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फागुन के दिन चार भाग ४२ -घर की ओर पृष्ठ ४४० अपडेट पोस्टेड
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एकदम सही कहा आपनेLagta hai Reet hi kregi sab kuch![]()
थोड़ा सा भूल सुधार करुँगी
पहली बात हमला गुंजा और उसकी सहेलियों पर नहीं हुआ था, गुंजा, अपनी सहेली महक, के अंकल के साथ उनके मॉल पे गयी थी, साथ में गुंजा की सहेली शाजिया, गुड्डी और आनंद बाबू। मॉल के थोड़ी दूर पहले ही शाजिया का घर था, जिस गली में आनंद बाबू उसे छोड़ के आये, और फिर महक के साथ मॉल में, महक मॉल के पास ही अपने घर में चली गयी, हाँ मॉल में ही डीबी का फोन आया की वो गुंजा के साथ गुंजा के घर को निकल जाएँ और किसी तरह गुंजा को सेफ्ली पहुंचाए, और पुलिस से ज्यादा उम्मीद न रखें, हो सके तो सिद्दीकी से जरूर टच में रहें,
और गुड्डी महक की बड़ी बहन की बाइक पर अपने पीछे गुंजा और सबसे पीछे आनंद बाबू को ले के निकल गयी, जब वह अपनी सहेली की गली में पहुंची तो वहीँ दो बार हमला हुआ, गली से नहीं, बल्कि जो गलियां सड़क से आ के मिलती थीं वहां से।
इसलिए हमले का टारगेट सिर्फ गुंजा थी और गुंजा को अगर दंगे वाले उठा ले जाते तो या तो गैंग रेप करते या उससे भी ज्यादा और वही दंगे के लिए ट्रिगर होती,
दंगे वाले दोनों भागों को आप अगर याद करिये तो डिप्टी होम मिनिस्टर जो दंगा न हो पाने की वजह से दुखी हैं, किसी को फोन पर डांट रहे थे,
" छोटे ठाकुर उस समय बनारस में किसी से फोन पर उलझे थे और उसे गरिया रहे थे,
" ससुर क नाती, एक ठो बित्ते भर क लौंडिया नहीं उठा पाए, अरे अगर वो ससुरी हमरे मुट्ठी में आ गयी होती, तो, "
" अरे सरकार स्साली की किस्मत अच्छी थी, नहीं तो जिसको लगाए थे उसका निशाना आज तक चूका नहीं और एसिड भी ऐसा वैसा नहीं था,.... और दुबारा एक और टीम लगाए थे लेकिन, दोनों बार, .....और एक बार पकड़ में आ गयी होती तो लौंडे सब तैयार थे, जबरदस्त रगड्याई करते,..... चीर के रख देते, और ओकरे बाद तो,.... लेकिन, और सबसे बड़ा गड़बड़ ये हुआ, "
अब छोटे ठाकुर की ठनकी, " हे ससुरे पकडे तो नहीं गए, वो कप्तनवा बहुत दुष्ट है, उसको तो मैं बनारस में रहने नहीं दूंगा चाहे जो हो जाए, बोलो " अब का कहें, दोनों को बोले थे मुगलसराय निकल जाए उन्हे से ट्रेन पे बैठ के जनरल डिब्बा में लेकिन, पता नहीं का गड़बड़ हो गया, लेकिन आप एकदम चिंता न करे, वो सब सर कटा देंगे, जबान न खोलेंगे और वैसे भी उन्हें हमार नाम नहीं मालूम है "
तो ये बित्ते भर की लौंडिया गुंजा ही थी। और प्लान गैंग रेप का ही था, और उसके बाद जब वो मिलती, तो बस इलाज्म कुछ और लोगो पे, जिस गली में हमला हुआ उस के नाम पे और चुम्मन से जोड़ के
लेकिन गुंजा आंनद बाबू की छोटी साली थी, उसकी चुनमुनिया पे उसके जीजा का नाम लिखा था तो गुंडों को कहाँ से मिलती वो और फिर भी यह सवाल रह जाता है की गुंडों को पता कैसे चला
