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Fantasy कालदूत(पूर्ण)

Adirshi

Royal कारभार 👑
Staff member
Super-Moderator
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304
भाग २०



पुलिस स्टेशन मैं हुए उस भयानक हत्याकांड की ख़राब पुरे राजनगर मैं फ़ैल चुकी थी देश के बड़े बड़े न्यूज़ चैनल इस खबर को कवर करना छह रहे थे और इस वक़्त पुलिस स्टेशन के सामने रिपोर्टर्स की भरी भीड़ थी, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था के आखिर इतने सरे पुलिस कर्मचारी इतनी बेरहम तरीके से कैसे मारे गए कौन है इस घटना के पीछे, रिपोर्टर्स और रिज़र्व पुलिस फाॅर्स जब तक वहा पहुचे तक तक कालसेना के लोग अपने लोगो की लाशो को वहा से ले जा चुके थे वो अब भी खुल कर सामने नहीं आना चाहते थे अगर उनके बस मैं होता तो शायद ये खबर भी दब जाती लेकिन मामला बड़ा था और इसे दबाना इतना आसन भी नहीं था

इस वक़्त सरे न्यूज़ चैनलों पर सिर्फ राजनगर की ये न्यूज़ दिखाई जा रही थी घर पर अनिरुद्ध शाश्त्री जी सुमित्रादेवी और श्रुति भी ये न्यूज़ देख रहे थे और उन्हें अपने बेटे की चिंता हो रही थी क्युकी न्यूज़ देखते ही वो समझ गए थे के ये सब घटनाये रमण के स्टेशन मैं हुयी है, श्रुति का हाल रोने जैसा था वही सुमित्रादेवी अपने को संभाले हुए थी साथ ही राघव के बारे मैं भी इन्हें कोई खबर नहीं थी

इस वक़्त टीवी पर न्यूज़ चल रही थी जिसका एंकर बोल रहा था “इस वक़्त हम राजनगर के पुलिस स्टेशन मैं खड़े है जहा आज दिन धहदे कई पुलिस वालो को मारा गया है, हैरानी की बात ये है ये आस पास के लोगो ने किसी ने भी कोई गोली की आवाज नहीं सुनी, इन सरे पुलिस कर्मचारियों को बेहद ही क्रूरता के साथ मारा गया है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकेंगे, आसपास के कुछ लोगो से पूछ ताछ मैं उन्होंने बताया की उन्होंने कुछ नीले कपडे पहले लोगो को अंदर जाते देखा था पर उसके बाद क्या हुआ किसी को इस बात की कोई जान करी नहीं, सूत्रों के अनुसार पुलिस स्टेशन मैं उस वक़्त मौजूद कोई भी पुलिस वाला जिन्दा नहीं बच पाया है S.I.रमण शास्त्री की बॉडी अभी तक बरामद नहीं हुयी है शायद वो जिन्दा बच गए हो लेकिन अभी तक उनकी हमारे पास कोई खबर नहीं है, कौन हो सकता है इन सब के पीछे? क्या इसमें हमारे किसी दुश्मन देश का हाथ है? ये आतंकवादी हमला है या कुछ और? इन सब बातो पर चर्चा के लिए देखे हमारा विशेष कार्यक्रम अब से कुछ ही देर मैं रात ९ बाते, कैमरा मैन गौरव के साथ मैं अविनाश +२४ न्यूज़”

न्यूज़ सुन कर श्रुति और सुमित्रादेवी का बुरा हाल हो रहा था पर कही न कही उन्हें लग रहा था के रमण ठीक होगा

श्रुति-मम्मी जी मैं तब से इनका फ़ोन लगा रही हु लग नहीं रहा है राघव भैया भी फ़ोन नहीं उठा रहे है

सुमित्रादेवी-तुम फ़ोन लगाती रहो कुछ जरूर पता चलेगा

वही अनिरुद्ध जी कुछ सोच रहे थे और अचानक वो खड़े हुए

अनिरुद्ध-चिंता मत करो बहु रमण को कुछ नहीं होगा और राघव भी ठीक होगा तुम उन्हें फ़ोन लगाती रहो और कुछ पता चले तो मुझे सूचित करना मैं आता हु

सुमित्रादेवी- आप कहा जा रहे है पहले ही हमारे दोनों बेटो का कुछ पता नहीं है ऐसे मैं आप

अनिरुद्ध-ये सुनिश्चित करने जा रहा हु के मेरे दोनों बच्चे सुरक्षित रहे, मेरी चिंता मत करो महादेव मेरे साथ है मुझे कुछ नहीं होगा, एक ऐसे व्यक्ति से मिलने जा रहा हु जहा से मुझे आशा मैं की मैं खली हाथ नहीं आऊंगा

सुमित्रादेवी-पर.....

