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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
Prime
3,323
6,863
159
Ab isse badi shanti kya hogi ki apan ne iske update post karne se tauba hi kar liya hai :D

Ya fir apan is forum ko hi alvida kah de, tab Shanti hogi :D
Bhai sadak pe milna tum :bat:
 

chantu

New Member
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18
exactly
यही असली वजह है, पिछले प्रशासनिक फेरबदल के बाद नयी टीम ने इसे :-
1- कहानियों से ज्यादा चिट-चैट मैसेज का प्लैटफ़ार्म बना दिया, जिनमें ज़्यादातर एमोजी या एक शब्द होता है कभी कभी लाइक या अन्य रिएक्शन देते हैं...
2- नए सकारात्मक बदलाव की बजाए यहाँ इतने ज्यादा और इतने गंदे तरीके से विज्ञापन लिंक किए हैं की एक पेज को 4 बार खोल्न पड़ता है और लाइक कमेंट कोट/रिप्लाइ करने के लिए तो 10 से 20 बार तक जिससे चिड़चिड़ा होकर पाठक अपडेट पढ़कर चुपचाप निकाल लेता है, रिवियू, कमेंट तो छोड़ो लाइक तक नहीं करना चाहता
3- शुभम भाई जैसे कुछ लेखकों के चाहने वाले इनके कहीं और ना होने की वजह से यहाँ मजबूरी में आते हैं........ वरना हम जैसे यहाँ झाँकने भी ना आयें
4- इस फॉरम पर भीड़ जुटाने वाली कहानियाँ सिर्फ वो हैं जो समाज में जहर घोलने वाली बेतुकी हिन्दू-मुस्लिम कहानियों की गंदगी 'इंटरफेथ' के नाम पर एक मिशन की तरह डाल रहे हैं और बढ़ावा देने को फर्जी रीडर्स, कमेंट और रिवियू पोस्ट करते रहते हैं
5- जिस वजह से Xossip और फिर ये XF की पहचान अन्य पॉर्न और सेक्सस्टोरी प्लैटफ़ार्म से अलग एक व्यवस्थित 'एरोटीक व एडल्ट कहानियों" का प्लैटफ़ार्म थी वो खत्म हो चुका है ज़्यादातर लेखक और पाठक यहाँ से जा चुके हैं जो भीड़ यहाँ बची है उसमें से ज़्यादातर की ना तो हम पाठक उनकी गंदगी पढ्ना चाहते ना अच्छे लेखक उस भीड़ के कमेंट रिवियू झेल पाएंगे

इसलिए मेरा यही अनुरोध है की जितना बचा हुआ है वो इस फॉरम की आत्मा को जिंदा रखे इसलिए हम सबको मिलकर एक दूसरे का साथ देना होगा
aap ki baat se sahmt hun . adhiktr kahaniya ek hi mood ki hai , kuch ko chor ke /
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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aap ki baat se sahmt hun . adhiktr kahaniya ek hi mood ki hai , kuch ko chor ke /
Sahi kah rahe ho bhai yaha adhiktar to bas faltu stories hi bachi h ....kuchh ko chhodkar

Incest me adultery ghusa dete h jyadatar writer to cuckold bane baithe h ....jaise kya hi maza milta h isme.....

Koi dhang ki story to h hi nahi ........

Ab to politics ki tarah in stories me bhi hindu muslim ho raha h writer ek dusre ke dharm ke viprit kahaniya post kar rahe h....

Kya hua pada h writers ko aajkal....
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 69
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



उसका दूसरा साथी जब उसके ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने पर भी न जागा तो वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसका अपना जिस्म ये सोच कर ठंडा सा पड़ गया कि कहीं उसका साथी मर तो नहीं गया? हकबका कर वो एक तरफ को भागा और जल्दी ही हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास पहुंच गया। मुख्य द्वार पर खड़े दरबान को उसने हांफते हुए सारी बात बताई तो उस दरबान के भी होश उड़ गए। उसने फ़ौरन ही अंदर जा कर बैठक में बैठे भैया के चाचा ससुर को सारी बात बताई तो बैठक में बैठे बाकी सब भी बुरी तरह उछल पड़े।


अब आगे....



उस वक्त रात के साढ़े बारह बज रहे थे जब दादा ठाकुर का काफ़िला पास के ही एक गांव माधोपुर के पास पहुंचा। गांव से कुछ दूर ही काफ़िले को रोक कर सब अपनी अपनी गाड़ियों से उतरे। कुल तीन जीपें थी। एक दादा ठाकुर की, दूसरी अर्जुन सिंह की और तीसरी मेरे नाना जी की। तीनों जीपों में आदमी सवार हो कर आए थे। किसी के हाथ में बंदूक, किसी के हाथ में पिस्तौल, किसी के हाथ में लट्ठ तो किसी के हाथ में तलवार। दादा ठाकुर के निर्देश पर सब के सब एक लंबा घेरा बना कर गांव के अंदर की तरफ उस दिशा में बढ़ चले जिधर साहूकारों के मौजूद होने की ख़बर मुखबिरों ने दादा ठाकुर को दी थी।

आधी रात के वक्त पूरे गांव में शमशान की तरह सन्नाटा फैला हुआ था। चारो तरफ अंधेरा तो था किंतु इतना भी नहीं कि किसी को कुछ दिखे ही न। आसमान में हल्का सा चांद था जिसकी मध्यम रोशनी धरती पर आ रही थी, ये अलग बात है कि क्षितिज पर काले बादलों की वजह से कभी कभी वो चांद छुप जाता था जिसकी वजह से उसके द्वारा आने वाली रोशनी लोप भी हो जाती थी।

"मैं अब भी आपसे यही कहूंगा ठाकुर साहब कि थोड़ा होश से काम लीजिएगा।" दादा ठाकुर के बगल से ही चल रहे अर्जुन सिंह ने धीमें स्वर में कहा____"कहीं ऐसा न हो कि आवेश और गुस्से में किए गए अपने कृत्य से बाद में आपको पछतावा हो।"

"हमें अब किसी बात का पछतावा नहीं होने वाला अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने सख़्त भाव से कहा____"बल्कि हमें तो अब इस बात का बेहद अफ़सोस ही नहीं बल्कि दुख भी है कि हमने आज से पहले होश क्यों नहीं गंवाया था? अगर हमने इसके पहले ही पूरी सख़्ती से हर काम किया होता तो आज हमें ये दिन देखना ही नहीं पड़ता। हमारे दुश्मनों ने हमारी नरमी का फ़ायदा ही नहीं उठाया है बल्कि उसका मज़ाक भी बनाया है। इस लिए अब हमें किसी बात के लिए होश से काम नहीं लेना है बल्कि अब तो दुश्मनों के साथ वैसा ही सुलूक किया जाएगा जैसा कि उनके साथ होना चाहिए।"

"मैं आपकी बातों से इंकार नहीं कर रहा ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"यही वजह है कि इस वक्त मैं यहां आपके साथ हूं। मैं तो बस ये कह रहा हूं कि कुछ भी करने से पहले एक बार आपको उन लोगों से भी पूछना चाहिए कि ऐसा उन्होंने क्यों किया है?"