तो दंगा होने में जो लोग दिलचस्पी रखते थे उनमे छोटे ठाकुर भी थे, खुद डिप्टी होम मिनिस्टर, और पुलिस में थाने तक उनके आदमी थे, भले ही कप्तान वो न पोस्ट करवा पाए हो, और आनंद बाबू ने सिद्दीकी को बाइक का नंबर बता दिया था और शायद सिद्द्की ने पुलिस की पेट्रोल वांस को भी और उन्ही में से कोई मिला होगा,
इसलिए जब वो लोग अस्मा के घर में पहुंची तो उन्होंने बाइक बदल ली
उसी भाग की ये लाइने बात को साफ़ करेंगी
" दालमंडी में जब बाइक रुकी थी तब मैंने सिद्द्की को फोन कर के बाइक के डिटेल बताये थे और उसने पुलिस की वांस को हम लोगो की सिक्योरिटी के लिए बोला होगा, तभी कई जगह पुलिस की वान दिख रही थीं लेकिन उसी में से किसी ने लीक भी कर दिया होगा और अब जब दो बार हमला हो चुका है तो साफ़ है की बाइक अच्छी तरह पहचानी जा चुकी है, पर जाएंगे कैसे
और रास्ता भी जुबेदा ने निकाला, अस्मा और जीशान से उसने थोड़ी खुश्फुस की
और तय हुआ की हम सब पीछे से निकले, पैदल, पास में ही एक मकान खंडहर सा है, उस में से हो के बगल की गली में घुस सकते हैं , जीशान अपनी बाइक के साथ वहां मिलेगा और हम लोग उसी से
और वही हुआ,
गुड्डी का ये रास्ता जाना पहचाना था और थोड़ी देर में जब हम गुड्डी के मोहल्ले की गली में घुसी तो चैन की साँस ली
बाद में पता चला की जो बाइक हम लोगो ने अपनी अस्मा के घर के सामने छोड़ी थी, उस पर जीशान, जुबेदा और अस्मा गली से निकले, जिससे अगर कोई दूर से देख रहा हो तो उसे शक न हो और हम लोगो को बच निकलने का पूरा टाइम मिल जाए। वो लोग जहाँ गली ख़तम होती है, वहां तक आये
नहीं नहीं, भूल सुधार मैंने अपने लिए कहा था।जी कोमल मैम
बिल्कुल सही है।
भूल स्वीकार हैं।
सादर
मेने पहले यह पोस्ट पढ़ी थी. पर कमेंट पोस्ट नहीं हो पाई. वैसे भी बैक पेज ढूढ़ना भी ज्यादा मुश्किल होता है. पर आप को पढ़ने के लिए तो कुछ भी.नंबर का चक्कर - कहाँ बात हुयी
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बंदी के बात में दम था। मैंने ड्यूरेशन वाइज शार्ट किया, एक मिनट में बात साफ हो गई। एक हफ्ते में सिर्फ दो नंबर थे, जिनसे 7-26 सेकंड तक बात की गई थी। सारी काल्स रात में 8 से 10 बजे के बीच हुई थी।
“और पीछे देखो?” रीत बोली।
मैंने एक हफ्ते और चेक किया। वही पैंटर्न था। सिर्फ ये की पिछले हफ्ते में सिर्फ आखीर के तीन दिनों में उन दो नंबरों से काल आई थी। उसके पहले उन नंबरों से कोई कान्टैक्ट नहीं हुआ था।
रीत की दूसरी बात भी सही थी। इसके अलावा सारे नंबरों से उसकी बात 4-6 मिनट तक हुई थी। मैंने उन दो नम्बरों के सारे काल डिटेल्स सेव कर लिए, और रीत के लैपी पे भी ट्रांसफर कर दिए।
“जरा आउटगोिंग काल भी चेक करो…” रीत बोली।
चुम्मन के फोन से उन दोनों नंबरों के लिए कोई भी आउटगोिंग काल नहीं हुई थी। मतलब साफ था कोई है जो किसी काम के लिए चुम्मन को इंस्ट्रक्शन दे रहा है, और चुम्मन को उसे फोन करने की इजाजत नहीं थी। कौन है वो? फिर चुम्मन के पास वो बाम्ब कहाँ से आया?
