• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance फ़िर से

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,380
24,490
159
दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट 56; अपडेट 57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
Last edited:

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,380
24,490
159
Turning point of the story... So the entry of ex-wife रागिनी ... Now the real excitement of story...

.....

कुछ तो बदलना है

Story was started 🤯 with a exiting plot of soul transformation idea (which is the main plot of chinese/korean short drama). But new to our erotic story thread.

कोरियन प्रोग्राम नहीं देखता भाई इसलिए पता नहीं इस बारे में।
लेकिन आप कह रहे हैं तो सही होगा।

Till now all the story was going as old stories written by ACE WRITER

कोई ace vase नहीं भाई।
कोई पढ़ता ही नहीं

avsji sir .I am a big fan of his story writing.

धन्यवाद 🙏

He is using some story ideas in his every story...

हां सही बात है। दिमाग ideas से ख़ाली हो गया है

01. Breastfeeding by older ladies

हां, एकदम घिसा पिटा

02. Marriage between elder Lady and young

यह भी घिसा पिटा है बिल्कुल

boy/ Male . Their love making and after life.
03. Loving compatibility between Bahu & saas.

समाज में अब ये नहीं होता, इसलिए फैंटेसी एलिमेंट है

Write all taboo topics

04. And still maintaining not to touch the subject of INCEST between blood line {except श्राप}

श्राप और मंगलसूत्र दोनों में।

देखिए शायद कुछ नया लिख सकूं
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,380
24,490
159
avsji Bhai,

In 10500.00 shabdo ne jivan me bahar hi la di Ajju aur Ruchi ke

जी भाई

Itne saumay shado me aapne sex scenes ko likha he.............shayad hi aur koi likh paye..............

धन्यवाद भाई 🙏

Lekin ant me bomb fod diya..............Vamp ki vapisi karwa di, Ajju ke jiwan ke is kaal khand me bhi................

कुछ बदलाव तो चाहिए था

Shabdo ke to jadugar ho aap.............

Superb, Outstanding, Fantastic Updates..........

Keep rocking Bro

धन्यवाद 🙏 भाई
 
  • Like
Reactions: parkas

Tri2010

Well-Known Member
2,044
1,961
143
अपडेट 55


अगली सुबह अजय और रूचि दोनों साथ ही रूचि के घर की तरफ़ रवाना हुए। जाने से पहले किरण जी ने जबरदस्ती कर के रूचि के मुँह में आज त्यौहार पर बनने वाले व्यञ्जनों को ठूँस दिया कि बहू को ऐसे थोड़े ही जाने देंगे। ख़ैर!

अजय ने त्यौहार की भावना के अनुकूल एक सजीला सा, लाल रंग का रेशमी कुरता-पायजामा पहना हुआ था।

माया ने उसे देखकर उसकी टाँग खिंचाई भी करी, “बाबू मेरा, आज तो दूल्हे जैसा जँच रहा है! भाभी के मम्मी-पापा को इम्प्रेस करना है क्या?”

“वो तो पहले से ही इम्प्रेस्सड हैं भाभी,” माया की बात पर रूचि हँसने लगी, “... आज अपनी साली को इम्प्रेस करने जा रहा है अज्जू,”

“वो भी अच्छा है,” माया इस खेल में पीछे हटने वाली नहीं थी, “वैसे भाभी, जब पूरी घरवाली पट गई है, तो आधी घरवाली की क्या बिसात?”

“क्या दीदी!”

“ये देखो इसको,” माया अब अजय की टाँग खींचने लगी, “साली के नाम पर मन में लड्डू फूट रहे होंगे... लेकिन ऊपर ऊपर दिखावा कर रहा है!”

“वापस आते टाइम जीजू को लेता आऊँगा,” अजय ने अब माया को वापस देना शुरू किया, “तब तक तुम अपने मन में लड्डू फोड़ती रहो,”

“अले मेला बाबू,” माया हार मानने वाली नहीं थी, “गुच्चा हो गया...!”

“अरे बस कर,” किरण जी को अंततः शामिल होना ही पड़ा, “देर हो रही है,”

फिर अजय और रूचि की तरफ़ मुखातिब होते हुए, “जाओ बेटे, और जल्दी वापस आना! काम है बहुत से,”

“जी माँ,”

रूचि ने जाते हुए तीनों लोगों - अशोक जी, किरण जी, और माया - के पैर छू कर आशीर्वाद लिया।

सभी ने उसको दीर्घायु, यश, स्वास्थ्य और प्रसन्नता के आशीर्वाद दिए।

जाते जाते किरण जी ने अजय को हिदायद दी कि रूचि के घर के लिए कुछ मिठाइयाँ, मेवे इत्यादि लेता हुआ जाए - खाली हाथ न जाए। जाते जाते माया ने फिर से अजय की खिंचाई करी,

“जा, मेरे वीरन, लेकिन ध्यान रखना, रूचि की मौसी से थोड़ा सम्हल कर बात करना। ये मासियाँ बड़ी चालाक होती हैं!” उसने अजय को छेड़ते हुए कहा, “कहीं भाभी की जगह वो अपनी ही लड़की न बैठा दे... बच के रहना!”

"चिंता न करो भाभी! अगर ऐसा कुछ हुआ, तो मैं उस कलमुँही को ब्लीच कर दूँगी," रूचि ने चुहल करते हुए कहा।

अजय हँस पड़ा और रूचि के साथ घर से बाहर निकल गया।

रूचि का घर दूर था - नॉएडा में! ऊपर से समय ले कर चलने, मिठाईयाँ इत्यादि ख़रीदने, और त्यौहार के दिन की ख़रीददारी की गहमागहमी के कारण वहाँ पहुँचने में समय लग गया। रास्ते भर हर तरफ़ दीपावली की रौनक बिखरी हुई थी। घरों के बाहर रंगोली, दरवाजों पर तोरण और अन्य सजावटें, और बच्चों के पटाखों से खेलने की आवाज़ ने माहौल को रौनक वाला बना रखा था।

रूचि के पिता चूँकि जनरल मैनेजर थे, इसलिए उनको उनके पद के अनुरूप चार कमरों का घर आवंटित था। रूचि की माता जी स्वयं एक सरकारी बैंक में जनरल मैनेजर थीं। लिहाज़ा, उनका रहन सहन उच्च मध्यमवर्गीय परिवार के अनुरूप ही था। रूचि के घर पहुँचते ही उसकी माँ ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया,

“आओ बेटे, आओ! तुम्हारा ही इंतज़ार हो रहा था!”

अजय ने उनके पैर छू कर आशीर्वाद लिया।

“आयुष्मान भव,” उन्होंने आशीर्वाद दिया, “यशश्वी भव,”

रूचि के पिता भी पीछे पीछे आ गए, तो अजय ने उनके भी पैर छुए।

उन्होंने अजय को गले से लगाते हुए कहा, “जीते रहो बेटे! सुखी रहो! भई, अब तुम इस घर के भी बेटे हो... ये सभी फॉर्मलिटीज़ छोड़ दो।”

उन्होंने कहा और उसका हाथ पकड़ कर मेहमानखाने में ला कर उसको सोफ़े पर बैठाया।

उन्होंने कुछ देर तक उसका और उसके मम्मी पापा और माया का कुशल-क्षेम पूछा, इधर उधर की बातें करीं। इस बीच रूचि और उसकी माँ दोनों ही अंदर चले गए - दामाद की आवभगत करने के लिए रसोई में!

कोई पंद्रह मिनट के बाद मेहमानखाने में महिलाओं और लड़कियों का पूरा लाव-लश्कर प्रविष्ट हुआ - सबसे पहले रूचि की माँ, और उनके पीछे,

‘... सासू माँ!’

अजय के दिमाग में एक भयंकर विस्फ़ोट हुआ।

‘ये कैसे हो सकता है?’

रूचि की माँ के पीछे जो महिला चली आ रही थीं, उनको देख कर अजय को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ,

‘ये तो... ये तो,’ उसके मन में विचार आया, और उसका सर बुरी तरह घूमने लगा।

“बेटे इनसे मिलो,” रूचि की माँ कह रही थीं, “ये हैं...”

‘ये तो रागिनी की माँ हैं...’

अजय के कानों में जैसे उनकी आवाज़ आनी बंद हो गई। वो महिला भी कुछ कह रही थीं।

लेकिन अजय की आँखें उस समय जिस शख़्स को देख रही थीं, वो उसको अपने जीवन में फिर कभी देखना नहीं चाहता था। उस महिला के पीछे जो लड़की खड़ी थी, उससे अधिक ज़हरीली नागिन से अजय परिचित नहीं था। रेशमी चूड़ीदार शलवार और रेशमी कढ़ाई किया हुआ कुर्ता पहने, वो उन्नीस बीस साल की लड़की, अजय को देख कर मुस्कुरा रही थी।

“नमस्ते जीजू,” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

किसी अन्य को उसकी बोली बड़ी मीठी लगती - लेकिन अजय को लगा कि जैसे किसी ने उसके कानों में पिघला हुआ सीसा उड़ेल दिया हो। वही चेहरा, वही आँखें, वही मुस्कान, और वही नागिन, जिसने पिछले समय-काल में अजय की ज़िंदगी को नर्क बना दिया था।

‘रागिनी...’ अजय के दिमाग में पहला शब्द कौंधा, फ़िर दूसरा, ‘महाजन…’

रागिनी, जिसने झूठे दहेज के केस में उसे और किरण जी को जेल भिजवाया था। रागिनी, जिसने उसके पिता अशोक जी का बनवाया घर और सारी बची खुची संपत्ति हड़प ली थी, और उसके जीवन की हर उम्मीद - उसकी अजन्मी संतान - को उसने चूर-चूर कर दिया था।

अजय का चेहरा सफेद पड़ गया। उसकी साँसें तेज हो गईं, और उसका सिर चकराने लगा। वो और कुछ सोच न सका और चक्कर खा कर वहीं ढेर हो गया।


