Kawal Kumar
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दोस्तों एक कहानी शुरू कर रहा हूँ.
जो को एक 36साल की औरत की कहानी है.
वो एक माँ है एक बीवी है.
लेकिन उसका जिस्म कामवासना मे जल रहा है.
उसकी जिम्मेदरी, उसका फर्ज़ कैसे कामवासना पर हावी होता है उसे हम इस कहानी मे देखेंगे, समझेंगे.

Superb update !अपडेट - 11, मेरी माँ कामिनी
फोन काटने के बाद कामिनी बिस्तर पर निढाल होकर गिर पड़ी, उसकी जाँघे कांप रही थी, उनमे अब इनती क्षमता नहीं बची थी की उसका जिस्म संभाल सके.
रघु का वो 'झटका', उसकी 'छोटी ऊंगली' वाला इशारा और फिर रमेश का फोन... दिमाग और जिस्म दोनों थक चुके थे। पंखे की हवा में उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
उसकी आँख तब खुली जब डोर बेल की तेज़ आवाज़ ने घर की शांति तोड़ी।
टिंग-टोंग... टिंग-टोंग...
कामिनी हड़बड़ा कर उठी। उसने दीवार घड़ी पर नज़र डाली—दोपहर के 1:30 बज रहे थे। वह काफी देर सोती रही थी।
"उफ्फ्फ... बंटी आ गया होगा," वह बड़बड़ाई।
नींद और थकान की वजह से उसे अपने कपड़ों का होश नहीं रहा। साड़ी का पल्लू एक कंधे से ढलक कर नीचे लटक रहा था, और ब्लाउज के हुक (जो उसने सोने के लिए ढीले किए थे या पसीने से खिंच गए थे) उसकी भारी छाती को बमुश्किल रोके हुए थे।
उसने उसी अस्त-व्यस्त हालत में जाकर दरवाज़ा खोल दिया।
सामने बंटी खड़ा था, स्कूल यूनिफार्म में।
लेकिन बंटी अकेला नहीं था।
उसके ठीक पीछे एक हट्टा-कट्टा, गठीले बदन वाला लड़का खड़ा था।
माँ यह रवि है। मेरा पक्का दोस्त। आपको एक बार पहले बताया भी था, आज इसके मम्मी-पापा बाहर गए हैं, तो कुछ दिन यही रहेगा।"
कामिनी ने अपनी नींद भरी आँखों को मलते हुए रवि को देखा।
रवि मुस्कुराया।
"नमस्ते आंटी जी," रवि की नजर कामिनी के ब्लाउज से बहार झाँकते स्तनों पर ही टिकी थी. उसकी आवाज़ भारी और मर्दाना थी।
रवि बंटी के साथ ही पढ़ता था, लेकिन देखने में वह बंटी से काफी बड़ा लग रहा था। उम्र करीब 20 साल।
असल में वह पढ़ाई में कमजोर था और एक ही क्लास में 2-3 साल फेल हो चुका था। कारण था उसकी आवारागर्दी और 'शौक'। वह एक शरीफ बाप की बिगड़ी हुई औलाद.
रवि के पाला एंटी कर्रेंऑप्शन विभाग मे अधिकारी थे, एक दम ईमानदार, काम के पक्के इंसान.
ना जाने रवि ही कैसे आवारा निकला, उसके माँ बाप उस से अक्सर परेशान ही रहते थे, लेकिन एकलौती औलाद था तो क्या ही कर सकते थे, उसकी हक़ डिमांड पूरी होती थी.
इसी लाड प्यार ने उसे बिगड़ दिया था.
