चेहरा स्पष्ट दिखते ही वैशाली के पैरों तले से जमीन खिसक गई!!! अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था उसे.. !!! नालायक पीयूष.. ये क्या किया तूने? कब से लगा हुआ है इनके साथ? रेणुका और पीयूष?? ओह माय गॉड.. ये मैं क्या देख रही हूँ?? साला ये पीयूष तो खिलाड़ी निकला.. हरामी.. मादरचोद.. एक साथ कितनों को लपेटें रखा है उसने!! कभी मेरे साथ.. कभी मौसम के साथ.. और अब रेणुका के साथ भी.. !!!
"कब से क्या देख रही हो वैशाली? रेणुका को आज से पहले देखा नही क्या तुमने?" हँसते हुए राजेश ने कहा.. वो कब से वैशाली को रेणुका को देखते हुए देख रहा था.. परदे के पीछे क्या खेल चल रहे थे उसका राजेश को कोई इल्म नही था
वैशाली को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे उसे रंगेहाथों किसी ने पकड़ लिया हो.. बात को घुमाते हुए उसने कहा "अरे सर.. मुझे रेणुका जी की साड़ी बहोत पसंद आ गई.. इसलिए कब से उन्हें देख रही हूँ.. कितनी खूबसूरत लगती है वो.. कोई नही कहेगा की उनकी उम्र ४० के करीब है.. तीस साल से जरा भी ज्यादा की नही लगती.. लगता है आपकी संगत का असर है " आँखें लड़ाते हुए उसने राजेश से कहा
"हाँ वो तो है.. हम दोनों खूब इन्जॉय करते है.. लेकिन बिजनेस के चलते काफी समय से मैं उसे वक्त नही दे पा रहा.. अब यहाँ आकर कुछ वक्त साथ बिताने का मौका मिला है.. उसी की चमक है रेणुका के चेहरे पर.. इसके लिए मुझे पीयूष का भी आभार प्रकट करना चाहिए.. उसके आने के बाद ही मुझे ऑफिस से थोड़ा सा वक्त मिल पा रहा है.. और वही वक्त मैं रेणुका के साथ बीताता हूँ.. वरना पिछले तीन सालों में हम मुश्किल से तीन महीने ही साथ रहे है.. आई एम प्राउड ऑफ माय वाइफ.. मेरे इतने बीजी शिड्यूल के बावजूद उसने मुझे कभी एक लबज़ तक नही कहा.. अगर पीयूष मुझे न मिला होता तो हमारा संसार टूटने की कगार पर ही था.. ये तो अच्छा हुआ की रेणुका की एक सहेली शीला जी की सिफारिस पर मैंने पीयूष को इंटरव्यू के लिए बुलाया और सिलेक्ट कर लिया.. पीयूष उनका पड़ोसी है.. " राजेश ने एक सांस में ही पूरी कथा सुना दी
वैशाली के दिमाग में विचारों की शृंखला सी चल पड़ी ...अच्छा.. मतलब मम्मी ने ही रेणुका जी से बात करके पीयूष को नौकरी पर लगवाया है.. लेकिन पीयूष और रेणुका का सेटिंग हुआ कैसे होगा? इस सवाल का जवाब ढूँढना बेहद जरूरी था..
वैशाली: "शीला जी मेरी मम्मी है.. और पीयूष हमारा पड़ोसी है.. हम बचपन में साथ खेलकर बड़े हुए है.. और मैं उसे बहोत अच्छी तरह जानती हूँ.. बहोत ही होनहार लड़का है पीयूष" यह कहते हुए वैशाली मन में सोच रही थी.. जिस तरह उस दिन रेत के ढेर में मुझे रगड़कर चोदा था.. पीयूष होनहार तो है ही..
वैशाली: "कितना वक्त हुआ पीयूष को आपकी कंपनी जॉइन कीये हुए?"
राजेश: "ज्यादा नही.. बस दो महीने हुए है.. पर इतने समय में ही उसने जिस तरह काम किया है.. काबिल-ए-तारीफ है.. लड़का बहोत आगे जाएगा.. !!"
