सारा मामला निपटाकर उसने आवाज देकर संजय को बुलाया.. फटाफट बिल देकर वो दोनों बाहर निकल गए.. और तेजी से चलते हुए अपने रूम पर पहुँच गए.. शीला काफी डर गई थी "संजय.. यहाँ रुकने में भी मुझे तो डर लग रहा है.. हमे अब गोवा छोड़ देना चाहिए.. इससे पहले की कोई ओर मुसीबत आ जाए.. तू चेकआउट करने की तैयारी कर.. "
"ठीक है मम्मी जी.. जैसा आप कहें.. हम चले जाएंगे.. लेकिन जाने से पहले एक जबरदस्त चुदाई तो बनती है " अपनी शॉर्ट्स की साइड से लंड बाहर निकालकर दिखाते हुए संजय ने कहा.. "ईसे आपके स्तनों के बीच रगड़ने की ख्वाहिश भी तो पूरी करनी है.. देखिए ये बेचारा कितना उदास है !!"
अपने दामाद का नरम लंड पकड़ते हुए शीला ने कहा "बेटा.. बिना चुदे तो मैं भी जाना नही चाहती.. दिल भरकर तेरे धक्के खाने है.. मेरी चूत को तेरे लंड से पावन करने के बाद ही हम गोवा छोड़ेंगे.. !! अब देर मत कर.. और अपनी मम्मी जी की चूत चाटने की सेवा शुरू कर दे.. "
"आह्ह मम्मी जी.. आपकी तो बातें सुनकर ही मेरा लंड कहीं पिचकारी न छोड़ दे.. " कहते हुए संजय ने शीला को अपनी बाहों में भर लियाया.. छोटे बच्चे की तरह वो शीला के स्तन से चिपक गया.. और नेट वाली ब्रा से एक स्तन को बाहर निकालकर चूसने लगा..
"आह्ह बेटा.. मज़ा आ रहा है.. तेरी जीभ की गर्मी मेरी निप्पल से होते हुए पूरे शरीर में फैल रही है.. देख.. तेरा लंड भी सख्त होकर तैयार हो गया.. इतने सुंदर लंड से चुदने के लिए वैशाली क्यों राजी नही होती ये मुझे समझ में नही आता.. इसे खड़ा हुआ देखकर भी वो कोई रिस्पॉन्स नही देती?"
"रिस्पॉन्स देती है ना.. क्यों नही देती.. मेरे लंड को देखकर ही वो करवट बदल कर सो जाती है"
"पागल है मेरी बेटी.. " कहते हुए शीला घुटनों पर बैठ गई और संजय के गन्ने जैसे सख्त लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी.. शॉर्ट्स की साइड से लंड को चूसने में मज़ा नही आ रहा था.. इसलिए उसने खींचकर संजय की शॉर्ट्स जिस्म से अलग कर दी.. और अपनी ब्रा और चड्डी उतारकर फिर से एक बार स्खलित होने के लिए तैयार हो गई.. उसके चेहरे पर उत्तेजना साफ साफ छलक रही थी..
दोनों नंगे होकर एक दूसरे को चूमने और चाटने में व्यस्त हो गए.. संजय ने शीला की चूत पर अपना हाथ जमा दिया और शीला ने संजय के लंड को गिरफ्त में ले लिया..
"मम्मी जी.. अब मुझे अपने दोनों स्तनों के बीच में लंड घुसेड़ने दो.. "
"हाँ हाँ.. घुसा दे.. मैंने कब मना किया तुझे!! आज ये आखिरी चुदाई होगी हमारी.. जो मन करे तेरा.. वो कर ले.. मैं कुछ नही बोलूँगी"
"मम्मी जी.. आपके मन में भी ऐसी कोई विकृत इच्छा हो तो बता दीजिए... गोवा की ट्रिप यादगार बनानी है हमें.. !!"
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वैशाली और राजेश सर माउंट आबू में.. रेणुका की बर्थडे पार्टी में बियर की चुसकियाँ लेते हुए सिगरेट पर सिगरेट फूँक रहे थे.. राजेश के स्वभाव और पर्सनैलिटी से वैशाली बेहद आकर्षित हो गई थी.. उसने शारीरिक संबंधों के लिए पहले ही मना कर दिया था पर फिर भी राजेश ने बुरा नही माना था.. वैशाली को ये बात बहोत अच्छी लगी राजेश की..
