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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
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Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
ये दादा ठाकूर ने तो लगबग सभी साहुकारोंको स्वर्ग के दर्शन करा दिये
ये साली जानी पहचानी आवाज वाला कौन हो सकता है देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

blackdevilnmnm

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अध्याय - 68
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


अब तक....

कुंदनपुर नाम के गांव में चाची के पिता धर्मराज सिंह चौहान के पूर्वज भी ज़मींदार हुआ करते थे। आज के समय में जमींदारी तो नहीं है किंतु उनके विशाल भू भाग पर आज भी गांव के लोग मजदूरी कर के अपना जीवन यापन करते हैं। कुंदनपुर में एक प्राचीन देवी मंदिर है जहां पर हर साल नवरात्र के महीने में विशाल मेला लगता है। आस पास के गावों में जितने भी संपन्न ज़मींदार थे वो सब बड़े बड़े अवसरों पर बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित करते थे। ऐसे ही एक अवसर पर धर्मराज सिंह चौहान ने बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित किया था। बड़े दादा ठाकुर ने वहीं पर मेनका चाची को देखा था। मेनका चाची अपने नाम की तरह ही बेहद सुंदर थीं। बड़े दादा ठाकुर ने देर न करते हुए फ़ौरन ही धर्मराज से उनकी बेटी का हाथ अपने छोटे बेटे जगताप के लिए मांग लिया था। अब क्योंकि ऊपर वाला भी यही चाहता था इस लिए जल्दी ही मेनका चाची हवेली में छोटी बहू बन कर आ गईं।

तो दोस्तो ये था मेरे दोनों ननिहाल वालों का संक्षिप्त परिचय।


अब आगे....


"हालात बेहद ही ख़राब हो गए हैं बड़े भैया।" चिमनी के प्रकाश में नज़र आ रहे मणि शंकर के चेहरे की तरफ देखते हुए हरि शंकर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"दादा ठाकुर ने तो आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान भी करवा दिया है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर हमने खुद को उनके सामने समर्पण नहीं किया तो वो हमारे घर की बहू बेटियों के साथ बहुत बुरा सुलूक करेंगे।"

"हरि चाचा सही कह रहे हैं पिता जी।" चंद्रभान ने गंभीर भाव से कहा____"अगर हम अब भी इसी तरह छुपे बैठे रहे तो यकीनन बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा। हमें दादा ठाकुर के पास जा कर उन्हें ये बताना ही होगा कि उनके छोटे भाई और बड़े बेटे के साथ जो हुआ है उसके ज़िम्मेदार हम नहीं हैं।"

"हां बड़े भैया।" हरि शंकर ने कहा____"हमें अपनी सच्चाई तो बतानी ही चाहिए। ऐसे में तो वो यही समझते रहेंगे कि वो सब हमने किया है। अपनों को खोने का दुख जब बर्दास्त से बाहर हो जाता है तो परिणाम बहुत ही भयानक होता हैं। इस तरह से खुद को छुपा कर हम खुद ही अपने आपको उनकी नज़र में गुनहगार साबित कर रहे हैं। ये जो ऐलान उन्होंने करवाया है उसे हल्के में मत लीजिए। अगर हम सब फ़ौरन ही उनके सामने नहीं गए तो फिर कुछ भी सम्हाले नहीं सम्हलेगा।"

"मुझे तो आपका ये फ़ैसला और आपका ये कहना पहले ही ठीक नहीं लगा था पिता जी कि हम सब कहीं छुप जाएं।" चंद्रभान ने जैसे खीझते हुए कहा____"मुझे अभी भी समझ नहीं आ रहा कि ऐसा करने के लिए आपने क्यों कहा और फिर हम सब आपके कहे अनुसार यहां क्यों आ कर छुप गए? अगर हरि चाचा जी का ये कहना सही है कि हमने कुछ नहीं किया है तो हमें किसी से डर कर यूं एक साथ कहीं छुपने की ज़रूरत ही नहीं थी।"

"हम मानते हैं कि हमारा उस समय ऐसा करने का फ़ैसला कहीं से भी उचित नहीं था।" मणि शंकर ने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन मौजूदा हालात को देख कर हमें यही करना सही लगा था और ऐसा करने का कारण भी था।"

