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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ४२ -घर की ओर पृष्ठ ४४० अपडेट पोस्टेड

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भाग ४२ -घर की ओर
५,६३,७०१


तय ये हुआ की रीत कार्लोस के साथ जायेगी चेतसिंह घाट और उस बोट को ट्रेस करने की कोशिश करेगी और तान्या मुझे ड्राप कर देगी।
तान्या के पास हेबूसा बाईक थी। मैं पीछे बैठ गया लेकिन मुझे डर लग रहा था। तेज मोटर साइकिल और बनारस की सडकों का कोई संबंध नहीं था।

“कसकर पकड़ लो…” वो बोली।मैंने कमर कसकर पकड़ ली। लेकिन बोला,” मन तो मेरा थोड़ा ऊपर पकड़ने का कर रहा है।“
वो खिलखिलाई,

“ तो पकड़ा क्यों नहीं मैंने मना थोड़े ही किया था, ...लेकिन अभी कमर पकड़ो।“

उन्नत उरोज, पतली कमर और विशाल नितम्ब ये एक विशेष पोज में अत्यंत आनन्द देती हैं। मैं सोच रहा था की उसने हड़काया.

“ ध्यान से पकड़ो यार झिझको नहीं। मैं स्पीड बढ़ाने जा रही हूँ।“

और कभी गली कभी सड़क। हम लोग 15 मिनट में पहुँच गए सीधे

उन्नत उभार, दीर्घ नितंबा और पतली कटीली कमरिया, एकदम छरहरी, लम्बी कम से कम साढ़े पांच फिट, नीली आँखों वाली और उसने कस के मेरा एक हाथ खींच के अपने उभार पे खिलखिलाते हुए रख दिया और उसी समय उसने जोर से ब्रेक मारा, बाइक काटी, और मैंने कस के दबा दिया,

उफ्फ्फ कितने कड़े थे, और ये भी साफ़ था की ब्रा का कवच नहीं था,

" सोच रहे होंगे, ऐसे एक दो और झटके रस्ते में मिल जाएँ, है न " बाइक की स्पीड बढ़ाते वो बाला बोली, और एक झटक और मिल गया और अभी बदमाशी शुद्ध रूप से तान्या की थी, एक नाली थी, लेकिन बजाय स्पीड धीमे करने के उसने बढ़ा दी और अबकी मैंने भी हिम्मत कर के, कस के,

" एक दिन यार तुझे लांग ड्राइव पे ले चलूंगी, ...लौट के आओगे तो बनारस रुकोगे न "

वो बोली और " हाँ एकदम " कहने के साथ ही मैंने उसे रुकने का इशारा किया।



अभी दो गली बाद वो मोड़ था, जहाँ से एक पतली सड़क, गुड्डी के घर के लिए मुड़ती थी, औरंगाबाद के लिए, और बिना समझाये वो समझ के मुझे ड्राप कर के बस बाइक हलकी कर के, और फिर बिना वापस मुड़े, रेलवे स्टेशन की ओर चल दी।



मुझे लग रहा था दुष्ट दल का कोई न कोई सदस्य छद्म वेश में गुड्डी की गली पे शायद खड़ा हो,... एक तो मैं और दूसरे गुंजा,



मैंने और डीबी ने गुंजा और गुड्डी के चु दे बालिका विद्यालय के मामले से अपने को अलग रखने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन थाने में कई लोगो ने मुझे डीबी के साथ देखा, फिर महक के अंकल के साथ वैसे तो मैं थाने के पीछे से उनकी गाडी में बैठ के निकला था तो भी,...


और जिस तरह गली में गुंजा पर दो बार हमला हुआ, दोनों बार बाल बची. एक बार तो गुब्बारे में एसिड, जिसे मैंने कैच कर के फेंका और लोहे का खम्भा पिघल गया और दूसरी बार सीधे बॉम्ब. और साफ़ था की उनका पर्पज गुंजा का इस्तेमाल दंगा भड़काने के लिए करना था,... गैंग रेप और उसके निशान, फिर क्षत विक्षत कर गुड्डी की सहेलियों के,... वही अस्मा और जुबेदा, जिन्होंने हमारी जान बचायी, ,...उसी गली में,

फिर एक नैरेटिव,

और दंगा होने से फिर कोई रोक नहीं सकता था,

लेकिन अब गुंजा का वो इस्तेमाल नहीं कर सकते थे. स्थिति एकदम सामान्य हो गयी थी, ...फिर भी,



इस लिए मैं उतर गया, और एक पान की दूकान पे वो सिगरेट मांगी जो वहां नहीं थी, लेकिन मामला शीशे में चारो ओर देखने का था, कोई मेरे पीछे नहीं दिखा और सबसे बड़ी बात बाजार इस समय भीड़ से पटी थी, वो डीबी की १०%, २० % छूट का असर,
कोई कहँ नहीं सकता था दो घंटे पहले यहाँ बिना लगाए कर्फ्यू का माहौल था।

बस उसी भीड़ में धंस के मैं गुड्डी के घर की ओर जाने वाली सड़क पर, ...और फिर गली. गली क्या पतली सी सड़क थी, कार वार तो चली ही जाती, एक दो दुकानों पे रुक के मैंने टोह ली,



असल में मैं नहीं चाहता था की जो मेरी टोह ले रहा हो, वो किसी भी हालत में मुझे तान्या के साथ जोड़ के देखे, रस्ते में तो हम दोनों ने हेलमेट लगा रखा था और सफ़ेद शर्ट पहन रखी थी, जो बहुत कॉमन थी.
तान्या से जोड़ के देखने का मतलब दो और दो चार कर के वो कार्लोस तक पहुँच जाता और कार्लोस अभी रीत के साथ, और मैं किसी हालत में नहीं चाहता था की, रीत पे रत्ती भर का शक हो।

डरते डरते मैं घर की सीढ़ी पे चढ़ा और मुझे पक्का यकीन था की डांट पड़ेगी और जबरदस्त पड़ेगी, ...और किसकी गुड्डी की
 
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मेरी खिंचाई, चंदा भाभी


डरते डरते मैं घर की सीढ़ी पे चढ़ा और मुझे पक्का यकीन था की डांट पड़ेगी और जबरदस्त पड़ेगी, और किसकी गुड्डी की

और बस पड़ते पड़ते रह गयी, लेकिन गुड्डी की बड़ी बड़ी कजरारी आँखों ने सब कुछ दिया,

क्या नहीं था वहां, ...थोड़ा मेरे लेट आने का गुस्सा, थोड़ी नाराजगी, थोड़ी चाहत और थोड़ा दुलार, लड़कियों को आँखों को पढ़ना आसान नहीं और ख़ास कर अगर वो गुड्डी की हों,...


और उसके न डांटने या न डांट पाने का सिर्फ एक कारण था, घर में अभी भी घचमच मची थी, पड़ोस की पडोसीने तो कब की चली गयी थी, लेकिन अब दूर की रिश्तेदार, मोहल्ले वालों के रिश्तेदार, अभी भी दो चार औरतें, एक दो लड़कियां, कुछ तो लगता है गुंजा के बचने की ख़ुशी में प्रसाद भी चढ़ा के आयी थीं. लड्डू के डिब्बे बगल में रखे थे, और मुझे तो ये भी लग रहा था की मेरे कारनामो के कुछ तो सेंसर्ड वर्ज़न चंदा भाभी ने इन लोगो को, मेरे मना करते भी सुना दिए थे, क्योंकि एक लड़की ने मुझे देख के, गुड्डी के कुर्ते को पकड़ के धीमे से पूछा,

" यही हैं, " और गुड्डी ने सर हिला के सहमति जताई,


और मुझे यह भी पता चला की वो महिला असल में गुंजा की नहीं गुड्डी की रिश्तेदार हैं, उनकी दूर की, पितरसंडा वाली बूआ की बहु, मैंने झट से रिश्ता जोड़ा, गुड्डी की बूआ की बहू, मतलब,....गुड्डी की भाभी और अगर किस्मत चमक गयी तो मेरी सलहज,



और वो छुटंकी उनकी ननद थी, तो मतलब मेरी साली, और मैंने झट से नमस्ते किया,

थी तो वो गुड्डी की रिश्तेदार, लेकिन चंदा भाभी से उनकी पक्की दोस्ती थी, यहाँ तक की मेरी भाभी की शादी में भी आयी थी, उन सब की नजर में एक तारीफ़ थी और चंदा भाभी, की नजर में सबसे ज्यादा,

लेकिन चंदा भाभी कौन जो मेरी बिना रगड़ाई के छोड़ दें, बड़ी सीरियसली बोलीं,

" बड़ा टाइम लगा, ....काम हो गया की नहीं "?

और अब गुड्डी की भाभी, मेरी होने वाली सलहज ने पूछ लिया. न उनकी समझ में चंदा भाभी की बात आयी थी, न मेरे। रीत के साथ डीबी के पास जो मैंने गया था, वो तो किसी को भी नहीं मालूम था,

" कौन काम भैया, कहाँ गए थे ?"

उन महिला ने पूछ लिया, उम्र चंदा भाभी से थोड़ी कम होगी, ३० पहुंची नहीं होंगी, नमक बहुत ज्यादा था, गोरी, चिकनी,

और चंदा भाभी ने उसी सीरियस ढंग गुड्डी की बुआ की बहू को जवाब दिया,
" दालमंडी ( बनारस का मशहूर रेड लाइट एरिया, देह व्यवसाय के लिए एक जमाने में पूरे पूर्वांचल में मशहूर ),गए थे। जब से आये हैं कई चक्कर काट चुके हैं, अपनी बहिनिया और महतारी के लिए ,... बाकी सब तय होगया इनका कमीशन अटका था, वो सब रूपये में दो आना ( १२%) देने को कह रहे थे, ये चवन्नी (२५%) मांग रहे थे। । तो भैया कुछ बात बनी, अरे तो ले आवा एक बार,... फिर बाकी सब हो जाएगा, परेशान मत हो ."