वैशाली सोचने लगी.. कुछ तो बात थी.. सिर्फ दो महीनों में ही पीयूष और रेणुका इतने करीब कैसे आ गए? कहीं नौकरी लगने से पहले ही दोनों का चक्कर चल रहा होगा क्या? और रेणुका मम्मी को कैसे जानती है? कहीं उन दोनों के बीच तो कहीं.. नही नही.. मुझे मम्मी के बारे में इतना गंदा नही सोचना चाहिए..
वैशाली जब विचारों में खोई हुई थी तब सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते हुए वैशाली के स्तनों को तांक रहा था.. अभी कुछ वक्त पहले ही इन्हे दबाए थे.. आहाहा.. कितना मज़ा आया था.. गले में पहने मंगलसूत्र के नीचे दिख रही दो स्तनों के बीच की खाई देखकर ही अंदर हाथ डालने का मन होने लगा राजेश को.. !! कितनी नाजुक और मदमस्त है.. !! एक पुरुष को जो चाहिए वह सब था वैशाली में..
दोनों चुपचाप एक दूसरे को देख रहे थे.. वैशाली सोच रही थी.. मम्मी और रेणुका के बीच कैसे संबंध होंगे? पापा काफी समय से विदेश है और रेणुका का पति भी ज्यादातर बाहर ही रहता है.. ऐसी स्थिति में कहीं दोनों ने मिलकर पीयूष के साथ ही.. ?? बाप रे.. क्या ऐसा हो सकता है?? हो तो सकता है.. पापा के बगैर दो साल मम्मी बिना सेक्स के तो रही नही होगी.. मैं खुद तीन-चार दिन से अधिक बिना सेक्स के पागल सी हो जाती हूँ.. संजय के बिना मुझे भी कितनी तकलीफ होती है!! कितनी रातें मैंने करवटें बदल कर और उँगलियाँ घिस घिसकर काटी है.. लेकिन उंगली में वो मज़ा कहाँ!! पुरुष का वो खास अंग जब अंदर स्पर्श करता है तब जो रियल टच की अनुभूति होती है.. वो उंगली में कभी नही मिल सकती.. अगर थोड़े दिन बिना सेक्स के रहना पड़े तो मेरी यह दशा होती है.. तो मम्मी और रेणुका को तकलीफ होना भी जायज था.. आखिर वह दोनों भी इंसान है और उनकी अपनी जरूरतें होंगी ही.. और यही इच्छा जब बेकाबू बनी होगी तभी रेणुका और पीयूष का संबंध बना होगा.. पर इन सब में मम्मी बीच में कहाँ से आई? क्या वो भी पीयूष के साथ करती होगी? हो सकता है.. शायद कोई ओर मर्द भी हो मम्मी के जीवन में.. जितना सोचती जा रही थी उतना ही उलझ रही थी वैशाली..
राजेश: "एक बात पूछूँ वैशाली?"
वैशाली: "हाँ पूछिए न, सर.. !!" पीयूष, रेणुका और मम्मी को अपने दिमाग से निकालकर सामने बैठे राजेश पर उसने ध्यान केंद्रित किया
"अभी थोड़ी देर पहले मैंने तुझे काफी रीक्वेस्ट की थी.. किस और स्पर्श के लिए.. तब तो तुमने साफ साफ मना कर दिया था.. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ जो तुमने मुझे टॉइलेट के अंदर खींच लिया? इस बात का ताज्जुब हो रहा है मुझे"
"आपकी बात और सोच बिल्कुल सही है सर.. मैंने पहले तो आपको मना किया था.. पर जैसे जैसे हम बात करते गए.. मुझे आपकी कंपनी में बहोत मज़ा आने लगा.. और माउंट आबू के इस रंगीन आजाद माहोल में.. बियर के नशे में.. मैंने कंट्रोल खो दिया सर.. !!"
"अच्छा.. मतलब तुम कंट्रोल खोकर मुझसे लिपट जाओ तो कोई प्रॉब्लेम नही.. और अगर मैं कंट्रोल खो कर सिर्फ एक किस मांग लूँ तो मेरी प्रपोज़ल रिजेक्ट?? ऐसा क्यों?"
वैशाली हंस पड़ी "सर, जो आउट ऑफ कंट्रोल होते है वो कभी प्रपोज नही करते.. सीधा पकड़ ही लेते है.. !! आपने प्रपोज किया क्यों की आप कंट्रोल में थे.. अगर आप आउट ऑफ कंट्रोल होते तो सीधा पकड़कर किस कर लेते.. पूछते नही !!"
