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Erotica मेरी माँ कामिनी

Mom.ridhima

Only mom son story writer
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Pls pls pls kuch chije incest bhi dalo na isme like bete maa ke chuchiyo ko chusta hai ya fir maa ki gaand per ragdta hai ya maa ko nanagi dekhta hai kuch dalo na pls bohot maza aa raha hai kahani me na thoda incest ka tadka maar do
 

rajeev13

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Raj9977

Girls aunty housewife widow n aunty DM for sex.
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Congratulations new story
दोस्तों एक कहानी शुरू कर रहा हूँ.
जो को एक 36साल की औरत की कहानी है.
वो एक माँ है एक बीवी है.
लेकिन उसका जिस्म कामवासना मे जल रहा है.
उसकी जिम्मेदरी, उसका फर्ज़ कैसे कामवासना पर हावी होता है उसे हम इस कहानी मे देखेंगे, समझेंगे.
 

Lord haram

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मेरी माँ कामिनी -15


छत पर मूसलाधार बारिश हो रही थी।
कामिनी किसी मन्त्रमुग्ध मोरनी की तरह गोल-गोल घूम रही थी। उसका पल्लू गिर चुका था, बाल चेहरे पर चिपके थे, और वह अपनी सुध-बुध खो चुकी थी। उसे याद ही नहीं रहा कि वह कहाँ है और किसके साथ है। वह बस अपनी आज़ादी को पी रही थी।

रवि, जो अब तक एक कोने में खड़ा था, कामिनी के इस कामुक और मादक रूप को देखकर खुद को रोक नहीं सका।
उसकी बर्दाश्त की हद पार हो गई।
वह धीरे-धीरे कदमों से कामिनी की तरफ बढ़ा।
कामिनी की आँखें बंद थीं, चेहरे पर बारिश की बूंदें गिर रही थीं

रवि उसके बिल्कुल करीब आ गया। उसकी गर्म सांसें कामिनी के भीगे गालों को छूने लगीं।
"आंटी..." रवि की भारी और नशीली आवाज़ ने कामिनी का ध्यान खींचा।
कामिनी ने धीरे से आँखें खोलीं। सामने रवि खड़ा था, बारिश में भीगा हुआ, उसकी टी-शर्ट उसके सीने से चिपकी हुई थी।
"आप कितनी सुंदर हैं..." रवि ने कामिनी की आँखों में गहराई से झांकते हुए कहा, "ऐसा लग रहा है जैसे कामदेव की पत्नी, रति खुद धरती पर उतर कर नाच रही हो।"
इस तारीफ ने कामिनी पर जादू कर दिया। उसका जिस्म स्थिर हो गया, कब उसने अपनी सुंदरता की तारीफ सुनी थी?

'काम की देवी रति...' एक जवान लड़का उसकी तुलना रति से कर रहा रहा.
आज तक उसे किसी ने इतनी खूबसूरती से नहीं सराहा था।

रमेश ने उसे 'रंडी' और 'गंवार' कहा था, लेकिन रवि ने उसे 'देवी' बना दिया।

कामिनी रवि की गहरी आवाज़ और नज़रों से इतनी मदहोश हो गई कि उसके पैर लड़खड़ा गए। गीले फर्श पर उसका संतुलन बिगड़ा और वह गिरने को हुई।
"आह्ह..."
लेकिन गिरने से पहले ही रवि के मजबूत, गठीले हाथों ने उसे थाम लिया।
रवि ने एक हाथ उसकी कमर पर और दूसरा उसकी पीठ पर रखकर उसे अपनी तरफ खींच लिया।

धप्प...
कामिनी का भारी, भीगा और नरम जिस्म रवि के सख्त, मर्दाना सीने से टकरा गया। कामिनी हैरान थी रवि ने उसे कितनी आसानी से थाम लिया.


दो भीगे बदन एक-दूसरे से चिपक गए।
कामिनी की छाती रवि की छाती पर दब गई, उसके कड़क निप्पल रवि की छाती में चुभने लगे।
कामिनी रवि की बांहों में कैद थी। उनकी नज़रें मिलीं।
बारिश का शोर था, लेकिन दोनों के बीच एक चुप्पी थी जो चीख रही थी।
रवि ने धीरे से अपना चेहरा झुकाया।
कामिनी चाहती तो उसे धक्का दे सकती थी, लेकिन उसने अपनी आँखें मूंद लीं और अपना चेहरा ऊपर उठा दिया। यह एक मूक सहमति थी। कामिनी के संस्कार, उसका माँ होने का भाव, उसकी उम्र, उसकी शर्म, लाज सब बारिश के ठन्डे पानी मे बह गए थे.
जवान मर्द की पकड़ ने उसे जवान कर दिया था, जांघो की बीच योनि खुल के बंद हो जा रही थी.