"पूछने की ज़रूरत ही नहीं है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने आवेशयुक्त भाव से कहा____"हमें अच्छी तरह पता है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया है। तुम शायद भूल गए हो लेकिन हम नहीं भूले।"

"क्या मतलब??" अर्जुन सिंह ने उलझन पूर्ण भाव से दादा ठाकुर की तरफ देखा____"मैं कुछ समझा नहीं। आप किस चीज़ की बात कर रहे हैं?"

"बहुत पुराना मामला है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे पिता जी के ज़माने का। अगर हम ये कहें तो ग़लत न होगा कि साहूकारों का मन मुटाव हमारे पिता जी की वजह से ही शुरू हुआ था। हमने एक बार तुम्हें बताया तो था इस बारे में।"

"ओह! हां याद आया।" अर्जुन सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो क्या साहूकार लोग अभी भी उसी बात को लिए बैठे हैं?"

"कुछ ज़ख्म इंसान को कभी चैन और सुकून से नहीं बैठने देते।" दादा ठाकुर ने कहा____"पिता जी ने उस समय भले ही सब कुछ ठीक कर के मामले को रफा दफा कर दिया था मगर सच तो ये है कि वो मामला साहूकारों के लिए कभी रफा दफा हुआ ही नहीं। उस समय पिता जी के ख़ौफ के चलते भले ही साहूकारों ने कोई ग़लत क़दम नहीं उठाया था मगर वर्षों बाद अब उठाया है। हमें हैरत है कि ऐसा कोई क़दम उठाने में उन लोगों ने इतना समय क्यों लगाया मगर समझ सकते हैं कि हर चीज़ अपने तय वक्त पर ही होती है।"

"आपका मतलब है कि इतने सालों बाद ही उनके द्वारा ऐसा करने का वक्त आया?" अर्जुन सिंह ने बेयकीनी से दादा ठाकुर की तरफ देखा____"पर सोचने वाली बात है कि क्या उन्हें ऐसा करने के बाद अपने अंजाम की कोई परवाह न रही होगी?"

"इंसान के सब्र का घड़ा जब भर जाता है तो उसकी नियति कुछ ऐसी ही होती है मित्र अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने कहा____"जैसे इस वक्त हम बदले की भावना में जलते हुए उन सबको ख़ाक में मिलाने के लिए उतावले हो रहे हैं उसी तरह उन लोगों की भी यही दशा रही होगी।"

अर्जुन सिंह अभी कुछ कहने ही वाला था कि दादा ठाकुर ने चुप रहने का इशारा किया और पिस्तौल लिए आगे बढ़ चले। सभी गांव में दाखिल हो चुके थे। हमेशा की तरह बिजली गुल थी इस लिए किसी भी घर में रोशनी नहीं दिख रही थी। हल्के अंधेरे में डूबे गांव के घर भूत की तरह दिख रहे थे। दादा ठाकुर की नज़र घूमते हुए एक मकान पर जा कर ठहर गई। मकान कच्चा ही था जिसके बाहर क़रीब पच्चीस तीस गज का मैदान था। उस मैदान के एक तरफ कुछ मवेशी बंधे हुए थे।

"वो रहा मकान।" दादा ठाकुर ने उंगली से इशारा करते हुए बाकी सबकी तरफ नज़र घुमाई____"तुम सब मकान को चारो तरफ से घेर लो। उनमें से कोई भी बच के निकलना नहीं चाहिए।"

अंधेरे में सभी ने सिर हिलाया और मकान की तरफ सावधानी से बढ़ चले। दादा ठाकुर के साथ में अर्जुन सिंह और मामा लोग थे जबकि बाकी हवेली के मुलाजिम लोग दूसरे छोर पर थे। उन लोगों के साथ में भैया के साले वीरेंद्र सिंह थे और जगताप चाचा का एक साला भी।

सब के सब मकान की तरफ बढ़ ही रहे थे कि तभी अंधेरे में एक तरफ से एक साया भागता हुआ उस मकान के पास पहुंचा और शोर करते हुए अंदर घुस गया। ये देख दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि बाकी लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े। दादा ठाकुर जल्दी ही सम्हले और सबको सावधान रहने को कहा और साथ ही आने वाली स्थिति से निपटने के लिए भी।

वातावरण में एकाएक ही शोर गुल गूंज उठा और मकान के अंदर से एक एक कर के लोग बाहर की तरफ निकल कर इधर उधर भागने लगे। हल्के अंधेरे में भी दादा ठाकुर ने भागने वालों को पहचान लिया। वो सब गांव के साहूकार ही थे। उन्हें भागते देख दादा ठाकुर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्हें ये सोच कर भी गुस्सा आया कि वो सब बुजदिल और कायरों की तरह अपनी जान बचा कर भाग रहे हैं जबकि उन्हें तो दादा ठाकुर का सामना करना चाहिए था।

इससे पहले कि वो सब अंधेरे में कहीं गायब हो जाते दादा ठाकुर ने सबको उन्हें खत्म कर देने का हुकुम सुना दिया। दादा ठाकुर का हुकुम मिलते ही वातावरण में बंदूखें गरजने लगीं। अगले ही पल वातावरण इंसानी चीखों से गूंज उठा। देखते ही देखते पूरे गांव में हड़कंप मच गया। सोए हुए लोगों की नींद में खलल पड़ गया और सबके सब ख़ौफ का शिकार हो गए। इधर दादा ठाकुर के साथ साथ अर्जुन सिंह और मामा लोगों की बंदूकें गरजती रहीं। जब बंदूक से निकली गोलियों से फिज़ा में गूंजने वाली चीखें शांत पड़ गईं तो दादा ठाकुर के हुकुम पर बंदूक से गोलियां निकलनी बंद हो गईं।

जब काफी देर तक फिज़ा में गोलियां चलने की आवाज़ नहीं गूंजी तो ख़ौफ से भरे गांव के लोगों ने राहत की सांस ली और अपने अपने घरों से निकलने की जहमत उठाई। लगभग सभी घरों के अंदर कुछ ही देर में रोशनी होती नज़र आने लगी। इधर दादा ठाकुर के कहने पर सब मकान की तरफ बढ़ चले।

"सम्हल कर ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"दुश्मन अंधेरे में कहीं छुपा भी हो सकता है और वो आप पर वार भी कर सकता है।"

"यही तो हम चाहते हैं।" दादा ठाकुर आगे बढ़ते हुए बोले____"हम चाहते हैं कि हमारे जिगर के टुकड़ों को छिप कर वार करने वाले एक बार हमारे सामने आ कर वार करें। हम भी तो देखें कि वो कितने बड़े मर्द हैं और कितना बड़ा जिगर रखते हैं।"

थोड़ी ही देर में सब उस मकान के क़रीब पहुंच गए। मकान के दोनों तरफ लाशें पड़ीं थी जिनके जिस्मों से निकलता लहू कच्ची ज़मीन पर अंधेरे में भी फैलता हुआ नज़र आ रहा था।

"अंदर जा कर देखो तो ज़रा।" दादा ठाकुर ने अपने एक मुलाजिम से कहा____"कि इस घर का वो कौन सा मालिक है जिसने हमारे दुश्मनों को अपने घर में पनाह देने की जुर्रत की थी?"