लगभग ग्यारह बज रहे थे.. हर कोई नशे में चूर होकर ट्रिप के मजे ले रहा था.. वैशाली की आँखें भी बियर के नशे में सुरूर से भर रही थी.. इतनी बियर पीने के बाद उसे बड़ी जोर से पेशाब लगी थी.. आखिर जब बात बर्दाश्त से पार हो गई तब वह उठी और राजेश से कहा "एक्स्क्यूज़ मी.. मुझे जाना होगा.. फ्रेश होकर आती हूँ.. आप मेरा वैट करना.. "
"जाना तो मुझे भी है.. चलो मैं भी साथ चलता हूँ.. कहीं तुम्हारे कदम लड़खड़ा गए तो कोई तो चाहिए सहारा देने वाला.. " राजेश ने कहा.. वैशाली शरमा गई.. और नीचे देखने लगी..
"अरे घबराइए नही.. मैं तो जेन्ट्स टॉइलेट में ही जाऊंगा.. तुम्हारे साथ थोड़े ही आने वाला हूँ" हँसते हँसते राजेश ने कहा
"वो तो मुझे भी पता है सर की आप मेरे साथ टॉइलेट में नही आओगे.. चलिए चलते है" वैशाली आगे चाय और राजेश उसके पीछे पीछे.. वैशाली की मटकती गांड को देखकर राजेश की नियत में खोट आने लगी थी.. राजेश की नशीली आँखों में वैशाली की गांड का नशा अलग से जुड़ गया..
पेसेज के आखिर में लेडिज और जेन्ट्स के टॉइलेट अगल बगल में ही थे.. चलते चलते वैशाली के कदम डगमगा गए.. और उसे संभालने के चक्कर में राजेश भी लड़खड़ा गया.. एक दूसरे को संभालते हुए दोनों दीवार का सहारा लेकर खड़े हो गए.. वैशाली के स्तन एक पल के लिए राजेश के हाथों से दब गए.. दोनों एक दूसरे को सॉरी कहने लगे.. और हंस पड़े..
टॉइलेट के पेसेज में दोनों अकेले थे.. हल्की सी रोशनी थी..
"वैशाली, यू आर सो हॉट.. प्लीज एलाऊ मी टू टच योर बूब्स.. सिर्फ एक बार.. मेरी रीक्वेस्ट है.. प्लीज"
"नही सर.. आई कांट डू धिस.. सॉरी.. " वैशाली ने नशे की हालत में भी अपना संयम नही छोड़ा था.. वह दरवाजा खोलकर लेडिज टॉइलेट में घुस गई.. राजेश भी जेन्ट्स टॉइलेट में चला गया.. वह पेशाब करके बाहर निकला और लेडिज टॉइलेट के दरवाजे के बाहर वैशाली का इंतज़ार करने लगा.. तभी लेडिज टॉइलेट का दरवाजा खुला.. एक हाथ बाहर आया और उसने राजेश को अंदर खींच लिया.. एक सेकंड में ही ये सब हो गया..
राजेश कुछ समझ या सोच सके उससे पहले ही वैशाली ने उसे चूम लिया.. उसके मदमस्त उरोज राजेश की छाती से रगड़ रहे थे.. वैशाली इतनी उत्तेजित हो गई थी की राजेश कुछ करे उससे पहले ही उसने हाथ नीचे डालकर उसका लंड पकड़ लिया और धीमे से कान में बोली
"कुछ मत बोलीये.. किसी को पता नही चलना चाहिए की इस क्यूबिकल में हम दोनों है.. एकदम शांत रहिए" वैशाली ने अपना टीशर्ट ऊपर कर दिया और अपने दोनों खिलौने राजेश को खेलने के लिए दे दिए.. मर्द का हाथ उसके स्तनों को स्पर्शते ही वैशाली के चेहरे पर खुमार छाने लगा.. बियर का नशा अपना काम कर रहा था और राजेश का हाथ भी..