सुमित्रादेवी कुछ कह पाती इससे पहले ही अनिरुद्ध शास्त्री वह से निकल गए, वो कहा जा रहे थे ये केवल उनका मन जानता था.....

वही दूसरी तरफ नरेश राघव और रमण को अपनी कहानी सुना रहा था की कैसे उसके भाई ने रूद्र को बनाया और जब कालसेना ने उसके परिवार को मार दिया तब से वो और रूद्र उसने भीड़ रहे है और कैसे उन्होंने अपने जैसे लोगो को खोज कर कालसेना के खिलाफ अपनी एक टीम तयार की है तभी वहा अरुण आ पंहुचा

अरुण के चेहरे पर चिंता साफ़ देखि जा सकती थी, रात का समय हो चला था और मौसन भी बिगड़ने लगा था अरुण काफी चिंतित चेहरे के साथ सोफे पर जा बैठा उसके हाथ मैं एक किताब थी

नरेश-अरुण तुम तो आधी रात तक आने वाले थे इतनी जल्दी कैसे आ गए? रमण राघव इनसे मिलो हमारे वेपन एक्सपर्ट अरुण जो आर्मी मैं कमांडो भी रह चुके है और अब कालसेना से लड़ने मैं हमारी मदद कर रहे है, पुलिस स्टेशन पर कालसेना के हमले की सुचना हमें अरुण ने ही दी थी

अरुण-मैं एक बुरी खबर लाया हु नरेश भाई, आज रात कुछ तो बड़ा होने वाला है हो सकता है शायद अंतिम कुर्बानी?

राघव-पर उसमे तो अभी समय है अंतिम कुर्बानी तो आने वाली पुरनमासी को होगी

अरुण-ये लोग किसी मुहूर्त का इंतजार नहीं करते बच्चे यदि इन्होने किसी को पकड़ा होगा तो कुर्बानी आज ही होगी पर मेरी जानकारी मैं अभी तक कालसेना को आखरी कुर्बानी नहीं मिली है.....

नरेश-मुझे लगता है तुम व्यर्थ चिंता कर रहे हो अरुण हो सकता है ऐसा कुछ न हो

रमण-पर आपको ये सब कैसे पता है? मतलब पहले पुलिस स्टेशन वाली घटना और अब ये??

अरुण-तुम्हे शायद जानकार हैरानी हो इंस्पेक्टर, मेरे पिता इन मे से एक थे, वो इन अन्धविश्वासी कालसैनिको मैं से एक थे और जब उन्हें कोई कुर्बानी नहीं मिली तो उन्होंने मेरी आँखों के सामने मेरी माँ को कुर्बानी के नाम पर जला कर मार डाला था, उस समय मैं छोटा था जिसके बाद मैंने ठान लिया था इस कालसेना को ख़तम करने का, जितनी अच्छी तरह मैं कालसेना को जानता हु उनता शायद यहाँ मौजूद कोई नहीं, मेरा अपना एक नेटवर्क है जिसके जरिये मुझे ये खबरे मिलती रहती है,

रमण-आपकी कहानी सुन कर दुःख हुआ और मैं आपके लड़ने के जज्बे की करदा करता हु, मेरी जान बचने का शुक्रिया अगर आप रूद्र को न भेजते तो शायद मैं यहाँ नहीं होता

रूद्र-पर अरुण भाई आप गए कहा था और ये आपके हाथ मैं क्या है?

अरुण-मैं अपने घर गया था रूद्र अपने बाप के घर जहा उसका सामान पड़ा हुआ था ये देखने की कही उसके सामान मैं हमें कोई ऐसी चीज़ मिल जाये जो हमारी इस लडाई मैं मदद करे और वहा मुझे ये मिली, ये किताब जिसकी ये कालसैनिक पूजा करते है

अरुण ने वो किताब सबको दिखाते हुए कहा

नरेश-क्या ये वही है जो मैं सोच रहा हु?

