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अध्याय - 82
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"साली रण्डी।" रूपचंद्र गुस्से से तिलमिलाते हुए बोला और फिर पैर पटकते हुए वहां से जा कर जल्दी ही अंधेरे में गुम हो गया।━━━━━━༻♥༺━━━━━━
उसे यूं चला गया देख रजनी के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। उसने आंखें बंद कर के वैभव की मोहिनी सूरत का दीदार किया और फिर ठंडी आहें भरते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चली।
अब आगे....
रात में जब सब खा पी कर सोने चले गए तो सुगंधा देवी भी अपने कमरे में आ गईं। पूरी हवेली में सन्नाटा सा छाया हुआ था। कमरे में जैसे ही वो आईं तो उनकी नज़र पलंग पर अधलेटी अवस्था में लेटे दादा ठाकुर पर पड़ी। वो किसी गहरी सोच में डूबे नज़र आए उन्हें।
"किस सोच में डूबे हुए हैं आप?" सुगंधा देवी ने दरवाज़ा बंद करने के बाद उनकी तरफ पलट कर पूछा____"क्या भाई और बेटे को याद कर रहे हैं? वैसे तो दिन भर आप हम सबको समझाते रहते हैं और खुद अकेले में उन्हें याद कर के खुद को दुखी करते रहते हैं।"
"हमें अब भी यकीन नहीं हो रहा कि हमारे जिगर के टुकड़े हमें यूं अकेला छोड़ कर चले गए हैं।" दादा ठाकुर ने गहन गंभीरता से कहा____"आख़िर क्यों उन निर्दोषों को इस तरह से मार दिया गया? किसी का क्या बिगाड़ा था उन्होंने?"
"आप ही कहा करते हैं न कि औलाद के कर्मों का फल अक्सर माता पिता को भोगना पड़ता है।" सुगंधा देवी ने कहा____"तो समझ लीजिए कि इसी तरह माता पिता के कर्मों का फल औलाद को भी भोगना पड़ता है। आपके पिता जी ने जो कुकर्म किए थे उनकी सज़ा आपके छोटे भाई और हमारे बेटे ने अपनी जान गंवा कर पाई है।"
"उन दोनों के इस तरह गुज़र जाने से अब कुछ भी अच्छा नहीं लगता सुगंधा।" दादा ठाकुर ने भावुक हो कर कहा____"हम दिन भर खुद को किसी तरह बहलाने की कोशिश करते हैं मगर सच तो ये है कि एक पल के लिए भी हमारे ज़हन से उनका ख़याल नहीं जाता।"
"सबका यही हाल है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने संजीदगी से कहा____"हमारे भी कलेजे में हर पल बर्छियाँ चुभती रहती हैं। जब भी रागिनी बहू को देखते हैं तो यकीन मानिए हमारा कलेजा फट जाता है। हम ये सोच कर खुद को तसल्ली दे देते हैं कि हमारे पास अभी आप हैं और हमारा बेटा है लेकिन उसका क्या? उस बेचारी का तो संसार ही उजड़ गया है। एक औरत के लिए उसका पति ही सब कुछ होता है और जब वही न रहे तो सोचिए उस औरत पर क्या गुज़रेगी? उसको कोई औलाद होती तो जीने के लिए एक सहारा और बहाना भी होता मगर उस अभागन को तो ऊपर वाले ने हर तरह से बेसहारा और लाचार बना दिया है।"
"सही कह रही हैं आप।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"सच में उसके साथ बहुत ही ज़्यादा अन्याय किया है ईश्वर ने। हमें तो ये सोच कर बड़ा आश्चर्य होता है कि हमारी रागिनी बहू जो इतनी सभ्य सुशील संस्कारी और हमेशा ईश्वर में आस्था रखने वाली है उसके साथ ऊपर वाले ने ऐसा कैसे कर दिया?"
