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Romance फ़िर से

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट 56; अपडेट 57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
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parkas

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रूचि ने मन ही मन सोचा कि किस तरह की लड़की है ये! मन ही मन उसे रागिनी का ये लम्पट अंदाज़ ख़राब लग रहा था। अगर रागिनी किसी के संग प्रेम के कारण सेक्स कर रही होती, तो समझ में आता है। लेकिन वो जो कर रही थी, या कर चुकी थी, उसको वेश्यावृत्ति ही कहना उचित है। लेकिन बाहर से उसने बस एक हल्की मुस्कान दी और कहा, “हम्म्म हम्म... देखते हैं दीदी! ... वैसे तुमको तो बहुत आता है इन सब चीज़ों के बारे में। मुझे तो अभी कुछ समझ ही नहीं आता।”

“सच में? तुझे सच में नहीं पता?”

रूचि ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “माँ कुछ बताती ही नहीं!”

“क्या यार! पढ़ने लिखने में न, तू सबसे ज़रूरी बातें सीखना भूल गई।”

रूचि ने उदास सा चेहरा बना लिया।

रागिनी ने एक विजयी मुस्कान दी, और उसको दिलासा देती हुई बोली, “अरे कुछ नहीं बहना! ये सब तो एक्सपीरियंस की बात है। तू बस एक काम करना... जब तुम दोनों अकेले हो न, तो बस अपने दिल की सुनना। अजय समझदार है... वैसे भी लड़कों को बस थोड़ा सा इशारा काफ़ी होता है। फिर वो तुझ पर ऐसे टूट पड़ेगा न, कि तू उड़ने लगेगी मेरी लाडो!” उसने हँसते हुए कहा।

रूचि को यह वार्तालाप असुविधाजनक लग रहा था, लेकिन वो कर भी क्या सकती थी! शुरू उसी ने किया था।

“वैसे,” रागिनी ने रूचि को चुप देख कर कहा, “अगर तू चाहे तो मैं तुझे कुछ टिप्स दे सकती हूँ।”

रूचि ने हल्के से हँसते हुए कहा, “टिप्स? अरे दीदी, अभी तो मेरी सगाई भी नहीं हुई है!” फिर बात बदलते हुए बोली, “इन दोनों के अलावा कोई नहीं? कोई ऐसा जिसके साथ तुम सीरियस हो?”

“नहीं यार... एक नया बॉयफ्रेंड मिला है, लेकिन सीरियस नहीं है कुछ! ... वैसे,” रागिनी ने रहस्यमई अंदाज़ में कहा, “अजय अच्छा है,”

“हाँ दीदी! आई ऍम वैरी लकी,”

रागिनी ने एक गहरी साँस ली और बिस्तर पर और पीछे की ओर सरकते हुए कहा, “हाँ यार... सच में तू लकी है! और सच कहूँ... तो अजय जैसा लड़का पाना तो हर लड़की का सपना होता है। रिच फैमिली, गुड लुक्स, और जो कुछ सुना उसके बारे में... बहुत सुलझा हुआ भी! और इतना कमसिन भी!” कहते कहते उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक आ गई थी, “सच कहूँ बहना... बुरा न मानना... अगर तू न होती न तो मैं तो ज़रूर अजय को पटाने की कोशिश करती!”

उसने कहा तो हँसते हुए था लेकिन उसकी हँसी में छुपी हुई ठंडी गंभीरता रूचि को साफ़ साफ़ समझ में आ गई। और इस बोध से उसका शरीर सिहर गया।

प्रत्यक्ष में रूचि ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा! तो तुम मुझसे मेरा होने वाला हस्बैंड छीनना चाहती हो?”

रूचि ने बड़ी कोशिश करी कि यह मज़ाक जैसा ही लगे, लेकिन उसकी आवाज़ में एक हल्की सी तल्ख़ी थी।

“अरे, मज़ाक कर रही हूँ बहना,” रागिनी ने हँसते हुए कहा। “लेकिन सच में, तू बहुत लकी है। अजय जैसे लड़के को पाना कोई छोटी बात नहीं है।”

“पता है? उनकी बड़ी बहन की शादी उनके दोस्त के साथ हो रही है,”

“जीजू का दोस्त भी उन्ही के जैसा है?”

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हाय मेरी किस्मत! बहनचोद, क्या कर रही हूँ वहाँ रेगिस्तान में!” रागिनी के मुँह से गाली सुन कर रूचि चौंक गई, “माँ से कह कर यहाँ इंडिया शिफ़्ट हो जाते हैं!”

“दीदी!” रूचि ने डंपटते हुए कहा।

“सॉरी यार! निकल गया मुँह से,” वो बोली, “कब है शादी?”

“दो हफ़्ते बाद,”

“बढ़िया है! क्या पहनेगी?” रागिनी ने पूछा, “तू तो उनकी होने वाली बहू है बहना मेरी! तुमको तो एकदम सज धज के रेडी रहना चाहिए... दुल्हन की तरह!”

“एक्चुअली, एक नहीं - दो शादियाँ हैं! पहले इनकी दीदी की, और फिर दो दिन बाद इनके बड़े भैया की!”

“सही है यार,” रागिनी ने गहरी साँस भरते हुए कहा, “द मोर द मेरिअर...”

“मेरी हेल्प करोगी दीदी?”

“ड्रेस सेलेक्ट करने में?” रागिनी को जैसे अपना पसंदीदा विषय मिल गया हो, “श्योर! दिखा मुझे... क्या क्या है तेरे पास?”

रूचि ने अपनी अलमारी से साड़ियाँ और अन्य ड्रेसेस निकालने शुरू कर दिए। विगत दो वर्षों में रूचि की मम्मी ने रूचि के लिए साड़ियाँ खरीदनी शुरू कर दी थीं - कुछ भारी तो कुछ हल्की। इसलिए नहीं कि उसकी शादी की कोई चिंता थी उनको - बल्कि इसलिए कि वो चाहती थीं कि उसको समाज में उठने बैठने का समुचित शऊर आ जाय।

रूचि ने दो साड़ियाँ बिस्तर पर रखते हुए कहा, “वैसे दीदी, कैसा लड़का होना चाहिए जिसके साथ तुम सच में सेटल होना चाहोगी?”

रागिनी ने एक पल के लिए सोचा और फिर कहा, “हम्म... मैं चाहती हूँ कि मेरा होने वाला हस्बैंड ऐसा हो जो मुझे हर तरह से सिक्योर कर दे... उसके पास रुपया पैसा, स्टेटस... सब कुछ होना चाहिए,” उसने एक नाटकीय अंदाज़ में कहा, “मैं चाहती हूँ कि मेरी शादी किसी ऐसे लड़के से हो, जो मुझे दुनिया की हर ख़ुशी दे सके... अजय जैसा... या शायद उससे भी बेहतर!”

रूचि ने मन ही मन सोचा कि ये तो साफ़-साफ़ जल रही है मुझसे, लेकिन उसने हँसते हुए कहा, “अच्छा, तो तुमको अजय से भी बेहतर चाहिए!”

