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Thriller ✧ Double Game ✧(Completed)

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
Supreme
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Kya baat hai ? Kamdev bhai pichle update me angry reaction diye the aur es update me bhi kuch sahi nhi laga unhe .

Waise update to bahut achha tha par unka reaction samajh me nahi aaya .
Bade bhaiya ji kahi ka gussa mujh par utaar baithe the bhaiya ji. Lagta hai bhabhi ji ne jam ke class li thi inki. Ab ye bechaare kuch kar to sakte nahi the is liye chhote bhai ko hi nishana bana liya,,,,:lol1:
 

TheBlackBlood

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Supreme
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Sanju bhai apno par sirf pyar hi nahi, gussa bhi jyada hi aata hai...
Update aur story dono ka hi flow bahut badhiya hai..
Lekin kabhi kabhi kuchh aisa hota hai jo hanikarak ho sakta hai.... Usse dur rahne ke liye kaha gaya ho.... Lekin bar-bar avhelna hone par, gusse ka dikhava karke savdhani karne par majbur karna padta hai....
Apno par koi musibat padne ka intzar to nahi kar sakte
Shubham bhai, sankraman ke dauran jab bar-bar bina mask sankramit kshetr me pahunchne lage to... Unka challan katne aur jurmana hone se bachane ke liye.... Meine gussa hokar unko mask pahn'ne ka yaad dilaya
Mask sirf kapda nahin hota
Mask = cover up
Real me bhi aur grammar me bhi :love3:
Is daya drishti ke liye shukriya bhaiya ji,,,,:roflbow:
Kaash bhabhi ji se aapki shikayat karne ka mauka mil jaye to maza hi aa jaye,,,,:D
 

TheBlackBlood

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Supreme
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Chapter - 02
[ Reality & Punishment ]
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Update - 10
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मेरी ज़िन्दगी में खुशियों की बहार आ गई थी। साढ़े चार सालों से मैं जिस चीज़ के लिए तड़प रही थी वो चीज़ मुझे मिल गई थी। मेरे पति ने मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार भी कर लिया था और मुझे हर वो ख़ुशी देने लगे थे जो उनकी पत्नी के रूप में मुझे मिलनी चाहिए थीं। इससे ज़्यादा किसी पत्नी को और भला क्या चाहिए था? रात दिन मैं इस सबके लिए ऊपर वाले का धन्यवाद करती थी। एक हप्ते में ही विशेष जी ने मुझे इतनी खुशियां दे थीं कि मैं अपने अब तक के सारे दुःख दर्द भूल गई थी। उनका प्यार दिखाना और हर चीज़ मेरी इच्छा के अनुसार ही करना मुझे इतना मनमोहक लगता था कि मेरे दिल में विशेष जी के लिए एक अलग ही ख़ास स्थान बनता जा रहा था। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मेरा वही पति मुझे इतना प्यार देगा जिसने सुहागरात में मुझे देखते ही मुझे त्याग दिया था और अपनी पत्नी मानने से इंकार कर दिया था।

इतना प्यार, इतनी खुशियां और अपने प्रति इतना ख़याल देख कर मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं कोई ख़्वाब देख रही हूं। मेरा मन हर पल ख़ुशी के मारे नाचने फुदकने को करता था और अकेले में मैं इस सबसे खुश हो कर नाचती भी थी। विशेष जी मुझे इतना प्यार और इतनी खुशियां दे रहे थे तो बदले में मैं भी पूरी कोशिश कर रही थी कि मैं भी उन्हें उतना ही प्यार दूं और उन्हें खुश रखूं। इस सच्चाई को खुद भी जानते हुए कि मेरा रंग रूप ऐसा नहीं है जो किसी मर्द को आकर्षित करे फिर भी विशेष जी के लिए सजती संवरती रहती थी। मेरे बस में नहीं था वरना मैं अपने रंग रूप को बेइंतेहा सुन्दर बनाने के लिए कुछ भी कर गुज़रती।

