विवाह के बाद पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजकुमारी शुभदा और सेनापति अचलसेन को अपने साथ राज महल के पास राजकुमारी शुभदा के उद्यान से लगे एक सुंदर और सुस्थित घर में ले आए।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी शुभदा, यह कोई राज़ नहीं की मैं स्वयंवर में सहभागी होना चाहता था। उसका एक सीधा कारण यह है कि मैं आप से विवाह करना चाहता था। मैने पिछले चार वर्ष जो धन कमाया है उस से मैने यह घर हमारे निवास के लिए बनवाया। अब आप के पति के रूप में कोई और व्यक्ति हो तो भी इस घर की गृहलक्ष्मी आप हो। इस घर को इस दास से विवाह उपहार के रूप में स्वीकार करें।”
राजकुमारी शुभदा ज्ञानदीप शास्त्री के इस बहुमूल्य घर को मुफ्त लेने से विरोध करने लगी क्योंकि यह ज्ञानदीप शास्त्री की चार वर्ष से बचाई संपूर्ण संपत्ति थी। लेकिन सेनापति अचलसेन पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के हार की यह निशानी हथियाना चाहते थे और उन्होंने इसे पाने का सरल मार्ग अपनाया।
सेनापति अचलसेन, “प्रिये, विवाह के बाद और आपके राज्याभिषेक से पहले हमें राज महल में रहना अशोभनीय होगा। क्यों ना हम इस कुटिया में कुछ महिनों के लिए रहें?”
राजकुमारी शुभदा अनमन से मान गई तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री नवविवाहित जोड़े के इस घर में स्वागत हेतु शीत पेय लेने रसोई में गए। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री चांदी की थाली में सोने के तीन प्याले लाए जिन्हें त्रिकोणीय पद्धति में ऐसे रचा गया था कि एक प्याला राजकुमारी की ओर था, एक सेनापति अचलसेन की ओर तो तीसरा पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के ठीक सामने।
राजकुमारी शुभदा ने स्मित हास्य देते हुए अपने सामने रखे प्याले को उठाया पर संशय से सेनापति अचलसेन ने ज्ञानदीप की ओर का प्याला उठा लिया। ज्ञानदीप को सेनापति अचलसेन की ओर का प्याला उठा लेना पड़ा।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “यह पेय एक ऐसी औषधि है जो मनुष्य में ताकत का संचार बढ़ाती है और शारीरिक पीड़ा तथा दर्द से आराम दिलाती है।”
राजकुमारी शुभदा ने जल्दी से अपना प्याला पी लिया पर सेनापति अचलसेन ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के शीतपेय पीने के बाद ही अपना प्याला होठों से लगाकर पिया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बताया कि राजकुमारी शुभदा को शर्म से बचाने के लिए उनका व्यक्तिगत सुरक्षा पथक थोड़े अंतर पर रहेगा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अब बेघर होने के कारण पास ही अश्वशाला के पीछे बनी कुटीर में निवास करने वाले हैं। ज्ञानदीप शास्त्री ने घर की सारी विशेषताएं बताई और फिर नवदम्पत्ति से रात्रि के लिए विदा ली।
सेनापति अचलसेन ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की सलाह मान कर सोने से पहले मल्लयुद्ध की मिट्टी धोने स्नानगृह में बने जलचक्र को इस्तमाल करना उचित समझा। राजकुमारी शुभदा शर्म से अपने देह में गर्मी बनते जानकर श्यनगृह में बनी शय्या पर बैठ गई। शय्या अत्यंत आरामदायक थी और उसपर बिछा वस्त्र शुभ्र सफेद रेशम था जो राजकुमारी पलभर में पहचान गई। यह सुदूर पूर्व कैलाश पार के चीन राज्य का था जिसकी कीमत एक छोटे घर जितनी थी। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने इतनी सुंदर व्यवस्था उसके लिए करते हुए जरूर धन के साथ अपने जीवन के कई वर्ष खर्च किए थे। एक पुरुष जो एक स्त्री के लिए ऐसा घर बनाए जिसकी बनावट और सामग्री स्वर्गीय हो वह उस स्त्री की प्रति क्या समर्पण रखता होगा?