रागिनी ने भी हँसते हुए कहा, “हाँ... लेकिन फिलहाल तो मैं मार्केट में सर्च कर रही हूँ! लेकिन हाँ, अगर अजय जैसा कोई मिल जाए, तो मैं तो तुरंत हाँ कर दूँगी।”

फिर उसने अपनी आँखें सिकोड़ते हुए और कहा, “तू मुझसे सब बुलवाए ले रही है... तू बता! तू कुछ तो करी होगी न अजय के साथ! बता ना, क्या क्या किया?”

रूचि ने हल्के से अपनी नज़रें नीचे कर लीं... उसे रागिनी की जलनखोरी और बेतक़ल्लुफ़ी अजीब लग रही थी।

उसने कहा, “अरे दीदी, अभी तो हम बस एक दूसरे को समझ रहे हैं। वो सब तो बाद में होगा।”

“बाद में?” रागिनी ने एक ठहाका लगाया, “अरे बहना, तू सच में बहुत सीधी है! गाय है गाय! तुम दोनों को अब तक कुछ न कुछ कर लेना चाहिए था।”

रूचि ने हल्के से हँसते हुए कहा, “मैं तो अभी इन सबके लिए तैयार नहीं हूँ।”

“तैयार नहीं है?” रागिनी ने हँसते हुए कहा। “अरे लाडो रानी, ये सब तो बस फीलिंग्स की बात है। जब तू अजय के साथ अकेले होगी, तो सब अपने आप हो जाएगा।” उसने अपनी आवाज़ को और धीमा करते हुए कहा, “मैंने तो ख़ालिद और सईद के साथ इतने मस्त मोमेंट्स शेयर किए है कि बस... हर बार लगता था कि मैं बादलों पर उड़ रही हूँ।”

रूचि ने बस हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा? इतना मज़ा आता है?”

“मज़ा?” रागिनी ने हँसते हुए कहा, “मज़ा तो बस शुरुआत है बहना... जब मर्द का ‘वो’ अंदर जाता है न... उफ़! एक बार होने दे, फिर तू समझ जाएगी कि मैं क्या कह रही हूँ।” उसने एक गहरी साँस ली और कहा, “वैसे, अगर तुझे कोई टिप चाहिए, तो बता दे। मैं तुझे पूरा गाइड कर दूँगी,”

रूचि ने हँसते हुए कहा, “ठीक है, जब ज़रूरत पड़ेगी, तुमसे पूछ लूँगी।” फिर बात बदलते हुए बोली, “लेकिन अभी मुझे ड्रेस सेलेक्ट करने में हेल्प कर दो न,”

रागिनी ने एक साड़ी उठा कर देखा और कहा, “वाओ रूचि, ये तो बहुत खूबसूरत है! तू इसमें हॉट लगेगी। अजय तो तुझ पर फिदा हो जाएगा।”

“सच में?”

“हाँ... पहन कर दिखा?”

रूचि ने साड़ी को उठाया और रागिनी से कहा, “उधर मुँह करो,”

रागिनी हँसते हुए बोली, “पागल है क्या?”

रूचि समझ गई कि अगर रागिनी की सच्चाई जाननी है तो यह करना ही पड़ेगा। उसने अपना कुर्ता उतारना शुरू कर दिया।

रागिनी ने उसकी ओर देखा और हँसते हुए कहा, “अरे बहना, तू तो सच में बिंदास है! बस एक दिन ऐसे ही हिम्मत कर के जीजू के सामने कपड़े उतार दे! फिर देखना!”

रूचि ने हँसते हुए कहा, “तुम्हारी बात अलग है! तुम मेरी बहन हो!”

“लाडो मेरी, एक हस्बैंड ही होता है, जिसके सामने शर्म नहीं करी जाती!”

तब तक रूचि ने अपने अधोवस्त्रों में आ गई थी। उसने पेटीकोट पहना, साड़ी से मैचिंग ब्लाउज़ पहना और फिर साड़ी को अपने शरीर पर लपेटना शुरू किया। रागिनी की नज़रें रूचि के शरीर पर टिकी थीं।

उसने कहा, “रूचि, तेरा फिगर कमाल का है! जीजू भी कोई कम लकी नहीं हैं।”

रूचि ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “दीदी, तुम भी कुछ कम नहीं हो! मुझसे तो बीस हो... बीस क्या, पच्चीस हो,”

अपनी सुंदरता की बढ़ाई सुन कर रागिनी भी फूल कर कुप्पा होने लगी।

रूचि कह रही थी, “वैसे, तुम भी कुछ ट्राई करो न... मेरी अलमारी में कई साड़ियाँ हैं,”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “अच्छा ठीक है, मैं भी कुछ ट्राई करती हूँ।”

उसने बिस्तर से उठकर अलमारी की ओर कदम बढ़ाए और एक नीली साड़ी निकाली, “ये कैसी रहेगी?”

रूचि ने कहा, “परफ़ेक्ट! ये तो बहुत सुंदर है। ट्राई करो,”

रागिनी ने अपनी टी-शर्ट उतार दी और फिर अपनी जींस भी। अब वो भी सिर्फ़ अधोवस्त्रों में थी।

रूचि ने उसकी ओर देखा और हँसते हुए कहा, “दीदी, तुम तो कमाल की हो,”

रागिनी ने एक शरारती मुस्कान दी और कहा, “आई नो, लेकिन तू भी तो कम नहीं है। थोड़ा सम्हाल कर देखभाल कर अपने रूप रंग की! गज़ब लगेगी तू भी!”

उसने साड़ी को लपेटना शुरू किया, “रूचि, तूने कभी सोचा है कि जब तू अजय के साथ होगी, तो वो तुझे ऐसे ही देखेगा? मतलब, इतना क्लोज़... इतना इंटीमेटली?”

रूचि का चेहरा फिर से शर्म से लाल हो गया।

उसने कहा, “अरे दीदी, तुम फिर शुरू हो गई! अभी तो मैं इन सबके बारे में सोच भी नहीं रही।”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “मेरी बहना, तो सोचना शुरू कर दे! वो सब बहुत मज़ेदार होता है।”

थोड़ी देर में दोनों अपनी अपनी साड़ियाँ पहन कर तैयार थीं।

“मस्त लग रही हो रूचि!” रागिनी ने कहा, और फिर रूचि के बाल पकड़ कर एक दो स्टाइल में पकड़ कर दिखाते हुए बोली, “बाल ऐसे रखना... और बहुत हेवी नेकलेस मत पहनना! ठीक है?”

रूचि न ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“बढ़िया लगेगी!” रागिनी ने बढ़िया शब्द पर ज़ोर दिया।

“तो ये साड़ी पक्की?”

“हंड्रेड परसेंट!”

