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Romance फ़िर से

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट 56; अपडेट 57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
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parkas

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अपडेट 57


अजय को सहारा दे कर घर में लाया गया - ऐसा नहीं है कि उसको किसी सहारे की आवश्यकता थी, लेकिन सभी ‘बड़े’ लोगों ने ज़िद पकड़ ली थी और वो कोई बहस नहीं चाहता था। कुछ देर तक सभी उसके आस पास बैठ कर उसको बहलाने की कोशिश करते रहे। थोड़ी आतिशबाज़ी हुई, स्वादिष्ट खाना पकाया और खाया गया - एक तरह से आज ही दिवाली मनाई गई। और अंत में सबकी विदाई का अवसर आया।

रूचि ने एक बार अजय को आँखों में देखा और फिर अपने पिता जी से बोली, “पापा, मैं अज्जू के साथ ही रुकूँगी आज...”

“हाँ बेटे, यह ठीक रहेगा... यहीं रहो, और अगर कोई बात हो, तो हमको तुरंत खबर करो।”

“जी पापा,”

“अरे भाईसाहब, चिंता की कोई बात नहीं है!” आशोक जी बोले।

उनको भी बहुत बुरा लग रहा था कि अजय को लेकर इतने सारे लोग परेशान हो गए। लेकिन उनको यह देख कर अच्छा भी लगा कि रूचि किसी साए की तरह अजय के साथ बनी रही पूरे समय।

रूचि ने ही उनको फ़ोन कर के बताया था कि अजय को ‘वानप्रस्थ अस्पताल’ में इमरजेंसी में भर्ती किया गया है, क्योंकि वो अचानक से ही बेहोश हो गया है। जब तक वो और किरण जी अस्पताल पहुँचे नहीं थे, तब तक रूचि ने अपना धीरज खोया नहीं था, लेकिन जब वो दोनों आ गए, तब उससे रहा नहीं गया... और तब से अजय के रिलीव होने तक रो रो कर उसका बुरा हाल हो गया था। माया ने कुछ देर उसको सम्हाला, लेकिन वो भी कुछ समय बाद बहुत डर गई। वो तो अच्छी बात थी कि घर की बड़ी स्त्रियाँ वहाँ थीं और उन्होंने दोनों को सम्हाल लिया। ख़ैर - अशोक जी के लिए इतना तो स्पष्ट था कि रूचि को अजय से बहुत ही प्रेम है। वो संतुष्ट हो गए कि उन्होंने अजय के लिए एक बेहद बढ़िया सी लड़की ढूंढ ली थी!

“बहुत अच्छी बात है न भाई साहब कि चिंता की कोई बात नहीं है!” रूचि के पापा बोले, “आप भी कोई चिंता न करें! रूचि है न - आप सभी लोगों की देखभाल कर लेगी।

सबको विदा करने के बाद सभी ने रूचि और अजय को अजय के कमरे में अकेला छोड़ दिया। आज रात में थोड़ी थोड़ी ठंडक सी हो रखी थी। बाहर से अभी भी रह रह कर पटाखों की आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन मुख्य त्यौहार की रात की तरह नहीं। रूचि ने कमरे की खिड़की बंद कर दी, जिससे ठंडी हवा और पटाखों की छिटपुट आवाज़ न आए और धीमी गति से चलती हुई अजय के पास आ कर बैठ गई।

अजय ने उसको देखा और मुस्कुराने की कोशिश करने लगा। रूचि ने भी मुस्कुरा कर ही उत्तर दिया, लेकिन उसके चेहरे पर अजय को लेकर चिंता और मानसिक पीड़ा वाले भाव स्पष्ट थे।

“रूचि... माय लव,” अजय ने शुरू किया, “थैंक यू,”

“अज्जू...”

“नहीं रूचि... एक मिनट... मुझे बोल लेने दो!” वो बोला, “मैंने एक बात सीखी है कि जो मन में हो, वो बता देना चाहिए... नहीं तो देर हो जाती है और फिर पछतावा होता है ज़िन्दगी भर...”

रूचि चुप रही।

“आई लव यू! एंड आई थैंक यू... फॉर बीईंग इन माय लाइफ...”

इस बार जब रूचि मुस्कुराई, तो उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव नहीं थे। लेकिन वो अभी भी चिंतित तो थी।

“पानी?” उसने अजय से पूछा।

अजय के ‘हाँ’ में सर हिलाने पर उसने अजय को पानी का गिलास थमाया और फिर कहा, “अज्जू... अब बोलो... क्या हुआ था तुमको?”

अजय ने दो चार घूँट पानी पिया और बोला, “मेरी जान, आई डोंट नो कि तुम मेरी बात का कितना विश्वास करोगी... लेकिन मैं तो कहने जा रहा हूँ, वो पूरे ओपन माइंड से सुनना... और समझने की कोशिश करना...”

“ओके,” रूचि की उत्सुकता बढ़ गई।

अजय ने एक गहरी साँस ली। वो जो कहने जा रहा था, वो सोच कर उसका मन भारी हो गया था। वो जानता था कि अगर उसने रूचि को सच नहीं बताया, तो यह बोझ उसे शांति से जीने नहीं देगा... लेकिन, सच बताने का मतलब यह भी था कि शायद रूचि के साथ उसका रिश्ता ख़तरे में भी पड़ जाए! फिर भी, उसने फैसला किया कि वो रूचि से कुछ नहीं छुपाएगा।

“यार रूचि,” उसने कहना शुरू किया, “मैं रागिनी से पहले भी मिल चुका हूँ...”

“क्या? सच में? कब?”

“भविष्य में,”

“भविष्य में?”

“रूचि,” उसने काँपती आवाज़ कहा, “मुझे नहीं पता तुम मुझ पर यकीन करोगी या नहीं... लेकिन जो कुछ भी मैं तुमको बताने जा रहा हूँ, वो पूरी तरह से सच है। मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ है, जो आज तक शायद किसी के साथ भी नहीं हुआ!”

रूचि ने भौंहें सिकोड़ीं, “क्या मतलब? पूरी बार बताओ अज्जू... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है!”

अजय ने अपनी आँखें बंद कीं और उस दिन से और उस दिन के पहले हुई अपने जीवन की सारी घटनाएँ रूचि को सिलसिलेवार ढंग से सुनाने लगा। उन वृद्ध ‘विश्वकर्मा प्रजापति जी’ से मुलाक़ात - जो उसके हिसाब से स्वयं परमपिता थे, फिर उस रात का सपना - वो स्याह सी स्मृतियों वाली चादर, वो टूटती मरोड़तीं स्मृतियाँ, और फ़िर सुबह उठ कर अचानक से ही अपने जीवन के तेरह साल वापस चले आना! उसने रूचि को सब कुछ बताया - कि वो यह सब होने से पहले एक तीस साल का ‘आदमी’ था... वो एक अंडरअचीवर था, जिसकी पहले से ही झण्ड ज़िन्दगी को रागिनी नाम की ख़ूबसूरत, लेकिन ज़हरीली नागिन ने बर्बाद कर दिया था। कैसे उसने और माँ ने झूठे केस में जेल की सजा काटी... कैसे दोनों का सब कुछ छिन गया... कैसे अशोक जी इन्ही डॉक्टर देशपाण्डे की लापरवाही के कारण ईश्वर को प्यारे हो गए... कैसे माया दीदी और प्रशांत भैया की शादी-शुदा ज़िंदगियाँ खराब हो गईं। कैसे कमल ने माया दीदी से अपने प्रेम के कारण आज (तब) तक शादी ही नहीं करी। लेकिन जब उसको अपना जीवन पुनः जीने का अवसर मिला, तो वो इस नए समय-काल में वो अपने सभी प्रियजनों का जीवन और अपनी गलतियों को सुधारना चाहता था... अपने माँ-बाप को खुशियाँ देना चाहता था... माया दीदी के साथ अपने सम्बन्ध सही करना चाहता था और चाहता था कि उनको अपने जीवन में खुशियाँ मिलें, जिनकी वो हक़दार थीं। और अगर संभव हुआ, तो वो अपने जीवन को भी एक नई दिशा देना चाहता था। रूचि सब सुन रही थी, और अवाक् सी बैठी हुई थी।

‘ऐसा भी कहीं होता है क्या?’ वो सोच रही थी। लेकिन अजय पर अविश्वास करने का कोई कारण ही नहीं मिल रहा था उसको।

“रूचि,” अजय कह रहा था, “... तुम मेरी उस ज़िंदगी का हिस्सा नहीं थीं... लेकिन इस ज़िंदगी में... तुम सब कुछ हो! तुम मेरे लिए सब कुछ हो... आई लव यू! और यह सब बताते हुए मैंने तुमसे कुछ नहीं छुपाया।”

“रागिनी?” रूचि के मुँह से निकला।

“रागिनी... मेरी बीवी थी... उसने हमारे साथ जो कुछ किया, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। कल जब मैंने उसको यूँ अचानक से अपने सामने देखा, तो मुझे लगा कि मेरा अतीत फिर से मेरे सामने आ खड़ा हुआ है... मुझसे उसका चेहरा भी देखा न जा सका...”

“तुम रागिनी से नाराज़ हो?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया, “नहीं रूचि, सच में! मैं उससे नाराज़ नहीं, खुद से निराश हूँ! ... मैं इतना अंडरअचीवर था, कि सुन्दर चमड़ी को पाने के लालच में आ गया, बिना यह सोचे समझे, कि भला ऐसी लड़की मेरे संग क्यों आएगी? अपने लालच में मैंने माँ पापा और ताऊ जी ताई जी का बनाया सब कुछ गँवा दिया! नहीं... मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ!”

रूचि चुपचाप सुन रही थी। उसकी आँखें स्थिर थीं, लेकिन चेहरे पर एक अजीब-सा भाव था... जैसे वो समझ न पा रही हो कि इस बात को कैसे समझे!

जब अजय रुका, तो उसने धीरे से पूछा, “तो तुम कह रहे हो कि तुम... भविष्य से आए हो? और रागिनी तुम्हारी पत्नी थी? लेकिन अब तुम एक टीनएजर हो, और वो सब कुछ... एक सपना था?”

“सपना नहीं, रूचि,” अजय ने समझाया, “वो मेरी हक़ीक़त थी। मैं नहीं जानता कैसे, लेकिन मैं उस हकीकत से इस नई हक़ीक़त में आ गया हूँ। और ऐसा नहीं है कि मैं भविष्य से आने के कारण सब जानता हूँ... बहुत सी बातें मुझे पता नहीं हैं! अरे, मुझे तो यह भी नहीं पता कि मुझे क्या क्या नहीं पता!”

रूचि ने समझते हुए सर हिलाया।

“मैं बस इतना चाहता हूँ कि इस बार मैं सब कुछ ठीक कर दूँ... जब सबसे पहला काम - मतलब कमल और माया दीदी का रिश्ता जुड़ा... तब मुझे लगा कि मैं सही रस्ते पर हूँ... फिर प्रशांत भैया और भाभी का रिश्ता ठीक बैठा। ... फिर मुझे लगा कि मुझे लूज़र नहीं रहना चाहिए... पढ़ लिख कर कोई ढंग का मक़ाम हासिल करना चाहिए। ... इस कारण से तुम मिलीं मुझे... तुम्हारा साथ मिला... तुम्हारा प्यार मिला...”

रूचि ने कुछ पल चुप रहकर सोचा... फ़िर बोली, “अज्जू... ये सब... ये सब बहुत अजीब है। आई ट्रस्ट यू... लेकिन ये सब तुम्हारा वहम भी तो हो सकता है न?”

“नहीं रूचि...”