दादा ठाकुर के कहने पर मुलाजिम फ़ौरन ही घर के अंदर चला गया। उसके जाने के बाद दादा ठाकुर आगे बढ़े और लाशों का मुआयना करने लगे। ज़ाहिर है उनके साथ बाकी लोग भी लाशों का मुआयना करने लगे थे।

इधर कुछ ही देर में गांव के लोग भी एक एक कर के अपने अपने घरों से बाहर निकल आए थे। कुछ लोगों के हाथ में लालटेनें थी जिसकी रोशनी अंधेरे को दूर कर रही थी। लालटेन की रोशनी में जिसके भी चेहरे दिख रहे थे उन सबके चेहरों में दहशत के भाव थे। तभी मुलाजिम अंदर से बाहर आया। उसने एक आदमी को पकड़ रखा था। मारे ख़ौफ के उस आदमी का चेहरा पीला ज़र्द पड़ा हुआ था। उसके पीछे रोते बिलखते एक औरत भी आ गई और साथ में उसके कुछ बच्चे भी।

"मालिक ये है वो आदमी।" मुलाजिम ने दादा ठाकुर से कहा____"जिसने इन लोगों को अपने घर में पनाह देने की जुर्रत की थी।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए दादा ठाकुर।" वो आदमी दादा ठाकुर के पैरों में ही लोट गया, रोते बिलखते हुए बोला____"लेकिन ऐसा मैंने खुद जान बूझ के नहीं किया था बल्कि ये लोग ज़बरदस्ती मेरे घर में घुसे थे और मुझे धमकी दी थी कि अगर मैंने उनके बारे में किसी को कुछ बताया तो ये लोग मेरे बच्चों को जान से मार डालेंगे।"

"कब आए थे ये लोग तुम्हारे घर में?" अर्जुन सिंह ने थोड़ी नरमी से पूछा तो उसने कहा____"कल रात को आए थे मालिक। पूरा गांव सोया पड़ा था। मेरी एक गाय शाम को घर नहीं आई थी इस लिए उसे देखने के लिए मैं घर से बाहर निकला था कि तभी ये लोग मेरे सामने आ धमके थे। बस उसके बाद मुझे वही करना पड़ा जिसके लिए इन्होंने मुझे मजबूर किया था। मुझे माफ़ कर दीजिए मालिक। मैं अपने बच्चों की क़सम खा के कहता हूं कि मैंने आपसे कोई गद्दारी नहीं की है।"

"मेरा ख़याल है कि ये सच बोल रहा है ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने दादा ठाकुर की तरफ देखते हुए कहा____"इस सबमें यकीनन इसका कोई दोष नहीं है।"

"ठीक है।" दादा ठाकुर ने सपाट लहजे में उस आदमी की तरफ देखते हुए कहा____"हम तुम पर यकीन करते हैं। ख़ैर ज़रा अंदर से लालटेन ले कर तो आओ।"

"जी अभी लाया मालिक।" जान बची लाखों पाए वाली बात सोच कर उस आदमी ने राहत की सांस ली और फ़ौरन ही अंदर भागता हुआ गया। कुछ ही पलों में लालटेन ले कर वो दादा ठाकुर के सामने हाज़िर हो गया।

दादा ठाकुर ने उसके हाथ से लालटेन ली और उसकी रोशनी में लाशों का मुआयना करने लगे। घर से बाहर कुछ ही दूरी पर एक लाश पड़ी थी। दादा ठाकुर ने देखा वो लाश साहूकार शिव शंकर की थी। अभी दादा ठाकुर उसे देख ही रहे थे कि तभी वो आदमी ज़ोर से चिल्लाया जिसकी वजह से सब के सब चौंके और साथ ही सावधान हो कर बंदूखें तान लिए।

दादा ठाकुर ने पलट कर देखा, वो आदमी अपने एक मवेशी के पास बैठा रो रहा था। भैंस का एक बच्चा था वो जो किसी की गोली का शिकार हो गया था और अब वो ज़िंदा नहीं था। वो आदमी उसी को देख के रोए जा रहा था। उसके पीछे उसकी बीवी भी आंसू बहा रही थी। ये देख दादा ठाकुर वापस पलटे और फिर से लाशों का मुआयना करने लगे।

कुछ ही देर में सभी लाशों का मुआयना कर लिया गया। वो क़रीब आठ लाशें थीं। शिनाख्त से पता चला कि वो लाशें क्रमशः शिव शंकर, मणि शंकर, हरि शंकर तथा उनके बेटों की थी। मणि शंकर अपने दोनों बेटों के साथ स्वर्ग सिधार गया था। हरि शंकर और उसका बड़ा बेटा मानिकचंद्र स्वर्ग सिधार गए थे जबकि रूपचंद्र सिंह लाश के रूप में नहीं मिला, यानि वो ज़िंदा था और भागने में कामयाब हो गया था। शिव शंकर और उसका इकलौता बेटा गौरव सिंह मर चुके थे। इधर लाशों में गौरी शंकर तो नहीं मिला लेकिन उसके इकलौते बेटे रमन सिंह की लाश ज़रूर मिली। सभी लाशें बड़ी ही भयानक लग रहीं थी।

अभी सब लोग लाशों की तरफ ही देख रहे थे कि तभी वातावरण में धाएं की आवाज़ से गोली चली। गोली चलते ही एक इंसानी चीख फिज़ा में गूंज उठी। वो इंसानी चीख दादा ठाकुर के पास ही खड़े उनके सबसे छोटे साले अमर सिंह राणा की थी। उनके बाएं बाजू में गोली लगी थी। इधर गोली चलने की आवाज़ सुनते ही गांव में एक बार फिर से हड़कंप मच गया। जो लोग अपने अपने घरों से बाहर निकल आए थे वो सब चीखते चिल्लाते हुए अपने अपने घरों के अंदर भाग लिए। इधर मामा को गोली लगते ही सब के सब सतर्क हो गए और जिस तरफ से गोली चलने की आवाज़ आई थी उस तरफ ताबड़तोड़ फायरिंग करने लगे।

"तुम ठीक तो हो न अमर?" दादा ठाकुर ने अपने सबसे छोटे साले अमर को सम्हालते हुए बोले____"तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं न?"