और फिर...
न जाने किस आवेश में, रवि ने अपने होंठ कामिनी के गुलाबी, भीगे होंठों पर रख दिए।
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रवि के होंठ जैसे ही कामिनी के होठों से टकराए, कामिनी का बचा-खुचा संयम भी बारिश के पानी में बह गया।


वह रवि को रोक नहीं सकी। रोकना चाहती भी नहीं थी।
उसका जिस्म, जो बरसों से प्यार और स्पर्श के लिए तरस रहा था, आज रवि की गर्मी पाकर सुलग उठा।
कामिनी के होंठ रवि के लिए किसी प्यासे फूल की तरह खुल गए।
रवि ने मौका नहीं गंवाया। उसने अपनी गर्म जीभ कामिनी के मुंह के अंदर डाल दी।
जवाब में कामिनी ने भी अपनी जीभ आगे बढ़ा दी।
deep-kiss-passionate-kiss


दो जीभें एक-दूसरे से लिपट गईं, लड़ने लगीं और एक-दूसरे का रस पीने लगीं।
कामिनी, जो आज तक सिर्फ़ एक 'भोग की वस्तु' बनी थी, आज पहली बार "प्रेमिका" बन गई थी। वह आगे होकर रवि की जीभ को चूस रही थी।
उसने ऐसा कभी नहीं किया था, उसे आता हूँ नहीं था, इसे kiss कहते है ये भी नहीं पता था.
वो मुँह खोले अपने बेटे के दोस्त की जीभ चूस रही थी, प्यासी कुतिया की तरह उसके होंठो को चाट रही थी.

चुप्प... सुड़प...लप... लप....
बारिश के शोर के बीच उनके चूसने की गीली आवाज़ें गूंजने लगीं।
रवि ने कामिनी को अपनी बाहों में कसकर भींच लिया।
उसका लंड पूरी ताकत से खड़ा हो चुका था और कामिनी के पेट और नाभि के निचले हिस्से (Pelvis) पर दबाव बना रहा था।
गीली साड़ी की वजह से कामिनी को वह सख्त, लोहे जैसा दबाव साफ़ महसूस हो रहा था।
यह अहसास उसे पागल कर रहा था।
वह पीछे हटने के बजाय, अपनी कमर को आगे धकेलने लगी।
वह अपनी चूत को उस खड़े लंड पर रगड़ना चाहती थी, उस गर्माहट को अपनी गहराइयों में महसूस करना चाहती थी।
दोनों एक-दूसरे में इस कदर खो गए थे कि उन्हें दुनिया की कोई सुध नहीं थी।
कामिनी अपना अस्तित्व भुला चुकी थी.
***************
तभी नीचे से बंटी आया।
उसने नीचे से आवाज़ दी थी— "मम्मी, रवि... हलवा...ठंडा हो रहा है, आ जाओ "
लेकिन जब कोई जवाब नहीं आया, तो वह सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर आया।
जैसे ही वह छत की दहलीज पर पहुंचा, उसके कदम ज़मीन पर जम गए।
उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं।
सामने बारिश में जो नज़ारा था, वह किसी भी बेटे के होश उड़ाने के लिए काफी था।
उसका दोस्त रवि और उसकी माँ कामिनी... आपस में गूंथम-गूंथा थे।

रवि ने कामिनी को दबोच रखा था और पागलों की तरह उसका मुंह खा रहा था।
और उसकी माँ?
वह विरोध नहीं कर रही थी।
बंटी ने देखा कि कामिनी की कमर रवि के लंड को महसूस करने के लिए आगे-पीछे (Grinding) हो रही है। वह अपनी गांड को हिला-हिलाकर रवि के लंड पर रगड़ रही थी।

रवि के दोनों हाथ कामिनी के भीगे हुए, भारी स्तनों को कस-कस कर भींच रहे थे। कभी वह स्तनों को मसलता, तो कभी उसका हाथ फिसलकर कामिनी की भारी गांड पर चला जाता और उसे आटे की लोई की तरह गूंथ देता।

यह दृश्य देखकर बंटी को गुस्सा आना चाहिए था, लेकिन उसकी उम्र और माहौल ने उसे धोखा दे दिया।
अपनी माँ का यह कामुक, जंगली रूप देखकर बंटी का अपना लंड भी पैंट के अंदर फनफनाने लगा।
वह वहीं खड़ा होकर, अपनी माँ को अपने दोस्त के साथ 'रासलीला' करते हुए देखने लगा।


इधर कामिनी और रवि को बंटी की मौजूदगी का कोई इल्म नहीं था। वे दूसरे लोक में थे।
करीब 10 मिनट तक यह खेल चलता रहा।
दोनों के भीगे जिस्म एक-दूसरे पर रगड़ खा रहे थे। घर्षण से आग पैदा हो रही थी। वैज्ञानिक नियम है.
लेकिन विज्ञानं ये नहीं बताता की दो जिस्म भी जब रगड़ते है तो गर्मी, आग पैदा होती है, लेकिन ये आग कैसी होती है इसकी परिभाषा किसी किताब मे नहीं लिखी किसी ने.
मै भी नहीं लिख सकता, ये सिर्फ महसूस किया जा सकता है.


