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Fantasy कालदूत(पूर्ण)

Adirshi

Royal कारभार 👑
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भाग २४



सुशेन ने दुसरे कालसैनिक को इशारा किया उर उसने पास ही पड़ा एक केरोसिन का डब्बा telekinesis द्वारा नरेश के पिरे शारीर पर छिड़क दिया और माचिस से आग लगा दी, इस दौरान बाकि कालसैनिको का मंत्रोच्चारण काफी तेज हो गया था और नरेश को अत्याधिक्क पीड़ा का अनुभव हो रहा था, उसका शारीर जल उठा था वो चीख रहा था लेकिन उससे भी बुरी तरह रूद्र चीख रहा था वही राघव अपने पुरे प्रयास के बाद भी सुशेन की मजबूत पकड़ से नहीं निकल पा रहा था और नरेश को जलता देखने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा था.......

जल्द ही नरेश ने रहा सहा प्रतिरोध करना भी बंद कर दिया, उसके शारीर की सारी हरकते और तड़प शांत हो चुकी थी, अब तक हलकी पड़ चुकी बारिश अब एकबार फिर तेज हो गयी थी और अब तक बुरी तरह गल चुके उनके शारीर को जलाती आग भी धीरे धीरे बारिश से बुझने लगी थी लेकिन आग बुझने तक वो शारीर शारीर नहीं रहा बल्कि जंजीरों मैं लटका मांस का एक लोथड़ा बन चूका था, आखरी कुर्बानी की प्रक्रिया संपन्न हो चुकी थी, रूद्र बस एकटक उस जगह की तरफ देखे जा रहा था जहा कुछ समय पहले नरेश जी जीवित मौजूद थे,

सुशेन ने उन दोनों की गर्दन छोड़ दी, रूद्र घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया वही राघव अर्धबेहोशी की हालत मैं पहुच चूका था और जमीन पर लेट रहा था और अपनी सास नोर्मल कर रहा था,

रूद्र जमीन पर बैठा नरेश को लाश को एकटक देख रहा था, पहले इनलोगों ने उसके निर्माता को मारा था फिर जिस व्यक्ति ने उसे पिता की तरह पाला उसे इन कालसैनिको ने इतनी भयानक मौत दी थी, रूद्र की पूरी दुनिया ही उजाड़ गयी थी और जब किसी के साथ ऐसा होता है तो उसे दुःख नहीं होता बल्कि उसका पूरा दिमाग ही कुछ समय के लिए शुन्य मैं चला जाता है, रूद्र के साथ ऐसा ही हुआ था उसके रोना नहीं आ रहा था, सही कहा जाये तो उसे कुछ भी महसूस होना बंद हो चूका था,

नरेश की मौत से वो भी इतनी भयानक मौत से राघव भी शोक मैं डूबा हुआ था कही न कही उसे ऐसा लग रहा था के ये सब उसी के कारण हुआ है क्यों वो अपनी शक्तिया सही से इस्तमाल नहीं कर पाया, उसने मान ही लिया थाए ये जंग वो हार चुके थे और अब कुछ नहीं बचा था और धीरे धीरे राघव की ऑंखें बंद होने लगी

वही सुशेन कुटिल और विजयी मुस्कान लेकर खड़ा था, गोले मैं खड़े कालसैनिको के मंत्रोच्चारण बंद हो चुके थे, कालदूत के जागने की प्रक्रिया पूर्ण होने की आपर ख़ुशी उन सबके चेहरे पर देखी जा सकती थी

सुशेन- हा हा हा...प्रक्रिय पूरी हुयी, अब १००० साल का इंतज़ार ख़त्म! हमारे देवता अब इस नापाक धरती पर अपना कदम रखेंगे, सभी धर्मो के लोग अब सिर्फ कालदूत की पूजा करेंगे और को विरोध करेगा उसे ऐसी ही भयानक मौत दी जाएगी और सबसे पहले इन्ही लोगो की बारी है जिन्होंने कालदूत के माहन कार्य मैं बाधा बनने की कोशिश की है

