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Incest ससुर ने ऑटो में जबरदस्ती मुठ मरवाई

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Ting ting

Ting Ting
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Curiousbull

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अगले दिन दोपहर को मेरे पति का फोन आया. उन्होंने कहा की वे आज शाम की ट्रैन से रात को लगभग ८ बजे आ जायेंगे.

मैं उन के आने की खबर सुन कर खुश भी हुई की मेरे पति कई दिनों के बाद आएंगे और आज मेरी चुदाई भी होगी, क्योंकि काफी दिन हो गए थे चुदे हुए तो मेरी काम वासना भी बढ़ गयी थी.

उधर मेरे ससुर की हरकतों से मेरा चुदने का बहुत मन हो रहा था. बस दिल कर रहा था की कोई मोटा सा लौड़ा मेरे अंदर घुस जाये.
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पर ना जाने क्यों मैं अपने पति के आने की खबर से कुछ अंदर ही अंदर उदास भी थी.

जाने क्यों ससुर के साथ छेड़खानी और शरारत अच्छी लग रही थी, मैं उनसे चुदने को शायद अभी मन से तैयार नहीं थी. पर उन का साथ अच्छा लग रहा था.

खैर पति के आने की खबर से मेरा बेटा भी बहुत खुश हुआ और बोला की आज पापा कई दिन के बाद आ रहे है तो हम उनको लेने स्टेशन जायेंगे.

बाबूजी भी बेटे के आने से कुछ उदास थे, उन्हें भी लग रहा था की अपनी बहु को चोद पाने का मौका अब शायद न मिले, पर वो भी क्या कर सकते थे.
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तो हम रात को स्टेशन पर चले गए. हमारे पास अपनी गाडी तो थी नहीं तो ऑटो में आने जाने का सोचा.

ट्रेन रात में 8 बजे आ गयी. पति बाहर आये तो उन्हें देख कर दिल ही बुझ गया.

पति शराब में टुन्न थे. उनसे तो ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. बेटा भी उनसे मिल कर दुखी हुआ.

लगता था कि वो ट्रेन में ही शराब पीते आये थे.
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खैर अब तो यह उनकी रोज की आदत बन गयी थी, बोलने या लड़ने का कोई फायदा नहीं था.

मैं तो डबल उदास हुई, पति की हालत देख कर बिलकुल भी नहीं लगता था कि वो मेरी चुदाई कर भी पाएंगे, मेरे तो जैसे सपने ही ढह गए.

बाबूजी ने ऑटो को बुलाया और घर जाने को बुक किया.
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रात थी तो अँधेरा भी हो गया था. और ठण्ड भी लग रही थी. मैंने तो शाल भी ले रखी थी,

ऑटो वाले ने एक साइड से तो ऑटो को कपडे से बंद किया हुआ था ताकि ठंडी हवा ना आये और दूसरी साइड से ही सवारी के लिए खुला रखा था.

सबसे पहले तो बाबूजी औरो में घुसे। फिर मेरे पति अंदर घुसने लगे तो बाबूजी ने उसे डांट दिया और कहा कि उस से शराब की बदबू आ रही है, तो वो उनसे दूर ही बैठे.

अब मुझे ही बाबूजी से लग कर बैठना पड़ा. फिर मेरे पति बैठे और जो एक छोटा सा फट्टा ड्राइवर ने अपने पीछे सवारी के लिए लगाया होता है उस पर मेरा बेटा बैठा. ऑटो क्योंकि छोटा होता है तो हम तीनो फंस कर ही बैठे थे. मेरे जाँघे बाबूजी की टांगों से लगी हुई थी. एक तो रात का अँधेरा और उस पर ऑटो में हम चिपक कर बैठे थे. पति के पास जो बैग था वो मैंने अपनी गोद में रख लिया और उस पर मेरे बेटे ने सर रख लिया..
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अब स्थिति यह थी की बाबूजी अंत में बैठे थे, और उनके साइड में ऑटो कपडे से बंद था, बाबूजी से चिपक कर मैं बैठी थी और किनारे पर पति थे.

