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अब देखना शीला पिंटू से चुदवा लेगी और उसको अपने इशारे पे नचाएगीपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की, रसिक के खेत से, तहस नहस होकर लौटी शीला अपनी थकान उतार रही थी तब उसे मदन का फोन आया की वह और एक दिन रुकने वाला है.. ओर तो ओर पिंटू भी अपने घर आने वाला था.. शीला की आँखें चमक उठी.. अब शीला यह सोच रही थी की वह अपनी इस स्वतंत्रता को गँवाने नहीं देगी.. पर इसे बरकरार रखने में, वैशाली और पिंटू बाधा बन रहे थे और ऐसे घुट-घुटकर जीना, शीला के मन को गँवारा नहीं था.. उसका दिमाग योजना बनाने में जुट गया॥ एक और दिन की स्वतंत्रता मिलते ही उसने रसिक को घर बुला लिया और मन भरकर खुद को तृप्त किया..
अब आगे...
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दूसरी सुबह पीयूष के घर पर..
मदन, राजेश और पीयूष डाइनिंग टेबल पर बैठकर नाश्ता कर रहे थे.. अदरख वाली चाय के साथ आलू के पराठे खाते हुए मदन ने देखा की राजेश अब भी नींद में था..
मदन: "काफी थका हुआ लग रहा है राजेश.. कल कितने बजे लौटा था?"
राजेश: "हाँ यार, कल कुछ ज्यादा ही हो गई थी.. आते आते बहोत देर हो गई थी कल रात"
पीयूष: "हम्म.. तो अब आज का क्या प्लान है आप लोगों का?"
मदन: "मुझे तो आज वैशाली के घर जाना है.. उसके ससुर ने मुझे खाने पर बुलाया है.. पिंटू भी आज आ गया होगा"
राजेश: "अरे यार.. !! तो फिर हम घर जाने के लिए कब लौटेंगे?"
मदन: "खाना खाकर तुरंत निकल जाएंगे.. तू भी चल मेरे साथ"
जब राजेश और वैशाली के बीच वो घटना घटी थी.. तब शीला या किसी ने भी मदन को इस बारे में खुलकर नहीं बताया था.. मदन केवल इतना ही जानता था की पिंटू और वैशाली के बीच किसी बात को लेकर कोई बड़ी अनबन हो गई थी.. और आखिर सब सुलझ भी गया और वैशाली की शादी भी हो गई इसलिए उसने उस कारण के बारे में ज्यादा पूछताछ भी नहीं की थी..
वैशाली के घर जाने की बात सुनकर ही राजेश बोल पड़ा "नहीं यार.. तू ही चला जा.. मुझे तो ऑफिस पहुंचना पड़ेगा.. ढेर सारा काम बाकी पड़ा है"
मदन: "यार तो फिर मैं घर वापिस कैसे जाऊंगा?"
राजेश: "एक काम कर, तू मेरी गाड़ी ले जा.. मैं केब बुला लूँगा"
मदन: "अरे नहीं.. ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है.. तू अपने हिसाब से निकल.. मैं तो बस में आ जाऊंगा"
राजेश: "ओके, जैसा तुझे ठीक लगे"
तभी कविता आकर सब की प्लेट मे गरम आलू पराठे परोस गई
पीयूष: "फिर क्या सोचा आप दोनों ने? आप मुझे जल्दी बताइए ताकि मुजे टिकट बुक करने मे आसानी हो"
राजेश: "मेरे हिसाब से, तुम्हें और मदन को जाना चाहिए"
पीयूष: "अरे राजेश सर, ऐसा नहीं चलेगा.. आपकी भी जरूरत वहाँ पड़ेगी"
राजेश: "पीयूष, मदन के रहते तुझे कोई दिक्कत नहीं होगी.. उसे इस फील्ड का बहोत अनुभव है.. दूसरा, रेणुका को इस अवस्था में छोड़कर मैं नहीं आ सकता, यह तुम समझ सकते हो.. और हाँ, कहीं भी मेरी जरूरत पड़ी तो स्काइप या टीम्स पर मीटिंग कर लेंगे..!!"
हकीकत में, राजेश की नहीं जाने की असली वजह फाल्गुनी थी..!! पिछली रात, फार्महाउस पर फाल्गुनी के साथ उसे जो मज़ा आया था.. उसका दिल कर रहा था की वो वहीं पड़ा रहे और उस कमसिन कली के नाजुक जिस्म को भोगता रहे.. !!
पीयूष: "आपकी बात समझ सकता हूँ.. रेणुका मैडम को इस हाल में अकेले छोड़ना भी नहीं चाहिए.. तो फिर यह तय रहा.. मैं और मदन भैया जाएंगे.. मैं आगे का शिड्यूल आपको बता दूंगा मदन भैया"
मदन: "ठीक है पीयूष.. पर थोड़ा जल्दी बताना.. मुझे भी यहाँ के कुछ काम निपटाने है"
पीयूष: "जैसे ही मेरा ट्रावेल एजेंट कनफर्म करेगा, मैं आपको बता दूंगा"
मदन: "ओके.. डन..!!"
नाश्ता खतम करने के बाद, राजेश और मदन, वैशाली के ससुराल की ओर निकल गए.. मदन को वहाँ ड्रॉप करने के बाद राजेश निकल गया.. मदन ने उसे बहोत कहा.. एक बार ऊपर आकर मिलने आने को.. पर पिछले कांड के बाद, वो वैशाली और पिंटू से अंतर बनाए रखता था.. काम का बहाना बनाकर वो निकल गया
थोड़े दूर जाकर, राजेश ने फाल्गुनी को कॉल लगाया.. पर फाल्गुनी ने उठाया नहीं.. कुछ देर इंतज़ार करने के बाद, राजेश अपने शहर की ओर निकल गया..
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उस दिन मदन बस से घर पहुंचा.. पहुंचते हुए रात हो गई थी.. शीला उसका इंतेज़ार कर रही थी.. उसे वैशाली के बारे में जानना था और यह भी पूछना था की पीयूष वाली डील में आखिर मदन क्या किरदार निभाने वाला था.. दस बज गए थे इसलिए शीला अपनी नाइटी पहने बैठी थी
मदन आकर सोफ़े पर बैठा और शीला उसके लिए पानी का गिलास भर लिया.. मदन ने पानी पिया और शीला उसके बगल में बैठ गई..
शीला: "तो कैसा रहा तेरा सफर?"
मदन: "यार, सच बताऊँ तो अब ये बस का सफर राज नहीं आता.. !!"
शीला ने हँसकर कहा "बूढ़ा हो गया है तू.. असली मज़ा तो बस और ट्रेन के सफर मे ही आता है"
मदन ने शीला की खरबूजे जैसी चुची की आगे उपसी हुई निप्पल को दबाते कहा "वो तो अभी तुझे अंदर ले जाकर बेड पर पटक कर चोदूँगा, तब पता चलेगा की मैं कितना बूढ़ा हूँ"
अपनी निप्पल छुड़ाते हुए शीला ने शैतानी भरी मुस्कान के साथ कहा "आज तो बड़ा जोश चढ़ रहा है तुझे.. चल, अभी अंदर जाकर देखते है की कौन कितने पानी में है.. वो सब छोड़.. यह बता की वैशाली के घर पर सब कैसे है?"
मदन: "सब ठीक है.. वैशाली बेहद घुल-मिल गई है अपने ससुराल वालों से.. उसका नाम लेते लेते उसकी सास की तो जुबान ही नहीं थकती.. पिंटू के पापा भी काफी खुश लग रहे थे.. और पिंटू भी.. !! सच में.. बहोत अच्छा खानदान मिल गया हमारी बेटी के लिए.. बड़े अच्छे लोग है.. वैशाली भी एकदम अच्छी तरह वहाँ सेट हो गई है.. बस ऊपरवाले से यही प्रार्थना है की उनका संसार यूं ही खुशी खुशी चलता रहे"
शीला: "वो तो चलेगा ही.. अच्छा ये बता.. पीयूष के साथ क्या बातचीत हुई?"
मदन: "मामला धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है.. तैयारियां भी शुरू कर दी ही पीयूष ने.. एक बार बेंक वालों से बात करनी होगी.. लेटर ऑफ क्रेडिट को लेकर कुछ उलझनें जरूर है.. पर वो तो मैं संभाल लूँगा.. लेकिन एक बार अमरीका जाना होगा.. पीयूष और मैं वहाँ साथ जाने की सोच रहे है.. टिकट बुक होते ही पीयूष बताएगा मुझे.. काफी बड़ा ऑर्डर है और पीयूष ने मुझे उस ऑर्डर के ५% देने का वादा किया है"
शीला खुशी से उछल पड़ी "क्या सच में..!! तब तो बड़ी अच्छी कमाई हो जाएगी"
मदन: "हाँ शीला.. रिटायरमेंट के बाकी वर्षों में हमे कभी पैसों की दिक्कत नहीं आएगी उतनी रकम तो मिल ही जाएगी.. वहाँ के मेरे सारे कॉन्टेक्टस काम आ जाएंगे.. पीयूष का काम हो जाएगा और हमारा भी"
शीला ने मदन को गाल पर चूमते हुए कहा "यार मदन.. मुझे नाज़ है तुम पर.. मुझे तो पता ही नहीं था की मेरा पति, इतने काम की चीज है"
मदन: "ऐसा ही होता है, घर की मुर्गी दाल बराबर ही लगती है"
शीला ने अपनी आँखें नचाते हुए नाइटी के ऊपरी हिस्से से दोनों स्तनों को बाहर निकालते हुए कहा "तेरा इन मुर्गियों के बारे मे क्या खयाल है?"
मदन ने लोलुप नज़रों से दोनों स्तनों को देखा और अपने चेहरे के स्तनों की बीच की गहरी खाई में रगड़ते हुए कहा "बड़ा ही नेक खयाल है.. आज तो इन मुर्गियों की अच्छे से खातिरदारी करता हूँ" कहते हुए उसने शीला की निप्पल को मुंह मे डालकर चूस लिया"
शीला ने सोफ़े से उठते हुए मदन को खींचकर खड़ा किया और कहा "सिर्फ मुर्गियों की ही नहीं.. नीचे वाली गुफा की भी मरम्मत करनी होगी"
मदन उठ खड़ा हुआ और शीला के चूतड़ों को अपनी हथेलियों से दबाते हुए बोला "अरे मेरी जान.. आज तो मैं इतना मूड मे हूँ की तेरी आगे पीछे की दोनों गुफाओं की मरम्मत कर दूंगा.. !!"
दोनों ने बेडरूम मे प्रवेश किया और बिस्तर पर बैठ गए..
मदन: "शीला, दरवाजा तो ठीक से बंद कर दिया है ना तूने.. !!"
शीला: "हाँ मदन.. चिंता मत कर.. सब बंद कर दिया है.. अब जो खोलने वाली हूँ उस पर ध्यान दे.. कहते हुए शीला ने अपनी नाइटी उतार फेंकी और बेड पर लेट गई
शीला बेड पर लेटी ही थी की बिजली चली गई और बल्ब बुझ गया.. पूरे कमरे में अंधेरा छा गया.. शीला तो बेतहाशा गरम और गीली हो चुकी थी.. साँसें तेज़ी से चल रही थी, दिमाग और जिस्म में सनसनाहट दौड़ रही थी.. रक्त प्रवाह सौ गुना बढ़ चुका था, चेहरा लाल हो गया था और शीला गहरी-गहरी साँस ले रही थी.. मदन ने शीला को धीरे से धक्का दिया और शीला बेड पर सीधे लेट गई.. मदन शीला की साईड में था और उसका हाथ अभी भी शीला की चूत पे था.. शीला बस ऐसे ही चित्त लेटी रही और उसने अपनी टांगें फेला ली थी.. अब मदन शीला की चूत का अच्छी तरह से मसाज करने लगा.. शीला को बहुत ही मज़ा आ रहा था.. अब उसने शीला का हाथ पकड़ कर अपने अकड़े हुए लंड पे रख दिया और दबाने लगा.. सेक्स के लिए तड़प रहे मदन का लंड मोटा और सख्त हो चला था.. उसने शॉर्ट्स को अपने घुटनों तक खिसका दिया था और शीला के हाथ में अपना लंड थमा दिया था.. शीला ने हमेशा की तरह बिना पैंटी और ब्रा के नाइटी पहनी थी
मदन का हाथ शीला के सर के नीचे था.. उसने दूसरे हाथ से शीला को अपनी तरफ़ करवट दिला दी.. अब दोनों एक दूसरे की तरफ़ मुँह करके करवट से लेटे थे.. उसने शीला को किस करना शुरू किया तो शीला का मुँह अपने आप खुल गया और जल्द ही उसकी ज़ुबान शीला के मुँह के अंदर घुस चुकी थी और शीला उसकी जीभ को चूस रही थी.. शीला के जिस्म में तो जैसे हल्के-हल्के इलेक्ट्रिक शॉक्स लग रहे थे..
शीला मदन के दाहिनी ओर पे थी और वो शीला के उस तरफ.. अब उसने अपने पैरों को चलाते हुए अपनी शॉर्ट्स भी निकाल दी और अपना टी-शर्ट भी.. वो पूरा का पूरा नंगा हो गया था.. उसके सीने के बाल शीला की नाइटी के ऊपर से ही शीला के मदमस्त चूचियों पर लग रहे थे और शीला के निप्पल खड़े हो गये थे.. मदन ने शीला की एक टांग को उठा कर अपनी जाँघ पर रख लिया.. ऐसा करने से शीला की नाइटी थोड़ी सी ऊपर उठ गई तो उसने शीला की जाँघों पे हाथ फेरते-फेरते नाइटी को ऊपर उठाना शुरू किया और शीला की मदद से पूरी नाइटी निकाल दी.. शीला एक दम से अपने होश-ओ-हवास खो चुकी थी और वो जैसे कर रहा था, करने दे रही थी और पूरा मज़ा ले रही थी..
वह दोनों एक दूसरे की तरफ़ करवट लिये लेटे थे और शीला की एक टाँग उसकी जाँघ पे थी और अब उसने शीला के बबलों को मसलना शुरू कर दिया और फिर उन्हें मुँह मे लेकर चूसने लगा.. बूब्स को मुँह में लेते ही शीला के जिस्म में इलेक्ट्रिक करंट दौड़ गया तो शीलाने उसका लंड छोड़ कर उसका सर पकड़ के अपने सीने में घुसा दिया.. वो ज़ोर-ज़ोर से शीला की चूचियों को चूस रहा था और उसका लंड जोश में हिल रहा था.. लंड का सुपाड़ा शीला की भोसड़े के होंठों को छू रहा था.. लंड के सुराख में से प्री-कम भी निकल रहा था..
मदन ने शीला का हाथ अपने सर से हटाया और फिर से अपने लंड पर रख दिया और शीला खुद-ब-खुद ही उसको दबाने लगी और वो शीला की चूत का ऊपर से नीचे मसाज करने लगा.. कभी चूत के सुराख में धीरे से उंगली डाल देता और कभी चूत के होंठों के अंदर ही ऊपर से नीचे और जब कभी शीला की क्लीटोरिस को मसल देता तो शीला जोश में पागल हो जाती.. शीला की एक टाँग उसकी जाँघों पे रखे रहने की वजह से शीला की चूत थोड़ी सी खुल गई थी और लंड का सुपाड़ा चूत से छू रहा था तो शीला ने उसके लंड को पकड़े-पकड़े अपनी चूत के अंदर रगड़ना शुरू कर दिया.. शीला मस्ती से पागल हुई जा रही थी.. शीला को लग रहा था जैसे उसके अंदर कोई लावा उबल रहा है जो बाहर आने को बेचैन है.. इसी तरह से शीला उसके लंड को अपनी चूत में रगड़ती रही और लंड में से निकलता हुआ प्री-कम और शीला की चूत का बहता हुआ रस मिल कर चूत को और ज़्यादा चिपचिपा बना रहे थे.. शीला का मस्ती के मारे बुरा हाल हो चुका था.. अब शीला चाह रही थी के ये लंड उसकी चूत के अंदर घुस जाये और घनघोर चुदाई हो..