रूद्र के मुह से खून रिस रहा था और उसके कपडे जगह जगह से फटे हुए थे पर अब भी वो शुन्य मैं था, उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी वही राघव ने जैसे ही अपनी आंखे बंद की उसे उसके मस्तिष्क मैं उसके दादा की छवि उभर्तोई दिखी मनो वो उससे कह रहे हो की ये अंत नहीं है अभी तो और भी काम करने बाकि है, अब राघव की चेतना लौटने लगी थी और उसमे एक नई हिम्मत का संचार हुआ था, राघव की हालत भी रूद्र से अलग नहीं थी चोटे उसे भी आयी थी लेकिन वो दोबारा उठ खड़ा हुआ, अब उसे दर्द महसूस नहि हो रहा था और शारीर मैं ये नई उर्जा न मनो प्रवाह बह रहा हो, इस बार राघव के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे न डर न गुस्सा न दुःख, उसकी हिम्मत देख कर रूद्र भी अपनी चेतना मैं वापिस आया और एक बार फिर वो कालसैनिको से लड़ने के लिए उठ खड़ा हुआ

अभी तक सुशेन और कालसैनिको का ध्यान इनपर नहीं गया था सुशेन कालदूत की आज़ादी की ख़ुशी मन रहा था

सुशेन-हा हा, कालसैनिको कुछ ही समय मैं हमारे भगवान हमारे बीच होंगे उसके पहले हमें इन बद्जतो को इनके किये की सजा देनी है सबसे पहले तो ये मरेगा जिसपर telekinesis असर नहीं करती, इसे मैं अपने हाथो से मारूंगा और उसके बाद इसके साथ आया हुआ लड़का

तभी पीछे से राघव से सुशेन को आवाज दी जिससे सुशेन का ध्यान उन दोनों पर गया

राघव-ओ.....तट्टो के सौदागर, ये लडाई अभी ख़त्म नहीं हुयी है और भेंचोद अगर मरना ही है तो कमसे कम तुमको मार के मरेंगे मादरजात.....

राघव की बात और उसके मुह से अपने लिए गाली सुनके सुशेन का गुस्सा भड़क रहा था मगर जब तक वो कुछ करता राघव ने उसकी तरफ दौड़ लगा दी और राघव इतनी तेजी से सुशेन की और लपका की किसी को समझ ही नहीं आया और राघव मे सुशेन पर अपने मुक्को की बारिश कर दी पर कालदूत की दी हुयी शक्तियों की वजह से सुशेन राघव के हमले को भाप गया और उसने भी अब राघव का प्रतिरोध करना शुरू कर दिया अब लग रहा था की दो टक्कर के प्रतिद्वंदी लड़ रहे है वही जब इनदोनो के बीच कालसैनिको ने हस्तक्षेप करने ने कोशिश की तो उनके बीच रूद्र खड़ा था

लड़ते लड़ते सुशेन ने एक जोरदार प्रहार राघव पर किया जिससे वो कुछ फूट पीछे सरक गया मगर इतने मैं रूद्र सुशेन से लड़ने उसके सामने थे, सुशेन ने फिर रूद्र को घुसा मारने की कोशिश की लेकिन इस बार रूद्र ने सुशेन के वार को अपने हाथ से रोक लिया, ये देख कर सुशेन को बेहद हैरानी हुयी, उसे कुछ देर पहले अपने शारीर मैं जो असीम शक्ति थी वो अब कम होती महसूस हो रही थी, उसकी आँखों की पुतलिया जो अब तक लाल थी वो सामान्य हो रही थी, अपने अंदर इतने शारीरिक परिवर्तन देख कर अब सुशेन घबराने लगा था

सुशेन-ये...ये क्या हो रहा है? मेरी शक्तिया कहा चली गयी?

