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Romance फ़िर से

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट 56; अपडेट 57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
Last edited:

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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Dear friends,

As you yourself have seen, the website is still fucked.

So, I will not post the next updates of the story, till the server/stability of this site is sorted.
In the meantime, I will keep writing the story, for later, quick updates.

Stay tuned.
Love :)
अब लगता है सब सही हो गया है
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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कल रात शायद सौंवीं बार इस वेबसाइट को री-सेट किया गया है।
आशा है कि इसको "फ़िर से" री-सेट न करना पड़े और यह सुचारु रूप से चलने लगे।

(हाँलाकि इसी मैसेज को पब्लिश करने में पापड़ बेलने पड़ रहे हैं)

एक दिन देखता हूँ, सब सही रहा, तो अगले अपडेट्स कल :)
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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अपडेट 49


कोई दो घण्टे की नींद के बाद जब रूचि जागी तो उसने अपने सामने किरण जी को बैठे देखा। पहले तो आलस्य के मारे उसको समझ में नहीं आया कि कोई उनके सामने बैठा हुआ भी हो सकता है, लेकिन फिर उसको समझ में आया कि ‘माँ’ ही बैठी हुई हैं सामने। इस संज्ञान से एक ही पल में उसकी उनींदी अलसाई आँखों से सारी नींद और आलस्य फ़ुर्र कर के उड़ गया।

“माँ?”

कहते हुए रूचि ने कम्बल से अपने शरीर को ढँकने की असफ़ल कोशिश करी। लेकिन अजय कम्बल में लिपटा, कुछ इस तरह से लेटा हुआ था कि रूचि बहुत ढँक न सकी। लिहाज़ा वो अपने सीने को हाथों से और कमर के नीचे के हिस्से को कम्बल से ढँक सकी।

“शीईई...” किरण जी ने दबी हुई आवाज़ में उसको चुप हो जाने को कहा, “ये जाग जाएगा! सॉरी बेटे... आई नो मुझे इस समय यहाँ नहीं होना चाहिए... लेकिन क्या करूँ! तुम दोनों बच्चे इतने प्यारे लग रहे थे, कि मुझसे रहा नहीं गया...” किरण जी की आँखों में प्यार भरे आँसू झिलमिलाने लगे, “... और मैं यहीं बैठ गई! तेरी सासू माँ मूरख है।”

“नहीं माँ...” रूचि शर्माते हुए बोली, “ऐसे न कहिए! लेकिन आप...”

“सॉरी बेटे, जाती हूँ...” किरण जी ने उठते हुए कहा, “आई थी तुम दोनों को जगाने... क्योंकि नाश्ता तैयार हो रहा है। लेकिन... तुम्हारा अगर थोड़ा और सोने का मन हो, तो सो लो!”

“माँ... हम...” रूचि शर्म से गड़ी जा रही थी।

“बेटू मेरी,” किरण जी ने बड़े ही स्नेह और लाड़ से रूचि को समझाना शुरू किया, “ये तेरा ही घर है... देख... हमने तो तुम दोनों का रिश्ता मान लिया है... इसलिए तू हमारे लिए अब हमारी बेटी है। इसलिए ऐसे न शर्माओ।”

किरण जी ने उसको समझाते हुए कहा, “मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा है यह देख कर कि तुम यहाँ आराम से रह पा रही हो! ऐसे ही होना चाहिए भी! तेरा ही तो घर है यह...” फिर थोड़ा याद करते हुए, “मेरे जैसे नहीं... जब मैं ब्याह कर अपने ससुराल आई थी, तब तो मुझे एक सप्ताह ठीक से नींद ही नहीं आई थी!”

रूचि के मन में उनकी बात सुन कर एक विचार आया कि, ‘नई नवेली दुल्हन को नींद आये भी कैसे... अंकल जी (किरण जी के हस्बैंड और प्रशांत भैया के पिता, अनामि जी) ने सोने ही नहीं दिया होगा,’

अपने इस विचार पर उसको फिर से शरमा गई, लेकिन प्रत्यक्षतः वो बोली,

“माँ, आप जाईए नहीं! बैठिये न! ... मैं अभी डिसेंट हो जाती हूँ!” रूचि ने अपने सीने को अपनी हथेलियों से ढँकते हुए उठते हुए कहा। वो अभी भी अपनी ब्रा पैंटीज़ में ही थी।

“हा हा हा... अरे बच्चे, तू बहुत प्यारी और बहुत डिसेंट है! जानती है? माया भी अपनी सासू माँ के सामने ऐसे रह लेती है...” किरण जी ने रहयोद्घाटन किया, “ऐसे क्या, वो तो नंगू नंगू भी रह लेती है...”

“व्हाट!” रूचि को यकीन ही नहीं हुआ, “सच में माँ?”

“हाँ... और नहीं तो क्या?” किरण जी बोलीं, “हमारी किस्मत भी देखो... उसकी सास उसको बहू नहीं, बल्कि अपनी बेटी मानती हैं। और मैं भी तो यही चाहती हूँ कि हमारा रिश्ता भी सास बहू वाला नहीं, बल्कि माँ बेटी वाला हो!”

“ओह... माँ... आई ऍम सो लकी!”

“हम हैं लकी बेटे... देखो न, बिना कोई मेहनत किये तेरे जैसी प्यारी सी गुड़िया हमको मिल रही है...”

अपने लिए ‘गुड़िया’ शब्द सुन कर रूचि शर्म और बच्चों जैसी ख़ुशी से भर गई। सभी को प्यार की भूख होती है - जब प्यार मिलता है, तो सभी का मन होता है कि ‘और’ प्यार मिले। इससे किसी का मन नहीं भर सकता।

“माँ,” कह कर रूचि उठ कर किरण जी के गले से लग गई।

किरण जी को अच्छा लगा कि रूचि उनकी उपस्थिति में इतना सुरक्षित महसूस कर रही थी। रूचि के आने की सम्भावना से उनकी ममता पहले से ही अधिक उमड़ रही थी। लेकिन इस समय वो अपने शिखर पर थी।

“मेरी प्यारी बिटिया,” कह कर उन्होंने रूचि को अपने आलिंगन में कस कर भर लिया, “तू हमारी हो गई है, बस... सब अच्छा है! तू कुछ सोचा न कर! अब से अपने इस घर और उस घर में कोई अंतर न करना!”

इतनी देर में अजय भी जागने लगा था।

“माँ?”

“उठ गया बेटे?”

“यस मॉम!” अजय उनींदी आवाज़ में बोला।

“गुड! चलो अच्छा... जल्दी से तैयार हो जाओ, और आ जाओ दोनों नीचे...” किरण जी ने कहा, “माया बिटिया एकदम कुरकुरे पकौड़े बना रही है सभी के लिए!”

“दीदी भी न,” अजय ने उनींदी अवस्था में हँसते हुए कहा, “आराम से नहीं बैठ सकतीं!”

“अरे अच्छा है न,” किरण जी बोलीं, “बहुत क्रिएटिव काम होता है घर का काम काज करना... और माया बिटिया तो दक्ष है उसमें! उसको घर का काम पसंद भी तो है!”

“हाँ वो तो है,” अजय बोला, फिर मुस्कुराते हुए आगे बोला, “जीजू के मजे होने वाले हैं! बढ़िया स्वादिष्ट खाना खा खा कर मोटे हो जायेंगे!”

उसकी इस बात पर सभी को हँसी आ गई।

“वैसे,” कुछ सोचते हुए उसने आगे बोला, “मोटी तो दीदी भी हो जाएगी,”

“क्यों?” रूचि के मुँह से अनायास ही निकल गया।

“अरे, उनका बेबी भी तो होगा न!” अजय ने अपनी समझ का प्रदर्शन किया।

“अरे मूरख, उसको मोटा होना नहीं कहते,” किरण जी ने उसको समझाया, “और अगर कहते हैं, तो कहने दे! शायद दुनिया की हर औरत वैसा मोटा होना चाहेगी,”

अजय केवल मुस्कुराया, लेकिन रूचि के गालों पर शर्म की लालिमा चढ़ गई।

“हम्म्म,” अजय मुस्कुराते हुए बोला, “वैसे दीदी चाहती भी हैं कि उनको जल्दी से बेबी हो जाए!”

“अच्छा है,” किरण जी मुस्कुराईं, “लेकिन तुम दोनों किसी जल्दबाज़ी में मत आना! अभी बच्चे ही हो दोनों! ख़ूब मज़े करना... और साथ में जीने का आनंद लेना,”

अजय अपनी माँ की बात सुन कर उनसे लिपट गया।

“कैसी माँ हो आप,” अजय बोला, “बाकी सारी माँएँ अपनी बहुओं से कहती रहती हैं कि जल्दी से ख़ुशख़बरी दे दो, और आप हैं कि कहती हैं कि जल्दबाज़ी न करना,”

“तू ज़्यादा चपड़ चपड़ मत कर... तेरी शादी के लिए हाँ करी है, तू उसका शुक्र मना!” किरण जी ने अजय के कान खींचते हुए कहा, फिर रूचि की तरफ़ मुखातिब हो कर बोलीं, “बिटिया, तू अपने मन मुताबिक पढ़ ले, फिर ये सब कर लेना। हमको कोई जल्दी नहीं है!”

किरण जी की बात पर रूचि शर्म से गड़ गई।

“अरे बिटिया मेरी, माँ बनना तो बहुत ही बड़ा सुख है,” किरण जी ने लाड़ से रूचि के सर हाथ फिराते हुए कहा, “बच्चे को अपनी कोख में पालना और फिर उसको जन्म दे कर बड़ा करना... छोटा काम थोड़े ही है!”

रूचि भी यह सुन कर उनसे लिपट जाती है।

“ऐसे ही थोड़े न इतना बड़े बन गए हो तुम बच्चे...” किरण जी ने कहा, “इसीलिए कह रही हूँ कि तुम दोनों के पास समय है! पहले जीवन जीना सीख लो... थोड़े आनंद ले लो... और फ़िर मैं तो हूँ ही न!”

“माँ,” रूचि बोली, “यू आर टू गुड!”

“हूँ न?” किरण जी ने भी खिलवाड़ वाले अंदाज़ में कहा, “इसीलिए तो कहती हूँ... आराम से रहो! ये घर है तुम्हारा!”

“माँ,” अजय ने बाल-सुलभ चापलूसी वाले अंदाज़ में कहना शुरू किया।

“हम्म?” उसके बदले हुए अंदाज़ को सुन कर किरण जी को समझ में आ तो गया कि वो क्या चाहता है, लेकिन वो चाहती थीं कि अजय स्वयं बोले।

अजय ने मनुहारते हुए कहा, “कई दिन हो गए,”

“किस बात के?”

