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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Raj_sharma

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Raj_sharma

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Bhai kya story hai sala her update ke sath suspense badta ja rha hai keep it up
Bhai aur bhi bohot saare update aa gaye hain per aap gayab ho?
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Raj_sharma

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अद्भुत कथानक 🙏
बन्धु आपने इस फोरम ही नहीं साहित्यिक मंचों के पटल पर 'बाबू देवकीनंदन खत्री' को 💯 वर्ष के बाद पुनर्जन्म दे दिया
बहुत पहले xossip पर इस प्रकार की कहानी 'मायावी गणित' नाम की भी पढ़ी थी

लेकिन ये कथा तिलस्म आधारित खत्री जी की चन्द्रकान्ता, चन्द्रकान्ता सन्तति व भूतनाथ, वेदप्रकाश शर्मा जी की देवकान्ता सन्तति.... और मायावी गणित से बहुत आगे ना सिर्फ तिलिस्म बल्कि वैश्विक धरातल पर विभिन्न संस्कृतियों से जुड़े मनुष्यों के ना सिर्फ वर्तमान बल्कि प्राचीन भावनात्मक सम्बन्धों को भी बहुत आकर्षक रूप से परिभाषित करने का प्रयास कर रही है

और‌ अब तक इस प्रयास में आप सफल‌ भी रहे हैं....कहीं भी ना तो पाठक बोर हुए ना भटके.... हर अपडेट में आकर्षण बना रहा और अगले अपडेट के लिए व्याकुलता भी
Hum bhi aapse bilkul 100% sahmat hain kamdev bhaiya, ye kahani, baaki sab kahaniyon se kahi uper hai, sex, fight, bla bla ye sab to kahi bhi padhne ko mil jaayega, per aisa kuch, ya to bachpan me chandrakanta santati padhi thi, ya fir ye kahani :bow: :bow: :bow: kya jabardast likh rahe ho Raj bhai:bow::bow::bow:
Kamdev bhaiya Raj bhai .
 
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#79.

उस तोते ने नन्ही आँखो से आर्यन को देखा।

आर्यन ने उसके सिर पर हाथ फेरा और धीरे से उसे ऊपर उछाल दिया।
उस तोते ने आसमान में अपने पंख फड़फड़ाये और फ़िर से आकर आर्यन के कंधे पर बैठ गया।

यह देख शलाका मुस्कुरा उठी- “लगता है यह तुम्हे अपना दोस्त मानने लगा है और अब यह तुम्हारे ही साथ रहना चाहता है।"

“अरे वाह! ये तो और भी अच्छी बात है। ऐसे मुझे भी एक दोस्त मिल जाएगा।" आर्यन ने कहा- “पर इसका नाम क्या रखूं?"

तभी सुयश ने आर्यन के कान में धीरे से फुसफुसा कर कहा- “ऐमू!"

और आर्यन बोल उठा- “ऐमू नाम कैसा रहेगा?"

“ऐमू ....ये कैसा नाम है? और ऐसा नाम तुम्हारे दिमाग में आया कैसे?" शलाका ने आर्यन से पूछा।

“पता नहीं....... पर मुझे ऐसा लगा जैसे यह नाम किसी ने मेरे कान में फुसफुसाया हो।" आर्यन ने अजीब सी आवाज में कहा।

यह सुन सुयश हैरान रह गया- “क्या मेरी आवाज आर्यन को सुनाई दी है? तो क्या ऐमू का नाम मैंने रखा था?"

“अब अगर दोस्ती हो गयी हो, तो जरा आज की प्रतियोगिता पर भी ध्यान दे लीजिये आर्यन जी।" शलाका ने प्यार भरे अंदाज में आर्यन को छेड़ा।

“हां-हां... क्यों नहीं.... मैंने कब मना किया?" आर्यन ने हंस कर कहा- “तो पहले हमें धेनुका ढूंढनी थी, जिससे स्वर्णदुग्ध लेना है।"

तभी ऐमू आर्यन के हाथ से उड़कर उस आधी बनी गाय की मूर्ति के सिर पर बैठकर जोर-जोर से बोलने लगा- “टेंऽऽ टेंऽऽ टेंऽऽऽ!"

आर्यन की निगाह ऐमू की ओर गयी और इसी के साथ वह खुशी से चीख उठा- “अरे ये भी तो हो सकती है धेनुका?"

“ये और धेनुका .... अरे आर्यन... यह तो पत्थर की बनी आधी गाय है, इससे हमें स्वर्णदुग्ध कैसे मिलेगा ? कुछ तो दिमाग का इस्तेमाल करो?" शलाका ने कहा।

पर आर्यन ने तो जैसे शलाका की बात सुनी ही नहीं। वह अपनी नजर तेजी से इधर-उधर घुमा रहा था।

उस पार्क के कुछ हिस्से में सुनहरी घास लगी थी और वहां पर कागज के कुछ टुकड़े फटे हुए पड़े थे।
इसके अलावा वहां ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे कुछ असाधारण महसूस हो।

पर जाने क्यों आर्यन को वहां कुछ तो अटपटा सा महसूस हो रहा था?

