12bara
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Is dukh ki ghadi me hum aapke sath hai Bhai .abhi aap apne pariwar ke sath waqt bitaye aur jo bhi riti riwaj aur karykarm hai usy nibhaye....
ठाकुर साहब और सुगंधा देवी रागिनी की दूसरी शादी करा कर उसको खुशी देना चाहते हैं वही वैभव भी अपनी भाभी को हर खुशी देना चाहता है वैभव ऐशा क्या सोच रहा है कि वह भाभी को खुशी दे दे क्या वह भाभी से शादी करेगा या किसी और से करवाएगा । ठाकुर साहब का सोचना सही है लेकिन क्या दूसरी शादी के लिए रागिनी तैयार होगी ? ठाकुर साहब को रागिनी से भी पूछ लेना चाहिए कि वह क्या चाहती हैं हो सकता हो वह वैभव को चाहती हो अगर वैभव भाभी से शादी करता है तो रूपा और अनुराधा का क्या होगाअध्याय - 82"साली रण्डी।" रूपचंद्र गुस्से से तिलमिलाते हुए बोला और फिर पैर पटकते हुए वहां से जा कर जल्दी ही अंधेरे में गुम हो गया।
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उसे यूं चला गया देख रजनी के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। उसने आंखें बंद कर के वैभव की मोहिनी सूरत का दीदार किया और फिर ठंडी आहें भरते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चली।
अब आगे....
रात में जब सब खा पी कर सोने चले गए तो सुगंधा देवी भी अपने कमरे में आ गईं। पूरी हवेली में सन्नाटा सा छाया हुआ था। कमरे में जैसे ही वो आईं तो उनकी नज़र पलंग पर अधलेटी अवस्था में लेटे दादा ठाकुर पर पड़ी। वो किसी गहरी सोच में डूबे नज़र आए उन्हें।
"किस सोच में डूबे हुए हैं आप?" सुगंधा देवी ने दरवाज़ा बंद करने के बाद उनकी तरफ पलट कर पूछा____"क्या भाई और बेटे को याद कर रहे हैं? वैसे तो दिन भर आप हम सबको समझाते रहते हैं और खुद अकेले में उन्हें याद कर के खुद को दुखी करते रहते हैं।"
"हमें अब भी यकीन नहीं हो रहा कि हमारे जिगर के टुकड़े हमें यूं अकेला छोड़ कर चले गए हैं।" दादा ठाकुर ने गहन गंभीरता से कहा____"आख़िर क्यों उन निर्दोषों को इस तरह से मार दिया गया? किसी का क्या बिगाड़ा था उन्होंने?"
"आप ही कहा करते हैं न कि औलाद के कर्मों का फल अक्सर माता पिता को भोगना पड़ता है।" सुगंधा देवी ने कहा____"तो समझ लीजिए कि इसी तरह माता पिता के कर्मों का फल औलाद को भी भोगना पड़ता है। आपके पिता जी ने जो कुकर्म किए थे उनकी सज़ा आपके छोटे भाई और हमारे बेटे ने अपनी जान गंवा कर पाई है।"
"उन दोनों के इस तरह गुज़र जाने से अब कुछ भी अच्छा नहीं लगता सुगंधा।" दादा ठाकुर ने भावुक हो कर कहा____"हम दिन भर खुद को किसी तरह बहलाने की कोशिश करते हैं मगर सच तो ये है कि एक पल के लिए भी हमारे ज़हन से उनका ख़याल नहीं जाता।"
"सबका यही हाल है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने संजीदगी से कहा____"हमारे भी कलेजे में हर पल बर्छियाँ चुभती रहती हैं। जब भी रागिनी बहू को देखते हैं तो यकीन मानिए हमारा कलेजा फट जाता है। हम ये सोच कर खुद को तसल्ली दे देते हैं कि हमारे पास अभी आप हैं और हमारा बेटा है लेकिन उसका क्या? उस बेचारी का तो संसार ही उजड़ गया है। एक औरत के लिए उसका पति ही सब कुछ होता है और जब वही न रहे तो सोचिए उस औरत पर क्या गुज़रेगी? उसको कोई औलाद होती तो जीने के लिए एक सहारा और बहाना भी होता मगर उस अभागन को तो ऊपर वाले ने हर तरह से बेसहारा और लाचार बना दिया है।"
"सही कह रही हैं आप।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"सच में उसके साथ बहुत ही ज़्यादा अन्याय किया है ईश्वर ने। हमें तो ये सोच कर बड़ा आश्चर्य होता है कि हमारी रागिनी बहू जो इतनी सभ्य सुशील संस्कारी और हमेशा ईश्वर में आस्था रखने वाली है उसके साथ ऊपर वाले ने ऐसा कैसे कर दिया?"
"ऊपर वाला ही जाने कि वो इतना निर्दई क्यों हो गया?" सुगंधा देवी ने कहा____"भरी जवानी में उसका सब कुछ नष्ट कर के जाने क्या मिल गया होगा उस विधाता को।"
"कुछ दिनों से एक ख़याल हमारे मन में आ रहा है।" दादा ठाकुर ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"हमने उस ख़्याल के बारे में बहुत सोचा है। हम चाहते हैं कि आप भी सुनें और फिर उस पर विचार करें।"
"किस बात पर?" सुगंधा देवी ने पूछा।
"यही कि क्या हमारी बहू का सारा जीवन यूं ही दुख और संताप को सहते हुए गुज़रेगा?" दादा ठाकुर ने कहा____"क्या हमें उसके बारे में कुछ भी नहीं सोचना चाहिए? आख़िर हर किसी की तरह उसे भी तो खुश रहने का अधिकार है।"
"आप कहना क्या चाहते हैं?" सुगंधा देवी के माथे पर सहसा शिकन उभर आई____"विधाता ने उसे जिस हाल में डाल दिया है उससे भला वो कैसे कभी खुश रह सकेगी?"
"इंसान खुश तो तभी होता है न, जब उसके लिए कोई खुशी वाली बात होती है अथवा खुश रहने का उसके पास कोई जरिया होता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"अगर हमारी बहू के पास भी खुश रहने का कोई जरिया हो जाए तो क्या वो खुश नहीं रहेगी?"
"हां मगर।" सुगंधा देवी ने दुविधा पूर्ण भाव से दादा ठाकुर की तरफ देखा____"ऐसा कैसे हो सकता है भला?"
"होने को तो कुछ भी हो सकता है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"पर तभी जब हम लोग ऐसा चाहें। बात दरअसल ये है कि कुछ दिनों से हमारे मन में ये ख़याल आता है कि अगर हमारी बहू फिर से सुहागन बन जाए तो यकीनन उसका जीवन संवर भी जाएगा और वो खुश भी रहने लगेगी।"
"य...ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने आश्चर्य से दादा ठाकुर को देखा____"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"
"क्यों नहीं हो सकता सुगंधा?" दादा ठाकुर ने ज़ोर दे कर कहा____"आख़िर अभी उसकी उमर ही क्या है? अगर हम सच में चाहते हैं कि वो हमेशा खुश रहे तो हमें उसके लिए ऐसा सोचना ही होगा। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते कि हमारी इतनी सभ्य सुशील संस्कारी और ईश्वर में आस्था रखने वाली बहू का जीवन हमेशा हमेशा के लिए बर्बाद और तकलीफ़ों से भरा हुआ बन जाए।"
"मतलब आप उसका फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं?" सुगंधा देवी ने कहा।
"बिल्कुल।" दादा ठाकुर ने कहा____"आप खुद सोचिए कि इतना बड़ा जीवन वो अकेले कैसे बिताएगी? जीवन भर उसे ये दुख सताता रहेगा कि ऊपर वाले ने उसके साथ ऐसा अन्याय क्यों किया? हर किसी की तरह उसे भी खुश क्यों नहीं रहने दिया? यही सब बातें सोच कर हमने ये फ़ैसला लिया है कि हम अपनी बहू का जीवन बर्बाद नहीं होने देंगे और ना ही उसे जीवन भर असहनीय पीड़ा में घुटने देंगे।"
"हमें बहुत अच्छा लगा कि आप अपनी बहू के लिए इतना कुछ सोच बैठे हैं।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ले कर कहा____"सच कहें तो हम भी यही चाहते हैं कि हमारी बहू हमेशा खुश रहे मगर....!"
"मगर??"
"मगर आप भी जानते हैं कि कहने में और करने में बहुत फ़र्क होता है।" सुगंधा देवी ने गंभीरता से कहा____"अपनी बहू के लिए हम यकीनन अच्छा ही सोच रहे हैं और ऐसा करना भी चाहते हैं लेकिन क्या ऐसा होना इतना आसान होगा? हमारा मतलब है कि क्या आपके समधी साहब ऐसा करना चाहेंगे और क्या खुद हमारी बहू ऐसा करना चाहेगी?"
"हमें पता है कि थोड़ी मुश्किल ज़रूर हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हमें ये भी यकीन है कि हमारी बहू हमारे अनुरोध को नहीं टालेगी। हम उसे समझाएंगे कि बेटा जीवन कभी भी दूसरों के भरोसे अथवा दूसरों के सहारे नहीं चलता बल्कि अपने किसी ख़ास के ही सहारे बेहतर तरीके से गुज़रता है। हमें यकीन है कि अंततः उसे हमारी बात समझ में आ ही जाएगी और वो हमारी बात भी मान लेगी। रहा सवाल समधी साहब का तो हम उनसे भी इस बारे में बात कर लेंगे।"
"क्या आपको लगता है कि वो इसके लिए राज़ी हो जाएंगे?" सुगंधा देवी ने संदेह की दृष्टि से उन्हें देखा।
"क्यों नहीं होंगे भला?" दादा ठाकुर ने दृढ़ता से कहा____"अगर वो अपनी बेटी को हमेशा खुश देखने की हसरत रखते हैं तो यकीनन वो इसके लिए राज़ी होंगे।"
"चलिए मान लेते हैं कि समधी साहब इसके लिए राज़ी हो जाते हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"फिर आगे क्या करेंगे आप? हमारा मतलब है कि क्या आपने हमारी बहू के लिए कोई लड़का देखा है?"
"लड़का भी देख लेंगे कहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन उससे पहले ज़रूरी ये है कि हम इस बारे में सबसे पहले समधी साहब से चर्चा करें। उनका राज़ी होना अति आवश्यक है।"
"तो समधी साहब से इस बारे में कब चर्चा करेंगे आप?" सुगंधा देवी ने उत्सुकतावश पूछा।
"अभी तो ये संभव ही नहीं है और ना ही इस समय ऐसी बातें करना उचित होगा।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"क्योंकि हमने अपने जिगर के टुकड़ों को खोया है। ऐसे वक्त में हम खुद नहीं चाहते कि हम किसी और से इस बारे में कोई चर्चा करें। थोड़ा समय गुज़र जाने दीजिए, उसके बाद ही ये सब बातें हो सकती हैं।"
उसके बाद किसी ने कुछ नहीं कहा। सुगंधा देवी भी पलंग पर दादा ठाकुर के बगल से लेट गईं। दोनों के ही मन मस्तिष्क में इस संबंध में तरह तरह की बातें चल रहीं थी किंतु दोनों ने ही सोने का प्रयास करने के लिए अपनी अपनी आंखें बंद कर लीं।
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अपने कमरे में पलंग पर लेटा मैं गहरे ख़यालों में गुम था। एक तरफ चाचा और भैया के ख़याल तो दूसरी तरफ मेनका चाची और भाभी के ख़याल। वहीं एक तरफ अनुराधा का ख़याल तो दूसरी तरफ सफ़ेदपोश जैसे रहस्यमय शख़्स का ख़याल। आंखों में नींद का नामो निशान नहीं था। बस तरह तरह की बातें ज़हन में गूंज रहीं थी। पूरी हवेली में सन्नाटा छाया हुआ था। कमरे में बिजली का बल्ब अपनी मध्यम सी रोशनी करते हुए जैसे कलप रहा था।
जब किसी तरह से भी ज़हन से इतने सारे ख़याल न हटे तो मैं उठ बैठा। खिड़की की तरफ देखा तो बाहर गहन अंधेरा था। शायद आसमान में काले बादल छाए हुए थे। खिड़की से ठंडी ठंडी हवा आ रही थी। ज़ाहिर है देर सवेर रात में बारिश होना तय था।
पलंग से उतर कर मैं दरवाज़े के पास पहुंचा और फिर दरवाज़ा खोल कर बाहर आ गया। आज बिजली गुल नहीं थी इस लिए हवेली में हर तरफ हल्की रोशनी फैली हुई थी। एकाएक मुझे फिर से भाभी का ख़याल आया तो मैं उनके कमरे की तरफ बढ़ चला। रात के इस वक्त मुझे उनके कमरे में जाना तो नहीं चाहिए था किंतु मैं जानता था कि उनकी आंखों में भी नींद का नामो निशान नहीं होगा और वो तरह तरह की बातें सोचते हुए खुद को दुखी किए होंगी।
जल्दी ही मैं उनके कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच गया। धड़कते दिल से मैंने उनके दरवाज़े पर दाएं हाथ से दस्तक दी तो कुछ ही पलों में दरवाज़ा खुल गया। मेरे सामने भाभी खड़ी थीं। कमरे में बल्ब का मध्यम प्रकाश था इस लिए मैंने देखा उनकी आंखों में आसूं थे। चेहरे पर दुख और उदासी छाई हुई थी। हालाकि मुझे देखते ही उन्होंने जल्दी से खुद को सम्हालते का प्रयास किया किंतु तब तक तो मुझे उनकी हालत का पता चल ही गया था।
"वैभव तुम? इस वक्त यहां?" फिर उन्होंने हैरानी ज़ाहिर करते हुए पूछा____"कुछ काम था क्या?"
"जी नहीं काम तो कोई नहीं था भाभी।" मैंने कहा____"नींद नहीं आ रही थी इस लिए यहां चला आया। मुझे पता था कि आप भी जाग रही होंगी। वैसे आपको मेरे यहां आने से कोई समस्या तो नहीं हुई है ना?"