"मैं बिल्कुल ठीक हूं जीजा जी।" अमर सिंह ने दर्द को सहते हुए कहा____"आप मेरी फ़िक्र मत कीजिए और दुश्मन को ख़त्म कीजिए।"

"वो ज़िंदा नहीं बचेगा अमर।" दादा ठाकुर ने सख़्त भाव से कहने के साथ ही बाकी लोगों की तरफ देखते हुए हुकुम दिया____"सब जगह खोजो उस नामुराद को। बच के निकलना नहीं चाहिए।"

दादा ठाकुर के हुकुम पर सभी मुलाजिम फ़ौरन ही उस तरफ दौड़ पड़े जिधर से गोली चली थी। इधर दादा ठाकुर ने फ़ौरन ही अपने कंधे पर रखे गमछे को फाड़ा और उसे अमर सिंह की बाजू में बांध दिया ताकि खून ज़्यादा न बहे।

"हमारा ख़याल है कि हमें अब यहां से निकलना चाहिए जीजा श्री।" चाची के छोटे भाई अवधराज सिंह ने कहा____"हमारा जो दुश्मन यहां से निकल भागा है वो कहीं से भी छुप कर हमें नुकसान पहुंचा सकता है। मुलाजिमों को आपने उन्हें खोजने का हुकुम दे ही दिया है तो वो लोग उन्हें खोज लेंगे। हवेली चल कर अमर भाई साहब की बाजू से गोली निकालना बेहद ज़रूरी है वरना ज़हर फैल जाएगा तो और भी समस्या हो जाएगी।"

"अवधराज जी सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"यहां से अब निकलना ही हमारे लिए उचित होगा।"

"ठीक है।" दादा ठाकुर ने कहा____"मगर यहां पर पड़ी इन लाशों को भी तो यहां से हटाना पड़ेगा वरना इन लाशों को देख कर गांव वाले ख़ौफ से ही मर जाएंगे।"

"हां सही कहा आपने।" अर्जुन सिंह ने सिर हिलाया____"इन लाशों को ठिकाने लगाना भी ज़रूरी है। अगर पुलिस विभाग को पता चला तो मुसीबत हो जाएगी।"

"पुलिस विभाग को तो देर सवेर पता चल ही जाएगा।" दादा ठाकुर ने कहा___"मगर इसकी हमें कोई फ़िक्र नहीं है। हम तो ये सोच रहे हैं कि लाशों को ऐसी जगह रखा जाए जिससे इन गांव वालों को भी समस्या ना हो और साथ ही हमारे बचे हुए दुश्मन भी हमारी पकड़ में आ जाएं।"

"ऐसा कैसे होगा भला?" अर्जुन सिंह के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।
"इन लाशों का क्रिया कर्म करने के लिए इनके घर वाले इन लाशों को लेने तो आएंगे ही।" दादा ठाकुर ने कहा____"अब ऐसा तो होगा नहीं कि मौत के ख़ौफ से वो लोग इनका अंतिम संस्कार ही नहीं करेंगे। इसी लिए हमने कहा है कि लाशों को ऐसी जगह रखा जाए जहां से इनके चाहने वालों को इन्हें ले जाने में कोई समस्या ना हो किंतु साथ ही वो आसानी से हमारी पकड़ में भी आ जाएं।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर अभी अर्जुन सिंह कुछ कहने ही वाला था कि तभी कुछ मुलाजिम दादा ठाकुर के पास आ गए। उन्होंने बताया कि गोली चलाने वाले दुश्मन का कहीं कोई अता पता नहीं है। दादा ठाकुर ने उन्हें हुकुम दिया कि वो सब लाशों को बैलगाड़ी में लाद कर ले चलें।

✮✮✮✮

"रुक जाओ वरना गोली मार दूंगा।" अंधेरे में भागते एक साए को देख मैंने उस पर रिवॉल्वर तानते हुए कहा तो वो साया एकदम से अपनी जगह पर ठिठक गया।

एक तो अंधेरा दूसरे उसने अपने बदन पर काले रंग की शाल ओढ़ रखी थी इस लिए उसकी परछाईं मुझे धुंधली सी ही नज़र आ रही थी। उधर मेरी बात सुनते ही वो ठिठक गया था किंतु पलट कर मेरी तरफ देखने की जहमत नहीं की उसने। मैं पूरी सतर्कता से उसकी तरफ बढ़ा तो एकदम से उसमें हलचल हुई।

"तुम्हारी ज़रा सी भी हरकत तुम्हारी मौत का सबब बन सकती है।" मैंने सख़्त भाव से उसे चेतावनी देते हुए कहा____"इस लिए अगर अपनी ज़िंदगी से बेपनाह मोहब्बत है तो अपनी जगह पर ही बिना हिले डुले खड़े रहो।"

मगर बंदे पर मेरी चेतावनी का कोई असर न हुआ। वो अपनी जगह से हिला ही नहीं बल्कि पलट कर उसने मुझ पर गोली भी चला दी। पलक झपकते ही मेरी जीवन लीला समाप्त हो सकती थी किंतु ये मेरी अच्छी किस्मत ही थी कि उसका निशाना चूक गया और गोली मेरे बाजू से निकल गई। एक पल के लिए तो मेरी रूह तक थर्रा गई थी किंतु फिर मैं ये सोच कर जल्दी से सम्हला कि कहीं इस बार उसका निशाना सही जगह पर न लग जाए और अगले ही पल मेरी लाश कच्ची ज़मीन पर पड़ी नज़र आने लगे। इससे पहले कि वो मुझ पर फिर से गोली चलाता मैंने रिवॉल्वर का ट्रिगर दबा दिया। वातावरण में धाएं की तेज़ आवाज़ गूंजी और साथ ही उस साए के हलक से दर्द में डूबी चीख भी।

गोली साए की जांघ में लगी थी और ये मैंने जान बूझ कर ही किया था क्योंकि मैं उसे जान से नहीं मारना चाहता था। मैं जानना चाहता था कि आख़िर वो है कौन जो रात के इस वक्त इस तरह से भागता चला जा रहा था और मेरी चेतावनी के बावजूद उसने मुझ पर गोली चला दी थी। बहरहाल, जांघ में गोली लगने से वो लहराया और ज़मीन पर गिर पड़ा। पिस्तौल उसके हाथ से निकल कर अंधेरे में कहीं गिर गया था। उसने दर्द को सहते हुए ज़मीन में अपने हाथ चलाए। शायद वो अपनी पिस्तौल ढूंढ रहा था। ये देख कर मैं फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा और उसके सिर पर किसी जिन्न की तरह खड़ा हो गया।

