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Kheera prasang kamal ka tha.शायद जब मैं झड़ी तो मेरे मुंह से कुछ आवाज निकल गयी थी और बाबूजी ने शायद उसे सुन लिया था. तो बाबूजी मेरे कमरे के बाहर आये और दरवाजा खटखटाया और आवाज दे कर पुछा
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"सुषमा! बहुरानी तुम ठीक तो हो? यह आवाज कैसी थी?"
मेरा झड़ना और दरवाज़े पर थाप पड़ना लगभग एक ही समय हुवा, मैंने घबरा कर जल्दबाज़ी में मेरे कपड़े ठीक किये और बिखरे बालों के साथ दरवाज़ा खोल दी. मेरी हालत देख ससुरजी के चतुर नज़रों ने भांप लिया कि मैं कमरे में क्या गुल ख़िला रही थी. मेरी हालत ऐसे क्यों हुई है. ऊपर से निचे तक मुझे घूरते हुए ससुरजी कुटिलता से मुस्कुराने लगे, उनकी नजर मेरे बदन को आँखों से ही चोद रही थी.
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हम दोनों की नज़ारे मिली तो उन्होंने ने भी ख़ुलके कहा,
"क्या बात है बेटी? ऐसे कमज़ोर क्यों दिखाई दे रही हो, कुछ ज़्यादा ही मेहनत कर ली क्या आज?
ससुर जी की द्विअर्थी बातें सुनकर मैं भी थोड़ी शर्मसार हो रही थी, उनकी आँखों में देख कर मैंने अपनी नजरें नीचे झुका ली. और मेरे मुंह से कोई शब्द ना निकला मैं ऐसे ही शर्माती खड़ी रही.
ससुरजी की आँखे मेरे उभरे हुए चूँचियों को खा जाने वाली नज़रों से देख रही थी, मेरे गुब्बारें देख उनकी आँखे चमक उठी. समझ तो वो गए ही थे कि मैं क्या कर रही ही,
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अपने ३६ इंच के फुले हुए मम्मे दिखाते हुए मैं बोली, "हाँ बाबूजी, आजकल सारा काम मुझे ही करना पड़ता है, आपका बेटा तो अब कुछ करने की हालत में है नहीं तो सबकुछ मुझे ही करना पड़ता है"
मेरे द्विअर्थी बातें सुनकर उन्होंने बिना कोई रोकटोक और शरम के मेरा सीना घूरने लगे, उनके पैजामे का वो भाग सहलाते हुए वो मुस्कुराने लगे. मैं अपने बेड पर बैठ गयी ताकि ससुर जी कहीं चले ही ना जाएँ और मैं उन्हें अपने बदन के अच्छे से दर्शन दे सकूँ. बाबूजी ने जब मुझे बैठते और उन्हें चले जाने के लिए बोलते ना देखा तो वो समज गए की मुझे उनका बैडरूम में रहने में कोई इतराज नहीं है, तो हिम्मत करके बाबूजी भी मेरे सामने एक कुर्सी पर बैठ गए.
मैं किसी बदचलन आवारा औरत की तरह उनको देख के मुस्कुरा रही थी और हम दोनों बिना कोई बात किये एक दूसरे समझ रहे थे.
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मुझे उनके पैजामेको घूरता हुवा देख ससुरजी बोले,
"बहुरानी! तुम्हारा पति तो अभी नहीं है, अगर मुझसे कुछ काम बनता हो तो बोल दे बेटी, मैं तो हमेशा तैयार हु तेरी सेवा करने के लिए, अब बेटा नहीं तो ना सही, ससुर तो तेरा अभी जिंदा है."
ससुरजी की बातों से साफ़ पता चल रहा था की वो मुझे अपने लौड़े के निचे लिटाने के लिए व्याकुल हो रहे थे. उन्हें पता चल चुका था की उनके निक्कमे बेटे की पत्नी की जवानी अब उफ़ान पर है और उनके लौड़े से चुदवाने के लिए तड़प रही है. शायद ससुरजी ने मुझे चुत मसलते हुए भी देख लिया था और इसीलिए बाथरूम का दरवाज़ा ख़ुला छोड़कर वो जान बुझके जोर जोर से मेरा नाम लेकर सड़का मार रहे थे.
