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Erotica फागुन के दिन चार

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komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६

वापस -घर


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Shetan

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खतरा
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तब तक दो बार पैरों से मारने की और फिर धड़ाम की आवाज आई। जिस कमरे में इन्हें होस्टेज बनाकर रखा था, और जिसे मैंने बाहर से बन्द कर दिया था, टूटा ताला लटका कर।

उसका दरवाजा टूट गया था।

मैंने तीनों से बोला- “भागो नीचे। सम्हलकर। चौथी सीढ़ी टूटी है। 11वीं के ऊपर छत नीची है…”

महक ने उतरते हुये जवाब दिया- “मालूम है मालूम है। स्कूल बंक करने का फायदा…”

दौड़ते हुये कदमों की आवाज, सीधे सीढ़ी के दरवाजे की ओर से आ रही थी।

मेरा चूड़ी वाली ट्रिक फेल हो गई थी। मेरे दिमाग की बत्ती जली, जो मेरा खून गिर रहा होगा। अन्धेरे में उससे अच्छा ट्रेल क्या मिलेगा। और कम से कम दो तीन मिनट का टाइम अब कम था हम लोगों के पास, गुंजा के क्लास से निकलने के बाद सीढ़ी वाला दरवाजा बरामदे के कोने में ही तो था इसलिए अब किसी भी पल


और वही हुआ। हमारे नीचे पहुँचने से पहले ही सीढ़ी के दरवाजे पे हमला शुरू हो गया था।

इसका मतलब कि अब दोनों साथ थे, जिसके पैर में मैंने कांटा चुभोया था उसके पैर में इतनी ताकत तो होगी नहीं,

की अकेले वो पैर के धक्के से मारकर दरवाजा खोल सके, दोनों एक साथ जोर लगा रहे थे, भड़ भड़ भड़ भड़,

लेकिन शाज़िया और महक की मेहनत का नतीजा जो बैरिकेड हमने बनाया था वो टिका था, वो टिका था, वरना अब तक वो दरवाजा टूट चुका होता। कुंडे में इतनी ताकत नहीं थी की उसे रोक सकता,



लड़कियां एक बार फिर घबड़ा रही थीं, वो भी जानती थीं, जहाँ वो सीढ़ी का दरवाजा खुला, वहीँ,


चुम्मन की जोर की आवाज, गालियां, और एक बार फिर सहम कर के सब सीढ़ी के किनारे खड़ी, नीचे का दरवाजा अभी भी दूर था, पंद्रह बीस सीढियाँ बाकी थीं, और उस भड़भड़ाहट से कापियों के एक दो बंडल लुढ़कते हुए सीढयों पर गिरने लगे,

सीढ़ियों पर एकदम अँधेरा था, ऊपर से जाले, एक दो सीढियाँ बीच में टूटी, और गिरते बंडलों से और मुसीबत हो रही थी फिर टाइम भी निकल रहा था,

चलो, एक एक की लाइन में, मैंने हलके से बोला, सबसे आगे गुंजा, सबसे पीछे मैं और तभी


…. गोली की आवाज।

गोली से वो दरवाजे का बोल्ट तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मुझे ये डर था की कहीं वो इन लड़कियों को ना लग जाये।

मैंने बोला- “पीठ दीवाल से सटाकर चुपचाप…”

एक के बाद एक धांय धांय

सब लाइन में खड़े हो गये। दिवाल से चिपक के और अगले ही पल अगली गोली वहीं से गुजरी जहां हम दो पल पहले थे। वो जाकर सामने वाले दरवाजे में पैबस्त हो गई।



सबसे आगे गुंजा थी, पीछे वो दूसरी लड़की और सबसे अन्त में महक और मैं, एक दूसरे का हाथ पकड़े। गोली की आवाज सुनकर महक कांप गई और उसने कसकर मेरा हाथ भींच लिया और मैंने भी उसी तरह जवाब में उसका हाथ दबा दिया।

महक मुझे देखकर मुश्कुरा दी, और मैं भी मुश्कुरा दिया।

खतरा दोहरा था, एक तो गोली लगने का, दूसरा, गोली छत पर, सीढ़ी की दूसरी दीवार पर लग के जो टकराएगी तो वहां से वापस आ के भी घायल कर सकती थी, और फिर हम रुक भी नहीं सकते थे, दरवाजा अगर ऊपर वाला खुल जाता तो हम सबका बचना मुश्किल था। मैं देख चुका था उस की किलर इंस्टिक्ट, जिस तरह से उसने गुंजा पर चाक़ू चलाया था जो मैंने रोका, वो सीधे गोली चलाता और किसी न किसी का निशाना बनना तय था। इसलिए किसी भी हालत में दरवाजे के खुलने के पहले निचले दरवाजे तक उन चलती गोलियों के बीच पहुंचना जरुरी था। तीनो एक बार फिर डर से सफ़ेद हो गयीं थी, दीवाल में चिपकी, धीरे धीरे सरकते हुए एक एक सीढ़ी उतरते हुए और फिर जब किसी गोली की आवाज आती, कोई गोली सनसनाती हुयी किसी की बगल से निकलती तो एक बार फिर सबकी रूह काँप जाती,

बम से बचे लेकिन गोलियों से कहीं,....

हम सब अपनी पीठ दीवाल से चिपकाए,

अब हम लोग सीढ़ी के नीचे वाले हिस्से में थे, जहां निचले दरवाजे से छनकर रोशनी आ रही थी। मुझे देखकर महक मीठी-मीठी मुश्कुराती रही और मैं भी। इत्ती प्यारी सुन्दर कुड़ी मुश्कुराये और कोई रिस्पान्स ना दे? गुनाह है।

तब तक महक की निगाह मेरे हाथ पे पड़ी वो चीखी- “उईईई… कितना खून?”



अब मेरी नजर भी हाथ पर पड़ी। मैं इतना तो जानता था की चोट हड्डी में नहीं है वरना हाथ काम के लायक नहीं रहता। लेकिन खून लगातार बह रहा था। मेरी बांह और बायीं साईड की शर्ट खून से लाल हो गई थी।

महक ने अपना सफेद दुपट्टा निकाला और एक झटके में फाड़ दिया। और आधा दुपट्टा मेरी चोट पे बांध दिया। खून अभी भी रिस रहा था लेकिन बहना बहुत कम हो गया था।



तब तक दुबारा गोली की आवाज और मैंने महक को खींचकर अपनी ओर। अचानक मैंने रियलाइज किया की मेरे हाथ उसके रूई के फाहे ऐसे उभार पे थे। मैंने झट से हाथ हटा लिया और बोला- “सारी…”



महक ने एक बार फिर मेरा हाथ खींचकर वहीं रख लिया और बोली- “किस बात की सारी? नो थैन्क नो सारी। वी आर फ्रेन्डस…”



मैंने मोबाइल की ओर देखा। सिर्फ दो मिनट बचे थे। अगर मैंने आल क्लियर ना दिया तो इसी रास्ते से मिलेट्री कमान्डो और हम लोग क्रास फायर में। नेटवर्क अभी भी गायब था।

सिर्फ चार सिढ़ियां बची थी। दीवाल से पीठ सटाये-सटाये। हम नीचे उतरे।



ऊपर से जो गोलियां चली थी, उससे नीचे सीढ़ी के दरवाजे में अनेक छेद हो गये थे। काफी रोशनी अंदर आ रही थी। पहली बार हम लोगों ने चैन की सांस ली, और पहली बार हम चारों ने एक दूसरे को देखा।



महक ने अपनी नीली-नीली आँखें नचाकर कहा- “आप हो कौन जी? इत्ते हैन्डसम पुलिस में तो होते नहीं। मिलेट्री में। लेकिन ना पिस्तौल ना बन्दूक…”



गुंजा आगे बढ़कर आई- “मेरे जीजू है यार। जीजू ये है, …”

“महक…” उसनेदुबारा अपना नाम बताया खुद हाथ बढ़ाया और मैंने हाथ मिला लिया।

“मैं शाज़िया…” तीसरी लड़की बोली और अबकी मैंने हाथ बढ़ाया।

महक ने हँसकर कहा- “हे तेरे जीजू तो मेरे भी जीजू…” शाज़िया बोली- “और मेरे भी…”



“एकदम…” गुंजा बोली- “लेकिन आपको ये कैसे पता चला की मैं यहां फँसी हूँ?”



“अरे यार सालियों को जीजा के अलावा और कहीं फँसने की इजाजत नहीं है…” मैंने कसकर महक और गुंजा को दबाते हुये कहा।



मैं बात उन सबसे कर रहा था, लेकिन मेरी निगाह बार-बार ऊपर और नीचे के दरवाजों पे दौड़ रही थी। मुझे ये डर लग रहा था की अभी तो हम सब दिवाल से सटे खड़े हैं। लेकिन जब हम नीचे वाले दरवाजे पे खड़े होंगे अगर उस समय उन सबों ने गोली चलाई, तो हमारी पीठ उनकी ओर होगी। बहुत मुश्किल हो जायेगी। मैं इसलिये टाइम पास कर रहा था की। ऊपर से वो दोनों क्या करते हैं। मुझे एक तरकीब सूझी। कुछ रिस्क तो लेना ही था।



मैं- “तुम तीनों इसी तरह दीवार से चिपक के खड़ी रहो…” और मैं झुक के नीचे वाले दरवाजे के पास गया और ऊपर की ओर देख रहा था।



महक ने आह्ह… भरी- “काश इस निगोड़ी दीवाल की जगह ऐसे हैन्डसम जीजू के साथ सटकर खड़ा होना पड़ता…”



गुंजा बोली- “अरी सालियों वो मौका भी आयेगा। ज्यादा उतावली ना हो…”

एक मिनट तक जब कुछ नहीं हुआ तो मुझे लग गया कि कम से कम अब वो ऊपर दरवाजे के पीछे नहीं हैं।लग रहा था की उसके रिवाल्वर की या तो गोलियां खतम हो गयी हैं या फिर वो दरवाजे के बोल्ट को तोड़ने का कोई और जुगाड़ करने गया है। गोलियां बंद हो गयीं थीं, बस अब हम सबको जल्द से जल्द नीचे का दरवाजा खोल के बाहर निकल लेना था।



मैंने मुड़कर दरवाजे को खोलने की कोशिश की। वो नहीं खुला।-मैंने तो दरवाजा बन्द नहीं किया था। नीचे झुक के एक छेद से मैंने देखने की कोशिश की। तो देखा की बाहर एक ताला लटक रहा
था।
क्या जबरदस्त इरोटिक रोमांचक और एक्शन से भरा कांड लिखा है. माफ करना. इतना मस्त लगा की देशीपन पर आ ही गई.

अरे आनंद बाबू. लड़किया ने पहले भी बहोत गुल खिलाए है. बहोत बंक मरे है. तुम उनकी फिकर मत करो. उन्हें रस्ता पता है.

अमेज़िंग एक्शन. पर उसके साथ रोमांचक पल भी. महक ने सुना नहीं क्या किया. दोस्ती मे नो सॉरी नो थैंक्स. और हाथ वापस वही रख दिया.
और गुंजा के जीजा तो तीनो के जीजा हुए ना.

अब देखते है कब तक आल क्लियर का msg आनंद बाबू दे पाते है. क्यों की वक्त बहोत कम भी है. बहार खड़ी स्काड कभी भी ऑपरेशन स्टार्ट कर सकती है.

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Shetan

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मुसीबत -ताला बंद बाहर से
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मेरी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे।

ये क्या हुआ? दरवाजा किसने बन्द किया? ड्राईवर को तो मैं बोलकर गया था की देखते रहने को, अब।

लड़कियां जो चुहल कर रही थी। वो मैं जानता था की चुहुल कम डर भगाने का तरीका ज्यादा है,

लेकिन अब मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था, बाहर से दरवाजा बन्द और ऊपर से ताला। जब कि तय यही हुआ था की हम लोगों को इधर से ही निकलना है।

“कौन हो सकता है वो?” मेरा दिमाग नहीं सोच पा रहा था। मुझे याद आया, अगर दिमाग काम करना बन्द कर दे तो दिल से काम लो, और दिमाग की बत्ती तुरन्त जल गई।

पहला काम- सेफ्टी फर्स्ट। स्पेशली जब साथ में तीन लड़कियां हैं। तो खतरा किधर से आ सकता है? दरवाजे से, ऊपर से या नीचे से? इसलिये दीवाल के सहारे रहना ही ठीक होगा और डेन्जर का एक्स्पोजर कम करने के लिये। चार के बजाय दो की फाइल में, और फाइल में।

एक आगे एक पीछे।



मैं महक के पास गया। और बोला- “चलो तुम कह रही थी ना की दीवाल के बजाय जीजू के तो मैं तुम्हारे आगे खड़ा हो जाता हूँ और गुंजा तुम शाज़िया के आगे…”



महक बोली- “नहीं नहीं। “मैं आपके आगे खड़ी होऊंगी…” और मेरे आगे आकर खड़ी हो गई।



मैं उसकी कमर को पकड़े था की गुन्जा बोली- “जीजू आप गलत जगह पकड़े हैं। थोड़ा और ऊपर…”



महक ने खुद मेरा हाथ पकड़कर अपने एक उभार पे रख दिया और गुंजा की ओर देखकर बोला- “अब ठीक है ना। अब तू सिर्फ जल, सुलग। इत्ते खूबसूरत सेक्सी जीजू को छिपाकर रखने की यही सजा है…”



मैं कान से उनकी बातें सुन रही था, लेकिन आँख मेरी बाहर निकलने वाले दरवाजे पे गड़ी थी।

नेटवर्क जाम था और अगले आधे घंटे और जाम रहने की बात थी, इसलिये मोबाइल से भी डी॰बी॰ से बात नहीं हो सकती थी।

बन्द कोई गलती से कर सकता है लेकिन ताला नहीं, तो कोई बड़ा खतरा आने के पहले।

मैं खुद,… खुद ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा।



अचानक मुझे एक ब्रेन-वेव आई- “किसी के पास ऐसा नेल कटर है। जिसमें स्क्रू ड्राइवर है?”

