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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
10,210
38,718
259


विगत कुछ माह से रीडर्स की संख्या निरंतर घटती जा रही है , चाहे वो किसी भी तरह की स्टोरी हो। यह आपने जरूर महसूस किया होगा।
एक्सेप्ट वेयरवोल्फ की स्टोरी , किसी भी राइटर्स के थ्रीड पर रीडर्स की संख्या बहुत ही कम है। ऐसा पहले नही था। अगर कोई इन्सेस्ट स्टोरी लिखता तब उसके थ्रीड पर रीडर्स का जमावड़ा हो जाता , रीडर्स अपडेट की डिमांड कर करके राइटर्स की फजीहत कर डालते।
लेकिन अब इन्सेस्ट थ्रीड पर भी रीडर्स की संख्या नाममात्र बन कर रह गई है।
और इसका कारण मेरी नजर मे कुछ माह से फोरम पर लगातार आ रहा एडवरटाइजमेंट है। बहुत सारे रीडर्स ने कहा कि उन्हे एक लाइक बटन प्रेश करने मे दस से बीस मिनट तक लग जाते है। वो चाहकर भी कुछ कमेन्ट नही कर पाते।
और दूसरा कारण शायद यह है कि फोरम निर्विघ्न ओपन नही हो पा रहा है। खासकर जियो होल्डर्स वाले वगैर VPN के फोरम खोल नही पा रहे है।
ऐसे बहुत लोग होंगे जो VPN के बारे मे जानते ही नही होंगे। एग्जाम्पल संजू भाई ही थे।
एडवरटाइजमेंट की वजह से Xabhi और कोमल रानी जी की एक बहुत अच्छी फ्रैंड फोरम से किनारा कर चुके है। ऐसे बहुत लोग है जो इस प्रॉब्लम की वजह से फोरम पर अपनी उपस्थिती दर्ज नही करा पाते। कोमल रानी जी ने तो अपने फ्रैंड के सपोर्ट मे सिग्नेचर पर उनका नाम डाल रखा है।

इस प्रॉब्लम का समाधान एडमिन और मोडरेटर को ही करना होगा। आप अपनी कहानी जारी रखिए शुभम भाई। यहां प्रायः सब राइटर्स की हाल आप के जैसा ही है।
exactly
यही असली वजह है, पिछले प्रशासनिक फेरबदल के बाद नयी टीम ने इसे :-
1- कहानियों से ज्यादा चिट-चैट मैसेज का प्लैटफ़ार्म बना दिया, जिनमें ज़्यादातर एमोजी या एक शब्द होता है कभी कभी लाइक या अन्य रिएक्शन देते हैं...
2- नए सकारात्मक बदलाव की बजाए यहाँ इतने ज्यादा और इतने गंदे तरीके से विज्ञापन लिंक किए हैं की एक पेज को 4 बार खोल्न पड़ता है और लाइक कमेंट कोट/रिप्लाइ करने के लिए तो 10 से 20 बार तक जिससे चिड़चिड़ा होकर पाठक अपडेट पढ़कर चुपचाप निकाल लेता है, रिवियू, कमेंट तो छोड़ो लाइक तक नहीं करना चाहता
3- शुभम भाई जैसे कुछ लेखकों के चाहने वाले इनके कहीं और ना होने की वजह से यहाँ मजबूरी में आते हैं........ वरना हम जैसे यहाँ झाँकने भी ना आयें
4- इस फॉरम पर भीड़ जुटाने वाली कहानियाँ सिर्फ वो हैं जो समाज में जहर घोलने वाली बेतुकी हिन्दू-मुस्लिम कहानियों की गंदगी 'इंटरफेथ' के नाम पर एक मिशन की तरह डाल रहे हैं और बढ़ावा देने को फर्जी रीडर्स, कमेंट और रिवियू पोस्ट करते रहते हैं
5- जिस वजह से Xossip और फिर ये XF की पहचान अन्य पॉर्न और सेक्सस्टोरी प्लैटफ़ार्म से अलग एक व्यवस्थित 'एरोटीक व एडल्ट कहानियों" का प्लैटफ़ार्म थी वो खत्म हो चुका है ज़्यादातर लेखक और पाठक यहाँ से जा चुके हैं जो भीड़ यहाँ बची है उसमें से ज़्यादातर की ना तो हम पाठक उनकी गंदगी पढ्ना चाहते ना अच्छे लेखक उस भीड़ के कमेंट रिवियू झेल पाएंगे

इसलिए मेरा यही अनुरोध है की जितना बचा हुआ है वो इस फॉरम की आत्मा को जिंदा रखे इसलिए हम सबको मिलकर एक दूसरे का साथ देना होगा
 