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ससुरजी की चलाकी देख मैं अंदर से ख़ुश हुई और मैंने भी तय कर लिया की एक ना एक दिन मैं जरूर ससुर जी लौड़े की शोभा बनूँगी.
उनकी इस चलाकी से मैं भी ख़ुश होकर बोली,
"बाबूजी, अब बस आपसे ही उम्मीद है मुझे. आप ही हो, जो मेरा काम कर सकते हो और अच्छे से कर सकते हो. पर जब कोई काम होगा आपके लायक तो जरूर बता दूंगी"
बाबूजी खुश हो गए. तभी उनकी नजर बेड के नीचे पड़ी मेरी पैंटी पर पड़ी.
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उन्होंने उसे उठाते हुए कहा
"बहु! यह तुम्हारी कच्छी नीचे गिरी पड़ी है. चाहे तुमने रात में इसे उतार कर ही सोना हो पर फिर भी इसे नीचे इस तरह न फेंका करो. रात में कोई चींटी या कीड़ा इस में आ सकता है, जब तुम इसे दुबारा पहनोगी, तो वो तुम्हे तुम्हारी "उस" पर काट सकता है. सोचो तो जरा कि यदि किसी जेहरीले कीड़े ने तुम्हे वहां पर काट लिया तो क्या होगा. तुम्हे डॉक्टर के पास जाना होगा और वो तुम्हारे गुप्त अंग को देखेगा। इसलिए तुम इसे ऊपर रखा करो."
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यह कहते हुए बाबूजी पैंटी को अपने हाथों में रगड़ रहे थे. अपनी गन्दी पैंटी बाबूजी के हाथ में देख कर मुझे बहुत शर्म आ रही थी. मैंने उनसे अपनी पैंटी लेने के लिए बोला "बाबूजी ! मैं रात में कम से कम कपड़ों में सोती हूँ. इसीलिए इसे उतार दिया था. आप मुझे दे दीजिये, मैं आगे से ध्यान रखूंगी."
पर बाबूजी इतनी जल्दी पैंटी कहाँ देना चाहते थे, वो पैंटी को मसलते हुए बोले
"सुषमा! यह तो तुम्हारी पहनी हुई और गन्दी पैंटी है, तो इस में से यह इतनी अच्छी खुशबु कैसे आ रही है? क्या तुम पैंटी में भी कोई खुशबू लगाती हो?"
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यह कहते हुए बाबूजी ने मेरी पैंटी को सूंघना शुरू कर दिया.
अब यह तो मेरे लिए बहुत ही कामुक दृश्य था. मेरे ससुर मेरे ही सामने मेरी पहन कर उतारी हुई पैंटी को सूंघ रहे थे और मसल रहे थे. यह देख कर मेरी चूत में तो आग लग गयी. बहुत शर्म वाला सीन था. मुझे कुछ नहीं सूज रहा था कि क्या करू और बाबूजी को अपनी पैंटी सूंघने से कैसे रोकूं.
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उधर बाबूजी की तो आँखें बंद थी और वे मेरे सामने मजे से पैंटी से मेरी चूत की खुशबू सूंघ रहे थे.
मुझे बड़ा ही अजीब सा लग रहा था. मेरे ही ससुर मेरे ही सामने मेरी हो पैंटी को सूंघ रहे थे और अपना लण्ड सेहला रहे थे.
बड़ा ही कामुक दृश्य था. मैं क्या करती.
तभी बाबूजी ने मेरी पैंटी में जहाँ मेरी चूत होती है, वहां पर पैंटी गीली थी, बाबूजी उस जगह को सूंघते हुए बोले
"सुषमा बेटी! देखो यहाँ पर शायद सेंट ज्यादा लग गया है, यहाँ पर गीला भी है और सुगंध भी बहुत अधिक आ रही है."