**
Awesome update and nice story
 
  • Like
Reactions: avsji
10,458
48,828
258
अजय कुमार साहब को फ्यूचर रीसेट करने के लिए साक्षात परमेश्वर का आशिर्वाद लेना पड़ा और साथ मे कई साल पास्ट मे भी जाना पड़ा , लेकिन रूचि कुमारी ने वर्तमान मे ही अजय साहब के अधेड़ पिता जी और ताई जी की हस्तरेखा बदलने की कोशिश शुरू कर दी ।
बात रूचि की सही तो अवश्य लग रही है कि जब अशोक साहब और किरण जी के जीवन साथी स्वर्गवासी हो चुके है , दूसरी दुनिया के मुसाफिर हो गए है , मर - मर - के - हूम हो चुके है , तो क्यों न यह दोनो हमेशा के लिए एक दूसरे का हाथ थाम ले !
शीघ्रली इनकी भी बैंड - बाजा - बारात हो जानी चाहिए ।
ऐसे ही नही ज्यादा सयाने लोग कहते हैं कि जो कमाल औरत नासमझ बनकर कर सकती है , वो समझदार बनकर नही कर सकती ।

वैसे मै किरण जी के इस सलाह से इत्तफाक नही रखता कि अजय और रूचि को शादी के तुरंत बाद संतानोत्पत्ति नही करना चाहिए । नवविवाहित युगल को अपने पहले पुत्र के लिए देरी नही करनी चाहिए । पहले पुत्र के बाद आप आराम से कुछ साल का गैप ले सकते है । कही आनंद को परमानन्द बनाने के चक्कर मे पुत्र प्राप्ति के लिए बाकी जीवन संतान सुख के लिए न तरसना पड़ जाए !

अध्याय के अंतिम पैराग्राफ मे रागिनी मैडम का दर्शन हुआ । रागिनी मैडम रूचि की मौसेरी बहन है , यह वाकई हैरान करने वाली बात है ।
अजय साहब का विहेवियर अपने फ्यूचर वाइफ रागिनी के साथ किस तरह का होता है , यह रीडर्स के लिए जिज्ञासा का विषय होगा ।
वो एक देव की तरह विहेव करते है , या एक दानव की तरह , या फिर एक साधारण मानव की तरह !

सभी अपडेट बेहद ही खूबसूरत थे avsji भाई ।
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,380
24,490
159
अपडेट 56


अजय को अपना शरीर भार-शून्य सा लग रहा था - जैसे भौतिकी के नियम उस पर लागू ही न हो रहे हों। वो ‘वहाँ’ था भी और नहीं भी। वो उस स्थान का हिस्सा था भी और नहीं भी। ‘वहाँ’ - यह कौन सी जगह थी, उसका कोई ठीक ठीक अंदाज़ा लगा पाना कठिन था। कहीं तो था वो! कोई ऐसा स्थान जहाँ भौतिकी के सिद्धाँत लागू नहीं थे! ‘वो’ एक ऐसा स्थान था, जहाँ उसको अबूझ रोशनियों के कोमल तंतु दिखाई दे रहे थे। फिर उसने देखा कि उसका स्वयं का शरीर भी रौशनी की एक किरण समान ही लग रहा था। उन अनगिनत कोमल किरणों के बीच उसको ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वो अनंत में घुल मिल गया हो।

इस स्थिति में अजीब अजीब से दृश्य देख रहा था वो - शब्द भी दृश्य बन गए थे और भावनाएँ भी। उन दृश्यों में उसको अशोक जी, किरण जी, माया दीदी, रूचि, रूचि के मम्मी पापा, कमल, प्रशांत भैया, पैट्रिशिया भाभी, किशोर जी, सरिता जी, रागिनी, उसकी माँ, मनोहर भैया, जेलखाना और न जाने क्या क्या - शायद सब कुछ दिख रहा था। इन सबके बीच में वो कुछ नया देख रहा था - अजीब अजीब से शब्द! अजीब अजीब से बैज्ञानिक दृश्य - ठीक वैसे जैसे स्कूल कॉलेज में रसायन विज्ञान के मॉडल दिखते हैं। उसको इतना तो समझ आ रहा था कि कोई गंभीर और चिंताजनक बात चल रही है... लेकिन फिर भी मन से वो शांत था। कमाल की बात थी।

कुछ ऐसी ही अनुभूति उसको ‘उस दिन’ हुई थी, जब वो वापस अपने भूतकाल में आ गया था। इस बात के संज्ञान से उसको थोड़ी सी उलझन महसूस हुई - कई सारे कार्य जो उसने करने को सोच रखे थे, वो अभी भी शेष थे। कमल और माया दीदी की शादी अभी तक नहीं हुई थी और न ही प्रशांत भैया और पैट्रिशिया भाभी की! और तो और, उसका भी तो रूचि के साथ रिश्ता तय हो गया था - ऐसे में वो सब बीच में ही छोड़ कर जाना थोड़ा निराशा वाली बात लग रही थी। लेकिन अगर ईश्वर ने उसको इतने ही समय के लिए वापस भेजा था, तो यह संभव है कि उसने वो सब कर दिया हो, जो उससे बन पड़ा! तो अगर वो अब वापस भविष्य की ओर जा रहा था, तो वो भी ठीक था। शायद भविष्य में उसको परिवर्तन महसूस हो! शायद वो और रूचि साथ हों! शायद माया दीदी और प्रशांत भैया का जीवन बेहतर हो सका हो... शायद पापा जीवित हो और स्वस्थ हों!



*


जब अजय की आँखें खुलीं, तो उसने स्वयं को एक बड़े से सफ़ेद रंग के कमरे में एक अपेक्षाकृत ठन्डे और कठोर बिस्तर पर पाया।

जाहिर सी बात थी कि यह उसका कमरा नहीं था। आँखें उसकी अभी भी पूरी तरह से फ़ोकस नहीं थीं - लेकिन वो देख रहा था कि कम से कम दो लोग सफ़ेद लम्बे कपड़े पहने उसके बगल खड़े थे। उसके हाथ में थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था, और उसके सर पर सख़्त से कुछ वस्तुएँ चिपकी हुई थीं, जिससे उसको खुजली महसूस हो रही थी। उसे यह समझने में कुछ क्षण लगे कि वो हॉस्पिटल में था - उसके हाथ में एक आई वी ड्रिप लगी हुई थी, और उसके सर और सीने पर सेंसर और प्रोब्स चिपके हुए थे।

एक कोई चालीस बयालीस साल का आदमी उसको आँखें खोलते हुए देख कर मुस्कुराते हुए बोला, “हैलो अजय बेटे, कैसा लग रहा है तुमको?”

‘कौन सा अस्पताल था यह?’ उसने दिमाग पर ज़ोर डाला।

उसके प्रश्न का उत्तर डॉक्टर के सफ़ेद रंग के ऐप्रन पर कढ़े हुए अस्पताल के लोगो से मिल गया - ‘वानप्रस्थ अस्पताल’!

‘वानप्रस्थ अस्पताल!’ उसके दिमाग में यह परिचित सा नाम गूँजा, ‘ये तो वही अस्पताल है...’

हाँ - यह वही अस्पताल था जहाँ अशोक जी की मृत्यु हुई थी। लेकिन फिर भी इस विचार से अजय को न जाने क्यों घबराहट नहीं हुई। उसको खुद ही इस बात से आश्चर्य हुआ।

‘लेकिन उसको यहाँ क्यों लाया गया है?’ उसने सोचा, ‘उसको कुछ हो गया क्या?’

फिर उसकी नज़र डॉक्टर के नेम बैज पर पड़ी,

‘अजिंक्य देशपाण्डे,’

अजय ने एक पल के लिए इस नाम के बारे में सोचा - उसका सर एक बार फिर से घूमने लगा, लेकिन बस दो पलों के लिए ही।

“डॉक्टर देशपाण्डे?” उसके मुँह से अस्पष्ट से शब्द निकले।

“यस,” डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए और थोड़ा कौतूहल से अजय को देखा, “हैव व्ही मेट, यंग मैन?”

‘यंग मैन?’ उसने एक पल सोचा, ‘चालीस साल का आदमी किसी तीस साल के आदमी को बेटा या यंग मैन तो नहीं कहेगा... तो क्या वो अभी भी अपने पहले वाले रूप में है?’

“आई डोंट नो,” वो बुदबुदाया।

उसको शरीर में कमज़ोरी महसूस हो रही थी, लेकिन अब वो पूरी तरह से चौकन्ना था।

“हाऊ आर यू फ़ीलिंग?” डॉक्टर ने पूछा।

“आई थिंक आई ऍम फीलिंग गुड,” उसने कहा, “व्हाट हैपेंड?”

“तुम्हें क्या क्या याद है?” डॉक्टर ने पूछा।

“मैं... मैं अपनी फिएंसी के घर में था,” अजय ने याद करते हुए कहा, “आई वास मीटिंग हर रिलेटिव्स...” उसने मुख्य ‘ट्रिगर’ को छुपाते हुए बताया, “कि अचानक से सब कुछ हेज़ी हेज़ी हो गया... आई थिंक, आई फ़ेंटेड,” उसने निराशा के साथ कहा।

डॉक्टर देशपाण्डे ने थोड़ा इंतज़ार किया, लेकिन जब अजय ने कुछ और नहीं कहा, तो उन्होंने बताया,

“नॉट जस्ट फ़ेंटेड,” वो बोले, “तुम थर्टी टू हॉर्स से बेहोश हो...”

“व्हाट!” अजय चौंका - उसको तो लग रहा था कि बस कुछ ही समय हुआ रहेगा, “थर्टी टू हॉर्स! ... मतलब... मतलब दिवाली गई?”

“तुमको उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए!” डॉक्टर ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, “एक्चुअली, तुमको चिंता ही नहीं करनी चाहिए,”

“सो आई ऍम फाइन?”