“एक मिनट…” मैं बोला- “जितने पीरियड तक चुम्मन वहां था जब गुंजा होस्टेज थी। उस समय का काल चेक करें…”
“हाँ…” और रीत ने टाइम सेट किया।
मैंने रीत को बताया की ने बताया था की चुम्मन ने आउटगोिंग काल, शाजिया के फोन से ही की थी, केबल नेटवर्क वालों को भी और पोलिस स्टेशन को भी। लेकिन उसकी कोई इनकमिंग काल भी आई थी जो उसने अलग हटकर सुना था। तो इसका मतलब इस पे उस पीरियड में इनकमिंग काल मिलनी चाहिए। पुलिस, चूँकि उसने शाजिया के नंबर से पोलिस स्टेशन फोन किया था, शाजिया का नंबर ट्रेस कर रही थी।
तब तक उस समय का काल खुल गया था, कोई आउटगोिंग काल नहीं थी।
लेकिन दो इनकमिंग काल थी। एक नंबर तो वही था, जिससे 7 से 26 सेकंड तक काल आती थी, और दूसरा नम्बर भी पहचाना लगता था। मैंने अपना मोबाइल खोलकर फोन बुक चेक किया।
ये फोन तो सी॰ओ॰ कोतवाली अरिमर्दन सिंह का है, तो अरिमर्दन सिंह ने चुम्मन को फोन किया था क्यों? और उन्होंने डी॰बी॰ को बताया क्यों नहीं।
मेरे दिमाग में फिर ड्राइवर की बात गूंजी, जिसे मैंने पीछे वाले दरवाजे पे खड़े रहने को कहा था। उसने बोला था की सी॰ओ॰ साहब ने ही उसे हटाकर गुड्डी के पास भेज दिया था, जिसकी पुष्टि गुड्डी ने भी की थी। और उसने ये भी बोला था की उन्होंने ये भी बोला था की वो वहां दो आर्म्ड गार्ड लगायेंगे, लेकिन जब हम उतरे तो वहां ताला बंद था। तो क्या वो? मेरा दिमाग घूम गया था।
मैंने रीत को बात बताई।
रीत बोली- “एक मिनट जरा सोचने दो…”
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तब तक मैंने फिर ग्रे हैट इयान स्मिथ को फिर से उन दोनों नंबरों के बारे में मेल किया। वो आज कल लन्दन में था ओलम्पिक की साइबर सिक्योरिटी के लिए। वो टेलीफोन और लोकेशन पता करने का एक्सपर्ट था। आफिसियली वो ब्लैक बेरी का साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट था। मुझे यकीन था की आधे पौन घंटे में वो पूरी रिसर्च कर प्रोफाइल दे देगा।
रीत बोली- “ठीक है मैंने सोच लिया। जो चीज नहीं क्लियर हैं, उनको लिस्ट करते हैं फिर डी॰बी॰ से कान्टैक्ट करते हैं, फोन पे सिर्फ कहीं मिलने के लिए बुलाना, लेकिन पुलिस एरिया में नहीं…”
6-7 चीजें गड़बड़ थीं-
01॰ बाहर से ताला?
02॰ बाम्ब किसने एक्स्प्लोड किया?
03॰ वो दो नंबर किसके हैं?
04॰ कोई चुम्मन को क्या आर्डर दे रहा था?
05॰ सी॰ओ॰ को चुम्मन का नंबर कहाँ से मिला, और उसने क्यों बात किया?
06॰ फायरिंग क्यों और किसके आर्डर पे हुई?
एक चीज मैंने और जोड़ी-
07॰ वो बाम्ब चुम्मन को कहाँ से मिले? बाम्ब में निश्चित आर॰डी॰एक्स॰ था।
मैंने डी॰बी॰ को फोन लगाया। सारे नम्बर इंगेज या नो रिस्पांस आ रहे थे।
जब खुद आगे होकर आनंद बाबू ने चाट खाने का ऑफर दिया तो समझ आ गया था की आनंद बाबू कुछ तो प्लान कर रहे है. पर खुलासा आप ही करोगी.चाट खाओगी
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मैंने रीत से पूछा चाट खाओगी?
रीत बोली नेकी और पूछ-पूछ।
मैंने डी॰बी॰ को मेसेज किया, बनारस की चाट खानी है, जैसे जीवन-मृत्यु पिक्चर देखते समय खायी थी वैसे ही है।
दो मिनट बाद ही डी॰बी॰ का फोन आया- “क्या मामला है, जीवन-मृत्यु?”