"भला ऐसा क्या कारण हो सकता है पिता जी?" चंद्रभान के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए, बोला____"मैं ये बिल्कुल भी मानने को तैयार नहीं हूं कि बिना किसी वजह के दादा ठाकुर हमारे साथ कुछ भी ग़लत कर देते।"

"यही तो तुम में ख़राबी है बेटे।" मणि शंकर ने सिर उठा कर चंद्रभान की तरफ देखा, फिर कहा____"तुम सिर्फ वर्तमान की बातों को देख कर कोई नतीजा निकाल रहे हो जबकि हम वर्तमान के साथ साथ अतीत की बातों को मद्दे नज़र रख कर भी सोच रहे हैं। हमारा गांव ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांव वाले भी जानते हैं कि हवेली वालों से हमारे संबंध कभी भी बेहतर नहीं रहे थे। अब अगर हमने अपने संबंधों को बेहतर बना लिया है तो ज़रूर इसके पीछे कोई न कोई ऐसी वजह ज़रूर हो सकती है जिसके बारे में बड़ी आसानी से हर कोई अंदाज़ा लगा सकता है। भले ही वो लोग अंदाज़ा ग़लत ही क्यों न लगाएं पर हम दोनों परिवारों की स्थिति के मद्दे नज़र हर किसी का ऐसा सोचना जायज़ भी है। यानि हर कोई यही सोचेगा कि हमने हवेली वालों से अपने संबंध इसी लिए बेहतर बनाए होंगे ताकि कभी मौका देख कर हम पीठ पर छूरा घोंप सकें। अब ज़रा सोचो कि अगर हर कोई हमारे बारे में ऐसी ही सोच रखता है तो ज़ाहिर है कि ऐसी ही सोच दादा ठाकुर और उसके परिवार वाले भी तो रखते ही होंगे। दादा ठाकुर के छोटे भाई और बड़े बेटे के साथ जो हुआ है उसे भले ही हमने नहीं किया है लेकिन हर व्यक्ति के साथ साथ हवेली वाले भी यही सोच बैठेंगे होंगे कि ऐसा हमने ही किया है। इंसान जब किसी चीज़ को सच मान लेता है तो फिर वो कोई दूसरा सच सुनने या जानने का इरादा नहीं रखता बल्कि ऐसे हालात में तो उसे बस बदला लेना ही दिखता है। अब सोचो कि अगर ऐसे में हम सब अपनी सफाई देने के लिए उनके सामने जाते तो क्या वो हमारी सच्चाई सुनने को तैयार होते? हमारा ख़याल है हर्गिज़ नहीं, बल्कि वो तो आव देखते ना ताव सीधा हम सबकी गर्दनें ही उड़ाना शुरू कर देते। यही सब सोच कर हमने ये फैसला लिया था कि ऐसे ख़तरनाक हालात में ऐसे व्यक्ति के सामने जाना बिल्कुल भी ठीक नहीं है जो हमारे द्वारा कुछ भी सुनने को तैयार ही न हो। हम जानते हैं कि इस वक्त वो इस सबकी वजह से बेहद दुखी हैं और बदले की आग में जल भी रहे हैं किंतु हम तभी उनके सामने जा सकते हैं जब उनके अंदर का आक्रोश या गुस्सा थोड़ा ठंडा हो जाए। कम से कम इतना तो हो ही जाए कि वो हमारी बातें सुनने की जहमत उठाएं।"

"तो क्या आपको लगता है कि आपके ऐसा करने से दादा ठाकुर का गुस्सा ठंडा हो जाएगा?" चंद्रभान ने मानों तंज करते हुए कहा____"जबकि मुझे तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता पिता जी। मैं ये मानता हूं कि हर किसी की तरह हवेली वाले भी हमारे संबंधों को सुधार लेने के बारे में ऐसा ही सब कुछ सोचते होंगे लेकिन माजूदा हालात में आपके ऐसा करने से उनकी वो सोच तो यकीन में ही बदल जाएगी। बदले की आग में झुलसता इंसान ऐसे में और भी ज़्यादा भयानक रूप ले लेता है। अगर उसी समय हम सब उनके पास जाते और उनसे अपनी सफाई देते तो ऐसा बिल्कुल नहीं हो जाता कि वो हम में से किसी की कोई बात सुने बिना ही हम सबको मार डालते। देर से ही सही लेकिन वो भी ये सोचते कि अगर हमने ही चाचा भतीजे की हत्या की होती तो अपनी जान को ख़तरे में डाल कर उनके पास नहीं आते।"