मदन ने शीला को फिर से चित्त लिटा दिया और शीला की टाँगों को खोल के बीच में आ गया.. उसने शीला की बे-इंतहा गीली चूत को किस किया तो शीला ने अपने चूतड़ उठा के उसके मुँह में अपनी चूत को घुसेड़ना शुरू कर दिया.. शीला की आँखें बंद हो गई थी और मज़े का आलम तो बस ना पूछो.. इतना मज़ा आ रहा था जिस को बयान न किया जा सके.. उसका मुँह शीला की चूत पे लगते ही शीला की टाँगें खुद-ब-खुद ऊपर उठ गई और मदन की गर्दन पर कैंची की तरह लिपट गई और शीला उसके सर को अपनी टाँगों से अपनी चूत के अंदर घुसेड़ रही थी और उसे ऐसे लग रहा था जैसे अंदर उबलता हुआ लावा अब बाहर निकलने को बेचैन हो.. मदन की जीभ, शीला की क्लीटोरिस को लगते ही शीला के जिस्म में सनसनी सी फैल गई और शीला के मुँह से एक ज़ोर की सिसकरी निकली, “आआआआहहहह सससस”, और शीला की चूत में से गरम-गरम लावा निकलने लगा और पता नहीं कितनी देर तक निकलता रहा.. जब उसका दिमाग ठिकाने पर आया तब देखा कि मदन अभी भी शीला की चूत में अपनी ज़ुबान घुसेड़ के चाट रहा है और पूरी चूत को अपने मुँह में लेकर दाँतों से काट रहा है.. शीला की चूत में अब नए सिरे से चुनचुनी होने लगी..
शीला: "आह्ह.. बहोत हुआ मदन, अब डाल भी दे अंदर.. उफ्फ़!!"
मदन: "ओह शीला, आज मुझे आराम से करने दे..!!:
मदन के हाथ शीला की गाँड के नीचे थे और वो शीला के चूतड़ों को उठा के चूत को चूस रहा था.. शीला अपने चूतड़ों को उछाल-उछाल कर अपना भोसड़ा मदन के मुँह से रगड़ रही थी.. चूत में फिर से गुदगुदी शुरू हो गई थी.. शीला मदन का सर पकड़े हुए अपनी चूत में घुसेड़ रही थी.. अब शायद मदन से भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो वो अपनी जगह से उठा और शीला की टाँगों के बीच में बैठ गया और अपने लौड़े को हाथ से पकड़ कर उसके सुपाड़े को शीला की गीली और गरम जलती हुई चूत के अंदर, ऊपर से नीचे कर रहा था.. शीला की टाँगें मुड़ी हुई थी.. शीला भी अब चूत-छेदन का इंतज़ार और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी.. उसने अपना हाथ बढ़ा कर मदन के सख्त लंड को अपने हाथों से पकड़ लिया और अपनी चूत के छेद में घिसना शुरू कर दिया..
मदन अब शीला की ऊपर मुड़ गया और शीला के मुँह में अपनी ज़ुबान को घुसेड़ कर किस कर रहा था और शीला उसके लंड को अपनी चूत में घिसे जा रही थी.. शीला की टाँगें मदन की कमर के इर्दगिर्द लपेटी हुई थी और मदन का लंड, शीला की चूत के होंठों के बीच, सैंडविच बना हुआ था.. उसने अपने लंड को चूत के होंठों के बीच में से ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया.. चूत बहुत ही स्निग्ध हो गई थी और ऐसे ही ऊपर नीचे करते-करते उसके लंड का मोटा सुपाड़ा शीला के गरम सुराख में अटक गया और शीला मस्ती से सिहर उठी.. मदन ने अपने लंड को थोड़ा सा और धकेला तो उसका पूरा लंड, चूत के अंदर घुस गया.. अब शीला ने अपने दाँत ज़ोर से बंद कर लिये..
मदन ने सुपाड़े को धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया तो शीलाने अपने दोनों हाथ बढ़ा कर मदन को अपनी बांहों में ज़ोर से जकड़ लिया.. अब मदन शीला की चूचियों को चूसने लगा तो शीला के जिस्म में फिर से सनसनी सी फैलनी शुरू हो गई और शीला उसकी कमर पर अपने हाथ फिराने लगी..
मदन अपने लंड के सुपाड़े को शीला की बुर के अंदर बाहर करने लगा.. शीला की चूत से निकल रहे रस की वजह से उसके लंड का टोपा अब अंदर-बाहर आसानी से सरक रहा था..
धनाधन चुदाई हुई और शीला के भोसड़े मे जैसे जश्न शुरू हो गया..
धक्के लगाते लगाते मदन बीच में ही रुक गया.. और शीला के बबलों को चूसने लगा.. मदन का यह तरीका था.. रुक रुक कर चोदना.. इससे शीला की उत्तेजना और बढ़ जाती थी और फिर दोनों को चोदने में दोगुना मज़ा भी आता था..
अब मदन ने अपने हाथ शीला की बगल से निकाल कर शीला के कंधों को पकड़ लिया और शीला को चूमने लगा.. पोज़िशन ऐसी थी कि दोनों के जिस्म के बीच में शीला के बबले पिचक गये थे.. मदन शीला पर झुका हुआ था और उसका लंड शीला की चूत के अंदर घुसा हुआ था.. मदन ने धीरे-धीरे लंड को फिर से अंदर-बाहर कर, शीला की चुदाई शुरू की और शीला मज़े से पागल होने लगी.. शीला की चूत में उसका मोटा लंड फँसा हुआ था और अंदर-बाहर हो रहा था..
शीला को अब लगने लगा जैसे उसका स्खलन अंदर उबल रहा हो और बाहर निकलने को बेचैन है.. तभी ही मदन ने अपने लंड को शीला की चूत से पूरा बाहर निकाल लिया.. शीला को अपनी चूत खाली-खाली लगने लगी और फिर देखते ही देखते उसने इतनी ज़ोर का झटका मारा और शीला के मुँह से चींख निकल पड़ी, “ऊऊऊऊईईईईईई मां...आआआआआहह जबरदस्त यार.. मज़ा आ रहा है मदन”,
शीला मदन से लिपट गई उसको ज़ोर से पकड़ लिया और उसका शरीर अकड़ने लगा.. थरथराते हुए उसका भोसड़ा एकदम से सिकुड़ गया और अंदरूनी दीवारों ने मदन के लंड को निचोड़ दिया.. एक पल के लिए शीला की आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया.. शीला के भोसड़े ने डकार मार ली थी..
पता नहीं शीला कितनी देर मदन को ज़ोर से चिपकी रही.. जब उसे होश आया तो देखा कि मदन अपने लंड से शीला की फटी चूत को चोद रहा था.. उसका लंड अंदर-बाहर हो रहा है और शीला फिर से “ऊऊऊऊईईईईई आआआआहहहह औंऔंऔंऔं आआआईईईई” जैसी आवाज़ें निकालने लगी.. मदन अब रुकने का नाम नहीं ले रहा था.. लग रहा था जैसे पागल हो गया हो.. ज़ोर-ज़ोर से शॉट लगा रहा था..
मदन शीला को चोदे ही जा रहा था.. शीला उसके जिस्म से चिपकी हुई थी और मदन के हर धक्के के साथ उसके बबले आगे पीछे हो रहे थे.. थोड़ी ही देर में जब शीला फिर से गरम हो गई तो उसे अब और मज़ा आने लगा.. मदन के हाथ अभी भी शीला के कंधों को पकड़े हुए थे और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर लंड को पूरा सिरे तक बाहर निकालता और जोर के झटके से चूत के अंदर घुसेड़ देता.. उसके चोदने की स्पीड बढ़ गई थी.. शीला को अपनी बुर के अंदर ही उसका लंड फूलता हुआ महसूस हुआ..
शीला ने फिर से मदन को ज़ोर से अपनी बांहों में जकड़ लिया.. उसके साथ ही उसके लंड से गरम-गरम मलाईदार वीर्य निकलने लगा और शीला की चूत को भरने लगा.. शीला की चूत का लावा भी ऐसे बाहर निकलने लगा जैसे बाँध तोड़ कर नदी का पानी बाहर निकल जाता है.. शीला के जिस्म में झटके लग रहे थे और दिमाग में सनसनाहट हो रही थी.. बहुत ही मज़ा आ रहा था.. मदन अभी भी धीरे-धीरे चुदाई कर रहा था.. जितनी देर तक उसकी मलाई निकलती रही, उसके धक्के चलते रहे और फिर वो अचानक शीला के बबलों पर धम्म से गिर गया.. दोनों गहरी गहरी साँसें ले रहे थे.. शीला उसके बालों में हाथ फेर रही थी.. टाँगें खुली पड़ी थी और शीला चित्त लेटी रही.. मदन का लंड अभी भी शीला की चूत के अंदर ही था पर अब वो धीरे-धीरे नरम होने लगा था और फिर पुच की आवाज़ के साथ उसका लंड शीला की चूत के सुराख से बाहर निकल गया.. चूत के रस और वीर्य की मिश्र मलाई जो चूत के अंदर जमा हो चुकी थी, वो बाहर निकल रही थी जो शीला की गांड की दरार पर से होती हुई बेड की चादर पर गिर रही थी..
मदन थोड़ी देर तक शीला के ऊपर ऐसे ही पड़ा रहा..
शीला ने मुसकुराते हुए कहा "आज तो मजे करवा दिए तूने.. कोई गोली-वोली खा ली थी क्या?"
मदन ने हँसते हुए कहा "अरे मेरी जान.. एक बार तुझे नंगे बदन देख लेने के बाद किसी गोली की जरूरत ही कहाँ पड़ती है..!!"
शीला रूठने की एक्टिंग करते हुए बोली "फिर भी, दुधारू औरतों जैसी आकर्षक तो नहीं लगती हूँ ना.. वो फ़िरंगन मेरी और देसी रूखी जैसी"
मदन: "हाय शीला... !!! क्या याद दिला दिया यार.. !!! बहोत मन हो रहा है.. चूचियों से दूध चूसने का बड़ा मन हो रहा है " अपने सुस्त लंड को सहलाते हुए मदन ने कहा
शीला: "जानती हूँ मदन.. दूध टपकाते बबलों के लिए तेरी जो चाह है.. इसीलिए तो मैंने सामने से रूखी को सेट किया है तेरे लिए.. !!"
मदन: "पर क्या फायदा यार.. !! वैशाली और पिंटू यहाँ पड़ोस मे हो तब उसे घर बुलाने की सोच भी नहीं सकते.. रूखी के घर उसके सास और ससुर के रहते मुमकिन नहीं होता.. और अब इस उम्र में उसे ओयो-रूम मे ले जाना अच्छा नहीं लगेगा.. वैसे भी.. एक बार के उस होटल के कांड से बाल बाल बचे है.. दोबारा हिम्मत नहीं होती"
शीला: "सच कहा तूने यार.. पहले तो राजेश भी हफ्ता भर यहाँ पड़ा रहता था.. रेणुका भी आती थी और हम सब साथ में कितने मजे करते थे.. !! वैशाली की शादी के बाद सब बंद हो गया"
मदन: "बड़ी मस्त लाइफ थी यार.. बीच बीच में रूखी का जुगाड़ भी हो जाता था और रसिक साथ आता तो तेरा भी काम हो जाता था.. पता नहीं यार, वो दिन फिर वापिस लौटकर आएंगे भी या नहीं"
शीला ने एक गहरी सांस लेकर कहा "आएंगे मदन.. जरूर लौटकर आएंगे.. मैं लाऊँगी वो सारी दिन वापस.. तू फिलहाल अपने काम पर ध्यान दे.. एक बार ये ऑर्डर खत्म हो जाए फिर मैं तुझे और कोई नया काम नहीं करने दूँगी.. बस आराम से साथ मजे करेंगे"
मदन: "पर कैसा होगा शीला? पिंटू और वैशाली के यहाँ रहते हुए कैसे होगा?"
शीला: "होगा मदन.. सब कुछ होगा.. वो सब तू मुझ पर छोड़ दे.. मैंने कुछ सोचा है इसके बारे में.. और जल्द ही हमारा काम हो जाएगा.. एक बार मैं कुछ करने की ठान लूँ फिर मैं वो करके ही रहती हूँ, तुझे तो पता है"
शीला का आत्मविश्वास देखकर मदन एक पल के लिए घबरा गया "यार कुछ उल्टा-सीधा करने की तो नहीं सोच रही तू..!!"
शीला: "पागल है क्या.. !! वैशाली और पिंटू को आंच भी नहीं आने दूँगी.. ऐसा रास्ता निकालूँगी की वह दोनों भी खुश हो जाएंगे और हमारे रास्ते के कांटा भी दूर हो जाएगा"
मदन: "तूने क्या सोचा है, यह तो तू बताएगी नहीं.. हमेशा की तरह"
शीला: "सही कहा.. नहीं बताऊँगी..बस करके दिखाऊँगी.. तू बस आम खाने से मतलब रख... गुठलियाँ गिनने की जरूरत नहीं है"
मदन ने हार मान ली "ठीक है बाबा,.. जैसा तुझे ठीक लगे.. पर जो भी करना सोच समझ कर करना"
शीला को आगोश में लेकर मदन उसे सहलाने लगा और दोनों की आँख लग गई
Thanks a lot Sanju bhaiबहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है अनु मौसी वासना के वशीभूत होकर उसने आइसक्रीम में नींद की दवाई मिलाकर कविता को खिला दी है लेकिन कविता को इसका पता चल जाता है इसलिए वह आइसक्रीम नहीं खाती है वासना में अंधी होकर उसने कविता को रसिक को परोस दिया है लेकिन किसी ने आकर कविता की इज्जत बचा ली है
Hot hot update.पिंटू की आँखों में धूल झोंककर आखिर शीला ने अपना रास्ता साफ कर ही लिया.. रेणुका के घर जाने के बहाने, वह रसिक के खेत पर जाने के लिए निकल गई.. पिछले एक महीने से बिना चुदाई के तड़प रहा रसिक बेसब्र हो रहा था.. शीला के वहाँ पहुंचते है शुरू हुआ हवस का नंगा नाच.. भांग के नशे और हवस के सुरूर से पागल रसिक ने शीला की अंतड़ियों तक लंड पेलकर की हिंसक चुदाई..
उधर मदन और राजेश, पीयूष की ऑफिस पहुंचे मीटिंग के लिए..
अब आगे..
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शाम के वक्त पीयूष की ऑफिस में..
पीयूष की बड़ी सी चेम्बर मे.. अपनी कुर्सी पर बैठे हुए पीयूष अपने सर पर हाथ रखे हुए.. मदन और राजेश के साथ गहरी चर्चा में डूबा हुआ था..
राजेश: "पीयूष, अगर तू इस ऑर्डर को अच्छे से पूरा करना चाहता है तो तुझे कम से छह महीनों की मुद्दत तो माँगनी ही पड़ेगी"
पीयूष: "वही तो दिक्कत है राजेश सर.. यह गोरे मेरी बात मान ही नहीं रहे है.. कहते है, दो महीनों मे सारा सप्लाइ भी खतम करो और इंसटोलैशन भी.. मुझे तो समझ नहीं आ रहा की यह सब कैसे मुमकिन होगा.. !! आज दोपहर ही उन लोगों से विडिओ चेट की मैंने.. काफी मनाया पर वो लोग एक नहीं सुन रहें"
मदन: "इन अंग्रेजों को अलग तरीके से मनाते है.. देख पीयूष.. मैं ठहरा पुराने तरीकों वाला.. ये विडिओ चेट वगैराह से काम नहीं बनने वाला.. जाकर उनके सामने बैठ.. और उन्हे यह समझा की जल्दबाजी करने पर प्रोडक्ट की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ेगा.. एक चरणबद्ध प्लान बनाकर उन्हें समझाना पड़ेगा.. भारत के उद्योगों की काम करने की शैली भी उन्हें समझानि पड़ेगी.. उससे भी बात न बने तो तू १००% एडवांस की मांग करना.. जैसे ही पैसों की बात आएगी वो ठंडे पड़ जाएंगे.. मैंने ऐसे कई ऑर्डर हेंडल किए है अपनी कंपनी के लिए इसलिए मैं इन लोगों की मानसिकता से भलीभाँति वाकिफ हूँ"
मदन के ज्ञान से प्रभावित होकर राजेश ने कहा "बिल्कुल सही कहा मदन ने.. !! मेरे खयाल से तुझे और मदन को एक बार वहाँ जाकर उस कंपनी के एम.डी. से मीटिंग करनी चाहिए"
पीयूष: "सिर्फ हम दोनों नहीं.. आपको भी चलना होगा सर"
राजेश: "तू पहले मीटिंग अरैन्ज तो कर.. फिर आगे का देखते है"
तभी प्युन कॉफी लेकर आया.. काम की बातें छोड़कर तीनों गरम कॉफी का लुत्फ उठाने लगे.. पीयूष कुछ काम के कॉल्स निपटा रहा था.. और मदन बाथरूम मे हल्का होने गया..
अब राजेश अपना व्हाट्सप्प खोलकर मेसेज पढ़ने लगा.. उसे जिसका इंतज़ार था वही मेसेज सब से ऊपर था.. फाल्गुनी का.. !!
