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Incest ससुर ने ऑटो में जबरदस्ती मुठ मरवाई

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Ting ting

Ting Ting
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Curiousbull

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अगले दिन दोपहर को मेरे पति का फोन आया. उन्होंने कहा की वे आज शाम की ट्रैन से रात को लगभग ८ बजे आ जायेंगे.

मैं उन के आने की खबर सुन कर खुश भी हुई की मेरे पति कई दिनों के बाद आएंगे और आज मेरी चुदाई भी होगी, क्योंकि काफी दिन हो गए थे चुदे हुए तो मेरी काम वासना भी बढ़ गयी थी.

उधर मेरे ससुर की हरकतों से मेरा चुदने का बहुत मन हो रहा था. बस दिल कर रहा था की कोई मोटा सा लौड़ा मेरे अंदर घुस जाये.
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पर ना जाने क्यों मैं अपने पति के आने की खबर से कुछ अंदर ही अंदर उदास भी थी.

जाने क्यों ससुर के साथ छेड़खानी और शरारत अच्छी लग रही थी, मैं उनसे चुदने को शायद अभी मन से तैयार नहीं थी. पर उन का साथ अच्छा लग रहा था.

खैर पति के आने की खबर से मेरा बेटा भी बहुत खुश हुआ और बोला की आज पापा कई दिन के बाद आ रहे है तो हम उनको लेने स्टेशन जायेंगे.

बाबूजी भी बेटे के आने से कुछ उदास थे, उन्हें भी लग रहा था की अपनी बहु को चोद पाने का मौका अब शायद न मिले, पर वो भी क्या कर सकते थे.
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तो हम रात को स्टेशन पर चले गए. हमारे पास अपनी गाडी तो थी नहीं तो ऑटो में आने जाने का सोचा.

ट्रेन रात में 8 बजे आ गयी. पति बाहर आये तो उन्हें देख कर दिल ही बुझ गया.

पति शराब में टुन्न थे. उनसे तो ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. बेटा भी उनसे मिल कर दुखी हुआ.

लगता था कि वो ट्रेन में ही शराब पीते आये थे.
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खैर अब तो यह उनकी रोज की आदत बन गयी थी, बोलने या लड़ने का कोई फायदा नहीं था.

मैं तो डबल उदास हुई, पति की हालत देख कर बिलकुल भी नहीं लगता था कि वो मेरी चुदाई कर भी पाएंगे, मेरे तो जैसे सपने ही ढह गए.

बाबूजी ने ऑटो को बुलाया और घर जाने को बुक किया.
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रात थी तो अँधेरा भी हो गया था. और ठण्ड भी लग रही थी. मैंने तो शाल भी ले रखी थी,

ऑटो वाले ने एक साइड से तो ऑटो को कपडे से बंद किया हुआ था ताकि ठंडी हवा ना आये और दूसरी साइड से ही सवारी के लिए खुला रखा था.

सबसे पहले तो बाबूजी औरो में घुसे। फिर मेरे पति अंदर घुसने लगे तो बाबूजी ने उसे डांट दिया और कहा कि उस से शराब की बदबू आ रही है, तो वो उनसे दूर ही बैठे.

अब मुझे ही बाबूजी से लग कर बैठना पड़ा. फिर मेरे पति बैठे और जो एक छोटा सा फट्टा ड्राइवर ने अपने पीछे सवारी के लिए लगाया होता है उस पर मेरा बेटा बैठा. ऑटो क्योंकि छोटा होता है तो हम तीनो फंस कर ही बैठे थे. मेरे जाँघे बाबूजी की टांगों से लगी हुई थी. एक तो रात का अँधेरा और उस पर ऑटो में हम चिपक कर बैठे थे. पति के पास जो बैग था वो मैंने अपनी गोद में रख लिया और उस पर मेरे बेटे ने सर रख लिया..
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अब स्थिति यह थी की बाबूजी अंत में बैठे थे, और उनके साइड में ऑटो कपडे से बंद था, बाबूजी से चिपक कर मैं बैठी थी और किनारे पर पति थे.

बाहर से किसी को कुछ भी दिख नहीं सकता था. और बेटे के कारण ड्राइवर भी हमें देख नहीं सकता था.