शाज़िया ने मुस्कराकर कहा- “मेरे पास है…”

चहक महक ज्यादा रही थी, लेकिन मुस्करा शाज़िया भी कम नहीं रही थी। अब जब गोलियां चलनी बंद हो गयी थीं, ऊपर से दरवाजे का टूटने का खतरा और सीढ़ी से चुम्मन के हमले का डर थोड़ा कम हो गया था, स्कूल से बाहर निकलने के और इन सीढ़ियों के बीच बस ये मुआ दरवाजा बचा था, जिसे पार कर के इन तीनो ने न जाने कितनी बार क्लास बंक की थी, तो माहौल थोड़ा नार्मल होने लगा था।



दो चार घंटे पहले ही इसी स्कूल में इन तीन बालाओं ने कितना होली का हंगामा किया, शाज़िया ने एक से एक गालियां सुना के ९ बी वालों की माँ बहन एक कर दिया, क्लास की कोई लड़की नहीं बची होगी जिसकी चड्ढी बनियाइन इन सबों ने न लूटी हो, दो अंगुल अंदर तक रंग न लगाया हो, लेकिन उसके बाद बस मौत के साये से बच के, जैसे एक बहुत बड़ा खतरा सरसरा के उन्हें छूता हुआ बगल से निकल गया हो,



लेकिन अब जब करीब करीब बचने के कगार पर थीं और साथ में उनकी एक सहेली का जीजू, सहेली क्या बहन से बढ़के तो जीजू भी उसके पहले इन दोनों के और महक के साथ शाज़िया भी मस्तिया रही थी, थोड़ी थोड़ी,

लेकिन साथ में खतरे का अहसास और उससे बचने की तरकीब भी कम नहीं थी, मुश्किल से पांच मिनट हुए होंगे शाज़िया और महक से मिले लेकिन अब बिन कहे वो जैसे मेरी टीम का हिस्सा बन गयी थीं , शाज़िया मेरे साथ दरवाजे का ताला खोलने की जुगत में थी और गुंजा और महक सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे पर निगाह गड़ाए थीं की कहीं चुम्मन फिर से सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे को तोड़ने की, खोलने की कोशिश तो नहीं कर रहा है।

मैं सोच रहा था की ताले के बोल्ट के जो स्क्रू हैं उन्हें ढीले करके, जोर से धक्का देने पर ताला कैसा भी हो बोल्ट निकल आयेगा।

चार बोल्ट में से तीन भी अगर किसी तरह किसी तरह खुल जाते तो फिर तो लात मार के ये बोल्ट टूट जाता और हम सब बाहर, हमारा गुंजा + मिशन कामयाब, उसके बाद तो, लेकिन एक परेशानी हो तो न, लकड़ी का वो दरवाजा हिल रहा था, और नेल कटर से प्रेशर नहीं बन रहा था। मेरा बिना कहे, शाज़िया झुक गयी, और कस के पकड़ के जकड़ के, मुड़ के मेरी ओर देखती, वो चम्पई रंग वाली, अपने गोरे गालों से एक लट हटाती

हल्के से मुस्करा के बोली, ' जीजू अब लगाइये, कस के, देखती हूँ स्साला, मादर कैसे नहीं खुलता, "



शाज़िया की बात, पहला बोल्ट आसानी से खुल गया। और अब दूसरे बोल्ट का नंबर था, लेकिन एक पल को मेरी नजर झुकी, निहुरी शाज़िया के ब्वाइश लेकिन भरे भरे हिप्स पे पड़ी, स्कर्ट थोड़ी सरक के ऊपर चली गयी, और कुछ मांसल नितम्बों के बीच धंसी थी, मेरे मन में पता नहीं कहाँ से अपनी गुरुआनी चंदा भाभी की बात याद आ गयी, ' कैसे लौंडे हो, स्साली निहुरी हुयी है, चूतड़ उठा के और " लेकिन मैंने बोल्ट पर ध्यान दिया,



पर ये बनारस की लड़कियां, एक्स रे आईज होती हैं इनकी मन की किताब मर्दो से पहले पढ़ लेती हैं, और निहुरे निहुरे हल्के से मुस्करायी और अपना पिछवाड़ा मटका दिया, और दूसरा बोल्ट भी खुल गया।

लेकिन स्साला तीसरा बोल्ट, उसमें जंग लगा था, और मैं और शाज़िया उससे जंग लड़ रहे थे, बस कुछ पल और, और हम खुली हवा में होते,….. लेकिन ये बोल्ट और बिना इसके
खुले बाहर निकलना मुश्किल था

अरे बाप रे. एन्ड टाइम पर भी ताला. लेकिन लड़कियों का भी ज़वाब नहीं. एक नार्मल सीन को भी क्या जबरदस्त एक्सीडेंट बना दिया आप ने तो. माझा आ गया. सबसे ज्यादा तो महक ने. अपने जीजू को छुपाए रखने की क्या खूबसूरत सजा दी है. आनंद बाबू के हाथो को सरका कर सीधा ऊपर अपने उभरो पर. अमेज़िंग.

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Shetan

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बूम, बॉम्ब और,… बाहर
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तभी कई बातें एक साथ हुयी,

मेरी उस बदमाश दर्जा नौ वाली स्साली बनारस वाली ने अपना पिछवाड़ा मेरे ' वहां' रगड़ दिया

मुझे लगा सीढ़ी हिल रही है,

ऊपर से एक प्लास्टर का बड़ा सा टुकड़ा गिरा और मैंने झुक के शाज़िया की कमर पकड़ के उसे छाप लिया और मेरा एक हाथ सीधे


मेरे मुंह से ' सॉरी' निकल गया और शाज़िया के मुंह से जबरदस्त गाली, जैसे दीवाली की फुलझड़ी छूटी हो,

" स्साले, तेरी माँ बहन की, ....स्साली से सॉरी बोलते हो, चलो बाहर तेरी तो मैं,... और उस गुंजा की भी "

लेकिन शाज़िया की मीठी मालपुवे ऐसी बाकी गालियां एक तेज आवाज में दब गयीं



गड़गड़ , गड़गड़

प्लास्टर के और ढेर सारे टुकड़े, लेकिन सब के सब मेरी पीठ, बांह और सर पे, शाज़िया बच गयी थी,

पीछे से कापियों के बंडल

आवाज तेज हो गयी थी,

गड़गड़, गड़गड़, गड़गड़, गड़गड़,

और मैं समझ गया, गड़बड़, महागड़्बड़ जोर से में चीखा ' बचो, दो की फ़ाइल में "

और अबकी समझाना नहीं पड़ा, महक ने खुद मुझे खींच के अपने पीछे और मेरा एक हाथ खींच के अपने उभार पे कस के,

लेकिन अभी मेरा ध्यान कहीं और था, मैंने जैसे रटी रटाई कमांड की तरह से, ' दोनों हाथों से कान बंद, सर झुका, एकदम सीने के अंदर '

और एक हाथ से तो महक को पकडे था, दूसरे हाथ से गुंजा और शाज़िया को, कस के दबोच कर, दीवाल से चिपक के



बूम


जोर का धमाका हुआ,

फिर सीढ़ी पर से लुढ़कते पुढ़कते फर्नीचर जो हमने बैरकेड में लगाए थे कापियों के बण्डल, और ढेर सारा छत का प्लास्टर चूना

और साथ ही में वो नीचे वाला दरवाजा धड़ाम से और और हम सब लुढ़कते पुढ़कते बाहर,


और जब मेरी आँख खुली तो शाज़िया पेट के बल थी और मैं उसके ठीक ऊपर,

गुंजा, महक को सहारा दे के खड़ा कर रही थी और मुझे चिढ़ाने लगी

' माना जीजू, मेरी सहेली मस्त माल है, और अभी तक एकदम कोरी भी, सील पैक बंद, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर से टाइट, ...लेकिन ऐसा भी क्या की खुले मैदान में, "


मैं शरमाता झेंपता उठा और शाज़िया को भी पकड़ के उठाया पर शाज़िया क्यों छोड़ती गुंजा को,

" अबे स्साली, मेरा मुंह मत खुलवा, मेरे जीजू हैं,... मैं चाहे खुले मैदान में मस्ती करूँ चाहे भरे बाजार में,... किसी की क्यों फटती है "

लेकिन लड़कियों की मस्ती से अलग मेरी निगाह चारो ओर घूम रही थी, जहां हम निकले थे वहां तो सन्नाटा था लेकिन दीवाल की कुछ ईंटे अभी भी गिर रही थीं


" भागो " मैं जोर से चिल्लाया और हम सब २००-३०० मीटर दूर जा के रुके।

और तब तक चु दे बालिका विद्यालय की एक दीवाल भरभरा के जहाँ हम लोग थोड़ी देर पहले थे,...

सबने एक साथ खुली हवा में सांस ली। अब हम लोगों ने स्कूल की ओर देखा। ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। जिस कमरे में ये लोग पकड़े गये थे, उसकी छत, एक दीवाल काफी कुछ गिर गई थी। सीढ़ी के ऊपर का वरान्डा भी डैमेज हुआ था। अभी भी थोडे बहुत पत्त्थर गिर रहे थे।


बाम्ब एक्स्प्लोड किसने किया? उन दोनों का क्या हुआ? मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

मैंने इशारे से तीनो लड़कियों को चुप रहने और दीवाल के पास सटने के लिए बोला और चारों और देखने लगा,

अंदर की दो दुष्टात्मा से तो बच के हम लोग निकल आये थे लेकिन बाहर के गिद्ध भी कम खतरनाक नहीं थे, हर चीज को खबर बना के, बेच देने वाले, सेंसेशन फैला कर कमाई करने वाले और सब के अपने हिट थे,

डीबी ने जो आउटर पेरिमीटर बनवाया था, ३०० मीटर का, पुलिस का बैरिकेड लगा था, पी ए सी की एक ट्रक, एक आंसू गैस वालों की टुकड़ी और वाटर कैनन और बैरिकेड के ठीक पार ढेर सारी ओबी वान और कई अनाउंसर कभी अपना मेकअप दुरुस्त करती तो कभी कैमरा मैन को चु दे विद्यालय की ओर इशारा करती, और कभी जोर जोर से चीखती



यह खबर आज सबसे पहले बनारस न्यूज नेटवर्क से सुन रहे हैं,.... में निवेदिता जीरो प्वाइंट पर मौजूद हूँ, चु दे बालिका विद्यालय से, ....पुलिस का आपरेशन शुरू होने वाला है, बल्कि शुरू हो भी चूका है, बस कुछ देर और और हमारी तीनो होस्टेज आजाद होंगी निवेदिता का प्रॉमिस सबसे पहले उन तीनो लड़कियों का इंटरव्यू आप इसी चॅनेल पर देख्नेगे, बस कुछ ही देर में आपरेशन शुरू होने वाला है



तब तक कैमरा में ने कुछ इशारा किया, निवेदिता ने माइक बंद किया और एक छोटे से शीशे में देखकर अपनी लिपस्टिक फ्रेश की , पल्लू को थोड़ा सा झटका दिया, और तब तक कैमरा मैन चारो ओर के पुलिस बंदोबस्त को दिखा रहा था लेकिन एक और अनाउंसर आ गयी, शलवार सूट में

" मै सबीहा, सीधे चु दे विद्यालय से, आप देख सकते हैं पुलिस के इंतजाम को, बस आपरेशन शुरू होने वाला है, अभी अभी हमारे संवाददाता ने बाबतपुर एयरपोर्ट से खबर दी है की लखनऊ से एस टी ऍफ़ की टीम पहुंच गयी है और एयर पोर्ट से चल दी है। बस कुछ देर और , हमरे उन तीनो लड़कियों के बारे में बड़ी एक्सक्लूसिव खबर मिली है, ....कौन हैं वो, जो बनारस पुलिस की लापरवाही से आंतकवादियों के हमले का शिकार हुयी और अभी भी उन बेरहम बदमाशों के कब्जे में फंसी है,.... कब तक छूटेंगी वो,.... क्या गुजर रही होगी उन बेचारियों पे,.... क्या बचपाएगी उन की जान या वे सब भी बनारस पुलिस के निकम्मेपन का शिकार होंगी, ....क्या होगा उन बेचारियों के साथ, बस कुछ पल और,"



और वो तीनो बेचारियाँ भी ये सब सुन रही थीं, खिलखिला रही थीं। और मेरे पीछे पड़ी थीं, ....लेकिन मै अभी सब नजारा देख रहा था,

बॉम्ब के एक्सप्लोजन के बाद एक साथ कई एक्टिविटी शुरू हो चुकी थी,

घेरे के सबसे बाहर की ओर लेकिन इनर पैरामीटर में एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां थीं, और दो चार एम्बुलेंस स्कूल की ओर बढ़ना शुरू की और उनके पीछे , दो फायरब्रिगेड की गाड़ियां लेकिन तब तक ट्रैफिक पुलिस के कोई अधिकारी आये और उन्होंने सबको रोक दिया, और सिर्फ एक एम्बुलेंस को आगे बढ़कर स्कूल के सामने पहुँच कर ५० मीटर पहले रुक जाने को बोला, और फायर ब्रिगेड की एक ट्रक को स्कूल की साइड में लगा के खड़ा होने के लिए,


तब तक फायरिंग की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा- टैक-टैक। सेल्फ लोडेड राईफल और आटोमेटिक गन्स की, 25-30 राउन्ड।

सारा फायर प्रिन्सीपल आफिस की ओर केन्द्रित था। वो तो हम लोगों को मालूम था की वहां कोई नहीं हैं। स्कूल की ओर से कोई फायर नहीं हो रहा था।

तब तक मेगा फोन पर डी॰बी॰ की आवाज गुंजी- “स्टाप फायर…”

थोड़ी देर में एक पोलिस वालों की टुकडी, कुछ फोरेन्सिक वाले और एक एम्बुलेन्स अन्दर आ गई। कुछ देर बाद एक आदमी लंगड़ाते हुये और दूसरा उसके साथ जिसके कंधे पे चोट लगी थी, चारों ओर पुलिस से घिरे बाहर निकले।

स्कूल के गेट से वो निकले ही थे की धड़धड़ाती हुई 5 एस॰यू॰वी॰ और उनके आगे एक सफेद अम्बेसेडर और सबसे आगे एक सफेद मारुती जिप्सी जिसमें पीछे स्टेनगन लिये हुये। लोग बैठे थे, आकर रुकी।


डी॰बी॰ आगे बढ़कर अम्बेसेडर से निकले आदमी से मिले।

मैंने नोटिस किया बात करते-करते उसने पोजीशन बदल ली और अब डी॰बी॰ की पीठ स्कूल के गेट की ओर हो गई।

उधर एस॰यू॰वी॰ से उतरे लोगों ने पुलिस से कुछ बात की और उसमें से निकलकर चार लोगों ने उन दोनों को एस॰यू॰वी॰ में बिठा लिया, और चल दिये। जैसे ही वो गाड़ियां चली। अम्बेसेडर से उतरे आदमी ने, अब तक वहां प्रेस वालों से इशारा किया की डी॰बी॰ से बात करें।



उधर पीछे से गुंजा और महक आवाज दे रही थी।

सारी एक्टिविटी अब स्कूल के बाहर के दरवाजे के पास हो रही थी, एस टी ऍफ़ के अफसरों के साथ, डी बी और साथ में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, और कुछ अफसर, एस टी ऍफ़ वाले अपने साथ कुछ मिडिया वाले भी लाये थे और कुछ मिडिया वालों को उन्होंने इजाजत दे दी थी, और पुलिस थाने का रास्ता एकदम खाली था, जो लोग खड़े भी थे वो सब स्कूल की ओर देख रहे थे, कैमरे हो या आँखें सब स्कूल की ओर,

और मै दबे पांव, गुंजा, महक और शाज़िया के साथ पुलिस कंट्रोल रूम के अंदर जो डीबी का इनर रूम था, वहां।



गुड्डी वहीं थी।
अब इसमें कोई करें भी तो क्या आनंद बाबू. आप बनारस मे जो हो. आपकी सालिया बड़ी गरिया रही है. पर गरियागी नहीं तो क्या. सॉरी भी कोई बोलता है भला. और वो भी सालियों को. माझा आ गया. जबरदस्त अपडेट. बड़ी मुश्किल से नैया पार लगी है. और अब सामने गुड्डी. अब माझा आएगा.

