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Romance फ़िर से

avsji

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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट 56; अपडेट 57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66; अपडेट 67; अपडेट 68; अपडेट 69; अपडेट 70; अपडेट 71; अपडेट 72; अपडेट 73; अपडेट 74; अपडेट 75; अपडेट 76; अपडेट 77; अपडेट 78; अपडेट 79; अपडेट 80; अपडेट 81; अपडेट 82; अपडेट 83; अपडेट 84;
 
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Ajju Landwalia

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इतनी छेड़खानी के बाद अजय और रूचि दोनों ही शर्मसार हो गए थे। लेकिन फिर भी एक दूसरे के निकट होने की अभिलाषा बहुत बलवती थी। माया दीदी और किरण जी के चले जाने के बाद दोनों अंततः अकेले हो गए।

“कोन्ग्रेचुलेशन्स,” अजय ने धीमे से बोला।

“तुमको भी!” रूचि ने मुस्कुराते हुए कहा।

“तुमको पता है कि तुम आज कितनी सुन्दर लग रही हो?”

अजय ने ‘कितनी’ शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।

रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया, “तुम बता दो?”

“अंदर चलें?”

रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

अंदर आ कर अजय ने दरवाज़ा भिड़ाया और तत्क्षण रूचि को अपने आलिंगन में भर के उसके होंठों को चूमने लगा। कुछ ही देर में दोनों अपने इस अधीरतापूर्ण चुम्बन के अभिज्ञान पर खुद ही खिलखिला कर हँसने लगे।

“तुमको अभी पता चला?” रूचि ने पूछा।

“किस बारे में?”

“... कि हमारी शादी पक्की हो गई?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “मुझे पता नहीं था कि माँ पापा हमारे पीछे पीछे हमको देने के लिए सरप्राइज़ प्लान कर रहे थे!”

वो मुस्कुराई, “आई लव देम! बहुत अच्छे हैं माँ पापा...”

“द बेस्ट,” अजय गर्व से मुस्कुराया, “एंड आई ऍम सो हैप्पी दैट यू टू लव देम!”

“किस्मत है मेरी...”

“कल का क्या प्लान है?”

“कल तो घर में ही दिवाली है न! ... अगर पॉसिबल हो, तो आ जाओ?”

“कल कैसे...?”

“दिन में आ जाओ... कुछ देर के लिए ही?” रूचि ने मनुहार करी, “मेरी मासी, और उनकी लड़की भी आ रहे हैं... और,” उसने शरमाते हुए आगे जोड़ा, “होने वाले दामाद से मिलना चाहते हैं,”

“हैं! मासी?”

“हाँ... दुबई में रहती हैं दोनों! बहुत समय बाद इंडिया आना हुआ।” रूचि ने बताया, “हमारी खबर सुनी, तो तुमसे मिलने को बेताब हो गईं...”

“हम्म... तो ये बात है? इम्पोर्टेड रिश्तेदार!” अजय ने खिलंदड़े अंदाज़ में कहा, “ठीक है, देखते हैं!”

“आज की रात आपके साथ...” रूचि मुस्कुराई, “और फिर दिवाली की अगली रोज़ हम फिर आपकी बाहों में होंगे,”

“सच में?”

रूचि ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए मुस्कुराई।

“आ जाएँगे फिर...”

रूचि मुस्कुराने को हुई कि अचानक से उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गए।

“क्या हुआ?”

“क्या बताऊँ यार...” उसने अपनी आँखों को मसलते हुए कहा, “ये नया नया नज़रबट्टू क्या लग गया... जब देखो तब सर में दर्द रहता है मेरे!”

“उस दिन तुम कह रही थी न डॉक्टर को दिखाने की?”

“हाँ, लेकिन दर्द अपने आप ठीक हो गया तो भूल गई!” रूचि ने झेंपते हुए कहा।

“लापरवाह हो...” अजय ने रूचि को अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “लेकिन कोई बात नहीं! अब मैं हूँ न! सब ठीक कर दूँगा!”

“हाँ... मुझे भी ठीक कर दो!”

रूचि ने ऐसी प्यार भरी अदा से कहा कि अजय का दिल हिल गया।

“अभी किए देते हैं,”

दोनों एक बार फिर से चुम्बन में लिप्त हो गए।

“वैसे,” चुम्बन तोड़ते हुए अजय बोला, “ऐसा नहीं है कि मेरे पास तुमको देने के लिए कोई सरप्राइज़ नहीं है!”

“अच्छा जी!” रूचि की बाँछें खिल गईं, “क्या सरप्राइज़ है? बताईए न ठाकुर साहब!”

“अरे बैठिए तो सही,” कह कर अजय ने रूचि को बिस्तर पर बैठाया और अपनी अलमारी की तरफ़ चल दिया।

रूचि पूर्वानुमान के आवेश के कारण मुस्कुरा रही थी। उसको अजय का अंदाज़ पसंद था - दोनों अंतरंग होते थे, लेकिन अपने परिवारों की मर्यादा बनाए रखते थे। जवानी के जोश को अपने विवेक पर हावी नहीं होने देते थे।

एक मिनट के अंदर अजय वापस उसके सामने था। उसके हाथों में वेलवेट पेपर में लिपटा और रिबन से पैक किया हुआ एक पैकेट था।

“क्या है ये?” रूचि ने पैकेट को ले कर पूछा।

अंदाज़ा तो इसी बात का था कि शायद उसमें कोई कपड़ा होगा, लेकिन कहना कठिन था।

“देखो,” अजय ने सुझाया।

पैकेट खोल कर रूचि ने देखा कि गिफ़्ट के नाम पर अंदर उसी के नाप का एक स्किन कलर का, स्ट्रेच साटन और लेस का एक ब्राइडल लॉन्ज़रे सेट था। उसको छूने पर बेहद कोमल और मखमली एहसास महसूस हो रहा था।

“मेरे लिए?” रूचि ने उत्साहपूर्वक कहा।

“नहीं, पड़ोसन के लिए...”

