अपडेट 48
इतनी छेड़खानी के बाद अजय और रूचि दोनों ही शर्मसार हो गए थे। लेकिन फिर भी एक दूसरे के निकट होने की अभिलाषा बहुत बलवती थी। माया दीदी और किरण जी के चले जाने के बाद दोनों अंततः अकेले हो गए।
“कोन्ग्रेचुलेशन्स,” अजय ने धीमे से बोला।
“तुमको भी!” रूचि ने मुस्कुराते हुए कहा।
“तुमको पता है कि तुम आज कितनी सुन्दर लग रही हो?”
अजय ने ‘कितनी’ शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।
रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया, “तुम बता दो?”
“अंदर चलें?”
रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
अंदर आ कर अजय ने दरवाज़ा भिड़ाया और तत्क्षण रूचि को अपने आलिंगन में भर के उसके होंठों को चूमने लगा। कुछ ही देर में दोनों अपने इस अधीरतापूर्ण चुम्बन के अभिज्ञान पर खुद ही खिलखिला कर हँसने लगे।
“तुमको अभी पता चला?” रूचि ने पूछा।
“किस बारे में?”
“... कि हमारी शादी पक्की हो गई?”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “मुझे पता नहीं था कि माँ पापा हमारे पीछे पीछे हमको देने के लिए सरप्राइज़ प्लान कर रहे थे!”
वो मुस्कुराई, “आई लव देम! बहुत अच्छे हैं माँ पापा...”
“द बेस्ट,” अजय गर्व से मुस्कुराया, “एंड आई ऍम सो हैप्पी दैट यू टू लव देम!”
“किस्मत है मेरी...”
“कल का क्या प्लान है?”
“कल तो घर में ही दिवाली है न! ... अगर पॉसिबल हो, तो आ जाओ?”
“कल कैसे...?”
“दिन में आ जाओ... कुछ देर के लिए ही?” रूचि ने मनुहार करी, “मेरी मासी, और उनकी लड़की भी आ रहे हैं... और,” उसने शरमाते हुए आगे जोड़ा, “होने वाले दामाद से मिलना चाहते हैं,”
“हैं! मासी?”
“हाँ... दुबई में रहती हैं दोनों! बहुत समय बाद इंडिया आना हुआ।” रूचि ने बताया, “हमारी खबर सुनी, तो तुमसे मिलने को बेताब हो गईं...”
“हम्म... तो ये बात है? इम्पोर्टेड रिश्तेदार!” अजय ने खिलंदड़े अंदाज़ में कहा, “ठीक है, देखते हैं!”
“आज की रात आपके साथ...” रूचि मुस्कुराई, “और फिर दिवाली की अगली रोज़ हम फिर आपकी बाहों में होंगे,”
“सच में?”
रूचि ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए मुस्कुराई।
“आ जाएँगे फिर...”
रूचि मुस्कुराने को हुई कि अचानक से उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गए।
“क्या हुआ?”
“क्या बताऊँ यार...” उसने अपनी आँखों को मसलते हुए कहा, “ये नया नया नज़रबट्टू क्या लग गया... जब देखो तब सर में दर्द रहता है मेरे!”
“उस दिन तुम कह रही थी न डॉक्टर को दिखाने की?”
“हाँ, लेकिन दर्द अपने आप ठीक हो गया तो भूल गई!” रूचि ने झेंपते हुए कहा।
“लापरवाह हो...” अजय ने रूचि को अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “लेकिन कोई बात नहीं! अब मैं हूँ न! सब ठीक कर दूँगा!”
“हाँ... मुझे भी ठीक कर दो!”
रूचि ने ऐसी प्यार भरी अदा से कहा कि अजय का दिल हिल गया।
“अभी किए देते हैं,”
दोनों एक बार फिर से चुम्बन में लिप्त हो गए।
“वैसे,” चुम्बन तोड़ते हुए अजय बोला, “ऐसा नहीं है कि मेरे पास तुमको देने के लिए कोई सरप्राइज़ नहीं है!”
“अच्छा जी!” रूचि की बाँछें खिल गईं, “क्या सरप्राइज़ है? बताईए न ठाकुर साहब!”