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Shetan

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कंट्रोल रूम, गुड्डी, ताला

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कन्ट्रोल रूम के सामने ही वो मोबाईल, पुलिस की गाड़ी का ड्राईवर मिला, जिसे मैंने नीचे रहने को बोला था, दरवाजे के सामने और जिससे कोई दरवाजा ना बन्द कर सके। और वो यहाँ… किसी तरह से मैंने अपने गुस्से को कन्ट्रोल किया।

मैंने ठन्डी आवाज में पूछा- “क्यों कहां चले गये थे तुम?”

वो बोला- “क्यों? मैं तो यहीं था साहब। वहां कोई नहीं मिला क्या आपको…”

मैं चुप रहा।

ड्राईवर ने सफाई दी-

“आपके जाने के दो-चार मिनट के बाद सी॰ओ॰ साहेब, अरिमर्दन सिंह साहब आये थे। उन्होंने मुझसे पूछा- “तू यहां क्यो खड़ा है? मैंने बोला की साहब ने बोला है। फिर मैंने उन्हें सारी बातें बता दी। वो बोले की ठीक है, मैं यहां दो आर्मेड कान्स्टेबल लगा देता हूँ। तुम कन्ट्रोल रूम में जाकर मेम साहेब के पास रहो। तुम अकेले उन्हें ठीक से जानते हो। मेरे सामने ही उन्होंने दो कान्स्टेबल बुलाये और मैंने सी॰ओ॰ साहब को साफ-साफ बता दिया था की आपने बोला है की किसी हालत में दरवाजा नहीं बन्द होना चाहिये। उन्होंने खुद जाकर दरवाजे को खोलकर देखा…”

मैं क्या बोलता। उसके चेहरे से ये लग रहा था की ये आदमी झूठ नहीं बोल रहा है। और जैसे ही हम लोग कमरे में घुसे।

गुड्डी ने पहला सवाल यही दागा-

“तुमने उस ड्राईवर को यहां क्यों भेज दिया? मुझे कौन उठा ले जाता। तुम्हारे जाने के 5-6 मिनट के अन्दर ही वो ड्राईवर आया और बोला की सी॰ओ॰ साहेब ने बोला है की वो यहीं रहे, मेरे पास। तब से भूत की तरह वो दरवाजे के सामने खड़ा है…”


मुझे लगा कि अच्छा हुआ मैंने उसे कुछ नहीं कहा।

लेकिन मैं बोल पाता उसके पहले ही गुन्जा, शाज़िया और महक। एक साथ। गुंजा ने गुड्डी को बाहों में भर लिया और गुड्डी ने गुन्जा को। दोनों की आँखों से आँसू बस छलके नहीं।

गुन्जा बोली- “गुड्डी दीदी। अगर आज जीजू नहीं होते तो? मैं सोच नहीं सकती थी…”

“क्यों नहीं होते। खाली होली खेलने के लिये जीजू बने हैं क्या? मजा लेंगे वो और बचाने कौन आयेगा…” मुझे देखते हुये गुड्डी ने झिड़का।

दबाते-दबाते भी एक आँसू का कतरा उसके गाल पे गिर गया और उसके बाद शाज़िया और महक भी गुड्डी की बांहों में। इतनी देर का टेन्शन, डर, खतरा सब। बिन बोले बड़ी-बड़ी आँखों में तिरते, छलकते आँसुओं में बह गया। महक ने गुड्डी को अपनी बाहों में भर रखा था और बिन कहे। बहुत सी बातें दोनों कह रही थी।

मैंने चिढ़ाया- “हे गुड्डी को सब लोग बांहों में ले रहे हो और मैं। यहां सूखा…”

गुंजा मुश्कुराते हुये बोली- “अरे मैं हूँ ना…” और मेरी बांहों में आ गई और मैंने उसे कसकर बांहों में भींच लिया।


अब गुड्डी ने पहली बार मेरे बायें हाथ और शर्ट को ध्यान से देखा। खून से लथपथ। और बांह में महक का दुपट्टा। वो चीखते हुये बोली- “हे इतना खून बह रहा है। क्या हुआ?”

मैं- “बह नहीं रहा है। बह रहा था। महक के दुपट्टे का असर है। और सालियों के लिये खून क्या मैं सब कुछ बहाने को तैयार हूँ। क्यों मन्जूर?”

अब उनके शर्माने की बारी थी।

लेकिन शाज़िया और महक इत्ती आसानी से थोड़ी छोड़ने वाली थीं, पलट के शाज़िया ने जवाब दिया,

" अरे बाबू वो सीढ़ी पे धूम धड़ाम थोड़ा जल्दी हो गया, वरना मै जो निहुरी थी, वहीँ हाथ बढ़ा के खोल के पकड़ के सटा के, ....बच गए आप "

अब गुंजा भी मैदान में आ गयी, अपनी सहेलियों की हिम्मत बढ़ाते बोली,

" अरे होली के बाद आएंगे ये और पूरे पांच दिन यहीं रहेंगे, मेरा भी हिसाब किताब अभी बाकी है , रंगपंचमी यही होंगी "

उस की रंगभरी पिचकारी छोड़ती आँखे याद दिला रही थीं, उसका फगुवा भी अधूरा था लेकिन महक ने पूरा प्लान बता दिया,

" अरे जीजू, आप सोचते हैं की क्या सिर्फ एक लड़की पे तीन तीन लड़के एक साथ चढ़ सकते हैं, हम तीनो मिल के गैंग रेप करेंगे वो भी एक बार नहीं तीन बार "

" और लाने वाली मै हूँ, जा रही हूँ इनके साथ आज लेकिन कान पकड़ के साथ ले आउंगी और अपनी छोटी बहनों के हवाले कर दूंगी, फिर ये जो बहुत बोल रहे हैं न तब पता चलेगा "

गुड्डी भी उन दर्जा नौ वालियों का साथ देती बोली, एक तो गुंजा की पक्की सहेलियां, दूसरे गुड्डी का भी तो व्ही स्कूल है, उस की जूनियर।

मै दो बातें सोच रहा था, ये लड़कियां अभी थोड़ी देर पहले डर के मारे, कैसे, और ये सब बातें भी डर से बचने का ही एक रास्ता है, और दूसरे मेरी गलती। बनारस में मुंह नहीं खोलना चाहिए, वो भी लड़कियों के आगे और वो सालिया हो तब तो एकदम नहीं,

गुड्डी ने बात घुमा दी और उन तीनो से कुछ और बात करने लगी और मेरी निगाह खिड़की के बाहर स्कूल पर जा रही थी,



एस टी ऍफ़ वाले चले गए थे, लेकिन अब डीबी और लोकल पुलिस जोश में आ गए थे , तीन लाइने पुलिस वालों की सबसे बाहर पी ऐसी के जवान और उसके बाद आर ए ऍफ़ और सबसे अंदर लोकल पुलिस के कमांडो, जो थोड़े बहुत मिडिया वाले आ गए थे आस पास उन्हें हटाया जा रहा था, कुछ लोकल पाल्टीसियन टाइप भी थे जिहे डीबी खुद निपटा रहे थे। एक बार फिर पुलिस ने पैरामीटर बना लिया , एम्बुलेंस की एक दो गाड़ियों और एक फायर ब्रिगेड की गाडी को छोड़ के सब वापस जा रही थी।



पुलिस को छोड़ के बाकी सिविल आफ़िसर्स भी वापस जा रहे थे।

स्कूल के अंदर बॉम्ब डिस्पोजल स्क्वाड का एक दस्ता अंदर घुसा, फिर जो मिलेट्री के कमांडो आये थे, उनके साथ का बॉम्ब स्क्वाड, उन सब के पास तरह तरह के डिटेक्टर थे, फिर दो तीन कुत्ते, शायद बॉम्ब स्क्वाड वालों के थे और सबके बाद सिद्द्की और उसके साथ एक दो लोग और

और मेरे मन में सवाल अभी भी घूम रहे थे चुम्मन लोकल बदमाश था लेकिन जरूर बात उससे कहीं ज्यादा था, उसकी माँ ने बोला था की वो बंबई से हो के आया है, तो वहीँ कोई कांटेक्ट तो नहीं बन गया।



फिर चुम्मन के अलावा शायद मै अकेला था जिसने बॉम्ब को इतनी नजदीक से देखा था और उससे बढ़कर उसके एक्सप्लोड होने का असर देखा था, किसी जबरदस्त बॉम्ब मेकर का हाथ लगता था और अभी ८० % ही लग रहा था , कुछ चीजें उसमे नहीं थी लेकिन, और सबसे ज्यादा मुझे चौंकाया, डबल एक्सप्लोजन ने, आउटर बॉम्ब ने सिर्फ शॉक वेव्स जेनेरेट की, जो लग रहा था सीढ़ी हिल रही है, दरवाजा हिला, प्लास्टर गिरना शुरू हो गया और मुझे लग गया, हम लोग थोड़े सम्हल गए और उसी आउटर बॉम्ब से इनर बॉम्ब का बीस पच्चीस सेकेण्ड के अंदर एक्सप्लोजन हुआ, जो धड़ाके की आवाज हुयी और पक्का भले ही थोड़ी मात्रा में लेकिन लग रहा था आर डी एक्स, पर ये अब जो बॉम्ब डिस्पोजल वाले गए हैं इन्हे अंदाज लग जाएगा,



ऐसा बॉम्ब, बनारस में किसी लोकल बदमाश के पास, ?

और फिर रिवाल्वर, और उसकी गोलियां। अक्सर हम लोग मानते हैं की रिवाल्वर में छह गोलियां होती है लेकिन चार गोलियां तो नीचे वाले दरवाजे में ही लगी थीं, और फिर वो सीढ़ी के ऊपर के दरवाजे को भेद के आयीं और नीचे वाले दरवाजे में उन्होंने छेद किया, तो बिना हाई कैलिबर के और फिर कुछ शेल मैंने देखे भी थे, जो सामने दीवाल में लगा था, जो उससे लड़ के जिस दीवाल में हम चिपके थे वहां नीचे, वो तो मैंने महक को कस के चिपका रखा था, वरना उस हालत में भी वो गोली घायल तो कर ही देती।

आज मुझे अंदाज लग गया था की बनारस में गन रनिंग भी होती है और फॉरन गन्स भी आ गयी हैं लेकिन इस तरह की रिवाल्वर अभी कॉमन नहीं है फिर चुम्मन बनारस के किसी आर्गेनाइज्ड गैंग का पार्ट भी नहीं है

लेकिन सबसे बड़ी बात थी गुंजा और उसकी सहेलियों का बचना और वो हो गया, और इन सब सवालों का जवाब एस टी ऍफ़ वाले और पुलिस वाले ढूंढेंगे, अगर ढूंढना चाहेंगे, मुझे तो बस गुंजा को चंदा भाभी के हवाले करना है और उसकी बाकी सहेलिया भी ठीक ठाक पहुँच जाए अपने अपने घर

और ये चार आने का काम अभी भी बचा था, क्योंकि मिडिया वाले और कुछ सिक्योरटी एजेंसी वाले भी जानना चाहते होंगे की अंदर क्या हुआ



और ये चहकती गौरेया सब कहीं उन के चक्कर में पड़ गयीं तो एक अलग झंझट



कमरे में लगे टीवी पर एंकर चीख रही थी

" कहाँ; हैं तीनो लड़कियां , कौन थी तीनो लड़कियां, क्या हुआ था उनके, बस सिर्फ इसी चैनल पर " निवेदिता जी चीख रही थीं, और पीछे चु दे विद्यालय की तस्वीर और उसके ठीक सामने स्टूडियों में खड़ी वो, नीचे रनर चल रहा था, एस टी ऍफ़ का जबरदस्त आपरेशन, संघर्ष के बाद कमांडो ने तीनो लड़कियों को सकुशल छुड़ाया, लड़कियों की मेडिकल जांच चल रही है

शाज़िया और गुंजा देख के मुस्करा रही थीं, लेकिन महक के चेहरे पे एक बार फिर से डर छा गया था, जैसे वो उन पलों में वापस चली गयी हो। गुड्डी के हाथ को पकड़ के बोली, ' दी , लग नहीं रहा था बचूंगी, अगर आप लोग न आते "


गुड्डी ने बिना बोले बस उसके हाथ को दबा दिया, और मैंने चैनल चेंज कर दिया,

उस चैनल पर सबीहा बोल रही थीं, पहली खबर, होस्टेज के छूटने की सबसे पहली खबर आपको इसी चैनल पर मिली, और उनसे बात भी सबसे पहले इसी चॅनेल पर, हम दिखाएंगे आपको अंदरखाने की खबर, अंदर की बात, एकदम एक्सक्लूसिव, क्या गुजरा उन लड़कियों पर उन तीन घंटो में लेकिन उससे पहले बनारस जानना चाहता है , पुलिस व्यवस्था इतनी लचर क्यों, दिन दहाड़े, थाने से २०० मीटर दूर के लड़कियों के स्कूल में आतंकी हमला, क्या कर रही थी पुलिस, बने रहिये बस ब्रेक के बाद अंदरखाने की खबर , क्या हो रहा था स्कूल में



गुड्डी ने कुछ जानने के लिए कुछ बात बदलने के लिए और कुछ इस बड़े हादसे से बच के आयी लड़कियों का मूड ठीक करने के लिए पूछ लिया गुंजा से, " तू बता न अंदर की बात, क्या हुआ था, कैसे चुम्मन, ? "
चलो मिसन साली बचाओ पूरा हुआ. एक की बजाय तीन तीन सालिया हो गई अब तो. गुड्डी की डांट से तो आनंद बाबू वैसे भी नहीं बच सकते. लेकिन गुंजा के कहने पर तो गुड्डी भावुक हो गई. अब चुम्बन का क्या होगा. जान ने को तो गुड्डी भी हताब है.