हप्ते दस दिन ऐसे ही गुज़र गए थे। इन दस दिनों में विशेष जी ने मुझे इतना प्यार और इतनी खुशियां दे दीं थी कि मैं उन सबको न तो सम्हाल पा रही थी और ना ही हजम कर पा रही थी। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि अचानक से मेरे दामन में इतनी खुशियां भर जाएंगी। मैं विशेष जी के साथ कुछ भी करने के लिए और कहीं भी जाने के लिए हर पल तैयार रहती थी। इन दस दिनों में उन्होंने एक अच्छे पति होने का सबूत दे दिया था या शायद उससे भी ज़्यादा। वो मुझे बाहर घूमाने ले जाते, सिनेमा में मेरी मनपसंद की फिल्म दिखाते और बड़े से शो रूम में ले जा कर मुझे शॉपिंग करवा कर एक अच्छे से होटल में खाना खिलाते। उन्हें देख कर ज़रा भी नहीं लगता था कि उन्हें मेरे जैसी कुरूप बीवी से अब कोई परेशानी थी या कोई मलाल था। मेरी ख़ुशी देख कर वो भी बेहद खुश दिखते थे।

दस दिन ऐसे ख़ुशी ख़ुशी में गुज़र गए थे लेकिन अभी हमने सुहागरात नहीं मनाई थी। हर रोज़ मेरे मन में ख़याल आता कि हमारी शादी को साढ़े चार साल गुज़र गए हैं लेकिन अब तक हमने सुहागरात नहीं मनाई। मुझे तो उनसे इस बारे में बात करने में शर्म आती थी इस लिए मैंने भी सोच लिया था कि जब वो ख़ुद इस बारे में कुछ कहेंगे तभी मैं उनका साथ देते हुए इसके लिए हाँ करुंगी। सुहागरात के बारे में सोच कर ही मेरा रोम रोम पुलकित हो उठता था और फिर ये सोच कर खुद ही शर्मा जाती कि विशेष जी के सामने कैसे मैं अपने जिस्म से कपड़े उतारूंगी? पलक झपकते ही ये सब बातें मुझे सोचों में डाल देती थीं और मेरे दिल की धड़कनों को जैसे रोक देती थीं लेकिन मैं ये भी जानती थी कि किसी दिन ऐसा तो करना ही पड़ेगा और वैसे भी हर औरत की तरह मेरी भी तो यही ख़्वाहिश थी कि मेरी भी ज़िन्दगी में एक रोज़ ऐसा खूबसूरत पल आए और मेरा पति मुझे पूर्ण रूप से औरत बना दे।

एक दिन मज़ाक मज़ाक में ही विशेष जी ने हमारी सुहागरात की बात छेड़ दी तो मैं शर्म से उनकी तरफ देखती रह गई थी। उन्होंने मुझसे कहा था कि वो मेरे साथ सुहागरात तभी मनाएंगे जब इसके लिए मेरी भी मर्ज़ी होगी। उनका कहना था कि वो ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिसमें मेरी मर्ज़ी न हो। विशेष जी की इन बातों से मैं बेहद खुश हो गई थी। वो मुझे इतना मान दे रहे थे तो मैं भला कैसे उनके लिए खुश न होती? अब क्योंकि मेरे मन में भी अपनी सुहागरात के प्रति ख़्वाहिश थी इस लिए मैंने शर्म से नज़रें झुका कर उनसे कह दिया था कि उनकी मर्ज़ी ही मेरी मर्ज़ी है।

दूसरे दिन विशेष जी मुझे अपने साथ मंदिर ले कर गए और वहां के पंडित जी से शुभ मुहूर्त निकलवाया। उनका कहना था कि हम पहले एक बार फिर से अपने घर में शादी करेंगे और उसके बाद ही सुहागरात मनाएंगे। विशेष जी की इस सोच से मैं बहुत ज़्यादा प्रभावित हो गई थी और खुश भी हुई थी। खैर पंडित जी के शुभ मुहूर्त के अनुसार हमने एक दिन घर में ही शादी की। हालांकि वो शादी बस कहने के लिए ही थी क्योंकि उसमें हम दोनों शादी वाले कपड़ों में एक दूसरे को जय माला पहनाया था और विशेष जी ने मेरी मांग में सिन्दूर लगाया था। उस दिन मैं बहुत ही ज़्यादा खुश थी और मन ही मन ये सोच कर रोमांचित भी हो रही थी कि रात में सुहागरात को सब कुछ कैसे होगा? विशेष जी मेरे साथ क्या क्या करेंगे और किस तरह से करेंगे? पता नहीं कैसे कैसे ख़याल बुनने लगती थी मैं।