रवि ने एक टाइट टी-शर्ट पहन रखी थी, जिससे उसके जिम वाले बाइसेप्स और चौड़ी छाती साफ़ झलक रही थी।
रवि ने नमस्ते करने के लिए हाथ जोड़े, लेकिन उसकी नज़रें कामिनी के चेहरे पर नहीं थीं।
उसकी गिद्ध जैसी नज़रें सीधे कामिनी के ब्लाउज के उस हिस्से पर गड़ी थीं जहाँ से उसका पल्लू हटा हुआ था।
कामिनी की भारी, सुडौल छाती, जो नींद में दबने के कारण और भी उभरी हुई लग रही थी,
कामिनी ने तुरंत उस नज़र को भांप लिया।
एक औरत की छठी इन्द्रिय उसे बता देती है कि मर्द की नीयत क्या है।
कामिनी को एक अजीब सी असहजता हुई, लेकिन साथ ही एक झुरझुरी भी।
उसने जल्दी से अपना पल्लू उठाया और छाती को ढक लिया।
"ज... जीते रहो बेटा... आओ अंदर आओ," कामिनी ने हड़बड़ाते हुए रास्ता दिया।
दोपहर के 3 बज रहे थे।
डाइनिंग टेबल पर सन्नाटा था। बंटी, रवि और कामिनी खाना खा रहे थे।
रवि बड़े चाव से खाना खा रहा था, और बीच-बीच में कनखियों से कामिनी को देख रहा था।
"बेटा, तुम्हारे पापा क्या करते हैं?" कामिनी ने माहौल हल्का करने के लिए पूछा।
"जी, वो एंटी-करप्शन (Anti-Corruption) विभाग में बड़े अफ़सर हैं," रवि ने चबाते हुए कहा।
रवि की बातों और नजरों से साफ़ पता चल रहा था कि वह उतना 'शरीफ' नहीं है। ना जाने बंटी और इसमें कैसे इतनी बनती है.
कामिनी हैरान थी इनकी दोस्ती पर, क्यूंकि उसका बेटा निहायती शरीफ था, और ये रवि दिखने मे ही चलाक और बिगड़ैल लगता था.
बंटी सीधे साधे कपडे पहनता, छोटे बाल, और ये रवि जीन्स टीशर्ट लम्बे बिखरे बाल.
और बोल चल का ढंग भी बंटी से बिल्कुल अलग.
खेर खाना खत्म हुआ।
कामिनी को याद आया कि शाम को शमशेर आ रहा है और उसे मार्किट से सामान लाना है।
"बंटी, मुझे ज़रा मार्किट जाना है। ऑटो पकड़ना पड़ेगा, देर हो जाएगी," कामिनी ने हाथ पोंछते हुए कहा।
तभी रवि ने अपना गिलास नीचे रखा और बोला—
"अरे आंटी, ऑटो के धक्के क्यों खाओगी? मेरे पास बाइक है ना। मैं ले चलता हूँ ना आपको।"
कामिनी ठिठक गई।
इस लड़के के पास बाइक भी है?
"तुम्हारे पास बाइक है? किसने दिलाई " कामिनी अनायास ही पूछ बैठी क्यूंकि बंटी बेचारा तो एक स्कूटर के लिए भी तरस रहा था.
"पापा ने दिलाई पिछले बर्थडे पर" रवि ने अपने पापा पर गर्व करते हुए कहा.
वही बंटी का चेहरा बुझा हुआ था, कामिनी को समझ आया की उसे स्कूटर की चाहत कहाँ से हुई होंगी.
"नहीं... नहीं बेटा... मैं चली जाउंगी," कामिनी ने संकोच किया। उसे रवि के साथ जाने मे अजीब लग रहा था, क्यूंकि रवि की नजरें कुछ ठीक नहींअगर रही थी,
लेकिन बंटी ने बीच में ही बात काट दी।
"अरे हाँ मम्मी, रवि की बाइक से चली जाओ। ऑटो मिलने में टाइम लगेगा। आधे घंटे का ही तो काम है, हो आओ जल्दी।, अच्छी बाइक चलाता है रवि "
बंटी ने दलील दी.
"हहह.... मममम.... मेरी ही गलती है, जवान लड़का है, अब ऐसे उसके सामने जाउंगी तो देखेगा ही ना " कामिनी को अपनी गलती का अहसास हुआ, की वो किस हालात मे दरवाजा खोलने गई थी.