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Shetan

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कंट्रोल रूम, गुड्डी, ताला

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कन्ट्रोल रूम के सामने ही वो मोबाईल, पुलिस की गाड़ी का ड्राईवर मिला, जिसे मैंने नीचे रहने को बोला था, दरवाजे के सामने और जिससे कोई दरवाजा ना बन्द कर सके। और वो यहाँ… किसी तरह से मैंने अपने गुस्से को कन्ट्रोल किया।

मैंने ठन्डी आवाज में पूछा- “क्यों कहां चले गये थे तुम?”

वो बोला- “क्यों? मैं तो यहीं था साहब। वहां कोई नहीं मिला क्या आपको…”

मैं चुप रहा।

ड्राईवर ने सफाई दी-

“आपके जाने के दो-चार मिनट के बाद सी॰ओ॰ साहेब, अरिमर्दन सिंह साहब आये थे। उन्होंने मुझसे पूछा- “तू यहां क्यो खड़ा है? मैंने बोला की साहब ने बोला है। फिर मैंने उन्हें सारी बातें बता दी। वो बोले की ठीक है, मैं यहां दो आर्मेड कान्स्टेबल लगा देता हूँ। तुम कन्ट्रोल रूम में जाकर मेम साहेब के पास रहो। तुम अकेले उन्हें ठीक से जानते हो। मेरे सामने ही उन्होंने दो कान्स्टेबल बुलाये और मैंने सी॰ओ॰ साहब को साफ-साफ बता दिया था की आपने बोला है की किसी हालत में दरवाजा नहीं बन्द होना चाहिये। उन्होंने खुद जाकर दरवाजे को खोलकर देखा…”

मैं क्या बोलता। उसके चेहरे से ये लग रहा था की ये आदमी झूठ नहीं बोल रहा है। और जैसे ही हम लोग कमरे में घुसे।

गुड्डी ने पहला सवाल यही दागा-

“तुमने उस ड्राईवर को यहां क्यों भेज दिया? मुझे कौन उठा ले जाता। तुम्हारे जाने के 5-6 मिनट के अन्दर ही वो ड्राईवर आया और बोला की सी॰ओ॰ साहेब ने बोला है की वो यहीं रहे, मेरे पास। तब से भूत की तरह वो दरवाजे के सामने खड़ा है…”


मुझे लगा कि अच्छा हुआ मैंने उसे कुछ नहीं कहा।

लेकिन मैं बोल पाता उसके पहले ही गुन्जा, शाज़िया और महक। एक साथ। गुंजा ने गुड्डी को बाहों में भर लिया और गुड्डी ने गुन्जा को। दोनों की आँखों से आँसू बस छलके नहीं।

गुन्जा बोली- “गुड्डी दीदी। अगर आज जीजू नहीं होते तो? मैं सोच नहीं सकती थी…”

“क्यों नहीं होते। खाली होली खेलने के लिये जीजू बने हैं क्या? मजा लेंगे वो और बचाने कौन आयेगा…” मुझे देखते हुये गुड्डी ने झिड़का।

दबाते-दबाते भी एक आँसू का कतरा उसके गाल पे गिर गया और उसके बाद शाज़िया और महक भी गुड्डी की बांहों में। इतनी देर का टेन्शन, डर, खतरा सब। बिन बोले बड़ी-बड़ी आँखों में तिरते, छलकते आँसुओं में बह गया। महक ने गुड्डी को अपनी बाहों में भर रखा था और बिन कहे। बहुत सी बातें दोनों कह रही थी।

मैंने चिढ़ाया- “हे गुड्डी को सब लोग बांहों में ले रहे हो और मैं। यहां सूखा…”

गुंजा मुश्कुराते हुये बोली- “अरे मैं हूँ ना…” और मेरी बांहों में आ गई और मैंने उसे कसकर बांहों में भींच लिया।


अब गुड्डी ने पहली बार मेरे बायें हाथ और शर्ट को ध्यान से देखा। खून से लथपथ। और बांह में महक का दुपट्टा। वो चीखते हुये बोली- “हे इतना खून बह रहा है। क्या हुआ?”

मैं- “बह नहीं रहा है। बह रहा था। महक के दुपट्टे का असर है। और सालियों के लिये खून क्या मैं सब कुछ बहाने को तैयार हूँ। क्यों मन्जूर?”

अब उनके शर्माने की बारी थी।

लेकिन शाज़िया और महक इत्ती आसानी से थोड़ी छोड़ने वाली थीं, पलट के शाज़िया ने जवाब दिया,

" अरे बाबू वो सीढ़ी पे धूम धड़ाम थोड़ा जल्दी हो गया, वरना मै जो निहुरी थी, वहीँ हाथ बढ़ा के खोल के पकड़ के सटा के, ....बच गए आप "

अब गुंजा भी मैदान में आ गयी, अपनी सहेलियों की हिम्मत बढ़ाते बोली,

" अरे होली के बाद आएंगे ये और पूरे पांच दिन यहीं रहेंगे, मेरा भी हिसाब किताब अभी बाकी है , रंगपंचमी यही होंगी "

उस की रंगभरी पिचकारी छोड़ती आँखे याद दिला रही थीं, उसका फगुवा भी अधूरा था लेकिन महक ने पूरा प्लान बता दिया,

" अरे जीजू, आप सोचते हैं की क्या सिर्फ एक लड़की पे तीन तीन लड़के एक साथ चढ़ सकते हैं, हम तीनो मिल के गैंग रेप करेंगे वो भी एक बार नहीं तीन बार "

" और लाने वाली मै हूँ, जा रही हूँ इनके साथ आज लेकिन कान पकड़ के साथ ले आउंगी और अपनी छोटी बहनों के हवाले कर दूंगी, फिर ये जो बहुत बोल रहे हैं न तब पता चलेगा "

गुड्डी भी उन दर्जा नौ वालियों का साथ देती बोली, एक तो गुंजा की पक्की सहेलियां, दूसरे गुड्डी का भी तो व्ही स्कूल है, उस की जूनियर।

मै दो बातें सोच रहा था, ये लड़कियां अभी थोड़ी देर पहले डर के मारे, कैसे, और ये सब बातें भी डर से बचने का ही एक रास्ता है, और दूसरे मेरी गलती। बनारस में मुंह नहीं खोलना चाहिए, वो भी लड़कियों के आगे और वो सालिया हो तब तो एकदम नहीं,

गुड्डी ने बात घुमा दी और उन तीनो से कुछ और बात करने लगी और मेरी निगाह खिड़की के बाहर स्कूल पर जा रही थी,



एस टी ऍफ़ वाले चले गए थे, लेकिन अब डीबी और लोकल पुलिस जोश में आ गए थे , तीन लाइने पुलिस वालों की सबसे बाहर पी ऐसी के जवान और उसके बाद आर ए ऍफ़ और सबसे अंदर लोकल पुलिस के कमांडो, जो थोड़े बहुत मिडिया वाले आ गए थे आस पास उन्हें हटाया जा रहा था, कुछ लोकल पाल्टीसियन टाइप भी थे जिहे डीबी खुद निपटा रहे थे। एक बार फिर पुलिस ने पैरामीटर बना लिया , एम्बुलेंस की एक दो गाड़ियों और एक फायर ब्रिगेड की गाडी को छोड़ के सब वापस जा रही थी।



पुलिस को छोड़ के बाकी सिविल आफ़िसर्स भी वापस जा रहे थे।

स्कूल के अंदर बॉम्ब डिस्पोजल स्क्वाड का एक दस्ता अंदर घुसा, फिर जो मिलेट्री के कमांडो आये थे, उनके साथ का बॉम्ब स्क्वाड, उन सब के पास तरह तरह के डिटेक्टर थे, फिर दो तीन कुत्ते, शायद बॉम्ब स्क्वाड वालों के थे और सबके बाद सिद्द्की और उसके साथ एक दो लोग और

और मेरे मन में सवाल अभी भी घूम रहे थे चुम्मन लोकल बदमाश था लेकिन जरूर बात उससे कहीं ज्यादा था, उसकी माँ ने बोला था की वो बंबई से हो के आया है, तो वहीँ कोई कांटेक्ट तो नहीं बन गया।



फिर चुम्मन के अलावा शायद मै अकेला था जिसने बॉम्ब को इतनी नजदीक से देखा था और उससे बढ़कर उसके एक्सप्लोड होने का असर देखा था, किसी जबरदस्त बॉम्ब मेकर का हाथ लगता था और अभी ८० % ही लग रहा था , कुछ चीजें उसमे नहीं थी लेकिन, और सबसे ज्यादा मुझे चौंकाया, डबल एक्सप्लोजन ने, आउटर बॉम्ब ने सिर्फ शॉक वेव्स जेनेरेट की, जो लग रहा था सीढ़ी हिल रही है, दरवाजा हिला, प्लास्टर गिरना शुरू हो गया और मुझे लग गया, हम लोग थोड़े सम्हल गए और उसी आउटर बॉम्ब से इनर बॉम्ब का बीस पच्चीस सेकेण्ड के अंदर एक्सप्लोजन हुआ, जो धड़ाके की आवाज हुयी और पक्का भले ही थोड़ी मात्रा में लेकिन लग रहा था आर डी एक्स, पर ये अब जो बॉम्ब डिस्पोजल वाले गए हैं इन्हे अंदाज लग जाएगा,



ऐसा बॉम्ब, बनारस में किसी लोकल बदमाश के पास, ?

और फिर रिवाल्वर, और उसकी गोलियां। अक्सर हम लोग मानते हैं की रिवाल्वर में छह गोलियां होती है लेकिन चार गोलियां तो नीचे वाले दरवाजे में ही लगी थीं, और फिर वो सीढ़ी के ऊपर के दरवाजे को भेद के आयीं और नीचे वाले दरवाजे में उन्होंने छेद किया, तो बिना हाई कैलिबर के और फिर कुछ शेल मैंने देखे भी थे, जो सामने दीवाल में लगा था, जो उससे लड़ के जिस दीवाल में हम चिपके थे वहां नीचे, वो तो मैंने महक को कस के चिपका रखा था, वरना उस हालत में भी वो गोली घायल तो कर ही देती।

आज मुझे अंदाज लग गया था की बनारस में गन रनिंग भी होती है और फॉरन गन्स भी आ गयी हैं लेकिन इस तरह की रिवाल्वर अभी कॉमन नहीं है फिर चुम्मन बनारस के किसी आर्गेनाइज्ड गैंग का पार्ट भी नहीं है

लेकिन सबसे बड़ी बात थी गुंजा और उसकी सहेलियों का बचना और वो हो गया, और इन सब सवालों का जवाब एस टी ऍफ़ वाले और पुलिस वाले ढूंढेंगे, अगर ढूंढना चाहेंगे, मुझे तो बस गुंजा को चंदा भाभी के हवाले करना है और उसकी बाकी सहेलिया भी ठीक ठाक पहुँच जाए अपने अपने घर

और ये चार आने का काम अभी भी बचा था, क्योंकि मिडिया वाले और कुछ सिक्योरटी एजेंसी वाले भी जानना चाहते होंगे की अंदर क्या हुआ



और ये चहकती गौरेया सब कहीं उन के चक्कर में पड़ गयीं तो एक अलग झंझट



कमरे में लगे टीवी पर एंकर चीख रही थी

" कहाँ; हैं तीनो लड़कियां , कौन थी तीनो लड़कियां, क्या हुआ था उनके, बस सिर्फ इसी चैनल पर " निवेदिता जी चीख रही थीं, और पीछे चु दे विद्यालय की तस्वीर और उसके ठीक सामने स्टूडियों में खड़ी वो, नीचे रनर चल रहा था, एस टी ऍफ़ का जबरदस्त आपरेशन, संघर्ष के बाद कमांडो ने तीनो लड़कियों को सकुशल छुड़ाया, लड़कियों की मेडिकल जांच चल रही है

शाज़िया और गुंजा देख के मुस्करा रही थीं, लेकिन महक के चेहरे पे एक बार फिर से डर छा गया था, जैसे वो उन पलों में वापस चली गयी हो। गुड्डी के हाथ को पकड़ के बोली, ' दी , लग नहीं रहा था बचूंगी, अगर आप लोग न आते "


गुड्डी ने बिना बोले बस उसके हाथ को दबा दिया, और मैंने चैनल चेंज कर दिया,

उस चैनल पर सबीहा बोल रही थीं, पहली खबर, होस्टेज के छूटने की सबसे पहली खबर आपको इसी चैनल पर मिली, और उनसे बात भी सबसे पहले इसी चॅनेल पर, हम दिखाएंगे आपको अंदरखाने की खबर, अंदर की बात, एकदम एक्सक्लूसिव, क्या गुजरा उन लड़कियों पर उन तीन घंटो में लेकिन उससे पहले बनारस जानना चाहता है , पुलिस व्यवस्था इतनी लचर क्यों, दिन दहाड़े, थाने से २०० मीटर दूर के लड़कियों के स्कूल में आतंकी हमला, क्या कर रही थी पुलिस, बने रहिये बस ब्रेक के बाद अंदरखाने की खबर , क्या हो रहा था स्कूल में



गुड्डी ने कुछ जानने के लिए कुछ बात बदलने के लिए और कुछ इस बड़े हादसे से बच के आयी लड़कियों का मूड ठीक करने के लिए पूछ लिया गुंजा से, " तू बता न अंदर की बात, क्या हुआ था, कैसे चुम्मन, ? "
चलो मिसन साली बचाओ पूरा हुआ. एक की बजाय तीन तीन सालिया हो गई अब तो. गुड्डी की डांट से तो आनंद बाबू वैसे भी नहीं बच सकते. लेकिन गुंजा के कहने पर तो गुड्डी भावुक हो गई. अब चुम्बन का क्या होगा. जान ने को तो गुड्डी भी हताब है.