रूद्र-तुम्हारा इश्वर तो स्वार्थी निकला रे...जबतक तुमसे काम था तबतक तुम्हे उसने शक्तिया दी और जैसे ही प्रक्रिया पूर्ण हुयी शक्ति वापिस ले ली?

सुशेन से चेहरे पर डर साफ़ देखा जा सकता था रूद्र ने उसके हाथ को जोर से भींच दिया जिससे उसके हाथ की हड्डीया टूट हाई और सुशेन अपना हाथ लेकर वही बैठ गया, ये घटना देख कर बाकि कालसैनिको ने वह से भागने की कोशिश की लेकिन रूद्र और राघव अब उन्हें छोड़ने के मूड मैं बिलकुल नहीं थे

राघव ने अपनी मानसिक शक्तियों के उपयोग से कालसैनिको के सोचने और भागने की गतिको धीमा कर दिया था और जल्द ही पुरे वातावरण कालसैनिको की चीख पुकार से दहल रहा था, रूद्र और राघव एक एक कालसैनिक को तेजी से मार रहे थे

रूद्र ने एक कालसैनिक की छाती के आरपार अपना हाथ ऐसे निकाल दिया मनो उसका शारीर हाड मांस का नहीं बल्कि कागज का बना हो, राघव कालसैनिको के telekinesis से ही उन्हें मात दे रहा था उस कब्रिस्तान मैं मनो इस समय प्रलय नाच रहा था

कुछ सौभाग्यशाली कालसैनिक को दरवाजे से बाहर भागने का मौका मिला भी लेकिन बाहर कदम रखते ही रमण और संजय ने अपनी भरी बन्दूको से उन्हें मारना शुरू कर दिया, कालसैनिक telekinesis के प्रयोग से पहले ही मौत के घाट उतर रहे थे वही कुछ कालसैनिक छिप कर वहा से भाग चुके थे

काफी सारे कालसैनिक अब लाश बन चुके थे और जो दो चार बचे थे उनसे राघव निपट रहा था और रूद्र सुशेन की तरफ बढ़ा तभी एक काला चोगा पहने स्त्री उसके और सुशेन के बीच आ गयी......
 

KEKIUS MAXIMUS

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nice update ..sushen kamjor ho gaya achanak 🤔..kaldut ne apni power vaapas le li kya usse ..

bahut se sainik maare gaye raghav aur rudra ke haatho 🤩..

aur ye aurat kaun hai jo rudra ke saamne aa gayi 🤔..
kahi ye wo to nahi jo sushen ke saath rehti hai 🤔..
yaa koi jaan pehchan ki ..
 

ashish_1982_in

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भाग २४



सुशेन ने दुसरे कालसैनिक को इशारा किया उर उसने पास ही पड़ा एक केरोसिन का डब्बा telekinesis द्वारा नरेश के पिरे शारीर पर छिड़क दिया और माचिस से आग लगा दी, इस दौरान बाकि कालसैनिको का मंत्रोच्चारण काफी तेज हो गया था और नरेश को अत्याधिक्क पीड़ा का अनुभव हो रहा था, उसका शारीर जल उठा था वो चीख रहा था लेकिन उससे भी बुरी तरह रूद्र चीख रहा था वही राघव अपने पुरे प्रयास के बाद भी सुशेन की मजबूत पकड़ से नहीं निकल पा रहा था और नरेश को जलता देखने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा था.......

जल्द ही नरेश ने रहा सहा प्रतिरोध करना भी बंद कर दिया, उसके शारीर की सारी हरकते और तड़प शांत हो चुकी थी, अब तक हलकी पड़ चुकी बारिश अब एकबार फिर तेज हो गयी थी और अब तक बुरी तरह गल चुके उनके शारीर को जलाती आग भी धीरे धीरे बारिश से बुझने लगी थी लेकिन आग बुझने तक वो शारीर शारीर नहीं रहा बल्कि जंजीरों मैं लटका मांस का एक लोथड़ा बन चूका था, आखरी कुर्बानी की प्रक्रिया संपन्न हो चुकी थी, रूद्र बस एकटक उस जगह की तरफ देखे जा रहा था जहा कुछ समय पहले नरेश जी जीवित मौजूद थे,