“फीसिओलॉजिकली हंड्रेड परसेंट!” वो बोले, “आई विल बी ऑनेस्ट विद यू... तुम बेहोश क्यों हो गए, हम तो यह ठीक से नहीं जानते... तुम्हारा हार्ट परफेक्ट है! ब्रीदिंग सॉउन्ड है... और तुम्हारी ब्रेन एक्टिविटी... वेल, आई मस्ट से, दैट इस नॉट नार्मल... नॉट अबनॉर्मल! मोर लाइक हाइपरएक्टिव... आई कैन से कि तुमको ब्रेन में भी किसी तरह का डैमेज नहीं है।”

अजय ने समझते हुए सर हिलाया।

“एक्स-रे और एमआरआई में कोई चोट नहीं दिखाई दी... हाँ, ऐसा ज़रूर लग रहा था कि जैसे तुम सो रहे हो, लेकिन तुम्हारा दिमाग किसी साइंटिस्ट के जैसे सोच रहा हो!” वो मुस्कुराए।

उनकी बता सुन कर अजय के होंठों पर भी मुस्कान आ गई।

“सो, मेरी तरफ़ से तुमको क्लीन बिल ऑफ़ हेल्थ है!” वो बोले, “हाँ... लेकिन अगर तुमको ठीक लगे, तो मैं तुमसे थोड़ा डिटेल में बातें करना चाहूँगा... अभी नहीं, बाद में!”

“श्योर सर,” अजय बोला, “एक बात पूछूँ आपसे?”

“हाँ हाँ, ज़रूर,”

“आपने यहाँ कब ज्वाइन किया? और आपकी स्पेशलटी क्या है?”

“मैंने... एक महीना हुआ है! एंड आई ऍम अ न्यूरोसर्जन,” उन्होंने हँसते हुए बताया, “... बट आई ऍम नाऊ रिसर्चिंग इन न्यूरोऑन्कोलॉजी,”

“ओके,” अजय धीमे से बोला, “ऑन्कोलॉजी...”

“एस आई सेड, रिसर्चिंग... तुमको कोई प्रॉब्लम नहीं है!”

“तो क्या मैं घर जा सकता हूँ?”

“ओह श्योर! चाहो तो आज ही... बट स्ट्रेस न लेना, सुतली पटाखे न चलाना... हो सकता है तेज़ आवाज़ के कारण कान और सर पर ज़ोर पड़े। सो इट इस बेस्ट टू अवॉयड इट फॉर समटाइम...”

“ग्रेट!”

“बट, सबसे पहले तुम्हें अपनी फिएंसी (कहते हुए वो मुस्कुराए) और अपने परिवार से मिलना चाहिए... वे बहुत चिंतित हैं।”

“यहाँ हैं वो?”

“कल से यहीं हैं सभी,” डॉक्टर ने स्टूल से उठते हुए कहा, “मैं उन्हें अंदर आने को कहता हूँ,”

मिनट भर के भीतर ही रूचि भागती हुई कमरे में दाखिल हुई। उसके पीछे माया, किरण जी और रूचि की माँ दौड़ती हुई अंदर आईं। उनके एक मिनट बाद कमल, और तीनों बुज़ुर्ग - अशोक जी, रूचि के पिता, और किशोर जी प्रविष्ट हुए।

रूचि भागती हुई आई और बिस्तर पर लेटे हुए अजय से लिपट कर रोने लगी। अजय उसको यथासंभव आश्वस्त करते हुए मुस्कुराया, और रूचि को अपनी बाहों में भर कर उसे कसकर आलिंगन में पकड़ लिया।

“ओह अज्जू...” रूचि के आवाज़ से लग रहा था कि वो अंदर आने से पहले भी रो रही थी, “व्ही वर सो वरीड!”

अजय रूचि को देख नहीं पा रहा था, लेकिन माया और अपनी माताओं के चेहरे के भावों को देख कर वो महसूस कर सकता था कि सभी बहुत चिंतित थीं, और कुछ समय पहले रो रही थीं। तीनों की आँखें नम थीं।

सभी उसके कारण इतना दुःखी हुए, सभी का त्यौहार ख़राब हुए, यह सोच कर उसको शर्मिंदगी महसूस हुई।

“मैं एकदम ठीक हूँ, माय लव,” उसने बहुत धीरे से रूचि के सर को सहलाते हुए उसके कान में बोला, फिर सभी की तरफ़ मुखातिब हो कर थोड़ी स्पष्ट आवाज़ में बोला, “मैं ठीक हूँ...”

“क्या यार,” कमल थोड़ा याराने वाले अंदाज़ में बोला - लेकिन उसकी बात में भी चिंता साफ़ सुनाई दे रही थी, “क्या करता रहता है! डरा दिया हमको!”

“चुप रह! कुछ भी कहता रहता है,” किशोर जी ने अपने बेटे को प्यार से झिड़का, फिर अजय की तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “कैसे हो बेटे?”

“परफ़ेक्ट अंकल जी,” अजय मुस्कुराया, “डॉक्टर सर ने भी यही कहा है!”

“आई ऍम सो हैप्पी कि तुम ठीक हो बेटे,” रूचि के पिता बोले, “बहुत चिंता हुई थी हमको!”

“अरे भाई साहब... कुछ नहीं हुआ है! आप नाहक ही परेशान हो गए थे... शायद थकावट, या इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी के कारण चक्कर आ गया होगा,” अशोक जी ने माहौल को थोड़ा हल्का करने की कोशिश करी, जिससे रूचि के पिता को बुरा न लगे कि उनके ही घर पर उनके होने वाले दामाद की तबियत इस क़दर बिगड़ गई, “इसको घर ले चलेंगे... फिर मनाएँगे हम सभी साथ में मिल कर दिवाली!”

“हाँ भाई साहब,” रूचि की माँ बोलीं, “त्यौहार की ख़ुशी मनाने का कारण तो आज है,”

“तुम्हें कैसा लग रहा है बाबू?” माया ने अजय का हाथ अपने हाथों में पकड़ते हुए पूछा।

उसके लिए माया का स्नेह स्पष्ट था।

“मैं ठीक हूँ दीदी,” उसने कहा, “आप लोग यूँ ही परेशान हो गए!”

“मैं कहाँ परेशान हुई,” माया ने आँसू पोंछते हुए कहा, “हाल तो रो रो कर भाभी का बुरा हो रक्खा है,”

अजय ने रूचि की तरफ़ देखा - वो अपने आँसू पोंछ रही थी।

“कल से एक निवाला भी नहीं खाया है इसने,” माया ने शिकायत करी।

“बोल तो ऐसे रही हो, जैसे तुम कल से छप्पन भोग लगा रही हो,” रूचि ने रुँधे गले से माया की बात का प्रतिकार किया।

अजय जान गया कि कल से शायद ही किसी ने खाना खाया हो। अपने लिए सभी के मन में ऐसी चिंता और इतना स्नेह देख कर उसका दिल भर आया।

“आप लोग...”

अजय ने कहना शुरू ही किया कि माया ने उसकी बात को बीच में काट दिया, “डॉक्टर समझ नहीं पा रहे थे कि क्या गड़बड़ है... तुम बस सो रहे थे... देर तक,”

“अरे बिटिया,” किरण जी ने माया को कुछ कहने से रोका, “अब बस कर... और राम कहानी सुनाने की ज़रुरत नहीं है!”

“हाँ माँ! बाबू को ले कर चलते हैं...”

“हाँ हाँ,” यह कह कर सभी बड़े लोग कमरे से बाहर चले गए।

थोड़ा एकांत पा कर रूचि अजय का सीना सहलाती हुई बोली, “अज्जू, अभी कैसा लग रहा है?”

अजय ने दो पल सोचा कि क्या कहे रूचि से वो... फिर बोला,

“रूचि... मुझे तुमको कुछ बताना है,”

“ओके?”

“रूचि... समय चाहिए मुझे... इतनी जल्दी नहीं कह पाऊँगा सब,”

“ओके,”

“अरे चलो उठो...” किरण जी एक नर्स के साथ भीतर आईं, “रूचि बेटे, चलो... गाड़ियाँ रेडी हैं,”

“जी माँ,” फिर अजय को देख कर, “घर पे?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

*
 
Last edited:

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,380
24,490
159
अपडेट 57


अजय को सहारा दे कर घर में लाया गया - ऐसा नहीं है कि उसको किसी सहारे की आवश्यकता थी, लेकिन सभी ‘बड़े’ लोगों ने ज़िद पकड़ ली थी और वो कोई बहस नहीं चाहता था। कुछ देर तक सभी उसके आस पास बैठ कर उसको बहलाने की कोशिश करते रहे। थोड़ी आतिशबाज़ी हुई, स्वादिष्ट खाना पकाया और खाया गया - एक तरह से आज ही दिवाली मनाई गई। और अंत में सबकी विदाई का अवसर आया।

रूचि ने एक बार अजय को आँखों में देखा और फिर अपने पिता जी से बोली, “पापा, मैं अज्जू के साथ ही रुकूँगी आज...”

“हाँ बेटे, यह ठीक रहेगा... यहीं रहो, और अगर कोई बात हो, तो हमको तुरंत खबर करो।”

“जी पापा,”

“अरे भाईसाहब, चिंता की कोई बात नहीं है!” आशोक जी बोले।

उनको भी बहुत बुरा लग रहा था कि अजय को लेकर इतने सारे लोग परेशान हो गए। लेकिन उनको यह देख कर अच्छा भी लगा कि रूचि किसी साए की तरह अजय के साथ बनी रही पूरे समय।

रूचि ने ही उनको फ़ोन कर के बताया था कि अजय को ‘वानप्रस्थ अस्पताल’ में इमरजेंसी में भर्ती किया गया है, क्योंकि वो अचानक से ही बेहोश हो गया है। जब तक वो और किरण जी अस्पताल पहुँचे नहीं थे, तब तक रूचि ने अपना धीरज खोया नहीं था, लेकिन जब वो दोनों आ गए, तब उससे रहा नहीं गया... और तब से अजय के रिलीव होने तक रो रो कर उसका बुरा हाल हो गया था। माया ने कुछ देर उसको सम्हाला, लेकिन वो भी कुछ समय बाद बहुत डर गई। वो तो अच्छी बात थी कि घर की बड़ी स्त्रियाँ वहाँ थीं और उन्होंने दोनों को सम्हाल लिया। ख़ैर - अशोक जी के लिए इतना तो स्पष्ट था कि रूचि को अजय से बहुत ही प्रेम है। वो संतुष्ट हो गए कि उन्होंने अजय के लिए एक बेहद बढ़िया सी लड़की ढूंढ ली थी!

