिलने के बाद गुरूजी ने मुझसे कहा था की तुम ही वो लड़के बनोगे जो आने वाले समय मैं इस दुनिया के लिए कोई महान काम करोगे बस जरुरत होगी तो तुम्हे तुम्हारी शक्तियों से अवगत करने की, गुरूजी अपना पूरा ध्यान तुम पर लगाना चाहते थे राघव और इसीलिए उन्होंने मुझे अपने से दूर किया और मैं अपने भाई के पास आ गया और अपना छोटा सा काम शुरू करके शादी कर ली, जिंदगी हसी ख़ुशी कट रही थी,
मेरा भाई महेश बायो इंजीनियरिंग मैं एक महारत वाला वैज्ञानिक था जो उस समय किसी गुप्त आर्गेनाइजेशन के लिए काम करता था, वो आर्गेनाइजेशन पता नहीं कैसे महेश को इतने पैसे और संसाधन मुहैया कहा देती थी की जिससे उसके जीवन मैं रिसर्च मैं किसी प्रकार की बाधा न आये
राघव-किस प्रकार की रिसर्च?
नरेश-Artificial Metahumans यानि की कृत्रिम महामानवो पर रिसर्च, बात तब की है हम हम दोनों भाई अमेरिका मैं रहते थे मतलब मैं महेश और मेरी बीवी, महेश एक ऐसा शारीर या कहो मानव बनाना चाहता था जिसका शारीर हमारी तरह हो लेकिन हड्डियों मैं तरह तरह के मिश्रित धातुये यानि alloys का संगम को जौसे अभेद्द बना सके
रमण-यानि एक रोबोट जैसा?
नरेश-नहीं रोबोट नहीं वो तो केवल एक निर्जीव यन्त्र है, महेश कुछ ऐसा बनाना चाहता तह किसका शारीर हमारी तरह हो सरे अवयव हमारी तरह हो. जो इंसानों की तरह रोजमर्रा के काम करे लेकिन बहरी त्वचा इतनी सख्त हो की जिसपर बन्दुक की गोली भी असर न करे और आखिर मैं उसने एक ऐसा शारीर बनाने मैं कामयाबी भी हासिल कर ली थी जिसमे, दिल गुर्दे फेफड़े बाकि बस अंदरूनी अंग हमारी तरह थे लेकिन कंकाल का ढाचा बेहद मजबूत था, उसने त्वचा का composition भी वैसा ही रखा था ताकि उपरी शारीर अभेद्द और कठोर हो, एक कृत्रिम मस्तिष्क का निर्माण भी किया गया जो आम मानव मस्तिष्क जैसा हो लेकिन अब समस्या ये थी की बेजान शारीर मैं जान कैसे डाले, मेरे भाई ने कई प्रयोग किया उस शारीर मैं जान डालने के लेकिन सब विफल रहे क्युकी उसके पास वो उर्जा नहीं थी जो हर मनव शारीर को संचालित करती है......आत्मा, ऐसे समय मैं हमें हमारे गुरूजी का ध्यान आया, हम दोनों भाइयो ने गुरूजी को बचपन से देखा था जिससे हमें उनकी शक्ति का अंदाजा था, महेश ने गुरु जो पत्र लिखकर साडी समस्या बताई और गुरूजी ने भी मदद का आश्वासन दिया, तुम दोनों को याद होगा वो गुरूजी उनकी मृत्यु के १ साल पहले कुछ समय के लिए कही बाहर गए थे, उस समय वो हमारे पास आये थे, गुरूजी ने अपनी सिद्धियों की मदद से एक आत्मा को इस लुक मैं खिंच लिया, फिर वो आत्मा उस शारीर मैं चली तो गयी लेकिन कोइ भी आत्मा तब तक किसी शारीर मैं स्थिर नहीं होती जबतक वो उसका अपना शारीर न हो, उस उर्जा के तत्त्व को stabilize करने के लिए एक निश्चित मात्र मैं बिजली का प्रयोग किया गया, वो शारीर बिलकुल शांत था किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था की ये प्रोयोग सफल हुआ या नहीं लेकिन गुरूजी निश्चिन्त थे और वो भारत लौट आये थे उसके कुछ दिनों बाद मेरा भाई लैब मैं उस कृत्रिम शारीर पर कुछ टेस्ट कर रहा था तभी न जाने कैसे कालसैनिको को इस प्रयोग का पता चला और उनके मन मैं उस कृत्रिम मानव को पाने की लालसा जाग उठी और उन्होंने लैब पर हमला कर दिया उस हमले मैं बाकि वैज्ञानिक तो बचकर भाग गए लकिन मेरा भाई पकड़ा गया और उसे उनलोगों ने लोहे की जंजीर से बांधकर जिन्दा जला दिया लेकिन तब तब उस कृत्रिम मानव को होश आ चूका था वो वो अपने निर्माता को पहचानने लगा था और जो उसे पहला अहसास हुआ वो क्रोध था उसने इतना भीषण हत्याकांड अपने आँखों से देखा था, कालसेना तो उस कृत्रिम मानव को मानवता के खिलाब हथियार बनाना चाहती थी लेकिन तब तक वो कृत्रिम मनव जाग गया और उसने उन कालसैनिको को वो भयानक मौत दी जिसके वो हक़दार थे, महेश की गुप्त आर्गेनाइजेशन के लोग बाद मैं मुझसे मिले और मुझे अपने भाई की अमानत सँभालने को कहा और मैंने उसे घर ले आया, मेरी बीवी ने उसका नाम रूद्र रखा, हमने रूद्र को अपना बच्चा मन क्युकी हमारी कोई संतान नहीं थी, मैं अपने भाई की मौत को भुला नहीं था मैंने अपने स्तर पर खोज की लेकिन शायद कालसेना को इसकी भनक लग चुकी थी और जब मैं और रूद्र दोनों बाहार थे तब उन्होंने मेरी बीवी की कुर्बानी दी, हम जब घर पहुचे तब मेरी बीवी की लाश पर एक नोट लिखा था की ‘हमें ढूंढने की कोशिश मैं इसी तरह मारे जाओगे’ पर अब मेरे पास खोने को कुछ नहीं था, अब मैंने कालसेना का खत्म करने की ठानी थी और मेरे साथ रूद्र भी था इसी सब के बीच मुझे गुरूजी की मौत की खबर मिली और साथ ही गुरुजी का एक ख़त जो उन्होंने मेरे नाम छोड़ा था जिसे तुम्हारे पिता ने मुझे बादमे भेजा जिसमे राघव की खूबियों और शक्तियों का जिक्र था, मैंने रूद्र के साथ राजनगर लौट आया और ऐसे लोगो को खोजा वो कालसेना से पीड़ित हो ऐसे मैं हमें संजय मिला जो एक राज परिवार से है और अब हमारे हथियारों के खर्च को देखा है और अरुण जिससे तुम कुछ ही समय मैं मिलोगे वो एक एक्स कमांडो है जिसे हथियारों की काफी समझ है,..हमने जब राघव पर नजर रखी तो पाया की राघव को अभी अपनी शक्तियों का अंजादा नहीं है और अब यही सही समय है उसे सब बताने का मैं और रूद्र तुम लोगो से मिलने वाले थे लेकिन आज तुमसे अचानक मिलना होगा सोचा नहीं था,
रमण- आपकी कहानी और आपके भाई के मौत का काफी दुःख हुआ और साथ ही मैं आपके लड़ने के जज्बे को सलाम करता हु, अब समझ आ रहा है की रूद्र पर काला जादू असर क्यों नहीं करता क्युकी उसने हमारी तरह जन्म नहीं लिया बल्कि उसे लैब मैं बनाया गया है...लेकिन आप बार बार किसी गुप्त संस्था का जिक्र कर रहे थे जिसमे आपका भाई काम करता था, क्या आप नहीं जानते उस संस्था के बारे मैं
नरेश-उस संस्था के कुछ लोग हमसे जुड़े हुए है वो लोग भी कल आने वाले है तब ये सवाल तुम उन्ही से पूछना
ये लोग बात कर ह रहे थे की दरवाजे से अरुण उन्हें अंदर आता दिखाई दिया.......
पुलिस स्टेशन मैं हुए उस भयानक हत्याकांड की ख़राब पुरे राजनगर मैं फ़ैल चुकी थी देश के बड़े बड़े न्यूज़ चैनल इस खबर को कवर करना छह रहे थे और इस वक़्त पुलिस स्टेशन के सामने रिपोर्टर्स की भरी भीड़ थी, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था के आखिर इतने सरे पुलिस कर्मचारी इतनी बेरहम तरीके से कैसे मारे गए कौन है इस घटना के पीछे, रिपोर्टर्स और रिज़र्व पुलिस फाॅर्स जब तक वहा पहुचे तक तक कालसेना के लोग अपने लोगो की लाशो को वहा से ले जा चुके थे वो अब भी खुल कर सामने नहीं आना चाहते थे अगर उनके बस मैं होता तो शायद ये खबर भी दब जाती लेकिन मामला बड़ा था और इसे दबाना इतना आसन भी नहीं था
इस वक़्त सरे न्यूज़ चैनलों पर सिर्फ राजनगर की ये न्यूज़ दिखाई जा रही थी घर पर अनिरुद्ध शाश्त्री जी सुमित्रादेवी और श्रुति भी ये न्यूज़ देख रहे थे और उन्हें अपने बेटे की चिंता हो रही थी क्युकी न्यूज़ देखते ही वो समझ गए थे के ये सब घटनाये रमण के स्टेशन मैं हुयी है, श्रुति का हाल रोने जैसा था वही सुमित्रादेवी अपने को संभाले हुए थी साथ ही राघव के बारे मैं भी इन्हें कोई खबर नहीं थी
इस वक़्त टीवी पर न्यूज़ चल रही थी जिसका एंकर बोल रहा था “इस वक़्त हम राजनगर के पुलिस स्टेशन मैं खड़े है जहा आज दिन धहदे कई पुलिस वालो को मारा गया है, हैरानी की बात ये है ये आस पास के लोगो ने किसी ने भी कोई गोली की आवाज नहीं सुनी, इन सरे पुलिस कर्मचारियों को बेहद ही क्रूरता के साथ मारा गया है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकेंगे, आसपास के कुछ लोगो से पूछ ताछ मैं उन्होंने बताया की उन्होंने कुछ नीले कपडे पहले लोगो को अंदर जाते देखा था पर उसके बाद क्या हुआ किसी को इस बात की कोई जान करी नहीं, सूत्रों के अनुसार पुलिस स्टेशन मैं उस वक़्त मौजूद कोई भी पुलिस वाला जिन्दा नहीं बच पाया है S.I.रमण शास्त्री की बॉडी अभी तक बरामद नहीं हुयी है शायद वो जिन्दा बच गए हो लेकिन अभी तक उनकी हमारे पास कोई खबर नहीं है, कौन हो सकता है इन सब के पीछे? क्या इसमें हमारे किसी दुश्मन देश का हाथ है? ये आतंकवादी हमला है या कुछ और? इन सब बातो पर चर्चा के लिए देखे हमारा विशेष कार्यक्रम अब से कुछ ही देर मैं रात ९ बाते, कैमरा मैन गौरव के साथ मैं अविनाश +२४ न्यूज़”
न्यूज़ सुन कर श्रुति और सुमित्रादेवी का बुरा हाल हो रहा था पर कही न कही उन्हें लग रहा था के रमण ठीक होगा
श्रुति-मम्मी जी मैं तब से इनका फ़ोन लगा रही हु लग नहीं रहा है राघव भैया भी फ़ोन नहीं उठा रहे है
सुमित्रादेवी-तुम फ़ोन लगाती रहो कुछ जरूर पता चलेगा
वही अनिरुद्ध जी कुछ सोच रहे थे और अचानक वो खड़े हुए
अनिरुद्ध-चिंता मत करो बहु रमण को कुछ नहीं होगा और राघव भी ठीक होगा तुम उन्हें फ़ोन लगाती रहो और कुछ पता चले तो मुझे सूचित करना मैं आता हु
सुमित्रादेवी- आप कहा जा रहे है पहले ही हमारे दोनों बेटो का कुछ पता नहीं है ऐसे मैं आप
अनिरुद्ध-ये सुनिश्चित करने जा रहा हु के मेरे दोनों बच्चे सुरक्षित रहे, मेरी चिंता मत करो महादेव मेरे साथ है मुझे कुछ नहीं होगा, एक ऐसे व्यक्ति से मिलने जा रहा हु जहा से मुझे आशा मैं की मैं खली हाथ नहीं आऊंगा
सुमित्रादेवी-पर.....
