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Romance पर्वतपुर का पंडित

Lefty69

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प्रिय वाचक, कुछ पारिवारिक समस्याओं के चलते में पिछले काफी समय से लिख नहीं रहा था। पर अब जब वही बढ़ गई हैं तो लिखना मेरी दवा है।

कई सालों पहले मैने इंटरनेट पर पढ़ी एक short story को विस्तारित कर लिख रहा हूं। जो कथाएं अधूरी रह गई है उन्हें जल्द ही शुरू करूंगा।

यह कथा आज से २१०० वर्ष पूर्व की है और इसी वजह से मैं उर्दू शब्दों का प्रयोग टाल रहा हूं। कथा में कुछ जातिवाचक भाग भी हैं परंतु यह एक व्यक्ति या तत्कालीन समाज को दिखाता है न कि आज के काल से। आप को यदि कोई सुझाव या आपत्ति हो तो मुझे अवश्य बताएं।

Prefix अनुसार यह romance लिखने की मेरी चेष्टा है तो यहां drama होगा जिसमें कुछ sex scene होंगे। Group sex या multiple partners भी नहीं होंगे। कृपया इसकी फरमाइश न करें।
 
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Lefty69

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सुबह की पहली किरण के साथ नगर का द्वार खोला गया और यात्रियों की भीड़ द्वारपाल के कक्ष की ओर बढ़ी। राज्य में आनेवाले और जानेवाले हर व्यक्ति को अपना परिचय, आने का प्रयोजन, वास करने की अवधि और परिचित व्यक्ति का नाम देना पड़ता। द्वारपाल ने आयत शुल्क लेते हुए हर व्यक्ति को प्रमाणित करते हुए आखरी व्यक्ति को बुलाया।

सुवर्ण कांति, तेजस्वी मुद्रा, शुभ्र वस्त्र और सुडौल देह का यह ब्राह्मण आगे बढ़ा। ब्राह्मण ने दो परिचय पत्र रखे। पहला पत्र बता रहा था कि ब्राह्मण का नाम पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, जो काशी विद्यापीठ का स्नातक है। दूसरा पुराना पत्र नाम पवन दास का था जो बारह वर्ष पूर्व नगर त्याग चला गया था।

द्वारपाल, “हे ब्राह्मण, आप एक दास का परिचय पत्र लिए इस नगर में क्यों आए हो? आपका प्रयोजन क्या है? क्या यह दास अपराधी है? या मृत?”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराकर, “आर्य, यह दोनों परिचय पत्र मेरे हैं। बारह वर्ष पूर्व आठ साल की आयु में मैंने पिता के मृत्यु के पश्चात ज्ञान अर्जन करने काशी के लिए प्रयाण किया था। अब गुरु की आज्ञा अनुसार मैं अपने राज्य पुनः निवास करने आया हूं।“

द्वारपाल दुविधा से, “तो आप दास हैं या शास्त्री? शूद्र हो या ब्राह्मण? कार्य क्या करेंगे? कहां करेंगे?”

ज्ञानदीप शास्त्री, “आर्य, मेरे पिता राजा खड़गराज के सारथी थे किंतु काशी में मेरे गुरु ने मेरा उपनयन संस्कार किया और विद्यापीठ में 21 कला एवं शास्त्रों को सीख कर अब मैं ब्राह्मण हूं। राजा खड़गराज ने मेरे पिता के मृत्यु के बाद मुझे अपनी शरण में रखने की प्रतिज्ञा ली थी इसलिए मैं लौटा हूं।”

द्वारपाल ने 2 तांबे के सिक्के शुल्क लिया और ज्ञानदीप अपने गुरु को दिया वचन पूर्ण करने राज प्रासाद की ओर बढ़ा। राज सभा जो आठ वर्ष की आयु में इतनी विशाल लगती थी वह अब छोटी लग रही थी पर आज भी उतनी ही वैभवशाली थी।
एक तेजस्वी युवा ब्राह्मण को आते देख राजा खड़गराज ने उसका स्वागत किया और आने का प्रयोजन पूछा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने जब अपनी पूर्ण पहचान और आने का प्रयोजन बताया तब सेनापति के पीछे खड़े युवा सेना अधिकारी ने ब्राह्मण का मज़ाक उड़ाया।

सेना अधिकारी, “यदि एक दास पुत्र नगर से पलायन कर कुछ गीत स्मरण कर ले तो क्या उसे राजा बनाया जाए या सेनापति? अब तो वह ऐसा व्यक्ति है जिसने न अपने पिता से आश्वपालन के पूर्ण ज्ञान को पाया और न ब्राह्मण जन्म लेकर पूर्ण शास्त्र का ज्ञान पाया। ऐसा अपूर्ण व्यक्ति राज सभा में किस काम का?”

राजा खड़गराज, “सेना अधिकारी अचलसेन का प्रश्न योग्य है। आप के गुरु ने आप को शूद्र से ब्राह्मण बना दिया है पर इस से आप समाज को क्या दे सकते हैं? अपने ज्ञान और विशेषता का प्रमाण दें।”

ज्ञानदीप ने अपने गुरु को दिया वचन स्मरण कर, “हे राजन, मैंने विद्यापीठ में शास्त्र, आधुनिक विज्ञान और दंड नीति के साथ ही नृत्य कला में प्रावीण्य प्राप्त किया है। प्रमाण हेतु मैं काशी विद्यापीठ की मुद्रा में बनी शाल प्रस्तुत करते हुए नृत्य करके दिखा सकता हूं।”

ज्ञानदीप ने तेज और जटिल नृत्य कर राजसभा को चकित कर दिया। इस नृत्य में वह एक ही क्षण अपने स्थान पर गोल घूमते हुए ऊंचे उछलकर एक नृत्य मुद्रा में अडिग उतर गया। जब नृत्य समाप्त हुआ तो अचलसेन ने जोरों से तालियां बजाते हुए कहा कि बस एक डमरू की कमी थी फिर तो एक अति उत्तम मदारी का खेल सब देख पाते। ज्ञानदीप को नाचता बंदर कहने से पूरी सभा में हंसी हो गई पर ज्ञानदीप ने अपनी मर्यादा और मान को संभालकर चुप रहना स्वीकार किया।

राजा खड़गराज ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की कला को पहचाना पर वह सेनापति के पुत्र से मतभेद कर सभा में तनाव के विरुद्ध थे। इसी लिए राजा खड़गराज ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को अपनी नवयुवती राजकुमारी शुभदा को नृत्य एवं शास्त्र की शिक्षा में सहायता करने का आदेश दिया।