ये रवि की नहीं उस की गलती थी,
"अब सामने ऐसी चीज दिख ही जाये तो कौन नहीं देखेगा, जवान होता लड़का है " कामिनी अपने मे मुस्कुरा दी.
"मैं तब तक पीछे स्टोर रूम देख लेता हूँ, वो रघु काम कर रहा है या सो गया," बंटी ने कहा और पीछे के दरवाज़े की तरफ चल दिया।
अब कामिनी के पास ना करने का कोई बहाना नहीं था।
"ठीक है..तुम बैठो आती हूँ तैयार हो कर ." कामिनी बैडरूम मे चल दी.
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कामिनी तैयार होने के लिए अपने कमरे में गई।
शीशे के सामने खड़ी होकर उसने खुद को निहारा। आजकल उसके चेहरे पर एक अलग सी सिकन आ गई थी, उसे अपने चेहरे पर वो रंगत नहीं दिखती थी, उसे लगता था जैसे कुछ अधूरा सा है.
उसने एक गहरे लाल रंग की शिफॉन की साड़ी पहनी, जिसका पल्लू उसने जानबूझकर थोड़ा ढीला रखा। माथे पर एक बड़ी सी लाल बिंदी लगाई, मांग में सिंदूर भरा और हाथों में कांच की खनकती चूड़ियाँ पहनीं। हल्का सा इत्र लगाया।
जब वह तैयार होकर बाहर निकली, तो वह सिर्फ़ 'बंटी की माँ' नहीं, बल्कि कामुकता की साक्षात् मूरत लग रही थी। एक भरी-पूरी, पकी हुई भारतीय नारी, जिसके हर अंग से मादकता टपक रही थी।
हॉल में इंतज़ार कर रहा रवि उसे देखते ही सन्न रह गया।
उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
उसने सोचा था कि 'आंटी' बस ठीक-ठाक होंगी, लेकिन सामने तो अप्सरा खड़ी थी।
रवि की नज़रें कामिनी की गहरी नाभि, कसा हुआ ब्लाउज और साड़ी में लिपटी चौड़ी कमर पर फिसलती रहीं।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि एक 38 साल की औरत, एक दोस्त की माँ, इतनी सुंदर और मादक भी हो सकती है। उसके मन में गुदगुदी सी होने लगी, हालांकि वो कामिनी मतलब की उसके पक्के दोस्त की माँ मे लिए कुछ गलत नहीं सोचा था, लेकिन जो सामने था उसकी प्रशंसा करने से खुद को रोक भी नहीं सकता था.
कामिनी ने रवि की उस अजीब सी नज़रों को देख लिया।
और सच तो यह था कि कामिनी भी रवि से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी।
20 साल का वो हट्टा-कट्टा लड़का, टाइट टी-शर्ट में कसे हुए उसके डोले, और चेहरे पर वो बेफिक्र जवानी।
रघु का अपना आकर्षण था (देसी और जंगली), लेकिन रवि में एक "शहरी और मॉडर्न" खिंचाव था। एक जवान लड़का उसे ऐसे देख रहा है, यह सोचकर कामिनी के गालों पर लाली आ गई।
"क्या हुआ बेटा? क्या देख रहे हो? चले मार्किट?"
कामिनी को खुद पर गर्व हो रहा था की उसके बेटे की उम्र का लड़का उसे घूर रहा है मुँह खोले.
"वो... वोओओओ... हाँ आंटी चलो चलते है " रवि सकपाकता हुआ उठा.
"चलो तो फिर " कामिनी मुस्कुराती थैला लिए आगे चल दी.
पीछे रवि किसी घनचक्कर की तरह कामिनी की मादक चाल को निहारे जा रहा रहा.
रवि आज मिला था असली कयामत से.
लेकिन बहार आते ही एक मुसीबत हो गई.
"ये क्या है? इसपे कैसे बैठूंगी?" कामिनी सकपाकती हुई बोली.
बाहर रवि की स्पोर्ट्स बाइक खड़ी थी। पिछली सीट काफी ऊँची थी।
"क्यों अंकल ने कभी आपको सवारी नहीं कराई क्या?" रवि ने मजे लेते हुए कहाँ.