"चंद्र बिल्कुल सही कह रहा है बड़े भैया।" हरि शंकर ने सिर हिलाते हुए कहा____"उस समय हमें दादा ठाकुर के पास ही जाना चाहिए था। ऐसे में सिर्फ हवेली वाले ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांव वाले भी हमारे बारे में यही सोचते कि अगर हम ग़लत होते तो मरने के लिए दादा ठाकुर के पास नहीं आते बल्कि अपनी जान बचा कर कहीं भाग जाते। पर अब, अब तो हमने खुद ही ऐसा कर दिया है कि उन्हें हमें ही हत्यारा समझना है और ग़लत क़रार देना है। सच तो ये है बड़े भैया कि पहले से कहीं ज़्यादा बद्तर हालातों में घिर गए हैं हम सब और इससे भी ज़्यादा बुरा तब हो जाएगा जब हम में से कोई भी उनके द्वारा ऐसा ऐलान करवाने पर भी उनके सामने खुद को समर्पण नहीं करेगा।"

"वैसे देखा जाए तो बड़े शर्म की बात हो गई है हरि भैया।" शिव शंकर ने कुछ सोचते हुए कहा____"हम सभी मर्द लोग अपनी अपनी जान बचाने के चक्कर में यहां आ कर छुप के बैठ गए और वहां घर में अपनी बहू बेटियों को हम दादा ठाकुर के क़हर का शिकार बनने के लिए छोड़ आए। वो भी सोचती होंगी कि कैसे कायर और नपुंसक लोग हैं हमारे घर के सभी मर्द। इतना ही नहीं बल्कि ऐसे में तो उन लोगों ने भी यही मान लिया होगा कि हमने ही जगताप और अभिनव की हत्या की है और अब अपनी जान जाने के डर से कहीं छुप गए हैं। जीवन में पहली बार मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं सच में ही कायर और नपुंसक हूं।"

"अगर तुमसे ये सब नहीं सहा जा रहा।" मणि शंकर ने नाराज़गी वाले लहजे में कहा____"तो चले जाओ यहां से और दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण कर दो।"

"अकेला तो कोई भी खुद को समर्पण करने नहीं जाएगा बड़े भैया।" शिव शंकर ने कहा____"बल्कि हम सभी को जाना पड़ेगा। दादा ठाकुर का ऐलान तो हम सबने सुन ही लिया है। अब अगर हमें अपने घर की बहू बेटियों को सही सलामत रखना है तो वही करना पड़ेगा जो वो चाहते हैं।"

"बिल्कुल।" गौरी शंकर ने जैसे सहमति जताते हुए कहा____"हम सबको कल सुबह ही अपने गांव जा कर दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण करना होगा। मेरा ख़याल है दादा ठाकुर के अंदर का आक्रोश अब तक थोड़ा बहुत तो शांत हो ही गया होगा। उनके जान पहचान वालों ने यकीनन उन्हें ऐसे वक्त में धैर्य और संयम से काम लेने की सलाह दी होगी। वैसे, बड़े भैया ने इस तरह का फ़ैसला ले कर भी ग़लत नहीं किया था। उस वक्त यकीनन यही करना बेहतर था और यही बातें हम दादा ठाकुर से भी कह सकते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि अब वो सबके सामने हमारी बातें पूरे धैर्य के साथ सुनेंगे और उन पर विचार भी करेंगे।"

"और तो सब ठीक है।" पास में ही खड़े रूपचंद्र ने झिझकते हुए कहा____"लेकिन उस वैभव का क्या? मान लिया कि दादा ठाकुर आप सबकी बातों को धैर्य से सुनने के बाद आपकी बातों पर यकीन कर लेंगे मगर क्या वैभव भी यकीन कर लेगा? आप सब तो जानते ही हैं कि वो किस तरह का इंसान है। अगर उसने हमारे साथ कुछ उल्टा सीधा किया तब क्या होगा?"