चौदह वर्ष* की राजकुमारी अब विवाह अनुरूप हो गई थी इसीलिए उसके लिए विवाह प्रस्ताव भी आ रहे थे। राजा खड़गराज यह भली भांति जानते थे कि उनकी इकलौती पुत्री के लावण्य से अधिक आकर्षक थी पर्वतपुर में छुपी हुई सुवर्ण और नीलमणि की खदाने। राजा खड़गराज ने अपने राज्य की स्वतंत्रता और सुरक्षा हेतु एक पुराने भविष्वाणी की मदद से यह निर्णय लिया था कि वह अपनी पुत्री का विवाह एक सुयोग्य वर से कर अपनी पुत्री को अपना उत्तराधिकारी बनाकर स्थापित करेंगे। राजकुमारी शुभदा को शास्त्र, शस्त्र और दंड नीति का ज्ञान इसी वजह से दिया जा रहा था। नृत्य का ज्ञान अब राजा खड़गराज ने देने का निर्णय लिया क्योंकि उन्होंने उस ब्राह्मण की सुडौल काया में छुपी ताक़त, अनुशासन और सहनशक्ति को देखा।

राजनंदिनी शुभदा को वह समय याद में भी नहीं था जब उसे राज्य के उत्तराधिकारी की जिम्मेदारी नहीं मिली थी। जब राज्य की बेटियां बालगीत गाती थी तब राजा की इकलौती संतान चाणक्य के अर्थशास्त्र के पाठ कर रही थी। जब बेटियां मां के साथ खाना बनाने में हाथ बंटाती राजकुमारी शुभदा अश्वशाला में अश्व का उपचार और उपयोग के विविध प्रकार समझती।

राजकुमारी शुभदा को अगर कोई रुचि, कोई आराम था तो वह था उसका निजी उद्यान जिसमें उसने आकर्षक फूल और सुगंधि जड़ी बूटियां लगाई थी। आज प्रातः स्नान से लौटते हुए राजकुमारी शुभदा ने किसी उद्दंड को अपने पौधों की पत्तियों को तोड़ता पाया और वह नवयुवती क्रोधाग्नि में जलती अपनी पैनी कटियार लेकर उस पर टूट पड़ी। सेविकाओं की भय की चीखें अचरज की आह में बदल गई जब शस्त्र में निपुण राजनंदिनी शुभदा को एक ब्राह्मण ने एक नृत्य मुद्रा से पछाड़ दिया और फिर अपने विज्ञान के ज्ञान से उन पत्तियों से औषधि बनाने की विधि बताई।
 

Lefty69

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* पुराने जमाने में जब लड़की का मासिक धर्म शुरू हो जाता तब उसे वयस्क मान कर उसकी शादी करा दी जाती। परंतु खास कर राज घरानों में बेटियों को भी बेटों जैसे ही पढ़ाया जाता और उन्हें भी गुरु से शिक्षा मिलती तो ऐसी राजकुमारी का विवाह या तो तय कर के देरी से कराया जाता या फिर सोलह वर्ष की उम्र में स्वयंवर कराया जाता।

Forum और आज के नियमों को समझ कर मुख पात्र का विवाह देरी से कराया जाता है, उसके १८ वर्ष पूर्ण होने पर।

मुख्य पात्रों को पहली बार दिखाते हुए नाम bold में किया गया है पर आगे वह समान आकार में रहेंगे।

If anyone can help me generate AI pictures to add to the story, I will be glad and give credit for them at the end of each post.
 
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Lefty69

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Thank you Premkumar65 for your response
Do let me know if you have any suggestions
 

Lefty69

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अगले चार वर्ष ऐसे बीते जैसे पौधे की पत्ती पर ओस जमा होकर भूमि की ओर लपक पड़ती है। इस दौरान सेनापति का पुत्र अचलसेन डाकुओं को हरा कर सेनापति बन गया था तो अपनी सूझबूझ और समझदारी को साबित करते हुए राजसभा में पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने न केवल अपनी नृत्यशाला निर्माण की पर काफी धन अर्जित करते हुए नागरिकों और विदेशियों में प्रसिद्धि प्राप्त की।

राजकुमारी शुभदा का विवाह अब और दूर करना संभव नहीं था क्योंकि पर्वतों में बने पर्वतपुर से आते जाते रास्तों पर राजा उग्रवीर ने आक्रमण कर उन पर कब्जा कर लिया था। राजा उग्रवीर अति सुंदर लावण्यवती शुभदा को अपनी अनेकों में से एक पत्नी बनाकर पर्वतपुर को अपना राज्य बनाने की मनीषा रखते थे।

राजा खड़गराज इस विचार के थे कि यदि उनकी बेटी विवाह कर पर्वतपुर की रानी बन गई तो राजा उग्रवीर की योजनाएं विफल हो जाएंगी। इस विचार से राजा खड़गराज ने अपनी १८ वर्ष की राजकुमारी शुभदा का स्वयंवर आयोजित किया।

स्वयंवर के नियम सरल थे। प्रतियोगी को पर्वतपुर का नागरिक होना आवश्यक था। प्रतियोगी की आयु १८ से ३५ हो यानी, राजकुमारी की आयु से कम न हो और राजकुमारी की आयु से दुगुनी से कम हो। प्रतियोगी को मल्लयुद्ध कर अपने सारे प्रतिद्वंद्वी को परास्त करना होगा। राजा उग्रवीर इस स्वयंवर के बारे में जान कर तिलमिला गए और अपने निजी अंगरक्षक दल के साथ पर्वतपुर आ गए।

राजा उग्रवीर गुस्सा थे क्योंकि वह पर्वतपुर के निवासी नहीं थे और पर्वतपुर में अपनी ५००० सैनिकों की सेना लाकर उस पर फतह करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय नहीं था। राजा उग्रवीर की आयु राजा खड़गराज से एक दशक अधिक थी और इस आयु में वह सेना को आदेश दे सकते थे पर युवकों को मल्लयुद्ध में हराना अब उनके लिए संभव नहीं था।

स्वयंवर की घोषणा होते ही राजसभा के सारे पुरुष सम्मिलित होने को आतुर हो खड़े होने लगे जब एक आवाज ने इस उत्सुक शांति को भंग किया।