मेसेज खोलते ही उसकी आँखें चार हो गई.. !!! फाल्गुनी ने ब्रा में अपनी फ़ोटो भेजी थी..!! राजेश ने तुरंत ही मेसेज बंद कर दिया और उठ खड़ा हुआ.. वह तुरंत बाथरूम की ओर जाने लगा जहां से मदन अभी बाहर निकलकर बेसिन में हाथ धो रहा था
राजेश: "तुम दोनों बातें जारी रखो, मैं अभी आता हूँ"
मदन के जाते ही राजेश बाथरूम मे घुस गया और फाल्गुनी का मेसेज खोलकर.. उस तस्वीर को ज़ूम करके देखने लगा.. वाह..!! कपड़ों के अंदर इतना बढ़िया माल छुपा होगा उसका उसे अंदाजा ही नहीं था.. उसने तुरंत चैन खोलकर अपना लंड बाहर निकाला और हिलाने लगा.. हिलाते हिलाते उसने छोटा सा विडिओ शूट किया और फाल्गुनी को भेज दिया.. !!!
फाल्गुनी का जवाब आया "वेरी हॉट.. !!"
राजेश के दिमाग मे अचानक एक बात आई.. उसने अपना लंड अंदर रखा.. बाथरूम से निकला.. और पीयूष की ऑफिस की बाहर मैन रोड पर आकर, एक बंद दुकान के पास खड़ा हो गया.. अब उसने फाल्गुनी को फोन लगाया
काफी रिंग बजने के बाद फाल्गुनी ने फोन नहीं उठाया.. ऐसा काफी बार होता था क्योंकि फाल्गुनी अपने घर पर होती तब फोन नहीं उठाती थी.. फिर थोड़ी देर बाद अपने कमरे मे जाकर या घर से बाहर निकलकर फोन करती
आज भी वैसा ही हुआ.. करीब पाँच मिनट बाद फाल्गुनी का फोन आया
फाल्गुनी: "अंकल.. आज अचानक क्या हुआ? रात के बदले शाम को ही शुरू हो गए?"
राजेश: "क्या करता?? तुमने अपना खजाना जो खोलकर दिखा दिया"
खिलखिलाकर हंसने लगी फाल्गुनी..
फाल्गुनी: "अभी पूरा खोला ही कहाँ है.. !!"
राजेश: "सही कहा तूने.. पूरा खोला होता तो आज मैं तेरे घर ही पहुँच जाता"
फाल्गुनी ने हँसते हुए कहा "इतनी दूर से क्या उड़ कर आते मेरे पास?"
राजेश: "अरे हाँ.. तुम्हें बताना ही भूल गया.. मैं आज तुम्हारे शहर में ही हूँ"
फाल्गुनी ने चोंककर कहा "तो यह बात आप मुझे कब बताने वाले थे?"
राजेश: "दिमाग से ही निकल गया.. मदन के जिस काम के लिए आया था उसके चक्कर में कब शाम हो गई, पता ही नहीं चला"
फाल्गुनी: "हम्म.. तो बताइए.. क्या इरादा है?"
राजेश: "इरादा तो बड़ा ही नेक है.. अगर तुम साथ दो तो"
फाल्गुनी ने कुछ देर सोचकर फिर कहा "आप कहो तो हम मिल सकते है.. किसी रेस्टोरेंट मे"
राजेश: "अरे यार.. रेस्टोरेंट में मिलकर क्या करेंगे?? खाना थोड़े ही खाना है मिलकर.. !!"
फाल्गुनी ने शरारती अंदाज मे पूछा "तो फिर क्या करने का इरादा है आप का?"
राजेश: "मुझे तो आज वो खजाना खोलकर देखना है"
फाल्गुनी सोच में पड़ गई और काफी देर तक बोली नहीं
राजेश: "क्या हुआ? डर लग रहा है?? घबराओ मत.. मैं तुम्हें खा नहीं जाऊंगा.. और एक बात हमेशा याद रखना.. मैं तुम्हारी अनुमति के बगैर तुम्हें हाथ तक नहीं लगाऊँगा.. सिर्फ देखकर ही खुश हो जाऊंगा"
फाल्गुनी: "हम्म.. फिर कहाँ मिलें?"
राजेश: "यही किसी अच्छी होटल में रूम बुक कर देता हूँ"
फाल्गुनी: "नहीं होटल मे नहीं"
राजेश: "तो फिर तुम्हारे घर चला आऊँ क्या?"
फाल्गुनी: "पागल हो क्या.. !! सोचने दो थोड़ी देर.. मैं बताती हूँ आप को.. वैसे आपने कहा की मदन अंकल भी साथ आए है.. तो उनका क्या करेंगे फिर?"
राजेश: "वो तो मैं कोई तगड़ा सा बहाना बनाकर निकल जाऊंगा.. ऑफिस से मदन पीयूष के घर चला जाएगा.."
फाल्गुनी: "ठीक है"
राजेश: "तुमने बताया नहीं की कहाँ मिलना है"
फाल्गुनी: "एक जगह है.. एकदम सैफ है.. शहर से दूर.. फार्महाउस है.. !!"
अब चोंकने की बारी राजेश की थी, वह बोला "फार्महाउस??? किसका फार्महाउस है? कोई दिक्कत तो नहीं होगी? कितना दूर है??"
फाल्गुनी: "आप इत्मीनान रखिए.. कोई खतरा नहीं है.. शहर से ज्यादा दूर भी नहीं है.. और वैसे भी आपके पास तो कार होगी.. मुझे तो अपनी स्कूटी लेकर पहुंचना होगा"
राजेश: "तुम कहो तो मैं तुम्हें बीच रास्ते से पीक कर सकता हूँ"
फाल्गुनी: "नहीं, हम शहर में साथ नहीं दिख सकते.. मैं रिस्क लेना नहीं चाहती.. मैं आपको लोकेशन शेयर करती हूँ.. आप वहाँ एक घंटे के बाद पहुंचिए"
राजेश: "ठीक है"
फाल्गुनी ने फोन रख दिया.. सुबोधकांत का वो फार्महाउस, जिसके बारे में केवल वो और मौसम ही जानते थे.. उस फार्महाउस को अब तक दोनों ने सब की जानकारी से दूर ही रखा हुआ था.. !! सुबोधकांत के मरने के बाद, उनकी सारी जायदाद की मालकिन अब मौसम थी.. ढेर सारी प्रॉपर्टी और करोड़ों की केश.. !!! मौसम समय समय पर फाल्गुनी को पैसे भेजती रहती थी.. एक केरटेकर को भी नियुक्त कर रखा था.. जीसे तनख्वाह वगैराह फाल्गुनी दिया करती थी
राजेश का दिमाग अब तेजी से चलने लगा.. उसने कुछ सोचा और फिर पीयूष की ऑफिस के अंदर आया.. मदन और पीयूष कुछ गिनतियों में उलझे हुए थे
राजेश ने चेम्बर में प्रवेश किया और कुर्सी पर आकर बैठ गया
मदन: "अरे यार कहाँ चला गया था तू? कब से बाथरूम मे ही था क्या?"
राजेश: "नहीं यार.. यहाँ की म्यूनिसिपालिटी का मैंने बड़ा ऑर्डर लिया था.. काफी समय से पेमेंट नहीं आ रहा.. वहाँ के सरकारी बाबू से बात हो रही थी.. आज उनको पार्टी देकर खुश करना पड़ेगा.. वरना काम नहीं बनेगा"
मदन: "तो क्या आज रात को तुम लोग मिलने वाले हो? यार, तुम अकेले ही हो आना.. मैं आज थक चुका हूँ.. पर तेरी पार्टी कब तक चलेगी? हम वापिस घर कब जाएंगे?"
राजेश: "वापिस कब आऊँगा यह कहना तो मुश्किल है.. तू एक काम कर.. यहाँ का काम निपटकर तू पीयूष के घर चला जा.. मैं पार्टी खत्म करने के बाद वहीं चला आऊँगा.. !! अगर समय पर आ गया तो घर के लिए निकल जाएंगे वरना कल सुबह निकलेंगे"
पीयूष: "हाँ ये बढ़िया रहेगा.. कविता भी आप से मिलकर खुश हो जाएगी.. !!"
मदन: "ठीक है.. जैसा तुम कहो"
राजेश: "अरे पीयूष.. कहीं से एक बढ़िया स्कॉच व्हिस्की का इंतेजाम कर दे यार.. पार्टी के लिए लेकर जानी पड़ेगी"
पीयूष: "अभी करता हूँ" मोबाइल से कॉल लगाकर पीयूष ने किसी से बात की
पीयूष: "अभी पंद्रह मिनट मे मिल जाएगी"
राजेश: "थेंक यू पीयूष.. !!"
शराब की बोतल का इंतज़ार करते करते राजेश ने देखा की फाल्गुनी ने एक लोकेशन का मेसेज भेजा था.. गूगल मेप्स पर डालते ही वह जगह चार किलोमीटर दूर दिखा रही थी.. राजेश ने सोचा की पहुँचने मे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा..
पंद्रह मिनट की जगह आधे घंटे बाद एक आदमी स्कॉच की बोतल लेकर आया और राजेश कार लेकर फार्महाउस की ओर चल दिया
फाल्गुनी ने उसके लिये एक पेग बनाया और चीयर्स किया.. साइड टेबल पर पड़ा हुआ म्युज़िक सिस्टम ऑन कर दिया फाल्गुनी ने.. स्लो रोमेन्टीक म्यूज़िक के ताल पर मटकते हुए अपना टॉप उतारने लगी.. पूरी तैयारी के साथ आयी थी.. टॉप उतरते ही रूम में अब दो-दो बिजलियाँ चमकने लगीं.. फाल्गुनी के सख्त अमरूदों जैसे स्तनों की.. फाल्गुनी ने एक लाँग स्कर्ट और बहुत ही हाई हील्स के सैंडल्स पहने हुए थी.. उसका लाँग स्कर्ट एक साईड से कमर तक कटा था जिससे उसका जिस्म एक साईड से पूरा नंगा नज़र आ रहा था.. केवल डोरी से ही वो ढका हुआ था.. उसने देर ना करते हुए म्युज़िक सिस्टम का वॉल्युम बढ़ा दिया और रूम की केवल एक ही छोटी लाईट को चालू रहने दिया.. फिर फाल्गुनी डांस करने लगी.. राजेश बेड पर बैठ गया.. संगीत के ताल पर, अपने कूल्हों को थीरकाते हुए वह राजेश के पास आई और उसके होंठों को चूमकर दूर चली गई.. अब वह दोनों नशे में चूर थे.. राजेश ने भी अपना ग्लास पूरा खत्म कर के उसे बेड के नीचे ठेल दिया..
फाल्गुनी का डांस काबिल-ए-तारीफ़ था.. उसकी हर अदा राजेश की सांसे उपर-नीचे कर रही थी.. नाच रही फाल्गुनी को राजेश ने अपनी बाहों में भींच लिया जिसका उसने कोई एतराज़ नही किया.. लंबा लेट कर वो फाल्गुनी के डांस का मज़ा लेने लगा.. अब राजेश ने एक ओर पेग बनाया और धीरे-धीरे चुस्की लेते हुए फाल्गुनी के हर थिरकते कदम का गर्दन नचाते हुए जवाब देने लगा..
फाल्गुनी अब राजेश के सामने आकर अपनी लाल रंग की नेट वाली ब्रा में छिपे मम्मो को उसके चेहरे के सामने नचाने लगी.. साईड ऐन्गल से फाल्गुनी के स्तनों की गोलाई देखकर पता चल रहा था की कपड़ों के भीतर दबकर जीतने छोटे लग रहे थे, वाकई में उसके स्तन उतने छोटे है नहीं..!!
राजेश की सांसें अब तेज होने लगी.. उसके नथुनों ने फाल्गुनी के स्तनों की गंध परख ली थी.. फाल्गुनी ने राजेश का हाथ पकड़ा और अपने गालों से लगाया, फिर अपने मम्मो के उपर फ़िसलाया और उसकी गोद में बैठ कर घूम गई.. राजेश का हाथ फाल्गुनी की जाँघों से बढ़ कर उसके पेट को सहलाता हुआ उसके स्तनों को ब्रा के उपर से धीरे-धीरे सहलाने लगा.. राजेश ने फाल्गुनी के चेहरे को उपर कर उसके होठों को चुम लिया.. फाल्गुनी की आँखें उसके चूमने से बन्द होने लगीं.. राजेश ने फाल्गुनी के दोनों लबों का रस पीना शुरु कर दिया.. चुंबन के दौरान राजेश अपना हाथ पीछे ले गया और फट से ब्रा का हुक खोल दिया..
अब उसके मध्यम साईज़ के बबले राजेश के सीने से टकरा रहे थे.. फाल्गुनी अब राजेश के कान को अपने दाँतों से हल्के-हल्के काटने लगी.. और फिर राजेश की दोनों हथेलियों को अपने मम्मों पर रख लिया..
उफ्फ़.. क्या मंज़र था..!!!! उसके मम्मों की नाज़ुक त्वचा पर राजेश की हथेलियाँ फिसल रही थीं.. फाल्गुनी ने अपना हाथ बढ़ाकर राजेश की पैंट पर रख दिया और उसके मतवाले लंड को पैंट के उपर से छेड़ने लगी.. राजेश के मुँह से सिस्कारी निकल पड़ी.. राजेश अपने दोनों हाथों से फाल्गुनी के बबलों को जोर-जोर से रगड़ने लगा.. फाल्गुनी ने एक झटके में उसकी पैंट की ज़िप को नीचे खींच दिया और अंडरवेर में से उसके लंड को बाहर खींच लिया.. उसका लंबा मोटा लंड उछलता हुआ बाहर आ गया.. लंड की चमड़ी को फाल्गुनी ने आगे पीछे किया और उसके टट्टों को सहलाने लगी.. राजेश तो उसके हाथ के सहलाने से पागल हो गया और अपने बाकी कपड़े उतार, बेड पर नंगा हो गया..
अपनी उम्र से कहीं अधिक अनुभव था फाल्गुनी को..!! और क्यों न होता..!! उसकी यौन परवरिश सुबोधकांत के अनुभवी लंड ने जो की थी..!! सुबोधकांत ने न सिर्फ फाल्गुनी को चुदाई के पाठ सिखाएं थे.. बल्कि यह भी बताया था की सामान्य संभोगक्रिया को कैसे खास बनाकर अधिक से अधिक आनंद प्राप्त किया जा सकता है.. !!
फाल्गुनी ने अपनी दोनों निप्पलों की चिकोटियाँ काटते हुए बेड पर ही मचलना शुरू कर दिया..अब उसने अपना स्कर्ट भी उतार कर फेंक दिया और साथ में पेन्टी भी.. हल्के रूएंदार बालों वाली नाजुक गुलाबी चूत को देखकर राजेश का लोडा अब हिनहिनाने लगा था..
फाल्गुनी बेड से खड़ी हो गई और सिर्फ हाई हील सैंडल पहने हुए बिल्कुल नंगी नाच रही थीं.. उसके चूतड़ राजेश के सामने मटक रहे थे.. और उसकी हर थिरकन के साथ राजेश का लंड झटके खाने लगा था.. चूतड़ों की थिरक देखते हुए राजेश अपने होशो-हवास खो रहा था..
राजेश से ओर रहा नहीं गया.. वह बेड से उठा और फाल्गुनी को कंधों से दबाते हुए नीचे घुटनों के बल बैठा दिया.. और अपना लंड फाल्गुनी के गालों से सहलाना लगा.. राजेश के सूझे हुए सुपाड़े को बड़ी ही मस्ती से देख रही फाल्गुनी अपनी जीभ की नोक से लंड के मूत्र-छिद्र को कुरेदने लगी.. राजेश के डोरे ऊपर चढ़ गए.. एक अलग ही खुमार छा गया था उस पर.. !!
अब फाल्गुनी ने थोड़ा उपर खिसकते हुए राजेश का लंड अपने मुँह में ले लिया और अपने दोनों हाथों से राजेश के कूल्हों को सहलाने लगी.. पूरा कमरा राजेश की सिस्कारियों से भर उठा.. तेज आवाज के म्युज़िक के बीच भी राजेश की सिस्करियाँ और फाल्गुनी की लंड-चुसाई की आवाज़ें अच्छी तरह से सुनायी पड़ रही थीं..
काफी देर तक लार-युक्त चुसाई करने के बाद फाल्गुनी ने मुंह से लंड को बाहर निकाला और राजेश को जमीन पर लेटा दिया.. राजेश का लंड हवा में ९० डिग्री का कोण बनाते हुए सीलिंग को तांक रहा था.. फाल्गुनी बड़ी ही चपलता से उसके लंड पर चढ़ गई.. और अपनी रिस रहे गुलाबी छेद को लंड के टोपे पर सेट करने लगी..