"न..नहीं तो।" भाभी ने दरवाज़े से हटते हुए कहा____"अंदर आ जाओ। वैसे मैं भी ये सोच रही थी कि नींद नहीं आ रही है तो कुछ देर के लिए तुम्हारे पास चली जाऊं। फिर सोचा इस वक्त तुम्हें तकलीफ़ देना उचित नहीं होगा।"
"आप बेकार में ही ऐसा सोच रहीं थी।" मैंने कमरे के अंदर दाखिल हो कर कहा___"आप अच्छी तरह जानती हैं कि आपकी वजह से मुझे कभी कोई तकलीफ़ नहीं हो सकती। आप कभी भी मेरे कमरे में आ सकती हैं।"
"बैठो।" भाभी ने अपने पलंग के पास ही मेरे लिए एक कुर्सी रखते हुए कहा और फिर वो पलंग पर बैठ गईं। इधर मैं भी उनकी रखी कुर्सी पर बैठ गया।
"सुबह मां से कहूंगा कि जब तक कुसुम नहीं आती तब तक वो खुद ही रात में यहां आ कर आपके साथ सो जाया करें।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"इतनी बड़ी हवेली में अकेले एक कमरे में सोने से आपको डर भी लगता होगा।"
"मां जी को परेशान मत करना।" भाभी ने कहा____"तुम्हें तो पता ही है कि उन्हें सीढियां चढ़ने में परेशानी होती है। वैसे भी मैं इतनी कमज़ोर नहीं हूं जो अकेले रहने पर डरूंगी। ठाकुर खानदान की बेटी और बहू हूं, इतना कमज़ोर जिगरा नहीं है मेरा।"
"अरे! मैं तो चाहता हूं कि मेरी भाभी का जिगरा शेरनी जैसा हो जाए।" मैंने बड़े स्नेह से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"और दुनिया का कोई भी दुख उन्हें तकलीफ़ न दे सके।"
"जब तक इंसान दुख और तकलीफ़ों से नहीं गुज़रता तब तक वो कठोर नहीं बन सकता और ना ही उसमें किसी चीज़ को सहने की क्षमता हो सकती है।" भाभी ने कहा____"मुझे ईश्वर ने बिना मांगे ही ऐसी सौगात दे दी है तो यकीनन धीरे धीरे मैं कठोर भी बन जाऊंगी और हर चीज़ को सहने की क्षमता भी पैदा हो जाएगी मुझमें।"
"आपसे एक गुज़ारिश है।" मैंने कुछ सोचते हुए भाभी से कहा____"क्या आप मानेंगी?"
"क्या गुज़ारिश है?" भाभी ने पूछा____"अगर मेरे बस में होगा तो ज़रूर मानूंगी।"
"बिल्कुल आपके बस में है भाभी।" मैंने कहा____"बात दरअसल ये है कि कुछ ही समय में मैं खेती बाड़ी का सारा काम देखने लगूंगा। संभव है कि तब मेरा ज़्यादातर वक्त मजदूरों के साथ खेतों पर ही गुज़रे। मेरी आपसे गुज़ारिश ये है कि क्या आप कभी कभी मेरे साथ खेतों में चलेंगी? इससे आपका समय भी कट जाया करेगा और आपका मन भी बहलेगा।"
"मेरा समय कटे या ना कटे और मेरा मन बहले या न बहले किंतु तुम्हारे कहने पर मैं ज़रूर तुम्हारे साथ खेतों पर चला करूंगी।" भाभी ने कहा____"मैं भी देखूंगी कि मेरा प्यारा देवर खुद को बदल कर किस तरह से वो सारे काम करता है जिसे उसने सपने में भी कभी नहीं किया होगा।"
"बिल्कुल भाभी।" मैंने दृढ़ता से कहा____"मैं आपको सारे काम कर के दिखाऊंगा। वैसे भी आप साथ रहेंगी तो मुझे एक अलग ही ऊर्जा मिलेगी और साथ ही मेरा मनोबल भी बढ़ेगा।"
"भला ये क्या बात हुई?" भाभी ने ना समझने वाले अंदाज़ से मेरी तरफ देखा____"मेरे साथ रहने से भला तुम्हें कैसे ऊर्जा मिलेगी और किस तरह से तुम्हारा मनोबल बढ़ेगा?"
"आप ही तो बार बार मुझे एक अच्छा इंसान बनने को कहती हैं।" मैंने जैसे उन्हें समझाते हुए कहा____"अब जब आप मेरे साथ अथवा मेरे सामने रहेंगी तो मैं बस इसी सोच के साथ हर काम करूंगा कि मुझे आपकी नज़रों में अच्छा बनना है और आपकी उम्मीदों पर खरा भी उतरना है। अगर इस बीच मैं कहीं भटक जाऊं तो आप मुझे फ़ौरन ही सही रास्ते पर ले आना। ऐसे में निश्चित ही मैं जल्द से जल्द आपको सब कुछ बेहतर तरीके से कर के दिखा सकूंगा।"
"हम्म्म्म बात तो एकदम ठीक है तुम्हारी।" भाभी ने सिर हिलाते हुए कहा___"तो फिर ठीक है। मैं ज़रूर तुम्हारे साथ कभी कभी खेतों पर चला करूंगी।"
"मेरी सबसे अच्छी भाभी।" मैंने कुर्सी से उठ कर खुशी से कहा____"मुझे यकीन है कि जब आप इस हवेली से बाहर निकल कर खेतों पर जाया करेंगी तो यकीनन आपको थोड़ा ही सही लेकिन सुकून ज़रूर मिलेगा। अच्छा अब मैं चलता हूं। आप भी अब कुछ मत सोचिएगा, बल्कि चुपचाप सो जाइएगा।"
मेरी बात सुन कर भाभी के होठों पर बहुत ही बारीक मुस्कान उभरी और फिर वो उठ कर मेरे पीछे दरवाज़े तक आईं। मैं जब बाहर निकल गया तो उन्होंने दरवाज़ा बंद कर लिया। भाभी के होठों पर बारीक सी मुस्कान आई देख मुझे बेहद खुशी महसूस हो रही थी। मैंने मन ही मन सोचा_____'फ़िक्र मत कीजिए भाभी जल्द ही आपको अपने हर दुखों से छुटकारा मिल जाएगा।'
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अगली दोपहर भुवन हवेली आया और मुझसे मिला। बैठक में पिता जी भी थे। उनके सामने ही उसने मुझे एक कागज़ पकड़ाया जिसमें मेरे नए बन रहे मकान में काम करने वाले मजदूरों का हिसाब किताब था। मैंने बड़े ध्यान से हिसाब किताब देखा और फिर कागज़ को पिता जी की तरफ बढ़ा दिया।
"हम्म्म्म काफी अच्छा हिसाब किताब तैयार किया है तुमने।" पिता जी ने भुवन की तरफ देखते हुए कहा____"किंतु हम चाहते हैं कि उन सभी मजदूरों को उनकी मेहनत के रूप में इस हिसाब से भी ज़्यादा फल मिले।"
कहने के साथ ही पिता जी ने अपने कुर्ते की जेब से रुपयों की एक गड्डी निकाली और फिर उसे मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"हम चाहते हैं कि तुम्हारे हर काम से लोग खुश और संतुष्ट हों इस लिए चार पैसा बढ़ा कर ही सबको उनका मेहनताना देना।"
"जी पिता जी, ऐसा ही करूंगा मैं।" मैंने उनके हाथ से रुपए की गड्डी ले कर कहा____"एक और बात, बारिश का मौसम शुरू हो गया है तो जल्दी ही इस रबी की फसल के लिए खेतों की जुताई का काम शुरू करवा देता हूं।"
"हम्म्म्म बहुत बढ़िया।" पिता जी ने कहा____"हम उम्मीद करते हैं कि ये सारे काम तुम अच्छे से सम्हाल लोगे।"
पिता जी को सिर नवा कर और उनसे मजदूरों के हिसाब किताब वाला कागज़ ले कर मैं और भुवन बैठक से बाहर आ गए। कुछ ही देर में हम दोनों अपनी अपनी मोटर साईकिल में बैठ कर निकल लिए।
दोपहर का समय था किंतु धूप नहीं थी। आसमान में काले बादल छाए हुए थे। रात में भी बारिश हुई थी इस लिए रास्ते में फिर से कीचड़ हो गया था। कुछ ही देर में हम साहूकारों के घरों के सामने पहुंच गए। मैंने एक नज़र उनके घर की तरफ डाली किंतु कोई नज़र ना आया। साहूकारों के बाद मुंशी चंद्रकांत का घर पड़ता था। जब मैं उसके घर के सामने पहुंचा तो देखा रघुवीर अपनी बीवी रजनी के साथ एक भैंस को भूसा डाल रहा था। रजनी के हाथ में एक बाल्टी थी।
मोटर साइकिल की आवाज़ से उन दोनों का ध्यान हमारी तरफ आकर्षित हुआ। मुझे मोटर साइकिल में जाता देख जहां रघुवीर मुझे अजीब भाव से देखने लगा था वहीं उसकी बीवी रजनी मुझे देख कर हल्के से मुस्कुराई थी। रघुवीर उसके पीछे था इस लिए वो ये नहीं देख सका था कि उसकी बीवी मुझे देख कर मुस्कुराई थी। उस रांड को मुस्कुराता देख एकाएक ही मेरे मन में उसके लिए नफ़रत के भाव जाग उठे थे। मैं उससे नज़र हटा कर आगे बढ़ गया। कुछ ही देर में मैं और भुवन नए बन रहे मकान में पहुंच गए।
मेरे कहने पर भुवन ने सभी मजदूरों को बुलाया। थोड़ी औपचारिक बातों के बाद मैंने सभी को एक एक कर के हिसाब किताब बता कर उनका मेहनताना दे दिया। पिता जी के कहे अनुसार मैंने सबको चार पैसा बढ़ा कर ही दिया था जिससे सभी लोग काफी खुश हो गए थे। कुछ तो मेरे गांव के ही मजदूर थे किंतु कुछ मुरारी काका के गांव के थे। मकान अब पूरी तरह से बन कर तैयार हो चुका था। दीवारों पर रंग भी चढ़ गया था तो अब वो बड़ा ही आकर्षक नज़र आ रहा था। मुझे थोड़ी मायूसी सी हुई किंतु अब क्या हो सकता था? जो सोचा था वो हुआ ही नहीं था बल्कि कुछ और ही हो गया था। ख़ैर मैंने सभी मजदूरों को ये कह कर विदा किया कि अगर वो लोग इसी तरह से मेहनताना पाना चाहते हैं तो वो हमारे खेतों पर काम कर सकते हैं। मेरी बात सुन कर सब खुशी से तैयार हो गए।
मजदूरों के जाने के बाद मैं और भुवन आपस में ही खेतों पर फसल उगाने के बारे में चर्चा करने लगे। काफी देर तक हम दोनों इस बारे में कई तरह के विचार विमर्श करते रहे। तभी सहसा मेरी नज़र थोड़ी दूरी पर नज़र आ रही सरोज काकी पर पड़ी। उसके साथ उसकी बेटी अनुराधा और बेटा अनूप भी था। अनुराधा को देखते ही मुझे पिछले दिन की घटना याद आ गई और मेरे अंदर हलचल सी होने लगी।
"काकी आप यहां?" सरोज जब हमारे पास ही आ गई तो मैंने उसे देखते हुए कहा____"सब ठीक तो है न?"
"तुम्हारी दया से सब ठीक ही है बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"अनू के बापू जब से गुज़रे हैं तब से तुमने हम पर कोई संकट आने ही कहां दिया है?"
मैंने उसकी इस बात का जवाब देने की जगह उसे बरामदे में ही बैठ जाने को कहा तो वो अंदर आ कर बैठ गई। उसके पीछे अनुराधा और अनूप भी आ कर बैठ गया। अनुराधा बार बार मुझे ही देखने लगती थी। उसके चेहरे पर ज़माने भर की मासूमियत थी किंतु इस वक्त वो बेहद उदास नज़र आ रही थी। इधर उसकी मौजूदगी से मैं भी थोड़ा असहज हो गया था। ये अलग बात है कि उसे देखते ही दिल को सुकून सा मिल रहा था।
"काकी सब ठीक तो है न?" भुवन ने सरोज की तरफ देखते हुए पूछा____"और अनुराधा की अब तबीयत कैसी है?"
"अब बेहतर है बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"वैद्य जी जो दवा दे गए थे उसे इसने खाया था तो अब ठीक है ये।"
"अच्छा काकी जगन काका के बीवी बच्चे कैसे हैं?" मैंने एक नज़र अनुराधा की तरफ देखने के बाद काकी से पूछा____"क्या वो लोग आते जाते हैं आपके यहां?"
"उसकी बीवी पहले नहीं आती थी।" सरोज काकी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन तीन दिन पहले वो अपनी एक बेटी के साथ आई थी। जगन ने जो किया था उसकी माफ़ी मांग रही थी मुझसे। मैं जानती थी कि इस सबमें उसका या उसके बच्चों का कोई दोष नहीं था। अपने भाई की जान का दुश्मन तो उसका पति ही बन गया था इस लिए अब जब वो भी नहीं रहा तो उस बेचारी से क्या नाराज़गी रखना? बेचारी बहुत रो रही थी। कह रही थी कि अब उसका और उसके बच्चों का क्या होगा? कुछ सालों में एक एक कर के उसकी दोनों बेटियां ब्याह करने लायक हो जाएंगी तब वो क्या करेगी? कैसे अपनी बेटियों का ब्याह कर सकेगी?"
"अगर जगन काका ये सब सोचते तो आज उनके बीवी बच्चे ऐसी हालत में न पहुंचते।" मैंने गंभीरता से कहा____"अपने ही सगे भाई की ज़मीन का लालच किया उन्होंने और उस लालच में अंधे हो कर उन्होंने अपने ही भाई की जान ले ली। ऊपर वाला ऐसे में कैसे भला उनके साथ भला करता? ख़ैर पिता जी ने इसके बावजूद जगन काका के परिवार के लिए थोड़ा बहुत आर्थिक मदद करने का आश्वासन दिया है तो उन्हें ज़्यादा फ़िक्र नहीं करना चाहिए।"
"घर में एक मर्द का होना बहुत आवश्यक होता है वैभव बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"जगन जैसा भी था किंतु उसके रहते उसकी बीवी को इन सब बातों की इतनी चिंता नहीं थी मगर अब, अब तो हर चीज़ के लिए उसे दूसरों पर ही निर्भर रहना है।"
"इंसान का जीवन इसी लिए तो संघर्षों से भरा होता है काकी।" मैंने कहा____"कोई कितना ही बड़ा आदमी क्यों न हो किंतु जीवन जीना उसके लिए भी आसान नहीं होता। ख़ैर छोड़िए, अब तो बारिश का मौसम भी आ गया है तो आपको भी अपने खेतों पर बीज बोने होंगे न?"
"हां उसके बिना गुज़ारा भी तो नहीं होगा बेटा।" काकी ने कहा____"सोच रही हूं कि एक दो बार और बारिश हो जाए जिससे ज़मीन के अंदर तक नमी पहुंच जाए। उसके बाद ही जुताई करवाने के बारे में सोचूंगी।"
"फ़िक्र मत कीजिए।" मैंने कहा____"मैं दो लोगों को इस काम पर लगवा दूंगा। आप बस बीज दे देना उन्हें बोने के लिए। बाकी निदाई गोड़ाई तो आप खुद ही कर लेंगी न?"