सेनापति अचलसेन खड़े होते पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को संबोधित करते हुए, “ए सूतपुत्र! शूद्र जन्म प्राप्त करके भी खुद को ब्राह्मण कहने से तू क्षत्रिय राजनंदिनी के योग्य नहीं बनता। अगर विदूषक या हिजड़े को चुनना होता तो तू एकमात्र व्यक्ति होता परंतु यह भावी राजा की योग्यता की बात है। तू इस स्वयंवर के योग्य नहीं!”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजा खड़गराज को संबोधित कर, “हे राजन, स्वयंवर की योग्यता में मेरी पात्रता आप के निर्णय पर है। आप ही न्याय करें।”

राजा खड़गराज यह जानता था कि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री पात्र हैं पर राजा उग्रवीर की आती मुसीबत से युद्ध करने उसे सेनापति अचलसेन जैसे योद्धा की आवश्यकता थी न कि नाचनेवाले शूद्र ब्राह्मण की। राजा खड़गराज ने ज्ञानदीप शास्त्री को स्वयंवर के अखाड़े से निकाल कर स्वयंवर शुरू किया।

राजकुमारी शुभदा मल्लयुद्ध करते युवकों में किसी को ढूंढ रही थी जब राजा उग्रवीर गर्जना करते हुए अखाड़े में आ धमका।

राजा उग्रवीर, “राजा खड़गराज इस छल को यहीं खत्म कर मुझे अपनी बेटी सौंप कर अपने जीवन को बचा ले। तेरी पुत्री मेरी रखैल होगी और तेरे राज्य से बनते सुवर्ण और नीलमणि में से आधा धन मेरा होगा पर पर्वतपुर के नागरिक पहले की तरह जीवन व्यतीत कर पाएंगे। यदि तूने अभी शस्त्र नहीं डाले तो तेरा और तेरे सारे नागरिकों की वही दशा होगी जो मेरे राज्य में है।”

राजा उग्रवीर की अजरस्त्र सेना अपने क्रूर वर्तन के लिए प्रसिद्ध थी क्योंकि राजा उग्रवीर के राज्य में जन्म लेता प्रत्येक लड़का सेना में भर्ती कर लिया जाता। यह लड़का तब तक युद्ध करता जब तक वह वीरगति प्राप्त नहीं करता या युद्धभूमि में २० वर्ष जिंदा बच जाता। जो योद्धा २० वर्ष जीवित रहते उन्हें युद्ध अभ्यास केंद्र में शिक्षक नियुक्त किया जाता और राज्य में वह जितनी लड़कियों से विवाह करना चाहते उन्हें वह करने दिया जाता। यदि २० वर्ष बाद हर १०० सैनिकों में से एक शिक्षक बन कर लौट आए तो उसे १०० लड़कियों विवाह की प्रतिक्षा में मिलती और साथ में राजा से अच्छा शिक्षक वेतन ताकि वह और बेहतर सैनिक बना कर राजा को दे।

राजा उग्रवीर, “राजा खड़गराज तेरी पूरी सेना १००० सैनिकों की है जब की उतना केवल मेरा निजी सुरक्षा पथक है। यदि तू इस स्वयंवर को होने देता है तो कल सुबह मेरी ५००० की पूर्ण सेना पर्वतपुर पर हमला कर तुझे हरा देगी!”

राजा उग्रवीर इतना कह कर चला गया और राजा खड़गराज ने गहन विचार कर स्वयंवर को शुरू किया।

अपेक्षा अनुरूप शाम तक सेनापति अचलसेन विजयी हो गए और राजसभा में उनका विवाह राजकुमारी शुभदा से करा दिया गया। सेनापति अचलसेन ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को अपमानित करने के लिए उसे ब्राह्मण होने के नाते विवाह विधि करने को कहा।
 

Lefty69

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विवाह के बाद पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजकुमारी शुभदा और सेनापति अचलसेन को अपने साथ राज महल के पास राजकुमारी शुभदा के उद्यान से लगे एक सुंदर और सुस्थित घर में ले आए।

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी शुभदा, यह कोई राज़ नहीं की मैं स्वयंवर में सहभागी होना चाहता था। उसका एक सीधा कारण यह है कि मैं आप से विवाह करना चाहता था। मैने पिछले चार वर्ष जो धन कमाया है उस से मैने यह घर हमारे निवास के लिए बनवाया। अब आप के पति के रूप में कोई और व्यक्ति हो तो भी इस घर की गृहलक्ष्मी आप हो। इस घर को इस दास से विवाह उपहार के रूप में स्वीकार करें।”

राजकुमारी शुभदा ज्ञानदीप शास्त्री के इस बहुमूल्य घर को मुफ्त लेने से विरोध करने लगी क्योंकि यह ज्ञानदीप शास्त्री की चार वर्ष से बचाई संपूर्ण संपत्ति थी। लेकिन सेनापति अचलसेन पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के हार की यह निशानी हथियाना चाहते थे और उन्होंने इसे पाने का सरल मार्ग अपनाया।

सेनापति अचलसेन, “प्रिये, विवाह के बाद और आपके राज्याभिषेक से पहले हमें राज महल में रहना अशोभनीय होगा। क्यों ना हम इस कुटिया में कुछ महिनों के लिए रहें?”

राजकुमारी शुभदा अनमन से मान गई तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री नवविवाहित जोड़े के इस घर में स्वागत हेतु शीत पेय लेने रसोई में गए। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री चांदी की थाली में सोने के तीन प्याले लाए जिन्हें त्रिकोणीय पद्धति में ऐसे रचा गया था कि एक प्याला राजकुमारी की ओर था, एक सेनापति अचलसेन की ओर तो तीसरा पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के ठीक सामने।

राजकुमारी शुभदा ने स्मित हास्य देते हुए अपने सामने रखे प्याले को उठाया पर संशय से सेनापति अचलसेन ने ज्ञानदीप की ओर का प्याला उठा लिया। ज्ञानदीप को सेनापति अचलसेन की ओर का प्याला उठा लेना पड़ा।

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “यह पेय एक ऐसी औषधि है जो मनुष्य में ताकत का संचार बढ़ाती है और शारीरिक पीड़ा तथा दर्द से आराम दिलाती है।”