राजेश का हाथ वैशाली की गीली पुच्ची तक कब पहुँच गया इसका दोनों को पता ही नही चला.. टॉइलेट की संकरी जगह में वैशाली और राजेश सर दोनों को तकलीफ हो रही थी.. पर दोनों इतने उत्तेजित थे.. जैसे एक दूसरे के जिस्मों को नोच खाना चाहते हो.. राजेश को कब से ललचा रहे वैशाली के बड़े बड़े तंदुरुस्त उरोज.. राजेश ने दोनों हाथों से पकड़कर अनगिनत बार चूम, चाट और काट लिए.. वैशाली को दर्द हो रहा था फिर भी वह चुप थी क्यों की जरा सी भी आवाज उनका भांडा फोड़ सकती थी.. दोनों फटाफट अपनी वासना को तृप्त करने की फिराक में एक छोटा पर रसीला प्रोग्राम कर देना चाहते थे.. जल्द से जल्द हॉल में पहुँचना भी जरूरी थी.. वरना लोगों को शक होने की गुंजाइश थी..
वैशाली ने तुरंत ही अपनी पेन्टी को घुटनों तक सरकाते हुए स्कर्ट ऊपर चढ़ा दिया और फिर उलटी होकर बोली "प्लीज सर.. जल्दी कीजिए.. डाल दीजिए फटाफट" हल्की रोशनी में जगमगाते हुए वैशाली के चरबीदार कूल्हों पर थपकी लगाते हुए राजेश ने उन नितंबों को चौड़ा किया..
"सर वक्त बहोत कम है.. वो सब आराम से बाद में देख लेना.. " उत्तेजनावश अपनी गांड को गोल गोल घुमाते हुए राजेश को आमंत्रित कर रही थी.. राजेश ने वैशाली की कमर को पकड़ा और अपने कड़े लंड को दोनों कूल्हों के बीच में लगाया..
"ईशशश.. सर.. वहाँ नही.. थोड़ा सा नीचे" अपने गांड के छेद पर राजेश के लंड के सुपाड़े का स्पर्श होते ही वैशाली ने सहम गई
"अरे यार.. इतना अंधेरा है.. कुछ दिखना भी तो चाहिए.. " राजेश ने परेशान होते हुए कहा
"सर, आप एक बार जीभ से चाटिए ना.. मुझे बिना चटवाए मज़ा ही नही आता" वैशाली की विनती को सन्मान देते हुए राजेश झुककर नीचे बैठ गया और उसके दोनों चूतड़ों को फैलाकर पहेले गांड और फिर चूत को चाटने लगा.. वैशाली उत्तेजित होकर गांड उछालने लगी.. राजेश तुरंत खड़ा हो गया और वैशाली की चूत में एक धक्के में ही अपना पूरा लंड डाल दिया.. वैशाली सिसकने लगी.. राजेश ने धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू किया और फिर स्पीड पकड़ ली..
वैशाली के कूल्हों से राजेश की जांघों के टकराने की वजह से आवाज आ रही थी.. जब वो आवाज काफी ऊंची हो गई तब दोनों ने घबराकर गति धीमे कर दी.. और फिर से अपनी लय प्राप्त कर ली.. डरते डरते सेक्स करने का मज़ा ही अलग होता है.. करीब दो मिनट तक ऐसे ही धक्के लगाने के बाद राजेश ने अपने सख्त लंड से आखिर के तीन चार धक्के इतने जोर से लगाए की वैशाली की आँखों में पानी आ गया.. उसेके पेट में दर्द होने लगा.. और साथ ही साथ उसकी चूत भी ठंडी हो गई.. राजेश ने भी चूत को अपने वीर्य से सराबोर कर दिया..
अंधेरे माहोल की इस चुदाई के बाद वैशाली घूम गई और राजेश के लंड के प्रति आभार प्रकट करते हुए उसे झुककर चूमने लगी.. राजेश ने उसे बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूम लिया.. राजेश के लंड से खेलते हुए वैशाली ने एकदम धीमी आवाज में उसके कान में कहा "ये रात मुझे ज़िंदगी भर याद रहेगी.. आशा है की आपको भी मज़ा आया होगा.. अगर किस्मत रही तो फिर मिलेंगे.. मैं आपके साथ शांति से समय बिताना चाहती हूँ.. आपका स्वभाव मुझे बहोत पसंद आया.. आशा है की आप मेरी मित्रता का स्वीकार करेंगे.. हमारा शरीर संबंध तो बड़ा ही अनोखा रहा.. लेकिन लौटने के बाद क्या मैं आप से बिना किसी जिस्मानी संबंधों की मित्रता की अपेक्षा रख सकती हूँ ?"