“ओके,” कह कर रूचि ने उस साड़ी और ब्लाउज़ को उतार दिया और फिर पेटीकोट भी।
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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avsji भाई जी, अत्र कुशलं तत्रास्तु ।

मैगज़ीन का नाम था ‘डेबोनेयर’! :- क्या बात है, पुरानी यादें ताजा हो गई।

और अगर रागिनी कि बात करें तो नवीन अद्यतन पढ़ कर भविष्य काल का तो पता नहीं परन्तु बहन शायद अच्छी है।
रहन सहन दुबई का है तो कुछ तो असर रहेगा।

ढर्रे पर चलने के बारे में नहीं लिखा था... परन्तु नवीनता न हो यह अगर रहा था।

उत्सुकता बढ़ रही है। इंतजार रहेगा।
 
Last edited:

Ajju Landwalia

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अपडेट 60


“एक सेकंड,” रागिनी ने कहा।

“क्या हुआ दीदी?”

रागिनी रूचि के पीछे आ कर उसकी ब्रा का हुक खोल देती है और उसको उसके स्तनों से अलग कर देती है।

“दीदी,” रूचि ने अपने स्तनों को ढँकते हुए अपना विरोध प्रदर्शित किया।

“अरे यार... मुझे देखने तो दे,” कह कर रागिनी ने उसकी हथेलिओं को उसके स्तनों से हटा दिया।

रूचि क्या करती! बस शर्म से रागिनी के सामने लगभग नग्न खड़ी रही।

“मस्त है तू बहना,” रागिनी ने रूचि के फिगर का मूल्याँकन करते हुए कहा, “ये निप्पल्स और ब्रेस्ट्स पर न कम से कम कोल्ड क्रीम लगा लिया कर... देख कैसे इन पर हल्की हल्की दरारें पड़ रही हैं! मॉइश्चर बना रहना चाहिए इनका,”

फिर रूचि की चड्ढी की इलास्टिक पकड़ कर नीचे करते हुए वो बोली, “तेरी पूची भी देख लूँ,”

रूचि के मन में अजीब अजीब से ख़याल आ रहे थे। जब से अजय ने रागिनी के साथ अपने रहस्य के बारे में उसको बताया था, तब से उसके मन में रागिनी को देखने का नज़रिया बदल गया था। लेकिन अजय की बात भी सच थी - उसके दो संस्करण थे, और दोनों में रागिनी और रूचि की भूमिका और स्थान अलग अलग थे। फिर भी रागिनी को ले कर रूचि के मन में सौतिया विचार आ तो गए ही थे। तिस पर रागिनी की ईर्ष्या और अब ये सब! रूचि समझ नहीं रही थी कि वो क्या करे! रागिनी ने अभी तक उसके साथ कुछ गलत नहीं किया था - करती भी क्यों? ये अलग ही टाइम-लाइन थी न!

“मस्त है यार,” रागिनी ने बढ़ाई करते हुए कहा, “वर्जिन पूची! और कितने सॉफ्ट सॉफ्ट बाल हैं तेरे,”

“तुम्हारे नहीं हैं?” न जाने रूचि कैसे पूछ पाई।

“न रे! चौदह पंद्रह में ही हार्ड हो गए थे मेरे,” उसने बताया, “इसीलिए मैं हेयर रिमूवल क्रीम लगाती रहती हूँ,”

उधर रूचि शर्म से पानी पानी हो रही थी।

“शरमा मत मेरी बहना! तू खज़ाना है खज़ाना!” रागिनी ने समझाया, “जब तक मैं हूँ, मैं तेरी ग्रूमिंग में हेल्प कर दूँगी। लेकिन उसके बाद मेरी सिखाई बातें भूल न जाना... बस अडिशनल थर्टी टू फोर्टी मिनट काफ़ी है अपनी स्किन की बढ़िया केयर रखने के लिए! और केयर ही सब कुछ है... समझी?”

“समझ गई दीदी,”

“गुड,” फिर खुद को नीली साड़ी में प्रदर्शित करती हुई बोली, “मैं कैसी लग रही हूँ?”

“बहुत सुन्दर,” यह अतिशयोक्ति नहीं थी - रागिनी थी भी बड़ी सुन्दर! कोई भी रंग उस पर फ़बता था।

वो मुस्कुराई, “बहना... तू न, मेरी वो रस्ट कलर वाली साड़ी रख ले,”

“क्यों दीदी?”

“क्यों क्या? मेरी चीज़ है और मैं तुझे देना चाहती हूँ, बस! रख ले!” वो बोली, “अच्छा, दूसरी शादी में क्या पहनेगी?”

“इनमें से कौन सी ट्राई करूँ? तुम्ही बता दो?”

रागिनी ने हर साड़ी पर निगाह डाली, “इन सबसे तो मेरी रस्ट कलर वाली साड़ी ही बेहतर है,” कह कर उसने अपने सूटकेस में से वो साड़ी निकाली। रागिनी वो साड़ी इसलिए लाई थी कि दिवाली पर पहनेगी। लेकिन दिवाली मनाई ही नहीं गई।

“लास्ट ईयर सिलवाया था इसका ब्लाउज़... अभी टाइट आता है मुझे... लेकिन तुझे सही आना चाहिए। पहन न?”

रूचि ब्रा पहनने लगी तो रागिनी ने उसको रोक दिया, “इसमें ब्रा नहीं पहनना होता... सॉफ्ट पैड्स हैं सामने!”

ब्लाउज़ बढ़िया फिटिंग की थी - रूचि का वक्ष-विदरण भी दिखाई दे रहा था। और साड़ी बहुत ही सेक्सी अंदाज़ में रूचि के शरीर से चिपकी हुई थी।

“सेक्सी,” रागिनी ने अनुमोदन किया, “इसको भैया की शादी में पहनना,”

“ओके,”

“और क्या क्या है?”

“अरे हो तो गया! दो इवेंट्स... दो ड्रेस,”

“पागल है क्या?” रागिनी हँसने लगी, “दो और चाहिए! दोनों इवेंट्स के लिए कम से कम एक एक और,”

“ये कैसा रहेगा?” रूचि ने एक रेशमी शलवार कुर्ता दिखाया।

“हाँ, ठीक है... लेकिन दीदी की शादी है, तो इससे बेहतर भी अगर हो सकता है, तो वो पहनो,”

“अब जो है, यही है!”

“हम्म... एक काम करते हैं, कल शॉपिंग कर लेते हैं! दो दिन बाद मैं चली जाऊँगी... और तेरी कपड़ों की चॉइस देख कर मज़ा नहीं आ रहा!”

रूचि ने थोड़ी देर न नुकुर किया फिर मान गई।

“और सुन,” रागिनी ने कहा, “शॉपिंग के सारे पैसे मैं दूँगी! बहुत माल है मेरे पास,”

जब सारे कपड़े इत्यादि वापस अपनी अलमारी में रख कर रूचि वापस बिस्तर पर आई, तो रागिनी ने कोई लोशन अपने हाथों में उड़ेंल कर चुपड़ते हुए कहा, “आ जा,”

“क्या दीदी?”