सुमित्रादेवी कुछ कह पाती इससे पहले ही अनिरुद्ध शास्त्री वह से निकल गए, वो कहा जा रहे थे ये केवल उनका मन जानता था.....
वही दूसरी तरफ नरेश राघव और रमण को अपनी कहानी सुना रहा था की कैसे उसके भाई ने रूद्र को बनाया और जब कालसेना ने उसके परिवार को मार दिया तब से वो और रूद्र उसने भीड़ रहे है और कैसे उन्होंने अपने जैसे लोगो को खोज कर कालसेना के खिलाफ अपनी एक टीम तयार की है तभी वहा अरुण आ पंहुचा
अरुण के चेहरे पर चिंता साफ़ देखि जा सकती थी, रात का समय हो चला था और मौसन भी बिगड़ने लगा था अरुण काफी चिंतित चेहरे के साथ सोफे पर जा बैठा उसके हाथ मैं एक किताब थी
नरेश-अरुण तुम तो आधी रात तक आने वाले थे इतनी जल्दी कैसे आ गए? रमण राघव इनसे मिलो हमारे वेपन एक्सपर्ट अरुण जो आर्मी मैं कमांडो भी रह चुके है और अब कालसेना से लड़ने मैं हमारी मदद कर रहे है, पुलिस स्टेशन पर कालसेना के हमले की सुचना हमें अरुण ने ही दी थी
अरुण-मैं एक बुरी खबर लाया हु नरेश भाई, आज रात कुछ तो बड़ा होने वाला है हो सकता है शायद अंतिम कुर्बानी?
राघव-पर उसमे तो अभी समय है अंतिम कुर्बानी तो आने वाली पुरनमासी को होगी
अरुण-ये लोग किसी मुहूर्त का इंतजार नहीं करते बच्चे यदि इन्होने किसी को पकड़ा होगा तो कुर्बानी आज ही होगी पर मेरी जानकारी मैं अभी तक कालसेना को आखरी कुर्बानी नहीं मिली है.....
नरेश-मुझे लगता है तुम व्यर्थ चिंता कर रहे हो अरुण हो सकता है ऐसा कुछ न हो
रमण-पर आपको ये सब कैसे पता है? मतलब पहले पुलिस स्टेशन वाली घटना और अब ये??
अरुण-तुम्हे शायद जानकार हैरानी हो इंस्पेक्टर, मेरे पिता इन मे से एक थे, वो इन अन्धविश्वासी कालसैनिको मैं से एक थे और जब उन्हें कोई कुर्बानी नहीं मिली तो उन्होंने मेरी आँखों के सामने मेरी माँ को कुर्बानी के नाम पर जला कर मार डाला था, उस समय मैं छोटा था जिसके बाद मैंने ठान लिया था इस कालसेना को ख़तम करने का, जितनी अच्छी तरह मैं कालसेना को जानता हु उनता शायद यहाँ मौजूद कोई नहीं, मेरा अपना एक नेटवर्क है जिसके जरिये मुझे ये खबरे मिलती रहती है,
रमण-आपकी कहानी सुन कर दुःख हुआ और मैं आपके लड़ने के जज्बे की करदा करता हु, मेरी जान बचने का शुक्रिया अगर आप रूद्र को न भेजते तो शायद मैं यहाँ नहीं होता
रूद्र-पर अरुण भाई आप गए कहा था और ये आपके हाथ मैं क्या है?
अरुण-मैं अपने घर गया था रूद्र अपने बाप के घर जहा उसका सामान पड़ा हुआ था ये देखने की कही उसके सामान मैं हमें कोई ऐसी चीज़ मिल जाये जो हमारी इस लडाई मैं मदद करे और वहा मुझे ये मिली, ये किताब जिसकी ये कालसैनिक पूजा करते है
अरुण ने वो किताब सबको दिखाते हुए कहा
नरेश-क्या ये वही है जो मैं सोच रहा हु?
अरुण-काले जादू की किताब जिसका लेखक स्वयं कालदूत को माना जाता है, मेरे पिता की है, कभी सोचा नहीं था की मैं इसे देखूंगा
नरेश-मुझे लगा था ये एक ही है
अरुण-कालदूत ने तो एक ही दी थी पर कालसैनिको ने इसकी प्रतिया तयार की है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इनसे जुड़े
रूद्र-इसे खोलकर देखो पता चले इसमें क्या राज दफ़न है
उनलोगों ने उस ख़िताब के पन्ने पलटे, शुरवाती पन्नो मैं तो कुछ बेहद ही विभत्स रीती रिवाज थे जो कालसैनिक बनने की प्रक्रिया मैं करने पड़ते थे जैसे भैसे का सर काटकर खाना और सिर्फ कंकाल छोड़ना, मनुष्य की आंते निकालकर खाना आदि, ऐसे चित्र देख कर वहा मौजूद हर कोई घृणा से भर गया
रमण-काफी भयानक चित्र है पर ये भाषा क्या है
राघव-ये इस दुनिया की भाषा नहीं है
राघव के इतना बोलते ही सब उसकी तरफ देखने लगे
नरेश-तुम ये भाषा पढ़ सकते हो??
राघव-पता नहीं मैं ये कैसे कर पा रहा हु पर हा मैं इसे पढ़ सकता हु, ये किताब काले जादू का भंडार है, इसमें ऐसी सिद्धियों का वर्णन है जो यदि किसी एक इंसान के पास हो तो वो पुरे ब्रह्माण्ड पर राज कर सकता है
नरेश-लगता है तुममे किसी भी भाषा को समझने की भी काबिलियत है
राघव-पता नहीं शायद
संजय-पर ये भाषा जब इस दुनिया की नहीं है तो ये उन कालसैनिको को कैसे समझ मैं आ सकती होगी?
नरेश-ये समझना इतना भी मुश्किल नहीं है संजय....कालदूत उनसे मानसिक तरंगो द्वारा जुडा हुआ है वो इसे आसानी से समझ सकते है
ये लोग इन सब के बारे मैं बात ही कर रहे थे की दरवाजे पर दस्तक हुयी
रूद्र-इस समय कौन हो सकता है??
नरेश-मैं देखता हु...
नरेश ने जब दरवाजा खोला तो उसके सामने अनिरुद्ध शास्त्री खड़े थे........
नरेश ने जब दरवाजा खोला तो सामने अनिरुद्ध शास्त्री खड़े थे, उन्हें वहा देख कर पहले तो नरेश चौका, उसे कभी उम्मीद ही नहीं थी के अनिरुद्ध उससे मिलने आएगा
नरेश- अनिरुद्ध भैया आप आइये अंदर आइये
अनिरुद्ध अंदर आकर नरेश से कुछ बात करता या बोलता इससे पहले ही उसकी नजर राघव और रमण पर पड़ी...
राघव-बाबूजी आप यहाँ??
अनिरुद्ध-तुम दोनों यहाँ और रमण तुम्हारे पुलिस स्टेशन मैं आज इतनी भयानक घटना हुयी है हम सबको तुम्हारी चिंता हो रही है, श्रुति कब से तुम दोनों भाइयो का फ़ोन तरी कर रही है....बात क्या है तुम यहाँ क्या कर रहे हो??
नरेश-मैं बताता हु भैया आप बैठिये...
फिर नरेश ने अनिरुद्ध शास्त्री को सारी बात बताई की कैसे रूद्र ने रमण को बचाया वगैरे जिसके बाद
अनिरुद्ध- रूद्र, नरेश मैं जिन शब्दों मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करू समझ नहीं आ रहा है
नरेश-ये आप कैसी बात कर रहे है भैया राघव और रमण की सुरक्षा करना मेरा फर्ज था, अफ़सोस इस बात का है के अगर गुरूजी के कहे मुताबिक मैं राघव से मिल लेता तो शायद आज दुनिया पर इतना बड़ा खतरा न मंडरा रहा होता पर आपने.....
रमण-आप नरेश जी को कैसे जानते है पिताजी?
अनिरुद्ध- वो..
नरेश-ये कैसा सवाल है रमण....मैं अभी तुम्हे बताया था के मैं और मेरा भाई महेश गुरूजी के साथ रहते थे जाहिर है मैं अनिरुद्ध भैया और भाभी को अच्छी तरह जानता हु...
अनिरुद्ध-मैं डर गया था नरेश, पिताजी के जाने के बाद मैं अपने बच्चो को किसी मुसीबत मैं नहीं देखना चाहता था और यहाँ तो पिताजी ने राघव के कंधो पर पूरी दुनिया का जिम्मा डाला था..
राघव-मतलब आप को इन सब के बारे मैं पहले से खबर थी
अनिरुद्ध-हा, पिताजी ने जो बाते तुम्हारे बारे मैं नरेश को चिट्ठी मैं बताई थी वो उन्होंने मुझसे कहा था लेकिन मैं नहीं चाहता था के तुम इस तरह के किसी खतरे मन पड़ो इसीलिए मैंने कभी तुमसे इस बारे मैं कोई बात नहीं की राघव, नरेश जब अमेरिका से लौट कर तुमसे मिलना चाहता था तब मैंने ही उसे रोका था, पर नियति को जो मंजूर होता है वही होता है तुम आज यहाँ पहुच ही गए
नरेश-मैं आपकी चिंता समझता हु भैया....