Ajammy

Active Member
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Bhai hum kuch readers he jo regular apki story p comments krte aye h jb story start Hui thi tb bhi jb bhich m break lga tb bhi aur abhi jb apne re-start kri tb bhi.
Abhi jb re-start hui to bht Khushi Hui thi ab is forum p bht hi kaam stories bchi h jisse hum readers is trh contact kr pate h bhai pls apse guzarish h ap ek bar fhr se soche apne decision k bare me unlogo k bare m Jo starting se apke story se jude hue he bhai.
Eagerly waiting for your reply bhai plz ek bar sochiye take care
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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शक वो बीमारी है जनाब जिसका ना कोई वैद है ना ही इलाज है।क़त्ल जो इश्क़ का हुआ तहकीकात हुई तो मालूम हुआ कसूर शक का था।अगर प्यार है तो शक कैसा, अगर नहीं है तो हक कैसा।गलतियों को ठीक किया जा सकता है गलत फ़हमियों को नहीं,सो बार सोच लिया उसने मुझ पर हक़ रखने से पहले, एक बार भी ना सोचा उसने मुझ पर शक करने से पहले।शक सही निकला उसे मुझसे मोहोब्बत कम थी मुझ पर ज्यादा शक था।गैरों पर हक़ रखना और अपनों पर शक करना हमेशा पछतावा देता है।घमंड और गलत फहमियां रिश्तों में नहीं आनी चाहिए क्यूंकि गलत फहमियां आपको रिश्तों से दूर कर देती हैं और फिर घमंड आपको नज़दीक आने नहीं देता।यह दुनिया उम्मीद पर कायम है और उम्मीद से बड़ी कोई ग़लतफहमी नहीं
हमारी शराफत को हमारी कमजोरी जो कहते है,
शायद वो हमारी औकात को नही समझते है.
kamdev ji or sanju ji jab ye story apke inbox me post kare ,tab aap or pathko ke liye post kar dena ,inhe taklif he ki 10-12 log hi post ko like karte he isliye ye sabhi ke nhi likhenge ,meri to samjh nhi aata ki inko ye galatfahmi kese he ki inki har past par 100-150 pathak react kare ,shubham ji achhe achhe lekhko ko jang lag gaya ,abhi yaad rakhiye
aap is baat ko jitni jaldi samjh lenge utna hi apka bhala hoga aaj apki sab manuhar kar rahe he kal aap atit ka ek hissa honge
Main pal do pal ka shayar hoon
Pal do pal meri kahani hai
Pal do pal meri hasti hai
Pal do pal meri jawani hai
Main pal do pal ka shayar hoon
Sirf itna hi kahunga ki_____"Na tum mujhe samajh sakte ho aur na main tumhe."


And maine ye kabhi nahi kaha ki meri kahani me 100-150 likes ya comments aaye tabhi likhunga. Mera sirf itna hi kahna raha hai ki jitne log kahani par apni upasthiti darz kara chuke hote hain Kam se Kam wo to imandari se apna farz nibhayein. Kahani padh kar chup chaap nikal jane ko kya wo nyaay karna samajhte hain?? Dusro ka chhodo aap apna hi example le lo. Mujhe bataao ki is kahani par imandari se aapne kitni baar apni pratikriya di hai.??? Is sawaal ke jawaab me aap sirf bahana hi de sakti hain ki time nahi milta yaha aane ka. To dear, time kisi ke bhi pass nahi hota, fir bhi time nikaal kar update likhta hai lekhak. Aapko bhi pata hai ki devnagiri me likhna kitna mushkil kaam hota hai.... Iske bavjood agar log is tarah ki hoshiyari dikhayen aur baad me gyaan pele to takleef hoti hai.

Main yahan koi dharm shaastra nahi likh raha hu jiske dwara mujhe saari duniya jaanegi aur main uske dwara mile rupaye paiso se Mukesh Ambani ke maafik Ameer ban jaauga. Mujhe bhi pata hai ki ek din sabko ye duniya bhula deti hai. Is abhaasi sansaar me mujhe waise bhi aisi koi hasrat nahi hai ki mera koi naam ho ya log meri waah waahi kare. Mera sirf itna hi kahna hai ki agar lekhak apne niji jeewan se time nikaal kar sabke manoranjan ke liye kuch likhta hai to padhne wale bhi imandari se apna farz nibhayein..... :roll:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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विगत कुछ माह से रीडर्स की संख्या निरंतर घटती जा रही है , चाहे वो किसी भी तरह की स्टोरी हो। यह आपने जरूर महसूस किया होगा।
एक्सेप्ट वेयरवोल्फ की स्टोरी , किसी भी राइटर्स के थ्रीड पर रीडर्स की संख्या बहुत ही कम है। ऐसा पहले नही था। अगर कोई इन्सेस्ट स्टोरी लिखता तब उसके थ्रीड पर रीडर्स का जमावड़ा हो जाता , रीडर्स अपडेट की डिमांड कर करके राइटर्स की फजीहत कर डालते।
लेकिन अब इन्सेस्ट थ्रीड पर भी रीडर्स की संख्या नाममात्र बन कर रह गई है।
और इसका कारण मेरी नजर मे कुछ माह से फोरम पर लगातार आ रहा एडवरटाइजमेंट है। बहुत सारे रीडर्स ने कहा कि उन्हे एक लाइक बटन प्रेश करने मे दस से बीस मिनट तक लग जाते है। वो चाहकर भी कुछ कमेन्ट नही कर पाते।
और दूसरा कारण शायद यह है कि फोरम निर्विघ्न ओपन नही हो पा रहा है। खासकर जियो होल्डर्स वाले वगैर VPN के फोरम खोल नही पा रहे है।
ऐसे बहुत लोग होंगे जो VPN के बारे मे जानते ही नही होंगे। एग्जाम्पल संजू भाई ही थे।
एडवरटाइजमेंट की वजह से Xabhi और कोमल रानी जी की एक बहुत अच्छी फ्रैंड फोरम से किनारा कर चुके है। ऐसे बहुत लोग है जो इस प्रॉब्लम की वजह से फोरम पर अपनी उपस्थिती दर्ज नही करा पाते। कोमल रानी जी ने तो अपने फ्रैंड के सपोर्ट मे सिग्नेचर पर उनका नाम डाल रखा है।