“बहुत अच्छी बात है न भाई साहब कि चिंता की कोई बात नहीं है!” रूचि के पापा बोले, “आप भी कोई चिंता न करें! रूचि है न - आप सभी लोगों की देखभाल कर लेगी।

सबको विदा करने के बाद सभी ने रूचि और अजय को अजय के कमरे में अकेला छोड़ दिया। आज रात में थोड़ी थोड़ी ठंडक सी हो रखी थी। बाहर से अभी भी रह रह कर पटाखों की आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन मुख्य त्यौहार की रात की तरह नहीं। रूचि ने कमरे की खिड़की बंद कर दी, जिससे ठंडी हवा और पटाखों की छिटपुट आवाज़ न आए और धीमी गति से चलती हुई अजय के पास आ कर बैठ गई।

अजय ने उसको देखा और मुस्कुराने की कोशिश करने लगा। रूचि ने भी मुस्कुरा कर ही उत्तर दिया, लेकिन उसके चेहरे पर अजय को लेकर चिंता और मानसिक पीड़ा वाले भाव स्पष्ट थे।

“रूचि... माय लव,” अजय ने शुरू किया, “थैंक यू,”

“अज्जू...”

“नहीं रूचि... एक मिनट... मुझे बोल लेने दो!” वो बोला, “मैंने एक बात सीखी है कि जो मन में हो, वो बता देना चाहिए... नहीं तो देर हो जाती है और फिर पछतावा होता है ज़िन्दगी भर...”

रूचि चुप रही।

“आई लव यू! एंड आई थैंक यू... फॉर बीईंग इन माय लाइफ...”

इस बार जब रूचि मुस्कुराई, तो उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव नहीं थे। लेकिन वो अभी भी चिंतित तो थी।

“पानी?” उसने अजय से पूछा।

अजय के ‘हाँ’ में सर हिलाने पर उसने अजय को पानी का गिलास थमाया और फिर कहा, “अज्जू... अब बोलो... क्या हुआ था तुमको?”

अजय ने दो चार घूँट पानी पिया और बोला, “मेरी जान, आई डोंट नो कि तुम मेरी बात का कितना विश्वास करोगी... लेकिन मैं तो कहने जा रहा हूँ, वो पूरे ओपन माइंड से सुनना... और समझने की कोशिश करना...”

“ओके,” रूचि की उत्सुकता बढ़ गई।

अजय ने एक गहरी साँस ली। वो जो कहने जा रहा था, वो सोच कर उसका मन भारी हो गया था। वो जानता था कि अगर उसने रूचि को सच नहीं बताया, तो यह बोझ उसे शांति से जीने नहीं देगा... लेकिन, सच बताने का मतलब यह भी था कि शायद रूचि के साथ उसका रिश्ता ख़तरे में भी पड़ जाए! फिर भी, उसने फैसला किया कि वो रूचि से कुछ नहीं छुपाएगा।

“यार रूचि,” उसने कहना शुरू किया, “मैं रागिनी से पहले भी मिल चुका हूँ...”

“क्या? सच में? कब?”

“भविष्य में,”

“भविष्य में?”

“रूचि,” उसने काँपती आवाज़ कहा, “मुझे नहीं पता तुम मुझ पर यकीन करोगी या नहीं... लेकिन जो कुछ भी मैं तुमको बताने जा रहा हूँ, वो पूरी तरह से सच है। मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ है, जो आज तक शायद किसी के साथ भी नहीं हुआ!”

रूचि ने भौंहें सिकोड़ीं, “क्या मतलब? पूरी बार बताओ अज्जू... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है!”

अजय ने अपनी आँखें बंद कीं और उस दिन से और उस दिन के पहले हुई अपने जीवन की सारी घटनाएँ रूचि को सिलसिलेवार ढंग से सुनाने लगा। उन वृद्ध ‘विश्वकर्मा प्रजापति जी’ से मुलाक़ात - जो उसके हिसाब से स्वयं परमपिता थे, फिर उस रात का सपना - वो स्याह सी स्मृतियों वाली चादर, वो टूटती मरोड़तीं स्मृतियाँ, और फ़िर सुबह उठ कर अचानक से ही अपने जीवन के तेरह साल वापस चले आना! उसने रूचि को सब कुछ बताया - कि वो यह सब होने से पहले एक तीस साल का ‘आदमी’ था... वो एक अंडरअचीवर था, जिसकी पहले से ही झण्ड ज़िन्दगी को रागिनी नाम की ख़ूबसूरत, लेकिन ज़हरीली नागिन ने बर्बाद कर दिया था। कैसे उसने और माँ ने झूठे केस में जेल की सजा काटी... कैसे दोनों का सब कुछ छिन गया... कैसे अशोक जी इन्ही डॉक्टर देशपाण्डे की लापरवाही के कारण ईश्वर को प्यारे हो गए... कैसे माया दीदी और प्रशांत भैया की शादी-शुदा ज़िंदगियाँ खराब हो गईं। कैसे कमल ने माया दीदी से अपने प्रेम के कारण आज (तब) तक शादी ही नहीं करी। लेकिन जब उसको अपना जीवन पुनः जीने का अवसर मिला, तो वो इस नए समय-काल में वो अपने सभी प्रियजनों का जीवन और अपनी गलतियों को सुधारना चाहता था... अपने माँ-बाप को खुशियाँ देना चाहता था... माया दीदी के साथ अपने सम्बन्ध सही करना चाहता था और चाहता था कि उनको अपने जीवन में खुशियाँ मिलें, जिनकी वो हक़दार थीं। और अगर संभव हुआ, तो वो अपने जीवन को भी एक नई दिशा देना चाहता था। रूचि सब सुन रही थी, और अवाक् सी बैठी हुई थी।

‘ऐसा भी कहीं होता है क्या?’ वो सोच रही थी। लेकिन अजय पर अविश्वास करने का कोई कारण ही नहीं मिल रहा था उसको।

“रूचि,” अजय कह रहा था, “... तुम मेरी उस ज़िंदगी का हिस्सा नहीं थीं... लेकिन इस ज़िंदगी में... तुम सब कुछ हो! तुम मेरे लिए सब कुछ हो... आई लव यू! और यह सब बताते हुए मैंने तुमसे कुछ नहीं छुपाया।”

“रागिनी?” रूचि के मुँह से निकला।

“रागिनी... मेरी बीवी थी... उसने हमारे साथ जो कुछ किया, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। कल जब मैंने उसको यूँ अचानक से अपने सामने देखा, तो मुझे लगा कि मेरा अतीत फिर से मेरे सामने आ खड़ा हुआ है... मुझसे उसका चेहरा भी देखा न जा सका...”

“तुम रागिनी से नाराज़ हो?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया, “नहीं रूचि, सच में! मैं उससे नाराज़ नहीं, खुद से निराश हूँ! ... मैं इतना अंडरअचीवर था, कि सुन्दर चमड़ी को पाने के लालच में आ गया, बिना यह सोचे समझे, कि भला ऐसी लड़की मेरे संग क्यों आएगी? अपने लालच में मैंने माँ पापा और ताऊ जी ताई जी का बनाया सब कुछ गँवा दिया! नहीं... मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ!”

रूचि चुपचाप सुन रही थी। उसकी आँखें स्थिर थीं, लेकिन चेहरे पर एक अजीब-सा भाव था... जैसे वो समझ न पा रही हो कि इस बात को कैसे समझे!

जब अजय रुका, तो उसने धीरे से पूछा, “तो तुम कह रहे हो कि तुम... भविष्य से आए हो? और रागिनी तुम्हारी पत्नी थी? लेकिन अब तुम एक टीनएजर हो, और वो सब कुछ... एक सपना था?”

“सपना नहीं, रूचि,” अजय ने समझाया, “वो मेरी हक़ीक़त थी। मैं नहीं जानता कैसे, लेकिन मैं उस हकीकत से इस नई हक़ीक़त में आ गया हूँ। और ऐसा नहीं है कि मैं भविष्य से आने के कारण सब जानता हूँ... बहुत सी बातें मुझे पता नहीं हैं! अरे, मुझे तो यह भी नहीं पता कि मुझे क्या क्या नहीं पता!”

रूचि ने समझते हुए सर हिलाया।

“मैं बस इतना चाहता हूँ कि इस बार मैं सब कुछ ठीक कर दूँ... जब सबसे पहला काम - मतलब कमल और माया दीदी का रिश्ता जुड़ा... तब मुझे लगा कि मैं सही रस्ते पर हूँ... फिर प्रशांत भैया और भाभी का रिश्ता ठीक बैठा। ... फिर मुझे लगा कि मुझे लूज़र नहीं रहना चाहिए... पढ़ लिख कर कोई ढंग का मक़ाम हासिल करना चाहिए। ... इस कारण से तुम मिलीं मुझे... तुम्हारा साथ मिला... तुम्हारा प्यार मिला...”

रूचि ने कुछ पल चुप रहकर सोचा... फ़िर बोली, “अज्जू... ये सब... ये सब बहुत अजीब है। आई ट्रस्ट यू... लेकिन ये सब तुम्हारा वहम भी तो हो सकता है न?”

“नहीं रूचि...”

“सोचो न... लोगों को डेजा वू होता है... उनको लगता है कि जो कुछ हो रहा है, वो उनके साथ पहले भी हो चुका है,”

“लेकिन मेरा एक्सपीरियंस डेजा वू वाला नहीं है... सब कुछ अलग है पहले से इस बार!”

“तुम मुझे कुछ ऐसा बता सकते हो, जो कोई भी नहीं बता सकता?”

“जैसे?”