"वो तो मैं कर ही सकता था.. पर फिर तुम मेरे बारे में क्या सोचती.. !! यहाँ इस वक्त तुम मेरी मेहमान हो.. तुम्हारी मर्जी के खिलाफ मैं कैसे कुछ कर सकता था?"
वैशाली: "बात तो आपकी सोलह आने सच है सर.. देखिए.. अगर हम चार धाम की यात्रा के दौरान ऐसा कुछ करते तो गलत होता.. पर यहाँ माउंट आबू का वातावरण ही अलग है.. रात का माहोल.. हाथ में बियर का ग्लास.. और ऐसे उत्तेजक कपड़ों में लड़कियां आस पास मंडरा रही हो.. तब थोड़ा सा ऊपर नीचे हो जाए तो हर किसी को थोड़ा समझना चाहिए.. अब ईसे देखो.. पीयूष की वाइफ कविता को.. जिस तरह के कपड़े उसने पहने है.. देखकर कितने मर्दों को इरेक्शन हो गया होगा.. !!"
राजेश: "कहीं तुम्हारे कहने का मतलब ये तो नही है न की ऐसा कुछ न करके मैंने गलती कर दी?? अगर ऐसा है तो मैं अपनी उस गलती को अभी सुधार लेने को तैयार हूँ"
"मतलब??" वैशाली रोमांचित हो गई राजेश की बात सुनकर.. "अरे मैं तो बस मज़ाक कर रही हूँ.. " कहते हुए उसने बात को वहीं रोकने की कोशिश की.. पर राजेश इस बात का अंत लाने को तैयार नही था
"वैशाली, तेरी छाती पर ये जो मंगलसूत्र के बीच की लकीर दिख रही है ना.. वहाँ किस करने का बहोत मन कर रहा है.. अब अगर मैं इजाजत माँगता हूँ तो तुम कहोगी की मैं कंट्रोल में हूँ.. और अगर सीधे सीधे किस कर लेता हूँ तो तुम्हें लगेगा की मैंने तुमसे जबरदस्ती की.. अब बोलो.. मैं क्या करूँ?"
वैशाली एकदम ही शरमा गई.. आसपास करीब ४० लोग थे और उसमे से काफी लोग पहचान के भी थे.. अगर बियर के नशे में राजेश ने सब के बीच कोई उलटी सीधी हरकत कर दी तो.. बाप रे!!
"सर, आप भी ना.. बड़े वो हो.. !!"
राजेश: "क्यों?? मैंने पूछकर कुछ गलत किया क्या?"
वैशाली: "अरे नही नही.. मेरे कहने का ये मतलब था की पहले हमने जो कुछ भी किया वो चार दीवारों के बीच सब की नज़रों से दूर किया था.. और अभी आप मुझे सब के सामने छाती पर किस करना चाहते हो.. अगर रेणुका मैडम ने देख लिया तो आपको माउंट के ऊपर से ही धक्का दे देगी.. अगर आसपास कोई नही होता तो बात अलग थी.. "
"अच्छा? ये बात है? तो चलो वापिस टॉइलेट में चलते है" राजेश ने वैशाली को चोंका दिया..
वैशाली सोच में पड़ गई.. अब क्या करें? बार बार टॉइलेट में थोड़े ही जा सकते है? कोई देख लेगा तो शक हो जाएगा..
"सोच क्या रही हो? ये लो.. एक दो दम लगाओ.. तो कुछ दिमाग काम करेगा" सिगरेट देते हुए राजेश ने कहा
वैशाली ने एक दम लगाते हुए कहा "सर, अभी थोड़ी देर पहले ही आपने खोलकर दबाए है.. चूसे भी है.. अभी एक छोटी सी लकीर के लिए इतनी जिद क्यों कर रहे हो? भरपेट खाना खा लेने के बाद.. सौंफ और मिस्री के पीछे पड़े हो.. !!"