आख़िर रात हुई और मैं कमरे में न‌ई नवेली दुल्हन की तरह सुहाग सेज पर सजी संवरी बैठी थी। मेरे मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे जिनकी वजह से कभी मैं बहुत ज़्यादा रोमांच से भर जाती तो कभी ये सोच कर थोड़ा परेशान भी हो जाती कि अगर सुहागरात में विशेष जी को मैं खुश न कर पाई तो क्या होगा? अब तक इतने दुःख दर्द सहे थे कि ज़रा सी बात पर मैं बुरी तरह चिंतित और परेशान हो जाती थी। मैंने मन ही मन ऊपर वाले को याद किया और उनसे कहा कि मुझे इतनी शक्ति और इतनी हिम्मत देना कि मैं अपने पति को हर तरह से खुश करने में कामयाब रहूं।

विशेष जी कमरे में आए तो उनकी आहट से ही मैं एकदम से सिकुड़ गई थी। मेरा दिल बुरी तरह धड़कनें लगा था। मन में एकदम से डर और घबराहट सी भर गई थी। विशेष जी बेड के किनारे पर ही बैठ गए थे। मेरी आँखों के सामने अचानक से साढ़े चार साल पहले का वो दृश्य उजागर हो गया जब ऐसे ही सुहागरात को विशेष जी कमरे में आए थे और फिर बेड के किनारे पर बैठ कर उन्होंने मेरा घूंघट उठाया था। उसके बाद तो जैसे क़यामत ही गई थी मेरी ज़िन्दगी में। ये सब याद आते ही मेरे दिल की धड़कनें और भी ज़्यादा तेज़ी से चलने लगीं थी। पता नहीं क्यों पर मन में ये ख़याल भी उभर आया कि कहीं आज भी तो वैसा ही नहीं हो जाएगा? फिर एकदम से ख़याल आया कि नहीं नहीं आज ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि पहले में और आज में बहुत फ़र्क हो गया है। पहले विशेष जी मुझसे प्यार नहीं करते थे जबकि आज वो मुझे बहुत प्यार करते हैं।

विशेष जी ने मेरा घूंघट उठाया। मेरा चेहरा डर और घबराहट से भरा हुआ था। पलकें झुकी हुईं थी और चेहरा हल्का सा नीचे की तरफ झुका हुआ था। उन्होंने घूंघट उठाने के बाद हल्के से मेरी ठुड्ढी को पकड़ा और फिर ऊपर उठाया तो मेरा चेहरा सीधा उनकी नज़रों के सामने आ गया।

"तुम्हारे बारे में मैं हमेशा से ही ग़लत था रूपा।" विशेष जी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने बड़ी मुश्किल से पलकें उठा कर उनकी तरफ देखा था, जबकि उन्होंने आगे कहा____"मैं ये कभी समझ ही नहीं पाया कि जिस खासियत की मैं चाह रखता था वो तो शुरू से ही तुम में थी। हाँ रूपा, तुम शुरू से ही ख़ास थी, बल्कि इतनी ख़ास कि तुमसे ज़्यादा मेरे पास मौजूद दूसरी कोई भी चीज़ ख़ास नहीं थी। आज मैं ये अच्छी तरह समझ चुका हूं कि दुनियां में किसी भी चीज़ की खासियत उसके रंग रूप से नहीं होती बल्कि उसके गुणों से होती है। तुम्हारी सबसे बड़ी खूबसूरती और सबसे बड़ी खासियत यही है कि तुम में गुणों की कोई कमी नहीं है। आज मैं सच में तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में पा कर बेहद खुश हूं।"

विशेष जी के द्वारा कहे गए एक एक शब्द जैसे मेरे दिलो दिमाग़ से उतर कर मेरी रूह को मीठा सा एहसास करा गए थे और मेरे रोम रोम को पुलकित कर गए थे। मेरे समूचे जिस्म में ख़ुशी की लहर दौड़ गई और मैं एक झटके से आगे बढ़ कर उनसे लिपट गई थी। उन्होंने खुद भी मुझे अपने सीने से ऐसे छुपका लिया था जैसे सच में मैं उनकी सबसे प्यारी और सबसे ख़ास चीज़ थी। मैं भला ये कैसे सोच सकती थी कि मेरे साथ उनके द्वारा किया गया हर कार्य महज एक छलावा था? एक ऐसा षड़यंत्र था जिसके बारे में मेरे जैसी औरत कल्पना भी नहीं कर सकती थी। ख़ैर उस रात विशेष जी ने मुझे हद से ज़्यादा प्यार दिया और मैं स्वीकार करती हूं कि उनके दिए हुए उस प्यार से मैं संतुष्ट भी हुई थी।