"ऊपर वाला ही जाने कि वो इतना निर्दई क्यों हो गया?" सुगंधा देवी ने कहा____"भरी जवानी में उसका सब कुछ नष्ट कर के जाने क्या मिल गया होगा उस विधाता को।"
"कुछ दिनों से एक ख़याल हमारे मन में आ रहा है।" दादा ठाकुर ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"हमने उस ख़्याल के बारे में बहुत सोचा है। हम चाहते हैं कि आप भी सुनें और फिर उस पर विचार करें।"
"किस बात पर?" सुगंधा देवी ने पूछा।
"यही कि क्या हमारी बहू का सारा जीवन यूं ही दुख और संताप को सहते हुए गुज़रेगा?" दादा ठाकुर ने कहा____"क्या हमें उसके बारे में कुछ भी नहीं सोचना चाहिए? आख़िर हर किसी की तरह उसे भी तो खुश रहने का अधिकार है।"
"आप कहना क्या चाहते हैं?" सुगंधा देवी के माथे पर सहसा शिकन उभर आई____"विधाता ने उसे जिस हाल में डाल दिया है उससे भला वो कैसे कभी खुश रह सकेगी?"
"इंसान खुश तो तभी होता है न, जब उसके लिए कोई खुशी वाली बात होती है अथवा खुश रहने का उसके पास कोई जरिया होता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"अगर हमारी बहू के पास भी खुश रहने का कोई जरिया हो जाए तो क्या वो खुश नहीं रहेगी?"
"हां मगर।" सुगंधा देवी ने दुविधा पूर्ण भाव से दादा ठाकुर की तरफ देखा____"ऐसा कैसे हो सकता है भला?"
"होने को तो कुछ भी हो सकता है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"पर तभी जब हम लोग ऐसा चाहें। बात दरअसल ये है कि कुछ दिनों से हमारे मन में ये ख़याल आता है कि अगर हमारी बहू फिर से सुहागन बन जाए तो यकीनन उसका जीवन संवर भी जाएगा और वो खुश भी रहने लगेगी।"
"य...ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने आश्चर्य से दादा ठाकुर को देखा____"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"
"क्यों नहीं हो सकता सुगंधा?" दादा ठाकुर ने ज़ोर दे कर कहा____"आख़िर अभी उसकी उमर ही क्या है? अगर हम सच में चाहते हैं कि वो हमेशा खुश रहे तो हमें उसके लिए ऐसा सोचना ही होगा। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते कि हमारी इतनी सभ्य सुशील संस्कारी और ईश्वर में आस्था रखने वाली बहू का जीवन हमेशा हमेशा के लिए बर्बाद और तकलीफ़ों से भरा हुआ बन जाए।"
"मतलब आप उसका फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं?" सुगंधा देवी ने कहा।
"बिल्कुल।" दादा ठाकुर ने कहा____"आप खुद सोचिए कि इतना बड़ा जीवन वो अकेले कैसे बिताएगी? जीवन भर उसे ये दुख सताता रहेगा कि ऊपर वाले ने उसके साथ ऐसा अन्याय क्यों किया? हर किसी की तरह उसे भी खुश क्यों नहीं रहने दिया? यही सब बातें सोच कर हमने ये फ़ैसला लिया है कि हम अपनी बहू का जीवन बर्बाद नहीं होने देंगे और ना ही उसे जीवन भर असहनीय पीड़ा में घुटने देंगे।"
"हमें बहुत अच्छा लगा कि आप अपनी बहू के लिए इतना कुछ सोच बैठे हैं।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ले कर कहा____"सच कहें तो हम भी यही चाहते हैं कि हमारी बहू हमेशा खुश रहे मगर....!"
"मगर??"
"मगर आप भी जानते हैं कि कहने में और करने में बहुत फ़र्क होता है।" सुगंधा देवी ने गंभीरता से कहा____"अपनी बहू के लिए हम यकीनन अच्छा ही सोच रहे हैं और ऐसा करना भी चाहते हैं लेकिन क्या ऐसा होना इतना आसान होगा? हमारा मतलब है कि क्या आपके समधी साहब ऐसा करना चाहेंगे और क्या खुद हमारी बहू ऐसा करना चाहेगी?"