“अरे बैठिए तो सही,” कह कर अजय ने रूचि को बिस्तर पर बैठाया और अपनी अलमारी की तरफ़ चल दिया।
रूचि पूर्वानुमान के आवेश के कारण मुस्कुरा रही थी। उसको अजय का अंदाज़ पसंद था - दोनों अंतरंग होते थे, लेकिन अपने परिवारों की मर्यादा बनाए रखते थे। जवानी के जोश को अपने विवेक पर हावी नहीं होने देते थे।
एक मिनट के अंदर अजय वापस उसके सामने था। उसके हाथों में वेलवेट पेपर में लिपटा और रिबन से पैक किया हुआ एक पैकेट था।
“क्या है ये?” रूचि ने पैकेट को ले कर पूछा।
अंदाज़ा तो इसी बात का था कि शायद उसमें कोई कपड़ा होगा, लेकिन कहना कठिन था।
“देखो,” अजय ने सुझाया।
पैकेट खोल कर रूचि ने देखा कि गिफ़्ट के नाम पर अंदर उसी के नाप का एक स्किन कलर का, स्ट्रेच साटन और लेस का एक ब्राइडल लॉन्ज़रे सेट था। उसको छूने पर बेहद कोमल और मखमली एहसास महसूस हो रहा था।
“मेरे लिए?” रूचि ने उत्साहपूर्वक कहा।
“नहीं, पड़ोसन के लिए...”
अजय की इस बात पर रूचि ने बात पलटते हुए कहा,
“मुझे लगा कि जूलरी मिलेगी... लेकिन मेरे होने वाले हब्बी को मेरे लिए सेक्सी कपड़े लेने हैं बस...”
“नहीं लेने चाहिए?”
“ऐसा मैंने कब कहा?” रूचि ने उसको छेड़ा।
अजय मुस्कुराया, “पहन कर दिखाओ?”
“अभी?”
“और कब?”
“यार सब उतारना पड़ेगा,” रूचि ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “और मुझे साड़ी पहननी नहीं आती,”
“कोई बात नहीं,” अजय ने उसकी कमर को थाम कर कहा, “दीदी या माँ पहना देंगी!”
“हाS...”
“अरे! क्या हो गया उसमें! हेल्प ही तो माँग रहे हैं,”
“हम्म्म, ठीक है फिर,” रूचि ने कहा और अपनी साड़ी का पल्लू अपने सीने से हटा कर ब्लाउज़ के बटन खोलने का उपक्रम करने लगी।
“वेट,” अजय ने बड़े उत्साह से उसको रोका, “मैं करूँ?”
“ओके!” रूचि जानती थी कि यह काम अजय ही करना चाहेगा।
जितना उत्साह अजय के मन में रूचि को लेकर था, उतना ही रूचि के मन में अजय को लेकर था। अभी अभी दोनों परिवारों की तरफ़ से उनके रिश्ते को अनुमोदन भी मिल गया था और इस बात से दोनों ही आनंदित थे। अपनी प्रेमिका की ब्लाउज़ के बटन खोलना एक बहुत ही उत्तेजित करने वाला काम होता है। अजय के हाथ काँप रहे थे और अति उत्साह के कारण उसको अधिक समय भी लग रहा था। रूचि उसको इस तरह से देख कर खुश भी हो रही थी, उत्तेजित भी हो रही थी, और लज्जित भी! वो पाँच छोटे छोटे बटन खोलने में पूरा एक मिनट लग गया अजय को! लेकिन अंत में सारे बटन खुल ही गए।
दो दिन पहले ही रूचि की माँ ने उसके लिए दो जोड़ी नए और सुरुचिपूर्ण अधोवस्त्र ख़रीदे थे। आज के लिए उन्होंने उसको इशारे में समझाया भी था कि आज वो यह ‘नई’ वाली ब्रा पैंटीज़ पहने। रूचि भी समझती थी यह बात - और इसीलिए उसने अपनी माँ की बात मान ली थी। यह काले रंग के लेस वाले अधोवस्त्र थे। रूचि के ऊपर वो बहुत फ़ब रहे थे। ‘लेकिन पहनने में बहुत आरामदायक न हों शायद’, यह बात उसके मन में ज़रूर उठी!
“अरे यार,” अजय ने उसके अंदरूनी वस्त्र देख कर कहा, “ये भी मस्त हैं!”
“क्या? ब्रा या मेरे ब्रेस्ट्स?”
रूचि खुद भी आश्चर्यचकित थी कि दोनों के बीच कितनी निकटता आ गई थी! उसको आज भी ढाई महीने पहला का वो दिन याद था जब लंच टाइम में अजय ने उसको ‘हाय’ कहा था। उस एक शब्द से आज उन दोनों का रिश्ता बैठ गया था! कैसी कमाल की होती है न ज़िन्दगी? हमको खुद ही नहीं पता होता कि किस बात से जीवन की कौन सी दिशा निकल आये।
“दोनों!” झूठ कैसे कहे वो?
“आहाहाहा... बातें बनानी बहुत आ गई हैं तुमको,” अजय को प्यार से चिढ़ाते हुए रूचि ने लगभग हँसते हुए कहा, “मेरा सीधा सादा अज्जू पूरा बदमाश होता जा रहा है!”
“बदमाश? तुमको बदमाश लड़के पसंद नहीं है?” कहते हुए अजय ने रूचि का ब्लाउज़ उतार दिया।
उसने ‘न’ में सर हिलाया, “लेकिन ये वाला बदमाश मुझे बहुत पसंद है!”