"मुद्दत हुई पर्दानशीं की पर्दादारी देखते हुए।" मैंने शायराना अंदाज़ में कहा____"हसरत है कि अब दीदार-ए-जमाले-यार हो।"

कहने के साथ ही मैंने हाथ बढ़ा कर एक झटके में उसके सिर से शाल को उलट दिया। मेरे ऐसा करते ही उसने बड़ी तेज़ी से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। ये देख कर मैं मुस्कुराया और अगले ही पल मैंने अपना एक पैर उसकी जांघ के उस हिस्से में रख कर दबा दिया जहां पर गोली लगने से ज़ख्म बन गया था। ज़ख्म में पैर रख कर जैसे ही मैंने दबाया तो वो साया दर्द से हलक फाड़ कर चिल्ला उठा।

"शायद तुमने ठीक से हमारा शेर नहीं सुना।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"अगर सुना होता तो हमारी नज़रों से अपनी मोहिनी सूरत यूं नहीं छुपाते।"

कहने के साथ ही मैंने अपने पैर को फिर से उसके ज़ख्म पर दबाया तो वो एक बार फिर से दर्द से चिल्ला उठा। इस बार उसके चिल्लाने से मुझे उसकी आवाज़ जानी पहचानी सी लगी। उधर वो अभी भी अपना चेहरा दूसरी तरफ किए दर्द से छटपटाए जा रहा था और मैं सोचे जा रहा था कि ये जानी पहचानी आवाज़ किसकी हो सकती है? मुझे सोचने में ज़्यादा समय नहीं लगा। बिजली की तरह मेरे ज़हन में उसका नाम उभर आया और इसके साथ ही मैं चौंक भी पड़ा।


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Pagal king

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अध्याय - 69
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उसका दूसरा साथी जब उसके ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने पर भी न जागा तो वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसका अपना जिस्म ये सोच कर ठंडा सा पड़ गया कि कहीं उसका साथी मर तो नहीं गया? हकबका कर वो एक तरफ को भागा और जल्दी ही हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास पहुंच गया। मुख्य द्वार पर खड़े दरबान को उसने हांफते हुए सारी बात बताई तो उस दरबान के भी होश उड़ गए। उसने फ़ौरन ही अंदर जा कर बैठक में बैठे भैया के चाचा ससुर को सारी बात बताई तो बैठक में बैठे बाकी सब भी बुरी तरह उछल पड़े।


अब आगे....



उस वक्त रात के साढ़े बारह बज रहे थे जब दादा ठाकुर का काफ़िला पास के ही एक गांव माधोपुर के पास पहुंचा। गांव से कुछ दूर ही काफ़िले को रोक कर सब अपनी अपनी गाड़ियों से उतरे। कुल तीन जीपें थी। एक दादा ठाकुर की, दूसरी अर्जुन सिंह की और तीसरी मेरे नाना जी की। तीनों जीपों में आदमी सवार हो कर आए थे। किसी के हाथ में बंदूक, किसी के हाथ में पिस्तौल, किसी के हाथ में लट्ठ तो किसी के हाथ में तलवार। दादा ठाकुर के निर्देश पर सब के सब एक लंबा घेरा बना कर गांव के अंदर की तरफ उस दिशा में बढ़ चले जिधर साहूकारों के मौजूद होने की ख़बर मुखबिरों ने दादा ठाकुर को दी थी।

आधी रात के वक्त पूरे गांव में शमशान की तरह सन्नाटा फैला हुआ था। चारो तरफ अंधेरा तो था किंतु इतना भी नहीं कि किसी को कुछ दिखे ही न। आसमान में हल्का सा चांद था जिसकी मध्यम रोशनी धरती पर आ रही थी, ये अलग बात है कि क्षितिज पर काले बादलों की वजह से कभी कभी वो चांद छुप जाता था जिसकी वजह से उसके द्वारा आने वाली रोशनी लोप भी हो जाती थी।

"मैं अब भी आपसे यही कहूंगा ठाकुर साहब कि थोड़ा होश से काम लीजिएगा।" दादा ठाकुर के बगल से ही चल रहे अर्जुन सिंह ने धीमें स्वर में कहा____"कहीं ऐसा न हो कि आवेश और गुस्से में किए गए अपने कृत्य से बाद में आपको पछतावा हो।"

"हमें अब किसी बात का पछतावा नहीं होने वाला अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने सख़्त भाव से कहा____"बल्कि हमें तो अब इस बात का बेहद अफ़सोस ही नहीं बल्कि दुख भी है कि हमने आज से पहले होश क्यों नहीं गंवाया था? अगर हमने इसके पहले ही पूरी सख़्ती से हर काम किया होता तो आज हमें ये दिन देखना ही नहीं पड़ता। हमारे दुश्मनों ने हमारी नरमी का फ़ायदा ही नहीं उठाया है बल्कि उसका मज़ाक भी बनाया है। इस लिए अब हमें किसी बात के लिए होश से काम नहीं लेना है बल्कि अब तो दुश्मनों के साथ वैसा ही सुलूक किया जाएगा जैसा कि उनके साथ होना चाहिए।"

"मैं आपकी बातों से इंकार नहीं कर रहा ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"यही वजह है कि इस वक्त मैं यहां आपके साथ हूं। मैं तो बस ये कह रहा हूं कि कुछ भी करने से पहले एक बार आपको उन लोगों से भी पूछना चाहिए कि ऐसा उन्होंने क्यों किया है?"

"पूछने की ज़रूरत ही नहीं है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने आवेशयुक्त भाव से कहा____"हमें अच्छी तरह पता है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया है। तुम शायद भूल गए हो लेकिन हम नहीं भूले।"

"क्या मतलब??" अर्जुन सिंह ने उलझन पूर्ण भाव से दादा ठाकुर की तरफ देखा____"मैं कुछ समझा नहीं। आप किस चीज़ की बात कर रहे हैं?"

"बहुत पुराना मामला है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे पिता जी के ज़माने का। अगर हम ये कहें तो ग़लत न होगा कि साहूकारों का मन मुटाव हमारे पिता जी की वजह से ही शुरू हुआ था। हमने एक बार तुम्हें बताया तो था इस बारे में।"

"ओह! हां याद आया।" अर्जुन सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो क्या साहूकार लोग अभी भी उसी बात को लिए बैठे हैं?"