कामिनी की चूत पूरी तरह से बह निकली थी।
उसकी योनि का चिपचिपा पानी (Lubrication) रिसकर उसकी जांघों पर आ गया था और बारिश के पानी के साथ बर्बाद हुआ जा रहा था,

कामिनी ने ऐसा Kiss अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी नहीं किया था।
"ईईस्स्स्स.... आअह्ह्ह..... उउउफ्फ्फ्फ़...."
कामिनी के गले से रवि के मुंह में सिसकियाँ निकल रही थीं। वह मचल रही थी।

रमेश के साथ उसे जबरजस्ती, बलात्कार जैसा ही महसूस हुआ था, लेकिन रवि के साथ वह 'प्यार की अनुभूति' कर रही थी।

यह गर्म चुम्बन उसे खींचकर वापस उसकी जवानी में ले आया था। उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा था।
उसे पहली बार पता चला कि प्यार और हवस के बीच एक "जुनून" भी होता है, जिसे आज एक 20 साल का लड़का उसे सीखा रहा था।
बदकिश्मती की ये अहसास बहुत देर तक सम्भव ना हो सका....
हवा का एक तेज़ झोंका आया।
छत का लोहे का दरवाज़ा, जो खुला था, हवा के दबाव से ज़ोर से दीवार से टकराया।
धड़ाम!!! भड़ाम्म्म्म......

वह आवाज़ किसी बम धमाके जैसी थी।
इस तेज़ आवाज़ ने कामिनी और रवि की तंद्रा तोड़ दी।
कामिनी को जैसे 440 वोल्ट का झटका लगा। वह होश में आई।
उसने झटके से रवि को धक्का दिया।
उसने चारों तरफ देखा।

सीढ़ियों का दरवाज़ा अब बंद हो चुका था (हवा से)।
बंटी, जो दरवाज़े के पास खड़ा था, आवाज़ होते ही और कामिनी के होश में आने से पहले ही वहां से खिसक लिया था। वह नीचे भाग गया था ताकि पकड़ा न जाए।

कामिनी का दिल मुंह को आ गया।
वह हांफ रही थी। उसका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। उसके होंठ सूजे हुए थे और ब्लाउज अस्त-व्यस्त था। निप्पल भीगे ब्लाउज से साफ झलक रहे थे, बहार आने को बेताब थे.
या यूँ कहिये वो सम्पूर्ण नंगी ही खड़ी थी रवि के सामने.

उसे अहसास हुआ कि उसने क्या कर दिया।
उसने अपने बेटे के दोस्त के साथ, खुले आसमान के नीचे, अपनी सारी हदें पार कर दी थीं।
उसका जिस्म कांप गया, उत्तेजना हवास मे वो क्या कर गई.

शर्म, डर और उत्तेजना का एक मिश्रित भाव उसके चेहरे पर आ गया।
उसने रवि की तरफ एक बार भी नहीं देखा।
उसमें नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं थी।
वह अपना पल्लू समेटती हुई, नंगे पांव भागती हुई सीढ़ियों की तरफ लपकी और सीधे नीचे अपने कमरे में जा घुसी।

पीछे छत पर...
रवि अकेला खड़ा था।
बारिश अभी भी हो रही थी।
वह भीग रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर एक शैतानी और संतुष्ट मुस्कान थी।
उसने अपनी जीभ अपने होठों पर फेरी, जहाँ कामिनी की लार और लिपस्टिक का स्वाद अभी भी बाकी था।
********************


कामिनी अपने कमरे में बदहवास सी खड़ी थी।
उसकी सांसें फूली हुई थीं। उसकी चूत किसी खुले हुए नल की तरह बह रही थी। योनि के अंदर एक भयानक जलन और मीठा दर्द था, जैसे वहां कोई ज्वालामुखी फटने को तैयार हो।
उसने जैसे-तैसे खुद को संभाला। बाथरूम में जाकर उसने अपने भीगे कपड़े उतारे।
आज उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि आईने में अपने नंगे जिस्म और चेहरे को देख सके। उसे अपनी आँखों में वह 'हवस' साफ़ दिखाई दे रही थी।
उसने बदन पोंछा और कपड़े बदलने लगी।
उसने एक ढीला-ढाला सूती गाउन (Night Gown) पहन लिया।
लेकिन उसकी चूत इतनी गीली और संवेदनशील थी कि वह पैंटी का कपड़ा बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
उसने फैसला किया— अंदर कुछ नहीं पहनेगी।
गाउन के नीचे वह पूरी तरह नंगी थी। आज़ाद।

बाहर से बंटी की आवाज़ आई— "जल्दी करो ना माँ... भूख लगी है।"
कामिनी ने गाउन ठीक किया और बालों पर तौलिया लपेटा। वह बाहर जाने के लिए मुड़ी, लेकिन उसके कदम भारी थे।
'कैसे सामना करूँगी रवि का? अभी छत पर जो हुआ... उसके बाद तो मुझे ज़मीन में गड़ जाना चाहिए।'
लेकिन पेट की भूख और बेटे की पुकार ने उसे बाहर खींच लिया।

वह डाइनिंग टेबल पर पहुंची।
रवि पहले से वहां बैठा था। वो भी कपडे बदल कार वहाँ आ बैठा था, उसका गठिला जिस्म कामिनी को आकर्षित कर रहा था,

उसने कामिनी को देखा, उसकी आँखों में वही तारीफ थी, वही चमक थी जो थोड़ी देर पहले छत पर थी.