"बात तो तुम्हारी सही है.. लेकिन कभी कभी खुली छाती देखकर भी इतनी उत्तेजना नही होती जो छोटी सी लकीर को देखकर होती है"
वैशाली ने आसपास देखा.. सब अपनी मस्ती में खोए हुए थे.. उसने टेबल पर झुककर अपने दोनों स्तनों को टीका दिया.. उसके साथ ही उसके स्तन उभरकर बाहर निकले.. और बीच की खाई काफी गहरी नजर आने लगी.. यौवन के शिखरों जैसे स्तनों को दिखाकर वैशाली ने कहा "फिलहाल तो आप बस देखकर ही काम चला लीजिए.. अगर मौका मिलें तो मैं खुद ही आपसे दबवा लूँगी.. ठीक है!! असल में.. मैं खुद भी दबवाना चाहती हूँ"
वैशाली के उभरते उरोजों को देखकर राजेश बेकाबू हो गया.. और वैशाली की कामुक बातों ने उसे ओर उत्तेजित कर दिया
राजेश: "वैशाली, मुझसे तो अब रहा नही जाता.. कुछ भी कर.. पर मुझे इन्हे चूसने दे प्लीज.. आह्ह.. थोड़ी और पास आ तो मैं इन्हें छु सकूँ.. दूर क्यों भाग रही हो यार?? या तो फिर चल मेरे साथ टॉइलेट में.. " राजेश अपना आपा खो रहा था.. और साथ ही साथ उसकी बातें सुनकर वैशाली की पुच्ची भी फुदक रही थी..
"नही सर.. आप प्लीज समझने की कोशिश कीजिए.. ये तो मैंने आपको शांत करने के लिए दिखाए.. बाकी आप देख ही सकते है.. आसपास कितने सारे लोग है!!"
"मैं तेरी बात समझ रहा हूँ.. पर तू भी जरा टेबल के नीचे जाकर मेरी हालत देख?" राजेश ने कहा
जानबूझ कर हाथ से चम्मच गिराते हुए वैशाली ने टेबल के नीचे देखा "अरे बाप रे!! ये क्या कर रहे है आप सर? अंदर रख दीजिए.. किसी ने देख लिया तो आफत आ जाएगी.. " टेबल के नीचे राजेश ने अपने पेंट की चैन खोलकर अपना फनफनाता हथियार हाथ में पकड़ा हुआ था.. वैशाली का चेहरा शर्म और उत्तेजना से लाल हो गया.. वो भी गरम हो गई.. खुलेआम लंड देखने का यह पहला मौका था वैशाली के लिए..
वैशाली ने आसपास नजर डाली.. कहीं कोई सलामत जगह मिल जाएँ तो चुदाई का दूसरा राउंड कर लेने के लिए.. पर हॉल के अंदर ऐसी कोई जगह नही दिखी जहां वो राजेश के लंड और अपनी चूत को ठंडी कर सकें..
"प्लीज वैशाली.. अगर तुम मुझे अपनी क्लीवेज पर किस नही करने दोगी तो ये बैठेगा ही नही.. और जब तक ये बैठेगा नही तब तक मैं उसे पेंट के अंदर नही डाल पाऊँगा" राजेश ने विनती की
खुले वातावरण में लंड देखकर वैशाली की नियत भी डगमगा गई थी पर यहाँ पर कुछ भी करना मुमकिन नही था.. क्या करूँ? एक तरफ चूत में हो रही खुजली.. तो दूसरी तरफ प्राइवसी की तकलीफ.. खुले में थोड़े ही ये सब हो सकता है?
अचानक वैशाली को एक आइडिया सुझा.. हॉल के इस भाग की दीवार पर.. करीब चार फुट ऊपर एक कांच का कपबोर्ड बना था.. जिसके अंदर किताबें रखी थी
वैशाली: "सर, एक काम करते है.. मैं उस कपबोर्ड से किताब लेने खड़ी हो जाती हूँ.. सब लोगों की तरह मेरी पीठ होगी।। जब तक मैं किताब को निकालूँ उस दौरान आपको जो करना है कर लीजिए.. ठीक है!! पर आस पास देखते रहना.. और कहीं कुछ रिस्क लगे तो मुझे इशारा कर देना.." कहते हुए वैशाली ने खड़े होकर आसपास एक नजर दौड़ाई.. किसी की नजर उन पर नही थी.. पर खड़े होने के कारण उसके उभरे हुए स्तन वापिस ब्रा के अंदर चले गए.. लेकिन राजेश अब पीछे हटने के मूड में नही था.. जैसे ही वैशाली कपबोर्ड का कांच का दरवाजा खोलने के लिए झुकी.. उसके स्तन राजेश के मुंह के बिल्कुल ही करीब आ गए.. राजेश ने वैशाली की गदराई क्लीवेज पर अपनी जीभ फेर दी.. और एक स्तन भी दबा लिया.. वैशाली किताब को ढूँढने में वक्त लगा रही थी.. और काफी देर तक वह ढूंढती रही और राजेश का ज्यादा से ज्यादा मौका देती रही.. दोनों पेट्रोल से आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे.. ऐसी हरकतों से कभी आग नही बुझती.. उल्टा और भड़क जाती है.. राजेश ने हिम्मत करके वैशाली के टॉप में हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल लिया.. वैशाली को भी राजेश का लंड हाथ में पकड़ने की तीव्र इच्छा हो रही थी
"कोई देख तो नही रहा??" वैशाली ने एकदम धीमी आवाज में पूछा.. "अगर कोई देख रहा हो तो मैं एक किताब बाहर निकालूँ.. वरना ऐसे ही बैठ जाती हूँ"
"नही, कोई नही देख रहा.. तुम बैठ जाओ"
वैशाली ने कपबोर्ड बंद किया और बैठ गई..
