कत्थई सूट वाला
ध्यान तो मेरा उस दर्जा नौ वाली पे लगा था, जो एकटक मुझे छज्जे से देख रही थी, और उसी बिच गुड्डी ने लक्सा चलने की बात कही तो मुझे कुछ समझ में नहीं आया। हम लोगों के रास्ते में तो पड़ता नहीं, फिर वैसे ही इतनी देर हो गयी है, भाभी इन्तजार कर रही होंगी, मैं वही गलती ार बैठा जो बार बार करता हूँ,
गुड्डी से सवाल पूछने की गलती और उसी तरह का जवाब भी मिला,मैंने पूछ दिया, " लक्सा क्यों "
" तेरी उस एलवल वाली के लिए ग्राहक ढूढ़ने, " पट से गुड्डी का जवाब उसी तरह का मिला, लेकिन मेरी वो हरकत जो मुझे भी नहीं पता चलती थी, वो भी उसे दिख जाती थी। चिढ़ाते हुए वो बोली,
" बड़े रंगबिरंगे लग रहे हो, "
" अरे यार सुबह से ये तीसरी शर्ट है जो इस तरह, और अब क्या ऐसे ही घर जाऊँगा, तो भाभी कितना मजाक बनाएंगी"
जान बूझ के अनजान बनती हुयी वो शोख अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचाते मेरे कंधे पर सर रख के बोली,
" तीन शर्ट कैसे "
" एक तो मैडम जी कल आप ने उतरवा दी थी " मैंने पूरा सीक्वेंस समझाया लेकिन वो तेल पानी ले के चढ़ गयी,
" हे तुझे अपनी चंदा भाभी के सामने स्ट्रिप टीज करनी थी, उन्हें अपनी सारी की सारी मसल्स दिखानी थी, उनके कहने पे उतारी मैंने तो सिर्फ तेरी चड्ढी उतारी थी, तो चलो उतर गयी तो क्या हुआ, इतनी अच्छी सफ़ेद शर्ट पहन के सोते तो सिकुड़ जाती "
" और उस पर जो तुम लोगो ने जो मेरी बहन की रेट लिस्ट लिख दी थी, मोबाइल नंबर अलग से " मैंने अपना दुखड़ा रोया।
कल रात को चंदा भाभी ने सोने के लिए मुझे अपनी साड़ी दी थी की लुंगी की तरह पहन लूँ, और शर्ट पेंट मैंने गुड्डी को पकड़ा दिया था की रख देगी, लेकिन गुड्डी और चंदा भाभी की जोड़ी बनियाइन और चड्ढी गुड्डी ने खुद उतार ली, शर्ट अगले दिन होली के बाद वापस मिली तो गुड्डी, मेरी ममेरी बहन का नाम, फोन नंबर और एक रेट लिस्ट सब उस पर पक्के मार्कर पेन से लिखी थी, और रीत का भी नंबर, वही पहन के मुझे शॉपिंग करनी पड़ी, रेस्ट हाउस पहुँच के मैंने वो शर्ट चेंज कर के दूसरी पहनी, लेकिन चुम्मन का जो चाक़ू मेरे हाथ में लगा तो खून अच्छा ख़ासा उस शर्ट पे लग गया, और महक के माल में, महक ने एक दूसरी सफ़ेद शर्ट इम्पोर्टेड ब्रांड वाली दिलवा दी, लेकिन वो मेरी खून लगी शर्ट जब्त कर ली की वो पहनेगी। और ये तीसरी शर्ट, अब लाल, नीली, बैगनी रंग।
गुड्डी मुस्कराती रही, फिर मेरे गाल पे हलके से चिकोटी काट के बोली " यार बड़े अच्छे लग रहे हो, मत बदलना, नहीं तो सुबह वाली पहन लेना। जानते हो ४४ बुकिंग आ चुकी है उसकी, तेरा कमीशन भी देखो जोड़ के बताती हूँ, १२८ रूपये ४८ पैसे, कितना फायदा, हम तुम चाट कहेंगे उस को भी खिलाएंगे।