रूचि ने कुछ देर सोचा, फिर बोली, “अगर तुम और रागिनी हस्बैंड वाइफ थे, तो तुम दोनों एक दूसरे को इंटीमेटली जानते होंगे...”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “... उसके दाहिने ब्रेस्ट की अंदरूनी गहराई में लाल रंग का तिल है...”

रूचि अजय की बात सुन कर अचकचा सी गई। दो पल उसको समझ ही नहीं आया कि वो क्या कहे।

“रूचि... आई नो कि यह सब प्रोसेस करने के लिए बहुत अधिक है... मुझे खुद बहुत समय लगा। आई कांट एक्सपेक्ट यू टू अंडरस्टैंड एवरीथिंग... लेकिन,”

कहते कहते अजय का दिल बैठ रहा था। उसको समझ में आ रहा था कि रूचि के मन में शायद एक उलझन पैदा हो गई थी।

उसने कहा, “... लेकिन मैं तुमसे सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ... और मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता,”

रूचि ने हल्की मुस्कान दी, “किसी और को बताया है ये सब?”

“पापा को,”

“क्या क्या? ... क्या उनको यह भी बता दिया कि वो...”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने ज़िद कर के पूरा मेडिकल करवाया है। उसमें उनकी ऐलर्जीज़ पता चलीं... वो भी जिनके कारण उनको कॉम्प्लिकेशन हो गया था,”

“माँ को?”

“नहीं बताया... लेकिन मैंने उनके नाम एक चिट्ठी रख छोड़ी है,” अजय ने इशारे से दिखाया, “... वो वहाँ दराज़ में है। अगर कल को मुझे कुछ हो जाए, तो उसमें सब कुछ लिख छोड़ा है,”

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “दे डिज़र्व टू नो,”

“तुम भी... रूचि, मैंने कभी भी अपने फ़्यूचर से आने का मिसयूज़ नहीं किया। ... मैंने बस यही कोशिश करी कि मेरे आस पास सभी की ज़िन्दगी सही रहे... बेहतर रहे।”

रूचि मुस्कुराई, “अज्जू... तुम कुछ ग़लत नहीं सकते! मैं किसी ग़लत आदमी को अपना दिल नहीं दे सकती...”

अचानक से ही अजय को राहत महसूस हो आई, “तो... तो... डज़ इट मीन... दैट आई ऍम सेफ़?”

“अज्जू,” रूचि ने कोमलता से अजय के गाल को छुआ, “मैंने तुमको चाहा है... तुम्हारे जैसे लगने वाले तीस साल के अंकल को नहीं!”

“ओह गॉड! ... थैंक यू सो मच मेरे प्रभु!” अजय ने विश्वकर्मा प्रजापति जी को धन्यवाद दिया, “एंड थैंक यू रूचि!”

अचानक से ही रूचि की आँखों में चमक सी आ गई, “सोचो न अज्जू... तुमने भगवान को छुआ है! शायद ही किसी को यह सौभाग्य मिलता है! मैं तो तुम्हारी बीवी बन कर धन्य हो जाऊँगी!”

“अरे यार,”

“अरे यार नहीं... सच में! जिसके सर पर खुद ईश्वर ने हाथ रख दिया हो, उसकी संगत में कुछ गलत नहीं हो सकता,”

“जान... आई डोंट थिंक दैट्स हाऊ इट वर्क्स,”

“जो भी हो... तुम्हारा इंटेशन नेक है। तुम एक अच्छे लड़के हो... एंड आई ऍम हैप्पी, कि मैंने तुमसे प्यार किया है!”

“छोड़ोगी तो नहीं न मुझको?”

“कभी नहीं,”

अजय मुस्कुराया।

“बट आई वुड लाइक टू सी दैट रेड तिल ऑन हर ब्रेस्ट...”

“राइट ब्रेस्ट...” अजय ने स्पष्ट किया, “अंडरनीथ द फ्लेश... नॉट ऑन द ब्रेस्ट!”

**
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,380
24,490
159
अजय कुमार साहब को फ्यूचर रीसेट करने के लिए साक्षात परमेश्वर का आशिर्वाद लेना पड़ा और साथ मे कई साल पास्ट मे भी जाना पड़ा , लेकिन रूचि कुमारी ने वर्तमान मे ही अजय साहब के अधेड़ पिता जी और ताई जी की हस्तरेखा बदलने की कोशिश शुरू कर दी ।
बात रूचि की सही तो अवश्य लग रही है कि जब अशोक साहब और किरण जी के जीवन साथी स्वर्गवासी हो चुके है , दूसरी दुनिया के मुसाफिर हो गए है , मर - मर - के - हूम हो चुके है , तो क्यों न यह दोनो हमेशा के लिए एक दूसरे का हाथ थाम ले !
शीघ्रली इनकी भी बैंड - बाजा - बारात हो जानी चाहिए ।
ऐसे ही नही ज्यादा सयाने लोग कहते हैं कि जो कमाल औरत नासमझ बनकर कर सकती है , वो समझदार बनकर नही कर सकती ।

संजू भाई - यह आख़िरी लाइन बड़ी काम की है।
समझदारी के फ़ेर में पड़ कर लोग अक्सर ही जीवन की सुन्दर बातों से दूर हो जाते हैं, और अनावश्यक बोझ अपने कंधो पर लादे घूमते रहते हैं।
कहानी, "मोहब्बत का सफ़र" में भी बचपने और नासमझी का बड़ा योगदान रहा है 'बड़ों' का जीवन सुधारने में :)

वैसे मै किरण जी के इस सलाह से इत्तफाक नही रखता कि अजय और रूचि को शादी के तुरंत बाद संतानोत्पत्ति नही करना चाहिए । नवविवाहित युगल को अपने पहले पुत्र के लिए देरी नही करनी चाहिए । पहले पुत्र के बाद आप आराम से कुछ साल का गैप ले सकते है । कही आनंद को परमानन्द बनाने के चक्कर मे पुत्र प्राप्ति के लिए बाकी जीवन संतान सुख के लिए न तरसना पड़ जाए !

मुझे भी इस बात से पूरा इत्तेफ़ाक़ है। लेकिन यह यूनिवर्सल बात नहीं है।
अंजलि और मेरी कहानी इसी बात का रिफ्लेक्शन है। हमारी शादी तब हुई थी, जब अंजलि छोटी ही थी।
लिहाज़ा आगे पढ़ने के लिए यह आवश्यक था कि हम संतान करने में थोड़ा विलम्ब करें।
आज सब बढ़िया ही बढ़िया है। बाकी - प्रकृति को कौन परास्त कर सकता है?

अध्याय के अंतिम पैराग्राफ मे रागिनी मैडम का दर्शन हुआ । रागिनी मैडम रूचि की मौसेरी बहन है , यह वाकई हैरान करने वाली बात है ।
अजय साहब का विहेवियर अपने फ्यूचर वाइफ रागिनी के साथ किस तरह का होता है , यह रीडर्स के लिए जिज्ञासा का विषय होगा ।
वो एक देव की तरह विहेव करते है , या एक दानव की तरह , या फिर एक साधारण मानव की तरह !

जानने के लिए साथ बने रहें! :)

सभी अपडेट बेहद ही खूबसूरत थे avsji भाई ।

बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई।
दो नए अपडेट्स हैं आज :)
 

parkas

Well-Known Member
30,487
65,801
303
अपडेट 56


अजय को अपना शरीर भार-शून्य सा लग रहा था - जैसे भौतिकी के नियम उस पर लागू ही न हो रहे हों। वो ‘वहाँ’ था भी और नहीं भी। वो उस स्थान का हिस्सा था भी और नहीं भी। ‘वहाँ’ - यह कौन सी जगह थी, उसका कोई ठीक ठीक अंदाज़ा लगा पाना कठिन था। कहीं तो था वो! कोई ऐसा स्थान जहाँ भौतिकी के सिद्धाँत लागू नहीं थे! ‘वो’ एक ऐसा स्थान था, जहाँ उसको अबूझ रोशनियों के कोमल तंतु दिखाई दे रहे थे। फिर उसने देखा कि उसका स्वयं का शरीर भी रौशनी की एक किरण समान ही लग रहा था। उन अनगिनत कोमल किरणों के बीच उसको ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वो अनंत में घुल मिल गया हो।

इस स्थिति में अजीब अजीब से दृश्य देख रहा था वो - शब्द भी दृश्य बन गए थे और भावनाएँ भी। उन दृश्यों में उसको अशोक जी, किरण जी, माया दीदी, रूचि, रूचि के मम्मी पापा, कमल, प्रशांत भैया, पैट्रिशिया भाभी, किशोर जी, सरिता जी, रागिनी, उसकी माँ, मनोहर भैया, जेलखाना और न जाने क्या क्या - शायद सब कुछ दिख रहा था। इन सबके बीच में वो कुछ नया देख रहा था - अजीब अजीब से शब्द! अजीब अजीब से बैज्ञानिक दृश्य - ठीक वैसे जैसे स्कूल कॉलेज में रसायन विज्ञान के मॉडल दिखते हैं। उसको इतना तो समझ आ रहा था कि कोई गंभीर और चिंताजनक बात चल रही है... लेकिन फिर भी मन से वो शांत था। कमाल की बात थी।

कुछ ऐसी ही अनुभूति उसको ‘उस दिन’ हुई थी, जब वो वापस अपने भूतकाल में आ गया था। इस बात के संज्ञान से उसको थोड़ी सी उलझन महसूस हुई - कई सारे कार्य जो उसने करने को सोच रखे थे, वो अभी भी शेष थे। कमल और माया दीदी की शादी अभी तक नहीं हुई थी और न ही प्रशांत भैया और पैट्रिशिया भाभी की! और तो और, उसका भी तो रूचि के साथ रिश्ता तय हो गया था - ऐसे में वो सब बीच में ही छोड़ कर जाना थोड़ा निराशा वाली बात लग रही थी। लेकिन अगर ईश्वर ने उसको इतने ही समय के लिए वापस भेजा था, तो यह संभव है कि उसने वो सब कर दिया हो, जो उससे बन पड़ा! तो अगर वो अब वापस भविष्य की ओर जा रहा था, तो वो भी ठीक था। शायद भविष्य में उसको परिवर्तन महसूस हो! शायद वो और रूचि साथ हों! शायद माया दीदी और प्रशांत भैया का जीवन बेहतर हो सका हो... शायद पापा जीवित हो और स्वस्थ हों!