"हां बेटा।" काकी ने कहा____"इतना तो कर ही लूंगी। वैसे भी थोड़ा बहुत काम तो मैं खुद भी करना चाहती हूं क्योंकि काम करने से ही इंसान का शरीर स्वस्थ्य रहता है। खाली बैठी रहूंगी तो तरह तरह की बातों से मन भी दुखी होता रहेगा।"
"वैसे किस लिए आईं थी आप यहां पर?" मैंने वो सवाल किया जो मुझे सबसे पहले करना चाहिए था।
"वो मैं भुवन के पास आई थी।" सरोज काकी ने कहा____"असल में बारिश होने के चलते मेरे घर में कई जगह से पानी टपक रहा था। पिछले साल अनू के बापू ने ढंग से घर को छा दिया था जिससे पानी का टपकना बंद हो गया था मगर अब फिर से टपकने लगा है। अब अनू के बापू तो हैं नहीं और मैं खुद छा नहीं सकती इसी लिए भुवन से ये कहने आई थी कि किसी के द्वारा मेरे घर को छवा दे। वैसे अच्छा हुआ कि मैं यहां आ गई और यहां तुम मिल गए मुझे। तुम तो अब मेरे घर आते ही नहीं हो।"
"पहले की तरह अब समय ही नहीं रहता काकी।" मैंने बहाना बनाते हुए कहा____"आपको तो सब पता ही है कि हमारे साथ क्या क्या हो चुका है।"
"हां जानती हूं बेटा।" सरोज काकी ने संजीदा हो कर कहा____"तुम्हारे परिवार के साथ जो हुआ है वो तो सच में बहुत बुरा हुआ है लेकिन क्या कह सकते हैं। ऊपर वाले पर भला किसका बस चलता है?"
"जिन लोगों ने ये सब किया था उनके साथ भी तो वैसा ही किया गया है।" मैंने सहसा सख़्त भाव से कहा____"अब वो लोग ख़्वाब में भी किसी के साथ ऐसा करने का नहीं सोचेंगे।"
थोड़ी देर इसी संबंध में कुछ बातें हुईं उसके बाद मैं भुवन से ये कह कर वहां से चला आया कि अगले दिन सभी मजदूरों से मिलना है जिसके लिए सारा इंतजाम कर दे। असल में अनुराधा की मौजूदगी से मैं कुछ ज़्यादा ही असहज हो रहा था। उसके चेहरे पर छाई उदासी मुझे अंदर ही अंदर कचोटने लगी थी। यही वजह थी कि मैं वहां से चल पड़ा था।
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ठाकुर साहब और सुगंधा देवी रागिनी की दूसरी शादी करा कर उसको खुशी देना चाहते हैं वही वैभव भी अपनी भाभी को हर खुशी देना चाहता है वैभव ऐशा क्या सोच रहा है कि वह भाभी को खुशी दे दे क्या वह भाभी से शादी करेगा या किसी और से करवाएगा । ठाकुर साहब का सोचना सही है लेकिन क्या दूसरी शादी के लिए रागिनी तैयार होगी ? ठाकुर साहब को रागिनी से भी पूछ लेना चाहिए कि वह क्या चाहती हैं हो सकता हो वह वैभव को चाहती हो अगर वैभव भाभी से शादी करता है तो रूपा और अनुराधा का क्या होगाअध्याय - 82"साली रण्डी।" रूपचंद्र गुस्से से तिलमिलाते हुए बोला और फिर पैर पटकते हुए वहां से जा कर जल्दी ही अंधेरे में गुम हो गया।
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उसे यूं चला गया देख रजनी के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। उसने आंखें बंद कर के वैभव की मोहिनी सूरत का दीदार किया और फिर ठंडी आहें भरते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चली।
अब आगे....
रात में जब सब खा पी कर सोने चले गए तो सुगंधा देवी भी अपने कमरे में आ गईं। पूरी हवेली में सन्नाटा सा छाया हुआ था। कमरे में जैसे ही वो आईं तो उनकी नज़र पलंग पर अधलेटी अवस्था में लेटे दादा ठाकुर पर पड़ी। वो किसी गहरी सोच में डूबे नज़र आए उन्हें।
"किस सोच में डूबे हुए हैं आप?" सुगंधा देवी ने दरवाज़ा बंद करने के बाद उनकी तरफ पलट कर पूछा____"क्या भाई और बेटे को याद कर रहे हैं? वैसे तो दिन भर आप हम सबको समझाते रहते हैं और खुद अकेले में उन्हें याद कर के खुद को दुखी करते रहते हैं।"
"हमें अब भी यकीन नहीं हो रहा कि हमारे जिगर के टुकड़े हमें यूं अकेला छोड़ कर चले गए हैं।" दादा ठाकुर ने गहन गंभीरता से कहा____"आख़िर क्यों उन निर्दोषों को इस तरह से मार दिया गया? किसी का क्या बिगाड़ा था उन्होंने?"
"आप ही कहा करते हैं न कि औलाद के कर्मों का फल अक्सर माता पिता को भोगना पड़ता है।" सुगंधा देवी ने कहा____"तो समझ लीजिए कि इसी तरह माता पिता के कर्मों का फल औलाद को भी भोगना पड़ता है। आपके पिता जी ने जो कुकर्म किए थे उनकी सज़ा आपके छोटे भाई और हमारे बेटे ने अपनी जान गंवा कर पाई है।"
"उन दोनों के इस तरह गुज़र जाने से अब कुछ भी अच्छा नहीं लगता सुगंधा।" दादा ठाकुर ने भावुक हो कर कहा____"हम दिन भर खुद को किसी तरह बहलाने की कोशिश करते हैं मगर सच तो ये है कि एक पल के लिए भी हमारे ज़हन से उनका ख़याल नहीं जाता।"
"सबका यही हाल है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने संजीदगी से कहा____"हमारे भी कलेजे में हर पल बर्छियाँ चुभती रहती हैं। जब भी रागिनी बहू को देखते हैं तो यकीन मानिए हमारा कलेजा फट जाता है। हम ये सोच कर खुद को तसल्ली दे देते हैं कि हमारे पास अभी आप हैं और हमारा बेटा है लेकिन उसका क्या? उस बेचारी का तो संसार ही उजड़ गया है। एक औरत के लिए उसका पति ही सब कुछ होता है और जब वही न रहे तो सोचिए उस औरत पर क्या गुज़रेगी? उसको कोई औलाद होती तो जीने के लिए एक सहारा और बहाना भी होता मगर उस अभागन को तो ऊपर वाले ने हर तरह से बेसहारा और लाचार बना दिया है।"
"सही कह रही हैं आप।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"सच में उसके साथ बहुत ही ज़्यादा अन्याय किया है ईश्वर ने। हमें तो ये सोच कर बड़ा आश्चर्य होता है कि हमारी रागिनी बहू जो इतनी सभ्य सुशील संस्कारी और हमेशा ईश्वर में आस्था रखने वाली है उसके साथ ऊपर वाले ने ऐसा कैसे कर दिया?"
"ऊपर वाला ही जाने कि वो इतना निर्दई क्यों हो गया?" सुगंधा देवी ने कहा____"भरी जवानी में उसका सब कुछ नष्ट कर के जाने क्या मिल गया होगा उस विधाता को।"
"कुछ दिनों से एक ख़याल हमारे मन में आ रहा है।" दादा ठाकुर ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"हमने उस ख़्याल के बारे में बहुत सोचा है। हम चाहते हैं कि आप भी सुनें और फिर उस पर विचार करें।"
"किस बात पर?" सुगंधा देवी ने पूछा।
"यही कि क्या हमारी बहू का सारा जीवन यूं ही दुख और संताप को सहते हुए गुज़रेगा?" दादा ठाकुर ने कहा____"क्या हमें उसके बारे में कुछ भी नहीं सोचना चाहिए? आख़िर हर किसी की तरह उसे भी तो खुश रहने का अधिकार है।"
"आप कहना क्या चाहते हैं?" सुगंधा देवी के माथे पर सहसा शिकन उभर आई____"विधाता ने उसे जिस हाल में डाल दिया है उससे भला वो कैसे कभी खुश रह सकेगी?"
"इंसान खुश तो तभी होता है न, जब उसके लिए कोई खुशी वाली बात होती है अथवा खुश रहने का उसके पास कोई जरिया होता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"अगर हमारी बहू के पास भी खुश रहने का कोई जरिया हो जाए तो क्या वो खुश नहीं रहेगी?"
"हां मगर।" सुगंधा देवी ने दुविधा पूर्ण भाव से दादा ठाकुर की तरफ देखा____"ऐसा कैसे हो सकता है भला?"
"होने को तो कुछ भी हो सकता है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"पर तभी जब हम लोग ऐसा चाहें। बात दरअसल ये है कि कुछ दिनों से हमारे मन में ये ख़याल आता है कि अगर हमारी बहू फिर से सुहागन बन जाए तो यकीनन उसका जीवन संवर भी जाएगा और वो खुश भी रहने लगेगी।"
"य...ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने आश्चर्य से दादा ठाकुर को देखा____"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"
"क्यों नहीं हो सकता सुगंधा?" दादा ठाकुर ने ज़ोर दे कर कहा____"आख़िर अभी उसकी उमर ही क्या है? अगर हम सच में चाहते हैं कि वो हमेशा खुश रहे तो हमें उसके लिए ऐसा सोचना ही होगा। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते कि हमारी इतनी सभ्य सुशील संस्कारी और ईश्वर में आस्था रखने वाली बहू का जीवन हमेशा हमेशा के लिए बर्बाद और तकलीफ़ों से भरा हुआ बन जाए।"
"मतलब आप उसका फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं?" सुगंधा देवी ने कहा।
"बिल्कुल।" दादा ठाकुर ने कहा____"आप खुद सोचिए कि इतना बड़ा जीवन वो अकेले कैसे बिताएगी? जीवन भर उसे ये दुख सताता रहेगा कि ऊपर वाले ने उसके साथ ऐसा अन्याय क्यों किया? हर किसी की तरह उसे भी खुश क्यों नहीं रहने दिया? यही सब बातें सोच कर हमने ये फ़ैसला लिया है कि हम अपनी बहू का जीवन बर्बाद नहीं होने देंगे और ना ही उसे जीवन भर असहनीय पीड़ा में घुटने देंगे।"
"हमें बहुत अच्छा लगा कि आप अपनी बहू के लिए इतना कुछ सोच बैठे हैं।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ले कर कहा____"सच कहें तो हम भी यही चाहते हैं कि हमारी बहू हमेशा खुश रहे मगर....!"
"मगर??"
"मगर आप भी जानते हैं कि कहने में और करने में बहुत फ़र्क होता है।" सुगंधा देवी ने गंभीरता से कहा____"अपनी बहू के लिए हम यकीनन अच्छा ही सोच रहे हैं और ऐसा करना भी चाहते हैं लेकिन क्या ऐसा होना इतना आसान होगा? हमारा मतलब है कि क्या आपके समधी साहब ऐसा करना चाहेंगे और क्या खुद हमारी बहू ऐसा करना चाहेगी?"
"हमें पता है कि थोड़ी मुश्किल ज़रूर हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हमें ये भी यकीन है कि हमारी बहू हमारे अनुरोध को नहीं टालेगी। हम उसे समझाएंगे कि बेटा जीवन कभी भी दूसरों के भरोसे अथवा दूसरों के सहारे नहीं चलता बल्कि अपने किसी ख़ास के ही सहारे बेहतर तरीके से गुज़रता है। हमें यकीन है कि अंततः उसे हमारी बात समझ में आ ही जाएगी और वो हमारी बात भी मान लेगी। रहा सवाल समधी साहब का तो हम उनसे भी इस बारे में बात कर लेंगे।"
"क्या आपको लगता है कि वो इसके लिए राज़ी हो जाएंगे?" सुगंधा देवी ने संदेह की दृष्टि से उन्हें देखा।
"क्यों नहीं होंगे भला?" दादा ठाकुर ने दृढ़ता से कहा____"अगर वो अपनी बेटी को हमेशा खुश देखने की हसरत रखते हैं तो यकीनन वो इसके लिए राज़ी होंगे।"
"चलिए मान लेते हैं कि समधी साहब इसके लिए राज़ी हो जाते हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"फिर आगे क्या करेंगे आप? हमारा मतलब है कि क्या आपने हमारी बहू के लिए कोई लड़का देखा है?"
"लड़का भी देख लेंगे कहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन उससे पहले ज़रूरी ये है कि हम इस बारे में सबसे पहले समधी साहब से चर्चा करें। उनका राज़ी होना अति आवश्यक है।"
"तो समधी साहब से इस बारे में कब चर्चा करेंगे आप?" सुगंधा देवी ने उत्सुकतावश पूछा।
"अभी तो ये संभव ही नहीं है और ना ही इस समय ऐसी बातें करना उचित होगा।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"क्योंकि हमने अपने जिगर के टुकड़ों को खोया है। ऐसे वक्त में हम खुद नहीं चाहते कि हम किसी और से इस बारे में कोई चर्चा करें। थोड़ा समय गुज़र जाने दीजिए, उसके बाद ही ये सब बातें हो सकती हैं।"
उसके बाद किसी ने कुछ नहीं कहा। सुगंधा देवी भी पलंग पर दादा ठाकुर के बगल से लेट गईं। दोनों के ही मन मस्तिष्क में इस संबंध में तरह तरह की बातें चल रहीं थी किंतु दोनों ने ही सोने का प्रयास करने के लिए अपनी अपनी आंखें बंद कर लीं।
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अपने कमरे में पलंग पर लेटा मैं गहरे ख़यालों में गुम था। एक तरफ चाचा और भैया के ख़याल तो दूसरी तरफ मेनका चाची और भाभी के ख़याल। वहीं एक तरफ अनुराधा का ख़याल तो दूसरी तरफ सफ़ेदपोश जैसे रहस्यमय शख़्स का ख़याल। आंखों में नींद का नामो निशान नहीं था। बस तरह तरह की बातें ज़हन में गूंज रहीं थी। पूरी हवेली में सन्नाटा छाया हुआ था। कमरे में बिजली का बल्ब अपनी मध्यम सी रोशनी करते हुए जैसे कलप रहा था।
जब किसी तरह से भी ज़हन से इतने सारे ख़याल न हटे तो मैं उठ बैठा। खिड़की की तरफ देखा तो बाहर गहन अंधेरा था। शायद आसमान में काले बादल छाए हुए थे। खिड़की से ठंडी ठंडी हवा आ रही थी। ज़ाहिर है देर सवेर रात में बारिश होना तय था।
पलंग से उतर कर मैं दरवाज़े के पास पहुंचा और फिर दरवाज़ा खोल कर बाहर आ गया। आज बिजली गुल नहीं थी इस लिए हवेली में हर तरफ हल्की रोशनी फैली हुई थी। एकाएक मुझे फिर से भाभी का ख़याल आया तो मैं उनके कमरे की तरफ बढ़ चला। रात के इस वक्त मुझे उनके कमरे में जाना तो नहीं चाहिए था किंतु मैं जानता था कि उनकी आंखों में भी नींद का नामो निशान नहीं होगा और वो तरह तरह की बातें सोचते हुए खुद को दुखी किए होंगी।
जल्दी ही मैं उनके कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच गया। धड़कते दिल से मैंने उनके दरवाज़े पर दाएं हाथ से दस्तक दी तो कुछ ही पलों में दरवाज़ा खुल गया। मेरे सामने भाभी खड़ी थीं। कमरे में बल्ब का मध्यम प्रकाश था इस लिए मैंने देखा उनकी आंखों में आसूं थे। चेहरे पर दुख और उदासी छाई हुई थी। हालाकि मुझे देखते ही उन्होंने जल्दी से खुद को सम्हालते का प्रयास किया किंतु तब तक तो मुझे उनकी हालत का पता चल ही गया था।
"वैभव तुम? इस वक्त यहां?" फिर उन्होंने हैरानी ज़ाहिर करते हुए पूछा____"कुछ काम था क्या?"
