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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

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Rockstar_Rocky

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Bahot shaandar mazedaar lajawab update Manu Bhai
Bahot shaandar mazedaar lajawab update Manu bhai
Shaandar mazedaar bahot lajawab update Manu Bhai

बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
मेरी अपडेट देने की गति बढ़ी तो आपकी पढ़ने की गति कम हो गई?!
 

Ajay

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 17



अब तक आपने पढ़ा:


मैं: 10K यानी 10 Kisses!
Kisses सुन कर भौजी की जान में जान आई और उनके दोनों गाल गुलाबी हो गए!
भौजी: सब एक साथ दूँ की किश्तों में?
भौजी शर्माते हुए बोलीं!
मैं: Madam जी हमारे पास तो सारे plans हैं!
मैंने किसी दुकानदार की तरह बात की, मेरी बात सुन भौजी मुस्कुराने लगीं|
मैं: चाहो तो One-time payment कर दो या फिर घंटों के हिसाब से EMI बाँध लो!
मैंने अपने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा|
मैं: लेकिन एक बात बता दूँ, दोनों ही सूरतों में हम 'ब्याज' तगड़ा लेते हैं!
मैंने 'ब्याज; शब्द पर जोर देते हुए कहा! भौजी मेरी बात समझ चुकी थीं और मोल चुकाने के लिए तैयार थीं लेकिन बच्चों की मौजूदगी थी तो इस वक़्त मैंने अपनी 'दूकान' का shutter down कर दिया! भौजी का दिल अब फिर से ख़ुशी से भर चूका था, मगर मैं जानता था की चन्दर जर्रूर फ़ोन को ले कर भौजी को तंग करेगा इसलिए मैंने अपनी आवाज सख्त करते हुए कहा;
मैं: अगर वो (चन्दर) कुछ बोले तो मुझे बताना!
मेरी बात सुन भौजी ने हाँ में सर हिलाया और आयुष को अपने सोने को कहा| अपनी मम्मी के पास सोने पर उसे आज रातभर नए फ़ोन के साथ खेलने को मिलता इसलिए आयुष ख़ुशी-ख़ुशी अपनी मम्मी के साथ चला गया| आयुष के जाते ही नेहा मेरे फ़ोन से खेलने लगी, फिर मैंने उसे कहानी सुनाई और दोनों बाप-बेटी लिपट कर सो गए|




अब आगे:



अगले
दो दिन मैं काम में काफी व्यस्त रहा, मगर मेरी और भौजी की बातें whats's app पर होती रहीं| तीसरे दिन मुझे नए project के लिए budget बनाना था, इसलिए मैं अपने कमरे में काम कर रहा था जब भौजी मेरे लिए चाय ले कर आईं;

भौजी: जानू आपको पता है मैंने फ़ोन में search कर के अंग्रेजी के नए नए शब्द सिखने शुरू कर दिए!

भौजी इठलाते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा जी? मेरी जानेमन तो बहुत smart है?

मैंने भौजी की तारीफ करते हुए कहा| अपनी तारीफ सुन भौजी अपनी शेखी बघारने लगीं;

भौजी: और न मैंने है न माँ को internet से बहुत सारी recipe पढ़ कर सुनाईं! फिर न मैंने माँ को खाना बनाने वाली वीडियो भी दिखाई, फिर न मैंने google पर words के meaning ढूँढे! गाँव में तो मुझे dictionary में शब्द ढूँढना पड़ता था, मगर यहाँ तो सब फ़ट से मिल जाता है!

भौजी बच्चों की तरह अपनी बातें बताने में लगी थीं और मैं प्यारभरी नजरों से उनका ये बचपना देख कर आनंद ले रहा था|

कुछ पल बाद भौजी ने अपना फ़ोन का बखान करना बंद किया और बड़ा दिलचस्प सवाल पुछा;

भौजी: जानू....आपको याद है......आपने गाँव में मुझे porn देखने के बारे में बताया था?

भौजी ने जिस तरह अपनी बात खींच कर कही थी उससे मैं भौजी के दिमाग में उठ रही खुराफात समझ गया था|

मैं: हाँ तो?

मैंने जानबूझ कर अपना ध्यान काम में लगाते हुए कहा| भौजी ने मेरी ठुड्डी पकड़ी और अपनी तरफ घुमाते हुए बड़े ही शरारती ढंग से बोलीं;

भौजी: मुझे भी देखना है!

भौजी की बात सुन मैं दंग रह गया और आँखें बड़ी कर के उन्हें देखने लगा!

मैं: अच्छे बच्चे ये सब नहीं देखते!

कुछ देर पहले जो भौजी बच्ची बनी मुझसे बात कर रहीं थीं, मैंने उसी बात को मद्दे नजर रखते हुए कहा| मेरा खुद को बच्चा कहने से भौजी ने अपना मुँह डब्बे जैसा फुला लिया!

भौजी: मुझे देखना है....मुझे देखना है....मुझे देखना है!

भौजी ने नाराज होते हुए बच्चों की तरह अपनी बात दोहरानी शुरू कर दी! भौजी का इस तरह जिद्द करता देख मुझे बहुत मजा आ रहा था और मैं अपने हाथ बाँधे धीमे-धीमे मुस्कुराये जा रहा था|

भौजी: जानू....pleaseeeeeee.....बस एक बार! अब पहले ही आप मुझे 'उस तरह' प्यार नहीं करते, कम से कम एक बार 'वो' (porn) दिखा तो दो?!

भौजी विनती करते हुए बोलीं| मैं भौजी की भोली-भाली बातों में आ गया और उन्हें porn दिखाने के लिए तैयार हो गया| जब से भौजी ने गाँव में मुझे ये सब देखने से मना किया था तब से मैंने आज तक porn नहीं देखा था, इसलिए porn देखने की चुल्ल तो मुझे भी थी! मैंने desktop चालु किया, उसमें headphones attach किये और सीधा एक porn website खोलने लगा| उस समय हमारी माननीय सरकार ने porn websites पर ban लगा दिया था इसलिए किसी भी website का link नहीं खुला| अब मैंने Google पर VPN search करना शुरू किया, इस दौरान भौजी थोड़ी बेसब्र हो चली थीं इसलिए वो बीच में बोलीं;

भौजी: और कितना टाइम लगेगा?

मैं: जान, सरकार ने porn website ban कर रखीं हैं, इसलिए मैं VPN ढूँढ रहा हूँ!

जैसे ही मैंने उन्हीं सरकार द्वारा ban की बात बताई भौजी घबरा गईं और बोलीं;

भौजी: तब रहने दो, कहीं पुलिस-वुलिस का चक्कर पड़ गया तो बहुत बदनामी होगी!

भौजी को घबराते देख मैं हँसने लगा|

मैं: ओ मेरी प्यारी मेहबूबा! ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं इसीलिए VPN use कर रहा हूँ|

मेरा भौजी को मेहबूबा कहना बहुत अच्छा लगा था इसलिए वो शर्म से दोहरी हो गईं!

भौजी: ये VPN क्या होता है 'जी'?

भौजी ने किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह अपने पति के लिए 'जी' लगा कर कहा|

मैं: जब हम internet पर browsing करते हैं तो हमारा IP address दिखता है, अगर किसी को हमें पकड़ना होता है तो वो इस IP address के बदौलत पकड़ सकता है! कोई हमें न पकड़ सके इसके लिए मैं VPN use करता हूँ, VPN हमारा IP address छुपा लेता है और उसकी जगह एक नक़ली जगह का नकली IP address देता है! तो VPN इस्तेमाल करते हुए हम आराम से porn देख सकते हैं!

अब जिसने कभी इस तरह का तिगड़म वाला काम न किया हो उसका डरना स्वाभाविक है, यही कारन था की भौजी अब भी घबरा रहीं थीं| लेकिन जब मैंने porn website खोली और पहली video भौजी को चला कर दिखाई तो भौजी का डर भाग गाया तथा उसकी जगह कामोत्तेजना ने ले ली!



Computer पर sex scene देख कर भौजी का मुँह खुला का खुला रह गया, वो ये तक भूल गईं की घर पर हमारे इलावा माँ भी मौजूद हैं और वो कभी भी यहाँ आ सकती हैं! अब मैं पहले भी इस तरह छुप कर porn देख चूका था इसलिए मेरी नजर दरवाजे तथा screen दोनों पर थी| इधर भौजी से खड़े हो कर porn देखना मुश्किल हो रहा था इसलिए उन्होंने कुर्सी खींची और मेरी बगल में बैठ कर दिल लगा कर porn video देखने लगीं! दो मिनट बाद video खतम हुई तो भौजी किसी लालची इंसान की तरह बोलीं;

भौजी: दूसरी वाली लगाओ!

भौजी का इस तरह बेसब्र होना देख कर मैं फिर मुस्कुराने लगा! मैंने अगली video चलाई तो वो पहली वाली से भी जबरदस्त थी! भरे-पूरे शरीर वाली एक लड़की एक लड़के के साथ जम कर sex कर रही थी! ये वीडियो देख हम दोनों की उत्तेजना बढ़ने लगी थी, मेरा कामदण्ड अपना प्रगाढ़ रूप ले रहा था और भौजी के मुँह से; "सससस...ससस...ससस" की सिसकारियाँ फूटने लगीं थीं! अगले ही पल भौजी ने मेरा बायाँ हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ पर रख दिया और मुझे साडी के ऊपर से अपनी योनि सहलाने का मूक निमंत्रण दिया! मेरा दिमाग उस समय वैसे ही काम नहीं कर रहा था इसलिए मैंने धीरे-धीरे अपनी उँगलियों से साडी के ऊपर से भौजी की योनि की टोह लेना शुरू कर दिया| उधर भौजी ने अपना हाथ मेरे कामदण्ड पर रख दिया और उसे दबाने लगीं! पाजामे के ऊपर से ही सही, 5 साल बाद ये हमारा पहला स्पर्श था! भौजी की उँगलियों ने अपना जादू चलाना शुरू कर दिया था और उनके बस दबाने भर से मैं लगभग अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँचने वाला था! मुझे अपनी हद्द पता थी इसलिए मैंने अपने दाहिने हाथ को भौजी के हाथ पर रख कर अपने कामदण्ड पर से हटा दिया! मेरा ऐसा करने से भौजी अवाक हो कर मुझे देखने लगीं, मैंने न में सर हिलाया और गर्दन के इशारे से उन्हें video देखने को कहा| भौजी के चेहरे पर एक नक़ली मुस्कान आई और वो वीडियो देखने लगीं| कुछ पल बाद मैंने अपना बायाँ हाथ भौजी की योनि पर से हटा लिया, मैं जानता था की मेरा उन्हें रोकना बुरा लगा है मगर मैं भी अपने कारणों के आगे मजबूर था!

खैर कुछ देर बाद बच्चों के school से आने का समय हुआ तो भौजी उठ कर खाना बनाने चली गईं| मुझे लगा की आज के बाद भौजी फिर कभी porn नहीं देखना चाहेंगी मगर ऐसा नहीं था, भौजी को porn देखने का चस्का लग चूका था! दोपहर को खाना खाने के बाद बच्चे माँ के पास सो गए, मैं अपना काम ले कर बैठक में बैठा था जब भौजी मेरे पास आ कर बैठीं और हमारे बीच खुसर-फुसर शुरू हुई;

भौजी: जानू आज जो हमने porn देखा आपको उसमें 'मज़ा' आया?

भौजी ने अपनी आँखें गोल घुमाते हुए पुछा| मैं भौजी के सवाल में मौजूद शरारत भाँप गया और मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: मज़ा तो आपको आया!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा|

भौजी: मुझे तो मज़ा आया ही, लेकिन ये video देख कर मेरे मन में एक सवाल पैदा हो गया!

किसी भी नारी के मन में हमेशा ये जानने की ललक होती है की उसके प्रियतम के मन को क्या भाता है और जब बात sex की आती है तो नारी की जिज्ञासा और बढ़ जाती है! उसे जनना होता है की मर्द को sex में क्या लुभाता है, जैसे जिस्म की बनावट (मोटा-पतला), स्तनों का आकार, पिछाड़ी (गाँड़) का आकार (बड़ी या छोटी), कमर का कटाव आदि! मर्द को कौन सा आसन, कौन सी क्रिया पसंद होती है और क्या वो मर्द की ये इच्छा पूरी कर सकती है या नहीं? कुछ ऐसे ही सवाल भौजी के मन में पैदा हो गए थे और उन्हें मुझसे ये सवाल सीधा-सीधा पूछने में संकोच हो रहा था, आखिर हम बँधे ही ऐसे रिश्तों से थे!



कुछ सेकंड सोचने के बाद भौजी ने बड़ी हिम्मत कर के मुझसे अपना सवाल पूछ ही लिया;

भौजी: जानू आपको video वाली लड़की में क्या अच्छा लगा?

अब अगर हम दोनों की शादी हुई होती तो ये मेरे लिए ‘trick question’ होता, अगर मैं भावना में बहकर उन्हें अपनी पसंद बताने की गलती करता तो मरते दम तक मुझे इसके ताने मारे जाते! लेकिन हमारी शादी नहीं हुई थी और मैं जानता था की अगर मैं भौजी को अपनी पसंद बताने लगा तो वो खुद की तुलना उस लड़की से करने लगेंगी और मेरे उनसे जिस्मानी रिश्ते न बनाने को जोड़ देंगी! बेकार में वो खुद कम आकर्षक आंकेंगी और inferiority complex महसूस करेंगी| मुझे भौजी को आराम से समझना था ताकि वो कभी ये ख्याल अपने मन में न लाएँ की वो किसी भी लड़की से कम हैं;

मैं: मेरी सजनी जी! मैं सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ, मेरे मन-मंदिर में केवल आपकी सूरत बसी है! मेरे लिए आप दुनिया की सबसे खूबसूरत नारी हो, आपके आगे किसी दूसरी का क्या मोल? खुद को यूँ किसी दूसरी से मत तौलो, क्योंकि जो आप में है वो उसमें कभी हो ही नहीं सकता और वो है आपका प्यारा सा दिल जो सिर्फ मेरे लिए धड़कता है! मेरे लिए बाहरी खूबसूरती नहीं बल्कि मन की सुंदरता मायने रखती है, इसलिए कभी ऐसा कुछ भी उल्टा-पुल्टा मत सोचना!

मैंने बड़े इत्मीनान से अपनी बात रखी जो भौजी के दिल में उतर गई और वो खुश हो कर मुझे प्यार भरी नजरों से देखने लगीं| अब चूँकि भौजी खुश थीं तो समय था उनसे video देखते समय किये मेरे व्यवहार के लिए माफ़ी माँगने का;

मैं: मैंने उस समय आपके साथ जो व्यवहार किया उसके लिए I'm sorry जान!

भौजी ने मेरे कँधे पर हाथ रख कर मुझे ग्लानि महसूस करने से रोका और सीधा सवाल पूछ डाला;

भौजी: जानू आपको sorry कहने की कोई जर्रूरत नहीं है! मेरा बस आपसे एक सवाल है, आपका 'उसके' (sex के) लिए मना करने का तर्क मैंने मान लिया मगर आपने उस समय मुझे आपके उसको (कामदण्ड को) कपडे के ऊपर से स्पर्श करने से क्यों रोका?

भौजी का सवाल सुन मैंने उन्हें सब सच बताया;

मैं: जान आपके छूने भर से मेरा सब्र जवाब दे जाता और फिर वो हो जाता जिसके लिए मैं आपको मना कर रहा हूँ! हम दोनों का रिश्ता बस इस एक नियम से बँधा है तो प्लीज इस नियम को मत तोड़ो!

मैंने भौजी से विनती की जो उन्होंने 'मेरा मन रखने के लिए मान ली!'

भौजी: ठीक है जानू! हम साथ कुछ करें न करें पर कम से कम साथ porn तो देख ही सकते हैं न? अब please इसके लिए मना मत करना!

भौजी ने हाथ जोड़ते हुए कहा| अब मैं इतना निर्दई तो था नहीं की भौजी को इतनी सी बात के लिए तरसाऊँ इसलिए मैं मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दिया|

हम अभी बात ही कर रहे थे की आयुष उठ कर आ गया और मेरी गोदी में चढ़ गया| अब बच्चों की मौजूदगी में न तो हम porn देख सकते थे न खुसफुसा कर बात कर सकते थे इसलिए भौजी टी.वी. देखने बैठ गईं और मैंने आयुष को लाड करना शुरू कर दिया| शाम को नेहा उठी तो उसने बताया की कल उसकी पहली computer class है, नेहा को computer operate करना नहीं आता था, पहले दिन नेहा की किरकिरी न हो इसलिये मैं दोनों बच्चों को computer सिखाने बैठ गया, मैंने दोनों बच्चों को Computer start करना, turn off करना, Notepad, Wordpad, Microsoft Word की थोड़ी-थोड़ी जानकारी दी| बाकी सब तो नेहा सीख गई मगर नेहा को केवल माउस चलाने में दिक्कत आ रही थी, laser mouse की sensitive होने के कारन नेहा जब क्लिक करती तो click की जगह mouse drag हो जाता| मैंने नेहा को गोद में बिठा कर उसका हाथ पकड़ कर mouse चलाना सिखाया जिससे नेहा का आत्मविश्वास बढ़ने लगा| उधर आयुष का हाथ इतना छोटा था की वो मेरा बड़ा सा mouse चला ही नहीं पाता था| बच्चों को computer चलाना देख भौजी की भी computer सीखने की इच्छा जाग गई और उन्होंने भी बच्चों के साथ computer सीखने की इच्छा जाहिर की;

भौजी: मुझे भी छिखाओ (सिखाओ न?