"आओ ना आंटी..." रवि ने कुर्सी खींचते हुए कहा।
कामिनी नज़रें झुकाए, चुपचाप कुर्सी पर बैठ गई।
उसके कंधे झुके हुए थे, जैसे कोई अपराधी कटघरे में बैठा हो।

"कैसा लगा माँ?" बंटी ने हलवे का चम्मच उठाते हुए पूछा। उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी।

"कक्क.. कक... क्या कैसा?" कामिनी हड़बड़ा गई।
"अरे छत पर... बारिश में भीगना," बंटी ने बड़ी संजीदगी से कहा, "मैं देखता हूँ आप हमेशा परेशान रहती हो, घर के कामों में उलझी रहती हो। कभी-कभी खुद के लिए भी जीना चाहिए माँ।"
बंटी किसी परिपक्व (Mature) मर्द की तरह बात कर रहा था।

कामिनी हैरान थी। उसका बेटा उसे 'जीने' की सलाह दे रहा था? क्या उसे कुछ पता है? या वह बस अपनी माँ की खुशी चाहता है?

बंटी की इन बातों ने कामिनी के मन का बोझ थोड़ा हल्का कर दिया।
तभी... टेबल के नीचे हलचल हुई।
"तुझे पता है बंटी... आंटी तो खूब अच्छा नाचती हैं," रवि ने शरारती लहजे में कहा।
और उसी वक़्त, टेबल के नीचे रवि का नंगा पैर कामिनी के पैर पर चढ़ गया और उसकी पिंडलियों को सहलाने लगा।
कामिनी को करंट लगा।
"कक्क.... कककया... क्या तुम दोनों भी मुझे छेड़ रहे हो? अपनी माँ को? बिगड़ गये हो तुम लोग, हलवा खाओ, ठंडा हो जायेगा," कामिनी ने बात बदलने की कोशिश की।

"थैंक यू आंटी..." रवि ने एक बड़ा चम्मच मुंह में भरा और कामिनी की आँखों में झांकते हुए बोला.

"गाजर का हलवा बहुत स्वादिष्ट बना है... ऐसा 'माल' मैंने आज तक नहीं खाया।"
कहते हुए रवि के पैर की उंगलियां कामिनी की नंगी पिंडलियों से ऊपर चढ़ती हुई उसके घुटनों तक पहुंच गईं।

कामिनी शॉक्ड थी।
रवि की हिम्मत तो देखो! बेटा बगल में बैठा है और वह माँ को टेबल के नीचे छेड़ रहा है।
लेकिन कामिनी का डर और उसकी ख़ामोशी ही रवि की ताकत थी।
कामिनी की चूत, जो पहले से सुलग रही थी, इस स्पर्श से और भी गीली होने लगी।
रवि का पैर अब उसके गाउन के घेरे में घुस चुका था और उसकी नंगी जांघों पर रेंग रहा था।
कामिनी को उसे डांटना चाहिए था, पैर झटक देना चाहिए था।
लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। वह बस कभी रवि को घूरती, तो कभी खांसी का नाटक करती।

असल में, वह उस स्पर्श से पागल हो रही थी। एक जवान लड़का, उसके बेटे के सामने, उसे उत्तेजित कर रहा था—यह जोखिम (Risk) उसे और भी ज्यादा मज़ा दे रहा था।
रवि के पैर का अंगूठा अब उसकी जांघों के बीच, ठीक चूत के मुहाने पर पहुंच गया था।
कामिनी का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
उसे रुकना चाहिए था... लेकिन उसका जिस्म हार गया।
कामिनी कुर्सी पर थोड़ा आगे खिसक आई और टेबल के नीचे अपनी जांघों को चौड़ा कर दिया।
कामिनी की चुत पूरी तरह भीगी हुई चमक रही थी.20210804-213151

नतीजा?
पचचच...
रवि का मोटा अंगूठा सीधा कामिनी की गीली, फिसलन भरी चूत से टकरा गया।
"उईक्सस्स्स्स.... इस्स्स्स... आउच..."
कामिनी के मुंह से एक दबी हुई सिसकी निकल गई। उसकी आँखें गोल हो गईं।
रवि को भी उम्मीद नहीं थी कि रास्ता इतना आसान और इतना गीला मिलेगा। उसे पता चल गया कि आंटी ने नीचे पैंटी नहीं पहनी है।
यह इशारा काफी था।
रवि का अंगूठा अब कामिनी की चूत की दरार को ऊपर से नीचे तक टटोलने लगा।
कामिनी के ज़हन में रवि का वह गुलाबी लंड घूमने लगा जो उसने सुबह देखा था।
उससे रहा नहीं गया। वह अपनी कमर को थोड़ा और आगे ले गई।

धप... धापक... पच...
एक सधे हुए दबाव के साथ, रवि का मोटा अंगूठा कामिनी की गीली योनि के अंदर धंस गया।
कामिनी चीखना चाहती थी, लेकिन उसने कसकर अपने मुंह पर हाथ रख लिया।
रवि धीरे-धीरे अपने अंगूठे को अंदर-बाहर करने लगा, उसे सहलाने लगा।
कामिनी चरम सीमा पर थी।
अपने बेटे के ठीक बगल में बैठकर, उसके दोस्त से अपनी चूत में उंगली (अंगूठा) करवा रही थी। इस 'हराम' अनुभूति ने उसे आग का गोला बना दिया था। उसे सिर्फ अपने जिस्म की आग को शांत करना था, इसके लिए ही तो वो अपनी मान मर्यादा त्यागी बैठी थी,
उसे सिर्फ अपनी चुत मे होती जलन याद थी.