राजकुमारी शुभदा को विज्ञान का वह पाठ याद आया जहां नर पक्षी अपनी मादा को आकर्षित करने के लिए सबसे सुंदर और मजबूत घोंसला बनाता है। यह पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का राजनंदिनी शुभदा के लिए बनाया घोंसला था। राजकुमारी शुभदा के स्तनों में रक्त प्रवाह तेज हो गया, उसके स्तनों पर बनी बेरियां उभरकर उसके ऊपरी वस्त्र को अंदर से खरोंचते हुए उनमें से दिखने लगीं। राजकुमारी शुभदा की सांसे तेज होने लगी और उन्हें अपने छुपे हुए विशेष अंगों में अपने अंतर्वस्त्र चुभने लगे। राजकुमारी शुभदा शय्या पर लेट गई और अनजाने में अपने हाथों को अपने सपाट पेट के ऊपर से घुमाते हुए अपनी धोती पर से अपने गुप्तांग दबाने लगी।
राजकुमारी शुभदा ने पाया कि अब वह राजकुमारी न होकर केवल शुभदा थी जिसे इस सुंदर घर बनाने वाले पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के प्रति आकर्षण हो रहा था। उसका बदन कसमसाने लगा और वह एक अनजान पीड़ा में तड़पने लगी। वह न जाने कितनी देर ऐसे तड़प रही थी जब उसने शयनगृह के दरवाजे में किसी को देखा।
चंद्रमा की धीमी रौशनी में शुभदा को लगा कि उसका स्वप्न वास्तव में उतर आया है। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री निश्चयी कदमों से आगे बढ़ते हुए उसके पैरों में बैठ गया। आगे जो हुआ वह एक नवयुवती का सबसे शर्मनाक और सबसे लुभावना सपना था। स्वयंवर की घोषणा के बाद राजकुमारी शुभदा ने चुपके से वात्स्यायन के कामसूत्र के कुछ पन्ने पढ़े थे। आज उसे लगा जैसे पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने खुद ऋषि वात्स्यायन से शिक्षा ली थी। सबेरे तक राजकुमारी यौन संतुष्टि से थक कर बेसुध हो गई और बाहर के पक्षियों के प्रातः संगीत ने उसे जगाया।
अपने विचित्र स्वप्न को याद कर राजकुमारी ने आंखें खोली और वह कांप उठी। राजकुमारी शुभदा पूर्णतः नग्न थी और उसकी योनि पर रक्त और कोई चिपचिपा तत्व सुख रहा था। योनि के अंदर से भी वही मिश्रण बहकर अब शुभ्र सफेद रेशमी चादर को कलंकित कर चुका था। राजकुमारी शुभदा को अपने गुप्तांग में ऐसे दर्द हो रहा था जैसे किसी ने अनैसर्गिक तरीके से उसे चोट पहुंचाते हुए उसे निसर्ग के सबसे मूल तत्त्व से अवगत कराया हो। उसकी योनिमुख में से बनती जलन ऐसे थी जैसे किसी बिना धार की चाकू ने उसकी योनि को फाड़ा हो।
राजकुमारी शुभदा द्विधा मन में थी कि यदि कल रात्रि का स्वप्न स्वप्न नहीं था तो उसने अपने पति से पाप किया था पर अगर वह स्वप्न था तो उसकी इस हालत का जिम्मेदार कौन था? अपने ऊपरी वस्त्र को राजकुमारी शुभदा ने अपने सीने पर लगाया तो उसे लगा जैसे किसी ने उसके स्तनों को रात भर भींचा, दबोचा, चूसा और काटा था।
राजकुमारी शुभदा ने क्रोधित होकर देखा तो उसके इस स्थिति का जिम्मेदार शय्या के दूसरी ओर से नीचे गिर कर पड़ा खर्राटे ले रहा था। उसके पिचके हुए लिंग पर भी रक्त और घोल सुख रहा था। राजकुमारी शुभदा ने गुस्से से उसे अपनी ओर किया तो वह सेनापति अचलसेन था।
राजकुमारी शुभदा को विश्वास था कि उसने कल रात्रि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को आते हुए देखा था, पर क्या वह छल था या छलावा? उसके पति का देह बिल्कुल अलग था पर सारे प्रमाण यही सिद्ध कर रहे थे कि कल रात्रि उसके पति ने ही उसके साथ इतनी क्रूरता की थी।
राजकुमारी शुभदा ने खिड़की से आती रौशनी को देख समय का अनुमान लगाया और अपने वस्त्र लेकर स्नानगृह में गई। उसके पति से जलचक्र पूरी रात चालू छोड़ा गया था परंतु पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के अनेक यंत्रों ने पानी को नियंत्रित रखा था। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के केवल नाम को स्मरण करते ही राजकुमारी शुभदा का संपूर्ण बदन लज्जा में जल उठा। राजकुमारी शुभदा अपने देह को धो कर बाहर आई तब तक सेनापति अचलसेन भी जाग गए थे।
सेनापति अचलसेन गर्व से मुस्कुराते हुए, “प्रिए, हमें क्षमा करें। कल रात्रि पेय के कारण हमें स्मरण भी नहीं की हमने आपको इतनी क्षति पहुंचाई। आपका स्वास्थ्य कैसा है?”