अजय की इस बात पर रूचि ने बात पलटते हुए कहा,

“मुझे लगा कि जूलरी मिलेगी... लेकिन मेरे होने वाले हब्बी को मेरे लिए सेक्सी कपड़े लेने हैं बस...”

“नहीं लेने चाहिए?”

“ऐसा मैंने कब कहा?” रूचि ने उसको छेड़ा।

अजय मुस्कुराया, “पहन कर दिखाओ?”

“अभी?”

“और कब?”

“यार सब उतारना पड़ेगा,” रूचि ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “और मुझे साड़ी पहननी नहीं आती,”

“कोई बात नहीं,” अजय ने उसकी कमर को थाम कर कहा, “दीदी या माँ पहना देंगी!”

“हाS...”

“अरे! क्या हो गया उसमें! हेल्प ही तो माँग रहे हैं,”

“हम्म्म, ठीक है फिर,” रूचि ने कहा और अपनी साड़ी का पल्लू अपने सीने से हटा कर ब्लाउज़ के बटन खोलने का उपक्रम करने लगी।

“वेट,” अजय ने बड़े उत्साह से उसको रोका, “मैं करूँ?”

“ओके!” रूचि जानती थी कि यह काम अजय ही करना चाहेगा।

जितना उत्साह अजय के मन में रूचि को लेकर था, उतना ही रूचि के मन में अजय को लेकर था। अभी अभी दोनों परिवारों की तरफ़ से उनके रिश्ते को अनुमोदन भी मिल गया था और इस बात से दोनों ही आनंदित थे। अपनी प्रेमिका की ब्लाउज़ के बटन खोलना एक बहुत ही उत्तेजित करने वाला काम होता है। अजय के हाथ काँप रहे थे और अति उत्साह के कारण उसको अधिक समय भी लग रहा था। रूचि उसको इस तरह से देख कर खुश भी हो रही थी, उत्तेजित भी हो रही थी, और लज्जित भी! वो पाँच छोटे छोटे बटन खोलने में पूरा एक मिनट लग गया अजय को! लेकिन अंत में सारे बटन खुल ही गए।

दो दिन पहले ही रूचि की माँ ने उसके लिए दो जोड़ी नए और सुरुचिपूर्ण अधोवस्त्र ख़रीदे थे। आज के लिए उन्होंने उसको इशारे में समझाया भी था कि आज वो यह ‘नई’ वाली ब्रा पैंटीज़ पहने। रूचि भी समझती थी यह बात - और इसीलिए उसने अपनी माँ की बात मान ली थी। यह काले रंग के लेस वाले अधोवस्त्र थे। रूचि के ऊपर वो बहुत फ़ब रहे थे। ‘लेकिन पहनने में बहुत आरामदायक न हों शायद’, यह बात उसके मन में ज़रूर उठी!

“अरे यार,” अजय ने उसके अंदरूनी वस्त्र देख कर कहा, “ये भी मस्त हैं!”

“क्या? ब्रा या मेरे ब्रेस्ट्स?”

रूचि खुद भी आश्चर्यचकित थी कि दोनों के बीच कितनी निकटता आ गई थी! उसको आज भी ढाई महीने पहला का वो दिन याद था जब लंच टाइम में अजय ने उसको ‘हाय’ कहा था। उस एक शब्द से आज उन दोनों का रिश्ता बैठ गया था! कैसी कमाल की होती है न ज़िन्दगी? हमको खुद ही नहीं पता होता कि किस बात से जीवन की कौन सी दिशा निकल आये।

“दोनों!” झूठ कैसे कहे वो?

“आहाहाहा... बातें बनानी बहुत आ गई हैं तुमको,” अजय को प्यार से चिढ़ाते हुए रूचि ने लगभग हँसते हुए कहा, “मेरा सीधा सादा अज्जू पूरा बदमाश होता जा रहा है!”

“बदमाश? तुमको बदमाश लड़के पसंद नहीं है?” कहते हुए अजय ने रूचि का ब्लाउज़ उतार दिया।

उसने ‘न’ में सर हिलाया, “लेकिन ये वाला बदमाश मुझे बहुत पसंद है!”

अजय ने शान से मुस्कुराते हुए रूचि की साड़ी उतारी और सम्हाल कर उसको तह कर के एक तरफ़ रख दी। रूचि उसको यह करते देख कर बहुत प्रभावित हुई - इस उम्र में शायद ही कोई इतना सलीके से रहता हो।

“क्या बात है! आपके मैनर्स कितने बढ़िया हैं ठाकुर जी!”

“इसमें मैनर्स का क्या है! माँ की हेल्प तो मैं सालों से कर रहा हूँ,” अजय के मुँह से निकल गया।

फिर उसको भान हुआ कि क्या कह दिया उसने! उसकी कही हुई बात काफ़ी सही थी लेकिन सामयिक नहीं। हाँ, वो किरण जी का हाथ बंटाता आया था लेकिन दूसरे समय काल में... इस समय काल में नहीं।

रूचि मुस्कुराई, “आई ऍम लकी!”

“सो ऍम आई,” कह कर अजय ने उसकी पेटीकोट का नाड़ा भी खोल दिया। हल्के कपड़े का पेटीकोट पल भर में नीचे सरक गया।

“ओह गॉड रूचि... तुम कितनी सुन्दर हो!” अजय रूचि की सुंदरता को देख कर उसकी बढ़ाई करने से स्वयं को रोक न सका और उसको अपनी बाहों में भर कर बोला।

“तुमको पसंद हूँ... बस बहुत है!”

कहते हुए रूचि वो मुस्कुराई ही थी कि अगले ही पल उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गये। आँखें मींच कर वो उस पीड़ा को सहन करने की कोशिश करने लगी।

“क्या हुआ रूचि?” अजय ने चिंतित होते हुए पूछा, “फिर वही... सर का दर्द?”