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यह कहते हुए बाबूजी ने मेरी चूत के पानी को नाक के बिलकुल पास करके सूंघना शुरू कर दिया. मैं तो शर्म से मरी ही जा रही थी.
समझ नहीं आ रहा था की इस स्थिति को किस तरह सम्भालूं.
मैंने उन के हाथ से अपनी पैंटी छीन ते हुए बोला
"बाबूजी ! अरे इसमें कोई खुशबू नहीं है. पेशाब की बदबू हो सकती है. आप इसे छोड़ दें."
बाबूजी बुड़बुड़ाते से बोले
"बड़ी अजीब बात है. आजकल की औरतें कपड़ों के ऊपर तो सेंट लगाती ही थी, अब कच्छी तक में सेंट लगाने लग गयी है. क्या ज़माना आ गया है?"
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मैं बोलती भी क्या बोलती बस चुप रही.
पर मेरी किस्मत में शांति कहाँ.
तभी बाबूजी की नजर टेबल पर रखे खीरे पर पड़ गयी, वो तुरंत समज गए कि उनकी बहु खीरे से मजे कर रही थी, खीरा अभी भी मेरे चूत रस से गीला चमक रहा था.
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बाबूजी को मुझे छेड़ने का और मौका मिल गया. उन्होंने तुरंत वो खीरा उठा लिया और बोले
"सुषमा! क्या तुम्हे रात में भूख लगती है जो यह खीरा रखा है? रात में खीरा? मुझे बता दिया करो मैं तुम्हारी भूख मिटाने का कुछ और इंतजाम कर देता."
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मैं तो शर्म से पानी पानी हो रही थी, मेरी चूत के रस से भीगा हुआ खीरा मेरे ससुर के हाथ में था.
मैं कुछ बोलती इस से पहले ही बाबूजी बोले
"बहुरानी! यह खीरा इतना गीला क्यों है? और इतना चमक क्यों रहा है? क्या तुमने इस पर कुछ लगाया है?"
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यह कहते हुए उनकी नजरें मेरी चूत वाली जगह पर थी. साफ़ था कि वो सब जान रहे थे और मुझे छेड़ने के लिए बोल रहे थे. अभी मैं यह सोच ही रही थी कि क्या बोल कर बात को टालूँ तब तक बाबूजी ने अगला धमाका कर दिया और बोले
"सुषमा! इस पर तो शहद जैसी खुशबू आ रही है. क्या तुमने खीरे पर शहद लगाया है?"
यह सब बोलते बोलते बाबूजी अपने लौड़े को जो अब तक इस पैंटी और खीरे वाली बातों से खड़ा हो गया था, को सेहला रहे थे. बहुत ही कामुक दृश्य था. मैं शर्म से मरी जा रही थी, समज नहीं आ रहा था कि आज यह क्या हो रहा है. तभी बाबूजी ने खीरे को अपने मुंह में डाल लिया और उसे चाटते हुए बोले
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"सुषमा! कोई बहुत ही मीठी और स्वादिष्ट चीज लगाई है तुमने इस खीरे पर. चाट कर मजा आ गया. मन कर रहा है इस खीरे को खा जाऊं, यह कहते हुए बाबूजी खीरे को चाटते रहे और उनकी नजरें मेरी आँखों में मिली रही. उनकी आँखों में वासना की चमक थी. उनका लण्ड उनकी धोती में ठुनक रहा था. जिसे वो बार बार दबा रहे थे.
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मेरी चूत में भी बाबूजी की कामुक हरकतों से पानी आ गया था. मन तो कर रहा था की सब लाज शर्म त्याग कर अपनी मैक्सी उठा कर अपनी नंगी चूत बाबूजी के सामने कर दूँ और कहूं कि बाबूजी खीरा क्यों चाट रहे हो, यह रस तो आपकी बहु की चूत का रस है, आओ डायरेक्ट अपनी बहुरानी की चूत से चाट लो.