सुशेन ने उन दोनों की गर्दन छोड़ दी, रूद्र घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया वही राघव अर्धबेहोशी की हालत मैं पहुच चूका था और जमीन पर लेट रहा था और अपनी सास नोर्मल कर रहा था,

रूद्र जमीन पर बैठा नरेश को लाश को एकटक देख रहा था, पहले इनलोगों ने उसके निर्माता को मारा था फिर जिस व्यक्ति ने उसे पिता की तरह पाला उसे इन कालसैनिको ने इतनी भयानक मौत दी थी, रूद्र की पूरी दुनिया ही उजाड़ गयी थी और जब किसी के साथ ऐसा होता है तो उसे दुःख नहीं होता बल्कि उसका पूरा दिमाग ही कुछ समय के लिए शुन्य मैं चला जाता है, रूद्र के साथ ऐसा ही हुआ था उसके रोना नहीं आ रहा था, सही कहा जाये तो उसे कुछ भी महसूस होना बंद हो चूका था,

नरेश की मौत से वो भी इतनी भयानक मौत से राघव भी शोक मैं डूबा हुआ था कही न कही उसे ऐसा लग रहा था के ये सब उसी के कारण हुआ है क्यों वो अपनी शक्तिया सही से इस्तमाल नहीं कर पाया, उसने मान ही लिया थाए ये जंग वो हार चुके थे और अब कुछ नहीं बचा था और धीरे धीरे राघव की ऑंखें बंद होने लगी

वही सुशेन कुटिल और विजयी मुस्कान लेकर खड़ा था, गोले मैं खड़े कालसैनिको के मंत्रोच्चारण बंद हो चुके थे, कालदूत के जागने की प्रक्रिया पूर्ण होने की आपर ख़ुशी उन सबके चेहरे पर देखी जा सकती थी

सुशेन- हा हा हा...प्रक्रिय पूरी हुयी, अब १००० साल का इंतज़ार ख़त्म! हमारे देवता अब इस नापाक धरती पर अपना कदम रखेंगे, सभी धर्मो के लोग अब सिर्फ कालदूत की पूजा करेंगे और को विरोध करेगा उसे ऐसी ही भयानक मौत दी जाएगी और सबसे पहले इन्ही लोगो की बारी है जिन्होंने कालदूत के माहन कार्य मैं बाधा बनने की कोशिश की है

रूद्र के मुह से खून रिस रहा था और उसके कपडे जगह जगह से फटे हुए थे पर अब भी वो शुन्य मैं था, उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी वही राघव ने जैसे ही अपनी आंखे बंद की उसे उसके मस्तिष्क मैं उसके दादा की छवि उभर्तोई दिखी मनो वो उससे कह रहे हो की ये अंत नहीं है अभी तो और भी काम करने बाकि है, अब राघव की चेतना लौटने लगी थी और उसमे एक नई हिम्मत का संचार हुआ था, राघव की हालत भी रूद्र से अलग नहीं थी चोटे उसे भी आयी थी लेकिन वो दोबारा उठ खड़ा हुआ, अब उसे दर्द महसूस नहि हो रहा था और शारीर मैं ये नई उर्जा न मनो प्रवाह बह रहा हो, इस बार राघव के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे न डर न गुस्सा न दुःख, उसकी हिम्मत देख कर रूद्र भी अपनी चेतना मैं वापिस आया और एक बार फिर वो कालसैनिको से लड़ने के लिए उठ खड़ा हुआ

अभी तक सुशेन और कालसैनिको का ध्यान इनपर नहीं गया था सुशेन कालदूत की आज़ादी की ख़ुशी मन रहा था