मेरे पति तो बस ऑटो में बैठते ही, अपनी साइड के रॉड पर सर रख कर ऊँघने लगे.

एक तरह से हम दोनों बाबूजी और मैं ही जाग रहे थे.

हमारा घर लगभग १ घंटे की दूरी पर था.

ऑटो चलते हुए पांच मिनट ही हुए थे की बेटा भी मेरी गोद में ऊँघने लग गया.

बाबूजी ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिए उनकी आँखों में शरारत की चमक थी, मैं समज रही थी की बाबूजी के मन में कुछ तो चल रहा है. आज यह पहली बार था की बाबूजी मेरे से इतना सट कर बैठे थे. तभी बाबूजी ने अपनी टांग मेरी टांग से मिला दी.
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मैंने उनकी तरफ देखा, बाबूजी दूसरी तरफ मुंह किये मुस्कुरा रहे थे.

अचानक से बाबूजी ने अपना हाथ मेरी कमर पर रख दिया. मैं एकदम से हिल सी गयी.

मैंने हिल कर उनका हाथ हटाना चाहा तो बाबूजी ने अपना हाथ हटा कर मेरे पेट पर रख दिया.
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मैं चुप रही कि देखते हैं कि बाबूजी बाबूजी क्या करते हैं, जब बाबूजी ने मुझे कुछ भी ना कहते पाया तो उन्होंने अपना हाथ मेरी कमीज के अंदर घुसा कर मेरे नंगे पेट पर रख दिया. मैं एकदम से घबरा गयी. मेरे पति मेरे पास ही बैठे थे और मेरा बेटा मेरी गोद में सो रहा था और बाबूजी यह हरकत कर रहे थे.

हालाँकि उनका हाथ कमीज के अंदर था और ऊपर से मैंने शाल भी ले राखी थी, तो किसी को कुछ भी दिख नहीं सकता था पर मैंने बाबूजी का हाथ पकड़ कर बाहर निकालना चाहा पर बाबूजी ने जोर से अपना हाथ मेरे नंगे पेट पर ही रखा.

मैं सब के सामने ऑटो में जोर आजमाईश तो कर नहीं सकती थी, तो थोड़ी देर कोशिश करने के बाद मैं चुप कर गयी और बाबूजी का हाथ रहने दिया.

बाबूजी मेरे इस सहयोग से बहुत खुश हो गए और अपना हाथ मेरे नंगे पेट पर सहलाने लगे.

अब मेरे बाबूजी को तो आप जानते ही हैं. जब मैंने अपना हाथ हटाया तो तुरंत उन्होंने मेरे पेट पर से हटा कर ऊपर मेरी छाती पर रख दिया. और मेरे मुम्मे को सीधा ही पकड़ लिया.
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मैं एकदम से चिहुंक पड़ी. इधर मेरे पति मेरे पास बैठे थे, और मेरे ससुर ने जिंदगी में पहली बार मेरा मम्मा पकड़ लिया था. मैं करती भी तो क्या करती.
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कुछ बोल भी तो नहीं सकती थी, मैंने अपना हाथ फिर से कमीज में डाल कर उनके हाथ को पकड़ लिया और उनकी तरफ गुस्से की नजरों से देखा.

बाबूजी मुझे देखते ही एक आँख मार दी, मैं शर्मा गयी. क्या करती. बाबूजी का हाथ कमीज के तो अंदर था ही तब तक बाबूजी ने जोर से अपना हाथ मेरे ब्रा के अंदर घुसेड़ कर मेरा नंगा मुम्मा पकड़ लिया और उसे दबाने लगे.
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मेरी स्थिति बड़ी अजीब थी. पहली बार कोई गैर मर्द मेरी छाती दबा रहा था. और वो भी मेरे बाबूजी ही,

मैंने पति की तरफ देखा, वो तो शराब के नशे में ऊंघ रहे थे. मुझे बड़ा गुस्सा आया.

अब तक ससुर जी ने मेरे एक निप्पल को अपने अंगूठे और ऊँगली में दबा लिया और उसे सहलाने लगे. मेरे शरीर में तो आग ही लग गयी थी,
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मैंने जोर से बाबूजी का हाथ अपने हाथ से पकड़ कर नीचे पेट की तरफ खींच दिया और ब्रा से बाहर निकाल दिया.