राजकुमारी शुभदा ने जल्दी से अपना प्याला पी लिया पर सेनापति अचलसेन ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के शीतपेय पीने के बाद ही अपना प्याला होठों से लगाकर पिया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बताया कि राजकुमारी शुभदा को शर्म से बचाने के लिए उनका व्यक्तिगत सुरक्षा पथक थोड़े अंतर पर रहेगा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अब बेघर होने के कारण पास ही अश्वशाला के पीछे बनी कुटीर में निवास करने वाले हैं। ज्ञानदीप शास्त्री ने घर की सारी विशेषताएं बताई और फिर नवदम्पत्ति से रात्रि के लिए विदा ली।

सेनापति अचलसेन ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की सलाह मान कर सोने से पहले मल्लयुद्ध की मिट्टी धोने स्नानगृह में बने जलचक्र को इस्तमाल करना उचित समझा। राजकुमारी शुभदा शर्म से अपने देह में गर्मी बनते जानकर श्यनगृह में बनी शय्या पर बैठ गई। शय्या अत्यंत आरामदायक थी और उसपर बिछा वस्त्र शुभ्र सफेद रेशम था जो राजकुमारी पलभर में पहचान गई। यह सुदूर पूर्व कैलाश पार के चीन राज्य का था जिसकी कीमत एक छोटे घर जितनी थी। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने इतनी सुंदर व्यवस्था उसके लिए करते हुए जरूर धन के साथ अपने जीवन के कई वर्ष खर्च किए थे। एक पुरुष जो एक स्त्री के लिए ऐसा घर बनाए जिसकी बनावट और सामग्री स्वर्गीय हो वह उस स्त्री की प्रति क्या समर्पण रखता होगा?

राजकुमारी शुभदा को विज्ञान का वह पाठ याद आया जहां नर पक्षी अपनी मादा को आकर्षित करने के लिए सबसे सुंदर और मजबूत घोंसला बनाता है। यह पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का राजनंदिनी शुभदा के लिए बनाया घोंसला था। राजकुमारी शुभदा के स्तनों में रक्त प्रवाह तेज हो गया, उसके स्तनों पर बनी बेरियां उभरकर उसके ऊपरी वस्त्र को अंदर से खरोंचते हुए उनमें से दिखने लगीं। राजकुमारी शुभदा की सांसे तेज होने लगी और उन्हें अपने छुपे हुए विशेष अंगों में अपने अंतर्वस्त्र चुभने लगे। राजकुमारी शुभदा शय्या पर लेट गई और अनजाने में अपने हाथों को अपने सपाट पेट के ऊपर से घुमाते हुए अपनी धोती पर से अपने गुप्तांग दबाने लगी।

राजकुमारी शुभदा ने पाया कि अब वह राजकुमारी न होकर केवल शुभदा थी जिसे इस सुंदर घर बनाने वाले पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के प्रति आकर्षण हो रहा था। उसका बदन कसमसाने लगा और वह एक अनजान पीड़ा में तड़पने लगी। वह न जाने कितनी देर ऐसे तड़प रही थी जब उसने शयनगृह के दरवाजे में किसी को देखा।

चंद्रमा की धीमी रौशनी में शुभदा को लगा कि उसका स्वप्न वास्तव में उतर आया है। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री निश्चयी कदमों से आगे बढ़ते हुए उसके पैरों में बैठ गया। आगे जो हुआ वह एक नवयुवती का सबसे शर्मनाक और सबसे लुभावना सपना था। स्वयंवर की घोषणा के बाद राजकुमारी शुभदा ने चुपके से वात्स्यायन के कामसूत्र के कुछ पन्ने पढ़े थे। आज उसे लगा जैसे पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने खुद ऋषि वात्स्यायन से शिक्षा ली थी। सबेरे तक राजकुमारी यौन संतुष्टि से थक कर बेसुध हो गई और बाहर के पक्षियों के प्रातः संगीत ने उसे जगाया।

अपने विचित्र स्वप्न को याद कर राजकुमारी ने आंखें खोली और वह कांप उठी। राजकुमारी शुभदा पूर्णतः नग्न थी और उसकी योनि पर रक्त और कोई चिपचिपा तत्व सुख रहा था। योनि के अंदर से भी वही मिश्रण बहकर अब शुभ्र सफेद रेशमी चादर को कलंकित कर चुका था। राजकुमारी शुभदा को अपने गुप्तांग में ऐसे दर्द हो रहा था जैसे किसी ने अनैसर्गिक तरीके से उसे चोट पहुंचाते हुए उसे निसर्ग के सबसे मूल तत्त्व से अवगत कराया हो। उसकी योनिमुख में से बनती जलन ऐसे थी जैसे किसी बिना धार की चाकू ने उसकी योनि को फाड़ा हो।

राजकुमारी शुभदा द्विधा मन में थी कि यदि कल रात्रि का स्वप्न स्वप्न नहीं था तो उसने अपने पति से पाप किया था पर अगर वह स्वप्न था तो उसकी इस हालत का जिम्मेदार कौन था? अपने ऊपरी वस्त्र को राजकुमारी शुभदा ने अपने सीने पर लगाया तो उसे लगा जैसे किसी ने उसके स्तनों को रात भर भींचा, दबोचा, चूसा और काटा था।

राजकुमारी शुभदा ने क्रोधित होकर देखा तो उसके इस स्थिति का जिम्मेदार शय्या के दूसरी ओर से नीचे गिर कर पड़ा खर्राटे ले रहा था। उसके पिचके हुए लिंग पर भी रक्त और घोल सुख रहा था। राजकुमारी शुभदा ने गुस्से से उसे अपनी ओर किया तो वह सेनापति अचलसेन था।

राजकुमारी शुभदा को विश्वास था कि उसने कल रात्रि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को आते हुए देखा था, पर क्या वह छल था या छलावा? उसके पति का देह बिल्कुल अलग था पर सारे प्रमाण यही सिद्ध कर रहे थे कि कल रात्रि उसके पति ने ही उसके साथ इतनी क्रूरता की थी।

राजकुमारी शुभदा ने खिड़की से आती रौशनी को देख समय का अनुमान लगाया और अपने वस्त्र लेकर स्नानगृह में गई। उसके पति से जलचक्र पूरी रात चालू छोड़ा गया था परंतु पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के अनेक यंत्रों ने पानी को नियंत्रित रखा था। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के केवल नाम को स्मरण करते ही राजकुमारी शुभदा का संपूर्ण बदन लज्जा में जल उठा। राजकुमारी शुभदा अपने देह को धो कर बाहर आई तब तक सेनापति अचलसेन भी जाग गए थे।

सेनापति अचलसेन गर्व से मुस्कुराते हुए, “प्रिए, हमें क्षमा करें। कल रात्रि पेय के कारण हमें स्मरण भी नहीं की हमने आपको इतनी क्षति पहुंचाई। आपका स्वास्थ्य कैसा है?”