सुशेन-हा हा, कालसैनिको कुछ ही समय मैं हमारे भगवान हमारे बीच होंगे उसके पहले हमें इन बद्जतो को इनके किये की सजा देनी है सबसे पहले तो ये मरेगा जिसपर telekinesis असर नहीं करती, इसे मैं अपने हाथो से मारूंगा और उसके बाद इसके साथ आया हुआ लड़का

तभी पीछे से राघव से सुशेन को आवाज दी जिससे सुशेन का ध्यान उन दोनों पर गया

राघव-ओ.....तट्टो के सौदागर, ये लडाई अभी ख़त्म नहीं हुयी है और भेंचोद अगर मरना ही है तो कमसे कम तुमको मार के मरेंगे मादरजात.....

राघव की बात और उसके मुह से अपने लिए गाली सुनके सुशेन का गुस्सा भड़क रहा था मगर जब तक वो कुछ करता राघव ने उसकी तरफ दौड़ लगा दी और राघव इतनी तेजी से सुशेन की और लपका की किसी को समझ ही नहीं आया और राघव मे सुशेन पर अपने मुक्को की बारिश कर दी पर कालदूत की दी हुयी शक्तियों की वजह से सुशेन राघव के हमले को भाप गया और उसने भी अब राघव का प्रतिरोध करना शुरू कर दिया अब लग रहा था की दो टक्कर के प्रतिद्वंदी लड़ रहे है वही जब इनदोनो के बीच कालसैनिको ने हस्तक्षेप करने ने कोशिश की तो उनके बीच रूद्र खड़ा था

लड़ते लड़ते सुशेन ने एक जोरदार प्रहार राघव पर किया जिससे वो कुछ फूट पीछे सरक गया मगर इतने मैं रूद्र सुशेन से लड़ने उसके सामने थे, सुशेन ने फिर रूद्र को घुसा मारने की कोशिश की लेकिन इस बार रूद्र ने सुशेन के वार को अपने हाथ से रोक लिया, ये देख कर सुशेन को बेहद हैरानी हुयी, उसे कुछ देर पहले अपने शारीर मैं जो असीम शक्ति थी वो अब कम होती महसूस हो रही थी, उसकी आँखों की पुतलिया जो अब तक लाल थी वो सामान्य हो रही थी, अपने अंदर इतने शारीरिक परिवर्तन देख कर अब सुशेन घबराने लगा था

सुशेन-ये...ये क्या हो रहा है? मेरी शक्तिया कहा चली गयी?

रूद्र-तुम्हारा इश्वर तो स्वार्थी निकला रे...जबतक तुमसे काम था तबतक तुम्हे उसने शक्तिया दी और जैसे ही प्रक्रिया पूर्ण हुयी शक्ति वापिस ले ली?

सुशेन से चेहरे पर डर साफ़ देखा जा सकता था रूद्र ने उसके हाथ को जोर से भींच दिया जिससे उसके हाथ की हड्डीया टूट हाई और सुशेन अपना हाथ लेकर वही बैठ गया, ये घटना देख कर बाकि कालसैनिको ने वह से भागने की कोशिश की लेकिन रूद्र और राघव अब उन्हें छोड़ने के मूड मैं बिलकुल नहीं थे

राघव ने अपनी मानसिक शक्तियों के उपयोग से कालसैनिको के सोचने और भागने की गतिको धीमा कर दिया था और जल्द ही पुरे वातावरण कालसैनिको की चीख पुकार से दहल रहा था, रूद्र और राघव एक एक कालसैनिक को तेजी से मार रहे थे

रूद्र ने एक कालसैनिक की छाती के आरपार अपना हाथ ऐसे निकाल दिया मनो उसका शारीर हाड मांस का नहीं बल्कि कागज का बना हो, राघव कालसैनिको के telekinesis से ही उन्हें मात दे रहा था उस कब्रिस्तान मैं मनो इस समय प्रलय नाच रहा था