*


जब अजय की आँखें खुलीं, तो उसने स्वयं को एक बड़े से सफ़ेद रंग के कमरे में एक अपेक्षाकृत ठन्डे और कठोर बिस्तर पर पाया।

जाहिर सी बात थी कि यह उसका कमरा नहीं था। आँखें उसकी अभी भी पूरी तरह से फ़ोकस नहीं थीं - लेकिन वो देख रहा था कि कम से कम दो लोग सफ़ेद लम्बे कपड़े पहने उसके बगल खड़े थे। उसके हाथ में थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था, और उसके सर पर सख़्त से कुछ वस्तुएँ चिपकी हुई थीं, जिससे उसको खुजली महसूस हो रही थी। उसे यह समझने में कुछ क्षण लगे कि वो हॉस्पिटल में था - उसके हाथ में एक आई वी ड्रिप लगी हुई थी, और उसके सर और सीने पर सेंसर और प्रोब्स चिपके हुए थे।

एक कोई चालीस बयालीस साल का आदमी उसको आँखें खोलते हुए देख कर मुस्कुराते हुए बोला, “हैलो अजय बेटे, कैसा लग रहा है तुमको?”

‘कौन सा अस्पताल था यह?’ उसने दिमाग पर ज़ोर डाला।

उसके प्रश्न का उत्तर डॉक्टर के सफ़ेद रंग के ऐप्रन पर कढ़े हुए अस्पताल के लोगो से मिल गया - ‘वानप्रस्थ अस्पताल’!

‘वानप्रस्थ अस्पताल!’ उसके दिमाग में यह परिचित सा नाम गूँजा, ‘ये तो वही अस्पताल है...’

हाँ - यह वही अस्पताल था जहाँ अशोक जी की मृत्यु हुई थी। लेकिन फिर भी इस विचार से अजय को न जाने क्यों घबराहट नहीं हुई। उसको खुद ही इस बात से आश्चर्य हुआ।

‘लेकिन उसको यहाँ क्यों लाया गया है?’ उसने सोचा, ‘उसको कुछ हो गया क्या?’

फिर उसकी नज़र डॉक्टर के नेम बैज पर पड़ी,

‘अजिंक्य देशपाण्डे,’

अजय ने एक पल के लिए इस नाम के बारे में सोचा - उसका सर एक बार फिर से घूमने लगा, लेकिन बस दो पलों के लिए ही।

“डॉक्टर देशपाण्डे?” उसके मुँह से अस्पष्ट से शब्द निकले।

“यस,” डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए और थोड़ा कौतूहल से अजय को देखा, “हैव व्ही मेट, यंग मैन?”

‘यंग मैन?’ उसने एक पल सोचा, ‘चालीस साल का आदमी किसी तीस साल के आदमी को बेटा या यंग मैन तो नहीं कहेगा... तो क्या वो अभी भी अपने पहले वाले रूप में है?’

“आई डोंट नो,” वो बुदबुदाया।

उसको शरीर में कमज़ोरी महसूस हो रही थी, लेकिन अब वो पूरी तरह से चौकन्ना था।

“हाऊ आर यू फ़ीलिंग?” डॉक्टर ने पूछा।

“आई थिंक आई ऍम फीलिंग गुड,” उसने कहा, “व्हाट हैपेंड?”

“तुम्हें क्या क्या याद है?” डॉक्टर ने पूछा।

“मैं... मैं अपनी फिएंसी के घर में था,” अजय ने याद करते हुए कहा, “आई वास मीटिंग हर रिलेटिव्स...” उसने मुख्य ‘ट्रिगर’ को छुपाते हुए बताया, “कि अचानक से सब कुछ हेज़ी हेज़ी हो गया... आई थिंक, आई फ़ेंटेड,” उसने निराशा के साथ कहा।

डॉक्टर देशपाण्डे ने थोड़ा इंतज़ार किया, लेकिन जब अजय ने कुछ और नहीं कहा, तो उन्होंने बताया,

“नॉट जस्ट फ़ेंटेड,” वो बोले, “तुम थर्टी टू हॉर्स से बेहोश हो...”

“व्हाट!” अजय चौंका - उसको तो लग रहा था कि बस कुछ ही समय हुआ रहेगा, “थर्टी टू हॉर्स! ... मतलब... मतलब दिवाली गई?”

“तुमको उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए!” डॉक्टर ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, “एक्चुअली, तुमको चिंता ही नहीं करनी चाहिए,”

“सो आई ऍम फाइन?”

“फीसिओलॉजिकली हंड्रेड परसेंट!” वो बोले, “आई विल बी ऑनेस्ट विद यू... तुम बेहोश क्यों हो गए, हम तो यह ठीक से नहीं जानते... तुम्हारा हार्ट परफेक्ट है! ब्रीदिंग सॉउन्ड है... और तुम्हारी ब्रेन एक्टिविटी... वेल, आई मस्ट से, दैट इस नॉट नार्मल... नॉट अबनॉर्मल! मोर लाइक हाइपरएक्टिव... आई कैन से कि तुमको ब्रेन में भी किसी तरह का डैमेज नहीं है।”

अजय ने समझते हुए सर हिलाया।

“एक्स-रे और एमआरआई में कोई चोट नहीं दिखाई दी... हाँ, ऐसा ज़रूर लग रहा था कि जैसे तुम सो रहे हो, लेकिन तुम्हारा दिमाग किसी साइंटिस्ट के जैसे सोच रहा हो!” वो मुस्कुराए।

उनकी बता सुन कर अजय के होंठों पर भी मुस्कान आ गई।

“सो, मेरी तरफ़ से तुमको क्लीन बिल ऑफ़ हेल्थ है!” वो बोले, “हाँ... लेकिन अगर तुमको ठीक लगे, तो मैं तुमसे थोड़ा डिटेल में बातें करना चाहूँगा... अभी नहीं, बाद में!”

“श्योर सर,” अजय बोला, “एक बात पूछूँ आपसे?”

“हाँ हाँ, ज़रूर,”

“आपने यहाँ कब ज्वाइन किया? और आपकी स्पेशलटी क्या है?”

“मैंने... एक महीना हुआ है! एंड आई ऍम अ न्यूरोसर्जन,” उन्होंने हँसते हुए बताया, “... बट आई ऍम नाऊ रिसर्चिंग इन न्यूरोऑन्कोलॉजी,”

“ओके,” अजय धीमे से बोला, “ऑन्कोलॉजी...”

“एस आई सेड, रिसर्चिंग... तुमको कोई प्रॉब्लम नहीं है!”

“तो क्या मैं घर जा सकता हूँ?”

“ओह श्योर! चाहो तो आज ही... बट स्ट्रेस न लेना, सुतली पटाखे न चलाना... हो सकता है तेज़ आवाज़ के कारण कान और सर पर ज़ोर पड़े। सो इट इस बेस्ट टू अवॉयड इट फॉर समटाइम...”

“ग्रेट!”

“बट, सबसे पहले तुम्हें अपनी फिएंसी (कहते हुए वो मुस्कुराए) और अपने परिवार से मिलना चाहिए... वे बहुत चिंतित हैं।”

“यहाँ हैं वो?”

“कल से यहीं हैं सभी,” डॉक्टर ने स्टूल से उठते हुए कहा, “मैं उन्हें अंदर आने को कहता हूँ,”

मिनट भर के भीतर ही रूचि भागती हुई कमरे में दाखिल हुई। उसके पीछे माया, किरण जी और रूचि की माँ दौड़ती हुई अंदर आईं। उनके एक मिनट बाद कमल, और तीनों बुज़ुर्ग - अशोक जी, रूचि के पिता, और किशोर जी प्रविष्ट हुए।

रूचि भागती हुई आई और बिस्तर पर लेटे हुए अजय से लिपट कर रोने लगी। अजय उसको यथासंभव आश्वस्त करते हुए मुस्कुराया, और रूचि को अपनी बाहों में भर कर उसे कसकर आलिंगन में पकड़ लिया।

“ओह अज्जू...” रूचि के आवाज़ से लग रहा था कि वो अंदर आने से पहले भी रो रही थी, “व्ही वर सो वरीड!”

अजय रूचि को देख नहीं पा रहा था, लेकिन माया और अपनी माताओं के चेहरे के भावों को देख कर वो महसूस कर सकता था कि सभी बहुत चिंतित थीं, और कुछ समय पहले रो रही थीं। तीनों की आँखें नम थीं।

सभी उसके कारण इतना दुःखी हुए, सभी का त्यौहार ख़राब हुए, यह सोच कर उसको शर्मिंदगी महसूस हुई।

“मैं एकदम ठीक हूँ, माय लव,” उसने बहुत धीरे से रूचि के सर को सहलाते हुए उसके कान में बोला, फिर सभी की तरफ़ मुखातिब हो कर थोड़ी स्पष्ट आवाज़ में बोला, “मैं ठीक हूँ...”

“क्या यार,” कमल थोड़ा याराने वाले अंदाज़ में बोला - लेकिन उसकी बात में भी चिंता साफ़ सुनाई दे रही थी, “क्या करता रहता है! डरा दिया हमको!”

“चुप रह! कुछ भी कहता रहता है,” किशोर जी ने अपने बेटे को प्यार से झिड़का, फिर अजय की तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “कैसे हो बेटे?”

“परफ़ेक्ट अंकल जी,” अजय मुस्कुराया, “डॉक्टर सर ने भी यही कहा है!”

“आई ऍम सो हैप्पी कि तुम ठीक हो बेटे,” रूचि के पिता बोले, “बहुत चिंता हुई थी हमको!”