वह खुद अपनी कमर हिलाकर उस अंगूठे को और गहराई तक लेने की कोशिश कर रही थी।
वह बेकाबू थी... पागल हो रही थी... उसकी चूत में ज्वालामुखी फूटने वाला था... वह इस लावे को बाहर निकाल देना चाहती थी...
"इसस्स.... उफ्फ्फ.... बस.... आह्ह्ह..." कामिनी बस चिल्लाने ही वही थी, उसका सब्र जवाब देने ही वाला था, गले मे दबी हुई आवाज़ चीख का रूप लेने ही वाली थी की.....
तभी...
ट्रिंग... ट्रिंग... ट्रिंग...
टेबल पर रखे कामिनी के फोन की घंटी बजी।
पच...
आवाज़ सुनकर रवि ने झटके से अपना पैर बाहर खींच लिया।
कामिनी को लगा जैसे उसकी आत्मा शरीर से निकलते-निकलते बची हो। वह हड़बड़ा कर सीधी हो गई।
उसकी सांसें अटक गईं।

"पापा का फोन है माँ..."
बंटी ने टेबल पर पड़ा फोन सरका कर कामिनी की तरफ बढ़ा दिया।
उसकी नज़रें टीवी पर टिकी थीं, लेकिन उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह सब कुछ देख कर भी अनदेखा कर रहा है।
बंटी कुछ अलग ही था। या तो वो अपनी माँ को ख़ुश देखना चाहता था या फिर उसे दर्शक होने का ही मजा था, खिलाडी बनने मे उसकी कोई रूचि नहीं थी.

Contd.....
 

sunoanuj

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अपडेट - 11, मेरी माँ कामिनी


फोन काटने के बाद कामिनी बिस्तर पर निढाल होकर गिर पड़ी, उसकी जाँघे कांप रही थी, उनमे अब इनती क्षमता नहीं बची थी की उसका जिस्म संभाल सके.


रघु का वो 'झटका', उसकी 'छोटी ऊंगली' वाला इशारा और फिर रमेश का फोन... दिमाग और जिस्म दोनों थक चुके थे। पंखे की हवा में उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
उसकी आँख तब खुली जब डोर बेल की तेज़ आवाज़ ने घर की शांति तोड़ी।
टिंग-टोंग... टिंग-टोंग...
कामिनी हड़बड़ा कर उठी। उसने दीवार घड़ी पर नज़र डाली—दोपहर के 1:30 बज रहे थे। वह काफी देर सोती रही थी।
"उफ्फ्फ... बंटी आ गया होगा," वह बड़बड़ाई।
नींद और थकान की वजह से उसे अपने कपड़ों का होश नहीं रहा। साड़ी का पल्लू एक कंधे से ढलक कर नीचे लटक रहा था, और ब्लाउज के हुक (जो उसने सोने के लिए ढीले किए थे या पसीने से खिंच गए थे) उसकी भारी छाती को बमुश्किल रोके हुए थे।
उसने उसी अस्त-व्यस्त हालत में जाकर दरवाज़ा खोल दिया।20220201-175631
सामने बंटी खड़ा था, स्कूल यूनिफार्म में।
लेकिन बंटी अकेला नहीं था।
उसके ठीक पीछे एक हट्टा-कट्टा, गठीले बदन वाला लड़का खड़ा था।

माँ यह रवि है। मेरा पक्का दोस्त। आपको एक बार पहले बताया भी था, आज इसके मम्मी-पापा बाहर गए हैं, तो कुछ दिन यही रहेगा।"

कामिनी ने अपनी नींद भरी आँखों को मलते हुए रवि को देखा।
रवि मुस्कुराया।
"नमस्ते आंटी जी," रवि की नजर कामिनी के ब्लाउज से बहार झाँकते स्तनों पर ही टिकी थी. उसकी आवाज़ भारी और मर्दाना थी।
रवि बंटी के साथ ही पढ़ता था, लेकिन देखने में वह बंटी से काफी बड़ा लग रहा था। उम्र करीब 20 साल।
असल में वह पढ़ाई में कमजोर था और एक ही क्लास में 2-3 साल फेल हो चुका था। कारण था उसकी आवारागर्दी और 'शौक'। वह एक शरीफ बाप की बिगड़ी हुई औलाद.
रवि के पाला एंटी कर्रेंऑप्शन विभाग मे अधिकारी थे, एक दम ईमानदार, काम के पक्के इंसान.
ना जाने रवि ही कैसे आवारा निकला, उसके माँ बाप उस से अक्सर परेशान ही रहते थे, लेकिन एकलौती औलाद था तो क्या ही कर सकते थे, उसकी हक़ डिमांड पूरी होती थी.
इसी लाड प्यार ने उसे बिगड़ दिया था.