कुछ सौभाग्यशाली कालसैनिक को दरवाजे से बाहर भागने का मौका मिला भी लेकिन बाहर कदम रखते ही रमण और संजय ने अपनी भरी बन्दूको से उन्हें मारना शुरू कर दिया, कालसैनिक telekinesis के प्रयोग से पहले ही मौत के घाट उतर रहे थे वही कुछ कालसैनिक छिप कर वहा से भाग चुके थे


काफी सारे कालसैनिक अब लाश बन चुके थे और जो दो चार बचे थे उनसे राघव निपट रहा था और रूद्र सुशेन की तरफ बढ़ा तभी एक काला चोगा पहने स्त्री उसके और सुशेन के बीच आ गयी......
super awesome update bhai maza aa gya
 

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प्रस्तावना

हमारी दुनिया भिन्न भिन्न प्रकार के लोगो से भरी है. यहाँ हर इंसान की अपनी एक विचारधारा है, हर किसी का सोचने का अपना एक नजरिया है पर यहाँ बात इसकी नहीं है, यहाँ बात हम दो क़िस्म के लोगो की करेंगे जिन्हे आस्तिक और नास्तिक कहते है, आस्तिक माने वो जो भगवान् मैं मानते है उसका अस्तित्व स्वीकारते है और नास्तिक वो जो ये मान के चलते है के भगवान् जैसा कुछ नहीं होता, तार्किक रूप से ये बात भी सत्य है के जिसे हमने कभी अपनी आँखों से देखा ही नहीं उसका अस्तित्व कैसे स्वीकारे,

मेरा मानना ये है के हरामी इर्द गिर्द सकारात्मक एवं नकारात्मक ऊर्जा हर समय मौजूद रहती है और किस ऊर्जा का प्रभाव हम पर अधिक पड़ेगा ये सर्वस्वी हमारे विचार और हमारे आस पास के माहौल पर निर्भर करता है...... और भगवान् इसी सकारात्मक ऊर्जा को कहते है जो प्रतिपल हमें आश्वासित और सुरक्षित महसूस कराती है... खैर हमारा मुद्दा भगवान है या नहीं ये नहीं है

हम सदियों से अपने बड़ो से कहानिया सुनते आ रहे है देव दानवो के युद्ध की, अच्छाई पर बुराई की जीत की पर क्या हो अगर ये कहानिया महज कहानिया न होकर सत्य हो और आज भी कोई दानव देवो से, समूची मानवजाति से प्रतिशोध लेने के लिए तड़प रहा हो और उसे वो मौका मिल जाये जिसमे वो समूची पृथ्वी का विनाश कर दे

यह कहानी ऐसे ही एक दानव की है को अपनी लाखो वर्ष की कैद से मुक्ति पाना चाहता है और इस ब्रह्माण्ड पर अपना अधिराज्य जमाना चाहता है और उसे रोकने के लिए जरुरत है शास्त्र शस्त्र और विज्ञान के ज्ञाता की जो अपने साथ साथ सारी मानवजाति और इस ब्रह्मांडकी रक्षा कर सके

यह कहानी उस महारथी और उस दानव की है......


उनके अंतिम युद्ध की है.......
Achi shuruwaat hai
 

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भाग 1

आज से करीब १०००-१२०० वर्ष पूर्व (देखो वैसे मुझे घंटा आईडिया नहीं है के १००० साल पहले क्या माहौल था लोगो का रेहन सेहन कैसा था बोलीभाषा क्या हुआ करती थी इसीलिए जहा तक दिमाग के घोड़े दौड़ रहे थे उतना लिख रहा हु )

हिन्द महासागर

इस वक़्त हिन्द महासागर मैं कुछ ३-४ नावे चल रही थी, देखते ही पता चलता था के मुछवारो की नाव है जो वह मछली पकड़ने का अपना काम कर रहे थे, वैसे तो नाव एकदूसरे से ज्यादा दूर नहीं थी पर उन्होंने अपने बीच पर्याप्त अंतर बनाया हुआ था,