भौजी ने तुतलाते हुए कहा|

मैं: Computer सीखने की fees लगती है! बच्चे तो मीठी-मीठी fees देते हैं, आप दे पाओगे?

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा| भौजी ने आयुष की नकल करते हुए मुस्कुरा कर अपना सर हाँ ( :approve: ) में हिलाना शुरू कर दिया|

मैं: फ़ोन वाली किश्त (EMI) तो अभी तक दी नहीं, computer class की fees कब दोगे?!

मैंने भौजी को उल्हाना दिया तो भौजी हँस पड़ीं और बड़े ही नटखट अंदाज में बोलीं;

भौजी: मैंने तो कभी मना नहीं किया, लेकिन आपके पास मेरे लिए टाइम ही कहाँ हैं!

भौजी ने ठंडी आह भरते हुए मुझे दोषी बना दिया!

मैं: अच्छा जी? वक़्त आने दो, असल ब्याज सब वसूल कर लूँगा!

मैंने साहूकार की तरह कहा|

भौजी: हम इंतज़ार करेंगे,

हम इंतज़ार करेंगे,

क़यामत तक

खुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए

खुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए

हम इंतज़ार करेंगे!

भौजी का गाना गुनगुनाने लगीं| भौजी के गाने में छिपे उनके मन के भाव पढ़ कर मैं मुस्कुराने लगा, वहीं दोनों बच्चों ने तालियाँ बजानी शुरू कर दी!



अगले कुछ दिनों तक मैं समय मिलने पर भौजी और बच्चों को computer चलाना सिखाने लगा, मगर मेरी गैरमजूदगी में computer खराब होने के डर से कोई भी उसे नहीं छूता था, अब भले ही मैं रात को आऊँ पर computer चलता तभी था जब मैं घर पर मौजूद होता था|

वहीं तीन दिनों तक तो भौजी ने porn देखने की अपनी इच्छा को जैसे-तैसे दबा लिया, मगर चौथे दिन उनका सब्र जवाब दे गया| बच्चे स्कूल जा चुके थे और मैं साइट पर निकलने वाला था जब भौजी मेरे कमरे में आईं;

भौजी: जानू, आज 'वो' (porn) देखने का बहुत मन कर रहा है!

भौजी लजाते हुए बोलीं|

मैं: जान अभी काम पर जाना है, ऐसा करते हैं आज lunch करने के लिए मैं थोड़ा जल्दी आ जाऊँगा!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा| भौजी मेरा मतलब समझ गईं और शर्माने लगीं| मैं करीब बारह बजे घर पहुँच गया और हम दोनों ने आधा घंटा porn देखा| अब जब कभी हमें समय मिलता हम दोनों साथ बैठ कर porn देखने लगे|



एक दिन तो गजब हो गया, मैं साइट पर architect के साथ काम के बारे में चर्चा कर रहा था जब भौजी ने मुझे अचानक फ़ोन खड़का दिया! मैंने उनका फ़ोन काटा तो भौजी ने फिर फ़ोन खड़का दिया, मैंने दूसरी बार उनका फ़ोन काटा मगर भौजी ने तीसरी बार फिर फ़ोन खड़का दिया! मैंने architect को "excuse me" कहा और एक तरफ जा कर भौजी का फ़ोन उठाया;

भौजी: जानू, जल्दी से घर आ जाओ! माँ पड़ोस में गईं हैं और घर में कोई नहीं है तो हम आराम से 'वो' (porn) देख सकते हैं!

भौजी ख़ुशी से चहकते हुए बोलीं| मैंने अपना सर पीट लिया, एक बार को तो मन किया की उन्हें झाड़ दूँ पर उनकी इस हरकत पर मुझे प्यार आने लगा था!

मैं: मैं अभी एक meeting में हूँ, बाद में बात करता हूँ!

इतना कह मैंने फोन काट दिया|

शाम को जब मैं घर पहुँचा तो भौजी मुँह फुलाये घूम रहीं थीं, मैंने चुपके से उन्हें मेरे कमरे में आने का इशारा किया और अपने कमरे में आ गया| भौजी गिलास में पानी ले कर मेरे पास आईं, उनका मुँह अब भी फूला हुआ था| मैंने गिलास टेबल पर रखा और भौजी को अपने सीने से लगा लिया, भौजी अपना झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए मुझसे अलग हो कर बाहर जाने लगीं| मैंने भौजी का हाथ पकड़ा और झटका दे कर उन्हें अपनी ओर खींचा| भौजी आ कर मेरे सीने से आ लगीं, मैंने उनके सर को चूमा और बोला;

मैं: जान porn देखने के लिए मैं इस तरह काम छोड़ कर नहीं आ सकता न?!

ये सुन भौजी अपना नीचला होंठ फुलाते हुए बोलीं;

भौजी: एक तो शौक है मेरा और वो भी आप......

भौजी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने गप्प से उनके निचले होंठ को अपने मुख में भर लिया और उसका रस पीने लगा| जैसे ही मैंने भौजी के निचले होंठ को अपने मुख में लिया भौजी निढाल हो गईं और उनके जिस्म का सारा बोझ मेरे शरीर पर आ गया!



बच्चे और माँ घर पर थे इसलिए मैंने ये चुंबन कुछ पलों में ही तोड़ दिया, लेकिन इन कुछ पलों में ही भौजी का जिस्म थरथरा गया था! उनकी सांसें तेज हो चली थीं और उत्तेजना उन पर लगभग सवार हो ही चुकी थी!

मैं: चलो आज आपसे पहली किश्त ले ही ली मैंने!

मैंने अपनी होठों पर जीभ फिराते हुए कहा|

भौजी: ठीक से कहाँ ली?

भौजी शिकायत करते हुए बोलीं!

मैं: किश्त ली न, 'ब्याज' थोड़े ही लिया?!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा| इससे पहले की भौजी हम इंतजार करेंगे कह कर उल्हाना देतीं मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा;

मैं: अपना फ़ोन लाओ!

भौजी अपना फ़ोन ले आईं| मैंने उन्हें अपने बराबर बिठाया और फ़ोन में VPN चलाते हुए porn देखना सीखा दिया|

मैं: जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो porn देखने का तो ऐसे देख लेना!

फ़ोन में porn देखने से भौजी खुश तो हुईं मगर मेरा बिना देखने का उनका मन नहीं था!

भौजी: आपके बिना मन नहीं करेगा?

भौजी उदास होते हुए बोलीं|

मैं: जान मैंने कहा की ‘जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो तब’, वरना तो हम साथ ही देखेंगे! लेकिन ध्यान रखना की कोई आपको porn देखते हुए देख न ले!

भौजी मेरी बात मन गईं और जब कभी मैं घर नहीं होता और उनका मन porn देखने का होता था तो वो छुपके porn देखने लगीं!



जारी रहेगा भाग - 19 में...
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Rockstar_Rocky

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 18



अब तक आपने पढ़ा:



मैं: अपना फ़ोन लाओ!

भौजी अपना फ़ोन ले आईं| मैंने उन्हें अपने बराबर बिठाया और फ़ोन में VPN चलाते हुए porn देखना सीखा दिया|

मैं: जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो porn देखने का तो ऐसे देख लेना!

फ़ोन में porn देखने से भौजी खुश तो हुईं मगर मेरा बिना देखने का उनका मन नहीं था!

भौजी: आपके बिना मन नहीं करेगा?

भौजी उदास होते हुए बोलीं|

मैं: जान मैंने कहा की ‘जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो तब’, वरना तो हम साथ ही देखेंगे! लेकिन ध्यान रखना की कोई आपको porn देखते हुए देख न ले!

भौजी मेरी बात मन गईं और जब कभी मैं घर नहीं होता और उनका मन porn देखने का होता था तो वो छुपके porn देखने लगीं!



अब आगे:


अगला एक हफ्ता काम के कारन मैं बहुत व्यस्त रहा, इस समय एक साथ 4 साइट पर काम चल रहा था| माल गिरवाना और एक साइट से दूसरी साइट पर लेबर को घुमाने में बड़ा टाइम लगता था, ऊपर से सतीश जी भी अपने फ्लैट का काम करवाने के लिए हमारे पीछे पड़े थे| इसी सब के चलते मैं काम में बहुत व्यस्त था, बच्चों के जागने से पहले निकल जाता और रात को उनके सोने के बाद ही घर लौटता| रात को सोते समय बच्चों को मुझसे थोड़ा बहुत प्यार मिल जाता था लेकिन भौजी बेचारी मेरे प्यार के लिए तरस रहीं थीं|



रविवार का दिन आया और मैं सुबह जल्दी उठ कर बाथरूम में नहा रहा था| बच्चे अभी भी सो रहे थे, भौजी उन्हें जगाने आईं मगर बच्चे और सोना चाहते थे| मैं बाथरूम से निकला तो देखा भौजी मेरी ओर पीठ कर के बच्चों को उठने के लिए कह रहीं थीं| भौजी को यूँ देख कर मेरा मन मचलने लगा, मैं दबे पाँव उनके नजदीक आया और अपने दोनों हाथों को भौजी की कमर से होते हुए उनकी नाभि पर कस लिए तथा उन्हें कस कर अपने सीने से लगा लिया! भौजी मेरा स्पर्श पहचानती थीं, वो एकदम से मेरी तरफ घूमीं और मुझसे शिकायत करते हुए बोलीं;

भौजी: मुझ पर जरा भी तरस नहीं आता न आपको? एक हफ्ते से आपको ठीक से देख भी नहीं पाई!

मैं: मेरी जान, मुझे माफ़ कर दो! काम इतना बढ़ गया है इसलिए टाइम नहीं मिल रहा था, मैं ध्यान रखूँगा की अपनी जानेमन को दुबारा शिकायत का मौका न दूँ!

मैंने भौजी के माथे को चूमते हुए कहा| तभी दोनों बच्चे जाग गए और पलंग पर खड़े हो कर ख़ुशी से कूदने लगे!

मैं भौजी से अलग हुआ और दोनों को बच्चों को अपनी बाहों में भर कर लाड करने लगा| पिता का लाड-प्यार मिला तो बच्चों को सब कुछ मिल गया था, वहीं इतने दिनों बाद बच्चों को यूँ सीने से लगा कर मन प्रफुल्लित हो गया था! मिनट भर मैं बच्चों को ऐसे ही अपने सीने से चिपटाये खड़ा था की तभी आयुष बोला;

आयुष: पापा जी नीनी आ रही है!

इतना सुन्ना था की मैं दोनों बच्चों को अपनी छाती से चिपटाये लेट गया, मैंने सोचा आज थोड़ा लेट चला जाऊँगा मगर बच्चों को सुलाने के चक्कर में मेरी भी आँख लग गई! माँ 8 बजे मुझे उठाने आईं और बच्चों के साथ ऐसे लिपट कर सोता देख चुपचाप वापस चली गईं| माँ के बाहर आने पर पिताजी ने मेरे बारे में पुछा तो माँ बोलीं;

माँ: आज मानु को घर रहने दो, पिछले एक हफ्ते से बहुत भगा-दौड़ी कर रहा है!

माँ की बात सुन पिताजी कुछ सोचने लगे और फिर बोले;

पिताजी: ठीक है मानु की माँ, आज भर आराम कर लेने दो कहीं उसकी तबियत न खराब हो जाए!

पिताजी ने नाश्ता कर लिया था इसलिए वो अकेले साइट पर चले गए|



चन्दर ने पिछले कुछ दिनों से रात को साइट पर रुकना शुरू कर दिया था, दरअसल दिन में उसने अपने कुछ निजी ठेके निपटाने शुरू कर दिए थे, इन ठेकों से जो कमाई हो रही थी वो चन्दर की थी| दिन का समय वो अपनी जेब भरनेमें लगा देता था इसलिए रात का समय वो पिताजी के काम को देता था| कभी-कभार वो रात को देर से आता था तो कभी सुबह 8-9 बजे आ कर नहा-धो कर अपने निजी ठेके पर काम करवाने चला जाता था| पिताजी अपने बड़े भाई के कारन चन्दर को कुछ कहते नहीं थे, वरना अगर मैं इस तरह कर रहा होता तो मुझे खूब डाँटते!



नौ बजे मैं हड़बड़ा कर जागा, बच्चे अब भी कस कर मुझसे लिपटे हुए सो रहे थे| उन्हें यूँ सोता हुआ छोड़ कर जाने का मन तो नहीं था लेकिन रोज़ी से मुँह भी नहीं मोड़ सकता था| तैयार हो कर मैं बाहर आया तो मुझे देखते ही माँ बोलीं;

माँ: आज का दिन घर पर ही रहकर आराम कर! ज्यादा भागदौड़ करेगा तो तबियत खराब हो जायेगी तेरी!

माँ की बात ठीक थी पर मुझे पिताजी की चिंता थी, वो अकेले साइट पर काम कैसे सँभालते?

मैं: माँ पिताजी अकेले काम नहीं संभाल पाएँगे!

मैंने अपनी चिंता जाहिर की तो माँ बोलीं;

माँ: चन्दर अभी-अभी निकला है, वो और तेरे पिताजी मिलकर काम सँभाल लेंगे! अब चुप-चाप कपडे बदल!

माँ का आदेश सुन मैंने कपडे बदले और बाहर बैठक में बैठ गया|

कुछ देर में बच्चे उठ गए और मेरी गोदी में बैठ गए, भौजी ने नाश्ता बनाया और हम तीनों ने एक साथ नाश्ता किया| नाश्ता खत्म हुआ तो माँ ने नवरात्रों की बात छेड़ी;

माँ: बेटा नवरात्रे आ रहे हैं, तो घर की सफाई ठीक से करनी है इसलिए एक दिन छुट्टी कर लियो!

नवरात्रों की बात सुन मैं फ़ौरन खुश होते हुए बोला;

मैं: ठीक है माँ! लेकिन एक बात पहले बता दूँ, मैं सारे व्रत रखूँगा!

माँ: बिलकुल नहीं, डॉक्टर ने मना किया है न?!

माँ ने मेरे व्रत रखने की बात से एकदम से इंकार कर दिया था, इसलिए मैंने माँ को मक्खन लगाना शुरू कर दिया;

मैं: कुछ नहीं होगा माँ! देखो मैं निर्जला व्रत तो कर नहीं रहा, फ्रूट वगैरह खाता रहूँगा.....

लेकिन मेरे मक्खन लगाने का माँ पर कोई असर नहीं होना था, उन्होंने एकदम से मेरी बात काट दी;

माँ: बोला न नहीं! डॉक्टर ने तुझे भूखा रहने से मना किया है! ऊपर से तू व्रत में दवाई नहीं लेगा तो बीमार पड़ जाएगा!

माँ का डरना सही था पर मैं उन्हें किसी भी तरह से मनाना चाहता था|



उधर डॉक्टर और दवाइयों की बात सुन भौजी के मन में जिज्ञासा पैदा हो गई, उन्होंने माँ से इस बारे में सब पुछा तो माँ ने उन्हें मेरे बारहवीं के boards से कुछ दिन पहले मेरे बीमार होने की सारी बात बता दी| ये सब सुन कर भौजी सन्न रह गईं, वो जानती थीं की मैं पढ़ाई का pressure लेने वालों में से नहीं था, फिर उसी समय तो आयुष पैदा हुआ था और भौजी ने मुझे फ़ोन करके ये ख़ुशी मुझसे नहीं बाँटी थी, इसलिए हो न हो इसी बात को दिल से लगा कर मैं बीमार पड़ा था! ये सब सोचते हुए भौजी की आँखें भर आईं, जैसे-तैसे उन्होंने अपने जज्बात काबू किये और माँ की तरफ हो गईं और मुझे व्रत रखने से मना करने लगीं;

भौजी: कौन सी किताब में लिखा है की नवरात्रों में व्रत रखना जर्रूरी होता है? देवी माँ की भक्ति तो पूजा कर के भी होती है|

अपनी प्रियतमा को समझाना आसान था, मगर माँ को समझाना थोड़ा टेढ़ी खीर थी, इसलिए मैंने माँ को समझाने पर जोर देना शुरू किया;

मैं: माँ कोई चिंता करने वाली बात नहीं है! मैं पूरा ध्यान बरतूँगा, फलाहार करूँगा, दूध पी लूँगा, कोई tension पालने वाला काम नहीं करूँगा, सूरज ढलने से पहले घर आ जाऊँगा और अगर ज़रा सी भी तबियत ढीली हुई तो मैं व्रत नहीं रखूँगा! Please माँ मना मत करो!

दिमाग में जितने तर्क थे सब दे ते हुए माँ के आगे हाथ जोड़ दिए! माँ जानती थी की मैं कितना धर्मिक हूँ और इसलिए आधे मन से ही सही वो मान गईं मगर उन्होंने ढेर सारी हिदायतों के बाद ही मुझे व्रत रखने की इजाजत दी!



माँ तो मान गईं मगर मेरी जानेमन नाराज हो गई, वो चुपचाप उठीं और मेरे कमरे में बिस्तर ठीक करने चली गईं| मैं उन्हें मनाने के लिए जैसे ही उठा की आयुष बोल पड़ा;

आयुष: दादी जी, मैं भी व्रत रखूँगा!