रवि ने एक टाइट टी-शर्ट पहन रखी थी, जिससे उसके जिम वाले बाइसेप्स और चौड़ी छाती साफ़ झलक रही थी।
रवि ने नमस्ते करने के लिए हाथ जोड़े, लेकिन उसकी नज़रें कामिनी के चेहरे पर नहीं थीं।
उसकी गिद्ध जैसी नज़रें सीधे कामिनी के ब्लाउज के उस हिस्से पर गड़ी थीं जहाँ से उसका पल्लू हटा हुआ था।
कामिनी की भारी, सुडौल छाती, जो नींद में दबने के कारण और भी उभरी हुई लग रही थी,


कामिनी ने तुरंत उस नज़र को भांप लिया।
एक औरत की छठी इन्द्रिय उसे बता देती है कि मर्द की नीयत क्या है।

कामिनी को एक अजीब सी असहजता हुई, लेकिन साथ ही एक झुरझुरी भी।
उसने जल्दी से अपना पल्लू उठाया और छाती को ढक लिया।
"ज... जीते रहो बेटा... आओ अंदर आओ," कामिनी ने हड़बड़ाते हुए रास्ता दिया।

दोपहर के 3 बज रहे थे।
डाइनिंग टेबल पर सन्नाटा था। बंटी, रवि और कामिनी खाना खा रहे थे।
रवि बड़े चाव से खाना खा रहा था, और बीच-बीच में कनखियों से कामिनी को देख रहा था।
"बेटा, तुम्हारे पापा क्या करते हैं?" कामिनी ने माहौल हल्का करने के लिए पूछा।
"जी, वो एंटी-करप्शन (Anti-Corruption) विभाग में बड़े अफ़सर हैं," रवि ने चबाते हुए कहा।


रवि की बातों और नजरों से साफ़ पता चल रहा था कि वह उतना 'शरीफ' नहीं है। ना जाने बंटी और इसमें कैसे इतनी बनती है.
कामिनी हैरान थी इनकी दोस्ती पर, क्यूंकि उसका बेटा निहायती शरीफ था, और ये रवि दिखने मे ही चलाक और बिगड़ैल लगता था.
बंटी सीधे साधे कपडे पहनता, छोटे बाल, और ये रवि जीन्स टीशर्ट लम्बे बिखरे बाल.
और बोल चल का ढंग भी बंटी से बिल्कुल अलग.

खेर खाना खत्म हुआ।
कामिनी को याद आया कि शाम को शमशेर आ रहा है और उसे मार्किट से सामान लाना है।

"बंटी, मुझे ज़रा मार्किट जाना है। ऑटो पकड़ना पड़ेगा, देर हो जाएगी," कामिनी ने हाथ पोंछते हुए कहा।

तभी रवि ने अपना गिलास नीचे रखा और बोला—
"अरे आंटी, ऑटो के धक्के क्यों खाओगी? मेरे पास बाइक है ना। मैं ले चलता हूँ ना आपको।"

कामिनी ठिठक गई।
इस लड़के के पास बाइक भी है?
"तुम्हारे पास बाइक है? किसने दिलाई " कामिनी अनायास ही पूछ बैठी क्यूंकि बंटी बेचारा तो एक स्कूटर के लिए भी तरस रहा था.

"पापा ने दिलाई पिछले बर्थडे पर" रवि ने अपने पापा पर गर्व करते हुए कहा.
वही बंटी का चेहरा बुझा हुआ था, कामिनी को समझ आया की उसे स्कूटर की चाहत कहाँ से हुई होंगी.


"नहीं... नहीं बेटा... मैं चली जाउंगी," कामिनी ने संकोच किया। उसे रवि के साथ जाने मे अजीब लग रहा था, क्यूंकि रवि की नजरें कुछ ठीक नहींअगर रही थी,

लेकिन बंटी ने बीच में ही बात काट दी।
"अरे हाँ मम्मी, रवि की बाइक से चली जाओ। ऑटो मिलने में टाइम लगेगा। आधे घंटे का ही तो काम है, हो आओ जल्दी।, अच्छी बाइक चलाता है रवि "
बंटी ने दलील दी.

"हहह.... मममम.... मेरी ही गलती है, जवान लड़का है, अब ऐसे उसके सामने जाउंगी तो देखेगा ही ना " कामिनी को अपनी गलती का अहसास हुआ, की वो किस हालात मे दरवाजा खोलने गई थी.
ये रवि की नहीं उस की गलती थी,

"अब सामने ऐसी चीज दिख ही जाये तो कौन नहीं देखेगा, जवान होता लड़का है " कामिनी अपने मे मुस्कुरा दी.


"मैं तब तक पीछे स्टोर रूम देख लेता हूँ, वो रघु काम कर रहा है या सो गया," बंटी ने कहा और पीछे के दरवाज़े की तरफ चल दिया।

अब कामिनी के पास ना करने का कोई बहाना नहीं था।
"ठीक है..तुम बैठो आती हूँ तैयार हो कर ." कामिनी बैडरूम मे चल दी.
****†**********


कामिनी तैयार होने के लिए अपने कमरे में गई।
शीशे के सामने खड़ी होकर उसने खुद को निहारा। आजकल उसके चेहरे पर एक अलग सी सिकन आ गई थी, उसे अपने चेहरे पर वो रंगत नहीं दिखती थी, उसे लगता था जैसे कुछ अधूरा सा है.