अरुण-काले जादू की किताब जिसका लेखक स्वयं कालदूत को माना जाता है, मेरे पिता की है, कभी सोचा नहीं था की मैं इसे देखूंगा

नरेश-मुझे लगा था ये एक ही है

अरुण-कालदूत ने तो एक ही दी थी पर कालसैनिको ने इसकी प्रतिया तयार की है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इनसे जुड़े

रूद्र-इसे खोलकर देखो पता चले इसमें क्या राज दफ़न है

उनलोगों ने उस ख़िताब के पन्ने पलटे, शुरवाती पन्नो मैं तो कुछ बेहद ही विभत्स रीती रिवाज थे जो कालसैनिक बनने की प्रक्रिया मैं करने पड़ते थे जैसे भैसे का सर काटकर खाना और सिर्फ कंकाल छोड़ना, मनुष्य की आंते निकालकर खाना आदि, ऐसे चित्र देख कर वहा मौजूद हर कोई घृणा से भर गया

रमण-काफी भयानक चित्र है पर ये भाषा क्या है

राघव-ये इस दुनिया की भाषा नहीं है

राघव के इतना बोलते ही सब उसकी तरफ देखने लगे

नरेश-तुम ये भाषा पढ़ सकते हो??

राघव-पता नहीं मैं ये कैसे कर पा रहा हु पर हा मैं इसे पढ़ सकता हु, ये किताब काले जादू का भंडार है, इसमें ऐसी सिद्धियों का वर्णन है जो यदि किसी एक इंसान के पास हो तो वो पुरे ब्रह्माण्ड पर राज कर सकता है

नरेश-लगता है तुममे किसी भी भाषा को समझने की भी काबिलियत है

राघव-पता नहीं शायद

संजय-पर ये भाषा जब इस दुनिया की नहीं है तो ये उन कालसैनिको को कैसे समझ मैं आ सकती होगी?

नरेश-ये समझना इतना भी मुश्किल नहीं है संजय....कालदूत उनसे मानसिक तरंगो द्वारा जुडा हुआ है वो इसे आसानी से समझ सकते है

ये लोग इन सब के बारे मैं बात ही कर रहे थे की दरवाजे पर दस्तक हुयी

रूद्र-इस समय कौन हो सकता है??

नरेश-मैं देखता हु...

नरेश ने जब दरवाजा खोला तो उसके सामने अनिरुद्ध शास्त्री खड़े थे........
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
45,281
63,420
304
तीसरा भाग

रोहित पूरे चार साल बाद मुम्बई आया है उसने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुम्बई से 200 किलोमीटर दूर राजनगर से की थी तो उसकी बचपन की यादें यहां से जुड़ी हुई हैं और साथ ही अपने बचपन के मित्र संतोष और विक्रम से भी मिलने की उत्सुकता है। लेकिन एक पुराना घाव है जो रोहित विक्रम से बताना चाहता है।

उधर दूसरी ओर राघव अपने पिता अनिरुद्ध के बिल्कुल विपरीत है उसके पिता भगवान को मानने वाले हैं तो राघव नास्तिक है, इसलिए दोनो बाप बेटों में कम बनती है। रमन जो अनिरुद्ध का बेटा है एक इंस्पेक्टर है जो फिलहाल अभी किसी मुकदमे में फंसा हुआ है।

बहुत बढ़िया सर जी
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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bilkul sahi pakde jyada samay nahi hai kaaldoot ke azad hone main
:thanks: for comment aage ke updates par aapke comment ka intajar rahega
आपकी कहानी वाकई में बहुत अच्छी लग रही है।

अभी 3 भाग ही पढ़े हैं। उसमें ही बहुत मज़ा आ रहा है। हमारी टिप्पणी हर भाग पढ़ने के बाद आएगी सर जी।
 

ashish_1982_in

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भाग २०



पुलिस स्टेशन मैं हुए उस भयानक हत्याकांड की ख़राब पुरे राजनगर मैं फ़ैल चुकी थी देश के बड़े बड़े न्यूज़ चैनल इस खबर को कवर करना छह रहे थे और इस वक़्त पुलिस स्टेशन के सामने रिपोर्टर्स की भरी भीड़ थी, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था के आखिर इतने सरे पुलिस कर्मचारी इतनी बेरहम तरीके से कैसे मारे गए कौन है इस घटना के पीछे, रिपोर्टर्स और रिज़र्व पुलिस फाॅर्स जब तक वहा पहुचे तक तक कालसेना के लोग अपने लोगो की लाशो को वहा से ले जा चुके थे वो अब भी खुल कर सामने नहीं आना चाहते थे अगर उनके बस मैं होता तो शायद ये खबर भी दब जाती लेकिन मामला बड़ा था और इसे दबाना इतना आसन भी नहीं था