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Shetan

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भाग ३३ - अंदर की बात - महक
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गुन्जा ने पूरी बात बतानी शुरू कि वो और महक एक्स्ट्रा क्लास में सबसे पहले बैठ गईं थी और लास्ट बेंच खिड़की के पास वाली हथिया ली थी। महक ने जब खिड़की खोली, तो कोई नहीं था। क्लास में लड़कियां धीरे-धीरे आ रही थीं। तब तक गुन्जा को रज्जऊ दिखा।

-----------

महक ने चिढ़ाया- “सुबह तुम्हारे बायें वाले पे मारा था। और अब एक बचा था उसपे। कर दे ना उसके सामने…”

दोपहर में जब गुंजा स्कूल से आई थी तो उसका बायां उभार रंग से लथपथ था। रज्जऊ ने रंग भरा गुब्बारा फेन्का था जो सटीक निशाने पे लगा था।

गुंजा ने महक की बात मान ली और अपने उभार रजऊ के सामने उभार दिये और चिढ़ाते हुये हल्की सी आँख मार दी। दूसरा कोई दिन तो होता तो वो कुछ कमेंट करता, कम से कम मुश्कुराता। लेकिन आज उसने कोई रिएक्सन नहीं दिखाया।

गुंजा महक से बोली- “यार हो क्या गया इसको, कहीं तबीयत वबीयत तो नहीं गड़बड़ है…” और तब तक मामला साफ हो गया।



पीछे से चुम्मन आया, एक बड़ा सा चाकू लहराते हुये और रज्जऊ से बोला- “पटरा लगा तुरन्त…”

महक चुम्मन को देखकर जोर से चीखी। पलक झपकते, पटरा लगाकर वो दोनों अंदर घुस गये और रज्जू ने पटरा उठाकर वापिस बन रही बिल्डिन्ग की छत पे फेंक दिया।



शाज़िया उन लोगों के आगे वाली बेंच पे बैठी थी। महक की चीख सुनकर उसका ध्यान खिड़की की ओर गया और एक चाकू लहराते आदमी को देखकर वो बहुत जोर से चिल्लायी-

“भाग। जल्दी भाग…” वो तब तक चिल्लाती रही जब तक क्लास कि बाकी सब लड़कियां बाहर नहीं निकल गईं।

चुम्मन पीछे से चिल्लाया-

“साले दरवाजा बन्द कर। ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को रोकना है…”

और चाकू दिखाकर उसने गुंजा और महक को रोक रखा था। चाकू की नोक उसने महक के गले पे रखी और बोला- “रुक जा सब सालियों वरना तुम सबको चीर के रख दूँगा…”

एक पल के लिये ठिठकी और इतना समय काफी था, रजऊ को उसे धर दबोचने के लिये। चुम्मन ने चाकू की नोक महक के गले पे और जोर से दबायी, तो एक बूंद खून छलछला उठा।

चुम्मन बोला- “तुम तीनों में सो कोई जरा सा भी हिला ना तो ये चाकू अन्दर घुस जायेगा…”

रजऊ ने पहले बाहर निकलकर देखा की किसी कमरे में, बरामदे में कोई है तो नहीं फिर अंदर घुसकर, उसने दरवाजा खिड़की बंद कर दिया।


चुम्मन-

“बेन्च लगा यहाँ… खिड़की के सामने हाँ थोड़ा दूर। हाँ यहीं अब कोई साल्ला गोला गोली फेंकेगा इ खिड़की से, तो पहला निशाना यही सब बनेंगी और हम लोगों के लिये काफी टाईम मिल जायेगा। तू तीनों बैठ जा इधर…” और जब तीनों लड़कियां बेंच पर बैठ गईं तो उसने रजऊ से बोल- “जरा देख इन सालियों को। मैं काम करता हूँ…”

चुम्मन ने बैग से बाम्ब निकाला जो शायद दो पार्ट में था। उसने उसे जोड़कर बेंच के नीचे रख दिया और एक तार निकालकर बेंच के दो पायों में अच्छी तरह लगा दिया।



रजऊ ने महक की ओर इशारा करके बोला- “बास, एक तार इस ससुरी के पैर में भी बांध दो…”

चुम्मन- “साले बहुत फिल्लम देखता है। अरे इसको कौन सुसाईड बाम्बर बनाना है। फिर तार भी कम है…” फिर हम लोगों को सुनाते हुये बोला- “अगर तुम लोग हिली डुली, किसी भी सूरत में इस बेंच के पाये एक इंच से ज्याद हिले तो तार मिल जायेंगे। और बूम…”

चुम्मन महक से ज्यादा नाराज था। महक के सामने खड़े होकर वो बोल रहा था-

“हे अपनी बहना को तो भेज दिया ना। तो चल वो ना सही तो तू सही। अरे मैंने उस साली से क्या कहा था, मेरे खूंटे पे बैठने के लिये तो बैठ जाती, कौन मैं उससे शादी करने वाला था। चल वो ना सही तू सही। तू तो उससे भी ज्यादा मस्त है रे। तुझे अपने खूंटे पे बिठाऊँगा और दो-चार दिन में मन भर गया तो मेरे चमचे। एक-एक दिन में 10-10 खूंटे, तू तो मजे से मर जायेगी बन्नो। लेकिन नहीं, सबसे बाद में तुझे इस खूंटे पे बिठाऊँगा…”

और फिर से उसने अपना 10…” इंच का चाकू निकालकर लहराया।



चुम्मन फिर बोला-


“ना डर मेरी छमिया, बहुत मजा आयेगा। तुझे ना आये लेकिन मेरे इस रामपुरिया को तो आयेगा। डर मत यार धीरे-धीरे घुसाऊँगा, ये चाकू तेरी चूत में और फिर ऊपर के हिस्से पे भी पूरी आर्ट बनाऊँगा। बाडी आर्ट। इसका मैं आर्टिस्ट हूँ। ये मेरा ब्रश है और तेरी बाडी कैन्वास…”

जब गुंजा ये सब सुना रही थी हम सब सकते में थे। पिन ड्राप साईलेन्स। मैंने महक का हाथ अच्छी तरह अपने हाथ में पकड़ लिया था। उसने भी अंगुलिया मेरे उंगलियों पे भींच ली।

गुन्जा ने एक पल रुक के फिर बोलना शुरू किया-

चुम्मन बोल रहा था और उसका चाकू महक के ड्रेस पे गड़ा हुआ था, उसके सीने पे। उसने बोला-


“और 5-6 दिन बाद तेरी बाडी। मेरी पेंटिंग मेरे बहुत काम आयेगी, 5-6 दिन बाद कब तुम्हारा आखिरी काम होगा ना। तो वो तेरी डरपोक बहन आयेगी। और अगला नम्बर उसका…”

और ये कहकर उसने महक की चूचियों के ऊपर चाकू हल्का सा दबा दिया। कपड़ा थोड़ा सा फट गया और उसका सीना हल्के से दिखने लगा। चाकू की नोक वहां उसने कसकर दबा दी थी।

महक ने अपना सिर मेरे कंधे पे रख दिया था और मेरे एक हाथ ने उसकी कमर कसकर पकड़ ली थी। मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया। छोटी सी लड़की और कहां-कहां से गुजर गई। और उसके बाद ये मुश्कान, ये चुहल। और किस तरह रुक कर उसने बिना सोचे अपना दुपट्टा फाड़कर मेरे हाथ में बांधा।

एक पल सब चुप रहे।

गुड्डी ने बोला- “फिर?”



अबकी महक बोली-

“फिर क्या थोड़ी देर बाद। फटा पोस्टर निकला हीरो। मेरा हीरो आ गया और चुम्मन कि ऐसी की तैसी। बिचारे की कलात्मक भावनाओं को बहुत आघात पहुँचा होगा…”
साला हरामी चुम्बन. लड़कियों को बांध कर हीरो बन रहा है. कॉइयों को देख कर बड़ी हसरते जाग रही थी. ऐसे तो कोई उसके मुँह पर थूके भी नहीं. लेकिन एन्ड वक्त पर जीजू हीरो आ गए.

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तब तक मुझे अपनी जेब में कुछ चुभा और मैंने बाहर निकाल लिया। एक मोबाइल। हाँ तब मुझे याद आया ये वही मोबाइल है जो मैंने फर्श पर से उठाया था।

शाज़िया बोली- “ये तो चुम्मन का मोबाइल है…”

मैंने पूछा- “तुम्हें कैसे पता?”

शाज़िया बोली-

“जैसे ही हम तीनों को उसने बेंच पर बिठाया। उसने हम सबके मोबाइल ले लिये। गुंजा और महक के मोबाइल तो उसने तुरंत पटककर, जूते से दबाकर कुचल-कुचलकर तोड़ दिये। मेरा मोबाइल लेकर थोड़ी देर वो कुछ सोचता रहा, फिर रजऊ से बोला-

“यार सबको बता दें वरना स्कूल में कोई दुम उठाये चला आयेगा और उसकी मुसीबत हो जायेगी अपना काम बढ़ जायेगा…”

फिर मेरे ही फोन से पहले तो उसने किसी न्यूज चैनेल को फोन किया और फिर कोतवाली में।

एक-दो बार जब मेरे फोन पे रिंग आने लगे तो स्विच आफ करके, जिस बेंच पे हम बैठे थे वहीं रख दिया। फिर उसके फोन पे कोई घंटी बजी, शायद साईलेंट मोड में रहा होगा। उसने फोन, यही फोन जो आपके हाथ में है उठाया और कमरे के कोने में बात करने के लिये चला गया। वो धीरे-धीरे बोल रहा था। इसलिये सुनायी नहीं दे रहा था। बात खतम करके वो रजऊ को हम लोगों पे निगाह रखने के लिये बोलकर चला गया, नीचे…”



शाज़िया की बात सुनकर एक पल के लिये मैं सोच में पड़ गया। फिर मैंने शाज़िया से पूछा- “क्यों तुम बक्सर गई थी क्या?”

शाज़िया ने मुश्कुराते हुये चौंक कर कहा- “ये आपको कैसे पता?”

और शाजिया की दूध खील सी खिलखिलाती हंसी पूरे कमरे में बिखर गयी, जैसे डर घबड़ाहट को किसी ने झाड़ू मार के कमरे से बाहर कर दिया हो, जैसे पुचारा लेकर किसी बच्चे ने अपनी स्लेट साफ़ कर दी हो,

और पहली बार मैंने शाज़िया को उस नजर से देखा, जिस नजर से जवानी के दरवाजे पर जोर जोर से दस्तक दे रही हो, को देखा जाना चाहिए। जैसी दर्जा नौ वाली बनारसवालियाँ होती हैं, जिसका जोबन अंगड़ाई मार रहा हो, जोड़े के कबूतर उड़ने को बेचैन हों, और गुंजा से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं थे, कटाव, उभार, कड़ाई, छलकते रस किसी मामले में नहीं,



और मेरी नजर को पहचान के शाज़िया की नजर हल्के से मुस्करायी और मुझे थोड़ी देर पहले ही तो गुंजा ने जो अपनी क्लास की होली के बारे में, ख़ास तौर से शाज़िया के बारे में जो बताया था सब मेरे जेहन में आ गया ,

चाहे होली में रगड़ाई करनी हो, या गालियां देनी हो दोनों में गुंजा के क्लास में, सबसे तेज थी, नो होल्स बार्ड वाली, और जितना गुड्डी, रीत और संध्या भाभी ने रंग लगाया था उसके बराबर गुंजा ने अकेले, और कोई जगह छोड़ी नहीं थी, यहाँ तक की पिछवाड़े भी, दो अंगुल अंदर तक, सूखा रंग और पेण्ट दोनों, और जब मैं चिल्लाया, तो हँसते हुए गुंजा बोली,

" जीजू, गनीमत है आप शाज़िया के हाथ नहीं पड़े हैं, मैं तो दो ऊँगली में छोड़ रही हूँ, वो तो पूरी मुट्ठी अंदर करती आपके, "

और बताया की कैसे सुनीता उसकी क्लास की, जिसकी सबसे पहले फटी थी उसके क्लास में आज से डेढ़ दो साल पहले, कोई दूर के पड़ोस के रिश्ते के जीजा ने उसकी भाभी के साथ मिल के होली में भांग पिला के उसकी फाड़ी थी, और तब से अब तो कोई चचेरा, ममेरा, फुफेरा भाई नहीं है जिसका उसने न घोंटा हो और सब के किस्से आ के सुनाती है, अभी भी चार पांच लौंडे पटा रखे हैं उसने, तो उसी सुनीता की,

उस दिन क्लास की होली में न सिर्फ पैंटी फटी, ब्रा लूटी गयी, सबके सामने ऊँगली की गयी, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर, और करने वाली यही शाज़िया, और गालियां अलग सुनीता से ही दिलवाई, उसके सो काल्ड भाइयों को,

यहाँ तक की गुंजा की ब्रा भी उसने ही लूटी थी और गुंजा के दोनों जोबन पे जो पक्के सुनहरे पेंट में लगे उँगलियों के निशान थे, वो भी शाज़िया के ही थे,

और गुंजा भी शाज़िया की ब्रा लूट के लायी थी,



लड़कियां न सिर्फ अपनी भावनाएं कहने के दर्जनों तरीके जानती हैं बल्कि लड़कों के मन में क्या तूफ़ान चल रहा है, वो भी उन्हें पटा चल जाता है, तो शाज़िया को कुछ अंदाज तो हो गया था, पर वो बात को पटरी पे ले आयी और मुस्करा के फिर से उसने मुझसे पुछा, वही बक्सर वाली बात

आपको कैसे पता बक्सर वाली बात

महक हँसकर बोली और मेरी एक उंगली कसकर दबा दी- “मेरे जीजू शर्लाक होम्स हैं पैंटी देखकर बता देते हैं की भरतपुर स्टेशन पे कब कौन गाड़ी खड़ी हुई, कितने मुसाफिर उतरे…”

अब शाज़िया एकदम उछल पड़ी, बनावटी गुस्से से, महक के ऊपर भी और गुंजा के ऊपर भी, अब वो पूरे मूड में आ गयी थी,

" स्सालियों, मैं तुम दोनों से छोटी हूँ, इसलिए तुम दोनों से पहले मेरे जीजू हुए, "