“आर्यन, समय बेकार मत करो किसी दूसरी जगह चलो, यहां धेनुका नहीं है।" शलाका ने फ़िर से आर्यन को समझाने की कोशिश की।

पर आर्यन ने शलाका की एक ना सुनी।

तभी ऐमू उछलकर उस गाय की मूर्ति के मुंह में बैठ गया और फ़िर से चीखने लगा- “टेऽऽ टेऽऽ टेऽऽऽ!"

आर्यन की नजर फ़िर एक बार ऐमू की ओर गयी और कुछ सोचकर आर्यन ने गाय के मूर्ति के खुले मुंह में हाथ डाल दिया।

आर्यन के हाथ, किसी धातु की चीज से स्पर्श हुए। उसने टटोलकर उस चीज को निकाल लिया।

वह एक छेनी और हथौड़ी थे। जिसे देखकर आर्यन खुश हो गया।

उसने तुरंत छेनी और हथौड़ी उठाई और गाय की आधी बनी मूर्ति को तराशने लगा।

अब शलाका भी ध्यान से आर्यन को देख रही थी। सुयश का भी सारा ध्यान आर्यन की ओर ही आ गया।

आर्यन के हाथ छेनी और हथौडी पर किसी सधे हुए मूर्तिकार की तरह तेजी से चल रहे थे।

लगभग आधे घंटे में ही गाय की पूरी मूर्ति आर्यन ने तराश दी।

जैसे ही आर्यन ने गाय के थन को तराशा, तुरंत एक चमत्कारीक तरीके से गाय सजीव हो गयी।

यह देख शलाका ने दौड़कर आर्यन को अपने गले से लगा लिया- “तुम्हारे जैसा दिमाग वाला पूरी पृथ्वी पर दूसरा नहीं मिलेगा। सच में तुम बहुत अच्छे हो।"

“अरे बस करो ... बस करो ... अभी काम पूरा नहीं हुआ है।" आर्यन ने शलाका को अपने से अलग करते हुए कहा।

शलाका यह सुन आश्चर्य में पड़ गयी।

“अरे, अब इसमें क्या बचा है। इसका दूध निकालो और गुरु नीलाभ के पास चलकर उन्हें बता देते हैं कि हम जीत गये।" शलाका ने खुशी का पुरजोर प्रदर्शन करते हुए कहा।

आर्यन ने धेनुका के थन को हाथ लगाकर दूध निकालने की कोशिश की, पर दूध नहीं निकला।

“देख लिया.... दूध नहीं निकला।" आर्यन ने इधर-उधर देखते हुए कहा-
“हमें इसके बछड़े को ढूंढना होगा। बिना बछड़े के ये दूध नहीं देगी।"

अब तो शलाका के साथ सुयश की भी नजरें चारो ओर घूमने लगी। पर वहां दूर-दूर तक बछड़े का नामोनिशान नहीं था।

“अगर धेनुका यहां है तो बछड़े को भी यहीं कहीं होना चाहिए। पर कहां है वह बछड़ा?"

आर्यन बहुत तेजी से सोच रहा था।

तभी आर्यन की नजरें उन फटे पड़े कागज के टुकड़ों की ओर गई।

उसने आगे बढ़कर कुछ टुकड़ों को उठाकर देखा और फ़िर खुश होता हुआ बोला- “शलाका, इन सारे टुकड़ों को इकट्ठा करके मुझे दो।"

शलाका ने अपने हाथ को हवा में हिलाया। सारे टुकड़े हवा में उठकर आर्यन के हाथ में आ गये।

“थोड़ा बहुत हाथ भी प्रयोग में लाया करो। हर समय जादू का प्रयोग करना ठीक नहीं होता।" आर्यन ने कहा।

शलाका ने आर्यन को देख मुस्कुराहाट बिखेरते हुए कहा- “कोशिश करूंगी।"

आर्यन अब सभी फटे कागज के टुकड़ो को ‘जिग्सा-पजल’ की तरह से जोड़ने बैठ गया।

उन कागज के टुकड़ों पर एक बछड़े की तस्वीर ही बनी थी।

जैसे ही आर्यन ने आखरी टुकड़ा जोड़ा, बछड़ा सजीव हो गया और ‘बां-बां‘ की आवाज करता गाय की
ओर दौड़ा। बछड़ा अब गाय के थन से मुंह लगाकर दूध पीने लगा।

शलाका बछड़े को हटाने के लिये धेनुका की ओर बढ़ी, पर आर्यन ने शलाका का हाथ पकड़कर उसे
रोक लिया।

शलाका ने आश्चर्य भरी नजरों से आर्यन को देखा, पर आर्यन प्यार भरी नजरों से बछड़े को दूध पीते देख रहा था।

“उसे मत रोको, दूध पीना बछड़े का अधिकार है। हम अपनी प्रतियोगिता की खातिर किसी बच्चे से उसका अधिकार नहीं छीन सकते।"

आर्यन के शब्दो में जैसे जादू था।

शलाका, आर्यन के पास आकर उसके कंधे पर सिर रखकर खड़ी हो गयी। शलाका ने अपना हाथ अभी भी आर्यन के हाथों से नहीं छुड़ाया था।