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पर शर्म इतनी आ रही थी कि मेरी जुबान से बोल नहीं निकले.
बाबूजी उसी तरह खीरे पर से मेरी चूत का रस चाटते रहे और चारों तरफ से चाट चाट कर खीरे को साफ़ कर दिया. फिर खीरा मुझे देते हुए बोले
"सुष्मा! खीरे पर लगा रस बहुत ही स्वादिष्ट था. मजा आ गया चाट कर. यदि मुझे यह रस और चाटने को मिल जाये तो क्या बात है. क्या थोड़ा रस और चाट सकता हूँ?"
अब बाबूजी ने तो सीधा ही मेरी चूत चाटने का ऑफर दे दिया था.
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पर हाय री मेरी फूटी किस्मत चाहते हुए भी मेरे मुंह से हाँ निकल सकी, और मैं बाबूजी को बोल बैठी
"बाबूजी! प्लीज रात बहुत हो चुकी है. आप जा कर सो जाईये. मुझे भी नींद आ रही है. कल बात करेंगे. शुभ रात्रि। "
बाबूजी समझ गए कि उनकी बहु की शर्म अभी उत्तरी नहीं है. पर वो जानते थे कि आग दोनों तरफ लगी हुई है. और बेकाबू होती जा रही है. वो दिन दूर नहीं है जब वे सच में अपनी बहु का चूत रस मुंह लगा कर चाट रहे होंगे.
यह सोच कर वे उठ कर अपने कमरे में चले गए. और मैं अपनी बेवकूफी पर झल्लाते हुए और अफ़सोस करते हुए लेट गयी. आज मौका बनाया था भगवान् ने और बेकार चला गया. आज मैं बाबूजी से चुदती चुदती रह गयी.
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खैर अपना ही घर है. अपने ही ससुर हैं. चुदवा कर ही रहूंगी मैं एक दिन. और मुझे भी लग रहा था कि वो दिन दूर तो नहीं है अब.
यह सोचते मेरी ना जाने कब आँख लग गयी,
Nice update broशायद जब मैं झड़ी तो मेरे मुंह से कुछ आवाज निकल गयी थी और बाबूजी ने शायद उसे सुन लिया था. तो बाबूजी मेरे कमरे के बाहर आये और दरवाजा खटखटाया और आवाज दे कर पुछा
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"सुषमा! बहुरानी तुम ठीक तो हो? यह आवाज कैसी थी?"
मेरा झड़ना और दरवाज़े पर थाप पड़ना लगभग एक ही समय हुवा, मैंने घबरा कर जल्दबाज़ी में मेरे कपड़े ठीक किये और बिखरे बालों के साथ दरवाज़ा खोल दी. मेरी हालत देख ससुरजी के चतुर नज़रों ने भांप लिया कि मैं कमरे में क्या गुल ख़िला रही थी. मेरी हालत ऐसे क्यों हुई है. ऊपर से निचे तक मुझे घूरते हुए ससुरजी कुटिलता से मुस्कुराने लगे, उनकी नजर मेरे बदन को आँखों से ही चोद रही थी.
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हम दोनों की नज़ारे मिली तो उन्होंने ने भी ख़ुलके कहा,
"क्या बात है बेटी? ऐसे कमज़ोर क्यों दिखाई दे रही हो, कुछ ज़्यादा ही मेहनत कर ली क्या आज?
ससुर जी की द्विअर्थी बातें सुनकर मैं भी थोड़ी शर्मसार हो रही थी, उनकी आँखों में देख कर मैंने अपनी नजरें नीचे झुका ली. और मेरे मुंह से कोई शब्द ना निकला मैं ऐसे ही शर्माती खड़ी रही.