गुड्डी जो अबतक चुप बैठी थी, अपना हक़ जताती, मुस्करा के शाज़िया से बोली, " घबड़ा मत, होली के बस दो दिन बाद यहीं आयंगे, और मैं लाऊंगी कान पकड़ के, अपनी छोटी बहनो से होली खेलने के लिए, रंगपंचमी तक यहीं रुकेंगे, कर लेना तुम सब मनमर्जी, "

शाज़िया ने बड़े खतरनाक अंदाज में मुस्करा के मेरी ओर देखा, जैसे कसाई बकरा काटने के पहले देखता है, कितन गोश्त निकलेगा इसमें और फिर महक पर चढ़ाई करते बोली, " सुन स्साली, पहली बात मैं उन सालियों में नहीं हूँ जो जीजू के सामने पैंटी पहन के आऊं, जीजू का टाइम और मेहनत दोनों वेस्ट होगी, "

और अगली बात मुझे सुनाई, " और गुंजा और महक की तरह मेरे भी भरतपुर स्टेशन पे अबतक कोई गाडी आसपास भी नहीं फटकी है, एकदम कोरी है मेरी गुल्लक, कच्ची मिटटी की लेकिन, "

रुक के उसने अपनी दोनों सहेलियों को देखा और अपना इरादा साफ़ कर दिया,

" लेकिन बस अब दो चार दिन और, होली के बाद होगी असली होली, जब मेरे ये जीजू आएंगे, लेकिन तू दोनों कान और बाकी सब छेद खोल के सुन ले, छोटी साली होने का मेरा फायदा, ऐसा निचोड़ूँगी, ऐसा निचोड़ूँगी न की तुम दोनों के लिए एक बूँद भी सफ़ेद रंग नहीं बचेगा, "

लेकिन गुंजा कौन कम थी, और उसने नापा जोखा भी था और सफेद रंग का स्वाद भी लिया था, वो मैदान में आ गयी,



" स्साली, मेरे जीजू हैं, समझती क्या है, तुझे, तेरी बड़ी बहन को और तेरी अम्मी को तीनो को चोद के रख देंगे, फिर भी इतनी ताकत बचेगी की चू दे स्कूल की पूरे क्लास नौ की लड़कियों की फाड़ने की ताकत बची रहेगी, '



कौन मरद नहीं खुश होगा ऐसा तारीफ़ से लेकिन मैं बक्सर वाली बात सुनने के लिए बेताब था इसलिए बड़ी मुश्किल से मैं बात को ट्रैक पर ले आया



और शाज़िया ने राज खोला- “नहीं मैं बक्सर नहीं गई थी। मेरे एक कजिन हैं मेरी बुआ के लड़के, मुझसे वैसे तो 7-8 साल बड़े हैं लेकिन हम दोनों की बहुत बनती है। अभी तीन-चार दिन पहले आये थे। मैंने उनसे खूब झगड़ा किया। उनको नई-नई नौकरी मिली है और पहली पोस्टिंग बक्सर में है। वो बोलने लगे की होली के पहले उनकी फर्स्ट सैलेरी मिल जायेगी। तब वो ले आयेंगे मेरे लिये नये ड्रेसेज। मैंने उनका फोन तब तक के लिये जब्त कर लिया…”

मैंने बोला- “रोमिंग बहुत लगेगी…”

शाज़िया हँसते हुए बोली- “बिल्कुल ठीक…” यही बात भैय्या ने भी कही। लेकिन मैं भी कम चालाक थोड़े ही हूँ। मैंने बोल दिया- “जब आप ड्रेसेज दिलायेंगे ना तो रोमिंग का बिल मैं वहीं पेश कर दूँगी। वैसे मैंने आज सोचा था कि स्कूल से लौटते हुये नया सिम ले लूँगी…”

सहेलियां क्यों छोड़तीं, गुंजा ने छेड़ा, " कमीनी शाज़िया, कौन सा बिल पेश करती, अपने सो काल्ड भैया के आगे, आगे वाला, या पीछे वाला या दोनों, अपने भैया के सामने "

लेकिन शाज़िया कम नहीं थी, और जब मुस्कराती तो उसके खूब भरे भरे रसीले होंठ, और जिस अंदाज से वो अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचाती, बस उसी अंदाज में देख वो मुझे रही थी, पर बोल गुंजा और महक से रही थी,

" यार, सुन स्सालियों, अब तो मेरे तीनो बिलों पर, तुम दोनों से पहले, मेरे इस जीजू का नाम लिखा है, जब सामने ऐसा हैंडसम जीजू हो, तो फिर पूरी की पूरी वेटिंग लिस्ट कैंसल,



आँखे तो मेरी शाज़िया के रसीले होंठों और गदराये उभारों पर चिपकी थीं, मन भी लेकिन दिमाग बक्सर और सिम के बारे में सोच रहा था,



मैंने सोचा- “मेरी और डी॰बी॰ की सिम के जरिये ट्रेस करने की स्टोरी गई पानी में…” चुम्मन ने जिस नंबर से फोन किया था और जिसकी रिकार्डिंग में आवाज सुन के गुड्डी ने पहचाना था, गुंजा की आवाज को और चुम्मन को भी, वो असल में शाज़िया का फोन था और उस सिम शाज़िया पे लाइन मार रहे उसके भाई की बक्सर की थी,

और यहाँ पुलिस ने दुनिया भर की फोरेंसिक ताकत लगा के उस फोन की अनेलिस, नंबर की ट्रैकिंग कर के पता किया था की सिम बक्सर की है , वो तो डीबी ने रोक दिया वरना सिम से सिम वाले का पता करना, उस का नाम और फोटो, और कहीं वो पुलिस से ' विश्वस्त सूत्रों ' के नाम पर मिडिया तक पहुंच जाता तो फिर तो शाज़िया के उस भाई की मुसीबत आ जाती



डी॰बी॰ ने बोला था की सिम बक्सर की है, जिससे पुलिस स्टेशन में फोन आया था। चार-पाँच घंटे में बक्सर से सब कुछ पता चल जायेगा। हालांकी डी॰बी॰ ने ये भी बताया था की सिम से सब कुछ नहीं पता चलता।

और सिम ने बिहार पुलिस से हेल्प या कोआर्डिनेशन मना कर दिया और बोला की अभी हमारी पहली प्रायॉरिटी, लड़कियों को सेफ रखना और उन्हें सेफली छुड़ाना है, बाकी सब तो वो सब जो पकड़ में आएंगे तो पता चल ही जाएगा,


साज़िया तो काम की निकली. चुम्बन का मोबाइल उसके हाथ लग गया. और बक्सर मे उसके भैया के वहां जा चुकी है. अब असली सिम का खेल और सुपारी वाले धमकी के कॉल्स का पता चल जाएगा. साज़िया के उभरो तो जिल्ला लुटेला. वाह आनंद बाबू. अब ललचाइये नहीं. कुछ कीजिये.

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भाग ३५ -हवा में दंगा

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सब लोग चुप खड़े थे, कुछ डरे सहमे, कुछ के समझ में नहीं आ रहा था क्या बोलें।



गुंजा को जैसे काठ मार गया था, लग रहा था एक बार फिर उसने मौत देख ली है, आँखे एकदम खुली, भावशून्य, चेहरा पथराया, और गुंजा की हालत देखकर मेरी हालत भी कम खराब नहीं थी। मैं समझ रहा था, अबकी खतरा बहुत बड़ा है, किधर से आएगा, पता नहीं और जिस तरह से डीबी ने बोला था, कहीं न कहीं उस तूफ़ान के केंद्र में गुंजा थी, और अगले आधे घंटे, जबतक गुंजा घर नहीं पहुँच जाती,.... बहुत भारी पड़ने वाले थे।

दोनों सेल्स गर्ल भी डरी सहमी एक दूसरे को देख रही थीं,



गुड्डी एकदम दरवाजे पर खड़ी हम सब को देख रही थी, पर चुप्पी तोड़ी महक ने और वो सेल्स गर्लस से बोली,

" बस घबड़ा मत, मैं हूँ न। कुछ होगा तो तुम दोनों आज मेरे घर चल चलना,... लेकिन उसके पहले, बस ज़रा पांच मिनट

और महक ने दोनों आफिसब्वॉयज को आवाज दी और उन्हें काम पकड़ा दिया, एक से बोली,

" तू जरा नीचे बेसमेंट से देख ले, वो बगल वाली सड़क पर, थोड़ी दूर जा के कैसा हालचाल है, कोई भीड़ वीड़ तो नहीं है "

और दूसरे से बोला, बाहर के सारे शटर बंद कर दो, डबल लॉक भी कर दो और अंदर की दुकानों के भी अलग अलग शटर गिरा दो। सब लाइट बंद कर दो और मेन स्विच से भी बंद कर दो, कैमरे चेक कर लेना। और उन दोनों के जाते ही, उसने अपनी दोनों सेल्स गर्ल्स को बड़ी सी तंजौर पेंटिंग की ओर इशारा किया,


मेरी समझ में नहीं आरहा था, की ऐसी हालत में जब एक एक मिनट कीमती है ये तंजौर पेंटिंग, लेकिन उसके हटते ही मुझे खेल साफ़ हो गया

उसके नीचे कई खानो में कुछ गिनतियाँ लिखी थीं जैसे दुकानों पे शुभ लाभ इत्यादि के लिए करते हैं लेकिन वो कोई कोड थे और उसी का कुछ दूना तिगुना कर के, महक ने अपनी पांचो उँगलियाँ लगायीं और दीवाल हल्की सी सरकी और उस पेंटिंग इतनी ही बड़ी लेकिन खूब गहरी एक सेफ नजर आयी।

दोनों सेल्स गर्ल अबतक काम में जुट गयीं थीं, महंगे आई फोन, आई पेड, इम्पोर्टेड परफ्यूम और भी चीजें निकाल के एक बैग मेन दाल रही थी और तबतक दीवाल में लगी दूसरी सेफ खोल के उसमे रखे पैसे भी निकाल के एक दूसरे बैग में महक ने डाल लिए और वो दोनों बैग उस बड़ी सी सेफ में,


अब तक मैं समझ गया था खेल, सबसे बड़ी बात यह थी की वह सेफ फायर प्रूफ और बॉम्ब प्रूफ थी, तो लूटने वाले दूकान लूटने के बाद अकसर आग लगा देते हैं तो उस आग में भी वह सेफ बची रहती और उसके अंदर रखा सामान भी। सेफ बंद कर के फिर से पेंटिंग वहां लगाने के बाद हम लोग कुछ और बात करते की दोनों लड़के आ गए और पता चला की माल के पीछे वाली सड़क, जो सड़क क्या एक चौड़ी सी गली है, वो अभी भी थोड़ी सेफ है, दो चार दुकाने खुली हैं लेकिन वो लोग भी बंद कर रहे थें और सब लोग यही कह रहे हैं की दंगा कभी भी हो सकता है , कुछ कहना है की शुरू हो गया है, हाँ इधर नहीं होगा। पर सड़क पर एकदम सन्नाटा है।

मेन रोड की हालत हम लोग पहले दी देख चुके थे, एकदम अघोषित कर्फ्यू जैसा, सिर्फ पुलिस की गाड़ियां दिख रही थीं।

"चल तू दोनों अब पीछे वाली गली से निकल जा, अभी तो कोई बात नहीं है " महक ने सेल्स गर्ल्स से बोला



" हाँ, मैं तो पांच मिनट मे घर पहुँच जाउंगी और कुछ होगा तो ये भी वही रुक जायेगी और बाद में चली जायेगी, गली गली हो के " और वो दोनों निकल दी,



" डीबी का फोन आया था "

मैं गुड्डी से बोला, फिर मुझे लगा महक और गुंजा को तो नहीं मालूम होगा तो साफ़ साफ़ बताया, " एस एस पी साहेब का फोन आया था, की हम लोग तुरंत निकल जाएँ और कार से नहीं, क्योंकि सड़क पर प्रॉब्लम हो सकती है "



पुलिस थाने से तो हम लोग महक की कार से आये थे और होटल से पुलिस थाने तक, पुलिस की गाडी से और पुलिस की गाडी डीबी ने साफ़ मना कर दी थी तो कैसे ?

पर गुड्डी थी न वो झट से बोली, तो बाइक से चलते हैं, गली गली में आसान भी होगा, ट्रिपलिंग कर लेंगे।

पर हम तीन थे और ये कोई एक्टिवा वाला मामला नहीं था, लेकिन महक और गुड्डी ने मिल के रास्ता साफ़ कर दिया। गुड्डी और गुंजा की देखा देखी अब महक भी हड़काने लगी थी,

" अरे जीजू, चुम्मन से लड़ना नहीं है, ...न पढाई और न कम्पटीशन पास करना है, बनारस में चुपचाप बनारस की लड़कियों की बात मान लिया करिये, फायदे में रहेंगे। "

और हम तीनो, एक पतली सी सीढ़ी से बेसमेंट में उतर गए, और सीढ़ी का रास्ता भी महक ने बंद कर दिया। बेसमेंट में पूरा अँधेरा था और मेन स्विच बंद हो गयी थी, लेकिन मोबाइल की लाइट में महक ने एक बाइक पर का कवर उतारा और मेरी चीख निकलते निकलते रह गयी।



रॉयल इन्फिल्ड हंटर ३५० टॉप



और वो भी एकदम बढ़िया कंडीशन में, एकदम चमक रही थी और महक ने मेरे बिना पूछे, बता दिया, " प्रीति दी की है "



प्रीति, यानी महक की बड़ी बहन, जिसके चक्कर में चुम्मन पड़ा था, और जिसके मना करने पर एसिड फेंकने की कोशिश की थी, वो तो गुड्डी ने उसे खींच लिया और वो बच गयी, बस पैर पर जरा सा पड़ा, तो वही ये बाइक चलाती थी लेकिन अब प्रीति ने बनारस छोड़ दिया था तो उसकी बाइक यहाँ बेसमंट में खड़ी थी।



और गुड्डी के बाइक ज्ञान का रहस्य भी पता चला, रीत के चक्कर में,

रीत का कोई ब्वाय फ्रेंड था, आई एम् ए ( इंडियन मिलेट्री एकदमै ) में , उसी के पास एक जबरदस्त बाइक थी, तो जब वो आता तो उसी बाइक पे रीत उस के पीछे चिपकी, लेकिन उस ने रीत को भी सिखा दिया तो अब रीत गुड्डी को पीछे बैठा के पूरा बनारस नापती, और रीत से गुड्डी ने भी थोड़ा बहुत, लेकिन अब जब गुड्डी ने एक नई ट्रिक सीख ली थी, जब वो बाइक लेके आता, तो बस रीत को वो समझा देती, " दी, जरा एक घंटा " और दोनों कबूतरों के गुटरगूं में एक घंटा कब दो घंटा हो जाता पता नहीं चलता और गुड्डी बाइक ले के गली गली, और एक दो बार गुंजा को भी पीछे बैठा के,...