“सोचो न... लोगों को डेजा वू होता है... उनको लगता है कि जो कुछ हो रहा है, वो उनके साथ पहले भी हो चुका है,”

“लेकिन मेरा एक्सपीरियंस डेजा वू वाला नहीं है... सब कुछ अलग है पहले से इस बार!”

“तुम मुझे कुछ ऐसा बता सकते हो, जो कोई भी नहीं बता सकता?”

“जैसे?”

रूचि ने कुछ देर सोचा, फिर बोली, “अगर तुम और रागिनी हस्बैंड वाइफ थे, तो तुम दोनों एक दूसरे को इंटीमेटली जानते होंगे...”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “... उसके दाहिने ब्रेस्ट की अंदरूनी गहराई में लाल रंग का तिल है...”

रूचि अजय की बात सुन कर अचकचा सी गई। दो पल उसको समझ ही नहीं आया कि वो क्या कहे।

“रूचि... आई नो कि यह सब प्रोसेस करने के लिए बहुत अधिक है... मुझे खुद बहुत समय लगा। आई कांट एक्सपेक्ट यू टू अंडरस्टैंड एवरीथिंग... लेकिन,”

कहते कहते अजय का दिल बैठ रहा था। उसको समझ में आ रहा था कि रूचि के मन में शायद एक उलझन पैदा हो गई थी।

उसने कहा, “... लेकिन मैं तुमसे सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ... और मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता,”

रूचि ने हल्की मुस्कान दी, “किसी और को बताया है ये सब?”

“पापा को,”

“क्या क्या? ... क्या उनको यह भी बता दिया कि वो...”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने ज़िद कर के पूरा मेडिकल करवाया है। उसमें उनकी ऐलर्जीज़ पता चलीं... वो भी जिनके कारण उनको कॉम्प्लिकेशन हो गया था,”

“माँ को?”

“नहीं बताया... लेकिन मैंने उनके नाम एक चिट्ठी रख छोड़ी है,” अजय ने इशारे से दिखाया, “... वो वहाँ दराज़ में है। अगर कल को मुझे कुछ हो जाए, तो उसमें सब कुछ लिख छोड़ा है,”

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “दे डिज़र्व टू नो,”

“तुम भी... रूचि, मैंने कभी भी अपने फ़्यूचर से आने का मिसयूज़ नहीं किया। ... मैंने बस यही कोशिश करी कि मेरे आस पास सभी की ज़िन्दगी सही रहे... बेहतर रहे।”

रूचि मुस्कुराई, “अज्जू... तुम कुछ ग़लत नहीं सकते! मैं किसी ग़लत आदमी को अपना दिल नहीं दे सकती...”

अचानक से ही अजय को राहत महसूस हो आई, “तो... तो... डज़ इट मीन... दैट आई ऍम सेफ़?”

“अज्जू,” रूचि ने कोमलता से अजय के गाल को छुआ, “मैंने तुमको चाहा है... तुम्हारे जैसे लगने वाले तीस साल के अंकल को नहीं!”

“ओह गॉड! ... थैंक यू सो मच मेरे प्रभु!” अजय ने विश्वकर्मा प्रजापति जी को धन्यवाद दिया, “एंड थैंक यू रूचि!”

अचानक से ही रूचि की आँखों में चमक सी आ गई, “सोचो न अज्जू... तुमने भगवान को छुआ है! शायद ही किसी को यह सौभाग्य मिलता है! मैं तो तुम्हारी बीवी बन कर धन्य हो जाऊँगी!”

“अरे यार,”

“अरे यार नहीं... सच में! जिसके सर पर खुद ईश्वर ने हाथ रख दिया हो, उसकी संगत में कुछ गलत नहीं हो सकता,”

“जान... आई डोंट थिंक दैट्स हाऊ इट वर्क्स,”

“जो भी हो... तुम्हारा इंटेशन नेक है। तुम एक अच्छे लड़के हो... एंड आई ऍम हैप्पी, कि मैंने तुमसे प्यार किया है!”

“छोड़ोगी तो नहीं न मुझको?”

“कभी नहीं,”

अजय मुस्कुराया।

“बट आई वुड लाइक टू सी दैट रेड तिल ऑन हर ब्रेस्ट...”

“राइट ब्रेस्ट...” अजय ने स्पष्ट किया, “अंडरनीथ द फ्लेश... नॉट ऑन द ब्रेस्ट!”

**
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

kas1709

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अजय को सहारा दे कर घर में लाया गया - ऐसा नहीं है कि उसको किसी सहारे की आवश्यकता थी, लेकिन सभी ‘बड़े’ लोगों ने ज़िद पकड़ ली थी और वो कोई बहस नहीं चाहता था। कुछ देर तक सभी उसके आस पास बैठ कर उसको बहलाने की कोशिश करते रहे। थोड़ी आतिशबाज़ी हुई, स्वादिष्ट खाना पकाया और खाया गया - एक तरह से आज ही दिवाली मनाई गई। और अंत में सबकी विदाई का अवसर आया।

रूचि ने एक बार अजय को आँखों में देखा और फिर अपने पिता जी से बोली, “पापा, मैं अज्जू के साथ ही रुकूँगी आज...”

“हाँ बेटे, यह ठीक रहेगा... यहीं रहो, और अगर कोई बात हो, तो हमको तुरंत खबर करो।”

“जी पापा,”

“अरे भाईसाहब, चिंता की कोई बात नहीं है!” आशोक जी बोले।

उनको भी बहुत बुरा लग रहा था कि अजय को लेकर इतने सारे लोग परेशान हो गए। लेकिन उनको यह देख कर अच्छा भी लगा कि रूचि किसी साए की तरह अजय के साथ बनी रही पूरे समय।

रूचि ने ही उनको फ़ोन कर के बताया था कि अजय को ‘वानप्रस्थ अस्पताल’ में इमरजेंसी में भर्ती किया गया है, क्योंकि वो अचानक से ही बेहोश हो गया है। जब तक वो और किरण जी अस्पताल पहुँचे नहीं थे, तब तक रूचि ने अपना धीरज खोया नहीं था, लेकिन जब वो दोनों आ गए, तब उससे रहा नहीं गया... और तब से अजय के रिलीव होने तक रो रो कर उसका बुरा हाल हो गया था। माया ने कुछ देर उसको सम्हाला, लेकिन वो भी कुछ समय बाद बहुत डर गई। वो तो अच्छी बात थी कि घर की बड़ी स्त्रियाँ वहाँ थीं और उन्होंने दोनों को सम्हाल लिया। ख़ैर - अशोक जी के लिए इतना तो स्पष्ट था कि रूचि को अजय से बहुत ही प्रेम है। वो संतुष्ट हो गए कि उन्होंने अजय के लिए एक बेहद बढ़िया सी लड़की ढूंढ ली थी!

“बहुत अच्छी बात है न भाई साहब कि चिंता की कोई बात नहीं है!” रूचि के पापा बोले, “आप भी कोई चिंता न करें! रूचि है न - आप सभी लोगों की देखभाल कर लेगी।

सबको विदा करने के बाद सभी ने रूचि और अजय को अजय के कमरे में अकेला छोड़ दिया। आज रात में थोड़ी थोड़ी ठंडक सी हो रखी थी। बाहर से अभी भी रह रह कर पटाखों की आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन मुख्य त्यौहार की रात की तरह नहीं। रूचि ने कमरे की खिड़की बंद कर दी, जिससे ठंडी हवा और पटाखों की छिटपुट आवाज़ न आए और धीमी गति से चलती हुई अजय के पास आ कर बैठ गई।

अजय ने उसको देखा और मुस्कुराने की कोशिश करने लगा। रूचि ने भी मुस्कुरा कर ही उत्तर दिया, लेकिन उसके चेहरे पर अजय को लेकर चिंता और मानसिक पीड़ा वाले भाव स्पष्ट थे।

“रूचि... माय लव,” अजय ने शुरू किया, “थैंक यू,”

“अज्जू...”

“नहीं रूचि... एक मिनट... मुझे बोल लेने दो!” वो बोला, “मैंने एक बात सीखी है कि जो मन में हो, वो बता देना चाहिए... नहीं तो देर हो जाती है और फिर पछतावा होता है ज़िन्दगी भर...”

रूचि चुप रही।

“आई लव यू! एंड आई थैंक यू... फॉर बीईंग इन माय लाइफ...”

इस बार जब रूचि मुस्कुराई, तो उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव नहीं थे। लेकिन वो अभी भी चिंतित तो थी।

“पानी?” उसने अजय से पूछा।

अजय के ‘हाँ’ में सर हिलाने पर उसने अजय को पानी का गिलास थमाया और फिर कहा, “अज्जू... अब बोलो... क्या हुआ था तुमको?”

अजय ने दो चार घूँट पानी पिया और बोला, “मेरी जान, आई डोंट नो कि तुम मेरी बात का कितना विश्वास करोगी... लेकिन मैं तो कहने जा रहा हूँ, वो पूरे ओपन माइंड से सुनना... और समझने की कोशिश करना...”

“ओके,” रूचि की उत्सुकता बढ़ गई।

अजय ने एक गहरी साँस ली। वो जो कहने जा रहा था, वो सोच कर उसका मन भारी हो गया था। वो जानता था कि अगर उसने रूचि को सच नहीं बताया, तो यह बोझ उसे शांति से जीने नहीं देगा... लेकिन, सच बताने का मतलब यह भी था कि शायद रूचि के साथ उसका रिश्ता ख़तरे में भी पड़ जाए! फिर भी, उसने फैसला किया कि वो रूचि से कुछ नहीं छुपाएगा।

“यार रूचि,” उसने कहना शुरू किया, “मैं रागिनी से पहले भी मिल चुका हूँ...”

“क्या? सच में? कब?”

“भविष्य में,”

“भविष्य में?”

“रूचि,” उसने काँपती आवाज़ कहा, “मुझे नहीं पता तुम मुझ पर यकीन करोगी या नहीं... लेकिन जो कुछ भी मैं तुमको बताने जा रहा हूँ, वो पूरी तरह से सच है। मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ है, जो आज तक शायद किसी के साथ भी नहीं हुआ!”

रूचि ने भौंहें सिकोड़ीं, “क्या मतलब? पूरी बार बताओ अज्जू... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है!”

अजय ने अपनी आँखें बंद कीं और उस दिन से और उस दिन के पहले हुई अपने जीवन की सारी घटनाएँ रूचि को सिलसिलेवार ढंग से सुनाने लगा। उन वृद्ध ‘विश्वकर्मा प्रजापति जी’ से मुलाक़ात - जो उसके हिसाब से स्वयं परमपिता थे, फिर उस रात का सपना - वो स्याह सी स्मृतियों वाली चादर, वो टूटती मरोड़तीं स्मृतियाँ, और फ़िर सुबह उठ कर अचानक से ही अपने जीवन के तेरह साल वापस चले आना! उसने रूचि को सब कुछ बताया - कि वो यह सब होने से पहले एक तीस साल का ‘आदमी’ था... वो एक अंडरअचीवर था, जिसकी पहले से ही झण्ड ज़िन्दगी को रागिनी नाम की ख़ूबसूरत, लेकिन ज़हरीली नागिन ने बर्बाद कर दिया था। कैसे उसने और माँ ने झूठे केस में जेल की सजा काटी... कैसे दोनों का सब कुछ छिन गया... कैसे अशोक जी इन्ही डॉक्टर देशपाण्डे की लापरवाही के कारण ईश्वर को प्यारे हो गए... कैसे माया दीदी और प्रशांत भैया की शादी-शुदा ज़िंदगियाँ खराब हो गईं। कैसे कमल ने माया दीदी से अपने प्रेम के कारण आज (तब) तक शादी ही नहीं करी। लेकिन जब उसको अपना जीवन पुनः जीने का अवसर मिला, तो वो इस नए समय-काल में वो अपने सभी प्रियजनों का जीवन और अपनी गलतियों को सुधारना चाहता था... अपने माँ-बाप को खुशियाँ देना चाहता था... माया दीदी के साथ अपने सम्बन्ध सही करना चाहता था और चाहता था कि उनको अपने जीवन में खुशियाँ मिलें, जिनकी वो हक़दार थीं। और अगर संभव हुआ, तो वो अपने जीवन को भी एक नई दिशा देना चाहता था। रूचि सब सुन रही थी, और अवाक् सी बैठी हुई थी।

‘ऐसा भी कहीं होता है क्या?’ वो सोच रही थी। लेकिन अजय पर अविश्वास करने का कोई कारण ही नहीं मिल रहा था उसको।

“रूचि,” अजय कह रहा था, “... तुम मेरी उस ज़िंदगी का हिस्सा नहीं थीं... लेकिन इस ज़िंदगी में... तुम सब कुछ हो! तुम मेरे लिए सब कुछ हो... आई लव यू! और यह सब बताते हुए मैंने तुमसे कुछ नहीं छुपाया।”

“रागिनी?” रूचि के मुँह से निकला।

“रागिनी... मेरी बीवी थी... उसने हमारे साथ जो कुछ किया, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। कल जब मैंने उसको यूँ अचानक से अपने सामने देखा, तो मुझे लगा कि मेरा अतीत फिर से मेरे सामने आ खड़ा हुआ है... मुझसे उसका चेहरा भी देखा न जा सका...”

