उमाकांत भाई, हूँ तो मामूली ही।
ऑफ़िस के काम में हमेशा अंग्रेज़ी का ही प्रयोग करने के कारण, और अपनी हिंदी में लिखने की इच्छा के कारण यहाँ लिखता रहता हूँ।
जिस तरह का लेखन मेरा है, उसको कोई प्रकाशक घास न डालेगा - इसलिए 'लेखक' बनने की pretense यहीं निकाल लेता हूँ।
सोचिए तो -- अपने असली नाम से भी नहीं लिख सकता!
अतः अपने बारे में मुझे कोई ग़लतफ़हमी नहीं है।
कोशिश तो यही रहती है कि कामुक आनंद के बीच में पाठकों को एक दो सन्देश देता रहूँ।
भगवान की दया से हमारा पारिवारिक जीवन आनंदमय रहा है अभी तक... तो उन्ही अनुभवों में से कुछ बातें अपने पाठकों से शेयर कर देता हूँ कहानियों के माध्यम से।
आपको शायद अतिशयोक्ति लगे, लेकिन मेरी स्वर्गवासी माँ ने मेरी पत्नी को वैसा ही स्नेह दिया है जैसा कि मैं अपनी कहानियों में सासों को अपनी बहुओं को देता हुआ दिखाता हूँ।
मैं अपनी पत्नी को हमेशा यह कह के छेड़ता था कि तुम शायद पहली बहू होगी जो ससुराल से बाहर जाते समय रोती हो... नहीं तो बाकी बहुएँ इसी ताक में रहती हैं कि कब ससुराल से पिण्ड छूटे। बस वैसे ही स्नेह भरे परिवारों की कहानी गढ़ता रहता हूँ - क्योंकि ऐसे परिवार समय के साथ कम होते जा रहे हैं।
इसी तरह की कई बातें जो मेरी कहानियों में होती हैं, वो सच्ची बातों पर आधारित रहती हैं।
कुछ बातें, जैसा बड़ी उम्र की लड़कियों का अपने से कम उम्र के लड़को से प्रेम / विवाह -- यह सब आज कल बहुतायत से हो रहा है, तो समझिए मैं भी उसी भेंड़-चाल में शामिल हूँ।
जो हो रहा है, वो लिखने में क्या बुराई है भला! और चूँकि यह एक वयस्क फ़ोरम है, तो सेक्स के बारे में भी खुल कर लिख सकते हैं (जो अभी तक मैंने इस कहानी में नहीं लिखा है)।
अपना लेखन भी निम्न-स्तरीय ही है भाई

सस्ता लुगदी लेखन!!
हाँ बस, जब USC होता है, तब थोड़ा अलग, थोड़ा सम्मानजनक लेखन करने का प्रयास रहता है।
इन दोनों प्रिय भाईयों की तरह आप भी मार्गदर्शन ही करते हैं। संजू भैया को तो किसी लेखन में कुछ बुरा दिखाई ही नहीं देता - इतने उदार हैं वो!
आपकी बात मैं समझता हूँ और मानता भी हूँ! नवीनता नहीं होती है तो पढ़ने वाला भी ऊब ही जाता है।
लेकिन मैं क्या करूँ? कहाँ से ले आऊँ नए नए विचार?
सच मानिए - यह कहानी मैंने वैसी सोची ही नहीं थी जैसी अब निकल पड़ी है। बहुत भिन्न सोचा हुआ था मैंने इसके लिए।
लेकिन अब पूरी तरह से अलग दिशा में चल रही है।
ख़ैर !
मेरी हैसियत ही नहीं है भ्राता! अकादमी की ईमारत में जाने की भी हैसियत नहीं है
सहमत हूँ! आप देख लें - मैंने कभी भी किसी समालोचना या सकारात्मक सुझाव को नकारा नहीं।
अपनाया ही है। कितने सारे पाठकों के विचार मैंने अपनी कहानियों में डाले हैं।
लेकिन अब तो वैसे फीडबैक आते ही नहीं।


अच्छी ठिठोली करते हैं आप।
जी भाई, लिखते रहेंगे।
इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। जिनको जानता नहीं, जिनका लेखन पढ़ा नहीं, उनके बारे में क्या ही कहूँ?
मैं बस एक दो लेखकों, जैसे राज शर्मा
Raj_sharma भाई साहब की "सुप्रीम" पढ़ने आता हूँ।
अत्यंत उत्कृष्ट लिखते हैं - सोच भी उनकी गज़ब की है, कहानी में नवीनता है और बेहद रोमाँचक कहानी लिखी है उन्होंने!
शायद आपको वो सब वहाँ मिले जो आप पढ़ना चाहते हैं।
काला नाग भाई साहब ने फ़ोरम ही छोड़ दिया है। अन्यथा उनका लेखन भी अद्भुत है।
शैतान जी
Shetan बहुत बढ़िया लिखती हैं - ख़ास कर USC में। उसके अतिरिक्त मैंने उनका लेखन नहीं पढ़ा है।
आशा है कि भिन्न रहूँ।
मैंने यहाँ अपना पक्ष रखा है - यह कोई वाद प्रतिवाद नहीं है। आपकी बात से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ।
मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि शायद लिखने की अपनी हैसियत पर पहुँच चुका हूँ, और इसी कारण से कुछ नया ला पाना मेरे लिए कठिन होता जा रहा है।
रोमांस से अलग लिखूँ, तो ही संभव है शायद अब कुछ नया लिख पाना।
"अपशगुनी" कुछ उसी तरह की कहानी है।
बिल्कुल भी नहीं।
जय जय
वैसे आप भी कोई कमतर नहीं हैं।
आप कुछ क्यों नहीं लिखते? यह तो वैसे भी open forum है।
आप भी कुछ लिखें, अपने विचार हम सभी से शेयर करें!