मैं बोला- “हाँ वही समझो। बनारस की सबसे सुन्दर लड़की को चाट खिलाना है। जरूरी है वरना वो मेरी जान ले लेगी…”
डी॰बी॰ ने पूछा- “ओके कब और। …”
“अभी काशीराज से मिलना है मुझे, तो 7:00 बजे बल्की आधे घंटे बाद…” मैं बोला।
“ओके…” और डी॰बी॰ ने फोन रख दिया।
“काशीराज तो राम नगर में रहते हैं और साढ़े सात। तुम्हें जाना नहीं है क्या?” रीत बोली।
“अक्ल लगाओ?” मैंने चिढ़ाया।
“वो तो समझ गई मैं। काशी चाट भण्डार गोदौलिया।
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इत्ती भीड़ होती है वहाँ, और जितनी ज्यादा भीड़ उतनी ज्यादा प्राइवेसी। लेकिन टाइम मैं नहीं समझी और वो लड़की कौन?” रीत बोली।
“ये हम लोगों का कोड है। आधे घंटे बाद का मतलब ढाई पहले, और लड़की और कौन। तुम…” और मैंने बोला- “जल्दी तैयार हो जाओ…”
रीत पांच मिनट में हेलमेट और एक दुपट्टा लेकर आ गई और बोली- “चलो…”
मैंने रीत की सहेली का लैपी एकदम से क्लीन कर दिया था रजिस्ट्री ट्रेल, और रीत के लैपटाप में एक इन्क्रिप्शन प्रोग्राम और एक एक्स्ट्रा फायर वाल लोड कर दी थी।
अचानक रीत रुक गई, कुछ सोच में पड़ गई फिर हँसने लगी, और बोली- “एक बात भगवान करे ना सच हो। लेकिन मुझे लग रहा है की इन सारी बातों का एक मतलब था। कोई है जो नहीं चाहता था की वहां से कोई जिन्दा बचे। ताला, बिना बात की फायरिंग और अगर सी॰ओ॰ उनके लूप में है तो सबसे बड़ा खतरा तुमको है। क्योंकि उसे मालूम था की तुम्हीं उन लड़कियों को निकालने गए हो। बचाने की बात तो नेचुरल है लेकिन अगर तुम अभी भी उन लोगों के पीछे पड़ोगे तो उन्हें जरूर शक हो जाएगा और हँसी इस बात पे की मेरे ख्याल से बाम्ब किसने फोड़ा वो मैं समझ गई हूँ…”
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बाहर एक मोटर साइकिल थी। मैं चौंका- “मोटर साइकिल से चलेंगे हम?”
रीत बोली- “और क्या? शाम को गाड़ी से गोदौलिया कौन जा सकता है? फिर इससे मैं गली-गली ले जाऊँगी। पीछा करने की कोई सोच नहीं सकता। बनारस का हर शार्ट कट हर गली मुझे मालूम है। फिर हेलमेट से मेरा चेहरा छिपा रहेगा और वैसे भी बनारस में लड़कियां कम ही मोटर साईकिल चलाती हैं। और तुम ये दुपट्टा ओढ़ लो…”
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“दुपट्टा मैं…” मैंने बहुत बुरा सा मुँह बनाया।
रीत बोली- “सुबह साड़ी ब्लाउज़, ब्रा सब कुछ पहने थे और अब जरा सा दुपट्टा ओढ़ने में। अरे यार तुम्हारा चेहरा मेरे पीछे रहेगा। और जो बचा खुचा है वो दुपट्टे में। बाल तुम्हारे लम्बे हैं ही। गुड्डी ने सुबह ही चिकनी चमेली बना दिया था। घास फूस साफ। हाथ में जो नेल पालिश मैंने लगाई थी वो अभी भी चमक रही है और पैर का महावर भी। हाँ अपना जूता उतर के मेरी सैंडल पहन लो। बस 10 मिनट बचा है। एक बार चाट भण्डार पहुँच गए तो प्राब्लम साल्व। कोई पीछे-पीछे आया होगा तो यहीं तक। चलो…”
बात में उसके दम था।
हम चल दिए।
लम्बी गलियां, पतली गलियां, संकरी गलियां। 10 मिनट में हम काशी चाट भण्डार पहुँच गए।
गंगा पेईंग गेस्ट हाउस की ओर एक रिक्शा आया।