लेकिन उसका एक असर यह हुआ कि जो बाबूजी ने मेरी छाती हाथ में पकड़ी थी, हाथ जोर से नीचे खींचने के कारण मेरा मुम्मा भी ब्रा से बाहर निकल कर आ गया. और वो अब ब्रा से बाहर और कमीज के अंदर था.
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मैंने सोचा कि उसे तो मैं बाद में अंदर कर लूंगी, पहली बाबूजी का हाथ तो रोकूं किसी तरह.

उधर बाबूजी अपने दुसरे हाथ से पता नहीं क्या कर रहे थे. वो हाथ उनके लण्ड पर था, शायद उसे मसल रहे होंगे हमेशा की तरह.

बाबूजी ने अपना हाथ जो मेरे पेट पर घूम रहा था उसे मेरी सलवार के अंदर घुसेड़ने की कोशिश की.

वो मेरी चूत पर जाना चाहते थे. मैंने सलवार के नाड़े में घुसता हुआ उनका हाथ एकदम से पकड़ लिया. बाबूजी नई दुसरे हाथ से मेरा वो हाथ जोर से पकड़ा और अपनी गोद में खींचा. जब तक मैं कुछ समझती बाबूजी ने मेरा वो हाथ अपने नंगे लौड़े पर रख दिया. (अब मैं समझी कि बाबूजी ने अपना लण्ड अपनी धोती से बाहर निकाल लिया था.)
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अपना हाथ बाबूजी के गर्म गर्म लौड़े पर लगते ही मैं तो लगभग उछल ही पड़ी. बाबूजी इतनी हिम्मत करेंगे वो भी मेरे पति और बच्चे के सामने, यह तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था.
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बाबूजी मुझे अपना लौड़ा पकड़वाना चाह रहे थे. पर मैंने जोर से अपनी मुठी बंद कर ली और अपना हाथ वापिस खींचने लगी. अब इस स्थिति में जबकि मेरे पति और बेटा पास में थे और सामने ऑटो ड्राइवर गाड़ी चला रहा था तो मैं कुछ बोल तो नहीं सकती थी. बस जोर से अपनी मुठी भींच रखी और उसे बाबूजी के लण्ड पर से वापिस खींचने लगी.

पर बाबूजी भी पुराने घाघ और पहलवान थे. उन में बहुत जोर था. उन्होंने अपने हाथ से मेरे मुठी भरे हाथ को कस के पकडे रखा और मुझे वापिस नहीं लेने दिया.
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अब चलते ऑटो में मैं बाबूजी के साथ कुश्ती को कर नहीं सकती थी. बस जोर लगाती रही. बाबूजी के लाख कोशिश करने पर भी कि मैं उनके लौड़े को पकड़ लूँ, मैंने मुठी नहीं खोली.

अब मेरा सारा ध्यान मेरे इस लौड़े पर ठीके हुए हाथ पर था तो बाबूजी ने इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाते हुए अपना दूसरा हाथ झट से मेरी सलवार के अंदर घुसा दिया और मेरी उसे जोर से अंदर धकेलते हुए सीधे मेरी चूत पर ले आये और मेरी चूत को अपनी मुठी में भींच लिया.
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मैं तो इस दोतरफा हमले से घबरा गयी. क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था.

बाबूजी ने एक हाथ से मेरी मुठी वाले हाथ को अपने अकड़े हुए लौड़े पर टिका रखा था. और दुसरे से मेरी नंगी चूत को पकड़ रखा था.

शायद आज भगवन भी मेरी तरफ नहीं था. आज मैंने कच्छी भी नहीं पहन राखी थी. और अपनी चूत को बिलकुल साफ़ भी कर रखा था. आज मेरे पति जो आ रहे थे.
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पर इस का भरपूर लाभ मेरे ससुर को मिल रहा था. उन्होंने मेरी चूत को कस के अपने हाथ में पकड़ लिया.