इस वक़्त सरे न्यूज़ चैनलों पर सिर्फ राजनगर की ये न्यूज़ दिखाई जा रही थी घर पर अनिरुद्ध शाश्त्री जी सुमित्रादेवी और श्रुति भी ये न्यूज़ देख रहे थे और उन्हें अपने बेटे की चिंता हो रही थी क्युकी न्यूज़ देखते ही वो समझ गए थे के ये सब घटनाये रमण के स्टेशन मैं हुयी है, श्रुति का हाल रोने जैसा था वही सुमित्रादेवी अपने को संभाले हुए थी साथ ही राघव के बारे मैं भी इन्हें कोई खबर नहीं थी

इस वक़्त टीवी पर न्यूज़ चल रही थी जिसका एंकर बोल रहा था “इस वक़्त हम राजनगर के पुलिस स्टेशन मैं खड़े है जहा आज दिन धहदे कई पुलिस वालो को मारा गया है, हैरानी की बात ये है ये आस पास के लोगो ने किसी ने भी कोई गोली की आवाज नहीं सुनी, इन सरे पुलिस कर्मचारियों को बेहद ही क्रूरता के साथ मारा गया है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकेंगे, आसपास के कुछ लोगो से पूछ ताछ मैं उन्होंने बताया की उन्होंने कुछ नीले कपडे पहले लोगो को अंदर जाते देखा था पर उसके बाद क्या हुआ किसी को इस बात की कोई जान करी नहीं, सूत्रों के अनुसार पुलिस स्टेशन मैं उस वक़्त मौजूद कोई भी पुलिस वाला जिन्दा नहीं बच पाया है S.I.रमण शास्त्री की बॉडी अभी तक बरामद नहीं हुयी है शायद वो जिन्दा बच गए हो लेकिन अभी तक उनकी हमारे पास कोई खबर नहीं है, कौन हो सकता है इन सब के पीछे? क्या इसमें हमारे किसी दुश्मन देश का हाथ है? ये आतंकवादी हमला है या कुछ और? इन सब बातो पर चर्चा के लिए देखे हमारा विशेष कार्यक्रम अब से कुछ ही देर मैं रात ९ बाते, कैमरा मैन गौरव के साथ मैं अविनाश +२४ न्यूज़”

न्यूज़ सुन कर श्रुति और सुमित्रादेवी का बुरा हाल हो रहा था पर कही न कही उन्हें लग रहा था के रमण ठीक होगा

श्रुति-मम्मी जी मैं तब से इनका फ़ोन लगा रही हु लग नहीं रहा है राघव भैया भी फ़ोन नहीं उठा रहे है

सुमित्रादेवी-तुम फ़ोन लगाती रहो कुछ जरूर पता चलेगा

वही अनिरुद्ध जी कुछ सोच रहे थे और अचानक वो खड़े हुए

अनिरुद्ध-चिंता मत करो बहु रमण को कुछ नहीं होगा और राघव भी ठीक होगा तुम उन्हें फ़ोन लगाती रहो और कुछ पता चले तो मुझे सूचित करना मैं आता हु

सुमित्रादेवी- आप कहा जा रहे है पहले ही हमारे दोनों बेटो का कुछ पता नहीं है ऐसे मैं आप

अनिरुद्ध-ये सुनिश्चित करने जा रहा हु के मेरे दोनों बच्चे सुरक्षित रहे, मेरी चिंता मत करो महादेव मेरे साथ है मुझे कुछ नहीं होगा, एक ऐसे व्यक्ति से मिलने जा रहा हु जहा से मुझे आशा मैं की मैं खली हाथ नहीं आऊंगा

सुमित्रादेवी-पर.....

सुमित्रादेवी कुछ कह पाती इससे पहले ही अनिरुद्ध शास्त्री वह से निकल गए, वो कहा जा रहे थे ये केवल उनका मन जानता था.....