अब मेरी सलहज ( होने वाली ) भी समझ गयी चंदा भाभी मेरी खिचायी कर रही है, तो वो भी सीरियसली पूछ बैठीं,

" का उमरिया है तोहरी बहिनिया की,.... कउनो फोटो वोटो है की नहीं "


और एक साथ गुंजा और गुड्डी दोनों ने मोबाइल खोल के फोटो पेश कर दी, एक को तो गुड्डी की भौजी ने पकड़ा, और दूसरी को छुटंकी ने ,


इतनी छोटी भी नहीं थी, थी तो गुंजा से भी छोटी, लेकिन चंदा भाभी ने जो कल रात भर गुरुज्ञान दिया था उसके हिसाब से पक्का लेने लायक हो गयी थी, और रिश्ते में साली,


और मेरी होने वाली सलहज बोल पड़ीं,

"अरे माल तो बहुत मस्त है, चूँची देखो कैसे तनी है, एकदम दबाने लायक, इसको कौन कमी होगी गहकी की. खूब बिकेगी, दस पांच लौंडो का इंतजाम तो हम अपने मोहल्ले में कर देंगे, एक फोटुवा हमको भी भेज दो "

और गुंजा ने तुरंत,



" यही तो मैं भी कह रही थी, एक बार ले तो आओ, ....तो ये मान गए हैं, होली के दूसरे तीसरे आएंगे , रंगपंचमी में यही रहेंगे तो इसको भी ले आएंगे "
 
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. गुंजा –गुड्डी और होनेवाली सलहज की जुगलबंदी





और आगे की बात गुंजा ने बढ़ाई, और पिक्स दिखाते हुए,


'देखिये, देखिए, एक से एक, ....अरे गुड्डी दी की ही उम्र की है, और ये बेचारे तो इतने परेशान थे आज अपनी शर्ट पे ये पोस्टर बना के नंबर लिख के पूरे शहर में पैदल घूम रहे थे "


और गुंजा को गुड्डी ने कुछ इशारा किया और गुंजा ने अपने मोबाइल में जो पिक दिखाई तो मेरी बस फट गयी,



मेरी शर्ट के पीछे लिखा था



जैसे कोई सस्ते विज्ञापन में लिखते हैं। ऊपर लिखा था-

खुल गई। चोद लो। मार लो।


और उसके नीचे,---

गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए। आपके शहर में एक हफ्ते के लिए। एडवांस बुकिंग चालू।


उसके बाद जैसे दुकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है-

चुम्मा चुम्मी- 20 रूपया

चूची मिजवायी- 40 रूपया

चुसवायी- 50 रूपया

चुदवाई- 75 रूपया

सारी रात 150 रूपया।



और अब बाकी औरते भी मुस्कराते हुए वो फोटो देख रही थी और मेरी होने वाली सलहज बोलीं,

" रेट तो ठीक है, थोड़ा कम है, तो गहकी ज्यादा आएंगे, कुल आमदनी तो ज्यादा होगी, और दालमंडी का काम तो रात का है, दिन में का करेगी? टांग ही तो उठाना है, या फिर कुतिया बन के निहुरना है,... लेकिन भैया ये बताओ की तुम अभी उसकी लिए हो की नहीं,? लिए तो जरूर होंगे ,.... अइसन मस्त माल कौन छोड़ता है "



अब मेरी शर्माने की बारी थी और गुड्डी की छेड़ने की,

"अरे नहीं, अभी तक इनकी बहिनिया कोरी है,… सही कह रही हूँ "

" अरे तो अब जरूर ले लेना उसकी और मन भर,… अगवाड़ा पिछवाड़ा,दोनों, चूतड़ भी स्साली का मस्त है, नहीं तो बाद में रोओगे, की भाई का हक पहला होता है, जिन्नगी भर राखी का पैसा दिए हम और डुबकी मारने का टाइम आया तो ये बनारस वाले, ….पूरा मन भर के लेना। नहीं तो एक बार बनारस आएगी न तो ये तोहार माल,... तो यहाँ के लौंडे चूत का भोंसड़ा, और गांड का गोदाम बना देंगे. इसलिए तोहरे फायदे के लिए कह रही हूँ, पहले ही खूब मजा ले के ले आना. शकल से छिनार और चुदवासी दोनों लगती है, खूब चूतड़ उठा उठा के चुदवायेगी, पूरे बनारस में तोहार नाम रोशन करेगी, पूरे बनारस क सार बनोगे तुम,… बस ले आओ ".


अब मेरी होनेवाली सलहज और गुड्डी की भाभी मेरे पीछे खुल के असली बनारसी अंदाज में पड़ गयी थीं।

और उनकी ननद भी उचक के फोटो देख रही थी, कभी पिक देखती, कभी मुझे कभी गुड्डी को और बोली, " भौजी एकदम सही कह रहे हैं "

लेकिन जहाँ पांच छह औरते हों तो एकाध तो स्साली नकचढ़ी होती हैं तो बस वो मोबाइल की मेरी ममेरी बहन की फोटो ऐसे ही एक के पास पहुंच गयी।

सच बोलूं, तो वो पिक थी ही हॉट, मेरी ममेरी बहन सच में मस्त माल लग रही थी, उसके दोनों चूजे जान मार रहे थे,



थे तो थोड़े छोटे, गुड्डी से उन्नीस ही रहे होंगे लेकिन अठारह नहीं थे, जैसे क्लास ग्यारह की लड़कियों के होते हैं, और अपने क्लास में दूसरे नंबर पे, उसकी एक सहेली थी दिया, वो थी पहले नंबर पे ३४ वाली,"



जिस तरह से वो नकचढ़ी उस फोटो को देख रही थीं, वो बस मेरी बहना के जोबन को तोल रही थीं, गुड्डी, चंदा भाभी और मेरी होनेवाली सलहज समझ गयी, और उन की नजरो का जावब गुड्डी ने दिया,

" मेरी ही क्लास में है , मुझसे दो महीने छोटी, ....३२ नंबर "

" अरे उस का चक्कर छोड़, ३२ नंबर का, उसके भैया ले के आएंगे न तो बनारस के लौंडे, हफ्ते भर में दबा दबा के मीज मीज के पक्का ३२ का ३४ कर देंगे, और थोड़ा बहुत मजा तो हम लोग भी लेंगे " मेरी होने वाली सलहज ने उस नकचढ़ी के बिना बोले सवाल का जवाब दे दिया फिरपूछ लिया,

" भैया घबड़ा तो नहीं रहे हो, ...ले तो आओगे न "


और अब गुड्डी और चंदा भाभी दोनों खुल के, दूबे भाभी की अथॉरिटी इस घर में क्या है बाहर वालो को भी मालूम थी, तो चंदा भाभी बोलीं

" अरे दुबे भाभी बोली हैं,.... और इनसे तीर्बाचा भरवाई हैं की अपनी बहिनिया को साथ ले आयंगे तो ये बोले की उनका तो पहले से ही प्लान था "

और गुड्डी कैसे पीछे रहती, तो उसने भी तुरुप जड़ दिया, " अरे इसलिए तो मैं साथ जा रही हूँ, सीधे से नहीं आएगी स्साली तो झोंटा पकड़ के ले आउंगी, उस के भाई जबान दिए है, पूरे बनारस के मजे का सवाल है "



तबतक मोबाइल किसी और के हाथ में पहुँच गया था और वो गुंजा की शायद बुआ लगती थीं, थोड़ी प्रौढ़ा, दूबे भाभी की उम्र की

और सिर्फ एक नहीं कई फोटो थीं, गुड्डी ने अपना अल्बम गुंजा को दे दिया था, और इसमें पिछवाड़े की एकदम खुल के

" माल तो मस्त है लेकिन लौंडे अइसन चूतड़ देख के, बिना गांड मारे छोड़ेंगे नहीं, गांड मरवाने में नौटंकी तो नहीं करेगी " वो भी मेरे पीछे पड़ गयीं
लेकिन जवाब मेरी उस होने वाली सलहज ने दिया,

" अरे बनारस के लौंडे हैं, ...हमरे पितरसंडा में तो गाँड़ में डंडा लौंडे पहले करेंगे पूछेंगे बाद में . और दूसरे तनिको छिनरपन की तो ओकरे भैया हैं न, अरे ये किसी से कम चिकने हैं, लौंडिया मात,.... बिना मूंछ के तो और,... तो बस इनकी गाँड़ मार ली जायेगी , गाँड़ तो गाँड़ "



और चंदा भाभी ने मामला और साफ़ किया, " अरे एकदम सही कह रही हो, कल ये शाम को जिद किये थे, लेकिन जब मैंने समझाया, भैया यह गली में बहुत लौण्डेबाज रहते हैं, होली का मौसम, सब भांग पी के टुन्न, और रात का टाइम बिना मारे जाने नहीं देंगे। बेचारे एकदम घबड़ा गए इसलिए रुक गए , इनकी भी अपनी बहिनिया की तरह कोरी है "

अब मुझे और गुड्डी दोनों को लग रहा था निकलने में देर हो रही है, इस रगड़ाई में

और उस चक्कर से मुझे बचाया दो लोगो ने एक तो गुड्डी ने और दूसरे फोन ने, गुड्डी बोली, " ड्राइवर सब सामान लेके आ गया है और वेट कर रहा है और मैं जरा एक बार चेक कर लूँ मेरा कोई समान रह तो नहीं गया कहीं "