ये कुछ जवान लड़के थे जो पैसा कमाने और मछली पकड़ने की होड़ मैं आज समुन्दर मैं कुछ ज्यादा ही दूर निकल आये थे, सागर के इस और शायद ही कोई आता था क्युकी इस भाग मैं अक्सर समुद्र की लहरें उफान पर रहती थी इसीलिए ये लड़के यहां तो गए थे पर अब घबरा रहे थे पर आये है तो बगैर मछली पकडे जा नहीं सकते थे इसीलिए जल्दी जल्दी काम निपटा के लौटना चाहते थे

पर जब मछलिया जाल मैं फसेंगी तभो तो कुछ होगा न अब उसमे जितना समय लगता है उतना तो लगेगा ही

"हम तो पहले ही बोले थे यहाँ नहीं आते है यहाँ अक्सर तूफान उठते रहते है हमारा तो जी घबरा रहा है" उनमे से एक लड़का दूसरी नाव वाले से बोला, हवा काफी तेज चल रही थी तो वो चिल्ला के बोल रहा था

"ए चुप बिरजू साले को पैसा भी कामना है और जोखिम भी नहीं लेना है " दूसरे लड़के ने उसे चुप कराया

"बिरजू सही कह रहा है पवन मेरे दादा भी कहते है के सगर का ये भाग खतरनाक है उन्होंने तो ये भी बताया था के ये इलाका ही शापित है" तीसरा बाँदा भी अब बातचीत मैं शामिल हो गया

"इसीलिए तो मैं कह रहा हु के जितनी मछलिया मिल गयी है लेके के चलते है मुझे मौसम के आसार भी ठीक नहीं लग रहे " बिरजू ने कहा

बिरजू की बात के पवन कुछ बोलना छह रहा था के "अरे जाने दे से पवन ये बिरजू और संजय तो फट्टू है सालो को दिख नहीं रहा के यहाँ कितनी मछलिया जाल मैं फास सकती है कमाई ही कमाई होगी और अगर कोई बड़ी मछली फांसी तो राजाजी को भेट कर देंगे हो सकता है कुछ इनाम मिल गए " ये पाण्डु था चौथा बंदा

"सही बोल रहा है तू पाण्डु " पवन

वो लोग वापिस अपने काम मैं जुट गए , देखते देखते दोपहर हो गयी और अब तक उन चारो ने काफी मछलिया पकड़ ली थी और अब वापिस जाने मैं जुट गए थे

"बापू काफी खुश होगा इतनी मछलिया देख के " बिरजू ख़ुशी से बोला

"हमने तो पहले ही कहा था इस और आने अब तो रोज यही आएंगे मछली पकड़ने " पाण्डु बोल पड़ा

तभी मौसम मैं बदलाव आने सुरु हो गए, धीरे धीरे मौसम बिगड़ने लगा और इस प्रकार के मौसम मैं नाव चलना मुश्कुल हो रहा था, हवा की गति भी अचानक से काफी तीव्र हो गयी थी, वो चारो नाविक लड़के परेशानी की हालत मैं थे के इस तूफ़ान से कैसे बचे, किनारा अब भी काफी दूर था , तभी उन्हें समुद्र के बीच से कही से हवा का बवंडर अपनी और आता दिखा जिसकी तेज गति से पानी भी १३-१४ फुट तक ऊपर उठ रहा था, वो चारो घबरा गए और मन ही मन भगवन को याद करने लगे

देखते ही देखते उस बवंडर ने उनकी नावों को अपनी चपेट मैं ले लिया पर इसके पहले ही वो चारो पनि मैं कूद चुके थे,

वैसे तो वो तैरना जानते थे पर इस तूफ़ान मैं उफनती सागर की लेहरो मैं तैरना आसान काम नहीं था, कभी मुश्किल से थोड़ा ही तेरे थे के उस बवंडर से उन्हें अपने अधीन कर लिया और वे चारो सागर की गहराइयो मैं गोता लगाने लगे

बिरजू उन सब मैं सबसे अच्छा तैराक था इसीलिए वो थोड़े लम्बे समय तक तैरता रहा जबकि उसके बाकि साथी तो पहले ही सागर की गहराइयो मैं खो चुके थे

धीरे धीरे बिरजू के सीने पे पानी का दबाव पड़ने लगा और वो भी डूबने लगा उसकी आँखें बंद होने लगी थी......