"जी नहीं काम तो कोई नहीं था भाभी।" मैंने कहा____"नींद नहीं आ रही थी इस लिए यहां चला आया। मुझे पता था कि आप भी जाग रही होंगी। वैसे आपको मेरे यहां आने से कोई समस्या तो नहीं हुई है ना?"
"न..नहीं तो।" भाभी ने दरवाज़े से हटते हुए कहा____"अंदर आ जाओ। वैसे मैं भी ये सोच रही थी कि नींद नहीं आ रही है तो कुछ देर के लिए तुम्हारे पास चली जाऊं। फिर सोचा इस वक्त तुम्हें तकलीफ़ देना उचित नहीं होगा।"
"आप बेकार में ही ऐसा सोच रहीं थी।" मैंने कमरे के अंदर दाखिल हो कर कहा___"आप अच्छी तरह जानती हैं कि आपकी वजह से मुझे कभी कोई तकलीफ़ नहीं हो सकती। आप कभी भी मेरे कमरे में आ सकती हैं।"
"बैठो।" भाभी ने अपने पलंग के पास ही मेरे लिए एक कुर्सी रखते हुए कहा और फिर वो पलंग पर बैठ गईं। इधर मैं भी उनकी रखी कुर्सी पर बैठ गया।
"सुबह मां से कहूंगा कि जब तक कुसुम नहीं आती तब तक वो खुद ही रात में यहां आ कर आपके साथ सो जाया करें।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"इतनी बड़ी हवेली में अकेले एक कमरे में सोने से आपको डर भी लगता होगा।"
"मां जी को परेशान मत करना।" भाभी ने कहा____"तुम्हें तो पता ही है कि उन्हें सीढियां चढ़ने में परेशानी होती है। वैसे भी मैं इतनी कमज़ोर नहीं हूं जो अकेले रहने पर डरूंगी। ठाकुर खानदान की बेटी और बहू हूं, इतना कमज़ोर जिगरा नहीं है मेरा।"
"अरे! मैं तो चाहता हूं कि मेरी भाभी का जिगरा शेरनी जैसा हो जाए।" मैंने बड़े स्नेह से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"और दुनिया का कोई भी दुख उन्हें तकलीफ़ न दे सके।"
"जब तक इंसान दुख और तकलीफ़ों से नहीं गुज़रता तब तक वो कठोर नहीं बन सकता और ना ही उसमें किसी चीज़ को सहने की क्षमता हो सकती है।" भाभी ने कहा____"मुझे ईश्वर ने बिना मांगे ही ऐसी सौगात दे दी है तो यकीनन धीरे धीरे मैं कठोर भी बन जाऊंगी और हर चीज़ को सहने की क्षमता भी पैदा हो जाएगी मुझमें।"
"आपसे एक गुज़ारिश है।" मैंने कुछ सोचते हुए भाभी से कहा____"क्या आप मानेंगी?"
"क्या गुज़ारिश है?" भाभी ने पूछा____"अगर मेरे बस में होगा तो ज़रूर मानूंगी।"
"बिल्कुल आपके बस में है भाभी।" मैंने कहा____"बात दरअसल ये है कि कुछ ही समय में मैं खेती बाड़ी का सारा काम देखने लगूंगा। संभव है कि तब मेरा ज़्यादातर वक्त मजदूरों के साथ खेतों पर ही गुज़रे। मेरी आपसे गुज़ारिश ये है कि क्या आप कभी कभी मेरे साथ खेतों में चलेंगी? इससे आपका समय भी कट जाया करेगा और आपका मन भी बहलेगा।"
"मेरा समय कटे या ना कटे और मेरा मन बहले या न बहले किंतु तुम्हारे कहने पर मैं ज़रूर तुम्हारे साथ खेतों पर चला करूंगी।" भाभी ने कहा____"मैं भी देखूंगी कि मेरा प्यारा देवर खुद को बदल कर किस तरह से वो सारे काम करता है जिसे उसने सपने में भी कभी नहीं किया होगा।"
"बिल्कुल भाभी।" मैंने दृढ़ता से कहा____"मैं आपको सारे काम कर के दिखाऊंगा। वैसे भी आप साथ रहेंगी तो मुझे एक अलग ही ऊर्जा मिलेगी और साथ ही मेरा मनोबल भी बढ़ेगा।"
"भला ये क्या बात हुई?" भाभी ने ना समझने वाले अंदाज़ से मेरी तरफ देखा____"मेरे साथ रहने से भला तुम्हें कैसे ऊर्जा मिलेगी और किस तरह से तुम्हारा मनोबल बढ़ेगा?"
"आप ही तो बार बार मुझे एक अच्छा इंसान बनने को कहती हैं।" मैंने जैसे उन्हें समझाते हुए कहा____"अब जब आप मेरे साथ अथवा मेरे सामने रहेंगी तो मैं बस इसी सोच के साथ हर काम करूंगा कि मुझे आपकी नज़रों में अच्छा बनना है और आपकी उम्मीदों पर खरा भी उतरना है। अगर इस बीच मैं कहीं भटक जाऊं तो आप मुझे फ़ौरन ही सही रास्ते पर ले आना। ऐसे में निश्चित ही मैं जल्द से जल्द आपको सब कुछ बेहतर तरीके से कर के दिखा सकूंगा।"
"हम्म्म्म बात तो एकदम ठीक है तुम्हारी।" भाभी ने सिर हिलाते हुए कहा___"तो फिर ठीक है। मैं ज़रूर तुम्हारे साथ कभी कभी खेतों पर चला करूंगी।"
"मेरी सबसे अच्छी भाभी।" मैंने कुर्सी से उठ कर खुशी से कहा____"मुझे यकीन है कि जब आप इस हवेली से बाहर निकल कर खेतों पर जाया करेंगी तो यकीनन आपको थोड़ा ही सही लेकिन सुकून ज़रूर मिलेगा। अच्छा अब मैं चलता हूं। आप भी अब कुछ मत सोचिएगा, बल्कि चुपचाप सो जाइएगा।"
मेरी बात सुन कर भाभी के होठों पर बहुत ही बारीक मुस्कान उभरी और फिर वो उठ कर मेरे पीछे दरवाज़े तक आईं। मैं जब बाहर निकल गया तो उन्होंने दरवाज़ा बंद कर लिया। भाभी के होठों पर बारीक सी मुस्कान आई देख मुझे बेहद खुशी महसूस हो रही थी। मैंने मन ही मन सोचा_____'फ़िक्र मत कीजिए भाभी जल्द ही आपको अपने हर दुखों से छुटकारा मिल जाएगा।'
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अगली दोपहर भुवन हवेली आया और मुझसे मिला। बैठक में पिता जी भी थे। उनके सामने ही उसने मुझे एक कागज़ पकड़ाया जिसमें मेरे नए बन रहे मकान में काम करने वाले मजदूरों का हिसाब किताब था। मैंने बड़े ध्यान से हिसाब किताब देखा और फिर कागज़ को पिता जी की तरफ बढ़ा दिया।
"हम्म्म्म काफी अच्छा हिसाब किताब तैयार किया है तुमने।" पिता जी ने भुवन की तरफ देखते हुए कहा____"किंतु हम चाहते हैं कि उन सभी मजदूरों को उनकी मेहनत के रूप में इस हिसाब से भी ज़्यादा फल मिले।"
कहने के साथ ही पिता जी ने अपने कुर्ते की जेब से रुपयों की एक गड्डी निकाली और फिर उसे मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"हम चाहते हैं कि तुम्हारे हर काम से लोग खुश और संतुष्ट हों इस लिए चार पैसा बढ़ा कर ही सबको उनका मेहनताना देना।"
"जी पिता जी, ऐसा ही करूंगा मैं।" मैंने उनके हाथ से रुपए की गड्डी ले कर कहा____"एक और बात, बारिश का मौसम शुरू हो गया है तो जल्दी ही इस रबी की फसल के लिए खेतों की जुताई का काम शुरू करवा देता हूं।"
"हम्म्म्म बहुत बढ़िया।" पिता जी ने कहा____"हम उम्मीद करते हैं कि ये सारे काम तुम अच्छे से सम्हाल लोगे।"
पिता जी को सिर नवा कर और उनसे मजदूरों के हिसाब किताब वाला कागज़ ले कर मैं और भुवन बैठक से बाहर आ गए। कुछ ही देर में हम दोनों अपनी अपनी मोटर साईकिल में बैठ कर निकल लिए।
दोपहर का समय था किंतु धूप नहीं थी। आसमान में काले बादल छाए हुए थे। रात में भी बारिश हुई थी इस लिए रास्ते में फिर से कीचड़ हो गया था। कुछ ही देर में हम साहूकारों के घरों के सामने पहुंच गए। मैंने एक नज़र उनके घर की तरफ डाली किंतु कोई नज़र ना आया। साहूकारों के बाद मुंशी चंद्रकांत का घर पड़ता था। जब मैं उसके घर के सामने पहुंचा तो देखा रघुवीर अपनी बीवी रजनी के साथ एक भैंस को भूसा डाल रहा था। रजनी के हाथ में एक बाल्टी थी।
मोटर साइकिल की आवाज़ से उन दोनों का ध्यान हमारी तरफ आकर्षित हुआ। मुझे मोटर साइकिल में जाता देख जहां रघुवीर मुझे अजीब भाव से देखने लगा था वहीं उसकी बीवी रजनी मुझे देख कर हल्के से मुस्कुराई थी। रघुवीर उसके पीछे था इस लिए वो ये नहीं देख सका था कि उसकी बीवी मुझे देख कर मुस्कुराई थी। उस रांड को मुस्कुराता देख एकाएक ही मेरे मन में उसके लिए नफ़रत के भाव जाग उठे थे। मैं उससे नज़र हटा कर आगे बढ़ गया। कुछ ही देर में मैं और भुवन नए बन रहे मकान में पहुंच गए।
मेरे कहने पर भुवन ने सभी मजदूरों को बुलाया। थोड़ी औपचारिक बातों के बाद मैंने सभी को एक एक कर के हिसाब किताब बता कर उनका मेहनताना दे दिया। पिता जी के कहे अनुसार मैंने सबको चार पैसा बढ़ा कर ही दिया था जिससे सभी लोग काफी खुश हो गए थे। कुछ तो मेरे गांव के ही मजदूर थे किंतु कुछ मुरारी काका के गांव के थे। मकान अब पूरी तरह से बन कर तैयार हो चुका था। दीवारों पर रंग भी चढ़ गया था तो अब वो बड़ा ही आकर्षक नज़र आ रहा था। मुझे थोड़ी मायूसी सी हुई किंतु अब क्या हो सकता था? जो सोचा था वो हुआ ही नहीं था बल्कि कुछ और ही हो गया था। ख़ैर मैंने सभी मजदूरों को ये कह कर विदा किया कि अगर वो लोग इसी तरह से मेहनताना पाना चाहते हैं तो वो हमारे खेतों पर काम कर सकते हैं। मेरी बात सुन कर सब खुशी से तैयार हो गए।
मजदूरों के जाने के बाद मैं और भुवन आपस में ही खेतों पर फसल उगाने के बारे में चर्चा करने लगे। काफी देर तक हम दोनों इस बारे में कई तरह के विचार विमर्श करते रहे। तभी सहसा मेरी नज़र थोड़ी दूरी पर नज़र आ रही सरोज काकी पर पड़ी। उसके साथ उसकी बेटी अनुराधा और बेटा अनूप भी था। अनुराधा को देखते ही मुझे पिछले दिन की घटना याद आ गई और मेरे अंदर हलचल सी होने लगी।
"काकी आप यहां?" सरोज जब हमारे पास ही आ गई तो मैंने उसे देखते हुए कहा____"सब ठीक तो है न?"
"तुम्हारी दया से सब ठीक ही है बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"अनू के बापू जब से गुज़रे हैं तब से तुमने हम पर कोई संकट आने ही कहां दिया है?"
मैंने उसकी इस बात का जवाब देने की जगह उसे बरामदे में ही बैठ जाने को कहा तो वो अंदर आ कर बैठ गई। उसके पीछे अनुराधा और अनूप भी आ कर बैठ गया। अनुराधा बार बार मुझे ही देखने लगती थी। उसके चेहरे पर ज़माने भर की मासूमियत थी किंतु इस वक्त वो बेहद उदास नज़र आ रही थी। इधर उसकी मौजूदगी से मैं भी थोड़ा असहज हो गया था। ये अलग बात है कि उसे देखते ही दिल को सुकून सा मिल रहा था।
"काकी सब ठीक तो है न?" भुवन ने सरोज की तरफ देखते हुए पूछा____"और अनुराधा की अब तबीयत कैसी है?"
"अब बेहतर है बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"वैद्य जी जो दवा दे गए थे उसे इसने खाया था तो अब ठीक है ये।"
"अच्छा काकी जगन काका के बीवी बच्चे कैसे हैं?" मैंने एक नज़र अनुराधा की तरफ देखने के बाद काकी से पूछा____"क्या वो लोग आते जाते हैं आपके यहां?"
"उसकी बीवी पहले नहीं आती थी।" सरोज काकी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन तीन दिन पहले वो अपनी एक बेटी के साथ आई थी। जगन ने जो किया था उसकी माफ़ी मांग रही थी मुझसे। मैं जानती थी कि इस सबमें उसका या उसके बच्चों का कोई दोष नहीं था। अपने भाई की जान का दुश्मन तो उसका पति ही बन गया था इस लिए अब जब वो भी नहीं रहा तो उस बेचारी से क्या नाराज़गी रखना? बेचारी बहुत रो रही थी। कह रही थी कि अब उसका और उसके बच्चों का क्या होगा? कुछ सालों में एक एक कर के उसकी दोनों बेटियां ब्याह करने लायक हो जाएंगी तब वो क्या करेगी? कैसे अपनी बेटियों का ब्याह कर सकेगी?"
"अगर जगन काका ये सब सोचते तो आज उनके बीवी बच्चे ऐसी हालत में न पहुंचते।" मैंने गंभीरता से कहा____"अपने ही सगे भाई की ज़मीन का लालच किया उन्होंने और उस लालच में अंधे हो कर उन्होंने अपने ही भाई की जान ले ली। ऊपर वाला ऐसे में कैसे भला उनके साथ भला करता? ख़ैर पिता जी ने इसके बावजूद जगन काका के परिवार के लिए थोड़ा बहुत आर्थिक मदद करने का आश्वासन दिया है तो उन्हें ज़्यादा फ़िक्र नहीं करना चाहिए।"
"घर में एक मर्द का होना बहुत आवश्यक होता है वैभव बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"जगन जैसा भी था किंतु उसके रहते उसकी बीवी को इन सब बातों की इतनी चिंता नहीं थी मगर अब, अब तो हर चीज़ के लिए उसे दूसरों पर ही निर्भर रहना है।"
"इंसान का जीवन इसी लिए तो संघर्षों से भरा होता है काकी।" मैंने कहा____"कोई कितना ही बड़ा आदमी क्यों न हो किंतु जीवन जीना उसके लिए भी आसान नहीं होता। ख़ैर छोड़िए, अब तो बारिश का मौसम भी आ गया है तो आपको भी अपने खेतों पर बीज बोने होंगे न?"