आयुष नहीं जानता था की व्रत रखना क्या होता है इसलिए उसकी बचकानी बात सुन मैं और माँ हँस पड़े!

भौजी: हाँ-हाँ बिलकुल!

भौजी कमरे के भीतर से मुझे उल्हाना देते हुए बोलीं! इतने में नेहा भी अपने भाई के साथ हो ली;

नेहा: फिर तो मैं भी व्रत रखूँगी!

भौजी: हाँ-हाँ तुम दोनों तो जररु व्रत रखो!

भौजी ने कमरे के भीतर से मुझे फिर से उल्हना देते हुए कहा|

बच्चे जब बड़ों की तरह बात करते हैं तो और भी प्यारे लगते हैं! मैंने दोनों बच्चों को अपने गले लगा लिया और उन्हें बड़े प्यार से समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, बच्चे व्रत नहीं रखते! आपका दिल बहुत साफ़ होता है, इसलिए अगर आप सच्चे मन से देवी माँ की भक्ति करोगे तो देवी माँ वैसे ही बहुत खुश हो जाएँगी! फिर दूसरी बात आपकी उम्र में आपका शरीर बढ़ रहा होता है, जो खाना आप खाते हो वो आपको ताक़त देता है जिससे आपके दिमाग के साथ-साथ आपके शरीर का विकास होता है| अगर आप खाना नहीं खाओगे तो कमजोर रह जाओगे, इसलिए कभी भी भूखे नहीं रहना!

बच्चों को मेरी बात समझ आ गई थी, लेकिन उनका मन था मेरे साथ व्रत रखने का इसलिए उनका मन रखते हुए मैंने कहा;

मैं: ऐसा करते हैं की आप व्रत रखने के बजाए मेरे साथ पूजा करना!

मेरे साथ पूजा करने के नाम से ही दोनों बच्चे खुश हो गए और फिर से चहकने लगे|

चलो बच्चे तो मन गए थे, अब मुझे अपनी दिलरुबा को मनाना था इसलिए मैं उठ कर अपने कमरे में आया| भौजी चादर ठीक करने के लिए झुकीं थी, जैसे ही वो चादर ठीक कर के उठीं मैंने उन्हें पीछे से अपनी बाहों में भर लिया और उनके दाहिने गाल को चूम लिया!

भौजी: जानू….सब मेरी वजह से हुआ....मेरी वजह से आपको ये बिमारी लगी.... न मैं आपको खुद से अलग करती न आप....

इस वक़्त भौजी बहुत भावुक हो चुकी थीं, वो आगे कुछ कहतीं उससे पहले मैंने उनके होठों पर ऊँगली रख दी!

मैं: बस-बस! जो होना था वो हो गया, अब उसे याद कर के अपना दिल न जलाओ!

ये कहते हुए मैंने भौजी के बाएँ गाल को चूम लिया! मेरी बात सुन भौजी का दिल शांत हो रहा था, मैंने सोचा की मौके का फायदा उठा कर क्यों न दूसरी वाली किश्त ले ही ली जाए?! मैंने भौजी को अपनी ओर घुमाया ओर उनके चेहरे को अपने हाथ में थामते हुए बोला;

मैं: मैं सोच रहा था की आज आपसे दूसरी किश्त और ब्याज ले लूँ?

मैंने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा| भौजी ने अपनी आँखें झुका कर मुझे मूक स्वीकृति दे दी, लेकिन इससे पहले की हमारे लब मिलते बच्चे दौड़ते हुए कमरे में आ गए!

भौजी: इन शैतानो के होते हुए आपको कुछ नहीं मिलने वाला!

भौजी उल्हाना देते हुए बाहर चली गईं!



अब बच्चों को क्या समझाता, मैंने दोनों को गोद में लिया और बाहर बैठक में बैठ गया| आयुष को cartoon देखना था इसलिए मैंने cartoon लगाया और हम दोनों ninja hatori कार्टून देखने लगे| नेहा को पढ़ाई का शौक था इसलिए वो कमरे में बैठ कर पढ़ने लगी| भौजी और माँ दोपहर के खाने की तैयारी करने जाने वाले थे तो मैंने उन्हें रोक दिया, क्योंकि आज मेरा मन बाहर से खाना खाने के था| बाहर से खाना खाने की बात सुन नेहा अपनी किताब ले कर बाहर दौड़ आई, दोनों बच्चों ने मिलकर 'चाऊमीन' की रट लगानी शुरू कर दी|

मैं: हम तीनों तो चाऊमीन खाएंगे!

मैंने बच्चों की टीम में जाते हुए कहा|

भौजी: और मैं और माँ?

भौजी की बात सुन माँ बोल पड़ीं;

माँ: मेरे लिए दाल-रोटी मँगवा दे और बहु के लिए जो उसे अच्छा लगता है मँगवा दे!

भौजी जानती थीं की दाल-रोटी सस्ती होती है और ऐसे में वो कुछ ख़ास खाना माँग कर पैसे खर्च नहीं करवाना चाहतीं थीं, इसलिए अपनी कंजूसी भरी चाल चलते हुए उन्होंने थोड़ा बचपना दिखा कर माँ के साथ दाल-रोटी खाने की बात कही;

भौजी: मैं भी दाल-रोटी खाऊँगी!

माँ के दाल-रोटी खाने का कारन ये था की उन्हें बाहर का खाना पसंद नहीं था, मगर भौजी के दाल-रोटी खाने का कारन था की वो पैसे खर्च नहीं करना चाहती थीं| मेरे न चाहते हुए भी कहीं न कहीं भौजी के मन में मेरे द्वारा पैसे खर्च करने को ले कर दुःख पनप चूका था|

मैं: यार आप खाने-पीने को ले कर पैसे का मुँह मत देखा करो! माँ बाहर से खाती-पीती नहीं इसलिए वो बस सादा खाना खातीं हैं, लेकिन आपको तो ऐसी कोई दिक्कत नहीं?!

मैंने भौजी को थोड़ा डाँटते हुए कहा| मेरी बात सुन माँ ने भौजी को प्यार से समझाया;

माँ: देख बेटी मैं सादा खातीं हूँ क्योंकि मुझे अपनी तबियत खराब होने का डर लगता है, लेकिन मैं कभी तुम सब को बाहर खाने से नहीं रोकती! जो भी खाओ अच्छा खाओ, 4 पैसे बचाने के लिए कँजूसी करना मुझे पसंद नहीं! आगे से तूने कभी ऐसी छोटी बात सोची तो मैं डंडे से तेरी पिटाई करुँगी!

माँ की डंडे से पीटने की बात सुनकर हम सभी हँस पड़े!

दोपहर को मैंने बाहर से खाना मँगाया, मेरे और बच्चों के लिए चाऊमीन आई, माँ के लिए दाल(तड़का)-रोटी आई तथा भौजी के लिए मैंने special थाली मँगाई! चन्दर और पिताजी दोपहर को आने वाले नहीं थे इसलिए हम चारों dining table पर बैठ गए| खाना खाते समय भौजी ने कई बार मुझे माँ से छुपके खाना खिलाने का इशारा किया, पर मैं हर बार माँ के डर के कारन मना कर देता| खाना खा कर माँ सोने चली गईं, नेहा और आयुष मेरे कमरे में सो गए| अब बचे मैं और भौजी तो हम बैठक में बैठ कर टी.वी. देखने लगे|

मैं: तो कितना porn देख लिया?

मैंने भौजी को छेड़ते हुए बात शुरू की| मुझे लगा भौजी शर्मा जाएँगी पर वो तो मुझे बड़े विस्तार से विवरण देने लगीं| उन्होंने porn के सभी प्रमुख प्रकार खोज-खोज कर देख लिए थे, उनके इस 'व्यख्यान' को सुन कर मेरे कान खड़े हो गए और मैं मन ही मन बोला; ' लोग कुल्हाड़ी पाँव पर मारते हैं और तूने पाँव ही कुल्हाड़ी पर दे मारा! Just wait for this to blow on your face!' मैं जानता था की एक न एक दिन मुझे अपने इस किये का फल भुगतना पड़ेगा, मगर कब बस इसी का इंतजार था!



खैर दिन बीतने लगे, बच्चे तो मेरा भरपूर प्यार पाने लगे मगर भौजी के नसीब में प्यार के कुछ कतरे ही लिखे थे| नवरात्रे शुरू होने से एक दिन पहले मैंने काम से छुट्टी ली, उस दिन मैंने और बच्चों ने मिल कर पूरे घर की सफाई करनी थी| मैंने दोनों बच्चों को dusting वाला कपड़ा दिया और उन्हें dusting करनी सिखाई और मैं पूरे घर में झाड़ू लगाने लगा| मुझे झाड़ू लगाते देख भौजी ने मेरी मदद करनी चाही, मगर माँ ने उन्हें रोक दिया;

माँ: सफाई आज ये तीनों ही करेंगे, बदले में शाम को मैं इन्हें ख़ास चीज खिलाऊँगी!

खाने-पीने के नाम से बाप-बेटा-बेटी का जोश देखने लायक था, तीनों ने ऐसी सफाई की कि पूरा घर चमकने लगा| शाम को माँ ने दोनों बच्चों को चॉकलेट दी मगर मुझे कुछ मिला ही नहीं! जब मैंने माँ से मुँह फुला कर शिकायत की तो माँ और भौजी खिलखिलाकर हँसने लगे! तब दोनों बच्चे मेरे पास आये और मुझे अपनी चॉकलेट में से आधा हिस्सा दिया! मैंने माँ और भौजी को जीभ चिढ़ाई और बच्चों के साथ बच्चा बन कर चॉकलेट खाने लगा! मेरा बचपना देख माँ और भौजी खिलखिलाकर हँसने लगे|

अगले दिन से नवरात्रे शरू थे और माँ ने मेरे पीछे भौजी की duty लगा दी| सुबह उठ कर मैं पूजा करने के लिए तैयार होने लगा तो नेहा अपने आप उठ गई, फिर उसने आयुष को उठाया और दोनों माँ के कमरे में तैयार हो कर मेरे पास आ गए| दोनों को पूजा के लिए तैयार देख मुझे उनपर प्यार आने लगा| मैं दोनों को गोद में उठाता उससे पहले ही दोनों बच्चों ने झुक कर मेरे पाँव छुए, मैंने इसकी कतई उम्मीद नहीं की थी इसलिए मैंने एकदम से दोनों बच्चों को गोद में उठा लिया और उनकी सैकड़ों पप्पियाँ ले डाली| मुझे बच्चों को प्यार करता देख माँ बोल पड़ीं;

माँ: तूने बच्चों की पप्पियाँ ले ली, अब काहे का व्रत?

माँ की बात सुन पिताजी, चन्दर और भौजी हँस पड़े!



पूरे परिवार ने खड़े हो कर माँ की आराधना की, बच्चे स्कूल के लिए तैयार थे तो मैं उन्हें school van में बिठा आया| नाश्ते में भौजी ने दूध पीने के लिए दिया, उसे पी मैं काम पर निकल गया| आज दिनभर में भौजी ने हर आधे घंटे में मुझ से what's app पर पुछा की मेरी तबियत ठीक तो है? दोपहर हुई तो उन्होंने मुझे अपनी कसम से बाँधते हुए घर बुलाया, खाने का समय हुआ तो दोनों बच्चे अपनी-अपनी थाली ले कर मेरे सामने खड़े हो गए| जब भी मैं घर पर होता था तो बच्चे मेरे हाथ से ही खाना खाते थे, मैंने दोनों को खाना खिलाना शुरू किया तो चन्दर टोकते हुए बोला;

चन्दर: तुम दोनों जन का चैन है की नाहीं?! आज मानु भैया वर्ती हैं, आपन हाथ से खाये नाहीं पावत हो?

चन्दर का टोकना मुझे हमेशा अखरता था, मैं चिढ कर उसे जवाब देने को हुआ था मगर इस बार भी पिताजी बीच में बोल पड़े;

पिताजी: अरे कउनो बात नाहीं बेटा, बच्चन का खाना खिलाये से थोड़े ही व्रत टूट जावत है?!

मैंने दोनों बच्चों का ध्यान खाने में लगाए रखा और उनसे उनके स्कूल के बारे में पूछता रहा| आयुष के पास बताने को बहुत कुछ होता था, क्लास में हुई हर एक घटना उसे मुझे बतानी होती थी मगर नेहा का दिन बड़ा सामान्य होता था| एक-आध बार उसने बताया था की उसकी teacher ने उसकी तारीफ की लेकिन उसके अलावा उसने कभी कोई रोचक बात नहीं बताई|

बच्चों का खाना हुआ तो भौजी ने मेरे लिए फल काट कर दे दिए, मेरा खाने का मन कतई नहीं था लेकिन माँ के डर के मारे मैं खाने लगा और बच्चों को भी खिलाने लगा| भौजी ने जैसे ही बच्चों को मेरे हिस्से के फल खाते देखा तो उन्होंने बच्चों को टोक दिया;

भौजी: आयुष-नेहा, अभी खाना खाया न तुमने? ये फल तुम्हारे लिए नहीं हैं!

भौजी का यूँ खाने को ले कर बच्चों को टोकने से मुझे बहुत गुस्सा आया, मैंने उन्हें घूर कर देखा तो भौजी खामोश हो गईं| उधर भौजी का यूँ टोकना माँ-पिताजी को बुरा लगा था, पिताजी ने थोड़ा नरमी से भौजी को समझाते हुए कहा;

पिताजी: बहु अइसन बच्चन का खाने का लेकर कभौं न टोका करो! का होइ ग्वा अगर ऊ फल खावत हैं?! तू और फल काट दियो, अगर घर मा फल नाहीं हैं तो हमका बताओ हम लाइ देब! लेकिन आज के बाद बच्चन का कभौं खाये-पीये का न टोका करो!

भौजी ने पिताजी की बात सर झुका कर सुनी और उनसे माफ़ी भी माँग ली;

भौजी: माफ़ कर दीजिये पिताजी, आगे से ध्यान रखूँगी!

भौजी के माफ़ी माँग लेने से माँ-पिताजी ने उन्हें माफ़ कर दिया और खाना खाने लगे|



खाना खा कर मैं, पिताजी और चन्दर काम पर निकल गए| शाम 5 बजे मुझे नेहा ने फ़ोन किया और पूजा की याद दिलाई;

मैं: हाँ जी बेटा जी, मुझे याद है! मैं बस साइट से निकल रहा हूँ| मेरे आने तक आप और आयुष नाहा-धो कर तैयार रहना|

मैंने फोन रखा और घर की ओर चल पड़ा| घर पहुँच कर मैं नहा-धोकर तैयार हुआ, बच्चे, माँ और भौजी पहले से ही तैयार थे| हम चारों ने विधिवत द्वारा पूजा की, पूजा खत्म होने के बाद दोनों बच्चों ने मेरे पैर छू कर आशीर्वाद लिया| मैंने दोनों को गोद में उठा लिया और जी भर कर उन्हें दुलार करने लगा| माँ और भौजी आस भरी नजरों से मुझे बच्चों को प्यार करते हुए देख रहे थे| जहाँ माँ को ये प्यार एक चाचा का मोह लग रहा था, वहीं भौजी का दिल एक बाप को अपने बच्चों को चाहते हुए प्रफुल्लित हो उठा था|

भौजी खाना बना रहीं थी और मैं माँ के साथ बैठक में बैठा था, माँ ने बातों-बातों में मुझे बताया की भौजी ने भी व्रत रखा है| मुझे भौजी के व्रत रखने से कोई आपत्ति नहीं थी, बस हैरानी हो रही थी की उन्होंने व्रत रखा और मुझे बताया भी नहीं| रात में भौजी ने सबको खाना परोसा, मैंने बच्चों का खाना लिया और उन्हें ले कर मैं अपने कमरे में आ गया| बच्चों का खाना होने के बाद दोनों बच्चे बाहर चले गए और भौजी मेरे लिए फल काट कर ले आईं|

मैं: आजकल मुझसे बात छुपाने लगे हो?

मैंने भौजी को आँखें तार्रेर कर देखते हुए कहा| भौजी मेरा सवाल सुन असमंजस में थीं, उन्हें समझ नहीं आया की आखिरी कौन सी बात उन्होंने मुझसे छुपाई है?

मैं: व्रत रखा और मुझे बताया भी नहीं?!

मैंने भौजी को बात याद दिलाते हुआ कहा| भौजी मुस्कुरा कर मुझे देखने लगीं और बड़े प्यार से बोलीं;

भौजी: आप ही बताओ की अच्छा लगता है की मेरा पति भूखा रहे और मैं खाना खाऊँ?

भौजी की बात सुन मुझे हँसी आ गई|

मैं: ठीक है! अब जा आकर अपने लिए भी फल काट कर यहीं ले आओ!

मेरी बात सुन भौजी कुछ सोच में पड़ गईं, वो उठ कर रसोई में गईं और वहाँ से उबले हुए आलू ले कर आ गईं|



हमारे गाँव में नवरात्रों के व्रत रखने का तरीका कुछ यूँ हैं, सुबह पूजा करने के बाद से कोई कुछ खाता-पीता नहीं है, सीधा शाम को पूजा करने के बाद वर्ती लोग उबले हुए आलू खाते हैं! मैं भी इसी नियम का पालन करता मगर माँ की हिदायतों के कारन मुझे फलाहार करना पड़ रहा था|

अब मैं फल खाऊँ और मेरी प्रेयसी आलू ये मुझे मंजूर नहीं था;

मैं: आलू छोडो और फल ले कर आओ!