राजकुमारी शुभदा सर झुकाकर, “हमें कुछ असहज लग रहा है। कृपया राज सभा में और देरी न करें और वहां बताएं कि हम दोपहर से वहां पहुंचेंगे।”

सेनापति अचलसेन युद्ध जीते मुर्गे की तरह बड़े गर्व से राज सभा की ओर बढ़े तो राजकुमारी शुभदा इस बात से आहत थी कि सेनापति अचलसेन इतनी निजी बात पर ऐसे गर्व दिखा रहे थे। जैसे कि वह सबको दिखा रहे थे कि वह राजकुमारी शुभदा संग रात्रि बिताकर उसे परास्त कर लौट रहे थे। सेनापति अचलसेन के जाते ही राजकुमारी शुभदा का निजी सुरक्षा पथक घर के समीप घेराव कर गश्त करने लगा। राजकुमारी शुभदा ने अपने मुख्य अंगरक्षक अंगद को घर में बुलाया तो वह दौड़ा चला आया।

राजकुमारी शुभदा, “अंगद, मुझे कुछ प्रश्नों का सीधा और सरल उत्तर देना। क्या कल रात्रि कोई व्यक्ति आपका घेराव पार कर सकता था?”

अंगद, “असंभव राजकुमारी शुभदा! पूर्ण पथक रात भर जोड़ियां बनाकर अपने समीप की जोड़ी पर नजर रखे हुए था। कोई व्यक्ति ही नहीं पर कोई प्राणी भी हमारी नजरों से बचकर अंदर नहीं आ सकता था।”

राजकुमारी शुभदा, “कल रात्रि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के जाने के बाद से आज सेनापति अचलसेन के जाने तक क्या हुआ?”

अंगद कुछ लज्जित होते हुए, “कल रात्रि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बाहर आते ही मुझे बुलाया। उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने आप दोनों को ताकत पेय दिया है और रात्रि में हमें आपकी सुरक्षा करते हुए आपकी लज्जा रक्षा हेतु दूर से लेकिन कड़ा पहरा देना होगा।”

राजकुमारी शुभदा, “क्या आपको पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की कोई बात अटपटी लगी?”

अंगद, “राजकुमारी, पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने मुझसे २ सैनिक मांगे अपनी रक्षा हेतु।”

राजकुमारी शुभदा, “अपनी रक्षा? किस से?”

अंगद, “स्वयं से! जो पेय उन्होंने आप को दिया वही उन्होंने भी पिया था। उन्हें डर था कि रात्रि में वह उत्तेजित हो कर कोई दुष्कर्म न कर दें। उन दो सैनिकों का कार्य था कि वह अश्वशाला के पीछे बनी कुटीर में से किसी को भी आने या जाने से रोके। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री पूर्ण रात्रि उस कुटीर में अपने ही बंदी थे और प्रातः ही पसीने से भीगे बाहर आए। फिर उन्होंने नदी में स्नान किया और मंदिर में पूजा के बाद अपने वस्त्र बदल कर राज सभा में गए।”

राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के बारे में इतनी खबर क्यों रखी?”

अंगद, “पसीने से भीगे हुए पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को देख सिपाहियों को संदेह था कि पेय का असर अब भी हो सकता है इसी वजह से उन्होंने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री पर नजर रखी। राज सभा में राज सुरक्षा है तो वह लौट आए।”

राजकुमारी शुभदा अपने आप से, “इसका मतलब कल रात इस घर में मेरे और मेरे पति के अलावा कोई व्यक्ति नहीं थी।“

अंगद, “आप निश्चिंत रहें राजकुमारी शुभदा, कल इस घर के समीप भी कोई प्राणिमात्र तक नहीं था।”
 

Lefty69

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राजकुमारी शुभदा


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सेनापति अचलसेन


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पंडित ज्ञानदीप शास्त्री

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Lefty69

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Please give me your suggestions what happened with Princess Shubhda?

Was the dream a dream or some Sinister plot of Parvatpur's Pandit
 

Sushil@10

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विवाह के बाद पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजकुमारी शुभदा और सेनापति अचलसेन को अपने साथ राज महल के पास राजकुमारी शुभदा के उद्यान से लगे एक सुंदर और सुस्थित घर में ले आए।

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी शुभदा, यह कोई राज़ नहीं की मैं स्वयंवर में सहभागी होना चाहता था। उसका एक सीधा कारण यह है कि मैं आप से विवाह करना चाहता था। मैने पिछले चार वर्ष जो धन कमाया है उस से मैने यह घर हमारे निवास के लिए बनवाया। अब आप के पति के रूप में कोई और व्यक्ति हो तो भी इस घर की गृहलक्ष्मी आप हो। इस घर को इस दास से विवाह उपहार के रूप में स्वीकार करें।”

राजकुमारी शुभदा ज्ञानदीप शास्त्री के इस बहुमूल्य घर को मुफ्त लेने से विरोध करने लगी क्योंकि यह ज्ञानदीप शास्त्री की चार वर्ष से बचाई संपूर्ण संपत्ति थी। लेकिन सेनापति अचलसेन पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के हार की यह निशानी हथियाना चाहते थे और उन्होंने इसे पाने का सरल मार्ग अपनाया।

सेनापति अचलसेन, “प्रिये, विवाह के बाद और आपके राज्याभिषेक से पहले हमें राज महल में रहना अशोभनीय होगा। क्यों ना हम इस कुटिया में कुछ महिनों के लिए रहें?”