अजय ने मुँह बनाया,

“माँ,”

“क्या है रे?”

“थोड़ा दुद्धू पी लूँ?” अजय ने चापलूसी वाले अंदाज़ में कहा।

उसको सुन कर किरण जी को हँसी आ गई।

“हाँ पी ले... चापलूसी करने की ज़रुरत नहीं है,”

इतना सुनते ही अजय उत्साहित हो कर किरण जी के ब्लाउज़ के बटन खोलने लगा।

किरण जी ने रूचि को समझाते हुए बताया, “गुड़िया रानी, तुमको शायद अजीब लगे... लेकिन मेरे ये दोनों बच्चे मेरा दूध पीते हैं,”

“आई नो माँ,” रूचि ने थोड़ा हिचकते हुए कहा।

“सच में?”

“जी,” रूचि बोली, “अज्जू ने बताया था,”

किरण जी को विश्वास ही नहीं हुआ कि अजय ने ऐसी बात रूचि को बता रखी है। एक तरह से उनको यह जान कर अच्छा भी लगा कि उसने रूचि के कोई बात छुपाई नहीं है।

“तुमको अजीब नहीं लगा?”

“शुरू में लगा,” रूचि ने झिझकते हुए, लेकिन सच्चाई से कहा, “लेकिन जब मैंने सब जाना और समझा, तब नहीं! यू आर द बेस्ट मॉम!”

किरण जी मुस्कुराईं।

“सारी मम्मियाँ बेस्ट होती हैं बेटे,” वो मुस्कुराती हुई बोलीं, “अगर वो अपने बच्चों को प्यार दें, उनकी अच्छी देखभाल करें तो!”

तब तक उनकी ब्लाउज़ के बटन खुल चुके थे, और अजय किरण जी की ब्रा से उनके स्तन को निकालने की कोशिश कर रहा था। रूचि ने उसको रोक कर उनकी ब्रा का क्लास्प खोला और दोनों वस्त्रों को उतार कर उनके स्तनों को स्वतंत्र कर दिया, जिससे उनको दर्द न हो।

“देख और कुछ सीख,” किरण जी ने अजय से कहा, “तुझे बस अपनी पड़ी रहती है... और मेरी बिटिया को देखो, आते ही मेरे आराम के बारे में सोच रही है!”

“रूचि अच्छी है माँ,” कह कर अजय माँ के चूचक से जा लगा।
 

avsji

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अपडेट 50


“वो तो है ही!” किरण जी ने रूचि के गालों को सहलाते हुए पूछा, “तू भी पियेगी बेटू?”

रूचि को उम्मीद ही नहीं थी कि माँ उसके सामने ऐसी कोई पेशकश भी कर सकती हैं। मन में चाहे जो भी रहा हो उसके, लेकिन किरण जी के सामने उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“नहीं?” किरण जी को अचरज नहीं हुआ - रूचि एक सभ्य और शिष्ट लड़की थी। ऐसे कैसे वो पहली ही बार में किसी वस्तु के लिए हाँ कह दे? वो वस्तु भले ही कितनी भी लुभावनी क्यों न हो।

“मीठा मीठा है खूब,” उन्होंने रूचि को लुभाया।

“हाँ... सच में! बहुत मीठा है,” अजय ने भी माँ की बात का अनुमोदन किया।

रूचि ने देखा - किरण जी के जिस चूचक को अजय पी रहा था, उसके सिरे पर दूध की बूँद साफ़ दिखाई दे रही थी। लुभावना दृश्य! अजय वापस उस स्तन से जा लगा।

लोभ तो था ही रूचि के मन में - उसी दिन से जब उसने पहली बार अजय को माँ का स्तनपान करते हुए चुपके से देखा था - यह जानने का कि माँ का दूध पीना कैसा लगता है। अपनी माँ से कहने की हिम्मत न हुई, लेकिन दूसरी माँ हैं न! और वो उसको स्तनपान कराने को तत्पर भी हैं! उसकी नज़र माँ के दुग्धपूरित दूसरे चूचक पर पड़ी। उसके सिरे पर भी अब दूध की छोटी छोटी बूँदें उभर रही थीं। अनायास ही उसकी जीभ उसके निचले होंठ पर फिर गई। माँ को समझ में आ गया रूचि को भी दूध पीना है।

“आ जा...” उन्होंने वात्सल्य भरी कोमलता से कहा।

रूचि के लिए इतना प्रोत्साहन काफी था। अगले ही पल अजय के संग रूचि भी आ लगी किरण जी के स्तन से! रूचि ने एक दो बार चूसा तो सही, लेकिन उसको मन मुताबिक़ पारितोषिक नहीं मिला। यह समझ कर किरण जी ने स्वयं ही चूचक के निकट अपने स्तन को थोड़ा दबा दिया - अगले ही पल माँ के दूध की कई स्वस्थ धाराएँ रूचि के मुँह में फ़ौव्वारों जैसी फूट गईं। एक पल को वो चौंक गई, लेकिन अगले ही पल संयत हो गई।

“मिला दूध?” किरण जी ने पूछा।

रूचि ने चूचक को मुँह में लिए लिए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया और उसका स्वाद लेते हुए और उसको गटकते हुए एक संतोष भरी आवाज़ निकाली।

“गुड,” किरण जी बोलीं, “पी लो,”

रूचि ने महसूस किया कि माँ का दूध वाक़ई मीठा था! चीनी घुला जैसा मीठा नहीं, लेकिन उसमें एक प्राकृतिक मिठास थी। साथ ही साथ उसको जीभ पर एक क्रीमी एहसास भी हो रहा था - एक सौम्य, मुलायम सा चिकनापन! और उसका प्रभाव और भी आसाधारण था! रूचि को ऐसा लगा जैसे कि उसके मन मस्तिष्क पर किसी ने मलहम लगा दिया हो। अद्भुत सी शांति, गज़ब का संतुष्टि!

कोई पाँच मिनट तक स्तनपान करने के बाद दोनों संतुष्ट हो गए और माँ के स्तन खाली भी हो गए।

“हो गया बच्चों?” किरण जी ने पूछा।

“हाँ माँ,” अजय बोला और उनके स्तन से अलग हो गया।

“अच्छी बात है,” माँ बोलीं, “चल... जल्दी से तैयार हो कर नीचे आ जा!”

रूचि कुछ कह नहीं रही थी।

स्तनपान कर के उसको असीम संतोष मिला था, लेकिन साथ ही साथ उसको शर्म भी आ रही थी कि इतनी बड़ी हो कर बच्चों जैसी हरकतें कर रही थी! लेकिन अभी जो कुछ हुआ था उसके बारे में सोच रही थी - कैसी असंभव सी बात मूर्त हो गई आज! आज के समय में क्या ऐसी माताएँ होती हैं... माताएँ छोड़ो - क्या ऐसी सास भी होतीं हैं? असंभव! सास बहू के कैसे कैसे भयानक किस्से सुने थे उसने! भयानक किस्से कि कैसे दोनों एक दूसरे का जीवन तबाह कर देती हैं। लेकिन यहाँ तो वैसा कुछ भी नहीं हो रहा था। और, वो तो अभी उनकी बहू बनी भी नहीं थी, लेकिन फिर भी इतना स्नेह था उनके मन में उसके लिए! और स्नेह भी ऐसा कि उन्होंने उसको अपना अमृत भी पिला दिया था! उस पल में रूचि को महसूस हुआ कि उसकी एक नहीं, बल्कि दो दो माएँ हैं! उसने अपने मन में निश्चय किया कि वो भी इस घर की अच्छी बेटी बनेगी... और इस घर को वो पूरी तरह से अपना घर मानेगी!

किरण जी के अगाध प्रेम और स्नेह के बोध से रूचि की आँखें भर आईं।

“क्या हुआ बच्चे?” किरण जी ने उसकी आँखों में आँसू देख कर थोड़ा चिंतित होते हुए पूछा।

अजय भी चिंतित हो गया - कुछ समय पहले ही रूचि के सर में दर्द हो रहा था।

रूचि का गला भर आया था, इसलिए उसके लिए कुछ कह पाना कठिन हो रहा था। फिर भी उसने अपने भरे हुए गले से कहा,

“कुछ नहीं माँ... कुछ भी नहीं!”

“माँ,” अजय ने समझदारी दिखाते हुए कहा, “शायद रूचि थोड़ा इमोशनल हो गई,”

“चल... बड़ा आया समझदारी दिखाने वाला,” माँ ने उसको प्यार से झिड़की दी, फिर रूचि को अपने आलिंगन में भरते हुए बोलीं, “कुछ नहीं बच्चे... कुछ मत सोच!”

उन्होंने रूचि को कई बार चूमा, “तू हमारी बिटिया है... आराम से रह! जैसे तेरे मम्मी पापा का घर है, वैसे ही ये तेरे मम्मी पापा का घर है!”

रूचि मारे लाड़ के किरण जी के आलिंगन में भीतर तक घुस गई।

किरण जी ने महसूस किया कि रूचि की लगभग खुली हुई पीठ ठंडी हो गई थी।

“बेटू, कुछ पहन ले अब! नहीं तो ठण्ड लग जाएगी,”

अजय ने यह सुन कर कम्बल रूचि की पीठ पर डाल दिया।

“माँ,” रूचि ने झिझकते हुए कहा, “आप मेरी हेल्प देंगी?”

“हाँ... बोलो? क्या हेल्प चाहिए?”

“साड़ी पहनने में...”

“साड़ी क्यों पहननी है? कुछ और नहीं है?”

“शलवार कुर्ता है,”

“वही पहन लो... नहीं तो माया की टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहन लो!”

रूचि की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गईं, “सच में माँ? कैन आई रियली वियर शॉर्ट्स?”

“हाँ न! अरे! बुद्धूराम... इतना समझाया तो तुझे! तू हमारी बेटी है अब! अपने मन मुताबिक रह यहाँ...”

“थैंक यू माँ,” रूचि खुश होते हुए बोली।

“मन करे तो नंगू नंगू रह ले,” किरण जी हँसती हुई बोलीं, “हमको कोई प्रॉब्लम नहीं,”

“हाँ,” अजय इस सुझाव पर आनंदित हो गया।

“धत्त,” रूचि फिर से शर्मा गई, “माँ, अभी कुछ हल्का फुल्का पहन लेती हूँ... लेकिन शाम को आपकी या भाभी की हेल्प चाहिए होगी। आई वांट टू वियर साड़ी,”

“हाँ... अच्छी बात है! शाम को हम तीनों ही बढ़िया तमक-झमक के साथ तैयार होंगी!” किरण जी ने चटपटे अंदाज़ में कहा, “उसकी चिंता न कर।”

फिर किरण जी ने अजय से कहा, “बेटे, जा कर दीदी से कह कि रूचि बेटे को कुछ आरामदायक पहनने को दे... और स्वेटर या शॉल भी!”