"अब मिल गई आपको ठंडक?" वैशाली ने कहा
"हाँ यार.. वैशाली.. तेरे जिस्म में कुछ तो ऐसी खास बात है.. किसी स्त्री को देखकर इतना उत्तेजित मैं कभी नही हुआ पहले" राजेश के हाथ की हलचल देखते हुए वैशाली को साफ पता चल रहा था की वो टेबल की नीचे मूठ लगा रहे थे.. उसके स्तनों को देखकर !!
"यार वैशाली.. वापिस टेबल पर झुक जा.. तेरे बॉल छलक कर बाहर दिखेंगे तो मेरा जल्दी छूट जाएगा.. !!" राजेश बेचैन चेहरे से अपने लंड की ओर देख रहा था
"नही सर.. अभी आप छोड़ मत देना.. मुझे भी खेलना है उसके साथ.. आपका काम तो हो गया.. अब मेरी बारी.. " कहते हुए वो टेबल के नीचे घुस गई और एक ही सेकंड में राजेश का लंड उसके मुंह में था.. !! फटाफट उसने सात आठ बार लंड को मुंह में अंदर बाहर किया और तुरंत वापिस चैर पर बैठ गई.. "बस सर.. अब इससे ज्यादा कुछ नही हो सकता.. आप अपना पानी निकाल लो.. और मैं अपना निकालती हूँ.. " कहते ही वैशाली ने अपने स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर चुत को रगड़ना शुरू कर दिया.. अचानक वैशाली को अपनी कलाई पर कुछ गरम एहसास हुआ.. पर अपनी चूत रगड़ते हुए उसे ये देखने का समय नही था.. दो तीन मिनटों तक चूत की भरसक रगड़ाई करने के बाद.. वो भारी सांसें लेते हुए झड़ गई.. अब उसने अपनी कलाई पर नजर डाली.. उस पर राजेश का वीर्य लगा हुआ था.. हँसते हुए वैशाली ने उन बूंदों को अपनी कलाई से चाट लीया.. और फिर अपनी जिन उंगलियों से उसने अपनी चुत को रगड़ा था.. उन गीली उंगलियों को राजेश के बियर भरे ग्लास में डुबोते हुए बोली "अब बियर का असली स्वाद मिलेगा.. ये आज का आखिरी ग्लास मेरा..!!"
"हाँ यार.. मुझे भी कुछ ज्यादा ही चढ़ गई आज.. " वैशाली की बात से सहमत होकर राजेश ने कहा
दोनों ने बियर का ग्लास खतम किया और सिगरेट सुलगा कर पार्टी में जुड़ गए.. सब लोग नशे में धुत थे और मस्ती से झूम रहे थे.. डांस करते हुए सब जान बूझकर कविता के जिस्म और बोब्बों से टकरा रहे थे.. कविता भी शायद बियर के नशे में थी.. वो भी पागलों की तरह झूम रही थी.. पीयूष मौसम के कंधे पर हाथ रखकर कुछ गुफ्तगू कर रहा था.. और पिंटू फाल्गुनी को कंपनी दे रहा था.. पूरी पार्टी में सिर्फ पीयूष, मौसम और फाल्गुनी ही ऐसे थे जिन्हों ने शराब नही पी थी..