साढ़े चार सालों बाद मेरी ज़िन्दगी में खुशियां आईं थी और मैं उन खुशियों में इस तरह डूब चुकी थी कि मुझे बाकी किसी भी चीज़ के बारे में सोचने का ख़याल ही नहीं रह गया था। विशेष जी सुबह आठ बजे ऑफिस जाते थे इस लिए मैं उनके लिए खाने का टिफिन तैयार कर देती थी। उनके ऑफिस जाने के बाद घर के सारे काम करती और फिर सारा दिन उनके इंतज़ार में बैठी रहती। उनके इंतज़ार में एक एक पल गुज़ारना जैसे भारी हो जाता था। मन करता था कि जल्दी से शाम हो और मैं अपने उस पति का चेहरा देखूं जो मुझे सबसे ज़्यादा प्यार करता था। मैं अपनी तरफ से हर वो कोशिश करती थी जिससे विशेष जी मुझसे खुश ही रहें और मेरे प्रति उनका ये प्यार कम न होने पाए। हालांकि उनके प्यार में मैंने कमी महसूस भी नहीं की थी बल्कि दिन पर दिन उनका प्यार बढ़ता ही जा रहा था और मैं उनके प्यार से मिलने वाली इस ख़ुशी को सम्हाल ही नहीं पा रही थी। कभी कभी मैं मन ही मन ऊपर वाले से कहने लगती कि इतना प्यार और इतनी खुशियों की तो मैंने कभी कल्पना ही नहीं की थी और ना ही मुझे इन खुशियों को सम्हालने का तज़ुर्बा है इस लिए ऐसा मत होने देना कि अगर मैं इन्हें सम्हाल न पाऊं तो ये खुशियां कम होने लगें।

कुछ दिन पहले कहां मैं ये सोचा करती थी कि ज़िन्दगी बड़ी ही कठोर और मेरी तरह ही बदसूरत होती है लेकिन इस सबकी वजह से मेरी सोच और मेरे ख़यालात बदल गए थे। अब मैं ये सोचने लगी थी कि ज़िन्दगी तो सच में बहुत खूबसूरत होती है। अगर किसी को इतना प्यार और इतनी खुशियां मिलने लगें तो वास्तव में ज़िन्दगी खूबसूरत ही कहलाएगी। विशेष जी ने मुझे तोहफे के रूप में एक टच स्क्रीन वाला मोबाइल खरीद कर दिया था। मैं उस मोबाइल से अपने माँ बाबू जी को फ़ोन लगाती और उनसे घंटों बातें करती रहती। मैं उन्हें बताती कि अब सब कुछ ठीक हो गया है और मेरे पति मुझे बहुत सारा प्यार दे रहे हैं जिसकी ख़ुशी में मैं हर पल डूबी रहती हूं। मेरे माँ बाबू जी मेरी इस बात से बेहद खुश थे। वो अक्सर कहते थे कि हम कहते थे न बेटी कि समय कभी भी एक जैसा नहीं रहता बल्कि वो बदलता रहता है। यानि दुःख के बादल एक दिन ज़रूर छंट जाते हैं और फिर जीवन में खुशियों का आगमन होता है।

खुशियां जब आती हैं तब इंसान उन खुशियों में इतना डूब जाता है कि उसे वक़्त के गुज़रने का एहसास ही नहीं हो पाता। यही हाल मेरा था। मेरी ज़िन्दगी में अचानक से इतनी खुशियां आ गईं थी कि मैं पूरी तरह उसमें डूब चुकी थी जिसकी वजह से मुझे ये पता ही नहीं चल पाया कि कितना वक़्त गुज़र गया?