इस प्रॉब्लम का समाधान एडमिन और मोडरेटर को ही करना होगा। आप अपनी कहानी जारी रखिए शुभम भाई। यहां प्रायः सब राइटर्स की हाल आप के जैसा ही है।
exactly
यही असली वजह है, पिछले प्रशासनिक फेरबदल के बाद नयी टीम ने इसे :-
1- कहानियों से ज्यादा चिट-चैट मैसेज का प्लैटफ़ार्म बना दिया, जिनमें ज़्यादातर एमोजी या एक शब्द होता है कभी कभी लाइक या अन्य रिएक्शन देते हैं...
2- नए सकारात्मक बदलाव की बजाए यहाँ इतने ज्यादा और इतने गंदे तरीके से विज्ञापन लिंक किए हैं की एक पेज को 4 बार खोल्न पड़ता है और लाइक कमेंट कोट/रिप्लाइ करने के लिए तो 10 से 20 बार तक जिससे चिड़चिड़ा होकर पाठक अपडेट पढ़कर चुपचाप निकाल लेता है, रिवियू, कमेंट तो छोड़ो लाइक तक नहीं करना चाहता
3- शुभम भाई जैसे कुछ लेखकों के चाहने वाले इनके कहीं और ना होने की वजह से यहाँ मजबूरी में आते हैं........ वरना हम जैसे यहाँ झाँकने भी ना आयें
4- इस फॉरम पर भीड़ जुटाने वाली कहानियाँ सिर्फ वो हैं जो समाज में जहर घोलने वाली बेतुकी हिन्दू-मुस्लिम कहानियों की गंदगी 'इंटरफेथ' के नाम पर एक मिशन की तरह डाल रहे हैं और बढ़ावा देने को फर्जी रीडर्स, कमेंट और रिवियू पोस्ट करते रहते हैं
5- जिस वजह से Xossip और फिर ये XF की पहचान अन्य पॉर्न और सेक्सस्टोरी प्लैटफ़ार्म से अलग एक व्यवस्थित 'एरोटीक व एडल्ट कहानियों" का प्लैटफ़ार्म थी वो खत्म हो चुका है ज़्यादातर लेखक और पाठक यहाँ से जा चुके हैं जो भीड़ यहाँ बची है उसमें से ज़्यादातर की ना तो हम पाठक उनकी गंदगी पढ्ना चाहते ना अच्छे लेखक उस भीड़ के कमेंट रिवियू झेल पाएंगे

इसलिए मेरा यही अनुरोध है की जितना बचा हुआ है वो इस फॉरम की आत्मा को जिंदा रखे इसलिए हम सबको मिलकर एक दूसरे का साथ देना होगा
Forum me advertising ki vajah se mujhe bhi pata hai ki normal readers ko like comments karne me samasya ho rahi hai lekin iska ye matlab hargiz nahi hona chahiye ki wo sirf itni si baat ke chalte kahani par apni pratikriya na de. Agar ham unke liye 4-4 ghante ka samay laga kar update likh kar post karte hai to thodi pareshani jhel kar unhe bhi apna farz nibhana chahiye. Is sandarbh aap ye kahenge ki readers ek din me Kam se kam 100 kahaniya padhte hain to kis ke paas time nahi hota pratikriya dene ka. Main puchhta hu 100 kahaniya padhne ke liye kya unhe advertising wali samasya nahi hoti hogi? Halaaki main 100 kahaniya padhne walo se kuch chaahta bhi nahi hu. Main sirf unse ummid rakhta hu jo kahte hain ki wo mere regular reader hi nahi balki mere sachche chahne wale hain. Khair chhodiye....ye aisa topic hai jiska kabhi koi samadhaan nahi ho sakta. Aur haan ye bhi ek vidambana hi hai ki na readers samajh sakte hain aur na hi lekhak....yahi vajah hai is saare jhamele ki.
 

randibaaz chora

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Bhai baki sab thik hai lekin unka kya hoga jo kabhi kabhi omment karte hai..... Story to hum bhi suru se padh rhe he bass hamare upar bhi kripa drishti banana mittra ....... Kyonki ye story bhi haweli ki tarah unique plot ki hai
 
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kamdev99008

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Forum me advertising ki vajah se mujhe bhi pata hai ki normal readers ko like comments karne me samasya ho rahi hai lekin iska ye matlab hargiz nahi hona chahiye ki wo sirf itni si baat ke chalte kahani par apni pratikriya na de. Agar ham unke liye 4-4 ghante ka samay laga kar update likh kar post karte hai to thodi pareshani jhel kar unhe bhi apna farz nibhana chahiye. Is sandarbh aap ye kahenge ki readers ek din me Kam se kam 100 kahaniya padhte hain to kis ke paas time nahi hota pratikriya dene ka. Main puchhta hu 100 kahaniya padhne ke liye kya unhe advertising wali samasya nahi hoti hogi? Halaaki main 100 kahaniya padhne walo se kuch chaahta bhi nahi hu. Main sirf unse ummid rakhta hu jo kahte hain ki wo mere regular reader hi nahi balki mere sachche chahne wale hain. Khair chhodiye....ye aisa topic hai jiska kabhi koi samadhaan nahi ho sakta. Aur haan ye bhi ek vidambana hi hai ki na readers samajh sakte hain aur na hi lekhak....yahi vajah hai is saare jhamele ki.
मन शांत कीजिये.... जीवन में अभी संघर्ष धरातल पर बाकी है..........
जो आपका है उसे आपसे कोई छीन नहीं सकता, आपको जरूर मिलेगा.... मित्र, संबंध और भौतिक उपलब्धियां
और जो आपका नहीं, वो आपको मिल ही नहीं सकता कितना भी प्रयास कर लें.....