“तुम रागिनी से नाराज़ हो?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया, “नहीं रूचि, सच में! मैं उससे नाराज़ नहीं, खुद से निराश हूँ! ... मैं इतना अंडरअचीवर था, कि सुन्दर चमड़ी को पाने के लालच में आ गया, बिना यह सोचे समझे, कि भला ऐसी लड़की मेरे संग क्यों आएगी? अपने लालच में मैंने माँ पापा और ताऊ जी ताई जी का बनाया सब कुछ गँवा दिया! नहीं... मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ!”

रूचि चुपचाप सुन रही थी। उसकी आँखें स्थिर थीं, लेकिन चेहरे पर एक अजीब-सा भाव था... जैसे वो समझ न पा रही हो कि इस बात को कैसे समझे!

जब अजय रुका, तो उसने धीरे से पूछा, “तो तुम कह रहे हो कि तुम... भविष्य से आए हो? और रागिनी तुम्हारी पत्नी थी? लेकिन अब तुम एक टीनएजर हो, और वो सब कुछ... एक सपना था?”

“सपना नहीं, रूचि,” अजय ने समझाया, “वो मेरी हक़ीक़त थी। मैं नहीं जानता कैसे, लेकिन मैं उस हकीकत से इस नई हक़ीक़त में आ गया हूँ। और ऐसा नहीं है कि मैं भविष्य से आने के कारण सब जानता हूँ... बहुत सी बातें मुझे पता नहीं हैं! अरे, मुझे तो यह भी नहीं पता कि मुझे क्या क्या नहीं पता!”

रूचि ने समझते हुए सर हिलाया।

“मैं बस इतना चाहता हूँ कि इस बार मैं सब कुछ ठीक कर दूँ... जब सबसे पहला काम - मतलब कमल और माया दीदी का रिश्ता जुड़ा... तब मुझे लगा कि मैं सही रस्ते पर हूँ... फिर प्रशांत भैया और भाभी का रिश्ता ठीक बैठा। ... फिर मुझे लगा कि मुझे लूज़र नहीं रहना चाहिए... पढ़ लिख कर कोई ढंग का मक़ाम हासिल करना चाहिए। ... इस कारण से तुम मिलीं मुझे... तुम्हारा साथ मिला... तुम्हारा प्यार मिला...”

रूचि ने कुछ पल चुप रहकर सोचा... फ़िर बोली, “अज्जू... ये सब... ये सब बहुत अजीब है। आई ट्रस्ट यू... लेकिन ये सब तुम्हारा वहम भी तो हो सकता है न?”

“नहीं रूचि...”

“सोचो न... लोगों को डेजा वू होता है... उनको लगता है कि जो कुछ हो रहा है, वो उनके साथ पहले भी हो चुका है,”

“लेकिन मेरा एक्सपीरियंस डेजा वू वाला नहीं है... सब कुछ अलग है पहले से इस बार!”

“तुम मुझे कुछ ऐसा बता सकते हो, जो कोई भी नहीं बता सकता?”

“जैसे?”

रूचि ने कुछ देर सोचा, फिर बोली, “अगर तुम और रागिनी हस्बैंड वाइफ थे, तो तुम दोनों एक दूसरे को इंटीमेटली जानते होंगे...”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “... उसके दाहिने ब्रेस्ट की अंदरूनी गहराई में लाल रंग का तिल है...”

रूचि अजय की बात सुन कर अचकचा सी गई। दो पल उसको समझ ही नहीं आया कि वो क्या कहे।

“रूचि... आई नो कि यह सब प्रोसेस करने के लिए बहुत अधिक है... मुझे खुद बहुत समय लगा। आई कांट एक्सपेक्ट यू टू अंडरस्टैंड एवरीथिंग... लेकिन,”

कहते कहते अजय का दिल बैठ रहा था। उसको समझ में आ रहा था कि रूचि के मन में शायद एक उलझन पैदा हो गई थी।

उसने कहा, “... लेकिन मैं तुमसे सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ... और मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता,”

रूचि ने हल्की मुस्कान दी, “किसी और को बताया है ये सब?”

“पापा को,”

“क्या क्या? ... क्या उनको यह भी बता दिया कि वो...”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने ज़िद कर के पूरा मेडिकल करवाया है। उसमें उनकी ऐलर्जीज़ पता चलीं... वो भी जिनके कारण उनको कॉम्प्लिकेशन हो गया था,”

“माँ को?”

“नहीं बताया... लेकिन मैंने उनके नाम एक चिट्ठी रख छोड़ी है,” अजय ने इशारे से दिखाया, “... वो वहाँ दराज़ में है। अगर कल को मुझे कुछ हो जाए, तो उसमें सब कुछ लिख छोड़ा है,”

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “दे डिज़र्व टू नो,”

“तुम भी... रूचि, मैंने कभी भी अपने फ़्यूचर से आने का मिसयूज़ नहीं किया। ... मैंने बस यही कोशिश करी कि मेरे आस पास सभी की ज़िन्दगी सही रहे... बेहतर रहे।”

रूचि मुस्कुराई, “अज्जू... तुम कुछ ग़लत नहीं सकते! मैं किसी ग़लत आदमी को अपना दिल नहीं दे सकती...”

अचानक से ही अजय को राहत महसूस हो आई, “तो... तो... डज़ इट मीन... दैट आई ऍम सेफ़?”

“अज्जू,” रूचि ने कोमलता से अजय के गाल को छुआ, “मैंने तुमको चाहा है... तुम्हारे जैसे लगने वाले तीस साल के अंकल को नहीं!”

“ओह गॉड! ... थैंक यू सो मच मेरे प्रभु!” अजय ने विश्वकर्मा प्रजापति जी को धन्यवाद दिया, “एंड थैंक यू रूचि!”

अचानक से ही रूचि की आँखों में चमक सी आ गई, “सोचो न अज्जू... तुमने भगवान को छुआ है! शायद ही किसी को यह सौभाग्य मिलता है! मैं तो तुम्हारी बीवी बन कर धन्य हो जाऊँगी!”

“अरे यार,”

“अरे यार नहीं... सच में! जिसके सर पर खुद ईश्वर ने हाथ रख दिया हो, उसकी संगत में कुछ गलत नहीं हो सकता,”

“जान... आई डोंट थिंक दैट्स हाऊ इट वर्क्स,”

“जो भी हो... तुम्हारा इंटेशन नेक है। तुम एक अच्छे लड़के हो... एंड आई ऍम हैप्पी, कि मैंने तुमसे प्यार किया है!”

“छोड़ोगी तो नहीं न मुझको?”

“कभी नहीं,”

अजय मुस्कुराया।

“बट आई वुड लाइक टू सी दैट रेड तिल ऑन हर ब्रेस्ट...”

“राइट ब्रेस्ट...” अजय ने स्पष्ट किया, “अंडरनीथ द फ्लेश... नॉट ऑन द ब्रेस्ट!”

**
Nice update....
 
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होश मे आने के बाद अजय साहब की जो मनःस्थिति थी और राइटर साहब ने जिस खुबसूरत शब्दावली के द्वारा उन लम्हों का एनालिसिस किया था , उससे एक बार लगा कि गई भैंस पानी मे । मतलब अजय साहब वापस वर्तमान मे प्रवेश कर गए ।
बहरहाल ऐसा हुआ नही । अजय साहब की चेतना कुछ दिन के लिए निष्क्रिय हो गई थी ।
चेतना का निष्क्रिय होना कोई अजीबोगरीब मैटर नही था लेकिन एक ही लड़की की वजह से दो बार ऐसी सिचुएशन उत्पन्न होना अवश्य अजीब बात थी । पहली बार तो वह करीब बतीस घंटे बेहोश थे और यह लड़की के साक्षात दर्शन से हुआ था । दूसरी बार लड़की के जिक्र मात्र से वो कुछ पल के लिए अचेतन अवस्था मे पहुंच गए थे ।

इन सब मैटर से स्पष्ट जाहिर हो रहा है कि रागिनी मैडम का डर उनपर किस तरह हाॅवी है ! बल्कि यह कहा जाए रागिनी मैडम का फोबिया अजय साहब के सर चढ़कर बोल रहा है ।
इस पुरे घटनाक्रम के दौरान रूचि ने एक आदर्श पत्नी की तरह विहेवियर किया और शायद इस कारण ही अजय साहब ने भी उसे सारी सच्चाई बता दी । यह दोनो के फ्यूचर के लिए अच्छी बात है ।

अब प्रश्न यह खड़ा हो रहा है कि इस पुरे प्रकरण के बाद दोनो कजन सिस्टर रूचि और रागिनी का रिश्ता किस ओर जाता है ! इन दोनो के बीच मतभेद उत्पन्न होने वाला है , या फिर ' रात गई बात गई ' की तरह नजरअंदाज कर दिया जाने वाला है !