बाहर से किसी को कुछ भी दिख नहीं सकता था. और बेटे के कारण ड्राइवर भी हमें देख नहीं सकता था.

मेरे पति तो बस ऑटो में बैठते ही, अपनी साइड के रॉड पर सर रख कर ऊँघने लगे.

एक तरह से हम दोनों बाबूजी और मैं ही जाग रहे थे.

हमारा घर लगभग १ घंटे की दूरी पर था.

ऑटो चलते हुए पांच मिनट ही हुए थे की बेटा भी मेरी गोद में ऊँघने लग गया.

बाबूजी ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिए उनकी आँखों में शरारत की चमक थी, मैं समज रही थी की बाबूजी के मन में कुछ तो चल रहा है. आज यह पहली बार था की बाबूजी मेरे से इतना सट कर बैठे थे. तभी बाबूजी ने अपनी टांग मेरी टांग से मिला दी.
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मैंने उनकी तरफ देखा, बाबूजी दूसरी तरफ मुंह किये मुस्कुरा रहे थे.

अचानक से बाबूजी ने अपना हाथ मेरी कमर पर रख दिया. मैं एकदम से हिल सी गयी.

मैंने हिल कर उनका हाथ हटाना चाहा तो बाबूजी ने अपना हाथ हटा कर मेरे पेट पर रख दिया.
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मैं चुप रही कि देखते हैं कि बाबूजी बाबूजी क्या करते हैं, जब बाबूजी ने मुझे कुछ भी ना कहते पाया तो उन्होंने अपना हाथ मेरी कमीज के अंदर घुसा कर मेरे नंगे पेट पर रख दिया. मैं एकदम से घबरा गयी. मेरे पति मेरे पास ही बैठे थे और मेरा बेटा मेरी गोद में सो रहा था और बाबूजी यह हरकत कर रहे थे.

हालाँकि उनका हाथ कमीज के अंदर था और ऊपर से मैंने शाल भी ले राखी थी, तो किसी को कुछ भी दिख नहीं सकता था पर मैंने बाबूजी का हाथ पकड़ कर बाहर निकालना चाहा पर बाबूजी ने जोर से अपना हाथ मेरे नंगे पेट पर ही रखा.

मैं सब के सामने ऑटो में जोर आजमाईश तो कर नहीं सकती थी, तो थोड़ी देर कोशिश करने के बाद मैं चुप कर गयी और बाबूजी का हाथ रहने दिया.

बाबूजी मेरे इस सहयोग से बहुत खुश हो गए और अपना हाथ मेरे नंगे पेट पर सहलाने लगे.

अब मेरे बाबूजी को तो आप जानते ही हैं. जब मैंने अपना हाथ हटाया तो तुरंत उन्होंने मेरे पेट पर से हटा कर ऊपर मेरी छाती पर रख दिया. और मेरे मुम्मे को सीधा ही पकड़ लिया.
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मैं एकदम से चिहुंक पड़ी. इधर मेरे पति मेरे पास बैठे थे, और मेरे ससुर ने जिंदगी में पहली बार मेरा मम्मा पकड़ लिया था. मैं करती भी तो क्या करती.
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कुछ बोल भी तो नहीं सकती थी, मैंने अपना हाथ फिर से कमीज में डाल कर उनके हाथ को पकड़ लिया और उनकी तरफ गुस्से की नजरों से देखा.

बाबूजी मुझे देखते ही एक आँख मार दी, मैं शर्मा गयी. क्या करती. बाबूजी का हाथ कमीज के तो अंदर था ही तब तक बाबूजी ने जोर से अपना हाथ मेरे ब्रा के अंदर घुसेड़ कर मेरा नंगा मुम्मा पकड़ लिया और उसे दबाने लगे.
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मेरी स्थिति बड़ी अजीब थी. पहली बार कोई गैर मर्द मेरी छाती दबा रहा था. और वो भी मेरे बाबूजी ही,

मैंने पति की तरफ देखा, वो तो शराब के नशे में ऊंघ रहे थे. मुझे बड़ा गुस्सा आया.