ससुरजी की आँखे मेरे उभरे हुए चूँचियों को खा जाने वाली नज़रों से देख रही थी, मेरे गुब्बारें देख उनकी आँखे चमक उठी. समझ तो वो गए ही थे कि मैं क्या कर रही ही,
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अपने ३६ इंच के फुले हुए मम्मे दिखाते हुए मैं बोली, "हाँ बाबूजी, आजकल सारा काम मुझे ही करना पड़ता है, आपका बेटा तो अब कुछ करने की हालत में है नहीं तो सबकुछ मुझे ही करना पड़ता है"
मेरे द्विअर्थी बातें सुनकर उन्होंने बिना कोई रोकटोक और शरम के मेरा सीना घूरने लगे, उनके पैजामे का वो भाग सहलाते हुए वो मुस्कुराने लगे. मैं अपने बेड पर बैठ गयी ताकि ससुर जी कहीं चले ही ना जाएँ और मैं उन्हें अपने बदन के अच्छे से दर्शन दे सकूँ. बाबूजी ने जब मुझे बैठते और उन्हें चले जाने के लिए बोलते ना देखा तो वो समज गए की मुझे उनका बैडरूम में रहने में कोई इतराज नहीं है, तो हिम्मत करके बाबूजी भी मेरे सामने एक कुर्सी पर बैठ गए.
मैं किसी बदचलन आवारा औरत की तरह उनको देख के मुस्कुरा रही थी और हम दोनों बिना कोई बात किये एक दूसरे समझ रहे थे.
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मुझे उनके पैजामेको घूरता हुवा देख ससुरजी बोले,
"बहुरानी! तुम्हारा पति तो अभी नहीं है, अगर मुझसे कुछ काम बनता हो तो बोल दे बेटी, मैं तो हमेशा तैयार हु तेरी सेवा करने के लिए, अब बेटा नहीं तो ना सही, ससुर तो तेरा अभी जिंदा है."
ससुरजी की बातों से साफ़ पता चल रहा था की वो मुझे अपने लौड़े के निचे लिटाने के लिए व्याकुल हो रहे थे. उन्हें पता चल चुका था की उनके निक्कमे बेटे की पत्नी की जवानी अब उफ़ान पर है और उनके लौड़े से चुदवाने के लिए तड़प रही है. शायद ससुरजी ने मुझे चुत मसलते हुए भी देख लिया था और इसीलिए बाथरूम का दरवाज़ा ख़ुला छोड़कर वो जान बुझके जोर जोर से मेरा नाम लेकर सड़का मार रहे थे.
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ससुरजी की चलाकी देख मैं अंदर से ख़ुश हुई और मैंने भी तय कर लिया की एक ना एक दिन मैं जरूर ससुर जी लौड़े की शोभा बनूँगी.
उनकी इस चलाकी से मैं भी ख़ुश होकर बोली,
"बाबूजी, अब बस आपसे ही उम्मीद है मुझे. आप ही हो, जो मेरा काम कर सकते हो और अच्छे से कर सकते हो. पर जब कोई काम होगा आपके लायक तो जरूर बता दूंगी"
बाबूजी खुश हो गए. तभी उनकी नजर बेड के नीचे पड़ी मेरी पैंटी पर पड़ी.
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उन्होंने उसे उठाते हुए कहा
"बहु! यह तुम्हारी कच्छी नीचे गिरी पड़ी है. चाहे तुमने रात में इसे उतार कर ही सोना हो पर फिर भी इसे नीचे इस तरह न फेंका करो. रात में कोई चींटी या कीड़ा इस में आ सकता है, जब तुम इसे दुबारा पहनोगी, तो वो तुम्हे तुम्हारी "उस" पर काट सकता है. सोचो तो जरा कि यदि किसी जेहरीले कीड़े ने तुम्हे वहां पर काट लिया तो क्या होगा. तुम्हे डॉक्टर के पास जाना होगा और वो तुम्हारे गुप्त अंग को देखेगा। इसलिए तुम इसे ऊपर रखा करो."
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यह कहते हुए बाबूजी पैंटी को अपने हाथों में रगड़ रहे थे. अपनी गन्दी पैंटी बाबूजी के हाथ में देख कर मुझे बहुत शर्म आ रही थी. मैंने उनसे अपनी पैंटी लेने के लिए बोला "बाबूजी ! मैं रात में कम से कम कपड़ों में सोती हूँ. इसीलिए इसे उतार दिया था. आप मुझे दे दीजिये, मैं आगे से ध्यान रखूंगी."