"कुछ ज़ख्म इंसान को कभी चैन और सुकून से नहीं बैठने देते।" दादा ठाकुर ने कहा____"पिता जी ने उस समय भले ही सब कुछ ठीक कर के मामले को रफा दफा कर दिया था मगर सच तो ये है कि वो मामला साहूकारों के लिए कभी रफा दफा हुआ ही नहीं। उस समय पिता जी के ख़ौफ के चलते भले ही साहूकारों ने कोई ग़लत क़दम नहीं उठाया था मगर वर्षों बाद अब उठाया है। हमें हैरत है कि ऐसा कोई क़दम उठाने में उन लोगों ने इतना समय क्यों लगाया मगर समझ सकते हैं कि हर चीज़ अपने तय वक्त पर ही होती है।"

"आपका मतलब है कि इतने सालों बाद ही उनके द्वारा ऐसा करने का वक्त आया?" अर्जुन सिंह ने बेयकीनी से दादा ठाकुर की तरफ देखा____"पर सोचने वाली बात है कि क्या उन्हें ऐसा करने के बाद अपने अंजाम की कोई परवाह न रही होगी?"

"इंसान के सब्र का घड़ा जब भर जाता है तो उसकी नियति कुछ ऐसी ही होती है मित्र अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने कहा____"जैसे इस वक्त हम बदले की भावना में जलते हुए उन सबको ख़ाक में मिलाने के लिए उतावले हो रहे हैं उसी तरह उन लोगों की भी यही दशा रही होगी।"

अर्जुन सिंह अभी कुछ कहने ही वाला था कि दादा ठाकुर ने चुप रहने का इशारा किया और पिस्तौल लिए आगे बढ़ चले। सभी गांव में दाखिल हो चुके थे। हमेशा की तरह बिजली गुल थी इस लिए किसी भी घर में रोशनी नहीं दिख रही थी। हल्के अंधेरे में डूबे गांव के घर भूत की तरह दिख रहे थे। दादा ठाकुर की नज़र घूमते हुए एक मकान पर जा कर ठहर गई। मकान कच्चा ही था जिसके बाहर क़रीब पच्चीस तीस गज का मैदान था। उस मैदान के एक तरफ कुछ मवेशी बंधे हुए थे।

"वो रहा मकान।" दादा ठाकुर ने उंगली से इशारा करते हुए बाकी सबकी तरफ नज़र घुमाई____"तुम सब मकान को चारो तरफ से घेर लो। उनमें से कोई भी बच के निकलना नहीं चाहिए।"

अंधेरे में सभी ने सिर हिलाया और मकान की तरफ सावधानी से बढ़ चले। दादा ठाकुर के साथ में अर्जुन सिंह और मामा लोग थे जबकि बाकी हवेली के मुलाजिम लोग दूसरे छोर पर थे। उन लोगों के साथ में भैया के साले वीरेंद्र सिंह थे और जगताप चाचा का एक साला भी।

सब के सब मकान की तरफ बढ़ ही रहे थे कि तभी अंधेरे में एक तरफ से एक साया भागता हुआ उस मकान के पास पहुंचा और शोर करते हुए अंदर घुस गया। ये देख दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि बाकी लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े। दादा ठाकुर जल्दी ही सम्हले और सबको सावधान रहने को कहा और साथ ही आने वाली स्थिति से निपटने के लिए भी।

वातावरण में एकाएक ही शोर गुल गूंज उठा और मकान के अंदर से एक एक कर के लोग बाहर की तरफ निकल कर इधर उधर भागने लगे। हल्के अंधेरे में भी दादा ठाकुर ने भागने वालों को पहचान लिया। वो सब गांव के साहूकार ही थे। उन्हें भागते देख दादा ठाकुर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्हें ये सोच कर भी गुस्सा आया कि वो सब बुजदिल और कायरों की तरह अपनी जान बचा कर भाग रहे हैं जबकि उन्हें तो दादा ठाकुर का सामना करना चाहिए था।

इससे पहले कि वो सब अंधेरे में कहीं गायब हो जाते दादा ठाकुर ने सबको उन्हें खत्म कर देने का हुकुम सुना दिया। दादा ठाकुर का हुकुम मिलते ही वातावरण में बंदूखें गरजने लगीं। अगले ही पल वातावरण इंसानी चीखों से गूंज उठा। देखते ही देखते पूरे गांव में हड़कंप मच गया। सोए हुए लोगों की नींद में खलल पड़ गया और सबके सब ख़ौफ का शिकार हो गए। इधर दादा ठाकुर के साथ साथ अर्जुन सिंह और मामा लोगों की बंदूकें गरजती रहीं। जब बंदूक से निकली गोलियों से फिज़ा में गूंजने वाली चीखें शांत पड़ गईं तो दादा ठाकुर के हुकुम पर बंदूक से गोलियां निकलनी बंद हो गईं।

जब काफी देर तक फिज़ा में गोलियां चलने की आवाज़ नहीं गूंजी तो ख़ौफ से भरे गांव के लोगों ने राहत की सांस ली और अपने अपने घरों से निकलने की जहमत उठाई। लगभग सभी घरों के अंदर कुछ ही देर में रोशनी होती नज़र आने लगी। इधर दादा ठाकुर के कहने पर सब मकान की तरफ बढ़ चले।

"सम्हल कर ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"दुश्मन अंधेरे में कहीं छुपा भी हो सकता है और वो आप पर वार भी कर सकता है।"

"यही तो हम चाहते हैं।" दादा ठाकुर आगे बढ़ते हुए बोले____"हम चाहते हैं कि हमारे जिगर के टुकड़ों को छिप कर वार करने वाले एक बार हमारे सामने आ कर वार करें। हम भी तो देखें कि वो कितने बड़े मर्द हैं और कितना बड़ा जिगर रखते हैं।"

थोड़ी ही देर में सब उस मकान के क़रीब पहुंच गए। मकान के दोनों तरफ लाशें पड़ीं थी जिनके जिस्मों से निकलता लहू कच्ची ज़मीन पर अंधेरे में भी फैलता हुआ नज़र आ रहा था।

"अंदर जा कर देखो तो ज़रा।" दादा ठाकुर ने अपने एक मुलाजिम से कहा____"कि इस घर का वो कौन सा मालिक है जिसने हमारे दुश्मनों को अपने घर में पनाह देने की जुर्रत की थी?"