“थैंक यू माँ!”

“चल, आई बड़ी थैंक यू कहने वाली!”

कह कर किरण जी चली गईं।

उनके जाने के बाद अजय ने रूचि से पूछा, “अब सर दर्द कैसा है?”

“बहुत आराम है।” रूचि की आवाज़ से ही लग रहा था कि वो वाक़ई बहुत चैन से है, “एकदम से रिलैक्स्ड!”

“गुड!”

“लगता है,” रूचि ने शैतानी वाली भाव लाते हुए कहा, “कि माँ का दूधू पीने के और भी रिलैक्स्ड हो गई हूँ!”

“आई नो!” अजय बोला, “तुमको क्यों लगता है कि दीदी और मैं अभी तक पी रहे हैं?”

रूचि मुस्कुराई, “तुम दोनों बहुत लकी हो!”

“हाँ... वो तो है!” अजय हँसते हुए बोला, “और सबसे लकी हूँ मैं... आई हैव द बेस्ट फादर, द बेस्ट मदर, द बेस्ट सिस्टर, एंड द बेस्टेस्ट वाइफ...”

“अभी तुम्हारी शादी नहीं हुई है बच्चू...” रूचि ने इठलाते हुए कहा, “अधिक न उड़ो!”

“सारा मज़ा तो शादी से पहले के इस चुपके चुपके वाले रोमांस का है,”

“हा हा हा...”

“वैसे,” अजय ने सोचते हुए कहा, “तुम वो चश्मा लगाओ ही मत... बेटर रहेगा,”

“हाँ... ठीक कह रहे हो। मुझे भी यही लगता है।”

दोनों बातें कर ही रहे थे कि माया रूचि के लिए आरामदायक कपड़े लिए कमरे में आई।

“ये लो भाभी,” माया ने कहा, “ऐसे चड्ढी बनियान पहने हुए इतनी ठंडक में मत बैठी रहो... सर्दी लग जाएगी!”

माया रूचि को छेड़ने का कोई अवसर नहीं छोड़ रही थी।

“चड्ढी बनियान...” कह कर अजय हँसने लगा।

“भाभी...” उधर रूचि झेंप गई।

“अरे... अपनी एक ही तो भाभी है... और वो हो तुम!” माया बोली, “अब तुमसे भी हँसी मज़ाक न करूँ, तो कैसे चलेगा!”

“लो कर लो बात,” अजय बोला, “पैट्रिशिया भाभी भी तो हैं!”

“हाँ हैं... लेकिन अमरीका में! और उनकी ज़्यादातर बातें मुझे समझ ही नहीं आतीं। तुम्हारे जैसी अंग्रेज़ी न मैं समझ पाती हूँ, और न ही बोल पाती हूँ! ... अब एक दूसरे को टुकुर टुकुर ताकने से हँसी मज़ाक थोड़े ही हो सकता है!”

माया की बात पर सभी को हँसी आ गई।

“हाँ ठीक है दीदी! कर लो हँसी मज़ाक!” अजय बोला, “लेकिन ये मज़ेदार बात है... तुम दोनों ही एक दूसरे की भाभी हो! लाइफ-लॉन्ग छेड़खानी चलेगी ऐसे तो,”

“हाँ तो?” माया बोली, “लेकिन एक बात तो है बाबू... माँ ने एकदम सही बात बोली है! तुम दोनों साथ में बहुत सुन्दर... बहुत प्यारे लगते हो!”

“थैंक यू दीदी!” अजय मुस्कुराया और रूचि भी।

“चलो अब जल्दी से नीचे आ जाओ। तुम दोनों का मनपसंद नाश्ता बना रही हूँ...”

“मैं भी आती हूँ भाभी... हेल्प करने!”

“अरे कर लेना... अब तो तुम इसी घर की हो! लेकिन आज हमको मेहमान नवाज़ी कर लेने दो!” माया ने हँसते हुए कहा, “आओ जल्दी!”

*
 

avsji

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अपडेट 51


दुनिया के लिए आज छोटी दिवाली रही होगी, लेकिन आज यहाँ बड़ी दिवाली ही मनाई जा रही थी। मन में जब ख़ुशियाँ होती हैं, तो हर दिन त्यौहार हो सकता है। वो गाना है न, ‘ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हों, दामन में जिसके, क्यों न ख़ुशी से वो दीवाना हो जाए...’! पिछले कुछ दिनों से सभी ख़ुश थे... ख़ुशियों के मारे दीवाने हो रहे थे। अजय समझता था कि एक बड़े हद तक अपने घर में आई इन नई खुशियों के वो स्वयं ही जिम्मेदार था। उसके मन के किसी कोने में यह डर ज़रूर बना हुआ था कि कहीं ऐसा न हो जाए कि पिछली ज़िन्दगी के दुःख, इस नई ज़िन्दगी के सुखों से बहुत जल्दी ही बैलेंस हो जाएँ! अगर ऐसा हुआ तो नए दुःखों का सामना करना पड़ेगा, जिसके लिए वो बिलकुल ही तैयार नहीं था। वो बस इतना चाहता था कि ईश्वर उसकी और परीक्षा न लें अब!

अशोक जी को भी अजय की सच्चाई पता थी - वो भी समझते थे कि माया और प्रशांत के जीवन की नई राह अजय के कारण ही निकली थी। उनको अपनी एलर्जी के बारे में पता चला था - वो भी अजय के कारण ही था। बिज़नेस में भीतरघात के बारे में भी अजय ने ही उनको आगाह किया था। उनको यह देख कर भी सुकून हो रहा था कि उनका बेटा अपने भविष्य से आने की बात का अनुचित लाभ नहीं ले रहा था। उसका सारा ध्यान केवल इस बात पर था कि कैसे भी कर के उसके परिवार को वो सब दुःख न देखने और झेलने को मिलें, जो उन्होंने देखे और झेले थे। ख़ास कर के भाभी (किरण जी) ने! इस बात ने भी उनका दिल जीत लिया था और अजय के लिए उनके मन में एक तरह का आदर भाव भी उत्पन्न हो गया था। वो भी चाहते थे कि वो अजय के लिए कुछ कर सकें।

हाँलाकि उन्होंने अभी तक अजय से रूचि के बारे में नहीं पूछा था, लेकिन वो जानते थे कि रूचि का उसके जीवन में आना, एक अप्रत्याशित घटना थी। वो तो अपनी किसी टीचर को पसंद कर रहा था... लेकिन उन्होंने ही उस पसंद की दिशा मोड़ दी थी। और अब देखो - रूचि एक तरह से इस परिवार की हो गई थी! बदलाव अनेकों तरीके से आ सकता है - इस बात की मिसाल यहाँ साफ़ दिखाई दे रही थी। रूचि उनको पहली ही नज़र में बहुत भली लगी। प्यारी सी, सौम्य सी लड़की थी वो, और बुद्धिमान भी! अशोक जी को दोनों की कम उम्र को ले कर थोड़ी चिंता ज़रूर थी, लेकिन वो चाहते थे कि अजय का जीवन भी थोड़ा निश्चित हो सके। अच्छा जीवन साथी होता है, तो जीवन स्वर्ग बन जाता है। रूचि को देख कर, उससे बातें कर के उनको महसूस होता था कि वो अजय के जीवन को ठहराव दे सकती थी... एक निश्चितता दे सकती थी, जिसकी अजय को आवश्यकता थी! उसके बदले में वो रूचि को ऐसा परिवार देना चाहते थे जो - अगर संभव हो - उसको उसके स्वयं के माँ बाप से अधिक प्यार कर सके। देखा जाए तो यह रिश्ता, अजय और रूचि दोनों ही के लिए एक लाभकारी सौदा था, जिसमें दोनों तरफ से ही प्रेम का निवेश किया गया था!

आज शाम की पूजा के लिए माया और रूचि दोनों ही नई नवेली दुल्हनों की ही तरह तैयार हुई थीं। आज कमल भी आमंत्रित था, लिहाज़ा माया ने अपनी तरफ़ से कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी थी। अब तक माया ने, अजय को अपने मन से पूरी तरह से स्वीकार कर लिया था। राणा खानदान की बहू बनने के लिए वो अब पूरी तरह से तैयार थी। यह अच्छी बात हुई थी कि दोनों की शादी शीघ्र ही करने का निर्णय ले लिया गया था, अन्यथा नाहक ही दोनों के संभावित वैवाहिक समय का व्यय होता। वो अजय और रूचि के लिए भी चाहती थी कि दोनों जितनी जल्दी हो सके, विवाह के बंधन में बंध जाएँ! उसके जाने के बाद किरण जी को उसकी कमी बहुत खलने वाली थी - वो कमी रूचि पूरी कर सकती थी।

उधर रूचि के चेहरे पर आज एक अनोखी चमक थी। अपनी साड़ी में सलीक़े से लिपटी हुई वो बेहद सुंदर लग रही थी। किरण जी और माया ने उसको अच्छे से सजाया था। वो ना-नुकुर करती रही, लेकिन किरण जी ने अपने गहनों में से कुछ गहने निकाल कर उसको पहना दिया था। इस प्रकार सजी-धजी वो बेहद सुन्दर लग रही थी - सच में जैसे वो कोई नई नवेली दुल्हन हो! उसकी साज सज्जा का प्रभाव जिस पर पड़ना चाहिए था, उस पर समुचित ढंग से पड़ रहा था। अजय बार-बार रूचि की ओर ही देख रहा था, लेकिन परिवार की मौजूदगी में वो अपने मन पर नियंत्रण करने को मजबूर था। रूचि भी यह देख रही थी और अजय के मनोभावों को समझ भी रही थी। दोनों परिवारों द्वारा उनके रिश्ते की स्वीकृति ने उसके दिल में एक सुखद सा भाव उकेर बाँध दिया था। किरण जी और अशोक जी की आँखों में... व्यवहार में अपनी होने वाली बहू के लिए अपार स्नेह था, और माया की चंचल छेड़खानी ने रूचि को एक पल भी ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि वो इस परिवार से अलग है।