राजकुमारी शुभदा अनमन से मान गई तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री नवविवाहित जोड़े के इस घर में स्वागत हेतु शीत पेय लेने रसोई में गए। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री चांदी की थाली में सोने के तीन प्याले लाए जिन्हें त्रिकोणीय पद्धति में ऐसे रचा गया था कि एक प्याला राजकुमारी की ओर था, एक सेनापति अचलसेन की ओर तो तीसरा पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के ठीक सामने।

राजकुमारी शुभदा ने स्मित हास्य देते हुए अपने सामने रखे प्याले को उठाया पर संशय से सेनापति अचलसेन ने ज्ञानदीप की ओर का प्याला उठा लिया। ज्ञानदीप को सेनापति अचलसेन की ओर का प्याला उठा लेना पड़ा।

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “यह पेय एक ऐसी औषधि है जो मनुष्य में ताकत का संचार बढ़ाती है और शारीरिक पीड़ा तथा दर्द से आराम दिलाती है।”

राजकुमारी शुभदा ने जल्दी से अपना प्याला पी लिया पर सेनापति अचलसेन ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के शीतपेय पीने के बाद ही अपना प्याला होठों से लगाकर पिया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बताया कि राजकुमारी शुभदा को शर्म से बचाने के लिए उनका व्यक्तिगत सुरक्षा पथक थोड़े अंतर पर रहेगा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अब बेघर होने के कारण पास ही अश्वशाला के पीछे बनी कुटीर में निवास करने वाले हैं। ज्ञानदीप शास्त्री ने घर की सारी विशेषताएं बताई और फिर नवदम्पत्ति से रात्रि के लिए विदा ली।

सेनापति अचलसेन ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की सलाह मान कर सोने से पहले मल्लयुद्ध की मिट्टी धोने स्नानगृह में बने जलचक्र को इस्तमाल करना उचित समझा। राजकुमारी शुभदा शर्म से अपने देह में गर्मी बनते जानकर श्यनगृह में बनी शय्या पर बैठ गई। शय्या अत्यंत आरामदायक थी और उसपर बिछा वस्त्र शुभ्र सफेद रेशम था जो राजकुमारी पलभर में पहचान गई। यह सुदूर पूर्व कैलाश पार के चीन राज्य का था जिसकी कीमत एक छोटे घर जितनी थी। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने इतनी सुंदर व्यवस्था उसके लिए करते हुए जरूर धन के साथ अपने जीवन के कई वर्ष खर्च किए थे। एक पुरुष जो एक स्त्री के लिए ऐसा घर बनाए जिसकी बनावट और सामग्री स्वर्गीय हो वह उस स्त्री की प्रति क्या समर्पण रखता होगा?

राजकुमारी शुभदा को विज्ञान का वह पाठ याद आया जहां नर पक्षी अपनी मादा को आकर्षित करने के लिए सबसे सुंदर और मजबूत घोंसला बनाता है। यह पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का राजनंदिनी शुभदा के लिए बनाया घोंसला था। राजकुमारी शुभदा के स्तनों में रक्त प्रवाह तेज हो गया, उसके स्तनों पर बनी बेरियां उभरकर उसके ऊपरी वस्त्र को अंदर से खरोंचते हुए उनमें से दिखने लगीं। राजकुमारी शुभदा की सांसे तेज होने लगी और उन्हें अपने छुपे हुए विशेष अंगों में अपने अंतर्वस्त्र चुभने लगे। राजकुमारी शुभदा शय्या पर लेट गई और अनजाने में अपने हाथों को अपने सपाट पेट के ऊपर से घुमाते हुए अपनी धोती पर से अपने गुप्तांग दबाने लगी।

राजकुमारी शुभदा ने पाया कि अब वह राजकुमारी न होकर केवल शुभदा थी जिसे इस सुंदर घर बनाने वाले पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के प्रति आकर्षण हो रहा था। उसका बदन कसमसाने लगा और वह एक अनजान पीड़ा में तड़पने लगी। वह न जाने कितनी देर ऐसे तड़प रही थी जब उसने शयनगृह के दरवाजे में किसी को देखा।

चंद्रमा की धीमी रौशनी में शुभदा को लगा कि उसका स्वप्न वास्तव में उतर आया है। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री निश्चयी कदमों से आगे बढ़ते हुए उसके पैरों में बैठ गया। आगे जो हुआ वह एक नवयुवती का सबसे शर्मनाक और सबसे लुभावना सपना था। स्वयंवर की घोषणा के बाद राजकुमारी शुभदा ने चुपके से वात्स्यायन के कामसूत्र के कुछ पन्ने पढ़े थे। आज उसे लगा जैसे पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने खुद ऋषि वात्स्यायन से शिक्षा ली थी। सबेरे तक राजकुमारी यौन संतुष्टि से थक कर बेसुध हो गई और बाहर के पक्षियों के प्रातः संगीत ने उसे जगाया।

अपने विचित्र स्वप्न को याद कर राजकुमारी ने आंखें खोली और वह कांप उठी। राजकुमारी शुभदा पूर्णतः नग्न थी और उसकी योनि पर रक्त और कोई चिपचिपा तत्व सुख रहा था। योनि के अंदर से भी वही मिश्रण बहकर अब शुभ्र सफेद रेशमी चादर को कलंकित कर चुका था। राजकुमारी शुभदा को अपने गुप्तांग में ऐसे दर्द हो रहा था जैसे किसी ने अनैसर्गिक तरीके से उसे चोट पहुंचाते हुए उसे निसर्ग के सबसे मूल तत्त्व से अवगत कराया हो। उसकी योनिमुख में से बनती जलन ऐसे थी जैसे किसी बिना धार की चाकू ने उसकी योनि को फाड़ा हो।

राजकुमारी शुभदा द्विधा मन में थी कि यदि कल रात्रि का स्वप्न स्वप्न नहीं था तो उसने अपने पति से पाप किया था पर अगर वह स्वप्न था तो उसकी इस हालत का जिम्मेदार कौन था? अपने ऊपरी वस्त्र को राजकुमारी शुभदा ने अपने सीने पर लगाया तो उसे लगा जैसे किसी ने उसके स्तनों को रात भर भींचा, दबोचा, चूसा और काटा था।

राजकुमारी शुभदा ने क्रोधित होकर देखा तो उसके इस स्थिति का जिम्मेदार शय्या के दूसरी ओर से नीचे गिर कर पड़ा खर्राटे ले रहा था। उसके पिचके हुए लिंग पर भी रक्त और घोल सुख रहा था। राजकुमारी शुभदा ने गुस्से से उसे अपनी ओर किया तो वह सेनापति अचलसेन था।

राजकुमारी शुभदा को विश्वास था कि उसने कल रात्रि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को आते हुए देखा था, पर क्या वह छल था या छलावा? उसके पति का देह बिल्कुल अलग था पर सारे प्रमाण यही सिद्ध कर रहे थे कि कल रात्रि उसके पति ने ही उसके साथ इतनी क्रूरता की थी।

राजकुमारी शुभदा ने खिड़की से आती रौशनी को देख समय का अनुमान लगाया और अपने वस्त्र लेकर स्नानगृह में गई। उसके पति से जलचक्र पूरी रात चालू छोड़ा गया था परंतु पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के अनेक यंत्रों ने पानी को नियंत्रित रखा था। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के केवल नाम को स्मरण करते ही राजकुमारी शुभदा का संपूर्ण बदन लज्जा में जल उठा। राजकुमारी शुभदा अपने देह को धो कर बाहर आई तब तक सेनापति अचलसेन भी जाग गए थे।

सेनापति अचलसेन गर्व से मुस्कुराते हुए, “प्रिए, हमें क्षमा करें। कल रात्रि पेय के कारण हमें स्मरण भी नहीं की हमने आपको इतनी क्षति पहुंचाई। आपका स्वास्थ्य कैसा है?”