"हां उसके बिना गुज़ारा भी तो नहीं होगा बेटा।" काकी ने कहा____"सोच रही हूं कि एक दो बार और बारिश हो जाए जिससे ज़मीन के अंदर तक नमी पहुंच जाए। उसके बाद ही जुताई करवाने के बारे में सोचूंगी।"
"फ़िक्र मत कीजिए।" मैंने कहा____"मैं दो लोगों को इस काम पर लगवा दूंगा। आप बस बीज दे देना उन्हें बोने के लिए। बाकी निदाई गोड़ाई तो आप खुद ही कर लेंगी न?"
"हां बेटा।" काकी ने कहा____"इतना तो कर ही लूंगी। वैसे भी थोड़ा बहुत काम तो मैं खुद भी करना चाहती हूं क्योंकि काम करने से ही इंसान का शरीर स्वस्थ्य रहता है। खाली बैठी रहूंगी तो तरह तरह की बातों से मन भी दुखी होता रहेगा।"
"वैसे किस लिए आईं थी आप यहां पर?" मैंने वो सवाल किया जो मुझे सबसे पहले करना चाहिए था।
"वो मैं भुवन के पास आई थी।" सरोज काकी ने कहा____"असल में बारिश होने के चलते मेरे घर में कई जगह से पानी टपक रहा था। पिछले साल अनू के बापू ने ढंग से घर को छा दिया था जिससे पानी का टपकना बंद हो गया था मगर अब फिर से टपकने लगा है। अब अनू के बापू तो हैं नहीं और मैं खुद छा नहीं सकती इसी लिए भुवन से ये कहने आई थी कि किसी के द्वारा मेरे घर को छवा दे। वैसे अच्छा हुआ कि मैं यहां आ गई और यहां तुम मिल गए मुझे। तुम तो अब मेरे घर आते ही नहीं हो।"
"पहले की तरह अब समय ही नहीं रहता काकी।" मैंने बहाना बनाते हुए कहा____"आपको तो सब पता ही है कि हमारे साथ क्या क्या हो चुका है।"
"हां जानती हूं बेटा।" सरोज काकी ने संजीदा हो कर कहा____"तुम्हारे परिवार के साथ जो हुआ है वो तो सच में बहुत बुरा हुआ है लेकिन क्या कह सकते हैं। ऊपर वाले पर भला किसका बस चलता है?"
"जिन लोगों ने ये सब किया था उनके साथ भी तो वैसा ही किया गया है।" मैंने सहसा सख़्त भाव से कहा____"अब वो लोग ख़्वाब में भी किसी के साथ ऐसा करने का नहीं सोचेंगे।"
थोड़ी देर इसी संबंध में कुछ बातें हुईं उसके बाद मैं भुवन से ये कह कर वहां से चला आया कि अगले दिन सभी मजदूरों से मिलना है जिसके लिए सारा इंतजाम कर दे। असल में अनुराधा की मौजूदगी से मैं कुछ ज़्यादा ही असहज हो रहा था। उसके चेहरे पर छाई उदासी मुझे अंदर ही अंदर कचोटने लगी थी। यही वजह थी कि मैं वहां से चल पड़ा था।
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दोस्तों, जैसा कि आप सबको पता चल ही चुका है कि मेरे बड़े दादा जी का निधन हो गया है इस लिए हम सबको दिल्ली से गांव जाना है अब। वहां गांव में इससे संबंधित जो कार्यक्रम होंगे उसमें हम सब व्यस्त हो जाएंगे। ज़ाहिर है ऐसे में मैं ना तो अपडेट लिख सकूंगा और ना ही यहां पोस्ट कर सकूंगा। ये आख़िरी अपडेट था जिसे मैंने कल रात लिखा था, इस लिए इसे आप लोगों के सामने पेश कर दिया है। अब कहानी का अगला अपडेट पंद्रह या बीस दिनों के बाद ही आ सकेगा।
उम्मीद करता हूं कि आप सब मेरी मनोदशा और मेरी मजबूरियों को समझते हुए धैर्य से काम लेंगे और इसी तरह अपना साथ बनाए रखेंगे। अब पंद्रह बीस दिनों के बाद ही मुलाकात होगी। खुश रहें और अपना खयाल रखें।![]()
रूपा ने अपने दिल की बात वैभव से कह दी और वैभव को सोचने पर मजबूर कर दिया।वैभव के सामने ऐसी परिस्थिति बनी हुई है एक ओर रूपा वैभव से प्यार करती है लेकिन वैभव उसे प्यार नही करता है वही अनुराधा वैभव से प्यार करती है और वैभव भी उससे प्यार करता है प्यार करने वाली लड़की के हिसाब से देखे तो रूपा और अनुराधा दोनो ही वैभव को बहुत प्यार करती है यहां पर दोनो लड़की में से एक को चुनना थोड़ा मुश्किल है ठाकुर साहब के नजरिए से सोचने पर अगर रूपा का रिश्ता वैभव के लिए आता है तो अपने रिश्ते सुधारने के लिए वो हां बोल सकते है वही अनुराधा को वैभव पसंद करता है तो वह इस रिश्ते की बात करेगा मामला थोड़ा उलझा हुआ हैअध्याय - 83"जिन लोगों ने ये सब किया था उनके साथ भी तो वैसा ही किया गया है।" मैंने सहसा सख़्त भाव से कहा____"अब वो लोग ख़्वाब में भी किसी के साथ ऐसा करने का नहीं सोचेंगे।"
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थोड़ी देर इसी संबंध में कुछ बातें हुईं उसके बाद मैं भुवन से ये कह कर वहां से चला आया कि अगले दिन सभी मजदूरों से मिलना है जिसके लिए सारा इंतजाम कर दे। असल में अनुराधा की मौजूदगी से मैं कुछ ज़्यादा ही असहज हो रहा था। उसके चेहरे पर छाई उदासी मुझे अंदर ही अंदर कचोटने लगी थी। यही वजह थी कि मैं वहां से चल पड़ा था।
अब आगे....
अगले दो चार दिनों तक मैं काफी ब्यस्त रहा।
इस बीच मैंने खेतों पर काम करने वाले सभी मजदूरों से मिला और उनसे हर चीज़ के बारे में जानकारी लेने के साथ साथ उन्हें बताया भी कि अब से सब कुछ किस तरीके से करना है। मैं सभी से बहुत ही तरीके से बातें कर रहा था इस लिए सभी मजदूर मुझसे काफी खुश हो गए थे। मुझे इस बात का बखूबी एहसास था कि ग़रीब मजदूर अगर खुश रहेगा तो वो हमारे लिए कुछ भी कर सकता है और इसी लिए मैंने सबको खुश रखने का सोच लिया था।
पिता जी से मैंने एक दो नए ट्रेक्टर लेने को बोल दिया था ताकि खेती बाड़ी के काम में किसी भी तरह की परेशानी अथवा रुकावट न हो सके। पिता जी को मेरा सुझाव उचित लगा इस लिए उन्होंने दो ट्रैक्टर लेने की मंजूरी दे दी। अगले ही दिन मैं भुवन को ले कर शहर से दो ट्रैक्टर ले आया और साथ में उसका सारा समान भी। हमारे पास पहले से ही दो ट्रैक्टर थे किंतु वो थोड़ा पुराने हो चुके थे। हमारे पास बहुत सारी ज़मीनें थीं। ज़मीनों की जुताई करने में काफी समय लग जाता था, ऐसा मुझे मजदूरों से ही पता चला था।
आसमान में काले बादलों ने डेरा तो डाल रखा था किंतु दो दिनों तक बारिश नहीं हुई। तीसरे दिन थोड़ा थोड़ा कर के सारा दिन बारिश हुई जिससे ज़मीनों में पानी ही पानी नज़र आने लगा था। दूसरी तरफ मुरारी काका के घर को भी मैंने दो मजदूर लगवा कर छवा दिया था और उन्हीं मजदूरों को मैंने उसके खेतों की जुताई के लिए लगवा दिया। सरोज काकी मेरे इस उपकार से बड़ा खुश थी तो वहीं अनुराधा अब एकदम ख़ामोश और गुमसुम सी रहने लगी थी। उसे इस हालत में देख सरोज काकी को उसकी फ़िक्र होने लगी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी बेटी को हुआ क्या है?
मैं पिता जी के कहे अनुसार अब पूरी ईमानदारी से अपनी ज़िम्मेदारी निभाने लगा था। मुझे इस तरह काम करता देख जहां मेरे माता पिता राहत भरी नज़रों से मुझे देखने लगे थे वहीं भाभी भी काम के प्रति मेरे इस समर्पण भाव से खुश थीं। आज कल मेरा ज़्यादातर समय हवेली से बाहर ही गुज़र रहा था जिसके चलते मैं भाभी को ज़्यादा समय नहीं दे पा रहा था।
एक दिन सुबह सुबह ही मैं हवेली से मोटर साईकिल ले कर खेतों की तरफ निकला तो रास्ते में मुझे साहूकार हरि शंकर की बेटी रूपा नज़र आ गई। उसके साथ में गौरी शंकर की बेटी राधा भी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही रूपा ने पहले इधर उधर देखा और फिर मुझे रुकने का इशारा किया। उसके इस तरह इशारा करने पर जहां मैं थोड़ा हैरान हुआ वहीं उसके पास ही खड़ी राधा भी उसे हैरत से देखने लगी थी। उसने उससे कुछ कहा जिस पर रूपा ने भी कुछ कहा। बहरहाल मैं कुछ ही पलों में उन दोनों के क़रीब पहुंच गया।
मैंने देखा रूपा पहले से काफी कमज़ोर दिख रही थी। उसके चेहरे पर पहले की तरह नूर नहीं था। आंखों के नीचे काले धब्बे से नज़र आ रहे थे। मुझे अपने पास ही मोटर साईकिल पर बैठा देख वो बड़े ही उदास भाव से मुझे देखने लगी। वहीं राधा थोड़ी घबराई हुई नज़र आ रही थी। इधर मुझे समझ न आया कि उसने मुझे क्यों रुकने का इशारा किया है और खुद मैं उससे क्या कहूं?
"क्या बात है?" फिर मैंने आस पास नज़र डालने के बाद आख़िर उससे पूछा____"मुझे किस लिए रुकने का इशारा किया है तुमने? क्या तुम्हें भय नहीं है कि अगर किसी ने तुम्हें मेरे पास यूं खड़े देख लिया तो क्या सोचेगा?"
"हमने किसी के सोचने की परवाह करना छोड़ दिया है वैभव।" रूपा ने अजीब भाव से कहा____"अब इससे ज़्यादा क्या बुरा हो सकता है कि हम सब ख़ाक में ही मिला दिए गए।"
"ख़ाक में मिलाने की शुरुआत तो तुम्हारे ही अपनों ने की थी।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"हमने तो कभी तुम लोगों से बैर भाव नहीं रखा था। तुम लोगों ने रिश्ते भी सुधारे तो सिर्फ इस लिए कि उसकी आड़ में धोखे से हम पर वार कर सको। सच कहूं तो तुम्हारे अपनों के साथ जो कुछ हुआ है उसके ज़िम्मेदार वो खुद थे। अपने हंसते खेलते और खुश हाल परिवार को अपने ही हाथों एक झटके में तबाह कर लिया उन्होंने। इसके लिए तुम हमें ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकती क्योंकि जब ऐसे वाक्यात होते हैं तो उसका अंजाम अच्छा तो हो ही नहीं सकता। फिर चाहे वो किसी के लिए भी हो।"
"हां जानती हूं।" रूपा ने संजीदगी से कहा____"ख़ैर छोड़ो, तुम कैसे हो? हमें तो भुला ही दिया तुमने।"
"तुम्हारी इनायत से ठीक हूं।" मैंने कहा____"और मैं उस शक्स को कैसे भूल सकता हूं जिसने मेरी हिफाज़त के लिए अपने ही लोगों की जान के ख़तरे को ताक पर रख दिया था।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" रूपा सकपकाते हुए बोली।
"वो तुम ही थी ना जिसने मेरे पिता जी को इस बात की सूचना दी थी कि कुछ लोग चंदनपुर में मुझे जान से मारने के इरादे से जाने वाले हैं?" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"वैसे शुक्रिया इस इनायत के लिए। तुम्हारा ये उपकार मैं ज़िंदगी भर नहीं भूलूंगा लेकिन मुझे ये नहीं पता है कि तुम्हारे साथ दूसरी औरत कौन थी?"
"मेरी भाभी कुमुद।" रूपा ने नज़रें झुका कर कहा तो मैंने उसे हैरानी से देखते हुए कहा____"कमाल है, वैसे मेरे लिए इतना कुछ करने की क्या ज़रूरत थी वो भी अपने ही लोगों की जान को ख़तरे में डाल कर?"
"क्या तुमने मुझे इतना बेगाना समझ लिया है?" रूपा की आंखें एकदम से नम होती नज़र आईं, बोली____"क्या सच में तुम्हें ये एहसास नहीं है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए क्या है?"
"ओह! तो तुम अभी भी उसी बात को ले के बैठी हुई हो?" मैंने हैरान होते हुए कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि इतना कुछ होने के बाद भी तुम्हारी ख़्वाइश अथवा तुम्हारी चाहत पूरी होगी? अरे! जब पहले ऐसा संभव नहीं था तो अब भला कैसे संभव होगा?"
"होने को तो कुछ भी हो सकता है दुनिया में।" रूपा ने कहा____"दरकार सिर्फ इस बात की होती है कि हमारे अंदर ऐसा करने की चाह हो। अगर तुम ही नहीं चाहोगे तो सच में ऐसा संभव नहीं हो सकता।"
"दीदी चलिए यहां से।" मेरे कुछ बोलने से पहले ही राधा बोल पड़ी____"देखिए उधर से कोई आ रहा है।"
"मेरे प्रेम को यूं मत ठुकराओ वैभव।" रूपा की आंखें छलक पड़ीं____"तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती। मैंने पहले ही तुम्हें अपना सब कुछ मान लिया था और अपना सब कुछ तुम्हें....।"
"तुम्हें ये सब कहने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने उसकी बात बीच में काट कर कहा____"मुझे पता है कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए बहुत कुछ है और इसका सबूत तुम पहले ही दे चुकी हो। दूसरी बात मैं तुम्हारे प्रेम को ठुकरा नहीं रहा बल्कि ये कह रहा हूं कि हमारा हमेशा के लिए एक होना संभव ही नहीं है। पहले थोड़ी बहुत संभावना भी थी किंतु अब तो कहीं रत्ती भर भी संभावना नहीं है। मुझे पूरा यकीन है कि ये सब होने के बाद तुम्हारे घर वाले किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहेंगे कि उनके घर की बेटी हवेली में बहू बन कर जाए।"
"मुझे किसी की परवाह नहीं है।" रूपा ने दृढ़ता से कहा____"परवाह सिर्फ इस बात की है कि तुम क्या चाहते हो? अगर तुम ही मुझे अपनाना नहीं चाहोगे तो मैं भला क्या कर लूंगी?"