बाइक कौन चलाएगा, अब इस का सवाल ही नहीं उठता था, गुड्डी को गलियों का पूरा जाल मालूम था और अब हम तीनो बाइक पे , महक ने हेलमेट का भी इंतजाम कर दिया था,

बेसमेंट का एक रास्ता पतली गली में खुलता था जो आगे चल कर एक चौड़ी गली कहें, या पतली सड़क उस से जुड़ जाता था, जब तक हम लोग वहां तक नहीं पहुँच गए, महक देखती रही।



उस ने अपने ड्राइवर को फोन कर दिया था की हम लोगो का सामान लेकर सीधे गुंजा के घर,
Nice update after a long time.
 
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सड़क पर सन्नाटा

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मैं पीछे से गुंजा को कस के पकडे था, लेकिन बाज की तरह मेरी निगाहें चारो ओर घूम रही थीं,


खतरा कहीं से भी आ सकता था, लेकिन सब से ज्यादा डर मुझे सन्नाटे से लग रहा था, मॉल के पिछवाड़े से निकली उस पतली गली में तो अभी जिंदगी कहीं कहीं टहलकदमी करती दिख रही थी, कूड़े के ढेर के आस पास मुंह मारती एक दो गायें, बगल से आकर मिलती गलियों से झांकते एक दो बच्चे, कहीं कहीं लग रहा था चाय की टपरी बस अभी बंद हुयी थी, पर जैसे ही हम लोग सड़क पर आये,

बस मैं दहल गया।

एकदम सन्नाटा, बनारस की सड़कों पर तो आधी रात को भी इतना सन्नाटा नहीं रहता, और तिझरिया को, सड़क एकदम जनशून्य, दुकनों के शटर बंद, पटरी पर भी जैसे ठेले वालों ने जल्दी जल्दी अपनी दुकाने समेट कर घर की राह ली हो, सड़क के अगले मोड तक सड़क एकदम साफ़ दिख रही थी, हाँ मोड़ पर जरूर दो चार पुलिस वाले, डंडा धारी, अपनी चिरपरिचित वीतरागी मुद्रा में बैठे थे, हाँ, उनमे से एक कभी कभी गलियों की ओर देख ले रहा था, पर थोड़ी देर आगे ही मैंने बायीं ओर ध्यान से देखा तो एक बंद दूकान के सामने पी ए सी के पांच छह जवानो का दस्ता रायट गियर में बैठा था।

दिन में इतने तरह की आवाजें सुनाई देती थीं,... रिक्शे टेम्पो वालों की, ठेले पर सामान बेचने वाले, भीड़ की अपनी कचर मचर, स्कुल से छूट कर घर जाती लड़कियों की बातें....उन्हें घर पहुंचाते आँखे सेंकते लड़को के कमेंट्स, छज्जे पर से झाकंती औरतें और फागुन अपनी चरम सीमा पर था तो कुछ नहीं बच्चे अपनी प्लास्टिक की पिचकारियों से पानी ही पचर पचर फेंकते

कभी नीरवता ही आशंका को,... कभी भी हो सकने वाली अनहोनी की आहट को, जन्म देती है,... और इस समय वह सन्नाटा चीख रहा था,


छुप जाओ, घर में घुस जाओ, पहले जान बचाओ

मैं उस सन्नाटे को सूंघ सकता था, हवा में बारूद की घुली गंध की तरह दंगे की महक को पहचान रहा था, और जो कुछ भी मैंने डीबी की बातें सुनी थीं, टीवी पर देखा था, और अभी सड़क पर, गलियों में देख रहा था, समझ रहा था, बस यह साफ़ था की बारूद का ढेर जगह जगह रख दिया गया है, बस एक चिंगारी की देर है,

और जो डर मैंने पहली बार डीबी की आवाज में सुना था, ' जल्दी निकल जाओ, गुंजा को लेकर, बस पन्दरह बीस मिनट में घर पहुंच आओ "

साफ़ था उनकी टाइम लाइन में भी आनेवाला खतरा घंटों में नहीं अब मिनटों में था और अगर वो उन्होंने रोक लिया तो शायद तूफ़ान रुक जाए नहीं तो सब तूफ़ान में तिनके की तरह उड़ जाएगा, और कहीं न कहीं उस आने वाले तूफ़ान के केंद्र में गुंजा थी।

मेरी आँखे चारो ओर देख रही थीं, कान भी आँख बन गए थे, पर दिमाग अलग चल रहा था।

मैं चूल से चूल भिड़ा रहा था, कौन है जो,...


और, एक नहीं अनेक लोग नजर आ रहे थे जो परछाई में थे। राजनीतिक, आर्थिक, माफिया और भी न जाने कितने चेहरे धुंध में छिपे थे, और जो डीबी ने डिप्टी होम मिनिस्टर के बारे में बताया था, चीफ मिनिस्टर से जिस तरह डीबी की बात हुयी थी, साफ़ लग रहा था,


माइनॉरिटी गवर्मेंट थी, लॉ और आर्डर के नाम पर कुछ दिन पहले आयी थी, और एक एक एक एम् एल ए की कीमत थी।

और डिप्टी होम मिनिस्टर की पकड़ एक बड़े जाति समूह के साथ साथ दस बारह एम् एल ए पर तो प्रत्यक्ष थी और धीरे धीरे जो भी अंसतुष्ट होता, जिसके कहने पर थानेदार, कलेकटर की पोस्टिंग नहीं होती, वो भी उन्ही के साथ चिपक रहा था। केंद्र और संगठन भी बड़े तगड़े मुख्यमंत्री के पक्ष में नहीं था तो वो डिप्टी के लिए कवच सा था। और उन्हें हटाना चीफ मिनिस्टर के लिए सम्भव नहीं था, पर उन्होंने कुछ पोस्टिंग ट्रांसफर अपने हाथ में लेकर लगाम पकड़ रखी थी।

डिप्टी होम मिनिस्टर, थे पूर्वांचल के ही और पुरानी सरकार वाले दल से छलांग लगा के इधर आये थे, और वहां भी राजनीतिक दबंग थे। होम मिनिस्टर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थे, ईमानदार थे, और सबसे बढ़ कर चीफ मिनस्टर के वफादार थे, लेकिन सब जानते थे की वो पोस्ट आफिस की तरह ही काम करते थे।

अगर दंगा हुआ तो, एक बड़ा तयशुदा प्रोटोकॉल था, एस एस पी और एक दो और अधिकारी सस्पेंड होते थे और उसके बाद वो कब कहाँ पोस्ट होंगे उसका कोई ठिकाना नहीं था। और डीबी को हटाना बहुत लोग चाहते थे, जिनमे डिप्टी होम मिनिस्टर भी थे।

लेकिन निशाने पर सिर्फ डीबी नहीं होते, होम मिनिस्टर और अगर कहीं दंगा लम्बा चल गया तो चीफ मिनिस्टर भी आ सकते थे।

माफिया दमन की डीबी की नीति से माफिया वाले तो नाखुश थे ही बहुत से हर पार्टी के नेता भी दुखी थे। और माफिया ख़तम कभी होता नहीं , वो बस सरक लेता है, नए कपडे पहन लेता है बहुत हुआ तो कुछ दिन के लिए दुबक लेता है। और यहाँ भी बहुत लोग बगल के राज्यों में चले गए थे, कुछ ने फुल टाइम ठीकेदारी शुरू कर दी थी, लेकिन उनके लड़के, मसल मैन, फ़ॉलोअर्स तो थे ही और एक फोन पर इकठ्ठा हो जातेतो राजनीती के साथ माफिया और मसल्स मैन की भी कमी नहीं थी।

और बाकी पहलु भी थे, एक तो बिल्डर, गुड्डी के साथ पैदल आते मैंने देखा था की कितने मकान गिर रहे थे, कुछ खाली पड़े थे , नया कंस्ट्रशन हो रहा था तो हर दंगे के बाद शहर की सोशल डेमोग्राफी बदल जाती है और लोग किसी भी दाम पर दंगा ग्रस्त मोहल्लो से बाहर निकलना चाहते हैं।

तो बारूद का ढेर तैयार था, उसमें चिंगारी लगाने वाले तैयार थे और उसके बाद जो दावानल धधक धधक कर जलाता उसमें हाल सेंकने वाले भी तैयार थे, और सवाल था सिर्फ चिंगारी का जो उस भूस के ढेर को जला देती,



और ये चिंगारी थी गुंजा।



मेरे कानो में सी एम् की बात गूँज रही थी, जब वो डीबी से बात कर रहे थे, उन्होंने सिर्फ एक इंस्ट्रस्क्शन दिया, ' लड़कियों को जल्द से जल्द सुरक्षित उनके घर पहुंचाओ '।

जो भी मेरा थोड़ा बहुत अनुभव था, मै यह समझ गया था की नब्ज पर पकड़ पॉलिटिशियन की ही होती है, वह दूर से आने वाले तूफ़ान को किसी भी नौकरशाह से पहले देख लेता है। हाँ यह बात अलग है की वह आपदा में अवसर ढूंढते हैं और कबाड़ से भी जुगाड़ लगा लेते हैं।


और जब मै शाजिया को छोड़ने घर गया था तो एक पुलिस की गाडी ने महक के अंकल की खड़ी गाडी को देख कर बोला था की आप लोग जल्दी से गाडी हटा लीजिये और उसमें दो स्कूल यूनिफार्म में लड़कियां भी दिखी होंगी, और महक के अंकल को बहुत लोग जानते थे तो ये पता ही चल गया होगा की महक बस अपने घर पहुँच रही है, और

तो बची गुंजा।

और जिस तरह से निकलने के पहले हम लोग सीढ़ी पर फंस गए थे, बाहर से किसी ने ताला बंद कर दिया था, फिर बिना डीबी के इंस्ट्रक्शन के कुछ लोगों ने फायरिंग शुरू कर दी थी, मुझे लग रहा था की पुलिस में कुछ लोग निचले लेवल पर है जो इन्फो लिक करते हैं

और गुंजा के घर न पहुँचने की बात पता था, और इसलिए डीबी ने साफ़ बोला था, तुम लोग निकलो, जल्दी घर पहुंचो। उन को भी डर था की कही गुंजा के साथ कुछ हादसा हो और उस का इस्तेमाल दंगा भड़काने के लिए किया जाए , और उस के साथ गले में पटका लटकाये जो आदमी आग लगा रहा था, भड़का रहा था, कौन है जो हमारी लड़कियों के साथ, कौन है जो हमारे त्यौहार पर,

तो अगर कहीं गुंजा पर हमला हुआ, ....घायल लड़की, ...स्कूल की यूनिफार्म, ....और मै सोच भी नहीं सकता था की क्या क्या कर सकते हैं, वो गुंजा के साथ, बस एक बार उनके हाथ आ जाये,



और अबकी शुक्ला के गुंडों की तरह दो तीन लोग नहीं होते न ही चुम्मन की तरह कोई अकेला होता और वो भीड़ तैयार होकर आती

मैंने एक बार फिर से कस के गुंजा को दबोच लिया था, लेकिन तभी कही दूर से किसी और गली से, हो हो की आवाज सुनाई पड़ी


पर गुड्डी थी न हमारी सारथी, उसने हंटर को तेजी से मोड़ा, और एक एकदम पतली सी गली में बाइक घुसा दी। मुझे लग रहा था यह गली आगे बंद होगी, सामने दीवाल साफ़ दिख रही थी पर दीवाल के ठीक पहले एक शार्प टर्न और हम लोग दूसरी गली में, कुछ दूर पर ही एक सड़क थी वहां पुलिस की एक वान खड़ी थी, मैंने चैन की सांस ली, पर गुड्डी ने उस सड़क को पार कर दायीं ओर दूसरी गली में, फिर एक चौड़ी गली कहें या पतली सड़क, सीधे वहीँ,

और तेजी से ब्रेक लगा दिए ।



सामने एक वृषभ महोदय बैठे थे।
good going. Guddi is in full action.
 
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हमला
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गली जितनी संकरी थी, उतनी ही लम्बी और सबसे बड़ी बात की अगल बगल से कोई गली उसमे नहीं आ कर मिल रही थी। तंग होने के साथ मोड़ , घुमाव् भी बहुत थे और आगे क्या होगा, कुछ दिख नहीं रहा था, दोनों ओर दुतल्ले, तिनतल्ले के मकान इसलिए धूप भी एकदम नहीं आ रही थी, लेकिन अचानक हम प्राची सिनेमा के पास नयी सड़क पर पहुंच गए,


मैं सड़क से बचना चाहता था, देखे जाने, पहचाने जाने के डर के साथ भीड़ का बड़ा झुण्ड भी आ सकता था।

लेकिन इस सड़क पर भी सन्नाटा था हाँ दूर पुलिस की एक नीली ट्रक दिख रही थी और कभी के बंद प्राची सिनेमा पर रायट गियर में पी ए सी के जवानों का एक दस्ता मौजूद था। ठेले वाले लगता है जल्दी जल्दी में अपने ठेले छोड़ कर गए थे, कुछ में चेन लगी थी, कुछ बस ऐसी ही किसी खम्भे के सहारे छोड़ दिए गए थे।

और प्राची के बगल से ही एक पतली गली में गुड्डी ने बाइक मोड़ ली, और उस गली में कुछ चढ़ाई सी भी थी, ईंटे जगह जगह उखड़े थे पर खड़बड़ खड़बड़ करते गुड्डी की बाइक एक दूसरी गली में, जो थोड़ी ज्यादा चौड़ी थी, दोनों ओर बड़े मकान थे ज्यादातर पुराने कम से कम सत्तर अस्सी साल के कुछ और भी ज्यादा, और कुछ नए भी।


मुझे लगा, कुछ जाना पहचाना लग रहा है, फिर मेरी चमकी, ...सटी हुयी पीछे की गली में एक मस्जिद के गुंबद और मीनारे दिखी, और मेरी यादों की परत खुल गयी।

गुड्डी की सहेली, बल्कि सहेलियों और उस से ज्यादा भाभियों का मोहल्ला, और सब गुड्डी से भी दो हाथ आगे, थोड़ी देर पहले ही तो गुड्डी मुझे घिर्राती हुयी पैदल अपना २० किलो का बोझ मेरे पीठ पर लादे, ले आयी थी इसी रास्ते से,