रेणुका की बर्थडे पार्टी और आबू की ट्रिप अपने अंत की ओर बढ़ रही थी.. पीयूष अभी अभी रेणुका को चोदकर आया था.. फिर भी मौसम के कंधों पर हाथ रखकर बार बार उसके उभारों को छु रहा था.. वैशाली ये सब देखकर गुस्से से आग बबूला हो रही थी.. पर वो कर भी क्या कर सकती थी!! हाँ.. कविता जरूर कुछ कर सकती थी.. लेकिन उसे फिलहाल पीयूष की पड़ी नही थी.. और अपनी मस्ती में ही मस्त थी.. पीयूष का हाथ बार बार मौसम के उभारों पर होते हुए उसकी निप्पल पर चले जाते तब मौसम उसका हाथ हटा देती..
लेकिन पीयूष के सर पर तो हवस का भूत सवार था.. थोड़ी देर शांत रहकर वह वापिस अपनी हरकतें शुरू कर देता.. आखिर बगल में मौसम जैसी कच्ची कली खड़ी हो.. और अपने आकर्षक उभार दिखा रही हो.. और सब कुछ करने को राजी भी हो.. तब कोई कैसे खुद को कंट्रोल करें!! गलती पीयूष की नही थी.. पर मौसम की जवानी ही कुछ ऐसी कातिल थी.. की उसके चक्कर में पीयूष सब को भूल चुका था.. वैशाली, शीला, रेणुका.. अरे अपनी कविता को भी भूल चुका था.. सौन्दर्य का जादू अक्सर जानलेवा होता है.. मौसम तो अपने जिस्म पर पुरुष का स्पर्श पाकर अपनी ट्रिप को यादगार बना चुकी थी.. जीवन की पहली किस भी उसे यही मिली थी.. वो जितना पीयूष से दूर जाने की कोशिश करती.. उतना ही ज्यादा आकर्षित हो रही थी.. अपने आप से वो बार बार पूछ रही थी.. वो क्या बात थी जो उसे पीयूष की ओर खींचती जा रही थी? इतनी कोशिशों के बावजूद भी? अपनी बहन के पति के साथ ये सब करने का परिणाम कितना भयानक हो सकता है ये जानने के बावजूद भी वह खुद को क्यों नही रोक पा रही थी इस बात का उसे भी आश्चर्य हो रहा था.. मौसम को इन सब में मज़ा भी आ रहा था और डर भी लग रहा था..
मौसम के कंधों पर हाथ रखे हुए पीयूष रेणुका को कुछ इशारे कर रहा था.. ये वैशाली ने देख लिया.. वैशाली पीयूष के पास आकर गाना गुनगुनाने लगी.. "कहीं पे निगाहें.. कहीं पे निशाना" वैशाली के कदम लड़खड़ा रहे थे.. जैसे मौसम और पीयूष के बीच हड्डी बनने के लीये आई हो.. वैसे वैशाली ने पीयूष के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "क्या यार पीयूष? तू तो कविता को भूल ही गया!! जब से आया है तब से मौसम के साथ ही घूम रहा है!!"
मौसम का मुंह यह सुनकर इतना सा हो गया.. जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो.. उसने झटके से अपने कंधे से पीयूष का हाथ हटा दिया.. और शरमाकर एक कोने में खड़ी हो गई..
वैशाली ने ये देखकर हँसते हुए कहा "अरे अरे.. टेक इट ईजी.. मैं तो बस मज़ाक कर रही थी.. " वैशाली को जो कहना था वो कह दिया और फिर बात को वापिस घुमा भी दिया.. स्त्रीओं को इस कला में महारथ हासिल होती है.. लेकिन मौसम अब डर गई थी.. झूठ-मूठ हँसते हुए उसने वैशाली से कहा "इट्स ओके.. मुझे बुरा नही लगा.." तभी नशे में झूमती हुई कविता वहाँ आ पहुंची.. उसके कपड़े देखकर पीयूष को शर्म आ रही थी.. पर अभी सब के सामने उसे कुछ भी कह पाना मुमकिन नही था.. नशे की हालत में कविता बात का बतंगड़ बना देती.. पीयूष सब के बीच कोई तमाशा खड़ा करना नही चाहता था.. ऐसी कोई हरकत करके वो रेणुका को भी गंवाना नही चाहता था.. उसने मन में गांठ बांध ली थी.. कविता को जो कुछ भी कहना है वो घर पर जाकर कहेगा..