अनिरुद्ध-पिताजी सही कहते थे आप कितनी ही कोहिश क्यों न कर लो जो होना है वो होकर ही रहता है खैर जो हुआ सो हुआ अब मैं उन लोगो से लड़ने मैं क्या मदद कर सकता हु बताओ...
रमण-ये काम हम पर ही छोडिये पिताजी आप घर जाइये और माँ और श्रुति से कहिये की मैं और राघव ठीक है कुछ काम ख़त्म करके जल्द ही आते है...
अनिरुद्ध-पर...
राघव-भाई सही कह रहा है पिताजी....
ये सब बाते यहाँ चल ही रही थी तभी अरुण को किसी का फ़ोन आया जिसे सुन कर उसका चेहरा गंभीर हो गया..
अरुण-नरेश भाई बुरी खबर है..मेरा शक सही निकला आज रात कुछ बड़ा होने वाला है कालसैनिक अंतिम कुर्बानी की तयारी कर रहे है....
नरेश-क्या??
अरुण-हा हमारे पास समय बहुत कम है
नरेश-रमण तुम भैया को घर छोड़ आओ और मुझे यही आकर मिलो तब तक हम आगे की रणनीति सोचते है..
रमण-ठीक है....
वही दूसरी तरफ...
इस वक़्त रात के १२ बज रहे थे और राजनगर मं भरी बारिश शुरू हो गयी थी, समय समय पर थर्रा देने वाली बिजली भी चमक उठती थी लेकिन बारिश या बिजली का असर उन काले लम्बे चोगे वाले नकाबपोशो पर नहीं पड़ रहा था जो उस विशाल कब्रिस्तान मैं भरी तादाद मैं मौजूद थे जहा रोहित की बलि दी गयी थी...
सुशेन एक उची जगह पर खड़ा होकर अपनी बुलंद आवाज मैं सबको संबोधित कर रहा था
सुशेन-मेरे दोस्तों! १००० वर्ष बाद अब जाकर हमें लोगो के बीच छिपने की जरुरत नहीं रहेगी क्युकी आज रात आखरी कुर्बानी की रात है जो इतने समय से चले आ रहे कुर्बानियों के चक्र को तोड़ेगी.....हमारा देवता समुद्रतल की गहरायो से आजाद होकर इस धरती पर राज करेगा....मैं जानता हु पिछले कुछ दिन हमारे लिए अच्छे नहीं रहे है...उन तुच्छ मनवो ने आज मेरे भाई को मार दिया, मैं इस दुखद घटना के कारण शोक मैं डूब गया था लेकिन कुछ समय बाद मुझे समझ आया के मेरे भाई का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए, शक्ति के अंत के बाद ब्लू हुड पूरी तरह बिखर गया था मैंने उन्हें हमारे साथ शामिल कर लिया है, हमारे पास जितने अधिक लोग होंगे लक्ष्य तक पहुचना उतना ही आसान होगा, इससे कालसेना की सिमित संख्या मैं बढ़ोतरी हो चुकी है....मेरे साथ दोहराओमहान भगवान कालदूत की.....
कालसैनिक एकसाथ- जय!!!
सुशेन-महान कालदूत अमर रहे!!
कालसैनिक- अमर रहे कालदूत.....!!
कालदूत का जयकारा लगाने मैं सबसे आगे संतोष खड़ा था......
वही राघव नरेश और बाकि सब घर पर तयारियो मैं जुटे थे, रूद्र खिड़की के बाहर देख रहा था नरेश उसके पास जाकर खड़ा हो गया
रूद्र-आज की रात बहुत काली है नरेश जी, बारिश भी तेज है....
नरेश-इतनी फ़िक्र मत करो लड़के
अरुण-हा रूद्र अब इन कालसैनिको पर आखरी वार करने का वक़्त है, वो अपना रिवाज पूरा करने किसी को ढूंढ रहे होंगे हमें उनपर पूरी ताकत से हमला करना है....
रूद्र-अगर मेरे पास उनका पता हो तो मैं अभी जाकर उन सब को ख़त्म कर सकता हु आप लोगो को आने की जरुरत नहीं है...
रमण-लेकिन तुम्हे नहीं पता की वो लोग इस वक़्त कहा पर है और सारे कालसैनिक एक जगह तो मिलेंगे नहीं, उनका प्लान होगा अलग अलग जगह से लोगो को उठाने का प्रयास करे, उन्हें नाकाम करने के लिए हमें भी बिखरना होगा
रमण ने अंदर आते हुए कहा....
संजय-अब हमारा प्लान क्या है आगे क्या करना है?
नरेश-राजनगर मैं कुछ ही ऐसे संवेदनशील हिस्से मैं जहा पर आजतक कालसेना ने हमला किया है जब मैंने इन हिस्सों को मार्क करना शुरू किया तो मुझे समझ मैं आया की असल मैं तीन ही ऐसी जगह है जहा ये कालसेना के लोग हमला करते है, अब हमें भी उन्हें ढूंढने के लिए तीन टीम्स मैं बटना होगा, उत्तर दिशा की तरफ रूद्र अकेला जायेगा क्युकी उसपर काले जादू का telekinesis का असर नहीं होता है, पूरब मे मैं और अरुण जायेंगे और दक्षिण मैं राघव संजय और रमण, रूद्र के अलावा हम सबको उनका सामना करने के लिए हथियारों की जरुरत होगी क्युकी हम मे से कोई भी रूद्र जैसा अभेद्द नहीं है, राघव हो सकते तो अपनी शक्तियों को पहचानने की कोशिश करो हमें तुम्हारी जरुरत है बच्चे, अपनी रफ़्तार और बहुबल हो पहचानो, तुम यहा अकेले ऐसे इंसान हो जो कालसैनिको का खात्मा चंद पालो मैं कर सकते हो तुमसे हमें बहुत उमीदे है
राघव-मैं पूरी कोशिश करूँगा
नरेश-पहले हम छिपकर उनकी गतिविधि देखेंगे, उनका कोई गुप्त अड्डा जरूर होगा जहा पर वो सब मिलते होंगे और आज जब वो आखरी कुर्बानी ढूंढने निकले है तो सारे कालसैनिक एक जगह जरूर इकठ्ठा होंगे, हम बस चुप चाप उनका पीछा करके वो गुप्त स्थान ढूंढेंगे और फिर बिना नजरो मैं आये RDX प्लांट करेंगे और पूरी जगह ही उड़ा देंगे और अगर फिर भी कोई कालसैनिक बच गया ओ उसके लिए हथियारों का इंतजाम अरुण ने कर दिया है, देखते ही मार देंगे उन्हें बस ध्यान रहे उन्हें मौका नहीं मिलना चाहिए वरना आखरी कुर्बानी हम मैं से किसी की होगी, सभी को गुड लक
सभी लोग घर के बाहर निकले, अबतक बारिश हलकी हो चुकी थी और हवा मैं ठण्ड के साथ नमी भी बढ़ चुकी थी लेकिन रात का अँधेरा और सन्नाटा बरक़रार था साथ ही रह रहकर बिजली भी जोरो से कड़क रही थी, तीनो टीम के लोग आपस मैं एकदूसरे से गले मिले और रूद्र नरेश के पास आया
रूद्र(झिझकते हुए)- देखिये...अगर आपको वो लोग मिले तो आपको मुझे या राघव को कॉल करना है खुद कोई एक्शन नहीं लेना है
नरेश-मैं समझता हु रूद्र तुम्हे मेरी चिंता है लेकिन अगर हमारा प्लान काम कर गया तो चिंता की कोई बात नहीं है
रूद्र-कुछ चांस ये भी है के हमारी योजना काम न करे फिर हम क्या करेंगे? आप जानते है आपके सिवा मेरा दुनिया मे कोई नहीं है मैं नहीं चाहता आपका हाल आपके भाई और मेरे निर्माता जैसा हो...
नरेश-मैं वादा करता हु की अगर मुझे कुछ गड़बड़ लगी तो तुम्हे या राघव को कॉल करूँगा खुद कोई एक्शन नहीं लूँगा, अब मेरी चिंता करने का वक़्त नहीं है बल्कि धावा बोलने का वक़्त है
फिर तीनो टीम्स अपने लक्ष्य की तरफ रवाना हुयी, रमण संजय और राघव रमण की जीप मैं जिसके पीछे वाली सीट पर उन्होंने अरुण के दिए हुए हथीयार रखे थे, नरेश और अरुण अरुण की गाड़ी मैं जिकसी डिक्की मैं भी काफी हथीयार थे और रूद्र अपनी बाइक पर बैठकर अपनी लोकेशन की तरफ रवाना हुआ.....
अरुण और नरेश तेजी से अपनी गाड़ी मैं पूरब दिशा की और बढ़ रहे थे, जिस तरफ वो लोग इस वक़्त जा रहे थे वो कुछ कुछ जंगली इलाका था, समय समय पर गीदड़ और भेडियो की मनहूसियत भरी आवाज से वातावरण गूंज रहा था लेकिन उनके पास इन सब बातो पर ध्यान देने का वक़्त नहीं था.
वो एक ऐसे इलाके मैं पहुचे जहा सड़क और संकरी हो गयी थी और चारो तरफ जमीन पर छोटी छोटी झाड उगी हुयी थी, दूर दूर तक एक भी स्ट्रीटलाइट नहीं थी, इंसान तो छोडो कोई जानवर भी नजर नहीं आ रहा था, ख़राब इंटरनेट की वज्र से नरेश के मोबाइल का जीपीएस ढंग से काल नहीं कर रहा था और इसी वजह से मजबूरन उन्हें कागज का नक्षा खोलकर देखना पड़ा..
नरेश-नक़्शे के हिसाब से तो यही वो जगह है जाया ये कालसैनिक एक बार नहीं बल्कि कई बार देखे जा चुके है, यहाँ से कई लोगो सारे को गायब किया है उन्होंने
अरुण-इसका मतलब हमें गाडी की गति धीमी कर लेनी चाहिए और सतर्क हो जाना चाहिए, इस प्रकार की अँधेरे और वीरान जगह पर वो लोग कही भी घात लगा कर बैठे हो सकते है हमें काफी सावधानी बरतनी होगी
नरेश-वो तो ठीक है अरुण पर तुम ज्यादा जोश मैं मत आ जाना, हमें पहले छिपकर चुपचाप चीजों का अवलोकन करना है उन्हें शक नहीं होना चाहिए
अरुण-मैं ये बात जानता हु नरेश भाई मुझे पता है की ये सब कितना जरुरी है
नरेश-और और बात है अरुण
अरुण-तो बोलिए न नरेश भाई
नरेश-अगर वो लोग मुझे पकड़ ले तो तुम तेजी से निकल जाना पहले अपनी जान बचाना समझे...