कुछ समय बाद बिरजू की आँखें खुली तो उसने अपने आप को सागर की गहराइयो मैं आया पर आश्चर्य उसे सास लेने मैं कोई कठनाई नहीं हो रही थी पर जब उसने सामने देखा तो उसके होश उड़ गए थे

उसके सामने विशालकाय ३० फुट ऊचा कोई व्यक्ति जंजीरो से बंधा हुआ था, सबसे भयावह और अजीब बात ये थी के उसका सर आम इंसानो जैसा न होकर सर्प के सामान था और उसके पीठ पर ड्रैगन जैसे पंख लगे हुए थे, उस अजीबोगरीब चीज़ को देख के बिरजू की डर से हालत ख़राब हो रही थी तभी उसके कानो मैं कही से आवाज गुंजी

"मनुष्य"

बिरजू एकदम से घबरा गया

"घबराओ नहीं मनुष्य मैं कालदूत हु और मैं तुम्हे कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगा"

"तुम क्या हो और मुझसे कैसे बात कर पा रहे हो "

"मैं कालदूत हु मनुष्य ये मेरे लिए मुश्किल नहीं है मैं तुम्हारी मानसिक तरंगों से जुड़ा हु और मैं तुम्हे कुछ नहीं करूँगा मैं तो खुद लाखो वर्ष से समुद्रतल की गहराइयो मैं कैद हु, देवताओ ने मुझे कैद किया था"

"पर मैं यहाँ कैसे आया " बिरजू

"क्युकी मैं तुम्हे यहाँ लाया हु, मुझे मुक्त होने के लिए तुम्हारी आवश्यकता है तुम्हे हर तीन सालो मैं १०० लोगो की बलि देनी होगी वो भी निरंतर १००० वर्षो तक ताकि मैं मुक्त हो पाउ बदले मैं मैं तुम्हे असीम शक्ति प्रदान करूँगा, आज से मै ही तुम्हारा भगवान हु, तुम जो ये पानी के भीतर भी सास ले पा रहे हो ये मेरी ही कृपा है अब जाओ और हमारी मुक्ति का प्रबंध करो "

कालदूत की बातो का बिरजू पर जादू हो गया और वो उसके सामने नतमस्तक हो गया तभी वहा एक किताब प्रगट हुयी

"उठो वत्स और ये किताब को यह हमारा तुम्हारे लिए प्रसाद है जिसमे वो विधि लिखी है जिससे तुम हमें अपने भगवान हो मुक्त करा पाओगे और इसी किताब की सहायता से तुम्हे और भी कई साडी सिद्धिया प्राप्त होगी "

बिरजू ने वो किताब ली

“पर 1000 वर्ष मैं जीवित कैसे रह सकता हु प्रभु”

“यही किताब उसमे सहायक होगी वत्स और हमारी शरण में आते ही तुम्हारी आयु साधारण मनुष्य से अधिक हो गयी है पर तुम्हे यह कार्य जारी रखने के लिए संगठन बनाना होगा हमारे और भक्त बनाने होंगे अब जाओ हम सदैव तुमसे जुड़े रहेंगे”

"महान भगवान कालदूत की जय" और इतना बोलते साथ ही बिरजू की आँखें बंद हो गयी और जब खुली तब उसने अपने आप को किनारे पे पाया,


पहले तो उसे यकीं नहीं हुआ की ये क्या हुआ पर जब उसकी नजर अपने हाथ मैं राखी किताब पे पड़ी तब उसे यकीन हो गया की जो हुआ वो सत्य था और वो लग गया अपने स्वामी को मुक्त करने की मोहिम मैं........
behtarin shuruwat hai
 
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