राजेश की तो आँखें बंद हो गई थी.. जो कुछ हो रहा था वो उसके लिए स्वप्नवत था.. फाल्गुनी के साथ ऐसा सब कर पाने का अंदाजा जरूर था पर इतना मज़ा आयेगा, यह उसने सोचा नहीं था..
अमूमन जब एक परिपक्व पुरुष और एक युवा लड़की के बीच शारीरिक संबंध होते हैं, तो यह स्थिति विभिन्न मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक और सांस्कृतिक कारणों से प्रभावित हो सकती है.. इस संदर्भ में लड़की से यह उम्मीद की जाती है कि वह शारीरिक संबंधों के दौरान बहुत शरमाएगी या फिर संभोग क्रिया में उतनी उत्कटता से शामिल नहीं होगी.. इसके पीछे कई गहरे कारण हो सकते हैं, जैसे आयु और अनुभव का अंतर, सामाजिक और सांस्कृतिक दबाव, भावनात्मक परिपक्वता का अभाव, शारीरिक और यौन शिक्षा का अभाव, यौन संबंधों से जुड़ा डर और मानसिक असुरक्षा वगैराह.. और वास्तव में जिन्होंने ऐसी परिस्थिति का अनुभव किया है, वह इस बात के गँवाह भी रह चुके होंगे.. !! हालांकि फाल्गुनी पर यह लागू नहीं होता था क्योंकि वह उस पड़ाव को बहोत पहले.. सुबोधकांत के साथ पार कर चुकी थी.. और दोनों के बीच के हर संभोग के बाद, उसके आयु और अनुभव के बीच का अंतर कम होता गया था.. सामाजिक और सांस्कृतिक दबाव से वो लड़ भी चुकी थी और उभर भी चुकी थी.. क्योंकि सुबोधकांत से उसके संबंध कोई भेद की बात नहीं रहे थे.. उसके अपने परिवार के अलावा हर कोई इन संबंधों के बारे में जानता था.. और इसी बात ने उसे भावनात्मक रूप से परिपक्व भी बना दिया था..
अब फाल्गुनी बड़े अच्छे से जानती थी.. की एक नर को किस तरह अपनी ओर आकर्षित कर.. संभोग मे रत हो कर.. ज्यादा से ज्यादा मज़ा कैसे लिया जा सकता है.. !! इसलिए, फाल्गुनी की हरकत में जरा सी भी जल्दबाजी नहीं थी.. वो ऐसे धीरे धीरे मजे ले रही थी जैसे वाइन के शौकीन लोग... उस मदिरा का धीरे धीरे आनंद लेते है.. !!
फाल्गुनी अब राजेश के सुपाड़े को अंदर डालने के बजाए.. अपनी बुर की फांक पर रगड़कर राजेश को ओर उकसा रही थी.. अपनी मुठ्ठी में कैद लंड में और अधिक मात्रा में रक्त संचित होकर उसे और कठोर बना रहा था और फाल्गुनी यह अपनी हथेली में महसूस कर रही थी.. इस हरकत से राजेश ऐसे तड़प रहा था जैसे जल बिन मछली.. !!
करीब आधे घंटे से यह दौर चल रहा था.. शराब के सुरूर और संभोग की अपेक्षा से फाल्गुनी की प्यारी चूत से हवस का शहद चू रहा था.. जिसका गिलापन राजेश के सुपाड़े को चिपचिपा रहा था.. अपनी कमर को गोल गोल घुमाते हुए फाल्गुनी चूत रस से पूरे सुपाड़े को स्निग्ध कर रही थी.. योनि-प्रवेश से लिंग को स्निग्ध कर लेना, यह भी उसने सुबोधकांत के संग मिले अनुभव से ही सीखा था.. !!
राजेश से अब अधिक बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. इस आधे घंटे के फॉरप्ले ने उसे पागल सा बना दिया था.. और अब वह फाल्गुनी की चूत का मत्स्यवेध करना चाहता था.. वह उतावला होकर अपनी कमर को उठाकर लंड को उस रसदार छेद मे डालने के लिए तड़प रहा था.. लेकिन फाल्गुनी ने अपने शरीर के वज़न से राजेश को काबू मे कर रखा था.. वह जता रही थी की फिलहाल इस संभोग की बागडोर उसके हाथ में थी.. यह नियंत्रण की अवस्था उसे अच्छी लग रही थी
काफी देर तक राजेश के सुपाड़े से खेलते रहने के बाद.. फाल्गुनी अब स्थिर हो गई.. अपने गुनगुने छेद पर सुपाड़े को दबाते हुए उसने हल्के से अपना वज़न उस पर रखा.. गीली पुच्ची में लंड झटके से घुस पड़ा.. लंड पर फाल्गुनी की टाइट चूत की दीवारों का घर्षण महसूस होते ही राजेश की तो बल्ले बल्ले हो गई.. वो अपने हाथों से फाल्गुनी के दोनों चूचुकों को मसलने लगा..
धीरे धीरे ऊपर नीचे करते हुए फाल्गुनी ने अपनी गति बधाई और अब वो उछल-उछल कर धक्के मारने लगी.. राजेश अपने दोनों हाथों से उसके मम्मों को दबोच रहा था... सहला रहा था... उसके निप्पलों को पिंच कर रहा था..
तेजी से उछल रही फाल्गुनी की नजर राजेश के चेहरे पर टिकी हुई थी.. जैसे ही उसे प्रतीत हुआ की राजेश झड़ने की कगार पर पहुँच गया था.. उसने गति धीमी करते हुए धीरे धीरे उछलना बंद कर दिया.. और हल्के से ऊपर की ओर खड़ी हो गई.. पुच की आवाज के साथ राजेश का लंड फाल्गुनी की चूत से बाहर निकल गया.. उसके चूत रस से पूरी तरह सन चुका था वो लंड
फाल्गुनी अब राजेश के बगल मे लेट गई.. राजेश फाल्गुनी के ऊपर आया और पलट गया.. वह फाल्गुनी की चूत की मादक गंध को सूंघते हुए अपनी जीभ से उसकी फांक को चाटने लगा.. उसका तगड़ा कडक लंड फाल्गुनी के होंठों से टकरा रहा था.. बड़े ही प्यार से फाल्गुनी ने लंड को जड़ से पकड़ा और अपने होंठों को खोलकर.. अपने मुख के अंदर स्वीकार कर लिया.. खुद के ही चूत का रस चाटने मे उसे थोड़ा सा अजीब पर अच्छा लग रहा था..
दोनों अब ६९ की पोजीशन में आ गए थे..
अब राजेश अपने लंड से चूतड़ हिला हिला कर फाल्गुनी का मुखचोदन करने लगा..साथ ही राजेश ने अपने दोनों हाथ बढ़ाकर फाल्गुनी की टांगों को फैला लिया और उसकी प्यारी सी छोटी सी मुनिया को ऊपर से ही चाटने लगा था..
“आह … ओह्ह.. यस अंकल.. ” ऐसी ऐसी सीत्कार खुद-ब-खुद फाल्गुनी के मुंह से निकल रही थी.. उसे ऐसा लग रहा था जैसे पूरे बदन में करंट दौड़ गया हो.. उसका दिल कर रहा था आज राजेश उसकी कमीनी चूत को चबा चबाकर खा ही जायें..
जैसे ही राजेश की जीभ उसकी चूत के होठों को सहलाती, फाल्गुनी के पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ जाती..
राजेश ने अपने दोनों होंठों के बीच फाल्गुनी की छोटी सी क्लिटोरिस को दबाना चाहा.. क्लिटोरिस को छेड़ते ही फाल्गुनी अपनी कमर उठाकर थरथराने लगी.. उसकी चूत से पानी धाराएं निकल गई..
राजेश: -"क्या हुआ?"
कुछ देर तक तो फाल्गुनी बोल ही नहीं पाई.. वो अब तक उस स्खलन से उभर रही थी.. कुछ देर बाद सांसें सामान्य होने पर उसने कहा
फाल्गुनी: "आह्ह अंकल.. आपकी जीभ ने तो कमाल ही कर दिया.. सुबोध अंकल की याद दिला दी आपने.. वह भी ऐसे ही चाटते थे.. आपने तो चाटकर ऐसा करेंट पैदा कर दिया कि मैं टिक ही नहीं पाई, खत्म हो गई..उफ्फ़..!!"
राजेश: "कोई बात नहीं, तू दोबारा तैयार हो जाएगी..लड़की होने का यह सब से बड़ा फायदा है"
फाल्गुनी: "ओह्ह, प्लीज अंकल, जरा फिर से चाटकर मुझे गरम कीजिए"
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Thank you for your kind commentsबहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है दोनों लवबर्ड्स अकेले मिलकर कुछ वक्त गुजार लिया साथ ही दोनों ने एक दूसरे के साथ मस्ती करके एक दूसरे को शांत कर लिया
Thanks a lot for the comments bhaiबहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है दोनों लवबर्ड्स अकेले मिलकर कुछ वक्त गुजार लिया साथ ही दोनों ने एक दूसरे के साथ मस्ती करके एक दूसरे को शांत कर लिया
nice updateपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की, रसिक के खेत से, तहस नहस होकर लौटी शीला अपनी थकान उतार रही थी तब उसे मदन का फोन आया की वह और एक दिन रुकने वाला है.. ओर तो ओर पिंटू भी अपने घर आने वाला था.. शीला की आँखें चमक उठी.. अब शीला यह सोच रही थी की वह अपनी इस स्वतंत्रता को गँवाने नहीं देगी.. पर इसे बरकरार रखने में, वैशाली और पिंटू बाधा बन रहे थे और ऐसे घुट-घुटकर जीना, शीला के मन को गँवारा नहीं था.. उसका दिमाग योजना बनाने में जुट गया॥ एक और दिन की स्वतंत्रता मिलते ही उसने रसिक को घर बुला लिया और मन भरकर खुद को तृप्त किया..
अब आगे...
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दूसरी सुबह पीयूष के घर पर..
मदन, राजेश और पीयूष डाइनिंग टेबल पर बैठकर नाश्ता कर रहे थे.. अदरख वाली चाय के साथ आलू के पराठे खाते हुए मदन ने देखा की राजेश अब भी नींद में था..
मदन: "काफी थका हुआ लग रहा है राजेश.. कल कितने बजे लौटा था?"
राजेश: "हाँ यार, कल कुछ ज्यादा ही हो गई थी.. आते आते बहोत देर हो गई थी कल रात"
पीयूष: "हम्म.. तो अब आज का क्या प्लान है आप लोगों का?"
मदन: "मुझे तो आज वैशाली के घर जाना है.. उसके ससुर ने मुझे खाने पर बुलाया है.. पिंटू भी आज आ गया होगा"
राजेश: "अरे यार.. !! तो फिर हम घर जाने के लिए कब लौटेंगे?"
मदन: "खाना खाकर तुरंत निकल जाएंगे.. तू भी चल मेरे साथ"
जब राजेश और वैशाली के बीच वो घटना घटी थी.. तब शीला या किसी ने भी मदन को इस बारे में खुलकर नहीं बताया था.. मदन केवल इतना ही जानता था की पिंटू और वैशाली के बीच किसी बात को लेकर कोई बड़ी अनबन हो गई थी.. और आखिर सब सुलझ भी गया और वैशाली की शादी भी हो गई इसलिए उसने उस कारण के बारे में ज्यादा पूछताछ भी नहीं की थी..
वैशाली के घर जाने की बात सुनकर ही राजेश बोल पड़ा "नहीं यार.. तू ही चला जा.. मुझे तो ऑफिस पहुंचना पड़ेगा.. ढेर सारा काम बाकी पड़ा है"
मदन: "यार तो फिर मैं घर वापिस कैसे जाऊंगा?"
राजेश: "एक काम कर, तू मेरी गाड़ी ले जा.. मैं केब बुला लूँगा"
मदन: "अरे नहीं.. ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है.. तू अपने हिसाब से निकल.. मैं तो बस में आ जाऊंगा"
राजेश: "ओके, जैसा तुझे ठीक लगे"
तभी कविता आकर सब की प्लेट मे गरम आलू पराठे परोस गई
पीयूष: "फिर क्या सोचा आप दोनों ने? आप मुझे जल्दी बताइए ताकि मुजे टिकट बुक करने मे आसानी हो"
राजेश: "मेरे हिसाब से, तुम्हें और मदन को जाना चाहिए"
पीयूष: "अरे राजेश सर, ऐसा नहीं चलेगा.. आपकी भी जरूरत वहाँ पड़ेगी"
राजेश: "पीयूष, मदन के रहते तुझे कोई दिक्कत नहीं होगी.. उसे इस फील्ड का बहोत अनुभव है.. दूसरा, रेणुका को इस अवस्था में छोड़कर मैं नहीं आ सकता, यह तुम समझ सकते हो.. और हाँ, कहीं भी मेरी जरूरत पड़ी तो स्काइप या टीम्स पर मीटिंग कर लेंगे..!!"
हकीकत में, राजेश की नहीं जाने की असली वजह फाल्गुनी थी..!! पिछली रात, फार्महाउस पर फाल्गुनी के साथ उसे जो मज़ा आया था.. उसका दिल कर रहा था की वो वहीं पड़ा रहे और उस कमसिन कली के नाजुक जिस्म को भोगता रहे.. !!
पीयूष: "आपकी बात समझ सकता हूँ.. रेणुका मैडम को इस हाल में अकेले छोड़ना भी नहीं चाहिए.. तो फिर यह तय रहा.. मैं और मदन भैया जाएंगे.. मैं आगे का शिड्यूल आपको बता दूंगा मदन भैया"
मदन: "ठीक है पीयूष.. पर थोड़ा जल्दी बताना.. मुझे भी यहाँ के कुछ काम निपटाने है"
पीयूष: "जैसे ही मेरा ट्रावेल एजेंट कनफर्म करेगा, मैं आपको बता दूंगा"
मदन: "ओके.. डन..!!"
नाश्ता खतम करने के बाद, राजेश और मदन, वैशाली के ससुराल की ओर निकल गए.. मदन को वहाँ ड्रॉप करने के बाद राजेश निकल गया.. मदन ने उसे बहोत कहा.. एक बार ऊपर आकर मिलने आने को.. पर पिछले कांड के बाद, वो वैशाली और पिंटू से अंतर बनाए रखता था.. काम का बहाना बनाकर वो निकल गया
थोड़े दूर जाकर, राजेश ने फाल्गुनी को कॉल लगाया.. पर फाल्गुनी ने उठाया नहीं.. कुछ देर इंतज़ार करने के बाद, राजेश अपने शहर की ओर निकल गया..
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उस दिन मदन बस से घर पहुंचा.. पहुंचते हुए रात हो गई थी.. शीला उसका इंतेज़ार कर रही थी.. उसे वैशाली के बारे में जानना था और यह भी पूछना था की पीयूष वाली डील में आखिर मदन क्या किरदार निभाने वाला था.. दस बज गए थे इसलिए शीला अपनी नाइटी पहने बैठी थी
मदन आकर सोफ़े पर बैठा और शीला उसके लिए पानी का गिलास भर लिया.. मदन ने पानी पिया और शीला उसके बगल में बैठ गई..
शीला: "तो कैसा रहा तेरा सफर?"
मदन: "यार, सच बताऊँ तो अब ये बस का सफर राज नहीं आता.. !!"
शीला ने हँसकर कहा "बूढ़ा हो गया है तू.. असली मज़ा तो बस और ट्रेन के सफर मे ही आता है"
मदन ने शीला की खरबूजे जैसी चुची की आगे उपसी हुई निप्पल को दबाते कहा "वो तो अभी तुझे अंदर ले जाकर बेड पर पटक कर चोदूँगा, तब पता चलेगा की मैं कितना बूढ़ा हूँ"
अपनी निप्पल छुड़ाते हुए शीला ने शैतानी भरी मुस्कान के साथ कहा "आज तो बड़ा जोश चढ़ रहा है तुझे.. चल, अभी अंदर जाकर देखते है की कौन कितने पानी में है.. वो सब छोड़.. यह बता की वैशाली के घर पर सब कैसे है?"
मदन: "सब ठीक है.. वैशाली बेहद घुल-मिल गई है अपने ससुराल वालों से.. उसका नाम लेते लेते उसकी सास की तो जुबान ही नहीं थकती.. पिंटू के पापा भी काफी खुश लग रहे थे.. और पिंटू भी.. !! सच में.. बहोत अच्छा खानदान मिल गया हमारी बेटी के लिए.. बड़े अच्छे लोग है.. वैशाली भी एकदम अच्छी तरह वहाँ सेट हो गई है.. बस ऊपरवाले से यही प्रार्थना है की उनका संसार यूं ही खुशी खुशी चलता रहे"
शीला: "वो तो चलेगा ही.. अच्छा ये बता.. पीयूष के साथ क्या बातचीत हुई?"