"मुझे लगता है कि तुम बेवजह ही उसके लिए चिंतित हो रहे हो।" हरि शंकर ने कहा____"जबकि हम सबने ये भली भांति देखा है कि पिछले कुछ समय से उसका बर्ताव पहले की अपेक्षा आश्चर्यजनक रूप से बेहतर नज़र आया है। वैसे भी अब वो दादा ठाकुर के किसी भी फ़ैसले के खिलाफ़ जाने की हिमाकत नहीं करेगा।"

"अगर ऐसा ही हो तो इससे बेहतर कुछ है ही नहीं।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उसने जान बूझ कर तथा कुछ सोच कर ही अपने बर्ताव को ऐसा बना रखा हो। अब क्योंकि उसके चाचा और बड़े भाई की हत्या हुई है तो वो पूरी तरह पहले जैसा बन कर हम पर क़हर बन कर टूट पड़े।"

"जो भी हो।" हरि शंकर ने कहा____"पर इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता ना कि ये सब सोच कर हम सब खुद को दादा ठाकुर के सामने समर्पण करने का अपना इरादा ही बदल दें। आने वाले समय में क्या होगा ये बाद की बात है लेकिन इस वक्त सबसे ज़्यादा ज़रूरी यही है कि हम सब दादा ठाकुर के सामने अपनी स्थिति को साफ कर लें अन्यथा इसके बहुत ही बुरे परिणामों से हमें रूबरू होना होगा।"


✮✮✮✮

उस समय रात के क़रीब ग्यारह बजने वाले थे। बैठक में अभी भी सब लोग बैठे हुए थे। खाना पीना खाने से सभी ने इंकार कर दिया था इस लिए बनाया भी नहीं गया था। मैं भाभी के लिए कुछ ज़्यादा ही फिक्रमंद था इस लिए उन्हीं के कमरे में उनके पास ही बैठा हुआ था। कमरे में लालटेन का मध्यम प्रकाश था। हमेशा की तरह बिजली इस वक्त भी नहीं थी। ख़ैर लालटेन की रोशनी में मैं साफ देख सकता था कि भाभी का चेहरा एकदम से बेनूर सा हो गया था। अपने पलंग पर वो मेरे ही ज़ोर देने पर लेटी हुई थीं और मैं उनके सिरहाने पर बैठा उनके माथे को हल्के हल्के दबा रहा था। ऐसा पहली बार ही हो रहा था कि मैं रात के इस वक्त उनके कमरे में उनके इतने क़रीब बैठा हुआ था। इस वक्त मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी ग़लत ख़याल आने का सवाल ही नहीं था। मुझे तो बस ये सोच कर दुख हो रहा था कि उनके जैसी सभ्य सुशील संस्कारी और पूजा आराधना करने वाली औरत के साथ ऊपर वाले ने ऐसा क्यों कर दिया था? इस हवेली के अंदर एक मैं ही ऐसा इंसान था जिसने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे इसके बाद भी मैं सही सलामत ज़िंदा था जबकि मुझ जैसे इंसान के साथ ही बहुत बुरा होना चाहिए था।

"व...वैभव??" अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा तभी गहरे सन्नाटे में भाभी के मुख से धीमी सी आवाज़ निकली तो मैं एकदम से सम्हल गया और जल्दी ही बोला____"जी भाभी, मैं यहीं हूं। आपको कुछ चाहिए क्या?"

"तु...तुम कब तक ऐसे बैठे रहोगे?" भाभी ने उठने की कोशिश की तो मैंने उन्हें लेटे ही रहने को कहा तो वो फिर से लेट गईं और फिर बोलीं____"अपने कमरे में जा कर तुम भी सो जाओ।"

"मुझे नींद नहीं आ रही भाभी।" मैंने कहा____"वैसे भी मैं आपको अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा। आप आराम से सो जाइए। मैं आपके पास यहीं बैठा रहूंगा।"

"क्..क्या तुम्हें इस बात का डर है कि मैं अपने इस दुख के चलते कहीं कुछ कर न बैठू?" भाभी ने लेटे लेटे ही अपनी गर्दन को हल्का सा ऊपर की तरफ कर के मेरी तरफ देखते हुए कहा।