खुबसूरत अपडेट avsji भाई ।
 

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रात में दवाई के प्रभाव से अजय को जल्दी ही नींद आ गई थी, लेकिन रूचि बहुत देर तक नहीं सो पाई। पिछले दो दिनों की चिंता और उद्विग्नता ने उसकी नींद उड़ा दी थी। जान पहचाना सर का दर्द भी वापस महसूस हो रहा था। अजय की चिंता में वो अपना सारा दर्द भूल गई थी, लेकिन अब उसको चैन से सोता हुआ देख कर, उसको स्वयं की तकलीफ़ महसूस होने लगी। उसके आँसू फिर से निकल आए - दर्द के कारण नहीं... वो तो नाममात्र ही था! अजय के कारण - जब अजय अचेत हो गया था तब उसको यह सोच कर डर हो आया कि कहीं शादी से पहले ही वो विधवा न हो जाए! और अब... जब से उसको अजय के रहस्य के बारे में पता चला था, तब से वो और भी उद्विग्न हो गई थी। कहीं ऐसा न हो कि एक दिन ऐसे ही, अचानक से, ईश्वर अजय को उससे छीन कर वापस भविष्य में भेज दें।

यह विचार बहुत दुखदायक था! कुछ महीनों पहले वो प्रेम, प्रेम संबंधों, विवाह इत्यादि के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। लेकिन अब वो इन सब से अलग जीवन के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। अभी तक उसने अपनी जीवन में जो सब कुछ किया था... उन सभी बातों का उद्देश्य... अजय और उसके परिवार के संग पूरा होने की प्रबल सम्भावना थी। और अचानक से ही उस सम्भावना को चूर होते देख कर उसका दिल टूट गया था। उसको लगा कि कहीं उसके गले से रोने की आवाज़ न निकल आए - इसलिए वो चुपके से उठ कर कमरे से बाहर निकल आई। उसने इधर उधर देखा - इस तल पर सभी कमरों की लाइट्स ऑफ थीं, इसलिए वो नीचे उतर आई। देखा कि माँ के कमरे की लाइट्स ऑन थीं। उसके चेहरे पर राहत वाले भाव आ गए। उसके दरवाज़े पर बस एक बार खटखटाया ही था कि किरण जी की आवाज़ आई,

“अंदर आ जा बिटिया,”

रूचि को यकीन ही नहीं हुआ कि माँ को पता चल गया कि दरवाज़े पर वो है।

जब वो अंदर आई, तो उसने किरण जी को अपनी तरफ मुस्कुराता हुआ पाया।

“आजा बेटू,”

रूचि उनके बगल आ कर उनसे चिपट कर लेट गई।

“नींद नहीं आ रही बेटू,”

यह कोई प्रश्न नहीं था - रूचि ने ‘न’ में सर हिलाया।

“बहुत डर गई थी मैं माँ,” कुछ देर बाद वो बस इतना ही कह पाई।

“समझ सकती हूँ मैं बच्चे,” किरण जी ने हल्की सी आह भरते हुए कहा, “समझ सकती हूँ,”

वो खुद भी तो अपने बेटे की हालत पर बहुत डर गई थीं।

कुछ देर तक रूचि यूँ ही किरण जी से लिपटी हुई लेटी रही।

जब रूचि कुछ न बोली, तो किरण जी ने बिना कुछ कहे अपनी ब्लाउज के बटन खोल कर ब्लाउज और साथ ही अपनी ब्रा के हुक खोल कर ब्रा भी उतार दिया। फिर रूचि को अपने आलिंगन में समायोजित कर के अपने एक हाथ में अपना स्तन पकड़ कर, उसका चूचक रूचि के मुँह में दे दिया। रूचि भी बिना कुछ कहे उनका दूध पीने लगी। कुछ मिनटों में जब वो स्तन खाली हो गया, तो किरण जी ने रूचि के मुँह में दूसरा स्तन पकड़ा दिया। रूचि ने उसको भी कुछ मिनटों में खाली कर दिया।

“बेटू मेरी,”

“हम्म?”

“ठीक लग रहा है अभी?”

माँ का स्तनपान कर के रूचि को सच में आराम महसूस हो रहा था। उनके ममता भरे अंक में सिमट कर उसके दुःख कम हो गए थे। भावनात्मक सुख जो मिल रहा था, सो अलग।

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“माँ?”

“हाँ बेटू?”

“प्लीज़ कीप लविंग मी लाइक दिस?”

“ऑलवेज बेटे... ऑलवेज!”

“थैंक यू माँ!”

“ऐसे मत बोलो बच्चे,” किरण जी ने प्यार से उसको दुलारते हुए कहा, “मेरे लिए तुझमें और माया या अज्जू में कोई अंतर नहीं है,”

दोनों फिर से चुप हो गए। किरण जी बड़े प्यार से उसको सहलाती दुलारती रहीं।

“बेटू?”

“जी माँ,” रूचि की आवाज़ में अब थकावट सुनाई देने लगी थी।

वो अब जा कर शिथिल महसूस कर रही थी।

“निन्नी आ रही है?”

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिला कर हामी भरी।

“आ जा,” किरण जी ने खुद को और रूचि को बिस्तर पर आरामदायक स्थिति में ला कर कहा, “मेरे पास सो जा,”

रूचि किरण जी से चिपक कर लेट गई।

किरण जी ने वापस अपना एक स्तन उसको पीने को दे दिया। रूचि को अपने मुँह में फिर से कुछ बूँदें दूध की महसूस हुईं। कुछ देर में उसको सुखदायक नींद आ गई।


**


रूचि जब घर पहुँची तो उसने देखा कि कम से कम इस समय घर में मुर्दनी जैसा माहौल नहीं था - जैसा दो दिन पहले हो गया था। उसके आने पर सभी ने उसका और अजय का कुशलक्षेम पूछा। सबसे बातें करने के बाद रूचि अपने कमरे में आ गई। कमरे में रागिनी बिस्तर पर लेटी हुई एक मैगज़ीन पढ़ रही थी। मैगज़ीन के कवर पर एक अर्धनग्न लड़की मादक अदा में दिखाई दे रही थी। रूचि ने देखा - मैगज़ीन का नाम था ‘डेबोनेयर’! मैगज़ीन में वो जो भी पढ़ रही थी, उसको पढ़ कर उसका चेहरा एक अजीब सी ख़ुशी या उत्तेजना में चमक रहा था... ऐसा कि जैसे वो अपने मन में कोई शरारत सोच रही हो।

रूचि ने उसकी ओर एक नज़र डाली और मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या देख रही हो, दीदी? क्या पढ़ने में इतनी मगन हो?”

“अरे बहना,” रागिनी ने मैगज़ीन को बंद कर के बगल रखते हुए बोली, “कब आई? सब ठीक है न? जीजू ठीक हैं न?”

“हाँ सब ठीक है, दीदी! वो भी ठीक हैं!”

“‘वो’?” रागिनी ने ठिठोली करते हुए रूचि को छेड़ा, “आय हाय मेरी बहना... बड़े रेस्पेक्ट से नाम लेती हो अपने ‘उन’ का!”

रूचि समझ तो रही थी कि रागिनी माहौल को हल्का करने की कोशिश कर रही है।

“क्या हुआ था जीजू को?”

“कुछ नहीं दीदी... शायद लेट स्लीपिंग, डिहाइड्रेशन, और थकावट के कारण उसको चक्कर आ गया था... नथिंग सीरियस!”

“पक्का न? कोई सीरियस बात तो नहीं है न?”

“हाँ... कोई सीरियस बात नहीं,”

“अच्छा है,” रागिनी ने बड़े ही नाटकीय तरीके से साँस छोड़ते हुए कहा, “... नहीं तो मुझे लगा कि कहीं मेरा हुस्न देख कर तो उनको चक्कर नहीं आ गया,”

रागिनी अपनी ही कही हुई बात पर हँसने लगी।

उसकी बात सुन कर रूचि को गुस्सा तो आया, लेकिन उसने भी उसके साथ हँसने का नाटक किया।

उसको अजय की बातें याद आ गईं।

“हा हा हा हा... अरे दीदी! वो सब छोड़ो... क्या पढ़ रही हो?” रूचि ने उलट पलट कर मैगज़ीन देखी, “कुछ मज़ेदार है क्या?”

रागिनी ने अपनी आँखें शरारत से नचाते हुए कहा, “अरे कुछ नहीं बहना, एयरपोर्ट से दो मज़ेदार मैगजीन्स उठाई थीं, वही पढ़ रही थी! तू भी देख न... बड़ी मज़ेदार है!”

रूचि ने कुछ पन्ने पलटे,

“अरे दीदी! इसमें तो नंगी नंगी लड़कियों की तस्वीरें हैं!”

“हाँ तो?” रागिनी ने ऐसे कहा जैसे यह कोई बड़ी बात नहीं हो, “डेबोनेयर एक गर्ली मैगज़ीन है न... लड़कियों की!”

रूचि ने वो पत्रिका वापस रख दी।

रागिनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “वैसे, तू तो अब सेट हो गई ना, रूचि? अजय जैसे मस्त लड़के से शादी जो करने वाली है!”

उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी ईर्ष्या थी, जो रूचि के कानों में साफ़ सुनाई दी। रागिनी ने अपने बालों को उंगलियों से सहलाते हुए आगे कहा, “सच बताऊँ, तेरी लॉटरी लग गई है बहना! इतना अमीर परिवार, अच्छा और हैंडसम लड़का! क्या बात है, यार!”

रूचि ने हल्के से हँसते हुए कहा, “हाँ दीदी, अजय बहुत अच्छा है। उसके घर में भी सभी लोग बहुत अच्छे हैं! मैं लकी तो हूँ!” फिर बात बदलते हुए, “लेकिन मेरी बात छोड़ो, तुम बताओ... तुम्हारी लाइफ में क्या चल रहा है? कोई बॉयफ्रेंड-वॉयफ्रेंड?”

रूचि ने अंधेरे में तीर मारा, लेकिन निशाना सटीक लगा! रागिनी की आँखों में एक चमक उभरी।

“अरे, कुछ नहीं! बस ऐसे ही थोड़ा बहुत...”

रागिनी अपने ‘सक्सेस’ की कहानियाँ सुनाना चाहती थी - बस, उसको सुनने वाले लोग चाहिए थे उसको।

“थोड़ा या बहुत?” रूचि ने कुरेदा।

“दो... तीन...”

“बस?”

रागिनी ने एक ठहाका लगाया, “अरे रूचि, तू कितनी भोली है! दुबई है यार... रुपए के चार के भाव से तो प्रिंस हैं उधर! दो एक को टहला लिया... लेकिन तू तो जानती है न आजकल के लड़के... फ़कर्स... बस टाइमपास करने के लिए अच्छे हैं, घर बसाने के लिए नहीं!”

“क्यों? ऐसा क्या हुआ? कोई लायक नहीं था?”

“नहीं रे! वैसी बात नहीं है... उनको अपने में ही करनी रहती है शादी। थोक के भाव प्रिन्स और प्रिंसेस होती हैं, तो जो भी एलिजिबल होते हैं, उनको मिल भी जाती हैं फ़ूफ़ी और खाला की लड़कियाँ! ... और मुझे किसी की दूसरी औरत बन के रहना पसंद नहीं!”

“हम्म,”

रागिनी ने एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा, “वैसे बहना, तू तो अभी तक वर्जिन ही होगी न? जीजू तो शरीफ़ लगते हैं! उनके साथ कुछ हुआ या नहीं?”

रूचि का चेहरा एक पल के लिए लाल हो गया, “अरे दीदी! क्या कह रही हो! अभी तो हमारी सगाई भी नहीं हुई है ठीक से!”

“लाडो रानी, सेक्स के लिए सगाई की क्या ज़रुरत है?”

“हम्म्म,” रूचि ने हाथ बाँधते हुए कहा, “तो तुम ही बताओ... तुम्हारे उन बॉयफ्रेंड्स के साथ क्या-क्या हुआ? कुछ तो किया ही होगा न?”

रागिनी को अपने मसालेदार किस्से सुनाने के लिए एक श्रोता मिल गई थी।

उसने एक शरारती हँसी हँसते हुए कहा, “अरे, मसालेदार तो बहुत कुछ हुआ, बहना! मेरा पहला बॉयफ्रेंड, ख़ालिद, वो तो ऐसा था कि बस हर टाइम मुझसे इंटिमेट होने का बहाना ढूंढता रहता था। बड़ा पैसा था उसपे! शेख़ राशिद टावर में एक कमरा मेरे लिए रखता था... वहाँ... बस, समझ ले यार... रातें बहुत लंबी होती थीं अपनी!”

उसने बड़ी कमीनियत के साथ अपनी भौंहें उचकाईं और हँसते हुए कहा, “तू अभी समझ नहीं पाएगी बहना... लेकिन सेक्स के टाइम वो जो इंटिमेट मोमेंट्स होते हैं न, वो ज़िन्दगी का मज़ा दोगुना कर देते हैं।”

रूचि ने हल्के से अपनी भौंहें सिकोड़ीं।

उसे रागिनी की ये बेपरवाह बातें अजीब लग रही थीं, लेकिन वो नहीं चाहती थी कि रागिनी को लगे कि वो उसकी बातों से असहज हो रही है। पुराने वाले अजय पर उसको तरस भी आ रहा था कि किस तरह की लड़की से उसका पाला पड़ गया था!