मैंने भौजी को आदेश देते हुए कहा|

भौजी: फल आप खाओ, मुझे ये ही पसंद हैं!

भौजी ने मेरी बात को हलके में लते हुए कहा|

मैं: ठीक है, फिर मैं भी यही खाऊँगा|

ये कहते हुए मैंने एक आलू का टुकड़ा उठा लिया| भौजी जानती थीं की मुझे उबले आलू खाना पसंद नहीं इसलिए उन्होंने मेरे हाथ से आलू का टुकड़ा ले लिया!

भौजी: अच्छा बाबा! ला रही हूँ!

भौजी मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोलीं| भौजी अपने लिए भी फल काट कर ले आईं और हम दोनों साथ बैठ कर फल खाने लगे|

मैं: अगर मेरी पत्नी मुझे भूखा नहीं देख सकती तो मैं भी अपनी पत्नी को उबले हुए आलू खाते हुए नहीं देख सकता!

मैंने प्यार से भौजी को अपनी नारजगी का कारन बताया जिसे सुन वो मुस्कुराने लगीं|



इतने में दोनों बच्चे कूदते हुए आ गए और मेरे सामने मुँह खोल कर खड़े हो गए| मैंने दोनों को फल खिलाये और मुस्कुराते हुए भौजी से बोला;

मैं: आप जानते हो की मैं व्रत क्यों रख रहा हूँ?

मुझे लगा था की भौजी इस सवाल का जवाब नहीं जानती होंगी, लेकिन मैं भूल गया था की हमारे दिल connected हैं, इसलिए मैं जो भी सोचता या महसूस करता हूँ भौजी उस बात को पढ़ लेती हैं!

भौजी: जानती हूँ! देवी माँ ने जो बिना माँगे आपको आपके बच्चों से मिलवा दिया, उसके लिए आप उन्हें धन्यवाद करना चाहते हो!

भौजी की बात अधूरी थी इसलिए मैंने उसे पूरा करते हुए कहा;

मैं: बच्चों के साथ-साथ मुझे मेरा प्यार भी वापस मिल गया!

मैंने बात कुछ इस ढंग से कही जिससे भौजी को महसूस हो गया की मैं केवल बच्चों से ही प्यार नहीं करता बल्कि उनसे भी करता हूँ!

व्रत के नौ दिन इतने मधुरमई बीते की इसकी कल्पना मैंने नहीं की थी, प्रत्येक दिन बच्चे पूजा के समय मेरे साथ खड़े होते थे, प्रत्येक दिन मैं और भौजी साथ बैठ कर फलाहार करते थे और जो पिछले कुछ दिनों से मैं भौजी को समय नहीं दे पा रहा था उसकी कमी अब जाकर पूरी हो गई थी| जिस दिन व्रत खुला उस दिन भौजी ने सबके लिए आलू-पूरी बनाई, उस दिन तो पूरे नौ दिन की कसर खाने पर निकाली गई! मैंने और बच्चों ने पेट भरकर पूरियाँ खाई और फिर हम फ़ैल कर सोये!



अगले दिन दशेरा था और इस दिन से हमारी (भौजी और मेरी) एक ख़ास याद जुडी थी! गाँव में मैंने दशेरे की छुट्टियों में आने का वादा किया था, लेकिन अपना वादा पूरा न कर पाने पर पाँच साल पहले आज ही के दिन मैं बहुत उदास था! मुझे लगता था की भौजी को ये बात याद नहीं होगी लेकिन ऐसा नहीं था| सुबह जब वो मुझे जगाने आईं तो बहुत भावुक थीं, मैंने उन्हें अपने पास बिठाते हुए बात पूछी तो उन्होंने इस बात को फिर से दोहरा दिया| अब मैं अपनी प्रेयसी को कैसे रोने देता इसलिए मैंने उनका ध्यान भटका दिया;

मैं: जान, जो होना था हो गया, उसे भूल जाओ! अभी तो हम साथ हैं, इसलिए ये सब बात छोडो और शाम को हम मेला घूमने जायेंगे तथा रावण दहन देखेंगे|

भौजी कुछ प्रतिक्रिया देतीं उससे पहले ही घूमने की बात सुन दोनों बच्चे उठ बैठे और आ कर मेरे से लिपट गए!

आयुष: पापा जी मुझे वो गोल-गोल झूले पर बैठना है!

नेहा: मुझे भी! मुझे रावण भी देखना है!

दोनों बच्चों ने अपनी फरमाइशें पेश कर दीं जिसे सुन मैं और भौजी हँस पड़े|

दोनों बच्चों को गोदी ले कर मैं बाहर आया और पिताजी से आज शाम घूमने जाने का प्लान बताया| माँ-पिताजी ने तो भीड़-भाड़ के चलते जाने से मना कर दिया, चन्दर ने रात को साइट पर रुकने की बात कर के अपना पल्ला झाड़ दिया अब बचे दोनों बच्चे, मैं और भौजी! मैं बोलने वाला था की हम चारों जायेंगे की तभी माँ ने मेरा काम आसान करते हुए कहा;

माँ: तुम चारों हो आओ, लेकिन भीड़-भाड़ में बच्चों का ध्यान रखना!

कई बार माँ बिन मेरे कुछ कहे ही मेरा रास्ता आसान कर दिया करती थीं|



पिताजी दोनों बच्चों को आज के दिन के महत्त्व के बारे में बताना चाहते थे, इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और उन्हें गोदी में बिठा कर बात करने लगे;

पिताजी: बच्चों आपको पता है की आज के दिन का महत्त्व क्या है? हम दशहरा क्यों मनाते हैं?

पिताजी का सवाल सुन नेहा ने फ़ट से अपना हाथ उठाया और बोली;

नेहा: दादा जी मैं...मैं ...मैं बताऊँ?

नेहा का उत्साह देख पिताजी मुस्कुराने लगे और सर हाँ में हिला कर नेहा को बोलने का मौका दिया|

नेहा: आज के दिन भगवान राम जी ने रावण का वध कर के सीता माता को छुड़ाया था|

नेहा की बात से पिताजी बहुत प्रभावित हुए और उनके चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई! छोटे बच्चे जब पूछे गए सवाल का सही जवाब देते हैं तो वो बहुत प्यारे लगते हैं और उन पर बहुत प्रेम आता है, ऐसा ही प्रेम पिताजी को नेहा पर आ रहा था, नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए पिताजी बड़े गर्व से बोले;

पिताजी: बिलकुल सही कहा बेटा! लेकिन ये आपको किसने बताया?

नेहा: मम्मी ने!

नेहा ने अपनी मम्मी की तरफ इशारा करते हुए कहा|

पिताजी: शाबाश बहु! तूने सच में बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं!

अपनी तारीफ सुन भौजी गर्व से फूली नहीं समाईं!

पिताजी की बात खत्म हुई तो मेरे मन में इच्छा जगी की क्या बच्चों ने कभी रावण दहन देखा है?

मैं: नेहा-आयुष, बेटा आप दोनों ने कभी रावण दहन देखा है?

सवाल मैंने बच्चों से पुछा था मगर जवाब देने ससुरा चन्दर कूद पड़ा;

चन्दर: एक बार गाँव में राम-लीला हुई रही तब हम सभय रावण दहन देखेन रहा!

चन्दर मुस्कुराते हुए बोला| मैं समझ गया की गाँव में बच्चों ने क्या ही रावण दहन देखा होगा?!



शाम 5 बजे हम चारों तैयार हो कर निकलने को हुए की तभी दिषु का फ़ोन आ गया, उसने मुझसे मेले में मिलने की बात कही| मैं तो पहले से ही तैयार था, मैंने उससे मिलने की जगह तय की तथा बच्चों और भौजी के साथ घर से निकल पड़ा| नारंगी साडी में भौजी आज बहुत सुंदर लग रहीं थीं, रास्ते भर मैं बहाने से उनका हाथ पकड़ लिया करता और उनके हाथ को हलके से दबा दिया करता, मेरे ऐसा करने पर भौजी के चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान आ जाया करती! मेले में पहुँच कर वहाँ की रौनक देख कर हम चारों बहुत खुश थे, बच्चों ने जैसे ही विशालकाय रावण, मेहघनाद और कुम्भकरण का पुतला देखा तो दोनों बच्चों ने मेरा हाथ पकड़ कर मेरा ध्यान उस ओर खींचा| भौजी ने भी जब इतना विशालकाय पुतला देखा तो वो कुछ घबरा गईं और मुझे दूर खींच कर ले जाने लगीं!

आयुष: पापा जी इतना बड़ा रावण?

आयुष आश्चर्यचकित होते हुए बोला|

नेहा: गाँव वाला रावण तो बहुत छोटा सा था, ये तो बहुत-बहुत बड़ा है!

नेहा अपने हैरानी से खुले हुए मुँह पर हाथ रखते हुए बोली!

भौजी: जानू इतना बड़ा रावण बनाते कैसे होंगे?

भौजी का सवाल सुन मैं हँस पड़ा और उन्हें चिढ़ाते हुए बोला;

मैं: क्यों? अगले साल आप रावण बनाओगे?

मेरा कटाक्ष सुन भौजी ने प्यार से मेरी बाजू पर मुक्का मारा|



दिषु को आने में अभी समय था इसलिए हमने घूमना शुरू कर दिया| मेले में कुछ खिलौनों की दुकानें थीं, मुझे याद है जब मैं छोटा था तो खिलौनों के लिए पिताजी से कहा करता था और वो हर बार मुझे मना कर देते थे! मैंने सोच लिया की अगर मेरे बच्चे खिलौने माँगेंगे तो मैं उन्हीं कतई मना नहीं करूँगा, मैं इंतजार करने लगा की बच्चे मुझसे खिलौने लेने की जिद्द करें और में उन्हें बढ़िया सा खलौना खरीद कर दूँ| आयुष को चाहिए थी खिलौने वाली गाडी, इसलिए आयुष ने अपनी ऊँगली उसकी तरफ ऊँगली कर के इशारा किया| मैंने गाडी खरीद कर आयुष को दी तो आयुष का चेहरा ख़ुशी से खिल गया| जब मैंने नेहा से पुछा की उसे क्या चाहिए तो नेहा ने न में सर हिला दिया!

मैं: मेरे प्यारे बच्चे को कुछ नहीं चाहिए?

मैंने नेहा के सर पर हाथ रख कर पुछा| दरअसल नेहा अपनी मम्मी के डर से कुछ नहीं बोल रही थी, जब मैंने नेहा के सर पर हाथ रखा तो उसने हिम्मत कर के एक गुड़िया की तरह इशारा किया| मैंने नेहा को गुड़िया खरीद कर दी तो वो भी ख़ुशी से कूदने लगी! अब बारी थी झूलों में झूलने की, दोनों बच्चों को मैंने छोटे वाले giant wheel पर बिठाया! Giant wheel पर बैठ कर बच्चे ख़ुशी से चीखने लगे, उन्हें चीखता हुआ देख मैं और भौजी बहुत खुश थे| Giant wheel में बैठते वक़्त बच्चों ने mickey mouse वाला झूला देख लिया था| Giant wheel से उतरते ही दोनों बच्चों ने "mickey mouse" चिल्लाना शुरू कर दिया! हम चारों उस झूले के पास पहुँचे तो देखा तो हवा वाले pump से भरा हुआ एक बहुत बड़ा झूला है, बच्चे उस फूले हुए झूले पर चढ़ रहे थे और फिसलते हुए उतर रहे थे| दोनों बच्चे उस झूले पर मस्ती करने लगे, इधर मैं और भौजी बच्चों को मस्ती करते हुए देख कर हँसने लगे| सच कहता हूँ, बच्चों को यूँ उछल-कूद करते हुए देखने का सुख कुछ और ही होता है?! न उन्हें किसी बात की चिंता होती है, न कोई डर, उन्हें तो बस मस्ती करनी होती है!

मौज-मस्ती के बाद अब बारी थी पेट-पूजा की, हम चारों चाट खाने के लिए एक stall के सामने पहुँचे| भौजी ने गोलगप्पे खाने थे, आयुष और नेहा को टिक्की, बचा मैं तो मैंने अपने लिए लिए भल्ले-पपड़ी ली| सारी चाट हम चारों ने मिल-बाँट कर खाई, बच्चों को मिर्ची लगी तो दोनों ने 'सी..सी..सी..' की रट लगानी शुरू कर दी! दोनों बच्चों को सी-सी करते देख भौजी को बहुत मज़ा आ रहा था! मैंने फटाफट पानी की बोतल खरीदी और दोनों बच्चों को दी, आयुष ने फटाफट पानी गटका! नेहा से सब्र नहीं हो रहा था तो उसने आयुष से बोतल छीन ली और फटाफट पानी पीने लगी! पानी पीने से दोनों बच्चों को लगी मिर्ची थोड़ी बहुत ही कम हुई थी, इसलिए मैंने उन्हें एक सूखी पूरी खाने को दी जिससे दोनों बच्चों को लगी मिर्ची खत्म हुई!

भौजी: और खाओगे चाट?

भौजी ने बच्चों को चिढ़ाते हुए पुछा| भौजी की बात सुन दोनों बच्चे अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगे और मेरी टाँगों से लिपट गए|



कुछ पल बाद दिषु का फ़ोन आया तो मैंने उसे बताया की हम कहाँ खड़े हैं| आज दिषु पहलीबार भौजी से मिलने वाला था, भौजी को देखते ही दिषु ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा;

दिषु: नमस्ते भाभी जी!

दिषु की आवाज में हलकी सी शैतानी थी जिसे महसूस कर हम दोनों भाई हँसने लगे! हमने हाथ मिलाया और मैंने हँसते हुए उसे कहा;

मैं: सुधर जा!

दोनों बच्चे हैरानी से हम दोनों को देख रहे थे| नेहा तो दिषु से मिल चुकी थी, इसलिए उसने आगे बढ़ते हुए दिषु के पाँव छूते हुए कहा;

नेहा: नमस्ते चाचू!

दिषु एकदम से नीचे झुका और नेहा के सर पर हाथ रखते हुए बोला;

दिषु: जीते रहो बेटा!

अब मुझे आयुष को दिषु से मिलवाना था;

मैं: आयुष बेटा मैंने उस दिन आपको आपके दिषु चाचा के बारे में बताया था न? ये हैं आपके दिषु चाचा!

आयुष ने अपने हाथ जोड़े और दिषु के पाँव छूने लगा| दिषु ने आयुष को गोदी में उठा लिया और उसके गाल चूमते हुए मुझसे बोला;

दिषु: अरे तो ये हमारे साहबज़ादे! आपके (मेरे) सूपपुत्र जी?!

दिषु समझ गया की आयुष भौजी और मेरा बेटा है, उसके आयुष को साहबजादा कहने से हम तीनों हँसने लगे|

दिषु: वैसे बच्चों आपने तो पाँव छू कर मुझे इतनी जल्दी बूढा बना दिया!

दिषु का मज़ाक सुन हम सब हँसने लगे! हँसी-ख़ुशी का माहौल था तो मौका पा कर भौजी ने दिषु से बात शुरू की;

भौजी: दिषु भैया, thank you आपने इन्हें सँभाला और इनका ख्याल रखा!

भौजी ने हाथ जोड़ते हुए कहा|

दिषु: भाभी जी भाई है ये मेरा! आपको दिल से प्यार करता है, एक बार तो मैंने इसे सँभाल लिया, लेकिन अगर इसका दिल दुबारा टूटा तो ये सम्भल नहीं पायेगा!

दिषु की बात सुन कर भौजी भावुक हो गईं थीं, मुझे दुबारा खोने के डर के कारन उनके आँसूँ छलक आये थे!

भौजी: नहीं भैया! एक बार इन्हें खुद से अलग करने का पाप कर चुकी हूँ, लेकिन वादा करती हूँ की मैं कभी इनका दिल नहीं दुखाऊँगी!

भौजी रो पड़ती उससे पहले ही मैंने उन्हें कस कर अपने गले लगा लिया और सर पर हाथ फेरते हुए चुप कराया;

मैं: बस जान, रोना नहीं है!

हम दोनों को गले लगे हुए देख दिषु बोला;

दिषु: आप दोनों घूम कर आओ, तब तक मैं अपने भतीजे-भतीजी को घुमा लाता हूँ!

दिषु की बात सुन भौजी मुस्कुराने लगीं, दिषु बच्चों के साथ घूमने निकला और मैं भौजी का हाथ पकड़ कर मेला घूमने लगा| मेले में हम बड़ों के लिए खाने-पीने के इलावा कुछ ख़ास नहीं था इसलिए हम दोनों घुमते-घामते रामलीला देखने लगे| रावण दहन शुरू होने से पहले दिषु दोनों बच्चों को घुमा लाया और उन्हें अपनी तरफ से खिलौने खरीद कर दिए| जब मैंने उससे पुछा की उसने खिलौने क्यों खरीदे तो वो बड़े गर्व से बोला;

दिषु: मैं चाचू हूँ इनका तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता है की मैं अपने भतीजे-भतीजी को कुछ गिफ्ट दूँ!

दिषु की बात सुन भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: ठीक है दिषु भैया आप भी लाड कर लीजिये!