"मैं भैया को खो चुका हूं भाभी।" मेरी आवाज़ एकदम से भारी हो गई____"लेकिन आपको नहीं खोना चाहता। अगर आपने कुछ भी उल्टा सीधा किया तो जान लीजिए आपका ये देवर सारी दुनिया को आग लगा देगा। किसी को भी ज़िंदा नहीं छोडूंगा मैं। इस गांव में लाशें ही लाशें पड़ी दिखेंगी।"

"इस दुनिया से तो सबको एक दिन चले जाना है वैभव।" भाभी ने उसी तरह मुझे देखते हुए अपनी मुर्दा सी आवाज़ में कहा____"तुम्हारे भैया चले गए, किसी दिन मैं भी चली जाऊंगी।"

"ऐसा मत कहिए न भाभी।" मैंने दोनों हथेलियों में उनका चेहरा ले कर अपनी नम आंखों से उन्हें देखते हुए कहा____"आप मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी। अगर आपके दिल में मेरे लिए ज़रा सा भी स्नेह और प्यार है तो उस स्नेह और प्यार के खातिर आप मुझे छोड़ कर कहीं जाने का सोचिएगा भी मत। आपको क़सम है मेरी।"

"ठीक है।" भाभी ने अपना एक हाथ पीछे की तरफ ला कर मेरा दायां गाल सहला कर कहा____"लेकिन मेरी भी एक शर्त है।"

"आप बस बोलिए भाभी।" मैंने एक हाथ से उनके उस हाथ को थाम लिया____"वैभव ठाकुर अपनी जान दे कर भी आपकी शर्त पूरी करेगा।"

"नहीं।" भाभी ने झट से मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर मेरे मुख पर रख दिया, फिर बोलीं___"ख़बरदार,अपनी जान देने वाली बातें कभी मत करना। इस हवेली और हवेली में रहने वालों के लिए तुम्हें हमेशा सही सलामत रहना है वैभव।"

"तो आप भी कभी कहीं जाने की बातें मत कहिएगा मुझसे।" मैंने कहा____"मैं हमेशा अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी भाभी को अपने पास सही सलामत देखना चाहता हूं। आप इस हवेली की आन बान शान हैं भाभी। ये तो मेरे बस में ही नहीं है कि मैं उस ऊपर वाले के फ़ैसलों को बदल दूं वरना मैं तो कभी भी अपनी भाभी के चांद जैसे चेहरे पर दाग़ न लगने दूं।"

"इतनी बड़ी बड़ी बातें मत किया करो वैभव।" भाभी ने फिर से मेरे दाएं गाल को सहलाया, बोलीं____"ख़ैर मेरी शर्त तो सुन लो।"

"ओह! हां, माफ़ कीजिए।" मैंने जल्दी से कहा____"जी बताइए क्या शर्त है आपकी?"

"अगर तुम मुझे सही सलामत देखना चाहते हो।" भाभी ने मेरी आंखों में देखते हुए इस बार थोड़े सख़्त भाव से कहा____"तो उन लोगों की सांसें छीन लो जिन लोगों ने मेरे सुहाग को मुझसे छीना है। जब तक उन हत्यारों को मुर्दा बना कर मिट्टी में नहीं मिला दिया जाएगा तब तक तुम्हारी भाभी के दिल को सुकून नहीं मिलेगा।"

"ऐसा ही होगा भाभी।" मैंने फिर से उनके उस हाथ को थाम लिया, बोला____"मैं आपको वचन देता हूं कि जिन लोगों ने आपके सुहाग की हत्या कर के उन्हें आपसे छीना है उन लोगों को मैं बहुत जल्द भयानक मौत दे कर मिट्टी में मिला दूंगा।"

"एक शर्त और भी है।" भाभी ने कहा____"और वो ये है कि इस सबके चलते तुम खुद को खरोंच भी नहीं आने दोगे।"
"मैं पूरी कोशिश करूंगा भाभी।" मैंने कहा तो भाभी कुछ पलों तक मुझे देखती रहीं और फिर बोलीं____"अब जाओ अपने कमरे में और आराम करो।"