"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने संदेह पूर्ण भाव से उसे देखा।
"क्या तुम मुझसे ब्याह करोगे?" रूपा ने स्पष्ट भाव से पूछा।
"ये कैसा सवाल है?" मेरे माथे पर शिकन उभरी।
"बड़ा सीधा सा सवाल है वैभव।" रूपा ने कहा____"अगर तुम मुझसे ब्याह करने के लिए राज़ी हो तो फिर हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकेगा। मैं अपने परिवार से लड़ जाऊंगी तुम्हारी बनने के लिए।"
रूपा की बातें सुन कर मैं भौचक्का सा देखता रह गया उसे। यही हाल उसके बगल से खड़ी राधा का भी था। मैं ये तो जानता था कि रूपा मुझसे प्रेम करती है और मुझसे ब्याह भी करना चाहती है लेकिन इसके लिए वो इस हद तक जाने का बोल देगी इसकी कल्पना नहीं की थी मैंने।
"दीदी ये आप कैसी बातें कर रही हैं इनसे?" राधा से जब न रहा गया तो वो बोल ही पड़ी____"आप ऐसा कैसे कह सकती हैं? पिता जी और रूप भैया को पता चला तो वो आपकी जान ले लेंगे।"
"मेरी जान तो वैभव है छोटी।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए गंभीरता से कहा____"मैं तो सिर्फ एक बेजान जिस्म हूं। इसका भला कोई क्या करेगा?"
"अच्छा चलता हूं मैं।" मैंने रास्ते में एक आदमी को आते देखा तो बोला और फिर बिना किसी की कोई बात सुने ही मोटर साईकिल को स्टार्ट कर आगे बढ़ चला।
मेरे दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चल पड़ीं थी। मैंने इसके पहले रूपा को इतना आहत सा नहीं देखा था। मुझे एहसास था कि वो क्या चाहती है लेकिन मुझे ये भी पता था कि वो जो चाहती है वो उसे मिलना आसान नहीं है। मेरे दिल में उसके लिए इज्ज़त की भावना पहले भी थी और जब से मैंने ये जाना है कि उसी ने मेरी जान भी बचाने का काम किया है तब से उसके लिए और भी इज्ज़त बढ़ गई थी। मुझे उससे पहले भी प्रेम नहीं था और आज भी उसके लिए मेरे दिल में प्रेम जैसी भावना नहीं थी। मगर आज जिस तरह से उसने ये सब कहा था उससे मैं काफी विचलित हो गया था। मैं हैरान भी था कि वो मेरे राज़ी हो जाने की सूरत में अपने ही लोगों से लड़ जाएगी। ज़ाहिर है ये या तो उसके प्रेम की चरम सीमा थी या फिर उसका पागलपन।
दोपहर तक मैं खेतों में ही रहा और खेतों की जुताई करवाता रहा। बार बार ज़हन में रूपा की बातें उभर आती थीं जिसके चलते मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होने लगता था। मैं एक ऐसे मरहले में आ गया था जहां एक तरफ रूपा थी तो दूसरी तरफ अनुराधा। दोनों ही अपनी अपनी जगह मेरे लिए ख़ास थीं। एक मुझसे बेपनाह प्रेम करती थी तो दूसरी को मैं प्रेम करने लगा था। अगर दोनों की तुलना की जाए तो रूपा की सुंदरता के सामने अनुराधा कहीं नहीं ठहरती थी किंतु यहां सवाल सिर्फ सुंदरता का नहीं था बल्कि प्रेम का था। बात जब प्रेम की हो तो इंसान को सिर्फ वही व्यक्ति सबसे सुंदर और ख़ास नज़र आता है जिससे वो प्रेम करता है, बाकी सब तो फीके ही लगते हैं। बहरहाल आज रूपा की बातों से मैं काफी विचलित था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसके लिए क्या फ़ैसला करूं?
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दोपहर को खाना खाने के लिए मैं हवेली आया तो मां से पता चला कि पिता जी कुल गुरु से मिलने गए हुए हैं। हालाकि पिता जी के साथ शेरा तथा कुछ और भी मुलाजिम गए हुए थे किंतु फिर भी मैं पिता जी के लिए फिक्रमंद हो उठा था। ख़ैर खा पी कर मैं आराम करने के लिए अपने कमरे में चला आया। पलंग पर लेट कर मैं आंखें बंद किए जाने किन किन विचारों में खोने लगा था।
मेरे दिलो दिमाग़ से रूपा की बातें जा ही नहीं रहीं थी। पंचायत के दिन के बाद आज ही देखा था उसे। उसे इतने क़रीब से देखने पर ही मुझे नज़र आया था कि क्या हालत हो गई थी उसकी। मैं ये खुले दिल से स्वीकार करता था कि उसने अपने प्रेम को साबित करने के लिए बहुत कुछ किया था। एक लड़की के लिए उसकी आबरू सबसे अनमोल चीज़ होती है जिसे खुशी खुशी उसने सौंप दिया था मुझे। उसके बाद उसने मेरी जान बचाने का हैरतंगेज कारनामा भी कर दिया था। ये जानते हुए भी कि उसके ऐसा करने से उसके परिवार पर भयानक संकट आ सकता है। ये उसका प्रेम ही तो था जिसके चलते वो इतना कुछ कर गई थी। मैं सोचने लगा कि उसके इतना कुछ करने के बाद भी अगर मैं उसके प्रेम को न क़बूल करूं तो मुझसे बड़ा स्वार्थी अथवा बेईमान शायद ही कोई होगा।
प्रेम क्या होता है और उसकी तड़प क्या होती है ये अब जा कर मुझे समझ आने लगा था। मेरे अंदर इस तरह के एहसास पहले कभी नहीं पैदा हुए थे या फिर ये कह सकते हैं कि मैंने कभी ऐसे एहसासों को अपने अंदर पैदा ही नहीं होने दिया था। मुझे तो सिर्फ खूबसूरत लड़कियों और औरतों को भोगने से ही मतलब होता था। इसके पहले कभी मैंने अपने अंदर किसी के लिए भावनाएं नहीं पनपने दी थी। पिता जी ने गांव से निष्कासित किया तो अचानक ही मेरा सामना अनुराधा जैसी एक साधारण सी लड़की से हो गया। जाने क्या बात थी उसमें कि उसे अपने जाल में बाकी लड़कियों की तरह फांसने का मन ही नहीं किया। उसकी सादगी, उसकी मासूमियत, उसका मेरे सामने छुई मुई सा नज़र आना और उसकी नादानी भरी बातें कब मेरे अंदर घर कर गईं मुझे पता तक नहीं चला। जब पता चला तो जैसे मेरा कायाकल्प ही हो गया।
मुझे मुकम्मल रूप से बदल देने में अनुराधा का सबसे बड़ा योगदान था। उसका ख़याल आते ही दिलो दिमाग़ में हलचल होने लगती है। मीठा मीठा सा दर्द होने लगता है और फिर उसे देखने की तड़प जाग उठती है। कदाचित यही प्रेम था जिसे अब मैं समझ चुका था। आज जब रूपा को देखा और उसकी बातें सुनी तो मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हुआ कि वो किस क़दर मेरे प्रेम में तड़प रही होगी। मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि क्या मुझे उसके प्रेम को इस तरह नज़रअंदाज़ करना चाहिए? कदाचित नहीं, क्योंकि ये उसके साथ नाइंसाफी होगी, एक सच्चा प्रेम करने वाली के साथ अन्याय होगा। मैंने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मैं रूपा के प्रेम को ज़रूर स्वीकार करूंगा। रही बात उससे ब्याह करने की तो समय आने पर उसके बारे में भी सोच लिया जाएगा।
अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। मैं सोचो के गहरे समुद्र से बाहर आया और जा कर दरवाज़ा खोला। बाहर भाभी खड़ी थीं।
"भाभी आप?" उन्हें देखते ही मैंने पूछा।
"माफ़ करना, तुम्हारे आराम पर खलल डाल दिया मैने।" भाभी ने खेद पूर्ण भाव से कहा।
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है भाभी।" मैंने एक तरफ हट का उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया____"आइए, अंदर आ जाइए।"
"और कैसा चल रहा है तुम्हारा काम धाम?" एक कुर्सी पर बैठते ही भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"काफी मेहनत हो रही है ना आज कल?"
"खेती बाड़ी के काम में मेहनत तो होती ही है भाभी।" मैंने कहा____"वैसे भी मेरे लिए ये मेरा पहला अनुभव है इस लिए शुरुआत में तो मुझे यही आभास होगा जैसे इस काम में बहुत मेहनत लगती है।"
"हां ये तो है।" भाभी ने कहा____"चार ही दिन में तुम्हारे चेहरे का रंग बदल गया है। काफी थके थके से नज़र आ रहे हो किंतु उससे ज़्यादा मुझे तुम कुछ परेशान और चिंतित भी दिख रहे हो। सब ठीक तो है न?"
"हां सब ठीक ही है भाभी।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"असल में एकदम से ही इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी मेरे कंधे पर आ गई है इस लिए उसी के प्रति ये सोच कर थोड़ा चिंतित हूं कि मैं सब कुछ अच्छे से सम्हाल लूंगा कि नहीं?"
"बिल्कुल सम्हाल लोगे वैभव।" भाभी ने जैसे मुझे प्रोत्साहित करते हुए कहा____"मानती हूं कि शुरुआत में हर चीज़ को समझने में और उसे सम्हालने में थोड़ी परेशानी होती है किंतु मुझे यकीन है कि तुम ये सब बेहतर तरीके से कर लोगे।"
"आपने इतना कह दिया तो मुझे सच में एक नई ऊर्जा सी मिल गई है।" मैंने खुश होते हुए कहा____"क्या आप कल सुबह मेरे साथ चलेंगी खेतों पर?"
"म...मैं??" भाभी ने हैरानी से देखा____"मैं भला कैसे वहां जा सकती हूं?"
"क्यों नहीं जा सकती आप?" मैंने कहा____"आपने मुझसे वादा किया था कि आप मेरे साथ चला करेंगी और अब आप ऐसा बोल रही हैं?"
"कहने में और करने में बहुत फ़र्क होता है वैभव।" भाभी ने सहसा बेचैन हो कर कहा____"तुम तो जानते हो कि इसके पहले मैं कभी भी इस हवेली से बाहर नहीं गई हूं।"
"हां तो क्या हुआ?" मैंने लापरवाही से कंधे उचकाए____"ज़रूरी थोड़ी ना है कि आप अगर पहले कभी नहीं गईं हैं तो आगे भी कभी नहीं जाएंगी। इंसान को अपने काम से बाहर तो जाना ही होता है, उसमें क्या है?"
"तुम समझ नहीं रहे हो वैभव।" भाभी ने मेरी तरफ चिंतित भाव से देखा____"पहले में और अब में बहुत अंतर हो चुका है। पहले मैं एक सुहागन थी, जबकि अब एक विधवा हूं। इतना सब कुछ होने के बाद अगर मैं तुम्हारे साथ कहीं बाहर जाऊंगी तो लोग मुझे देख कर जाने क्या क्या सोचने लगेंगे।"
"लोग तो सबके बारे में कुछ न कुछ सोचते ही रहते हैं भाभी।" मैंने कहा____"अगर इंसान ये सोचने लगे कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे तो फिर वो जीवन में कभी सहजता से जी ही नहीं सकेगा। आप इस हवेली की बहू हैं और सब जानते हैं कि आप कितनी अच्छी हैं। दूसरी बात, मुझे किसी के सोचने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे सिर्फ इस बात की परवाह है कि मेरी भाभी हमेशा खुश रहें। इस लिए आप कल सुबह मेरे साथ खेतों पर चलेंगी।"
"मां जी को हवेली में अकेला छोड़ कर कैसे जाउंगी मैं?" भाभी ने जैसे फ़ौरन ही बहाना ढूंढ लिया____"नहीं वैभव ये ठीक नहीं है। मुझसे ये नहीं होगा।"
"आप कुछ ज़्यादा ही सोच रही हैं भाभी।" मैंने कहा____"अच्छा ठीक है, मैं इस बारे में मां से बात करूंगा। मां की इजाज़त मिलने पर तो आप चलेंगी न मेरे साथ?"
"बहुत ज़िद्दी हो तुम?" भाभी ने बड़ी मासूमियत से देखा____"क्या कोई इस तरह अपनी भाभी को परेशान करता है?"
"किसी और का तो नहीं पता।" मैंने सहसा मुस्कुरा कर कहा____"पर मैं तो अपनी प्यारी सी भाभी को परेशान करूंगा और ये मेरा हक़ है।"
"अच्छा जी?" भाभी ने आंखें फैला कर मुझे देखा____"मुझे परेशान करोगे तो मार भी खाओगे, समझे?"
"मंज़ूर है।" मैं फिर मुस्कुराया____"आपकी खुशी के लिए तो सूली पर चढ़ जाना भी मंज़ूर है मुझे।"
"सूली पर चढ़ें तुम्हारे दुश्मन।" भाभी ने कहा____"मेरे देवर की तरफ कोई आंख उठा कर देखेगा तो आंखें निकाल लूंगी उसकी।"
"फिर तो मुझे अपने लिए किसी अंगरक्षक को रखने की ज़रूरत ही नहीं है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मेरी बहादुर भाभी ही काफी हैं मेरे दुश्मनों से मेरी हिफाज़त करने के लिए।"
"क्यों तंग कर रहा है तू मेरी फूल सी बच्ची को?" कमरे में सहसा मां की आवाज़ सुन कर हम दोनों ही उछल पड़े।
मां को कमरे में आया देख भाभी जल्दी ही कुर्सी से उठ कर खड़ी हो गईं। मैं और भाभी दोनों ही उन्हें हैरानी से देखे जा रहे थे। आज वो काफी समय बाद ऊपर आईं थी वरना वो सीढियां नहीं चढ़ती थीं। बहरहाल मां आ कर मेरे पास ही पलंग पर बैठ गईं।
"मां जी आप यहां?" भाभी ने मां से कहा____"कोई काम था तो किसी नौकरानी से संदेश भेजवा देतीं आप?"
"अरे! ऐसी कोई बात नहीं है बेटी।" मां ने बड़े स्नेह से कहा____"आज ठाकुर साहब भी नहीं हैं इस लिए मैंने सोचा कि तेरे पास ही कमरे में आ जाती हूं। सीढियां चढ़े भी काफी समय हो गया था तो सोचा इसी बहाने ये भी देख लेती हूं कि मुझमें सीढियां चढ़ने की क्षमता है कि नहीं।"
"वैसे मां, पिता जी किस काम से गए हैं कुल गुरु से मिलने?" मैंने मां से पूछा।
"पता नहीं आज कल क्या चलता रहता है उनके जहन में?" मां ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मुझे भी कुछ नहीं बताया उन्होंने। सिर्फ इतना ही कहा कि शाम तक वापस आ जाएंगे। अब तो उनके आने पर ही उनसे पता चलेगा कि वो किस काम से गुरु जी मिलने गए थे?" कहने के साथ ही मां ने भाभी की तरफ देखा फिर उनसे कहा____"अरे! बेटी तू खड़ी क्यों है? बैठ जा कुर्सी पर और ये तुझे तंग कर रहा था क्या?"