सम्मुख में उसने हँसते हुए कहा, “अच्छा! तुम तो बहुत एक्सपीरियंस्ड हो गई हो दीदी! और दूसरा बॉयफ्रेंड? उसका क्या?”

रागिनी ने अपने कंधे उचकाए, “दूसरा वाला तो प्रॉपर प्रिन्स था! वो तो और भी मज़ेदार था। उसका नाम था सईद... पूरा बता दूँगी तो दंगा हो जाएगा,” वो फूहड़ता से हंसती हुई बोली, “बहुत ख़याल रखता था मेरा! सुपर-रिच था... माँ तो पता नहीं है, लेकिन लखपति हूँ मैं!”

कह कर उसने गहरी साँस भरी।

“फ़िर?” रूचि ने कुरेदा।

“कुछ नहीं रे! फट्टू है एक नंबर का स्साला... प्राइवेसी के चक्कर में बस लॉन्ग ड्राइव पर ले जाता था। दुबई के बाहर सुनसान रेगिस्तान में ही...” उसने फिर से एक गहरी साँस ली और रूचि की ओर देखते हुए कहा, “तुझे तो अभी ये सब एक्सपीरियंस करना बाकी है, बहना! लेकिन जब तू जीजू के साथ अकेली होगी न, तो समझ जाएगी कि मैं क्या कह रही हूँ।”
 

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रूचि ने मन ही मन सोचा कि किस तरह की लड़की है ये! मन ही मन उसे रागिनी का ये लम्पट अंदाज़ ख़राब लग रहा था। अगर रागिनी किसी के संग प्रेम के कारण सेक्स कर रही होती, तो समझ में आता है। लेकिन वो जो कर रही थी, या कर चुकी थी, उसको वेश्यावृत्ति ही कहना उचित है। लेकिन बाहर से उसने बस एक हल्की मुस्कान दी और कहा, “हम्म्म हम्म... देखते हैं दीदी! ... वैसे तुमको तो बहुत आता है इन सब चीज़ों के बारे में। मुझे तो अभी कुछ समझ ही नहीं आता।”

“सच में? तुझे सच में नहीं पता?”

रूचि ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “माँ कुछ बताती ही नहीं!”

“क्या यार! पढ़ने लिखने में न, तू सबसे ज़रूरी बातें सीखना भूल गई।”

रूचि ने उदास सा चेहरा बना लिया।

रागिनी ने एक विजयी मुस्कान दी, और उसको दिलासा देती हुई बोली, “अरे कुछ नहीं बहना! ये सब तो एक्सपीरियंस की बात है। तू बस एक काम करना... जब तुम दोनों अकेले हो न, तो बस अपने दिल की सुनना। अजय समझदार है... वैसे भी लड़कों को बस थोड़ा सा इशारा काफ़ी होता है। फिर वो तुझ पर ऐसे टूट पड़ेगा न, कि तू उड़ने लगेगी मेरी लाडो!” उसने हँसते हुए कहा।

रूचि को यह वार्तालाप असुविधाजनक लग रहा था, लेकिन वो कर भी क्या सकती थी! शुरू उसी ने किया था।

“वैसे,” रागिनी ने रूचि को चुप देख कर कहा, “अगर तू चाहे तो मैं तुझे कुछ टिप्स दे सकती हूँ।”

रूचि ने हल्के से हँसते हुए कहा, “टिप्स? अरे दीदी, अभी तो मेरी सगाई भी नहीं हुई है!” फिर बात बदलते हुए बोली, “इन दोनों के अलावा कोई नहीं? कोई ऐसा जिसके साथ तुम सीरियस हो?”

“नहीं यार... एक नया बॉयफ्रेंड मिला है, लेकिन सीरियस नहीं है कुछ! ... वैसे,” रागिनी ने रहस्यमई अंदाज़ में कहा, “अजय अच्छा है,”

“हाँ दीदी! आई ऍम वैरी लकी,”

रागिनी ने एक गहरी साँस ली और बिस्तर पर और पीछे की ओर सरकते हुए कहा, “हाँ यार... सच में तू लकी है! और सच कहूँ... तो अजय जैसा लड़का पाना तो हर लड़की का सपना होता है। रिच फैमिली, गुड लुक्स, और जो कुछ सुना उसके बारे में... बहुत सुलझा हुआ भी! और इतना कमसिन भी!” कहते कहते उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक आ गई थी, “सच कहूँ बहना... बुरा न मानना... अगर तू न होती न तो मैं तो ज़रूर अजय को पटाने की कोशिश करती!”

उसने कहा तो हँसते हुए था लेकिन उसकी हँसी में छुपी हुई ठंडी गंभीरता रूचि को साफ़ साफ़ समझ में आ गई। और इस बोध से उसका शरीर सिहर गया।

प्रत्यक्ष में रूचि ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा! तो तुम मुझसे मेरा होने वाला हस्बैंड छीनना चाहती हो?”

रूचि ने बड़ी कोशिश करी कि यह मज़ाक जैसा ही लगे, लेकिन उसकी आवाज़ में एक हल्की सी तल्ख़ी थी।

“अरे, मज़ाक कर रही हूँ बहना,” रागिनी ने हँसते हुए कहा। “लेकिन सच में, तू बहुत लकी है। अजय जैसे लड़के को पाना कोई छोटी बात नहीं है।”

“पता है? उनकी बड़ी बहन की शादी उनके दोस्त के साथ हो रही है,”

“जीजू का दोस्त भी उन्ही के जैसा है?”

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हाय मेरी किस्मत! बहनचोद, क्या कर रही हूँ वहाँ रेगिस्तान में!” रागिनी के मुँह से गाली सुन कर रूचि चौंक गई, “माँ से कह कर यहाँ इंडिया शिफ़्ट हो जाते हैं!”

“दीदी!” रूचि ने डंपटते हुए कहा।

“सॉरी यार! निकल गया मुँह से,” वो बोली, “कब है शादी?”

“दो हफ़्ते बाद,”

“बढ़िया है! क्या पहनेगी?” रागिनी ने पूछा, “तू तो उनकी होने वाली बहू है बहना मेरी! तुमको तो एकदम सज धज के रेडी रहना चाहिए... दुल्हन की तरह!”

“एक्चुअली, एक नहीं - दो शादियाँ हैं! पहले इनकी दीदी की, और फिर दो दिन बाद इनके बड़े भैया की!”

“सही है यार,” रागिनी ने गहरी साँस भरते हुए कहा, “द मोर द मेरिअर...”

“मेरी हेल्प करोगी दीदी?”

“ड्रेस सेलेक्ट करने में?” रागिनी को जैसे अपना पसंदीदा विषय मिल गया हो, “श्योर! दिखा मुझे... क्या क्या है तेरे पास?”

रूचि ने अपनी अलमारी से साड़ियाँ और अन्य ड्रेसेस निकालने शुरू कर दिए। विगत दो वर्षों में रूचि की मम्मी ने रूचि के लिए साड़ियाँ खरीदनी शुरू कर दी थीं - कुछ भारी तो कुछ हल्की। इसलिए नहीं कि उसकी शादी की कोई चिंता थी उनको - बल्कि इसलिए कि वो चाहती थीं कि उसको समाज में उठने बैठने का समुचित शऊर आ जाय।

रूचि ने दो साड़ियाँ बिस्तर पर रखते हुए कहा, “वैसे दीदी, कैसा लड़का होना चाहिए जिसके साथ तुम सच में सेटल होना चाहोगी?”

रागिनी ने एक पल के लिए सोचा और फिर कहा, “हम्म... मैं चाहती हूँ कि मेरा होने वाला हस्बैंड ऐसा हो जो मुझे हर तरह से सिक्योर कर दे... उसके पास रुपया पैसा, स्टेटस... सब कुछ होना चाहिए,” उसने एक नाटकीय अंदाज़ में कहा, “मैं चाहती हूँ कि मेरी शादी किसी ऐसे लड़के से हो, जो मुझे दुनिया की हर ख़ुशी दे सके... अजय जैसा... या शायद उससे भी बेहतर!”

रूचि ने मन ही मन सोचा कि ये तो साफ़-साफ़ जल रही है मुझसे, लेकिन उसने हँसते हुए कहा, “अच्छा, तो तुमको अजय से भी बेहतर चाहिए!”

रागिनी ने भी हँसते हुए कहा, “हाँ... लेकिन फिलहाल तो मैं मार्केट में सर्च कर रही हूँ! लेकिन हाँ, अगर अजय जैसा कोई मिल जाए, तो मैं तो तुरंत हाँ कर दूँगी।”

फिर उसने अपनी आँखें सिकोड़ते हुए और कहा, “तू मुझसे सब बुलवाए ले रही है... तू बता! तू कुछ तो करी होगी न अजय के साथ! बता ना, क्या क्या किया?”

रूचि ने हल्के से अपनी नज़रें नीचे कर लीं... उसे रागिनी की जलनखोरी और बेतक़ल्लुफ़ी अजीब लग रही थी।

उसने कहा, “अरे दीदी, अभी तो हम बस एक दूसरे को समझ रहे हैं। वो सब तो बाद में होगा।”

“बाद में?” रागिनी ने एक ठहाका लगाया, “अरे बहना, तू सच में बहुत सीधी है! गाय है गाय! तुम दोनों को अब तक कुछ न कुछ कर लेना चाहिए था।”

रूचि ने हल्के से हँसते हुए कहा, “मैं तो अभी इन सबके लिए तैयार नहीं हूँ।”

“तैयार नहीं है?” रागिनी ने हँसते हुए कहा। “अरे लाडो रानी, ये सब तो बस फीलिंग्स की बात है। जब तू अजय के साथ अकेले होगी, तो सब अपने आप हो जाएगा।” उसने अपनी आवाज़ को और धीमा करते हुए कहा, “मैंने तो ख़ालिद और सईद के साथ इतने मस्त मोमेंट्स शेयर किए है कि बस... हर बार लगता था कि मैं बादलों पर उड़ रही हूँ।”

रूचि ने बस हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा? इतना मज़ा आता है?”

“मज़ा?” रागिनी ने हँसते हुए कहा, “मज़ा तो बस शुरुआत है बहना... जब मर्द का ‘वो’ अंदर जाता है न... उफ़! एक बार होने दे, फिर तू समझ जाएगी कि मैं क्या कह रही हूँ।” उसने एक गहरी साँस ली और कहा, “वैसे, अगर तुझे कोई टिप चाहिए, तो बता दे। मैं तुझे पूरा गाइड कर दूँगी,”

रूचि ने हँसते हुए कहा, “ठीक है, जब ज़रूरत पड़ेगी, तुमसे पूछ लूँगी।” फिर बात बदलते हुए बोली, “लेकिन अभी मुझे ड्रेस सेलेक्ट करने में हेल्प कर दो न,”

रागिनी ने एक साड़ी उठा कर देखा और कहा, “वाओ रूचि, ये तो बहुत खूबसूरत है! तू इसमें हॉट लगेगी। अजय तो तुझ पर फिदा हो जाएगा।”

“सच में?”

“हाँ... पहन कर दिखा?”

रूचि ने साड़ी को उठाया और रागिनी से कहा, “उधर मुँह करो,”

रागिनी हँसते हुए बोली, “पागल है क्या?”