एक रात अपनी समझ में मैं बेड पर विशेष जी के सीने से छुपकी चैन की नींद सो रही थी। मुझे नहीं पता था कि उस वक़्त रात का कौन सा पहर चल रहा था? अचानक से मेरी नींद टूट गई थी। नींद टूटने की वजह ये थी कि मुझे ज़ोरों का पेशाब आया हुआ था। सोने से पहले हम दोनों ने एक दूसरे को भरपूर प्यार किया था और फिर उसी हालत में सो गए थे। ख़ैर नींद टूटी तो मैंने आँखें खोल कर देखा। कमरे में अँधेरा था लेकिन कमरे के एक कोने में टेबल लैंप जला हुआ नज़र आया मुझे। मैंने दिन के उजाले में क‌ई बार देखा था कि कमरे के उस कोने में एक कुर्सी टेबल रखी होती है जिसमें बैठ कर विशेष जी अक्सर अपने ऑफिस का काम करते थे।

टेबल लैंप को जलता देख मैं इतना तो समझ गई थी कि विशेष जी शायद अपने ऑफिस का कुछ काम कर रहे होंगे लेकिन मन में सवाल उभरा कि इतनी रात में उन्हें ऑफिस का काम करने की क्या ज़रूरत थी? मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि जा कर देखूं कि वो इतनी रात में अपने ऑफिस का कौन सा ऐसा काम कर रहे हैं लेकिन फिर मैंने ये सोच कर अपना इरादा बदल दिया कि मुझे बेवजह उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए। हो सकता है कि वो कोई ज़रूरी काम कर रहे हों और मेरे द्वारा डिस्टर्ब किए जाने पर उन्हें अच्छा न लगे। मैं भला ये कैसे चाह सकती थी कि मेरे द्वारा विशेष जी के किसी काम में अड़चन आए या वो मुझसे किसी वजह से नाराज़ हो जाएं? इस लिए मैं चुपके से उठ कर बेड पर बैठ गई। मुझे ज़ोर का पेशाब आया हुआ था इस लिए मैं बेड इस तरह उतरी कि कोई आवाज़ न हो। मैं नहीं चाहती थी कि मेरी आहट से उनका अपने काम पर से ध्यान टूटे। मैं बेड से उतर कर बाथरूम में चली गई। थोड़ी देर बाद वापस आई तो देखा विशेष जी अभी भी अपने काम में लगे हुए थे। मैं ये सोच कर थोड़ा हैरान हुई कि क्या उन्हें बाथरूम में मेरे द्वारा टॉयलेट शीट पर पानी डालने की आवाज़ न सुनाई दी होगी? अगर उन्हें सुनाई दी होती तो वो ज़रूर मेरे आने के बाद मेरी तरफ देखते और कुछ न कुछ ज़रूर कहते। इसका मतलब वो अपने काम में इतना डूबे हुए थे कि उन्हें बाकी किसी चीज़ का आभास ही नहीं हुआ था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि आख़िर वो ऐसे कौन से काम में इतना डूबे हुए थे कि उन्हें किसी बात का आभास तक नहीं हुआ?

मेरे मन में ये जानने की उत्सुकता जाग उठी थी लेकिन उनके क़रीब जा कर उनके काम को देखने की हिम्मत मैंने नहीं की, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं मेरे द्वारा ऐसा करने पर वो नाराज़ न हो जाएं। इस लिए मैं जिस ख़ामोशी से बेड से उतर कर बाथरूम गई थी उसी ख़ामोशी से मैं वापस आ कर बेड पर बैठ गई। मैंने मन ही मन सोचा कि मैं विशेष जी के काम पूरा हो जाने का इंतज़ार करती हूं और जब उनका काम पूरा हो जाएगा तो मैं उनसे इस बारे में पूछूंगी।

बेड पर उनकी तरफ ही करवट ले कर मैं लेट गई थी और देखने लगी थी कि वो कब तक अपने काम में लगे रहते हैं? लैंप की रौशनी में मुझे साफ़ नज़र आ रहा था कि वो किसी किताब में कुछ लिख रहे हैं। कभी वो लिखना बंद कर के कुछ सोचने लगते और सोचने के बाद वो फिर से लिखने लगते। मैं काफी देर तक उनका यही क्रिया कलाप देखती रही। क़रीब आधे घंटे बाद उन्होंने उस किताब को बंद किया और गर्दन घुमा कर एक बार मेरी तरफ देखा। मेरी तरफ क्योंकि अँधेरा था इस लिए उन्हें मैं नज़र नहीं आ सकती थी और अगर आ भी रही होती तो वो ये नहीं देख सकते थे कि मेरी आँखें खुली हुई हैं या मैं सोई हुई हूं। मैं तो बस ये सोच कर खुश हो रही थी कि विशेष जी को मुझे प्यार और ख़ुशी देने के चक्कर में अपने निजी काम करने का भी वक़्त नहीं मिलता। तभी तो वो इतनी रात को चुप चाप अपना काम कर रहे थे।