वह खुश थी, इस पल के लिये.... आर्यन के लिये.... और उसकी इन असीम भावनाओँ के लिये।

सुयश भी सब कुछ देख और समझ रहा था।

थोड़ी देर में बछड़ा तृप्त होकर गाय से दूर हट गया। तब आर्यन ने अपनी कमर पर बंधे एक छोटे से बर्तन को धेनुका के थन के नीचे लगाकर दूध निकाला।

पर वह दूध सफेद था।

“ये क्या? ये तो स्वर्ण-दुग्ध नहीं है।" आर्यन ने आश्चर्य से कहा-“इसका मतलब अभी कहीं कुछ कमी है। अभी धेनुका का दूध साधारण है.... इसे किसी ना किसी प्रकार से स्वर्ण में बदलना होगा?.....पर कैसे?"

तभी आर्यन की नजर सामने कुछ दूरी में लगी सुनहरी घास पर गयी।

आर्यन यह देख मुस्कुरा उठा। वह उठकर उस सुनहरी घास के पास गया और कुछ घास को हाथों से तोड़ लिया।

फ़िर वो धेनुका के पास आ गया और उसने सुनहरी घास को धेनुका को खिला दिया।

धेनुका ने आर्यन के हाथ में पकड़ी सारी घास को खा लिया।

अब आर्यन ने फ़िर एक बार बर्तन में धेनुका का दूध निकालने की कोशिश की।

अब धेनुका के थनो से सुनहरे रंग का दूध निकलने लगा था। कुछ ही देर में आर्यन का सारा बर्तन भर गया।

शलाका के चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान थी।

आर्यन ने बर्तन का ढक्कन ठीक से बंद किया और उठकर खड़ा हो गया।

शलाका ने अब आर्यन का हाथ थाम लिया और दोनो वापस चल पड़े। ऐमू भी आकर आर्यन के कंधे पर बैठ गया।

कुछ ही देर में वह वापस कैलाश पर्वत के शिखर पर आ गये।

वहां से वह अपने उड़ने वाले घोड़े के रथ पर बैठकर वापस उस स्थान पर आ गये, जहां से वह बर्फ़ के दरवाजे से निकले थे।

सुयश अभी भी दोनो के साथ था। शलाका ने हाथ हिलाकर रथ को गायब कर दिया और आर्यन का हाथ पकड़कर दरवाजे के अंदर की ओर चल दी।

इससे पहले कि वह दरवाजा गायब होता, सुयश भी सरककर उस दरवाजे से अंदर की ओर चला गया।

अंदर एक बहुत विशालकाय बर्फ़ का मैदान था।

कुछ दूरी पर एक ऊंची सी इमारत बनी थी। जिस पर बड़े-बड़े धातु के अक्षरो में लिखा था- “वेदालय"

सभी वेदालय की ओर चल दिये। लेकिन इससे पहले कि आर्यन और शलाका वेदालय में प्रवेश कर पाते, तभी वेदालय से एक लड़की भागती हुई आयी और आर्यन को अपनी बाहों में भर लिया।

उसे देख शलाका ने धीरे से आर्यन का हाथ छोड़ दिया।

“मुझे पता था कि आज की प्रतियोगिता भी तुम ही जीतोगे।“

आकृति ने आर्यन से दूर हटते हुए कहा- “हां थोड़ा सा देर जरूर लगाई आज तुमने, पर अगर मैं आज तुम्हारे साथ होती तो कम से कम आधा घंटा पहले तुम ये प्रतियोगिता जीत जाते और.....और ये तोता कहां से ले आये? मेरे लिये है क्या?“

“पिनाक, शारंगा, कौस्तुभ, धनुषा, धरा और मयूर वापस आये कि नहीं?"

आर्यन ने आकृति की बात का जवाब ना देकर, उससे सवाल ही कर लिया।

“अभी कोई वापस नहीं लौटा और तुम्हें सबकी चिंता रहती है, मेरी छोड़कर।"

कहकर आकृति ने मुंह बनाकर शलाका को देखा और फ़िर आर्यन का हाथ पकड़कर वेदालय के अंदर की ओर चल दी।

शलाका, आर्यन का हाथ पकड़े आकृति को जाते हुए देख रही थी।

उसे आकृति का इस प्रकार आर्यन का हाथ पकड़ना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।

फ़िर धीरे-धीरे शलाका भी बुझे मन से वेदालय के अंदर की ओर चल दी।

तभी सुयश को अपना शरीर वापस खिंचता नजर आया।

वह वापस आ रहा था, रोशनी को पार करके, ज्ञान का भंडार भरके, एक बार फ़िर वर्तमान में जीने के लिये , या फ़िर किसी की याद में बेचैन होकर जंगलों में भटकने के लिये।




जारी रहेगा_________✍️
To isi liye emu tota suyash ko apna dost bolta tha, ki uski sakal Aaryan se milti hai, ya fir wo uska agla janam hai, awesome update bhai, too good 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
 
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