रावण दहन शुरू होने वाला था और बच्चों को वो देखने का बड़ा चाव था! दोनों बच्चों ने रावण के पुतले की तरफ इशारा कर चिल्लाना शुरू कर दिया;

नेहा: पापा जी रावण देखो?

आयुष: पापा जी, रावण कब जलेगा?

दोनों बच्चों का जोश देख मैंने दोनों को गोद में उठा लिया| गोद में आने से बच्चों को रावण का पुतला साफ़ नजर आ रहा था| हम लोग उचित दूरी पर खड़े थे इसलिए डरने की कोई बात नहीं थी! रावण दहन शुरू हुआ और पटाखे फूटते हुए देख दोनों बच्चों ने ताली बजाना शुरू कर दिया! पटाखों के शोर से भौजी डर गईं और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे से चिपक गईं! जब तक रावण, मेघनाद और कुम्भकरण का दहन पूर्ण नहीं हुआ तबतक भौजी मुझसे चिपकी खड़ी रहीं|



रावण दहन सम्पत हुआ और दिषु को bye कर हम सब घर लौटे, रास्ते भर दोनों बच्चों ने दहन को ले कर अपनी बचकानी बातों से रास्ते का सफर मनोरम बनाये रखा| बच्चों की बातें, उनका आपस में बहस करना सुन कर अलग ही आनंद आता है, क्योंकि उनकी बहस खुद को सही साबित करने के लिए नहीं होती बल्कि अपने अनुभव को साझा करने की होती है, उन्हें बस अपनी बात सुनानी होती है और बदले में वो बस आपसे इतना ही चाहते हैं की आप उनकी बात ध्यान से सुनें तथा उनकी सराहना करें!




जारी रहेगा भाग - 19 में...
 
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amit1975

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Gajab update hai Bhai
तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 18



अब तक आपने पढ़ा:



मैं: अपना फ़ोन लाओ!

भौजी अपना फ़ोन ले आईं| मैंने उन्हें अपने बराबर बिठाया और फ़ोन में VPN चलाते हुए porn देखना सीखा दिया|

मैं: जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो porn देखने का तो ऐसे देख लेना!

फ़ोन में porn देखने से भौजी खुश तो हुईं मगर मेरा बिना देखने का उनका मन नहीं था!

भौजी: आपके बिना मन नहीं करेगा?

भौजी उदास होते हुए बोलीं|

मैं: जान मैंने कहा की ‘जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो तब’, वरना तो हम साथ ही देखेंगे! लेकिन ध्यान रखना की कोई आपको porn देखते हुए देख न ले!

भौजी मेरी बात मन गईं और जब कभी मैं घर नहीं होता और उनका मन porn देखने का होता था तो वो छुपके porn देखने लगीं!



अब आगे:


अगला एक हफ्ता काम के कारन मैं बहुत व्यस्त रहा, इस समय एक साथ 4 साइट पर काम चल रहा था| माल गिरवाना और एक साइट से दूसरी साइट पर लेबर को घुमाने में बड़ा टाइम लगता था, ऊपर से सतीश जी भी अपने फ्लैट का काम करवाने के लिए हमारे पीछे पड़े थे| इसी सब के चलते मैं काम में बहुत व्यस्त था, बच्चों के जागने से पहले निकल जाता और रात को उनके सोने के बाद ही घर लौटता| रात को सोते समय बच्चों को मुझसे थोड़ा बहुत प्यार मिल जाता था लेकिन भौजी बेचारी मेरे प्यार के लिए तरस रहीं थीं|



रविवार का दिन आया और मैं सुबह जल्दी उठ कर बाथरूम में नहा रहा था| बच्चे अभी भी सो रहे थे, भौजी उन्हें जगाने आईं मगर बच्चे और सोना चाहते थे| मैं बाथरूम से निकला तो देखा भौजी मेरी ओर पीठ कर के बच्चों को उठने के लिए कह रहीं थीं| भौजी को यूँ देख कर मेरा मन मचलने लगा, मैं दबे पाँव उनके नजदीक आया और अपने दोनों हाथों को भौजी की कमर से होते हुए उनकी नाभि पर कस लिए तथा उन्हें कस कर अपने सीने से लगा लिया! भौजी मेरा स्पर्श पहचानती थीं, वो एकदम से मेरी तरफ घूमीं और मुझसे शिकायत करते हुए बोलीं;

भौजी: मुझ पर जरा भी तरस नहीं आता न आपको? एक हफ्ते से आपको ठीक से देख भी नहीं पाई!

मैं: मेरी जान, मुझे माफ़ कर दो! काम इतना बढ़ गया है इसलिए टाइम नहीं मिल रहा था, मैं ध्यान रखूँगा की अपनी जानेमन को दुबारा शिकायत का मौका न दूँ!

मैंने भौजी के माथे को चूमते हुए कहा| तभी दोनों बच्चे जाग गए और पलंग पर खड़े हो कर ख़ुशी से कूदने लगे!

मैं भौजी से अलग हुआ और दोनों को बच्चों को अपनी बाहों में भर कर लाड करने लगा| पिता का लाड-प्यार मिला तो बच्चों को सब कुछ मिल गया था, वहीं इतने दिनों बाद बच्चों को यूँ सीने से लगा कर मन प्रफुल्लित हो गया था! मिनट भर मैं बच्चों को ऐसे ही अपने सीने से चिपटाये खड़ा था की तभी आयुष बोला;

आयुष: पापा जी नीनी आ रही है!

इतना सुन्ना था की मैं दोनों बच्चों को अपनी छाती से चिपटाये लेट गया, मैंने सोचा आज थोड़ा लेट चला जाऊँगा मगर बच्चों को सुलाने के चक्कर में मेरी भी आँख लग गई! माँ 8 बजे मुझे उठाने आईं और बच्चों के साथ ऐसे लिपट कर सोता देख चुपचाप वापस चली गईं| माँ के बाहर आने पर पिताजी ने मेरे बारे में पुछा तो माँ बोलीं;

माँ: आज मानु को घर रहने दो, पिछले एक हफ्ते से बहुत भगा-दौड़ी कर रहा है!

माँ की बात सुन पिताजी कुछ सोचने लगे और फिर बोले;

पिताजी: ठीक है मानु की माँ, आज भर आराम कर लेने दो कहीं उसकी तबियत न खराब हो जाए!

पिताजी ने नाश्ता कर लिया था इसलिए वो अकेले साइट पर चले गए|



चन्दर ने पिछले कुछ दिनों से रात को साइट पर रुकना शुरू कर दिया था, दरअसल दिन में उसने अपने कुछ निजी ठेके निपटाने शुरू कर दिए थे, इन ठेकों से जो कमाई हो रही थी वो चन्दर की थी| दिन का समय वो अपनी जेब भरनेमें लगा देता था इसलिए रात का समय वो पिताजी के काम को देता था| कभी-कभार वो रात को देर से आता था तो कभी सुबह 8-9 बजे आ कर नहा-धो कर अपने निजी ठेके पर काम करवाने चला जाता था| पिताजी अपने बड़े भाई के कारन चन्दर को कुछ कहते नहीं थे, वरना अगर मैं इस तरह कर रहा होता तो मुझे खूब डाँटते!



नौ बजे मैं हड़बड़ा कर जागा, बच्चे अब भी कस कर मुझसे लिपटे हुए सो रहे थे| उन्हें यूँ सोता हुआ छोड़ कर जाने का मन तो नहीं था लेकिन रोज़ी से मुँह भी नहीं मोड़ सकता था| तैयार हो कर मैं बाहर आया तो मुझे देखते ही माँ बोलीं;

माँ: आज का दिन घर पर ही रहकर आराम कर! ज्यादा भागदौड़ करेगा तो तबियत खराब हो जायेगी तेरी!

माँ की बात ठीक थी पर मुझे पिताजी की चिंता थी, वो अकेले साइट पर काम कैसे सँभालते?

मैं: माँ पिताजी अकेले काम नहीं संभाल पाएँगे!

मैंने अपनी चिंता जाहिर की तो माँ बोलीं;

माँ: चन्दर अभी-अभी निकला है, वो और तेरे पिताजी मिलकर काम सँभाल लेंगे! अब चुप-चाप कपडे बदल!

माँ का आदेश सुन मैंने कपडे बदले और बाहर बैठक में बैठ गया|

कुछ देर में बच्चे उठ गए और मेरी गोदी में बैठ गए, भौजी ने नाश्ता बनाया और हम तीनों ने एक साथ नाश्ता किया| नाश्ता खत्म हुआ तो माँ ने नवरात्रों की बात छेड़ी;

माँ: बेटा नवरात्रे आ रहे हैं, तो घर की सफाई ठीक से करनी है इसलिए एक दिन छुट्टी कर लियो!

नवरात्रों की बात सुन मैं फ़ौरन खुश होते हुए बोला;

मैं: ठीक है माँ! लेकिन एक बात पहले बता दूँ, मैं सारे व्रत रखूँगा!

माँ: बिलकुल नहीं, डॉक्टर ने मना किया है न?!

माँ ने मेरे व्रत रखने की बात से एकदम से इंकार कर दिया था, इसलिए मैंने माँ को मक्खन लगाना शुरू कर दिया;

मैं: कुछ नहीं होगा माँ! देखो मैं निर्जला व्रत तो कर नहीं रहा, फ्रूट वगैरह खाता रहूँगा.....

लेकिन मेरे मक्खन लगाने का माँ पर कोई असर नहीं होना था, उन्होंने एकदम से मेरी बात काट दी;

माँ: बोला न नहीं! डॉक्टर ने तुझे भूखा रहने से मना किया है! ऊपर से तू व्रत में दवाई नहीं लेगा तो बीमार पड़ जाएगा!

माँ का डरना सही था पर मैं उन्हें किसी भी तरह से मनाना चाहता था|



उधर डॉक्टर और दवाइयों की बात सुन भौजी के मन में जिज्ञासा पैदा हो गई, उन्होंने माँ से इस बारे में सब पुछा तो माँ ने उन्हें मेरे बारहवीं के boards से कुछ दिन पहले मेरे बीमार होने की सारी बात बता दी| ये सब सुन कर भौजी सन्न रह गईं, वो जानती थीं की मैं पढ़ाई का pressure लेने वालों में से नहीं था, फिर उसी समय तो आयुष पैदा हुआ था और भौजी ने मुझे फ़ोन करके ये ख़ुशी मुझसे नहीं बाँटी थी, इसलिए हो न हो इसी बात को दिल से लगा कर मैं बीमार पड़ा था! ये सब सोचते हुए भौजी की आँखें भर आईं, जैसे-तैसे उन्होंने अपने जज्बात काबू किये और माँ की तरफ हो गईं और मुझे व्रत रखने से मना करने लगीं;

भौजी: कौन सी किताब में लिखा है की नवरात्रों में व्रत रखना जर्रूरी होता है? देवी माँ की भक्ति तो पूजा कर के भी होती है|

अपनी प्रियतमा को समझाना आसान था, मगर माँ को समझाना थोड़ा टेढ़ी खीर थी, इसलिए मैंने माँ को समझाने पर जोर देना शुरू किया;

मैं: माँ कोई चिंता करने वाली बात नहीं है! मैं पूरा ध्यान बरतूँगा, फलाहार करूँगा, दूध पी लूँगा, कोई tension पालने वाला काम नहीं करूँगा, सूरज ढलने से पहले घर आ जाऊँगा और अगर ज़रा सी भी तबियत ढीली हुई तो मैं व्रत नहीं रखूँगा! Please माँ मना मत करो!

दिमाग में जितने तर्क थे सब दे ते हुए माँ के आगे हाथ जोड़ दिए! माँ जानती थी की मैं कितना धर्मिक हूँ और इसलिए आधे मन से ही सही वो मान गईं मगर उन्होंने ढेर सारी हिदायतों के बाद ही मुझे व्रत रखने की इजाजत दी!



माँ तो मान गईं मगर मेरी जानेमन नाराज हो गई, वो चुपचाप उठीं और मेरे कमरे में बिस्तर ठीक करने चली गईं| मैं उन्हें मनाने के लिए जैसे ही उठा की आयुष बोल पड़ा;

आयुष: दादी जी, मैं भी व्रत रखूँगा!

आयुष नहीं जानता था की व्रत रखना क्या होता है इसलिए उसकी बचकानी बात सुन मैं और माँ हँस पड़े!

भौजी: हाँ-हाँ बिलकुल!

भौजी कमरे के भीतर से मुझे उल्हाना देते हुए बोलीं! इतने में नेहा भी अपने भाई के साथ हो ली;

नेहा: फिर तो मैं भी व्रत रखूँगी!

भौजी: हाँ-हाँ तुम दोनों तो जररु व्रत रखो!

भौजी ने कमरे के भीतर से मुझे फिर से उल्हना देते हुए कहा|

बच्चे जब बड़ों की तरह बात करते हैं तो और भी प्यारे लगते हैं! मैंने दोनों बच्चों को अपने गले लगा लिया और उन्हें बड़े प्यार से समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, बच्चे व्रत नहीं रखते! आपका दिल बहुत साफ़ होता है, इसलिए अगर आप सच्चे मन से देवी माँ की भक्ति करोगे तो देवी माँ वैसे ही बहुत खुश हो जाएँगी! फिर दूसरी बात आपकी उम्र में आपका शरीर बढ़ रहा होता है, जो खाना आप खाते हो वो आपको ताक़त देता है जिससे आपके दिमाग के साथ-साथ आपके शरीर का विकास होता है| अगर आप खाना नहीं खाओगे तो कमजोर रह जाओगे, इसलिए कभी भी भूखे नहीं रहना!

बच्चों को मेरी बात समझ आ गई थी, लेकिन उनका मन था मेरे साथ व्रत रखने का इसलिए उनका मन रखते हुए मैंने कहा;

मैं: ऐसा करते हैं की आप व्रत रखने के बजाए मेरे साथ पूजा करना!

मेरे साथ पूजा करने के नाम से ही दोनों बच्चे खुश हो गए और फिर से चहकने लगे|

चलो बच्चे तो मन गए थे, अब मुझे अपनी दिलरुबा को मनाना था इसलिए मैं उठ कर अपने कमरे में आया| भौजी चादर ठीक करने के लिए झुकीं थी, जैसे ही वो चादर ठीक कर के उठीं मैंने उन्हें पीछे से अपनी बाहों में भर लिया और उनके दाहिने गाल को चूम लिया!

भौजी: जानू….सब मेरी वजह से हुआ....मेरी वजह से आपको ये बिमारी लगी.... न मैं आपको खुद से अलग करती न आप....

इस वक़्त भौजी बहुत भावुक हो चुकी थीं, वो आगे कुछ कहतीं उससे पहले मैंने उनके होठों पर ऊँगली रख दी!

मैं: बस-बस! जो होना था वो हो गया, अब उसे याद कर के अपना दिल न जलाओ!

ये कहते हुए मैंने भौजी के बाएँ गाल को चूम लिया! मेरी बात सुन भौजी का दिल शांत हो रहा था, मैंने सोचा की मौके का फायदा उठा कर क्यों न दूसरी वाली किश्त ले ही ली जाए?! मैंने भौजी को अपनी ओर घुमाया ओर उनके चेहरे को अपने हाथ में थामते हुए बोला;

मैं: मैं सोच रहा था की आज आपसे दूसरी किश्त और ब्याज ले लूँ?

मैंने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा| भौजी ने अपनी आँखें झुका कर मुझे मूक स्वीकृति दे दी, लेकिन इससे पहले की हमारे लब मिलते बच्चे दौड़ते हुए कमरे में आ गए!

भौजी: इन शैतानो के होते हुए आपको कुछ नहीं मिलने वाला!

भौजी उल्हाना देते हुए बाहर चली गईं!



अब बच्चों को क्या समझाता, मैंने दोनों को गोद में लिया और बाहर बैठक में बैठ गया| आयुष को cartoon देखना था इसलिए मैंने cartoon लगाया और हम दोनों ninja hatori कार्टून देखने लगे| नेहा को पढ़ाई का शौक था इसलिए वो कमरे में बैठ कर पढ़ने लगी| भौजी और माँ दोपहर के खाने की तैयारी करने जाने वाले थे तो मैंने उन्हें रोक दिया, क्योंकि आज मेरा मन बाहर से खाना खाने के था| बाहर से खाना खाने की बात सुन नेहा अपनी किताब ले कर बाहर दौड़ आई, दोनों बच्चों ने मिलकर 'चाऊमीन' की रट लगानी शुरू कर दी|

मैं: हम तीनों तो चाऊमीन खाएंगे!

मैंने बच्चों की टीम में जाते हुए कहा|

भौजी: और मैं और माँ?

भौजी की बात सुन माँ बोल पड़ीं;

माँ: मेरे लिए दाल-रोटी मँगवा दे और बहु के लिए जो उसे अच्छा लगता है मँगवा दे!

भौजी जानती थीं की दाल-रोटी सस्ती होती है और ऐसे में वो कुछ ख़ास खाना माँग कर पैसे खर्च नहीं करवाना चाहतीं थीं, इसलिए अपनी कंजूसी भरी चाल चलते हुए उन्होंने थोड़ा बचपना दिखा कर माँ के साथ दाल-रोटी खाने की बात कही;

भौजी: मैं भी दाल-रोटी खाऊँगी!