और उस ड्राइवर का भी फोन आ गया, कब तक निकलेंगे हम लोग और बूआ की बहू का भी, तो वो लोग नीचे उतरे और मैं गुड्डी के साथ कमरे में और गुड्डी ने हड़काया, मम्मी का दो बार फोन आ चुका है एक बार बात कर लो चलने के पहले।

चंदा भाभी के बैडरूम में सबसे अच्छी बात ये थी, पूरी प्राइवेसी थी, बाहर पडोसीनो की घचमच अभी भी चल रही थी।
 
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मम्मी का फोन



==
और गुड्डी ने फिर से दुहराया, हे मम्मी का फोन दो बार आ चुका है, तुझी से बात करेंगी, चल लगा जल्दी से।



और मैंने अपने फोन पे गुड्डी की मम्मी को फोन लगाने की कोशिश करते, गुड्डी से पूछा, " हे लगाऊं मम्मी को,....
करुँ"

और जोर का एक तमाचा मेरे चूतड़ पे पड़ा , चटाक, और साथ में गुड्डी की खिलखिलाती हंसी,

" स्साले, मम्मी को लगाने का मन कर रहा है. उसकी बिटिया को तो आज तक लगा नहीं पाए, ...तीन साल से चक्कर में पड़े हो। अरे हम दोनों लौटेंगे न होली के बाद, तो देखना तो स्सालेतू क्या लगाएगा. लेकिन मम्मी तुझे बिना लगाएगा छोड़ेंगी नहीं, गारंटी मेरी . ....पक्का रेप करेंगी इस बिचारे का, ...लेकिन अभी फोन लगा। "



डबल मीनिंग डायलॉग मैं नहीं भी बोलूं, तो ये बनारस वालियां बना लेती थीं.
लेकिन हम दोनों एकदम अकेले थे, गुड्डी को पास में खींच के मैंने चिपका लिया और बोला,
"यार उनकी बिटिया को तो आज पक्का लगाऊंगा, और एकदम जड़ तक "

गुड्डी मुस्करा के बोली, " डरती हूँ क्या,... चल तो रही हूँ तेरे संग, कर लेना अपने मन की "

अपनी बाँहों में भर के और अपने पास खींच के गुड्डी से मैंने अपने मन की बात कह दी,

" यार ये लड़की न, ....अगर जिंदगी भर,.... लगाने के लिए मिल जाए, किसी दिन नांगा नहीं होगा, दिन रात रोज लगाऊंगा "

" बुद्धू राम, उसके लिए मम्मी को पटाना पड़ेगा, उनकी हाँ जरूरी हैं. " और फिर थोड़ा सीरियस हो मेरे कंधे पे सर रख के बोली

" यार, मैं कितना भी चाहूँ न, ...लेकिन मम्मी की हाँ के बिना मुश्किल है. और एक बार मम्मी हाँ कर दे,... तो समझो, " और अब एकदम खुशहोके वो शोख बोली

" और मम्मी हाँ कर दें न फिर तो कोई रोक नहीं सकता, ...फिर तो तेरे सीने पे रोज मूसल दलूँगी"



" यार, मम्मी को पटाने के लिए मैं कुछ भी कर लूंगा, भले उनके तलुवे चाटने पड़ें " मैंने अपनी बात रख दी और वो मुझे चिढ़ाती बोली

" यार मम्मी तलवे के जगह,... कुछ और चटाएंगी "

" अरे वो तो मैं ख़ुशी ख़ुशी चाट लूंगा यार, तेरी मातृभूमि है " और एक चांटा फिर, गुड्डी का हाथ और मेरा पिछवाड़ा , और अगली बार कान भी ऐंठा गया

" अबे ये कौन सा नंबर लगा रहा है, ये फोन तो पुराना है मंझली ने हथिया लिया है और वो साइलेंट पे रखती है, ;;;;ये लगा और हाँ वीडियो काल "



और मम्मी प्रकट हो गयीं, लेकिन मूड थोड़ा बदला लग रहा था, हर बार मेरी खिंचायी करने, गरियाने, लेकिन आज थोड़ी गंभीर लग रही थीं, और गंभीर से ज्यादा कंसर्ड,

अक्सर उनकी बात गरियाने, चिढ़ाने और मेरी खिंचाई करने से शुरू होती थी, लेकिन आज थोड़ी चिंता में लग रही थी, मैं कुछ बोलता उसके पहले वो बोलीं,

" भैया, ठीक तो हो न, कोई परेशानी, " चेहरे से उनकी चिंता झलक रही थी,

मेरी कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन जब उन्होंने कहा की गूंजा की मम्मी सब बताई हैं तब से उनका जी हलकान था, और फिर पुछा कहीं लगी तो नहीं,


लेकिन मैं कुछ बोलता, तब तक स्टेज पर गुंजा ने एंट्री ले ली, और चहक के बोली,

" अरे उस के पास हाथ भर का चाक़ू था, लेकिन इन्होने पहले तो मुझे गिराया, मेरे ऊपर खुद. जिससे मुझे न लगे और फिर उस की ऐसी की तैसी कर दी, और यही नहीं हम तीनो लड़कियां सीढ़ी पे थे, उसी समय गोली चलने लगी, ये तो, इन्होने बोला सब लोग दीवाल से पीठ लगा के, एकदम चिपक के,एक के ऊपर एक, और खुद महक को पकड़ के मैंने शाजिया को, लेकिन किसी को खरोच तक नहीं आयी, "और फिर कुछ रुक के मुस्करा के बोली, " आप सब बेकार परेशान थे, मुझे कुछ होता, कैसे, ये थे न। जैसे मैंने इन्हे देखा, मैंने महक को इशारा किया, आगया अपना हीरो, अब एक नहीं दस आ जाएँ, कुछ नहीं कर पाएंगे " और गुंजा मुझसे चिपक गयी।

मम्मी ने चैन की सांस ली, और अब वो चिढ़ाने के मूड में आ गयी,

"अरे वो पंजाबी लौंडिया को पकडे थे तो खूब दबाये मसले होंगे है न , और वो दोनों पटी की नहीं"

गुंजा चुप होने वाली चीज नहीं थी, एकदम गुड्डी पर गयी थी, जहाँ मेरी खिंचायी करने का मौका आये वो पीछे रहने वाली नहीं थी, बोली ,
"पटाने की बात कर रही है, ये खुद इतना शर्मा रहे थे. ... वो दोनों तो खुद अपनी शलवार का नाड़ा खोलने को तैयार हैं,... लेकिन यही इतना झिझक रहे थे, "



और गुड्डी ने जले पर नमक छिड़का, "तीन साल से तो एक को पटा रहे हैं, तो इतनी देर में इनसे क्या होगा "

पर दो बातें एक साथ हुयी, गुंजा की कोई और सहेली आ गयी थी, उसने गुंजा को बाहर बुला लिया और मम्मी ने खुल के मेरा साथ दिया, हँसते हुए एकदम अपने अंदाज में गुड्डी को कुछ हड़काते, कुछ चिढ़ाते, मुझसे बोलीं


"अरे तुम सच में बहुत सोझ हो, पटाने के चक्कर में अब नहीं पड़ना, ....बस सीधे पटक के पेल दो. अरे आओगे न होली के बाद तो चलो तुमको सीखा पढ़ा के में पक्का कर दूंगी, जो कल की लौंडिया उछल रही हैं न,… "मम्मी अब अपने असली बनारसी रंग में आ गयीं थीखूब खुश चहकती, चिढ़ाती
 
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मम्मी की हाँ



लेकिन अब एक बार वो फिर सीरियस हो गयीं और मैं भी सीरियस हो गया, मुझे गुड्डी की बात याद आ गयी, "यार जब तक मम्मी हाँ नहीं करे तब तक, मैं क्या करूँ, ...बस यह समझ लो, तब तक मुश्किल है. और एक बार मम्मी हाँ बोल दें,... फिर तो मैं तुझसे फेविकोल की तरह चिपक जाउंगी, बस किसी तरह एक बार मम्मी से हाँ करवा लो, बोलना तुझे ही पड़ेगा "


और मम्मी सीरियस हो गयी थीं, गुड्डी ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया था, और मेरी उँगलियों ने भी उसकी उँगलियाँ भींच ली थी, बस किसी तरह ये हाथ मिल जाए, जिंदगी भर थामने के लिए, और गुड्डी की उँगलियों का दबाव भी मेरी उँगलियों पर बढ़ गया था, और गुड्डी की मम्मी बोलीं,

" क्या कहूं मैं, तुमने वो काम किया,... " फिर वो चुप हो गयीं, जैसे कुछ सोच रही हों फिर बोलीं,

"मेरी बेटी को, गुंजा को बचा लिया, ...बस मैं यही कह सकती हूँ, ...एक बार तुम जो मांग लो, जो कहो, जो भी कहो.... मेरी हाँ "

गुड्डी इशारा कर रही थी, लेकिन मुझसे कुछ नहीं कहा जा रहा था, बस मैंने गुड्डी के कंधे पर हाथ रख कर उसे अपने पास खींच लिया, एकदम चिपका लिया और गुड्डी खुद भी मुझसे चिपक गयी, और यही नहीं अपने हाथ से मेरे हाथ को खींच के सीधे अपने उभारों पर, जैसे अपना दिल मेरे हाथ में रख दिया हो "