“अरे भाई साहब... कुछ नहीं हुआ है! आप नाहक ही परेशान हो गए थे... शायद थकावट, या इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी के कारण चक्कर आ गया होगा,” अशोक जी ने माहौल को थोड़ा हल्का करने की कोशिश करी, जिससे रूचि के पिता को बुरा न लगे कि उनके ही घर पर उनके होने वाले दामाद की तबियत इस क़दर बिगड़ गई, “इसको घर ले चलेंगे... फिर मनाएँगे हम सभी साथ में मिल कर दिवाली!”

“हाँ भाई साहब,” रूचि की माँ बोलीं, “त्यौहार की ख़ुशी मनाने का कारण तो आज है,”

“तुम्हें कैसा लग रहा है बाबू?” माया ने अजय का हाथ अपने हाथों में पकड़ते हुए पूछा।

उसके लिए माया का स्नेह स्पष्ट था।

“मैं ठीक हूँ दीदी,” उसने कहा, “आप लोग यूँ ही परेशान हो गए!”

“मैं कहाँ परेशान हुई,” माया ने आँसू पोंछते हुए कहा, “हाल तो रो रो कर भाभी का बुरा हो रक्खा है,”

अजय ने रूचि की तरफ़ देखा - वो अपने आँसू पोंछ रही थी।

“कल से एक निवाला भी नहीं खाया है इसने,” माया ने शिकायत करी।

“बोल तो ऐसे रही हो, जैसे तुम कल से छप्पन भोग लगा रही हो,” रूचि ने रुँधे गले से माया की बात का प्रतिकार किया।

अजय जान गया कि कल से शायद ही किसी ने खाना खाया हो। अपने लिए सभी के मन में ऐसी चिंता और इतना स्नेह देख कर उसका दिल भर आया।

“आप लोग...”

अजय ने कहना शुरू ही किया कि माया ने उसकी बात को बीच में काट दिया, “डॉक्टर समझ नहीं पा रहे थे कि क्या गड़बड़ है... तुम बस सो रहे थे... देर तक,”

“अरे बिटिया,” किरण जी ने माया को कुछ कहने से रोका, “अब बस कर... और राम कहानी सुनाने की ज़रुरत नहीं है!”

“हाँ माँ! बाबू को ले कर चलते हैं...”

“हाँ हाँ,” यह कह कर सभी बड़े लोग कमरे से बाहर चले गए।

थोड़ा एकांत पा कर रूचि अजय का सीना सहलाती हुई बोली, “अज्जू, अभी कैसा लग रहा है?”

अजय कुछ बोल पाता, उससे पहले ही उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। वह सोफे पर गिर पड़ा, बेहोश।

रूचि ने घबराकर उसका चेहरा छींटों से भिगोया। मासी और रागिनी भी उठकर पास आ गईं। रूचि की माँ ने जल्दी से पानी का गिलास लाया, और कुछ ही मिनटों में अजय को होश आया। उसकी आँखें अभी भी रागिनी पर टिकी थीं, जैसे वह किसी भूत को देख रहा हो।

रूचि ने उसके माथे को सहलाते हुए पूछा, “अज्जू, क्या हुआ? तुम अचानक ऐसे... क्यों...? कैसे...?”

अजय ने दो पल सोचा कि क्या कहे रूचि से वो... फिर बोला,

“रूचि... मुझे तुमको कुछ बताना है,”

“ओके?”

“रूचि... समय चाहिए मुझे... इतनी जल्दी नहीं कह पाऊँगा सब,”

“ओके,”

“अरे चलो उठो...” किरण जी एक नर्स के साथ भीतर आईं, “रूचि बेटे, चलो... गाड़ियाँ रेडी हैं,”

“जी माँ,” फिर अजय को देख कर, “घर पे?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

*
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,914
15,064
159
अपडेट 57


अजय को सहारा दे कर घर में लाया गया - ऐसा नहीं है कि उसको किसी सहारे की आवश्यकता थी, लेकिन सभी ‘बड़े’ लोगों ने ज़िद पकड़ ली थी और वो कोई बहस नहीं चाहता था। कुछ देर तक सभी उसके आस पास बैठ कर उसको बहलाने की कोशिश करते रहे। थोड़ी आतिशबाज़ी हुई, स्वादिष्ट खाना पकाया और खाया गया - एक तरह से आज ही दिवाली मनाई गई। और अंत में सबकी विदाई का अवसर आया।

रूचि ने एक बार अजय को आँखों में देखा और फिर अपने पिता जी से बोली, “पापा, मैं अज्जू के साथ ही रुकूँगी आज...”

“हाँ बेटे, यह ठीक रहेगा... यहीं रहो, और अगर कोई बात हो, तो हमको तुरंत खबर करो।”

“जी पापा,”

“अरे भाईसाहब, चिंता की कोई बात नहीं है!” आशोक जी बोले।

उनको भी बहुत बुरा लग रहा था कि अजय को लेकर इतने सारे लोग परेशान हो गए। लेकिन उनको यह देख कर अच्छा भी लगा कि रूचि किसी साए की तरह अजय के साथ बनी रही पूरे समय।

रूचि ने ही उनको फ़ोन कर के बताया था कि अजय को ‘वानप्रस्थ अस्पताल’ में इमरजेंसी में भर्ती किया गया है, क्योंकि वो अचानक से ही बेहोश हो गया है। जब तक वो और किरण जी अस्पताल पहुँचे नहीं थे, तब तक रूचि ने अपना धीरज खोया नहीं था, लेकिन जब वो दोनों आ गए, तब उससे रहा नहीं गया... और तब से अजय के रिलीव होने तक रो रो कर उसका बुरा हाल हो गया था। माया ने कुछ देर उसको सम्हाला, लेकिन वो भी कुछ समय बाद बहुत डर गई। वो तो अच्छी बात थी कि घर की बड़ी स्त्रियाँ वहाँ थीं और उन्होंने दोनों को सम्हाल लिया। ख़ैर - अशोक जी के लिए इतना तो स्पष्ट था कि रूचि को अजय से बहुत ही प्रेम है। वो संतुष्ट हो गए कि उन्होंने अजय के लिए एक बेहद बढ़िया सी लड़की ढूंढ ली थी!

“बहुत अच्छी बात है न भाई साहब कि चिंता की कोई बात नहीं है!” रूचि के पापा बोले, “आप भी कोई चिंता न करें! रूचि है न - आप सभी लोगों की देखभाल कर लेगी।

सबको विदा करने के बाद सभी ने रूचि और अजय को अजय के कमरे में अकेला छोड़ दिया। आज रात में थोड़ी थोड़ी ठंडक सी हो रखी थी। बाहर से अभी भी रह रह कर पटाखों की आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन मुख्य त्यौहार की रात की तरह नहीं। रूचि ने कमरे की खिड़की बंद कर दी, जिससे ठंडी हवा और पटाखों की छिटपुट आवाज़ न आए और धीमी गति से चलती हुई अजय के पास आ कर बैठ गई।

अजय ने उसको देखा और मुस्कुराने की कोशिश करने लगा। रूचि ने भी मुस्कुरा कर ही उत्तर दिया, लेकिन उसके चेहरे पर अजय को लेकर चिंता और मानसिक पीड़ा वाले भाव स्पष्ट थे।

“रूचि... माय लव,” अजय ने शुरू किया, “थैंक यू,”

“अज्जू...”

“नहीं रूचि... एक मिनट... मुझे बोल लेने दो!” वो बोला, “मैंने एक बात सीखी है कि जो मन में हो, वो बता देना चाहिए... नहीं तो देर हो जाती है और फिर पछतावा होता है ज़िन्दगी भर...”

रूचि चुप रही।

“आई लव यू! एंड आई थैंक यू... फॉर बीईंग इन माय लाइफ...”

इस बार जब रूचि मुस्कुराई, तो उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव नहीं थे। लेकिन वो अभी भी चिंतित तो थी।

“पानी?” उसने अजय से पूछा।

अजय के ‘हाँ’ में सर हिलाने पर उसने अजय को पानी का गिलास थमाया और फिर कहा, “अज्जू... अब बोलो... क्या हुआ था तुमको?”

अजय ने दो चार घूँट पानी पिया और बोला, “मेरी जान, आई डोंट नो कि तुम मेरी बात का कितना विश्वास करोगी... लेकिन मैं तो कहने जा रहा हूँ, वो पूरे ओपन माइंड से सुनना... और समझने की कोशिश करना...”

“ओके,” रूचि की उत्सुकता बढ़ गई।

अजय ने एक गहरी साँस ली। वो जो कहने जा रहा था, वो सोच कर उसका मन भारी हो गया था। वो जानता था कि अगर उसने रूचि को सच नहीं बताया, तो यह बोझ उसे शांति से जीने नहीं देगा... लेकिन, सच बताने का मतलब यह भी था कि शायद रूचि के साथ उसका रिश्ता ख़तरे में भी पड़ जाए! फिर भी, उसने फैसला किया कि वो रूचि से कुछ नहीं छुपाएगा।

“यार रूचि,” उसने कहना शुरू किया, “मैं रागिनी से पहले भी मिल चुका हूँ...”

“क्या? सच में? कब?”

“भविष्य में,”

“भविष्य में?”

“रूचि,” उसने काँपती आवाज़ कहा, “मुझे नहीं पता तुम मुझ पर यकीन करोगी या नहीं... लेकिन जो कुछ भी मैं तुमको बताने जा रहा हूँ, वो पूरी तरह से सच है। मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ है, जो आज तक शायद किसी के साथ भी नहीं हुआ!”

रूचि ने भौंहें सिकोड़ीं, “क्या मतलब? पूरी बार बताओ अज्जू... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है!”