राजकुमारी शुभदा सर झुकाकर, “हमें कुछ असहज लग रहा है। कृपया राज सभा में और देरी न करें और वहां बताएं कि हम दोपहर से वहां पहुंचेंगे।”

सेनापति अचलसेन युद्ध जीते मुर्गे की तरह बड़े गर्व से राज सभा की ओर बढ़े तो राजकुमारी शुभदा इस बात से आहत थी कि सेनापति अचलसेन इतनी निजी बात पर ऐसे गर्व दिखा रहे थे। जैसे कि वह सबको दिखा रहे थे कि वह राजकुमारी शुभदा संग रात्रि बिताकर उसे परास्त कर लौट रहे थे। सेनापति अचलसेन के जाते ही राजकुमारी शुभदा का निजी सुरक्षा पथक घर के समीप घेराव कर गश्त करने लगा। राजकुमारी शुभदा ने अपने मुख्य अंगरक्षक अंगद को घर में बुलाया तो वह दौड़ा चला आया।

राजकुमारी शुभदा, “अंगद, मुझे कुछ प्रश्नों का सीधा और सरल उत्तर देना। क्या कल रात्रि कोई व्यक्ति आपका घेराव पार कर सकता था?”

अंगद, “असंभव राजकुमारी शुभदा! पूर्ण पथक रात भर जोड़ियां बनाकर अपने समीप की जोड़ी पर नजर रखे हुए था। कोई व्यक्ति ही नहीं पर कोई प्राणी भी हमारी नजरों से बचकर अंदर नहीं आ सकता था।”

राजकुमारी शुभदा, “कल रात्रि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के जाने के बाद से आज सेनापति अचलसेन के जाने तक क्या हुआ?”

अंगद कुछ लज्जित होते हुए, “कल रात्रि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बाहर आते ही मुझे बुलाया। उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने आप दोनों को ताकत पेय दिया है और रात्रि में हमें आपकी सुरक्षा करते हुए आपकी लज्जा रक्षा हेतु दूर से लेकिन कड़ा पहरा देना होगा।”

राजकुमारी शुभदा, “क्या आपको पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की कोई बात अटपटी लगी?”

अंगद, “राजकुमारी, पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने मुझसे २ सैनिक मांगे अपनी रक्षा हेतु।”

राजकुमारी शुभदा, “अपनी रक्षा? किस से?”

अंगद, “स्वयं से! जो पेय उन्होंने आप को दिया वही उन्होंने भी पिया था। उन्हें डर था कि रात्रि में वह उत्तेजित हो कर कोई दुष्कर्म न कर दें। उन दो सैनिकों का कार्य था कि वह अश्वशाला के पीछे बनी कुटीर में से किसी को भी आने या जाने से रोके। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री पूर्ण रात्रि उस कुटीर में अपने ही बंदी थे और प्रातः ही पसीने से भीगे बाहर आए। फिर उन्होंने नदी में स्नान किया और मंदिर में पूजा के बाद अपने वस्त्र बदल कर राज सभा में गए।”

राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के बारे में इतनी खबर क्यों रखी?”

अंगद, “पसीने से भीगे हुए पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को देख सिपाहियों को संदेह था कि पेय का असर अब भी हो सकता है इसी वजह से उन्होंने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री पर नजर रखी। राज सभा में राज सुरक्षा है तो वह लौट आए।”

राजकुमारी शुभदा अपने आप से, “इसका मतलब कल रात इस घर में मेरे और मेरे पति के अलावा कोई व्यक्ति नहीं थी।“

अंगद, “आप निश्चिंत रहें राजकुमारी शुभदा, कल इस घर के समीप भी कोई प्राणिमात्र तक नहीं था।”
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सुबह की पहली किरण के साथ नगर का द्वार खोला गया और यात्रियों की भीड़ द्वारपाल के कक्ष की ओर बढ़ी। राज्य में आनेवाले और जानेवाले हर व्यक्ति को अपना परिचय, आने का प्रयोजन, वास करने की अवधि और परिचित व्यक्ति का नाम देना पड़ता। द्वारपाल ने आयत शुल्क लेते हुए हर व्यक्ति को प्रमाणित करते हुए आखरी व्यक्ति को बुलाया।

सुवर्ण कांति, तेजस्वी मुद्रा, शुभ्र वस्त्र और सुडौल देह का यह ब्राह्मण आगे बढ़ा। ब्राह्मण ने दो परिचय पत्र रखे। पहला पत्र बता रहा था कि ब्राह्मण का नाम पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, जो काशी विद्यापीठ का स्नातक है। दूसरा पुराना पत्र नाम पवन दास का था जो बारह वर्ष पूर्व नगर त्याग चला गया था।

द्वारपाल, “हे ब्राह्मण, आप एक दास का परिचय पत्र लिए इस नगर में क्यों आए हो? आपका प्रयोजन क्या है? क्या यह दास अपराधी है? या मृत?”

पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराकर, “आर्य, यह दोनों परिचय पत्र मेरे हैं। बारह वर्ष पूर्व आठ साल की आयु में मैंने पिता के मृत्यु के पश्चात ज्ञान अर्जन करने काशी के लिए प्रयाण किया था। अब गुरु की आज्ञा अनुसार मैं अपने राज्य पुनः निवास करने आया हूं।“

द्वारपाल दुविधा से, “तो आप दास हैं या शास्त्री? शूद्र हो या ब्राह्मण? कार्य क्या करेंगे? कहां करेंगे?”