अरुण-पर आप ऐसा सोच ही क्यों करे है? हमारा प्लान जरूर कामयाब होगा और अगर उनलोगों ने आपको कुछ भी किया तो रूद्र हर एक के दस टुकड़े कर देगा.
नरेश-इसी बात का तो डर है
अरुण-मतलब?
नरेश-रूद्र कोई इंसान तो है नहीं न अरुण, मतलब मेरी या तुम्हारी तरह नहीं, वो बिना ज्यादा सोचे लोगो को निर्दयता से मार देता है, हालाँकि ये कालसैनिक जिन्दा छोड़े जाने के लायक भी नहीं है पर कभी कभी मैं सोचता हु के अगर रूद्र इंसानियत के विपक्ष मैं लड़ा तो क्या होगा? राघव ही केवल एकमात्र ऐसा इंसान है जो रूद्र की क्षमताओ पर काबू कर सकता है बस वो जल्द से अपने अप को जान ले
अरुण(मजाकिया अंदाज मे)-वो सब तो ठीक है नरेश भाई पर पहले फिलहाल तो हमें अपने लक्ष्य परे ध्यान देना चाहिए, वैसे भी आप इस तरह के काम के लिए बूढ़े हो चले है
नरेश(मुस्कुराकर)- हा हा और तुम तो अभी बच्चे हो न
तभी अचानक अरुण ओ गाड़ी के ब्रेक लगाने पड़े और नरेश को झटका महसूस हुआ, एक व्यक्ति सड़क पर बेहोश पडा हुआ था
नरेश-लगता है उनलोगों को उनका शिकार मिल गया, इसे किसी कारण उन्होंने यहा छोड़ दिया, तुम इसे उठा लो और एम्बुलेंस को फ़ोन कर दो
अरुण-रुको नरेश भाई! गाड़ी से उतरना ठीक नहीं होगा ये उनलोगों की कोई चाल भी हो सकती है
नरेश-और अगर चाल नहीं हुयी तो? एक जिर्दोश मारा जायेगा अरुण, अपनी बन्दूक उठाओ और सावधानी से जाकर चेक करो
बारिश और कदक्तो बिजली माहोल को और भिज्यदा भयानक बना रही थी, इस माहोल मैं अरुण गाडी से बाहर निकला, वातावरण मैं अब कुत्तो और बिल्लियों की मनहूस आवाजे भी शामिल हो गयी थी, अरुण धीरे धीरे बन्दूक लेकर बेहोश व्यक्ति की तरफ बढा, उसने धीरे से उस व्यक्ति को देखने के लिए उसे हाथ लगाया ही था के तभी अचानक उस बेहोश पड़े व्यक्ति ने अरुण के गर्दन को पकड़ लिया और एक ‘चटाक’ की आवाज़ हुयी और उसी के साथ ही अरुण की जान चली गयी, नरेश गाड़ी मैं बैठ ये नजारा देख चूका था और अब वो घबराने लगा था,
वो व्यक्ति उठा और उसने अपना काला चोगा और नकाब पहना और अरुण को वही सड़क पर मरा छोड़कर वो व्यक्ति गाडी की तरफ बढ़ा, अब तक नरेश गाडी का स्टीयरिंग संभाल चूका था, उसने तेजीसे गाडी को उस इंसान की तरफ बढाया लेकिन उस व्यक्ति ने केवल अपना हाथ हवा मैं उठाया और गाडी बंद पड गयी, नरेश ने कई बार चाबी घुमाकर गाडी दोबारा स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ,
उस व्यक्ति के हाथो मैं फिर से हरकत हुयी और अबकी बार गाडी का पूरा दरवाजा उखाड़कर निकल गया, उस इंसान ने कुछ देर नरेश को घुरा और फिर उसके करीब आया, नरेश अबतक उस आदमी का चेहरा ठीक ढंग से देख नहीं पाया था और उसने अरुण को मारते ही नकाब पहन लिया था और अब उस इंसान से नरेश को घूरते हुए फिर से अपना काला नकाब उतारा.....
वो कोई और नहीं सुशेन था और इस वक़्त उसके चेहरे पर अजीब सा वहशिपन था! उसने नरेश को गाडी से बाहर खिंच लिया, नरेश ने एक जोरदार मुक्का उसके चेहरे पर जड़ना चका लेकिन उसने नरेश का हाथ पकड़ कर जोर से भींच दिया जिससे नरेश की हथेली की हड्डियों का कचूमर बन गया जिससे नरेश की चींख निकल गयी, नरेश की चींख ने उस सुनसान माहोल को बुरी तरह देहला दिया, फिर सुशेन ने एक जोरदार घुसा नरेश के पेट मैं जादा जिससे उनके मुह से खून आने लगा, अब नरेश पूरी तरफ अशक्त होकर जमीन पर पड़ा हुआ था.....
सुशेन-तुम लोग मेरे भाई के मौत के जिम्मेदार हो.
सुशेन ने काफी क्रोध मैं कहा
नरेश-तुम...तुम्हे कैसे पता?
सुशेन-जब पुलिस स्टेशन मे रूद्र ने शक्ति को मारा और इस इंस्पेक्टर और उसके भाई को लेकर तुमसे मिलने आया तब भी मेरे लोग बेहद सावधानी से उनका पीछा कर रहे थे, उन्हें तुम्हारी लोकेशन मिल गयी, हम चाहते तो किसी भी वक़्त तुम्हारे घर पर हमला कर सकते थे लेकिन हमसे सही मौके का इंतजार किया और तुम तक हमारी खबर पहुचाई और हमें मौका मिल गया जब तुम लोग अलग अलग रस्ते हमारी तलाश मैं निकले
नरेश-म...मतलब तुम्हे पुरे समय हमपर नजर राखी?
सुशेन-हा हा हा, हमने इस मामले मैं तुमसे थोडा ज्यादा होशियारी से काम किया लेकिन चिंता मत करो, तुम्हारी मृत्यु को हम ऐतहासिक बनायेंगे, क्युकी तुमको हम मौका देंगे वो अंतिम कुर्बानी बनने का को कालदूत के लिए इस दुनिया का मार्ग प्रशस्त करेगी.....
फिर सुशेन ने एक जोरदार घुसा नरेश को जड़ा जिससे उसका दिमाग बेहोशी के अँधेरे मैं डूबता चला गया, फिर उसके बेहोश शारीर को अपने कंधे पर डालकर सुशेन एक और बढ़ता चला गया
दूसरी तरफ राघव जो रमण और संजय के साथ निकला था उसे किसी अनहोनी घटना का आभास होने लगा, उन्हें अब तक अपने मार्ग मैं कोई भी ऐसी चीज़ या हरकत नहीं दिखी थी जो इस और इशारा करे करे की यहाँ कालसेना की मौजूदगी होसकती है
राघव ने अरुण और नरेश ने संपर्क बनाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ उनका फ़ोन नहीं लग रहा था और जब राघव की कई कोशिशो ने बाद भी नरेश का फ़ोन नहीं लगा तो उसे चिंता होने लगी और उसने रूद्र को फ़ोन लगाया
रूद्र बाइक से तेजी से बढ़ रहा था तभी उसका फ़ोन बजा और उसने फ़ोन उठाकर कान को लगाया
राघव-रूद्र! मैं राघव बात कर रहा हु
रूद्र-हा! क्या हुआ है सब ठीक है न?
राघव-हमारे पास सब ठीक है लेकिन अरुण और नरेश जी से हमारा संपर्क टूट गया है
रूद्र-शायद बारिश की वजह से ऐसा हो..!
राघव-काश ऐसा ही हो वैसे हमें यहाँ किसी भी कालसैनिक का नामोनिशान नहीं मिला है तुम कहो
रूद्र-अभी तक तो नहीं...
राघव-तो क्या नरेश जी और अरुण......रूद्र मेरे मन को किसी अनहोनी का आभास हो रहा है
राघव की बात सुनकर रूद्र भी बुरी तरह आशंकित हो गया उसे अचानक कुछ याद आया और उसने राघव की बात को बीच मैं काटकर पूछा
रूद्र-रमण ने किसी कब्रिस्तान के बारे मैं बताया था कुछ!
राघव-हा एक पुराना कब्रिस्तान है जहा भाई को रोहित नाम के एक इंसान की जली हुयी लाश मिली थी मैं जानता हु उस जगह के बारे मैं
रूद्र-तुम सबको लेकर तुरंत वहा पहुचो मैं भी पहुच रहा हु बस एक बात का ध्यान रखना राघव मेरे आये तक प्लीज कोई एक्शन मत लेना मेरा इंतजार करना
राघव-ठीक है...
उसके बाद राघव ने रमण और संजय को ये बात बताई और वो लोग उस कब्रिस्तान की और निकल गए और रूद्र ने भी अपनी बाइक उस कब्रिस्तान की और मोड़ ली.....
राघव संजय और रमण अपनी जीप से कुछ ही समय मैं कब्रिस्तान पहुच गए थे और उन्होंने अपनी जीप कब्रिस्तान से कुछ दूर पहले ही कड़ी कर दी थी ताकि उसकी आवाज से कही कालसैनिक सतर्क नहो जाए फिर जीप की पिछली सीट से एक एक रायफल उठाकर वो सावधानी से कब्रिस्तान की और बढे, कब्रिस्तान के बाहर लोहे के गेट के बगल मैं एक बरगद का पेड़ था वो लोग उसकी ओट मैं छिप गए,
वहा से कब्रिस्तान के अंदर का दृश्य देख पाना इतना आसन नहीं था क्युकी अँधेरा होने के कारण दूर तक ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन कब्रिस्तान के अंदर से आ रही आवाजो को सुना जा सकता था, ये आवाजे उनलोगों को दूर से ही सुने दे रही थी जिससे इतना तो तय हो चूका था के ये लोग अंदर की है और कुछ भरी गड़बड़ कर रहे है
रमण(फुसफुसाकर)- ये क्या! ये लोग तो अंदर कोई मंत्र वगैरा पढ़ रहे है
राघव-इन्हें अंतिम कुर्बानी मिल गयी है भैया ये वही मंत्र है जो मैंने उस किताब मैं देखे थे, इनकी तो....! मैं इन्हें अभी ख़त्म कर दूंगा..!
संजय-रुको राघव! गुस्से मैं बेवकूफी के कदम नहीं उठाया करते, तुम पूरी तरह टायर नही हो, हमें रूद्र का इंतजार करना है, देखो वो भी आ गया है
संजय को रूद्र दूर से आता हुआ दिखाई दिया, रूद्र ने अपनी बाइक उनकी जीप के पास कड़ी कर दी और तेजी से उनलोगों के पास पंहुचा
रूद्र-क्या चल रहा है?