अब मैं औरत जात करती भी तो इस समय क्या करती. और ऊपर से मेरे लाख न चाहते हुए भी मेरी चूत गीली होने लग गयी. इस साली चूत का भी अपना ही दिमाग है. यह यह नहीं देखती की उसे मसलने वाला हाथ उसके पति का है या ससुर का. बस उसे किसी की ऊँगली लगी नहीं कि चूत अपनी ख़ुशी जाहिर करने के लिए अपना रस छोड़ने लग पड़ती है.
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मैं अभी सोच ही रही थी कि क्या करूँ तभी बाबूजी ने अपनी एक ऊँगली मेरी गीली हो चुकी चूत में घुसा दी. और अपने अंगूठे को मेरी भगनासा पर रख कर उसे रगड़ना शुरू कर दिया. मेरी भगनासा उन्होंने अपने अंगूठे और पहली ऊँगली से पकड़ ली और उसे मसलने लगे और दूसरी ऊँगली मेरी भीगी चूत में सरका दी.
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यह मेरे लिए सहन करने की शक्ति से अधिक था. न चाहते हुए भी मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी. जो भगवान् की दया से ऑटो के शोर में किसी ने ना सुनी,

मैंने अपने पति की तरफ डर के मारे देखा कि कहीं उन्हें तो पता नहीं चल गया पर वो तो शराब के नशे में ऑटो दे डंडे से लगे ऊँघ रहे थे और मेरा बेटा तो सो ही रहा था.

अब स्थिति मेरे काबू से बाहर हो रही थी. बाबूजी तो ऐसे बैठे थे कि जैसे उन जैसा शरीफ आदमी इस दुनिया में कोई है ही नहीं. यह तो मुझे ही पता था उनकी शराफत का, जिसकी चूत में बाबूजी की ऊँगली घुसी हुई थी और दूसरा हाथ बाबूजी के तने हुए लौड़े पर था.
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मैंने बाबूजी की तरफ देखा और नजरों से उन्हें मिन्नत की, और ना में गर्दन हिला कर उन्हें हाथ बाहर करने का इशारा किया, पर बाबूजी ने तो मुझे आँख मार दी और मुस्कुरा कर मजा लेने का इशारा किया.

अब बाबूजी को दो मिनट मेरी चूत में ऊँगली करते हो गए थे. मेरी चूत बहुत गीली हो गयी थी. उधर मेरी भगनासा का दाना भी बाबूजी मसल रहे थे.

अचानक बाबूजी ने अपनी एक और ऊँगली मेरी चूत में घुसेड़ दी. बाबूजी की तो ऊँगली भी किसी छोटे मोटे लण्ड से कम थोड़े ही थी.
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मेरे मुंह से एक आह की आवाज निकल गयी , दो उँगलियाँ चूत में जाते ही, मैंने अपने पति वाले साइड के हाथ से उन्हें रोकना चाहा, इसका असर यह हुआ कि मेरा ध्यान चूत वाली साइड में हो गया, और लौड़े पर रखे हाथ की मुठी अपने आप खुल गयी.

बाबूजी को ध्यान उसी पर था. ज्योंही मेरी मुठी खुली बाबूजी ने तुरंत मेरी उँगलियाँ अपने लौड़े के ऊपर लपेट दी और अपनी मुठी मेरी उँगलियों पर कस ली.
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अब मेरे हाथ में उनका लण्ड पूरी मुठी में था. उनका लौड़ा इतना मोटा था कि मेरी उँगलियाँ उस पर पूरी तरह से नहीं आ पा रही थी,


मैं तो बुरी तरह फंस गयी थी, मेरी चूत में बाबूजी की दो उँगलियाँ घुसी हुई थी और हाथ में उनका लौड़ा था. जिस पर बाबूजी ने अपना हाथ रखा था ताकि मैं अपना हाथ उनके लण्ड से हटा ना सकूँ.
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Very Erotic writing
 
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Ting ting

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Aapki other stories open ya fir available nahi hai forum pr
Is it so?
There are many other stories of me on this forum.
There is link to many stories in my signature even (in every message from me the links are there).
Pl inform if stories are not opening.
Thanks
 