मैं अब आश्वस्त हो चुका था इस लिए उनके सिरहाने से उठा और उन्हें भी सो जाने को बोल कर कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को आपस में भिड़ा कर मैं कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ गया। बाहर से ही मैंने उसे आवाज़ दी तो जल्दी ही कुसुम ने दरवाज़ा खोला। उसकी हालत देख कर मेरा कलेजा कांप गया। वो मेरी लाडली बहन थी और इतना कुछ हो जाने के बाद भी मैं उसे समय नहीं दे पाया था। मैंने उसे पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। मेरा ऐसा करना था कि उसकी सिसकियां छूट पड़ीं। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और फिर भाभी के साथ रहने को बोल कर अपने कमरे की तरफ बढ़ चला।

अभी मैं गलियारे से मुड़ा ही था कि तभी विभोर ने मुझे पीछे से आवाज़ दी तो मैं ठिठक गया और फिर पलट कर उसकी तरफ देखा।

"क्या बात है?" मैंने उसके क़रीब आ कर पूछा____"तू अपने कमरे में सोने नहीं गया?"
"वो भैया मैं नीचे पेशाब करने गया था।" विभोर ने बुझे स्वर में कहा____"वहां मैंने ताऊ जी को बंदूक ले कर बाहर जाते देखा तो मैं यही बताने के लिए आपके कमरे की तरफ आ रहा था।"

"क्या सच कह रहा है तू?" मैं उसकी बात सुन कर चौंक पड़ा था____"और क्या देखा तूने?"
"बस इतना ही देखा भैया।" उसने कहा____"पर मुझे लगता है कि कुछ तो बात ज़रूर है वरना ताऊ जी रात के इस वक्त बंदूक ले कर बाहर क्यों जाएंगे?"

विभोर की बात बिलकुल सही थी। रात के इस वक्त पिता जी का बंदूक ले कर बाहर जाना यकीनन कोई बड़ी बात थी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तू अपने कमरे में जा। मैं देखता हूं क्या माजरा है।"
"मैं भी आपके साथ चलूंगा भैया।" विभोर ने इस बार आवेश युक्त भाव से कहा____"मुझे भी पिता जी और बड़े भैया के हत्यारों से बदला लेना है।"

"मैं तेरी भावनाओं को समझता हूं विभोर।" मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा___"यकीन रख, चाचा और भैया के क़ातिल ज़्यादा देर तक जिन्दा नहीं रह सकेंगे। बहुत जल्द उनकी लाशें भी पड़ी नज़र आएंगी। तुझे और अजीत को हवेली में रह कर यहां सबका ख़याल भी रखना है और सबकी सुरक्षा भी करनी है।"

"पर भ...??" अभी वो कुछ कहने ही वाला था कि मैंने उसे चुप कराया और कमरे में जाने को कहा तो वो बेमन से चला गया। उसके जाते ही मैं तेज़ी से अपने कमरे में आया और अलमारी से पिता जी द्वारा दिया हुआ रिवॉल्वर ले कर उसी तेज़ी के साथ कमरे से निकल कर नीचे की तरफ बढ़ता चला गया।

मुझे नीचे आने में ज़्यादा देर नहीं हुई थी लेकिन बैठक में मुझे ना तो पिता जी नज़र आए और ना ही उनके मित्र अर्जुन सिंह। बैठक में सिर्फ भैया के चाचा ससुर, और मेरी दोनों ननिहाल के नाना लोग ही बैठे दिखे। दोनों जगह के मामा लोग भी नहीं थे वहां। मैं समझ गया कि सब के सब पिता जी के साथ कहीं निकल गए हैं। इससे पहले कि बैठक में बैठे उन लोगों की मुझ पर नज़र पड़ती मैं झट से बाहर निकल गया। बाहर आया तो एक दरबान के पास मैं ठिठक गया। उससे मैंने जब सख़्त भाव से पूछा तो उसने बताया कि कुछ देर पहले दो व्यक्ति आए थे। उन्होंने दादा ठाकुर को पता नहीं ऐसा क्या बताया था कि दादा ठाकुर जल्दी ही अर्जुन सिंह और मामा लोगों के साथ निकल गए।