राघव-उन लोगो को अंतिम कुर्बानी मिल गयी है
रूद्र-अच्छा है ये सब एक जगह है, मैं उन कमीनो को छोडूंगा नहीं तुम लोग यही रुको
राघव-तुम नहीं हम मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा
रूद्र-तुम तयार हो
राघव-बिलकुल ज्यादा नहीं तो उनके दिमाग मैं घुस के उनकी नसे तो फाड़ ही सकता हु
रूद्र-ठीक है तो फिर चलो आज इनका काम ही ख़तम कर दे
रमण-रुको हम भी चलते है
रूद्र-क्या आप मेरी तरह कृत्रिम मानव है या आपके पास राघव के जैसी शक्तिया है
रमण-आ....नहीं
रूद्र-तो फिर अप दोनों यही रुके, मेरा तो यर लोग वैसे भी जादू टोने से कुछ बिगाड़ नहीं सकते और राघव अपनी शक्तियों से इन्हें मसल देगा बस अगर कोई कालसैनिक हमसे बचकर बाहर भागने का प्रयास करे तो उसे गोली मारने मैं देर मत कीजियेगा, अपने हथियार तयार रखिये
राघव-रूद्र सही कह रहा है भाई....
फिर कुछ पल के लिए राघव ने वही आसन लगा कर अपनी आँखें बंद की और ध्यान की मुद्रा मैं बैठ गया मनो अपनी शक्तियों का आकलन कर रहा हो और जब उसने अपनी आँखें खोली तो उसकी आँखें हलके हरे रंग मैं चमक रही थी और उसके होठो पर एक मुस्कान थी और मस्तिक्ष एकदम शांत, अब राघव जानता था की उसे क्या करना है
वही रूद्र धडधडाते हुए कब्रिस्तान मैं घुस गया लेकिन वहा का दृश्य देख कर उसका खून खुल उठा, कालसैनिक गोल घेरा बनाकर मंत्रोच्चारण कर रहे थे और उनके घेरे के ठीक बीच मैं बुरी तरह से घायल नरेश अर्धबेहोशी की अवस्था मैं दिवार मे के एक बड़े से टुकड़े मैं गडी हुयी लोहे की जंजीरों से बंधा हुआ था
रूद्र को देखते ही मंत्र का उच्चारण करते कालसैनिक एकदम से रुक गए और रूद्र ने गुस्से मैं अपनी मुट्ठिया भींच ली
यहाँ राघव ने जैसे ही आंखन खोली तब तक रूद्र कब्रिस्तान मैं जा चूका था तो राघव ने भी उसके पीछे दौड़ लगा दी पर इस बार उसकी गति अकल्पनीय रूप से बढ़ी हुयी थी वो पलक झपकते ही रूद्र के पास खड़ा था मनो उसने एक जगह से दूसरी जगह टेलिपोर्ट किया हो, राघव खुद अपनी गति से चौक गया था पर ये समय इन सब के बारे मैं सोचने का नहीं था सामने का नजारा देख कर राघव भी गुस्से से उबलने लगा तभी रूद्र क्रोध मैं आकर बोला
रूद्र-तुम लोगो की यह हिम्मत जो नरेशजी को कैद करो!! मैं तुममे से किसी एक भी जिन्दा छोड़ने वाला नहीं हु
राघव वहा मौजूद सभी कालसैनिको की मानसिक स्तिथि का अंदाजा लगा सकता था उसने जैसे ही कब्रिस्तान के मैंदान मैं चारो तरफ नजर दौडाई उसी के साथ वो अपनी शक्तियों से वहा मौजूद सभी के दिमाग से मानसिक रूप से जुड़ चूका था पर वो एकसाथ सब पर हमला नहीं कर पा रहा था पर उनके दिमाग को भाप रहा था ,रूद्र की गुस्से भरी गर्जना सुन कर कालसैनिक कुछ समय के लिए घबराये जरूर थे पर उनमे डर का नामोनिशान नहीं था
रूद्र तेज कदमो से उस घेरे की तरफ आगे बढ़ने लगा तभी अचानक किसी ने उसे एक जोरदार लात मार कर दूर फेक दिया,, रूद्र के जीवन मैं ये पहली बार था के वो किसी के प्रहार से इतनी दूर जाकर गिरा था वही इस बात ने राघव को भी चौका दिया था क्युकी जो रूद्र की क्षमता को जनता था और अगर किसी ने रूद्र को एक लात मैं इतनी दूर फेका है तो वो कोई मामूली इंसान नहीं हो सकता, राघव और रूद्र दोनों ने रूद्र पर हमला करने वाले को देखा तो सामने चेहरे पर राक्षसी भाव लिए सुशेन खड़ा था, उसकी आँखों की पुतलिया पूरी तरह लाल हो चुकी थी जिसके कारण वो बेहद भयानक लग रहा था
सुशेन(कुटिलता से मुस्कुराते हुए)- तो अब हम दोबारा मिल गए! और तुम अपने साथ इस बच्चे को भी ले आये, अगर मुझे पहले पता होता की तुम इस तुच्छ इंसान को अपने साथ लाने वाले हो तो अंतिम कुर्बानी के लिए इस बुड्ढे को नहीं चुनता मैं
राघव-अभी तुम्हे पता चल जायेगा की तुच्छ कौन है
और राघव ने सुशेन की तरफ दौड़ लगा दी और पलक झपकने भर मणि राघव ने सुशेन को पूरी ताकत से एक मुक्का जड़ दिया पर उसका सुशेन पर इतना खास प्रभाव नहीं परा पर इतना उसे समझ आ गया था के राघव कोई मामूली इंसान नहीं है, सुशेन राघव ने मुक्के से बस एक फूट दूर सरका था और फिर जब उसने राघव पर telekinesis करने का सोचा तो वो उसका दिमाग भेद नहीं आया, सुशेन ने इतना प्रबल मस्तिक्ष पहले कभी महसूस नहीं किया था
सुशेन(हैरानी से )-कौन हो तुम??
राघव-इतनी जल्दी क्या है जान जाओगे
तभी रूद्र अपनी जगह से उठ आया और उसने सुशेन पर वार करने की कोशिश की लेकिन सुशेन ने इस बार भी उसका हमला नाकाम कर दिया
सुशेन-तुम आज मुझसे नहीं बचोगे रूद्र
रूद्र-तुममे इतनी जबरदस्त शक्ति कहा से आ गयी?? क्या किया है तुमने?
सुशेन-हमारे प्रभु कालदूत का शारीर भले ही समुद्र की गहराइयों मैं दफ़न है लेकिन वे मंसिर रूप से हरदम हम लोगो के रूप मैं सक्रिय है इसीलिए उनको ये बात ज्ञात है की उनको स्वतंत्र करने से हम लोग केवल १ कुर्बानी दूर है इसीलिए उन्होंने अपनी शक्ति का एक बड़ा हिस्सा मुझे दे दिया है तकी इस कार्य मैं कोई बाधा न आये मेरे शारीर मैं इस वक़्त ऐसी शक्ति है की मैं तुझे चींटी की तरह अभी मसल दू
वहा मौजूद सारे कालसैनिक इस वाकये को अपने सामने होता देख रहे थे मगर कोई भी एक वक़्त सुशेन के बीच मैं नहीं आ रहा था या राघव और रूद्र को रोकने की कोशिश नहीं कर रहा था
राघव-मेरे होते हुए ये इतना भी आसन नहीं है
राघव ने सुशेन से कहा औरपने दोनों हाथ हवा मैं एक विशिष्ट मुद्रा मैं लहराए और उन्हें सुशेन की तरफ किया जिससे एक तेज हवा का झोका धुल को अपने मैं समेटे सुशेन की तरफ बढ़ा और उसी हवा की रफ्तारसे राघव ने सुशेन पर हमला किया लेकिन सुशेन ने अपने एक हाथ राघव का वार खली कर दिया और उसे दूर फेक दिया
रूद्र गुस्से से चिल्लाते हुए सुशेन की तरफ भगा लेकिन सुशेन ने फिर एक जोरदार घुसा रूद्र के मुह पर रसीद किया जिससे वो वही गिर५ पड़ा, उसके कृत्रिम शारीर ने जीवन मैं पहली बार खून दर्द और बेबसी का अनुभव किया था, रूद्र और राघव दोनों ही इस वक़्त अपने आप को सुशेन के सामने बेबस महसूस कर रहे थे, सुशेन रूद्र को घसीटते हुए राघव के पास ले गया, राघव इस वक़्त जमीन पर पड़ा करह रहा था, क्या करे उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, सुशेन ने उन दोनों को गर्दन से पकड़कर उठा लिया, राघव और रूद्र दोनों अपनी पूरी ताकत के लगाकर भी सुशेन की पकड़ से छुट नहीं पा रहे थे, राघव तो दर्द मैं अपनी शक्तिया भी भुला बैठा था
सुशेन(क्रोध से)- तुम लोगो ने मेरे भाई को मार डाला! पता है कितना दर्द होता है जब हम किसी अपने को खोते है? मैं बताता हु,
सुशेन ने दोनों को गर्दन से पकड़ कर उठाकर रखा था फिर उसने एक कालसैनिक को इशारा किया और उसने राघव और रूद्र के सामने telekinesis द्वारा नरेश को यातना देना शुरू किया, नरेश दर्द के कारण बुरी तरह चीख रहा था क्युकी धीरे धीरे उसके पेट का उपरी आवरण हट रहा था और त्वचा से फटकार बाहर आती अंतड़िया दिखने लगी थी
राघव और रूद्र काफी कोशिशो के बाद भी खुद को छुड़ा नहीं पा रहे थे
सुशेन- हा हा हा! अब वक़्त है आखरी कुर्बानी देने का, इस कुर्बानी के कारण हजार वर्षो से चला आ रहा कुर्बानी का चक्र समाप्त हो जायेगा और महान कालदूत का आगन इस धरती पर होगा, फिर वे देवताओ की इस सृष्टि को अपनी सृष्टि बनायेंगे और मैं बनूँगा इस नई दुनिया के सृजन मैं उनका सहयाक, उनका परम अनुयायी!
सुशेन ने दुसरे कालसैनिक को इशारा किया उर उसने पास ही पड़ा एक केरोसिन का डब्बा telekinesis द्वारा नरेश के पिरे शारीर पर छिड़क दिया और माचिस से आग लगा दी, इस दौरान बाकि कालसैनिको का मंत्रोच्चारण काफी तेज हो गया था और नरेश को अत्याधिक्क पीड़ा का अनुभव हो रहा था, उसका शारीर जल उठा था वो चीख रहा था लेकिन उससे भी बुरी तरह रूद्र चीख रहा था वही राघव अपने पुरे प्रयास के बाद भी सुशेन की मजबूत पकड़ से नहीं निकल पा रहा था और नरेश को जलता देखने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा था.......