"हमें पता है कि थोड़ी मुश्किल ज़रूर हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हमें ये भी यकीन है कि हमारी बहू हमारे अनुरोध को नहीं टालेगी। हम उसे समझाएंगे कि बेटा जीवन कभी भी दूसरों के भरोसे अथवा दूसरों के सहारे नहीं चलता बल्कि अपने किसी ख़ास के ही सहारे बेहतर तरीके से गुज़रता है। हमें यकीन है कि अंततः उसे हमारी बात समझ में आ ही जाएगी और वो हमारी बात भी मान लेगी। रहा सवाल समधी साहब का तो हम उनसे भी इस बारे में बात कर लेंगे।"
"क्या आपको लगता है कि वो इसके लिए राज़ी हो जाएंगे?" सुगंधा देवी ने संदेह की दृष्टि से उन्हें देखा।
"क्यों नहीं होंगे भला?" दादा ठाकुर ने दृढ़ता से कहा____"अगर वो अपनी बेटी को हमेशा खुश देखने की हसरत रखते हैं तो यकीनन वो इसके लिए राज़ी होंगे।"
"चलिए मान लेते हैं कि समधी साहब इसके लिए राज़ी हो जाते हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"फिर आगे क्या करेंगे आप? हमारा मतलब है कि क्या आपने हमारी बहू के लिए कोई लड़का देखा है?"
"लड़का भी देख लेंगे कहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन उससे पहले ज़रूरी ये है कि हम इस बारे में सबसे पहले समधी साहब से चर्चा करें। उनका राज़ी होना अति आवश्यक है।"
"तो समधी साहब से इस बारे में कब चर्चा करेंगे आप?" सुगंधा देवी ने उत्सुकतावश पूछा।
"अभी तो ये संभव ही नहीं है और ना ही इस समय ऐसी बातें करना उचित होगा।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"क्योंकि हमने अपने जिगर के टुकड़ों को खोया है। ऐसे वक्त में हम खुद नहीं चाहते कि हम किसी और से इस बारे में कोई चर्चा करें। थोड़ा समय गुज़र जाने दीजिए, उसके बाद ही ये सब बातें हो सकती हैं।"
उसके बाद किसी ने कुछ नहीं कहा। सुगंधा देवी भी पलंग पर दादा ठाकुर के बगल से लेट गईं। दोनों के ही मन मस्तिष्क में इस संबंध में तरह तरह की बातें चल रहीं थी किंतु दोनों ने ही सोने का प्रयास करने के लिए अपनी अपनी आंखें बंद कर लीं।
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अपने कमरे में पलंग पर लेटा मैं गहरे ख़यालों में गुम था। एक तरफ चाचा और भैया के ख़याल तो दूसरी तरफ मेनका चाची और भाभी के ख़याल। वहीं एक तरफ अनुराधा का ख़याल तो दूसरी तरफ सफ़ेदपोश जैसे रहस्यमय शख़्स का ख़याल। आंखों में नींद का नामो निशान नहीं था। बस तरह तरह की बातें ज़हन में गूंज रहीं थी। पूरी हवेली में सन्नाटा छाया हुआ था। कमरे में बिजली का बल्ब अपनी मध्यम सी रोशनी करते हुए जैसे कलप रहा था।
जब किसी तरह से भी ज़हन से इतने सारे ख़याल न हटे तो मैं उठ बैठा। खिड़की की तरफ देखा तो बाहर गहन अंधेरा था। शायद आसमान में काले बादल छाए हुए थे। खिड़की से ठंडी ठंडी हवा आ रही थी। ज़ाहिर है देर सवेर रात में बारिश होना तय था।