मदन: "मामला धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है.. तैयारियां भी शुरू कर दी ही पीयूष ने.. एक बार बेंक वालों से बात करनी होगी.. लेटर ऑफ क्रेडिट को लेकर कुछ उलझनें जरूर है.. पर वो तो मैं संभाल लूँगा.. लेकिन एक बार अमरीका जाना होगा.. पीयूष और मैं वहाँ साथ जाने की सोच रहे है.. टिकट बुक होते ही पीयूष बताएगा मुझे.. काफी बड़ा ऑर्डर है और पीयूष ने मुझे उस ऑर्डर के ५% देने का वादा किया है"
शीला खुशी से उछल पड़ी "क्या सच में..!! तब तो बड़ी अच्छी कमाई हो जाएगी"
मदन: "हाँ शीला.. रिटायरमेंट के बाकी वर्षों में हमे कभी पैसों की दिक्कत नहीं आएगी उतनी रकम तो मिल ही जाएगी.. वहाँ के मेरे सारे कॉन्टेक्टस काम आ जाएंगे.. पीयूष का काम हो जाएगा और हमारा भी"
शीला ने मदन को गाल पर चूमते हुए कहा "यार मदन.. मुझे नाज़ है तुम पर.. मुझे तो पता ही नहीं था की मेरा पति, इतने काम की चीज है"
मदन: "ऐसा ही होता है, घर की मुर्गी दाल बराबर ही लगती है"
शीला ने अपनी आँखें नचाते हुए नाइटी के ऊपरी हिस्से से दोनों स्तनों को बाहर निकालते हुए कहा "तेरा इन मुर्गियों के बारे मे क्या खयाल है?"
मदन ने लोलुप नज़रों से दोनों स्तनों को देखा और अपने चेहरे के स्तनों की बीच की गहरी खाई में रगड़ते हुए कहा "बड़ा ही नेक खयाल है.. आज तो इन मुर्गियों की अच्छे से खातिरदारी करता हूँ" कहते हुए उसने शीला की निप्पल को मुंह मे डालकर चूस लिया"
शीला ने सोफ़े से उठते हुए मदन को खींचकर खड़ा किया और कहा "सिर्फ मुर्गियों की ही नहीं.. नीचे वाली गुफा की भी मरम्मत करनी होगी"
मदन उठ खड़ा हुआ और शीला के चूतड़ों को अपनी हथेलियों से दबाते हुए बोला "अरे मेरी जान.. आज तो मैं इतना मूड मे हूँ की तेरी आगे पीछे की दोनों गुफाओं की मरम्मत कर दूंगा.. !!"
दोनों ने बेडरूम मे प्रवेश किया और बिस्तर पर बैठ गए..
मदन: "शीला, दरवाजा तो ठीक से बंद कर दिया है ना तूने.. !!"
शीला: "हाँ मदन.. चिंता मत कर.. सब बंद कर दिया है.. अब जो खोलने वाली हूँ उस पर ध्यान दे.. कहते हुए शीला ने अपनी नाइटी उतार फेंकी और बेड पर लेट गई
शीला बेड पर लेटी ही थी की बिजली चली गई और बल्ब बुझ गया.. पूरे कमरे में अंधेरा छा गया.. शीला तो बेतहाशा गरम और गीली हो चुकी थी.. साँसें तेज़ी से चल रही थी, दिमाग और जिस्म में सनसनाहट दौड़ रही थी.. रक्त प्रवाह सौ गुना बढ़ चुका था, चेहरा लाल हो गया था और शीला गहरी-गहरी साँस ले रही थी.. मदन ने शीला को धीरे से धक्का दिया और शीला बेड पर सीधे लेट गई.. मदन शीला की साईड में था और उसका हाथ अभी भी शीला की चूत पे था.. शीला बस ऐसे ही चित्त लेटी रही और उसने अपनी टांगें फेला ली थी.. अब मदन शीला की चूत का अच्छी तरह से मसाज करने लगा.. शीला को बहुत ही मज़ा आ रहा था.. अब उसने शीला का हाथ पकड़ कर अपने अकड़े हुए लंड पे रख दिया और दबाने लगा.. सेक्स के लिए तड़प रहे मदन का लंड मोटा और सख्त हो चला था.. उसने शॉर्ट्स को अपने घुटनों तक खिसका दिया था और शीला के हाथ में अपना लंड थमा दिया था.. शीला ने हमेशा की तरह बिना पैंटी और ब्रा के नाइटी पहनी थी
मदन का हाथ शीला के सर के नीचे था.. उसने दूसरे हाथ से शीला को अपनी तरफ़ करवट दिला दी.. अब दोनों एक दूसरे की तरफ़ मुँह करके करवट से लेटे थे.. उसने शीला को किस करना शुरू किया तो शीला का मुँह अपने आप खुल गया और जल्द ही उसकी ज़ुबान शीला के मुँह के अंदर घुस चुकी थी और शीला उसकी जीभ को चूस रही थी.. शीला के जिस्म में तो जैसे हल्के-हल्के इलेक्ट्रिक शॉक्स लग रहे थे..
शीला मदन के दाहिनी ओर पे थी और वो शीला के उस तरफ.. अब उसने अपने पैरों को चलाते हुए अपनी शॉर्ट्स भी निकाल दी और अपना टी-शर्ट भी.. वो पूरा का पूरा नंगा हो गया था.. उसके सीने के बाल शीला की नाइटी के ऊपर से ही शीला के मदमस्त चूचियों पर लग रहे थे और शीला के निप्पल खड़े हो गये थे.. मदन ने शीला की एक टांग को उठा कर अपनी जाँघ पर रख लिया.. ऐसा करने से शीला की नाइटी थोड़ी सी ऊपर उठ गई तो उसने शीला की जाँघों पे हाथ फेरते-फेरते नाइटी को ऊपर उठाना शुरू किया और शीला की मदद से पूरी नाइटी निकाल दी.. शीला एक दम से अपने होश-ओ-हवास खो चुकी थी और वो जैसे कर रहा था, करने दे रही थी और पूरा मज़ा ले रही थी..
वह दोनों एक दूसरे की तरफ़ करवट लिये लेटे थे और शीला की एक टाँग उसकी जाँघ पे थी और अब उसने शीला के बबलों को मसलना शुरू कर दिया और फिर उन्हें मुँह मे लेकर चूसने लगा.. बूब्स को मुँह में लेते ही शीला के जिस्म में इलेक्ट्रिक करंट दौड़ गया तो शीलाने उसका लंड छोड़ कर उसका सर पकड़ के अपने सीने में घुसा दिया.. वो ज़ोर-ज़ोर से शीला की चूचियों को चूस रहा था और उसका लंड जोश में हिल रहा था.. लंड का सुपाड़ा शीला की भोसड़े के होंठों को छू रहा था.. लंड के सुराख में से प्री-कम भी निकल रहा था..
मदन ने शीला का हाथ अपने सर से हटाया और फिर से अपने लंड पर रख दिया और शीला खुद-ब-खुद ही उसको दबाने लगी और वो शीला की चूत का ऊपर से नीचे मसाज करने लगा.. कभी चूत के सुराख में धीरे से उंगली डाल देता और कभी चूत के होंठों के अंदर ही ऊपर से नीचे और जब कभी शीला की क्लीटोरिस को मसल देता तो शीला जोश में पागल हो जाती.. शीला की एक टाँग उसकी जाँघों पे रखे रहने की वजह से शीला की चूत थोड़ी सी खुल गई थी और लंड का सुपाड़ा चूत से छू रहा था तो शीला ने उसके लंड को पकड़े-पकड़े अपनी चूत के अंदर रगड़ना शुरू कर दिया.. शीला मस्ती से पागल हुई जा रही थी.. शीला को लग रहा था जैसे उसके अंदर कोई लावा उबल रहा है जो बाहर आने को बेचैन है.. इसी तरह से शीला उसके लंड को अपनी चूत में रगड़ती रही और लंड में से निकलता हुआ प्री-कम और शीला की चूत का बहता हुआ रस मिल कर चूत को और ज़्यादा चिपचिपा बना रहे थे.. शीला का मस्ती के मारे बुरा हाल हो चुका था.. अब शीला चाह रही थी के ये लंड उसकी चूत के अंदर घुस जाये और घनघोर चुदाई हो..
मदन ने शीला को फिर से चित्त लिटा दिया और शीला की टाँगों को खोल के बीच में आ गया.. उसने शीला की बे-इंतहा गीली चूत को किस किया तो शीला ने अपने चूतड़ उठा के उसके मुँह में अपनी चूत को घुसेड़ना शुरू कर दिया.. शीला की आँखें बंद हो गई थी और मज़े का आलम तो बस ना पूछो.. इतना मज़ा आ रहा था जिस को बयान न किया जा सके.. उसका मुँह शीला की चूत पे लगते ही शीला की टाँगें खुद-ब-खुद ऊपर उठ गई और मदन की गर्दन पर कैंची की तरह लिपट गई और शीला उसके सर को अपनी टाँगों से अपनी चूत के अंदर घुसेड़ रही थी और उसे ऐसे लग रहा था जैसे अंदर उबलता हुआ लावा अब बाहर निकलने को बेचैन हो.. मदन की जीभ, शीला की क्लीटोरिस को लगते ही शीला के जिस्म में सनसनी सी फैल गई और शीला के मुँह से एक ज़ोर की सिसकरी निकली, “आआआआहहहह सससस”, और शीला की चूत में से गरम-गरम लावा निकलने लगा और पता नहीं कितनी देर तक निकलता रहा.. जब उसका दिमाग ठिकाने पर आया तब देखा कि मदन अभी भी शीला की चूत में अपनी ज़ुबान घुसेड़ के चाट रहा है और पूरी चूत को अपने मुँह में लेकर दाँतों से काट रहा है.. शीला की चूत में अब नए सिरे से चुनचुनी होने लगी..
शीला: "आह्ह.. बहोत हुआ मदन, अब डाल भी दे अंदर.. उफ्फ़!!"
मदन: "ओह शीला, आज मुझे आराम से करने दे..!!:
मदन के हाथ शीला की गाँड के नीचे थे और वो शीला के चूतड़ों को उठा के चूत को चूस रहा था.. शीला अपने चूतड़ों को उछाल-उछाल कर अपना भोसड़ा मदन के मुँह से रगड़ रही थी.. चूत में फिर से गुदगुदी शुरू हो गई थी.. शीला मदन का सर पकड़े हुए अपनी चूत में घुसेड़ रही थी.. अब शायद मदन से भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो वो अपनी जगह से उठा और शीला की टाँगों के बीच में बैठ गया और अपने लौड़े को हाथ से पकड़ कर उसके सुपाड़े को शीला की गीली और गरम जलती हुई चूत के अंदर, ऊपर से नीचे कर रहा था.. शीला की टाँगें मुड़ी हुई थी.. शीला भी अब चूत-छेदन का इंतज़ार और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी.. उसने अपना हाथ बढ़ा कर मदन के सख्त लंड को अपने हाथों से पकड़ लिया और अपनी चूत के छेद में घिसना शुरू कर दिया..
मदन अब शीला की ऊपर मुड़ गया और शीला के मुँह में अपनी ज़ुबान को घुसेड़ कर किस कर रहा था और शीला उसके लंड को अपनी चूत में घिसे जा रही थी.. शीला की टाँगें मदन की कमर के इर्दगिर्द लपेटी हुई थी और मदन का लंड, शीला की चूत के होंठों के बीच, सैंडविच बना हुआ था.. उसने अपने लंड को चूत के होंठों के बीच में से ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया.. चूत बहुत ही स्निग्ध हो गई थी और ऐसे ही ऊपर नीचे करते-करते उसके लंड का मोटा सुपाड़ा शीला के गरम सुराख में अटक गया और शीला मस्ती से सिहर उठी.. मदन ने अपने लंड को थोड़ा सा और धकेला तो उसका पूरा लंड, चूत के अंदर घुस गया.. अब शीला ने अपने दाँत ज़ोर से बंद कर लिये..
मदन ने सुपाड़े को धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया तो शीलाने अपने दोनों हाथ बढ़ा कर मदन को अपनी बांहों में ज़ोर से जकड़ लिया.. अब मदन शीला की चूचियों को चूसने लगा तो शीला के जिस्म में फिर से सनसनी सी फैलनी शुरू हो गई और शीला उसकी कमर पर अपने हाथ फिराने लगी..
मदन अपने लंड के सुपाड़े को शीला की बुर के अंदर बाहर करने लगा.. शीला की चूत से निकल रहे रस की वजह से उसके लंड का टोपा अब अंदर-बाहर आसानी से सरक रहा था..
धनाधन चुदाई हुई और शीला के भोसड़े मे जैसे जश्न शुरू हो गया..
धक्के लगाते लगाते मदन बीच में ही रुक गया.. और शीला के बबलों को चूसने लगा.. मदन का यह तरीका था.. रुक रुक कर चोदना.. इससे शीला की उत्तेजना और बढ़ जाती थी और फिर दोनों को चोदने में दोगुना मज़ा भी आता था..
अब मदन ने अपने हाथ शीला की बगल से निकाल कर शीला के कंधों को पकड़ लिया और शीला को चूमने लगा.. पोज़िशन ऐसी थी कि दोनों के जिस्म के बीच में शीला के बबले पिचक गये थे.. मदन शीला पर झुका हुआ था और उसका लंड शीला की चूत के अंदर घुसा हुआ था.. मदन ने धीरे-धीरे लंड को फिर से अंदर-बाहर कर, शीला की चुदाई शुरू की और शीला मज़े से पागल होने लगी.. शीला की चूत में उसका मोटा लंड फँसा हुआ था और अंदर-बाहर हो रहा था..
शीला को अब लगने लगा जैसे उसका स्खलन अंदर उबल रहा हो और बाहर निकलने को बेचैन है.. तभी ही मदन ने अपने लंड को शीला की चूत से पूरा बाहर निकाल लिया.. शीला को अपनी चूत खाली-खाली लगने लगी और फिर देखते ही देखते उसने इतनी ज़ोर का झटका मारा और शीला के मुँह से चींख निकल पड़ी, “ऊऊऊऊईईईईईई मां...आआआआआहह जबरदस्त यार.. मज़ा आ रहा है मदन”,
शीला मदन से लिपट गई उसको ज़ोर से पकड़ लिया और उसका शरीर अकड़ने लगा.. थरथराते हुए उसका भोसड़ा एकदम से सिकुड़ गया और अंदरूनी दीवारों ने मदन के लंड को निचोड़ दिया.. एक पल के लिए शीला की आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया.. शीला के भोसड़े ने डकार मार ली थी..
पता नहीं शीला कितनी देर मदन को ज़ोर से चिपकी रही.. जब उसे होश आया तो देखा कि मदन अपने लंड से शीला की फटी चूत को चोद रहा था.. उसका लंड अंदर-बाहर हो रहा है और शीला फिर से “ऊऊऊऊईईईईई आआआआहहहह औंऔंऔंऔं आआआईईईई” जैसी आवाज़ें निकालने लगी.. मदन अब रुकने का नाम नहीं ले रहा था.. लग रहा था जैसे पागल हो गया हो.. ज़ोर-ज़ोर से शॉट लगा रहा था..
मदन शीला को चोदे ही जा रहा था.. शीला उसके जिस्म से चिपकी हुई थी और मदन के हर धक्के के साथ उसके बबले आगे पीछे हो रहे थे.. थोड़ी ही देर में जब शीला फिर से गरम हो गई तो उसे अब और मज़ा आने लगा.. मदन के हाथ अभी भी शीला के कंधों को पकड़े हुए थे और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर लंड को पूरा सिरे तक बाहर निकालता और जोर के झटके से चूत के अंदर घुसेड़ देता.. उसके चोदने की स्पीड बढ़ गई थी.. शीला को अपनी बुर के अंदर ही उसका लंड फूलता हुआ महसूस हुआ..