आपके प्रयास ना करने के प्रयास से आपको एक ऐसी वस्तु प्राप्त होगी, जो आपको मिलनी है लेकिन आप ले नहीं पाते
मन की शांति........... इसलिए उसे पाने के प्रयास को विराम दें..... और मन में जो भावनाएँ भरी हैं उन्हें अक्षरों में बादल कहानी में उतार दें.........

"जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया, जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया"

मेरा तो उससे आगे है........ :D
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएँ में उड़ता चला गया
 

juhi gupta

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Sirf itna hi kahunga ki_____"Na tum mujhe samajh sakte ho aur na main tumhe."


And maine ye kabhi nahi kaha ki meri kahani me 100-150 likes ya comments aaye tabhi likhunga. Mera sirf itna hi kahna raha hai ki jitne log kahani par apni upasthiti darz kara chuke hote hain Kam se Kam wo to imandari se apna farz nibhayein. Kahani padh kar chup chaap nikal jane ko kya wo nyaay karna samajhte hain?? Dusro ka chhodo aap apna hi example le lo. Mujhe bataao ki is kahani par imandari se aapne kitni baar apni pratikriya di hai.??? Is sawaal ke jawaab me aap sirf bahana hi de sakti hain ki time nahi milta yaha aane ka. To dear, time kisi ke bhi pass nahi hota, fir bhi time nikaal kar update likhta hai lekhak. Aapko bhi pata hai ki devnagiri me likhna kitna mushkil kaam hota hai.... Iske bavjood agar log is tarah ki hoshiyari dikhayen aur baad me gyaan pele to takleef hoti hai.

Main yahan koi dharm shaastra nahi likh raha hu jiske dwara mujhe saari duniya jaanegi aur main uske dwara mile rupaye paiso se Mukesh Ambani ke maafik Ameer ban jaauga. Mujhe bhi pata hai ki ek din sabko ye duniya bhula deti hai. Is abhaasi sansaar me mujhe waise bhi aisi koi hasrat nahi hai ki mera koi naam ho ya log meri waah waahi kare. Mera sirf itna hi kahna hai ki agar lekhak apne niji jeewan se time nikaal kar sabke manoranjan ke liye kuch likhta hai to padhne wale bhi imandari se apna farz nibhayein..... :roll:
Ham koi gyan nhi pel rahe he bata rahe he apko, fir vo hi baat agar ham comment nhi kar rahe he to iska ye mtlb nhi he ham story nhi pad rahe he
Ye to hame bhi pata he ki aap dharam shashtra nhi likh rahe ho agar vo likh rahe hote to ham is forum par nhi hote
Itna gyan mat pela kijiye yanha sab gyani he
Itna updesh de rahe ho to 2-3 update bhi likhkar daal sakte the
Lekin nhi jitni ham minnate kar rahe he utna hi apka dimag satve aasman par ja raha he
Akhri baar kah rahi hu likh dijiye varna apki marji go to hell
Kamdev ji sanju ji or pathak samjha rahe he fir bhi ye apni gurur me he aap na to tulsidas he or na hi chetan bhagat
Ham is fourm par apne manoranjan ke liye aate he na ki rojana apki dpeech sunne
 

juhi gupta

Member
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Chal jhuthi, :beee:
Hasinaao ko kisi hunar ko sikhne ki zarurat hi nahi hoti. Wo paida hi har hunar sikh ke hoti hain aur apan jaise shareef, masoom ladko ko umar bhar jhuthe prem ke jaal me faans kar unhe chakarghinni banati rahti hain :verysad:
Kitni ghatiya soch he tumhari, tumhari grlz ke bare me , tumhari shadi hui kya? Pahle fans jao kidi se fir comment karna,or tumne mujhe kis haq se jhunti kaha?mr shubham soch samjhkar bola karo
 

rohnny4545

Well-Known Member
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☆ प्यार का सबूत ☆
--------------------------------
अध्याय - 01


फागुन का महीना चल रहा था और मैं अपने गांव की सरहद से दूर अपने झोपड़े के बाहर छाव में बैठा सुस्ता रहा था। अभी कुछ देर पहले ही मैं अपने एक छोटे से खेत में उगी हुई गेहू की फसल को अकेले ही काट कर आया था। हालांकि अभी ज़्यादा गर्मी तो नहीं पड़ रही थी किन्तु कड़ी धूप में खेत पर पकी हुई गेहू की फसल को काटते काटते मुझे बहुत गर्मी लग आई थी इस लिए आधी फसल काटने के बाद मैं हंसिया ले कर अपने झोपड़े में आ गया था।