उसने एक गहरे लाल रंग की शिफॉन की साड़ी पहनी, जिसका पल्लू उसने जानबूझकर थोड़ा ढीला रखा। माथे पर एक बड़ी सी लाल बिंदी लगाई, मांग में सिंदूर भरा और हाथों में कांच की खनकती चूड़ियाँ पहनीं। हल्का सा इत्र लगाया।


जब वह तैयार होकर बाहर निकली, तो वह सिर्फ़ 'बंटी की माँ' नहीं, बल्कि कामुकता की साक्षात् मूरत लग रही थी। एक भरी-पूरी, पकी हुई भारतीय नारी, जिसके हर अंग से मादकता टपक रही थी।
हॉल में इंतज़ार कर रहा रवि उसे देखते ही सन्न रह गया।
उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
उसने सोचा था कि 'आंटी' बस ठीक-ठाक होंगी, लेकिन सामने तो अप्सरा खड़ी थी।
रवि की नज़रें कामिनी की गहरी नाभि, कसा हुआ ब्लाउज और साड़ी में लिपटी चौड़ी कमर पर फिसलती रहीं।

उसे यकीन नहीं हो रहा था कि एक 38 साल की औरत, एक दोस्त की माँ, इतनी सुंदर और मादक भी हो सकती है। उसके मन में गुदगुदी सी होने लगी, हालांकि वो कामिनी मतलब की उसके पक्के दोस्त की माँ मे लिए कुछ गलत नहीं सोचा था, लेकिन जो सामने था उसकी प्रशंसा करने से खुद को रोक भी नहीं सकता था.


कामिनी ने रवि की उस अजीब सी नज़रों को देख लिया।
और सच तो यह था कि कामिनी भी रवि से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी।
20 साल का वो हट्टा-कट्टा लड़का, टाइट टी-शर्ट में कसे हुए उसके डोले, और चेहरे पर वो बेफिक्र जवानी।
रघु का अपना आकर्षण था (देसी और जंगली), लेकिन रवि में एक "शहरी और मॉडर्न" खिंचाव था। एक जवान लड़का उसे ऐसे देख रहा है, यह सोचकर कामिनी के गालों पर लाली आ गई।
"क्या हुआ बेटा? क्या देख रहे हो? चले मार्किट?"
कामिनी को खुद पर गर्व हो रहा था की उसके बेटे की उम्र का लड़का उसे घूर रहा है मुँह खोले.

"वो... वोओओओ... हाँ आंटी चलो चलते है " रवि सकपाकता हुआ उठा.
"चलो तो फिर " कामिनी मुस्कुराती थैला लिए आगे चल दी.
पीछे रवि किसी घनचक्कर की तरह कामिनी की मादक चाल को निहारे जा रहा रहा.
रवि आज मिला था असली कयामत से.

लेकिन बहार आते ही एक मुसीबत हो गई.
"ये क्या है? इसपे कैसे बैठूंगी?" कामिनी सकपाकती हुई बोली.

बाहर रवि की स्पोर्ट्स बाइक खड़ी थी। पिछली सीट काफी ऊँची थी।
"क्यों अंकल ने कभी आपको सवारी नहीं कराई क्या?" रवि ने मजे लेते हुए कहाँ.
"उनके ज़माने मे ऐसी चीज़े नहीं थी "

"तो आंटी जी कभी कभी आज के ज़माने मे भी जी लेना चाहिए " रवि ने बाइक पर बैठे हुए कहा
कामिनी जैसे तैसे पीछे की सीट पर बैठ गई, उसके हाथ रवि के कंधे पर थे,
रवि ने बाइक स्टार्ट कर दी, बुरम्म्म्म.... भरररररर..... भररररररररर..... बाइक बुरी तरह कांपती हुई आवाज़ करने लगी.
"पता नहीं आजकल के लड़को को क्या मजा आता है इन सब मे, ऐसा लग रहा है जैसे हवा मे बैठी हूँ " कामिनी बड़बड़ाई.
"नये ज़माने के लोग हवा मे ही उड़ाते है "
रवि ने रेस को जोर का झटका दिया... बुरममममम.... बुररररर..... बुरमममममम.....

सीट ऊँची होने की वजह से कामिनी का पूरा ऊपरी हिस्सा रवि की पीठ की तरफ झुक गया।

"पकड़ लीजिये आंटी... बाइक तेज़ भागती है," रवि ने शरारत से कहा और अचानक क्लच छोड़ दिया।
धुक...
बाइक को झटका लगा।
कामिनी का संतुलन बिगड़ा और वह धड़ाम से रवि की पीठ से जा टकराई।
उसके भारी, नरम स्तन पूरी ताकत से रवि की सख्त, चौड़ी पीठ पर दब गए.

"उफ्फ्फ्फ... क्या कर रहे हो, गिराओगे क्या?" कामिनी के मुंह से निकला।
लेकिन कामिनी को अपने जीवन का ये नयापन अच्छा भी लग रहा था.
उसे याद ही नहीं वो कब इस तरह से रमेश के पीछे स्कूटर ओर बैठी थी, ऐसी बचकानी हरकत कब की थी.
उसके नीरस जीवन मे ये बाइक का झटका एक नयी उम्मीद लिए बैठा था.


रवि को अपनी पीठ पर वह मखमली, नरम दबाव महसूस हुआ। उसे लगा जन्नत मिल गई हो। उसके बदन में एक सिहरन दौड़ गई।

कामिनी भी सिहर उठी। रवि की सख्त पीठ की गर्माहट उसके स्तनों के ज़रिये पूरे बदन में फ़ैल गई।
"मैंने कहा था ना आंटी, गिर जाओगी... मुझे पकड़ लो," रवि ने शीशे में कामिनी का घबराया चेहरा देखते हुए कहा.

कामिनी के पास कोई चारा नहीं था।
डर और मजबूरी (और दबी हुई चाहत) में उसने अपना एक हाथ आगे बढ़ा रवि के पेट पर लपेट दिया.