पीड़ा को पीते हुए रूचि ने कहा, “अरे यार! ये सर और आँख दर्द! इस नज़रबट्टू ने बहुत सताया है मुझे!” फिर मुस्कुराती हुई बोली, “अगर तुम्हारी आँखों पर चश्मा चढ़े, तो थोड़ा काशियस रहना...”

“यार ये कॉमन नहीं है!”

“नहीं, लेकिन कुछ लोगों को जब नया नया चश्मा लगता है न, तो उनको दिक्कत होने लगती है!” रूचि ने बताया, “शायद पावर सही नहीं है, या फिर शायद फिटिंग... या फिर दोनों!”

“एक काम करते हैं, हमारे डॉक्टर के पास चलते हैं! तुमसे तो यह छोटा सा काम नहीं हो पाता,” अजय ने शिकायती लहज़े में कहा।

“अरे मेरे स्वामी,” रूचि ने उसको छेड़ते हुए कहा, “लिया है न अपॉइंटमेंट आई स्पेशियलिस्ट से! दिवाली के कारण मिला नहीं समय पर... परसों नहीं, उसके अगले दिन का है!”

“पक्का? प्रॉमिस?”

“हाँ बाबा!” कह कर रूचि मुस्कुराई।

लेकिन अजय को उस मुस्कराहट के पीछे छुपी पीड़ा दिख रही थी।

“लेकिन तुम रुक क्यों गए?” रूचि ने प्यार भरी शिकायत करी, “मुझे मेरा गिफ़्ट कब दोगे?”

“हम्म्म,” अजय समझ रहा था कि रूचि तकलीफ में है लेकिन वो उसको बहला रही थी, “एक काम करें?”

“क्या?”

“सभी लोग सो रहे हैं... हम भी सो जाते हैं! जब उठोगी, तब दूँगा तुमको तुम्हारा गिफ़्ट? ओके?”

“पर...”

“रूचि, अब तो हम हैं न साथ में!” कह कर उसने रूचि को अपनी बाहों में उठा लिया, “सो जाओ कुछ देर... ये सर दर्द भी ख़तम हो जायेगा! माँ और दीदी कुछ न कुछ बढ़िया सा नाश्ता बनाएँगीं! उसको चापेंगे... ठीक है?”

“लेकिन गिफ़्ट?”

“जब उठना, तब!”

रूचि प्यार भरे आनंद से मुस्कुराई - उसको अजय पर गर्व हो आया। कोई अन्य लड़का हो, तो अपनी मंगेतर को ऐसी अवस्था में पा कर टूट पड़े उस पर। लेकिन उसका अज्जू अलग है! उसको रूचि की परवाह है... उसको रूचि से वाक़ई प्यार है!

“ठीक है,” वो मुस्कुराती हुई बोली।

सोने से पहले अजय ने भी अपने कुछ कपड़े उतार दिए, और ऊन के कम्बल में दोनों आपस में लिपट कर सोने की कोशिश करने लगे।

**

Behad behtareen update he avsji Bhai,

Shabdo ke to jadugar ho aap...........

Gazab Bhai
 
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avsji

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Started at 8:13 am.

Typed the site address in the URL. From URL to website to Hindi section, then to my story link, then to posting this complaint.

This process took me 23 minutes!! 23 minutes!!

Timeout occurred 6 times.

Wy are you guys torturing us?

Please - this new server, if it should be called a server, should be dropped immediately.

I tagged you, because I don't know which moderator looks after the server/technical issues. But I am hoping it reaches the people who are responsible for this mess.

BAD BAD experience for any member. Feels like I am living in the year 1995, and using a dial-up connection.
 

rahuliscool

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Uper se ye moderators pata nhi kya chutiyapa kr rhe hai jab bhi screen ko touch krta hoon 4 popup windows khul jati hai......
 
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KinkyGeneral

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अपडेट 27


एक शनिवार को अशोक जी ने अजय से कहा,

“बेटे,”

“जी पापा?”

“उस दिन तुमको मन कर रहा था, लेकिन आज मेरा मन हो रहा है कि हम दोनों बाप बेटा बैठ कर साथ में स्कॉच पियें...”

“आई वुड लव इट पापा,”

“यू मेक इट...” उन्होंने सुझाया।

“ग्लेनफ़िडिक?”

अशोक जी ने हाँ में सर हिला कर कहा, “यस... एटीन ऑर ट्वेंटी वन, यू डिसाइड...”

“ओके पापा!”

“और, जैसा मैंने तुम्हारा पेग बनाया था लास्ट टाइम, वैसा ही बनाना अपने लिए,” उन्होंने मुस्कुराते हुए उसको हिदायद दी।

“यस सर,”

कह कर अजय दोनों के लिए ड्रिंक्स बनाने लगा। कुछ देर में वो एक ट्रे में दोनों के लिए स्कॉच के ग्लास ले आया। एक अशोक जी को दिया और दूसरा स्वयं ले कर उनके सामने बैठ गया।

“चियर्स बेटे,”

“चियर्स पापा!”

इन दस हफ़्तों में पापा के साथ उसके सम्बन्ध बहुत अच्छे बन गए थे। दोनों साथ में बहुत सारे काम करते - बातें, कसरतें, इन्वेस्टमेंट और बिज़नेस की बातें, इत्यादि!

दो चुस्की लगा कर अशोक जी ने कहा,

“अब बताओ बेटे, क्या बात है?”

“बात पापा?” अजय ने उनकी बात न समझते हुए कहा।

उन्होंने एक गहरी साँस भरी, “बेटे, पिछले दो ढाई महीनों से देख रहा हूँ कि तुम्हारे अंदर बहुत से चेंजेस आ गए हैं। नो, आई ऍम नॉट कम्प्लेनिंग! तुम्हारे अंदर सारे चेंजेस बहुत ही पॉजिटिव हैं... लेकिन चेंजेस हैं।”

“पापा...”