✮✮✮✮

हवेली के बाहर वाले हिस्से में बने जिस कमरे में जगन को बंद किया गया था उस कमरे के बाहर दो व्यक्ति बैठे पहरा दे रहे थे। आज कल हवेली में जिस तरह के हालात बने हुए थे उसकी जानकारी हवेली के सभी नौकरों को थी इस लिए सुरक्षा और निगरानी के लिए वो सब पूरी तरह से चौकस और सतर्क थे।

"अबे ऊंघ क्यों रहा है?" लकड़ी की एक पुरानी सी स्टूल पर बैठे एक व्यक्ति ने अपने दूसरे साथी को ऊंघते देखा तो उसे हल्के से आवाज़ दी। उसकी आवाज़ सुन कर उसका दूसरा साथी एकदम से हड़बड़ा गया और फिर इधर उधर देखने के बाद उसकी तरफ देखने लगा।

"दिन में सोया नहीं था क्या तू?" पहले वाले ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा_____"जो इस वक्त इस तरह से ऊंघ रहा है।"

"हां यार।" दूसरे ने सिर हिला कर अलसाए हुए भाव से कहा____"असल में तेरी भौजी की तबियत ठीक नहीं थी इस लिए दिन में उसे ले कर वैद्य के पास गया था। उसे कुछ आराम तो मिला लेकिन उसकी देख भाल के चक्कर में दिन में सोया ही नहीं। मां दो दिन पहले अपने मायके चली गई है जिसके चलते मुझे ही सब देखना पड़ रहा है।"

"हम्म्म्म मैं समझता हूं भाई।" पहले वाले ने कहा____"पर इस वक्त तो तुझे जागना ही पड़ेगा न भाई।"

"मुझे कुछ देर सो लेने दे यार।" दूसरे ने जैसे उससे विनती की_____"वैसे भी बंद कमरे से वो ना तो निकल सकता है और ना ही निकल कर कहीं जा सकता है। फिर तू तो है ही यहां पर तो थोड़ी देर सम्हाल ले न यार।"

"साले मरवाएगा मुझे।" पहले वाले ने उसे घूरते हुए कहा____"तुझे तो पता ही है कि आज कल हालात बहुत ख़राब हैं। ऐसे में अगर कुछ भी उल्टा सीधा हो गया तो समझ ले दादा ठाकुर हमारे जिस्मों से खाल उतरवा देंगे।"

"हां मैं जानता हूं भाई।" दूसरे ने सिर हिलाया____"पर भाई तू तो है ही यहां पर। थोड़ी देर सम्हाल ले ना। मुझे सच में ज़ोरों की नींद आ रही है। अगर कुछ हो तो मुझे जगा देना।"

पहले वाला कुछ देर तक उसकी तरफ देखता रहा फिर बोला____"ठीक है कुछ देर सो ले तू।"
"तेरा बहुत बहुत शुक्रिया मेरे यार।" दूसरा खुश होते हुए बोला।

"हां ठीक है।" पहला वाला स्टूल से उठा और फिर अपनी कमर में एक काले धागे में फंसी चाभी को निकाल कर उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला_____"इसे पकड़ ज़रा। मैं मूत के आता हूं और हां सो मत जाना वरना गांड़ मार लूंगा तेरी।"

पहले वाले की बात सुन कर दूसरे ने हंसते हुए उसे गाली दी और हाथ बढ़ा कर उससे चाभी ले ली। उधर चाभी दे कर पहला वाला व्यक्ति मूतने के लिए उधर ही एक तरफ बढ़ता चला गया। उसके जाने के बाद उसने आस पास एक नज़र डाली और फिर एक नज़र बंद कमरे की तरफ डाल कर वो थोड़ा ढंग से स्टूल पर बैठ गया।

रात के इस वक्त काफी अंधेरा था। हवेली के बाहर कई जगहों पर मशालें जल रही थी जिनकी रोशनी से आस पास का थोड़ा बहुत दिख रहा था। जिस जगह पर ये दोनों लोग बैठे हुए थे उससे क़रीब पांच क़दम की दूरी पर एक मशाल जल रही थी।