कहने को तो मेरे पास सब कुछ था और मेरा एक भरा पूरा परिवार भी था मगर पिछले चार महीनों से मैं घर और गांव से दूर यहाँ जंगल के पास एक झोपड़ा बना कर रह रहा था। जंगल के पास ये ज़मीन का छोटा सा टुकड़ा मुझे दिया गया था बाकी सब कुछ मुझसे छीन लिया गया था और पंचायत के फैसले के अनुसार मैं गांव के किसी भी इंसान से ना तो कोई मदद मांग सकता था और ना ही गांव का कोई इंसान मेरी मदद कर सकता था।

आज से चार महीने पहले मेरी ज़िन्दगी बहुत ही अच्छी चल रही थी और मैं एक ऐसा इंसान था जो ज़िन्दगी के हर मज़े लेना पसंद करता था। ज़िन्दगी के हर मज़े के लिए मैं हर वक़्त तत्पर रहता था। मेरे पिता जी गांव के मुखिया थे और गांव में ही नहीं बल्कि आस पास के कई गांव में भी उनका नाम चलता था। किसी चीज़ की कमी नहीं थी। पिता जी का हर हुकुम मानना जैसे हर किसी का धर्म था किन्तु मैं एक ऐसा शख़्स था जो हर बार उनके हुकुम को न मान कर वही करता था जो सिर्फ मुझे अच्छा लगता था और इसके लिए मुझे शख़्त से शख़्त सज़ा भी मिलती थी लेकिन उनकी हर सज़ा के बाद मेरे अंदर जैसे बेशर्मी और ढीढता में इज़ाफ़ा हो जाता था।

ऐसा नहीं था कि मैं पागल था या मुझ में दुनियादारी की समझ नहीं थी बल्कि मैं तो हर चीज़ को बेहतर तरीके से समझता था मगर जैसा कि मैंने बताया कि ज़िन्दगी का हर मज़ा लेना पसंद था मुझे तो बस उसी मज़े के लिए मैं सब कुछ भूल कर फिर उसी रास्ते पर चल पड़ता था जिसके लिए मुझे हर बार पिता जी मना करते थे। मेरी वजह से उनका नाम बदनाम होता था जिसकी मुझे कोई परवाह नहीं थी। घर में पिता जी के अलावा मेरी माँ थी और मेरे भैया भाभी थे। बड़े भाई का स्वभाव भी पिता जी के जैसा ही था किन्तु वो इस सबके बावजूद मुझ पर नरमी बरतते थे। माँ मुझे हर वक़्त समझाती रहती थी मगर मैं एक कान से सुनता और दूसरे कान से उड़ा देता था। भाभी से ज़्यादा मेरी बनती नहीं थी और इसकी वजह ये थी कि मैं उनकी सुंदरता के मोह में फंस कर उनके प्रति अपनी नीयत को ख़राब नहीं करना चाहता था। मुझ में इतनी तो गै़रत बांकी थी कि मुझे रिश्तों का इतना तो ख़याल रहे। इस लिए मैं भाभी से ज़्यादा ना बात करता था और ना ही उनके सामने जाता था। जबकि वो मेरी मनोदशा से बेख़बर अपना फ़र्ज़ निभाती रहतीं थी।

पिता जी मेरे बुरे आचरण की वजह से इतना परेशान हुए कि उन्होंने माँ के कहने पर मेरी शादी कर देने का फैसला कर लिया। माँ ने उन्हें समझाया था कि बीवी के आ जाने से शायद मैं सुधर जाऊं। ख़ैर एक दिन पिता जी ने मुझे बुला कर कहा कि उन्होंने मेरी शादी एक जगह तय कर दी है। पिता जी की बात सुन कर मैंने साफ़ कह दिया कि मुझे अभी शादी नहीं करना है। मेरी बात सुन कर पिता जी बेहद गुस्सा हुए और हुकुम सुना दिया कि हम वचन दे चुके हैं और अब मुझे ये शादी करनी ही पड़ेगी। पिता जी के इस हुकुम पर मैंने कहा कि वचन देने से पहले आपको मुझसे पूछना चाहिए था कि मैं शादी करुंगा की नहीं।

घर में एक मैं ही ऐसा शख्स था जो पिता जी से जुबान लड़ाने की हिम्मत कर सकता था। मेरी बातों से पिता जी बेहद ख़फा हुए और मुझे धमकिया दे कर चले गए। ऐसा नहीं था कि मैं कभी शादी ही नहीं करना चाहता था बल्कि वो तो एक दिन मुझे करना ही था मगर मैं अभी कुछ समय और स्वतंत्र रूप से रहना चाहता था। पिता जी को लगा था कि आख़िर में मैं उनकी बात मान ही लूंगा इस लिए उन्होंने घर में सबको कह दिया था कि शादी की तैयारी शुरू करें।

घर में शादी की तैयारियां चल रही थी जिनसे मुझे कोई मतलब नहीं था। मेरे ज़हन में तो कुछ और ही चल रहा था। मैंने उस दिन के बाद से घर में किसी से भी नहीं कहा कि वो मेरी शादी की तैयारी ना करें और जब मेरी शादी का दिन आया तो मैं घर से ही क्या पूरे गांव से ही गायब हो गया। मेरे पिता जी मेरे इस कृत्य से बहुत गुस्सा हुए और अपने कुछ आदमियों को मेरी तलाश करने का हुकुम सुना दिया। इधर भैया भी मुझे खोजने में लग गए मगर मैं किसी को भी नहीं मिला। मैं घर तभी लौटा जब मुझे ये पता चल गया कि जिस लड़की से मेरी शादी होनी थी उसकी शादी पिता जी ने किसी और से करवा दी है।