सुशेन ने दुसरे कालसैनिक को इशारा किया उर उसने पास ही पड़ा एक केरोसिन का डब्बा telekinesis द्वारा नरेश के पिरे शारीर पर छिड़क दिया और माचिस से आग लगा दी, इस दौरान बाकि कालसैनिको का मंत्रोच्चारण काफी तेज हो गया था और नरेश को अत्याधिक्क पीड़ा का अनुभव हो रहा था, उसका शारीर जल उठा था वो चीख रहा था लेकिन उससे भी बुरी तरह रूद्र चीख रहा था वही राघव अपने पुरे प्रयास के बाद भी सुशेन की मजबूत पकड़ से नहीं निकल पा रहा था और नरेश को जलता देखने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा था.......
जल्द ही नरेश ने रहा सहा प्रतिरोध करना भी बंद कर दिया, उसके शारीर की सारी हरकते और तड़प शांत हो चुकी थी, अब तक हलकी पड़ चुकी बारिश अब एकबार फिर तेज हो गयी थी और अब तक बुरी तरह गल चुके उनके शारीर को जलाती आग भी धीरे धीरे बारिश से बुझने लगी थी लेकिन आग बुझने तक वो शारीर शारीर नहीं रहा बल्कि जंजीरों मैं लटका मांस का एक लोथड़ा बन चूका था, आखरी कुर्बानी की प्रक्रिया संपन्न हो चुकी थी, रूद्र बस एकटक उस जगह की तरफ देखे जा रहा था जहा कुछ समय पहले नरेश जी जीवित मौजूद थे,
सुशेन ने उन दोनों की गर्दन छोड़ दी, रूद्र घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया वही राघव अर्धबेहोशी की हालत मैं पहुच चूका था और जमीन पर लेट रहा था और अपनी सास नोर्मल कर रहा था,
रूद्र जमीन पर बैठा नरेश को लाश को एकटक देख रहा था, पहले इनलोगों ने उसके निर्माता को मारा था फिर जिस व्यक्ति ने उसे पिता की तरह पाला उसे इन कालसैनिको ने इतनी भयानक मौत दी थी, रूद्र की पूरी दुनिया ही उजाड़ गयी थी और जब किसी के साथ ऐसा होता है तो उसे दुःख नहीं होता बल्कि उसका पूरा दिमाग ही कुछ समय के लिए शुन्य मैं चला जाता है, रूद्र के साथ ऐसा ही हुआ था उसके रोना नहीं आ रहा था, सही कहा जाये तो उसे कुछ भी महसूस होना बंद हो चूका था,
नरेश की मौत से वो भी इतनी भयानक मौत से राघव भी शोक मैं डूबा हुआ था कही न कही उसे ऐसा लग रहा था के ये सब उसी के कारण हुआ है क्यों वो अपनी शक्तिया सही से इस्तमाल नहीं कर पाया, उसने मान ही लिया थाए ये जंग वो हार चुके थे और अब कुछ नहीं बचा था और धीरे धीरे राघव की ऑंखें बंद होने लगी
वही सुशेन कुटिल और विजयी मुस्कान लेकर खड़ा था, गोले मैं खड़े कालसैनिको के मंत्रोच्चारण बंद हो चुके थे, कालदूत के जागने की प्रक्रिया पूर्ण होने की आपर ख़ुशी उन सबके चेहरे पर देखी जा सकती थी
सुशेन- हा हा हा...प्रक्रिय पूरी हुयी, अब १००० साल का इंतज़ार ख़त्म! हमारे देवता अब इस नापाक धरती पर अपना कदम रखेंगे, सभी धर्मो के लोग अब सिर्फ कालदूत की पूजा करेंगे और को विरोध करेगा उसे ऐसी ही भयानक मौत दी जाएगी और सबसे पहले इन्ही लोगो की बारी है जिन्होंने कालदूत के माहन कार्य मैं बाधा बनने की कोशिश की है
रूद्र के मुह से खून रिस रहा था और उसके कपडे जगह जगह से फटे हुए थे पर अब भी वो शुन्य मैं था, उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी वही राघव ने जैसे ही अपनी आंखे बंद की उसे उसके मस्तिष्क मैं उसके दादा की छवि उभर्तोई दिखी मनो वो उससे कह रहे हो की ये अंत नहीं है अभी तो और भी काम करने बाकि है, अब राघव की चेतना लौटने लगी थी और उसमे एक नई हिम्मत का संचार हुआ था, राघव की हालत भी रूद्र से अलग नहीं थी चोटे उसे भी आयी थी लेकिन वो दोबारा उठ खड़ा हुआ, अब उसे दर्द महसूस नहि हो रहा था और शारीर मैं ये नई उर्जा न मनो प्रवाह बह रहा हो, इस बार राघव के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे न डर न गुस्सा न दुःख, उसकी हिम्मत देख कर रूद्र भी अपनी चेतना मैं वापिस आया और एक बार फिर वो कालसैनिको से लड़ने के लिए उठ खड़ा हुआ
अभी तक सुशेन और कालसैनिको का ध्यान इनपर नहीं गया था सुशेन कालदूत की आज़ादी की ख़ुशी मन रहा था
सुशेन-हा हा, कालसैनिको कुछ ही समय मैं हमारे भगवान हमारे बीच होंगे उसके पहले हमें इन बद्जतो को इनके किये की सजा देनी है सबसे पहले तो ये मरेगा जिसपर telekinesis असर नहीं करती, इसे मैं अपने हाथो से मारूंगा और उसके बाद इसके साथ आया हुआ लड़का
तभी पीछे से राघव से सुशेन को आवाज दी जिससे सुशेन का ध्यान उन दोनों पर गया
राघव-ओ.....तट्टो के सौदागर, ये लडाई अभी ख़त्म नहीं हुयी है और भेंचोद अगर मरना ही है तो कमसे कम तुमको मार के मरेंगे मादरजात.....
राघव की बात और उसके मुह से अपने लिए गाली सुनके सुशेन का गुस्सा भड़क रहा था मगर जब तक वो कुछ करता राघव ने उसकी तरफ दौड़ लगा दी और राघव इतनी तेजी से सुशेन की और लपका की किसी को समझ ही नहीं आया और राघव मे सुशेन पर अपने मुक्को की बारिश कर दी पर कालदूत की दी हुयी शक्तियों की वजह से सुशेन राघव के हमले को भाप गया और उसने भी अब राघव का प्रतिरोध करना शुरू कर दिया अब लग रहा था की दो टक्कर के प्रतिद्वंदी लड़ रहे है वही जब इनदोनो के बीच कालसैनिको ने हस्तक्षेप करने ने कोशिश की तो उनके बीच रूद्र खड़ा था
लड़ते लड़ते सुशेन ने एक जोरदार प्रहार राघव पर किया जिससे वो कुछ फूट पीछे सरक गया मगर इतने मैं रूद्र सुशेन से लड़ने उसके सामने थे, सुशेन ने फिर रूद्र को घुसा मारने की कोशिश की लेकिन इस बार रूद्र ने सुशेन के वार को अपने हाथ से रोक लिया, ये देख कर सुशेन को बेहद हैरानी हुयी, उसे कुछ देर पहले अपने शारीर मैं जो असीम शक्ति थी वो अब कम होती महसूस हो रही थी, उसकी आँखों की पुतलिया जो अब तक लाल थी वो सामान्य हो रही थी, अपने अंदर इतने शारीरिक परिवर्तन देख कर अब सुशेन घबराने लगा था
सुशेन-ये...ये क्या हो रहा है? मेरी शक्तिया कहा चली गयी?
रूद्र-तुम्हारा इश्वर तो स्वार्थी निकला रे...जबतक तुमसे काम था तबतक तुम्हे उसने शक्तिया दी और जैसे ही प्रक्रिया पूर्ण हुयी शक्ति वापिस ले ली?
सुशेन से चेहरे पर डर साफ़ देखा जा सकता था रूद्र ने उसके हाथ को जोर से भींच दिया जिससे उसके हाथ की हड्डीया टूट हाई और सुशेन अपना हाथ लेकर वही बैठ गया, ये घटना देख कर बाकि कालसैनिको ने वह से भागने की कोशिश की लेकिन रूद्र और राघव अब उन्हें छोड़ने के मूड मैं बिलकुल नहीं थे
राघव ने अपनी मानसिक शक्तियों के उपयोग से कालसैनिको के सोचने और भागने की गतिको धीमा कर दिया था और जल्द ही पुरे वातावरण कालसैनिको की चीख पुकार से दहल रहा था, रूद्र और राघव एक एक कालसैनिक को तेजी से मार रहे थे
रूद्र ने एक कालसैनिक की छाती के आरपार अपना हाथ ऐसे निकाल दिया मनो उसका शारीर हाड मांस का नहीं बल्कि कागज का बना हो, राघव कालसैनिको के telekinesis से ही उन्हें मात दे रहा था उस कब्रिस्तान मैं मनो इस समय प्रलय नाच रहा था
कुछ सौभाग्यशाली कालसैनिक को दरवाजे से बाहर भागने का मौका मिला भी लेकिन बाहर कदम रखते ही रमण और संजय ने अपनी भरी बन्दूको से उन्हें मारना शुरू कर दिया, कालसैनिक telekinesis के प्रयोग से पहले ही मौत के घाट उतर रहे थे वही कुछ कालसैनिक छिप कर वहा से भाग चुके थे
काफी सारे कालसैनिक अब लाश बन चुके थे और जो दो चार बचे थे उनसे राघव निपट रहा था और रूद्र सुशेन की तरफ बढ़ा तभी एक काला चोगा पहने स्त्री उसके और सुशेन के बीच आ गयी......
काफी सारे कालसैनिक अब लाश बन चुके थे और जो दो चार बचे थे उनसे राघव निपट रहा था और रूद्र सुशेन की तरफ बढ़ा तभी एक काला चोगा पहने स्त्री उसके और सुशेन के बीच आ गयी.....
रूद(क्रोध से)- सामने से हट जाओ लड़की!
सुशेन बैठा बैठा की अपनी भयानक पीड़ा भूलकर जोर से चिल्लाया
सुषाओं-हट जाओ सारा! ये तुम्हे भी मार डालेगा!