“अपनी टी शर्ट और ब्रा उतार,”

“मैं लगा लूँगी न दीदी,”

“बहस मत कर! उतार इनको... जल्दी,”

रूचि ने दो तीन बार और कहा फिर हार मान कर फिर से अपने स्तनों को उघाड़ कर रागिनी के सामने थी।

रागिनी ने उसके दोनों स्तनों पर बारी बारी से अच्छी तरह से लोशन लगाया। रूचि के चूचक इस पूरी प्रक्रिया में उत्तेजना के मारे कड़े हो गए थे। रागिनी ने मज़ाक में उसके दोनों चूचकों को अपनी दोनों तर्जनियों और अंगूठों में पकड़ कर थोड़ा बाहर की तरफ़ खींचते हुए उसको छेड़ा,

“क्यूट है तू,”

फिर उसका पजामा और चड्ढी उतार कर उसने रूचि के पुट्ठों और योनि पर भी लोशन लगा दिया।

“अपने एसेट्स का अच्छी तरह से ख्याल रखा कर बहना,” उसने उसकी योनि पर लोशन लगाते हुए कहा, “ये तुझे और अजय को खूब मज़ा देंगे! और सेक्स से अलग भी तो ये इम्पोर्टेन्ट हैं! तेरे बच्चे यहाँ से निकलेंगे [उसने उसकी योनि को छू कर बताया] और यहाँ से दूध पियेंगे [उसने उसके स्तनों को छुआ]... इसलिए इनकी हेल्थ प्रॉपर होनी चाहिए!”

“जी माता जी,” रूचि अब पूरी तरह से कंफ्यूज हो गई थी।

वो रागिनी को किस रूप में देखे? मौसेरी बहन के, या फिर अपनी सौत के? रागिनी ने रूचि का एक पैसे का नुकसान नहीं किया था। हाँ - उसका अपना जीवन जीने का अंदाज़ था जो रूचि के अंदाज़ से बहुत अलग था। लेकिन वो तब से केवल रूचि के लिए ही सब कर रही थी। उसने सोचा कि रागिनी बुरी नहीं है... उसके हालात अलग रहे होंगे अजय को ले कर! भूतपूर्व अजय को भविष्य की रागिनी के साथ कैसे कैसे अनुभव हुए, उसके आधार पर वो उसके संग अपना व्यव्हार और सम्बन्ध तो नहीं बिगाड़ सकती न? वैसे भी अजय ने भी कहा था कि वो रागिनी से नाराज़ नहीं है, बल्कि खुद से निराश है! शायद रागिनी आगे चल कर इतना बिगड़ी हो कि अपने लाभ के लिए दूसरे का नुकसान कर दे?

रूचि कपड़े पहनने लगी तो रागिनी ने फिर से रोका, “सूखने दो कुछ देर...” और फिर अपने भी कपड़े उतारने लगी।

रूचि उत्सुकतावश उसको देखने लगी।

उसने अपनी ब्रा और चड्ढी उतार दी और अब वो भी रूचि की ही तरह पूरी तरह से नग्न थी।

रूचि ने एक पल के लिए उसकी ओर देखा और फिर हँसते हुए कहा, “अरे दीदी, तुम सच में बहुत बिंदास हो!”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “अरे, तेरी बहन हूँ न। फिर शर्म कैसी?” उसने अपनी बाहें फैलाईं और कहा, “देख बहना, ये है कॉन्फिडेंस। तुझमें भी ऐसा ही कॉन्फिडेंस होना चाहिए।”

रूचि ने हँसते हुए कहा, “हाँ दीदी! वाह दीदी... तुम तो सच में बहुत खूबसूरत हो!”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “तू भी कम नहीं है, रूचि।”

रूचि मुस्कुराई, “वैसे दीदी, तुम्हारे ये... बहुत अच्छे हैं।”

रागिनी ने एक ठहाका लगाया, “ये? मतलब मेरे बूब्स? हाँ यार, ये तो मेरी यू.एस.पी. हैं!”

उसने अपने स्तनों के नीचे अपनी हथेलियों को लगा कर हल्के से उछाला और कहा, “सॉलिड हैं! चेक करेगी?”

रूचि ने एक शरारती मुस्कान दी और कहा, “ठीक है। देखूँ तो सही।”

उसने रागिनी के पास जाकर उसके दाहिने स्तन को हल्के से छुआ और फिर उसे चूम लिया।

रागिनी हल्के से हँसी और कहा, “अरे रूचि, तू तो सच में बिंदास हो रही है!”

रूचि ने रागिनी के स्तन को ध्यान से देखा और फिर कहा, “दीदी, तुम्हारे ब्रेस्ट की गहराई में तो एक लाल तिल है।”

उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा... उसे अजय की बात याद आ गई थी।

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “हाँ... मेरे दोनों बॉयफ्रेंड्स को भी ये बहुत पसंद था।”

रूचि हल्के से मुस्कुराई।

लेकिन मन ही मन वो अजय की बातों को याद कर रही थी। उसे अब यकीन हो गया था कि अजय जो कह रहा था, वो सच था। रागिनी वही लड़की थी, जिसने उसके भविष्य को बर्बाद किया था। लेकिन वो नहीं चाहती थी कि इस बात से उसके और रागिनी के सम्बन्ध पर कोई बुरा असर पड़े। लेकिन वो यह भी चाहती थी कि रागिनी आगे चल कर ‘वैसी’ औरत न बने, जैसी वो अजय के साथ हो गई थी। क्या इस बात का कोई इलाज़ है?

अगर अजय का जीवन बदल सकता है, उसमें सकारात्मक सुधार आ सकते हैं, तो रागिनी का जीवन भी तो बदल सकता है न? रूचि ने सोचा कि रागिनी के बेहतर भविष्य के लिए जो संभव होगा, वो करेगी।

उसने हँसते हुए कहा, “दीदी अब कपड़े पहन लेते हैं। सभी इंतज़ार कर रहे होंगे।”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “हाँ, ठीक है।”

रूचि ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “और दीदी, तुम भी किसी अच्छे लड़के को ढूंढ कर शादी कर लो!”

रागिनी ने एक गहरी साँस ली और कहा, “हाँ यार... देखते हैं। तेरा कोई और दोस्त है क्या? अगर अजय जैसा कोई हो, तो बता दे मुझे! मैं तो तुरंत हाँ कर दूँगी।”

दोनों ने अपने कपड़े पहने और बाहर मेहमानखाने में चली गईं।

रूचि के मन में एक अजीब-सी उथल-पुथल थी। उसने मन ही मन फैसला किया कि वो अजय से रागिनी के बारे में और जानने समझने की कोशिश करेगी - जिससे उसका और उसके होने वाले परिवार का जीवन बर्बाद न हो।

*

Bahut hi shandar updates he avsji Bhai,

Ragini ka jaise jikar kiya tha ajay ne ruchi se, ye to suase bhi kahi aage nikali..........

Dubai me shekho ke sath rangraliya mana rahi he.....................