माँ के दाल-रोटी खाने का कारन ये था की उन्हें बाहर का खाना पसंद नहीं था, मगर भौजी के दाल-रोटी खाने का कारन था की वो पैसे खर्च नहीं करना चाहती थीं| मेरे न चाहते हुए भी कहीं न कहीं भौजी के मन में मेरे द्वारा पैसे खर्च करने को ले कर दुःख पनप चूका था|

मैं: यार आप खाने-पीने को ले कर पैसे का मुँह मत देखा करो! माँ बाहर से खाती-पीती नहीं इसलिए वो बस सादा खाना खातीं हैं, लेकिन आपको तो ऐसी कोई दिक्कत नहीं?!

मैंने भौजी को थोड़ा डाँटते हुए कहा| मेरी बात सुन माँ ने भौजी को प्यार से समझाया;

माँ: देख बेटी मैं सादा खातीं हूँ क्योंकि मुझे अपनी तबियत खराब होने का डर लगता है, लेकिन मैं कभी तुम सब को बाहर खाने से नहीं रोकती! जो भी खाओ अच्छा खाओ, 4 पैसे बचाने के लिए कँजूसी करना मुझे पसंद नहीं! आगे से तूने कभी ऐसी छोटी बात सोची तो मैं डंडे से तेरी पिटाई करुँगी!

माँ की डंडे से पीटने की बात सुनकर हम सभी हँस पड़े!

दोपहर को मैंने बाहर से खाना मँगाया, मेरे और बच्चों के लिए चाऊमीन आई, माँ के लिए दाल(तड़का)-रोटी आई तथा भौजी के लिए मैंने special थाली मँगाई! चन्दर और पिताजी दोपहर को आने वाले नहीं थे इसलिए हम चारों dining table पर बैठ गए| खाना खाते समय भौजी ने कई बार मुझे माँ से छुपके खाना खिलाने का इशारा किया, पर मैं हर बार माँ के डर के कारन मना कर देता| खाना खा कर माँ सोने चली गईं, नेहा और आयुष मेरे कमरे में सो गए| अब बचे मैं और भौजी तो हम बैठक में बैठ कर टी.वी. देखने लगे|

मैं: तो कितना porn देख लिया?

मैंने भौजी को छेड़ते हुए बात शुरू की| मुझे लगा भौजी शर्मा जाएँगी पर वो तो मुझे बड़े विस्तार से विवरण देने लगीं| उन्होंने porn के सभी प्रमुख प्रकार खोज-खोज कर देख लिए थे, उनके इस 'व्यख्यान' को सुन कर मेरे कान खड़े हो गए और मैं मन ही मन बोला; ' लोग कुल्हाड़ी पाँव पर मारते हैं और तूने पाँव ही कुल्हाड़ी पर दे मारा! Just wait for this to blow on your face!' मैं जानता था की एक न एक दिन मुझे अपने इस किये का फल भुगतना पड़ेगा, मगर कब बस इसी का इंतजार था!



खैर दिन बीतने लगे, बच्चे तो मेरा भरपूर प्यार पाने लगे मगर भौजी के नसीब में प्यार के कुछ कतरे ही लिखे थे| नवरात्रे शुरू होने से एक दिन पहले मैंने काम से छुट्टी ली, उस दिन मैंने और बच्चों ने मिल कर पूरे घर की सफाई करनी थी| मैंने दोनों बच्चों को dusting वाला कपड़ा दिया और उन्हें dusting करनी सिखाई और मैं पूरे घर में झाड़ू लगाने लगा| मुझे झाड़ू लगाते देख भौजी ने मेरी मदद करनी चाही, मगर माँ ने उन्हें रोक दिया;

माँ: सफाई आज ये तीनों ही करेंगे, बदले में शाम को मैं इन्हें ख़ास चीज खिलाऊँगी!

खाने-पीने के नाम से बाप-बेटा-बेटी का जोश देखने लायक था, तीनों ने ऐसी सफाई की कि पूरा घर चमकने लगा| शाम को माँ ने दोनों बच्चों को चॉकलेट दी मगर मुझे कुछ मिला ही नहीं! जब मैंने माँ से मुँह फुला कर शिकायत की तो माँ और भौजी खिलखिलाकर हँसने लगे! तब दोनों बच्चे मेरे पास आये और मुझे अपनी चॉकलेट में से आधा हिस्सा दिया! मैंने माँ और भौजी को जीभ चिढ़ाई और बच्चों के साथ बच्चा बन कर चॉकलेट खाने लगा! मेरा बचपना देख माँ और भौजी खिलखिलाकर हँसने लगे|

अगले दिन से नवरात्रे शरू थे और माँ ने मेरे पीछे भौजी की duty लगा दी| सुबह उठ कर मैं पूजा करने के लिए तैयार होने लगा तो नेहा अपने आप उठ गई, फिर उसने आयुष को उठाया और दोनों माँ के कमरे में तैयार हो कर मेरे पास आ गए| दोनों को पूजा के लिए तैयार देख मुझे उनपर प्यार आने लगा| मैं दोनों को गोद में उठाता उससे पहले ही दोनों बच्चों ने झुक कर मेरे पाँव छुए, मैंने इसकी कतई उम्मीद नहीं की थी इसलिए मैंने एकदम से दोनों बच्चों को गोद में उठा लिया और उनकी सैकड़ों पप्पियाँ ले डाली| मुझे बच्चों को प्यार करता देख माँ बोल पड़ीं;

माँ: तूने बच्चों की पप्पियाँ ले ली, अब काहे का व्रत?

माँ की बात सुन पिताजी, चन्दर और भौजी हँस पड़े!



पूरे परिवार ने खड़े हो कर माँ की आराधना की, बच्चे स्कूल के लिए तैयार थे तो मैं उन्हें school van में बिठा आया| नाश्ते में भौजी ने दूध पीने के लिए दिया, उसे पी मैं काम पर निकल गया| आज दिनभर में भौजी ने हर आधे घंटे में मुझ से what's app पर पुछा की मेरी तबियत ठीक तो है? दोपहर हुई तो उन्होंने मुझे अपनी कसम से बाँधते हुए घर बुलाया, खाने का समय हुआ तो दोनों बच्चे अपनी-अपनी थाली ले कर मेरे सामने खड़े हो गए| जब भी मैं घर पर होता था तो बच्चे मेरे हाथ से ही खाना खाते थे, मैंने दोनों को खाना खिलाना शुरू किया तो चन्दर टोकते हुए बोला;

चन्दर: तुम दोनों जन का चैन है की नाहीं?! आज मानु भैया वर्ती हैं, आपन हाथ से खाये नाहीं पावत हो?

चन्दर का टोकना मुझे हमेशा अखरता था, मैं चिढ कर उसे जवाब देने को हुआ था मगर इस बार भी पिताजी बीच में बोल पड़े;

पिताजी: अरे कउनो बात नाहीं बेटा, बच्चन का खाना खिलाये से थोड़े ही व्रत टूट जावत है?!

मैंने दोनों बच्चों का ध्यान खाने में लगाए रखा और उनसे उनके स्कूल के बारे में पूछता रहा| आयुष के पास बताने को बहुत कुछ होता था, क्लास में हुई हर एक घटना उसे मुझे बतानी होती थी मगर नेहा का दिन बड़ा सामान्य होता था| एक-आध बार उसने बताया था की उसकी teacher ने उसकी तारीफ की लेकिन उसके अलावा उसने कभी कोई रोचक बात नहीं बताई|

बच्चों का खाना हुआ तो भौजी ने मेरे लिए फल काट कर दे दिए, मेरा खाने का मन कतई नहीं था लेकिन माँ के डर के मारे मैं खाने लगा और बच्चों को भी खिलाने लगा| भौजी ने जैसे ही बच्चों को मेरे हिस्से के फल खाते देखा तो उन्होंने बच्चों को टोक दिया;

भौजी: आयुष-नेहा, अभी खाना खाया न तुमने? ये फल तुम्हारे लिए नहीं हैं!

भौजी का यूँ खाने को ले कर बच्चों को टोकने से मुझे बहुत गुस्सा आया, मैंने उन्हें घूर कर देखा तो भौजी खामोश हो गईं| उधर भौजी का यूँ टोकना माँ-पिताजी को बुरा लगा था, पिताजी ने थोड़ा नरमी से भौजी को समझाते हुए कहा;

पिताजी: बहु अइसन बच्चन का खाने का लेकर कभौं न टोका करो! का होइ ग्वा अगर ऊ फल खावत हैं?! तू और फल काट दियो, अगर घर मा फल नाहीं हैं तो हमका बताओ हम लाइ देब! लेकिन आज के बाद बच्चन का कभौं खाये-पीये का न टोका करो!

भौजी ने पिताजी की बात सर झुका कर सुनी और उनसे माफ़ी भी माँग ली;

भौजी: माफ़ कर दीजिये पिताजी, आगे से ध्यान रखूँगी!

भौजी के माफ़ी माँग लेने से माँ-पिताजी ने उन्हें माफ़ कर दिया और खाना खाने लगे|



खाना खा कर मैं, पिताजी और चन्दर काम पर निकल गए| शाम 5 बजे मुझे नेहा ने फ़ोन किया और पूजा की याद दिलाई;

मैं: हाँ जी बेटा जी, मुझे याद है! मैं बस साइट से निकल रहा हूँ| मेरे आने तक आप और आयुष नाहा-धो कर तैयार रहना|

मैंने फोन रखा और घर की ओर चल पड़ा| घर पहुँच कर मैं नहा-धोकर तैयार हुआ, बच्चे, माँ और भौजी पहले से ही तैयार थे| हम चारों ने विधिवत द्वारा पूजा की, पूजा खत्म होने के बाद दोनों बच्चों ने मेरे पैर छू कर आशीर्वाद लिया| मैंने दोनों को गोद में उठा लिया और जी भर कर उन्हें दुलार करने लगा| माँ और भौजी आस भरी नजरों से मुझे बच्चों को प्यार करते हुए देख रहे थे| जहाँ माँ को ये प्यार एक चाचा का मोह लग रहा था, वहीं भौजी का दिल एक बाप को अपने बच्चों को चाहते हुए प्रफुल्लित हो उठा था|

भौजी खाना बना रहीं थी और मैं माँ के साथ बैठक में बैठा था, माँ ने बातों-बातों में मुझे बताया की भौजी ने भी व्रत रखा है| मुझे भौजी के व्रत रखने से कोई आपत्ति नहीं थी, बस हैरानी हो रही थी की उन्होंने व्रत रखा और मुझे बताया भी नहीं| रात में भौजी ने सबको खाना परोसा, मैंने बच्चों का खाना लिया और उन्हें ले कर मैं अपने कमरे में आ गया| बच्चों का खाना होने के बाद दोनों बच्चे बाहर चले गए और भौजी मेरे लिए फल काट कर ले आईं|

मैं: आजकल मुझसे बात छुपाने लगे हो?

मैंने भौजी को आँखें तार्रेर कर देखते हुए कहा| भौजी मेरा सवाल सुन असमंजस में थीं, उन्हें समझ नहीं आया की आखिरी कौन सी बात उन्होंने मुझसे छुपाई है?

मैं: व्रत रखा और मुझे बताया भी नहीं?!

मैंने भौजी को बात याद दिलाते हुआ कहा| भौजी मुस्कुरा कर मुझे देखने लगीं और बड़े प्यार से बोलीं;

भौजी: आप ही बताओ की अच्छा लगता है की मेरा पति भूखा रहे और मैं खाना खाऊँ?

भौजी की बात सुन मुझे हँसी आ गई|

मैं: ठीक है! अब जा आकर अपने लिए भी फल काट कर यहीं ले आओ!

मेरी बात सुन भौजी कुछ सोच में पड़ गईं, वो उठ कर रसोई में गईं और वहाँ से उबले हुए आलू ले कर आ गईं|



हमारे गाँव में नवरात्रों के व्रत रखने का तरीका कुछ यूँ हैं, सुबह पूजा करने के बाद से कोई कुछ खाता-पीता नहीं है, सीधा शाम को पूजा करने के बाद वर्ती लोग उबले हुए आलू खाते हैं! मैं भी इसी नियम का पालन करता मगर माँ की हिदायतों के कारन मुझे फलाहार करना पड़ रहा था|

अब मैं फल खाऊँ और मेरी प्रेयसी आलू ये मुझे मंजूर नहीं था;

मैं: आलू छोडो और फल ले कर आओ!

मैंने भौजी को आदेश देते हुए कहा|

भौजी: फल आप खाओ, मुझे ये ही पसंद हैं!

भौजी ने मेरी बात को हलके में लते हुए कहा|

मैं: ठीक है, फिर मैं भी यही खाऊँगा|

ये कहते हुए मैंने एक आलू का टुकड़ा उठा लिया| भौजी जानती थीं की मुझे उबले आलू खाना पसंद नहीं इसलिए उन्होंने मेरे हाथ से आलू का टुकड़ा ले लिया!

भौजी: अच्छा बाबा! ला रही हूँ!

भौजी मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोलीं| भौजी अपने लिए भी फल काट कर ले आईं और हम दोनों साथ बैठ कर फल खाने लगे|

मैं: अगर मेरी पत्नी मुझे भूखा नहीं देख सकती तो मैं भी अपनी पत्नी को उबले हुए आलू खाते हुए नहीं देख सकता!

मैंने प्यार से भौजी को अपनी नारजगी का कारन बताया जिसे सुन वो मुस्कुराने लगीं|



इतने में दोनों बच्चे कूदते हुए आ गए और मेरे सामने मुँह खोल कर खड़े हो गए| मैंने दोनों को फल खिलाये और मुस्कुराते हुए भौजी से बोला;

मैं: आप जानते हो की मैं व्रत क्यों रख रहा हूँ?

मुझे लगा था की भौजी इस सवाल का जवाब नहीं जानती होंगी, लेकिन मैं भूल गया था की हमारे दिल connected हैं, इसलिए मैं जो भी सोचता या महसूस करता हूँ भौजी उस बात को पढ़ लेती हैं!

भौजी: जानती हूँ! देवी माँ ने जो बिना माँगे आपको आपके बच्चों से मिलवा दिया, उसके लिए आप उन्हें धन्यवाद करना चाहते हो!

भौजी की बात अधूरी थी इसलिए मैंने उसे पूरा करते हुए कहा;

मैं: बच्चों के साथ-साथ मुझे मेरा प्यार भी वापस मिल गया!

मैंने बात कुछ इस ढंग से कही जिससे भौजी को महसूस हो गया की मैं केवल बच्चों से ही प्यार नहीं करता बल्कि उनसे भी करता हूँ!

व्रत के नौ दिन इतने मधुरमई बीते की इसकी कल्पना मैंने नहीं की थी, प्रत्येक दिन बच्चे पूजा के समय मेरे साथ खड़े होते थे, प्रत्येक दिन मैं और भौजी साथ बैठ कर फलाहार करते थे और जो पिछले कुछ दिनों से मैं भौजी को समय नहीं दे पा रहा था उसकी कमी अब जाकर पूरी हो गई थी| जिस दिन व्रत खुला उस दिन भौजी ने सबके लिए आलू-पूरी बनाई, उस दिन तो पूरे नौ दिन की कसर खाने पर निकाली गई! मैंने और बच्चों ने पेट भरकर पूरियाँ खाई और फिर हम फ़ैल कर सोये!



अगले दिन दशेरा था और इस दिन से हमारी (भौजी और मेरी) एक ख़ास याद जुडी थी! गाँव में मैंने दशेरे की छुट्टियों में आने का वादा किया था, लेकिन अपना वादा पूरा न कर पाने पर पाँच साल पहले आज ही के दिन मैं बहुत उदास था! मुझे लगता था की भौजी को ये बात याद नहीं होगी लेकिन ऐसा नहीं था| सुबह जब वो मुझे जगाने आईं तो बहुत भावुक थीं, मैंने उन्हें अपने पास बिठाते हुए बात पूछी तो उन्होंने इस बात को फिर से दोहरा दिया| अब मैं अपनी प्रेयसी को कैसे रोने देता इसलिए मैंने उनका ध्यान भटका दिया;

मैं: जान, जो होना था हो गया, उसे भूल जाओ! अभी तो हम साथ हैं, इसलिए ये सब बात छोडो और शाम को हम मेला घूमने जायेंगे तथा रावण दहन देखेंगे|

भौजी कुछ प्रतिक्रिया देतीं उससे पहले ही घूमने की बात सुन दोनों बच्चे उठ बैठे और आ कर मेरे से लिपट गए!

आयुष: पापा जी मुझे वो गोल-गोल झूले पर बैठना है!

नेहा: मुझे भी! मुझे रावण भी देखना है!

दोनों बच्चों ने अपनी फरमाइशें पेश कर दीं जिसे सुन मैं और भौजी हँस पड़े|

दोनों बच्चों को गोदी ले कर मैं बाहर आया और पिताजी से आज शाम घूमने जाने का प्लान बताया| माँ-पिताजी ने तो भीड़-भाड़ के चलते जाने से मना कर दिया, चन्दर ने रात को साइट पर रुकने की बात कर के अपना पल्ला झाड़ दिया अब बचे दोनों बच्चे, मैं और भौजी! मैं बोलने वाला था की हम चारों जायेंगे की तभी माँ ने मेरा काम आसान करते हुए कहा;

माँ: तुम चारों हो आओ, लेकिन भीड़-भाड़ में बच्चों का ध्यान रखना!