फिलहाल सभी कमल के आने का इंतज़ार कर रहे थे। अशोक जी ने आज के लिए एक प्रोफेशनल फ़ोटोग्राफर का बंदोबस्त भी किया हुआ था कि ऐसे शुभ अवसर पर पूरे परिवार की साथ में तस्वीर ली जा सके। पूरा परिवार... मतलब, ‘लगभग’ पूरे परिवार की! शाम को कमल समय पर आ गया। अशोक जी और किरण जी पहले कमल को केवल अजय के एक अनन्य मित्र जैसा देखते थे, लेकिन हालिया समय में उसका ओहदा पूरी तरह से बदल गया था। दामाद को तो ख़ैर वैसे भी ससुराल में बहुत आदर सम्मान मिलता है। दोनों ने ही समझा कि अजय ने क्यों कमल को चुना था अपनी दीदी के लिए! वो सच में बहुत अच्छा लड़का था - सभ्य और सुसंस्कृत! दोनों ही समझते थे कि उसको माया के साथ बहुत प्रेम भी है। उसका परिवार भी ऐसा था जैसा बहुत कम लोगों को ही मिलता है। अगर वो स्वयं कोशिश करते, तो इससे अधिक वो और क्या ढूँढ लेते? अशोक जी जानते थे कि माया की शादी सही नहीं हुई थी - कम से कम वो चिंता तो नहीं थी अब उनके मन में।

खैर, कमल के आने पर पूरे परिवार की तस्वीरें ली गईं, और फिर अशोक जी और किरण जी के अगुवाई में शाम की पूजा करी गई। अजय और रूचि, और कमल और माया ने पूजा में किसी विवाहित जोड़े की ही तरह भाग लिया। लोग अक्सर छोटी दिवाली पर बड़ी दिवाली की तरह साज सज्जा नहीं करते - लेकिन यहाँ आज की रात भी पूरे घर भर में दीयों की रोशनी बिखर रही थी और साथ ही साथ इलेक्ट्रिक लाइटिंग की भी! सबने मिल कर कुछ देर तक आतिशबाज़ी का आनंद लिया और उसके बाद स्वादिष्ट भोजन का! रात गहरी होने तक घर में हँसी-खुशी का माहौल रहा। ख़ैर, कोई साढ़े नौ बजे कमल वापस चला गया। जाते जाते अशोक जी और किरण जी ने उसको दिवाली के लिए एक भेंट भी दी - लिफ़ाफ़े में कुछ रुपये! करीब दस बजते बजते अशोक जी और किरण जी ने भी बच्चों से विदा ली और अपने अपने कमरों में सोने चले गए। माया भी बस पाँच मिनट तक अजय और रूचि के संग बैठी रही, फिर वो भी चली गई। जाते जाते उसने अजय और रूचि को आँख मार कर ‘मज़े करने का’ संकेत दिया।
 

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“सबसे अच्छी दीवाली है आज,” रूचि ने कहा, “आई ऍम सो हैप्पी टुडे!”

“गुड! आई ऍम सो हैप्पी टू नो दिस!” अजय मुस्कुराया, फिर ठहर कर बोला, “सभी चाहते हैं कि हमारी शादी जल्दी से हो जाए!”

“तुम क्या चाहते हो?”

“जो तुम चाहो, बस वही मेरी भी चाह है!”

“बोर्ड एक्साम्स के बाद... मे (मई) जून में कर लें? तुम भी थोड़े एडल्ट हो जाओगे तब तक...” रूचि ने अजय को छेड़ा।

अजय आश्चर्य और उत्साह से मुस्कराया, “सही में? यू सीरियस? और पढ़ाई?”

“अज्जू, क्या विदेशों में कॉलेज गोईंग लड़के लड़कियाँ रिलेशनशिप में नहीं होते? क्या उनकी शादी नहीं होती?”

“होती है...”

“तो फिर अगर हमारी भी हो गई, तो क्या प्रॉब्लम है?” रूचि ने लगभग इठलाते हुए कहा, “मुझे तो कोई प्रॉब्लम नहीं है!”

अजय मुस्कुराया।

“कम से कम, आई विल हैव अ स्टेडी बॉयफ्रेंड!”

“बॉयफ्रेंड?”

“हा हा हा हा! अच्छा बाबा, हस्बैंड ही सही! बाद में बॉयफ्रेंड या हस्बैंड ढूंढने के झंझट से छुटकारा मिलेगा न!”

“हाँ! वो तो है,”

“ओये,” अजय को यूँ छोटी छोटी बातें करते सुन कर रूचि थोड़े बनावटी अंदाज़ में बोली, “तू करेगा न मुझसे शादी? या कोई सेकंड थॉट्स हैं मन में?”

अजय उसकी बात पर हँसने लगा, “रूचि, तुमसे बेहतर और कोई नहीं है मेरे लिए! मुझे तुमसे बहुत मोहब्बत है... ऑब्वियस्ली आई विल मैरी यू!” फिर समझाते हुए आगे बोला, “लेकिन बात दरअसल ये है कि तुम इतनी सुन्दर लग रही हो, कि मैं खो गया हूँ तुम्हारी सुंदरता में,”

उसकी बात साधारण सी थी, लेकिन रूचि के पूरे शरीर में लज्जा की लहर दौड़ गई।

“आई लव यू सो मच, रूचि!” अजय बोल रहा था, “एंड आई ऍम सो लकी कि तुम मेरे संग हो,”

“मैं भी,” रूचि बोली, और फिर अचानक से ही दोनों के होंठ एक प्रबल चुम्बन में जुड़ गए।

चुम्बन की पहल किसने करी, यह कहना कठिन है, लेकिन उस चुम्बन में दोनों की भागीदारी समान लग रही थी। कुछ ही देर में अजय के हाथ रूचि के ब्लाउज़ के ऊपर से उसके स्तनों पर आ टिके। यौवन का ठोस एहसास!

“ओह गॉड,” उसके मुँह से निकल गया।

“क्या हुआ?” रूचि ने पूछा।

“यार... बहुत सॉलिड हैं ये!”

रूचि मुस्कुराई, “बदमाश!”

“अरे! बदमाश क्यों?”

“तुम लोगों का मन यहीं अटका रहता है लगता है,”

“तुमको नहीं पसंद हैं ब्रेस्ट्स?” अजय ने उसके ब्लाउज़ के बटन खोलते हुए कहा।

“मेरे पास तो हैं... इनको क्या पसंद या नापसंद करना?”

“मुझे तो बहुत पसंद हैं,” अजय ने बताया, “माँ के, दीदी के, तुम्हारे...”

“भाभी के भी देखें हैं?” रूचि ने अविश्वास से पूछा।

“हाँ... कई बार! दीदी तो मुझे नहला भी देती है कई बार,”

“हाँ, लेकिन तुमने भाभी के ब्रेस्ट्स कब देख लिए?”

“वो भी साथ ही नहा लेती हैं मेरे...”

“ऐसे? नंगू नंगू?”

“हाँ,” अजय ने ऐसे कहा जैसे यह वाक़ई कोई मामूली बात हो।

“हम्म्म्म... बढ़िया है... घर में सबसे छोटे होने के बड़े सारे फ़ायदे हैं!” अब तक रूचि को अजय और उसके परिवार में उसकी स्थिति के बारे में बहुत कुछ पता चल गया था। वो यह भी जानती थी कि अजय उससे झूठ नहीं कहेगा। लिहाज़ा, उसको बहुत आश्चर्य नहीं हुआ, “सौ ख़ून माफ़ हो जाते हैं,”

“इसमें क्या ख़ून? दीदी है वो मेरी!”

“येप!”

तब तक रूचि की ब्लाउज़ के सभी बटन खुल गए थे। उसकी ब्रा के ऊपर से ही अजय ने उसके स्तनों को सहलाया। उन अभूतपूर्व अंगों के सौंदर्य में जैसे वो खो गया था कुछ देर के लिए!

“तुम्हारा गिफ़्ट भी बचा हुआ है जानू...” वो मंत्रमुग्ध सा बोला।

“वो तो चाहिए...” रूचि मुस्कुराई।

अजय उसकी ब्रा उठा कर उसके स्तनों को प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहा था।

“अज्जू,”

“हम्म?”

“बिना तकलीफ़ दिए तुमको ब्रा उतारना नहीं आता क्या?”

“ओह सॉरी,”

“हाँ... यू मस्ट बी पेशेंट,” रूचि ने उसके गले में बाहें डालते हुए कहा, “मैं कहीं भागी थोड़े ही जा रही हूँ!”

“सॉरी, मेरी प्यारू,”

“डोंट वरी अबाउट इट मेरी जान,” रूचि ने उसको चूमते हुए कहा, “आई वांट यू टू बी हैप्पी... लेकिन मुझे भी तो हैप्पी होना चाहिए, है न!”

“यस,” कह कर अजय ने रूचि की कमर में बाहें डाल कर, उसको अपने आलिंगन में भर कर, उसके होंठों को चूम लिया।

“देयर यू गो...” रूचि ने उसकी इस हरकत का अनुमोदन करते हुए कहा।

दोनों जब पुनः चुम्बन में लिप्त थे, तब अजय ने रूचि की ब्रा का क्लास्प खोल कर उसकी ब्रा ढीली कर दी और उसके स्तनों को अनावृत कर के हथेलियों से उनका मर्दन करने लगा। उसके चूचक, जो पहले से ही उत्तेजनावश खड़े हो गए थे, इस समय और भी अधिक कठोर हो कर उसकी हथेलियों में चुभने लगे थे। रूचि की आँखें बंद हो गईं - उसको अपने कोमल और संवेदनशील चूचकों और स्तनों पर अजय की अपेक्षाकृत सख़्त हथेलियों का अनुभव बहुत अलग सा महसूस हो रहा था।

अब चूँकि रूचि के चूचक तन कर कड़े हो गए थे, तो अब उनको बिना मुँह में लिए रहा नहीं जा सकता था। अजय ने पहले तो बारी बारी से उसके दोनों चूचकों को चूमा, फिर एक चूचक पर अपने होंठ रख कर कुछ इस तरह चूसा कि वो स्वतः ही उसके मुँह में समां गया। उत्तेजना के कारण रूचि के स्तनों की संवेदनशीलता कई गुणा बढ़ गई थी। अजय के होंठों और मुँह का स्पर्श मिलते ही सनसनी की एक तीव्र लहर उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। उसको पता था कि क्या होगा - उसने मन ही मन इसकी तैयारी भी करी थी। लेकिन कल्पना और सच्चाई में बड़ा अंतर होता है। रूचि के दिल की धड़कनें अचानक से ऐसे बढ़ गईं जैसे किसी ने गाड़ी के एक्सेलेरेटर को ज़ोर से दबा दिया हो।

पूजा वाले दिन - जब रूचि ने अजय को प्रोपोज़ किया था - के बाद, अब यह अवसर पुनः आया था कि रूचि और अजय एक दूसरे के सामने फिर से नग्न हो सकें। जैसे जैसे रूचि के शरीर से कपड़े उतर रहे थे, उसके शरीर में सिहरन बढ़ रही थी - लेकिन यह सिहरन ठंडक के कारण नहीं थी। यह सिहरन थी उसकी बढ़ती हुई उत्तेजना के कारण! जब अजय के होंठ उसके चूचकों पर जुम्बिश कर रहे थे, तब उत्तेजना के मारे रूचि उसकी कॉलर को ज़ोर पकड़ कर उसको खुद में समेट रही थी। अजय भी पूरे जोश में आ कर रूचि के स्तनों को अपनी हथेलियों में दबा कर उसके चूचकों को चूस रहा था। माहौल अचानक से ही विद्युतीय बन गया।

“अ...जू...” रूचि की साँसें लड़खड़ाने लगीं, “ओह्ह...”