“बेटे, झूठ न बोलना! ... तुम मुझसे झूठ नहीं कहते, सो डोंट स्टार्ट! लेकिन छुपाना भी कुछ नहीं,”

“लेकिन पापा, आपको क्यों...”

“क्यों लगता है कि तू बदल रहा है?” उन्होंने पूछा।

अजय ने नर्वस हो कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

वो वात्सल्य भाव से मुस्कुराए, “बाप हूँ तेरा! ये सेन्स केवल माँओं में ही नहीं होता... बाप में भी होता है।” फिर एक गहरी सांस ले कर आगे बोले, “मुझे आज भी याद है... तूने मुझे हीरक पटेल से कोई भी डील न करने को कहा था।”

अजय नर्वस होते हुए कसमसाया।

“आज मिला था वो।” अशोक जी दो क्षण रुक कर बोले, “तू सही कह रहा था... शार्क है वो। ऊपर से मीठी मीठी बातें कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों में लालच दिखता है।”

“कहाँ मिला वो आपको पापा?”

“अशोक होटल में,” - अशोक होटल दिल्ली का एक पाँच सितारा लक्ज़री होटल है - अशोक जी बोले, “एक समिट था वहाँ,”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वो सब ठीक है... लेकिन तुझे उसके बारे में पता कैसे चला? वो तो बस तीन दिन पहले ही इस समिट के लिए आया है कीनिया से इंडिया... उसके पहले तीन साल पहले ही उसकी इण्डिया ट्रिप लगी थी,”

अजय चुप रहा।

“केवल यही बात नहीं है... तू माया से जिस तरह बातें करता है... उसके लिए जो पहला प्रोपोज़ल आया था तूने उसको जैसे मना किया, उसकी शादी कमल से तय करवाई... और अब प्रशांत के लिए पैट्रिशिया...” वो थोड़ा रुके, “बात क्या है बेटे? अपने बाप से छुपाएगा अब?”

“नहीं पापा,” अजय ने एक गहरी साँस भरी और एक ही बार में पूरा पेग गटक गया, “... मैं आपको सब कुछ बताऊँ, उसके लिए मुझे एक और पेग चाहिए... स्ट्रांगर!”

अशोक जी को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन आँखों के इशारे से उन्होंने उसको दूसरे पेग की अनुमति दे दी।

कोई पाँच मिनट दोनों मौन रहे। वो अपना पेग ले कर वापस आया और अपने सोफ़े पर बैठा।

एक सिप ले कर बोला, “पापा, पता नहीं आप मेरी बातों का कितना यकीन करेंगे... इवन आई डोंट फुल्ली ट्रस्ट एंड बिलीव इट माइसेल्फ...”

“ट्राई मी बेटे,”

“पापा, मैं फ़्यूचर से आया हूँ,”

“व्हाट?” अशोक जी के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उनको लगा हो कि उनका बेटा उनको मूर्ख बना रहा है।

“पापा पहले सुन तो लीजिए,”

“हाँ बोलो, बट दिस इस सो हिलेरियस...”

अजय ने उनकी बात नज़रअंदाज़ करी और फिर एक गहरी साँस ले कर उनको मुंबई पुणे द्रुतमार्ग पर हुई घटना से उल्टे क्रम में सभी बातें बताना शुरू करीं। प्रजापति जी के साथ हुई घटना, रागिनी नाम की लड़की से उसका ब्याह, झूठे केस, उससे सम्बन्ध विच्छेद, संपत्ति का बिकना, ग़रीबी के दिन, और फिर जेल में बिताये तीन साल, उसके पश्चात गरिमामय जीवन जीने के लिए रोज़ रोज़ जूझना...

“एक मिनट,” अशोक जी बोले, “मुंबई पुणे एक्सप्रेसवे जैसा कुछ नहीं है,”

“आई नो! अभी नहीं है, लेकिन पाँच छः साल में हो जाएगा पापा,”

नर्वस होने की बारी अब अशोक जी की थी।

“जब ये सब हो रहा था, तब मैं कहाँ था?” उन्होंने सर्द आवाज़ में पूछा।

अजय की आँखों से आँसू आ गए, “आप नहीं थे पापा...” उसकी आवाज़ भर आई, “आप नहीं थे।”

“कहाँ था मैं बेटे?” वो समझ तो गए, लेकिन फिर भी जानना चाहते थे।

“इस हीरक पटेल ने आपको आपके बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था पापा... सामने तो आपका दोस्त बना रहा, लेकिन समझिये कि उसने आपकी पीठ में छूरा घोंपा है। आपके आधे बिज़नेस उसका कब्ज़ा हो गया था। आपके ऊपर सारे उधार छोड़ दिए, और सारा मलाई माल ले कर चल दिया।”

अशोक जी अभी भी उत्तर की प्रतीक्षा में थे।

अब अजय को वो बातें बतानी पड़ीं, जो वो बताना नहीं चाहता था, “उसके कारण आपको बहुत धक्का लगा पापा... यू हैड हार्ट अटैक...”

वो बात पूरी नहीं कर पाया।

तीन चार मिनट दोनों मौन रहे। फिर अशोक जी ही बोले,

“कब हुआ?” उनकी आवाज़ भी बैठ गई थी।

उनके बेटे और भाभी के साथ इतना कुछ हो गया, जान कर वो भी दुःखी हो गए थे।

“जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था,” उसने गहरी साँस ली, “वैसे शायद कुछ न होता, लेकिन आपको डॉक्टर की लापरवाही के कारण गलत मेडिकेशन दे दिया गया... उसके कारण आपको एलर्जिक रिएक्शन हो गया।”

“किस ऑर्गन में इंफेक्शन हुआ?”

“रेस्पिरेटरी... मुझे ठीक से नहीं मालूम, लेकिन आपको और माँ को फिर से पूरा हेल्थ चेक करवाना चाहिए। स्पेसिफ़िक फॉर एलर्जीस...”