शीला ने फिर से मदन को ज़ोर से अपनी बांहों में जकड़ लिया.. उसके साथ ही उसके लंड से गरम-गरम मलाईदार वीर्य निकलने लगा और शीला की चूत को भरने लगा.. शीला की चूत का लावा भी ऐसे बाहर निकलने लगा जैसे बाँध तोड़ कर नदी का पानी बाहर निकल जाता है.. शीला के जिस्म में झटके लग रहे थे और दिमाग में सनसनाहट हो रही थी.. बहुत ही मज़ा आ रहा था.. मदन अभी भी धीरे-धीरे चुदाई कर रहा था.. जितनी देर तक उसकी मलाई निकलती रही, उसके धक्के चलते रहे और फिर वो अचानक शीला के बबलों पर धम्म से गिर गया.. दोनों गहरी गहरी साँसें ले रहे थे.. शीला उसके बालों में हाथ फेर रही थी.. टाँगें खुली पड़ी थी और शीला चित्त लेटी रही.. मदन का लंड अभी भी शीला की चूत के अंदर ही था पर अब वो धीरे-धीरे नरम होने लगा था और फिर पुच की आवाज़ के साथ उसका लंड शीला की चूत के सुराख से बाहर निकल गया.. चूत के रस और वीर्य की मिश्र मलाई जो चूत के अंदर जमा हो चुकी थी, वो बाहर निकल रही थी जो शीला की गांड की दरार पर से होती हुई बेड की चादर पर गिर रही थी..
मदन थोड़ी देर तक शीला के ऊपर ऐसे ही पड़ा रहा..
शीला ने मुसकुराते हुए कहा "आज तो मजे करवा दिए तूने.. कोई गोली-वोली खा ली थी क्या?"
मदन ने हँसते हुए कहा "अरे मेरी जान.. एक बार तुझे नंगे बदन देख लेने के बाद किसी गोली की जरूरत ही कहाँ पड़ती है..!!"
शीला रूठने की एक्टिंग करते हुए बोली "फिर भी, दुधारू औरतों जैसी आकर्षक तो नहीं लगती हूँ ना.. वो फ़िरंगन मेरी और देसी रूखी जैसी"
मदन: "हाय शीला... !!! क्या याद दिला दिया यार.. !!! बहोत मन हो रहा है.. चूचियों से दूध चूसने का बड़ा मन हो रहा है " अपने सुस्त लंड को सहलाते हुए मदन ने कहा
शीला: "जानती हूँ मदन.. दूध टपकाते बबलों के लिए तेरी जो चाह है.. इसीलिए तो मैंने सामने से रूखी को सेट किया है तेरे लिए.. !!"
मदन: "पर क्या फायदा यार.. !! वैशाली और पिंटू यहाँ पड़ोस मे हो तब उसे घर बुलाने की सोच भी नहीं सकते.. रूखी के घर उसके सास और ससुर के रहते मुमकिन नहीं होता.. और अब इस उम्र में उसे ओयो-रूम मे ले जाना अच्छा नहीं लगेगा.. वैसे भी.. एक बार के उस होटल के कांड से बाल बाल बचे है.. दोबारा हिम्मत नहीं होती"
शीला: "सच कहा तूने यार.. पहले तो राजेश भी हफ्ता भर यहाँ पड़ा रहता था.. रेणुका भी आती थी और हम सब साथ में कितने मजे करते थे.. !! वैशाली की शादी के बाद सब बंद हो गया"
मदन: "बड़ी मस्त लाइफ थी यार.. बीच बीच में रूखी का जुगाड़ भी हो जाता था और रसिक साथ आता तो तेरा भी काम हो जाता था.. पता नहीं यार, वो दिन फिर वापिस लौटकर आएंगे भी या नहीं"
शीला ने एक गहरी सांस लेकर कहा "आएंगे मदन.. जरूर लौटकर आएंगे.. मैं लाऊँगी वो सारी दिन वापस.. तू फिलहाल अपने काम पर ध्यान दे.. एक बार ये ऑर्डर खत्म हो जाए फिर मैं तुझे और कोई नया काम नहीं करने दूँगी.. बस आराम से साथ मजे करेंगे"
मदन: "पर कैसा होगा शीला? पिंटू और वैशाली के यहाँ रहते हुए कैसे होगा?"
शीला: "होगा मदन.. सब कुछ होगा.. वो सब तू मुझ पर छोड़ दे.. मैंने कुछ सोचा है इसके बारे में.. और जल्द ही हमारा काम हो जाएगा.. एक बार मैं कुछ करने की ठान लूँ फिर मैं वो करके ही रहती हूँ, तुझे तो पता है"
शीला का आत्मविश्वास देखकर मदन एक पल के लिए घबरा गया "यार कुछ उल्टा-सीधा करने की तो नहीं सोच रही तू..!!"
शीला: "पागल है क्या.. !! वैशाली और पिंटू को आंच भी नहीं आने दूँगी.. ऐसा रास्ता निकालूँगी की वह दोनों भी खुश हो जाएंगे और हमारे रास्ते के कांटा भी दूर हो जाएगा"
मदन: "तूने क्या सोचा है, यह तो तू बताएगी नहीं.. हमेशा की तरह"
शीला: "सही कहा.. नहीं बताऊँगी..बस करके दिखाऊँगी.. तू बस आम खाने से मतलब रख... गुठलियाँ गिनने की जरूरत नहीं है"
मदन ने हार मान ली "ठीक है बाबा,.. जैसा तुझे ठीक लगे.. पर जो भी करना सोच समझ कर करना"
शीला को आगोश में लेकर मदन उसे सहलाने लगा और दोनों की आँख लग गई
Super hot. Falguni jaisi ladki ko chodna muskil to hai.पिछले अध्याय में आपने पढ़ा की राजेश और मदन, पीयूष की ऑफिस में बैठकर बिजनेस की चर्चा कर रहे थे तभी फाल्गुनी का एक उत्तेजक तस्वीर वाला मेसेज मिलते ही राजेश की बातचीत से रुचि चली गई.. बहाना बनाकर, वह फाल्गुनी से मिलने, सुबोधकांत के फार्महाउस पर चला आया.. दोनों के बीच एक नई शानदार कामलीला का आगाज हुआ..
अब आगे..
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कुछ देर तक तो फाल्गुनी बोल ही नहीं पाई.. वो अब तक वह उस स्खलन से उभर रही थी.. कुछ देर बाद सांसें सामान्य होने पर उसने कहा
फाल्गुनी: "आह्ह अंकल.. आपकी जीभ ने तो कमाल ही कर दिया.. सुबोध अंकल की याद दिला दी आपने.. वह भी ऐसे ही चाटते थे.. आपने तो चाटकर ऐसा करेंट पैदा कर दिया कि मैं टिक ही नहीं पाई, खत्म हो गई..उफ्फ़..!!"
राजेश: "कोई बात नहीं, तू दोबारा तैयार हो जाएगी..लड़की होने का यही तो सब से बड़ा फायदा है"
फाल्गुनी: "ओह्ह, प्लीज अंकल, जरा फिर से चाटकर मुझे गरम कीजिए"
राजेश मुस्कुराया और वे फिर से फाल्गुनी की फांक को चौड़ा कर अंदर के गरम गुलाबी हिस्से को चाटने लगा.. फाल्गुनी की चूत से निकलने वाले बूंद-बूंद रस को वो पूरा चाट गया..
राजेश का लंड अब भी फाल्गुनी के होठों को बीच था और सुस्त पड़ी फाल्गुनी ऐसे चूस रही थी जैसे दूध की बोतल की निप्पल चूस रही हो..
अचानक राजेश ने अपनी पोजीशन बदली..
फाल्गुनी के मुंह से अपना लंड निकालकर खड़ा हुआ और उसके बराबर मे आकर लेट गया.. अब वह फाल्गुनी के कान, होंठ और निप्पल.. शरीर के एक-एक अंग को अपने गीले हो चुके होठों से चाटने लगा..अपने होठों और उँगलियों से फाल्गुनी के बदन के साथ छेड़छाड़ कर उसका मजा लेते हुए वह फिर से धीरे-धीरे नीचे आने लगा..
फाल्गुनी की छोटी सी नाभि को चाटकर नीचे आते हुए.. राजेश ने फाल्गुनी की दोनों टांगों को फिर से फैलाया और उसकी चूत के दोनों लब खोल दिए और अपने सीधे हाथ की उंगली से जी-स्पॉट को सहलाने लगा
फाल्गुनी अब नए सिरे से गरम होने लगी थी.. उसकी आंखों में फिर से नशा चढ़ने लगा था..राजेश की उंगलियों की हरकत को अपनी चूत के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ते हुए महसूस कर फाल्गुनी जैसे मस्ती के समंदर में गोते लगा रही थी..
फाल्गुनी के हाथ-पैर फिर से अकड़ने लगे; फाल्गुनी के भूरे निप्पल फिर से कड़क हो गए..राजेश लगातार अपनी उंगली उसकी चूत के अंदर बाहर कर रहा था.
अचानक से फाल्गुनी को ऐसा महसूस हुआ कि जैसे धीरे धीरे उनकी दो उँगलियाँ एक साथ उसकी मुनिया के अंदर घुस रही हो.. उसे हल्का सा दर्द महसूस हुआ..
“उई …” फाल्गुनी के मुंह से सिसकी निकली..
राजेश: "क्या हुआ?”
“हल्का सा दर्द हो रहा है..“ फाल्गुनी ने कहा..
राजेश: "तुम कहो तो बाहर निकाल लूँ"
फाल्गुनी: "नहीं.. करते रहिए आप.. अब मेरी आवाज नहीं आएगी..!!"
राजेश फिर से उसकी गीली हो चुकी चूत के साथ खेलने लगा..
आँख बंद कर लेटी फाल्गुनी ने महसूस किया राजेश के दोनों हाथ अब उसकी चूचियों को मींझ रहे थे.. तो फिर उसकी प्यारी सी बुर के साथ कौन खेल रहा था?
फाल्गुनी ने नजरें उठाकर देखा तो राजेश का वो मोटा नाग चूत को ऊपर से ही चुम्मी दे रहा था..वह सुखद अनुभूति को महसूस करते हुए सिहर उठी फाल्गुनी..
राजेश ने उसकी दोनों टांगें खींच कर उसे अपनी तरफ खींचा और बिस्तर से एक तकिया लेकर उसकी पीठ के नीचे सटा दिया.. राजेशने फाल्गुनी के नितंबों के नीचे तकिया लगा कर उसकी चूत को थोड़ा सा ऊपर कर दिया और अपने लंड से उसकी क्लिटोरिस को सहलाने लगा
अब राजेश पूरी तरह से फाल्गुनी के ऊपर चढ़ गया और उसने अपने होंठ फाल्गुनी के होंठों पर रख दिए...एक हाथ से उसकी चूचियाँ सहलाते हुए वो अपने होठों से फाल्गुनी के होठों को चूस रहा था जब की दूसरे हाथ से वह अपने लिंग को पकड़कर फाल्गुनी की चूत पर रगड़ रहा था
राजेश ने ऐसा झटका मारा जिससे उसके लंड का सुपाड़ा चूत के अंदर चला गया..
“उह … उह … ” फाल्गुनी के मुंह से आवाज निकली..
जब ऊपर सवार होकर फाल्गुनी ने लंड लिया था तब नियंत्रण उसके हाथों में था.. कब शुरू करना.. कितना वज़न डालना.. कहाँ अटक जाना.. वह सब कुछ फाल्गुनी नियंत्रित कर रही थी.. लेकिन अब स्थिति विपरीत थी.. ऊपर चढ़कर लंड घुसा रहे राजेश की धक्का लगाने की तीव्रता भी काफी आक्रामक थी
राजेश ने अपने होठों से फाल्गुनी के होठ दबा रखे थे..फाल्गुनी की सारी सिसकियाँ भी दब गई और राजेश का वह कामुक लंड फाल्गुनी के कोमल देह में, एक बार और, प्रवेश कर गया..!!!
राजेश बड़े ही इत्मीनान से धक्के लगा रहा था.. उसे कोई जल्दी नहीं थी.. शहर से दूर इस फार्महाउस का वातावरण बिल्कुल शांत था.. किसी के भी आ टपकने की गुंजाइश नहीं थी..वह मदन से कह चुका था की उसकी मीटिंग खतम होने पर वो फोन करेगा इसलिए उसका फोन आने की भी कोई संभावना नहीं थी.. पिछले काफी सप्ताहों से राजेश काम-सुख से भी वंचित रहा था.. शीला के घर जाना मुश्किल था.. और रेणुका तो अब चुदाई के लिए बेकार हो गई थी.. आज यह तड़कती फड़कती चूत वाली हवसखोर लड़की उसके नीचे लेटे हुए.. बेकरारी से उसका लंड ले रही थी.. इसलिए राजेश बड़े आराम से इस अद्भुत चुदाई की हर क्षण का लुत्फ उठाना चाहता था
लंड का सिर्फ उतना ही हिस्सा जो अंदर गया था, उसे एक दो बार अंदर बाहर करने के बाद पूरा बाहर निकाल दिया और फिर से चूत पर रगड़ने लगा.. वो फाल्गुनी को तड़पा तड़पा कर चोदना चाहता था
फाल्गुनी को बहुत मजा आ रहा था..!! राजेश की छेड़खानियों ने उसे बदहवास कर दिया था.. बहुत ही लंबे अंतराल के बाद उसे, असली मर्द के नीचे लेटने का मौका मिला था
अचानक राजेश ने फिर से एक तेज धक्का मारा और लंड फाल्गुनी के भीतर प्रवेश कर गया.. इस शीघ्र हमले से एक पल के लिए फाल्गुनी को ऐसा लगा मानो, उसकी जान ही निकल गई हो.. उसकी चीख निकली और वह भी गले में फंस गई..
ऐसा लगा रहा था जैसे किसी ने उसकी चूत को चीर दिया हो..अब राजेश के अंदर का जानवर बाहर आ चुका था... अब तक वो जितने प्यार से फाल्गुनी के बदन को सहला रहा था अब उतने ही वहशी तरीके से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे..
फाल्गुनी का पूरा बदन फर्श पर रगड़ रहा था.. लेकिन राजेश को तो जैसे कुछ होश ही नहीं था.. उसने फाल्गुनी की दोनों टांगों को ऊपर उठा कर अपने कंधों पर रख दिया और दोनों कंधे पकड़ लिये... इस स्थिति मे वह अब अधिक गहराई तक चूत के अंदर प्रवेश भी कर सकता था और ज्यादा जोर से धक्के भी लगा सकता था
उसके बाद शुरू हुआ बहुत तेज गति से धक्के लगाने का दौर..हर शॉट पर राजेश का सुपाड़ा, चूत के अंदर बच्चेदानी के मुख पर जाकर टकरा रहा था.. फाल्गुनी के बदन को पूरी तरह दबोचकर घचाघच चोद रहा था वोह.. !!
राजेश के धक्कों के साथ साथ अपने चूतड़ों को नीचे से हिलाते हुए फाल्गुनी ने भी बढ़िया लय बना ली थी.. राजेश के जोरदार मर्दाना धक्के खाकर फाल्गुनी सातवे आसमान में झूम रही थी..
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५-२० जोरदार धक्के लगाने के बाद राजेश फिर से रुक गया.. १-२ सेकंड रुकने के बाद उसने फिर से एक जोरदार धक्का मारा और उसके बाद निढाल होकर फाल्गुनी के बराबर में लेट गया..
फाल्गुनी की चौड़ी हो चुकी चूत के अंदर से उमड़ उमड़ कर प्रेम रस निकल रहा था..
दोनों चुपचाप काफी देर तक पड़े रहे.. जब तक की उन दोनों का हांफना कम नहीं हुआ.. कुछ मिनटों तक दोनों ऐसे ही पड़े रहे..फाल्गुनी ने अपना चेहरा राजेश की छाती मे दबा दिया.. और वैसा ही सुरक्षित महसूस करने लगी जैसा वो सुबोधकांत के साथ महसूस करती थी
करीब पंद्रह मिनट बाद.. बराबर में लेटे-लेटे ही राजेश ने फाल्गुनी के बदन को सहलाना शुरु कर दिया..
फाल्गुनी के बदन में फिर से स्फूर्ति आने लगी.. धीरे-धीरे राजेश की उंगलियां फाल्गुनी के बदन पर फिर से पहले की तरह थिरक रही थी जैसे फाल्गुनी के बदन पर कोई काम गीत बजा रही हों..
जैसे-जैसे बदन की कामाग्नि बढ़ रही थी, वैसे वैसे राजेश का लंड फिर से हरकत मे आ रहा था.. राजेश के स्पर्श से फाल्गुनी की चूत बार बार कुलबुला रही थी.. कुछ ही मिनटों के बाद राजेश ने फाल्गुनी का हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया..
लंड को मुठ्ठी में पकड़ते ही फाल्गुनी ने कहा “अरे बाप रे, आप क्या खाते हैं अंकल? आपका शेर अब फिर से मेरा शिकार करने को तैयार हो चुका है”
फाल्गुनी समझ गई कि राजेश अंकल अब एक और राउंड के लिए तैयार हो चुके थे.. वो भी पूरा साथ देने के लिए तैयार थी..उसने राजेश की छाती को चाटना शुरू कर दिया..दोनों के शरीर फिर से एक बार.. एक दूसरे से उलझने लगे.. एक हाथ से राजेश के लंबे मोटे लंड को पकड़ कर आगे पीछे करना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से उसके अंडकोशों को सहलाने लगी..