पिछली बार भी यही हुआ था - यह सब शुरू हुए समय नहीं हुआ था, लेकिन उसको लग रहा था कि जैसे कितना समय बीत गया! पिछली बार वो घबराई हुई थी, लेकिन इस बार वो अधिक संयत थी और उसको पता था कि उसके संग क्या होने वाला है। इसलिए रूचि भी अजय के अवधान का पूरा आनंद उठा रही थी।

दोनों कुछ बोल नहीं रहे थे।

“इनका नाम रखना चाहिए,” अजय ने अचानक से स्तनपान करना रोक कर कहा, “इतने सुन्दर सुन्दर हैं दोनों... ब्रेस्ट्स या दूधू कह कर बुलाना ठीक नहीं है...”

स्तनपान रुकने पर रूचि की साँस में साँस आई। लेकिन अजय की बात सुनते ही उसकी हँसी छूट गई। सच में, ऐसे अंतरंग अवसरों पर वो ऐसी मज़ाकिया बातें कैसे कर लेता है?

“क्या नाम रखना है आपको इनका, ठाकुर साहब?”

जब वो हँस रही थी, तो उसके दोनों स्तन बड़े ही क्यूट तरीके से हिल रहे थे - ठोस स्तन, लेकिन फिर भी कैसा अद्भुत सा लचीलापन!

“मालपुआ...”

“हा हा हा हा हा!” रूचि चाहती तो नहीं थी लेकिन इस अनोखे से नाम पर उसको ज़ोर से हँसी आ गई, “मैं फ्लैट-चेस्टेड हूँ?”

उसने बड़े प्यारे तरीक़े से शिकायत करी।

“नहीं... सॉरी सॉरी! एक्चुअली, ये जूसी जूसी और मीठे मीठे हैं न, इसलिए!” अजय ने सफ़ाई दी, “... अच्छा तुमको पसंद नहीं आया तो... उम्म्म (सोचते हुए)... मैं इनको... उम्म्म... ‘रसबड़े’ कहूँगा,”

“हैं?” रूचि ने यह कभी सुना नहीं था, “रसबड़े? ये क्या होते हैं?”

“अरे! तुमको नहीं पता?”

रूचि ने फिर से बड़ी अदा दिखाते हुए ‘न’ में सर हिलाया।

अजय ने उसके होंठों को चूमा, और फिर बोला, “मूँगदाल से बनाई जाती है यह मिठाई... स्वाद में रसगुल्ला या गुलाब जामुन जैसी... नहीं... एक्चुअली, उनसे बेटर!”
 

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“हम्म्म... मतलब ये दोनों आपकी मिठाईयाँ हैं?”

“हाँ! और नहीं तो क्या!” अजय ने फिर से उसके दोनों स्तनों को अपनी दोनों हथेलियों में ले कर दबाया, “बाकी लोग इनको आम बोलते हैं... मैंने इनको मिठाई बोला! क्या गलत किया?”

रूचि खिलखिला कर हँसने लगी, “कुछ गलत नहीं किया ठाकुर साहब!” फिर थोड़ा ठहर कर, “बाकी लोगों का बहुत पता है आपको!”

लेकिन अजय ने उसको अनसुना कर दिया।

“बहुत सुन्दर! ब्यूटीफुलेस्ट...” अजय ने पहली बार इस्तेमाल किया हुआ शब्द दोबारा इस्तेमाल किया, “तुम वाक़ई बहुत सुन्दर हो मेरी जान! आई ऍम सो लकी टू हैव यू एंड योर लव इन माय लाइफ,” उसने आगे जोड़ा।

रूचि के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान फ़ैल गई।

अजय वापस उसके स्तनों को बारी बारी से पीने लगा। इस बार थोड़ा अधिक अधीरता से। कुछ ही पलों में पहले की ही भाँति रूचि के शरीर में एक अनियंत्रित कम्पन होने लगा। अजय ने भी महसूस किया कि रूचि बेचैन हो कर तड़प रही थी, मचल रही थी।

“क्या हुआ जान?”

“अ...जू” रूचि ने हाँफते हुए कहा, “डोंट स्टॉप्प...फ़,”

तब अजय को समझ आया कि दरअसल रूचि को आनंद अनुभूति हो रही थी... और शायद ओर्गास्म भी!

बढ़िया बात है - उसने सोचा और वापस उसके चूचकों को चूसने लगा - इस बार और भी बलपूर्वक! कुछ ही क्षणों में रूचि के ओर्गास्म का शिखर आ गया। इस बार अजय की समझ के कारण रूचि आनंद के शिखर पर अधिक देर तक रही। उसका मुँह खुल गया था और आँखें बंद हो गईं थीं! साँस की कमी को पूरा करने के लिए उसके नथुने फड़क रहे थे! रूचि का वो रूप अजय को इतना सेक्सी लगा कि उसका मन हुआ कि यह क्षण यहीं थम जाए और रूचि की इसी रूप में एक संगमरमर की प्रतिमा गढ़ दी जाए! बढ़े हुए रक्त-प्रवाह के कारण रूचि के शरीर पर लालिमा की एक प्राकृतिक और पतली सी ओढ़नी चढ़ गई!

“क्या हुआ?”

“समथिंग... समथिंग स्ट्रेंज! स्ट्रेंज बट गुड... एक्स्टैडिक!”

रूचि बोली - उसकी आँखें अभी भी बंद थीं, और वो अभी अभी संपन्न हुए ओर्गास्म की उदात्त लहरों पर हिचकोलें भर रही थी। उसके होंठ सेक्सी रूप से खुले हुए थे और उन पर एक संतोषजनक स्निग्ध मुस्कान भी थी। अजय उसको यूँ देख कर मुस्कुराया। जिनसे मोहब्बत होती है, उनको ख़ुश देख कर खुद को भी ख़ुशी होने लगती है।

“ओह अज्जू,” रूचि ने जब आँखें खोलीं, तो सीधा अजय की आँखों से जा मिलीं, “यू आर ऑस्सम,”

“अच्छा लगा?”

“इतना कि बता नहीं सकती,” वो शरमाते हुए बोली, “... और... और... हमने अभी तक... अभी तक...”

कहते कहते वो रुक गई, लेकिन अजय समझ गया,

“आई नो, राईट!” अजय ने कहा, “बर्थडे पर आना... तब!”

“सही में?”

“हाँ... बर्थडे पर कुछ तो सुपर स्पेशल गिफ़्ट होना चाहिए न?” अजय ने अपनी तर्जनी के रूचि के चूचक को छेड़ते हुए कहा।

“जी ठाकुर जी,” रूचि भविष्य की कल्पना कर के शर्म और उत्तेजना से काँप गई, “... लेकिन अभी?”

“अभी कुछ नहीं,” अजय ने सामान्य तरीके से कहा, “सो जाते हैं?”

“अज्जू, तुम्हारा मन नहीं होता?”

“क्यों नहीं होता! बहुत होता है।” वो हँसते हुए बोला, “टीनएजर हूँ... माय हॉर्मोन्स आर पीकिंग!”

“तो फिर...”

“तो फिर कुछ नहीं रूचि,” अजय ने निष्कपटता से कहा, “भाग भाग कर कुछ नहीं करेंगे। आई लव यू, एंड आई वांट तो लव यू द वे यू डिज़र्व,”

“एंड व्हाट डू आई डिज़र्व?”

“एकदम फुर्सत से, पूरे डिटेल में... देर तक,” कहते कहते अजय के चेहरे पर शैतानी चमक आ गई।

उसकी बात सुन कर रूचि के गालों पर वापस शर्म की लालिमा आ गई।

“तुम बहुत बदमाश हो,” वो बोली, “बट दैट इस समथिंग टू थिंक अबाउट... आई विल वेट फॉर इट!”

“आई लव यू,”

“आई डू टू... मोर दैन यू नो,”

दोनों एक बार फिर से चुम्बन में लिप्त हो गए।

“... अब मेरा गिफ़्ट दो,” वो अदा से, चहकते हुए बोली, “इतनी देर से मुझको झाँसा दे रहे हो,”

इस बात पर दोनों फिर से हँसने लगे।

अजय हँसते हँसते उठा और जा कर रूचि के लिये लाए हुए अधोवस्त्रों का सेट ले आया। इस बीच रूचि ने अपने सारे कपड़े उतार दिए थे। पूर्ण नग्न हो कर वो किसी अलौकिक अप्सरा के समान लग रही थी।

“रूचि?”

रूचि को नितांत नग्न अवस्था में देख कर अजय हतप्रभ रह गया और बस इतना ही कह सका।

“मैं अच्छी नहीं लग रही हूँ क्या?” रूचि ने चंचल कौतूहल से पूछा।

“अरे बहुत अच्छी,” अजय बोला, “कण्ट्रोल नहीं हो पायेगा मेरी जान! लेकिन सोचो ज़रा, जब अप्सराओं के हुस्न से साधू महात्माओं का खुद पर से कण्ट्रोल छूट गया, तो मैं किस खेत की मूली हूँ?”

“हा हा हा हा,” रूचि के ठहाके छूट गए, “अज्जू...! तुम बहुत अच्छे हो!”

“ओह रूचि! ओन्ली आई नो, हाऊ आई कण्ट्रोल माइसेल्फ, व्हेन यू आर लाईक दिस,”

“तो कण्ट्रोल क्यों कर रहे हो?”