राजकुमारी शुभदा सर झुकाकर, “हमें कुछ असहज लग रहा है। कृपया राज सभा में और देरी न करें और वहां बताएं कि हम दोपहर से वहां पहुंचेंगे।”
सेनापति अचलसेन युद्ध जीते मुर्गे की तरह बड़े गर्व से राज सभा की ओर बढ़े तो राजकुमारी शुभदा इस बात से आहत थी कि सेनापति अचलसेन इतनी निजी बात पर ऐसे गर्व दिखा रहे थे। जैसे कि वह सबको दिखा रहे थे कि वह राजकुमारी शुभदा संग रात्रि बिताकर उसे परास्त कर लौट रहे थे। सेनापति अचलसेन के जाते ही राजकुमारी शुभदा का निजी सुरक्षा पथक घर के समीप घेराव कर गश्त करने लगा। राजकुमारी शुभदा ने अपने मुख्य अंगरक्षक अंगद को घर में बुलाया तो वह दौड़ा चला आया।
राजकुमारी शुभदा, “अंगद, मुझे कुछ प्रश्नों का सीधा और सरल उत्तर देना। क्या कल रात्रि कोई व्यक्ति आपका घेराव पार कर सकता था?”
अंगद, “असंभव राजकुमारी शुभदा! पूर्ण पथक रात भर जोड़ियां बनाकर अपने समीप की जोड़ी पर नजर रखे हुए था। कोई व्यक्ति ही नहीं पर कोई प्राणी भी हमारी नजरों से बचकर अंदर नहीं आ सकता था।”
राजकुमारी शुभदा, “कल रात्रि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के जाने के बाद से आज सेनापति अचलसेन के जाने तक क्या हुआ?”
अंगद कुछ लज्जित होते हुए, “कल रात्रि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बाहर आते ही मुझे बुलाया। उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने आप दोनों को ताकत पेय दिया है और रात्रि में हमें आपकी सुरक्षा करते हुए आपकी लज्जा रक्षा हेतु दूर से लेकिन कड़ा पहरा देना होगा।”
राजकुमारी शुभदा, “क्या आपको पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की कोई बात अटपटी लगी?”
अंगद, “राजकुमारी, पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने मुझसे २ सैनिक मांगे अपनी रक्षा हेतु।”
राजकुमारी शुभदा, “अपनी रक्षा? किस से?”
अंगद, “स्वयं से! जो पेय उन्होंने आप को दिया वही उन्होंने भी पिया था। उन्हें डर था कि रात्रि में वह उत्तेजित हो कर कोई दुष्कर्म न कर दें। उन दो सैनिकों का कार्य था कि वह अश्वशाला के पीछे बनी कुटीर में से किसी को भी आने या जाने से रोके। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री पूर्ण रात्रि उस कुटीर में अपने ही बंदी थे और प्रातः ही पसीने से भीगे बाहर आए। फिर उन्होंने नदी में स्नान किया और मंदिर में पूजा के बाद अपने वस्त्र बदल कर राज सभा में गए।”
राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के बारे में इतनी खबर क्यों रखी?”
अंगद, “पसीने से भीगे हुए पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को देख सिपाहियों को संदेह था कि पेय का असर अब भी हो सकता है इसी वजह से उन्होंने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री पर नजर रखी। राज सभा में राज सुरक्षा है तो वह लौट आए।”
राजकुमारी शुभदा अपने आप से, “इसका मतलब कल रात इस घर में मेरे और मेरे पति के अलावा कोई व्यक्ति नहीं थी।“
अंगद, “आप निश्चिंत रहें राजकुमारी शुभदा, कल इस घर के समीप भी कोई प्राणिमात्र तक नहीं था।”