कई बार माँ बिन मेरे कुछ कहे ही मेरा रास्ता आसान कर दिया करती थीं|



पिताजी दोनों बच्चों को आज के दिन के महत्त्व के बारे में बताना चाहते थे, इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और उन्हें गोदी में बिठा कर बात करने लगे;

पिताजी: बच्चों आपको पता है की आज के दिन का महत्त्व क्या है? हम दशहरा क्यों मनाते हैं?

पिताजी का सवाल सुन नेहा ने फ़ट से अपना हाथ उठाया और बोली;

नेहा: दादा जी मैं...मैं ...मैं बताऊँ?

नेहा का उत्साह देख पिताजी मुस्कुराने लगे और सर हाँ में हिला कर नेहा को बोलने का मौका दिया|

नेहा: आज के दिन भगवान राम जी ने रावण का वध कर के सीता माता को छुड़ाया था|

नेहा की बात से पिताजी बहुत प्रभावित हुए और उनके चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई! छोटे बच्चे जब पूछे गए सवाल का सही जवाब देते हैं तो वो बहुत प्यारे लगते हैं और उन पर बहुत प्रेम आता है, ऐसा ही प्रेम पिताजी को नेहा पर आ रहा था, नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए पिताजी बड़े गर्व से बोले;

पिताजी: बिलकुल सही कहा बेटा! लेकिन ये आपको किसने बताया?

नेहा: मम्मी ने!

नेहा ने अपनी मम्मी की तरफ इशारा करते हुए कहा|

पिताजी: शाबाश बहु! तूने सच में बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं!

अपनी तारीफ सुन भौजी गर्व से फूली नहीं समाईं!

पिताजी की बात खत्म हुई तो मेरे मन में इच्छा जगी की क्या बच्चों ने कभी रावण दहन देखा है?

मैं: नेहा-आयुष, बेटा आप दोनों ने कभी रावण दहन देखा है?

सवाल मैंने बच्चों से पुछा था मगर जवाब देने ससुरा चन्दर कूद पड़ा;

चन्दर: एक बार गाँव में राम-लीला हुई रही तब हम सभय रावण दहन देखेन रहा!

चन्दर मुस्कुराते हुए बोला| मैं समझ गया की गाँव में बच्चों ने क्या ही रावण दहन देखा होगा?!



शाम 5 बजे हम चारों तैयार हो कर निकलने को हुए की तभी दिषु का फ़ोन आ गया, उसने मुझसे मेले में मिलने की बात कही| मैं तो पहले से ही तैयार था, मैंने उससे मिलने की जगह तय की तथा बच्चों और भौजी के साथ घर से निकल पड़ा| नारंगी साडी में भौजी आज बहुत सुंदर लग रहीं थीं, रास्ते भर मैं बहाने से उनका हाथ पकड़ लिया करता और उनके हाथ को हलके से दबा दिया करता, मेरे ऐसा करने पर भौजी के चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान आ जाया करती! मेले में पहुँच कर वहाँ की रौनक देख कर हम चारों बहुत खुश थे, बच्चों ने जैसे ही विशालकाय रावण, मेहघनाद और कुम्भकरण का पुतला देखा तो दोनों बच्चों ने मेरा हाथ पकड़ कर मेरा ध्यान उस ओर खींचा| भौजी ने भी जब इतना विशालकाय पुतला देखा तो वो कुछ घबरा गईं और मुझे दूर खींच कर ले जाने लगीं!

आयुष: पापा जी इतना बड़ा रावण?

आयुष आश्चर्यचकित होते हुए बोला|

नेहा: गाँव वाला रावण तो बहुत छोटा सा था, ये तो बहुत-बहुत बड़ा है!

नेहा अपने हैरानी से खुले हुए मुँह पर हाथ रखते हुए बोली!

भौजी: जानू इतना बड़ा रावण बनाते कैसे होंगे?

भौजी का सवाल सुन मैं हँस पड़ा और उन्हें चिढ़ाते हुए बोला;

मैं: क्यों? अगले साल आप रावण बनाओगे?

मेरा कटाक्ष सुन भौजी ने प्यार से मेरी बाजू पर मुक्का मारा|



दिषु को आने में अभी समय था इसलिए हमने घूमना शुरू कर दिया| मेले में कुछ खिलौनों की दुकानें थीं, मुझे याद है जब मैं छोटा था तो खिलौनों के लिए पिताजी से कहा करता था और वो हर बार मुझे मना कर देते थे! मैंने सोच लिया की अगर मेरे बच्चे खिलौने माँगेंगे तो मैं उन्हीं कतई मना नहीं करूँगा, मैं इंतजार करने लगा की बच्चे मुझसे खिलौने लेने की जिद्द करें और में उन्हें बढ़िया सा खलौना खरीद कर दूँ| आयुष को चाहिए थी खिलौने वाली गाडी, इसलिए आयुष ने अपनी ऊँगली उसकी तरफ ऊँगली कर के इशारा किया| मैंने गाडी खरीद कर आयुष को दी तो आयुष का चेहरा ख़ुशी से खिल गया| जब मैंने नेहा से पुछा की उसे क्या चाहिए तो नेहा ने न में सर हिला दिया!

मैं: मेरे प्यारे बच्चे को कुछ नहीं चाहिए?

मैंने नेहा के सर पर हाथ रख कर पुछा| दरअसल नेहा अपनी मम्मी के डर से कुछ नहीं बोल रही थी, जब मैंने नेहा के सर पर हाथ रखा तो उसने हिम्मत कर के एक गुड़िया की तरह इशारा किया| मैंने नेहा को गुड़िया खरीद कर दी तो वो भी ख़ुशी से कूदने लगी! अब बारी थी झूलों में झूलने की, दोनों बच्चों को मैंने छोटे वाले giant wheel पर बिठाया! Giant wheel पर बैठ कर बच्चे ख़ुशी से चीखने लगे, उन्हें चीखता हुआ देख मैं और भौजी बहुत खुश थे| Giant wheel में बैठते वक़्त बच्चों ने mickey mouse वाला झूला देख लिया था| Giant wheel से उतरते ही दोनों बच्चों ने "mickey mouse" चिल्लाना शुरू कर दिया! हम चारों उस झूले के पास पहुँचे तो देखा तो हवा वाले pump से भरा हुआ एक बहुत बड़ा झूला है, बच्चे उस फूले हुए झूले पर चढ़ रहे थे और फिसलते हुए उतर रहे थे| दोनों बच्चे उस झूले पर मस्ती करने लगे, इधर मैं और भौजी बच्चों को मस्ती करते हुए देख कर हँसने लगे| सच कहता हूँ, बच्चों को यूँ उछल-कूद करते हुए देखने का सुख कुछ और ही होता है?! न उन्हें किसी बात की चिंता होती है, न कोई डर, उन्हें तो बस मस्ती करनी होती है!

मौज-मस्ती के बाद अब बारी थी पेट-पूजा की, हम चारों चाट खाने के लिए एक stall के सामने पहुँचे| भौजी ने गोलगप्पे खाने थे, आयुष और नेहा को टिक्की, बचा मैं तो मैंने अपने लिए लिए भल्ले-पपड़ी ली| सारी चाट हम चारों ने मिल-बाँट कर खाई, बच्चों को मिर्ची लगी तो दोनों ने 'सी..सी..सी..' की रट लगानी शुरू कर दी! दोनों बच्चों को सी-सी करते देख भौजी को बहुत मज़ा आ रहा था! मैंने फटाफट पानी की बोतल खरीदी और दोनों बच्चों को दी, आयुष ने फटाफट पानी गटका! नेहा से सब्र नहीं हो रहा था तो उसने आयुष से बोतल छीन ली और फटाफट पानी पीने लगी! पानी पीने से दोनों बच्चों को लगी मिर्ची थोड़ी बहुत ही कम हुई थी, इसलिए मैंने उन्हें एक सूखी पूरी खाने को दी जिससे दोनों बच्चों को लगी मिर्ची खत्म हुई!

भौजी: और खाओगे चाट?

भौजी ने बच्चों को चिढ़ाते हुए पुछा| भौजी की बात सुन दोनों बच्चे अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगे और मेरी टाँगों से लिपट गए|



कुछ पल बाद दिषु का फ़ोन आया तो मैंने उसे बताया की हम कहाँ खड़े हैं| आज दिषु पहलीबार भौजी से मिलने वाला था, भौजी को देखते ही दिषु ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा;

दिषु: नमस्ते भाभी जी!

दिषु की आवाज में हलकी सी शैतानी थी जिसे महसूस कर हम दोनों भाई हँसने लगे! हमने हाथ मिलाया और मैंने हँसते हुए उसे कहा;

मैं: सुधर जा!

दोनों बच्चे हैरानी से हम दोनों को देख रहे थे| नेहा तो दिषु से मिल चुकी थी, इसलिए उसने आगे बढ़ते हुए दिषु के पाँव छूते हुए कहा;

नेहा: नमस्ते चाचू!

दिषु एकदम से नीचे झुका और नेहा के सर पर हाथ रखते हुए बोला;

दिषु: जीते रहो बेटा!

अब मुझे आयुष को दिषु से मिलवाना था;

मैं: आयुष बेटा मैंने उस दिन आपको आपके दिषु चाचा के बारे में बताया था न? ये हैं आपके दिषु चाचा!

आयुष ने अपने हाथ जोड़े और दिषु के पाँव छूने लगा| दिषु ने आयुष को गोदी में उठा लिया और उसके गाल चूमते हुए मुझसे बोला;

दिषु: अरे तो ये हमारे साहबज़ादे! आपके (मेरे) सूपपुत्र जी?!

दिषु समझ गया की आयुष भौजी और मेरा बेटा है, उसके आयुष को साहबजादा कहने से हम तीनों हँसने लगे|

दिषु: वैसे बच्चों आपने तो पाँव छू कर मुझे इतनी जल्दी बूढा बना दिया!

दिषु का मज़ाक सुन हम सब हँसने लगे! हँसी-ख़ुशी का माहौल था तो मौका पा कर भौजी ने दिषु से बात शुरू की;

भौजी: दिषु भैया, thank you आपने इन्हें सँभाला और इनका ख्याल रखा!

भौजी ने हाथ जोड़ते हुए कहा|

दिषु: भाभी जी भाई है ये मेरा! आपको दिल से प्यार करता है, एक बार तो मैंने इसे सँभाल लिया, लेकिन अगर इसका दिल दुबारा टूटा तो ये सम्भल नहीं पायेगा!

दिषु की बात सुन कर भौजी भावुक हो गईं थीं, मुझे दुबारा खोने के डर के कारन उनके आँसूँ छलक आये थे!

भौजी: नहीं भैया! एक बार इन्हें खुद से अलग करने का पाप कर चुकी हूँ, लेकिन वादा करती हूँ की मैं कभी इनका दिल नहीं दुखाऊँगी!

भौजी रो पड़ती उससे पहले ही मैंने उन्हें कस कर अपने गले लगा लिया और सर पर हाथ फेरते हुए चुप कराया;

मैं: बस जान, रोना नहीं है!

हम दोनों को गले लगे हुए देख दिषु बोला;

दिषु: आप दोनों घूम कर आओ, तब तक मैं अपने भतीजे-भतीजी को घुमा लाता हूँ!

दिषु की बात सुन भौजी मुस्कुराने लगीं, दिषु बच्चों के साथ घूमने निकला और मैं भौजी का हाथ पकड़ कर मेला घूमने लगा| मेले में हम बड़ों के लिए खाने-पीने के इलावा कुछ ख़ास नहीं था इसलिए हम दोनों घुमते-घामते रामलीला देखने लगे| रावण दहन शुरू होने से पहले दिषु दोनों बच्चों को घुमा लाया और उन्हें अपनी तरफ से खिलौने खरीद कर दिए| जब मैंने उससे पुछा की उसने खिलौने क्यों खरीदे तो वो बड़े गर्व से बोला;

दिषु: मैं चाचू हूँ इनका तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता है की मैं अपने भतीजे-भतीजी को कुछ गिफ्ट दूँ!

दिषु की बात सुन भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: ठीक है दिषु भैया आप भी लाड कर लीजिये!



रावण दहन शुरू होने वाला था और बच्चों को वो देखने का बड़ा चाव था! दोनों बच्चों ने रावण के पुतले की तरफ इशारा कर चिल्लाना शुरू कर दिया;

नेहा: पापा जी रावण देखो?

आयुष: पापा जी, रावण कब जलेगा?

दोनों बच्चों का जोश देख मैंने दोनों को गोद में उठा लिया| गोद में आने से बच्चों को रावण का पुतला साफ़ नजर आ रहा था| हम लोग उचित दूरी पर खड़े थे इसलिए डरने की कोई बात नहीं थी! रावण दहन शुरू हुआ और पटाखे फूटते हुए देख दोनों बच्चों ने ताली बजाना शुरू कर दिया! पटाखों के शोर से भौजी डर गईं और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे से चिपक गईं! जब तक रावण, मेघनाद और कुम्भकरण का दहन पूर्ण नहीं हुआ तबतक भौजी मुझसे चिपकी खड़ी रहीं|



रावण दहन सम्पत हुआ और दिषु को bye कर हम सब घर लौटे, रास्ते भर दोनों बच्चों ने दहन को ले कर अपनी बचकानी बातों से रास्ते का सफर मनोरम बनाये रखा| बच्चों की बातें, उनका आपस में बहस करना सुन कर अलग ही आनंद आता है, क्योंकि उनकी बहस खुद को सही साबित करने के लिए नहीं होती बल्कि अपने अनुभव को साझा करने की होती है, उन्हें बस अपनी बात सुनानी होती है और बदले में वो बस आपसे इतना ही चाहते हैं की आप उनकी बात ध्यान से सुनें तथा उनकी सराहना करें!





जारी रहेगा भाग - 19 में...
गजब अपडेट हैं भाई गजब👌👌👌🔥🔥
 
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Naik

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 16



अब तक आपने पढ़ा:


भौजी: तो क्या अब आप मुझे गले भी नहीं लगाओगे? कभी Kiss भी नहीं करोगे? कभी मेरे आस-पास भी नहीं भटकोगे?
भौजी के बच्चों की तरह सवाल पूछने से मुझे उन पर प्यार आने लगा|
मैं: मेरी परिणीता मैंने ऐसा कब कहा?
मैंने भौजी के दोनों गाल खींचते हुए मुस्कुरा कर कहा|
मैं: मैं आपको दिल से अब भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना पहले प्यार किया करता था, मगर प्यार में ये जरूरी तो नहीं की इंसान physical भी हो?
मैंने बड़े प्यार से भौजी की आँखों में आँखें डाले हुए कहा|
मैं: मैं आपको इस तरह गले लगाउँगा...
मैंने भौजी को अपने गले लगाया|
मैं: और आपको Kiss भी करूँगा...
मैंने बिना किसी डर के भौजी के होठों को हलके से चूम लिया| मेरे इस छोटे से चुंबन से भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई|
मैं: लेकिन इसके आगे कभी नहीं बढूँगा|
मैंने भौजी को हमारे रिश्ते का दायरा समझाते हुए कहा| भौजी को दायरा समझ आ गया था इसलिए उन्होंने (झूठ-मूठ) मुस्कुरा कर कहा;
भौजी: ठीक है जानू, मेरे लिए इतना ही काफी है|
भौजी के मन में एक दुविधा पैदा हो चुकी थी, तभी भौजी के जवाब में नजाने मुझे क्यों वो आश्वासन, वो प्यार नजर नहीं आया जो की आना चाहिए था!




अब आगे:


हम दोनों (मैं और भौजी) अपनी बातों में इस कदर खो गए थे की हमने ये भी नहीं देखा की बच्चों ने हमारा छोटा सा kiss देख लिया है! दोनों बच्चे अपने होठों पर हाथ रखे हुए हमें देख रहे थे, भौजी की नजर जब दोनों बच्चों पर पड़ी तो उन्होंने मुझे अपनी आँख का इशारा कर के पीछे देखने को कहा| मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो दोनों बच्चे मुस्कुराने लगे थे, मैंने अपने दोनों हाथ खोल कर उन्हें गले लगने को बुलाया| दोनों बच्चे दौड़ते हुए आये और आकर मेरे गले लग कर खिलखिलाने लगे|

रात को खाना खाकर दोनों बच्चे कहानी सुनते हुए मुझसे लिपट कर सो गए, अगला दिन काफी दौड़भाग भरा था इसलिए भौजी और मेरी मुलाक़ात सुबह के बाद हुई ही नहीं| बीच-बीच में मुझे 10-15 मिनट मिल जाया करते थे और तब मेरा मन भौजी से बात करने को करता था| अब अगर उन्हें फ़ोन करता तो हो सकता है की आस-पास माँ होतीं और फिर उनके सामने हम आराम से प्यारभरी बात नहीं कर पाते| What's app पर बात कर सकते थे लेकिन भौजी का फ़ोन button वाला था, इसलिए मैंने भौजी के लिए एक अच्छा सा smartphone खरीदा| फ़ोन ले तो लिया पर भौजी को दूँ कैसे? एक तो न वो मुझसे इतना महँगा कुछ लेंगी और अगर ले भी लिया तो माँ के सामने कैसे इस्तेमाल करेंगी? नया smartphone देख कर घर में सब भौजी से पूछते की ये फ़ोन किसने दिया? अगर भौजी मेरा नाम लेतीं तो घर में सवाल उठने लगते?! मैंने काफी सोचा मगर कोई उपाए नहीं मिला इसलिए मैंने सोचा की माँ के सामने बच्चा बन जाता हूँ! भौजी और मेरा रिश्ता मेरे बचपन से था, तो ऐसे में मैं बच्चा बन कर थोड़ी जिद्द कर सकता था! मेरे बच्चा बन कर फ़ोन देने पर कोई सवाल नहीं करता और अगर करता भी तो मैं कह देता की मैंने अपनी बचपन की दोस्त को gift दिया है!