“हम्म...”

“वानप्रस्थ अस्पताल में कोई अजिंक्य देशपाण्डे डॉक्टर आएगा,”

“अभी नहीं आया है?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“लेकिन बेटे, अगर मुझे मरना लिखा है, तो मर तो जाऊँगा न?”

“आई डोंट बिलीव इट पापा,” अजय ने दृढ़ता से कहा, “अगर चीज़ें बदल ही न सकतीं, तो प्रजापति जी मुझे वापस भेजते ही क्यों? उससे क्या हासिल होता?”

अशोक जी ने समझते हुए सर हिलाया।

“और देखिए न, माया दीदी की लाइफ भी तो बदल रही है! उस मुकेश के साथ उनकी शादी नहीं हो रही है न अब,”

“तू उस बात पर भी सही था बेटे,” अशोक जी बोले, “मैंने पता लगवाया था। तेरे चतुर्वेदी अंकल ने पता किया था कि मुकेश और उसका परिवार ठीक नहीं है।”

“आपने यह बात मुझे नहीं बताई,” इतनी देर में अजय पहली बार मुस्कुराया।

“कोई ज़रुरत ही नहीं थी बेटे,” अशोक जी भी मुस्कुराए, “कमल और माया दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं... यह तो मैं भी बता सकता हूँ! राणा साहब के परिवार में अपनी बिटिया जा रही है, यही दिखा रहा है कि ईश्वर की हम पर बड़ी दया है।”

“जी पापा, मेरी पिछली लाइफ में कमल ने कभी बताया ही नहीं कि उसको दीदी इतनी पसंद हैं!”

“तुझे भी तो पसंद नहीं थी,”

“हाँ पापा, नहीं थी। लेकिन मैंने देखा कि कैसे वो बेचारी उस मुकेश से छुप कर हमसे मिलने आती थीं। दीदी ने हमारा साथ कभी नहीं छोड़ा। कमल ने हमारा साथ नहीं छोड़ा। राणा अंकल और आंटी जी ने तो हमको अपने घर आ कर रहने को कहा भी था... लेकिन आपका बेटा ऐसा नहीं है कि वो अपने बूते पर अपनी माँ को दो जून का खाना न खिला सके।”

कहते कहते अजय को फिर से अपने संघर्ष की बातें याद आ गईं। आँसुओं की बड़ी बड़ी बूँदें उसकी आँखों से टपक पड़ीं।

“मेरा बेटा,”

“हाँ पापा, आपका बेटा हूँ! आपकी सारी क्वालिटीज़ हैं मेरे अंदर,” उसने मुस्कुराने की कोशिश करी।

फिर जैसे उसको कुछ याद आया हो, “मनोहर भैया भी साथ थे! वफ़ादारी के चक्कर में छोटी मोटी नौकरी कर रहे थे वो जेल के पास,”

“ओह बेटे,”

“पापा,” अजय ने जैसे उनको समझाने की गरज़ से कहा, “आप ऐसे न सोचिए! वो सब नहीं होगा अब। ... हमारे सामने दूसरी मुश्किलें आएँगी, लेकिन वो मुश्किलें नहीं...”

दोनों फिर से कुछ देर मौन हो गए।

“माँ को पता है ये सब?” अंततः अशोक जी ने ही चुप्पी तोड़ी।

“नहीं। मैंने उनको एक चिट्ठी में लिख कर कुछ इंस्ट्रक्शंस दिये थे, आपके हास्पिटलाइज़ेशन को ले कर... लेकिन यहाँ डॉक्टर या हॉस्पिटल नहीं, उस एलर्जी को अवॉयड करना है... इस पटेल को अवॉयड करना है,”

“ठीक है, हम चारों इसी वीक फुल सीरियस चेकअप करवाते हैं।”

“ठीक है पापा,”

“ओह बेटे, इतना बड़ा बोझ लिए घूम रहे हो इतने दिनों से!”

“कोई बोझ नहीं है पापा। फॅमिली बोझ नहीं होती... आप सभी को खुश देखता हूँ, तो इट आल फील्स वर्थ इट,”

“हाँ बेटे, ख़ुशियाँ तो बहुत हैं! ... सब तेरे कारण ही हो रहा है!”

“क्या पापा! हा हा हा!”

“अच्छा बेटे एक बात बता, तब माया की शादी कब हुई थी?”

“इसी साल... नवम्बर में पापा!”

“तो क्या कहते हो? इस बार इन दोनों के लिए वेट करें? कमल अभी भी पढ़ रहा है न,”

“पर्सनली, मैं तो चाहूँगा कि दोनों की शादी जल्दी ही हो जाए... अगर शुभ मुहूर्त नवम्बर में हैं तो नवम्बर में ही। शादी तय हो गई है, दोनों एडल्ट भी हैं, तो फालतू के कारणों से शादी जैसी इम्पोर्टेन्ट चीज़ रुकनी नहीं चाहिए।”

“हम्म,”

“लेकिन वो आप और माँ बताइए... और दीदी,”

“एक्चुअली, कल दिन में ऑफिस में, राणा साहब का कॉल आया था। उन्होंने अपनी इच्छा बताई है कि दोनों को क्यों न इसी नवंबर में ब्याह दें,”

“बहुत बढ़िया है फिर तो!” अजय बोला, “आपने माँ से बात करी?”

“अभी नहीं... लेकिन आज पूछता हूँ भाभी से,”

“परफेक्ट!”

“और प्रशांत का क्या करें?”

“मैं तो कहता हूँ कि दोनों की साथ ही में शादी करवा देते हैं पापा, खर्चा बचेगा!”

“हा हा हा हा!” इस बात पर आज की शाम अशोक जी पहली बार दिल खोल कर हँसने लगे।

दिल पर से एक भार हट गया, ऐसा महसूस हो रहा था उनको।

“पापा,” अजय ने शरारत से पूछा, “एक और पेग?”