पहले वाला व्यक्ति अभी मुश्किल से कुछ ही दूर गया रहा होगा कि तभी एक तरफ अंधेरे में से एक साया हल्की रोशनी में प्रगट सा हुआ और दूसरे वाले आदमी की तरफ बढ़ चला। दूसरा वाला हाथ में धागे से बंधी चाभी लिए बैठा हुआ था। उसका सिर हल्का सा झुका हुआ था। ऐसा लगा जैसे वो फिर से ऊंघने लगा था। इधर हल्की रोशनी में आते ही साया थोड़ा स्पष्ट नज़र आया।

जिस्म पर काले रंग की शाल ओढ़ रखी थी उसने किंतु फिर भी शाल के खुले हिस्से से उसके अंदर मौजूद सफ़ेद लिबास नज़र आ रहा था। सिर पर भी उसने शाल को डाल रख था और शाल के सिरे को आगे की तरफ कर के वो अपने चेहरे को छुपाए रखने का प्रयास कर रहा था। जैसे ही वो स्टूल में बैठे दूसरे वाले ब्यक्ति के क़रीब पहुंचा तो रोशनी में इस बार शाल के अंदर छुपा उसका चेहरा दिखा। सफ़ेद कपड़े से उसका चेहरा ढंका हुआ था। आंखों वाले हिस्से से उसकी आंखें चमक रहीं थी और साथ ही नाक और मुंह के पास छोटे छोटे छिद्र रोशनी में नज़र आए। ज़ाहिर है वो छिद्र सांस लेने के लिए थे।

रहस्यमय साए ने पलट कर एक बार आस पास का जायजा लिया और फिर तेज़ी से आगे बढ़ कर उसने दूसरे वाले व्यक्ति की कनपटी पर किसी चीज़ से वार किया। नतीज़ा, दूसरा व्यक्ति हल्की सिसकी के साथ ही स्टूल पर लुढ़कता नज़र आया। साए ने फ़ौरन ही उसे पकड़ कर आहिस्ता से स्टूल पर लेटा दिया। उसके बाद उसने उसके हाथ से चाभी ली और बंद कमरे की तरफ बढ़ चला।

पहले वाला व्यक्ति अच्छी तरह मूत लेने के बाद जब वापस आया तो वो ये देख कर बुरी तरह चौंका कि उसका दूसरा साथी स्टूल पर बड़े आराम से लुढ़का पड़ा सो रहा है और जिस कमरे में जगन को बंद किया गया था उस कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ है। ये देखते ही मानों उसके होश उड़ गए। वो मशाल ले कर भागते हुए कमरे की तरफ गया और जब कमरे के अंदर उसे कोई नज़र ना आया तो जैसे इस बार उसके सिर पर गाज ही गिर गई। पैरों के नीचे की ज़मीन रसातल तक धंसती चली गई। शायद यही वजह थी कि वो अपनी जगह पर खड़ा अचानक से लड़खड़ा गया था किंतु फिर उसने खुद को सम्हाला और तेज़ी से बाहर आ कर वो अपने साथी को ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने लगा। उसका अपना चेहरा डर और ख़ौफ की वजह से फक्क् पड़ा हुआ था।

उसका दूसरा साथी जब उसके ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने पर भी न जागा तो वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसका अपना जिस्म ये सोच कर ठंडा सा पड़ गया कि कहीं उसका साथी मर तो नहीं गया? हकबका कर वो एक तरफ को भागा और जल्दी ही हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास पहुंच गया। मुख्य द्वार पर खड़े दरबान को उसने हांफते हुए सारी बात बताई तो उस दरबान के भी होश उड़ गए। उसने फ़ौरन ही अंदर जा कर बैठक में बैठे भैया के चाचा ससुर को सारी बात बताई तो बैठक में बैठे बाकी सब भी बुरी तरह उछल पड़े।



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blackdevilnmnm

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भाई में अभी कुछ दिन से ही इस फोरम पर जुड़ा हूं और इस कहानी के अब तक के सारे पार्ट 2 दिन में पढ़ा हूं कल ही 69 पार्ट पढ़ा और अब एक दिन ही हुए हैं की बाकी पार्ट पढ़ने के लिए बैचेन सा लग रहा है
बाकी बोहुत ही कमल की कहानी लिखा है भाई मजा आगया पढ़ के बस उम्मीद करता हूं भाई को बाकी अपडेट भी जल्दी जल्दी देदो
 
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