वही दूसरी तरफ नरेश राघव और रमण को अपनी कहानी सुना रहा था की कैसे उसके भाई ने रूद्र को बनाया और जब कालसेना ने उसके परिवार को मार दिया तब से वो और रूद्र उसने भीड़ रहे है और कैसे उन्होंने अपने जैसे लोगो को खोज कर कालसेना के खिलाफ अपनी एक टीम तयार की है तभी वहा अरुण आ पंहुचा

अरुण के चेहरे पर चिंता साफ़ देखि जा सकती थी, रात का समय हो चला था और मौसन भी बिगड़ने लगा था अरुण काफी चिंतित चेहरे के साथ सोफे पर जा बैठा उसके हाथ मैं एक किताब थी

नरेश-अरुण तुम तो आधी रात तक आने वाले थे इतनी जल्दी कैसे आ गए? रमण राघव इनसे मिलो हमारे वेपन एक्सपर्ट अरुण जो आर्मी मैं कमांडो भी रह चुके है और अब कालसेना से लड़ने मैं हमारी मदद कर रहे है, पुलिस स्टेशन पर कालसेना के हमले की सुचना हमें अरुण ने ही दी थी

अरुण-मैं एक बुरी खबर लाया हु नरेश भाई, आज रात कुछ तो बड़ा होने वाला है हो सकता है शायद अंतिम कुर्बानी?

राघव-पर उसमे तो अभी समय है अंतिम कुर्बानी तो आने वाली पुरनमासी को होगी

अरुण-ये लोग किसी मुहूर्त का इंतजार नहीं करते बच्चे यदि इन्होने किसी को पकड़ा होगा तो कुर्बानी आज ही होगी पर मेरी जानकारी मैं अभी तक कालसेना को आखरी कुर्बानी नहीं मिली है.....

नरेश-मुझे लगता है तुम व्यर्थ चिंता कर रहे हो अरुण हो सकता है ऐसा कुछ न हो

रमण-पर आपको ये सब कैसे पता है? मतलब पहले पुलिस स्टेशन वाली घटना और अब ये??

अरुण-तुम्हे शायद जानकार हैरानी हो इंस्पेक्टर, मेरे पिता इन मे से एक थे, वो इन अन्धविश्वासी कालसैनिको मैं से एक थे और जब उन्हें कोई कुर्बानी नहीं मिली तो उन्होंने मेरी आँखों के सामने मेरी माँ को कुर्बानी के नाम पर जला कर मार डाला था, उस समय मैं छोटा था जिसके बाद मैंने ठान लिया था इस कालसेना को ख़तम करने का, जितनी अच्छी तरह मैं कालसेना को जानता हु उनता शायद यहाँ मौजूद कोई नहीं, मेरा अपना एक नेटवर्क है जिसके जरिये मुझे ये खबरे मिलती रहती है,

रमण-आपकी कहानी सुन कर दुःख हुआ और मैं आपके लड़ने के जज्बे की करदा करता हु, मेरी जान बचने का शुक्रिया अगर आप रूद्र को न भेजते तो शायद मैं यहाँ नहीं होता

रूद्र-पर अरुण भाई आप गए कहा था और ये आपके हाथ मैं क्या है?

अरुण-मैं अपने घर गया था रूद्र अपने बाप के घर जहा उसका सामान पड़ा हुआ था ये देखने की कही उसके सामान मैं हमें कोई ऐसी चीज़ मिल जाये जो हमारी इस लडाई मैं मदद करे और वहा मुझे ये मिली, ये किताब जिसकी ये कालसैनिक पूजा करते है

अरुण ने वो किताब सबको दिखाते हुए कहा

नरेश-क्या ये वही है जो मैं सोच रहा हु?