मम्मी देख रही थीं, जो न समझता हो वो समझ जाए, ये दोनों क्या चाहते हैं, मुस्करा के वो बोलीं,
'बोलो, क्या मांगते हो "



गुड्डी एकदम मुझसे चिपकी जा रही थी, उसकी गरम साँसे मैं अपने गालों पर महसूस कर रहा था, लेकिन मेरी झिझक हिचक,

ऐसे ही मौके के लिए मैं दसो, बीसो बार रिहर्सल किया था, की जब ये हालत हो तो मैं कैसे गुड्डी को मांगूंगा , मैंने सोचा था की भाभी की शादी में जब पहली बार मैंने गुड्डी को देखा था, और बस देखता रह गया था, और गुड्डी की मम्मी ने किस तरह मुझे चिढ़ाया था, मंडप में जबरदस्त रगड़ाई की थी, और अचानक गुड्डी की ओर इशारा कर के पूछ दिया था,
" हे इससे बियाह करोगे, इसी मंडप में करवा देते हैं "
बस मारे लाज के मैं लाल हो गया था, मुंह में जैसे गोंद चिपक गया हो, सब लोग हंस रहे थे और मैं सर झुकाये, बस। मैं बार बार सोचता की कभी अगर टाइम मशीन से उस पल में पहुँच जाता तो झट्ट से हाँ बोल देता। और कभी मौका पड़ा तो गुड्डी की मम्मी से, मेरा मतलब मम्मी से बस यही कहूंगा, "उस दिन आपने मंडप में जो पूछा था उस का जवाब है हाँ। करूँगा, और चट मंगनी झट बियाह वाला,


लेकिन जब मौका था तो फिर मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था, लेकिन बस ऐन मौके पे बुद्धि भी काम कर गयी और हिम्मत भी आ गयी, मैंने कस के गुड्डी को दबोच के मम्मी से बोला,
" सोच लीजिये बाद में मुकर मत जाइएगा, ...हाँ मतलब हाँ "

और वो खिलखिलाती बोलीं, "हाँ, हाँ मतलब हाँ, और चल तीन तीर्बाचा भर देती हूँ , हाँ हाँ हाँ। "

" तो अब से मैं आप से कुछ भी मांगूंगा, और " फिर गुड्डी को एकदम चिपका के उसकी आँखों में आँखे डाल के देखते, मैंने उनसे बोल दिया

" मैं आपसे कुछ,… और मतलब कुछ भी मांगूंगा,कहूंगा,… तो आप सिर्फ हाँ कहेंगी, बोलिये "

हम दोनों ऐसे चिपके खड़े थे, गुड्डी को जिस तरह से मैंने भींच के पकड़ रखा था, हम दोनों की आँखों में जो चाहत थी कोई भी समझ जाता मुझे क्या चाहिए और वो तो पक्का समझ गयी होंगी,



पहले तो वो मुस्करायीं, फिर जोर से खिलखिलायीं और अपने एकदम असली रूप में, मुझे गरियाते बहुत खुश हो के बोलीं

" स्साले, तेरी माँ की, ….लेकिन चल एक बार जबान दे दी तो दे दी, हाँ मतलब हाँ , पर अब तक हम सोचते थे की तोहार महतारी तोहें गदहा घोडा से चुदवाय के पैदा की होंगी, लेकिन अब तो लग रहा है दसों ठग से चुदवायी होंगी, जो हमके ठग के हाँ करवाई लिया, लेकिन हमरी ओर से हाँ पर एक शर्त मेरी भी है,..."



" हाँ आपकी जो भी शर्त होगी, एडवांस में मंजूर, " उस ख़ुशी में तो मैं कुछ भी कबूल कर लेता,

" सोच लो, फिर पीछे न हटना " चिढ़ाते हुए बोलीं और अब गुड्डी से बोलीं " तू गवाह रहेगी, देख तेरे सामने ये हाँ बोल रहे हैं "

गुड्डी भी मेरे जैसे ही खुश थी, हसंते बोली , " एकदम मम्मी, ...अब कुछ बोल दीजिये काम इनको "

" अरे बोलना क्या, जो ये बोले थे वही, अब मैं जो भी कहूँगी, जहाँ कहूँगी, जब कहूँगी, जिसके बारे में कहूँगी, बिना सोचे समझे तुम हाँ करोगे, वही करोगे, एक मिनट भी इन्तजार नहीं करोगे "


मैं सोचने की हालत में था क्या, मैं झट से हाँ बोला, बल्कि तीन बार हाँ बोल दिया और अब माँ बेटी दोनों जोर जोर से हंसने लगीं और मम्मी मुझे रगड़ते बोलीं

" चल स्साले, तूने हाँ बोल दिया है न तो बस गुड्डी गवाह है तो गुड्डी के सामने ही,... तुझे तेरी माँ बहन पे चढ़ाउंगी "




और उस के बाद उन की और गुड्डी की हंसी, और गुड्डी की आँखों की वो चमक जिसके लिए मैं कुछ भी कर देता, और बोली गुड्डी ही

" अरे मम्मी ये तो अपने इनके मन की बात कह दी, यही तो ये चाहते हैं, और अपनी बहन को साथ ले के आएंगे बनारस, बल्कि दूबे भाभी ने ये काम मुझे सौंपा है तो बस वो तो आएगी ही और आप लोग भी आ जाएँगी तो बस रंगपंचमी के पहले पहले, …और सिर्फ मेरे सामने क्यों हम सबके सामने, अब तो इन्होने हां भी कह दिया है , मैं गवाह भी हूँ "



मेरी शायद और रगड़ाई होती लेकिन दो तीन बाते एक साथ हो गयीं, एक तो मम्मी को किसी ने बुला लिया , यहाँ गुड्डी को चंदा भाभी ने बुला लिया तो बस मम्मी वापस मुड़ गयीं,

लेकिन मैंने बिना कुछ सोचे, ये देख के की वो गयीं, गुड्डी को खींच के एक किसी, पर फिर, होंठ एक इंच दूर रहे होंगे की मम्मी फिर



पक्का देखा होगा उन्होंने, लेकिन मुस्करा के मुझसे बोलीं,

" मेरी हाँ है, एकदम अच्छी वाली, पक्की वाली, हाँ ,और हाँ जिस दिन तुम लोग लौटने वाले होंगे न उसी दिन का हम लोगो का भी कानपुर से लौटने का रिजर्वेशन करवा देना, "

और वो वापस मुड़ गयी, " एकदम मम्मी बोलने के साथ पहला काम मैंने किया की फोन काटा ही नहीं बंद भी कर दिया,

लेकिन जब तक मुड़ता, गुड्डी बाहर बरामदे में चंदा भाभी के साथ तो मैं भी पतंग की डोर की तरह , वहीँ
 
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गुंजा - रंग



चंदा भाभी ने विदाई के लिए थाली तैयार कर रखी थी, दही गुड़, अक्षत, रोरी, और मुझे और गुड्डी को उन्होंने चिपका के खड़ा किया, और चिढ़ाते बोलीं, " तुम दोनों ऐसे ही अच्छे लगते हो, साथ साथ, जोड़े में "



मैंने नदीदों की तरह गुड्डी की ओर देखा और वो शर्मा गयी, तबतक भाभी ने दही गुड़ लेकर पहले गुड्डी के होंठों में लगाया, मुझे देखते हुए बड़ा थोड़ा सा गुड्डी ने मुंह में लिया और बचा खुचा, मेरे मुंह में, गुड्डी का जूठा और गुड्डी को सीख दी, " सुन, जिंदगी भर ऐसे ही जूठा खिलाना, "

और जबतक मैं कुछ समझता बची हुयी सब दही मेरे गालों पे लथेड़ दी, 'जाके अपनी बहिनिया से चटवाना, आएगी तो बनारस की रबड़ी मलाई खाने "



लेकिन फिर वो बोलीं, " अरे फागुन में आये हो, रंगपंचमी में फिर आओगे, तो बिना गुझिया खाये, और हाँ ये डब्बा बिन्नो के लिए ( मेरी भाभी, उनकी रिश्ते में ननद लगती थीं ) और उसी डिब्बे से एक गुझिया निकाल के, पहले तो गुड्डी को,



गुड्डी ने लजीली दुल्हन की तरह बस एक कोना कुतर लिया , और उसकी जूठी गुझिया चंदा भाभी ने अब मेरे मुंह में और बोलीं, पूरा मुंह खोलो एक बार में गपक लो "

अच्छी खासी डबल साइज की थी, मैंने मुंह बनाया, " नहीं भाभी इतना नहीं, बहुत बड़ी है, बस थोड़ा सा "

" अरे चुपचाप मुंह खोलो, डालना तो मुझे है, और ये जिसको ले जा रहे हो, बोलेगी नहीं बहुत बड़ा है, तो मान जाओगे तुम बिना पूरा घोटाये , मुंह खोलो"



अभी भी कई पडोसने थी, कोई भौजी कोई मौसी, एक हंसती हुयी चिढाके बोलीं, " अरे ऊपर वाले मुंह से न खा रहे हों तो नीचे वाले से खिला दो न , गुंजा की माँ "

भाभी ने धीरे से मुझे हड़काया, " कितना बड़ा उसे घोटाओगे, मुझे पता है, मेरा मुंह मत खुलवाओ, झट्ट से मुंह खोलो "

कितना बड़ा है ये तो गुंजा को भी पता था और वो भी खिसखीस हंस रही थी

और गुंजा खाली नहीं बैठी, पहले तो उसने मेरे बालों में हाथ फ़िराक़े अच्छी तरह बिगाड़ दिए फिर हड़काया, " ये बाल कैसे कर रखे हैं, हम लोगो की नाक कटायेंगे, चलिए अभी झाड़ देती हूँ ,"