राजेश भी फाल्गुनी के चूतड़ों को सहलाते हुए उसके गांड के छेद को छेड़ रहा था.. उस छेद का मुआयना करने पर पता चला की वहाँ प्रवेश करना तो नामुमकिन था.. इतना छोटा और संकरा छेद था..
कुछ मिनटों की कामक्रीड़ा के बाद राजेश ने फाल्गुनी के कान में पूछा "मज़ा आ रहा है ना?"
फाल्गुनी ने भी पूरे उत्साह में जवाब दिया "हा अंकल, और अब मैं दूसरी पारी खेलने के लिए तैयार हूँ.. आप बस मेरे ऊपर चढ़ जाओ..!!"
इशारा पाते ही राजेश ने फिर से उसकी टांगें खोल दी और बीच में बैठ गया.. उस ने फिर से फाल्गुनी के चूतड़ों के नीचे तकिया लगाया और चूत के गुलाबी होठ खोल कर अपना लंड उसके बीच रख दिया..
फाल्गुनी राजेश के अगले प्रहार का इंतजार करने लगी.. राजेश ने उसकी दोनों टाँगें मजबूती से पकड़ी और एक ही झटके में पूरा लंड उसकी फुद्दी में उतार दिया
इस बार राजेश के धक्के बड़े ही जबरदस्त थे तो फाल्गुनी भी क्यों पीछे रहती..!! इस बार फाल्गुनी भी अपने चूतड़ उछाल उछाल कर राजेश का सहयोग करने लगी.. और धक्कों की तीव्रता को ओर बढ़ाने लगी.. राजेश के हर प्रहार का उसी अंदाज़ में पलट कर जवाब दे रही थी वो..
राजेश झुककर फाल्गुनी की गुलाबी निप्पलों को होंठों के बीच चबाते हुए धनाधन पेल रहा था.. तब फाल्गुनी अपना एक हाथ नीचे डालकर.. राजेश के गोटों को हल्के हल्के मसल रही थी.. !!
कुछ मिनटों के इस घमासान प्रेमयुद्ध के बाद दोनों ही परास्त हो गए... राजेश ने अंतिम प्रहार किया और उसके लंड ने अपना सारा विष फाल्गुनी की गुनगुनी चूत में छोड़ दिया.. करीब ३-४ पिचकारी लगाकर उसके लंड ने चूत के अंदर ही दम तोड़ दिया..
और राजेश निढाल होकर फाल्गुनी के मस्त कडक स्तनों पर चेहरा रखकर अपनी थकान उतारने लगा..
करीब १० मिनट तक दोनों ऐसे ही लेटे रहे..
फाल्गुनी ने घड़ी में टाइम देखा, रात का १:३० बज चुका था.. फाल्गुनी फिर से राजेश की छाती से खेलने लगी..
राजेश ने आश्चर्य सह उसकी तरफ देखा और बोला "अरे, तुम्हें घर नहीं जाना है?? इतनी देर तक बाहर हो तो घर वाले पूछेंगे नहीं क्या?"
बड़े ही इत्मीनान से अंगड़ाई लेकर अपने दोनों स्तनों को एक साथ दबाते हुए फाल्गुनी ने कहा "मैं तो कहकर आई हूँ की आज की रात कविता दीदी के घर रुकने वाली हूँ.. !! आप चाहों तो हम दोनों सुबह तक यह सिलसिला जारी रख सकते है"
राजेश: "नहीं, अब मुझे चलना चाहिए फाल्गुनी.. मदन मेरा इंतज़ार कर रहा होगा.. और अभी तो हमें घर भी पहुंचना है.. तीन घंटों की ड्राइविंग करनी होगी.."
फाल्गुनी अभी और खेलना चाहती थी..लेकिन राजेश थक चुका था.. फाल्गुनी की इतनी भयंकर चुदासी पर उसे आश्चर्य हो रहा था.. २२ साल की लड़की से उसे ऐसी अपेक्षा तो नहीं थी.. !!!
फाल्गुनी ने एक आखिरी कोशिश की.. राजेश का लंड पकड़कर फिर से हिलाने लगी
फाल्गुनी: "चलिए न अंकल.. एक बार और करते है.. ज्यादा वक्त नहीं लगाऊँगी"
पर राजेश का पेट्रोल खत्म हो चुका था.. ये पहली बार हो रहा था राजेश की साथ.. की लड़की चोदने के लिए कह रही हो.. और वह उसके लिए समर्थ न हो.. !!
राजेश: "फाल्गुनी, किसी और दिन पक्का इस खेल को आगे बढ़ाएंगे.. बल्कि हमें ज्यादा से ज्यादा मिलते रहना चाहिए.. यह फार्महाउस बढ़िया जगह है.. पर तुम्हारे शहर तक का सफर बड़ा लंबा है.. खैर, फिर मिलेंगे.. बहोत जल्दी" कहते हुए राजेश कपड़े पहनने लगा..
मन मार कर फाल्गुनी खड़ी हुई.. और नंगे बदन ही बेड पर लेट गई.. जाना तो राजेश को था.. वो तो सुबह तक यहीं रुकने वाली थी.. !!
कुछ मिनट बाद राजेश निकल गया अपनी गाड़ी लेकर..
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Woww Rasik hi mast chuddakad hai. The best update.पिछले अपडेट में हमने पढ़ा की राजेश फाल्गुनी से मिलने फार्महाउस पर पहुंचता है.. शराब और शबाब के नशे में वह दोनों एक नए काम संबंध का आगाज करते है.. फाल्गुनी की भूख अप्रत्याशित है, इतनी अधिक की राजेश भी उसे पूरा करने में अक्षम रहा और जल्दी लौटने का बहाना बनाकर निकल गया
उधर रसिक के खेत से धुआंधार हिंसक चुदाई के बाद शीला घर पहुँचती है..
अब आगे...
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शाम तक घर पहुंचते पहुंचते शीला इतनी थक गई थी की जाते ही बिस्तर पर ढेर होकर गिर गई.. शरीर का अंग अंग दर्द कर रहा था उसका.. आज पहली बार रसिक ने उसे जानवर की तरह ठोका था.. भांग के अत्याधिक प्रभाव के तले..!! जिस्म का हर कतरा, हल्के पर मीठे दर्द से कराह रहा था.. यहाँ तक की चूत की दीवारें भी आज की भारी रगड़न के बाद चिलमिलाई हुई थी..
पर शीला को अच्छा लग रहा था.. इतने लंबे समय के बंधन के बाद.. आज मिली इस स्वतंत्रता ने शीला के दिल-ओ-जान को तरोताजा कर दिया था.. पतली सी चादर ओढ़े लेटी शीला, कांच की खिड़की से आ रही धूप सेंकते हुए.. मीठे मीठे दर्द को महसूस कर रही थी.. ऐसा लग रहा था की सख्त हो चुके शरीर की जोड़ें.. इस धमाकेदार चुदाई के बाद लचीली हो गई थी.. !!
काफी लंबे अरसे तक इस स्वतंत्रता से वंचित रहकर वह हर दिन नए संघर्ष का सामना करती रहती थी.. संघर्ष अपने आप से.. अपने मन से.. अपनी इच्छाओं से.. अपनी हवस से.. !! हर दिन उसका जिस्म नए मर्द के संसर्ग के लिए मचलता.. और हररोज वह अपने आप को समझाती.. रिश्तों की जिम्मेदारी की बेड़ियों में जकड़ी हुई, उसने अपने सपनों और इच्छाओं को कहीं बहुत गहरे दबा दिया था..
लेकिन अब, समय ने करवट ली है.. शीला ने उन बेड़ियों को तोड़ने का साहस जुटाया है और एक नई हवा में सांस लेना शुरू किया है.. यह हवा स्वतंत्रता की है, अपने अस्तित्व के एहसास की है.. और अब शीला खुद से एक वादा कर चुकी है—वह इस आज़ादी को खोने नहीं देगी.. चाहे कुछ भी हो जाए.. चाहे उसे कुछ भी करना क्यों न पड़ें.. !!!
शीला की आंखों में अब एक नई चमक है, उसके कदम आत्मविश्वास से भरे हुए हैं.. वह अपने जीवन की कहानी को खुद लिखने का निर्णय ले चुकी है.. यह उसकी जीत है—एक आजाद महिला की, जिसने खुद को पाया है और अपने भीतर के स्वतंत्र व्यक्तित्व को गले लगाया है.. अपने हिसाब से ज़िंदगी जीना यह उसका अधिकार है, उसका स्वाभिमान है.. वह अपने अंदर उस पुरानी शीला को को फिर से तलाश चुकी थी, खुद को पहचान चुकी थी.. अपनी इच्छाओं को वह किसी जिम्मेदारी के बोझ तले कुचलेगी नहीं.. उसने यह वादा किया था.. अपने आप से.. अपनी नई उड़ान से..!!
सो कर शीला शाम को उठी.. रात का खाना बनाने का उसे मूड नहीं था.. मदन तो राजेश के साथ गया था और वापिस लौटते देर होने वाली थी इसलिए वो खाना खाकर ही लौटेगा.. खुद के लिए कुछ बनाने का मन नहीं हो रहा था लेकिन पिंटू के लिए तो खाना बनाना ही था.. शीला ने मस्त गरम कॉफी बनाई और मग लेकर अपने झूले पर बैठ गई..
अपने कारनामों को यूं ही चलते रहने देने के लिए आगे क्या करना चाहिए वह सोच रही थी.. एक बात तो तय थी.. जब तक पिंटू और वैशाली उसके पड़ोस में थे तब तक वह कुछ भी कर नहीं पाएगी यह वो जानती थी.. अगर वह दोनों अपना घर कहीं ओर शिफ्ट कर ले फिर भी.. जब तक पिंटू इस शहर मे था उसकी नजर हमेशा शीला की इर्दगिर्द रहने ही वाली थी
एक ही तरीका था.. अगर पिंटू और वैशाली किसी और शहर में चले जाएँ तो लाइन क्लियर हो सकती थी.. पर वो होगा कैसे?? शीला काफी देर तक सोचती रही और उसके दिमाग में एक योजना आकार लेने लगी..
रात को शीला की मदन से फोन पर बात हुई तो पता चला की मदन आज की रात पीयूष के घर रुकने वाला था, क्योंकी राजेश को किसी पार्टी में जाना था और आने मे देर हो जाने की संभावना थी.. देर रात हाइवे पर ड्राइव करने से बेहतर, उन्हों ने रात पीयूष के घर ही रुक जाने का फैसला किया था.. मदन ने यह भी बताया की चूंकि पिंटू दूसरे दिन अपने घर आने वाला था, वैशाली के ससुर ने मदन को दोपहर के खाने पर न्योता दिया था.. इसलिए मदन अब कल शाम को ही लौटेगा..
मदन का फोन खतम होते ही.. दो बातों ने प्रमुखता से शीला का ध्यान खींचा.. पहली यह की पिंटू अपने घर वैशाली से मिलने जाने वाला था और दूसरी यह की मदन कल शाम से पहले घर लौटने वाला नहीं था..!! यह दोनों कारक, शीला को रोमांचित कर देने के लिए काफी थे.. कल शाम तक का दिन उसकी स्वच्छंदता के लिए आरक्षित था..!!
दूसरे दिन के लिए, किसी भी प्रकार की योजना बनाने से पहले, शीला यह सुनिश्चित करना चाहती थी की पिंटू सही में घर जाने वाला था या फिर शीला को रंगेहाथों पकड़ने की उसकी कोई नई चाल है..!!शाम के चार बज रहे थे और पिंटू रात का खाना शीला के साथ खाने वाला था.. अगर वो आज शाम को ही घर के लिए निकलने वाला होता, जैसा की वो हर बार करता था, तो अब तक उसका फोन आ जाना चाहिए था.. !!!
यह सब विचारों में घिरे हुए, शीला फ्रिज से भिंडी लेकर आई और झूले पर बैठे हुए काटने लगी.. ताकि पिंटू के लिए खाना बनाने की शुरुआत की जा सकें.. क्योंकी पिंटू का अब तक तो कोई मेसेज नहीं आया था..
वो सब्जी काट रही थी तभी उसका मोबाइल बजा.. स्क्रीन पर पिंटू का नाम देखते ही शीला के होंठों पर मुस्कान आ गई..
शीला: "हैलो.. !!"
पिंटू: "मम्मी जी, सॉरी मैं आपको जल्दी फोन करना भूल गया.. मैंने यह बताने के लिए फोन किया है की मैं आज शाम की बस से घर जा रहा हूँ.. मैंने कल की छुट्टी ले ली है.. वैशाली जिद कर रही थी तो सोचा चला जाऊँ.. पापा जी भी वहीं है और कल दोपहर खाने पर आ रहे है.. चाहें तो आप भी साथ चल सकती है.. कहों तो मैं आपको लेने आ जाऊँ??"
शीला: "नहीं बेटा.. मन तो बहोत है पर दोपहर से मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है.. पूरे बदन में दर्द हो रहा है.. इसलिए तुम ही चले जाओ"
पिंटू: "जैसी आपकी मर्जी.. वैसे आपने रात का खाना बना तो नहीं लिया है ना..!! अगर बना लिया हो तो फिर मैं घर आकर खाना खाकर फिर जाऊंगा.. खाना वेस्ट नहीं होना चाहिए"
शीला: "अरे बिल्कुल चिंता मत करो.. !! मैंने तो अभी शुरुआत भी नहीं की है.. हम दोनों का ही खाना बनाना था.. एक घंटे से ज्यादा समय नहीं लगता है.. इसलिए मैं आराम से शुरू करने वाली थी.. अब तुम भी नहीं आ रहे हो और मेरी तबीयत भी नासाज है.. इसलिए मैं कुछ सूप और सलाद जैसा हल्का फुल्का बना लूँगी.. तुम इत्मीनान से जा कर आओ"
पिंटू: "ठीक है मम्मी जी.. रखता हूँ फोन"
फोन काटते ही शीला ने चैन की सांस ली.. उसे तसल्ली हो गई की पिंटू अब परसों सुबह तक नहीं लौटने वाला..
शीला उन बिना कटी भिंडी को लेकर घर के अंदर आई और सब्जियों को वापिस फ्रिज में रख दिया.. उसने घर का दरवाजा बंद किया और आराम से सोफ़े पर बैठ गई.. अब रसिक से बात करना चाहती थी.. बात तो उसे तब से करनी थी जब से वो लौटी थी.. लेकिन उसने तय किया था की उसका नशा उतर जाने के बाद ही बात करना मुनासिब होगा..
शीला ने रसिक को फोन लगाया.. दो बार रिंग बजकर फोन कट गया पर रसिक ने फोन उठाया नहीं.. एक पल के लिए शीला डर गई.. कहीं ज्यादा नशे के कारण वह कमीना मर तो नहीं गया होगा.. !!! अगर सच में मर गया होगा तो शीला की शामत आ जाएगी.. क्योंकी आखिरी बार रसिक से वो ही मिली थी..!!
शीला के पसीने छूटने लगे.. उसने तेज पंखा चला दिया और सोफ़े पर बैठ गई..
तभी रसिक का फोन आया देख उसकी जान में जान आई
शीला: "अबे भड़वे.. कहाँ माँ चुदवा रहा था?"
रसिक: "क्या भाभी.. आपने तो शुरुआत ही गाली-गलोच से कर दी"
शीला: "तो और क्या करूँ..!!! आरती उतारूँ तेरी?? फोन क्यों नहीं उठा रहा था कब से?"
रसिक: "अरे भाभी, आपके जाने के बाद सो गया था और अभी उठा.. सिर इतना भारी भारी लग रहा था इसलिए ट्यूबवेल के नीचे नहाने बैठ गया था"
शीला ने गुस्से से कहा "तो अपनी गांड मरवाने इतना नशा करता है..!! साले मादरचोद.. तुझे अंदाजा भी है की तूने मेरे शरीर के साथ क्या क्या कर दिया.. !! नोच खाया मुझे.. !! मेरे बबलों को तो ऐसा तोड़ा-मरोड़ा जैसे तेरी भेस के थन हो..!! पूरे शरीर पर तेरे नाखून और काटने के निशान बन गए है.. इतना दर्द हो रहा है मुझे.. !!"