ज्ञानदीप शास्त्री, “आर्य, मेरे पिता राजा खड़गराज के सारथी थे किंतु काशी में मेरे गुरु ने मेरा उपनयन संस्कार किया और विद्यापीठ में 21 कला एवं शास्त्रों को सीख कर अब मैं ब्राह्मण हूं। राजा खड़गराज ने मेरे पिता के मृत्यु के बाद मुझे अपनी शरण में रखने की प्रतिज्ञा ली थी इसलिए मैं लौटा हूं।”

द्वारपाल ने 2 तांबे के सिक्के शुल्क लिया और ज्ञानदीप अपने गुरु को दिया वचन पूर्ण करने राज प्रासाद की ओर बढ़ा। राज सभा जो आठ वर्ष की आयु में इतनी विशाल लगती थी वह अब छोटी लग रही थी पर आज भी उतनी ही वैभवशाली थी।
एक तेजस्वी युवा ब्राह्मण को आते देख राजा खड़गराज ने उसका स्वागत किया और आने का प्रयोजन पूछा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने जब अपनी पूर्ण पहचान और आने का प्रयोजन बताया तब सेनापति के पीछे खड़े युवा सेना अधिकारी ने ब्राह्मण का मज़ाक उड़ाया।


सेना अधिकारी, “यदि एक दास पुत्र नगर से पलायन कर कुछ गीत स्मरण कर ले तो क्या उसे राजा बनाया जाए या सेनापति? अब तो वह ऐसा व्यक्ति है जिसने न अपने पिता से आश्वपालन के पूर्ण ज्ञान को पाया और न ब्राह्मण जन्म लेकर पूर्ण शास्त्र का ज्ञान पाया। ऐसा अपूर्ण व्यक्ति राज सभा में किस काम का?”

राजा खड़गराज, “सेना अधिकारी अचलसेन का प्रश्न योग्य है। आप के गुरु ने आप को शूद्र से ब्राह्मण बना दिया है पर इस से आप समाज को क्या दे सकते हैं? अपने ज्ञान और विशेषता का प्रमाण दें।”

ज्ञानदीप ने अपने गुरु को दिया वचन स्मरण कर, “हे राजन, मैंने विद्यापीठ में शास्त्र, आधुनिक विज्ञान और दंड नीति के साथ ही नृत्य कला में प्रावीण्य प्राप्त किया है। प्रमाण हेतु मैं काशी विद्यापीठ की मुद्रा में बनी शाल प्रस्तुत करते हुए नृत्य करके दिखा सकता हूं।”

ज्ञानदीप ने तेज और जटिल नृत्य कर राजसभा को चकित कर दिया। इस नृत्य में वह एक ही क्षण अपने स्थान पर गोल घूमते हुए ऊंचे उछलकर एक नृत्य मुद्रा में अडिग उतर गया। जब नृत्य समाप्त हुआ तो अचलसेन ने जोरों से तालियां बजाते हुए कहा कि बस एक डमरू की कमी थी फिर तो एक अति उत्तम मदारी का खेल सब देख पाते। ज्ञानदीप को नाचता बंदर कहने से पूरी सभा में हंसी हो गई पर ज्ञानदीप ने अपनी मर्यादा और मान को संभालकर चुप रहना स्वीकार किया।

राजा खड़गराज ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की कला को पहचाना पर वह सेनापति के पुत्र से मतभेद कर सभा में तनाव के विरुद्ध थे। इसी लिए राजा खड़गराज ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को अपनी नवयुवती राजकुमारी शुभदा को नृत्य एवं शास्त्र की शिक्षा में सहायता करने का आदेश दिया।

चौदह वर्ष* की राजकुमारी अब विवाह अनुरूप हो गई थी इसीलिए उसके लिए विवाह प्रस्ताव भी आ रहे थे। राजा खड़गराज यह भली भांति जानते थे कि उनकी इकलौती पुत्री के लावण्य से अधिक आकर्षक थी पर्वतपुर में छुपी हुई सुवर्ण और नीलमणि की खदाने। राजा खड़गराज ने अपने राज्य की स्वतंत्रता और सुरक्षा हेतु एक पुराने भविष्वाणी की मदद से यह निर्णय लिया था कि वह अपनी पुत्री का विवाह एक सुयोग्य वर से कर अपनी पुत्री को अपना उत्तराधिकारी बनाकर स्थापित करेंगे। राजकुमारी शुभदा को शास्त्र, शस्त्र और दंड नीति का ज्ञान इसी वजह से दिया जा रहा था। नृत्य का ज्ञान अब राजा खड़गराज ने देने का निर्णय लिया क्योंकि उन्होंने उस ब्राह्मण की सुडौल काया में छुपी ताक़त, अनुशासन और सहनशक्ति को देखा।

राजनंदिनी शुभदा को वह समय याद में भी नहीं था जब उसे राज्य के उत्तराधिकारी की जिम्मेदारी नहीं मिली थी। जब राज्य की बेटियां बालगीत गाती थी तब राजा की इकलौती संतान चाणक्य के अर्थशास्त्र के पाठ कर रही थी। जब बेटियां मां के साथ खाना बनाने में हाथ बंटाती राजकुमारी शुभदा अश्वशाला में अश्व का उपचार और उपयोग के विविध प्रकार समझती।

राजकुमारी शुभदा को अगर कोई रुचि, कोई आराम था तो वह था उसका निजी उद्यान जिसमें उसने आकर्षक फूल और सुगंधि जड़ी बूटियां लगाई थी। आज प्रातः स्नान से लौटते हुए राजकुमारी शुभदा ने किसी उद्दंड को अपने पौधों की पत्तियों को तोड़ता पाया और वह नवयुवती क्रोधाग्नि में जलती अपनी पैनी कटियार लेकर उस पर टूट पड़ी। सेविकाओं की भय की चीखें अचरज की आह में बदल गई जब शस्त्र में निपुण राजनंदिनी शुभदा को एक ब्राह्मण ने एक नृत्य मुद्रा से पछाड़ दिया और फिर अपने विज्ञान के ज्ञान से उन पत्तियों से औषधि बनाने की विधि बताई।

अतीव सुंदर प्रस्तुति! वाह मित्र - ऐसी भाषा में लेखन करते हुए किसी को पहली बार देखा इस फोरम पर। वाह 👌
कथानक रोचक प्रतीत होता है। आशा है कि पाठक सतही बातों से ऊपर उठ कर कथा की गहराई को पढ़ और समझ सकेंगे। आप लिखें - कम से कम हम आपका साथ देंगे 😊
 
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