रूचि समझ गई कि अगर रागिनी की सच्चाई जाननी है तो यह करना ही पड़ेगा। उसने अपना कुर्ता उतारना शुरू कर दिया।

रागिनी ने उसकी ओर देखा और हँसते हुए कहा, “अरे बहना, तू तो सच में बिंदास है! बस एक दिन ऐसे ही हिम्मत कर के जीजू के सामने कपड़े उतार दे! फिर देखना!”

रूचि ने हँसते हुए कहा, “तुम्हारी बात अलग है! तुम मेरी बहन हो!”

“लाडो मेरी, एक हस्बैंड ही होता है, जिसके सामने शर्म नहीं करी जाती!”

तब तक रूचि ने अपने अधोवस्त्रों में आ गई थी। उसने पेटीकोट पहना, साड़ी से मैचिंग ब्लाउज़ पहना और फिर साड़ी को अपने शरीर पर लपेटना शुरू किया। रागिनी की नज़रें रूचि के शरीर पर टिकी थीं।

उसने कहा, “रूचि, तेरा फिगर कमाल का है! जीजू भी कोई कम लकी नहीं हैं।”

रूचि ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “दीदी, तुम भी कुछ कम नहीं हो! मुझसे तो बीस हो... बीस क्या, पच्चीस हो,”

अपनी सुंदरता की बढ़ाई सुन कर रागिनी भी फूल कर कुप्पा होने लगी।

रूचि कह रही थी, “वैसे, तुम भी कुछ ट्राई करो न... मेरी अलमारी में कई साड़ियाँ हैं,”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “अच्छा ठीक है, मैं भी कुछ ट्राई करती हूँ।”

उसने बिस्तर से उठकर अलमारी की ओर कदम बढ़ाए और एक नीली साड़ी निकाली, “ये कैसी रहेगी?”

रूचि ने कहा, “परफ़ेक्ट! ये तो बहुत सुंदर है। ट्राई करो,”

रागिनी ने अपनी टी-शर्ट उतार दी और फिर अपनी जींस भी। अब वो भी सिर्फ़ अधोवस्त्रों में थी।

रूचि ने उसकी ओर देखा और हँसते हुए कहा, “दीदी, तुम तो कमाल की हो,”

रागिनी ने एक शरारती मुस्कान दी और कहा, “आई नो, लेकिन तू भी तो कम नहीं है। थोड़ा सम्हाल कर देखभाल कर अपने रूप रंग की! गज़ब लगेगी तू भी!”

उसने साड़ी को लपेटना शुरू किया, “रूचि, तूने कभी सोचा है कि जब तू अजय के साथ होगी, तो वो तुझे ऐसे ही देखेगा? मतलब, इतना क्लोज़... इतना इंटीमेटली?”

रूचि का चेहरा फिर से शर्म से लाल हो गया।

उसने कहा, “अरे दीदी, तुम फिर शुरू हो गई! अभी तो मैं इन सबके बारे में सोच भी नहीं रही।”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “मेरी बहना, तो सोचना शुरू कर दे! वो सब बहुत मज़ेदार होता है।”

थोड़ी देर में दोनों अपनी अपनी साड़ियाँ पहन कर तैयार थीं।

“मस्त लग रही हो रूचि!” रागिनी ने कहा, और फिर रूचि के बाल पकड़ कर एक दो स्टाइल में पकड़ कर दिखाते हुए बोली, “बाल ऐसे रखना... और बहुत हेवी नेकलेस मत पहनना! ठीक है?”

रूचि न ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“बढ़िया लगेगी!” रागिनी ने बढ़िया शब्द पर ज़ोर दिया।

“तो ये साड़ी पक्की?”

“हंड्रेड परसेंट!”

“ओके,” कह कर रूचि ने उस साड़ी और ब्लाउज़ को उतार दिया और फिर पेटीकोट भी।
 

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अपडेट 60


“एक सेकंड,” रागिनी ने कहा।

“क्या हुआ दीदी?”

रागिनी रूचि के पीछे आ कर उसकी ब्रा का हुक खोल देती है और उसको उसके स्तनों से अलग कर देती है।

“दीदी,” रूचि ने अपने स्तनों को ढँकते हुए अपना विरोध प्रदर्शित किया।

“अरे यार... मुझे देखने तो दे,” कह कर रागिनी ने उसकी हथेलिओं को उसके स्तनों से हटा दिया।

रूचि क्या करती! बस शर्म से रागिनी के सामने लगभग नग्न खड़ी रही।

“मस्त है तू बहना,” रागिनी ने रूचि के फिगर का मूल्याँकन करते हुए कहा, “ये निप्पल्स और ब्रेस्ट्स पर न कम से कम कोल्ड क्रीम लगा लिया कर... देख कैसे इन पर हल्की हल्की दरारें पड़ रही हैं! मॉइश्चर बना रहना चाहिए इनका,”

फिर रूचि की चड्ढी की इलास्टिक पकड़ कर नीचे करते हुए वो बोली, “तेरी पूची भी देख लूँ,”

रूचि के मन में अजीब अजीब से ख़याल आ रहे थे। जब से अजय ने रागिनी के साथ अपने रहस्य के बारे में उसको बताया था, तब से उसके मन में रागिनी को देखने का नज़रिया बदल गया था। लेकिन अजय की बात भी सच थी - उसके दो संस्करण थे, और दोनों में रागिनी और रूचि की भूमिका और स्थान अलग अलग थे। फिर भी रागिनी को ले कर रूचि के मन में सौतिया विचार आ तो गए ही थे। तिस पर रागिनी की ईर्ष्या और अब ये सब! रूचि समझ नहीं रही थी कि वो क्या करे! रागिनी ने अभी तक उसके साथ कुछ गलत नहीं किया था - करती भी क्यों? ये अलग ही टाइम-लाइन थी न!

“मस्त है यार,” रागिनी ने बढ़ाई करते हुए कहा, “वर्जिन पूची! और कितने सॉफ्ट सॉफ्ट बाल हैं तेरे,”

“तुम्हारे नहीं हैं?” न जाने रूचि कैसे पूछ पाई।

“न रे! चौदह पंद्रह में ही हार्ड हो गए थे मेरे,” उसने बताया, “इसीलिए मैं हेयर रिमूवल क्रीम लगाती रहती हूँ,”

उधर रूचि शर्म से पानी पानी हो रही थी।

“शरमा मत मेरी बहना! तू खज़ाना है खज़ाना!” रागिनी ने समझाया, “जब तक मैं हूँ, मैं तेरी ग्रूमिंग में हेल्प कर दूँगी। लेकिन उसके बाद मेरी सिखाई बातें भूल न जाना... बस अडिशनल थर्टी टू फोर्टी मिनट काफ़ी है अपनी स्किन की बढ़िया केयर रखने के लिए! और केयर ही सब कुछ है... समझी?”

“समझ गई दीदी,”

“गुड,” फिर खुद को नीली साड़ी में प्रदर्शित करती हुई बोली, “मैं कैसी लग रही हूँ?”

“बहुत सुन्दर,” यह अतिशयोक्ति नहीं थी - रागिनी थी भी बड़ी सुन्दर! कोई भी रंग उस पर फ़बता था।

वो मुस्कुराई, “बहना... तू न, मेरी वो रस्ट कलर वाली साड़ी रख ले,”

“क्यों दीदी?”

“क्यों क्या? मेरी चीज़ है और मैं तुझे देना चाहती हूँ, बस! रख ले!” वो बोली, “अच्छा, दूसरी शादी में क्या पहनेगी?”

“इनमें से कौन सी ट्राई करूँ? तुम्ही बता दो?”

रागिनी ने हर साड़ी पर निगाह डाली, “इन सबसे तो मेरी रस्ट कलर वाली साड़ी ही बेहतर है,” कह कर उसने अपने सूटकेस में से वो साड़ी निकाली। रागिनी वो साड़ी इसलिए लाई थी कि दिवाली पर पहनेगी। लेकिन दिवाली मनाई ही नहीं गई।

“लास्ट ईयर सिलवाया था इसका ब्लाउज़... अभी टाइट आता है मुझे... लेकिन तुझे सही आना चाहिए। पहन न?”

रूचि ब्रा पहनने लगी तो रागिनी ने उसको रोक दिया, “इसमें ब्रा नहीं पहनना होता... सॉफ्ट पैड्स हैं सामने!”

ब्लाउज़ बढ़िया फिटिंग की थी - रूचि का वक्ष-विदरण भी दिखाई दे रहा था। और साड़ी बहुत ही सेक्सी अंदाज़ में रूचि के शरीर से चिपकी हुई थी।

“सेक्सी,” रागिनी ने अनुमोदन किया, “इसको भैया की शादी में पहनना,”

“ओके,”

“और क्या क्या है?”

“अरे हो तो गया! दो इवेंट्स... दो ड्रेस,”

“पागल है क्या?” रागिनी हँसने लगी, “दो और चाहिए! दोनों इवेंट्स के लिए कम से कम एक एक और,”

“ये कैसा रहेगा?” रूचि ने एक रेशमी शलवार कुर्ता दिखाया।

“हाँ, ठीक है... लेकिन दीदी की शादी है, तो इससे बेहतर भी अगर हो सकता है, तो वो पहनो,”

“अब जो है, यही है!”

“हम्म... एक काम करते हैं, कल शॉपिंग कर लेते हैं! दो दिन बाद मैं चली जाऊँगी... और तेरी कपड़ों की चॉइस देख कर मज़ा नहीं आ रहा!”

रूचि ने थोड़ी देर न नुकुर किया फिर मान गई।

“और सुन,” रागिनी ने कहा, “शॉपिंग के सारे पैसे मैं दूँगी! बहुत माल है मेरे पास,”

जब सारे कपड़े इत्यादि वापस अपनी अलमारी में रख कर रूचि वापस बिस्तर पर आई, तो रागिनी ने कोई लोशन अपने हाथों में उड़ेंल कर चुपड़ते हुए कहा, “आ जा,”

“क्या दीदी?”

“अपनी टी शर्ट और ब्रा उतार,”

“मैं लगा लूँगी न दीदी,”

“बहस मत कर! उतार इनको... जल्दी,”

रूचि ने दो तीन बार और कहा फिर हार मान कर फिर से अपने स्तनों को उघाड़ कर रागिनी के सामने थी।

रागिनी ने उसके दोनों स्तनों पर बारी बारी से अच्छी तरह से लोशन लगाया। रूचि के चूचक इस पूरी प्रक्रिया में उत्तेजना के मारे कड़े हो गए थे। रागिनी ने मज़ाक में उसके दोनों चूचकों को अपनी दोनों तर्जनियों और अंगूठों में पकड़ कर थोड़ा बाहर की तरफ़ खींचते हुए उसको छेड़ा,

“क्यूट है तू,”

फिर उसका पजामा और चड्ढी उतार कर उसने रूचि के पुट्ठों और योनि पर भी लोशन लगा दिया।

“अपने एसेट्स का अच्छी तरह से ख्याल रखा कर बहना,” उसने उसकी योनि पर लोशन लगाते हुए कहा, “ये तुझे और अजय को खूब मज़ा देंगे! और सेक्स से अलग भी तो ये इम्पोर्टेन्ट हैं! तेरे बच्चे यहाँ से निकलेंगे [उसने उसकी योनि को छू कर बताया] और यहाँ से दूध पियेंगे [उसने उसके स्तनों को छुआ]... इसलिए इनकी हेल्थ प्रॉपर होनी चाहिए!”