“हा हा हा... मेरी आड़ में खुद पीना चाहता है बदमाश!” वो आनंद से बोले, “चल ठीक है! एक और!”

“चियर्स पापा,”

“चियर्स बेटे,”

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सुंदर वार्तालाभ-माइनस द अल्कोहल पार्ट, ऑफ़ कोर्स
 
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Dear friends,

As you yourself have seen, the website is still fucked.

So, I will not post the next updates of the story, till the server/stability of this site is sorted.
In the meantime, I will keep writing the story, for later, quick updates.

Stay tuned.
Love :)
 

KinkyGeneral

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अपडेट 32:


अगले सप्ताह - हॉगवर्ट्स :

मॉर्निंग प्रेयर्स के समय, पूरी सभा से थोड़ी दूर, शशि और श्रद्धा एक गहरे वार्तालाप में डूबे हुए थे। दोनों के चेहरों पर चिंता की लक़ीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं। अजय ने नोटिस किया कि शशि मैम चिंतित हैं... श्रद्धा मैम भी।

शशि मैम अजय की पसंदीदा टीचर थीं। उनके साथ वो बड़ी आसानी से बात कर पाता था - ‘वापस’ आने से पहले भी। वो मेहनत करतीं थीं और अपने स्टूडेंट्स की सफ़लता के लिए चिंतित भी रहती थीं। उनके डेडिकेशन को देख कर छात्र और छात्राएँ भी पढ़ने में मन लगाते थे और मेहनत करते थे। इसलिए यह कहना कि अजय शशि मैम की तरफ़ आकर्षित था, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं थी। एक स्टूडेंट का अपनी टीचर के प्रति आकर्षण कोई नई बात नहीं है। अनेकों बार हो चुका है यह और आगे भी अनेकों बार होता ही रहेगा। उसके मन में एक दो बार ख़याल आया कि वो कभी उनसे अपने मन की बात कह दे। लेकिन समझ नहीं आया कि कैसे कहे! यह सम्बन्ध अनुचित होता है न!

उधर शशि मैम भी न केवल उसके ज्ञान से प्रभावित थीं, बल्कि उसके व्यक्तित्व से भी। अजय जिस तरह से खुद को कैरी करता था, उसकी अदा में गाम्भीर्य था... एक अलग सा ठहराव था और उसके अंदाज़ में गज़ब का आत्मविश्वास था। उसको अपने विषय में बहुत ज्ञान था - शायद शशि से भी अधिक... और शशि इस बात को समझती भी थी। लेकिन जो बात अजय को उनकी नज़र में बाक़ियों से अलग करती थी, वो यह थी कि अजय को अपने ज्ञान का अभिमान रत्ती भर भी नहीं था। सभी से वो बड़े आदर से बातें करता था - चाहे कोई भी हो! टीचर्स हों या स्टूडेंट्स... वो सभी से बहुत आदरपूर्वक बातें करता था। यहाँ तक कि निचली कक्षाओं के स्टूडेंट्स से भी वो “आप” “आप” कर के ही बातें करता था। केवल अपने निकटतम मित्रों से ही वो “तुम” कह के बातें करता था। वो इसलिए क्योंकि उस सम्बोधन में एक अपनापन होता है। यह सभी बातें शशि को बहुत पसंद आती थीं। अगर किसी आदमी में ऐसे गुण हों, तो वो आदमी किसी भी स्त्री को पसंद आता है। न तो रूचि ही अपवाद थी और न ही शशि।

ख़ैर...

वापस आने के बाद से अजय के मन में अपने प्रियजनों के लिए रक्षा-भाव इतना बढ़ गया था कि वो हमेशा इसी कोशिश में रहता था कि वो यथासंभव सभी की मदद कर सके। शशि और श्रद्धा मैम को यूँ चिंतित देख कर उससे रहा नहीं जा रहा था। क्लास में भी शशि मैम थोड़ी अन्यमनस्क सी प्रतीत हुईं। क्लास के बाद जो थोड़ा समय था, उसमें अजय ने उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा, तो वो टाल गईं। बाद में श्रद्धा मैम भी बहुत ही चिंतित दिखाई दीं। उनका मन शायद ही क्लास में हो! पढ़ाते समय भी बहुत सी गलतियाँ करीं उन्होंने। बाकी स्टूडेंट्स तो नहीं समझ सके, लेकिन अजय को समझ में आया। लेकिन वो चुप ही रहा।

क्लास के बाद उसने श्रद्धा मैम के पास जा कर पूछा,

“मैम... उम्... कोई प्रॉब्लम है क्या?”

“क्या मतलब अजय?”

“मैम, कोई प्रॉब्लम हो तो प्लीज़ बताईए। इफ आई कैन हेल्प, आई विल!”

“ओह, आई डोंट नो अजय!” श्रद्धा ने गहरी साँस भरी, “ओह प्लीज़ लीव इट,”

और बात आई गई हो गई।

लेकिन अगले दिन फिर से वही हालत थी। आज तो श्रद्धा मैम अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत ही अस्त-व्यस्त लग रही थीं। हमेशा ही वो प्रेस किये हुए कपड़े पहनी दिखाई देतीं, बाल इत्यादि सुव्यवस्थित रहते... लेकिन आज वो अजीब सी लग रही थीं। ऐसा लग रहा था कि वो रात में ठीक से सोई भी नहीं हैं। आँखों के नीचे एक काला घेरा बन गया था।

अब उससे रहा नहीं गया। लंच ब्रेक में वो स्टाफ़रूम में गया।

इस समय वो दोनों ही रहती थीं वहाँ - कोई पंद्रह मिनट तक। यह बात उसको पता थी।

“मैम,” अजय ने दरवाज़े को अदब से खटका कर कहा, “मे आई कम इन?”

“अजय, ओह डोंट बी सो फॉर्मल,” शशि ने कहा, “आओ न!”