अजय ने अपनी आँखें बंद कीं और उस दिन से और उस दिन के पहले हुई अपने जीवन की सारी घटनाएँ रूचि को सिलसिलेवार ढंग से सुनाने लगा। उन वृद्ध ‘विश्वकर्मा प्रजापति जी’ से मुलाक़ात - जो उसके हिसाब से स्वयं परमपिता थे, फिर उस रात का सपना - वो स्याह सी स्मृतियों वाली चादर, वो टूटती मरोड़तीं स्मृतियाँ, और फ़िर सुबह उठ कर अचानक से ही अपने जीवन के तेरह साल वापस चले आना! उसने रूचि को सब कुछ बताया - कि वो यह सब होने से पहले एक तीस साल का ‘आदमी’ था... वो एक अंडरअचीवर था, जिसकी पहले से ही झण्ड ज़िन्दगी को रागिनी नाम की ख़ूबसूरत, लेकिन ज़हरीली नागिन ने बर्बाद कर दिया था। कैसे उसने और माँ ने झूठे केस में जेल की सजा काटी... कैसे दोनों का सब कुछ छिन गया... कैसे अशोक जी इन्ही डॉक्टर देशपाण्डे की लापरवाही के कारण ईश्वर को प्यारे हो गए... कैसे माया दीदी और प्रशांत भैया की शादी-शुदा ज़िंदगियाँ खराब हो गईं। कैसे कमल ने माया दीदी से अपने प्रेम के कारण आज (तब) तक शादी ही नहीं करी। लेकिन जब उसको अपना जीवन पुनः जीने का अवसर मिला, तो वो इस नए समय-काल में वो अपने सभी प्रियजनों का जीवन और अपनी गलतियों को सुधारना चाहता था... अपने माँ-बाप को खुशियाँ देना चाहता था... माया दीदी के साथ अपने सम्बन्ध सही करना चाहता था और चाहता था कि उनको अपने जीवन में खुशियाँ मिलें, जिनकी वो हक़दार थीं। और अगर संभव हुआ, तो वो अपने जीवन को भी एक नई दिशा देना चाहता था। रूचि सब सुन रही थी, और अवाक् सी बैठी हुई थी।

‘ऐसा भी कहीं होता है क्या?’ वो सोच रही थी। लेकिन अजय पर अविश्वास करने का कोई कारण ही नहीं मिल रहा था उसको।

“रूचि,” अजय कह रहा था, “... तुम मेरी उस ज़िंदगी का हिस्सा नहीं थीं... लेकिन इस ज़िंदगी में... तुम सब कुछ हो! तुम मेरे लिए सब कुछ हो... आई लव यू! और यह सब बताते हुए मैंने तुमसे कुछ नहीं छुपाया।”

“रागिनी?” रूचि के मुँह से निकला।

“रागिनी... मेरी बीवी थी... उसने हमारे साथ जो कुछ किया, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। कल जब मैंने उसको यूँ अचानक से अपने सामने देखा, तो मुझे लगा कि मेरा अतीत फिर से मेरे सामने आ खड़ा हुआ है... मुझसे उसका चेहरा भी देखा न जा सका...”

“तुम रागिनी से नाराज़ हो?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया, “नहीं रूचि, सच में! मैं उससे नाराज़ नहीं, खुद से निराश हूँ! ... मैं इतना अंडरअचीवर था, कि सुन्दर चमड़ी को पाने के लालच में आ गया, बिना यह सोचे समझे, कि भला ऐसी लड़की मेरे संग क्यों आएगी? अपने लालच में मैंने माँ पापा और ताऊ जी ताई जी का बनाया सब कुछ गँवा दिया! नहीं... मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ!”

रूचि चुपचाप सुन रही थी। उसकी आँखें स्थिर थीं, लेकिन चेहरे पर एक अजीब-सा भाव था... जैसे वो समझ न पा रही हो कि इस बात को कैसे समझे!

जब अजय रुका, तो उसने धीरे से पूछा, “तो तुम कह रहे हो कि तुम... भविष्य से आए हो? और रागिनी तुम्हारी पत्नी थी? लेकिन अब तुम एक टीनएजर हो, और वो सब कुछ... एक सपना था?”

“सपना नहीं, रूचि,” अजय ने समझाया, “वो मेरी हक़ीक़त थी। मैं नहीं जानता कैसे, लेकिन मैं उस हकीकत से इस नई हक़ीक़त में आ गया हूँ। और ऐसा नहीं है कि मैं भविष्य से आने के कारण सब जानता हूँ... बहुत सी बातें मुझे पता नहीं हैं! अरे, मुझे तो यह भी नहीं पता कि मुझे क्या क्या नहीं पता!”

रूचि ने समझते हुए सर हिलाया।

“मैं बस इतना चाहता हूँ कि इस बार मैं सब कुछ ठीक कर दूँ... जब सबसे पहला काम - मतलब कमल और माया दीदी का रिश्ता जुड़ा... तब मुझे लगा कि मैं सही रस्ते पर हूँ... फिर प्रशांत भैया और भाभी का रिश्ता ठीक बैठा। ... फिर मुझे लगा कि मुझे लूज़र नहीं रहना चाहिए... पढ़ लिख कर कोई ढंग का मक़ाम हासिल करना चाहिए। ... इस कारण से तुम मिलीं मुझे... तुम्हारा साथ मिला... तुम्हारा प्यार मिला...”

रूचि ने कुछ पल चुप रहकर सोचा... फ़िर बोली, “अज्जू... ये सब... ये सब बहुत अजीब है। आई ट्रस्ट यू... लेकिन ये सब तुम्हारा वहम भी तो हो सकता है न?”

“नहीं रूचि...”

“सोचो न... लोगों को डेजा वू होता है... उनको लगता है कि जो कुछ हो रहा है, वो उनके साथ पहले भी हो चुका है,”

“लेकिन मेरा एक्सपीरियंस डेजा वू वाला नहीं है... सब कुछ अलग है पहले से इस बार!”

“तुम मुझे कुछ ऐसा बता सकते हो, जो कोई भी नहीं बता सकता?”

“जैसे?”

रूचि ने कुछ देर सोचा, फिर बोली, “अगर तुम और रागिनी हस्बैंड वाइफ थे, तो तुम दोनों एक दूसरे को इंटीमेटली जानते होंगे...”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “... उसके दाहिने ब्रेस्ट की अंदरूनी गहराई में लाल रंग का तिल है...”

रूचि अजय की बात सुन कर अचकचा सी गई। दो पल उसको समझ ही नहीं आया कि वो क्या कहे।

“रूचि... आई नो कि यह सब प्रोसेस करने के लिए बहुत अधिक है... मुझे खुद बहुत समय लगा। आई कांट एक्सपेक्ट यू टू अंडरस्टैंड एवरीथिंग... लेकिन,”

कहते कहते अजय का दिल बैठ रहा था। उसको समझ में आ रहा था कि रूचि के मन में शायद एक उलझन पैदा हो गई थी।

उसने कहा, “... लेकिन मैं तुमसे सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ... और मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता,”

रूचि ने हल्की मुस्कान दी, “किसी और को बताया है ये सब?”

“पापा को,”

“क्या क्या? ... क्या उनको यह भी बता दिया कि वो...”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने ज़िद कर के पूरा मेडिकल करवाया है। उसमें उनकी ऐलर्जीज़ पता चलीं... वो भी जिनके कारण उनको कॉम्प्लिकेशन हो गया था,”

“माँ को?”

“नहीं बताया... लेकिन मैंने उनके नाम एक चिट्ठी रख छोड़ी है,” अजय ने इशारे से दिखाया, “... वो वहाँ दराज़ में है। अगर कल को मुझे कुछ हो जाए, तो उसमें सब कुछ लिख छोड़ा है,”

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “दे डिज़र्व टू नो,”

“तुम भी... रूचि, मैंने कभी भी अपने फ़्यूचर से आने का मिसयूज़ नहीं किया। ... मैंने बस यही कोशिश करी कि मेरे आस पास सभी की ज़िन्दगी सही रहे... बेहतर रहे।”

रूचि मुस्कुराई, “अज्जू... तुम कुछ ग़लत नहीं सकते! मैं किसी ग़लत आदमी को अपना दिल नहीं दे सकती...”

अचानक से ही अजय को राहत महसूस हो आई, “तो... तो... डज़ इट मीन... दैट आई ऍम सेफ़?”

“अज्जू,” रूचि ने कोमलता से अजय के गाल को छुआ, “मैंने तुमको चाहा है... तुम्हारे जैसे लगने वाले तीस साल के अंकल को नहीं!”

“ओह गॉड! ... थैंक यू सो मच मेरे प्रभु!” अजय ने विश्वकर्मा प्रजापति जी को धन्यवाद दिया, “एंड थैंक यू रूचि!”

अचानक से ही रूचि की आँखों में चमक सी आ गई, “सोचो न अज्जू... तुमने भगवान को छुआ है! शायद ही किसी को यह सौभाग्य मिलता है! मैं तो तुम्हारी बीवी बन कर धन्य हो जाऊँगी!”

“अरे यार,”

“अरे यार नहीं... सच में! जिसके सर पर खुद ईश्वर ने हाथ रख दिया हो, उसकी संगत में कुछ गलत नहीं हो सकता,”

“जान... आई डोंट थिंक दैट्स हाऊ इट वर्क्स,”

“जो भी हो... तुम्हारा इंटेशन नेक है। तुम एक अच्छे लड़के हो... एंड आई ऍम हैप्पी, कि मैंने तुमसे प्यार किया है!”

“छोड़ोगी तो नहीं न मुझको?”

“कभी नहीं,”

अजय मुस्कुराया।

“बट आई वुड लाइक टू सी दैट रेड तिल ऑन हर ब्रेस्ट...”

“राइट ब्रेस्ट...” अजय ने स्पष्ट किया, “अंडरनीथ द फ्लेश... नॉट ऑन द ब्रेस्ट!”

**

Bahut hi gazab ki update he avsji Bhai,

Ajay aakhirkar thik hokar ghar aa gaya...........

Doctor bhi deshpande hi nikla vo hi jiske karan uske pita ji ki jaan gayi thi.....

Aur usne ruchi ko bhi apne future se aane ki baat bata di............

Ruchi ek samajhdar ladki ki tarah sab kuch swikar kar rahi he.........

Ab dekhna he ki ragini ka chapter yahi khatam ho jayega ya fir vo hi ajju aur uske parivar ki zindagi barbad karegi........

Keep rocking Bro
 
Top