अभी मैं ये सोच सोच कर खुश ही हो रही थी कि तभी मैंने देखा कि विशेष जी ने उस किताब को अपने बगल से रखे बैग में डाल दिया और फिर अपने जनेऊ में बंधी चाभी से उस बैग में ताला लगा दिया। मुझे उनके द्वारा ऐसा करना थोड़ा अजीब सा लगा। मेरे मन में ख़याल उभरा कि आख़िर वो उस किताब में ऐसा क्या लिख रहे थे जिसे लिखने के बाद उन्होंने उस किताब को उस बैग में रख कर उसमें ताला लगा दिया था? स्वाभाविक रूप से मेरे मन में ये जानने की उत्सुकता और भी बढ़ चुकी थी। ज़हन में एक बार फिर ये ख़याल उभरा कि क्या मुझे उनसे इस बारे में पूछना चाहिए लेकिन फिर मन में ही जवाब के रूप में दूसरा ख़याल उभरा कि मुझे उनके निजी कामों के बारे में इस तरह नहीं पूछना चाहिए। क्योंकि संभव है कि उन्हें इस बात से अच्छा न लगे।

मैंने देखा कि विशेष जी कुर्सी से उठे और उस बैग को ले कर मेरी तरफ आए। मैंने फ़ौरन ही अपनी आँखें बंद कर ली थी। कुछ ही देर में मुझे बेड के नीचे कुछ खिसकने की आवाज़ सुनाई दी। मैं समझ गई कि वो खिसकने की आवाज़ किस चीज़ की थी। ख़ैर उसके बाद विशेष जी वापस गए और टेबल लैंप को बुझाने के बाद वो बेड पर आ कर लेट ग‌ए। इधर मैं आँखें बंद किए इस इंतज़ार में पड़ी रही कि शायद वो मेरी तरफ मुड़ेंगे और मुझसे कुछ कहेंगे या फिर मेरे साथ छुपक कर सो जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गए थे। मैं काफी देर तक उनके द्वारा कुछ कहे जाने या कुछ किए जाने का इंतज़ार करती रही लेकिन मेरी उम्मीद के विपरीत कुछ भी न हुआ बल्कि कुछ ही देर में मुझे उनके खर्राटों की हल्की आवाज़ सुनाई देने लगी थी। जहां तक मुझे याद है वो मेरे साथ जब बेड पर सोते थे तो मुझे अपने से छुपका कर ही सोते थे लेकिन इस वक़्त ऐसा नहीं हो रहा था। ये देख कर मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी लेकिन फिर मैंने सोचा कि शायद वो थके रहे होंगे इस लिए वो सो गए थे। ख़ैर उसके बाद मैं भी मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए सो गई थी।

दूसरे दिन हर रोज़ की तरह मैंने उनके लिए ब्रेकफास्ट रेडी किया और टिफिन सजा कर उन्हें दिया। रात वाली बात मेरे ज़हन से निकल चुकी थी। ख़ैर किसी तरह दिन गुज़रा और शाम हुई। विशेष जी घर आए और हमने रात में डिनर किया और प्यार करने के बाद सो गए। इत्तेफ़ाक़ से उस रात फिर से मेरी नींद पेशाब लगे होने की वजह से खुल गई थी और जब मैंने कमरे में इधर उधर नज़र घुमाई तो कमरे के एक कोने में टेबल लैंप की रौशनी दिखी। मेरे मन में ख़याल उभरा कि आज विशेष जी फिर से अपने किसी काम में लगे हुए हैं। मैं बाथरूम गई और वहां से जब वापस आई तो देखा वो वैसे ही लिखने में लगे हुए थे। उस रात भी उन्हें मेरे आने जाने का आभास नहीं हुआ था। मेरे मन में सवाल तो बहुत सारे उभरने लगे थे लेकिन मैंने उनसे कुछ पूछना ठीक नहीं समझा। ख़ैर बेड पर लेट कर मैं उन्हें देखती रही। पिछली रात की तरह ही उन्होंने कुछ समय बाद उस किताब को बंद किया और उसे बैग में रख कर बैग में ताला लगा दिया। उसके बाद उस बैग को बेड के नीचे खिसका कर वो बेड पर दूसरी तरफ को करवट ले कर लेट ग‌ए।