उसमें से एक सज्जन उतरे धोती कुरता आँख पे चश्मा, और माथे पे त्रिपुंड। एक बार उन्होंने मुझे देखा। मुझे लगा की शायद कोई पंडित जी होंगे मुझे पहचानते होंगे। मैं नहीं याद कर पा रहा हूँ। मैंने झुक कर प्रणाम किया और उन्होंने आशीर्वाद दिया। आवाज कुछ जानी पहचानी लगी और जब मैंने सिर उठाया तो वो मुश्कुरा रहे थे।
बहोत बहोत धन्यवाद कोमलजी. वैसे मै कुम्भ नहाने आई तब बहोत ही कम घूम पाई. क्यों की भीड़ ज्यादा थी. उस टाइम मेने msg भी किया था. सायद आप मिल पाती. पर संभव ना हो पाया. पर आप से जो ज्ञान मिला तो ऐसा महसूस हो रहा है की एक बार फिर जरूर आना चाहिये.हिन्दुस्तान में रिकार्डिंग की शुरूआत जिन गायिका से हुई, गौहर जान वो भी बनारस से जुड़ी थी। मध्य कालीन युग में बनारस, ध्रुपद और उसके साथ, धमार, होरी और चतुरंग के लिए प्रसिद्ध था। बनारस घराने और पूरबी अंग की ठुमरी ने एक नई पहचान बनारस को दी, सिद्धेश्वरी, बड़ी मोती बाई, और अब गिरजा देवी और छुन्नुलाल मिश्र ने ठुमरी गायकी एक पहचान दी। अभी भी राजन सजन मिश्र बनारस घराने का नाम रोशन कर रहे हैं( राजन मिश्र अब नहीं रहे, कोविड के परवर्ती असर से ) । भारत रत्न बिस्मिलाह खान जीवन पर्यंत बनारस में रहे और खांटी बनारसी अंदाज में रहे। पंडित रविशंकर, किशन महाराज। एक लम्बी श्रंखला है।
और शायद इन सबने मिलकर जिस चीज को जन्म दिया। जिसे कोई भी शब्द बाँध नहीं सकता,.... बनारसी अंदाज। जीवन शैली। एक अक्खडपन, एक मस्ती हर पल को उल्लास से जीने की लालसा। औघड़ दानी के शहर और कबीर की परंपरा की जीवन शैली।
मस्ती अन लिमिटेड।
बुढ़वा मंगल का उल्लास, होली की मस्ती, रामनगर की राम लीला और जो जार्ज हैरिसन, बीटल्स से लेकर ब्रैड पिट को बनारस खींच लाती है और उन्हें वहां न कोई माब करता है न आटोग्राफ मांगता है।
लेकिन इन मस्ती के अखंड उत्सव में। 20 वी सदी के आखिरी दशकों में जो पूर्वांचल में एक अपराध की लहर चली, जो राजनीती और अपराध की एक दुरभि संधि बनी उसका असर बनारस पर भी पड़ा। मुम्बई की डी कंपनी के मुख्य लोगों में कई बनारस से जुड़े थे और मुम्बई ब्लास्ट के बाद वापस आकर उन्होंने अपने अलग साम्राज्य कायम करने शुरू किये, और गैंग्स की आपसी लडाई भी शुरू हुई।
इसी के साथ या बल्की इसके पहले से ही राजनीति में जाती और धर्म से वोट बैंक बनाने का खेल शुरू हो चुका था। अपराध जगत ने इसमें अपना तड़का लगाया।
तेग सिंह ने उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ही बनारस में “बदमाश दर्पण…” पुस्तक लिखी थी और उसकी भूमिका में गुंडा शब्द की अच्छी मीमांसा है। शिव के गण से एक ओर इसकी उत्पत्ति मानी गई वहां ये भी कहा गया की संस्कृत में गुंड धातु से ये शब्द बना है और गुंड शब्द का अर्थ होता है, जो रक्षा करे। यानी एक तरह से आज कल के प्रोटेक्शन रैकेट की शुरूआत। जयशंकर प्रसाद ने एक गुंडा कहानी भी लिखी थी। वैसे बदमाश शब्द का भी मतलब यही होता है की माश का अर्थ है जीविका और बद यानी बुरा, अर्थात जो बुरे साधनों से अपनी जीविका चलाये।
21 वीं शताब्दी आते आते इसके साथ आतंकवाद भी जुड़ गया। 2006 में बनारस में दो भयानक धमाके हुए, मंगल के दिन संकट मोचन मंदिर पर और कैंट स्टेशन पर।