"उनके ज़माने मे ऐसी चीज़े नहीं थी "
"तो आंटी जी कभी कभी आज के ज़माने मे भी जी लेना चाहिए " रवि ने बाइक पर बैठे हुए कहा
कामिनी जैसे तैसे पीछे की सीट पर बैठ गई, उसके हाथ रवि के कंधे पर थे,
रवि ने बाइक स्टार्ट कर दी, बुरम्म्म्म.... भरररररर..... भररररररररर..... बाइक बुरी तरह कांपती हुई आवाज़ करने लगी.
"पता नहीं आजकल के लड़को को क्या मजा आता है इन सब मे, ऐसा लग रहा है जैसे हवा मे बैठी हूँ " कामिनी बड़बड़ाई.
"नये ज़माने के लोग हवा मे ही उड़ाते है "
रवि ने रेस को जोर का झटका दिया... बुरममममम.... बुररररर..... बुरमममममम.....
सीट ऊँची होने की वजह से कामिनी का पूरा ऊपरी हिस्सा रवि की पीठ की तरफ झुक गया।
"पकड़ लीजिये आंटी... बाइक तेज़ भागती है," रवि ने शरारत से कहा और अचानक क्लच छोड़ दिया।
धुक...
बाइक को झटका लगा।
कामिनी का संतुलन बिगड़ा और वह धड़ाम से रवि की पीठ से जा टकराई।
उसके भारी, नरम स्तन पूरी ताकत से रवि की सख्त, चौड़ी पीठ पर दब गए.
"उफ्फ्फ्फ... क्या कर रहे हो, गिराओगे क्या?" कामिनी के मुंह से निकला।
लेकिन कामिनी को अपने जीवन का ये नयापन अच्छा भी लग रहा था.
उसे याद ही नहीं वो कब इस तरह से रमेश के पीछे स्कूटर ओर बैठी थी, ऐसी बचकानी हरकत कब की थी.
उसके नीरस जीवन मे ये बाइक का झटका एक नयी उम्मीद लिए बैठा था.
रवि को अपनी पीठ पर वह मखमली, नरम दबाव महसूस हुआ। उसे लगा जन्नत मिल गई हो। उसके बदन में एक सिहरन दौड़ गई।
कामिनी भी सिहर उठी। रवि की सख्त पीठ की गर्माहट उसके स्तनों के ज़रिये पूरे बदन में फ़ैल गई।
"मैंने कहा था ना आंटी, गिर जाओगी... मुझे पकड़ लो," रवि ने शीशे में कामिनी का घबराया चेहरा देखते हुए कहा.
कामिनी के पास कोई चारा नहीं था।
डर और मजबूरी (और दबी हुई चाहत) में उसने अपना एक हाथ आगे बढ़ा रवि के पेट पर लपेट दिया.
उसने रवि को अपनी बांहों के घेरे में जकड़ लिया।
उसका सीना अब पूरी तरह रवि की पीठ से चिपका हुआ था।
बाइक चल पड़ी।
रास्ते में रवि जानबूझकर कभी ब्रेक मारता, तो कभी रेस देता।
हर ब्रेक पर कामिनी के स्तन रवि की पीठ पर और जोर से भिंच जाते, पिचक जाते।
बाइक की इंजन की गड़गड़ाहट सीट के ज़रिये सीधे कामिनी की जांघों के बीच पहुँच रही थी।
उसकी चूत, जो सुबह से ही संवेदनशील थी, रिस रही थी, उस कंपन से गुदगुदाने लगी। एक मीठी-मीठी खुजली और गीलापन फिर से लौटने लगा।
कामिनी ने आँखें मूंद लीं। उसे अपनी जवानी लौटती सी महसूस हुई, जैसे वो कोई 18 साल की लड़की हो और अपने बॉयफ्रेंड के साथ बाइक पर चिपकी बैठी है.
रवि ने एक झटका लिया... वो अपनी जवानी से वापस 30साल की उम्र मे आ गई.