“बताया न मेरी जान,”

रूचि का अंदाज़ अचानक से शोख चंचल लड़की से इमोशनल वाला हो गया - उसकी आँखों में पानी भर आया, लेकिन आँसू नहीं निकले। उसने अजय को अपने आलिंगन में भरते हुए कहा,

“अज्जू... तुम... आई ऍम सो लकी! तुम मिले मुझे, तुम्हारा परिवार - माँ पापा दीदी भैया - ये सभी मिले मुझे! इतना प्यार... इतनी केयर... इतनी... इतना सब कुछ!” कहते कहते उसका गला भर आया, “कुछ तो अच्छे काम किये होंगे मैंने,”

“तुम कुछ गलत कर ही नहीं सकती रूचि,” अजय ने उसके गालों को चूमते हुए कहा, “इसलिए अच्छे काम मैंने किए होंगे... बट आई वांट अस टू वेट फॉर सम टाइम,”

“हैप्पिली, माय लव... वैरी हैप्पिली,” रूचि बोली, “... एंड ईगरली... अपने घर आए बिना चैन नहीं आने वाला अब मुझे!”

“जल्दी ही मेरी जान,” अजय मुस्कुराया, “और ये रहा तुम्हारा गिफ़्ट,”

रूचि ने बड़े सहेज कर वो अधखुला पैकेट अपने हाथों में लिया, उसको चूमा, उसको अपने सर आँखों पर लगाया और अजय के सामने ही उसको पहनने लगी। अजय रूचि के इस तरह की निष्ठा-प्रदर्शन को देख कर दंग रह गया, लेकिन उसने कहा कुछ नहीं। शायद रूचि के यह अपना ही तरीका था उसके साथ या उसके परिवार के साथ अपना प्रेम, अपना जुड़ाव दिखाने का! कुछ ही देर में वो स्किन कलर के, स्ट्रेच साटन और लेस के ब्राइडल लॉन्ज़रे सेट पहने उसके सामने खड़ी थी। अचानक से देखने पर ऐसा नहीं लग रहा था कि उसने कुछ पहना भी हुआ था - लॉन्ज़रे सेट और उसके शरीर का रंग ऐसा घुल मिल गया था! लेकिन इस बात का प्रभाव अभूतपूर्व था - रूचि न केवल बेहद सुन्दर लग रही थी, बल्कि वो बेहद कोमल और सुकुमार भी लग थी -- जैसे वो कोई नवविवाहित कन्या हो!

“सो ब्यूटीफुल...” अजय मंत्रमुग्ध सा हो कर बोला।

रूचि मुस्कुराई - वो समझ रही थी कि अजय पर उसके सौंदर्य का क्या असर हो रहा था। उसकी पैंट में सामने की तरफ़ जो टेंट बन रहा था, वो रूचि से छुपा न रह सका। उसको इस संज्ञान पर अभूतपूर्व आनंद भी आया और शर्म भी!

“ओह गॉड... सो ब्यूटीफुल!”

“अज्जू?” रूचि ने दो पल चुप रहने के बाद कहा।

“हम्म?”

“आर यू फ़ीलिंग एक्साइटेड?” उसने अजय से पूछा।

“आई ऍम!” उसने माना।

“सेक्सुअल एक्साइटमेंट?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“उसको शांत नहीं करना है?”

“अभी?”

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और हाथ बढ़ा कर वो अजय की पैंट खोलने लगी। कुछ समय में जब उसकी पैंट और चड्ढी उतर गई, तो उसका उत्तेजित लिंग रूचि के सामने था।

“मैं कर दूँ?”

“नहीं रूचि,” अजय एक गहरी साँस भरते हुए बोला, “आई कैन वेट!”

रूचि ने उसको कुछ पल देखा, फिर भाव-विह्वल हो कर उसने अजय को अपने गले से लगा कर उसके होंठों पर एक ज़ोरदार चुम्बन दिया।

“ये किसलिए?”

“ये? ये था... फॉर बीईंग द बेस्ट एवर... द बेस्टेस्ट ‘वुड बी’ हस्बैंड होने के लिए!”

अपनी इस क़दर बढ़ाई सुन कर अजय खुश हो गया।

कुछ पल चुप रहने के बाद,

“कुछ नहीं करना है तो सो जाओ,” रूचि ने सुझाया।

“और तुम?”

रूचि झिझकती हुई मुस्कुराई।

“क्या हुआ?”

“माँ के पास से हो कर आती हूँ,”

“ओके,” अजय ने उसका अभिप्राय न समझते हुए कहा।

“अज्जू?”

“हम्म?”

“क्या माँ मुझको फिर से...” वो झिझकते हुए बोली, “... फिर से... आई मीन...”

“माँ का दुद्धू पीना है?” अजय समझ गया कि रूचि क्या चाहती है।

“हाँ... बहुत मन है! लास्ट टाइम कितना अच्छा लगा था,”

“तो जाओ न... जल्दी से,” अजय ने सुझाया, “नहीं तो माँ सो जाएँगी,”

“सही में?” रूचि बोली, “आई मीन, जाऊँ?”

“अरे यार, माँ ने तुमसे कहा तो है न कि यहाँ अपने घर जैसे ही रहो... उनको अपनी ही माँ मानो...” अजय ने उसको समझाते हुए कहा।

“हाँ, कहा तो है ये सब उन्होंने...!”

“तो फिर इतना क्या सोच रही हो?” अजय ने उसको उकसाया, “जाओ न उनके पास! अब तो तुम्हारा हक़ भी है!”

“सच में?” रूचि अभी भी थोड़ा दुविधा में थी, “वो बात यह है कि... इट इस जस्ट दैट... कि मुझे बहुत सुकून मिला था माँ का दूधू पी कर,”

“हाँ तो माँ से कह दो न!” अजय हँसते हुए बोला, “... वो तुमको क्यों मना करेंगी?”

“ओके, तो मैं उनके पास हो कर आ जाऊँ?” रूचि थोड़ा संयत हुई।

“हाँ, आई विल वेट!”

रूचि भी उठ कर किरण जी के कमरे की तरफ़ चल दी। उसके जाने के बाद अजय अपने कमरे में चला गया और कपड़े इत्यादि बदलने लगा।

*
 

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अपने कमरे के दरवाज़े पर दस्तख़त सुन कर किरण जी बोलीं,

“आ जाओ... खुला है,”

रूचि ने देखा कि माँ एक पुस्तक पढ़ रही थीं।

रूचि को भीतर आते देख कर किरण जी बोलीं, “अरे बेटे, क्या हुआ? सब ठीक है?”

रूचि कुछ बोली नहीं, बस जल्दी से आ कर किरण जी के आलिंगन में दुबक गई। एक तो रूचि ब्लाउज़ और पेटीकोट पहने हुए थी, और ऊपर से वो ऐसे दुबक कर किरण जी आलिंगन में छुप गई थी, तो उनको आशंका हुई कि कहीं अजय ने उसके संग कुछ कर तो नहीं दिया!

“सॉरी माँ,” उनसे दुबकी हुई वो बोली, “आपको इस टाइम पर डिस्टर्ब किया,”

“अरे बेटू... ऐसे क्यों कह रही है?” उन्होंने थोड़ा चिंतित होते हुए पूछा, “अज्जू ने कुछ कहा?”

रूचि ने ‘न’ में सर हिलाया।

“कुछ किया उसने?”

“नहीं माँ!” रूचि ने उनके भीतर दुबके हुए कहा।

“क्या हुआ बच्चे? मम्मी की याद आ रही है?” किरण जी थोड़ा चिंतित होते हुए बोलीं।

रूचि ने ‘न’ में सर हिलाया, और बोली, “माँ, आपने इतने कम टाइम में इतना सब दे दिया मुझको, कि क्या कहूँ...”

“अरे! ये क्या क्या कह रही है तू?” किरण जी ने दुलार से रूचि को अपने अंक में दुबकाते हुए कहा, “इतनी सयानी हो गई है तू मेरी बेटू?”

रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया, “बिल्कुल भी नहीं माँ,”

“हा हा हा!”

“लेकिन माँ... जो सच है, वो सच है!” वो संजीदगी से कह रही थी, “आप मिलीं... पापा मिले... भाभी मिलीं... और अज्जू जैसा हस्बैंड... इतनी खुशियाँ मिलीं! इस पर मैं क्या शिकायत करूँ?”

किरण जी ने उसको अपने से और दुबका लिया।

“मम्मी पापा दोनों ने मुझे बहुत अफ़ेक्शन से पाल पोस कर बड़ा किया है,” रूचि कह रही थी, “लेकिन आप लोग... आई नो मुझे यहाँ और भी प्यार मिलेगा! आलरेडी मिल रहा है,”

“तो फिर? क्या हुआ मेरी नन्ही चिड़िया को?”

“माँ,” रूचि ने बिना भूमिका बाँधे, लेकिन थोड़ा नखरे वाले अंदाज़, थोड़ी दबी आवाज़ में कहा, “मुझे दूधू पीना है,”

एक पल को किरण जी बात सुन कर अवाक् रह गईं - उनका मुँह एक क्षण के लिए खुला का खुला रह गया। और फिर अगले ही पल वो हँसने लगीं। उनके हँसने पर रूचि छोटे बच्चों की तरह अपना निचना होंठ फुला कर दुःखी होने का नाटक करने लगी।

“अले मेली बेटू,” उसके इस नाटक पर किरण जी ने बड़े लाड़ से उसको अपने सीने से लगाते हुए कहा, “बुरा मत मान! तूने इतनी क्यूट तरीके से ये कहा न, इसलिए थोड़ी सरप्राइज़्ड हो गई... और कुछ नहीं!”

“आपने बुरा नहीं माना?”

“बुरा तब मानूँगी जब तू मुझे अपनी माँ नहीं मानेगी! समझी? आ जा...” कह कर किरण जी अपनी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगीं।

रूचि ने इस काम में उनकी मदद करी और थोड़ी ही देर में किरण जी के स्तन अनावृत हो कर उसको पोषण देने के लिए उपस्थित थे।

“माँ,” रूचि ने उनके स्तनों चूचकों को सहलाते हुए कहा, “आपके ब्रेस्ट्स बहुत सुन्दर हैं,”

“बच्चों को अपनी माँ के ब्रेस्ट्स सुन्दर ही लगते हैं,” किरण जी बोलीं, “... मीठा मीठा दुद्धू पीने को मिलता है न यहाँ से,”

“नहीं माँ! केवल वही बात नहीं है... और... आपको भी पता है कि आप बहुत सुन्दर हैं,” रूचि बोली और किरण जी के स्तन से जा लगी।

“हा हा... अच्छी बात है, पी ले,”

इस बार रूचि बड़े ही अधिकार से स्तनपान कर रही थी। वो ज़ोर से उनके चूचकों को चूस रही थी और अधीरता से दूध पी रही थी। किरण जी ने महसूस किया कि उनका स्तन तेजी से खाली हो रहा था।

“अरे आराम से बिटिया रानी,” उन्होंने उसको मज़ाक करते हुए समझाया, “ये दोनों ब्रेस्ट्स तुम्ही पियो... कहीं भागी नहीं जा रही हूँ,”

उनकी बात सुन कर रूचि उनका चूचक मुँह में लिए हुए मुस्कुराई और थोड़ा सब्र से स्तनपान करने लगी।

कुछ देर बाद, “अच्छा बेटे, एक बात बता,” किरण जी पूछा, “तू और अजय... क्या सेक्स करते हो?”