दादा ठाकुर के कहने पर मुलाजिम फ़ौरन ही घर के अंदर चला गया। उसके जाने के बाद दादा ठाकुर आगे बढ़े और लाशों का मुआयना करने लगे। ज़ाहिर है उनके साथ बाकी लोग भी लाशों का मुआयना करने लगे थे।

इधर कुछ ही देर में गांव के लोग भी एक एक कर के अपने अपने घरों से बाहर निकल आए थे। कुछ लोगों के हाथ में लालटेनें थी जिसकी रोशनी अंधेरे को दूर कर रही थी। लालटेन की रोशनी में जिसके भी चेहरे दिख रहे थे उन सबके चेहरों में दहशत के भाव थे। तभी मुलाजिम अंदर से बाहर आया। उसने एक आदमी को पकड़ रखा था। मारे ख़ौफ के उस आदमी का चेहरा पीला ज़र्द पड़ा हुआ था। उसके पीछे रोते बिलखते एक औरत भी आ गई और साथ में उसके कुछ बच्चे भी।

"मालिक ये है वो आदमी।" मुलाजिम ने दादा ठाकुर से कहा____"जिसने इन लोगों को अपने घर में पनाह देने की जुर्रत की थी।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए दादा ठाकुर।" वो आदमी दादा ठाकुर के पैरों में ही लोट गया, रोते बिलखते हुए बोला____"लेकिन ऐसा मैंने खुद जान बूझ के नहीं किया था बल्कि ये लोग ज़बरदस्ती मेरे घर में घुसे थे और मुझे धमकी दी थी कि अगर मैंने उनके बारे में किसी को कुछ बताया तो ये लोग मेरे बच्चों को जान से मार डालेंगे।"

"कब आए थे ये लोग तुम्हारे घर में?" अर्जुन सिंह ने थोड़ी नरमी से पूछा तो उसने कहा____"कल रात को आए थे मालिक। पूरा गांव सोया पड़ा था। मेरी एक गाय शाम को घर नहीं आई थी इस लिए उसे देखने के लिए मैं घर से बाहर निकला था कि तभी ये लोग मेरे सामने आ धमके थे। बस उसके बाद मुझे वही करना पड़ा जिसके लिए इन्होंने मुझे मजबूर किया था। मुझे माफ़ कर दीजिए मालिक। मैं अपने बच्चों की क़सम खा के कहता हूं कि मैंने आपसे कोई गद्दारी नहीं की है।"

"मेरा ख़याल है कि ये सच बोल रहा है ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने दादा ठाकुर की तरफ देखते हुए कहा____"इस सबमें यकीनन इसका कोई दोष नहीं है।"

"ठीक है।" दादा ठाकुर ने सपाट लहजे में उस आदमी की तरफ देखते हुए कहा____"हम तुम पर यकीन करते हैं। ख़ैर ज़रा अंदर से लालटेन ले कर तो आओ।"

"जी अभी लाया मालिक।" जान बची लाखों पाए वाली बात सोच कर उस आदमी ने राहत की सांस ली और फ़ौरन ही अंदर भागता हुआ गया। कुछ ही पलों में लालटेन ले कर वो दादा ठाकुर के सामने हाज़िर हो गया।

दादा ठाकुर ने उसके हाथ से लालटेन ली और उसकी रोशनी में लाशों का मुआयना करने लगे। घर से बाहर कुछ ही दूरी पर एक लाश पड़ी थी। दादा ठाकुर ने देखा वो लाश साहूकार शिव शंकर की थी। अभी दादा ठाकुर उसे देख ही रहे थे कि तभी वो आदमी ज़ोर से चिल्लाया जिसकी वजह से सब के सब चौंके और साथ ही सावधान हो कर बंदूखें तान लिए।

दादा ठाकुर ने पलट कर देखा, वो आदमी अपने एक मवेशी के पास बैठा रो रहा था। भैंस का एक बच्चा था वो जो किसी की गोली का शिकार हो गया था और अब वो ज़िंदा नहीं था। वो आदमी उसी को देख के रोए जा रहा था। उसके पीछे उसकी बीवी भी आंसू बहा रही थी। ये देख दादा ठाकुर वापस पलटे और फिर से लाशों का मुआयना करने लगे।

कुछ ही देर में सभी लाशों का मुआयना कर लिया गया। वो क़रीब आठ लाशें थीं। शिनाख्त से पता चला कि वो लाशें क्रमशः शिव शंकर, मणि शंकर, हरि शंकर तथा उनके बेटों की थी। मणि शंकर अपने दोनों बेटों के साथ स्वर्ग सिधार गया था। हरि शंकर और उसका बड़ा बेटा मानिकचंद्र स्वर्ग सिधार गए थे जबकि रूपचंद्र सिंह लाश के रूप में नहीं मिला, यानि वो ज़िंदा था और भागने में कामयाब हो गया था। शिव शंकर और उसका इकलौता बेटा गौरव सिंह मर चुके थे। इधर लाशों में गौरी शंकर तो नहीं मिला लेकिन उसके इकलौते बेटे रमन सिंह की लाश ज़रूर मिली। सभी लाशें बड़ी ही भयानक लग रहीं थी।

अभी सब लोग लाशों की तरफ ही देख रहे थे कि तभी वातावरण में धाएं की आवाज़ से गोली चली। गोली चलते ही एक इंसानी चीख फिज़ा में गूंज उठी। वो इंसानी चीख दादा ठाकुर के पास ही खड़े उनके सबसे छोटे साले अमर सिंह राणा की थी। उनके बाएं बाजू में गोली लगी थी। इधर गोली चलने की आवाज़ सुनते ही गांव में एक बार फिर से हड़कंप मच गया। जो लोग अपने अपने घरों से बाहर निकल आए थे वो सब चीखते चिल्लाते हुए अपने अपने घरों के अंदर भाग लिए। इधर मामा को गोली लगते ही सब के सब सतर्क हो गए और जिस तरफ से गोली चलने की आवाज़ आई थी उस तरफ ताबड़तोड़ फायरिंग करने लगे।

"तुम ठीक तो हो न अमर?" दादा ठाकुर ने अपने सबसे छोटे साले अमर को सम्हालते हुए बोले____"तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं न?"

"मैं बिल्कुल ठीक हूं जीजा जी।" अमर सिंह ने दर्द को सहते हुए कहा____"आप मेरी फ़िक्र मत कीजिए और दुश्मन को ख़त्म कीजिए।"

"वो ज़िंदा नहीं बचेगा अमर।" दादा ठाकुर ने सख़्त भाव से कहने के साथ ही बाकी लोगों की तरफ देखते हुए हुकुम दिया____"सब जगह खोजो उस नामुराद को। बच के निकलना नहीं चाहिए।"

दादा ठाकुर के हुकुम पर सभी मुलाजिम फ़ौरन ही उस तरफ दौड़ पड़े जिधर से गोली चली थी। इधर दादा ठाकुर ने फ़ौरन ही अपने कंधे पर रखे गमछे को फाड़ा और उसे अमर सिंह की बाजू में बांध दिया ताकि खून ज़्यादा न बहे।

"हमारा ख़याल है कि हमें अब यहां से निकलना चाहिए जीजा श्री।" चाची के छोटे भाई अवधराज सिंह ने कहा____"हमारा जो दुश्मन यहां से निकल भागा है वो कहीं से भी छुप कर हमें नुकसान पहुंचा सकता है। मुलाजिमों को आपने उन्हें खोजने का हुकुम दे ही दिया है तो वो लोग उन्हें खोज लेंगे। हवेली चल कर अमर भाई साहब की बाजू से गोली निकालना बेहद ज़रूरी है वरना ज़हर फैल जाएगा तो और भी समस्या हो जाएगी।"