उसकी बदमाशी बाद में पता चली।



मैंने मुंह खोल दिया, और भाभी ने पूरी गुझिया मेरे मुंह में और खाते मैंने ध्यान दिया, अरे ये तो एकदम खतरनाक वाली, दुहरी गोठी मतलब डबल भांग वाली, हर गुझिया में भांग की दो गोली पड़ी। पर अब तक तो पूरी गुझिया मेरे पेट में थी।

भाभी ने अक्षत रोरी पहले तो दुलराते हुए गुड्डी को लगाया, और फिर मुझे, लेकिन अपनी बदमाशी कर दी। थाली के एक कोने में सिन्दूर की डिबिया भी रखी थी, बस उसी में से ढेर सारा सिन्दूर निकाल के, उनकी बेटी ने मेरा बाल जो अभी अभी काढ़ा था, बाकयदा एक चौड़ी सी औरतों की तरह सीधी मांग निकाल दी थी और उसी में चंदा भाभी ने ढेर सारा सिन्दूर मेरी मांग में, पूरी मांग में, और भरभरा के नाक पे भी काफी गिर गया,

" अरे नाक पे सिन्दूर तो बहुत शुभ होता है, सास बहुत दुलार करेगी " एक किसी औरत ने चिढ़ाया लेकिन मैं सोच रहा था आज सास ने कितना बड़ा काम कर दिया, गुड्डी के सामने हाँ कर दी, और उस हाँ के लिए तो मैं उनकी कोई भी बात मान लेता, इतने दिनों से जो चाह रहा था सोच रहा था, वो सब कैसे पल भर में मिल गया, मैंने कनखियों से गुड्डी को देखा, और वो मुस्करा दी, लेकिन हम लोगो का यह चार आँखों का खेल पकड़ा गया, चंदा भाभी जोर से मुस्करायीं, और गुंजा कौन कम शातिर थी और गुड्डी की राजदार, वो तो खुल के मुस्करा रही थी।

पर इसी बीच भाभी ने अपनी बड़ी सी टिकुली माथे से निकाल के मुझे चिपका दी और मैं हटाने को सोचता भी उसके पहले गुड्डी की डांट पड़ गयी,

" हे हटाने की तो सोचना भी मत, ऐसे आजमगढ़, अपने घर तक चलना , ….सुहाग की निशानी है "

और चंदा भाभी मुझे आशीष भी रही थीं " सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ, पूतो फलो " फिर मुझे उन्होंने गले लगा लिया और उनकी बदमाशी गुंजा और गुड्डी दोनों देख रही थीं, अपने बड़े बड़े जोबन खुल के, कस के मेरे सीने में रगड़रही थीं और एक हाथ से पैंट के ऊपर से मेरे बल्ज को सहलाते, फिर कस के दबोचते रगड़ते, मेरे कान में हलके से बोलीं

" नाक मत कटवाना मेरी, कल इतनी मेहनत से तुम्हे सब सिखाया, कम से कम तीन बार, और मलाई हर बार एकदम अंदर, खून खच्चर से मत घबड़ाना, सब लड़कियों के होता है। और इसके चीखने चिल्लाने से भी, पहली बार ही पूरा अंदर तक पेलना, और एक बार कम से कम निहुरा के, ….और अगर तीन बार से कम हुआ न आज रात तो,… जब लौटोगे तो तेरी गांड इसी छत पे गुड्डी के सामने ही मारूंगी "

लेकिन गुड्डी से बहुत प्यार दुलार, वात्सल्य, से मिलीं, दोनों एक दूसरे को कस के पकडे रही बिना कुछ बोले, बहुत देर तक। फिर छोड़ते हुए गुड्डी को आशीषा,

" अगली बार जब तोहें बिदा करुँगी, तो गाँठ जोड़ के, बिदा करुँगी "

बेटी की बिदाई का दुःख सुख सब उनकी आवाज में था, लेकिन एक गुड्डी की कोई भाभी लगती होंगी, उन्होंने पीछे से छेड़ा

" एकदम, और तीन महीने बाद आना तो पेट फुला के "

हम दोनों, मैं और गुड्डी नीचे, सीढ़ी पे जो मैंने हाथ पकड़ा तो कार में घुसने तक नहीं छोड़ा।



महक की कार थी, सफ़ेद अम्बेसडर, जिस से हम लोग कोतवाली से महक के माल आये थे, मैंने मना किया था की हम लोग चले जाएंगे, लेकिन महक के अंकल गुस्सा हो गए, " एक तो अंकल बोलते हो ऊपर से इतनी फ़रमालिटी करते हो, ड्राइवर छोड़ के आ जाएगा, और माहौल ऐसा है, फिर कब बस मिले "

और गुड्डी भी उनकी ओर हो गयी तो फिर यह गाडी, हम लोगो का समान होटल से पिक कर के गुड्डी के घर आ गयी थी,

लेकिन गुड्डी का टोन कार में बैठते ही चेंज हो गया, सब लाज शर्म, झिझक गायब और व्ही हक़, अथॉरिटी, हुकुम चलाने वाली, बोली, " मैंने सामान चेक कर लिया था लेकिन तुम भी एक बार सब देख लो "



आधे से ज्यादा सामान तो जो चंदा भाभी ने दिया था, खाने पीने का, और अभी फिर एक किलो वो पेसल गुझिया और सवा सेर मिठाई, ' ले जाओ बिन्नो को बहुत पसंद है '



सब सामान थे।

फिर मैं गाडी का दरवाजा खोल के गुड्डी के बगल में बैठा ही था, की गुड्डी कार के बाहर देख रही थी। फिर से बोल पड़ी, हे चंदा भाभी कुछ कहना चाहती हैं शायद, एक मिनट देख लो न, जाओ और खुद कार का दरवाजा खोल दिया,



सच में चंदा भाभी इशारे से बुला रही थीं। और वो अकेले नहीं थीं, उनके बगल में गुंजा और पड़ोस की दो चार औरतें, लड़कियां , आठ दस लोग, छज्जा पूरा भरा था,

" भैया जरा और नजदीक, हाँ, यहाँ "



और गुंजा भी बोल रही थी " हाँ बस थोड़ा सा और, हाँ एकदम छज्जे के नीचे "

मुझे लगा वहां से बात ठीक से सुनाई देगी या कुछ देने वाली होंगी, कोई मेरी चीज रह गयी होगी उसी के लिए, भाभी मुड़ी और,



भरभराकर, और लड़कियों औरतों की जोर जोर की हो हो,



एक पूरी बाल्टी भर के खूब गाढ़ा लाल रंग, और सब का सब, मेरे ऊपर, बाल, चेहरा और मेरी सफ़ेद शर्ट, एकदम लाल, रंग मेरी पूरी देह से छु रहा था, अच्छी तरह से सराबोर, भाभी का निशाना वैसे भी पक्का और मैं भी खड़ा एकम उनके निशाने पर था,

जबतक मैं समझता सोचता, एक और खनकती आवाज आयी, गुंजा के बगल में ही एक लड़की खड़ी थी, गुंजा की मोहल्ले की सहेली , खूब भरी देह वाली, बोल रही थी

" आपकी साली भी कुछ कहना चाहती थीं " और मैंने देखा चंदा भाभी गुंजा की कुछ उकसा रही थी, मेरे समझ में नहीं आया और जब तक समझ में आया,

गुंजा और उसकी सहेली ने मिल के एक बाल्टी उठा के,

मेरे हटते हटते दो तिहाई बाल्टी का रंग, और ये लाल नहीं था, गाढ़ा नीला, बैगनी मिला



और अब सफेद शर्ट पे लाल के साथ, नीला, बैगनी, और ऊपर से आवाज आयी चंदा भाभी और बाकी औरतों की

" अरे मायके जा रहे हो, तो ससुराल की कुछ निशानी होनी चाहिए न, ऐसे सूखे सूखे चले जाते तो पूरे मोहल्ले की बेइज्जती "



मैं कार की ओर मुड़ा और मैं यही सोच रहा था की कार में ऐसे गीले रंगा सियार बने कैसे बैठूंगा, कार की सीट वीट सब खराब हो जायेगी,



लेकिन ड्राइवर बनारस वाला, वो भी बाहर खड़ा मेरी हालत का मजा ले रहा था, मुस्करा रहा था, बोला," अरे ठीक तो कह रही है , फागुन में कोई ऐसे सूखे सूखे चला जाय तो, लगेगा नहीं की फागुन लगा है, लीजिये पोछ लीजिये, " और एक बड़ी सी तौलिया, मुझे दे दी



मैं गीला रंग पोछ रहा था की कार के अंदर से गुड्डी बोली, " अरे सर पे भी "



मैडम जी कार के अंदर से बैठ के सब तमाशा देख रही थीं, मजे भी ले रही थीं।

और जब मैंने कार के शीशे पे देखा तो मेरा चेहरा, सिर्फ लाल, नीला ही नहीं, काही, पीला हरा और सब रंग सर से बह कर आ रहा था।



मैंने मुड़ के गुड्डी के घर के छज्जे की ओर देखा, सब लोग चले गए थे लेकिन गुंजा अभी भी खड़ी खिलखिला रही थी, और सर हिला के भोला चेहरा बना के कबूल किया उसने ये बदमाशी उसी की है।



अब मुझे समझ में आया, बाल वो ठीक नहीं कर रही थी, आठ दस पुड़िया पक्के रंग के, उसने मेरे बालों में डाल दिए थे और काफी कुछ गले और पीठ में भी और जब रंगो की दो बाल्टियां पड़ी, तो वो सब घुल के मेरे चेहरे पे, पीठ पे