अब तक ससुर जी ने मेरे एक निप्पल को अपने अंगूठे और ऊँगली में दबा लिया और उसे सहलाने लगे. मेरे शरीर में तो आग ही लग गयी थी,
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मैंने जोर से बाबूजी का हाथ अपने हाथ से पकड़ कर नीचे पेट की तरफ खींच दिया और ब्रा से बाहर निकाल दिया.

लेकिन उसका एक असर यह हुआ कि जो बाबूजी ने मेरी छाती हाथ में पकड़ी थी, हाथ जोर से नीचे खींचने के कारण मेरा मुम्मा भी ब्रा से बाहर निकल कर आ गया. और वो अब ब्रा से बाहर और कमीज के अंदर था.
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मैंने सोचा कि उसे तो मैं बाद में अंदर कर लूंगी, पहली बाबूजी का हाथ तो रोकूं किसी तरह.

उधर बाबूजी अपने दुसरे हाथ से पता नहीं क्या कर रहे थे. वो हाथ उनके लण्ड पर था, शायद उसे मसल रहे होंगे हमेशा की तरह.

बाबूजी ने अपना हाथ जो मेरे पेट पर घूम रहा था उसे मेरी सलवार के अंदर घुसेड़ने की कोशिश की.

वो मेरी चूत पर जाना चाहते थे. मैंने सलवार के नाड़े में घुसता हुआ उनका हाथ एकदम से पकड़ लिया. बाबूजी नई दुसरे हाथ से मेरा वो हाथ जोर से पकड़ा और अपनी गोद में खींचा. जब तक मैं कुछ समझती बाबूजी ने मेरा वो हाथ अपने नंगे लौड़े पर रख दिया. (अब मैं समझी कि बाबूजी ने अपना लण्ड अपनी धोती से बाहर निकाल लिया था.)
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अपना हाथ बाबूजी के गर्म गर्म लौड़े पर लगते ही मैं तो लगभग उछल ही पड़ी. बाबूजी इतनी हिम्मत करेंगे वो भी मेरे पति और बच्चे के सामने, यह तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था.
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बाबूजी मुझे अपना लौड़ा पकड़वाना चाह रहे थे. पर मैंने जोर से अपनी मुठी बंद कर ली और अपना हाथ वापिस खींचने लगी. अब इस स्थिति में जबकि मेरे पति और बेटा पास में थे और सामने ऑटो ड्राइवर गाड़ी चला रहा था तो मैं कुछ बोल तो नहीं सकती थी. बस जोर से अपनी मुठी भींच रखी और उसे बाबूजी के लण्ड पर से वापिस खींचने लगी.

पर बाबूजी भी पुराने घाघ और पहलवान थे. उन में बहुत जोर था. उन्होंने अपने हाथ से मेरे मुठी भरे हाथ को कस के पकडे रखा और मुझे वापिस नहीं लेने दिया.
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अब चलते ऑटो में मैं बाबूजी के साथ कुश्ती को कर नहीं सकती थी. बस जोर लगाती रही. बाबूजी के लाख कोशिश करने पर भी कि मैं उनके लौड़े को पकड़ लूँ, मैंने मुठी नहीं खोली.

अब मेरा सारा ध्यान मेरे इस लौड़े पर ठीके हुए हाथ पर था तो बाबूजी ने इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाते हुए अपना दूसरा हाथ झट से मेरी सलवार के अंदर घुसा दिया और मेरी उसे जोर से अंदर धकेलते हुए सीधे मेरी चूत पर ले आये और मेरी चूत को अपनी मुठी में भींच लिया.
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मैं तो इस दोतरफा हमले से घबरा गयी. क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था.

बाबूजी ने एक हाथ से मेरी मुठी वाले हाथ को अपने अकड़े हुए लौड़े पर टिका रखा था. और दुसरे से मेरी नंगी चूत को पकड़ रखा था.

शायद आज भगवन भी मेरी तरफ नहीं था. आज मैंने कच्छी भी नहीं पहन राखी थी. और अपनी चूत को बिलकुल साफ़ भी कर रखा था. आज मेरे पति जो आ रहे थे.
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पर इस का भरपूर लाभ मेरे ससुर को मिल रहा था. उन्होंने मेरी चूत को कस के अपने हाथ में पकड़ लिया.