लेकिन कब गुड्डी गुस्सा हो जाए, और अगले पल गुस्से वाले मोड में,
" अबे पूरे बनारस में अपनी बहन का पोस्टर पीछे लगा के टहले, गोदौलिया, नयी सड़क, सिगरा, अंधरा पुल तो तोहरे शहर में कौन सुर्खाब के पर लगे हैं, अब तो तुझे वही शर्ट पहना के तेरी उसी बहिनिया के साथ टहलाऊंगी " लेकिन फिर बोलते बोलते वो कन्फेशन के मोड में आ गयी
" और तू मुझे बोल रहा है, आइडिया तेरी उसी साली का, गुंजा का था, रात में जब मैंने उसे शर्ट दिखाई तो पहले हम लोगों ने प्लान किया रंगने का, फिर वही बोली, नहीं उन की बहन की रेट लिस्ट लगा देते हैं, और रेट उस रीत ने फिक्स किया जिसे तुम चुपके से टमाटर चाट खिलाने ले गए थे और लिखा भी उसी ने, मैंने तो खाली मोबाइल नंबर उसका बताया था। "
तबतक लक्सा आ गया, वो पान की दूकान दिखी जहाँ से कल मैंने दो जोड़ा पेसल पान ख़रीदा था, और गुड्डी ने जिंदगी में पहली बार मुझे पाएं खिलाया, अपने होंठों से मेरे होंठों तक, लेकिन उस होंठो की छुअन के लिए तो मैं कुछ भी कर सकता था।
" पान तो लेकिन " मैंने माना की अब मैं समझ गया हूँ।
" यार तुम समझते तो हो, लेकिन थोड़ा देर से," मुस्करा के वो बोली, :और मुझे छेड़ते हुए जोड़ा, " तेरी जगह कोई भी होता, तो जो आज करने के लिए लिबरा रहे हो ढाई साल पहले कर देता, खुद भी इन्तजार किया, मुझे भी इन्तजार करवाया लेकिन मेरी किस्मत में ही ऐसा बुद्धि मिला था और तुम भी ऊपर से लिखवा के लाये थे "
और फिर अपने झोला छाप पर्स से मेरा पर्स निकाला, कुछ तुड़े मुड़े नोट और मुझसे बोली, " जाओ, जल्दी चार जोड़ी ले लेना और बताने की जरूरत नहीं है कौन वाला "
मैं पूछते पूछते रह गया, बाकी दो जोड़ी किसके लिए, बस पैसा पकड़ा, और बाहर,
खूब भीड़ थी , न सिर्फ पान की दूकान पे बल्कि हर जगह, एक जोगीड़ा चल रहा था, होली के एकदम खुले वाले गाने, और मुझे समझ में आ गया गुड्डी की चालाकी,। दो जोड़ी भाभी के लिए
भाभी -भैया ऊपर रहते थे, शुरू से, और खाना आठ साढ़े आठ पे हो जाता था, नौ बजे भाभी ऊपर, और सुबह कभी सात कभी कभी आठ
और पांच मिनट भी जाने में देर हुयी तो ऊपर से पैगाम आने लगते थे, और पेसल पान का असर कल मैं अपने और चंदा भाभी पे देख चूका था , एक मिनट चक्की बंद नहीं हुयी, रात में एक पल भी नहीं सोये। और फिर भाभी पक्का कल सुबह दस से पहले नीचे नहीं आएँगी, मतलब हम दोनों को भी रात भर आराम से टाइम मिलेगा, गपागप, गपागप और अब मैं अनाड़ी भी नहीं था, कल रात चंदा भाभी और आज दिन में संध्या भाभी,
पान वाले मुझे पहचान गए बोले आप तो कल भी आये थे न, पेसल ले गए थे आज डबल पेसल है चाहिए ट्राई करके देखिये दूना मजा देगा