पलंग से उतर कर मैं दरवाज़े के पास पहुंचा और फिर दरवाज़ा खोल कर बाहर आ गया। आज बिजली गुल नहीं थी इस लिए हवेली में हर तरफ हल्की रोशनी फैली हुई थी। एकाएक मुझे फिर से भाभी का ख़याल आया तो मैं उनके कमरे की तरफ बढ़ चला। रात के इस वक्त मुझे उनके कमरे में जाना तो नहीं चाहिए था किंतु मैं जानता था कि उनकी आंखों में भी नींद का नामो निशान नहीं होगा और वो तरह तरह की बातें सोचते हुए खुद को दुखी किए होंगी।
जल्दी ही मैं उनके कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच गया। धड़कते दिल से मैंने उनके दरवाज़े पर दाएं हाथ से दस्तक दी तो कुछ ही पलों में दरवाज़ा खुल गया। मेरे सामने भाभी खड़ी थीं। कमरे में बल्ब का मध्यम प्रकाश था इस लिए मैंने देखा उनकी आंखों में आसूं थे। चेहरे पर दुख और उदासी छाई हुई थी। हालाकि मुझे देखते ही उन्होंने जल्दी से खुद को सम्हालते का प्रयास किया किंतु तब तक तो मुझे उनकी हालत का पता चल ही गया था।
"वैभव तुम? इस वक्त यहां?" फिर उन्होंने हैरानी ज़ाहिर करते हुए पूछा____"कुछ काम था क्या?"
"जी नहीं काम तो कोई नहीं था भाभी।" मैंने कहा____"नींद नहीं आ रही थी इस लिए यहां चला आया। मुझे पता था कि आप भी जाग रही होंगी। वैसे आपको मेरे यहां आने से कोई समस्या तो नहीं हुई है ना?"
"न..नहीं तो।" भाभी ने दरवाज़े से हटते हुए कहा____"अंदर आ जाओ। वैसे मैं भी ये सोच रही थी कि नींद नहीं आ रही है तो कुछ देर के लिए तुम्हारे पास चली जाऊं। फिर सोचा इस वक्त तुम्हें तकलीफ़ देना उचित नहीं होगा।"
"आप बेकार में ही ऐसा सोच रहीं थी।" मैंने कमरे के अंदर दाखिल हो कर कहा___"आप अच्छी तरह जानती हैं कि आपकी वजह से मुझे कभी कोई तकलीफ़ नहीं हो सकती। आप कभी भी मेरे कमरे में आ सकती हैं।"
"बैठो।" भाभी ने अपने पलंग के पास ही मेरे लिए एक कुर्सी रखते हुए कहा और फिर वो पलंग पर बैठ गईं। इधर मैं भी उनकी रखी कुर्सी पर बैठ गया।
"सुबह मां से कहूंगा कि जब तक कुसुम नहीं आती तब तक वो खुद ही रात में यहां आ कर आपके साथ सो जाया करें।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"इतनी बड़ी हवेली में अकेले एक कमरे में सोने से आपको डर भी लगता होगा।"
"मां जी को परेशान मत करना।" भाभी ने कहा____"तुम्हें तो पता ही है कि उन्हें सीढियां चढ़ने में परेशानी होती है। वैसे भी मैं इतनी कमज़ोर नहीं हूं जो अकेले रहने पर डरूंगी। ठाकुर खानदान की बेटी और बहू हूं, इतना कमज़ोर जिगरा नहीं है मेरा।"
"अरे! मैं तो चाहता हूं कि मेरी भाभी का जिगरा शेरनी जैसा हो जाए।" मैंने बड़े स्नेह से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"और दुनिया का कोई भी दुख उन्हें तकलीफ़ न दे सके।"
"जब तक इंसान दुख और तकलीफ़ों से नहीं गुज़रता तब तक वो कठोर नहीं बन सकता और ना ही उसमें किसी चीज़ को सहने की क्षमता हो सकती है।" भाभी ने कहा____"मुझे ईश्वर ने बिना मांगे ही ऐसी सौगात दे दी है तो यकीनन धीरे धीरे मैं कठोर भी बन जाऊंगी और हर चीज़ को सहने की क्षमता भी पैदा हो जाएगी मुझमें।"
"आपसे एक गुज़ारिश है।" मैंने कुछ सोचते हुए भाभी से कहा____"क्या आप मानेंगी?"