मैं बार बार यही सोचती थी कि विशेष जी से इस बारे में पूछूं कि आख़िर वो इतनी रात में कौन सा काम करते हैं लेकिन हर बार मैं ये सोच कर अपना ख़याल बदल देती कि मुझे उनके निजी कामों के बारे में नहीं पूछना चाहिए। मुझे ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए जिसकी वजह से वर्षों बाद मिली मेरी इन खुशियों पर ग्रहण लग जाए। अपने अब तक के जीवन में मैंने सिर्फ और सिर्फ दुःख दर्द ही सहे थे इस लिए इन खुशियों के मिलने के बाद अब मैं ग़लती से भी ऐसा कुछ नहीं कर देना चाहती थी जिसकी वजह से फिर से पहले जैसे दुःख दर्द मेरे जीवन का हिस्सा बन जाएं।

अगले एक दो दिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैंने भी सोचा कि मुझे इस बारे में इतना ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है कि हम ग़लतफ़हमी का शिकार हो जाते हैं और अपने ही हाथों अपना सब कुछ बर्बाद कर लेते हैं। मेरे जीवन ने और मेरे दुःख दर्द ने इतना तो मुझे सिखा ही दिया था कि परिस्थितियों से कैसे समझौता करना चाहिए। मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात थी कि मेरे जैसी कुरूप औरत को उसके पति ने अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया था और उसे इतना प्यार तथा इतनी खुशियां दे रहा था। मुझे इससे ज़्यादा और भला क्या चाहिए था?

हर इंसान अपने हिसाब से और अपने बुद्धि विवेक से जीवन में आगे बढ़ता रहता है और साथ ही वो परिस्थितियों के अनुसार अपने मन में हसरतें पालता रहता है लेकिन होता वही है जो ऊपर वाला चाहता है। मेरे जीवन में खुशियों के बस चार दिन ही लिखे थे। उसके बाद फिर से वही दुःख दर्द का चक्कर शुरू हो जाना था।

एक रात फिर से मेरी नींद टूट गई और फिर से मैंने विशेष जी को वैसे ही टेबल लैंप की रौशनी में किताब पर कुछ लिखते हुए देखा और फिर उस किताब को बैग में रखने के बाद उस बैग को ताला लगाते देखा। किसी इंसान को एक दो बार वहम हो सकता है या उसके साथ ऐसा इत्तेफ़ाक़ हो सकता है लेकिन बार बार तो नहीं? हम कितना भी ख़ुद को समझाएं लेकिन हमारा मन तब तक आपको शान्ति से बैठने नहीं देता जब तक कि ख़ुद उसके अंदर शान्ति और सुकून न आ जाए।

मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि विशेष जी उस किताब में कौन सी इबारत लिखते थे। मैं तो बस ये सोच कर एक बार उस किताब में लिखी इबारत को देख लेना चाहती थी कि आख़िर वो उसमें ऐसा क्या लिखते हैं जिसके लिए उन्हें और कोई वक़्त ही नहीं मिलता, सिर्फ आधी रात का ही वक़्त मिलता है? आख़िर ऐसा उस किताब में वो क्या लिखते हैं जिसके लिए उन्हें अपनी नींद ख़राब करनी पड़ती है? मेरे मन में विशेष जी के लिए बस एक फ़िक्र ही थी। भला मैं अपने इतना प्यार करने वाले पति को किसी तरह की चिंता या तक़लीफ में कैसे देख सकती थी? इस लिए मैंने फ़ैसला कर लिया था कि ग़लत ही सही लेकिन अब मैं ये जान कर ही रहूंगी।

उस रात जब विशेष जी सो गए तो मैं चुपके से उठ कर बेड से नीचे उतरी। बेड के नीचे से मैंने वो बैग निकाला और बैग को उठा कर उसके साथ ही ताले वाले हिस्से को बेड के उस हिस्से पर रखा जहां पर मेरे अंदाज़े के अनुसार विशेष जी के जनेऊ में उस ताले की चाभी हो सकती थी। उस वक़्त डर और घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल तो था लेकिन मन में उनके प्रति फ़िक्र और उत्सुकता की वजह से मैं कुछ भी करने के लिए मजबूर हो चुकी थी। मैंने बड़ी ही सावधानी से विशेष जी के जनेऊ में बंधी चाभी पकड़ी और उससे बैग के ताले को खोला। मेरे दिल की धड़कनें धाड़ धाड़ कर के मेरी कनपटियों पर चोट कर रहीं थी। घबराहट के मारे मेरा चेहरा पसीने से भर गया था। ख़ैर ताला खुल गया तो मैंने ताले से चाभी निकाल दिया। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर चाभी ताले में ही फंसी रह गई तो उससे वजन पैदा हो जाता और विशेष जी के द्वारा बेड पर इधर उधर करवट लेने से वो वजन उन्हें जगा भी सकता था।