" चार जोड़ी " मैंने जल्दी से बोला लेकिन पान वाला बतियाने के मूड में था। लगाते बोला, " भैया आज तो पक्का था दंगा होना है, दिन भर मनाते बीता की किसी तरह टल जाए, दंगे में किसकी दूकान फूंके क्या पता, फिर आग कहीं लगी कहाँ पहुँच गयी, क्या मालुम लेकिन ये नए कप्तान ने क्या छड़ी घुमाई तो इसलिए आज डबल पेसल और दो जोड़ी के साथ दो जोड़ी फ्री " पान बांधते हुए वो बोला।
और मैंने देखा सबकी निगाहें मेरी ओर, पान की दूकान के शीशे में देख के पता चला, मैं होली का रंगीन पोस्टर लग रहा था, सफेद शर्ट तो सतरंगी हो ही गयी थी, गुंजा की बदमाशी का असर, मेरे बाल, चेहरे पे इतने रंग लगे थे की गिन नहीं सकते।
पर कार में बैठते मैंने कुछ और देखा और मुझे खटका बल्कि कस के खटका। वो कत्थई सूट वाला आदमी,
बुलेट मोटरसाइकिल पर बैठा, हैलमेट ऐसा जिससे पूरा चेहरा ढक जाए, और हाथों में लेदर के दस्ताने,
क्यों खटक रहा था, मुझे कुछ मसझ में नहीं आया, हाँ जरा सा लगा की शायद जब मैं घर से निकलते समय गुंजा को देखने में मशगूल था, उसी समय, शायद पेरिफेरल विजन में गली के मोड़ पर इसे देखा था, बाइक पर ही और चेहरा ऐसे ही हेलमेट में, लेकिन वो शायद भ्रम भी हो सकता है। और मैंने पान गुड्डी को पकड़ा दिया और बाकी बचे पैसे भी,
वो मुस्करा के बोली, ' अब समझ गए, चार जोड़ी क्यों मंगाए थे "।
सर हिला के मैंने मुस्करा के हामी भरी, बिना बोले की भाभी को कल सुबह देर तक ऊपर रखने के लिए।
एक बार मैंने भाभी को छेड़ा था, भाभी क्यों ठीक नौ बजे आप रात में ऊपर चली जाती हैं "
पहले तो वो शर्मायी, फिर कस के मेरे पिछवाड़े चिकोटी काट के बोलीं, " जब मेरी देवरानी आएगी न तो पूछूँगी, उसे तो तुम आठ बजे ही बुला लोगे "
गुड्डी की प्लानिंग, असल में प्लानिंग तो सब वही करती थी, मेरा तो सिर्फ मन करता था, और उसके आगे कुछ भी मेरे बस का नहीं था। लेकिन मेरे मन की बात मुझसे पहले उसे मालूम हो जाती थी, किसी को दिल देने का फायदा यही है, दिल तो उसी के पास है। दिल में जो होगा उसे पता चल जाएगा। सच में गुड्डी को दिल देने के फायदे ही फायदे थे, बस किसी तरह जुगाड़ कर के ये लड़की हरदम के लिए आ जाए तो जिंदगी कितनी आसान हो जाए, मेरी सब जिम्मेदारी उसके ऊपर और मैं सिर्फ मजे करूँगा,
मेरा कितने दिन से मन कर रहा था, लेकिन इस बार भी प्लानिंग सब उसी की,
पहले मेरी भाभी से बोली की उसकी लम्बी छुट्टी है, होली में तो वो बनारस से आजमगढ़ आएगी और, मैं अगर आऊं तो उसे लेता आऊं, रास्ता तो बनारस से ही है, और भाभी ने मुझे ये काम पकड़ा दिया,
फिर जब गुड्डी की मम्मी का प्रोग्राम होली में कानपुर जाने का अचानक बना तो, वो ये कह के सटक ली, की मुझसे पहले से बोल दिया है तो मुझे कितना खराब लगेगा और मैं रस्ते में होऊंगा, और क्या पता भाभी भी बुरा मान जाएँ .