अरुण-काले जादू की किताब जिसका लेखक स्वयं कालदूत को माना जाता है, मेरे पिता की है, कभी सोचा नहीं था की मैं इसे देखूंगा

नरेश-मुझे लगा था ये एक ही है

अरुण-कालदूत ने तो एक ही दी थी पर कालसैनिको ने इसकी प्रतिया तयार की है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इनसे जुड़े

रूद्र-इसे खोलकर देखो पता चले इसमें क्या राज दफ़न है

उनलोगों ने उस ख़िताब के पन्ने पलटे, शुरवाती पन्नो मैं तो कुछ बेहद ही विभत्स रीती रिवाज थे जो कालसैनिक बनने की प्रक्रिया मैं करने पड़ते थे जैसे भैसे का सर काटकर खाना और सिर्फ कंकाल छोड़ना, मनुष्य की आंते निकालकर खाना आदि, ऐसे चित्र देख कर वहा मौजूद हर कोई घृणा से भर गया

रमण-काफी भयानक चित्र है पर ये भाषा क्या है

राघव-ये इस दुनिया की भाषा नहीं है

राघव के इतना बोलते ही सब उसकी तरफ देखने लगे

नरेश-तुम ये भाषा पढ़ सकते हो??

राघव-पता नहीं मैं ये कैसे कर पा रहा हु पर हा मैं इसे पढ़ सकता हु, ये किताब काले जादू का भंडार है, इसमें ऐसी सिद्धियों का वर्णन है जो यदि किसी एक इंसान के पास हो तो वो पुरे ब्रह्माण्ड पर राज कर सकता है

नरेश-लगता है तुममे किसी भी भाषा को समझने की भी काबिलियत है

राघव-पता नहीं शायद

संजय-पर ये भाषा जब इस दुनिया की नहीं है तो ये उन कालसैनिको को कैसे समझ मैं आ सकती होगी?

नरेश-ये समझना इतना भी मुश्किल नहीं है संजय....कालदूत उनसे मानसिक तरंगो द्वारा जुडा हुआ है वो इसे आसानी से समझ सकते है

ये लोग इन सब के बारे मैं बात ही कर रहे थे की दरवाजे पर दस्तक हुयी

रूद्र-इस समय कौन हो सकता है??

नरेश-मैं देखता हु...


नरेश ने जब दरवाजा खोला तो उसके सामने अनिरुद्ध शास्त्री खड़े थे........
fantastic update bhai
 

mashish

BHARAT
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भाग २०



पुलिस स्टेशन मैं हुए उस भयानक हत्याकांड की ख़राब पुरे राजनगर मैं फ़ैल चुकी थी देश के बड़े बड़े न्यूज़ चैनल इस खबर को कवर करना छह रहे थे और इस वक़्त पुलिस स्टेशन के सामने रिपोर्टर्स की भरी भीड़ थी, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था के आखिर इतने सरे पुलिस कर्मचारी इतनी बेरहम तरीके से कैसे मारे गए कौन है इस घटना के पीछे, रिपोर्टर्स और रिज़र्व पुलिस फाॅर्स जब तक वहा पहुचे तक तक कालसेना के लोग अपने लोगो की लाशो को वहा से ले जा चुके थे वो अब भी खुल कर सामने नहीं आना चाहते थे अगर उनके बस मैं होता तो शायद ये खबर भी दब जाती लेकिन मामला बड़ा था और इसे दबाना इतना आसन भी नहीं था

इस वक़्त सरे न्यूज़ चैनलों पर सिर्फ राजनगर की ये न्यूज़ दिखाई जा रही थी घर पर अनिरुद्ध शाश्त्री जी सुमित्रादेवी और श्रुति भी ये न्यूज़ देख रहे थे और उन्हें अपने बेटे की चिंता हो रही थी क्युकी न्यूज़ देखते ही वो समझ गए थे के ये सब घटनाये रमण के स्टेशन मैं हुयी है, श्रुति का हाल रोने जैसा था वही सुमित्रादेवी अपने को संभाले हुए थी साथ ही राघव के बारे मैं भी इन्हें कोई खबर नहीं थी