Uske boobs par lal til ne ruchi ke sabhi shaq mita diye..............ragini hi vahi he jisne ajay ka jivan barbad kiya he............

Gazab bhai................

Keep rocking
 

avsji

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avsji भाई जी, अत्र कुशलं तत्रास्तु ।

मैगज़ीन का नाम था ‘डेबोनेयर’! :- क्या बात है, पुरानी यादें ताजा हो गई।

हा हा हा... जी भाई। डेबोनेयर और चेस्टिटी। स्मगलिंग कर के बहुत बार पढ़ा इसको।
एक बार पूज्य पिताजी ने पिछवाड़ा भी तोड़ा इसी के कारण।

और अगर रागिनी कि बात करें तो नवीन अद्यतन पढ़ कर भविष्य काल का तो पता नहीं परन्तु बहन शायद अच्छी है।
रहन सहन दुबई का है तो कुछ तो असर रहेगा।

हाँ - रागिनी का व्यवहार ऐसा नहीं लगा कि उसके मन में किसी के लिए द्वेष है।
मतलब अब से ले कर "भूतपूर्व" अजय से शादी करने तक ऐसा कुछ हुआ होगा कि उसका नज़रिया और व्यवहार बदल गया।
अब रूचि चाहती है कि रागिनी वैसी न बने। देखते हैं कि क्या होता है।

ढर्रे पर चलने के बारे में नहीं लिखा था... परन्तु नवीनता न हो यह अगर रहा था।

हमेशा नवीनता नहीं दे सकता। बहुत कठिन काम है लिखना, और उससे भी कठिन है हर बार कुछ नया लिखना।
ख़ास कर तब जब मेरे जितना लिख रहा हो कोई (सोलह सत्रह कहानियाँ लिख चुका हूँ अब तक)! मैं कोई पेशेवर लेखक तो हूँ नहीं।
लिहाज़ा, सीमित समय और सीमित संज्ञानात्मक संसाधनों में जो संभव है, वो लिखता हूँ। समय जाता है बहुत। उस काम के हिसाब से एक ढेला भी नहीं मिलता यहाँ।

मेरे मामूली लिखैया होने के कारण मुझसे रिपीट भी बहुत कुछ होता है।
कुछ बातों को संकेतात्मक और रूपक के तौर पर इस्तेमाल करता हूँ - जैसे स्तनपान को मातृत्व के ultimate sign के रूप में दिखाना।

उत्सुकता बढ़ रही है। इंतजार रहेगा।

साथ बने रहें। :)
 
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avsji

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Bahut hi shandar updates he avsji Bhai,

बहुत बहुत धन्यवाद अज्जू भाई :)

Ragini ka jaise jikar kiya tha ajay ne ruchi se, ye to suase bhi kahi aage nikali..........

Dubai me shekho ke sath rangraliya mana rahi he.....................

Uske boobs par lal til ne ruchi ke sabhi shaq mita diye..............ragini hi vahi he jisne ajay ka jivan barbad kiya he............

रागिनी के रूप में मैंने आज कल की युवा पीढ़ी के चारित्रिक बदलाव को दिखाया है।
हाँलाकि कहानी इस समय 1995 में चल रही है (राजा फिल्म का गाना उसी समयकाल का चिह्न है), लेकिन यह बातें समसामयिक हैं।
रूचि अब समझ गई है कि, (१) अजय सच कह रहा था, (२) रागिनी को सुधारा जा सकता है।

Gazab bhai................

Keep rocking

धन्यवाद भाई!
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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मामूली लिखैया.. कौन? avsji जी आप?...

जय जय... सुबह-सुबह का बड़ा मज़ाक...

यहां जिसे साहित्य कि समझ न हो ऐसा अल्पज्ञ भी यह नहीं कह सकता।

आपका अपने भाषा कौशल, वर्तनी पर पकड़, रचना कि मौलिकता, शील और अश्लील के मध्य कि रेखा का ज्ञान और उसे पार करना अथवा नहीं करना -- उतना विनय, विश्वास। और सबसे बढ़कर आपके स्वभाव कि विनम्रता का आपके पात्रों के वर्तन में परिलक्षित होना ही आपके श्रेष्ठ लेखक होने का प्रमाण है। कथानक का सामाजिक परिप्रेक्ष्य और प्रभाव, पाठकों कि टिप्पणी पर भी संयम और संयत व्यवहार ही लेखक के गुण हैं जो आपके व्यवहार में दिखते हैं।

यहां का साहित्य निम्न स्तरीय है। यहां मतिमान पाठकों कि बजाय दरबारी चाटुकार और निम्न श्रेणी के आलोचकों कि भरमार है। जिन्हें न साहित्य का ज्ञान है न लेखन कि समझ।

ऐसे १०० अज्ञ पाठकों का आपके कथानक पर न हो कर SANJU ( V. R. ) भाई जी और Ajju Landwalia जैसे १ पाठक का होना ही बहुत है। जो कथानक और लेखक को मार्गदर्शन देते रहें।

यहां आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे पारितोषिक नहीं मिल सकते। परन्तु आपके लेखन को किंचित भाट- चारण/ बन्दिजनों कि बिरुदावली कि आवश्यकता नहीं है। आपका लेखन हि आपकी पहचान है। आपका लेखन रात में टिमटिमाते जुगनू के समान नहीं है यह तो एक दीपक का अद्वितीय प्रकाश है।

लिखते रहिये।
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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आप विश्वास नहीं करेंगे मैं यहां नया नया आया तो स्वनामधन्य एक "सुमन" समान लेखक के थ्रेड पर लगभग नित्य ही उपस्थिति दर्ज कराने को और उनके लेखन पर टिप्पणी करने में अपना समय व्यतीत कर रहा था।कथानक आपके लेखन समान अच्छा, सामाजिक परिप्रेक्ष्य वाले थे।

परन्तु कुछ के समय के बाद थ्रेड पर अद्यतन कम और बिरुदावली अधिक हो गई। उन्हें वही पसंद आता है। तो अब वहां मात्र ठकुरसुहाती होती है। कथानक ढुंढना पड़ता है।

आप उनसे भिन्न हैं ऐसा मेरा विश्वास है।

अन्यथा न लेवें।
जय जय
 
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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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मामूली लिखैया.. कौन? avsji जी आप?...

जय जय... सुबह-सुबह का बड़ा मज़ाक...