अजय अंदर आया।

उसको देखते हुए शशि ने कहा, “क्या बात है?”

“यही तो मैं पूछना चाहता हूँ मैम कि बात क्या है?”

“क्या मतलब?”

“इतना तो मुझे समझ में आता है कि या तो आपको या फिर श्रद्धा मैम किसी परेशानी में हैं... एंड इफ आई ऍम करेक्ट, तो श्रद्धा मैम...”

उसकी बात पर शशि और श्रद्धा की आँखें दो पल को मिलीं।

श्रद्धा कुछ कहती, उसके पहले ही शशि ने कहा, “अजय... बात थोड़ी नाज़ुक है।”

“मैम बताईए न... आई कैन हेल्प! इफ नॉट मी, देन माय फादर कैन... प्लीज बताइये...”

“अजय... बात दरअसल ये है कि श्रद्धा के मकान मालिक ने बिना किसी नोटिस दिए उसको घर से निकाल दिया...”

“व्हाट? ऐसे कैसे?”

“बोला कि नवरात्रि में गाँव से कई मेहमान आ रहे हैं इसलिए मकान वापस चाहिए।”

“ही जस्ट वांट्स मोर रेंट,” श्रद्धा ने बताया, “ये सब बहाना है। उस समय भी मैंने जैसे तैसे कर के रेंट कम करवा लिया था, लेकिन आज कल इतनी डिमांड है कि क्या करूँ।”

“उसने माँगा था क्या आप से अधिक रेंट?”

“हाँ... इशारों में कहा था उसने। लेकिन जितना देती हूँ, उससे डेढ़ गुना कैसे दूँ? ऊपर से उसको सिक्योरिटी डिपाजिट भी चाहिए!” कहते कहते वो रोआँसी हो गई, “अभी अभी तो नौकरी शुरू करी है... न सेविंग है न कुछ। कुछ बचेगा ही नहीं।”

“कितना माँग रहा था?”

श्रद्धा ने उसको बताया।

“हम्म्म... और इसलिए उसने आपको घर से निकाल दिया?”

श्रद्धा ने कुछ कहा नहीं। लेकिन उसकी आँख से आँसू निकल गए।

“अभी कहाँ रह रही हैं आप?”

“एक धर्मशाला में। जो थोड़े बहुत फर्नीचर थे, उनमें से भी कई चोरी हो गए।” कहते कहते श्रद्धा का गला भर आया।

अजय ने इस विषय पर कुछ कहा नहीं। वो समझता था कि जब मुसीबत आती है, तो व्यक्ति केवल उसका निस्तारण चाहता है, समाधान चाहता है। कोई लफ़्फ़ाज़ी नहीं चाहता... लक्ष्य-विहीन सहानुभूति नहीं चाहता। उसने दो क्षण सोचा, फिर शशि से बोला,

“मैम, मैं स्टाफरूम का फ़ोन यूज़ कर लूँ?”

“अजय डू व्हाटएवर! लेकिन अगर इसकी हेल्प कर सको, तो बहुत एहसान होगा,” शशि ने लगभग हाथ जोड़ दिए।

“मैम, प्लीज़ ऐसे मत बोलिए... प्लीज़ जस्ट गिव मी अ फ्यू मिनट्स... लेट मी सी व्हाट कैन बी डन...”

कह कर अजय ने पहले अशोक जी को और फिर उनके कहने पर उनके दो और मित्रों को फ़ोन किया। बातें कोई पच्चीस मिनट तक चलीं। तब तक लंच ब्रेक भी बीत गया। श्रद्धा को बहुत बुरा लग रहा था कि उसके कारण अजय ने खाना नहीं खाया, लेकिन ऐसी मामूली बात की अजय को कोई परवाह नहीं थी। जिसने जेल की मार तीन साल तक झेली हो, उसके लिए ऐसी छोटी बातों का कोई मतलब ही नहीं रहता। कुछ समय बाद स्टाफरूम के फ़ोन पर एक साल आया। अशोक जी ने किया था, अजय के लिए।

बातें समाप्त होते होते अजय के होंठों पर मुस्कान आ गई।

“मैम,” उसने श्रद्धा से कहा, “घर का बंदोबस्त हो गया है।”

“ओह गॉड... थैंक यू सो मच, अजय!” श्रद्धा ने अपने तहे दिल से अजय का शुक्रिया अदा किया।

“नो वरीस, मैम! वन बीएचके है...”

“मतलब?”

“ओह, मतलब... एक कमरा, एक हॉल, और किचन! अटैच्ड बाथरूम है...”

“बढ़िया! अभी के घर से तो बेहतर है,” शशि ने कहा।

“मकान मालिक ने कहा है कि आप आज ही आ सकती हैं।”

“लेकिन अजय, रेंट भी ज़्यादा होगा न?”

“नहीं मैम, अभी जो आपका रेंट है, वही!”

“व्हाट! आर यू श्योर?”

“मैम, ये आपने नए मकान मालिक मेरे पापा के दोस्त हैं। उनको कोई रेंट वेंट नहीं चाहिए, लेकिन फ़्री में नहीं दे सकते हैं न!” अजय मुस्कुराया, “इसलिए आपसे उतना ही रेंट लेंगे जितना आप अभी दे रही हैं। उनको चाहिए कि कोई सलीक़े से उनके घर को रख सके,”

“वॉव,” शशि बोली, “आज भी ऐसे लोग हैं?”

अजय मुस्कुराया।

बात तो सही है - एक एक पैसे के लिए लोग एक दूसरे को बेचने पर अमादा हैं। ऐसे में कोई इतना दिलदार मिल जाए, तो क्या कहना!

“और उन्होंने कहा है कि आप आज ही आ सकती हैं।” अजय ने आगे बताया, “किस धर्मशाला में हैं आप?”