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कमरे से आ कर मैं आँखे बंद करके लेटी हुई थी कि तभी मुझे किसी के दरवाज़े के पास आने की आहट हुई, मैंने डरते हुए कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. पर बाहर तो कोई नहीं था, मुझे लगा शायद मेरा ही भ्र्म होगा और निश्चिंत होकर मैं बाथरूम की तरफ़ बढ़ी. मुझे लगा कि जैसे आवाज मेरे ससुर के कमरे से आ रही थी, बाबूजी के कमरे के साथ उनका अटैच बाथरूम भी तो था. मेरे कदम जैसे जैसे उस की तरफ़ बढ़ने लगे तो मुझे भी किसी की मादक सिसकियाँ सुनाई देने लगी, चौकन्ना होकर मैं उस आवाज़ की तरफ़ धीरे धीरे चलने लगी.
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ससुरजी को आसानी रहे इस लिए बाथरूम उनके कमरे के बिलकुल बग़ल में बनाया गया था, बाथरूम निकलती उन सिसकियों को सुनके मैं चौंक गयी. पहले तो मुझे लगा की शायद ससुरजी बाथरूम में फिसलकर गिर पड़े है इसीलिए उनकी कराहने की आवाजें आ रही है. पर जैसे ही मैंने दरवाज़ा हलके से खोलते हुए अंदर झाँका तो मेरे कदम लड़खड़ाने लगे, डर के मारे पसीने छूटने लगे. मेरे ससुर पुरे नंगे खड़े होकर अपना लंड हाथ में लेकर जोर जोर से मसल रहे थे, उस लंड का भयंकर रूप देख कर तो मेरी गांड चौड़ी हो गयी. चूत में भी पानी आ गया।
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जैसे तैसे मैंने अपने आपको संभाला और छुपके से उनके उस लिंग को देखने लगी, पर जैसे ही मैं संभली मेरे कानों पर पड़ी उस आवाज़ ने मेरे अंदर एक अजीब सा डर और गुदगुदी होने लगी. मेरे ससुर आज अपने बहु का नाम लेकर, उसको अपने यादों में लिए अपना लंड मसल रहे थे, मेरे बारे में ससुरजी की ये वासना सोचकर ही मुझे मदहोशी होने लगी.
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"सुषमा! आआह्ह्ह्हह्ह आआ उफ्फफ्फ्फ़ मेरी जानननननन ले ले मेरा लौड़ा , एक बार तो ले कर देख इसे, क्या मस्त चुत है तेरी, एक बार मेरे नीचे आ जा बस फिर तो फाड़ दूंगा तेरी चुत।" बाबूजी इस जैसी गन्दी बातें बोल बोल कर अपने लौड़े को जोर जोर से सड़का मार रहे थे.
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मेरे ससुरजी का लौड़ा मेरे पति से काफी ज्यादा लम्बा और मोटा था, मेरे पति का लण्ड तो उनके मुकाबले किसी बच्चे की नुन्नी जैसा था। काले रंग में लिपटा वो मांस का टुकड़ा देख के मेरी चुदी-चुदाई चुत भी पिघलने लगी. कुछ ही देर में बाबूजी का समय समाप्तः हुवा और एक जोर की आह की आवाज के साथ उनका ढेर सारा गाढ़ी मलाई रूपी वीर्य फ़र्श पर उछल उछल कर गिरने लगा.
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इस उम्र में भारी मात्रा में निकलता हुवा वीर्य देखकर मेरे दिल में उनके लंड ने घर बना लिया, लग रहा कि अभी जाऊं और सारा वीर्य चाट लूँ. ससुरजी के माथे पर पसीना छा रहा था, उसकी साँसे भी जोर जोर से चल रही थी वीर्य की आखिरी बूंद अब भी सूपड़े से निकल रही थी. उनका फुला हुवा लौड़ा एक इंच भी कमज़ोर नहीं हुवा ये देख के मुझे अंदाजा हो चूका था की आदमी पूरा मर्द है. किसी भी औरत की पूरी तस्सली करवा देंगे बाबूजी। फिर वो औरत चाहे उनकी बहु यानि कि मैं ही क्यों ना होऊं.
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मेरी चूत में बाबूजी की यह हरकत देख कर आग लग गयी. पर मेरे पति तो गए हुए थे तो उस आग को भुजाने का कोई सहारा भी तो नहीं था मेरे पास.