एक हप्ते बाद जब मैं लौट कर घर आया तो पिता जी का गुस्सा मुझ पर फूट पड़ा। वो अब मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहते थे। मेरी वजह से उनकी बदनामी हुई थी और उनका वचन टूट गया था। उन्होंने पंचायत बैठाई और पंचायत में पूरे गांव के सामने उन्होंने फैसला सुनाते कहा कि आज से वैभव सिंह को इस गांव से हुक्का पानी बंद कर के निकाला जाता है। आज से गांव का कोई भी इंसान ना तो इससे कोई बात करेगा और ना ही इसकी कोई मदद करेगा और अगर किसी ने ऐसा किया तो उसका भी हुक्का पानी बंद कर के उसे गांव से निकाल दिया जाएगा। पंचायत में पिता जी का ये हुकुम सुन कर गांव का हर आदमी चकित रह गया था। किसी को भी उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। हालांकि इतना तो वो भी समझते थे कि मेरी वजह से उन्हें कितना कुछ झेलना पड़ रहा था।

पंचायत में उस दिन पिता जी ने मुझे गांव से निकाला दे दिया था। मेरे जीवन निर्वाह के लिए उन्होंने जंगल के पास अपनी बंज़र पड़ी ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा दे दिया था। वैसे चकित तो मैं भी रह गया था पिता जी के उस फैसले से और सच कहूं तो उनके इस कठोर फैसले को सुन कर मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही गायब हो गई थी मगर मेरे अंदर भी उन्हीं का खून उबाल मार रहा था इस लिए मैंने भी उनके फैसले को स्वीकार कर लिया। हालांकि मेरी जगह अगर कोई दूसरा ब्यक्ति होता तो वो ऐसे फैसले पर उनसे रहम की गुहार लगाने लगता मगर मैंने ऐसा करने का सोचा तक नहीं था बल्कि फैसला सुनाने के बाद जब पिता जी ने मेरी तरफ देखा तो मैं उस वक़्त उन हालात में भी उनकी तरफ देख कर इस तरह मुस्कुराया था जैसे कि उनके इस फैसले पर भी मेरी ही जीत हुई हो। मेरे होठो की उस मुस्कान ने उनके चेहरे को तिलमिलाने पर मजबूर कर दिया था।

अच्छी खासी चल रही ज़िन्दगी को मैंने खुद गर्क़ बना लिया था। पिता जी के उस फैसले से मेरी माँ बहुत दुखी हुई थी किन्तु कोई उनके फैसले पर आवाज़ नहीं उठा सकता था। उस फैसले के बाद मैं घर भी नहीं जा पाया उस दिन बल्कि मेरा जो सामान था उसे एक बैग में भर कर मेरा बड़ा भाई पंचायत वाली जगह पर ही ला कर मेरे सामने डाल दिया था। उस दिन मेरे ज़हन में एक ही ख़याल आया था कि अपने बेटे को सुधारने के लिए क्या उनके लिए ऐसा करना जायज़ था या इसके लिए कोई दूसरा रास्ता भी हो सकता था?

पिता जी के फैसले के बाद मैं अपना बैग ले कर उस जगह आ गया जहां पर मुझे ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा दिया गया था। एक पल में जैसे सब कुछ बदल गया था। राज कुमारों की तरह रहने वाला लड़का अब दर दर भटकने वाला एक भिखारी सा बन गया था मगर हैरानी की बात थी कि इस सब के बावजूद मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। ज़िन्दगी एक जगह ठहर ज़रूर गई थी लेकिन मेरे अंदर अब पहले से ज़्यादा कठोरता आ गई थी। थोड़े बहुत जो जज़्बात बचे थे वो सब जैसे ख़ाक हो चुके थे अब।

जंगल के पास मिले उस ज़मीन के टुकड़े को मैं काफी देर तक देखता रहा था। उस बंज़र ज़मीन के टुकड़े से थोड़ी ही दूरी पर जंगल था। गांव यहाँ से चार किलो मीटर दूर था जो कि घने पेड़ पौधों की वजह से दिखाई नहीं देता था। ख़ैर मैंने देखा कि ज़मीन के उस टुकड़े में बहुत ही ज़्यादा घांस उगी हुई थी। पास में कहीं भी पानी नहीं दिख रहा था। इस तरफ आस पास कोई पेड़ पौधे नहीं लगे थे। हालांकि कुछ दूरी पर जंगल ज़रूर था मगर आज तक मैं उस जंगल के अंदर नहीं गया था।

ज़मीन के उस टुकड़े को कुछ देर देखने के बाद मैं उस जंगल की तरफ चल पड़ा था। जंगल में पानी की तलाश करते हुए मैं इधर उधर भटकने लगा। काफी अंदर आने के बाद मुझे एक तरफ से पानी बहने जैसी आवाज़ सुनाई दी तो मेरे चेहरे पर राहत के भाव उभर आए। उस आवाज़ की दिशा में गया तो देखा एक नदी बह रही थी। बांये तरफ से पानी की एक बड़ी मोटी सी धार ऊपर चट्टानों से नीचे गिर रही थी और वो पानी नीचे पत्थरों से टकराते हुए दाहिनी तरफ बहने लगता था। अपनी आँखों के सामने पानी को इस तरह बहते देख मैंने अपने सूखे होठों पर जुबान फेरी और आगे बढ़ कर मैंने उस ठंडे और शीतल जल से अपनी प्यास बुझाई।