श्रद्धा ने बताया।

“ठीक है। मेरे एक मनोहर भैया हैं... वो आपका सारा सामान आज शाम को शिफ़्ट करवा देंगे।” अजय ने सुझाया, “मैं घर कॉल कर दूँगा... वो आपके वहाँ पहुँचने से पहले ही वहाँ रहेंगे!”

“नहीं अजय! पहले ही तुम्हारा इतना एहसान हैं,”

मैम,” अजय ने शर्मिंदा होते हुए कहा, “आप ऐसी बात क्यों कह रही हैं? आप एक दिन छुट्टी ले लीजिए... आज आराम से शिफ़्ट हो जाईए और कल सब कुछ अनपैक कर लीजिये।”

“ओह अजय, थैंक यू सो मच!”

“मैम, आई ऍम वैरी हैप्पी टू हेल्प!” अजय ने हाथ जोड़ कर कहा, “कोई और नीड हो, तो बताईएगा... प्लीज़ डोंट हेसिटेट!”

“ओह गॉड! यही बहुत है,” श्रद्धा बोली, “थैंक यू अजय!”

“थैंक यू अजय,” शशि ने भी उसको धन्यवाद किया।

अजय इतनी बार दोनों को धन्यवाद करने से मना किया था, लेकिन फिर भी दोनों बार बार उसको थैंक यू थैंक यू कह रही थीं। वो बस अंत में निराशा में सर हिला कर रहा गया।

“नहीं अजय,” शशि ने कहा, “ऐसे मत करो। तुमने आज बहुत अच्छा काम किया है। ... आई वांटेड टू हेल्प, लेकिन वो क्या है कि मैं कुछ दिनों के छुट्टी पर जा रही हूँ,”

“ओह! ऑल गुड मैम?” अजय ने पूछा।

“ऑल गुड, अजय,” शशि ने कहा, “पर्सनल काम है! लेकिन दो या तीन सप्ताह में वापस आ जाऊँगी!”

“ओके!”

“देयर विल बी अ सब्स्टीट्यूट! ... लेकिन तुमको रिकमेन्डेशन मैं ही दूँगी! चिंता न करो!”

“मैम कोई बात ही नहीं है,” अजय बोला, फिर श्रद्धा की तरफ़ मुखातिब हो कर बोला, “मैम, आप बिल्कुल चिंता मत करिए। अगर कोई परेशानी हो, तो ज़रूर बता दीजिएगा,”

“ठीक है,” श्रद्धा ने कहा, “थैंक यू सो मच अजय,”

“यू आर मोस्ट वेलकम, मैम!” अजय ने प्रसन्न हो कर कहा, “यू आर मोस्ट वेलकम,”

**
अजय ने श्रद्धा मैम की मदद की, उत्तम कार्य किया परंतु शशि मैम भी तो कुछ दिन के लिए उन्हें अपने साथ रख सकती थी? और वैसे भी वो कुछ दिनों के लिए कहीं जा रही थी तो उन्हें ही श्रद्धा मैम को अपने घर नया मकान मिलने तक बुला लेना चाहिए था।

पर मैं भूल गया कि शशि मैम अकेली नहीं होंगी उनका सामान भी तो होगा। 🤦
 
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KinkyGeneral

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यह विशेषता अंग्रेजी की नहीं मानवीय मानसिकता की है।
हम कितना भी अंग्रेजी या अन्य कोई भी भाषा जानते हों, भावनात्मक जुड़ाव हमेशा हमारी मातृभाषा से ही वास्तविक होता है।
इसीलिए हम अपनी मातृभाषा को मर्यादा की संवेदनशीलता के अनुसार ही कहना और सुनना पसंद करते हैं थोड़ा सा चूकते ही बात दिल और दिमाग दोनों पर बहुत गहरा असर डाल देती है। परिहास या उत्तेजना में हम बहुत कुछ अमर्यादित भी कह लेते हैं लेकिन कभी कभी वो भी बहुत गहरी फांस की तरह मन में चुभने लगती है। अमिट छाप।

जबकि किसी अन्य भाषा में कुछ भी कहा जाये, सामान्यतः उसके सार को ग्रहण कर लिया जाता है, शब्दों को नहीं। शब्दों को उसी समय या कुछ समय‌ बाद अनदेखा कर दिया जाता है..... इसीलिए हम अंग्रेजी में वो सब भी बहुत आसानी से कह सुन लेते हैं जो अंग्रेजी मातृभाषा वाले भावनात्मक रूप से मर्यादा का ध्यान रखते हुए ही कहते सुनते या ना कहना चाहते हैं ना सुनना चाहते हैं
जैसा कि मैंने अंग्रेजी की प्रसिद्ध फोरम लिट*इरोटिका पर देखा है वहां की कहानियों में भी सामाजिक संवाद में 'फक' और 'डिक' 'एसहोल' ही नहीं 'शिट' भी एक अमर्यादित अपशब्द माना जाता है जिसे सिर्फ किसी खास से मजाक/उत्तेजना में या किसी पर गुस्से में ही बोला जाता है


जबकि हमारे यहां सिर्फ कहानियों में ही नहीं वास्तविक जीवन में भी हम साधारण रूप से इन शब्दों को बहुत हल्के स्तर पर कह सुन कर भुला देते हैं क्षणिक आवेश के बाद
एक और बात भी तो है भैया, वैज्ञानिक शब्दों का बोध ना होना, उद्धरण के तौर पर अगर मैं संभोग को coitus/copulation/intercourse कह कर संबोधित करूँ तो वो एक दम professional सुनाई देता है। मुझे लगता है (अपनी भाषा के)पर्यायवाचियों का बोध ना होना भी इसमें बढ़ी भूमिका निभाता है। बाक़ी आपने जो slangs का वर्णन किया है वो तो है ही, अब जैसे 'बहनचोद' ने काफ़ी हद तक मतलब खो दिया है तो समय के साथ देसी भाषाओं में भी slangs प्रचलित हो रहे हैं तो शायद अपनी भाषा का भी वैसा ही हाल हो जाये?
 
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