सारा(सुशेन को प्यार से देख कर)- तो मैं ख़ुशी ख़ुशी से तुम्हारे लिए जान दे दूंगी मेरी जान
इतना कहकर सारा ने telekinesis द्वारा वहा मौजूद एक भरी पत्थर उठाया और उसे रूद्र की तरफ फेका अब तक राघव का ध्यान भी इस लडाई की तरफ हो चूका था और वो भरी पत्थर जब तक रूद्र के करीब पहुच कर उसे हानी पहुचता तब तक रूद्र ने एक जोरदार प्रहार उस पत्थर पर किया और उसके टुकड़े हो गए, रूद्र की आँखों मैं अब और क्रोध उतर आया था
रूद्र-मेरा शारीर कोई आम मानव शारीर नहीं है बल्कि तरह तरहके धातुओ से बना है देखना चाह्तिहो मेरी ताकत
सुशेन(घबराकर)-न...नहीं..रूद्र! मुझे मार डालो जितनी बुरी मौत देनी हो दे दो लेकिन इसे छोड़ दो
रूद्र(सुशेन की तरफ देखकर)- तू हमें अपनों की मौत से होने वाले दर्द के बारे मैं बता रहा था न?तुम कालसैनिको ने मेरा निर्माता महेश को मारा और उनके भाई मेरे पिता सामान नरेशजी और उनकी बीवी को मारा तब मैं कुछ नहीं पर सका मगर आज मैं हैवानियत दिखाऊंगा और तुम लोग कुछ नहीं कर सकोगे, कोई एक भी यहाँ से बचकर जिन्दा नहीं जायेगा, तुम लोग हमारे समाज मैं कैंसर की तरफ हो जो हमारे बीच सामान्य लोगो की तरफ रहकर हमें ही नुक्सान पहुचाएंगे
तभी सारा ने एक बार फिर रूद्र पर हमला करने का सोचा वही राघव को मनो आगे होने वाली घटना का पूर्वानुमान हो गया था उसने रूद्र को आवाज़ लगायी “रूद्र रुको!!” पर रूद्र भी सारा की मंशा समझ चूका था और राघव रूद्र को रोक पता या सारा रूद्र पर हमला करती इससे पहले ही रूद्र ने उसे एक जोरदार थप्पड़ रसीद किया जिससे सारा की नाजुक गर्दन की हड्डिया कडकड़ा उठी, रूद्र तो ये अंदाजा भी नहीं लगा पाया था के क्रोध के वश मैं आकर उसने क्या कर दिया है वही राघव भी अफ़सोस मैं था की वो सही समय पर रूद्र को रोक नहीं पाया था, सारा की सासे थम चुकी थी और उसका निर्जीव शारीर धरती पर पड़ा था, धरती पर गिरने के बाद भी उसकी आँखें खुली हुयी थी जो एकटक सुशेन को प्यार से निहार रही थी
सुशेन-नहीं..! तुमने...तुमने उसे मार डाला! अब तुमलोगों मैं और मुझमे क्या अंतर रह गया है, जरा अपने आस पास देखो तुम दोनों की वजह से कब्रिस्तान मौत का कितना भयानक मंजर फैला हुआ है! तुम लोग हमें राक्षस बताते हो और खुद क्या हो, आज तुमने भी तो लोगो की जान ली है
राघव ने अपने चारो तरफ फैली लाशो को देखा, कुछ दिन पहले अगर उससे कोई कहता की वो क्रूर है तो वो नहीं मानता पर आज उसने कब्रिस्तान मैं जिस क्रूरता का प्रदर्शन किया था उससे वो खुद चकित था, उसे अपने और कालसैनिको मैं कोई अन्तेर नजर नहीं आ रहा था फिर भी उसने अपने बचाव मैं कह
राघव-तुम सब खुनी हत्यारे थे मौत तो तुम्हारा मुकद्दर थी
सुशेन-मान लिया की यहाँ सभी खुनी हत्यारे थे जिन्हें तुम लोगो ने मारा लेकिन हम सबके बीच ऐसा कोई था जो बिलकुल निर्दोष था, जिसने एक भी जान नहीं ली थी जिसे इस रूद्र ने मार डाला
रूद्र का कृत्रिम दिल जोरो से धड़क रहा था
रूद्र-तू किसकी बात कर रहा है??
सुशेन-मेरी बीवी सारा, वह १ महीने की गर्भवती थी और तुमने उसके साथ साथ उसके बच्चे की भी जान ले ली
रूद्र-या ये कहो की एक कालसैनिक को इस दुनिया मैं आने से रोक दिया जो किसी शैतान की भक्ति के नाम पर अपने पिता की तरफ तमाम निर्दोशो का खून बहाता
सुशेन-या फिर मुझ से बगावत करा अरुण की तरह बनता जो अपने की पिता के खिलाफ लड़ा था, तुमने पहले ही सोच लिया था के मेरा बच्चा मेरे जैसा बनेगा? अब तो स्वीकार कर लो की तुम्हारे हाथो एक मासूम का खून चढ़ गया है और तुम लोगो के हाथ भी किसी मासूम के खून से लाल हो चुके है
सुशेन की बातो से राघव और रूद्र बुरी तरफ हिल चुके थे और अब सुशेन इनकी बेबसी पर हस रहा था, काफी देर से बाहर खड़े रमण और संजय भी अंदर आ गए और उन्होंने बाकि बचे कालसैनिको को अपनी बन्दूको से मार डाला और राघव और रूद्र के करीब आये को बुत बने खड़े थे और सामने सुशेन जोर से हस रहा था जिसके बाद उन्होंने सुशेन को भी अपनी बन्दूक से छलनी कर दिया अब अब सुशेन भी उस कब्रिस्तान मैं पड़ी लासको मैं शामिल हो गया था और उन लाशो के बीच संजय राघव रमण और रूद्र खड़े थे, भीषण गोलीबारी चीखपुकार और भयानक रक्तपात के बाद कब्रिस्तान एक बार फिर शांत हो गया था
रमण ने पीछे से जाकर राघव के कंधे पर हाथ रखा और अपने भाई का स्पर्श समझते ही राघव उससे लिपट गया
संजय-मुझे नहीं पता था की तुम लोगो इतन क्रूरता से मार सकते हो
रूद्र-अब कोई फर्क नहीं पड़ता हम उन्हें आखरी कुर्बनि देने से नहीं रोक पाए, अब कात्दूत को जागने से कोई नहीं रोक सकता
संजय-क्या? हम तो बाहर थे अंदर का कुछ पता नहीं लगा यहाँ क्या हुआ था रूद्र?
रूद्र ने लोने की जंजीरों की तरफ इशारा करते हुए कहा “ये थी आखरी कुर्बानी”
रमण-उफ्फ, कितनी भयानक मौत दी है बिचारे को कौन था वो व्यक्ति?
राघव-नरेश जी
नरेश का नाम सुन कर संजय और रमण के पैरो तले जमीन खिसक गयी वो कभी उस लाश को देखते तो कभी रूद्र को जिसकी आँखों से अब आंसू बह रहे थे, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था के रूद्र को सांत्वना कैसे दि जाये कुछ समय बाद वो लोग रूद्र को शांत करने मैं सफल हुए और वहा से नरेश की लाश लेकर अंतिम संस्कार करने निकल गए संजय रूद्र के साथ आगे चल रहा था वही राघव रमण के साथ था
राघव-भईया रूद्र ठीक होगा न?
रमण-हम उसकी हालत का अंदाजा नहीं लगा सकते राघव नरेश ने उसे अब तक पाला था, भले ही वो कृत्रिम मानव है पर है एक २२ साल का लड़का ही,उससे आज उसका सब छीन गया है हम उसकी मनोस्तिथि नै समझ सकते बस सांत्वना दे सकते है, अब पता नहीं इस दुनिया का क्या होगा अगर कालदूत सच मैं आ गया तो........
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कही दूर हिन्द महासागर मैं दो मछुवारे मछली पकड़ने वाला जाल समुद्र मैं डाल रहे थे
रघु-आबे आज हम ज्यादा दूर निकल आये है चलो जल्दी से काम निपटाया जाए
हरिया-अबे रुक जा थोड़ी देर थोड़ी मछिलिया और हाथ लगने दे
रघु-अरे हाल देख मौसम का इतने आंधी तूफान मैं नव ज्यादा समय नहीं टिकेगी
तभी अचानक समुद्र मैं हलचल होने लगी, पानी का रंग भी धीरे धीरे बदलने लगा
हरिया- अरे! ये क्या हो रहा है
रघु-पता नहीं ऐसा लग रहा है मनो समुद्र से कोई चीज़ बाहर आ रही हो
हरिया-ये जरूर व्हेल जैसी कोई बडी मछली होगी वरना पानी मैं इतनी हलचल और कौन मचा सकता है?
रघु-पता नहीं! अरे देख! एक काला बड़ा शारीर पानी से बाहर आ रहा है
हरिया-हे भगवान! ये क्या है?
रघु(घबराते हुए)- ये.....ये कोई मछली नहीं है! ये तो शैतान का अवतार लगता है!
उसके बाद उन मछुवारो के सामने उनके जीवन का सबसे भयानक दृश्य उपस्तिथ हो चूका था, धीरे धीरे १०० फूट का एक प्राणी समुद्र से बाहर निकला जिसका सर एक नाग की भांति था शारीर मानव की तरह और पीठ पर ड्रैगन जिसे विशालकाय पंख लगे थे, इतने विशाल शारीर वाले प्राणी को देख कर वो नाविक बुरी तरह आतंकित हो चुके थे....
सभी लोग अब जेट मैं आ चुके थे, जेट के सामने की तरफ दो सीट लगी गयी थी जिसपर दो सफ़ेद हेलमेट पहने पायलट बैठे हुए थे, अंदर से जेट काफी बड़ा था और सभी के बैठने के लिए वहा पर्याप्त जगह थी
अंदर घुसते ही अविनाश ने पायलट से पूछा
अविनाश-और भाई रामदीन क्या हाल है?
रामदीन-अभीत तक तो सब बढ़िया ही है साब आगे कालदूत से भिड़ने के बाद का पता नहीं
अविनाश(हसकर)- चिंता मत करो इस आर्गेनाईजेशन मे रहने का यही तो फायदा है की मेंबर्स के मरने के बाद उनके परिवार की देख रेख आर्गेनाईजेशन करता है तो तुम्हारे बीवी बच्चे आराम से पल जायेंगे
रामदीन- क्या साब आप तो अभी से हमारे मरने की दुआ कर रहे है खैर अब जरा सीट पर जाकर बैठ जाइये वरना जेट इतनी स्पीड से उड़ेगा की सीधा छत फाड़ कर बाहर निकल जायेंगे
इसके बाद सभी अपनी अपनी जगह बैठ गए और उन्होंने सीटबेल्ट लगा ली और जेट चलना शुरू हुआ, पहले वो हवा मे धीरे धीरे उपर उठा और फिर एक निश्चित ऊचाई पर पहुच कर ‘सांय’ से हवा को काटता हुआ आकाश मैं उड़ने लगा और इसी के साथ रामदीन के एक बटन दबाया दिया जिससे जेट वापस अदृश्य हो चूका हा, हालाँकि सभी ने सीटबेल्ट पहन राखी थी फिर भी वो जेट की अपीड को महसूस कर पा रहे थे
रूद्र-तो अब क्या प्लान है?