जंगल से कुछ लकड़ियां खोज कर मैंने उन्हें लिया और जंगल से बाहर अपने ज़मीन के उस टुकड़े के पास आ गया। अभी तो दिन था इस लिए कोई समस्या नहीं थी मुझे किन्तु शाम को यहाँ रहना मेरे लिए एक बड़ी समस्या हो सकती थी इस लिए अपने रहने के लिए कोई जुगाड़ करना बेहद ज़रूरी था मेरे लिए। मैंने ज़मीन के इस पार की जगह का ठीक से मुआयना किया और जो लकड़ियां मैं ले कर आया था उन्हीं में से एक लकड़ी की सहायता से ज़मीन में गड्ढा खोदना शुरू कर दिया। काफी मेहनत के बाद आख़िर मैंने चार गड्ढे खोद ही लिए और फिर उन चारो गड्ढों में चार मोटी लकड़ियों को डाल दिया। उसके बाद मैं फिर से जंगल में चला गया।

शाम ढलने से पहले ही मैंने ज़मीन के इस पार एक छोटा सा झोपड़ा बना लिया था और उसके ऊपर कुछ सूखी घास डाल कर उसे महुराईन के ब‌उडे़ से कस दिया था। झोपड़े के अंदर की ज़मीन को मैंने अच्छे से साफ़ कर लिया था। मेरे लिए यहाँ पर आज की रात गुज़ारना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। हालांकि मैं चाहता तो आज की रात दूसरे गांव में भी कहीं पर गुज़ार सकता था मगर मैं खुद चाहता था कि अब मैं बड़ी से बड़ी समस्या का सामना करूं।

मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं था इस लिए रात हुई तो बिना कुछ खाए ही उस झोपड़े के अंदर कच्ची ज़मीन पर सूखी घास बिछा कर लेट गया। झोपड़े के दरवाज़े पर मैंने चार लकड़ियां लगा कर और उसमे महुराईन का ब‌उड़ा लगा कर अच्छे से कस दिया था ताकि रात में कोई जंगली जानवर झोपड़े के अंदर न आ सके। मेरे लिए अच्छी बात ये थी कि चांदनी रात थी वरना घने अँधेरे में यकीनन मेरी हालत ख़राब हो जाती। ज़िन्दगी में पहली बार मैं ऐसी जगह पर रात गुज़ार रहा था। अंदर से मुझे डर तो लग रहा था लेकिन मैं ये भी जानता था कि अब मुझे अपनी हर रात ऐसे ही गुज़ारनी है और अगर मैं डरूंगा तो कैसे काम चलेगा?

रात भूखे पेट किसी तरह गुज़र ही गई। सुबह हुई और एक नए दिन और एक न‌ई किस्मत का उदय हुआ। जंगल में जा कर मैं नित्य क्रिया से फुर्सत हुआ। पेट में चूहे दौड़ रहे थे और मुझे कमज़ोरी का आभास हो रहा था। कुछ खाने की तलाश में मैं उसी नदी पर आ गया। नदी का पानी शीशे की तरह साफ़ था जिसकी सतह पर पड़े पत्थर साफ़ दिख रहे थे। उस नदी के पानी को देखते हुए मैं नदी के किनारे किनारे आगे बढ़ने लगा। कुछ दूरी पर आ कर मैं रुका। यहाँ पर नदी की चौड़ाई कुछ ज़्यादा थी और पानी भी कुछ ठहरा हुआ दिख रहा था। मैंने ध्यान से देखा तो पानी में मुझे मछलियाँ तैरती हुई दिखीं। मछलियों को देखते ही मेरी भूख और बढ़ ग‌ई।

नदी में उतर कर मैंने कई सारी मछलियाँ पकड़ी और अपनी शर्ट में उन्हें ले कर नदी से बाहर आ गया। अपने दोस्तों के साथ मैं पहले भी मछलियाँ पकड़ कर खा चुका था इस लिए इस वक़्त मुझे अपने उन दोस्तों की याद आई तो मैं सोचने लगा कि इतना कुछ होने के बाद उनमे से कोई मेरे पास मेरा हाल जानने नहीं आया था। क्या वो मेरे पिता जी के उस फैसले की वजह से मुझसे मिलने नहीं आये थे?