अब मैं औरत जात करती भी तो इस समय क्या करती. और ऊपर से मेरे लाख न चाहते हुए भी मेरी चूत गीली होने लग गयी. इस साली चूत का भी अपना ही दिमाग है. यह यह नहीं देखती की उसे मसलने वाला हाथ उसके पति का है या ससुर का. बस उसे किसी की ऊँगली लगी नहीं कि चूत अपनी ख़ुशी जाहिर करने के लिए अपना रस छोड़ने लग पड़ती है.
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मैं अभी सोच ही रही थी कि क्या करूँ तभी बाबूजी ने अपनी एक ऊँगली मेरी गीली हो चुकी चूत में घुसा दी. और अपने अंगूठे को मेरी भगनासा पर रख कर उसे रगड़ना शुरू कर दिया. मेरी भगनासा उन्होंने अपने अंगूठे और पहली ऊँगली से पकड़ ली और उसे मसलने लगे और दूसरी ऊँगली मेरी भीगी चूत में सरका दी.
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यह मेरे लिए सहन करने की शक्ति से अधिक था. न चाहते हुए भी मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी. जो भगवान् की दया से ऑटो के शोर में किसी ने ना सुनी,

मैंने अपने पति की तरफ डर के मारे देखा कि कहीं उन्हें तो पता नहीं चल गया पर वो तो शराब के नशे में ऑटो दे डंडे से लगे ऊँघ रहे थे और मेरा बेटा तो सो ही रहा था.

अब स्थिति मेरे काबू से बाहर हो रही थी. बाबूजी तो ऐसे बैठे थे कि जैसे उन जैसा शरीफ आदमी इस दुनिया में कोई है ही नहीं. यह तो मुझे ही पता था उनकी शराफत का, जिसकी चूत में बाबूजी की ऊँगली घुसी हुई थी और दूसरा हाथ बाबूजी के तने हुए लौड़े पर था.
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मैंने बाबूजी की तरफ देखा और नजरों से उन्हें मिन्नत की, और ना में गर्दन हिला कर उन्हें हाथ बाहर करने का इशारा किया, पर बाबूजी ने तो मुझे आँख मार दी और मुस्कुरा कर मजा लेने का इशारा किया.

अब बाबूजी को दो मिनट मेरी चूत में ऊँगली करते हो गए थे. मेरी चूत बहुत गीली हो गयी थी. उधर मेरी भगनासा का दाना भी बाबूजी मसल रहे थे.

अचानक बाबूजी ने अपनी एक और ऊँगली मेरी चूत में घुसेड़ दी. बाबूजी की तो ऊँगली भी किसी छोटे मोटे लण्ड से कम थोड़े ही थी.
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मेरे मुंह से एक आह की आवाज निकल गयी , दो उँगलियाँ चूत में जाते ही, मैंने अपने पति वाले साइड के हाथ से उन्हें रोकना चाहा, इसका असर यह हुआ कि मेरा ध्यान चूत वाली साइड में हो गया, और लौड़े पर रखे हाथ की मुठी अपने आप खुल गयी.

बाबूजी को ध्यान उसी पर था. ज्योंही मेरी मुठी खुली बाबूजी ने तुरंत मेरी उँगलियाँ अपने लौड़े के ऊपर लपेट दी और अपनी मुठी मेरी उँगलियों पर कस ली.
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अब मेरे हाथ में उनका लण्ड पूरी मुठी में था. उनका लौड़ा इतना मोटा था कि मेरी उँगलियाँ उस पर पूरी तरह से नहीं आ पा रही थी,


मैं तो बुरी तरह फंस गयी थी, मेरी चूत में बाबूजी की दो उँगलियाँ घुसी हुई थी और हाथ में उनका लौड़ा था. जिस पर बाबूजी ने अपना हाथ रखा था ताकि मैं अपना हाथ उनके लण्ड से हटा ना सकूँ.
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Very Erotic writing
 
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