“नहीं माँ,” रूचि ने स्तनपान रोक कर बताया, “ऐसा क्यों लगा आपको?”

“उस समय तुम दोनों नंगू नंगू थे न,”

“वो बात यह थी कि अज्जू मेरे लिए गिफ़्ट में लॉन्ज़रे लाया था...”

“अच्छा!” किरण जी ने उसको चिढ़ाया।

उनकी बात पर रूचि के गाल शर्म से लाल हो गए, लेकिन उसने कहना जारी रखा,

“मैं वो पहन कर उसको दिखाना चाहती थी,”

“फिर? दिखाया या नहीं?”

“नहीं माँ... मैं चेंज कर ही रही थी कि मेरा सर अचानक से खूब दुखने लगा।” रूचि ने बताया, “तो अज्जू ने कहा कि मैं सो जाऊँ...”

“अरे क्या हो गया? क्यों दुख रहा था?”

“अरे कुछ नहीं हुआ है माँ! ये नया नया चश्मा लगा है न, उसके कारण ही सारी दिक्कत हो रही है... पावर या फिटिंग का इशू होगा,”

“अच्छा!” उन्होंने आगे पूछा, “अभी? अभी पेन है?”

“अभी कुछ भी नहीं है माँ! चश्मा नहीं लगाया है न! ... लेकिन माँ, वो बात दरअसल यह है कि आपने जब दूधू पिलाया था न, तो बहुत सुकून मिला था। बहुत रिलैक्स्ड फ़ील हुआ और पेन का नामोनिशान भी नहीं था। इसलिए...”

“अच्छी बात है! जब मन करे पी लिया कर! अब से तू जब भी यहाँ आएगी, तुझे मेरा दूध पीना होगा, समझी?”

“यस माँ!” रूचि मुस्कुराई।

“अच्छा, अज्जू ने कोई ज़ोर जबरदस्ती तो नहीं करी न?”

“नेवर माँ! आपने इतना अच्छा बेटा बड़ा किया है! द बेस्ट!” रूचि थोड़ा शरमाते हुए आगे बोली, “व्ही गेट नेकेड... लेकिन मेरी कंसेंट से,”

“कभी कोई ऐसी वैसी ज़िद तो नहीं करता न?”

“कभ्भी नहीं माँ!” रूचि ने गर्व से कहा, “आपका बेटा जेंटलमैन है पूरा,”

“हम्म्म... गुड ब्यॉय!” किरण जी कुछ सोचती हुई बोलीं, “बेटे, यह बात छुपी हुई नहीं है कि छोटे तो तुम दोनों ही हो! लेकिन क्या करें हम अपने मन का भी? अच्छी लड़कियाँ बड़ी मुश्किलों से मिलती हैं आज कल... इसलिए जब तू हमको मिली, हमको लालच आ गया,”

“एंड आई थैंक गॉड फॉर दैट माँ!” रूचि ने पूरी श्रद्धा से कहा, “आपके आँचल तले स्वर्ग है,”

“अरे बस बस,”

“सच है माँ!” रूचि बोली, “आपके कारण ही तो मुझे ऐसी ज़िन्दगी मिली है,”

किरण जी मुस्कुराईं, “अच्छी बात है अगर तू ऐसा सब सोचती है! अजय अच्छा लड़का है बेटे! और... तेरी संगत में और सुधर भी गया है!”

“नहीं माँ, मैं उसकी संगत पा कर सुधर गई हूँ!” रूचि बोली, “पहले बस पढ़ाई, किताबें, घर... यही ज़िन्दगी थी मेरी! न कोई दोस्त थे न कोई सहेली! अजय के आने से मुझे ज़िन्दगी देखने समझने का एक नया नज़रिया मिल गया है माँ,”

किरण जी मुस्कुराईं।

“और तो और, अब तो मार्क्स भी पहले से अधिक आते हैं,”

उसकी इस बात पर किरण जी ठठा कर हँसने लगीं।

“बढ़िया है! मेरी बेटू को उसकी पसंद का ससुराल मिल गया है, उसके मार्क्स भी पहले से बेहतर आते हैं, सासू माँ का दुद्धू भी पीने को मिल रहा है, और रोमांस भी चल रहा है!”

“यस,” कह कर वो फिर से दूध पीने में व्यस्त हो गई।

“नो सेक्स?”

“नो मॉम,” रूचि ने बताया।

“अच्छा है!” फिर कुछ सोच कर, “तुझे वो अच्छा तो लगता है न?”

“सबसे अच्छा माँ! अज्जू बेस्ट है! और मुझसे सबसे अधिक पसंद है! मुझे उसका सब कुछ अच्छा लगता है माँ!” रूचि ने बताया, “उसको लगता है कि मैं छोटी हूँ, इसलिए हमको वेट करना चाहिए... जबकि वो खुद मुझसे एक साल छोटा है!”

किरण जी भी उसके साथ हँसने लगीं, “तुम और कमल साथ के हो?”

“जी, कमल भैया मुझसे दो महीने बड़े हैं!”

“कमल भी खूब अच्छा बच्चा है!” किरण जी बोलीं, “मेरी माया बेटी को बहुत ख़ुश रखता है।”

“भाभी भी तो बहुत ही जेंटल हैं न,” रूचि बोली, “भैया बहुत लकी हैं!”

“माया सच में बहुत भाग्यवान है... पता है बेटू, वो जब आई थी न, तब मैं फिर से प्रेग्नेंट हुई थी...” किरण जी पुरानी बातें याद करते हुए बोलीं, “प्रशान्त के होने के बाद मेरे हस्बैंड और मैंने कितना ट्राई किया था कि एक और बच्चा हो जाए... लेकिन भगवान ने चाहा ही नहीं।”

रूचि ने समझते हुए सर हिलाया - उसने भी दो तीन उदाहरण देखे थे जहाँ लोग चाहते थे कि उनको और बच्चे हों, लेकिन हो नहीं सके।

“लेकिन माया बिटिया के आते ही मैं फिर से प्रेग्नेंट हो गई थी!”

“आंटी जी भी तो...”

“प्रियंका (अजय की माँ)? हाँ प्रियंका भी... और अब देखो न! माया का रिश्ता कमल से जुड़ते ही सरिता भी प्रेग्नेंट हो गई है,” किरण जी ने एक गहरी साँस ले कर कहा।

“अच्छा माँ, एक बात पूछूँ आप से?”

“आप मुझे मारेंगी तो नहीं?”

“अरे कैसी बात करती है!”

“डाँटेगी भी नहीं न?”

“हा हा हा... नहीं बच्चे!”

“और, दुद्दू पीने से भी मना नहीं करेंगी?”

“नहीं करूँगी... पूछ न?” किरण जी को हँसी आने लगी।

रूचि थोड़ा झिझकी, “वो... वो छोटा भैया जाने के बाद... आपका मन नहीं होता?”

“किस बात का?”

“फिर से माँ बनने का?”

किरण जी ने एक फ़ीकी सी हँसी दी, “होता क्यों नहीं रे! बहुत होता है... लेकिन अब क्या हो सकता है!”

“माँ, होने को तो बहुत कुछ हो सकता है,” रूचि ने गंभीरता से कहा, “आप... आप और पापा शादी क्यों नहीं कर लेते?”

“व्हाट?” किरण जी चौंकीं, “शादी? अशोक से?”

“हाँ... पापा कितने हैंडसम भी हैं! और हम सभी आप दोनों को मम्मी पापा ही कह कर तो बुलाते हैं!” रूचि ने चंचलता से कहा, “यू मे ऐस वेल बी मम्मी पापा फॉर रियल फॉर अस!”

“उल्लू कहीं की,” किरण जी इस बात को सुन कर यह निर्णय नहीं ले पा रही थीं कि वो कैसी प्रतिक्रिया दें - लेकिन उनके गाल शर्म से लाल ज़रूर हो गए, “कुछ भी बकवास बोलती है! चल दूध पी चुपचाप!”

“अभी उस दिन मम्मी पापा भी यही बात कर रहे थे... और माँ इसमें बुराई ही क्या है? देखिए न... पापा कितने अच्छे हैं और कितने हैंडसम भी! ... और आप! आप भी तो कितनी अच्छी और कितनी सुन्दर हैं!” रूचि ने बदमाशी भरे अंदाज़ में बोला, “आप दोनों की जोड़ी क्या सुन्दर सी लगेगी और आप दोनों के बच्चे खूब क्यूट होंगे!”

“चुप कर अब!” किरण जी ने धीरे से कहा, “कुछ भी बकवास...”

“माँ सच सच बताईए... पापा क्या आपको अट्रैक्टिव नहीं लगते?” रूचि ने ज़िद करते हुए पूछा।

“बेटे... वो बात नहीं है... हमको अपने अपने स्पाउसेस बहुत पसंद थे। हमको उनसे बहुत मोहब्बत थी... और अभी भी है!”

“लेकिन माँ, आप दोनों साथ हो जाएँगे तो वो लव... वो अफ़ेक्शन कम थोड़े न हो जाएगा! ... वैसे भी, आप दोनों की ऐज ही क्या है? ऐसे थोड़े न होना चाहिए कि दो अच्छे लोग साथ ही न सकें!”

“अरे बड़ी हूँ मैं अशोक से,”

“दो साल?” रूचि ने दो टूक कहा, “मैं भी अज्जू से बड़ी हूँ न माँ! आपके लॉजिक से तो हमारी भी शादी नहीं होनी चाहिए!”

रूचि ने देखा कि उसकी इस बात पर माँ के चूचक थोड़े और उभर गए। वो मुस्कुराई - माँ भले ही यह बात उसके सामने न स्वीकारें, लेकिन मन ही मन उनको यह बात बुरी तो नहीं ही लगी है!

“अरे तुम दोनों की बात अलग है बेटे,”

“कैसे माँ?”

“तुम दोनों को एक दूसरे से प्यार भी तो है,”

“आपको नहीं है पापा से प्यार?”