यह सुनकर रसिक झेंप सा गया.. उसने कहा "माफ कर दीजिए भाभी.. नशे की हालत में, मुझे कुछ पता ही नहीं रहा.. वैसे तो रोज एकाद गोली ही लेता हूँ पर आपका इंतज़ार करते करते दूसरी गोली चढ़ा ली.. इसलिए ज्यादा नशा हो गया.. हो जाता है कभी कभी.. आप ऐसे गुस्सा मत कीजिए"
शीला: "मैं तेरी गांड में जलता हुआ सरिया डालकर कहूँगी की हो जाता है कभी कभी.. तो चलेगा? भेनचोद, आव देखा न ताव.. ऐसे टूट पड़ा जैसे औरत कभी देखी ही न हो.. वक्त रहते मैं निकल न गई होती तो आज तू मुझे मार ही देता.. और मेरी लाश को खेत के कोने में गाड़ देता.. !!"
रसिक: "कैसी बातें कर रही हो आप भाभी..!! माफी मांग रहा हूँ ना मैं.. अब हो गई गलती.. जो हो गया उसे तो मैं बदल नहीं सकता.. अगली बार मिलूँगा तो आपके पैर पकड़कर माफी मांग लूँगा, बस.. !! अब तो शांत हो जाइए.. !! आप सही कह रही हो.. भांग थोड़ी ज्यादा ही हो गई थी.. पर क्या आपको बिल्कुल भी मज़ा नहीं आया था??"
सुनकर शीला का गुस्सा शांत हुआ.. और वो मुसकुराते हुए बोली "हाँ.. मज़ा तो आया था.. पर ओर मज़ा आता अगर तू भांग खाकर जानवर बन नहीं गया होता तो.. खैर, अब जो हो गया उसे छोड़.. और सुन.. कल सुबह आ जाना.. घर पर कोई नहीं होगा"
रसिक: "और वो आपका दामाद.. !! उसका क्या..??"
शीला: "वह भी नहीं होगा.. आज शाम को चला जाएगा और परसों सुबह आएगा.. इसलिए हमारा रास्ता साफ है.. कल सुबह दूध देने आएगा तब मजे करेंगे"
रसिक: "अरे भाभी.. सुबह नहीं.. आपके चक्कर में बाकी ग्राहकों को दूध देने मे देरी हो जाती है और वो सब चिल्लाते है मुझ पर.. और जल्दी जल्दी में मज़ा नहीं आएगा.. मैं एक काम करता हूँ.. सब काम निपटाकर सुबह दस बजे आ जाता हूँ.. फिर कोई जल्दी नहीं होगी और आराम से करेंगे"
शीला ने कुछ देर सोचने के बाद कहा "हम्म ठीक है.. चलेगा, पर आ जाना टाइम पर"
रसिक: "पक्का भाभी.. आ जाऊंगा"
रसिक से फोन पर बात हो रही थी तभी शीला के घर की डोरबेल बजी.. फोन पर बात करते हुए ही उसने दरवाजा खोला तो सामने पिंटू खड़ा था.. घबराहट में शीला के हाथ से फोन गिर गया..!! पिंटू मोबाइल के स्क्रीन पर रसिक का नाम देख पाता उससे पहले शीला ने अपनी हथेली स्क्रीन पर रखकर फोन तुरंत उठा लिया.. रसिक अब भी "हैलो-हैलो" किए जा रहा था जो फोन के स्पीकर से स्पष्ट सुनाई पड़ रहा था.. शीला ने फुर्ती से फोन काट दिया और कृत्रिम मुस्कान के साथ पिंटू की तरफ देखने लगी
पिंटू: "वो मैं अपने कपड़े लेने घर आया था.. और आपको घर की चाबी देने आया हूँ"
शीला: "ओह्ह.. हाँ.. वो.. क्या कहा.. अच्छा चाबी देने.. हाँ हाँ.. ठीक है"
शीला की बोली लड़खड़ाते हुए देख पिंटू को कुछ शक जरूर हुआ.. शीला की आँखों में आँखें डालकर देखते हुए उसने पूछा
पिंटू: "किसका फोन था?"
कोई और होता तो शीला ने अब तक तीखा जवाब दे दिया होता.. पर पिंटू के साथ यह मुमकिन नहीं था
शीला: "क्या.. वो.. फोन.. हाँ फोन पर बात कर रही थी.. अमम.. वो तो रेणुका का फोन था"
पिंटू को शक था की उसने किसी मर्द की आवाज सुनी थी.. पर उसे समय पर बस पकड़नी थी इसलिए हड़बड़ी में था.. शीला के हाथ में घर की चाबी थमाकर वो चला गया
यह पूरा वाकया करीब एक मिनट के अंदर हो गया था.. लेकिन शीला को ऐसा लगा जैसे एक घंटा बीत गया हो.. पसीने छूट गए शीला के.. ऐसी प्रति-पतीक्षा की आदि नहीं थी वो.. और खासकर तब जब वो झूठ बोल रही हो..
दरवाजा बंद करने के बाद वो वापिस सोफ़े पर आकर बैठ गई और सोचने लगी.. अगर पिंटू को शक हो गया होगा तो?? अगर पिंटू ने देखने के लिए फोन मांगा होता तो? अगर पिंटू अब भी कहीं छुपकर नजर रख रहा होगा तो?
घुटन सी महसूस हो रही थी शीला को.. ऐसा कब तक चलेगा..!! कुछ न कुछ उपाय तो करना पड़ेगा इस पिंटू का.. !! शाम को झूले पर बैठे बैठे उसने जो योजना सोची थी उसके बारे में फिर से सोचने लगी शीला.. अब उसे लग रहा था की समय से पहले ही उस योजना को अमल मे लाना होगा..
रात को शीला ने सिर्फ एक गिलास दूध पिया और सो गई.. सुबह साढ़े पाँच बजे रसिक की घंटी बजते ही वो दूध लेने आई.. दूध लेने के बाद रसिक के मूसल लंड को मुठ्ठी में पकड़कर दबाते हुए उसने रसिक को अपनी तरफ खींचकर, अपने बबलों को उसकी मजबूत छाती पर रगड़कर, उसे जाने दिया..
शीला: "टाईम पर आ जाना"
रसिक ने मुसकुराते हुए कहा "आ जाऊंगा भाभी.. !!"
वो दूध का केन लेकर चला गया और शीला बिस्तर पर आकर लेट गई.. उसकी आँख लग गई और जब वह जागी तब सुबह के नौ बज चुके थे.. वो तुरंत उठकर बाथरूम मे घुस गई.. सुबह का नित्यक्रम निपटाकर वह रसिक के लिए तैयार होने लगी.. एक मस्त लाल रंग की साड़ी उसने जिस्म पर लपेट ली.. न पेटीकोट पहना.. और ना ही ब्रा.. सिर्फ ब्लाउज और पेन्टी के ऊपर साड़ी लपेट ली.. !!
तैयार होकर वो रसिक का इंतज़ार करने लगी..
दस बजकर पाँच मिनट पर घर की घंटी बजी.. दरवाजा खोलते ही रसिक नजर आया.. उसे अंदर खींचकर शीला ने दरवाजा बंद कर दिया..
शीला लाल साड़ी में बड़ी ही कातिल लग रही थी.. देखते ही रसिक को मज़ा आ गया.. वह शीला के करीब आया.. और उसे बाहों में भरकर अपने तंग लोड़े को शीला की जांघों के बीच रगड़ने लगा.. उस स्पर्श से शीला मदहोश हो उठी.. और रसिक के सर को पीछे से दबोचकर उसके काले होंठों को चूमने लगी..
रसिक ने शीला की साड़ी का पल्लू हटाया और उसके ब्लाऊज़ के ऊपर से ही उसके मम्मों को दबाने लगा.. उसके होंठों को, अपने होंठों में दबाते हुए उसने एक हाथ उसके मम्मों पर रख दिया और दूसरे हाथ से उसकी साड़ी को ऊँचा उठा कर उसकी गांड को ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा.. उसने शीला को एक दम जकड़ लिया.. शीला उसके लंड को अपनी चूत पर महसूस कर सकती थी और उसकी तो जैसे साँस अटक रही थी.. इसी दौरान शीला बेहद मस्ती में भर गई थी.. शीला का छोटा सा ब्लाऊज़ भी ज़मीन पर एक तरफ पड़ा था और रसिक उसके नंगे भरे-भरे बबलों को भींचते हुए उसके निप्पल चूसते हुए दाँतों से काट रहा था..
रसिक फिर उसे बेडरूम में ले गया और खड़े-खड़े ही उसकी साड़ी को खींच कर निकाल दिया.. पेटीकोट तो शीला ने पहना ही नहीं था.. रसिक उसकी टाँगों के बीच बैठ गया और उसकी पेन्टी उतार दी..
अब उसका मुँह शीला की नाभि को चूस रहा था और उसका एक हाथ शीला की दोनों टाँगों के बीच उसकी जाँघों पर सैर कर रहा था.. उसने शीला की जाँघ पर दबाव बनाया और शीला ने अपने पैर फ़ैला दिये.. अब वो रसिक को अपनी चूत खिलाने के लिये तैयार थी.. उसने अपनी चूत आगे की तरफ़ ढकेल दी.. रसिक ने अपने दोनों हाथों को उसकी टाँगों के बीच से लेकर उसकी गांड पर रख दिये..
शीला की टाँगें और फ़ैल गईं और उसकी आगे की तरफ़ निकली हुई चूत अब रसिक के मुँह के ठीक सामने थी.. “ससीसीईईऽऽऽ!” सिसकारी छूट गई शीला की जब रसिक की जीभ ने उसकी चूत को चाटा और उसके किनारों पर ज़ोर से जीभ रगड़ दी.. रसिक की जीभ शीला की चूत में घुसती जा रही थी और शीला के पैर जैसे उखड़ने को थे.. रसिक के हाथ जो शीला की टाँगों के बीच से पीछे की तरफ़ थे, उनसे शीला के हाथों की कलाइयों को पकड़ लिया.. अब शीला की चूत और आगे की तरफ़ निकल आयी और रसिक की जीभ उसकी चूत में और अंदर धंस गई..
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रसिक ने इसी स्थिति में उसे उठा लिया और एक धक्का देकर बेड के बिल्कुल किनारे पर पटक दिया और खुद बेड के नीचे घुटनों के बल बैठ गया.. शीला की गांड के नीचे से निकले हुए रसिक के हाथों की वजह से उसकी चूत एक दम उठ गई थी, उसके पैर हवा में लहरा रहे थे और उसकी टाँगें एक दम फ़ैली हुई थीं.. उसकी चूत में रसिक की जीभ धंसती जा रही थी.. रसिक ने उसकी चूत में छुपे गुलाबी दाने को अपने होंठों में जकड़ लिया और उसपर बेतहाशा अपनी जीभ रगड़ कर चूमने लगा..
शीला की सिसकारियाँ फूट गई और उसकी चूत में खलबली मच गई.. उसकी मस्ती पूरे परवान पर थी और वो हिल भी नहीं सकती थी.. उसकी कलाइयों को रसिक ने पूरी ताकत से पकड़ रखा था और उसकी गांड बिस्तर से हवा में पूरी उठी हुई थी.. उसकी गांड ने एक ज़ोर का झटका दिया और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया.. अब रसिक ने उसकी कलाइयों को छोड़ा और अपने हाथ उसकी टाँगों के बीच से निकाल लिये.. अब वो बिल्कुल धराशायी हो गई बिस्तर पर.. “ओह गॉड...मज़ा आ गया रसिक!”
रसिक ऊपर चढ़ गया और उसके होंठों को चूमने लगा.. शीला ने रसिक की बालों से भरी छाती पर हाथ फिराने शुरू कर दिये.. अच्छा लगता था उसे जब रसिक की बालों से भरी छाती उसके चिकने और भरे हुए बबलों को रगड़ती थी.. अजीब तरह की गुदगुदी सी होती थी उसे.. अब शीला बैठ गई और उसने रसिक की पैंट के बटन खोले और उसकी पैंट और अंडरवेर निकाल कर फेंक दिये.. उसने रसिक के तगड़े लंड को अपने हाथों में लिया और उसकी जड़ से टोपे तक अपना हाथ ऊपर नीचे करने लगी.. उसके लंड की चमड़ी के पीछे होते ही उसका लाल-लाल गोल सुपाड़ा जैसे हमले की तैयारी में नज़र आता था.. शीला झुकी और रसिक का लंड चूसना शुरू कर दिया.. उसने रसिक के लंड के सुपाड़े को मुँह में लिया और उसका स्वाद अपनी जीभ पर महसूस करने लगी.. उसकी जीभ रसिक के लंड के मूतने वाले छेद में घुसने की कोशिश कर रही थी.. उसके सुपाड़े को अपनी जीभ में लपेट कर शीला उसके हर हिस्से का मज़ा ले रही थी..
रसिक उसके सर पर हाथ रख कर उसे दबाने लगा.. अब शीला रसिक के पूरे लंड को अपने मुँह में ले रही थी.. रसिक का लंड उसके गले तक जा रहा था और उसकी आँखें जैसे बाहर आने को हो गईं.. उसने लंड को थोड़ा बाहर निकाला और फिर थोड़ी कोशिश के बाद वो अब उसके लंड को अपने मुँह में एडजस्ट कर चुकी थी.. अब रसिक को पूरा मज़ा मिल रहा था.. शीला बिल्कुल रंडी की तरह अच्छे तरीके से उसका लंड चूस रही थी - नीचे से ऊपर... ऊपर से नीचे.. फिर रसिक ने उसे बिस्तर से नीचे उतरने को कहा..
शीला बड़ी ही मस्ती में झूमती हुई बिस्तर से उतर कर नीचे खड़ी होकर झुक गई और अपने हाथ बेड पर रख दिये.. अब वो बेड का सहारा लेकर गांड उठाये खड़ी थी.. रसिक उसके पीछे आकर खड़ा हो गया.. शीला की गांड उठ कर उघड़ी हुई थी और वो गांड मटकाते हुए आराम से रसिक के लंड का अपनी चूत में घुस जाने का इंतज़ार करने लगी.. रसिक ने शीला के पैरों को और फैलाया और अपने लंड को पकड़ कर शीला कि उठी गांड पर रगड़ने लगा.. वो उसके पीछे खड़ा होकर उसकी उठी हुई गांड से लेकर उसकी चूत तक अपने लंड को रगड़ रहा था.. शीला की सिसकारियों से कमरा गूँज रहा था.. शीला की चूत के मुँह पर उसने अपने लंड को एडजस्ट किया और धीरे-धीरे बड़े प्यार से लंड के सुपाड़े को उसकी चूत में पहुँचा दिया..
शीला ने मदहोश होकर अपनी गांड ओर उठा दी और रसिक ने अपना लंड एक झटके से पूरा का पूरा शीला की चूत में ढकेल दिया.. शीला को एक झटका सा लगा और उसकी सिसकारियाँ फूटने लगीं.. रसिक ने दोनों हाथों से उसकी कमर को पकड़ा और नीचे से जोर-जोर से झटके मारने शुरू कर दिये और शीला की कमर को पकड़ कर एक लय में उसके जिस्म को हिलाने लगा.. शीला का पूरा जिस्म हिल रहा था.. उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी चूत को कोई उठा-उठा कर रसिक के लंड पर पटक रहा था, और रसिक का लंड उसकी चूत को चीरते हुए उसके पेट में घुस रहा था..
शीला की सिसकारियाँ अब मदहोशी की चीखों में बदल चुकी थी.. उसकी चूत के थपेड़े रसिक के लंड पर बेतहाशा पड़ रहे थे.. रसिक ने उसकी कमर को कस कर पकड़ रखा था और शीला की गांड से लेकर उसके कंधों तक उसके जिस्म को झकझोर कर रख दिया था.. रसिक उसे बुरी तरह चोदे जा रहा था और शीला के पैर ज़मीन से उठने लगे थे.. रसिक ने उसकी कमर को छोड़ दिया और उसकी जाँघों को अंदर की तरफ़ से पकड़ कर उसे ऊपर उठा लिया.. अब शीला अपने हाथों को बेड पर टिकाये हवा में लहरा रही थी और रसिक उसकी चूत में बेतहाशा धक्के लगाये जा रहा था.. रसिक के धक्के एक दम तेज़ हो गये और शीला की चूत में जैसे ज्वालामुखी फट गया..
पता नहीं किसका पानी कब गिरा, दोनों के जिस्म अब शाँत पड़ने लगे.. रसिक ने शीला की जाँघें छोड़ दीं तो शीला के पैर ज़मीन पर पड़े.. शीला घूमी और धड़ाम से बेड पर गिर गई.. “रसिक, मज़ा आ गया..!” रसिक भी उसकी बगल में लेट गया और शीला ने उसके होंठों को चूम लिया..
शीला की मौज हो चली थी.. पिछले दो दिन से मजे ही मजे थे शीला के...
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