बैग को बड़ी सावधानी से ले कर मैं टेबल के पास आई। अभी मैं टेबल लैंप को जलाने के लिए बटन दबाने ही वाली थी कि तभी मेरे मन में ख़याल उभरा कि अगर विशेष जी किसी वजह से जाग गए और उन्होंने टेबल लैंप को जलते हुए देखा तो गज़ब हो जाएगा। ये सोच कर मैंने मोबाइल की स्क्रीन के उजाले द्वारा बैग से वो किताब निकाली और फिर बैग को बेड के नीचे आहिस्ता से सरका दिया। उसके बाद मैं उस किताब को ले कर बाथरूम में घुस गई। बाथरूम के दरवाज़े को अंदर से बंद कर के मैंने मोबाइल की टार्च जला कर उस किताब को खोला। इस वक़्त मेरी हालत चोरों वाली हो गई थी। मन में एक डर सा समाया हुआ था कि अगर विशेष जी के द्वारा पकड़ी गई तो शायद अनर्थ ही हो जाए और फिर मेरा जीवन पहले की ही तरह नर्क जैसा बन जाए।

✧✧✧
 

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
Supreme
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Interesting turn par update roka

Ab to intzar hi karna padega
10th update me story se related shayad dusra comment aur wo bhi is tarah ka. Btw party leaders ne sahyog aur vikas ke waade kiye hain. Chaliye ye bhi dekh lenge,,,,:D

Waise baaki koi waade pure ho ya na ho lekin :daru: me kami mat kijiyega bcoz I love :daru:
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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दूसरे अध्याय का चौथा भाग।
बहुत ही बेहतरीन कहानी महोदय,
जीवन मे सुख दुःख तो लगा ही रहता है लेकिन रूपा की ज़िंदगी मे सुख के क्षण बहुत कम ही लिखे थे। रूपा ने एक पत्नी होने के नाते वो सब कुछ किया जो एक अच्छी और संस्कारी पत्नी को करना चाहिए, लेकिन अपने रूप के कारण वो कभी भी अपने पति का दिल नहीं जीत पाई। उसके जीवन मे थोड़ी बहुत जो नाममात्र की खुशियां आई थी वो बस विशेष की एक खतरनाक चाल का हिस्सा थी।
वो कहते हैं न कि इंसान चाहे कितना भी चालाक और शातिर हो, लेकिन सामने वाले को कभी भी कमजोर या बेवकूफ नहीं समझना चाहिए। विशेष ने प्लान बहुत अच्छा बनाया, लेकिन उसने रूपा को कम आंकने की गलती की। तीन रात विशेष को जागकर कुछ लिखते और उसे ताले के अंदर रखते देखकर रूपा के मन मे विशेष को लेकर शक बैठ गया और वो एक रात मक पाकर विशेष के लिखे गए कारनामें को पढ़ने की तैयारी कर ली है।।
 
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डायरी लिखना " आ बैल मुझे मार " वाली बात हो गई विशेष के लिए । रात के वक्त बीवी की मौजूदगी में ही वह डायरी लिखता रहा । क्या उसे ऐसा नहीं लगा कि उसकी पत्नी कभी भी उठ सकती है और उसे डायरी लिखते हुए देख सकती है ? और यदि देख लिया तो वो पढ़ने की कोशिश कर सकती है ? और अगर पढ़ लिया तो उसके सारे राज खुल सकते हैं ?
एकाध दिन की बात हो तो सावधानी बरती जा सकती है लेकिन यदि रोज का ही काम हो तो पकड़े जाने का चांसेज हो सकता है । कुलीग को मारने और उसके कत्ल में अपनी बीवी को फंसाने का अच्छा स्कीम बनाया था उसने लेकिन डायरी वाले मामले में बेवकुफी कर दी ।

खैर , रूपा को डायरी से सब कुछ पता चल ही गया होगा । पर देखना है उसने उन दोनों का कतल कैसे किया !

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट शुभम भाई ।
 
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