उसने रवि को अपनी बांहों के घेरे में जकड़ लिया।
उसका सीना अब पूरी तरह रवि की पीठ से चिपका हुआ था।
बाइक चल पड़ी।
रास्ते में रवि जानबूझकर कभी ब्रेक मारता, तो कभी रेस देता।
हर ब्रेक पर कामिनी के स्तन रवि की पीठ पर और जोर से भिंच जाते, पिचक जाते।
बाइक की इंजन की गड़गड़ाहट सीट के ज़रिये सीधे कामिनी की जांघों के बीच पहुँच रही थी।
उसकी चूत, जो सुबह से ही संवेदनशील थी, रिस रही थी, उस कंपन से गुदगुदाने लगी। एक मीठी-मीठी खुजली और गीलापन फिर से लौटने लगा।
कामिनी ने आँखें मूंद लीं। उसे अपनी जवानी लौटती सी महसूस हुई, जैसे वो कोई 18 साल की लड़की हो और अपने बॉयफ्रेंड के साथ बाइक पर चिपकी बैठी है.

रवि ने एक झटका लिया... वो अपनी जवानी से वापस 30साल की उम्र मे आ गई.

'रघु... शमशेर... और अब रवि...' वह सोच रही थी, 'आजकल मुझे क्या हो गया है? यह तीसरा मर्द है,
"ललललललल.... लेकिन ये तो मेरे बेटे का दोस्त है, मेरे बेटा जैसा ही है "
कामिनी की सोच को गहरा धक्का लगा, वो आजकल पता नहीं क्या क्या सोच रही थी.

थोड़ी ही देर मे वो लोग मार्किट पहुंचे। वहां शाम की भीड़ थी।
रवि ने बाइक खड़ी की। कामिनी सब्जी लेने आगे बढ़ी।
भीड़ बहुत ज्यादा थी। लोग धक्का-मुक्की कर रहे थे।
रवि एक 'बॉडीगार्ड' की तरह कामिनी के ठीक पीछे सटकर चलने लगा।

सब्जी वाले के ठेले पर भीड़ बढ़ी। कामिनी सब्जी छांटने के लिए झुकी।
उसकी चौड़ी, मटकती हुई गांड रवि के ठीक सामने थी।
भीड़ का एक धक्का लगा, और रवि आगे को जा सरका,

वह कामिनी के बिल्कुल पीछे चिपक गया।
और तभी... कामिनी को अपनी गांड की दरार के पास कुछ सख्त और गरम चीज़ महसूस हुई।
वह रवि का लंड था।
जींस के कपड़े के बावजूद, वह इतना सख्त था कि कामिनी को साड़ी के पार भी उसका लोहे जैसा कड़कपन महसूस हो गया।
रवि का लंड उसकी गांड के मांसल हिस्से में धंस रहा था।
कामिनी का जिस्म सुलग उठा।
कामिनी हैरान थी, ये बड़ा सा क्या लगा उसकी गांड की दरार के बीच आ कर,
उसे हटना चाहिए था, रवि को डांटना चाहिए था।
लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह वहीं जमी रही। वह उस सख्त दबाव को महसूस करने लगी,

'इतना कड़क... बंटी का दोस्त होकर भी इतना बड़ा...' कामिनी का दिमाग सुन्न हो गया था।

रवि ने भी मौके का फायदा उठा धीरे से अपना लंड उसकी गांड पर रगड़ दिया।, शयाद वो भी कामिनी की गांड की गर्मी को महसूस कर रहा था. उसके जीन्स मे कसाव बढ़ता जा रहा था.

कामिनी के मुंह से एक दबी हुई सिसकी निकली, लेकिन उसने सब्जी छांटना जारी रखा, मानो कुछ हुआ ही न हो।
कोई 1मिनिट ही ये सब हो पाया, आने जाने वाले लोगो ने रवि को एक जगह टिकने ही नहीं दिया.

सब्जी लेकर जब वे वापस बाइक के पास आए, तो दोनों के चेहरों पर एक अलग ही रंग था। दोनों एक दूसरे से आंखे चुरा रहे थे,
वापसी में...
रवि ने कुछ नहीं कहा। शायद वो शर्मा रहा था या ग्लानि मे था की उसने अपने पक्के दोस्त की माँ के साथ ये क्या किया.
वो भी दुविधा मे था कामिनी की तरह.

लेकिन कामिनी ने बाइक पर बैठते ही, बिना रवि के कहे, अपने हाथ को आगे बढ़ा रवि को कसकर पकड़ लिया।

इस बार उसकी पकड़ और भी मजबूत थी, और उसका सीना रवि की पीठ से और भी ज्यादा चिपका हुआ था।
हवा तेज़ थी। दोनों के बीच पुरे रास्ते कोई बातचीत नहीं हुई।

कभी कभी कुछ कहने के लिए बोलने के जरुरत नहीं होती, उस पल को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, उसके लिए कोई शब्द दुनिया मे बने ही नहीं है, जैसे कामिनी अपनी जवानी को महसूस कर रही थी, अब ये क्या है? क्यों है? इसे बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है..
कामिनी ही जाने.... वही रवि अपनी मचलती जवानी को छुपाने की कोशिश कर रहा था.

Contd.....
Superb update !
 
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