"अवधराज जी सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"यहां से अब निकलना ही हमारे लिए उचित होगा।"

"ठीक है।" दादा ठाकुर ने कहा____"मगर यहां पर पड़ी इन लाशों को भी तो यहां से हटाना पड़ेगा वरना इन लाशों को देख कर गांव वाले ख़ौफ से ही मर जाएंगे।"

"हां सही कहा आपने।" अर्जुन सिंह ने सिर हिलाया____"इन लाशों को ठिकाने लगाना भी ज़रूरी है। अगर पुलिस विभाग को पता चला तो मुसीबत हो जाएगी।"

"पुलिस विभाग को तो देर सवेर पता चल ही जाएगा।" दादा ठाकुर ने कहा___"मगर इसकी हमें कोई फ़िक्र नहीं है। हम तो ये सोच रहे हैं कि लाशों को ऐसी जगह रखा जाए जिससे इन गांव वालों को भी समस्या ना हो और साथ ही हमारे बचे हुए दुश्मन भी हमारी पकड़ में आ जाएं।"

"ऐसा कैसे होगा भला?" अर्जुन सिंह के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।
"इन लाशों का क्रिया कर्म करने के लिए इनके घर वाले इन लाशों को लेने तो आएंगे ही।" दादा ठाकुर ने कहा____"अब ऐसा तो होगा नहीं कि मौत के ख़ौफ से वो लोग इनका अंतिम संस्कार ही नहीं करेंगे। इसी लिए हमने कहा है कि लाशों को ऐसी जगह रखा जाए जहां से इनके चाहने वालों को इन्हें ले जाने में कोई समस्या ना हो किंतु साथ ही वो आसानी से हमारी पकड़ में भी आ जाएं।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर अभी अर्जुन सिंह कुछ कहने ही वाला था कि तभी कुछ मुलाजिम दादा ठाकुर के पास आ गए। उन्होंने बताया कि गोली चलाने वाले दुश्मन का कहीं कोई अता पता नहीं है। दादा ठाकुर ने उन्हें हुकुम दिया कि वो सब लाशों को बैलगाड़ी में लाद कर ले चलें।

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"रुक जाओ वरना गोली मार दूंगा।" अंधेरे में भागते एक साए को देख मैंने उस पर रिवॉल्वर तानते हुए कहा तो वो साया एकदम से अपनी जगह पर ठिठक गया।

एक तो अंधेरा दूसरे उसने अपने बदन पर काले रंग की शाल ओढ़ रखी थी इस लिए उसकी परछाईं मुझे धुंधली सी ही नज़र आ रही थी। उधर मेरी बात सुनते ही वो ठिठक गया था किंतु पलट कर मेरी तरफ देखने की जहमत नहीं की उसने। मैं पूरी सतर्कता से उसकी तरफ बढ़ा तो एकदम से उसमें हलचल हुई।

"तुम्हारी ज़रा सी भी हरकत तुम्हारी मौत का सबब बन सकती है।" मैंने सख़्त भाव से उसे चेतावनी देते हुए कहा____"इस लिए अगर अपनी ज़िंदगी से बेपनाह मोहब्बत है तो अपनी जगह पर ही बिना हिले डुले खड़े रहो।"

मगर बंदे पर मेरी चेतावनी का कोई असर न हुआ। वो अपनी जगह से हिला ही नहीं बल्कि पलट कर उसने मुझ पर गोली भी चला दी। पलक झपकते ही मेरी जीवन लीला समाप्त हो सकती थी किंतु ये मेरी अच्छी किस्मत ही थी कि उसका निशाना चूक गया और गोली मेरे बाजू से निकल गई। एक पल के लिए तो मेरी रूह तक थर्रा गई थी किंतु फिर मैं ये सोच कर जल्दी से सम्हला कि कहीं इस बार उसका निशाना सही जगह पर न लग जाए और अगले ही पल मेरी लाश कच्ची ज़मीन पर पड़ी नज़र आने लगे। इससे पहले कि वो मुझ पर फिर से गोली चलाता मैंने रिवॉल्वर का ट्रिगर दबा दिया। वातावरण में धाएं की तेज़ आवाज़ गूंजी और साथ ही उस साए के हलक से दर्द में डूबी चीख भी।

गोली साए की जांघ में लगी थी और ये मैंने जान बूझ कर ही किया था क्योंकि मैं उसे जान से नहीं मारना चाहता था। मैं जानना चाहता था कि आख़िर वो है कौन जो रात के इस वक्त इस तरह से भागता चला जा रहा था और मेरी चेतावनी के बावजूद उसने मुझ पर गोली चला दी थी। बहरहाल, जांघ में गोली लगने से वो लहराया और ज़मीन पर गिर पड़ा। पिस्तौल उसके हाथ से निकल कर अंधेरे में कहीं गिर गया था। उसने दर्द को सहते हुए ज़मीन में अपने हाथ चलाए। शायद वो अपनी पिस्तौल ढूंढ रहा था। ये देख कर मैं फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा और उसके सिर पर किसी जिन्न की तरह खड़ा हो गया।

"मुद्दत हुई पर्दानशीं की पर्दादारी देखते हुए।" मैंने शायराना अंदाज़ में कहा____"हसरत है कि अब दीदार-ए-जमाले-यार हो।"

कहने के साथ ही मैंने हाथ बढ़ा कर एक झटके में उसके सिर से शाल को उलट दिया। मेरे ऐसा करते ही उसने बड़ी तेज़ी से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। ये देख कर मैं मुस्कुराया और अगले ही पल मैंने अपना एक पैर उसकी जांघ के उस हिस्से में रख कर दबा दिया जहां पर गोली लगने से ज़ख्म बन गया था। ज़ख्म में पैर रख कर जैसे ही मैंने दबाया तो वो साया दर्द से हलक फाड़ कर चिल्ला उठा।

"शायद तुमने ठीक से हमारा शेर नहीं सुना।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"अगर सुना होता तो हमारी नज़रों से अपनी मोहिनी सूरत यूं नहीं छुपाते।"

कहने के साथ ही मैंने अपने पैर को फिर से उसके ज़ख्म पर दबाया तो वो एक बार फिर से दर्द से चिल्ला उठा। इस बार उसके चिल्लाने से मुझे उसकी आवाज़ जानी पहचानी सी लगी। उधर वो अभी भी अपना चेहरा दूसरी तरफ किए दर्द से छटपटाए जा रहा था और मैं सोचे जा रहा था कि ये जानी पहचानी आवाज़ किसकी हो सकती है? मुझे सोचने में ज़्यादा समय नहीं लगा। बिजली की तरह मेरे ज़हन में उसका नाम उभर आया और इसके साथ ही मैं चौंक भी पड़ा।


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B
 
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