गाडी स्टार्ट हो गयी थी और आगे से ड्राइवर साहेब , ठेठ बनारसी, बोले, " अरे ई बनारस हो , यहाँ फागुन कभी ख़तम नहीं होता। भोलेशंकर मसान में होली खेलते हैं, और जेठ में भी कउनो नन्दोई, बहनोई, देवर आय जाय तो होली हो जाती है। लेकिन इनकर, "



" बात अधूरी उसने छोड़ दी थी लेकिन यह सवाल गुड्डी के लिए था क्योंकि गुड्डी की महक की बड़ी बहन के साथ दोस्ती थी तो पहले भी कई बार, उसकी गाडी में, सवाल साफ़ था, मेरी ससुराल किस तरह है ? "

" बहिनायुर, आये थे अपनी बहिन के लिए लड़का खोजे, मिल गया है, अब पूरे बनारस क सार लगेंगे " गुड्डी जवाब देती बोली।



लेकिन मैं उन लोगो की न बात सुन रहा था न देख रहा था, बस मैं छज्जे पर खड़ी लड़की को देख रहा था, जिसने आज सुबह सुबह ब्रेड रोल में मिर्चे भर के खिलाये, जम के होली खेली, लेकिन उसके बाद मौत एक बार नहीं कई बार बस उसे छूती हुयी निकल गयी, और अभी वो छज्जे पे खड़ी है,

जबतक गाडी मुड़ी नहीं, मैं गुंजा को देखता रहा, गली के मोड़ तक,

कुछ अजीब लगा, लेकिन मेरी निगाह गुंजा पर लगी थी, वो भी हाथ हिला रही थी, मैं भी,


" भैया पहले लक्सा की ओर ले लीजियेगा " गुड्डी बोली और कार मुड़ गयी।
 
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कत्थई सूट वाला



ध्यान तो मेरा उस दर्जा नौ वाली पे लगा था, जो एकटक मुझे छज्जे से देख रही थी, और उसी बिच गुड्डी ने लक्सा चलने की बात कही तो मुझे कुछ समझ में नहीं आया। हम लोगों के रास्ते में तो पड़ता नहीं, फिर वैसे ही इतनी देर हो गयी है, भाभी इन्तजार कर रही होंगी, मैं वही गलती ार बैठा जो बार बार करता हूँ,

गुड्डी से सवाल पूछने की गलती और उसी तरह का जवाब भी मिला,मैंने पूछ दिया, " लक्सा क्यों "

" तेरी उस एलवल वाली के लिए ग्राहक ढूढ़ने, " पट से गुड्डी का जवाब उसी तरह का मिला, लेकिन मेरी वो हरकत जो मुझे भी नहीं पता चलती थी, वो भी उसे दिख जाती थी। चिढ़ाते हुए वो बोली,

" बड़े रंगबिरंगे लग रहे हो, "

" अरे यार सुबह से ये तीसरी शर्ट है जो इस तरह, और अब क्या ऐसे ही घर जाऊँगा, तो भाभी कितना मजाक बनाएंगी"

जान बूझ के अनजान बनती हुयी वो शोख अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचाते मेरे कंधे पर सर रख के बोली,

" तीन शर्ट कैसे "

" एक तो मैडम जी कल आप ने उतरवा दी थी " मैंने पूरा सीक्वेंस समझाया लेकिन वो तेल पानी ले के चढ़ गयी,

" हे तुझे अपनी चंदा भाभी के सामने स्ट्रिप टीज करनी थी, उन्हें अपनी सारी की सारी मसल्स दिखानी थी, उनके कहने पे उतारी मैंने तो सिर्फ तेरी चड्ढी उतारी थी, तो चलो उतर गयी तो क्या हुआ, इतनी अच्छी सफ़ेद शर्ट पहन के सोते तो सिकुड़ जाती "

" और उस पर जो तुम लोगो ने जो मेरी बहन की रेट लिस्ट लिख दी थी, मोबाइल नंबर अलग से " मैंने अपना दुखड़ा रोया।



कल रात को चंदा भाभी ने सोने के लिए मुझे अपनी साड़ी दी थी की लुंगी की तरह पहन लूँ, और शर्ट पेंट मैंने गुड्डी को पकड़ा दिया था की रख देगी, लेकिन गुड्डी और चंदा भाभी की जोड़ी बनियाइन और चड्ढी गुड्डी ने खुद उतार ली, शर्ट अगले दिन होली के बाद वापस मिली तो गुड्डी, मेरी ममेरी बहन का नाम, फोन नंबर और एक रेट लिस्ट सब उस पर पक्के मार्कर पेन से लिखी थी, और रीत का भी नंबर, वही पहन के मुझे शॉपिंग करनी पड़ी, रेस्ट हाउस पहुँच के मैंने वो शर्ट चेंज कर के दूसरी पहनी, लेकिन चुम्मन का जो चाक़ू मेरे हाथ में लगा तो खून अच्छा ख़ासा उस शर्ट पे लग गया, और महक के माल में, महक ने एक दूसरी सफ़ेद शर्ट इम्पोर्टेड ब्रांड वाली दिलवा दी, लेकिन वो मेरी खून लगी शर्ट जब्त कर ली की वो पहनेगी। और ये तीसरी शर्ट, अब लाल, नीली, बैगनी रंग।



गुड्डी मुस्कराती रही, फिर मेरे गाल पे हलके से चिकोटी काट के बोली " यार बड़े अच्छे लग रहे हो, मत बदलना, नहीं तो सुबह वाली पहन लेना। जानते हो ४४ बुकिंग आ चुकी है उसकी, तेरा कमीशन भी देखो जोड़ के बताती हूँ, १२८ रूपये ४८ पैसे, कितना फायदा, हम तुम चाट कहेंगे उस को भी खिलाएंगे।

लेकिन कब गुड्डी गुस्सा हो जाए, और अगले पल गुस्से वाले मोड में,

" अबे पूरे बनारस में अपनी बहन का पोस्टर पीछे लगा के टहले, गोदौलिया, नयी सड़क, सिगरा, अंधरा पुल तो तोहरे शहर में कौन सुर्खाब के पर लगे हैं, अब तो तुझे वही शर्ट पहना के तेरी उसी बहिनिया के साथ टहलाऊंगी " लेकिन फिर बोलते बोलते वो कन्फेशन के मोड में आ गयी

" और तू मुझे बोल रहा है, आइडिया तेरी उसी साली का, गुंजा का था, रात में जब मैंने उसे शर्ट दिखाई तो पहले हम लोगों ने प्लान किया रंगने का, फिर वही बोली, नहीं उन की बहन की रेट लिस्ट लगा देते हैं, और रेट उस रीत ने फिक्स किया जिसे तुम चुपके से टमाटर चाट खिलाने ले गए थे और लिखा भी उसी ने, मैंने तो खाली मोबाइल नंबर उसका बताया था। "

तबतक लक्सा आ गया, वो पान की दूकान दिखी जहाँ से कल मैंने दो जोड़ा पेसल पान ख़रीदा था, और गुड्डी ने जिंदगी में पहली बार मुझे पाएं खिलाया, अपने होंठों से मेरे होंठों तक, लेकिन उस होंठो की छुअन के लिए तो मैं कुछ भी कर सकता था।



" पान तो लेकिन " मैंने माना की अब मैं समझ गया हूँ।

" यार तुम समझते तो हो, लेकिन थोड़ा देर से," मुस्करा के वो बोली, :और मुझे छेड़ते हुए जोड़ा, " तेरी जगह कोई भी होता, तो जो आज करने के लिए लिबरा रहे हो ढाई साल पहले कर देता, खुद भी इन्तजार किया, मुझे भी इन्तजार करवाया लेकिन मेरी किस्मत में ही ऐसा बुद्धि मिला था और तुम भी ऊपर से लिखवा के लाये थे "



और फिर अपने झोला छाप पर्स से मेरा पर्स निकाला, कुछ तुड़े मुड़े नोट और मुझसे बोली, " जाओ, जल्दी चार जोड़ी ले लेना और बताने की जरूरत नहीं है कौन वाला "



मैं पूछते पूछते रह गया, बाकी दो जोड़ी किसके लिए, बस पैसा पकड़ा, और बाहर,



खूब भीड़ थी , न सिर्फ पान की दूकान पे बल्कि हर जगह, एक जोगीड़ा चल रहा था, होली के एकदम खुले वाले गाने, और मुझे समझ में आ गया गुड्डी की चालाकी,। दो जोड़ी भाभी के लिए



भाभी -भैया ऊपर रहते थे, शुरू से, और खाना आठ साढ़े आठ पे हो जाता था, नौ बजे भाभी ऊपर, और सुबह कभी सात कभी कभी आठ



और पांच मिनट भी जाने में देर हुयी तो ऊपर से पैगाम आने लगते थे, और पेसल पान का असर कल मैं अपने और चंदा भाभी पे देख चूका था , एक मिनट चक्की बंद नहीं हुयी, रात में एक पल भी नहीं सोये। और फिर भाभी पक्का कल सुबह दस से पहले नीचे नहीं आएँगी, मतलब हम दोनों को भी रात भर आराम से टाइम मिलेगा, गपागप, गपागप और अब मैं अनाड़ी भी नहीं था, कल रात चंदा भाभी और आज दिन में संध्या भाभी,



पान वाले मुझे पहचान गए बोले आप तो कल भी आये थे न, पेसल ले गए थे आज डबल पेसल है चाहिए ट्राई करके देखिये दूना मजा देगा