यहां जिसे साहित्य कि समझ न हो ऐसा अल्पज्ञ भी यह नहीं कह सकता।

उमाकांत भाई, हूँ तो मामूली ही।
ऑफ़िस के काम में हमेशा अंग्रेज़ी का ही प्रयोग करने के कारण, और अपनी हिंदी में लिखने की इच्छा के कारण यहाँ लिखता रहता हूँ।
जिस तरह का लेखन मेरा है, उसको कोई प्रकाशक घास न डालेगा - इसलिए 'लेखक' बनने की pretense यहीं निकाल लेता हूँ।
सोचिए तो -- अपने असली नाम से भी नहीं लिख सकता!
अतः अपने बारे में मुझे कोई ग़लतफ़हमी नहीं है।

आपका अपने भाषा कौशल, वर्तनी पर पकड़, रचना कि मौलिकता, शील और अश्लील के मध्य कि रेखा का ज्ञान और उसे पार करना अथवा नहीं करना -- उतना विनय, विश्वास। और सबसे बढ़कर आपके स्वभाव कि विनम्रता का आपके पात्रों के वर्तन में परिलक्षित होना ही आपके श्रेष्ठ लेखक होने का प्रमाण है। कथानक का सामाजिक परिप्रेक्ष्य और प्रभाव, पाठकों कि टिप्पणी पर भी संयम और संयत व्यवहार ही लेखक के गुण हैं जो आपके व्यवहार में दिखते हैं।

कोशिश तो यही रहती है कि कामुक आनंद के बीच में पाठकों को एक दो सन्देश देता रहूँ।

भगवान की दया से हमारा पारिवारिक जीवन आनंदमय रहा है अभी तक... तो उन्ही अनुभवों में से कुछ बातें अपने पाठकों से शेयर कर देता हूँ कहानियों के माध्यम से।
आपको शायद अतिशयोक्ति लगे, लेकिन मेरी स्वर्गवासी माँ ने मेरी पत्नी को वैसा ही स्नेह दिया है जैसा कि मैं अपनी कहानियों में सासों को अपनी बहुओं को देता हुआ दिखाता हूँ।
मैं अपनी पत्नी को हमेशा यह कह के छेड़ता था कि तुम शायद पहली बहू होगी जो ससुराल से बाहर जाते समय रोती हो... नहीं तो बाकी बहुएँ इसी ताक में रहती हैं कि कब ससुराल से पिण्ड छूटे। बस वैसे ही स्नेह भरे परिवारों की कहानी गढ़ता रहता हूँ - क्योंकि ऐसे परिवार समय के साथ कम होते जा रहे हैं।

इसी तरह की कई बातें जो मेरी कहानियों में होती हैं, वो सच्ची बातों पर आधारित रहती हैं।

कुछ बातें, जैसा बड़ी उम्र की लड़कियों का अपने से कम उम्र के लड़को से प्रेम / विवाह -- यह सब आज कल बहुतायत से हो रहा है, तो समझिए मैं भी उसी भेंड़-चाल में शामिल हूँ।
जो हो रहा है, वो लिखने में क्या बुराई है भला! और चूँकि यह एक वयस्क फ़ोरम है, तो सेक्स के बारे में भी खुल कर लिख सकते हैं (जो अभी तक मैंने इस कहानी में नहीं लिखा है)।

यहां का साहित्य निम्न स्तरीय है। यहां मतिमान पाठकों कि बजाय दरबारी चाटुकार और निम्न श्रेणी के आलोचकों कि भरमार है। जिन्हें न साहित्य का ज्ञान है न लेखन कि समझ।

अपना लेखन भी निम्न-स्तरीय ही है भाई 😂 😂
सस्ता लुगदी लेखन!!

हाँ बस, जब USC होता है, तब थोड़ा अलग, थोड़ा सम्मानजनक लेखन करने का प्रयास रहता है।

ऐसे १०० अज्ञ पाठकों का आपके कथानक पर न हो कर SANJU ( V. R. ) भाई जी और Ajju Landwalia जैसे १ पाठक का होना ही बहुत है। जो कथानक और लेखक को मार्गदर्शन देते रहें।

इन दोनों प्रिय भाईयों की तरह आप भी मार्गदर्शन ही करते हैं। संजू भैया को तो किसी लेखन में कुछ बुरा दिखाई ही नहीं देता - इतने उदार हैं वो!

आपकी बात मैं समझता हूँ और मानता भी हूँ! नवीनता नहीं होती है तो पढ़ने वाला भी ऊब ही जाता है।
लेकिन मैं क्या करूँ? कहाँ से ले आऊँ नए नए विचार?

सच मानिए - यह कहानी मैंने वैसी सोची ही नहीं थी जैसी अब निकल पड़ी है। बहुत भिन्न सोचा हुआ था मैंने इसके लिए।
लेकिन अब पूरी तरह से अलग दिशा में चल रही है।

ख़ैर !

यहां आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे पारितोषिक नहीं मिल सकते।

मेरी हैसियत ही नहीं है भ्राता! अकादमी की ईमारत में जाने की भी हैसियत नहीं है 🙏

परन्तु आपके लेखन को किंचित भाट- चारण/ बन्दिजनों कि बिरुदावली कि आवश्यकता नहीं है।

सहमत हूँ! आप देख लें - मैंने कभी भी किसी समालोचना या सकारात्मक सुझाव को नकारा नहीं।
अपनाया ही है। कितने सारे पाठकों के विचार मैंने अपनी कहानियों में डाले हैं।
लेकिन अब तो वैसे फीडबैक आते ही नहीं।

आपका लेखन हि आपकी पहचान है। आपका लेखन रात में टिमटिमाते जुगनू के समान नहीं है यह तो एक दीपक का अद्वितीय प्रकाश है।

😂😂 अच्छी ठिठोली करते हैं आप।

लिखते रहिये।

जी भाई, लिखते रहेंगे।

आप विश्वास नहीं करेंगे मैं यहां नया नया आया तो स्वनामधन्य एक "सुमन" समान लेखक के थ्रेड पर लगभग नित्य ही उपस्थिति दर्ज कराने को और उनके लेखन पर टिप्पणी करने में अपना समय व्यतीत कर रहा था।कथानक आपके लेखन समान अच्छा, सामाजिक परिप्रेक्ष्य वाले थे।

परन्तु कुछ के समय के बाद थ्रेड पर अद्यतन कम और बिरुदावली अधिक हो गई। उन्हें वही पसंद आता है। तो अब वहां मात्र ठकुरसुहाती होती है। कथानक ढुंढना पड़ता है।

इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। जिनको जानता नहीं, जिनका लेखन पढ़ा नहीं, उनके बारे में क्या ही कहूँ?