“जी माता जी,” रूचि अब पूरी तरह से कंफ्यूज हो गई थी।

वो रागिनी को किस रूप में देखे? मौसेरी बहन के, या फिर अपनी सौत के? रागिनी ने रूचि का एक पैसे का नुकसान नहीं किया था। हाँ - उसका अपना जीवन जीने का अंदाज़ था जो रूचि के अंदाज़ से बहुत अलग था। लेकिन वो तब से केवल रूचि के लिए ही सब कर रही थी। उसने सोचा कि रागिनी बुरी नहीं है... उसके हालात अलग रहे होंगे अजय को ले कर! भूतपूर्व अजय को भविष्य की रागिनी के साथ कैसे कैसे अनुभव हुए, उसके आधार पर वो उसके संग अपना व्यव्हार और सम्बन्ध तो नहीं बिगाड़ सकती न? वैसे भी अजय ने भी कहा था कि वो रागिनी से नाराज़ नहीं है, बल्कि खुद से निराश है! शायद रागिनी आगे चल कर इतना बिगड़ी हो कि अपने लाभ के लिए दूसरे का नुकसान कर दे?

रूचि कपड़े पहनने लगी तो रागिनी ने फिर से रोका, “सूखने दो कुछ देर...” और फिर अपने भी कपड़े उतारने लगी।

रूचि उत्सुकतावश उसको देखने लगी।

उसने अपनी ब्रा और चड्ढी उतार दी और अब वो भी रूचि की ही तरह पूरी तरह से नग्न थी।

रूचि ने एक पल के लिए उसकी ओर देखा और फिर हँसते हुए कहा, “अरे दीदी, तुम सच में बहुत बिंदास हो!”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “अरे, तेरी बहन हूँ न। फिर शर्म कैसी?” उसने अपनी बाहें फैलाईं और कहा, “देख बहना, ये है कॉन्फिडेंस। तुझमें भी ऐसा ही कॉन्फिडेंस होना चाहिए।”

रूचि ने हँसते हुए कहा, “हाँ दीदी! वाह दीदी... तुम तो सच में बहुत खूबसूरत हो!”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “तू भी कम नहीं है, रूचि।”

रूचि मुस्कुराई, “वैसे दीदी, तुम्हारे ये... बहुत अच्छे हैं।”

रागिनी ने एक ठहाका लगाया, “ये? मतलब मेरे बूब्स? हाँ यार, ये तो मेरी यू.एस.पी. हैं!”

उसने अपने स्तनों के नीचे अपनी हथेलियों को लगा कर हल्के से उछाला और कहा, “सॉलिड हैं! चेक करेगी?”

रूचि ने एक शरारती मुस्कान दी और कहा, “ठीक है। देखूँ तो सही।”

उसने रागिनी के पास जाकर उसके दाहिने स्तन को हल्के से छुआ और फिर उसे चूम लिया।

रागिनी हल्के से हँसी और कहा, “अरे रूचि, तू तो सच में बिंदास हो रही है!”

रूचि ने रागिनी के स्तन को ध्यान से देखा और फिर कहा, “दीदी, तुम्हारे ब्रेस्ट की गहराई में तो एक लाल तिल है।”

उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा... उसे अजय की बात याद आ गई थी।

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “हाँ... मेरे दोनों बॉयफ्रेंड्स को भी ये बहुत पसंद था।”

रूचि हल्के से मुस्कुराई।

लेकिन मन ही मन वो अजय की बातों को याद कर रही थी। उसे अब यकीन हो गया था कि अजय जो कह रहा था, वो सच था। रागिनी वही लड़की थी, जिसने उसके भविष्य को बर्बाद किया था। लेकिन वो नहीं चाहती थी कि इस बात से उसके और रागिनी के सम्बन्ध पर कोई बुरा असर पड़े। लेकिन वो यह भी चाहती थी कि रागिनी आगे चल कर ‘वैसी’ औरत न बने, जैसी वो अजय के साथ हो गई थी। क्या इस बात का कोई इलाज़ है?

अगर अजय का जीवन बदल सकता है, उसमें सकारात्मक सुधार आ सकते हैं, तो रागिनी का जीवन भी तो बदल सकता है न? रूचि ने सोचा कि रागिनी के बेहतर भविष्य के लिए जो संभव होगा, वो करेगी।

उसने हँसते हुए कहा, “दीदी अब कपड़े पहन लेते हैं। सभी इंतज़ार कर रहे होंगे।”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “हाँ, ठीक है।”

रूचि ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “और दीदी, तुम भी किसी अच्छे लड़के को ढूंढ कर शादी कर लो!”

रागिनी ने एक गहरी साँस ली और कहा, “हाँ यार... देखते हैं। तेरा कोई और दोस्त है क्या? अगर अजय जैसा कोई हो, तो बता दे मुझे! मैं तो तुरंत हाँ कर दूँगी।”

दोनों ने अपने कपड़े पहने और बाहर मेहमानखाने में चली गईं।

रूचि के मन में एक अजीब-सी उथल-पुथल थी। उसने मन ही मन फैसला किया कि वो अजय से रागिनी के बारे में और जानने समझने की कोशिश करेगी - जिससे उसका और उसके होने वाले परिवार का जीवन बर्बाद न हो।

*
 

avsji

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होश मे आने के बाद अजय साहब की जो मनःस्थिति थी और राइटर साहब ने जिस खुबसूरत शब्दावली के द्वारा उन लम्हों का एनालिसिस किया था , उससे एक बार लगा कि गई भैंस पानी मे । मतलब अजय साहब वापस वर्तमान मे प्रवेश कर गए ।
बहरहाल ऐसा हुआ नही । अजय साहब की चेतना कुछ दिन के लिए निष्क्रिय हो गई थी ।
चेतना का निष्क्रिय होना कोई अजीबोगरीब मैटर नही था लेकिन एक ही लड़की की वजह से दो बार ऐसी सिचुएशन उत्पन्न होना अवश्य अजीब बात थी । पहली बार तो वह करीब बतीस घंटे बेहोश थे और यह लड़की के साक्षात दर्शन से हुआ था । दूसरी बार लड़की के जिक्र मात्र से वो कुछ पल के लिए अचेतन अवस्था मे पहुंच गए थे ।

संजू भाई - अजय अचेत केवल एक बार हुआ है।
अभी, त्यौहार के दिन। जब उसने रागिनी को देखा...
जिसका डर उसको सताया हुआ रहा, जिसके कारण उसके पितरों और उसकी खुद की निशानी समाप्त हो गई, उसका ख़ौफ़ तो रहेगा ही न?
पहली बार वो स्वप्न / चेतना का वापस जाना था। आपने शायद कुछ अलग याद कर लिया या शायद मैं ही कुछ भूल गया...
(यह संभव है, क्योंकि कहानी में कुछ बातें भूल जाती है, जब वो बहुत लम्बी हो जाती है)

इन सब मैटर से स्पष्ट जाहिर हो रहा है कि रागिनी मैडम का डर उनपर किस तरह हाॅवी है ! बल्कि यह कहा जाए रागिनी मैडम का फोबिया अजय साहब के सर चढ़कर बोल रहा है ।
इस पुरे घटनाक्रम के दौरान रूचि ने एक आदर्श पत्नी की तरह विहेवियर किया और शायद इस कारण ही अजय साहब ने भी उसे सारी सच्चाई बता दी । यह दोनो के फ्यूचर के लिए अच्छी बात है ।

जी भाई। रिश्ते विश्वास पर बनें, तभी चलते हैं।
झूठ की बुनियाद पर पुख्ते रिश्तों की ईमारत नहीं बन पाती।

अब प्रश्न यह खड़ा हो रहा है कि इस पुरे प्रकरण के बाद दोनो कजन सिस्टर रूचि और रागिनी का रिश्ता किस ओर जाता है ! इन दोनो के बीच मतभेद उत्पन्न होने वाला है , या फिर ' रात गई बात गई ' की तरह नजरअंदाज कर दिया जाने वाला है !

इस बात का उत्तर दिया है इन अपडेट्स में! :)

खुबसूरत अपडेट avsji भाई ।

बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी!

सच कहूँ - अब मैं कहानियाँ लिखने से ऊब गया हूँ।
जैसा एक पाठक मित्र ने लिखा - मैं अब ढर्रे पर लिख रहा हूँ... पुराने फॉर्मूले!
वैसे भी इस कहानी को पढ़ने वाले बस गिने चुने चार पाँच लोग ही हैं। इसलिए उतना इन्वॉल्व भी होने की इच्छा नहीं हो रही है।

"अपशगुनी" में कुछ प्रयोग किये थे, लेकिन पढ़ने वालों को समझ में ही नहीं आया।

ख़ैर, साथ बने रहें। कहानी शुरू हुई है, तो ख़तम भी होगी ही।
फोरम की बात करें, तो पूरी तरह से ठुँक गया है। बार बार Connection Timed Out होता रहता है मेरा।
ऐसे में और भी चिढ़ होती है। पढ़ने को आओ, तो कोई ढंग की कहानी ही नहीं है, राज भाई की सुप्रीम को छोड़ कर।
वो भी रोज़ रोज़ नहीं लिखेंगे न!
 

avsji

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parkas

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रात में दवाई के प्रभाव से अजय को जल्दी ही नींद आ गई थी, लेकिन रूचि बहुत देर तक नहीं सो पाई। पिछले दो दिनों की चिंता और उद्विग्नता ने उसकी नींद उड़ा दी थी। जान पहचाना सर का दर्द भी वापस महसूस हो रहा था। अजय की चिंता में वो अपना सारा दर्द भूल गई थी, लेकिन अब उसको चैन से सोता हुआ देख कर, उसको स्वयं की तकलीफ़ महसूस होने लगी। उसके आँसू फिर से निकल आए - दर्द के कारण नहीं... वो तो नाममात्र ही था! अजय के कारण - जब अजय अचेत हो गया था तब उसको यह सोच कर डर हो आया कि कहीं शादी से पहले ही वो विधवा न हो जाए! और अब... जब से उसको अजय के रहस्य के बारे में पता चला था, तब से वो और भी उद्विग्न हो गई थी। कहीं ऐसा न हो कि एक दिन ऐसे ही, अचानक से, ईश्वर अजय को उससे छीन कर वापस भविष्य में भेज दें।

यह विचार बहुत दुखदायक था! कुछ महीनों पहले वो प्रेम, प्रेम संबंधों, विवाह इत्यादि के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। लेकिन अब वो इन सब से अलग जीवन के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। अभी तक उसने अपनी जीवन में जो सब कुछ किया था... उन सभी बातों का उद्देश्य... अजय और उसके परिवार के संग पूरा होने की प्रबल सम्भावना थी। और अचानक से ही उस सम्भावना को चूर होते देख कर उसका दिल टूट गया था। उसको लगा कि कहीं उसके गले से रोने की आवाज़ न निकल आए - इसलिए वो चुपके से उठ कर कमरे से बाहर निकल आई। उसने इधर उधर देखा - इस तल पर सभी कमरों की लाइट्स ऑफ थीं, इसलिए वो नीचे उतर आई। देखा कि माँ के कमरे की लाइट्स ऑन थीं। उसके चेहरे पर राहत वाले भाव आ गए। उसके दरवाज़े पर बस एक बार खटखटाया ही था कि किरण जी की आवाज़ आई,

“अंदर आ जा बिटिया,”

रूचि को यकीन ही नहीं हुआ कि माँ को पता चल गया कि दरवाज़े पर वो है।

जब वो अंदर आई, तो उसने किरण जी को अपनी तरफ मुस्कुराता हुआ पाया।

“आजा बेटू,”

रूचि उनके बगल आ कर उनसे चिपट कर लेट गई।

“नींद नहीं आ रही बेटू,”

यह कोई प्रश्न नहीं था - रूचि ने ‘न’ में सर हिलाया।

“बहुत डर गई थी मैं माँ,” कुछ देर बाद वो बस इतना ही कह पाई।

“समझ सकती हूँ मैं बच्चे,” किरण जी ने हल्की सी आह भरते हुए कहा, “समझ सकती हूँ,”

वो खुद भी तो अपने बेटे की हालत पर बहुत डर गई थीं।

कुछ देर तक रूचि यूँ ही किरण जी से लिपटी हुई लेटी रही।

जब रूचि कुछ न बोली, तो किरण जी ने बिना कुछ कहे अपनी ब्लाउज के बटन खोल कर ब्लाउज और साथ ही अपनी ब्रा के हुक खोल कर ब्रा भी उतार दिया। फिर रूचि को अपने आलिंगन में समायोजित कर के अपने एक हाथ में अपना स्तन पकड़ कर, उसका चूचक रूचि के मुँह में दे दिया। रूचि भी बिना कुछ कहे उनका दूध पीने लगी। कुछ मिनटों में जब वो स्तन खाली हो गया, तो किरण जी ने रूचि के मुँह में दूसरा स्तन पकड़ा दिया। रूचि ने उसको भी कुछ मिनटों में खाली कर दिया।

“बेटू मेरी,”

“हम्म?”