"क्या गुज़ारिश है?" भाभी ने पूछा____"अगर मेरे बस में होगा तो ज़रूर मानूंगी।"
"बिल्कुल आपके बस में है भाभी।" मैंने कहा____"बात दरअसल ये है कि कुछ ही समय में मैं खेती बाड़ी का सारा काम देखने लगूंगा। संभव है कि तब मेरा ज़्यादातर वक्त मजदूरों के साथ खेतों पर ही गुज़रे। मेरी आपसे गुज़ारिश ये है कि क्या आप कभी कभी मेरे साथ खेतों में चलेंगी? इससे आपका समय भी कट जाया करेगा और आपका मन भी बहलेगा।"
"मेरा समय कटे या ना कटे और मेरा मन बहले या न बहले किंतु तुम्हारे कहने पर मैं ज़रूर तुम्हारे साथ खेतों पर चला करूंगी।" भाभी ने कहा____"मैं भी देखूंगी कि मेरा प्यारा देवर खुद को बदल कर किस तरह से वो सारे काम करता है जिसे उसने सपने में भी कभी नहीं किया होगा।"
"बिल्कुल भाभी।" मैंने दृढ़ता से कहा____"मैं आपको सारे काम कर के दिखाऊंगा। वैसे भी आप साथ रहेंगी तो मुझे एक अलग ही ऊर्जा मिलेगी और साथ ही मेरा मनोबल भी बढ़ेगा।"
"भला ये क्या बात हुई?" भाभी ने ना समझने वाले अंदाज़ से मेरी तरफ देखा____"मेरे साथ रहने से भला तुम्हें कैसे ऊर्जा मिलेगी और किस तरह से तुम्हारा मनोबल बढ़ेगा?"
"आप ही तो बार बार मुझे एक अच्छा इंसान बनने को कहती हैं।" मैंने जैसे उन्हें समझाते हुए कहा____"अब जब आप मेरे साथ अथवा मेरे सामने रहेंगी तो मैं बस इसी सोच के साथ हर काम करूंगा कि मुझे आपकी नज़रों में अच्छा बनना है और आपकी उम्मीदों पर खरा भी उतरना है। अगर इस बीच मैं कहीं भटक जाऊं तो आप मुझे फ़ौरन ही सही रास्ते पर ले आना। ऐसे में निश्चित ही मैं जल्द से जल्द आपको सब कुछ बेहतर तरीके से कर के दिखा सकूंगा।"
"हम्म्म्म बात तो एकदम ठीक है तुम्हारी।" भाभी ने सिर हिलाते हुए कहा___"तो फिर ठीक है। मैं ज़रूर तुम्हारे साथ कभी कभी खेतों पर चला करूंगी।"
"मेरी सबसे अच्छी भाभी।" मैंने कुर्सी से उठ कर खुशी से कहा____"मुझे यकीन है कि जब आप इस हवेली से बाहर निकल कर खेतों पर जाया करेंगी तो यकीनन आपको थोड़ा ही सही लेकिन सुकून ज़रूर मिलेगा। अच्छा अब मैं चलता हूं। आप भी अब कुछ मत सोचिएगा, बल्कि चुपचाप सो जाइएगा।"
मेरी बात सुन कर भाभी के होठों पर बहुत ही बारीक मुस्कान उभरी और फिर वो उठ कर मेरे पीछे दरवाज़े तक आईं। मैं जब बाहर निकल गया तो उन्होंने दरवाज़ा बंद कर लिया। भाभी के होठों पर बारीक सी मुस्कान आई देख मुझे बेहद खुशी महसूस हो रही थी। मैंने मन ही मन सोचा_____'फ़िक्र मत कीजिए भाभी जल्द ही आपको अपने हर दुखों से छुटकारा मिल जाएगा।'
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अगली दोपहर भुवन हवेली आया और मुझसे मिला। बैठक में पिता जी भी थे। उनके सामने ही उसने मुझे एक कागज़ पकड़ाया जिसमें मेरे नए बन रहे मकान में काम करने वाले मजदूरों का हिसाब किताब था। मैंने बड़े ध्यान से हिसाब किताब देखा और फिर कागज़ को पिता जी की तरफ बढ़ा दिया।