मैं बस एक दो लेखकों, जैसे राज शर्मा Raj_sharma भाई साहब की "सुप्रीम" पढ़ने आता हूँ।
अत्यंत उत्कृष्ट लिखते हैं - सोच भी उनकी गज़ब की है, कहानी में नवीनता है और बेहद रोमाँचक कहानी लिखी है उन्होंने!
शायद आपको वो सब वहाँ मिले जो आप पढ़ना चाहते हैं।
काला नाग भाई साहब ने फ़ोरम ही छोड़ दिया है। अन्यथा उनका लेखन भी अद्भुत है।
शैतान जी Shetan बहुत बढ़िया लिखती हैं - ख़ास कर USC में। उसके अतिरिक्त मैंने उनका लेखन नहीं पढ़ा है।

आप उनसे भिन्न हैं ऐसा मेरा विश्वास है।

आशा है कि भिन्न रहूँ।

मैंने यहाँ अपना पक्ष रखा है - यह कोई वाद प्रतिवाद नहीं है। आपकी बात से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ।
मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि शायद लिखने की अपनी हैसियत पर पहुँच चुका हूँ, और इसी कारण से कुछ नया ला पाना मेरे लिए कठिन होता जा रहा है।
रोमांस से अलग लिखूँ, तो ही संभव है शायद अब कुछ नया लिख पाना।
"अपशगुनी" कुछ उसी तरह की कहानी है।

अन्यथा न लेवें।

बिल्कुल भी नहीं।

जय जय

जय जय :)

वैसे आप भी कोई कमतर नहीं हैं।
आप कुछ क्यों नहीं लिखते? यह तो वैसे भी open forum है।
आप भी कुछ लिखें, अपने विचार हम सभी से शेयर करें!
 
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Shetan

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उमाकांत भाई, हूँ तो मामूली ही।
ऑफ़िस के काम में हमेशा अंग्रेज़ी का ही प्रयोग करने के कारण, और अपनी हिंदी में लिखने की इच्छा के कारण यहाँ लिखता रहता हूँ।
जिस तरह का लेखन मेरा है, उसको कोई प्रकाशक घास न डालेगा - इसलिए 'लेखक' बनने की pretense यहीं निकाल लेता हूँ।
सोचिए तो -- अपने असली नाम से भी नहीं लिख सकता!
अतः अपने बारे में मुझे कोई ग़लतफ़हमी नहीं है।



कोशिश तो यही रहती है कि कामुक आनंद के बीच में पाठकों को एक दो सन्देश देता रहूँ।

भगवान की दया से हमारा पारिवारिक जीवन आनंदमय रहा है अभी तक... तो उन्ही अनुभवों में से कुछ बातें अपने पाठकों से शेयर कर देता हूँ कहानियों के माध्यम से।
आपको शायद अतिशयोक्ति लगे, लेकिन मेरी स्वर्गवासी माँ ने मेरी पत्नी को वैसा ही स्नेह दिया है जैसा कि मैं अपनी कहानियों में सासों को अपनी बहुओं को देता हुआ दिखाता हूँ।
मैं अपनी पत्नी को हमेशा यह कह के छेड़ता था कि तुम शायद पहली बहू होगी जो ससुराल से बाहर जाते समय रोती हो... नहीं तो बाकी बहुएँ इसी ताक में रहती हैं कि कब ससुराल से पिण्ड छूटे। बस वैसे ही स्नेह भरे परिवारों की कहानी गढ़ता रहता हूँ - क्योंकि ऐसे परिवार समय के साथ कम होते जा रहे हैं।

इसी तरह की कई बातें जो मेरी कहानियों में होती हैं, वो सच्ची बातों पर आधारित रहती हैं।

कुछ बातें, जैसा बड़ी उम्र की लड़कियों का अपने से कम उम्र के लड़को से प्रेम / विवाह -- यह सब आज कल बहुतायत से हो रहा है, तो समझिए मैं भी उसी भेंड़-चाल में शामिल हूँ।
जो हो रहा है, वो लिखने में क्या बुराई है भला! और चूँकि यह एक वयस्क फ़ोरम है, तो सेक्स के बारे में भी खुल कर लिख सकते हैं (जो अभी तक मैंने इस कहानी में नहीं लिखा है)।



अपना लेखन भी निम्न-स्तरीय ही है भाई 😂 😂
सस्ता लुगदी लेखन!!

हाँ बस, जब USC होता है, तब थोड़ा अलग, थोड़ा सम्मानजनक लेखन करने का प्रयास रहता है।



इन दोनों प्रिय भाईयों की तरह आप भी मार्गदर्शन ही करते हैं। संजू भैया को तो किसी लेखन में कुछ बुरा दिखाई ही नहीं देता - इतने उदार हैं वो!

आपकी बात मैं समझता हूँ और मानता भी हूँ! नवीनता नहीं होती है तो पढ़ने वाला भी ऊब ही जाता है।
लेकिन मैं क्या करूँ? कहाँ से ले आऊँ नए नए विचार?

सच मानिए - यह कहानी मैंने वैसी सोची ही नहीं थी जैसी अब निकल पड़ी है। बहुत भिन्न सोचा हुआ था मैंने इसके लिए।
लेकिन अब पूरी तरह से अलग दिशा में चल रही है।

ख़ैर !



मेरी हैसियत ही नहीं है भ्राता! अकादमी की ईमारत में जाने की भी हैसियत नहीं है 🙏



सहमत हूँ! आप देख लें - मैंने कभी भी किसी समालोचना या सकारात्मक सुझाव को नकारा नहीं।
अपनाया ही है। कितने सारे पाठकों के विचार मैंने अपनी कहानियों में डाले हैं।
लेकिन अब तो वैसे फीडबैक आते ही नहीं।



😂😂 अच्छी ठिठोली करते हैं आप।



जी भाई, लिखते रहेंगे।



इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। जिनको जानता नहीं, जिनका लेखन पढ़ा नहीं, उनके बारे में क्या ही कहूँ?

मैं बस एक दो लेखकों, जैसे राज शर्मा Raj_sharma भाई साहब की "सुप्रीम" पढ़ने आता हूँ।
अत्यंत उत्कृष्ट लिखते हैं - सोच भी उनकी गज़ब की है, कहानी में नवीनता है और बेहद रोमाँचक कहानी लिखी है उन्होंने!
शायद आपको वो सब वहाँ मिले जो आप पढ़ना चाहते हैं।
काला नाग भाई साहब ने फ़ोरम ही छोड़ दिया है। अन्यथा उनका लेखन भी अद्भुत है।
शैतान जी Shetan बहुत बढ़िया लिखती हैं - ख़ास कर USC में। उसके अतिरिक्त मैंने उनका लेखन नहीं पढ़ा है।



आशा है कि भिन्न रहूँ।

मैंने यहाँ अपना पक्ष रखा है - यह कोई वाद प्रतिवाद नहीं है। आपकी बात से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ।
मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि शायद लिखने की अपनी हैसियत पर पहुँच चुका हूँ, और इसी कारण से कुछ नया ला पाना मेरे लिए कठिन होता जा रहा है।
रोमांस से अलग लिखूँ, तो ही संभव है शायद अब कुछ नया लिख पाना।
"अपशगुनी" कुछ उसी तरह की कहानी है।



बिल्कुल भी नहीं।



जय जय :)

वैसे आप भी कोई कमतर नहीं हैं।
आप कुछ क्यों नहीं लिखते? यह तो वैसे भी open forum है।
आप भी कुछ लिखें, अपने विचार हम सभी से शेयर करें!
मेने अब तक तो जितना भी लिखा है. वो सारी fantacy world की दुनिया है. चाहे वो इरोटिक हो. या फिर इरोटिक के अंदर स्टोरी. लड़ खड़ाते कदमो ने धीरे धीरे संभालना सीखा है.