अजय ने शान से मुस्कुराते हुए रूचि की साड़ी उतारी और सम्हाल कर उसको तह कर के एक तरफ़ रख दी। रूचि उसको यह करते देख कर बहुत प्रभावित हुई - इस उम्र में शायद ही कोई इतना सलीके से रहता हो।
“क्या बात है! आपके मैनर्स कितने बढ़िया हैं ठाकुर जी!”
“इसमें मैनर्स का क्या है! माँ की हेल्प तो मैं सालों से कर रहा हूँ,” अजय के मुँह से निकल गया।
फिर उसको भान हुआ कि क्या कह दिया उसने! उसकी कही हुई बात काफ़ी सही थी लेकिन सामयिक नहीं। हाँ, वो किरण जी का हाथ बंटाता आया था लेकिन दूसरे समय काल में... इस समय काल में नहीं।
रूचि मुस्कुराई, “आई ऍम लकी!”
“सो ऍम आई,” कह कर अजय ने उसकी पेटीकोट का नाड़ा भी खोल दिया। हल्के कपड़े का पेटीकोट पल भर में नीचे सरक गया।
“ओह गॉड रूचि... तुम कितनी सुन्दर हो!” अजय रूचि की सुंदरता को देख कर उसकी बढ़ाई करने से स्वयं को रोक न सका और उसको अपनी बाहों में भर कर बोला।
“तुमको पसंद हूँ... बस बहुत है!”
कहते हुए रूचि वो मुस्कुराई ही थी कि अगले ही पल उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गये। आँखें मींच कर वो उस पीड़ा को सहन करने की कोशिश करने लगी।
“क्या हुआ रूचि?” अजय ने चिंतित होते हुए पूछा, “फिर वही... सर का दर्द?”
पीड़ा को पीते हुए रूचि ने कहा, “अरे यार! ये सर और आँख दर्द! इस नज़रबट्टू ने बहुत सताया है मुझे!” फिर मुस्कुराती हुई बोली, “अगर तुम्हारी आँखों पर चश्मा चढ़े, तो थोड़ा काशियस रहना...”
“यार ये कॉमन नहीं है!”
“नहीं, लेकिन कुछ लोगों को जब नया नया चश्मा लगता है न, तो उनको दिक्कत होने लगती है!” रूचि ने बताया, “शायद पावर सही नहीं है, या फिर शायद फिटिंग... या फिर दोनों!”
“एक काम करते हैं, हमारे डॉक्टर के पास चलते हैं! तुमसे तो यह छोटा सा काम नहीं हो पाता,” अजय ने शिकायती लहज़े में कहा।
“अरे मेरे स्वामी,” रूचि ने उसको छेड़ते हुए कहा, “लिया है न अपॉइंटमेंट आई स्पेशियलिस्ट से! दिवाली के कारण मिला नहीं समय पर... परसों नहीं, उसके अगले दिन का है!”
“पक्का? प्रॉमिस?”
“हाँ बाबा!” कह कर रूचि मुस्कुराई।
लेकिन अजय को उस मुस्कराहट के पीछे छुपी पीड़ा दिख रही थी।
“लेकिन तुम रुक क्यों गए?” रूचि ने प्यार भरी शिकायत करी, “मुझे मेरा गिफ़्ट कब दोगे?”
“हम्म्म,” अजय समझ रहा था कि रूचि तकलीफ में है लेकिन वो उसको बहला रही थी, “एक काम करें?”
“क्या?”
“सभी लोग सो रहे हैं... हम भी सो जाते हैं! जब उठोगी, तब दूँगा तुमको तुम्हारा गिफ़्ट? ओके?”
“पर...”
“रूचि, अब तो हम हैं न साथ में!” कह कर उसने रूचि को अपनी बाहों में उठा लिया, “सो जाओ कुछ देर... ये सर दर्द भी ख़तम हो जायेगा! माँ और दीदी कुछ न कुछ बढ़िया सा नाश्ता बनाएँगीं! उसको चापेंगे... ठीक है?”
“लेकिन गिफ़्ट?”
“जब उठना, तब!”
रूचि प्यार भरे आनंद से मुस्कुराई - उसको अजय पर गर्व हो आया। कोई अन्य लड़का हो, तो अपनी मंगेतर को ऐसी अवस्था में पा कर टूट पड़े उस पर। लेकिन उसका अज्जू अलग है! उसको रूचि की परवाह है... उसको रूचि से वाक़ई प्यार है!
“ठीक है,” वो मुस्कुराती हुई बोली।
सोने से पहले अजय ने भी अपने कुछ कपड़े उतार दिए, और ऊन के कम्बल में दोनों आपस में लिपट कर सोने की कोशिश करने लगे।
**