"हम्म्म्म काफी अच्छा हिसाब किताब तैयार किया है तुमने।" पिता जी ने भुवन की तरफ देखते हुए कहा____"किंतु हम चाहते हैं कि उन सभी मजदूरों को उनकी मेहनत के रूप में इस हिसाब से भी ज़्यादा फल मिले।"
कहने के साथ ही पिता जी ने अपने कुर्ते की जेब से रुपयों की एक गड्डी निकाली और फिर उसे मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"हम चाहते हैं कि तुम्हारे हर काम से लोग खुश और संतुष्ट हों इस लिए चार पैसा बढ़ा कर ही सबको उनका मेहनताना देना।"
"जी पिता जी, ऐसा ही करूंगा मैं।" मैंने उनके हाथ से रुपए की गड्डी ले कर कहा____"एक और बात, बारिश का मौसम शुरू हो गया है तो जल्दी ही इस रबी की फसल के लिए खेतों की जुताई का काम शुरू करवा देता हूं।"
"हम्म्म्म बहुत बढ़िया।" पिता जी ने कहा____"हम उम्मीद करते हैं कि ये सारे काम तुम अच्छे से सम्हाल लोगे।"
पिता जी को सिर नवा कर और उनसे मजदूरों के हिसाब किताब वाला कागज़ ले कर मैं और भुवन बैठक से बाहर आ गए। कुछ ही देर में हम दोनों अपनी अपनी मोटर साईकिल में बैठ कर निकल लिए।
दोपहर का समय था किंतु धूप नहीं थी। आसमान में काले बादल छाए हुए थे। रात में भी बारिश हुई थी इस लिए रास्ते में फिर से कीचड़ हो गया था। कुछ ही देर में हम साहूकारों के घरों के सामने पहुंच गए। मैंने एक नज़र उनके घर की तरफ डाली किंतु कोई नज़र ना आया। साहूकारों के बाद मुंशी चंद्रकांत का घर पड़ता था। जब मैं उसके घर के सामने पहुंचा तो देखा रघुवीर अपनी बीवी रजनी के साथ एक भैंस को भूसा डाल रहा था। रजनी के हाथ में एक बाल्टी थी।
मोटर साइकिल की आवाज़ से उन दोनों का ध्यान हमारी तरफ आकर्षित हुआ। मुझे मोटर साइकिल में जाता देख जहां रघुवीर मुझे अजीब भाव से देखने लगा था वहीं उसकी बीवी रजनी मुझे देख कर हल्के से मुस्कुराई थी। रघुवीर उसके पीछे था इस लिए वो ये नहीं देख सका था कि उसकी बीवी मुझे देख कर मुस्कुराई थी। उस रांड को मुस्कुराता देख एकाएक ही मेरे मन में उसके लिए नफ़रत के भाव जाग उठे थे। मैं उससे नज़र हटा कर आगे बढ़ गया। कुछ ही देर में मैं और भुवन नए बन रहे मकान में पहुंच गए।