"नहीं मां जी।" भाभी ने कुर्सी में बैठे हुए कहा____"वैभव तो मेरा मन बहलाने की कोशिश कर रहे थे।"
"फिर तो ठीक है।" मां ने मेरी तरफ देखा____"मेरी बेटी को अगर तूने किसी बात पर तंग किया तो सोच लेना। ये मत समझना कि तू बड़ा हो गया है तो मैं तुझे पीटूंगी नहीं।"
"अरे! मां ये आप कैसी बात कर रही हैं?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आप बेशक मुझे पीट सकती हैं मेरी ग़लती पर। वैसे आपने ये कैसे सोच लिया कि मैं अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी भाभी को तंग कर सकता हूं?"
"तो फिर क्या बोल रहा था तू अभी इसे?" मां ने आंखें दिखाते हुए मुझसे पूछा।
"अरे! वो तो मैं ये कह रहा था कि भाभी को मेरे साथ खेतों पर चलना चाहिए।" मैंने कहा____"इससे इनका मन भी बहलेगा और हवेली के अंदर चौबीसों घंटे रहने से जो घुटन होती रहती है वो भी दूर होगी।"
"हां ये तो तू सही कह रहा है।" मां ने सिर हिलाते हुए कहा____"मुझे खुशी हुई कि तुझे अपनी भाभी की फ़िक्र है।" कहने के साथ ही मां भाभी से मुखातिब हुईं____"तुम्हारा देवर सही कह रहा है बेटी। मेरे ज़हन में तो ये बात आई ही नहीं कि तुम कैसा महसूस करती होगी इन चार दीवारियों के अंदर। तुम्हारे दुख का एहसास है मुझे। ये मैं ही जानती हूं कि तुम्हें इस सफ़ेद लिबास में देख कर मेरे कलेजे में कैसे बर्छियां चलती हैं। मेरा मन करता है कि दुनिया के कोने कोने से खुशियां ला कर अपनी फूल सी बेटी की झोली में भर दूं।"
"चिंता मत कीजिए मां जी।" भाभी ने अधीरता से कहा____"ईश्वर ने ये दुख दिया है तो किसी तरह इसे सहने की ताक़त भी देगा। वैसे भी जिसके पास आप जैसी प्यार करने वाली मां और इतना स्नेह देने वाला देवर हो वो भला कब तक दुखी रह सकेगी?"
"मैं तेरा जीवन खुशियों से भरा हुआ देखना चाहती हूं बेटी।" मां की आंखों से आंसू छलक पड़े____"मैं तुझे इस रूप में नहीं देख सकती। मैं तेरी ज़िंदगी में खुशियों के रंग ज़रूर भरूंगी, फिर भले ही चाहे मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े।"
"ये आप क्या कह रही हैं मां जी?" भाभी ने हैरत से मां की तरफ देखा। मैं भी मां की बातें सुन कर हैरत में पड़ गया था।
"तू फ़िक्र मत मेरी बच्ची।" मां पलंग से उठ कर भाभी के पास आ कर बोलीं____"विधाता ने तेरा जीवन बिगाड़ा है तो अब मैं उसे संवारूंगी। बस कुछ समय की बात है।"
"आप क्या कह रही हैं मां जी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा?" भाभी का दिमाग़ जैसे चकरघिन्नी बन गया था। यही हाल मेरा भी था।
"तुझे इस हवेली में क़ैद रहने की ज़रूरत नहीं है मेरी बच्ची।" मां ने भाभी के मुरझाए चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच ले कर कहा____"और ना ही घुट घुट कर जीने की ज़रूरत है। मैंने हमेशा तुझे बहू से ज़्यादा अपनी बेटी माना है और हमेशा तेरी खुशियों की कामना की है। मैं वैभव की बात से सहमत हूं। तेरा जब भी दिल करे तू इसके साथ खेतों में चली जाया करना। इससे तेरा मन भी बहलेगा और तुझे अच्छा भी महसूस होगा।"
"मैं भी यही कह रहा था मां।" मैंने कहा____"पर भाभी मना कर रहीं थी। कहने लगीं कि अगर ये मेरे साथ बाहर कहीं घूमने जाएंगी तो लोग क्या सोचेंगे?"
"जिसे जो सोचना है सोचे।" मां ने हाथ झटकते हुए कहा____"मुझे किसी के सोचने की कोई परवाह नहीं है। मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मेरी बेटी हर हाल में ख़ुश रहे।"
मां की बात सुन कर जहां मुझे बड़ा फक्र सा महसूस हुआ वहीं भाभी एकदम से ही मां से लिपट कर रोने लगीं। मां ने उन्हें किसी बच्ची की तरह अपने सीने से छुपका लिया। उनकी आंखें भी छलक पड़ीं थी। ये मंज़र देख मुझे ये सोच कर खुशी हो रही थी कि मेरी मां कितनी अच्छी हैं जो अपनी बहू को बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मान कर उनकी खुशियों की परवाह कर रही हैं।
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भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करेदोस्तो, एक दुखद घटना घट गई है हमारे परिवार में। गांव में मेरे सबसे बड़े दादा जी का रात डेढ़ बजे निधन हो गया। हम सब लोग तो दिल्ली में हैं अतः रात को तीन बजे फोन द्वारा हमें सूचना दी गई। उनकी आयु नब्बे के ऊपर थी। कुछ समय से बीमार थे। दादा जी से खास लगाव और जुड़ाव था मेरा। मन बेहद दुखी है।![]()
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ये साला मुंशी और इसका बेटा नही सुधरने वाले हैं साहूकारो के दोनो इंसानों को तो समझ में आ गया है मुंशी और उसका बेटा रघुवीर वैभव का साहूकारो की बेटी से नाजायज रिश्ता जोड़कर उसका गांव ढिंढोरा पीटकर वैभव को गांव से बहिष्कृत करवाना चाहते हैं लेकिन उन्हें ये नही पता कि दादा ठाकुर के सामने पुलिस और प्रशासन झुक जाता है उसका कोई क्या बिगाड़ लेगा वही पंचायत के फैसले को भूल गया है पहले तो रहम भी मिल गया था अब तो वो भी नही मिलेगा रघुवीर ने साहूकारो की औरतों को सब कुछ बता दिया है लेकिन उसे ये नही पता कि रूपा वैभव को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती हैं वह अपने परिवार के खिलाफ भी जा सकती हैं इससे रघुवीर को अच्छी वाली मार मिलने वाली हैअध्याय - 84"जिसे जो सोचना है सोचे।" मां ने हाथ झटकते हुए कहा____"मुझे किसी के सोचने की कोई परवाह नहीं है। मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मेरी बेटी हर हाल में ख़ुश रहे।"
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मां की बात सुन कर जहां मुझे बड़ा फक्र सा महसूस हुआ वहीं भाभी एकदम से ही मां से लिपट कर रोने लगीं। मां ने उन्हें किसी बच्ची की तरह अपने सीने से छुपका लिया। उनकी आंखें भी छलक पड़ीं थी। ये मंज़र देख मुझे ये सोच कर खुशी हो रही थी कि मेरी मां कितनी अच्छी हैं जो अपनी बहू को बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मान कर उनकी खुशियों की परवाह कर रही हैं।
अब आगे....
मुंशी चंद्रकांत साहूकारों के खेत पहुंचा। गौरी शंकर अपने खेत में बने छोटे से मकान के बरामदे में बैठा हुआ था। रूपचंद्र मजदूरों से काम करवा रहा था। चंद्रकांत को आया देख गौरी शंकर एकदम से ही चौंक गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि चंद्रकांत अब दुबारा कभी उसके सामने आएगा। उसे देखते ही उसको वो सब कुछ एक झटके में याद आने लगा जो कुछ हो चुका था।
"कैसे हैं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत बरामदे में ही रखी एक लकड़ी की मेज़ पर बैठते हुए बोला____"आप तो हमें भूल ही गए।"
"तुम भूलने वाली चीज़ नहीं हो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने थोड़ा सख़्त भाव से कहा____"बल्कि तुम तो वो चीज़ हो जिसका अगर साया भी किसी पर पड़ जाए तो समझो इंसान बर्बाद हो गया।"
"ये आप कैसी बात कह रहे हैं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत ने हैरानी से उसे देखा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके लिए आप मुझे ऐसा बोल रहे हैं?"
"ये भी मुझे ही बताना पड़ेगा क्या?" गौरी शंकर ने उसे घूरते हुए कहा____"मैं ये मानता हूं कि हम लोग उतने भी होशियार और चालाक नहीं थे जितना कि हम खुद को समझते थे। सच तो ये है कि तुम्हें समझने में हमसे बहुत बड़ी ग़लती हुई।"
"आप ये क्या कह रहे हैं?" चंद्रकांत अंदर ही अंदर घबरा सा गया____"मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।"
"अंजान बनने का नाटक मत करो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"सच यही है कि हमारे साथ मिल जाने की तुम्हारी पहले से ही योजना थी। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि हमारे कंधों पर बंदूक रख तुम दादा ठाकुर से अपनी दुश्मनी निकालना चाहते थे और अपने इस मक़सद में तुम कामयाब भी हो गए। अपने सामने हम सबको रख कर तुमने सारा खेल खेला। ये उसी का परिणाम है कि हम सब तो मिट्टी में मिल गए मगर तुम्हारा बाल भी बांका नहीं हुआ।"
"आप बेवजह मुझ पर आरोप लगा रहे हैं गौरी शंकर जी।" चंद्रकांत अपनी हालत को किसी तरह सम्हालते हुए बोला____"जबकि आप भी जानते हैं कि मैंने और मेरे बेटे ने आपका साथ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आप कहते हैं कि हमारा बाल भी बांका नहीं हुआ तो ये ग़लत है। हमारा भी बहुत नुकसान हुआ है। पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि मैं दादा ठाकुर के साथ ऐसा कर सकता हूं जबकि अब सबको पता चल चुका है। इस सब में अगर आप अकेले रह गए हैं तो मैं भी तो अकेला ही रह गया हूं। हवेली से मेरा हर तरह से ताल्लुक ख़त्म हो गया, जबकि पहले मैं दादा ठाकुर का मुंशी था। लोगों के बीच मेरी एक इज्ज़त थी मगर अब ऐसा कुछ नहीं रहा। हां ये ज़रूर है कि दादा ठाकुर के क़हर का शिकार होने से मैं और मेरा बेटा बच गए। किंतु ये भी ऊपर वाले की मेहरबानी से ही हो सका है।"
"बातें बनानी तुम्हें खूब आती हैं चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा_____"जीवन भर मुंशीगीरी किए हो और लोगों को जैसे चाहा चूतिया बनाया है तुमने। मुझे सब पता है कि तुमने इतने सालों में दादा ठाकुर की आंखों में धूल झोंक कर अपने लिए क्या कुछ बना लिया है।"
"इस बात से मैं कहां इंकार कर रहा हूं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत ने कहा____"सबसे पहले अपने बारे में और अपने हितों के बारे में सोचना तो इंसान की फितरत होती है। मैंने भी वही किया है। ख़ैर छोड़िए, मैंने सुना है कि कल आपके घर दादा ठाकुर खुद चल कर आए थे?"
"तुम्हें इससे क्या मतलब है?" गौरी शंकर ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा।
"म...मुझे मतलब क्यों नहीं होगा गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत हड़बड़ाते हुए बोला____"आख़िर हम दोनों उसके दुश्मन हैं और जो कुछ भी किया है हमने साथ मिल कर किया है। पंचायत में भले ही चाहे जो फ़ैसला हुआ हो किंतु हम तो अभी भी एक साथ ही हैं न? ऐसे में अगर आपके घर हमारा दुश्मन आएगा तो उसके बारे में हम दोनों को ही तो सोचना पड़ेगा ना?"
"तुम्हें बहुत बड़ी ग़लतफहमी है चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"इतना कुछ हो जाने के बाद और पंचायत में फ़ैसला हो जाने के बाद दादा ठाकुर से मेरी कोई दुश्मनी नहीं रही। दूसरी बात, हम दोनों के बीच भी अब कोई ताल्लुक़ नहीं रहा।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत बुरी तरह हैरान होते हुए बोला____"जिस इंसान ने आपका समूल नाश कर दिया उसे अब आप अपना दुश्मन नहीं मानते? बड़े हैरत की बात है ये।"
"अगर तुम्हारा भी इसी तरह समूल नाश हो गया होता तो तुम्हारी भी मानसिक अवस्था ऐसी ही हो जाती चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"मुझे अच्छी तरह एहसास हो चुका है कि हमने बेकार में ही इतने वर्षों से हवेली में रहने वालों के प्रति बैर भाव रखा हुआ था। जिसने हमारे साथ ग़लत किया था वो तो वर्षों पहले ही मिट्टी में मिल गया था। उसके पुत्रों ने अथवा उसके पोतों ने तो कभी हमारा कुछ बुरा किया ही नहीं था, फिर क्यों हमने उनसे इतना बड़ा बैर भाव रखा? सच तो यही है चंद्रकांत कि हमारी तबाही में दादा ठाकुर से कहीं ज़्यादा हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। दादा ठाकुर सच में एक नेक व्यक्ति हैं जो इस सबके बावजूद खुद को हमारा अपराधी समझते हैं और खुद चल कर हमारे घर आए। ये उनकी उदारता और नेक नीयती का ही सबूत है कि वो अभी भी हमसे अपने रिश्ते सुधारने का सोचते हैं और हम सबका भला चाहते हैं।"
"कमाल है।" चंद्रकांत हैरत से आंखें फाड़े बोल पड़ा____"आपका तो कायाकल्प ही हो गया है गौरी शंकर जी। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि जिस व्यक्ति ने आप सबको मिट्टी में मिला दिया उसके बारे में आप इतने ऊंचे ख़याल रखने लगे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इतना कुछ हो जाने के बाद आप दादा ठाकुर से कुछ इस क़दर ख़ौफ खा गए हैं कि अब भूल से भी उनसे बैर नहीं रखना चाहते, दुश्मनी निभाने की तो बात ही दूर है।"
"तुम्हें जो समझना है समझ लो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु तुम्हारे लिए मेरी मुफ़्त की सलाह यही है कि तुम भी अब अपने दिलो दिमाग़ से हवेली में रहने वालों के प्रति दुश्मनी के भाव निकाल दो वरना इसका अंजाम ठीक वैसा ही भुगतोगे जैसा हम भुगत चुके हैं।"
"यानि मेरा सोचना सही है।" चंद्रकांत इस बार मुस्कुराते हुए बोला____"आप सच में दादा ठाकुर से बुरी तरह ख़ौफ खा गए हैं जिसके चलते अब आप उन्हें एक अच्छा इंसान मानने लगे हैं। ख़ैर आप भले ही उनसे डर गए हैं किंतु मैं डरने वाला नहीं हूं। उनके बेटे ने आपके घर की बहू बेटियों की इज्ज़त को नहीं रौंदा है जबकि उस वैभव ने अपने दादा की तरह मेरे घर की इज्ज़त को रौंदा है। इस लिए जब तक उस नामुराद को मार नहीं डालूंगा तब तक मेरे अंदर की आग शांत नहीं हो सकती।"
"तुम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाओगे चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"अगर तुम ये मानते हो कि वो अपने दादा की ही तरह है तो तुम्हें ये भी मान लेना चाहिए कि जब तुम उसके दादा का कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो उसके पोते का क्या बिगाड़ लोगे? उसे बच्चा समझने की भूल मत करना चंद्रकांत। वो तुम्हारी सोच से कहीं ज़्यादा की चीज़ है।"
"अब तो ये आने वाला वक्त ही बताएगा गौरी शंकर जी कि कौन क्या चीज़ है?" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"आप भी देखेंगे कि उस नामुराद को उसके किए की क्या सज़ा मिलती है?"