तो लाख बाधाएं आयीं लेकिन ये लड़की, जुगाड़ लगा के मेरे साथ, और यही नहीं, जैसे ही ट्रेन उसके मम्मी, पापा, छोटी बहनों को लेके रवाना हुयी, जो मैं चाहता था, बल्कि उससे भी ज्यादा, दुप्पटा जो उभारो को ढके छुपाये था, एकदम से उसके गले पे चिपक गया, दोनों पहाड़ियां खुल के सामने और शोख मेरी आँखों में आँखे डाल के बोली, " ठीक, अब खुश "
और मुझे घसीटती हुयी दवा के दूकान में, फिर आई पिल, माला डी, यानी बर्थ कंट्रोल का पूरा इंतजाम, मतलब मुझे चिंता करने की जरुरत नहीं है और न डरने की , यहाँ तक की वैसलीन की बड़ी शीशी भी,
और मैं क्या सोच रहा था उसे मालूम भी पड़ गया, और मुझे प्यार वाली झिड़की पड़ गयी,
" बदमाश, बुद्धू, ज्यादा प्लानिंग नहीं करनी चाहिए "
वैसे ये गुण तो सभी लड़कियों में होता है लेकिन गुड्डी में कुछ ज्यादा ही था, एक साथ कई काम करने का, ड्राइवर को रास्ता बता रही थी, एक से एक गलियां, बनारस के रस्ते, रीत के बाद अगर किसी को मालूम होगा तो वो गुड्डी ही थी, आँखों से मुझे दुलारा रही थी और उस की दुष्ट उंगलिया मेरी जाँघों पे, बस जंगबहादुर के आस पास, और जंगबहादुर पागल हो रहे थे। जंग में तो अभी बहुत टाइम था।
लेकिन तभी मैं चीखा, ' द्राइवर साहेब रुकिए, अरे यहाँ नहीं बस थोड़ा और और आगे,
हाँ, बायीं ओर,"
गुड्डी जोर से मुस्करायी, " अरे पांडेपुर क गुलाबजामुन, याद है मुझे भी, ड्राइवर साहेब, वो जो पुरनकी दुकनिया है बस वहीँ, अब असली स्वाद तो सिर्फ वहीँ है "
उस चौराहे से एक सड़क प्रेमचंद जी के गाँव लमही की ओर मुड़ती थी, और एक सारनाथ की ओर, बनारस से आने वाली सड़क सीधे मेरे घर की ओर जाती थी,
फिर वही तुड़े मुड़े नोट, दो बार गिन के, जिससे गलती से भी मुझे ज्यादा पैसा न मिले और बचा हुआ सब उसके झोले वाले पर्स में, और मैं गुलाब जामुन वाली दूकान पे, मन तो कर रहा था एक खा भी लूँ एक उन शोख होंठो के लिए, लेकिन कार के अंदर से उसने आँख तरेरी,
पर शायद पहली बार गुड्डी की आंख का असर नहीं हुआ, क्योंकि मैं हम लोगों की कार के पीछे देख रहा था,
एक बुलेट मोटरसाइकिल रुकी, बगल की गुलबाजामुन की दूकान पर, लेकिन वो उतरा नहीं और इतना काफी था, शक के लिए वही लेदर का दस्ताना, पूरे चेहरे को ढका हेलमेट और कत्थई सूट,
एकदम वही, जो लक्सा में पान की दूकान पे था, मैंने मोटरसाइकिल के नंबर प्लेट को देखा, हल्का सा कीचड़ लगा था, लेकिन कीचड़ बाइक के टायर में भी लगा था तो हो सकता है कीचड़ रास्ते में हो,
तबतक दुकानदार, और गुड्डी एक साथ बोले, " अरे भैया ले लीजिये, और गहकी इन्तजार कर रहे हैं " और गुड्डी भी गरजी" चलना नहीं है क्या "
और मैं गुलाब जामुन लेकर कार में, कनखियों से पीछे देख रहा था, हमारी कार चल दी, पर वो बाइक वैसे ही खड़ी थी, और अब वो एक कुल्हड़ में गुलाब जामुन ले रहा था,
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, हलके हलके सर दर्द भी हो रहा था, कल रात भर चंदा भाभी के साथ जगा, आज भी दिन भर हंगामा, और गुड्डी ने खींच के मुझे अपनी गोद में मेरा सर रख लिया, और अपनी उँगलियों से मेरे सर को सहलाने लगी। गुड्डी सर भी अच्छा दबाती थी, न वो बोल रही थी, न मैं बस लग रहा था कोई जादूगरनी हो जो अपनी उँगलियों से सारे दर्द को खींच के अपने में समा रही हो, कब सो गया पता नहीं चला
बहुत बाद में मैं समझ पाया, ये गुन सब औरतों में होता है, हम नहीं समझ पाते, बेटा हो, पति हो, कानो में पिघला शीशा, आँखों के आगे वो सब जो वो कभी न देखना चाहे, लेकिन मुस्कराते हुए, गुनगुनाते हुए, पी जाती है,
उठा तब जब कान में समोसा खाना है की आवाज आयी, कार लगता है गोमती का पुल पार कर रही थी, और मैं उठ बैठा