इस वक़्त टीवी पर न्यूज़ चल रही थी जिसका एंकर बोल रहा था “इस वक़्त हम राजनगर के पुलिस स्टेशन मैं खड़े है जहा आज दिन धहदे कई पुलिस वालो को मारा गया है, हैरानी की बात ये है ये आस पास के लोगो ने किसी ने भी कोई गोली की आवाज नहीं सुनी, इन सरे पुलिस कर्मचारियों को बेहद ही क्रूरता के साथ मारा गया है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकेंगे, आसपास के कुछ लोगो से पूछ ताछ मैं उन्होंने बताया की उन्होंने कुछ नीले कपडे पहले लोगो को अंदर जाते देखा था पर उसके बाद क्या हुआ किसी को इस बात की कोई जान करी नहीं, सूत्रों के अनुसार पुलिस स्टेशन मैं उस वक़्त मौजूद कोई भी पुलिस वाला जिन्दा नहीं बच पाया है S.I.रमण शास्त्री की बॉडी अभी तक बरामद नहीं हुयी है शायद वो जिन्दा बच गए हो लेकिन अभी तक उनकी हमारे पास कोई खबर नहीं है, कौन हो सकता है इन सब के पीछे? क्या इसमें हमारे किसी दुश्मन देश का हाथ है? ये आतंकवादी हमला है या कुछ और? इन सब बातो पर चर्चा के लिए देखे हमारा विशेष कार्यक्रम अब से कुछ ही देर मैं रात ९ बाते, कैमरा मैन गौरव के साथ मैं अविनाश +२४ न्यूज़”

न्यूज़ सुन कर श्रुति और सुमित्रादेवी का बुरा हाल हो रहा था पर कही न कही उन्हें लग रहा था के रमण ठीक होगा

श्रुति-मम्मी जी मैं तब से इनका फ़ोन लगा रही हु लग नहीं रहा है राघव भैया भी फ़ोन नहीं उठा रहे है

सुमित्रादेवी-तुम फ़ोन लगाती रहो कुछ जरूर पता चलेगा

वही अनिरुद्ध जी कुछ सोच रहे थे और अचानक वो खड़े हुए

अनिरुद्ध-चिंता मत करो बहु रमण को कुछ नहीं होगा और राघव भी ठीक होगा तुम उन्हें फ़ोन लगाती रहो और कुछ पता चले तो मुझे सूचित करना मैं आता हु

सुमित्रादेवी- आप कहा जा रहे है पहले ही हमारे दोनों बेटो का कुछ पता नहीं है ऐसे मैं आप

अनिरुद्ध-ये सुनिश्चित करने जा रहा हु के मेरे दोनों बच्चे सुरक्षित रहे, मेरी चिंता मत करो महादेव मेरे साथ है मुझे कुछ नहीं होगा, एक ऐसे व्यक्ति से मिलने जा रहा हु जहा से मुझे आशा मैं की मैं खली हाथ नहीं आऊंगा

सुमित्रादेवी-पर.....

सुमित्रादेवी कुछ कह पाती इससे पहले ही अनिरुद्ध शास्त्री वह से निकल गए, वो कहा जा रहे थे ये केवल उनका मन जानता था.....

वही दूसरी तरफ नरेश राघव और रमण को अपनी कहानी सुना रहा था की कैसे उसके भाई ने रूद्र को बनाया और जब कालसेना ने उसके परिवार को मार दिया तब से वो और रूद्र उसने भीड़ रहे है और कैसे उन्होंने अपने जैसे लोगो को खोज कर कालसेना के खिलाफ अपनी एक टीम तयार की है तभी वहा अरुण आ पंहुचा

अरुण के चेहरे पर चिंता साफ़ देखि जा सकती थी, रात का समय हो चला था और मौसन भी बिगड़ने लगा था अरुण काफी चिंतित चेहरे के साथ सोफे पर जा बैठा उसके हाथ मैं एक किताब थी

नरेश-अरुण तुम तो आधी रात तक आने वाले थे इतनी जल्दी कैसे आ गए? रमण राघव इनसे मिलो हमारे वेपन एक्सपर्ट अरुण जो आर्मी मैं कमांडो भी रह चुके है और अब कालसेना से लड़ने मैं हमारी मदद कर रहे है, पुलिस स्टेशन पर कालसेना के हमले की सुचना हमें अरुण ने ही दी थी

अरुण-मैं एक बुरी खबर लाया हु नरेश भाई, आज रात कुछ तो बड़ा होने वाला है हो सकता है शायद अंतिम कुर्बानी?

राघव-पर उसमे तो अभी समय है अंतिम कुर्बानी तो आने वाली पुरनमासी को होगी

अरुण-ये लोग किसी मुहूर्त का इंतजार नहीं करते बच्चे यदि इन्होने किसी को पकड़ा होगा तो कुर्बानी आज ही होगी पर मेरी जानकारी मैं अभी तक कालसेना को आखरी कुर्बानी नहीं मिली है.....