लेकिन एकदम फरक लग रहा था, उस समय फागुन एकदम पसरा लग रहा था, पूरे शहर की हर गली की तरह, यहाँ भी बच्चे पानी भरी प्लास्टिक की पिचकारी लेकर पिच पिच कर रहे थे, एकदम से मुझे याद आया,

साइड में दो लोग, सफ़ेद कुर्ते पाजामे में, शायद मस्जिद से नमाज पढ़ के आ रहे थे, और सफ़ेद कपडे देख कर तो रंग छोड़ने वालों को और जोश आ जाता है तो बच्चों ने उन पे भी,

एक जो थोड़े बड़े थे उस बच्चे को चिढ़ाया,



" अरे मियां, क्या पानी लेकर पिच्च पिच्च, अपनी अम्मी से कह दो थोड़ा रंग वंग भी दिलवा दें, खाली पानी में क्या मजा "

इशारा बच्चे के बहाने अंदर की ओर था और जवाब अंदर से सूद के साथ आया, गुझिया छनने की छनन मनन और चूड़ियों की तेज खनक के साथ

" राजू अपने चच्चू से कह दो दिलवा दें न रंग। का करेंगे सब पैसा बचा के, अब तो कोई बहिनियों नहीं बची है जिसके लिए जहेज का इंतजाम कर रहे हों "

अब बाहर से चच्चू की आवाज अंदर गयी,

" आदाब भाभी "

" तसलीम " के साथ अंदर की खिलखिलाती आवाज ने चिढ़ाया भी बुलाया भी
" सब काम बाहर बाहर से कर लोगे, या अंदर भी आओगे, गरम गरम गुजिया निकाल रही हूँ। "

" नहीं नहीं भाभी, आप रंग डाल देंगी " बाहर से घबड़ाया जवाब गया।

" देखो भाभी हूँ, मेरा हक़ है, वो अंदर आओगे तो पता चलेगा, देखो, डलवाने से डरने से कोई बचता थोड़े ही है। "

हंसी के साथ दावतनामा आया,



लेकिन न वो हंसी, न गुझिया की महक न पिच पिच करते बच्चे कुछ भी नहीं दिख रहे थे, एकदम सन्नाटा, जिसनेअपनी गुंजलिका में जैसे पूरे शहर को जकड़ रखा था, यहाँ भी, लोग तो दिख नहीं रहे थे, बंद मकानों के दरवाजों पर डर की स्याही पुती थी।

मुझे याद आया यही जगह थी

जहाँ गुड्डी तो बच के निकल गयी थी मुझे उस ने सीधे छत के नीचे, और ऊपर से एक बाल्टी गाढ़ा रंग, मोहल्ले से कोई ननद सूखे बच के निकल जाए और होली पास में हो,

बाद में गुड्डी ने बताया की शबाना भाभी थीं, फरजान भाई की, अस्मा के चचाज़ात भाई थे उन्ही की, चार साल पहले शादी हुयी थी, और होली में क्या वैसे भी सब ननदे उनसे पनाह मांगती थी, हालचाल बाद में पूछती थीं, नाडा पहले खोलती थीं।

अस्मा, गुड्डी की सहेली गुड्डी से एक साल सीनियर, श्वेता के क्लास में, गुड्डी के स्कूल में, वो और उसकी नूर भाभी भी मिली थीं

पूरे मोहल्ले में गुड्डी की दर्जनों भाभियाँ हो गयी थी, उसकी सहेलियों के चलते.

रास्ते में ही आज उसकी सहेली आस्मा और उनकी भाभी नूर मिली थी और चंदा भाभी से भी दो हाथ आगे थी,

एक लड़की गुड्डी की ही उम्र की, शलवार कुर्ते में और उस के साथ एक कोई औरत, संध्या भाभी की उम्र की रही होंगीं, वो दुप्पटे को हिजाब की तरह सर पर लपेटे,
वो लड़की पहले गुड्डी को देखकर मुस्करायी, फिर साथ वाली औरत को इशारा किया, वो तो हम दोनों को देख कर लहालोट और गुड्डी से बिन बोले मेरी ओर देख के इशारा किया,
अब गुड्डी की कस के मुस्कराने की बारी थी और उन दोनों को दिखा के मुझसे एकदम चिपक गयी और गुड्डी का हाथ मेरे कंधे पे, मुझे भी अपनी ओर पकड़ के खींच लिया, एकदम चिपका लिया उन दोनों को दिखाते,

मान गया मैं बनारस को, वो जो दुपट्टे वाली थीं,

पहले तो गुड्डी की ओर तर्जनी और मंझली ऊँगली को जोड़ के चूत का सिंबल बना के इशारा किया,

और फिर मेरी ओर देख के अंगूठे और तर्जनी को मिला के गोल छेद और उसमे ऊँगली डाल के आगे पीछे, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल,

और अब मैं भी मुस्करा पड़ा,

और गिरते गिरते बचा, जो बिल्डिंग पीछे हम छोड़ आये थे, जो गिर रही थी, उसके ईंटे सड़क पे यहाँ तक बिखरे पड़े थे, उसी से ठोकर लगी, वो तो गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ रखा था,

वो दोनों, लड़की और साथ में औरत तब तक एक घर में घुस गए थे और गुड्डी ने मेरे बिना पूछे सब मामला साफ़ कर दिया।

गुड्डी की एक सहेली है गली में, एकदम शुरू में जहाँ मकान टूट रहा था उससे भी बहुत पहले, एकदम शुरू में।

तो बस उस की जो सहेलियां वो गुड्डी की भी, वो जो लड़की थी उसका नाम अस्मा है, गुड्डी से एक साल सीनियर, इंटर में पढ़ती है।

तो सहेलियों के साथ इस मोहल्ले में १५ -२० भाभियाँ, और उनमे से आठ दस तो गुड्डी के शलवार का नाडा खोलने के चक्कर में पड़ी रहती थीं, सब बोलती,



"कैसी लड़की हो इंटर में पहुँच गयी और अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया, "

अस्मा की भाभी नूर जो साथ में थीं वो तो सबसे ज्यादा, अंत में गुड्डी की सहेली ने साफ़ साफ़ बता दिया, इसका कोई है, इसलिए किसी और से तो

नूर भाभी ने हड़काया और बोलीं

"फिर तो मेरी ननद एकदम, अरे बियाह तक इन्तजार करोगी क्या, शुरू कर दो गपगप, गपगप, और वो भी स्साला एकदम बुरबक है, अइसन माल अभी तक छोड़ के रखा है"

आगे की बात मैं बिन बोले समझ गया, अस्मा ने जब अपनी भाभी को इशारा किया गुड्डी की ओर तो नूर ने मेरी ओर इशारा करके बिन बोले यही पूछा



" यही है क्या "

और गुड्डी ने मुझसे चिपक के, मेरे कंधे पे हाथ रख के, मुझे अपनी ओर खींच के, एकदम से इशारे में हामी भर दी

और वो ऊँगली जोड़ के चूत और चुदाई का इशारा, और हलके साथ में गुड्डी को दिखा के गपगप बोलना, मेरे लिए ही थी,

लेकिन मेरे ख्यालों का सिलिसला टूटा, गली के दूसरे कोने पर एक बड़ा सा मकान टूट रहा था, गुड्डी ने बताया था, सैय्यद चाचा का है, बचपन में कई बार आयी थी, दूबे भाभी के साथ, वो बनारस छोड़ के गए नहीं, पुरखों की कब्र यहाँ है, कौन दिया बाती करेगा, लेकिन बच्चे सब इधर उधर, अब वो रहे नहीं तो किसी बिल्डर ने ले लिया है,

और इस तरह के कई मकान थे गली में और उन टूटते मकानों के ईंटे पूरी गली में बिखरे पड़े थे, मैं खुद दो बार गिरते हुए बचा था,

लेकिन अभी सब साफ़, ....ईंटे कौन कहे पत्थर का टुकड़ा तक नहीं बचा, और मैं डर से कांप गया। मैं समझ गया ये पत्थर कहाँ पहुँच गए, अगल बगल के मकान की छतो पर,....

दंगे का डर, होने वाली अनहोनी की आशंका और जवाब के बदले जवाब, फिर जवाब और उसे बढ़ाती अफवाहें, मिडिया और सोशल मिडिया, और आग सेंकते लोग।

मैंने कनखियों से देखा छतो पर लोग थे लेकिन बैठे हुए या अधलेटे, जो गली से मुश्किल से दिखते थे, लेकिन गुड्डी ने तभी अपने हेलमेट के वाइजर को थोड़ा सा हटाया, और उसका चेहरा दिख गया होगा, और अब छत पर एक दो लोग खड़े भी हो गए, कुछ खिड़कियां भी खुलने लगी , गली के लड़की की सहेली, गली की ही लड़की होती है

और गुड्डी से ज्यादा मैं आस्वश्त हो गया, कम से कम इस गली में तो कोई खतरा नहीं हो सकता, न आगे से पीछे से

लेकिन खतरा तभी आता है, जब हम सोचते हैं खतरा नहीं आएगा।



और वही हुआ।

हमला हुआ और जबरदस्त हुआ।



मुझे ये तो लग रहा था की अगर कुछ हुआ तो बगल से आकर मिलने वाली गलियों से होगा, और पहली गली जो पड़ी, गुड्डी ने घर से बाजार जाते समय जो बताया था,बंगाली टोले की ओर जा रही थी।

कुछ नहीं हुआ,
दूसरी गली, पतली सी छोटी सी थी और थोड़ी दूर पे ही मुड़ जाती थी, वो घाट की ओर जाती थी, वहां भी सन्नाटा था।

गुड्डी ने एक बार से हेलमेट का वाइजर गिरा लिया था और सम्हाल के बाइक चला रही थी

तीसरी गली, एकदम अँधेरी सी, संकरी, दूर से दिखी भी नहीं, लेकिन पास आते ही मैंने देखा चार लोग, एकदम दीवाल से चिपके, जैसे होली के हुरियारे हों और फंस गए हो, रंग और पेण्ट से चेहरा एकदम पुता, मुश्किल से आँखे दिख रही थी, कपड़ों पर भी काही नीला रंग,

मेरी जोर से चमकी, सेकंड का सौंवा भाग भी नहीं लगा होगा,

' बचो, झुको " मैं हलके से चीखा,

गुड्डी ने एक साथ ब्रेक भी मारा और झुक के आलमोस्ट बाइक पे चिपक गयी, उस से चिपकी गुंजा भी दुहरी हो गयी।

मैंने पीछे से गुंजा को छाप लिया जैसे एस पी जी ( स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप ) वाले करते हैं, लगे कुछ तो उन्हें लगे, प्रोटेक्टी को कुछ न हो

गुंजा की पूरी देह मेरी देह से दबी थी, सर मैं जानता था हेलमेट से प्रोटेक्टेड है, इसलिए निशाना बॉडी पे ही होगा।

और जैसे साथ साथ, होली में जैसे रंग से भरा गुब्बारा फेंकते हैं, वैसे ही एक गुब्बारा भरा हुआ, लेकिन गुड्डी के ब्रेक लगाने का और हम सब के झुकने का नतीजा हुआ की बाइक के आगे से सरसराता हुआ वो गली के दूसरी ओर एक खम्भा था, उससे लग कर फूटा और मैंने कनखियों से देखा

बुदबुद बुदबुद, जैसे कुछ बुलबुले फूटे और लोहा हल्का हलका पिघलने लगा,

कोई बहुत तेज ऐसिड था, दो चार बूँद भी अगर पड़ जाती,

पर जैसे उन्हें अंदाज था की पहला निशाना फेल हो सकता है, लगभग उसी समय दूसरा गुब्बारा नीचे की ओर,

पर तब तक गुड्डी ने बाइक की स्पीड एक साथ बढ़ा दी, १० से सीधे १०० और वो हम लोगो के बाइक के पीछे गली के पार एक मकान के बरामदे में गिरा और वहां भी एसिड ने फर्श को पिघलाना शुरू कर दिया

" आँख बंद " मैंने गुंजा से बोला।

दो गुब्बारे पीछे से भी चले, लेकिन तब तक हम लोग आगे निकल आये थे और वो एकदम बाइक के अगल बगल गिरे,

पर तब तक उस गली से कुछ लोग निकलने लगे, और वो चारो उसी गली से बाहर सड़क की ओर निकल भागे ।

पर मैं और गुड्डी दोनों जानते थे, खतरा अभी टला नहीं है। फिर गली खड़ंजे की थी और कहीं कहीं ईंटे निकले थे तो बाइक की स्पीड फिर कम करनी पड़ी और झुके झुके देखना और बाइक चलाना दोनों मुश्किल था।


थोड़ी देर में हमला दुबारा हुआ, पता नहीं वही थे या कुछ उनके साथी, लेकिन अबकी एक आधे गिरे हुए घर से,

मैंने बताया था न गली के मोड़ पे ही एकदम शुरू में एक सैय्यद चाचा का घर था जो टूट रहा था, बस उसी के छत पर से कुछ लोग छुपे थे

लेकिन कहते हैं न बचाने वाला मारने वाले से ज्यादा बड़ा होता है, हम लोगो को अबकी वार्निंग मिल गयी, वरना उन्हें ऊंचाई का और छुपने का अडवांटेज था

सामने वाली छत से कोई गुड्डी की सहेली की भाभी होंगी, ...चिल्लाई

" बचना "

क्या कोई शार्ट लेग का फील्डर कैच करेगा, मैंने दांयां हाथ बढाकर कैच किया, और उसी तरफ उछाल दिया, जिधर से आया था।

पता नहीं कोई देसी बम था या फिर एसिड का गुब्बारा, दूसरा जब तक आये तबतक एक बार फिर गुड्डी ने स्पीड भी बढ़ाई और बाइक को मोड़ा भी और वो बेअसर रहा।

लेकिन तबतक अगल बगल के मकानों से कुछ लोग निकल आये और टूटे मकान के छत पर छिपे लोग धड़ धड़ उतर कर पीछे किसी गली में,

लग रहा था, गली आगे से बंद है, लेकिन मुझे याद आया यहाँ एक शार्प टर्न था, और गुड्डी मुड़ी और तेजी से ब्रेक लगाते हुए, गुंजा से बोली,



अस्मा के यहाँ चलते हैं।
Great writing Komal ji.
 
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