किरण जी कुछ कह पातीं, कि रूचि ने तपाक से कहा, “और आपको कैसे पता कि पापा को आपसे प्यार नहीं है? उन्होंने आपसे कुछ कहा क्या?”

“क्या कहेगा? कुछ नहीं!”

“हो सकता है कि वो झिझक रहे हों? जैसे आप झिझक रही हैं!”

“अरे!”

“माँ, मेरी मम्मी ने तो मुझे यही सिखाया है कि मन की बात कह देनी चाहिए!” रूचि ने अपनी समझदारी का प्रदर्शन किया, “इसीलिए मैंने अज्जू को प्रोपोज़ किया था - प्रोपोज़ करने के लिए अगर मैं उसका वेट करती रहती हो, तो शायद मेरी उम्र बीत जाती!”

उसकी बात पर दोनों ही साथ में हँसने लगीं।

“इसलिए आप इंतज़ार न करिए! माँ, टेक द लीड!”

कह कर रूचि ने किरण जी के थोड़े और अधिक उभर आए चूचकों को पीना शुरू कर दिया। दस मिनट में उनके दोनों स्तन खाली हो गए। किरण जी ने कुछ नहीं कहा - वो किसी सोच में डूब गईं और उनकी तन्द्रा तब टूटी, जब रूचि के मुँह से उनका स्तन अंततः छूटा।

“हो गया बेटू?”

“जी माँ!”

“पेट भरा?”

“जी माँ,” रूचि बोली, “... दो बातें और कहनी थीं आपसे माँ!”

“अब क्या कहना है?” किरण जी हँसने लगीं।

“आपसे परमिशन लेनी है - दुबई से मेरी मासी और बेटी आई हुई हैं और वो अपने होने वाले दामाद से मिलना चाहते हैं!”

“ओके,”

“इसलिए माँ ने आपसे पूछने को कहा है कि अज्जू कल अगर कुछ देर के लिए ही घर आ जाए... तो,” रूचि ने मनुहार करी।

“अरे इसमें इतना पूछने वाली क्या बात है? बिल्कुल जाए!”

“थैंक यू सो मच माँ!”

“और दूसरी बात?”

“दूसरी बात?”

“हाँ - तुझे दो और बातें कहनी थीं न?”

“हाँ... याद आया!” रूचि ने चापलूसी वाले अंदाज़ ने कहा, “हमारी शादी जल्दी से करवा दीजिये न माँ!”

रूचि की चंचल अदा पर किरण जी खिलखिला कर हँसने लगीं।

“हाँ! बिलकुल,” किरण जी ने उसके दोनों गालों को छू कर अपनी उँगलियों को चूमते हुए कहा, “तेरे बिना इस घर में रौनक नहीं होगी! जल्दी ही तुम दोनों की शादी का बंदोबस्त करते हैं!”

“थैंक यू माँ!”

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अगली सुबह अजय और रूचि दोनों साथ ही रूचि के घर की तरफ़ रवाना हुए। जाने से पहले किरण जी ने जबरदस्ती कर के रूचि के मुँह में आज त्यौहार पर बनने वाले व्यञ्जनों को ठूँस दिया कि बहू को ऐसे थोड़े ही जाने देंगे। ख़ैर!

अजय ने त्यौहार की भावना के अनुकूल एक सजीला सा, लाल रंग का रेशमी कुरता-पायजामा पहना हुआ था।

माया ने उसे देखकर उसकी टाँग खिंचाई भी करी, “बाबू मेरा, आज तो दूल्हे जैसा जँच रहा है! भाभी के मम्मी-पापा को इम्प्रेस करना है क्या?”

“वो तो पहले से ही इम्प्रेस्सड हैं भाभी,” माया की बात पर रूचि हँसने लगी, “... आज अपनी साली को इम्प्रेस करने जा रहा है अज्जू,”

“वो भी अच्छा है,” माया इस खेल में पीछे हटने वाली नहीं थी, “वैसे भाभी, जब पूरी घरवाली पट गई है, तो आधी घरवाली की क्या बिसात?”

“क्या दीदी!”

“ये देखो इसको,” माया अब अजय की टाँग खींचने लगी, “साली के नाम पर मन में लड्डू फूट रहे होंगे... लेकिन ऊपर ऊपर दिखावा कर रहा है!”

“वापस आते टाइम जीजू को लेता आऊँगा,” अजय ने अब माया को वापस देना शुरू किया, “तब तक तुम अपने मन में लड्डू फोड़ती रहो,”

“अले मेला बाबू,” माया हार मानने वाली नहीं थी, “गुच्चा हो गया...!”

“अरे बस कर,” किरण जी को अंततः शामिल होना ही पड़ा, “देर हो रही है,”

फिर अजय और रूचि की तरफ़ मुखातिब होते हुए, “जाओ बेटे, और जल्दी वापस आना! काम है बहुत से,”

“जी माँ,”

रूचि ने जाते हुए तीनों लोगों - अशोक जी, किरण जी, और माया - के पैर छू कर आशीर्वाद लिया।

सभी ने उसको दीर्घायु, यश, स्वास्थ्य और प्रसन्नता के आशीर्वाद दिए।

जाते जाते किरण जी ने अजय को हिदायद दी कि रूचि के घर के लिए कुछ मिठाइयाँ, मेवे इत्यादि लेता हुआ जाए - खाली हाथ न जाए। जाते जाते माया ने फिर से अजय की खिंचाई करी,

“जा, मेरे वीरन, लेकिन ध्यान रखना, रूचि की मौसी से थोड़ा सम्हल कर बात करना। ये मासियाँ बड़ी चालाक होती हैं!” उसने अजय को छेड़ते हुए कहा, “कहीं भाभी की जगह वो अपनी ही लड़की न बैठा दे... बच के रहना!”

"चिंता न करो भाभी! अगर ऐसा कुछ हुआ, तो मैं उस कलमुँही को ब्लीच कर दूँगी," रूचि ने चुहल करते हुए कहा।

अजय हँस पड़ा और रूचि के साथ घर से बाहर निकल गया।

रूचि का घर दूर था - नॉएडा में! ऊपर से समय ले कर चलने, मिठाईयाँ इत्यादि ख़रीदने, और त्यौहार के दिन की ख़रीददारी की गहमागहमी के कारण वहाँ पहुँचने में समय लग गया। रास्ते भर हर तरफ़ दीपावली की रौनक बिखरी हुई थी। घरों के बाहर रंगोली, दरवाजों पर तोरण और अन्य सजावटें, और बच्चों के पटाखों से खेलने की आवाज़ ने माहौल को रौनक वाला बना रखा था।

रूचि के पिता चूँकि जनरल मैनेजर थे, इसलिए उनको उनके पद के अनुरूप चार कमरों का घर आवंटित था। रूचि की माता जी स्वयं एक सरकारी बैंक में जनरल मैनेजर थीं। लिहाज़ा, उनका रहन सहन उच्च मध्यमवर्गीय परिवार के अनुरूप ही था। रूचि के घर पहुँचते ही उसकी माँ ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया,

“आओ बेटे, आओ! तुम्हारा ही इंतज़ार हो रहा था!”

अजय ने उनके पैर छू कर आशीर्वाद लिया।

“आयुष्मान भव,” उन्होंने आशीर्वाद दिया, “यशश्वी भव,”

रूचि के पिता भी पीछे पीछे आ गए, तो अजय ने उनके भी पैर छुए।

उन्होंने अजय को गले से लगाते हुए कहा, “जीते रहो बेटे! सुखी रहो! भई, अब तुम इस घर के भी बेटे हो... ये सभी फॉर्मलिटीज़ छोड़ दो।”

उन्होंने कहा और उसका हाथ पकड़ कर मेहमानखाने में ला कर उसको सोफ़े पर बैठाया।

उन्होंने कुछ देर तक उसका और उसके मम्मी पापा और माया का कुशल-क्षेम पूछा, इधर उधर की बातें करीं। इस बीच रूचि और उसकी माँ दोनों ही अंदर चले गए - दामाद की आवभगत करने के लिए रसोई में!

कोई पंद्रह मिनट के बाद मेहमानखाने में महिलाओं और लड़कियों का पूरा लाव-लश्कर प्रविष्ट हुआ - सबसे पहले रूचि की माँ, और उनके पीछे,

‘... सासू माँ!’

अजय के दिमाग में एक भयंकर विस्फ़ोट हुआ।

‘ये कैसे हो सकता है?’

रूचि की माँ के पीछे जो महिला चली आ रही थीं, उनको देख कर अजय को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ,

‘ये तो... ये तो,’ उसके मन में विचार आया, और उसका सर बुरी तरह घूमने लगा।

“बेटे इनसे मिलो,” रूचि की माँ कह रही थीं, “ये हैं...”

‘ये तो रागिनी की माँ हैं...’

अजय के कानों में जैसे उनकी आवाज़ आनी बंद हो गई। वो महिला भी कुछ कह रही थीं।

लेकिन अजय की आँखें उस समय जिस शख़्स को देख रही थीं, वो उसको अपने जीवन में फिर कभी देखना नहीं चाहता था। उस महिला के पीछे जो लड़की खड़ी थी, उससे अधिक ज़हरीली नागिन से अजय परिचित नहीं था। रेशमी चूड़ीदार शलवार और रेशमी कढ़ाई किया हुआ कुर्ता पहने, वो उन्नीस बीस साल की लड़की, अजय को देख कर मुस्कुरा रही थी।

“नमस्ते जीजू,” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

किसी अन्य को उसकी बोली बड़ी मीठी लगती - लेकिन अजय को लगा कि जैसे किसी ने उसके कानों में पिघला हुआ सीसा उड़ेल दिया हो। वही चेहरा, वही आँखें, वही मुस्कान, और वही नागिन, जिसने पिछले समय-काल में अजय की ज़िंदगी को नर्क बना दिया था।

‘रागिनी...’ अजय के दिमाग में पहला शब्द कौंधा, फ़िर दूसरा, ‘महाजन…’

रागिनी, जिसने झूठे दहेज के केस में उसे और किरण जी को जेल भिजवाया था। रागिनी, जिसने उसके पिता अशोक जी का बनवाया घर और सारी बची खुची संपत्ति हड़प ली थी, और उसके जीवन की हर उम्मीद - उसकी अजन्मी संतान - को उसने चूर-चूर कर दिया था।

अजय का चेहरा सफेद पड़ गया। उसकी साँसें तेज हो गईं, और उसका सिर चकराने लगा। वो और कुछ सोच न सका और चक्कर खा कर वहीं ढेर हो गया।


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