मौसम और वैशाली के बीच खड़े पीयूष को देखकर कविता ने उसकी उंगली की "अरे वाह पीयूष.. तेरे तो चारों तरफ गोपियाँ मंडरा रही है!! बाकी है तू पक्का रोमियो.. मैं ये सोच रही थी की तेरी जोड़ी किसके साथ ज्यादा जाचेगी? वैशाली के साथ या मौसम के साथ? किससे पूछूँ? एक काम करते है.. रेणुका जी से ही पूछ लेते है.. चल.. !!"
वैशाली और मौसम को सिट्टी पीट्टी गूम हो गई.. बाप रे!! आज कविता जरूर तमाशा खड़ा करेगी.. बात को घुमाते हुए वैशाली ने कहा
वैशाली: "पीयूष की जोड़ी तो सिर्फ कविता के साथ ही अच्छी लगती है.. आखिर दोनों पति पत्नी है.. पीयूष.. तू कविता के साथ खड़ा हो जा.. मैं अपने मोबाइल में तुम दोनों की तस्वीर लेकर दिखाती हूँ.. कितने अच्छे लगते हो साथ में तुम दोनों.. !! अगर तुम्हारी जोड़ी अच्छी नही लगी तो फिर हम रेणुका जी से पूछेंगे.. ठीक है?" नशे के असर में लड़खड़ाती हुई कविता ने कपड़े तो उत्तेजक पहने ही थे.. पर नाच नाचकर वह कपड़े अस्तव्यस्त भी हो गए थे.. टॉप के साइड से उसकी आधे से ज्यादा चूचियाँ नजर आ रही थी.. उसके कपड़ों से सुंदरता का कम और नग्नता का प्रदर्शन ज्यादा हो रहा था.. ऊपर से उसमें मिला शराब का नशा.. नशा चढ़ते ही कविता बेफिक्र होकर किसी की परवाह कीये बिना झूम रही थी.. और आस पास मंडराते भँवरे.. मौका मिलते ही इस फूल का रस चूसने में कसर नही छोड़ते थे..
पीयूष को कविता के बगल में खड़ा रखकर वैशाली ने जबरदस्ती फ़ोटो खींच ली.. और सब को दिखाने लगी.. अब देखने वाले ये तो नही कहेंगे की जोड़ी अच्छी नही लगती.. !! सब ने यही कहा.. की जोड़ी अच्छी है और पीयूष के मुकाबले कविता ज्यादा सुंदर लगती है.. अपने गुणगान और पीयूष का अपमान सुनकर बड़े ही आत्मसंतोष के साथ खुश होकर कविता पहले से भी ज्यादा उन्मुक्त होकर महफ़िल के मजे लेने लगी.. पीयूष ने जो बर्ताव उसके साथ किया था उसका दिल से बदला ले लिया था कविता ने और इसी बात का जश्न मना रही थी वो.. !!!
कविता के जाते ही मौसम और वैशाली ने चैन की सांस ली..
"आज बहोत बातें कर रही थी तू राजेश सर के साथ?" पीयूष ने पूछताछ शुरू कर दी वैशाली से
"हाँ पीयूष.. मैं अकेली थी.. तू तो मौसम के साथ ही चिपका हुआ था.. कविता तो अपनी मस्ती में थी.. और तुझे मौसम के अलावा और कोई दिख ही नही रहा.. मैं अकेली बोर हो रही थी.. अच्छा हुआ की राजेश सर ने अपना समय दिया.. और मेरी उदासी कम हुई.. बाकी जिसके साथ मस्ती करने के इरादे से मैं यहाँ आई थी.. उसे तो मेरी पड़ी ही नही है!!"
"अरे यार वैशाली.. तुझे बुरा लगा हो तो आई एम सॉरी.. मैं सामने से तुझे फोर्स करके यहाँ लाया था. तू बोर ना हो ये देखने की जिम्मेदारी मेरी है.. पर मौसम और फाल्गुनी थे इसलिए मैंने सोचा की तुझे कंपनी मिल जाएगी.. बाकी तू सोच रही है ऐसा कुछ नही है.. मेरा ध्यान हमेशा से तेरे ऊपर था.. "