पर बाबूजी इतनी जल्दी पैंटी कहाँ देना चाहते थे, वो पैंटी को मसलते हुए बोले
"सुषमा! यह तो तुम्हारी पहनी हुई और गन्दी पैंटी है, तो इस में से यह इतनी अच्छी खुशबु कैसे आ रही है? क्या तुम पैंटी में भी कोई खुशबू लगाती हो?"
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यह कहते हुए बाबूजी ने मेरी पैंटी को सूंघना शुरू कर दिया.
अब यह तो मेरे लिए बहुत ही कामुक दृश्य था. मेरे ससुर मेरे ही सामने मेरी पहन कर उतारी हुई पैंटी को सूंघ रहे थे और मसल रहे थे. यह देख कर मेरी चूत में तो आग लग गयी. बहुत शर्म वाला सीन था. मुझे कुछ नहीं सूज रहा था कि क्या करू और बाबूजी को अपनी पैंटी सूंघने से कैसे रोकूं.
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उधर बाबूजी की तो आँखें बंद थी और वे मेरे सामने मजे से पैंटी से मेरी चूत की खुशबू सूंघ रहे थे.
मुझे बड़ा ही अजीब सा लग रहा था. मेरे ही ससुर मेरे ही सामने मेरी हो पैंटी को सूंघ रहे थे और अपना लण्ड सेहला रहे थे.
बड़ा ही कामुक दृश्य था. मैं क्या करती.
तभी बाबूजी ने मेरी पैंटी में जहाँ मेरी चूत होती है, वहां पर पैंटी गीली थी, बाबूजी उस जगह को सूंघते हुए बोले
"सुषमा बेटी! देखो यहाँ पर शायद सेंट ज्यादा लग गया है, यहाँ पर गीला भी है और सुगंध भी बहुत अधिक आ रही है."
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यह कहते हुए बाबूजी ने मेरी चूत के पानी को नाक के बिलकुल पास करके सूंघना शुरू कर दिया. मैं तो शर्म से मरी ही जा रही थी.
समझ नहीं आ रहा था की इस स्थिति को किस तरह सम्भालूं.
मैंने उन के हाथ से अपनी पैंटी छीन ते हुए बोला
"बाबूजी ! अरे इसमें कोई खुशबू नहीं है. पेशाब की बदबू हो सकती है. आप इसे छोड़ दें."
बाबूजी बुड़बुड़ाते से बोले
"बड़ी अजीब बात है. आजकल की औरतें कपड़ों के ऊपर तो सेंट लगाती ही थी, अब कच्छी तक में सेंट लगाने लग गयी है. क्या ज़माना आ गया है?"
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मैं बोलती भी क्या बोलती बस चुप रही.
पर मेरी किस्मत में शांति कहाँ.
तभी बाबूजी की नजर टेबल पर रखे खीरे पर पड़ गयी, वो तुरंत समज गए कि उनकी बहु खीरे से मजे कर रही थी, खीरा अभी भी मेरे चूत रस से गीला चमक रहा था.
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बाबूजी को मुझे छेड़ने का और मौका मिल गया. उन्होंने तुरंत वो खीरा उठा लिया और बोले
"सुषमा! क्या तुम्हे रात में भूख लगती है जो यह खीरा रखा है? रात में खीरा? मुझे बता दिया करो मैं तुम्हारी भूख मिटाने का कुछ और इंतजाम कर देता."
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मैं तो शर्म से पानी पानी हो रही थी, मेरी चूत के रस से भीगा हुआ खीरा मेरे ससुर के हाथ में था.
मैं कुछ बोलती इस से पहले ही बाबूजी बोले
"बहुरानी! यह खीरा इतना गीला क्यों है? और इतना चमक क्यों रहा है? क्या तुमने इस पर कुछ लगाया है?"