रूद्र की बात सुनकर अविनाश ने मुस्कुराकर अपना पास रखा एक काला सा बैग निकाला
रमण-अरे! ये बैग तो तुम्हारे पास पहले नहीं था तो क्या तुम्हारी आर्गेनाईजेशन ने जेट के साथ इसे भी भेजा है
अविनाश-बिलकुल सही
बैग के अंदर एक गिटार के बराबर का यंत्र रखा हुआ था जो दिखने मैं बहुत ही खतरनाक लग रहा था उसने बहुत से छोटे छोटे खांचे बने हुए थे और अंत मैं एक ट्रिगर जिससे उसे संचालित किया जा सकता था
राघव-ये क्या है?
अविनाश-इसे हमलोग गेटवे कहते है
रमण-ऐसा यंत्र न पहले कभी देखा न सुना
चेतन-आप इसके बारे मैं जान भी नहीं सकते थे ये हिडन वारियर्स के उन गुप्त हथियारों मैं से है जो पूरी पृथ्वी को ख़तम करने की ताकत रखते है इसीलिए उन्हें दुनिया की नजरो से बचाकर रखना भी हमारी जिम्मेदारी है
संजय-लेकिन ये काम कैसे करता है?
चेतन-आपलोगों ने ब्लैक होल के बारे मैं सुना ही होगा
राघव-हा अंतरिक्ष वो विशेष हिस्सा जहा गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी सघन होती है जो ठोस वस्तुओ के साथ साथ प्रकाश को भी अपने भीतर कैद करने की क्षमता रखता है लेकिन उसका इससे क्या लेना देना
अविनाश-लेना देना इसीलिए की हमारा ये शस्त्र कुछ समय के लिए कृत्रिम ब्लैक होल उत्पन्न करने की क्षमता रखता है
रूद्र-पर ये कैसे संभव है अंतरिक्ष मैं तो ब्लैक होल किसी तारे से फटने से सुपरनोवा द्वारा उत्पन्न होता है तुमलोग भला इससे ब्लैक होल कैसे पैदा करोगे
चेतन-जब हमने इसके बारे मैं पहली बार सुना था की ये ब्लैक होल उत्पन्न करता है तो हम भी चौक गए थे लेकिन पहली बात तो ये है की ये एक कृत्रिम ब्लैक होल पैदा करता है जिसकी वस्तुओ को अपने भीतर खींचने की क्षमता असली से बहुत कम होती है और दूसरी बात की ये ब्लैक होल मात्र कुछ क्षणों के लिए प्रकट होता है जिससे कुछ ज्यादा नुकसान नहीं फ़ैल सकता, आइंस्टीन की थ्योरी of रिलेटिविटी के अनुसार अगर हम किसी स्पेस को मत्तेर द्वारा इतना अधिक डिसटॉर्ट करदेते है की सघन गुरुत्वाकर्षण के कारण प्रकाश भी उस जगह पर कैद होकर रह जाता है तब उस जगह पर ब्लैक होल उत्पन्न करना संभव है बस इसी सिद्धांत पर ये यंत्र कम करता है, कालदूत बहुत ज्यादा शक्तिशाली हो सकता है पर अगर हम इस यंत्र का उपयोग उसे ब्लैक होल के अंदर खींचने के लिए करे तो क्या वो उसे रोक पायेगा? शायद नहीं क्युकी शक्तिशाली से शक्तिशाली प्रन्नी या उर्जा भी ब्लैक होल का विरोध नहीं कर सकती
रमण-क्या तुमलोगों ने पहले भी इसका इस्तमाल किया है कभी?
अविनाश-नहीं उसका कभी मौका नहीं मिला क्युकी इतनी खतरनाक मुसीबत कभी हिडन वारियर्स के सामने आयी ही नहीं की इतने उच्च कोटि के हथीयार का प्रयोग किया जा सके लेकिन ये पूरी तरह काम करता है इसकी गारंटी हम लेते है
रमण-बात काम करने की नहीं है सवाल तो ये है की इससे पैदा हुआ ब्लैक होल वापिस नष्ट कैसे होगा?
रमण का सवाल वाजिब था जिसे सुन कर चेतन और अविनाश एकदूसरे का मुह ताकने लगे
रमण-तो तुमलोग ब्लैक होल उत्पन्न करोगे लेकिन इसे बंद करने का तरीका तुम्हारे पास नहीं है
चेतन-वो अपने आप ही कुछ क्षणों के लियेखुलकर बंद हो जायेगा.......जहा तक हमें लगता है
रूद्र-पक्के तौर पर कहो चेतन
अविनाश-देखिये मैं आप सबकी चिंता समझ रहा हु लेकिन ये हमारे पास आखरी मौका है कालदूत को रोकने का हम हिडन वारियर्स आज तक भुत प्रेत दायाँ चुड़ैल आदि इत्यादि से लडे है पर अपने हथियारों के बल पर उन्हें हराया भी है लेकिन इतने शक्तिशाली शत्रु से हम्मर कभी सामना नहीं हुआ है, हमारे साथी राहुल की थथ्योरी के हिसाब से ये कृत्रिम ब्लैक होल कुछ मिनटों के लिए खुलेगा और अपने आसपास की चीज़ खिंच कर बंद हो जायेगा
रमण(क्रोधित होकर)- थ्योरी! यहाँ मानवता डाव पर लगी है और तुम्हे एक थ्योरी पर भरोसा है? क्या पता ब्लैक होल बंद न हो और पूरी पृथ्वी को अपने अंदर खिंच ले
चेतन-पर ऐसे हमारे पास एक मौका तो है कालदूत के होते हुए पृथ्वी वैसे भी सुरक्षित नहीं है
राघव-बकवास मत करो चेतन ये दो धारी तलवार पर चलने के सामान है क्या तुम्हे मुझ्कर और रूद्र पर भरोसा नहीं है, तुम हरामी ताकत जानते हो भले ही कालदूत हमसे ज्यादा शक्तिशाली है पर अगर हम साथ है तो उसे हरा सकते है हथीयार रख दो हम कोई दूसरा रास्ता निकालेंगे
शिवानी-तुम्हे हमारी बात कर भरोसा नहीं है
राघव-तुमपर भरोसा है पर इस हथीयार पर नहीं है
जेट गुजरात पहुचने वाला था और साथ ही इन लोगो की आपसी बहस ने भी विकराल रूप धारण कर लिया था
चेतन-हमारे पास दुनिया को बचाने का ये आखरी विकल्प है तुम लोग समझ क्यों नहीं रहे हो
राघव-दुनिया को बचाने के लिए उसे ख़तम करने वाले हथीयार का इस्तमाल कभी आखरी विकल्प नहीं हो सकता, दुनिया को बचाने के कोई और रास्ता खोज लिया जाएगा
चेतन-जब तक हम दूसरा रास्ता खोजेंगे कालदूत पृथ्वी को नरक बना देगा
अविनाश-बस बहुत हुयी बहस! यहा हमें पता नहीं है की कालदूत कितनी तभी मचा चूका है और तुम लोग दुसरे विकल्प की बात कर रहे हो? हम यही हथीयार इस्तमाल करेंगे और तुम ल्लोग हमें नहीं रोक सकते
राघव(गुस्से से)- अगर यही बात है तो ठीक है फिर करो मुझसे मुकाबला! एक कालदूत की दुनिया को नष्ट करने पर आमदा है लेकिन तुम्हारा हथीयार उम्मीद देने के बजाय रही सही उम्मीद भी ख़तम कर देगा मैं अभी इसे उठाकर इस जेट से बाहर फेक देता ही
राघव ने अपना सीट बेल्ट खोला और अविनाश की तरफ बढा तभी अविनाश ने अपनी जेब से एक छोटा सा पेन जैसा कुछ निकला और उसपर लगा बटन दबाया जिससे एक विशेष प्रकार का धातुई जल निकला और उसने राघव को जकड लिया और उसे सीट से बाँध दिया जिसे देख कर रूद्र भी तैश में आ गया और उसने अविनाश पर प्रहार करना चाहा पर उसके पहले वो भी उसी धातुई जाल मैं बंद चूका था उर साथ ही संजय और रमण भी
अविनाश-ये नायलो स्टील का जाल है हालाँकि तुम्हारे अंदर असीमित ताकत है पर तुम्हे भी इससे निकलने मैं काफी मेहनत करनी पड़ेगी, हम ऐसा नहीं करना चाहते थे पर तुमने हमको मजबूर कर दिया, शायद तुमने ध्यान नहीं दिया मगर हमारा जेट इस वक़्त कच्छ के उपर ही है, अब हम पैराशूट लेकर निकलते है, तुमलोग हमारे साथ आ सकते थे लेकिन तुमने हमारे खिलाफ जाना चुना अब हमारे दोनों पायलट्स तुम्हे आचे से पुरे गुजरात की सवारी करा देंगे, हैप्पी जर्नी.
अविनाश और चेतन ने अपना पैराशूट बैग लिया और विमान का द्वार खुल गया और वो दोनों निचे कूद गए, सबसे अंत मैं द्वार के पास शिवानी पहुची और उसने कूदने से पहले एक नजर राघव की तरफ डाली और बोली
शिवानी-सॉरी राघव पर ये जरुरी है
राघव(चिल्लाते हुए)- तुम लोग पागलपन करने जा रहे हो
पर तब तक शिवानी कूद चुकी थी
रमण-कोई फायदा नहीं है राघव हमें पहले इस जाल और जेट से निकलने पर ध्यान देना चाहिए
अब राघव का गुस्सा सातवे आसमान पर था और रूद्र भी अपनी पूरी ताकत लगा रहा था उस जाल से निकलने के लिए, वो जाल तो कही स नही टुटा लेकिन पूरी सीट ही उखड गयी और सीट उखाड़ते ही जाल की पकड़ उनपर ढीली पड़ने लगी फिर ऐसे ही राघव और रूद्र ने संजय और रमण को जल से छुडवाया और कुल पांच मिनट मे वो जाल से आजाद थे
बिना वक़्त गवाए रूद्र पायलट के पास पंहुचा और गुस्से से बोला
रूद्र-अगर पांच मिनट मे हम वहा नहीं पहुचे जहा वो तीनो लोग पैराशूट लेकर कूदे है तो मैं अपने हाथो से तुम दोनों की खोपड़ी पिचका दूंगा
तभी वहा राघव भी पहुच गया और उनको क्रोध से तमतमाते देख एक पायलट बोला
पायलट-रुको हम आपको वही पंहुचा देंगे जहा वो लोग उतरे है
संजय-ये उनलोगों ने बिलकुल ठीक नहीं किया अब ऍम उनको कहा ढूंढेगे
रमण-मुझे इनसे बातचीत के दौरान पता चला था के ये अपने साथी राहुल के होटल MKB मे मिलने वाले थे जो कच्छ के रण के आसपास ही है हमें भी वही जाना होगा
राघव-बस अब ये खेल बहुत हो गया अब जो जंग होगी वो आखरी होगी भले ही मुझे अपनी आखरी सास तक लड़ना पड़े लेकिन मैं कालदूत का राज इस धरती पर कभी कायम नहीं होने दूंगा........