सुनने में भला ही ये plan बचकाना लगे मगर इसके अलावा कोई उपाए सूझ नहीं रहा था| मैं शाम को थोड़ा जल्दी घर पहुँचा, माँ और भौजी बैठक में बैठे साग चुन रहे थे और बच्चे अभी सो रहे थे| मैंने अपना बचपना दिखाना शुरू करते हुए भौजी से बात शुरू की;

मैं: मम-मम (पानी)!

मैंने बच्चों की तरह पानी पीने का इशारा करते हुए कहा| जब मैं छोटा बच्चा था तब पानी माँगने के लिए माँ से 'मम-मम' कहता था, आज सालों बाद मेरा ये बचपना देख माँ हँस पड़ीं! भौजी पानी ले कर आईं तो मैंने अपना निचला होंठ फुला कर बाहर निकालते हुए भौजी से कहा;

मैं: मुझे...ठंडा...पानी...चाहिए!

मेरा यूँ बच्चों की तरह बोलने से भौजी के चहेरे पर मुस्कान आ गई| वो मेरे लिए ठंडा पानी लाईं और वापस माँ के साथ बैठ कर साग चुनने लगीं| मैं उठा और माँ से थोड़ा लाड करने लगा, मैंने अपना सर माँ के कँधे पर रख दिया और टी.वी. पर कार्टून लगा दिए| मुझे कार्टून देखता हुआ देख भौजी खी-खी कर हँसने लगीं!

मैं: देखो...न माँ....!

मैंने फिर से बच्चे की तरह मुँह फुलाते हुए भौजी की शिकायत माँ से की|

माँ: क्या बात है बेटा, आज बड़ा लाड आ रहा है तुझे?

माँ ने मुस्कुरा कर मेरी ओर देखते हुए पुछा|

मैं: बस ऐसे ही!

मैंने शर्माने का नाटक करते हुए कहा| मेरे इस नाटक से माँ का दिल पिघल गया था!

माँ: बेटा मेरी ज्यादा चापलूसी मत कर!

माँ हँसते हुए बोलीं| माँ तो माँ होती है वो अपने बेटे की रग-रग से वाक़िफ़ होती हैं| मैंने अपना बैग उठाया और उसमें से gift wrap किया हुआ फ़ोन निकाला तथा बिना डरे gift wrap को भौजी की तरफ बढ़ा दिया| भौजी अपनी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं, वो मन ही मन मुझे कह रहीं थीं की मैं ये क्या कर रहा हूँ? माँ के सामने उन्हें gift क्यों दे रहा हूँ? उधर माँ थोड़ा हैरान थीं, वो मेरे बचपने के तार मेरे भौजी को gift देने से जोड़ने में लगीं थीं!

मैं: खोल के तो देखो?

मैंने बेख़ौफ़ भौजी से कहा| लेकिन भौजी ने सर न में हिला दिया, उनके यूँ सर न में हिलाने से माँ बोल पड़ीं;

माँ: बहु एक बार खोल कर तो देख तेरा देवर तेरे लिए क्या लाया है?

जब माँ ने ये कहा तो मेरे दिल को सुकून मिला, क्योंकि माँ इस गिफ्ट को एक देवर-भाभी के प्यार की दृष्टि से देख रहीं थीं!

अब माँ की बात भौजी अनसुना नहीं कर सकती थीं इसलिए भौजी ने मेरा दिया हुआ gift खोला, gift wrap निकलते ही भौजी की आँखें भीग गईं! भौजी इतनी भावुक हो गईं थीं की उनके मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे, वो बस लगातार न में गर्दन हिलाये जा रहीं थीं! मैं उठ कर भौजी को शांत कराने वाला था की माँ ने फ़ोन का डिब्बा उठाया और भौजी को खुद देते हुए बोलीं;

माँ: माँ हूँ न तेरी, तो मैं तुझे दे रही हूँ! मुझे मना करेगी?

माँ भौजी को प्यार से डाँटते हुए बोलीं| माँ के यूँ हक़ जताने से भौजी अपना रोना नहीं रोक पाईं, वो उठीं और माँ के गले से लग कर रोने लगीं| माँ ने भौजी के सर पर हाथ फेर कर उन्हें चुप कराया और भौजी से फ़ोन का डिब्बा खोलने को कहा| भौजी ने फ़ोन का डिब्बा खोला मगर फ़ोन को बिना छुए माँ की तरफ बढ़ा दिया;

भौजी: माँ इसे आप चालु करो!

भौजी मुस्कुरा कर बोलीं| मैंने माँ को फ़ोन चालु करने का तरीका बताया, माँ ने फ़ोन चालु किया और अपने आशीर्वाद सहित फ़ोन भौजी को दिया|



मैं हैरान था की माँ ने भला कोई सवाल क्यों नहीं पुछा? मेरी माँ गुस्सा पालने वालों में सी नहीं थीं, अगर उन्हें कोई बात बुरी लगती थी तो वो सामने से बता देतीं थीं| अब इस हिसाब से देखा जाए तो माँ को अगर मेरा भौजी के लिए फ़ोन लाना गलत लगा होता तो वो खुद अपने हाथ से भौजी को फ़ोन हक़ जताते हुए क्यों देतीं? मैं इन सवालों को सोच रहा था और उधर भौजी नया फ़ोन पा कर बहुत खुश थीं, मैंने भौजी से उनका पुराना फ़ोन माँगा| दोनों फ़ोन को बंद कर के मैंने नए फ़ोन में sim card डाला और फिर फ़ोन चालु किया, मैंने भौजी को फ़ोन के सारे function समझाने शुरू किये| जो सबसे पहली app मैंने डाली वो थी What's app, मैंने उन्हें इस app का प्रयोग समझा ने लग गया| हमारी personal chatting के नाम से भौजी खुश हो गईं! |

उधर माँ उठ कर अपने कमरे में गईं, मैं भौजी से नजर चुराते हुए माँ के कमरे में आया| मैंने बड़ी हिम्मत कर के माँ से बात शुरू की;

मैं: माँ.........आप नाराज तो नहीं?

मेरा सवाल सुन माँ मुस्कुराईं और मेरे गाल पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

माँ: बेटा मैं क्यों गुस्सा हूँगी? मैं जानती हूँ तू फ़ोन क्यों लाया था!

ये सुन तो मेरी हवा खिसक गई, मुझे लगा की जर्रूर माँ को मेरे और भौजी के रिश्ते के बारे में पता चल गया होगा!

माँ: कुछ दिन पहले बच्चों ने खेल-खेल में उसका (भौजी का) फ़ोन तोड़ दिया था, इसीलिए तू उसके लिए फ़ोन लाया न?!

माँ की बात सुन मैंने रहत की साँस ली और हाँ में सर हिला कर उनकी बात को सही ठहराया|

माँ: फिर बहु है भी तेरे बचपन की दोस्त तो तूने अगर फ़ोन दे दिया तो कौन सी बड़ी बात हो गई?!

माँ ने मुस्कुरा कर कहा और पूजा करने चली गईं| चलो माँ के सवाल पूछने का डर तो खत्म हुआ मगर अभी वो साला चन्दर बाकी था!



मैं अपने कमरे में आया तो बच्चे आँख मलते-मलते हुए जाग गए, दोनों ने पलंग पर खड़े होते हुए अपने हाथ खोल दिए! मैंने दोनों को गोद में उठाया और जी भर कर उन्हें दुलार करने लगा| दोनों हाथ-मुँह धो कर पढ़ाई करने बैठ गए और इधर भौजी मेरी चाय ले कर कमरे में आ गईं| उन्होंने चाय का गिलास टेबल पर रखा और मेरे सीने से कस कर लिपट गईं!

भौजी: Thank You जानू!

भौजी मुझे अपनी बाहों में कसते हुए बोलीं|

मैं: Thank you क्यों? गिफ्ट तो माँ ने दिया न?

मैंने मुस्कुरा कर भौजी के सर को चूमते हुए कहा|

भौजी: लाये तो आप थे न!

भौजी ने हँसते हुए कहा|

मैं: अब मेरी पत्नी भले ही मुझे न बताये की उसका फ़ोन टूट चूका है, लेकिन पति का तो फ़र्ज़ है की वो अपनी पत्नी के लिए नया फ़ोन लाये!

मेरी पति-पत्नी की बात सुन भौजी गदगद हो गईं!



अपनी मम्मी को फ़ोन gift मिलने के नाम सुन दोनों बच्चों ने उधम मचाना शुरू कर दिया, भौजी ने उन्हें फ़ोन दिखाया तो दोनों खुश हो गए| लेकिन बच्चे फ़ोन को छोटे उससे पहले भौजी ने दोनों को सख्ती से कहा;

भौजी: अभी चुपचाप पढ़ाई करो खाना खाने के बाद पापा सारे function समझायेंगे!

इतना कह भौजी ने फ़ोन वापस अपने पास रख लिया! बच्चे फ़ोन के साथ खेलने के लालच में फ़ौरन पढ़ने बैठ गए|

हम दोनों बच्चों के पास बैठ कर बात करने लगे, मैंने भौजी को फ़ोन lock करना सिखा दिया ताकि कहीं कोई उनका फ़ोन खोल कर हमारी chat न पढ़ ले| नया फ़ोन होता है तो उसके साथ खेलना बड़ा अच्छा लगता है, इसलिए भौजी ने अपने फ़ोन से मेरी तसवीरें खींचना शुरू कर दिया| आधे घंटे बाद मैंने उन्हें खाना बनाने को कहा और मैं आयुष को पढ़ाने बैठ गया| बीच-बीच में मैंने भौजी को what's app पर message भी भेजे जिसका जवाब देने में भौजी को बड़ी देर लगी क्योंकि उन्हें फ़ोन पर टाइप करना नहीं आता था| What's app का जो feature भौजी को सबसे अच्छा लगा था वो था emoji इस्तेमाल करना! भौजी ने पेट भर कर मुझे kiss करने वाली emoji भेजीं, मानो वो मुझे सच में kiss कर रहीं हों! इस chatting के चक्कर में उन्हें खाना बनाने में भी देरी हो गई और उनके data pack के साथ-साथ उनका balance भी खत्म हो गया! भौजी उदास हो कर मुँह फुला कर मेरे पास आईं और अपना फ़ोन मुझे देते हुए बोलीं;

भौजी: जानू ...मेला balance खत्म ...हो गया!

भौजी ने तुतलाते हुए कहा! उनके इस तरह तुतलाने से जी किया की उन्हें बाहों में भर कर उनके होंठ चूम लूँ! मैंने भौजी को अपने पास बिठाया और अपने फ़ोन से उनका फ़ोन रिचार्ज करना सिखाया|

मैं: जब मैं घर पर न हूँ तो मैंने जो आपको debit card दिया था उससे recharge कर लेना!

मैंने भौजी को recharge करने का तरीका अच्छे से समझाते हुए कहा| लेकिन भौजी न में सर हिलाने लगीं, फिर एकदम से वो मेरी ओर खिसकीं और मेरे होठों को चूम कर हँसते हुए बाहर भाग गईं| मैं जानता था की भौजी के न कहने का मतलब क्या था, लेकिन फिर भी मैंने इस बात को ले कर उनपर कोई दबाव नहीं बनाया, मैंने सोचा समय के साथ वो सब सीख ही लेंगी|



खैर रात को खाना खाने के बाद बच्चे मेरे पीछे पड़ गए, मैंने उन्हें भौजी के फ़ोन के सारे function समझाये| दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी के नये फ़ोन से खेलना शुरू कर दिया था, अब बच्चों का हो-हल्ला शुरू हुआ तो पिताजी और चन्दर का ध्यान बच्चों की तरफ लग गया| नया फ़ोन देख कर चन्दर ने थोड़ा अकड़ते हुए बच्चों से पुछा;

चन्दर: कहाँ पायो रे ई नया फ़ोन?

चन्दर के अकड़ कर पूछने से दोनों बच्चे सहम गए, मुझे ये नाकाबिले बर्दाश्त था इसलिए मैं उसके सवाल का जवाब देते हुए माँ द्वारा बताई हुई बात दोहरा दी;

मैं: बच्चों ने अपनी मम्मी का फ़ोन गिरा कर तोड़ दिया था.....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही चन्दर मेरी बात काटते हुए बोला;

चन्दर: तो नवा फ़ोन काहे लाये दिहो, पुरनका ठीक करवाए देतेयो!

चन्दर की मेरी बात काटने से मैं बिदक गया था इसलिए मैं चिढ़ते हुए बोला;

मैं: उसमें पहले से इतनी चेपी (tape) लगी थी, और चेपी लगाने की जगह नहीं बची थी! और मैं ये फ़ोन अपनी दोस्त के लिए लाया हूँ.....

मेरे तेवर गर्म हो चुके थे, कहीं मैं और चन्दर लड़ न पड़ें इसलिए पिताजी बीच में मेरी बात काटते हुए बोल पड़े;

पिताजी: ठीक है बेट कोई बात नहीं!

पिताजी मुझे शांत करवाते हुए बोले|

पिताजी: देवर-भाभी का प्यार है, कोई बात नहीं!

ये कह पिताजी ने चन्दर को भी शांत कर दिया|



मैंने दोनों बच्चों को गोद में लिया और अपने कमरे में आ गाया, कुछ देर बाद भौजी खाना खा कर मेरे कमरे में आईं| भौजी की आँखें नम थीं, कुछ देर पहले मेरी और चन्दर की बातें सुन कर उन्हें बहुत बुरा लगा था;

भौजी: क्यों...क्यों लाये आप ये फ़ोन....?!

भौजी ने खुद का रोना रोकते हुए कहा|

मैं: मैं फ़ोन लाया क्योंकि मेरी जानेमन पुराना फ़ोन इस्तेमाल करे ये मुझे मंजूर नहीं!

मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया|

भौजी: म...महँगा था न....?!

भौजी जानती थीं की अगर वो पैसे को ले कर मुझसे पूछेंगी तो मैं उन्हें झाड़ दूँगा इसलिए उन्होंने डरते हुए बात थोड़ा घुमा कर कही|

मैं: हाँ बहुत महँगा था!

मैंने भौजी से मजाक किया, लेकिन भौजी बेचारीं मेरी बात पर विश्वास कर बैठीं| 'महँगा' शब्द सुनते ही भौजी की आँखें बड़ी हो गईं और गला सूखने लगा|

भौजी: क...कितने का....?

भौजी ने घबराते हुए पुछा| मैंने थोड़ा ड्रामा करते हुए अपनी उँगलियों पर गिनना शुरू किया, जैसे-जैसे उँगलियों की गिनती बढ़ रही थी भौजी की जान निकल रही थी!

मैं: 10K!

मुझे नहीं पता की भौजी 10K का मतलब जानती थीं या नहीं मगर उनका मुँह जर्रूर खुला रह गया था! अब मजाक और लम्बा खींचता तो भौजी रो पड़तीं इसलिए मैंने मजाक खत्म करते हुए कहा;

मैं: 10K यानी 10 Kisses!

Kisses सुन कर भौजी की जान में जान आई और उनके दोनों गाल गुलाबी हो गए!

भौजी: सब एक साथ दूँ की किश्तों में?

भौजी शर्माते हुए बोलीं!

मैं: Madam जी हमारे पास तो सारे plans हैं!

मैंने किसी दुकानदार की तरह बात की, मेरी बात सुन भौजी मुस्कुराने लगीं|

मैं: चाहो तो One-time payment कर दो या फिर घंटों के हिसाब से EMI बाँध लो!

मैंने अपने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा|

मैं: लेकिन एक बात बता दूँ, दोनों ही सूरतों में हम 'ब्याज' तगड़ा लेते हैं!

मैंने 'ब्याज; शब्द पर जोर देते हुए कहा! भौजी मेरी बात समझ चुकी थीं और मोल चुकाने के लिए तैयार थीं लेकिन बच्चों की मौजूदगी थी तो इस वक़्त मैंने अपनी 'दूकान' का shutter down कर दिया! भौजी का दिल अब फिर से ख़ुशी से भर चूका था, मगर मैं जानता था की चन्दर जर्रूर फ़ोन को ले कर भौजी को तंग करेगा इसलिए मैंने अपनी आवाज सख्त करते हुए कहा;

मैं: अगर वो (चन्दर) कुछ बोले तो मुझे बताना!

मेरी बात सुन भौजी ने हाँ में सर हिलाया और आयुष को अपने सोने को कहा| अपनी मम्मी के पास सोने पर उसे आज रातभर नए फ़ोन के साथ खेलने को मिलता इसलिए आयुष ख़ुशी-ख़ुशी अपनी मम्मी के साथ चला गया| आयुष के जाते ही नेहा मेरे फ़ोन से खेलने लगी, फिर मैंने उसे कहानी सुनाई और दोनों बाप-बेटी लिपट कर सो गए|



जारी रहेगा भाग - 17 में...
Awesome bahot shaandar mazedaar lajawab update Manu bhai
 
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