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यह कहते हुए उनकी नजरें मेरी चूत वाली जगह पर थी. साफ़ था कि वो सब जान रहे थे और मुझे छेड़ने के लिए बोल रहे थे. अभी मैं यह सोच ही रही थी कि क्या बोल कर बात को टालूँ तब तक बाबूजी ने अगला धमाका कर दिया और बोले
"सुषमा! इस पर तो शहद जैसी खुशबू आ रही है. क्या तुमने खीरे पर शहद लगाया है?"
यह सब बोलते बोलते बाबूजी अपने लौड़े को जो अब तक इस पैंटी और खीरे वाली बातों से खड़ा हो गया था, को सेहला रहे थे. बहुत ही कामुक दृश्य था. मैं शर्म से मरी जा रही थी, समज नहीं आ रहा था कि आज यह क्या हो रहा है. तभी बाबूजी ने खीरे को अपने मुंह में डाल लिया और उसे चाटते हुए बोले
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"सुषमा! कोई बहुत ही मीठी और स्वादिष्ट चीज लगाई है तुमने इस खीरे पर. चाट कर मजा आ गया. मन कर रहा है इस खीरे को खा जाऊं, यह कहते हुए बाबूजी खीरे को चाटते रहे और उनकी नजरें मेरी आँखों में मिली रही. उनकी आँखों में वासना की चमक थी. उनका लण्ड उनकी धोती में ठुनक रहा था. जिसे वो बार बार दबा रहे थे.
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मेरी चूत में भी बाबूजी की कामुक हरकतों से पानी आ गया था. मन तो कर रहा था की सब लाज शर्म त्याग कर अपनी मैक्सी उठा कर अपनी नंगी चूत बाबूजी के सामने कर दूँ और कहूं कि बाबूजी खीरा क्यों चाट रहे हो, यह रस तो आपकी बहु की चूत का रस है, आओ डायरेक्ट अपनी बहुरानी की चूत से चाट लो.
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पर शर्म इतनी आ रही थी कि मेरी जुबान से बोल नहीं निकले.
बाबूजी उसी तरह खीरे पर से मेरी चूत का रस चाटते रहे और चारों तरफ से चाट चाट कर खीरे को साफ़ कर दिया. फिर खीरा मुझे देते हुए बोले
"सुष्मा! खीरे पर लगा रस बहुत ही स्वादिष्ट था. मजा आ गया चाट कर. यदि मुझे यह रस और चाटने को मिल जाये तो क्या बात है. क्या थोड़ा रस और चाट सकता हूँ?"
अब बाबूजी ने तो सीधा ही मेरी चूत चाटने का ऑफर दे दिया था.
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पर हाय री मेरी फूटी किस्मत चाहते हुए भी मेरे मुंह से हाँ निकल सकी, और मैं बाबूजी को बोल बैठी
"बाबूजी! प्लीज रात बहुत हो चुकी है. आप जा कर सो जाईये. मुझे भी नींद आ रही है. कल बात करेंगे. शुभ रात्रि। "
बाबूजी समझ गए कि उनकी बहु की शर्म अभी उत्तरी नहीं है. पर वो जानते थे कि आग दोनों तरफ लगी हुई है. और बेकाबू होती जा रही है. वो दिन दूर नहीं है जब वे सच में अपनी बहु का चूत रस मुंह लगा कर चाट रहे होंगे.
यह सोच कर वे उठ कर अपने कमरे में चले गए. और मैं अपनी बेवकूफी पर झल्लाते हुए और अफ़सोस करते हुए लेट गयी. आज मौका बनाया था भगवान् ने और बेकार चला गया. आज मैं बाबूजी से चुदती चुदती रह गयी.
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खैर अपना ही घर है. अपने ही ससुर हैं. चुदवा कर ही रहूंगी मैं एक दिन. और मुझे भी लग रहा था कि वो दिन दूर तो नहीं है अब.
यह सोचते मेरी ना जाने कब आँख लग गयी,