मेरे कहने पर भुवन ने सभी मजदूरों को बुलाया। थोड़ी औपचारिक बातों के बाद मैंने सभी को एक एक कर के हिसाब किताब बता कर उनका मेहनताना दे दिया। पिता जी के कहे अनुसार मैंने सबको चार पैसा बढ़ा कर ही दिया था जिससे सभी लोग काफी खुश हो गए थे। कुछ तो मेरे गांव के ही मजदूर थे किंतु कुछ मुरारी काका के गांव के थे। मकान अब पूरी तरह से बन कर तैयार हो चुका था। दीवारों पर रंग भी चढ़ गया था तो अब वो बड़ा ही आकर्षक नज़र आ रहा था। मुझे थोड़ी मायूसी सी हुई किंतु अब क्या हो सकता था? जो सोचा था वो हुआ ही नहीं था बल्कि कुछ और ही हो गया था। ख़ैर मैंने सभी मजदूरों को ये कह कर विदा किया कि अगर वो लोग इसी तरह से मेहनताना पाना चाहते हैं तो वो हमारे खेतों पर काम कर सकते हैं। मेरी बात सुन कर सब खुशी से तैयार हो गए।
मजदूरों के जाने के बाद मैं और भुवन आपस में ही खेतों पर फसल उगाने के बारे में चर्चा करने लगे। काफी देर तक हम दोनों इस बारे में कई तरह के विचार विमर्श करते रहे। तभी सहसा मेरी नज़र थोड़ी दूरी पर नज़र आ रही सरोज काकी पर पड़ी। उसके साथ उसकी बेटी अनुराधा और बेटा अनूप भी था। अनुराधा को देखते ही मुझे पिछले दिन की घटना याद आ गई और मेरे अंदर हलचल सी होने लगी।
"काकी आप यहां?" सरोज जब हमारे पास ही आ गई तो मैंने उसे देखते हुए कहा____"सब ठीक तो है न?"
"तुम्हारी दया से सब ठीक ही है बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"अनू के बापू जब से गुज़रे हैं तब से तुमने हम पर कोई संकट आने ही कहां दिया है?"
मैंने उसकी इस बात का जवाब देने की जगह उसे बरामदे में ही बैठ जाने को कहा तो वो अंदर आ कर बैठ गई। उसके पीछे अनुराधा और अनूप भी आ कर बैठ गया। अनुराधा बार बार मुझे ही देखने लगती थी। उसके चेहरे पर ज़माने भर की मासूमियत थी किंतु इस वक्त वो बेहद उदास नज़र आ रही थी। इधर उसकी मौजूदगी से मैं भी थोड़ा असहज हो गया था। ये अलग बात है कि उसे देखते ही दिल को सुकून सा मिल रहा था।
"काकी सब ठीक तो है न?" भुवन ने सरोज की तरफ देखते हुए पूछा____"और अनुराधा की अब तबीयत कैसी है?"
"अब बेहतर है बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"वैद्य जी जो दवा दे गए थे उसे इसने खाया था तो अब ठीक है ये।"
"अच्छा काकी जगन काका के बीवी बच्चे कैसे हैं?" मैंने एक नज़र अनुराधा की तरफ देखने के बाद काकी से पूछा____"क्या वो लोग आते जाते हैं आपके यहां?"
"उसकी बीवी पहले नहीं आती थी।" सरोज काकी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन तीन दिन पहले वो अपनी एक बेटी के साथ आई थी। जगन ने जो किया था उसकी माफ़ी मांग रही थी मुझसे। मैं जानती थी कि इस सबमें उसका या उसके बच्चों का कोई दोष नहीं था। अपने भाई की जान का दुश्मन तो उसका पति ही बन गया था इस लिए अब जब वो भी नहीं रहा तो उस बेचारी से क्या नाराज़गी रखना? बेचारी बहुत रो रही थी। कह रही थी कि अब उसका और उसके बच्चों का क्या होगा? कुछ सालों में एक एक कर के उसकी दोनों बेटियां ब्याह करने लायक हो जाएंगी तब वो क्या करेगी? कैसे अपनी बेटियों का ब्याह कर सकेगी?"