अपने पैंट की जेब से मैंने माचिस निकाली और जंगल में ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों को समेट कर आग जलाई। आग जली तो मैंने उसमे कुछ सूखी लकड़ियों रख दिया। जब आग अच्छी तरह से लकड़ियों पर लग गई तो मैंने उस आग में एक एक मछली को भूनना शुरू कर दिया। एक घंटे बाद मैं मछलियों से अपना पेट भर कर जंगल से बाहर आ गया। गांव तो मैं जा नहीं सकता था और ना ही गांव का कोई इंसान मेरी मदद कर सकता था इस लिए अब मुझे खुद ही सारे काम करने थे। कुछ चीज़ें मेरे लिए बेहद ज़रूरी थीं इस लिए मैं अपना बैग ले कर पैदल ही दूसरे गांव की तरफ बढ़ चला।

"वैभव।" अभी मैं अपने अतीत में खोया ही था कि तभी एक औरत की मीठी आवाज़ को सुन कर चौंक पड़ा। मैंने आवाज़ की दिशा में पलट कर देखा तो मेरी नज़र भाभी पर पड़ी।

चार महीने बाद अपने घर के किसी सदस्य को अपनी आँखों से देख रहा था मैं। संतरे रंग की साड़ी में वो बहुत ही खूबसूरत दिख रहीं थी। मेरी नज़र उनके सुन्दर चेहरे से पर जैसे जम सी गई थी। अचानक ही मुझे अहसास हुआ कि मैं उनके रूप सौंदर्य में डूबा जा रहा हूं तो मैंने झटके से अपनी नज़रें उनके चेहरे से हटा ली और सामने की तरफ देखते हुए बोला____"आप यहाँ क्यों आई हैं? क्या आपको पता नहीं है कि मुझसे मिलने वाले आदमी को भी मेरी तरह गांव से निकला जा सकता है?"

"अच्छी तरह पता है।" भाभी ने कहा_____"और इस लिए मैं हर किसी की नज़र बचा कर ही यहाँ आई हूं।"
"अच्छा।" मैंने मज़ाक उड़ाने वाले अंदाज़ से कहा____"पर भला क्यों? मेरे पास आने की आपको क्या ज़रूरत आन पड़ी? चार महीने हो गए और इन चार महीनों में कोई भी आज तक मुझसे मिलने या मेरा हाल देखने यहाँ नहीं आया फिर आप क्यों आई हैं आज?"

"मां जी के कहने पर आई हूं।" भाभी ने कहा___"तुम नहीं जानते कि जब से ये सब हुआ है तब से माँ जी तुम्हारे लिए कितना दुखी हैं। हम सब बहुत दुखी हैं वैभव मगर पिता जी के डर से हम सब चुप हैं।"

"आप यहाँ से जाओ।" मैंने एक झटके में खड़े होते हुए कहा____"मेरा किसी से कोई रिश्ता नहीं है। मैं सबके लिए मर गया हूं।"
"ऐसा क्यों कहते हो वैभव?" भाभी ने आहत भाव से मेरी तरफ देखा____"मैं मानती हूं कि जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ है वो ठीक नहीं हुआ है लेकिन कहीं न कहीं तुम खुद इसके लिए जिम्मेदार हो।"

"क्या यही अहसास कराने आई हैं आप?" मैंने कठोर भाव से कहा____"अब इससे पहले कि मेरे गुस्से का ज्वालामुखी भड़क उठे चली जाओ आप यहाँ से वरना मैं भूल जाऊंगा कि मेरा किसी से कोई रिश्ता भी है।"

"मां ने तुम्हारे लिए कुछ भेजवाया है।" भाभी ने अपने हाथ में ली हुई कपड़े की एक छोटी सी पोटली को मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसे ले लो उसके बाद मैं चली जाऊंगी।"

"मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए।" मैंने शख्त भाव से कहा___"और हां तुम सब भी मुझसे किसी चीज़ की उम्मीद मत करना। मैं मरता मर जाउंगा मगर तुम में से किसी की शकल भी देखना पसंद नहीं करुंगा। ख़ास कर उनकी जिन्हें लोग माता पिता कहते हैं। अब दफा हो जाओ यहाँ से।"

मैने गुस्से में कहा और हंसिया ले कर तथा पैर पटकते हुए खेत की तरफ बढ़ गया। मैंने ये देखने की कोशिश भी नहीं की कि मेरी इन बातों से भाभी पर क्या असर हुआ होगा। इस वक़्त मेरे अंदर गुस्से का दावानल धधक उठा था और मेरा दिल कर रहा था कि सारी दुनिया को आग लगा दूं। माना कि मैंने बहुत ग़लत कर्म किए थे मगर मुझे सुधारने के लिए मेरे बाप ने जो क़दम उठाया था उसके लिए मैं अपने उस बाप को कभी माफ़ नहीं कर सकता था और ना ही वो मेरी नज़र में इज्ज़त का पात्र बन सकता था।

गुस्से में जलते हुए मैं गेहू काटता जा रहा था और रुका भी तब जब सारा गेहू काट डाला मैंने। ये चार महीने मैंने कैसे कैसे कष्ट सहे थे ये सिर्फ मैं और ऊपर बैठा भगवान ही जनता था। ख़ैर गेहू जब कट गया तो मैं उसकी पुल्लियां बना बना कर एक जगह रखने लगा। ये मेरी कठोर मेहनत का नतीजा था कि बंज़र ज़मीन पर मैंने गेहू उगाया था। आज के वक़्त में मेरे पास फूटी कौड़ी नहीं थी। चार महीने पहले जो कुछ था भी तो उससे ज़रूरी चीज़ें ख़रीद लिया था मैंने और ये एक तरह से अच्छा ही किया था मैंने वरना इस ज़मीन पर ये फसल मैं तो क्या मेरे फ़रिश्ते भी नहीं उगा सकते थे।


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Kamaal kar diya yR
 
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TheBlackBlood bhai,
जिंदगी सिगरेट की तरह होती है। एन्जॉय करो वर्ना सुलग तो रही है , खत्म तो वैसी भी हो ही जायेगी । :D
 
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