नरेश-मुझे लगता है तुम व्यर्थ चिंता कर रहे हो अरुण हो सकता है ऐसा कुछ न हो

रमण-पर आपको ये सब कैसे पता है? मतलब पहले पुलिस स्टेशन वाली घटना और अब ये??

अरुण-तुम्हे शायद जानकार हैरानी हो इंस्पेक्टर, मेरे पिता इन मे से एक थे, वो इन अन्धविश्वासी कालसैनिको मैं से एक थे और जब उन्हें कोई कुर्बानी नहीं मिली तो उन्होंने मेरी आँखों के सामने मेरी माँ को कुर्बानी के नाम पर जला कर मार डाला था, उस समय मैं छोटा था जिसके बाद मैंने ठान लिया था इस कालसेना को ख़तम करने का, जितनी अच्छी तरह मैं कालसेना को जानता हु उनता शायद यहाँ मौजूद कोई नहीं, मेरा अपना एक नेटवर्क है जिसके जरिये मुझे ये खबरे मिलती रहती है,

रमण-आपकी कहानी सुन कर दुःख हुआ और मैं आपके लड़ने के जज्बे की करदा करता हु, मेरी जान बचने का शुक्रिया अगर आप रूद्र को न भेजते तो शायद मैं यहाँ नहीं होता

रूद्र-पर अरुण भाई आप गए कहा था और ये आपके हाथ मैं क्या है?

अरुण-मैं अपने घर गया था रूद्र अपने बाप के घर जहा उसका सामान पड़ा हुआ था ये देखने की कही उसके सामान मैं हमें कोई ऐसी चीज़ मिल जाये जो हमारी इस लडाई मैं मदद करे और वहा मुझे ये मिली, ये किताब जिसकी ये कालसैनिक पूजा करते है

अरुण ने वो किताब सबको दिखाते हुए कहा

नरेश-क्या ये वही है जो मैं सोच रहा हु?

अरुण-काले जादू की किताब जिसका लेखक स्वयं कालदूत को माना जाता है, मेरे पिता की है, कभी सोचा नहीं था की मैं इसे देखूंगा

नरेश-मुझे लगा था ये एक ही है

अरुण-कालदूत ने तो एक ही दी थी पर कालसैनिको ने इसकी प्रतिया तयार की है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इनसे जुड़े

रूद्र-इसे खोलकर देखो पता चले इसमें क्या राज दफ़न है

उनलोगों ने उस ख़िताब के पन्ने पलटे, शुरवाती पन्नो मैं तो कुछ बेहद ही विभत्स रीती रिवाज थे जो कालसैनिक बनने की प्रक्रिया मैं करने पड़ते थे जैसे भैसे का सर काटकर खाना और सिर्फ कंकाल छोड़ना, मनुष्य की आंते निकालकर खाना आदि, ऐसे चित्र देख कर वहा मौजूद हर कोई घृणा से भर गया

रमण-काफी भयानक चित्र है पर ये भाषा क्या है

राघव-ये इस दुनिया की भाषा नहीं है

राघव के इतना बोलते ही सब उसकी तरफ देखने लगे

नरेश-तुम ये भाषा पढ़ सकते हो??

राघव-पता नहीं मैं ये कैसे कर पा रहा हु पर हा मैं इसे पढ़ सकता हु, ये किताब काले जादू का भंडार है, इसमें ऐसी सिद्धियों का वर्णन है जो यदि किसी एक इंसान के पास हो तो वो पुरे ब्रह्माण्ड पर राज कर सकता है

नरेश-लगता है तुममे किसी भी भाषा को समझने की भी काबिलियत है

राघव-पता नहीं शायद

संजय-पर ये भाषा जब इस दुनिया की नहीं है तो ये उन कालसैनिको को कैसे समझ मैं आ सकती होगी?

नरेश-ये समझना इतना भी मुश्किल नहीं है संजय....कालदूत उनसे मानसिक तरंगो द्वारा जुडा हुआ है वो इसे आसानी से समझ सकते है

ये लोग इन सब के बारे मैं बात ही कर रहे थे की दरवाजे पर दस्तक हुयी

रूद्र-इस समय कौन हो सकता है??

नरेश-मैं देखता हु...


नरेश ने जब दरवाजा खोला तो उसके सामने अनिरुद्ध शास्त्री खड़े थे........
awesome update
 
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