"अगर जगन काका ये सब सोचते तो आज उनके बीवी बच्चे ऐसी हालत में न पहुंचते।" मैंने गंभीरता से कहा____"अपने ही सगे भाई की ज़मीन का लालच किया उन्होंने और उस लालच में अंधे हो कर उन्होंने अपने ही भाई की जान ले ली। ऊपर वाला ऐसे में कैसे भला उनके साथ भला करता? ख़ैर पिता जी ने इसके बावजूद जगन काका के परिवार के लिए थोड़ा बहुत आर्थिक मदद करने का आश्वासन दिया है तो उन्हें ज़्यादा फ़िक्र नहीं करना चाहिए।"
"घर में एक मर्द का होना बहुत आवश्यक होता है वैभव बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"जगन जैसा भी था किंतु उसके रहते उसकी बीवी को इन सब बातों की इतनी चिंता नहीं थी मगर अब, अब तो हर चीज़ के लिए उसे दूसरों पर ही निर्भर रहना है।"
"इंसान का जीवन इसी लिए तो संघर्षों से भरा होता है काकी।" मैंने कहा____"कोई कितना ही बड़ा आदमी क्यों न हो किंतु जीवन जीना उसके लिए भी आसान नहीं होता। ख़ैर छोड़िए, अब तो बारिश का मौसम भी आ गया है तो आपको भी अपने खेतों पर बीज बोने होंगे न?"
"हां उसके बिना गुज़ारा भी तो नहीं होगा बेटा।" काकी ने कहा____"सोच रही हूं कि एक दो बार और बारिश हो जाए जिससे ज़मीन के अंदर तक नमी पहुंच जाए। उसके बाद ही जुताई करवाने के बारे में सोचूंगी।"
"फ़िक्र मत कीजिए।" मैंने कहा____"मैं दो लोगों को इस काम पर लगवा दूंगा। आप बस बीज दे देना उन्हें बोने के लिए। बाकी निदाई गोड़ाई तो आप खुद ही कर लेंगी न?"
"हां बेटा।" काकी ने कहा____"इतना तो कर ही लूंगी। वैसे भी थोड़ा बहुत काम तो मैं खुद भी करना चाहती हूं क्योंकि काम करने से ही इंसान का शरीर स्वस्थ्य रहता है। खाली बैठी रहूंगी तो तरह तरह की बातों से मन भी दुखी होता रहेगा।"
"वैसे किस लिए आईं थी आप यहां पर?" मैंने वो सवाल किया जो मुझे सबसे पहले करना चाहिए था।
"वो मैं भुवन के पास आई थी।" सरोज काकी ने कहा____"असल में बारिश होने के चलते मेरे घर में कई जगह से पानी टपक रहा था। पिछले साल अनू के बापू ने ढंग से घर को छा दिया था जिससे पानी का टपकना बंद हो गया था मगर अब फिर से टपकने लगा है। अब अनू के बापू तो हैं नहीं और मैं खुद छा नहीं सकती इसी लिए भुवन से ये कहने आई थी कि किसी के द्वारा मेरे घर को छवा दे। वैसे अच्छा हुआ कि मैं यहां आ गई और यहां तुम मिल गए मुझे। तुम तो अब मेरे घर आते ही नहीं हो।"
"पहले की तरह अब समय ही नहीं रहता काकी।" मैंने बहाना बनाते हुए कहा____"आपको तो सब पता ही है कि हमारे साथ क्या क्या हो चुका है।"
"हां जानती हूं बेटा।" सरोज काकी ने संजीदा हो कर कहा____"तुम्हारे परिवार के साथ जो हुआ है वो तो सच में बहुत बुरा हुआ है लेकिन क्या कह सकते हैं। ऊपर वाले पर भला किसका बस चलता है?"
"जिन लोगों ने ये सब किया था उनके साथ भी तो वैसा ही किया गया है।" मैंने सहसा सख़्त भाव से कहा____"अब वो लोग ख़्वाब में भी किसी के साथ ऐसा करने का नहीं सोचेंगे।"
थोड़ी देर इसी संबंध में कुछ बातें हुईं उसके बाद मैं भुवन से ये कह कर वहां से चला आया कि अगले दिन सभी मजदूरों से मिलना है जिसके लिए सारा इंतजाम कर दे। असल में अनुराधा की मौजूदगी से मैं कुछ ज़्यादा ही असहज हो रहा था। उसके चेहरे पर छाई उदासी मुझे अंदर ही अंदर कचोटने लगी थी। यही वजह थी कि मैं वहां से चल पड़ा था।
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