" चार जोड़ी " मैंने जल्दी से बोला लेकिन पान वाला बतियाने के मूड में था। लगाते बोला, " भैया आज तो पक्का था दंगा होना है, दिन भर मनाते बीता की किसी तरह टल जाए, दंगे में किसकी दूकान फूंके क्या पता, फिर आग कहीं लगी कहाँ पहुँच गयी, क्या मालुम लेकिन ये नए कप्तान ने क्या छड़ी घुमाई तो इसलिए आज डबल पेसल और दो जोड़ी के साथ दो जोड़ी फ्री " पान बांधते हुए वो बोला।



और मैंने देखा सबकी निगाहें मेरी ओर, पान की दूकान के शीशे में देख के पता चला, मैं होली का रंगीन पोस्टर लग रहा था, सफेद शर्ट तो सतरंगी हो ही गयी थी, गुंजा की बदमाशी का असर, मेरे बाल, चेहरे पे इतने रंग लगे थे की गिन नहीं सकते।

पर कार में बैठते मैंने कुछ और देखा और मुझे खटका बल्कि कस के खटका। वो कत्थई सूट वाला आदमी,



बुलेट मोटरसाइकिल पर बैठा, हैलमेट ऐसा जिससे पूरा चेहरा ढक जाए, और हाथों में लेदर के दस्ताने,



क्यों खटक रहा था, मुझे कुछ मसझ में नहीं आया, हाँ जरा सा लगा की शायद जब मैं घर से निकलते समय गुंजा को देखने में मशगूल था, उसी समय, शायद पेरिफेरल विजन में गली के मोड़ पर इसे देखा था, बाइक पर ही और चेहरा ऐसे ही हेलमेट में, लेकिन वो शायद भ्रम भी हो सकता है। और मैंने पान गुड्डी को पकड़ा दिया और बाकी बचे पैसे भी,

वो मुस्करा के बोली, ' अब समझ गए, चार जोड़ी क्यों मंगाए थे "।



सर हिला के मैंने मुस्करा के हामी भरी, बिना बोले की भाभी को कल सुबह देर तक ऊपर रखने के लिए।

एक बार मैंने भाभी को छेड़ा था, भाभी क्यों ठीक नौ बजे आप रात में ऊपर चली जाती हैं "

पहले तो वो शर्मायी, फिर कस के मेरे पिछवाड़े चिकोटी काट के बोलीं, " जब मेरी देवरानी आएगी न तो पूछूँगी, उसे तो तुम आठ बजे ही बुला लोगे "



गुड्डी की प्लानिंग, असल में प्लानिंग तो सब वही करती थी, मेरा तो सिर्फ मन करता था, और उसके आगे कुछ भी मेरे बस का नहीं था। लेकिन मेरे मन की बात मुझसे पहले उसे मालूम हो जाती थी, किसी को दिल देने का फायदा यही है, दिल तो उसी के पास है। दिल में जो होगा उसे पता चल जाएगा। सच में गुड्डी को दिल देने के फायदे ही फायदे थे, बस किसी तरह जुगाड़ कर के ये लड़की हरदम के लिए आ जाए तो जिंदगी कितनी आसान हो जाए, मेरी सब जिम्मेदारी उसके ऊपर और मैं सिर्फ मजे करूँगा,



मेरा कितने दिन से मन कर रहा था, लेकिन इस बार भी प्लानिंग सब उसी की,



पहले मेरी भाभी से बोली की उसकी लम्बी छुट्टी है, होली में तो वो बनारस से आजमगढ़ आएगी और, मैं अगर आऊं तो उसे लेता आऊं, रास्ता तो बनारस से ही है, और भाभी ने मुझे ये काम पकड़ा दिया,



फिर जब गुड्डी की मम्मी का प्रोग्राम होली में कानपुर जाने का अचानक बना तो, वो ये कह के सटक ली, की मुझसे पहले से बोल दिया है तो मुझे कितना खराब लगेगा और मैं रस्ते में होऊंगा, और क्या पता भाभी भी बुरा मान जाएँ .

तो लाख बाधाएं आयीं लेकिन ये लड़की, जुगाड़ लगा के मेरे साथ, और यही नहीं, जैसे ही ट्रेन उसके मम्मी, पापा, छोटी बहनों को लेके रवाना हुयी, जो मैं चाहता था, बल्कि उससे भी ज्यादा, दुप्पटा जो उभारो को ढके छुपाये था, एकदम से उसके गले पे चिपक गया, दोनों पहाड़ियां खुल के सामने और शोख मेरी आँखों में आँखे डाल के बोली, " ठीक, अब खुश "



और मुझे घसीटती हुयी दवा के दूकान में, फिर आई पिल, माला डी, यानी बर्थ कंट्रोल का पूरा इंतजाम, मतलब मुझे चिंता करने की जरुरत नहीं है और न डरने की , यहाँ तक की वैसलीन की बड़ी शीशी भी,



और मैं क्या सोच रहा था उसे मालूम भी पड़ गया, और मुझे प्यार वाली झिड़की पड़ गयी,

" बदमाश, बुद्धू, ज्यादा प्लानिंग नहीं करनी चाहिए "

वैसे ये गुण तो सभी लड़कियों में होता है लेकिन गुड्डी में कुछ ज्यादा ही था, एक साथ कई काम करने का, ड्राइवर को रास्ता बता रही थी, एक से एक गलियां, बनारस के रस्ते, रीत के बाद अगर किसी को मालूम होगा तो वो गुड्डी ही थी, आँखों से मुझे दुलारा रही थी और उस की दुष्ट उंगलिया मेरी जाँघों पे, बस जंगबहादुर के आस पास, और जंगबहादुर पागल हो रहे थे। जंग में तो अभी बहुत टाइम था।



लेकिन तभी मैं चीखा, ' द्राइवर साहेब रुकिए, अरे यहाँ नहीं बस थोड़ा और और आगे,

हाँ, बायीं ओर,"



गुड्डी जोर से मुस्करायी, " अरे पांडेपुर क गुलाबजामुन, याद है मुझे भी, ड्राइवर साहेब, वो जो पुरनकी दुकनिया है बस वहीँ, अब असली स्वाद तो सिर्फ वहीँ है "



उस चौराहे से एक सड़क प्रेमचंद जी के गाँव लमही की ओर मुड़ती थी, और एक सारनाथ की ओर, बनारस से आने वाली सड़क सीधे मेरे घर की ओर जाती थी,

फिर वही तुड़े मुड़े नोट, दो बार गिन के, जिससे गलती से भी मुझे ज्यादा पैसा न मिले और बचा हुआ सब उसके झोले वाले पर्स में, और मैं गुलाब जामुन वाली दूकान पे, मन तो कर रहा था एक खा भी लूँ एक उन शोख होंठो के लिए, लेकिन कार के अंदर से उसने आँख तरेरी,

पर शायद पहली बार गुड्डी की आंख का असर नहीं हुआ, क्योंकि मैं हम लोगों की कार के पीछे देख रहा था,



एक बुलेट मोटरसाइकिल रुकी, बगल की गुलबाजामुन की दूकान पर, लेकिन वो उतरा नहीं और इतना काफी था, शक के लिए वही लेदर का दस्ताना, पूरे चेहरे को ढका हेलमेट और कत्थई सूट,

एकदम वही, जो लक्सा में पान की दूकान पे था, मैंने मोटरसाइकिल के नंबर प्लेट को देखा, हल्का सा कीचड़ लगा था, लेकिन कीचड़ बाइक के टायर में भी लगा था तो हो सकता है कीचड़ रास्ते में हो,

तबतक दुकानदार, और गुड्डी एक साथ बोले, " अरे भैया ले लीजिये, और गहकी इन्तजार कर रहे हैं " और गुड्डी भी गरजी" चलना नहीं है क्या "



और मैं गुलाब जामुन लेकर कार में, कनखियों से पीछे देख रहा था, हमारी कार चल दी, पर वो बाइक वैसे ही खड़ी थी, और अब वो एक कुल्हड़ में गुलाब जामुन ले रहा था,

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, हलके हलके सर दर्द भी हो रहा था, कल रात भर चंदा भाभी के साथ जगा, आज भी दिन भर हंगामा, और गुड्डी ने खींच के मुझे अपनी गोद में मेरा सर रख लिया, और अपनी उँगलियों से मेरे सर को सहलाने लगी। गुड्डी सर भी अच्छा दबाती थी, न वो बोल रही थी, न मैं बस लग रहा था कोई जादूगरनी हो जो अपनी उँगलियों से सारे दर्द को खींच के अपने में समा रही हो, कब सो गया पता नहीं चला



बहुत बाद में मैं समझ पाया, ये गुन सब औरतों में होता है, हम नहीं समझ पाते, बेटा हो, पति हो, कानो में पिघला शीशा, आँखों के आगे वो सब जो वो कभी न देखना चाहे, लेकिन मुस्कराते हुए, गुनगुनाते हुए, पी जाती है,



उठा तब जब कान में समोसा खाना है की आवाज आयी, कार लगता है गोमती का पुल पार कर र
ही थी, और मैं उठ बैठा
 
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komaalrani

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समोसे, चंदवक और कत्थई सूट वाला


समोसे,

उस का नाम ले तो मैं कैसी भी नींद में होऊं, जग जाऊँगा, और ऊपर से चंदवक की समोसे की दूकान, गजब की है, गोमती पार करने के बाद छोटा सा क़स्बा, दो जिलों के बीच तीसरा जिला, लेकिन असली बात है समोसे की। हर बस कार वहां जरूर रूकती है, ताजे ताजे कड़ाही ने निकलते समोसे, गरम भी, मसाला भी जबरदस्त और साइज भी एकदम परफेक्ट, कार रुकने के पहले ही मैं दरवाजा खोल के बाहर,