'रघु... शमशेर... और अब रवि...' वह सोच रही थी, 'आजकल मुझे क्या हो गया है? यह तीसरा मर्द है,
"ललललललल.... लेकिन ये तो मेरे बेटे का दोस्त है, मेरे बेटा जैसा ही है "
कामिनी की सोच को गहरा धक्का लगा, वो आजकल पता नहीं क्या क्या सोच रही थी.
थोड़ी ही देर मे वो लोग मार्किट पहुंचे। वहां शाम की भीड़ थी।
रवि ने बाइक खड़ी की। कामिनी सब्जी लेने आगे बढ़ी।
भीड़ बहुत ज्यादा थी। लोग धक्का-मुक्की कर रहे थे।
रवि एक 'बॉडीगार्ड' की तरह कामिनी के ठीक पीछे सटकर चलने लगा।
सब्जी वाले के ठेले पर भीड़ बढ़ी। कामिनी सब्जी छांटने के लिए झुकी।
उसकी चौड़ी, मटकती हुई गांड रवि के ठीक सामने थी।
भीड़ का एक धक्का लगा, और रवि आगे को जा सरका,
वह कामिनी के बिल्कुल पीछे चिपक गया।
और तभी... कामिनी को अपनी गांड की दरार के पास कुछ सख्त और गरम चीज़ महसूस हुई।
वह रवि का लंड था।
जींस के कपड़े के बावजूद, वह इतना सख्त था कि कामिनी को साड़ी के पार भी उसका लोहे जैसा कड़कपन महसूस हो गया।
रवि का लंड उसकी गांड के मांसल हिस्से में धंस रहा था।
कामिनी का जिस्म सुलग उठा।
कामिनी हैरान थी, ये बड़ा सा क्या लगा उसकी गांड की दरार के बीच आ कर,
उसे हटना चाहिए था, रवि को डांटना चाहिए था।
लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह वहीं जमी रही। वह उस सख्त दबाव को महसूस करने लगी,
'इतना कड़क... बंटी का दोस्त होकर भी इतना बड़ा...' कामिनी का दिमाग सुन्न हो गया था।
रवि ने भी मौके का फायदा उठा धीरे से अपना लंड उसकी गांड पर रगड़ दिया।, शयाद वो भी कामिनी की गांड की गर्मी को महसूस कर रहा था. उसके जीन्स मे कसाव बढ़ता जा रहा था.
कामिनी के मुंह से एक दबी हुई सिसकी निकली, लेकिन उसने सब्जी छांटना जारी रखा, मानो कुछ हुआ ही न हो।
कोई 1मिनिट ही ये सब हो पाया, आने जाने वाले लोगो ने रवि को एक जगह टिकने ही नहीं दिया.
सब्जी लेकर जब वे वापस बाइक के पास आए, तो दोनों के चेहरों पर एक अलग ही रंग था। दोनों एक दूसरे से आंखे चुरा रहे थे,
वापसी में...
रवि ने कुछ नहीं कहा। शायद वो शर्मा रहा था या ग्लानि मे था की उसने अपने पक्के दोस्त की माँ के साथ ये क्या किया.
वो भी दुविधा मे था कामिनी की तरह.
लेकिन कामिनी ने बाइक पर बैठते ही, बिना रवि के कहे, अपने हाथ को आगे बढ़ा रवि को कसकर पकड़ लिया।
इस बार उसकी पकड़ और भी मजबूत थी, और उसका सीना रवि की पीठ से और भी ज्यादा चिपका हुआ था।
हवा तेज़ थी। दोनों के बीच पुरे रास्ते कोई बातचीत नहीं हुई।
कभी कभी कुछ कहने के लिए बोलने के जरुरत नहीं होती, उस पल को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, उसके लिए कोई शब्द दुनिया मे बने ही नहीं है, जैसे कामिनी अपनी जवानी को महसूस कर रही थी, अब ये क्या है? क्यों है? इसे बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है..
कामिनी ही जाने.... वही रवि अपनी मचलती जवानी को छुपाने की कोशिश कर रहा था.
Contd.....