अगर कुछ रियल्टी पढ़ने मे दिलचस्पी लगे तो मेरी किस्से अनहोनीयों के कोसिस करना. पर हो सकता है की नकारात्मक ऊर्जा से जुड़े टॉपिक आप को पसंद ना हो. फिर भी एक स्टोरी मै लिख रही हु. जो इरोटिक है. हो सके तो जरूर ट्राय कीजियेगा.
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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उमाकांत भाई, हूँ तो मामूली ही।
ऑफ़िस के काम में हमेशा अंग्रेज़ी का ही प्रयोग करने के कारण, और अपनी हिंदी में लिखने की इच्छा के कारण यहाँ लिखता रहता हूँ।
जिस तरह का लेखन मेरा है, उसको कोई प्रकाशक घास न डालेगा - इसलिए 'लेखक' बनने की pretense यहीं निकाल लेता हूँ।
सोचिए तो -- अपने असली नाम से भी नहीं लिख सकता!
अतः अपने बारे में मुझे कोई ग़लतफ़हमी नहीं है।



कोशिश तो यही रहती है कि कामुक आनंद के बीच में पाठकों को एक दो सन्देश देता रहूँ।

भगवान की दया से हमारा पारिवारिक जीवन आनंदमय रहा है अभी तक... तो उन्ही अनुभवों में से कुछ बातें अपने पाठकों से शेयर कर देता हूँ कहानियों के माध्यम से।
आपको शायद अतिशयोक्ति लगे, लेकिन मेरी स्वर्गवासी माँ ने मेरी पत्नी को वैसा ही स्नेह दिया है जैसा कि मैं अपनी कहानियों में सासों को अपनी बहुओं को देता हुआ दिखाता हूँ।
मैं अपनी पत्नी को हमेशा यह कह के छेड़ता था कि तुम शायद पहली बहू होगी जो ससुराल से बाहर जाते समय रोती हो... नहीं तो बाकी बहुएँ इसी ताक में रहती हैं कि कब ससुराल से पिण्ड छूटे। बस वैसे ही स्नेह भरे परिवारों की कहानी गढ़ता रहता हूँ - क्योंकि ऐसे परिवार समय के साथ कम होते जा रहे हैं।

इसी तरह की कई बातें जो मेरी कहानियों में होती हैं, वो सच्ची बातों पर आधारित रहती हैं।

कुछ बातें, जैसा बड़ी उम्र की लड़कियों का अपने से कम उम्र के लड़को से प्रेम / विवाह -- यह सब आज कल बहुतायत से हो रहा है, तो समझिए मैं भी उसी भेंड़-चाल में शामिल हूँ।
जो हो रहा है, वो लिखने में क्या बुराई है भला! और चूँकि यह एक वयस्क फ़ोरम है, तो सेक्स के बारे में भी खुल कर लिख सकते हैं (जो अभी तक मैंने इस कहानी में नहीं लिखा है)।



अपना लेखन भी निम्न-स्तरीय ही है भाई 😂 😂
सस्ता लुगदी लेखन!!

हाँ बस, जब USC होता है, तब थोड़ा अलग, थोड़ा सम्मानजनक लेखन करने का प्रयास रहता है।



इन दोनों प्रिय भाईयों की तरह आप भी मार्गदर्शन ही करते हैं। संजू भैया को तो किसी लेखन में कुछ बुरा दिखाई ही नहीं देता - इतने उदार हैं वो!

आपकी बात मैं समझता हूँ और मानता भी हूँ! नवीनता नहीं होती है तो पढ़ने वाला भी ऊब ही जाता है।
लेकिन मैं क्या करूँ? कहाँ से ले आऊँ नए नए विचार?

सच मानिए - यह कहानी मैंने वैसी सोची ही नहीं थी जैसी अब निकल पड़ी है। बहुत भिन्न सोचा हुआ था मैंने इसके लिए।
लेकिन अब पूरी तरह से अलग दिशा में चल रही है।

ख़ैर !



मेरी हैसियत ही नहीं है भ्राता! अकादमी की ईमारत में जाने की भी हैसियत नहीं है 🙏



सहमत हूँ! आप देख लें - मैंने कभी भी किसी समालोचना या सकारात्मक सुझाव को नकारा नहीं।
अपनाया ही है। कितने सारे पाठकों के विचार मैंने अपनी कहानियों में डाले हैं।
लेकिन अब तो वैसे फीडबैक आते ही नहीं।



😂😂 अच्छी ठिठोली करते हैं आप।



जी भाई, लिखते रहेंगे।



इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। जिनको जानता नहीं, जिनका लेखन पढ़ा नहीं, उनके बारे में क्या ही कहूँ?

मैं बस एक दो लेखकों, जैसे राज शर्मा Raj_sharma भाई साहब की "सुप्रीम" पढ़ने आता हूँ।
अत्यंत उत्कृष्ट लिखते हैं - सोच भी उनकी गज़ब की है, कहानी में नवीनता है और बेहद रोमाँचक कहानी लिखी है उन्होंने!
शायद आपको वो सब वहाँ मिले जो आप पढ़ना चाहते हैं।
काला नाग भाई साहब ने फ़ोरम ही छोड़ दिया है। अन्यथा उनका लेखन भी अद्भुत है।
शैतान जी Shetan बहुत बढ़िया लिखती हैं - ख़ास कर USC में। उसके अतिरिक्त मैंने उनका लेखन नहीं पढ़ा है।



आशा है कि भिन्न रहूँ।

मैंने यहाँ अपना पक्ष रखा है - यह कोई वाद प्रतिवाद नहीं है। आपकी बात से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ।
मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि शायद लिखने की अपनी हैसियत पर पहुँच चुका हूँ, और इसी कारण से कुछ नया ला पाना मेरे लिए कठिन होता जा रहा है।
रोमांस से अलग लिखूँ, तो ही संभव है शायद अब कुछ नया लिख पाना।
"अपशगुनी" कुछ उसी तरह की कहानी है।



बिल्कुल भी नहीं।



जय जय :)

वैसे आप भी कोई कमतर नहीं हैं।
आप कुछ क्यों नहीं लिखते? यह तो वैसे भी open forum है।
आप भी कुछ लिखें, अपने विचार हम सभी से शेयर करें!
भाई-भाई , क्या बात कर रहें है आप? आपका और मेरा कोई मुकाबला कहाॅ🤣 आप एक उत्कृष्ट और मंझे हुए लेखक है। और हम ठहरे नौसिखिए :D लेखन मे तो शुरुवात है अपनी, ओर वैसे भी हमारी शैली अलग है तो कोई मुकाबला करना गलत ही होगा। आपका ना तो लेखन अपितु प्रतिक्रिया में भी हम कोई मुकाबला नही कर सकते 🙏🏼 आप ना केवल एक उम्दा लेखक अपितु एक उम्दा पाढक भी है। जिसे हर लेखक अपने पास देखना चाहेगा।:approve:
 
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