लेकिन कड़ाही से निकलते समोसे की जगह मेरी निगाह पड़ी,

कथई सूट वाले पर,



बुलेट मोटरसाइकल थोड़ी दूर खड़ी थी, लेकिन वहां एक नहीं चार पांच बुलेट थी और वो एक दूकान से समोसे खरीद रहा था,



मैंने उसके चेहरे को देखने की कोशिश की, लेकिन उसका हेलमेट का शटर फिर से डाउन हो गया, पान की दूकान के शीशे से भी, पर

तबतक जिस दूकान से मुझे समोसे खरीदने थे, वो कड़ाही से निकाल रहा था और उस समय न पहुंचने पर वो बाद में बासी ठन्डे पकड़ा देता

समोसे लेकर जैसे मैं गुड्डी के पास पहुंचा, उसने तुरंत पूछ लिया, ' चटनी लाये ? "

जैसे टीटीई दूर से बिना टिकट वाले को पहचान लेता है उसी तरह गुड्डी भी मेरी कोई भी गलती, झट्ट से पकड़ लेती थी और मैं उलटे पैर समोसे वाले की दूकान पे

उस स्साले कत्थई सूट वाले के चक्कर में मैं चटनी भूल गया, बिना चटनी के समोसा ऐसा लगता है , जैसे बिना चुम्मा चाटी के चढाई,



मेरा कोटा दो समोसे का है, मिनिमम, लेकिन मैंने पांच लिया और ड्राइवर साहेब के लिए अलग, लेकिन जब लड़की पटाना हो तो,

वैसे तो मेरे हिस्से में ढाई आते लेकिन मैंने सब गुड्डी को ऑफर किया और उसने कृपा कर के, एक मुझे और बाकी सब ले के बैठ गयी

चौथे पर जब उसने नंबर लगाया तो मुझे नहीं रहा गया, मैं नदीदो की तरह उधर ही देख रहा था,

' हे नजर मत लगा, लालची कहीं के, " और अपने मुंह से खाया, अधखाया, आधा समोसा, मेरे मुंह में



और ठसके से मेरी गोद में सर रख के लेट गयी, एक बदमाश लट उसके गालों पे, मेरे होठों के हक का हिस्स्सा मार रही थी।



मैंने वो लट मारे जलन के हटा दी, लेकिन मेरे मन से कत्थई सूट वाला नहीं हट रहा था,

अब यह पक्का था की वो हम लोगों का पीछा कर रहा है, लेकिन कई बातें थी, पीछा कौन करवा रहा और ये पीछा क्यों कर रहा है ?



लेकिन एक बात सोच के मेरे मन में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी की रीत पे उन लोगो को कोई शक नहीं और जो भी शक है वो मेरे ऊपर है, और इसका फ़ायदा होगा, रीत कार्लोस के साथ मिल के जेड का पता लगाने के अपने महिम में बिना किसी बाधा के काम करेगी।



लेकिन ये भी पक्का है ये पीछा करवाने का काम जेड का नहीं है, उसे मेरे बारे में में कुछ पता नहीं होगा, ये कोई और स्लीपर होगा या सीधे 'कंट्रोलर' जो कहीं दूर बैठा है और जेड को कंट्रोल कर रहा है उसकी सोच होगी, लेकिन एक बात और मेरे दिमाग में कौंध रही थी। ये आदमी कत्थई सूट क्यों पहनता है ? और मुझे लगा शायद ये एक नहीं कई लोग हों, एक जैसे वेशभूषा में, बुलेट भी नार्मल बाइक है, जैसे हो सकता है चंदवक में कोई आदमी पहले से हो , और इस तरह तीन चार हों, जिससे अगर पुलिस इन्हे पकडे भी तो कुछ पता न चले, लेदर दस्ताने तो साफ़ साफ़ इसलिए हैं की कही भी उसके फिंगर प्रिंट न आये



मैं रीत को फोन करने वाला था, लेकिन रुक गया। एक और बात हो सकती है, कथ्थई सूट सबसे अलग लगेगा, तो असली पीछा करने वाला किसी वान में पीछे हो और वो सिर्फ इस बाइक के पीछे हो, और वो दूर से सिर्फ इस सूट वाले को देखे और उस वान में मोबाइल की कल पकड़ने की मशीन हो तो वो मेरी कॉल्स ट्रेस कर सकता है।

मामला काफी उलझा लग रहा था, और मैं उसे एक किनारे कर के गुड्डी के चेहरे की ओर देखने लगा,



सोते हुए कितनी भोली लग रही थी, मन कर रहा था चूम लूँ पर हिम्मत नहीं पड़ी, हाँ मेरी गुस्ताख़ उँगलियाँ, किसी उत्सुक पर्वतरोही की तरह, बस जहाँ से पहाड़ शुरू हो रहे थे बस वहीँ चक्कर काटने लगे, जैसे जवान होती नयी नयी लौंडिया के घर के आस पास लड़के चक्क्र काटने लगते हैं,



लेकिन गुड्डी, सोते हुए भी, गहरी नीद में उसे मलूम पड़ा जाता था की मेरे मन में क्या है और मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है, बस उसने खींच केमेरा हाथ अपने उभार पे और हल्के से दबा भी दिया,

उँगलियाँ बस छू रही थीं, सहला रही थीं और सोच रही थीं की ये लड़की अगर हरदम के लिए मिल जाए,



लेकिन फिर ध्यान उसी कत्थई सूट वाले की ओर,

अब ये साफ़ था की रीत के ऑपरेशन के बारे में किसी को शक नहीं था , कई बार मुझे लग रहा था की रीत को बनारस में अकेले छोड़ के मैंने गलत तो नहीं किया ,लेकिन मुझे लगा, की वो काम रीत के अलावा कोई कर नहीं सकता था, दूसरे रीत के साथ कार्लोस, फेलू दा और डीबी हैं, और सबसे बड़ी बात रीत खुद चाहती थी, पीछे पड़ के इस बम वाले मामले को सुलझाना



और इस पूरे मामले के पांच पहलू है, ग्राउंड आपरेशन तो रीत लीड कर रही है लेकिन कोई भी बड़ी कांस्पिरेसी इसके साथ के चार चीजों के बिना पूरी नहीं होती, कम्युनिकेशन, फाइनांस, वेपनरी और मैनपावर। और तभी उन सबके धागे कहाँ से जुड़े हैं पता चल पायेगा, पांच में से दो तीन का भी अंदाजा लग जाएगा तो ग्राउंड आपरेशन में आसानी हो जायेगी और असली आदमी जिसके हाथ में धागे हैं उसका पता चल जाएगा, जेड और बनारस में क्या होने वाला है उसका पता लगने में भी हेल्प मिलेगी और ये सब काम परदे के पीछे से मुझे करना होगा, और उसमे ये कत्थई सूट वाला बाधा नहीं डाल पायेगा, बल्कि फायदा ही होगा की रीत को काम करने का टाइम मिल जाएगा,



और तब तक गुड्डी उठ गयी, मुश्किल से आधे घंटे सोई होगी, लेकिन आज रतजगा तो उसे भी करना था, थोड़ा सो ली तो अच्छा हुआ, और उठाते ही वो अंगड़ाई ली की लगा दोनों कबूतर उसके कुर्ते फाड़ के उड़ जायँगे, मन तो किया की दबोच लूँ, मन पर तो कंट्रोल हो गया पर जंगबहादुर को कौन रोकता, उन्हें तो खुद गुड्डी ने मनबढ़ कर दिया था , वो फनफनाने लगे और गुड्डी का हाथ सीधे उसी के ऊपर, दबोचते रगड़ते बोली

" कुछ लोग बहुत बेसबरे होते हैं " और हड़काते बोली, " अभी सो जाओ "

बात तो उसने मेरे जंगबहादुर से कही थी, लेकिन मैंने गुड्डी के कंधे पर सर रख दिया, कब झपकी आयी पता नहीं चला और उठा तब जब गुड्डी हड़का रही थी,



" उठो बस पांच मिनट, अरे तेरी लैला का वो गवर्मेंट गर्ल्स इंटर कालेज आनेवाला है, झट से ये शर्ट पहन ले, तेरा तो कुछ नहीं होगा मेरी नाक कटेगी, की कैसे रंग वाली शर्ट पहना के घुमा रही है "



ये लड़की सच में जादूगरनी है, पता नहीं कब उसने गाडी रुकवाई होगी, ढंढ ढांढ के वो शर्ट मेरे सामन से निकाली होगी, "



" इस रंग वाली को तो उतार दूँ " मैंने अर्जी लगाई,

" चुप्प, अरे उस मैं कहा रखूंगी, अब झट्ट से पहन लो, घर आ ही रहा है " वो बड़बड़ायी।



और मैंने चंदा भाभा और गुंजा के रंगो से नहायी शर्ट के ऊपर वो शर्ट पहन ली,



घर आ गया था, भाभी पता नहीं कब से खड़ी इन्तजार कर रही थीं।

और हाँ जब कार घर के लिए मुड़ी , तभी कनखियों से मैंने देखा, एक बाइक भी, मुड़ी।

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डांट पड़ी तो लेकिन उतनी नहीं,

कर्टसी गुड्डी। सारी डांट उसने खुद झेल ली। कम से कम 28 बहाने बनाये।
 
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Rajizexy

❣️and let ❣️
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फागुन के दिन चार भाग ४२ -घर की ओर पृष्ठ ४४० अपडेट पोस्टेड

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