राजेश वैशाली के सुंदर स्तनों को अपने दोनों हाथों से दबाते हुए बोला "वैशाली, हम बड़े अच्छे मित्र बनेंगे.. शरीर का संबंध बने या न बने.. उससे मुझे फरक नही पड़ता.. पर तेरे ये सुंदर स्तनों ने मुझे आज पागल ही कर दिया.. इन्हे दबाने की आशा तो मैं हमेशा रखूँगा ही.. लेकिन ये वादा है मेरा.. की जो भी होगा वो तुम्हारी इच्छा और स्वीकृति से ही होगा.. एक विनती करना चाहूँगा.. तुम्हें कभी भी फिर से ये दोहराने की इच्छा हो तो बेझिझक मेरे पास चली आना.. तुम्हारे जिस्म को पाने के लिए मैं हमेशा बेताब रहूँगा.. और कुछ पाए या न हो पाएं.. एक हल्की सी किस.. थोड़ा सा स्पर्श.. इतना भी मेरे लिए काफी होगा !!"
"ठीक है सर" हँसते हुए वैशाली ने राजेश के होंठों को चूम लिया.. "सर, पहले मैं बाहर देख लूँ.. पेसेज में कोई है तो नही.. मैं इशारा करूँ उसके बाद ही आप निकलना " राजेश अब भी वैशाली के स्तनों को छोड़ नही रहा था.. दबाए ही जा रहा था
"सर अब आप मुझे छोड़ेंगे तो मैं बाहर निकलूँ" वैशाली ने हसनते हुए कहा
"असल में तेरी ब्रेस्ट इतनी आकर्षक है की मुझसे रहा नही जाता.. अब तुमने बिना जिस्मानी संबंधों वाली मित्रता की बात की है.. तो मैं ये सोच रहा हूँ की इन स्तनों दोबारा न जाने कब देखने को मिले.. " राजेश ने कहा
"हम्म.. ओके सर.. ये लीजिए मेरी तरफ से माउंट आबू की ये आखिरी भेंट" कहते हुए उसने राजेश का चेहरा पकड़कर अपने स्तनों पर दबा दिया और उसके लंड को पकड़कर मसल दिया.. फिर वैशाली ने अपने आप को राजेश की गिरफ्त से मुक्त किया और धीरे से दरवाजा खोला.. पेसेज में कोई नही था.. उसने हाथ पकड़कर राजेश को बाहर खींचा.. "सर आप पहले जाइए.. कोई पूछे तो कहना वैशाली टॉइलेट गई है"
"ओह वैशाली.. " कहते हुए राजेश ने एक बार फिर वैशाली के स्तनों को वस्त्रों के ऊपर से ही पकड़कर दबा दिया और फिर न चाहते हुए भी मुड़कर चलने लगा.. वैशाली फिर से अंदर गई.. और नल से पानी लेकर अपनी चूत को धोने लगी.. राजेश के लंड का सारा वीर्य उसने ठीक से साफ किया.. साफ करते करते उसकी मुनिया फिर से चुनमुनाने लगी.. उंगली से क्लिटोरिस को रगड़कर फिर से उसे शांत किया.. अपने स्तनों को ठीक से ब्रा के अंदर दबा दिए.. और अपने बाल ठीक कर दस मिनट बाद बाहर निकली..