“ठीक लग रहा है अभी?”

माँ का स्तनपान कर के रूचि को सच में आराम महसूस हो रहा था। उनके ममता भरे अंक में सिमट कर उसके दुःख कम हो गए थे। भावनात्मक सुख जो मिल रहा था, सो अलग।

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“माँ?”

“हाँ बेटू?”

“प्लीज़ कीप लविंग मी लाइक दिस?”

“ऑलवेज बेटे... ऑलवेज!”

“थैंक यू माँ!”

“ऐसे मत बोलो बच्चे,” किरण जी ने प्यार से उसको दुलारते हुए कहा, “मेरे लिए तुझमें और माया या अज्जू में कोई अंतर नहीं है,”

दोनों फिर से चुप हो गए। किरण जी बड़े प्यार से उसको सहलाती दुलारती रहीं।

“बेटू?”

“जी माँ,” रूचि की आवाज़ में अब थकावट सुनाई देने लगी थी।

वो अब जा कर शिथिल महसूस कर रही थी।

“निन्नी आ रही है?”

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिला कर हामी भरी।

“आ जा,” किरण जी ने खुद को और रूचि को बिस्तर पर आरामदायक स्थिति में ला कर कहा, “मेरे पास सो जा,”

रूचि किरण जी से चिपक कर लेट गई।

किरण जी ने वापस अपना एक स्तन उसको पीने को दे दिया। रूचि को अपने मुँह में फिर से कुछ बूँदें दूध की महसूस हुईं। कुछ देर में उसको सुखदायक नींद आ गई।


**


रूचि जब घर पहुँची तो उसने देखा कि कम से कम इस समय घर में मुर्दनी जैसा माहौल नहीं था - जैसा दो दिन पहले हो गया था। उसके आने पर सभी ने उसका और अजय का कुशलक्षेम पूछा। सबसे बातें करने के बाद रूचि अपने कमरे में आ गई। कमरे में रागिनी बिस्तर पर लेटी हुई एक मैगज़ीन पढ़ रही थी। मैगज़ीन के कवर पर एक अर्धनग्न लड़की मादक अदा में दिखाई दे रही थी। रूचि ने देखा - मैगज़ीन का नाम था ‘डेबोनेयर’! मैगज़ीन में वो जो भी पढ़ रही थी, उसको पढ़ कर उसका चेहरा एक अजीब सी ख़ुशी या उत्तेजना में चमक रहा था... ऐसा कि जैसे वो अपने मन में कोई शरारत सोच रही हो।

रूचि ने उसकी ओर एक नज़र डाली और मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या देख रही हो, दीदी? क्या पढ़ने में इतनी मगन हो?”

“अरे बहना,” रागिनी ने मैगज़ीन को बंद कर के बगल रखते हुए बोली, “कब आई? सब ठीक है न? जीजू ठीक हैं न?”

“हाँ सब ठीक है, दीदी! वो भी ठीक हैं!”

“‘वो’?” रागिनी ने ठिठोली करते हुए रूचि को छेड़ा, “आय हाय मेरी बहना... बड़े रेस्पेक्ट से नाम लेती हो अपने ‘उन’ का!”

रूचि समझ तो रही थी कि रागिनी माहौल को हल्का करने की कोशिश कर रही है।

“क्या हुआ था जीजू को?”

“कुछ नहीं दीदी... शायद लेट स्लीपिंग, डिहाइड्रेशन, और थकावट के कारण उसको चक्कर आ गया था... नथिंग सीरियस!”

“पक्का न? कोई सीरियस बात तो नहीं है न?”

“हाँ... कोई सीरियस बात नहीं,”

“अच्छा है,” रागिनी ने बड़े ही नाटकीय तरीके से साँस छोड़ते हुए कहा, “... नहीं तो मुझे लगा कि कहीं मेरा हुस्न देख कर तो उनको चक्कर नहीं आ गया,”

रागिनी अपनी ही कही हुई बात पर हँसने लगी।

उसकी बात सुन कर रूचि को गुस्सा तो आया, लेकिन उसने भी उसके साथ हँसने का नाटक किया।

उसको अजय की बातें याद आ गईं।

“हा हा हा हा... अरे दीदी! वो सब छोड़ो... क्या पढ़ रही हो?” रूचि ने उलट पलट कर मैगज़ीन देखी, “कुछ मज़ेदार है क्या?”

रागिनी ने अपनी आँखें शरारत से नचाते हुए कहा, “अरे कुछ नहीं बहना, एयरपोर्ट से दो मज़ेदार मैगजीन्स उठाई थीं, वही पढ़ रही थी! तू भी देख न... बड़ी मज़ेदार है!”

रूचि ने कुछ पन्ने पलटे,

“अरे दीदी! इसमें तो नंगी नंगी लड़कियों की तस्वीरें हैं!”

“हाँ तो?” रागिनी ने ऐसे कहा जैसे यह कोई बड़ी बात नहीं हो, “डेबोनेयर एक गर्ली मैगज़ीन है न... लड़कियों की!”

रूचि ने वो पत्रिका वापस रख दी।

रागिनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “वैसे, तू तो अब सेट हो गई ना, रूचि? अजय जैसे मस्त लड़के से शादी जो करने वाली है!”

उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी ईर्ष्या थी, जो रूचि के कानों में साफ़ सुनाई दी। रागिनी ने अपने बालों को उंगलियों से सहलाते हुए आगे कहा, “सच बताऊँ, तेरी लॉटरी लग गई है बहना! इतना अमीर परिवार, अच्छा और हैंडसम लड़का! क्या बात है, यार!”

रूचि ने हल्के से हँसते हुए कहा, “हाँ दीदी, अजय बहुत अच्छा है। उसके घर में भी सभी लोग बहुत अच्छे हैं! मैं लकी तो हूँ!” फिर बात बदलते हुए, “लेकिन मेरी बात छोड़ो, तुम बताओ... तुम्हारी लाइफ में क्या चल रहा है? कोई बॉयफ्रेंड-वॉयफ्रेंड?”

रूचि ने अंधेरे में तीर मारा, लेकिन निशाना सटीक लगा! रागिनी की आँखों में एक चमक उभरी।

“अरे, कुछ नहीं! बस ऐसे ही थोड़ा बहुत...”

रागिनी अपने ‘सक्सेस’ की कहानियाँ सुनाना चाहती थी - बस, उसको सुनने वाले लोग चाहिए थे उसको।

“थोड़ा या बहुत?” रूचि ने कुरेदा।

“दो... तीन...”

“बस?”

रागिनी ने एक ठहाका लगाया, “अरे रूचि, तू कितनी भोली है! दुबई है यार... रुपए के चार के भाव से तो प्रिंस हैं उधर! दो एक को टहला लिया... लेकिन तू तो जानती है न आजकल के लड़के... फ़कर्स... बस टाइमपास करने के लिए अच्छे हैं, घर बसाने के लिए नहीं!”

“क्यों? ऐसा क्या हुआ? कोई लायक नहीं था?”

“नहीं रे! वैसी बात नहीं है... उनको अपने में ही करनी रहती है शादी। थोक के भाव प्रिन्स और प्रिंसेस होती हैं, तो जो भी एलिजिबल होते हैं, उनको मिल भी जाती हैं फ़ूफ़ी और खाला की लड़कियाँ! ... और मुझे किसी की दूसरी औरत बन के रहना पसंद नहीं!”

“हम्म,”

रागिनी ने एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा, “वैसे बहना, तू तो अभी तक वर्जिन ही होगी न? जीजू तो शरीफ़ लगते हैं! उनके साथ कुछ हुआ या नहीं?”

रूचि का चेहरा एक पल के लिए लाल हो गया, “अरे दीदी! क्या कह रही हो! अभी तो हमारी सगाई भी नहीं हुई है ठीक से!”

“लाडो रानी, सेक्स के लिए सगाई की क्या ज़रुरत है?”

“हम्म्म,” रूचि ने हाथ बाँधते हुए कहा, “तो तुम ही बताओ... तुम्हारे उन बॉयफ्रेंड्स के साथ क्या-क्या हुआ? कुछ तो किया ही होगा न?”

रागिनी को अपने मसालेदार किस्से सुनाने के लिए एक श्रोता मिल गई थी।

उसने एक शरारती हँसी हँसते हुए कहा, “अरे, मसालेदार तो बहुत कुछ हुआ, बहना! मेरा पहला बॉयफ्रेंड, ख़ालिद, वो तो ऐसा था कि बस हर टाइम मुझसे इंटिमेट होने का बहाना ढूंढता रहता था। बड़ा पैसा था उसपे! शेख़ राशिद टावर में एक कमरा मेरे लिए रखता था... वहाँ... बस, समझ ले यार... रातें बहुत लंबी होती थीं अपनी!”

उसने बड़ी कमीनियत के साथ अपनी भौंहें उचकाईं और हँसते हुए कहा, “तू अभी समझ नहीं पाएगी बहना... लेकिन सेक्स के टाइम वो जो इंटिमेट मोमेंट्स होते हैं न, वो ज़िन्दगी का मज़ा दोगुना कर देते हैं।”

रूचि ने हल्के से अपनी भौंहें सिकोड़ीं।

उसे रागिनी की ये बेपरवाह बातें अजीब लग रही थीं, लेकिन वो नहीं चाहती थी कि रागिनी को लगे कि वो उसकी बातों से असहज हो रही है। पुराने वाले अजय पर उसको तरस भी आ रहा था कि किस तरह की लड़की से उसका पाला पड़ गया था!

सम्मुख में उसने हँसते हुए कहा, “अच्छा! तुम तो बहुत एक्सपीरियंस्ड हो गई हो दीदी! और दूसरा बॉयफ्रेंड? उसका क्या?”

रागिनी ने अपने कंधे उचकाए, “दूसरा वाला तो प्रॉपर प्रिन्स था! वो तो और भी मज़ेदार था। उसका नाम था सईद... पूरा बता दूँगी तो दंगा हो जाएगा,” वो फूहड़ता से हंसती हुई बोली, “बहुत ख़याल रखता था मेरा! सुपर-रिच था... माँ तो पता नहीं है, लेकिन लखपति हूँ मैं!”

कह कर उसने गहरी साँस भरी।

“फ़िर?” रूचि ने कुरेदा।

“कुछ नहीं रे! फट्टू है एक नंबर का स्साला... प्राइवेसी के चक्कर में बस लॉन्ग ड्राइव पर ले जाता था। दुबई के बाहर सुनसान रेगिस्तान में ही...” उसने फिर से एक गहरी साँस ली और रूचि की ओर देखते हुए कहा, “तुझे तो अभी ये सब एक्सपीरियंस करना बाकी है, बहना! लेकिन जब तू जीजू के साथ अकेली होगी न, तो समझ जाएगी कि मैं क्या कह रही हूँ।”
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 
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