सोच सोच कर मैं किचन में गयी, और सब्जी की टोकरी में मुझे एक खीरा दिखाई दे गया. मुझे लगा कि लण्ड नहीं तो चलो अपनी पतली सी ऊँगली से तो खीरा ही अच्छा है. तो उसी से मजे लेने के लिए मैं उसे लेकर अपने कमरे में आ गयी.
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मैं चुपचाप वहां से निकल पड़ी और फिर से कमरे में आकर ससुरजी के लौड़े को याद करते हुए साड़ी के ऊपर से ही अपनी चुत मसलने लगी. कुछ देर पहले मैं मेरे पतिदेव को याद कर रही थी पर अब मेरे सपनों में मेरे ससुरजी का नंगा लौड़ा नाच रहा था. ससुरजी का मर्दाना लौड़ा यद् करके मैं सोच रही ही की मैं खुद उनके लौड़े से चुद रही हूँ और इसी कामुकता के चलते मेरा पानी अबकी बार कुछ ही पलों में निकल कर बहने लगा. मेरा हाथ मेरे ही चुतरस से चिपचिपा हो गया पर इस बार मैंने वासनांध होकर मेरे चुतरस से भीगी उंगलिओं को चाटना चालू किया.
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मैं वासना में अंधी हो रही थी. मैंने मेरी साडी उतार के फेंक दी और एक छोटी सी नाइटी पहन ली, और अपनी पैंटी उतार के बेड के नीचे ही फेंक दी ब्रा तो मैंने आज पहनी ही नहीं थी जब मैंने बाबूजी को पोंछा लगाने के बहाने से मजा दिया था. ऐसा करने से मुझे अपनी चूत में खीरा करने में आसानी होती .
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सामने लगे आईने में मेरा गदराया हुवा बदन देख मुझे अपने आप पर गर्व सा महसूस होने लगा, किसी भी मर्द के लौड़े में आग लगाने की ताकत थी मेरे हुस्न में. सीने पे उभरे मेरे ३६ इंच के चूंचे थोड़ी चर्बी से गदराया हुवा पेट और उसके निचे मांसल जाँघे देख मैं अपना सीना सहालने लगी. पुराणी यादों को याद करते करते कब मेरा हाथ मेरा बदन मसलने लगा मुझे भी पता ना चला.
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बिस्तर पे अपना बदन डालते ही मेरी आँखे बंद हुई, जिस्म की चुदाई की माँग को बुझाने के लिए मेरी उँगलियाँ ना जाने कब मेरे चूत का बंधन पार करते हुए मेरे चुत को छूने लगी. एक हाथ से मैक्सी के ऊपर से ही चूँचियाँ मसलते हुए मैंने मेरी दो उँगलियाँ मेरे भोसड़े में घुसा दी और पुराने दिन याद करते हुए मज़ा लेने लगी.

फिर मैंने वो खीरा उठा लिया और अपनी चूत में डाल लिया। खीरा मेरे पति के लण्ड से तो बड़ा था पर बाबूजी से छोटा ही था. पर जो भी हो काम तो चलाना ही था. तो मैंने पूरा खीरा अंदर घुसेड़ लिया और अंदर बाहर करके मजा लेने लगी.
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इतने दिनों से जो आग दबा कर रखी थी आज वही आग फ़िरसे भड़क उठी थी. मेरे ससुर का वो मोटा तगड़ा लौड़ा और उनके चुदाई से हो सकने वाला मीठा दर्द सोचते हुए मेरी उँगलियाँ मेरे निगोड़ी चुत पर खीरे को जोर जोर से अंदर बाहर करने लगी.
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आअह्ह्ह्ह उफ्फफ्फ्फ़ बाबूजी जज्जजज माँआआआआ जैसे किलकरियाँ मेरे मुँह से निकलने लगी और बड़े दिनों से फड़फड़ाती मेरे चुत का पानी कुछ ही मिनिटों में बाहर फ़वारे की तरह उमड़ने लगा. कई दिनों बाद मेरे भोसड़ी का पानी निकलने के कारन मेरा हाथ और मेरा मैक्सी पूरा गिला हो चूका था.
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गीली चुत को प्यार से सहलाते हुए मेरी उखड़ी हुई सांसों को काबू करते हुए मैं ऐसे ही छत की तरफ देखते हुए लेटी रही. मुझे इतना निकलने से काफी कमजोरी महसूस हो रही थी, मैंने खीरे को बेड के साइड में टेबल पर रख दिया और चूत को सहलाते हुए लेट गयी,
👌👌👌👌 Amazing and Hot writing Bhai
 
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