चंद्रकांत की बात सुन कर गौरी शंकर बस मुस्कुरा कर रह गया। जबकि चंद्रकांत उठा और चला गया। उसके जाने के कुछ ही देर बाद रूपचंद्र उसके पास आया।
"ये मुंशी किस लिए आया था काका?" रूपचंद्र ने पूछा____"क्या आप दोनों फिर से कुछ करने वाले हैं?"
"नहीं बेटे।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"मैं तो अब कुछ भी करने का नहीं सोचने वाला किंतु हां चंद्रकांत ज़रूर बहुत कुछ करने का मंसूबा बनाए हुए है।"
"क्या मतलब?" रूपचंद्र की आंखें फैलीं।
"वो आग से खेलना चाहता है बेटे।" गौरी शंकर ने कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी वो दादा ठाकुर को अपना दुश्मन समझता है, खास कर वैभव को। उसका कहना है कि वो वैभव को उसके किए की सज़ा दे कर रहेगा।"
"मरेगा साला।" रूपचंद्र ने कहा____"पर आपके पास किस लिए आया था वो?"
"शायद उसे कहीं से पता चल गया है कि दादा ठाकुर कल हमारे घर आए थे।" गौरी शंकर ने कहा____"इस लिए उन्हीं के बारे में पूछ रहा था कि किस लिए आए थे वो?"
"तो आपने क्या बताया उसे?" रूपचंद्र ने पूछा।
"मैं उसे क्यों कुछ बताऊंगा बेटे?" गौरी शंकर ने रूपचंद्र की तरफ देखा____"उससे अब मेरा कोई ताल्लुक़ नहीं है। तुम भी इन बाप बेटे से कोई ताल्लुक़ मत रखना। पहले ही हम अपनी ग़लतियों की वजह से अपना सब कुछ खो चुके हैं। अब जो शेष बचा है उसे किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहते हम। मैंने उससे साफ कह दिया है कि उससे अब मेरा या मेरे परिवार का कोई ताल्लुक़ नहीं है। दादा ठाकुर से अब हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। वो अगर उन्हें अपना दुश्मन समझता है तो समझे और उसे जो करना है करे लेकिन हमसे अब वो कोई मतलब ना रखे।"
"बिल्कुल सही कहा आपने उससे।" रूपचंद्र ने कहा____"वैसे काका, क्या आपको सच में यकीन है कि दादा ठाकुर हमें अपना दुश्मन नहीं समझते हैं और वो हमसे अपने रिश्ते जोड़ कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं?"
"असल में बात ये है बेटे कि जो व्यक्ति जैसा होता है वो दूसरे को भी अपने जैसा ही समझता है।" गौरी शंकर ने जैसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा____"जबकि असलियत इससे जुदा होती है। हम दादा ठाकुर पर यकीन करने से इस लिए कतरा रहे हैं कि क्योंकि हम ऐसे ही हैं। जबकि सच तो यही है कि वो सच में हमें अपना ही समझते हैं और हमसे रिश्ता सुधार कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं। पहले भी तो यही हुआ था, ये अलग बात है कि पहले जब हमने रिश्ते सुधारने की पहल की थी तो उसमें हमारी नीयत पूरी तरह से दूषित थी।"
"तो क्या आपको लगता है कि दादा ठाकुर हमसे रिश्ते सुधारने के लिए एक नया रिश्ता जोड़ेंगे?" रूपचंद्र ने झिझकते हुए पूछा____"मेरा मतलब है कि क्या वो अपने छोट भाई की बेटी का ब्याह मेरे साथ करेंगे?"
"अगर वो ऐसा करें तो समझो ये हमारे लिए सौभाग्य की ही बात होगी बेटे।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु मुझे नहीं लगता कि ये रिश्ता हो सकेगा। कुसुम अगर उनकी अपनी बेटी होती तो यकीनन वो उसका ब्याह तुमसे कर देते किंतु वो उनके उस भाई की बेटी है जिसकी हमने हत्या की है। खुद सोचो कि क्या कोई औरत अपनी बेटी का ब्याह उस घर में करेगी जिस घर के लोगों ने उसके पति और उसकी बेटी के बाप की हत्या की हो? उनकी जगह हम होते तो हम भी नहीं करते, इस लिए इस बात को भूल ही जाओ कि ये रिश्ता होगा।"
"पर बड़ी मां ने तो दादा ठाकुर से यही शर्त रखी है ना?" रूपचंद्र ने कहा____"शर्त के अनुसार अगर दादा ठाकुर कुसुम का ब्याह मेरे साथ नहीं करेंगे तो हमारे संबंध भी उनसे नहीं जुड़ेंगे।"
"ऐसा कुछ नहीं है बेटे।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"तुम्हारी बड़ी मां ने तो दादा ठाकुर से शर्त के रूप में ये बात सिर्फ इस लिए कही थी क्योंकि वो देखना चाहती थीं कि दादा ठाकुर ऐसे संबंध पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देते हैं? ख़ैर छोड़ो इन बातों को, सच तो ये है कि अगर दादा ठाकुर सच में हमसे रिश्ते सुधार कर एक नई शुरुआत करने को कहेंगे तो हम यकीनन ऐसा करेंगे। मर्दों के नाम पर अब सिर्फ हम दोनों ही बचे हैं बेटे और हमें इसी गांव में रहते हुए अपने परिवार की देख भाल करनी है। दादा ठाकुर जैसे ताकतवर इंसान से बैर रखना हमारे लिए कभी भी हितकर नहीं होगा।"
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चंद्रकांत गुस्से में अपने घर पहुंचा।
उसका बेटा रघुवीर घर पर ही था। उसने जब अपने पिता को गुस्से में देखा तो उसे किसी अनिष्ट की आशंका हुई जिसके चलते वो अंदर ही अंदर घबरा गया।
"क्या बात है बापू?" फिर उसने अपने पिता से झिझकते हुए पूछा____"तुम इतने गुस्से में क्यों नज़र आ रहे हो? कुछ हुआ है क्या?"
"वो गौरी शंकर साला डरपोक और कायर निकला।" चंद्रकांत ने अपने दांत पीसते हुए कहा____"दादा ठाकुर से इस क़दर डरा हुआ है कि अब वो कुछ करना ही नहीं चाहता।"
"तुम गौरी शंकर के पास गए थे क्या?" रघुवीर ने चौंकते हुए उसे देखा।
"हां।" चंद्रकांत ने सिर हिलाया____"आज जब तुमने मुझे ये बताया था कि दादा ठाकुर उसके घर गया था तो मैंने सोचा गौरी शंकर से मिल कर उससे पूछूं कि आख़िर दादा ठाकुर उसके घर किस मक़सद से आया था?"
"तो फिर क्या बताया उसने?" रघुवीर उत्सुकता से पूछ बैठा।
"बेटीचोद इस बारे में कुछ भी नहीं बताया उसने।" चंद्रकांत गुस्से में सुलगते हुए बोला____"उल्टा मुझ पर ही आरोप लगाने लगा कि उसके और उसके भाईयों को ढाल बना कर सारा खेल मैंने ही खेला है जिसके चलते आज उन सबका नाश हो गया है।"
"कितना दोगला है कमीना।" रघुवीर ने हैरत से कहा____"अपनी बर्बादी का सारा आरोप अब हम पर लगा रहा है जबकि सब कुछ करने की योजनाएं तो वो सारे भाई मिल कर ही बनाते थे। हम तो बस उनके साथ थे।"
"वही तो।" चंद्रकांत ने कहा____"सारा किया धरा तो उसके और उसके भाईयों का ही था इसके बाद भी आज वो हर चीज़ का आरोप मुझ पर लगा रहा था। उसके बाद जब मैंने इस बारे में कुछ करने को कहा तो उल्टा मुझे नसीहत देने लगा कि मैं अब कुछ भी करने का न सोचूं वरना इसका अंजाम मुझे भी उनकी तरह ही भुगतना पड़ेगा।"
"तो इसका मतलब ये हुआ कि अब वो दादा ठाकुर के खिलाफ़ कुछ भी नहीं करने वाला।" रघुवीर ने कहा____"एक तरह से उसने हमसे किनारा ही कर लिया है।"
"हां।" चंद्रकांत ने कहा____"उसने स्पष्ट रूप से मुझसे कह दिया है कि अब से उसका हमसे कोई ताल्लुक़ नहीं है।"
"फ़िक्र मत करो बापू।" रघुवीर अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुराया____"मैंने कुछ ऐसा कर दिया है कि उसका मन फिर से बदल जाएगा। बल्कि ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि वो फिर से दादा ठाकुर को अपना दुश्मन समझ बैठेगा।"
"क्या मतलब?" चंद्रकांत अपने बेटे की इस बात से बुरी तरह चौंका था, बोला____"ऐसा क्या कर दिया तुमने कि गौरी शंकर का मन बदल जाएगा और वो दादा ठाकुर को अपना दुश्मन मानने लगेगा?"
"आज मेरे एक पहचान वाले ने मुझे बहुत ही गज़ब की ख़बर दी थी बापू।" रघुवीर ने मुस्कुराते हुए कहा____"उसने बताया कि आज सुबह दादा ठाकुर का सपूत हरि शंकर की बेटी से मिला था। हरि शंकर की बेटी रूपा के साथ गौरी शंकर की बेटी राधा भी थी उस वक्त। मेरे पहचान के उस खास आदमी ने बताया कि वैभव काफी देर तक उन दोनों के पास खड़ा रहा था। ज़ाहिर है वो उन दोनों को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए ही फांसने की कोशिश करता रहा होगा।"
"उस हरामजादे से इसके अलावा और किस बात की उम्मीद कर सकता है कोई?" चंद्रकांत ने सख़्त भाव से कहा____"ख़ैर फिर क्या हुआ? मेरा मतलब है कि तुम्हारे उस आदमी के ये सब बताने के बाद तुमने क्या किया फिर?"
"मुझे जैसे ही ये बात पता चली तो मैं ये सोच कर मन ही मन खुश हो गया कि दोनों परिवारों के बीच दुश्मनी पैदा करने का इससे बेहतर मौका और क्या हो सकता है?" रघुवीर ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"बस, फिर मैंने भी इस सुनहरे अवसर को गंवाना उचित नहीं समझा और पहुंच गया साहूकारों के घर। गौरी शंकर अथवा रूपचंद्र तो नहीं मिले लेकिन उसके घर की औरतें मिल गईं। मैंने उनसे सारी बातें बता दी। मेरी बातें सुनने के बाद मैंने देखा कि उन सभी औरतों के चेहरे पर गुस्से के भाव उभर आए थे। मैं समझ गया कि अब वो औरतें खुद ही आगे का काम सम्हाल लेंगी, यानि आग लगाने का काम। वो गौरी शंकर और रूपचंद्र को बताएंगी कि कैसे दादा ठाकुर का सपूत उनकी दोनों बेटियों को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए उन्हें रास्ते में रोके हुए था आज? मुझे पूरा यकीन है बापू कि सवाल जब इज्ज़त का आ जाएगा तो गौरी शंकर और रूपचंद्र चुप नहीं बैठेंगे। यानि कोई न कोई बखेड़ा ज़रूर होगा अब।"
"ये तो कमाल ही हो गया बेटे।" चंद्रकांत एकदम से खुश हो कर बोला____"इतने दिनों से मैं यही सोच सोच के कुढ़ सा रहा था कि आख़िर कैसे दादा ठाकुर के खिलाफ़ कुछ बोलने का मौका मिले मगर अब मिल चुका है। शाबाश! बेटा, यकीनन ये बहुत ही गज़ब का मौका हाथ लगा है और तुमने भी बहुत ही समझदारी से काम लिया कि सारी बातें साहूकारों के घर वालों को बता दी। अब निश्चित ही हंगामा होगा। मैं भी देखता हूं कि मुझे नसीहतें देने वाला गौरी शंकर अब कैसे शांत बैठता है?"
"मेरा तो ख़याल ये है बापू कि इसके बाद अब हमें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।" रघुवीर ने कहा____"बल्कि गौरी शंकर अब इस बात के आधार पर खुद ही दादा ठाकुर को तबाह करने का समान जुटा लेगा। बात अगर पंचायत तक गई तो देखना इस बार दादा ठाकुर पर कोई रियायत नहीं की जाएगी।"
"मैं तो चाहता ही हूं कि उन लोगों पर कोई किसी भी तरह की रियायत न करे।" चंद्रकांत ने जबड़े भींचते हुए कहा____"अगर ऐसा हुआ तो पंचायत में दादा ठाकुर को या फिर उसके सपूत को इस गांव से निष्कासित करने का ही फ़ैसला होगा। अगर वो हरामजादा सच में इस गांव से निष्कासित कर दिया गया तो फिर उसे हम जिस तरह से चाहेंगे ख़त्म कर सकेंगे।"
"मैं तो उसे तड़पा तड़पा कर मारूंगा बापू।" रघुवीर ने एकाएक आवेश में आ कर कहा____"उसे ऐसी बद्तर मौत दूंगा कि वर्षों तक लोग याद रखेंगे।"
"वो तो ठीक है बेटे।" चंद्रकांत ने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन इसके अलावा मैंने एक और फ़ैसला कर लिया है जिसके बारे में मैं तुम्हें सही वक्त आने पर बताऊंगा।"
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कोई बात नहीं हम इंतजार कर लेंगे परिवार सब से पहले है बाकी के काम बाद के...दोस्तों, जैसा कि आप सबको पता चल ही चुका है कि मेरे बड़े दादा जी का निधन हो गया है इस लिए हम सबको दिल्ली से गांव जाना है अब। वहां गांव में इससे संबंधित जो कार्यक्रम होंगे उसमें हम सब व्यस्त हो जाएंगे। ज़ाहिर है ऐसे में मैं ना तो अपडेट लिख सकूंगा और ना ही यहां पोस्ट कर सकूंगा। ये आख़िरी अपडेट था जिसे मैंने कल रात लिखा था, इस लिए इसे आप लोगों के सामने पेश कर दिया है। अब कहानी का अगला अपडेट पंद्रह या बीस दिनों के बाद ही आ सकेगा।
उम्मीद करता हूं कि आप सब मेरी मनोदशा और मेरी मजबूरियों को समझते हुए धैर्य से काम लेंगे और इसी तरह अपना साथ बनाए रखेंगे। अब पंद्रह बीस दिनों के बाद ही मुलाकात होगी। खुश रहें और अपना खयाल रखें।![]()
Heartfelt condolences, dear broॐ शान्ति