जैसे ही वो अपने क्यूबिकल से बाहर निकली.. थोड़े से दूर बने क्यूबिकल का दरवाजा खुला और उसमें से पीयूष बाहर निकला.. पीयूष की नजर वैशाली पर नही थी.. वो तुरंत दरवाजा खोलकर बाहर की ओर भागा.. लेडिज टॉइलेट में पीयूष???? जरूर कुछ खिचड़ी पक रही थी.. पीयूष अंदर किसी के साथ ही घुसा होगा.. साथ जो भी था.. हो सकता है की वो वैशाली के निकलने से पहले ही चला गया हो.. या फिर अभी भए क्यूबिकल के अंदर ही हो? पता करने का बस एक ही तरीका था.. वैशाली बेज़ीन के पीछे लगे बड़े पत्थर के पीछे छुपकर इंतज़ार करने लगी
थोड़ी ही देर में दरवाजा खुलने की आवाज आई.. वैशाली का दिल जोरों से धड़कने लगा.. कौन होगा? कविता? नही नही.. उन दोनों के बीच तो झगड़ा चल रहा है.. जरूर वो रांड मौसम होगी.. वही कब से मेरे और पीयूष के बीच हड्डी बनकर बैठी हुई है.. पीयूष भी कमीना अपनी साली के पीछे लट्टू होकर घूमता रहता है.. उसकी कच्ची कुंवारी चूत को एकबार चोदकर ही दम लेगा वो.. जैसी जिसकी किस्मत.. नुकसान तो कविता को ही होगा.. कविता भी बेवकूफ है.. उसे इतना भी पता नही चलता की जवान कुंवारी बहन को अपने रोमियो पति के साथ घूमने देना ही नही चाहिए उसे.. और मौसम भी एक नंबर की मादरचोद है.. अपने कच्चे बबले दिखा दिखा कर पीयूष को पागल बना देती है.. जैसे स्तन सिर्फ उसके पास ही है.. मेरे मुकाबले में मौसम के छोटे स्तनों की कोई औकात ही नही है..
वैशाली के दिमाग में ये सारे विचार चल रहे थे तभी पेसेज में किसी के आने की चहलकदमी सुनाई दी.. और वो जो भी थी वह फिर से क्यूबिकल के अंदर चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया.. वैशाली के लिए ज्यादा देर तक छुपे रहना मुमकिन नही था.. क्यों की लेडिज टॉइलेट के दरवाजे से अंदर आते हुए वह साफ दिख रही थी..
वैशाली बाहर निकल गई और चलते हुए हॉल में आ पहुंची.. वह आकर राजेश सर के बाजू में बैठ गई.. पर यहाँ से उसे टॉइलेट वाला पेसेज नजर नही आ रहा था.. उसने राजेश से कहा "सर आपको एतराज न हो तो क्या आप मेरी कुर्सी पर आ सकते है.. यहाँ एसी की ठंडी हवा सीधे मेरे सर पर लग रही है"
"ओ स्योर.. " कहते हुए राजेश खड़ा होकर वैशाली की चैर पर बैठ गया और वैशाली राजेश की चैर पर.. अब यहाँ से पेसेज बिल्कुल साफ नजर आ रहा था.. वैशाली थोड़ी थोड़ी देर पर.. राजेश से बातें करते हुए.. नजरें चुराकर पेसेज की ओर देख लेती..
राजेश ने धीमे से वैशाली के कान में कहा "यार वैशाली.. तेरी तो बहोत टाइट थी.. मज़ा आ गया यार.. "
"थेंक यू सर" वैशाली ने शरमाते हुए नजरे झुका ली
वैशाली बेचैन नज़रों से पेसेज की ओर देख रही थी.. उसके यहाँ बैठने के बाद कोई अंदर गया भी नही था और बाहर आया भी नही था.. उसने पीयूष की ओर देखा.. वो तो आराम से म्यूज़िक के ताल पर झूमते हुए बियर पी रहा था.. वैशाली ने ये भी नोटिस किया की पीयूष भी बार बार पेसेज की ओर देख रहा था.. बहोत खुश लग रहा था पीयूष..
ना चाहते हुए भी राजेश की बातों को सुन रही थी वैशाली.. उसका सारा ध्यान पेसेज पर ही था.. वो कौन थी जो उसके पीयूष को अपनी जाल में फंसा रही थी? तभी पेसेज से एक परछाई आती हुई नजर आई.. धीरे धीरे वह परछाई हॉल की तरफ आते देख वैशाली टकटकी लगाकर पहचानने की कोशिश करने लगी..
चेहरा स्पष्ट दिखते ही वैशाली के पैरों तले से जमीन खिसक गई!!! अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था उसे.. !!! नालायक पीयूष.. ये क्या किया तूने? कब से लगा हुआ है इनके साथ? रेणुका और पीयूष?? ओह माय गॉड.. ये मैं क्या देख रही हूँ?? साला ये पीयूष तो खिलाड़ी निकला.. हरामी.. मादरचोद.. एक साथ कितनों को लपेटें रखा है उसने!! कभी मेरे साथ.. कभी मौसम के साथ.. और अब रेणुका के साथ भी.. !!!